Public Program New Delhi (भारत)

Sahaja Yogi – Ek Adarsh Hindustani   Date: March 24, 2003   Place Delhi    Type: Public Program   आप लोगों का ये हार्दिक स्वागत देख करके हृदय आनंद से भर आता है और समझ में नहीं आ रहा है कि क्या कहूँ और क्या न कहूँ। आप न जाने कितनी जगह बैठे हैं,  मैं तब से देख रही हूँ कि कहाँ-कहाँ सब लोग बैठे हैं। शायद इस स्टेडियम में मैं पहली मर्तबा आयी हूँ और आप लोग इतने बिखरे-बिखरे बैठे हैं।  आपसे आज के मौके पर क्या कहना चाहिए और क्या बताना चाहिए, ये ही समझ में नहीं आता है कि आप लोग अधिकतर सहजयोगी हैं। और जो नहीं भी हैं वो भी हो ही जायेंगे, हर बार ऐसा ही होता है। जीवन में सहजयोग प्राप्त होना एक जमाने में बड़ी कठिन चीज थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब तो बहुत सहज में ही आपकी कुण्डलिनी जागृत हो सकती है। और सहज में ही आप उस स्थान को प्राप्त कर सकते हैं जो कहा जाता है कि आप ही के अन्दर आत्मा का वास है। और आप ही के अंदर वो चमत्कार होना चाहिए जिससे आपको अपने आत्मा से परिचित किया जा सके। ये चीज़ एक जमाने में बड़ी कठिन थी। हजारों वर्षों की तपस्चर्या जंगलों में घूमना, ऋषियों-मुनियों की सेवा उसके फलस्वरूप कुछ लोग, बहुत कुछ लोग, इसे प्राप्त करते थे। पर आजकल ऐसा ज़माना आ गया है कि गर मनुष्य को ये गति नहीं मिली तो न जाने वो किस ठौर उतरेगा, उसका क्या हाल होगा?  शायद इसीलिए इस कलियुग में भी ये सहजयोग इतना गतिमान है। इसमें तो आप लोगों का भी योगदान है। हजारों सहजयोगी हो गए हैं और सब लोग आपको खुद पार करा सकते हैं। ये कितना बड़ा कार्य हो गया है, क्योंकि मेरे अकेले के बस का इतना था क्या?  लेकिन इसको संवारा है आपने, इसको उठाया है आपने और इसके लिए मेहनत की है आपने।  मैं आपको कितना धन्यवाद दूँ ये मैं नहीं समझ पाती। कितनी बड़ी Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

Sarvajanik Karyakram – Public Program Date 24th March 2002: Place New Delhi Public Program Type [Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] वो सबके अंदर है और स्थित है। उसके क. अंदर रंग, जाति-पाति कोई भेद नहीं। हर इंसान में है। जानवर में भी है। आपको आश्चर्य होगा कि जानवर प्यार बहुत समझते हैं। इंसान से भी ज्यादा जानवर समझते हैं प्यार क्या चीज़ है। तो हम लोग वाकई अगर अपनी उत्क्रान्ति में बढ़ रहे हैं, अपने Evolution में बढ़ रहे हैं तो हमारे अंदर प्यार का बड़ा जबरदस्त प्रकाश होना चाहिए। अगर प्यार आ जाए तो हमारे सारे प्रश्न जो हैं, जो मानव जाति के लिए पहाड़ सत्य को खोजने वाले आप सभी जैसे खड़े हैं, एक दम खत्म हो जाऐं। साधकों को हमारा प्रणाम | प्यार की हमने व्याख्याएं अनेक की हैं जिस चीज की आज हर जगह कमी है, पुर उसकी कोई व्याख्या नहीं कर सकता वो है प्रेम। यही प्रेम जो है यही प्रभु की क्योंकि वो एक सागर है हमारे अंदर बसा भक्ति है बहुत लोग जिस बात को शब्द हुआ एक महान सागर है और उसको समझते हैं, लेकिन प्रेम एक शब्द नहीं है। भोगना भी हमारे ही नसीब में है । उसकी प्यार एक शक्ति है और उसका भण्डार लहरें भी हमीं ज्ञात कर सकते हैं। हमारे हमारे ही अंदर है। हम सभी उस प्यार से ही लिए वह है। दूसरा चाहे उसे समझे या भरे हैं। कभी-कभी उसका अनुभव हमको न समझे लेकिन हमारे लिए वो एक बहुत आता है Read More …

We Have To Be Transformed Royal Albert Hall, London (England)

रॉयल अल्बर्ट हॉल में सार्वजनिक कार्यक्रम। लंदन (यूके), 14 जुलाई 2001. मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। आप में से कुछ ने सत्य पाया है, आप में से कुछ ने इसे पूरी तरह से नहीं पाया है, और आप में से कुछ ने इसे बिल्कुल नहीं पाया है। लेकिन अगर आप आज की स्थिति में चारों ओर देखते हैं, तो आपको सहमत होना पड़ेगा कि बड़ी उथल-पुथल चल रही है। देशों के बाद देश सभी प्रकार की गलत चीजों को अपना रहे हैं। कोल्ड वॉर जारी है, लोग एक-दूसरे को मार रहे हैं, खूबसूरत जगहों को नष्ट कर रहे हैं, एक-दूसरे का गला काट रहे हैं। वे सभी मनुष्य ईश्वर द्वारा निर्मित हैं। सर्वशक्तिमान ईश्वर ने उन्हें बनाया है और उन्हें मानवीय जागरूकता के इस स्तर पर लाया है। इस मोड़ पर कोई यह नहीं देख पाता है कि हम सामूहिक रूप से कहां जा रहे हैं। यही है, हमें कहाँ पहुँचना है – या क्या यही हमारी नियति है? क्या यही मनुष्य की नियति है, भूमि या किसी और चीज की खातिर आपस में संघर्ष कर नष्ट हो जाना? पूरी दुनिया को एक मानें, और सोचें कि क्या हो रहा है: हर दिन जब हम अखबार पढ़ते है तो, भयानक खबरें सुनते हैं कि, हर दिन लोग बिना किसी तुक और कारण के आपस में भयानक बर्ताव कर रहे हैं । हमें सोचना होगा, नियति क्या है? हम कहां जा रहे हैं? क्या हम नर्क जा रहे हैं या स्वर्ग जा रहे हैं? हमारी स्थिति क्या Read More …

