Christmas Puja Ganapatipule (भारत)

Christmas Puja IS Date 25th December 2003: Ganapatipule Place: Type Puja [Original transcript Hindi talk] ईसामसीह की आज जन्मतारीख है और हम लोग बहुत खुशी से मना रहे हैं। किंतु जीझस क्राइस्ट को कितनी तकलीफें हुईं वो भी हम लोग जानते हैं और जो तकलीफें, परेशानियाँ उनको हुई वो हम लोगों को नहीं हो सकती क्योंकि अब समाज बदल गया है, दुनिया बदल गयी है और इस बदली हुई दुनिया में आध्यात्मिक जीवन बहुत महत्त्वपूर्ण है। इससे कितने क्लेश हमारे दूर हो सकते हैं। हमारे शारीरिक क्लेश अध्यात्म से खत्म हो सकते हैं। मानसिक क्लेश अध्यात्म से खत्म हो सकते हैं। इसके अलावा जागतिक जो | क्लेश हैं वो भी खत्म हो सकते हैं। इस तरह सारी दुनिया की जिंदगी जो है अध्यात्म में पनप सकती है। कितना महत्त्वपूर्ण है ये जानना की एक तरफ तो ईसामसीह जैसा अध्यात्म का…. और दूसरी तरफ हम लोग जिन्होंने अध्यात्म को थोडा बहुत पाया है और हम लोगों की वजह से दुनिया शांत हो गयी। बहुत सी तकलीफें दूर हो गयी है और मनुष्य जान गया कि उसके लिये सबसे बड़ी चीज़ है अध्यात्म को पाना । ये आप लोगों की जिंदगी से उसने जाना है। आपको देख कर उसने जाना है। ये सारा परिवर्तन आप लोगों की वजह से आया। हम अकेले क्या कर | सकते थे? जैसे ईसामसीह वैसे हम। हम कितना कर सकते थे । लेकिन इतने आप लोगों ने जब अध्यात्म को प्राप्त कर लिया है, तब देख सकते हैं कि दुनिया कितनी बदल गयी है। आपके प्रभाव से Read More …

Shri Krishna Puja पुणे (भारत)

Hindi Transcript of Shri Krishna Puja. Pune (India), 9 August 2003. हम लोगों को अब यह सोचना है कि सहजयोग तो बहुत फैल गया और किनारे किनारे पर भी लोग सहजयोग को बहुत मानते हैं। लेकिन जब तक अपने अन्दर सहजयोग वायवास्तीह रूप से प्रकटित नहीं होगा तब तक जैसा लोग सहजयोग को मानते हैं वो मानेगें नहीं। इसलिए ज़रूरत है कि हम कोशिश करें कि अपने अन्दर झांकें। यही कृष्ण का चरित्र है कि हम अपने अन्दर झांके और देखें जाने की कौन सी ऐसी चीजे हैं जो हमें दुविधा में डाल देती हैं। इसका पता लगाना चाहिए। हमें अपने तरफ देखना चाहिए, अपने अन्दर देखना चाहिए और वो कोई कठिन बात नहीं है जब हम अपनी शक्ल देखना चाहते हैं तो हम शीशे में देखते हैं। उसी प्रकार जब हमें अपनी आत्मा के दर्शन करने होते हैं तो हमें देखना चाहिए हमारे अन्दर ,वो कैसे देखा जाता है । बहुत से सहजयोगियों ने कहा माँ यह कैसे देखा कर जायेगा कि हमारे अन्दर क्या है, और हम कैसे हैं? उसके लिए ज़रूरी है कि मनुष्य पहले स्वयं की और नम्र हो जाए क्योंकि अगर आपमें नम्रता नहीं होगी तो आप अपने ही विचार लेकर बैठे रहेंगे। कृष्ण के जीवन में पहले दिखाया गया कि एक छोटे लड़के के जैसे वो थे बिलकुल जैसा शिशु होता है बिलकुल ही अज्ञानी वो इसी तरह थे , वो अपने को कुछ समझते नहीं थे | उनकी माँ थी एक और वो अपनी माँ के सहारे वो बढ़ना चाहते थे। इसी प्रकार Read More …

Inauguration of Vaitarna Music Academy (भारत)

English Transcript Inauguration speech for the opening of the new Music Academy (transcr. only English part). Vaitarna (India), 1 January 2003. I’m sorry I spoke in Hindi language, because to talk about My father in any other language is very difficult, though he was a master of English language and he used to read a lot. He had a big library of his own where I also learned English, because my medium of instruction was Marathi. I’d never studied Hindi or English. But because of his library, because I was very fond of reading, I picked up English, whatever it is, and also Hindi. Now they all say I speak very good English and very good Hindi, I am surprised, because to Me they were foreign languages. And when I did my matriculation also, I had a very small book of English, and for inter-science also I had a very small book. And in the medical college of course there was no question of any language, but because I used to read a lot. So I would suggest to all of you to read, read more. But don’t read nonsensical books, very good famous books you must read. That’s how I developed my language, and I had to do so well. By reading that, I could know also so much about the human failings. I didn’t know human beings have those failings, I didn’t know. I was absolutely beyond them. After reading everything, I came to know that there are Read More …

New Year’s Eve Puja (भारत)

New Year Puja Date 31st December 2002: Place Vaitarna: Type Puja Speech [Hindi translation from Marathi and English talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] इतनी बड़ी संख्या में कार्यक्रम के लिए बुद्धिमान तथा विद्वान व्यक्ति थे परन्तु आए आप सब लोगों को देखकर मैं बहुत उन्होंने सर्वसाधारण लोगों की ओर ध्यान प्रसन्न हू। वास्तव में मैंने ये जमीन 25 वर्ष दिया, उनकी देखभाल की और उनमें संगीत पहले खरीदी थी। परन्तु इस पर मैं कुछ न कला को बढ़ावा दिया। इसी विचार के साथ कर सकी क्योंकि इस पर बहुत सारी मैंने निर्णय किया कि कला और संगीत के आपत्तियाँ थीं, आदि-आदि। परन्तु किसी तरह से मैंने इसकी योजना बनाई और अब प्रचार-प्रसार के उनके लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मैं ये स्थान समर्पित कर दूं। ये देखकर मुझे प्रसन्नता हो रही है कि मेरा ये विचार फलीभूत हो गया है काश कि आप लोगों कि इतनी कठिनाइयों का सामना करने को प्रसन्न करने के लिए आज मेरा भाई भी के पश्चात् आज मेरे सम्मुख मेरी पूजा के यहां होता! वो अत्यन्त प्रेम एवं करुणामय व्यक्ति था। मैंने देखा कि वो कभी किसी से नाराज़ नहीं हुए। सदा उन्होंने सभी लोगों यहां पर मुझे अपने भाई बाबा की याद की बहुत अच्छी तस्वीर मेरे सम्मुख पेश की। आती है जिन्होंने भारतीय संगीत, शास्त्रीय परन्तु इस विषय में कोई भी क्या कर सकता ये सब कार्यान्वित हो गया है। आप सब लोगों को यहां देखकर मुझे प्रसन्नता हो रही है कार्यक्रम में भाग लेने के लिए इतने सारे सहजयोगी उपस्थित हैं Read More …

Makar Sankranti Puja पुणे (भारत)

Makar Sankranti Puja 14th January 2001 Date: Place India Type Puja [Hindi translation from Marathi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] अत्याधिक कर्मकाण्ड करने वाले लोग जल्दी से परिवर्तित नहीं होते हमें अपने कि तप करो, उपयास करो पति-पत्नी का स्वभाव परिवर्तित करने चाहिए। उत्तर भारत में कर्मकाण्ड इतने अधिक नहीं हैं। वे लोग तपस्या से कहीं श्रेष्ठ है। भक्ति आनन्द का गंगा में स्नान करते है परन्तु अब उनमें बहुत स्रोत है। सहजयोग अपनाने वाले लोगों को बदलाव आया है बहुत से सुशिक्षित लोग न कोई तपस्या करनी है न कुछ त्यागना है। सहजयोग में आए हैं और उन्हें देखकर आश्चर्य जहाँ हैं वहीं पर सब कुछ पाना है। होता है । महाराष्ट्र के लोगों को यदि कहा जाए त्याग करो तो वे ये सब करेंगे। परन्तु भक्ति आत्मसाक्षात्कार अन्य लोगों को भी देना चाहिए नहीं तो आत्मसाक्षात्कार का क्या लाभ है? महाराष्ट्र में बहुत से साधु संत हुए जिन्होंने तपस्वी लोग देना नहीं जानते। अपनी भक्ति बहुत परिश्रम किया परन्तु उसका कोई उपयोग नहीं हुआ। सारा जीवन कर्मकाण्ड में चला गया। परन्तु अब परिवर्तन होना चाहिए और हम सबको जागृत होना चाहिए। होता। केवल हृदय से प्रार्थना करनी होती है भोर हो गई है, अब सोने का क्या अर्थ है? से आप सबकुछ दे सकते हैं। भक्ति में भी कुछ छोड़ना त्यागना नहीं कि. “मैं अपना पूरा जीवन सहजयोग के लिए समर्पित करता हूँ ।” न कुछ छोड़ना है महाराष्ट्र की स्थिति देखकर बहुत दुख न तपस्या करनी है। आपमें इतनी भक्ति होता है। यहाँ पर लोग इतना Read More …

New Year Puja, You All Have to Become Masters in Sahaja Yoga (भारत)

