Conversation with Dr. Talwar मुंबई (भारत)

26, 27 फरवरी 1987, शिव पूजा के सुअवसर पर मुंबई में माताजी श्री निर्मला देवी की डॉ. तलवार से बातचीत। सहयोग का ज्ञान मुझे सदा से था। इस अद्वितीय ज्ञान के साथ ही मेरा जन्म हुआ। परंतु इसे प्रकट करना आसान कार्य न था। अतः इसे प्रकट करने की विधि मैं खोजना चाहती थी।सर्वप्रथम मैंने सोचा कि सातवें चक्र (सहस्त्रार) का खोला जाना आवश्यक है और 5 मई 1970 को मैंने यह चक्र खोल दिया। एक प्रकार से यह रहस्य है। पहले ब्रह्म चैतन्य अव्यक्त था, इसकी अभिव्यक्ति न हुई थी। यह स्वतः स्पष्ट न था। जो लोग किसी प्रकार आत्म साक्षात्कार प्राप्त करके ब्रह्म चैतन्य के समीप पहुंच जाते तो वे कहते कि “यह निराकार का गुण है। व्यक्ति एक बूंद की तरह से है जो सागर में विलीन हो जाती है।”इससे अधिक कोई भी न तो वर्णन कर पाता और न ही लोगों को बता पाता। ब्रह्म चैतन्य के सागर में अवतरित महान अवतरणो ने भी अपने गिने चुने शिष्यों को यह रहस्य समझाना चाहा, उनका परिचय ब्रह्म चैतन्य से करवाने का प्रयत्न किया। परंतु ब्रह्म चैतन्य के अव्यक्त रूप में में होने के कारण यह अवतरण स्वयं “इसी में लुप्त हो गए।” ज्ञानेश्वर जी ने समाधि ले ली। कुछ लोगों ने कहा कि वे उसकी बात नहीं कर सकते। यह तो अनुभव की चीज है। अतः बहुत कम लोग इसे प्राप्त कर सके। कोई भी अपनी उंगलियों के सिरों पर, अपनी नाड़ियों पर, अपने मस्तिष्क में इसका अनुभव करके या अपनी बुद्धि से समझ कर आत्मसाक्षात्कार के Read More …

Conversation After Shri Krishna Puja New Jersey (United States)

                 श्री कृष्ण पूजा के बाद वार्ता  न्यू जर्सी (USA) रविवार, 19 अगस्त, 1984 श्री माताजी: क्रिस्टीन की तरह, मुझे कहना चाहिए, मैरी यहाँ आई, उसके मंगेतर के साथ, बड़ी आपत्ति हुई, कल्पना कीजिए कि फ्रांसीसी लोगों को मैरी के अपने मंगेतर के साथ आने पर आपत्ति है, आप देखिए, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि फ्रांसीसी दूसरे चरम पर जा रहे हैं, (हंसते हुए)। मेरा मतलब है कि यह बेतुका है, और मुझे बड़े-बड़े टेलीफोन कॉल करते हैं कि माँ, यह हो गया है और यह होने जा रहा है और वह है। मैंने कहा कि देखो ये फ्रेंच मुझे इस बारे में बता रहे हैं। क्या तुम कल्पना कर सकती हो? अब वे नहीं चाहते कि आप किसी और से बात भी करें, जो कि आपका मंगेतर है, शादी से पहले, उस व्यक्ति की तरफ देखना भी नहीं चाहिए! ऐसे फ्रेंच (बड़ी हँसी) क्या आप विश्वास कर सकते हैं! (हँसी) मेरा मतलब उस की चरम सीमा से है! तो मैंने उससे कहा कि बेहतर हो मत जाओ लेकिन उनके पास टिकट थे और वे वापस नहीं कर सके, मैंने कहा ‘बाबा मत जाओ’, हर जगह से बड़ी आपत्ति, मैं खुद इस पर चकित हूं (हंसते हुए) और यह एक नया प्रकार है किसी समस्या के आने का। मैं नहीं समझ सकती (हंसते हुए)। मैंने देखा है कि ऐसा होता है, एक और अति, आप देखिए कि, वे जो करते रहे हैं उससे बहुत तंग आ चुके हैं। अब बस इसी तरह का कुछ अधिक नहीं चाहते हैं, लेकिन Read More …

Sympathetic and Parasympathetic London (England)

                  “अनुकंपी और परानुकंपी”  डॉलिस हिल आश्रम। लंदन (यूके), 24 अप्रैल 1980। एक्यूपंक्चर वास्तव में उस शक्ति का दोहन है जो पहले से ही हमारे भीतर है। अब उदाहरण के लिए, आपके पेट में एक निश्चित शक्ति है, ठीक है? अब पेट में आपके अन्य अंगों को लगातार इस शक्ति की आपूर्ति की जाती है, तथा अनुकंपी तंत्रिका तंत्र के माध्यम से उसका उपयोग किया जाता है। परानुकम्पी इसे संग्रहीत करता है और अनुकंपी इसका उपयोग करती है। अब मान लीजिए पेट में कोई बीमारी है। तो अब उसमें जो शक्ति है, उस विशेष केंद्र की प्राणिक ऊर्जा एक प्रकार से समाप्त हो गई है या बहुत कम है। तो आखिर वे करते क्या हैं? उस व्यक्ति को कैसे ठीक किया जाए? वे दूसरे केंद्र से लेते हैं, उसे मोड़ते हैं, और वहां रख देते हैं। और इस तरह वे इसे ठीक करने की कोशिश करते हैं। लेकिन इससे वे असंतुलन पैदा करते हैं, क्योंकि आपके पास सीमित ऊर्जा है; आपके पास एक सीमित, बिल्कुल सीमित, ऊर्जा है। अब मान लीजिए कि आपके पास एक सीमित पेट्रोल और दूसरी कार है जिसका पेट्रोल खत्म हो गया है। अब अगर आप दूसरी कार में पेट्रोल डालते हैं, तो शायद वह कार आधी दूर तक चली जाएगी और आप भी आधे रास्ते जाकर खत्म हो जाएंगे। आप मेरी बात समझते हैं? तो ये दोनों ही आपकी लंबी उम्र को कम करते हैं। तो यह हमारे भीतर स्थित उस सीमित ऊर्जा का निचोड़ है । सहज योग बहुत अलग चीज है: सहज योग में Read More …