Public Program Satya Ki Prapti Hi Sabse Badi Prapti Hai New Delhi (भारत)

Satya Ki Prapti Hi Sabse Badi Prapti Hai, Type: Public Program   Place: New Delhi, Date: 2001-03-25 सत्य को खोजने वाले और जिन्होंने सत्य को खोज भी लिया है, ऐसे सब साधकों को हमारा प्रणाम। दिल्ली में इतने व्यापक रूप में सहजयोग फैला हुआ है कि एक जमाने में तो विश्वास ही नहीं होता था कि दिल्ली में दो-चार भी सहजयोगी मिलेंगे। यहाँ का वातावरण ऐसा उस वक्त था कि जब लोग सत्ता के पीछे दौड रहे थे और व्यवसायिक लोग पैसे के पीछे दौड़ रहे थे। तो मैं ये सोचती थी कि ये लोग अपने आत्मा की ओर कब मुडेंगे। पर देखा गया कि सत्ता के पीछे दौड़ने से वो सारी दौड निष्फल हो जाती है, थोडे दिन टिकती है। ना जाने कितने लोग सत्ताधारी हुए और कितने उसमें से उतर गये।  उसी तरह जो लोग धन प्राप्ति के लिए जीवन बिताते हैं उनका भी हाल वही हो जाता है। क्योंकि कोई सी भी चीज़ जो हमारे वास्तविकता से दूर है उसके तरफ जाने से अन्त में यही सिद्ध होता है कि ये वास्तविकता नहीं है। उसका सुख, उसका आनंद क्षणभर में भंगूर हो जाता है, ख़तम हो जाता है। और इसी वजह से मैं देखती हूँ कि दिल्ली में इस कदर लोगों में जागृति आ गई है। ये जागृति आपकी अपनी संपत्ति है। ये आपके अपने शुद्ध हृदय से पाये हुए, प्रेम की बरसात है। इसमें ना जाने हमारा लेना देना कितना है।  किन्तु समझने की बात ये है कि अगर आपके अन्दर ये सूझबूझ नहीं होती, तो Read More …

Without knowing the Self you cannot get rid of your problems Royal Albert Hall, London (England)

2000-09-26 सार्वजनिक कार्यक्रम,  रॉयल अल्बर्ट हॉल, लंदन, ब्रिटेन  सत्य को खोजने वाले सभी साधकों को मेरा प्रणाम। इस आधुनिक समय में यह भविष्यवाणी की गई थी कि बहुत – बहुत से लोग सत्य की खोज करेंगे और आप इसका प्रमाण देख सकते हैं। बहुत से लोग सत्य की खोज करेंगे क्योंकि वे असत्य से तंग आ जाएंगे, उन्हें यह भी पता चल सकेगा है कि बहुत सारी चीज़ें सतही हैं, जो बिल्कुल संतोषजनक नहीं है (यह) इस आधुनिक समय का आशीर्वाद है, यद्यपि हम कहते हैं आधुनिक समय सबसे ख़राब है। इसके अत्याचार के कारण, इसकी समस्या के कारण  लोग सच्चाई जानना चाहते हैं और उन्हें सच भी पहले से पता चल जाएगा। इसके अलावा आपको अपने बारे में भी सत्य जानना होगा। मैंने आपको कई बार कहा है कि सच यह है कि आप यह शरीर नहीं हैं, आप यह मन नहीं हैं, आप यह भावनाएं नहीं हैं, अपितु आप शुद्ध आत्मा हैं।  आप हैं, आप सभी  हैं, यह केवल एक कहानी नहीं जो मैं आपको बता रही हूं, यह एक तथ्य है। लेकिन जब वे कहते हैं कि स्वयं को जानो। सभी शास्त्रों में उन्होंने एक समान बात कही है, आपको स्वयं को जानना चाहिए। क्योंकि यदि आप स्वयं को नहीं जानते हैं तो आप परमात्मा को कैसे जानेंगे? इसलिए सबसे पहले आपको स्वयं  को जानना चाहिए और स्व भीतर है। समस्या यह थी कि स्वयं को जानने के लिए अंदर कैसे प्रवेश करें, स्वयं को अनुभव करने के लिए, स्वयं की शक्ति को अनुभव करने के लिए आपको Read More …

On Torsion Area Holiday Inn London – Kensington Forum Hotel, London (England)

                                        वी आई पी रिसेप्शन, LONDON ,UK,DP RAW                                                            2000-09-23 मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूँ। ये विशिष्ट समय है जब हमारे पास सत्य के इतने साधक हैं । आश्चर्यजनक रूप से आजकल बहुत सारे लोग जानना चाहते  हैं कि सत्य क्या, और परिणाम उनमें से कुछ खो भी जाते हैं। लेकिन सच्चाई क्या है, सच्चाई यह है कि आप यह शरीर नहीं हैं, यह मन, यह भावनाएं यह तथाकथित बुद्धिमत्ता नहीं हैं लेकिन आप सच्ची आत्मा हैं। सभी शास्त्रों ने कहा है कि जहाँ  तक और जब तक आप खुद को नहीं जानते तब तक आप परमात्मा को कैसे जान पाएंगे। क्योंकि यदि हम स्वयं को वास्तव में नहीं जानते हैं तो हम परमात्मा को जानने के लिए सुसज्जित नहीं हैं और इसलिए स्वयं को जानना इतना महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसी चीज है जिसे लोग समझ नहीं पाते हैं क्योंकि ज्यादातर उन्हें कविता में लिखा गया है। और उन सभी ने कहा है कि आपको स्वयं को जानना चाहिए लेकिन आप स्वयं को कैसे जान पाएंगे कि आपका स्व भीतर है और बाहर नहीं। तो अपने आप को जानने के लिए अंदर कैसे प्रवेश करें यह समस्या है। यह समस्या वास्तव में इतनी महान है कि बहुत से लोगों को जानने के ज्ञान से बाहर रखता है। अब मुझे आपको अपने बारे में बताना चाहिए कि मैंने खुद महसूस किया है कि लोगों को खुद को जानने की एक बड़ी समस्या है, हालांकि मैं खुद को बहुत अच्छी तरह से जानती थी । दूसरों को अपने बारे Read More …