New Year Puja 31st December 2000 Date: Place Kalwe: Type Puja Speech [Hindi translation from English talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] वे सफल नहीं हो सकते। अब इस बात का निर्णय सहजयोगियों को करना है कि किस प्रसन्नता तथा वैभव से परिपूर्ण नववर्ष की सीमा तक वे सहजयोग को फैलाएंगे और मंगलकामना करती हूँ। मेरे इस देश में कितने लोगों को सहजयोग में लाएंगे। इस आप सबकी सहजयोग में गहन उन्नति वर्ष से लोग आपकी प्रतीक्षा कर रहे हो। मेरी ये मंगल कामना है अब आप सब होंगे और यदि आप सब लोग मिलकर इसे लोग सहजयोगी हों और आपको सहजयोग कार्यान्वित करने का निर्णय ले लें, तो मुझे में गुरु बनना है सहजयोग में गुरु बनने पूर्ण विश्वास है, आपको ऐसे बहुत से लोग के लिए, मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप लोग मिल सकते हैं जिन्हें कलियुगी अभिशाप के आज हम नव वर्ष की शुरुआत कर रहे हैं इस अवसर पर मैं आप सबके लिए बहुत ध्यान धारणा, अन्तर्वलोकन तथा अन्य सभी कारण ठगा गया। नव वर्ष के इस दिन प्रकार के आवश्यक कर्म कर रहे हैं। मैं यह शपथ आपको लेनी है कि अब हम सोचती हूँ इस वर्ष में बीते हुए वर्षों की सहजयोग को नए. विशाल एवं अधिक अपेक्षा आपके लिए अधिक उन्नति करने के गतिशील तरीके से आरम्भ करेंगे। अवसर है क्योंकि कठिनाईयों के वे वर्ष अब इसके लिए पहली आवश्यक चीज़ है ‘संघ शक्ति’ अर्थात आपकी सामूहिकता। अब हम एक नए युग में प्रवेश कर रहे ये सामूहिकता अत्यन्त सुदृढ़, सुगठित, हैं Read More …

Address to IAS Officers, Stress and Tension Management मुंबई (भारत)

Address to IAS Officers, Mumbai (India), 11 March 2000. I bow to all the seekers of truth. That’s a very interesting subject that has been given to Me to talk to you people because I have been always worried about the IAS, IPS, and other Government servants, very much worried because I have known the kind of life My husband was leading. And I used to think: if these new people, who have come to the services, to the Government service, we have to tell them the dangers that are ahead of them. Because we don’t know what is the subtle system within us, which works. And in the subtle system, when we lead this kind of a very speedy, intensive life, it has a defect. It has a defect you can see in the chart. They have shown the, they have shown the subtle system which works it out. So we have a center here on the crossing of the optic chiasma. These, this center is very important because we react with this. We react to everything. By this reaction we create a problem within ourselves. And this reaction comes to us because we do not know how to go beyond the mind. Every time we are looking at something, we react. We look at someone, we react. But we cannot just watch. We cannot be just the witness. If we could be the witness, it will not have any effect on us. But we cannot be. That’s the Read More …

Public Program पुणे (भारत)

Public Program, Pune, India 7th March 2000 सत्य को खोजनेवाले सभी साधकों को हमारा प्रणाम !!    आज संसार भर में सत्य की खोज हो रही हैI क्योंकि लोग सोचते हैं जिस जीवन में वो उलझे हुए हैं, वो उलझन इसलिए है कारन वो सत्य को नहीं जानते। अपने देश में शायद ये भावना कम हो लेकिन और अनेक देशों मे ये भावना बहुत जबरदस्त है और अपने देश में भी होनी चाहिए I अब हम रोज अख़बार पढ़ते हैं तो यही सुनते हैं की इतने यहाँ लोग गुंडागर्दी कर रहे हैं, कोई है चोरी चकारी कर रहे हैं और हर तरह के गलत सलत काम कर के जीना चाहते हैं .भ्रष्टाचार हो रहा है। ये भी बहुत सुना जाता है। इतना पहले नहीं था। उसका कारन ये है कि मनुष्य पथभ्रष्ट हो गया वो जानता नहीं उसे कहाँ जाना है। उसे जो ये शरीर मिला, उसकी ये जो बुद्धि मिली, ये सब किस चीज़ के लिए मिली है? यही वो नहीं जानता है,इसलिए इसी शरीर से वो अनेक विध गलत काम करता है। इस गलती को ठीक करने का अपने अंदर कोई न कोई तो अंदाज़  होगा  ही, न कोई न कोई व्यवस्था होगी ही क्यों कि जिस परमात्मा ने हमें  बनाया है वो हमें ऐसे गलत रास्ते पर फेंकने वाले नहीं। कुछ न कुछ उन्होंने व्यवस्था  ज़रूर करी है की  जिस से हम सही रस्ते पर चलें। अब लोग  कहेंगे कि सही रास्ते पर चलना क्या जरुरी है। गर आप सही रस्ते पर नहीं चलते हैं तो सबसे बड़े नुकसान तो आपका ही होगा, और समाज का होता ही है। पर आपका सबसे बड़ा नुकसान ये होता Read More …

Mahashivaratri Puja पुणे (भारत)

Mahashivaratri Puja Date 5th March 2000: Place Pune: Type Puja [Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] शिवजी को आप लोग मानते हैं और धीरे-2 वो नष्ट होते जाते हैं। धीरे धीरें वी उनकी बड़ी पूजा अर्चना होती है। लेकिन शिवजी के गुणधर्म आप जानते नहीं, इसलिए बहुत बार सांत्वना करने वाले हैं। हमको शांति देने वाले आपसे गलती हो हैं। और जब स्वरूप जो है वो आनंद स्वरूप है। सूक्ष्म सं शिवजी की शक्ति और विष्णु की शक्ति जैसे समाप्त होते जाते हैं। पर शिवजी जो हैं ये हमारी जाती है। शिवजी का विशेष और हमको आनंद देने वाले ये आनंद उनका सब तरफ छाया रहता है। कि कुण्डलिनी और नाड़ी, इन दोनों का मेल हो जाता है तब आपको केवल सत्य मिलता तेक आपमें नहीं आएगी आप उसे देख नहीं है। केवल सत्य। जैसे की उस सत्य को कोई सुषुम्ना सूक्ष्म लेकिन उसको आकलन करने की शक्ति जब पाएंगे और समझ नहीं पाएंगे। वो हर चीज़ में विराजमान है। हर चीज़ में एक तरह से आनंदमय, सकते क्योंकि वो पूर्णतया सत्य है। आप अपने कहना चाहिए कि एक आनंदमय सृष्टि तैयार अंगुलियां पर अपने हाथ पर भी उसे जान सकते करते हैं और उस सृष्टि में विचरण करते हुए आप किसी भी तरह से अस्वीकार्य नहीं कर हैं। अनेक तरह के अनुभव आपको आएंगे आप देखते हैं कि आप भी कुछ और ही हो जिससे आप समझ जाएंगे कि एकदम सत्य जो गए। दूसरे लोगों को जिस चौज़ में आनंद आता है उसमें असत्य की छटा Read More …

Public Program पुणे (भारत)

Velechi Hallk 25th March 1999 Date: Place Pune Public Program Type [Hindi translation from Marathi talk] सत्य साधको को हमारा प्रणाम ! इसके पहले भी मैंने कई बार आपको सत्य के बारे में बताया है । सत्य क्या है? सत्य और असत्य इन दोनों में क्या अन्तर है, ये कैसे जान सकते हैं। इसके बारे में मैंने बहुत अच्छी तरह से समझाया है । सबसे पहले इस पुणे में या पुण्यपट्टणम् में हम सत्य क्यों खोज रहे हैं, यह जानना जरूरी है । आज के इस कलियुग में ऐसी-ऐसी घटनाऐं होने लगी हैं कि मनुष्य घबराने लगा है। उसकी समझ में नहीं आ रहा है कि यह क्या हो रहा है और कलियुग की यही विशेषता है कि मनुष्य संभ्रान्ति की स्थिति में घिरा हुआ है। इस स्थिति में आकर वह घबरा जाता है। उसे पता ही नहीं चलता कि सत्य क्या चीज़ है? मैं कहाँ जा रहा हूँ? दुनिया कहाँ जा रही है? इस तरह के प्रश्नों से वह घिरा रहता है। ऐसी हालत सिर्फ महाराष्ट्र में नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष में, पूरी दुनिया में है। पूरी दुनिया को इस कलि की महिमा की जानकारी हो रही है। नल और दमयंती का जो बिछड़ना हुआ था वह कलि के कारण ही था और एक बार यह कलि नल के हाथों पकड़ा गया। उसने (नल ने) कहा, ‘मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूँगा ताकि किसी को भी तुमसे परेशानी न हो। कोई तकलीफ न हो।’ तब कलि ने नल से कहा कि, ‘पहले तुम मेरी महिमा सुनो। वह सुनने के बाद Read More …

Public Program मुंबई (भारत)

1999-02-20 Awakening Of Kundalini Is Not A Ritual, Mumbai, India Hindi सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को मेरा प्रणाम.  सत्य के और हमारी नज़र नही होती, इसकी क्या वजह है? क्यों हम सत्य को पसंद नहीं करते और आत्मसात नहीं करते? उसकी नज़र एक ही चीज़ से खत्म हो जाये तो बातकी जाए, पर ये तो दुनिया ऐसी हो गई की गलत-सलत चीज़ों पे ही नज़र जाती है। सो इस पर यही कहना है कि ये घोर कलियुग है, भयंकर कलियुग है। हमने जो लोग देखे वो बहुत निराले थे और आज जो लोग दिखाई दे रहे हैं, वो बहुत ही विक्षिप्त, बहुत ही बिगड़े हुए लोग हैं। और वो बड़े खुशी से बिगड़े हुए हैं, किसी ने उन पे ज़बरदस्ती नही की । तो अपने देश का जो कुछ हाल हो रहा है उसका कारण यही है कि मनुष्य का नीति से पतन हो गया। अब उसके लिए अपने देश में अनेक साधु-संतों ने मेहनत की, बहुत कुछ कहा, समझाया। और खास कर भारतवर्षीयों की विशेषता ये है कि जो कोई साधु-संत बता देते हैं उसको वो बिलकुल मान लेते हैं, उसको किसी तरह से प्रश्ण नही करते। विदेश में ऐसा नही है। विदेश में किसे ने भी कुछ कहा तो उसपे तर्क करने शुरू कर देते है। लेकिन हिंदुस्तान के लोगों की ये विशेषता है कि कोई ग़र साधु-संत उनको कोई बात बताए तो उसे वो निर्विवाद मान लेते है कि ये कह गए है ये हमें करना चाहिए। छोटी से लेकर बड़ी बात तक हम लोग ऐसा करते हैं। ये भारतीय लोगों की Read More …

New Year’s eve Puja (भारत)

