Letter about Dharma London (England)

                        धर्म के बारे में पत्र (पिरामिड और ताजमहल भी)  लंदन, 12 अक्टूबर 1976। यह बहुत सच है कि प्रागैतिहासिक काल के कुछ मनुष्य बहुत बुद्धिमान और गतिशील थे। शायद वे आत्मसाक्षात्कारी थे लेकिन निश्चय ही प्राचीन सभ्यता में ऐसे लोग, श्रेष्ठ लोगों के रूप में बहुत अधिक मान्य होंगे। अन्यथा आप मिस्र में एक पिरामिड निर्माण का श्रेय किन्हें दे सकते हैं, पिरामिड जो कि अंदर से, पूर्ण चैतान्यित है। (मानव मस्तिष्क भी एक “पिरामिड जैसा है” लेकिन अभी तक आदर्श परिपूर्ण नहीं है। पिरामिड के अनुपात दिव्य हैं। यह सब  “the super nature”  पर उनकी पुस्तक में एक वैज्ञानिक द्वारा प्रमाणित  है जहां उन्होंने पाया कि वहाँ शवों का क्षय नहीं होता है। । ऐसे कई उदाहरण हैं। विशेष रूप से कलाकार जो उच्च जागरूकता (आत्मसाक्षात्कारी ) के थे, स्वीकार किए जाते थे और इसी प्रकार है कि ताजमहल काम करता है ( उसका गुंबद प्रतिध्वनि करता है और बहुत सारे कंपन होते हैं क्योंकि गुंबद का एक विशेष आकार है)। तो अब ये कोई कोरे विश्वास नहीं है। वे सभी आधुनिक पुरुषों के अवधारणा से भी परे हैं। इस स्वीकृति का कारण इस तथ्य से आता है कि उस समय ज्यादातर मानव ने अपने जीवनचर्या में सदाचार को [धर्मं की अभिव्यक्ति]  स्वीकार किया। उन्हें सामाजिक या राजनीतिक रूप से सदाचार से “मुक्ति” नहीं मिली। धर्म का पालन करने को सामान्य स्वीकृति थी| “ईश्वर के बारे में बात” करने वाले लोगों द्वारा प्रतिपादित औपचारिक धर्मों के स्पष्ट विचार होने ही थे। वे लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं और जो बोध Read More …