Kundalini will take you to the Truth Parchi di Nervi, Genoa (Italy)

2000-09-04 सार्वजनिक कार्यक्रम, जेनोवा इटली मैं सभी सत्य-साधकों को प्रणाम करती हूँ।हमें यह जानना होगा कि वह सत्य क्या है जिसे हम खोज रहे हैं।सत्य यह है कि आप  एक  शरीर नहीं है,मन,  ये भावनाएँ , और न ही आपकी बुद्धि परंतु आप एक आत्मा है, जिसे हम ‘स्व’ कहते हैं। ऐसा प्रत्येक शास्त्र में लिखा गया है कि आपको ‘स्व’ को पाना है। जब तक आप स्वयं अपने को नहीं जान लेते, तब तक आप परमेश्वर को नहीं जान सकते। यही मुख्य कारण है कि हमारे यहां भगवान के नाम पर इतने झगड़े, युद्ध होते हैं। परंतु अब आपके लिए अपने ‘स्व’ को जानना बहुत सरल हो गया है।जैसा कि उन्होंने आपको बताया गया है कि आपकी त्रिकोणकार अस्थि में एक शक्ति निहित है जिसे हम भारत में ‘कुंडलिनी’ कहते हैं । कुंडल का अर्थ होता है कुण्डलीय आकार और क्योंकि यह साढ़े तीन कुंडल में होती है, इसे कुंडलिनी कहा जाता है। यह सभी धर्मों में कहा गया है; कि आपके पास यह आंतरिक शक्ति है जिसके द्वारा आप अपने ‘स्व’ को जान सकते हैं। यदि इसे जागृत किया जा सकता है तो यह छह चक्रों में से गुजरती है, जैसा कि आपको बताया गया है । ये छह चक्र आपके शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक अस्तित्व के लिए हैं। इतना ही नहीं बल्कि वे आपके आध्यात्मिक अस्तित्व को भी बनाए रखते हैं।यह कुंडलिनी वास्तव में आपकी अपनी माँ है। वह आपकी व्यक्तिगत मां है। वह आप के भीतर विध्यमान रहती है जागृत होने के अवसर की प्रतीक्षा करते हुए Read More …

Have you been able to know yourself? New York City (United States)

2000-06-16 सार्वजनिक कार्यक्रम, न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका “… एक साथ वे खोज रहे हैं, खोज रहे हैं खोज रहे हैं परन्तु क्या? और उस खोज से आपको क्या प्राप्त होने वाला है ? आप भली-भांति जानते हैं शास्त्रों में ,उन सभी में, यह लिखा है- आपको स्वयं को जानना है। आप स्वयं को नहीं जानते, यही मुख्य बिन्दु है। सर्वप्रथम  आपको स्वयं को जानना चाहिए। अपनी सभी खोजों के साथ, अपने सभी प्रयासों के साथ,  सभी प्रकार की कलाबाजियां करके, क्या आप स्वयं को जानने‌ में सक्षम होंगे? हमें यह प्रश्न पूछना चाहिए । मात्र इसलिए ,क्योंकि कभी-कभी आप बहुत अच्छा अनुभव करते हैं, आपको लगता है कि आप बहुत शांतिपूर्ण हैं, या आपको लगता है कि आप हवा में उड़ रहे हैं – ये सभी चीज़ें, ये सब दिखावा है। यह सब दिखावा है और हम  इतने वर्षों से यह सब कर रहे हैं । मैं नहीं जानती कि क्या हो जाता है हमारी सोच और हमारी समझ  को, जब वह परमात्मा के विषय में हो ।वही  दिव्यता जो आपके अन्दर है , उसका आपके ऊपर क्या प्रभाव होना चाहिए जिसके द्वारा  ( सर्वप्रथम), आप स्वयं को जानते हैं। यह देश साधकों से परिपूर्ण है, मैं जानती हूं । और मैं यह पाती हूं कि, एक पूंजीवादी देश होने के कारण, वे सोचते हैं कि परमात्मा को भी ख़रीदा जा सकता है, यहां तक कि गुरुओं को भी ख़रीदा जा सकता है । यदि आप किसी को ख़रीद सकते हैं, अगर आप किसी को पाल सकते हैं, तो वे Read More …

We are not ourselves Istanbul (Turkey)

२०००. ० ४. २५  सार्वजनिक कार्यक्रम, इस्तांबुल, तुर्की, लेवेंट सिरका और ओया बसर थियेटर, माक्का-इस्तांबुल मैं सत्य       को खोजनेवाले सभी साधकों को नमन करती       हूँ । ये दिन हैं       सर्वाधिक उथल-पुथल के      । हम देख सकते हैं अपने आसपास      सभी प्रकार की आपदाओं को       आते हुए । साथ ही, जो  हम      देखते हैं कि मानव      स्वयं से खुश नहीं है और न ही दूसरों से      । इसका मतलब है,      कुछ मूल-रूप से ग़लत है हमारे साथ , जो कि हम सभी एक साथ शांति से नहीं रह सकते हैं। हमारे पास आनंद नहीं है। हम अपने जीवन का आनंद नहीं ले सकते हैं। हम अनावश्यक रूप से इतने दुखी हैं। चाहे अमीर हो या गरीब, जो भी स्थिति/परिस्थिति/अवस्था      हो, लोग बहुत खुश नहीं हैं। इसका क्या कारण है? क्या हम दुख और परेशानियों के लिए बनाए गए हैं/क्या हमारी सृष्टि की गई है  दुःख और परेशानियों के लिए  ?      सभी प्रकार के रोगों और सभी प्रकार के संक्रमणों से पीड़ित होने के  लिए ?  प्रकृति भी, धरती माँ, सब का हमारे साथ सामंजस्य नहीं है। इसका कारण है,      हम स्वयं      नहीं हैं। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है , जैसा कि सभी के द्वारा कहा गया है ,      कि आपको स्वयं को जानना चाहिए। लेकिन हम कैसे जानें      ? अब समय आ गया है। कुरान में, इसे दो चरणों में वर्णित किया गया है, एक है क़ियामा और दूसरा है क़यामत । हम बच      सकते हैं और कियामा का आनंद उठा सकते हैं। या हम नष्ट हो सकते Read More …