New Year Puja – Indian Culture 31st December 1998 Date: Place Kalwe Type Puja Speech-Language English, Marathi & Hindi आज जो बात कही है वो समझने की बात है कि हम लोग अपने बच्चों पर जो जबरदस्ती, जुल्म करते हैं उसे हम जुल्म नहीं समझते हैं। पर ये बच्चे सब साधू-संत आपके घर में आये हैं, तो आपको उनकी इज्जत करनी चाहिए। उनको सम्भालना चाहिए। उनको प्यार देना चाहिए, जिससे वो पनपे, बढ़े। उनको स्वतन्त्रता देनी चाहिए । वो कभी गलत काम कर नहीं सकते क्योंकि वो संत-साधू है। लेकिन आपकी दृष्टि में फर्क है। आप हर जगह अपना ही एक, मराठी में कहते हैं कि ‘मनगटशाही’ या ‘हिटलर शाही’ सब ‘शाही’ लगाते हैं। इस चीज़ में मेरे खयाल से मुझसे बढ़कर कोई नहीं होगा, मुझे बिलकुल पसन्द नहीं है बच्चों को जरा भी कुछ कहना। मुझे पसन्द नहीं है। अगर कोई ऐसी वैसी बात हो तो उसको समझायें, पर इन बच्चों को पनपना चाहिए। यही इस देश के कल के नागरिक हैं और यही बच्चे आपको करामात करके दिखाएंगे। इन लोगों को, बच्चों को इस कदर स्वतन्त्रता तो उस स्वतन्त्रता से आज मैं देखती हूँ कि कितने बढ़िया हो गये हैं। हालांकि खराबी भी बहुतों की हुई है। अब आपके पास संस्कृति का आधार है। उस आधार पर इन बच्चों को आप सम्भालें, उनको समझाईये कि हमारी क्या संस्कृति हो जाएंगी। हमारे देश के बारे में, वहाँ जो महान लोग हो गये हैं उनके बारे में है, तो बहुत सी बातें सीधी-सरल किसी को कुछ मालूम ही नहीं। कोई Read More …

Shakti Puja (भारत)

Shakti Puja. Kalwe (India), 31 December 1997. ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK आज हम लोग शक्ति की पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। शक्ति का मतलब है पूरी ही शक्तियाँ, और किसी एक विशेष शक्ति की बात नहीं है। ये पूरी शक्तियाँ हमारे हर एक चक्र पर अलग-अलग स्थान पर विराजित है। और इस शक्ति के बगैर किसी भी देवता का कार्य नहीं हो सकता है। जैसे आप जानते हैं कि कृष्ण की शक्ति राधा है और राम की शक्ति सीता है और विष्णु की लक्ष्मी। इसी प्रकार हर जगह शक्ति का सहवास देवताओं के साथ है। और ये देवता लोग शक्ति के बगैर कार्य नहीं कर सकते हैं। वो शक्ति एक मात्र है। आपके हृदय चक्र में बीचो-बीच जगदम्बा स्वरूपिणी विराजमान है। ये जगदम्बा शक्ति बहुत शक्तिमान है। उससे आगे गुजरने के बाद आप जानते हैं कि कहीं वो माता स्वरूप और कहीं वह पत्नी स्वरूप देवताओं के साथ रहती है। तो शक्ति का पूजन माने सारे ही देवताओं के शक्ति का आज पूजन होने वाला है। इन शक्तियों के बिगड़ जाने से ही हमारे चक्र खराब हो जाते हैं और उसी कारण शारीरिक, मानसिक, भौतिक आदि जो भी हमारी समस्यायें हैं वो खड़ी हो जाती हैं। इसलिए इन शक्तियों को हमेशा प्रसन्न रखना चाहिए । कहा जाता है कि, ‘देवी प्रसन्नो भवे’ । देवी को प्रसन्न करने से न जाने क्या हो जाये ! अब कुण्डलिनी के जागरण से इस शक्ति को एक विशेष और एक शक्ति मिल जाती है। इन शक्तियों में एक विशेषता और होती है Read More …

Makar Sankranti Puja पुणे (भारत)

Makar Sankranti Puja 14th January 1996 Date: Place Pune Type Puja Speech Language Hindi, English and Marathi आज हम लोग यहाँ संक्रांति के दिन सूर्य की पूजा करने के लिये एकत्रित हुए है। अपने देश में सूर्य की पूजा बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं और सूर्य को अर्ध्य देना एक प्रथा जरूरी समझी जाती है और विदेशों में भी सूर्य का बड़ा महत्त्व है। उनके ज्योतिष शास्त्र आदि सब सूर्य पर ही निर्भर है । अब संक्रांत में ये होता है, कि चौदह तारीख को, आज सूर्य अपनी कक्षा छोड़ के उत्तर दिशा में आता है और इसलिये लोग संक्रांत को बहुत ज्यादा मानते हैं। लेकिन इस पृथ्वी गति से पहले २२ दिसंबर से १४ तारीख तक बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है। बहुत ही ज्यादा लोगों को तकलीफ़े होती हैं। जुकाम होता है और हर तरह की शारीरिक पीड़ा भी होती है। उसके बाद उसको संक्रमण काल कहते हैं। जरूरत से ज्यादा ठंडक हो जाता है। उस ठंड के कारण अनेक उपद्रव शुरू हो जाते हैं। पर इस ठंड का भी एक उपयोग होता है। वो ये कि जो किटाणू या तरह तरह की चीज़ें अपने देश में इधर-उधर घूम कर और सब को परेशान करते हैं, वो इस ठंड की वजह से अपनी अपनी जगह चले जाते हैं, बहुत से नष्ट हो जाते हैं। बहुत से लोग मर जाते हैं। मतलब ये कि जिसे हम कह सकते हैं, कि जो सारे हमारे ऊपर पॅरासाइट्स है वो सब खत्म हो जाते हैं। तो ये भी अत्यावश्यक चीज़ हैं, कि हमारे Read More …

Shri Ganesha Puja (भारत)

श्री गणेश पूजा कळवा, ३१ दिसंबर १९९४ अ जि हम लोग श्री गणेश पूजा करेंगे। श्री गणेश की पूजा करना अत्यावश्यक है। क्योंकि उन्हीं की वजह से सारे संसार में पावित्र्य फैला था। आज संसार में जो-जो उपद्रव हम देखते हैं उसका कारण यही है की हमने अभी तक अपने महात्म्य को नहीं पहचाना। और हम लोग ये नहीं जानते की हम इस संसार में किसलिए आये हैं और हम किस कार्य में पड़े हुए है, हमें क्या करना चाहिए? इस चीज़ को समझने के लिए सहजयोग आज संसार में आया हुआ है। जो कुछ भी कलियुग की घोर दशा है उसे आप जानते हैं। मुझे वो बताने की इतनी जरूरत नहीं है। परन्तु हमें जान लेना चाहिए कि मनुष्य जो है धर्म से परावृत्त हो गया है। जैसे कि उसकी जो श्रद्धाऐं थीं वो भी ऊपरी तरह से आ गयी । उसमें आंतरिकता नहीं। वो समझ नहीं पाता है कि श्री गणेश को मानना माने क्या? अपने जीवन में क्या चीज़ें होनी चाहिए। लेकिन ये बड़ा मुश्किल है। कितना भी समझाईये, कुछ भी कहिये लेकिन मनुष्य नहीं समझ पाता है कि श्री गणेश को किस तरह से हम लोग मान सकते हैं। गर वो एक तरफ श्री गणेश की एक आशीर्वाद से प्लावित है, नरिष्ठ है कि वो बड़े पवित्र है। वो सोचते हैं। ऐसी बात नहीं। अगर आप बहुत इमानदार आदमी है तो ठीक है। लेकिन नैतिकता में आप कम है तो गलत है। अगर आप संसार के जो कुछ भी प्रश्न है उसकी ओर ध्यान नहीं देते Read More …

Shri Mahalakshmi Puja, The Universal Love (भारत)

30 /12/ 1992  महालक्मी पूजा, सर्वव्यापी प्रेम, कल्वे, भारत  सहज योगियों को ऐसे साधारण सांसारिक लोगों के स्तर तक नहीं गिरना चाहिए। अंत में आपके साथ क्या होगा? जो लोग इस प्रकार की चिंता कर रहे हैं, मैं उन्हें कहूँगी कि वह गहन ध्यान में जाएं, यह समझने के लिए कि आप स्वयं का अपमान कर रहे हैं। आप संत हैं। आप इस बात की चिंता क्यों करें कि आपको कौन सा विमान मिलने वाला है, कौन सा नहीं? यह दर्शाता है कि आपका स्तर बहुत नीचा है – निश्चित रूप से। आप सभी जो चिंतित हैं, आप मेरे संरक्षण में यहां आए हैं, और मेरी सुरक्षा में ही वापस जाएंगे।  आज सुबह मैं ईतनी बीमार हो गई कि मुझे यह विचार आया, आज हम कोई पूजा का आयोजन नहीं करेंगे। आपको यह पता होना चाहिए कि आप सब मेरे अंग प्रत्यंग है। आपको अपने शरीर में स्थान दिया है, और आप आपना आचरण सुधारें !  ऐसे शुभ दिन में हम सभी यहां आए हैं, यह विशेष पूजा करने के लिए। मैं कहूँगी की इसे महालक्ष्मी पूजा कहना चाहिए क्योंकि इसका सम्बन्ध हमारे देश के और सारे संसार के उद्योग से है।  जब तक मनुष्य के सभी प्रयासों को परमात्मा के साथ जोड़ा न जाए, वह अपने उत्तम स्थिति और पद को प्राप्त नहीं कर सकते। इस कारण पश्चिम के देशों में अब हमें समस्याएं आती हैं। तथाकथित अत्यंत समझदार, अति चुस्त, संपन्न और शिक्षित लोग – अब यहाँ हमें आर्थिक मंदी जैसी स्थिति दिखती हैं, क्योंकि उनमें कोई संतुलन Read More …

Shri Mahalakshmi Puja (भारत)