Address to IAS officers wives association New Delhi (भारत)

पब्लिक प्रोग्राम, आईएएस ऑफिसर्स वाइव्स एसोसिएशन , नयी दिल्ली , भारत के सत्य साधकों को मेरा प्रणाम।  08-04-2000. वर्तमान, समय जिसे ‘घोर कलियुग’ का समय कहते हैं और, सभी प्रकार की भयानक चीज़े हम यहाँ देखते – सुनते है, समाचार पत्रों में पढ़ सकते हैं।  यह सच्चाई है कि  हम एक बहुत  बुरे समय से गुज़र रहे है।इस के अतिरिक्त हम बहुत ही निम्न स्तर  के लोग मिलते हैं, जिन्हे हम अति निम्न  जीवन-मूल्य वाले  लोग कह सकते है।परंतु ऐसी भविष्यवाणी बहुत,बहुत ही समय पहले की गई थी कि इस वर्तमान समय में ही वे लोग जो सत्य खोज रहे है इन गिरी कंदराओं में, हिमालय, सभी प्रकार के विस्मृत स्थानों में, वे सत्य को पा लेंगे। यह सब पहले से ही अनेकों  महान ज्योतिष  ज्ञानियों द्वारा  , संतो द्वारा भी वर्णित है।  तो वर्तमान में हम बहुत ही भाग्यपूर्व  परिस्थिति में स्थापित हैं।  मैं यह अवश्य कहूँगी कि मुझे उन समस्त लोगों के लिए अत्यधिक  प्रेम है , जो  आएस और आइपीस  और अन्य सिविल सेवाओं  में हैं क्योंकि  मैं जानती हूँ कि उन्हें किन परिस्तिथियों में से  गुज़रना पड़ता है, यह बहुत उथल पुथल और त्याग से भरा हुआ जीवन  है ; पत्नी के लिए भी , परंतु  मुझे हमेशा आभास होता था कि यह युद्ध में लड़ रहे एक सैनिक की तरह हैं।  हम यहाँ इस देश का निर्माण करने के लिए हैं।  मेरे पति पहले विदेश सेवा में थे , मैंने कभी सेवाओं के बारे में नहीं सुना था और यह सब इसलिए मैंने कहा अब Read More …

Shri Bhoomi Devi Puja New Delhi (भारत)

Shri Bhoomi Puja    Date:  April 7, 2000    Place: Noida    श्री भूमि देवी पूजा   सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा प्रणाम। मैंने तो इतनी आशा नहीं की थी कि आप इतने लोग इतनी बड़ी तादाद में इस जगह आएंगे और इस कार्य को समझेंगें। एक बार एक प्रोग्राम में हम जा रहे थे, ये दौलताबाद उस जगह का नाम है।  उससे गुज़र के एक सामने जाना था, रास्ते में गाडी खराब हो गई। वो भी योग ही है, सहज में ही गाडी खराब हो गई। सो उतर के देखा तो वहां बहुत सी औरतें, सौ से भी अधिक, अपने बच्चों समेत। बहुत से बच्चे, उनसे कई गुना ज्यादा। वहाँ एक नल फुटा था उससे पानी ले रहीं। इतनी धूप, बड़े फटे से कपड़े पहने हुए किसी तरह सर पे चुन्नी लिए हुए।  मुझे समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है। तो मैने उनसे पूछा कि आप लोग यहाँ क्या कर रहे हो?  यहाँ कैसे आये?  तो उन्होंने कहा कि हम सब मुसलमान औरतें हैं और हमारा तलाक हो गया। और ये हमारे बच्चे हैं और जो महर थी वो बहुत ही थोड़ी थी उसमें तो एक महीना भी चलना मुश्किल था। लेकिन किसी तरह से हमें यहाँ काम मिल गया तो हम यहाँ गिट्टी फोडते हैं। और रहते कहाँ हो?  तो कहने लगी सामने जो आपने देखें हैं कुछ टिन थे, के टुकड़े थे, टूटा-फूटा सा एक मकान तो नहीं कह सकते, उसी में हम लोग सब रहते हैं।  बाप रे! मैंने कहा, वहीं पता नहीं Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

Hamari Atma Kya Chij Hai Date 25th March 2000: Place Delhi: Public Program Type [Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] की। एंसा मुझें लगता है कि लोग जा हैं को हमें केवल सत्य मिला नहीं। जिस चीज को पीतल में खाना नहीं खाएंगे और लोहे में खाना बुद्धि ठीक समझतो थी उसी को हमने सल्य मान खाएंगे। इस प्रकार की बहुत ही औपचारिक बाते लिया। फिर बहकते-बहकते ये बुद्धि उस दिशा इसमें लिखी हैं। लेकिन जो दृश्य हैं जो सामने चल पडी कि कॉई सा भी काम करों व दिखाई देता है यो बहुत भयानका है और बहुत आज तक हम लोग जानते ही नहीं थे कि आ है। ठीक है, अच्छा है। इससे लाभ है ये ही करना विचलित करने वाला है। इसके पोछे यही कहना चाहिए। सत्य से परे सनुष्य भटक गया और चाहिए कि मनुष्य को अपना रास्ता नहीं मिला भटकते-भटकते पता नहीं कौन सी खाई में और वह कहा से कहा भटक गया! उसकी सुख जाकर गिरा। ये देख कर के लोग सोचते हैं कि नहीं मिला। इस सुख की खोज में वो गलत ऐसे कैसे हुआ? ऐसी स्थिति क्यों आई? मनुष्य चीजों के पोछे भागा जिसे मुगतृष्णा कहते हैं। इस के अन्दर जो बुद्धि हैं उस बुद्धि की उस तरह प्रकार मनुष्य भटकते भटकते घार डूब गया। वो ये भी नहीं जानता कि जा मैं कर अँधकार में से कुबुद्धि में परिवर्तित क्यों कर दिया? उसको रहा हूँ वो कुकर्म है और इस कुकर्म का फल सुबुद्धि बनाना था। बो कुबुद्धि हो Read More …

Address to IAS Officers, Stress and Tension Management मुंबई (भारत)

Address to IAS Officers, Mumbai (India), 11 March 2000. I bow to all the seekers of truth. That’s a very interesting subject that has been given to Me to talk to you people because I have been always worried about the IAS, IPS, and other Government servants, very much worried because I have known the kind of life My husband was leading. And I used to think: if these new people, who have come to the services, to the Government service, we have to tell them the dangers that are ahead of them. Because we don’t know what is the subtle system within us, which works. And in the subtle system, when we lead this kind of a very speedy, intensive life, it has a defect. It has a defect you can see in the chart. They have shown the, they have shown the subtle system which works it out. So we have a center here on the crossing of the optic chiasma. These, this center is very important because we react with this. We react to everything. By this reaction we create a problem within ourselves. And this reaction comes to us because we do not know how to go beyond the mind. Every time we are looking at something, we react. We look at someone, we react. But we cannot just watch. We cannot be just the witness. If we could be the witness, it will not have any effect on us. But we cannot be. That’s the Read More …

Public Program पुणे (भारत)

Public Program, Pune, India 7th March 2000 सत्य को खोजनेवाले सभी साधकों को हमारा प्रणाम !!    आज संसार भर में सत्य की खोज हो रही हैI क्योंकि लोग सोचते हैं जिस जीवन में वो उलझे हुए हैं, वो उलझन इसलिए है कारन वो सत्य को नहीं जानते। अपने देश में शायद ये भावना कम हो लेकिन और अनेक देशों मे ये भावना बहुत जबरदस्त है और अपने देश में भी होनी चाहिए I अब हम रोज अख़बार पढ़ते हैं तो यही सुनते हैं की इतने यहाँ लोग गुंडागर्दी कर रहे हैं, कोई है चोरी चकारी कर रहे हैं और हर तरह के गलत सलत काम कर के जीना चाहते हैं .भ्रष्टाचार हो रहा है। ये भी बहुत सुना जाता है। इतना पहले नहीं था। उसका कारन ये है कि मनुष्य पथभ्रष्ट हो गया वो जानता नहीं उसे कहाँ जाना है। उसे जो ये शरीर मिला, उसकी ये जो बुद्धि मिली, ये सब किस चीज़ के लिए मिली है? यही वो नहीं जानता है,इसलिए इसी शरीर से वो अनेक विध गलत काम करता है। इस गलती को ठीक करने का अपने अंदर कोई न कोई तो अंदाज़  होगा  ही, न कोई न कोई व्यवस्था होगी ही क्यों कि जिस परमात्मा ने हमें  बनाया है वो हमें ऐसे गलत रास्ते पर फेंकने वाले नहीं। कुछ न कुछ उन्होंने व्यवस्था  ज़रूर करी है की  जिस से हम सही रस्ते पर चलें। अब लोग  कहेंगे कि सही रास्ते पर चलना क्या जरुरी है। गर आप सही रस्ते पर नहीं चलते हैं तो सबसे बड़े नुकसान तो आपका ही होगा, और समाज का होता ही है। पर आपका सबसे बड़ा नुकसान ये होता Read More …

Public Program पुणे (भारत)

Velechi Hallk 25th March 1999 Date: Place Pune Public Program Type [Hindi translation from Marathi talk] सत्य साधको को हमारा प्रणाम ! इसके पहले भी मैंने कई बार आपको सत्य के बारे में बताया है । सत्य क्या है? सत्य और असत्य इन दोनों में क्या अन्तर है, ये कैसे जान सकते हैं। इसके बारे में मैंने बहुत अच्छी तरह से समझाया है । सबसे पहले इस पुणे में या पुण्यपट्टणम् में हम सत्य क्यों खोज रहे हैं, यह जानना जरूरी है । आज के इस कलियुग में ऐसी-ऐसी घटनाऐं होने लगी हैं कि मनुष्य घबराने लगा है। उसकी समझ में नहीं आ रहा है कि यह क्या हो रहा है और कलियुग की यही विशेषता है कि मनुष्य संभ्रान्ति की स्थिति में घिरा हुआ है। इस स्थिति में आकर वह घबरा जाता है। उसे पता ही नहीं चलता कि सत्य क्या चीज़ है? मैं कहाँ जा रहा हूँ? दुनिया कहाँ जा रही है? इस तरह के प्रश्नों से वह घिरा रहता है। ऐसी हालत सिर्फ महाराष्ट्र में नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष में, पूरी दुनिया में है। पूरी दुनिया को इस कलि की महिमा की जानकारी हो रही है। नल और दमयंती का जो बिछड़ना हुआ था वह कलि के कारण ही था और एक बार यह कलि नल के हाथों पकड़ा गया। उसने (नल ने) कहा, ‘मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूँगा ताकि किसी को भी तुमसे परेशानी न हो। कोई तकलीफ न हो।’ तब कलि ने नल से कहा कि, ‘पहले तुम मेरी महिमा सुनो। वह सुनने के बाद Read More …

Public Program मुंबई (भारत)