Shri Ganesha Puja 21st December 1991 Date : Kolhapur Place Type Puja Speech Language English, Hindi & Marathi आप लोग इतनी दिल्ली से यहाँ पर पहुँचे हैं और सब का प्यार है जो खिंच के लाया आपको यहाँ पर। मैं दूर समझा नहीं सकती कि मुझे कितना आनन्द हुआ है कि आप लोग सब यहाँ हैं। दिल्ली में तो मुलाकात होती ही रहती है और बहुत लोगों से मुलाकात होती रही और सब को देखते रहे हम और आप लोगों ने बहुत प्रगति कर ली है। बड़े आश्चर्य की बात है, दिल्ली जैसा शहर जिसको की मैं हमेशा बिल्ली कहती थी। मैं कभी दिल्ली कहती नहीं थी। क्योंकि वहाँ के लोग, जिस वक्त मैं वहाँ रही, जब मेरी वहाँ शादी हुई तो सिवाय पॉलिटिक्स के कुछ बात ही नहीं करते थे । लेकिन शुरू के जमाने में वहाँ बहुत बड़े बड़े लोग हो गये। और जब वो पॉलिटिक्स की बात करते थे, तो यही कि, ‘हमारे देश की हालत कैसे ठीक होगी?’ क्योंकि मेरे पिताजी कॉन्स्टिट्यूट असेम्ब्ली के मेंबर थे, तो कैसा कॉन्स्टिट्यूशन बनना चाहिए? मतलब बहुत गहरी बाते करते थें। था तो पॉलिटिक्स ही, लेकिन उस पॉलिटिक्स में और आज कल के पॉलिटिक्स में बहुत ही ज्यादा फर्क हैं। और फिर उसके बाद पता नहीं कहाँ से सब लोग वहाँ पे पहुँच गये खटमल जैसे। सारे देश का खून चूसने वाले वहाँ पहुँच गये। और उन्होंने जिस तरह से | वहाँ पर राजकारण जमाना शुरू कर दिया, अनीति शुरू कर दी। तो मैं खुद ही सोचती थी, कि दिल्ली Read More …

Shri Ganesha Puja (भारत)

Shri Ganesha Puja Date 15th December 1991: Place Shere Type Puja [Hindi translation (English talk), scanned from Hindi Chaitanya Lahari] महाराष्ट्र में श्री गणेश की पूजा के महत्व की हमें समझना है। अष्टविनायक (आठ गणपति) इस क्षेत्र के इर्द-गिर्द है और महाराष्ट्र के त्रिकोण बनाते हुए तीन पर्वत कुण्डलिनी के समान हैं। पूरे विश्व की कुण्डलिनी इस क्षेत्र में निवास करती है श्री गणेश द्वारा चैतन्यित इस पृथ्वी का अपना ही स्पन्दन तथा चैतन्य है। महाराष्ट्र की सर्वात्तम विशेषता यह है कि यह बहुत बाद में कभी भी आप सुगमता से यह विवेक उनमें नहीं भर सकते। तब इसके लिए आपको वहुत परिश्रम करना पड़ेगा। सहजयोग में यह विवेक तजी से कार्य कर रहा है और लोग वहुत बुद्धिमान होते जा रहे हैं। किसी भी मार्ग से हम चलें, हम पात हैं कि हमारो सारी समस्याएं मानव की ही देन है। जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है कि बाह्य जगत में जा भी प्रवृत्तियां या फैशन आयें आप उनसे प्रभावित नहीं हाते। आप अन्दर से परिवर्तित होते हैं। तब आप पूर्णतया जान जाते हैं कि दूसरे लोगों से क्या आशा की जाती उनसे किस प्रकार व्यवहार किया जाए, किस प्रकार बातचीत की जाए और उनके साथ किस सीमा तक चला जाए। यह सव विवेक से प्राप्त होता है। सहजयाग में आप सब अतियोग्य लाग विवेक को डतनी ही सुन्दर चित्त प्रदान करता है। श्री गणेश के चैतन्य प्रवाह के कारण चित्त एकाग्रित हो जाता है। पवित्रता तथा मंगल प्रदान करने के लिए श्री गणेश की सृष्टि हुईं। गणेश ही सभी का Read More …

Shri Mahalakshmi Puja Kolhapur (भारत)

Shri Mahalakshmi Puja Date 21st December 1990 : Place Kolhapur Type Puja Speech Language Hind मैं आपसे बता चुकी हूँ कि महाराष्ट्र में त्रिकोणाकार अस्थि और उसमें कुण्डलाकार में शक्ति विराजती है । महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती और आदिशक्ति इस तरह से साढ़े तीन कुण्डलों में बैठी हुई है। माहुरगढ़ में महासरस्वती हैं जिन्हें रेणुका देवी भी कहते हैं। तुलजापुर में भवानी है जिन्हें महाकाली कहते हैं और कोल्हापुर में महालक्ष्मी का स्थान है। यहाँ से आगे सप्तश्रृंगी नाम का एक पहाड़ है जिस पर आदिशक्ति की अर्धमात्रा है। इस प्रकार ये साढ़े तीन शक्तियाँ इस महाराष्ट्र में पृथ्वी तत्व से प्रकट हुई हैं। और यहीं पर श्री चक्र भी विराजता है। आप सब जानते हैं कि महालक्ष्मी ही मध्यमार्ग है जिससे कुण्डलिनी का जागरण होता है। इसलिए हजारों वर्षों से इस महालक्ष्मी मन्दिर में ‘उदे अम्बे’ कहा जाता है। क्योंकि अम्बा ही कुण्डलिनी है और कुण्डलिनी की शक्ति महालक्ष्मी में ही जागृत हो सकती है। इसलिए महालक्ष्मी के मन्दिर में बैठ कर अम्बा के गीत गाये जाते हैं। इसी स्थान पर अम्बा ने कोल्हापुर नामक राक्षस को मारा था, इसलिए इसका नाम कोल्हापुर पड़ा। कोल्हा का अर्थ है सियार। सियार के रूप में आये राक्षस का वध देवी ने किया। लेकिन जहाँ भी मन्दिरों में पृथ्वी तत्व ने ये स्वयंभू विग्रह तैयार किये हैं वहाँ लोगों ने बुरी तरह से पैसा बनाना शुरू कर दिया है । मन्दिरों की तरफ कुछ भी ध्यान नहीं दिया गया। इसलिए कभी-कभी लगता है इन मन्दिरों में चैतन्य दब सा जाएगा। अब आप लोग Read More …

Devi Puja: In 10 years we can change the whole world & Weddings Announcements Brahmapuri (भारत)

मुझे खेद है जो भी कल हुआ, लेकिन मुझे लगता है कि बुराई और अच्छाई के बीच युद्ध शुरू हो गया है, और आखिरकार अच्छाई की जीत होती है। आधुनिक युग में अच्छाई पर बुराई हावी रहती थी लेकिन अब इस कृत युग में बुराई पर अच्छाई की पूरी तरह से जीत होगी, इतना ही नहीं, अच्छाई हर जगह फैलेगी। बुराई में अति तक जाने और फिर उत्क्रांती की प्रक्रिया से पूरी तरह बाहर हो जाने की क्षमता है। चूँकि वे अंधे हैं वे अच्छे को नहीं देख सकते हैं इसलिए वे बुरे हैं। यदि वे अच्छाई देख पाते तो वे अपनी बुराई छोड़ देते। हमारे देश में जो योग का देश है, विशेष रूप से महाराष्ट्र जो संतों का देश है, मैं यह सुनकर चकित रह गयी जो कि लोग क्या कर रहे हैं। इस बकवास के वास्तविक स्रोत में से एक रजनीश, भयानक आदमी लगता है, क्योंकि उसने यहां एक प्रदर्शनी लगाई है जिसमें सभी देवताओं की पूरी तरह से निंदा की गई है और सभी प्रकार की गंदी बातें कही गई हैं, और मुझे लगता है कि यहां के मुख्यमंत्री भी इसमें शामिल हैं।  वे सभी यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि कोई ईश्वर नहीं है, कोई आध्यात्मिकता नहीं है। वे यह स्थापित करना चाहते हैं कि विज्ञान ही सब कुछ है। भारत में हमारे पास विज्ञान की कोई विरासत नहीं है, हमारे पास अध्यात्म की विरासत है। मेरा मतलब है कि इस देश में इतने बड़े वैज्ञानिक के रूप में कोई भी विख्यात Read More …

Devi Puja: Try to Become Aware Shrirampur (भारत)

देवी पूजा श्रीरामपुर (भारत), 21 दिसंबर 1989। पीछे जाएँ, जिन्हें जगह नहीं मिली है, कृपया पीछे हटें। समझदार बनें। तुम सब मुझे अच्छी तरह देख सकते हो और जो दूर हैं वे मेरे अधिक निकट हैं; यह एक तथ्य है। जब मैं सच कहती हूं, तो वहां विष्णुमाया होती है। कृपया बैठ जाएं। नमस्ते। उसका क्या नाम है? जेनी, तुम उस तरफ जाओ। पुरुषों के साथ मत बैठो। अपने आप पर एक अनुशासन रखना चाहिए। जो लोग यहां बैठे हैं कृपया बाईं ओर चलें। दूरी बनाए रखें। अब, आप इतने महान सहजयोगी, प्राचीन सहजयोगी हैं। लोग अनुशासन और सूझबूझ के लिए आपकी ओर देखते हैं। ज्यादातर जो बहुत नए होते हैं वो आगे आने की कोशिश करते हैं। ऐसा मैंने देखा है। यदि आप नेता हैं तो, फिर अगर आप सामने बैठे हैं तो मैं समझ सकती हूं। अन्यथा सामने बैठने की क्या जरूरत? अच्छा। कृपया बैठ जाएं। आप जितने आगे होंगे, आपको और अधिक चैतन्य महसूस होंगे। तुम कर सकते हो; इसके लिए आप गवाही दे सकते हैं। आप जितने करीब होंगे उतना आप कम महसूस करेंगे। यह मेरी तरकीब है। अब देखिए, क्या आप वहां ज्यादा वाइब्रेशन महसूस कर रहे हैं? जेनी, वहाँ, अपने आप को देखें। ठीक है? मैं कभी असत्य नहीं बोलती। क्या थोडा पानी मिलेगा। [हिंदी] नहीं, नहीं, आप क्यों नहीं कोई उचित सीट लेते है? [हिंदी] बेहतर होगा कि आप एक सीट ले लें। [हिंदी] मैं उन्हें एक ऐसी बात के बारे में बता रही हूं आवश्यक नहीं की आपको उसके बारे में पता Read More …

Nothing to discuss in Sahaja Yoga Alibag (भारत)