1999-02-20 Awakening Of Kundalini Is Not A Ritual, Mumbai, India Hindi सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को मेरा प्रणाम.  सत्य के और हमारी नज़र नही होती, इसकी क्या वजह है? क्यों हम सत्य को पसंद नहीं करते और आत्मसात नहीं करते? उसकी नज़र एक ही चीज़ से खत्म हो जाये तो बातकी जाए, पर ये तो दुनिया ऐसी हो गई की गलत-सलत चीज़ों पे ही नज़र जाती है। सो इस पर यही कहना है कि ये घोर कलियुग है, भयंकर कलियुग है। हमने जो लोग देखे वो बहुत निराले थे और आज जो लोग दिखाई दे रहे हैं, वो बहुत ही विक्षिप्त, बहुत ही बिगड़े हुए लोग हैं। और वो बड़े खुशी से बिगड़े हुए हैं, किसी ने उन पे ज़बरदस्ती नही की । तो अपने देश का जो कुछ हाल हो रहा है उसका कारण यही है कि मनुष्य का नीति से पतन हो गया। अब उसके लिए अपने देश में अनेक साधु-संतों ने मेहनत की, बहुत कुछ कहा, समझाया। और खास कर भारतवर्षीयों की विशेषता ये है कि जो कोई साधु-संत बता देते हैं उसको वो बिलकुल मान लेते हैं, उसको किसी तरह से प्रश्ण नही करते। विदेश में ऐसा नही है। विदेश में किसे ने भी कुछ कहा तो उसपे तर्क करने शुरू कर देते है। लेकिन हिंदुस्तान के लोगों की ये विशेषता है कि कोई ग़र साधु-संत उनको कोई बात बताए तो उसे वो निर्विवाद मान लेते है कि ये कह गए है ये हमें करना चाहिए। छोटी से लेकर बड़ी बात तक हम लोग ऐसा करते हैं। ये भारतीय लोगों की Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

नैतिकता और देशभक्ति दिल्ली, १८/१२/१९९८ सत्य को शोधने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार! हम सत्य को खोज रहे हैं किंतु कौन सी जगह खोजना चाहिए? कहाँ खोजना चाहिए? कहाँ ये सत्य छुपा हुआ है? ये पहले समझ लेना चाहिए। आप देखते हैं कि परदेस से हजारों लोग हर एक देश से यहाँ आते हैं और उनसे पूछा जाये कि, ‘तुम यहाँ क्यों आयें?’ तो कहते हैं कि, ‘हम यहाँ सत्य खोजने आयें हैं, हमारे देश में तो सत्य नहीं लेकिन भारत वर्ष में तो सत्य है। ये समझ कर के हम यहाँ आयें हैं। और इस सत्य की खोज में हम हर साल हजारों लोग इस देश में आते हैं और हजारों वर्षों से इस देश में आते हैं। आपने सुना ही होगा कि इतिहास में चायना से और भी कई देशों से लोग यहाँ आते थे। और उनको पता नहीं कैसे मालूम था कि इस देश में ही सत्य नेक है, छुपा हुआ है। और उसकी खोज में वो गिरीकंदरों में घूमते थे । हिमालय पर जाते थे। हर तरह का प्रयत्न करते थे कि किसी तरह से हम सत्य को खोज लें क्योंकि वो किसी भी धर्म का पालन करते हैं। लेकिन वो जानते थे कि इस धर्म पालन से हमें सत्य नहीं मिलने वाला है। ये एक तो मार्गदर्शक है। जैसे रास्ते पर इशारे पर लिखा जाता है कि ये रास्ता है। किंतु इससे हम पाते हैं इसलिए इस अधूरेपन से परेशान होकर के वो इस भारतवर्ष में आते थे। अब ये सत्य हमारे देश Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

‘सार्वजनिक प्रवचन एवं आत्म साक्षात्कार’, -Types of powers through Kundalini Awakening, Ramlila Maidan, New Delhi, India 12-4-1997 सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा प्रणाम। सर्वप्रथम ये जान लेना चाहिए, कि सत्य की अनेक व्याखायें हो चुकी हैं और अनेक किताबें इस पर लिखी गई हैं। धर्म पुरस्सर कितनी किताबें, कितने प्रवचन, कितने भजन, कितनी भक्ति आप के सामने हैं। आज विशेषकर तेग बहादुर गुरु जी का विशेष दिवस है। उन्होंने भी कहा है, कि परमात्मा की भक्ति करो। परमात्मा की भक्ति से आप प्राप्त कर सकते हैं अपने अंदर के संतुलन को, अपने अंदर की शांति को, और जो कुछ भी आप के अंदर एक तरह से दुर्गुण चिपके हुए हैं, वो सब खत्म हो जाएंगे। पर आज कल का जमाना ऐसा नहीं रहा। आज कल के जमाने के लोग कोई विशेष हैं। एक इधर तो वो बहुत साधक हैं, खोज रहे हैं, सत्य को पाना चाहते हैं, और दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं कि जिनको किसी भी चीज का डर ही नहीं लगता। न तो परमात्मा का डर लगता है। उनसे बताया जाए कि ऐसे गलत काम करने से तुम्हे नर्क प्राप्त होगा। वो उस चीज को नहीं मानते। ये कहा जाता है कि सात जन्म तक मनुष्य इस पाप को ले कर के न जाने कितने तो भी हर तरह के दुख दर्द से गुजरता है। कुछ भी कहिए, किसी भी चीज से डराइए, कुछ भी कहिए, वो डर मनुष्य में बैठता नहीं। ऐसे अजीब पत्थर जैसे लोग हो गए हैं। अब हत्या करना तो महापाप Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

Public Program Date 3rd December 1996: Place Delhi Public Program Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सत्य को खोजने वाले आप सभी साघकों को हमारा नमस्कार। तो इस भारत वर्ष में अनादिकाल से सत्य की खोज होती रही है, ये हमारे शास्त्रों से ज्ञात होता है। अनेक मार्गों से हमने सत्य की खोज की। अपना देश एक विशेष रूप से अध्यात्मिक है उसका कारण ये कि अपने देश में बहुत सी बातें सुलभ हैं। हम जानते नहीं कि हमारा देश कितना समृद्ध है और कितना पावन है, और यहाँ के लोग कितने सरल और मलरहित हैं। विदेश के लोगों को हम लोग मलेच्छ कहते थे क्योंकि देखते थे कि ये लोग जो यहां आये इनकी सारी इच्छायें ही मल की ओर जाती थी। हमारे जमाने में, क्योंकि अब तो हम बुड्ढे हो गये हैं; तो ये देखा जाता था कि ये जो लोग बाहर से आये हैं, ये कितने उथले हैं, इनकी सारी दृष्टि कितनी उथली है, इनकी जो इच्छायें होती थी वो कितनी उथली हैं। धोरे धीरे अपने दंश पर भी इस पश्चिमात्य संस्कृति की बड़ी जबरदस्त पकड़ आने लगी। उसका कारण यह था कि तीन सौ वर्ष हुए हमारी खोपड़ी पर ये लोग लद गये और हम लोग धीरे-धीरे ये समझने लग गये कि ये बड़े महान हैं जो हमारे देश में आये हैं और हमारे ऊपर राज कर रहे हैं। वास्तिवकता में इन्होंने सबको बेवकूफ बना-बना कर ही अपना कार्यसाध्य किया। दूसरे कर्मकाण्डों की वजह से अनेक तरह की विचित्र-विचित्र Read More …

She is Your individual Mother Teatr Komedia, Warsaw (Poland)

Public Program, Teatr Komedia Warsaw (Poland) 14.07.1996 मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। प्रारम्भ में, आपको यह जानना होगा कि सत्य क्या है। आप इसे बदल नहीं सकते। आप इसे रूपांतरित नहीं कर सकते। मात्र एक चीज़ आपको इसे अनुभव करना है। दुर्भाग्य से इस मानवीय चेतना में, आप सत्य को नहीं जान सकते। आपको सत्य जानने के लिए चेतना की एक उच्च अवस्था में विकसित होना है। सत्य को जाने बिना यदि आप किसी चीज़ का पालन करते हैं तो यह बहुत गलत बात है। मसीह ने कहा है: – “आपका पुनर्जन्म होना है”। यह एक मिथ्या प्रमाणपत्र नहीं है कि मैं पुनः पैदा हुआ हूं, परन्तु संस्कृत भाषा में, हम एक आत्मसाक्षात्कारी आत्मा, अज्ञेयवादी व्यक्ति – एक द्विज, जिसका अर्थ है – “पुनः पैदा हुआ, दो बार जन्मा ।” उसी प्रकार वे उस पक्षी को, दो बार जन्मा मानते हैं क्योंकि वह अंडा और फिर वह पक्षी बन जाता है। पहले वह अंडा होता है और फिर वह पक्षी बन जाता है। अब, इसलिए मनुष्य के रूप में हम अभी भी उस स्तर पर हैं जहां हम पूर्ण सत्य को नहीं जानते हैं। कोई हमें कुछ भी बताता है, हम उस पर विश्वास कर लेते हैं। हम उसे      स्वीकार करने लगते हैं     ,      अनुसरण करने लगते हैं      । परन्तु जो भी मैं कह रही हूं      आपको उसको भी स्वीकार नहीं करना चाहिए। मैं जो कुछ भी कहती हूं जब तक वह सिद्ध नहीं हो जाता है, आपको इसे स्वीकार नहीं करना Read More …

Public Program, Satya Ki Pahchan Chaitanya Se He (भारत)

Satya Ki Pahchan Chaitanya Se Hai 14th December 1995 Date : Lucknow Place : Public Program Type सब से पहले ये जान लेना चाहिये, कि सत्य है वो अपनी जगह। उसको हम बदल नहीं सकते, उसका हम वर्णन नहीं कर सकते। वो अपनी जगह स्थिर है। हमें ये भी करना है कि हम उस सत्य सृष्टि को प्राप्त करें। परमात्मा ने हमारे अन्दर ही सारी व्यवस्था की हुई है। इस सत्य को जानना अत्यावश्यक है। आज मनुष्य हम देख रहे है कि भ्रमित हैं। इस कलियुग में बहता चला जा रहा है। उसकी समझ में नहीं आता कि पुराने मूल्य क्या हो गये और हम कहाँ से कहाँ पहुँच गये और आगे का हमारा भविष्य क्या होगा। जब वो सोचने लगता है कि हमारे भविष्य का क्या है? क्या इसका इंतजाम है? हमारे बच्चों के लिये कौनसी व्यवस्था है? तब वो जान लेता है, कि जो आज की व्यवस्था है, मनुष्य आज तक जिस स्थिति में पहुँचा है वो स्थिति संपूर्ण स्थिति नहीं क्योंकि वो एकमेव सत्य को नहीं जानती। केवल सत्य को नहीं जानती। हर एक अपनी मस्तिष्क जो सत्य आता है, उसे समझ लेता है। दो प्रकार के विचार हैं। एक तो विचार ये है कि हम अपने मस्तिष्क से जो मान ले, जिस चीज़ को हम ठीक समझ ले, उसी को हम मान लेते हैं। लेकिन बुद्धि से सोची हुई, बुद्धि पुरस्सर चीज़ सीमित है। कोई | सोचता है, कि ये अच्छा है, तो कोई सोचता है कि वो अच्छा है। और ये ले कर के सब Read More …

How to Solve Ecological Problems Centre of Hygiene, Sofia (Bulgaria)