                                      भारत दौरे की पहली पूजा  अलीबाग (भारत), 17 दिसंबर 1989। आप सभी का स्वागत है। थोड़ी देर हो गई है लेकिन अभी-अभी उन्होंने मुझे सूचित किया है कि विमान और भी देरी से चल रहा है, इसलिए मैंने सोचा कि अब पूजा करना बेहतर है, हालाँकि अंग्रेजों ने हमें शुरू से ही बताया था कि वे इसमें शुरुआत से ही शामिल होना चाहेंगे। उन्हें हमेशा बहुत अधिक पूजाएँ मिलती हैं, यही कारण हो सकता है। [श्री माताजी हंसती हैं, हंसी] तो अब हम सब यहां आ गए हैं और हम एक साथ तीर्थयात्रा की शुरुआत करने जा रहे हैं। यह यात्रा बहुत ही सूक्ष्म प्रकृति की है और अगर हम यह महसूस करें हम यहां क्यों हैं, तो हम समझेंगे कि यह सारी सृष्टि आप सभी पर नज़र रखे हुए है और यह आपकी मदद करने की कोशिश कर रही है कि आपका उत्थान होना चाहिए और आप अपनी गहनता को महसूस करें और इस तरह अपने स्व का आनंद लें। खुद। यात्रा संभवतः बहुत आरामदायक नहीं रहे। सड़कें स्पीड-ब्रेकर्स तथा हर तरह के अवरोध से बहुत भरी हुई हैं  [श्री माताजी हंसती हैं] । हमारे उत्थान की जैसी यात्रा है|  मुझे लगा, कि अपनी गति को नीचे लाना है। नि:संदेह पश्चिम में हम बहुत तेज गति वाले हो गए हैं और इस गति को कम करने के लिए हमें ध्यान की प्रक्रिया का उपयोग करना होगा जिससे हम अपने भीतर शांति का अनुभव कर सकें। साथ ही विचार हमारे दिमाग पर बमबारी कर रहे हैं और हम दूसरों पर Read More …

Adi Shakti Puja: Detachment Residence of Madhukar Dhumal, Rahuri (भारत)

आदि शक्ति पूजा, वैराग्य, राहुरी (भारत),11 दिसंबर 1988 पूजा उस समय आरंभ होती है, जब इसे आरंभ होना होता है और मैं प्रतीक्षा और प्रतीक्षा और प्रतीक्षा कर रही हूँ।फिर मुझे एहसास हुआ कि आज बहुत अच्छा समय है, पंचांग के अनुसार, परंतु यह प्रातः का नहीं है,तो इसे चंद्रमा का तीसरा दिन होना थाऔर जैसा कि चंद्रमा दिन के समय में अपनी कलाएँ बदल रहा है, हमें प्रतीक्षा करनी पड़ी जब तक यह आरंभ नहीं हुआ। मुझे लगता है, ये सब चीज़ें हुईं; चोरी की और सब कुछ हुआ, संभवतः पूजा को उस समय तक टालने के लिए जब इसे आरंभ होना चाहिए।तो सहज योग में हम सभी समय से परे चले जाते हैंऔर हमें समय के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती। मात्र जब तक यह एक औपचारिक कार्यक्रम या ऐसा कुछ हो, क्योंकि लोग औपचारिक हैं और वे हमारी शैलियों को नहीं समझते हैं।इसलिए हमें वहाँ सही समय पर उपस्थित होना होता है,अन्यथा हमें समय को स्वमार्ग लेनेदेना चाहिए और इसे हमें अपनी तरह से जानना चाहिए।अब हमारी यात्रा और इस दौरे के बारे में हमें यह जानना होगा कि हम यहाँ पाने के लिए आए हैं एक निश्चित ऊँचाई अपनी निर्लिप्तता में, हमें अपनी स्थिति के क्षेत्र में ऊपर उठना हैजबकि आसपास की परिस्थितियाँ,वे हमें घेरे हुए हैं और वे हमें दुखी नहीं कर सकतीया पक्षपाती, या हमें उन पर प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए।इसके विपरीत हमें उनसे ऊपर उठने का प्रयास करना चाहिए। यदि कुछ विकृत घटित न हो तो आप परम की बढ़ती Read More …

Being Bandhamukta – A free personality and Evening Program Ganapatipule (भारत)

                गणपतिपुले संगोष्ठी, भारत यात्रा  गणपतिपुले (भारत), 5 जनवरी 1988। कल के कार्यक्रम से, और इन सभी दिनों में, आपने महसूस किया होगा कि अपनी कुंडलिनी को कार्यान्वित करने के लिए, उसकी आरोहण सहस्रार की ओर  लाने के लिए और अपनी सुषुम्ना नाडी को चौड़ा करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि आप तीन से पांच घंटे ध्यान के लिए बैठें। बेशक, आपको थोड़े समय के लिए ध्यान करना चाहिए क्योंकि केवल उस दौरान ही  है जहां आप अकेले हैं, अपने ईश्वर के साथ एकाकार हैं। लेकिन अन्यथा सामूहिक में, जब आप इसमें विलीन हो जाते हैं, तो कुंडलिनी समान रूप से उठती है। जो होता है उसे समझने का यह एक बहुत ही विवेकपूर्ण तरीका है। सामूहिकता में जब आप होते हैं, तो आप एक-दूसरे की भरपाई करते हैं, एक-दूसरे के पूरक होते हैं, और ब्रह्मांड का एक सूक्ष्म पक्ष आप में प्रकट होने लगता है। फिर यदि आप वास्तव में घुल सकते हैं तो संस्कृत भाषा में ‘विलय’ शब्द है या मराठी भाषा में ‘रमना’ बहुत अच्छा है। मुझे नहीं लगता कि “आनंद के साथ विलय” लेकिन देखिये, कोई ‘साथ’ नहीं है, आनंद में विलीन हो जाते हैं। तो अगर आप किसी चीज के आनंद में विलीन हो सकते हैं जो कि सहज है तो आप एक ध्यानमय व्यक्तित्व बन सकते हैं, आप अपने भीतर उस ध्यानमय रवैये को प्राप्त कर सकते हैं। उस रवैये के साथ, उस बल के साथ, आपके भीतर नए सूक्ष्म आयाम प्रस्फुटित होने लगते हैं। आपकी अलग-अलग तरह की संस्कारबद्धता जो बेड़ियों की Read More …

Christmas Puja: Reach Completion of Your Realization पुणे (भारत)

क्रिसमस पूजा  पुणे 25 दिसम्बर 87 आज मैंने अंग्रेजी में बात की। क्योंकि यह उनका विषय है। लेकिन हम भी ईसा-मसीह के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं, और जो हम जानते हैं वह इतना कम है, कि हम उससे जो अनुमान लगाते हैं वह गलत है जैसा कि ये ईसाई देखते हैं। कहा जा रहा है कि किसी भी जाति में ऐसे बुद्धिमान व्यक्ति नहीं मिलते। तो यह हिंदू धर्म या ईसाई धर्म क्यों है? किसी भी धर्म में केवल मूढ़ लोगों कि अधिक पोषित किया जाता है। इसलिए हम इन मूढों से कुछ भी सीखना नहीं चाहते हैं, लेकिन इस दुनिया में जितने भी अवतरण आये है, उसमे उनकी बहुत विशेषता है। इनमें ईसा मसीह की विशेषता यह है कि उनका जीवन सोने के समान है। कोई भी उनके जीवन के बारे में एक अक्षर भी नहीं कह सकता कि ईसा-मसीह ने यह छोटा सा काम गलत किया, या उसने यह कैसे किया? कोई सवाल टिक नहीं पाते। इतने छोटे जीवनकाल में भी उन्होंने जो उंचाई हासिल की है, और उनके सभी कार्यों का योग, व्यवस्थित रूप से, एक के बाद एक, वास्तव में असाधारण है, और यही मैं आज आपको बताना चाहती हूं। जैसे ईसा-मसीह बिना पिता के केवल पवित्र आत्मा के द्वारा उत्पन्न हुए, वैसे ही तुम भी उत्पन्न हुए हो। तब आपको वैसी ही पवित्रता में आना चाहिए और उसी पवित्रता में रहकर संसार को एक ईसा-मसीह जैसा जीवन प्रदर्शित करना चाहिए। तब लोग कहेंगे कि यह तुम्हारे सामने ईसा-मसीह के उदाहरण का फल है। Read More …

Birthday Puja मुंबई (भारत)

Birthday Puja Date 21st March 1987 : Place Mumbai Puja Type Speech Language Hindi आप लोगों ने मुबारक किया आपको भी मुबारक। सारी दुनिया में आज न जाने कहाँ कहाँ आपकी माँ का जन्मदिन मनाया जा रहा है। उसके बारे में ये कहना है कि वो भी आप लोगों में बैठे हुये मुबारक बात देते हैं। इस सत्रह साल के सहजयोग के कार्य में, जब हम नजरअंदाज करते हैं, तो बहुत सी बातें ऐसी ध्यान में आती हैं, कि जो बड़ी चमत्कारपूर्ण हैं। ये तो सोचा ही था शुरू से ही कि इस तरह का अनूठा कार्य करना है। उसके लिये तैय्यारियाँ बहुत की थी। बहुत मेहनत, तपस्या की थी। लेकिन हमारे घर वालों को इसका कोई पता नहीं था। किसी तरह से चोरी-छिपे अकेले में, ध्यान-धारणा की और विचार होते थे कि किस तरह से मनुष्य जाति का उद्धार हो। सामूहिक रूप से हो जायें । जब ये कार्य शुरू हुआ, तब भी इतने जोरों में ये कार्य फैल सकता है ऐसा मुझे एहसास नहीं हुआ। लेकिन ये एक जीवंत क्रिया है और जीवंत क्रिया किस तरह, कहाँ होगी, उसके बारे में कोई भी अंदाज पहले से लगा नहीं सकते। इस तरह से सामूहिकता में ये कार्य अचानक नहीं हुआ। सर्वप्रथम बहुत कम लोग पार ह्ये। लेकिन जब पूरी कार्य का हम सिलसिला ढूँढते हैं और सोचते हैं कि इतने सत्रह साल में सहजयोग में हमने क्या कमी देखी। तो पहली बात ये ध्यान में आती है, कि मनुष्य के स्वभाव को, हमें कल्पना भी नहीं थी और सहजयोग Read More …

Makar Sankranti Puja (भारत)