सार्वजनिक कार्यक्रम। सोफिया (बुल्गारिया), 26 जुलाई 1995। मैं आप सभी को नमन करती हूं, जो यह जानने आये हैं कि, मानवता को कैसे बचाया जाए। यह केवल बुल्गारिया की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की समस्या है। दुनिया भर में हर दिन पर्यावरण की  समस्याओं के बारे में जागरूकता है। लेकिन जो भी साधन अपनाये गए हैं वे हमारी गिरावट को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। अब मैं आपको कुछ सच्चाइयों के बारे में बताने जा रही हूँ, जिन्हें यदि हम हासिल करते हैं, तो हम अपनी पर्यावरण की समस्या को बहुत बेहतर तरीके से हल कर सकते हैं। बाह्य रूप से हम समझते हैं कि हमें मशीनरी को कम करना है। औद्योगीकरण, जिस तरह से यह अनुपात से बाहर हो गया है, उसने बहुत सारी समस्याएं पैदा की हैं। यदि हम 50 साल पहले के भारत के बारे में कहें तो हम आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे। तब महात्मा गांधी ने सुझाव दिया, “क्यों न हम हाथ से बनी चीजें, हाथ से बने कपड़े, हाथ से बुने हुए कपड़े, गांवों की हस्तनिर्मित चीजें इस्तेमाल करें।” और इस विचार ने काम किया क्योंकि हम मैनचेस्टर की मशीनरी को रोक सकते थे, जो हमें इंग्लैंड से ये सारे कपड़े बेच रहे थे। पश्चिम में, हाथ से बनी चीजों का उपयोग करने का एक बड़ा आग्रह है, जो कि अधिक महंगी है। मुझे आश्चर्य हुआ कि बुल्गारिया कलाकारों से बहुत अधिक भरा है, बहुत सारे कलाकार हैं, बहुत सुंदर हैं। आप कह सकते हैं, वे न केवल चित्र और पेंटिंग Read More …

Talk to Representatives of ECO-Forum and the Vice-minister of Health Sofia (Bulgaria)

1995-07-24 ईसीओ-फोरम के प्रतिनिधियों और स्वास्थ्यउप-मंत्री से चर्चा [बुल्गारियाई उप-स्वास्थ्य मंत्री बुल्गारियाई में बोल रहे हैं, अंग्रेजी में परिणामी अनुवाद] … सम्पूर्ण मानव जाति के हितों पर निजी हित पूरी तरह हावी है। यही कारण और संदर्भ है कि शांति की समस्याओं पर इको फोरम के नवीनतम सम्मेलनों में हमने संयुक्त राष्ट्र के संगठन को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र से पृथ्वी पर जीवन को संरक्षित करने के लिए दुनिया भर की एक कमेटी बनाने का अनुरोध किया। इस संदर्भ में हम श्रीमती श्रीवास्तव का समर्थन पाकर बहुत खुश और संतुष्ट होंगे। इन सिद्धान्तिक मुद्दों के अलावा, मैं इस बात के लिए अपनी खुशी और श्रीमती श्रीवास्तव के प्रति अपने सम्मान को व्यक्त करके प्रसन्न हूं कि वह बुल्गारिया आई और बल्गेरियाई धरती पर हैं और मुझे उम्मीद है कि हम उस वैश्विक मुद्दे के संबंध में सहयोग की व्यवस्था कर सकते हैं। मैं अपने दोस्तों और सहयोगियों के सामने, शांति के लिए इकोफोरम के नेतृत्व को प्रस्तुत करना चाहता हूं: श्री प्रो। अलेक्जेंडर अलेक्जेंड्रोव, वे इकोफोरम के निदेशक मंडल के सदस्य हैं और हाल ही में वह बुल्गारिया के पर्यावरण मंत्री के रूप में नहीं थे, श्री। ट्रिफोनोव – वह शांति के लिए इकोफोरम के मुख्य समन्वयक हैं, श्री मारिनोव इकोफोरम फॉर पीस में खंड संस्कृति के लिए जिम्मेदार हैं। बेशक इकोफोरम बोर्ड में पूरी दुनिया के सदस्य शामिल हैं। इसलिए मैंने केवल बोर्ड के इन सदस्यों का परिचय दिया जो बुल्गारिया में रहते हैं। – उन सभी से मिलकर बहुत अच्छा लगा। मैं इस बात पर जोर देना Read More …

Public Program, Sarvajanik Karyakram कोलकाता (भारत)

Public Program सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा प्रणाम इस कलियुग में मनुष्य जीवन की अनेक समस्याओं के कारण विचलित हो गया है, और घबरा रहा है। कलियुग में जितने सत्य को खोजने वाले हैं, उतने पहले कभी नहीं थे और यही समय है जबकि आपको सत्य मिलने वाला है। लेकिन ये समझ लेना चाहिए कि हम कौनसे सत्य को खोज रहे हैं ? क्या खोज रहे हैं? नहीं तो किसी भी चीज़ के पीछे हम लग करके ये सोचने लग जाते हैं कि यही सत्य है। इसका कारण ये है, कि हमें अभी तक केवल सत्य, अॅबसल्यूट ट्रूथ (absolute truth – परम सत्य) मालूम नहीं । कोई सोचता है कि ये अच्छा है, कोई सोचता है वो अच्छा, कोई सोचता है कि जीवन और ही तरह से बिताना चाहिए। तो विक्षुब्ध सारी मन की भावना और भ्रांति में इन्सान घूम रहा है। इस संभ्रांत स्थिति में उसको समझ में नहीं आता है कि,’आखिर क्या कारण है,जो मेरे अन्दर शांति नहीं है। मैं शांति को किस तरह से अपने अन्दर प्रस्थापित करूं । मैं ही अपने साथ लड़ रहा हूँ, झगड़ रहा हूँ, कुछ समझ में नहीं आता।’ यही कलियुग की विशेषता है और इसी कारण इस कलियुग में ही मनुष्य खोजेगा। पहले इस तरह की संभ्रांत स्थिति नहीं थी। मनुष्य अपने मानवता से ही प्रसन्न था। अब आप इस मानव स्थिति में आ गये हैं। इस स्थिति में अगर आपको केवल सत्य मालूम होता तो कोई झगड़ा ही नहीं होता, हर एक इन्सान एक ही बात Read More …