Makar Sankranti Puja 14th January 1987 Date: Place Rahuri Type Puja [Hindi translation from Marathi talk] आज का दिन बहुत शुभ है और इस दिन हम लोगों को तिल-गुड़ देकर मीठा-मीठा बोलने को कहते हैं। हम दूसरों को तो कह देते हैं, पर खुद को भी कहें तो अच्छा होगा। क्योंकि दूसरों को कहना बहुत आसान होता है। यह प्रतीत होता है कि – आप तो मीठा बोलें और हम कड़वा – इस तरह की प्रवृत्ति से कोई भी मीठा नहीं बोलता। कहीं भी जाओ , वहाँ चिल्लाने का कोई कारण न होने पर भी, चिल्लाने के अलावा लोगों को बात करना आता ही नहीं है। उसका कारण यह है कि हमने खुद के बारे में कुछ कल्पना की हुई है। हमें परमात्मा के आशीर्वाद की तनिक भी कल्पना नहीं है। इस देश में परमात्मा ने हमें कितना बडा आशीर्वाद दिया है। देखो, इस देश में स्वच्छता का कोई विचार ही नहीं है। इस देश में तरह-तरह के कीटाणु, तरह पैरासाइटस् अपने देश में हैं। जो कही भी नहीं मिलेगा वह अपने देश में हैं। दूसरे देशों में यहाँ के कुछ पैरासाइटस् जाएं तो वे मर जाते हैं। वहाँ की ठंड में वो रह ही नहीं सकते। सूर्य की कृपा से इतने पैरासाइटस् इस देश में है और उनको मात देकर हम कैसे जिंदा हैं । एक वैज्ञानिक ने मुझसे पूछा कि, ‘अपने इंडिया में लोग जीवित कैसे रहते हैं? मैंने कहा, जीवित ही नहीं रहते, हँसते- खेलते भी रहते हैं, आनंद में रहते हैं, सुख में रहते हैं । Read More …

Devi Puja: The Duties of a Guru Ganapatipule (भारत)

                                                      देवी पूजा  गणपतिपुले (भारत), 3 जनवरी 1987। आज चंद्रमा का तीसरा दिन है। चंद्रमा का तीसरा दिन तृतीया, कुंवारीयों के लिए विशेष दिन है। कुंडलिनी शुद्ध इच्छा है। यह कुंवारी है क्योंकि इसने अभी तक स्वयं को अभिव्यक्त नहीं किया है। और यह भी कि, तीसरे केंद्र नाभी पर, पवित्रता गुरु की शक्तियों के रूप में प्रकट होती हैं। जैसा कि हमें दस गुरु प्राप्त हैं, जिनका हम मूल गुरु के रूप में आदर करते  हैं, वे सभी उनकी बहन या बेटी को अपनी शक्ति के स्वरुप में रखते थे। बाइबिल के पुराने संस्करण में यह कहा गया है कि,  जो आने वाला है वह कुंवारी से पैदा होगा। और तब चूँकि यहूदी ईसा-मसीह को स्वीकार नहीं करेंगे, इसलिए उन लोगों ने ऐसा कहा कि “यह लिखा हुआ शब्द ‘कुंवारी’ नहीं है अपितु,  यह ‘लड़की’ लिखा है”।  अब संस्कृत भाषा में ‘लड़की’ और ‘कुँवारी’ एक ही शब्द है। हमारे पास आजकल की तरह 80 साल की लड़कियां नहीं थीं। तो एक महिला के कौमार्य का मतलब था कि वह एक ऐसी लड़की थी जिसकी अभी तक शादी नहीं हुई थी या जो अब तक अपने पति से नहीं मिली है। वह पवित्रता का सार है, जो गुरु सिद्धांत की शक्ति थी। तो, एक गुरु जो बोध प्राप्ति हेतु दूसरों का नेतृत्व करने का प्रभारी है, उसे यह जानना होगा कि उसकी शक्ति का उपयोग शुद्ध शक्ति की एक कुंवारी शक्ति के रूप में किया जाना है। एक गुरु इस शक्ति का उपयोग उस तरह से नहीं कर सकता जैसे एक Read More …

Shri Mahalakshmi Puja: A temperament of a peaceful personality Sangli (भारत)

श्री महालक्ष्मी पूजादिनांक 31 दिसंबर 1986: स्थान सांगली [मराठी से हिंदीअनुवाद]सहज योग सांगली जिले में धीरे-धीरे फैल रहा है। लेकिन जो चीज धीरे-धीरे फैलती है वह मजबूती से स्थापित हो जाती है। और कोई भी सजीव प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है। इसलिए हमें ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि यह अचानक बड़े पैमाने पर बढ़ेगी। अगर हमें प्लास्टिक के फूल बनाने हैं तो उसके लिए एक मशीन काफी है। लेकिन सजीव फूल बनाने में समय लगता है। इसे उगाने की जरूरत है, प्रयास करने की जरूरत है। बहुत से लोगों को अभी भी सहज योग के बारे में कोई जानकारी नहीं है। और जो जानते हैं उन्हें केवल भ्रांतियां होती हैं। हमारे यहां कई पंथ, संप्रदाय हैं जो लंबे समय से सक्रिय हैं। लेकिन हमें इन पंथों और संप्रदायों से कोई लाभ नहीं हुआ है। “हम इतने दिनों से पंढरी (पंढरपुर) जा रहे हैं, इतने दिनों से तुलजापुर की भवानी की पूजा कर रहे हैं, कोल्हापुर में महालक्ष्मी मंदिर के दर्शन कर रहे हैं। हमने वह सब कुछ किया जो संभव है। उपवास और धार्मिक अनुष्ठान किए। इतना सब करने के बाद भी माताजी हमें कुछ नहीं मिला। इसके भी ऊपर, आपके बच्चे बड़े होकर आपसे पूछेंगे – आपने इतना समय बिताया, पैसा खर्च किया, प्रयास किया और अंत में आपको कुछ भी हासिल नहीं हुआ। यानी कोई भगवान है ही नहीं। अगर आप सांगली जाना चाहते हैं तो सांगली की ओर जाने वाला रास्ता लें। यदि आप उल्टा रास्ता अपनाते हैं तो आप सांगली नहीं पहुंचेंगे। तो इतने सालों के Read More …

Shri Mahadevi Puja: Steady yourself with meditation Chalmala, Alibag (भारत)

मैं सभी सहजयोगियों को नमन करती हूं।इन खूबसूरत परिवेश में, आप में से कई लोग सोच रहे होंगे कि परमात्मा ने इन खूबसूरत चीजों को क्यों बनाया है। क्योंकि आप लोगों को इस धरती पर आना था और उस सुंदरता का आनंद लेना था, जो कि इसका एक कारण है। और अब ईश्वर आनंद और संतुष्टि के साथ बहुत अधिक तृप्ति और एक प्र्कार से अपनी इच्छापुर्ति को महसूस करते हैं।“भगवान ने यह सुंदर ब्रह्मांड क्यों बनाया है?” हजारों वर्षों से ऐसा एक प्रश्न पूछा गया है। कारण समझने में बहुत सरल है: यह जो सौंदर्य बनाया गया है वह स्वयं को नहीं देख सकता है। उसी तरह, सुंदरता का स्रोत ईश्वर अपनी सुंदरता को नहीं देख सकता है। जैसे मोती अपनी सुंदरता को देखने के लिए अपने आप में प्रवेश नहीं कर सकता। जैसे आकाश अपनी सुंदरता को नहीं समझ सकता। सितारे अपनी सुंदरता नहीं देख सकते। सूर्य अपना तेज नहीं देख सकता। उसी तरह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपने स्वयं के अस्तित्व को नहीं देख सकते हैं। उन्हे एक दर्पण की जरूरत है और इसी तरह उसने इस सुंदर ब्रह्मांड को अपने दर्पण के रूप में बनाया है। इस दर्पण में उसने सूर्य की तरह अब सुंदर चीजें बनाई हैं, फिर सूर्य को अपना प्रतिबिंब भी देखना होगा। तो, उसने इन खूबसूरत पेड़ों को यह देखने के लिए बनाया है कि जब वह चमकता है, तो वे इतनी अच्छी तरह से ऊपर आते हैं और इतने हरे दिखते हैं।फिर उन्होंने उन पक्षियों को बनाया है जो सुबह जल्दी उठकर सूर्य Read More …

Diwali Puja पुणे (भारत)

Diwali Puja 1st November 1986 Date : Place Pune Type Puja Speech Language Hindi दिवाली के शुभ अवसर पे हम लोग यहाँ पुण्यपट्टणम में पधारे हैं। न जाने कितने वर्षों से अपने देश में दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है। लेकिन जब से सहजयोग शुरू हुआ है, दिवाली की जो दीपावली है वो शुरू हो गयी । दिवाली में जो दीप जलायें जाते थे , वो थोड़ी देर में जाते हैं। बुझ फिर अगले साल दूसरे दीप खरीद के उस में तेल डाल कर, उस में बाती लगा कर दीपावली मनायी जाती थी। इस प्रकार हर साल नये नये दीप लाये जाते थे। दीप की विशेषता ये होती थी, कि पहले उसे पानी में डाल के पूरी तरह से भिगो लिया जाता था| फिर सुखा लिया जाता था। जिससे दीप जो है तेल पूरा न पी ले और काफ़ी देर तक वो जले। लेकिन जब से सहजयोग शुरू हुआ है तब से हम लोग हृदय की दिवाली मना रहे है। हृदय हमारा दीप है। हृदय में बाती है, शांत है और उसमें प्रेम का तेल डाल कर के और हम लोग दीप जलाते हैं। इस तेल को डालने से पहले इस हृदय में जो कुछ भी खराबियाँ हैं उसे हम पूरी तरह से साफ़ धो कर के सुसज्जित कर लेते है। ये प्रेम हृदय में जब स्थित हो जाता है, तब उसको हृदय पूरी तरह से अपने अन्दर शोषण नहीं कर लेता। जैसे पहले कोई आपको प्रेम देता है, माँ देती है प्रेम, पिताजी देते हैं प्रेम और भी लोग Read More …

Navaratri, Shri Gauri Puja पुणे (भारत)

Shri Gauri Puja 5th October 1986 Date : Place Pune Type Puja Speech Language Hindi & Marathi पूना शहर का नाम वेदों में, पूराणों में सब जगह मशहूर है । इस को पुण्यपट्टणम कहते है। पुण्यपट्टणम और इस जगह जो नदी बहती है उसका नाम है मूल नदी | जो यहाँ से मूल बहता है, ऐसी ये नदी | यहाँ पर हजारों वर्षों से बह रही है और इस भूमी को पूरण्यवान बना रही है। हम लोगों को पुण्य के बारे में पूरी तरह से मालूमात नहीं है । बहुत से लोग सोचते है अगर हम गरीबों को कुछ दान दे दें या कोई चीज़ किसी को बाँट दें या कभी हम सच बोले या थोडी बहुत कुछ अच्छाई कर लें तो हमारे अन्दर पुण्य समा जाता है। इस तरह का पुण्य संचय होता तो होगा लेकिन वो एक बुँद, बुँद, बुँद बनकर के न जाने कब सरोवर हो सकता है। पुण्य का जो अर्थ है, उसको जैसा जाना गया है कि ऐसे कार्य करना कि जिसे परमात्मा संतोषित हो, जिसे परमात्मा खुष हो ऐसे कार्य हमें करने चाहिए । और जो आदमी ऐसे कार्य करता है वही पुण्यवान आत्मा होता है क्योंकि जब वो परमात्मा को खुष कर देता है, उस पर जो आशीर्वाद परमात्मा के आते है वो उसको पुण्यवान बना देते है। परमात्मा की शक्तियाँ उसके अन्दर आ जाती है वो उसके अन्दर एक नयीं चेतना कहिए या नया व्यक्तित्व कहिए, एक नयी हैसियत कहिए प्रगट करती है। उस हैसियत में मनुष्य ऐसा हो जाता है कि Read More …

Shri Mahaganesha Puja Ganapatipule (भारत)

                                            श्री महागणेश पूजा  गणपतिपुले (भारत), 1 जनवरी 1986। आज हम सब यहां श्री गणेश को प्रणाम करने के लिए एकत्रित हुए हैं। गणपतिपुले का एक विशेष महत्व है क्योंकि वे महागणेश हैं। मूलाधार में गणेश विराट यानी मस्तिष्क में महागणेश बन जाते हैं। यानी यह श्री गणेश का आसन है। अर्थात श्री गणेश उस आसन से निर्दोषता के सिद्धांत का संचालन करते हैं। जैसा कि आप अच्छी तरह से जानते हैं, जैसा कि वे इसे कहते हैं, यह ऑप्टिक थैलेमस, ऑप्टिक लोब के क्षेत्र में, पीछे रखा जाता है; और वह आँखों को निर्दोषता के दाता है। जब उन्होंने क्राइस्ट के रूप में अवतार लिया – जो यहाँ, सामने, आज्ञा में है – उन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि “तुम्हें आँखें भी व्यभिचारी नहीं होना चाहिए।” यह एक बहुत ही सूक्ष्म कहावत है, जिस में लोग ‘व्यभिचारी’ शब्द का अर्थ भी नहीं समझते हैं। ‘व्यभिचार’ का अर्थ सामान्य शब्द में अशुद्धता है। आँख में कोई भी अशुद्धता “तेरे पास नहीं होगी”। यह बहुत मुश्किल है। यह कहने के बजाय कि आप अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें और अपनी पिछले आज्ञा चक्र को साफ करें, उन्होंने इसे बहुत ही संक्षिप्त रूप में कहा है, “तुम्हें व्यभिचारी आँखे नहीं रखना चाहिए”। और लोगों ने सोचा “यह एक असंभव स्थिति है!” चूँकि उन्हें लंबे समय तक जीने नहीं दिया गया – वास्तव में उनका सार्वजनिक जीवन केवल साढ़े तीन साल तक सीमित है – इसलिए उन्होंने जो कुछ भी कहा है उसका बहुत बड़ा महत्व है, कि आपकी आंखें व्यभिचारी न हों। जब Read More …

Puja: The Purity Inside Dr Sanghvi’s House, Nashik (भारत)

पूजाडॉ. संघवी गार्डन, नासिक (भारत), 17 दिसंबर 1985। नासिक, इस स्थान का विशेष महत्व है। बहुत समय पहले, लगभग आठ हजार साल पहले, जब श्री राम वनवास के लिए गए, तो वे महाराष्ट्र आए और वे विभिन्न स्थानों से गुजरे और वे अपनी पत्नी के साथ इस जगह नासिक में बस गए। और यहाँ एक महिला जो वास्तव में रावण की बहन थी, जिसका नाम शूर्पणखा था, उसने श्री राम को लुभाने की कोशिश की। अब पुरुषों को लुभाने या महिलाओं को लुभाने का यह गुण वास्तव में राक्षसी है और इसलिए लोग उन्हें ‘राक्षस’ कहते हैं। क्योंकि जो लोग राक्षसी लोग होते हैं वे स्वभाव से आक्रामक, अहंकार से भरे और हर किसी पर हावी होना चाहते हैं। और अगर उनका अहंकार संतुष्ट हो जाता है तो वे काफी संतुष्ट महसूस करते हैं। तो जो लोग ऐसे थे, उन्हें इस देश में ‘राक्षस’ कहा जाता था। उनके अनुसार यह सामान्य मानवीय व्यवहार नहीं था। तो ये राक्षस भारत के उत्तरी भाग, उत्तरी भाग में अधिक रहते थे और उनकी विभिन्न श्रेणियां वर्णित हैं। तो स्त्रियों के पीछे दौड़ने वालों को किसी और नाम से पुकारा जाता था और जहाँ स्त्रियाँ उन पर हावी होने की कोशिश करती थीं, उन्हें किसी और नाम से पुकारा जाता था। जहां पुरुष महिलाओं की तरह बनने की कोशिश करते हैं, वहां दूसरा नाम है। लेकिन उन्हें कभी इंसान नहीं कहा गया। उन्हें ‘राक्षस’ या ‘वेताल’ और अन्य सभी नामों से पुकारा जाता था। लेकिन आजकल आप एक ऐसी उलझन पाते हैं कि समझ Read More …

Devi Puja: On Leadership (Morning) Rahuri (भारत)

अंग्रेजी से अनुवाद… और यह वह स्थान है जहां मेरे पूर्वज राजाओं के रूप में राज्य करते थे, और उनका एक राजवंश भी था। अब, हम जिस दूसरी जगह पर गए, मुसलवाड़ी, वह जगह है जहां देवी ने सबसे पहले उन्हें एक बीम से मारा था, इसलिए इसे मुसलवाड़ी कहा जाता है। इसका अर्थ है एक बीम, ‘मुसल’ का अर्थ है ‘बीम’। तो यह वह स्थान है जहाँ देवी ने बहुत काम किया है। एक और जगह है जिसे अरडगांव कहा जाता है जहां वह दौड़ रहा था और चिल्ला रहा था, इसलिए इसे अरड़ कहा जाता है। ‘अरड़’ का अर्थ है ‘चिल्लाना’ (‘गाओ’ का अर्थ है गाँव)। तो पूरी जगह पहले से ही बहुत चैतन्य पुर्ण रही है क्योंकि नाथ, नौ नाथ – हमने वहां एक गणिफनाथ देखा – लेकिन वे सभी इस क्षेत्र में रहते थे और उन्होने बहुत मेहनत की थी। सबसे अंतिम, साईनाथ, शिरडी में, जैसा कि आप जानते हैं, यहाँ से बहुत निकट था। तो यह एक बहुत ही पवित्र स्थान और महान पूजा का स्थान है जहाँ कई बार देवी की पूजा की जाती थी। राहुरी ही, यदि आप चारों तरफ घुमें, तो आप पाते हैं कि वहां नौ देवता बैठे हैं। इन्हें भी धरती माता ने ही बनाया है। वे सुंदर चीजें हैं। उनके बारे में कोई नहीं जानता। आप जा सकते हैं और देख सकते हैं। उनमें से नौ हैं और ये देवी के नौ अवतारों या देवी की नौ शैलियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अब, इस खूबसूरत जगह में हम यहां Read More …

Shri Krishna Puja: Announcement of Vishwa Nirmala Dharma Nashik (भारत)

श्री कृष्ण पूजा नासिक – 19.01.1985 Announcement of Vishwa Nirmal Dharma कल, भाषण में, मैंने सहज योग के बारे में एक नई घोषणा की थी। लेकिन पूरा भाषण मराठी भाषा में था और इससे पहले कि इसका अनुवाद हो, मैं आपको बताना चाहूंगी कि मेरी घोषणा क्या थी। यह एक प्रश्न था कि, अमेरिका और इंग्लैंड में कोई भी ट्रस्ट, जो एक धर्म नहीं है, उसे पंजीकृत नहीं किया जा सकता। वास्तव में सहज योग एक धर्म है। निस्संदेह, विश्वव्यापी धर्म है, एक ऐसा धर्म, जो सभी धर्मों को एकीकृत करता है, सभी धर्मों के सिद्धांतों को एक साथ लाता है और दर्शाता है – एकाकारिता दर्शाता है। यह सभी अवतरणों को एकीकृत करता है। सभी शास्त्रों को एकीकृत करता है। यह एक बहुत ही समन्वित महान धर्म है, जिसे हम विश्वव्यापी धर्म कह सकते हैं और हिंदी भाषा में इसे ‘विश्व धर्म’ कहा जाता है। अब इसे और अधिक विशेष बनाने के लिए, मैंने सोचा कि, यदि आप विश्वव्यापी धर्म कहते हैं, तो यह उस विशेष रूप में नहीं हो सकता है, जैसे बोद्ध लोग ऐसे लोग हैं, जिन्हें ईसा मसीह के बाद में ईसाई और अन्य लोगों के बाद, अवतरण के अनुसार I ​अब इस बार का अवतरण ‘निर्मला’ होने के नाते, मैंने सोचा कि हम इसे कह सकते हैं “धर्म, जो विश्वव्यापी है निर्मला के नाम पर”, इसलिए इसे छोटा करने के लिए, मुझे लगा कि हम इसे “यूनिवर्सल निर्मला धर्म” (विश्व निर्मल धर्म) कह सकते हैं। इस बारे में आप क्या कहते हैं? अब निर्मला, आप Read More …

Makar Sankranti Puja मुंबई (भारत)

Makar Sankranti Puja Date 14th January 1985: Place Mumbai Type Puja [Hindi translation from English talk] अब आपको कहना है, कि इतने लोग हमारे यहाँ मेहमान आए हैं और आप सबने उन्हें इतने प्यार से बुलाया, उनकी अच्छी व्यवस्था की, उसके लिए किसी ने भी मुझे कुछ दिखाया नहीं कि हमें बहुत परिश्रम करना पड़ा, हमें कष्ट हुए और मुंबईवालों ने विशेषतया बहुत ही मेहनत की है। उसके लिए आप सबकी तरफ से व इन सब की तरफ से मुझे कहना होगा कि मुंबईवालों ने प्रशंसनीय कार्य किया है । अब जो इन से (विदेशियों से) अंग्रेजी में कहा वही आपको कहती हूं। आज के दिन हम लोग तिल गुड़ देते हैं। क्योंकि सूर्य से जो कष्ट होते हैं वे हमें न हों। सबसे पहला कष्ट यह है कि सूर्य आने पर मनुष्य चिड़चिड़ा होता है। एक-दूसरे को उलटा -सीधा बोलता है। उसमें अहंकार बढ़ता है। सूर्य के निकट सम्पर्क में रहने वाले लोगों में बहुत अहंकार होता है। इसलिए ऐसे लोगों को एक बात याद रखनी चाहिए, उनके लिए ये मन्त्र है कि गुड़ जैसा बोलें गुड़ खाने से अन्दर गरमी आती है, और तुरन्त लगते हैं चिल्लाने। अरे, अभी तो (मीठा-मीठा बोलो)। तिल तिल-गुड़ खाया, तो अभी तो कम से कम मीठा बोलो। ये भी नहीं होता। तिल-गुड़ दिया और लगे चिल्लाने। काहे का ये तिल-गुड़? फेंको इसे उधर! तो आज के दिन आप तय कर लीजिए। ये बहुत बड़ा सुसंयोग है कि श्री माताजी आई हैं। उन्होंने हमें कितना भी कहा तो भी हमारे दिमाग में वह Read More …

Sarvajanik Karyakram मुंबई (भारत)

Sarvajanik Karyakram, HINDI TRANSLATION (Marathi Talk) सत्य की खोज़ में रहने वाले आप सब लोगो को हमारा नमस्कार। आज का विषय है ‘प्रपंच और सहजयोग’। सर्वप्रथम ‘प्रपंच’ यह क्या शब्द है ये देखते हैं । ‘प्रपंच’ पंच माने | हमारे में जो पंच महाभूत हैं, उनके द्वारा निर्मित स्थिति। परन्तु उससे पहले ‘प्र’ आने से उसका अर्थ दूसरा हो जाता है। वह है इन पंचमहाभूतों में जिन्होंने प्रकाश डाला वह ‘प्रपंच’ है। ‘अवघाची संसार सुखाचा करीन’ (समस्त संसार सुखमय बनाऊंगा) ये जो कहा है वह सुख प्रपंच में मिलना चाहिए। प्रपंच छोड़कर अन्यत्र परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती। बहतों की कल्पना है कि ‘योग’ का बतलब है कहीं हिमालय में जाकर बैठना और ठण्डे होकर मर जाना। ये योग नहीं है, ये हठ है। हठ भी नहीं, बल्कि थोड़ी मूर्खता है। ये जो कल्पना योग के बारे में है अत्यन्त गलत है। विशेषकर महाराष्ट्र में जितने भी साधु-सन्त हो गये वे सभी गृहस्थी में रहे। उन्होंने प्रपंच किया है। केवल रामदास स्वामी ने प्रपंच नहीं किया । परन्तु ‘दासबोध’ (श्री रामदासस्वामी विरचित मराठी ग्रन्थ) में हर एक पन्ने पर प्रपंच बह रहा है। प्रपंच छोड़कर आप परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकते। यह बात उन्होंने अनेक बार कही है। प्रपंच छोड़कर परमेश्वर को प्राप्त करना, ये कल्पना अपने देश में बहुत सालों से चली आ रही है। इसका कारण है श्री गौतम बुद्ध ने प्रपंच छोड़ा और जंगल गये और उन्हें वहाँ आत्मसाक्षात्कार हुआ। परन्तु वे अगर संसार में रहते तो भी उन्हें साक्षात्कार होता। समझ लीजिए हमें दादर Read More …

Birthday Puja, Be Sweet, Loving and Peaceful मुंबई (भारत)

Puja for the 61° Birthday (Be sweet, loving and peaceful), Juhu, Bombay (India), 22 March 1984. [English to Hindi Translation] HINDI TRANSLATION (English Talk) अभी-अभी मैंने इन्हें (भारतीय सहजयोगियों) को बताया कि वे अहंचालित पाश्चात्य समाज की शैली की नकल करने का प्रयत्न न करें। क्योंकि उसमें ये लोग कठोर शब्द उपयोग करते हैं और ऐसा करके हम सोचते हैं कि हम आधुनिक बन गये हैं। वो ऐसे कठोर शब्द उपयोग करते हैं, ‘मैं क्या परवाह करता हूँ।’ ऐसे सभी वाक्य जो हमने कभी उपयोग नहीं किए, ऐसे वाक्यों से हम परिचित नहीं है। किसी से भी ऐसे वाक्य कहना अभद्रता है। किस | प्रकार आप कह सकते है, ‘मैं तुमसे घृणा करता हूँ।’ परन्तु अब मैंने लोगों को इस प्रकार बात करते देखा है कि ‘हममें क्या दोष है?’ आप ऐसा कहने वाले कौन होते हैं? हम इस प्रकार बात नहीं करते। ये हमारा बात करने का तरीका नहीं है। बात करने का ये तरीका नहीं है। किसी भी अच्छे परिवार का व्यक्ति इस प्रकार बात नहीं कर सकता क्योंकि इस प्रकार की बातों से उसका परिवार प्रतिबिम्बित होता है। परन्तु यहाँ पाश्चात्य देशों की अपेक्षा भाषा की नकल अधिक होती हैं। जिस प्रकार लोग बसों में, टैक्सियों में, रास्ते पर बातचीत करते हैं उस पर मुझे हैरानी होती है। ये मेरी समझ में नहीं आता। अत: मैंने उनसे कहा कि भाषा प्रेममय तथा हमारी पारम्परिक शैली की होनी चाहिए। इस प्रकार तो हम अपने बच्चों को भी नहीं डाँटते। अपने बच्चों को भी यदि हमें डाँटना हो तो Read More …

Sarvajanik Karyakram Rahuri (भारत)

राहुरी फैक्ट्ररी के माननीय अध्यक्ष श्री सर्जेराव पाटिलजी, मित्र संघ संस्था के संचालकगण, जितने भी राहुरीकार और पिछड़े/दलित जाती के लोग यहाँ एकत्रित हुए हैं, मुझे ऐसा कहना उचित नहीं लगता। क्योंकि वे सब मेरे बच्चे हैं। सभी को नमस्कार! दादासाहेब से मेरी एक बार अचानक मुलाक़ात हुई और मुझे तब एहसास हुआ कि यह आदमी वास्तव में लोगों की फिक्र (परवाह) करता है। जिसके हृदय में करुणा न हो उसे समाज के नेता नहीं बनना चाहिए. जिन्होंने सामाजिक कार्य नहीं किया है उन्हें राजनीति में नहीं आना चाहिए। जिन्होंने सामाजिक कार्य किया है, अगर वे राजनीति में आते हैं, तो उनके मन में जनसामान्य के लिए दया रहेगी। लेकिन ज्यादातर लोग सामाजिक कार्य इसलिए करते हैं ताकि हम राजनीति में आएं और पैसा कमाएं। मुझे सब पता है। मैंने बचपन से अपने देश का हाल देखा है। मैं शायद तुम सब में सबसे उम्रदराज हूँ। मेरे पिता भी बहुत धार्मिक हैं, एक बहुत ही उच्च वर्ग के सामाजिक कार्यकर्ता, देश के कार्यकर्ता, राष्ट्रीय कार्यकर्ता और डॉ अम्बेडकर के साथ बहुत दोस्ताना था,  घनिष्ठ मित्रता थी। उनका हमारे घर आना-जाना था। मैंने उन्हें (डॉ. अम्बेडकर को) बचपन से देखा है।  मैं उन्हें चाचा कहती थी। उनके साथ संबंध बहुत घनिष्ठ हैं। और वह बहुत तेजस्वी और उदार थे। मेरे पिता गांधीवादी थे और यह(डॉ. अम्बेडकर)  गांधी जी के खिलाफ थे। बहस करते थे। तकरार के बावजूद उनके बीच काफी दोस्ती थी। वह बहुत स्नेही थे! जब मेरे पिता जेल गए, तो वह हमारे घर आकर पूछते थे कि कैसे चल Read More …

Shri Saraswati Puja, The basis of all creativity is love Dhule (भारत)

Shri Saraswati Puja, Dhulia (India), Sankranti day, 14 January 1983. English to Hindi translation HINDI TRANSLATION (English Talk) Scanned from Hindi Chaitanya Lahari प्रेम से सभी प्रकार की सृजनात्मक गतिविधि जो नहीं सुहाते वे सब लुप्त हो जाते हैं। यद्यपि ऐसा घटित होती है। आप देखिए कि किस प्रकार राऊल बाई मुझे प्रेम करती हैं और यहाँ आप सब लोगों को भी एक सुन्दर चीज़ के सृजन करने का नया विचार को प्रभावित नहीं करते, तो तुरन्त ये पदार्थ लुप्त प्राप्त हुआ है! ज्यों-ज्यों प्रेम बढ़ेगा आपकी होने लगते हैं (नष्ट होने लगते हैं)। होने में समय लगता है, नि:सन्देह इसमें समय लगता है- ज्यों ही आपको लगता है कि ये जनता सृजनात्मकता विकसित होगी। तो प्रेम ही श्री सरस्वती की सृजनात्मकता का आधार है। यदि प्रेम न होता तो अब जिस प्रेम की हम बात करते हैं, हम सृजनात्मकता न होती। इसका अर्थ और भी गहन है, आप देखिए वैज्ञानिक चीजों का सृजन करने वाले लोगों ने भी ये चीजें जनता से प्रेम के कारण बनाई हैं, केवल अपने लिए नहीं। किसी ने भी केवल अपने लिए किसी भी चीज़ की रचना नहीं की। अपने लिए भी यदि वे कोई चीज बनाते तो भी वह सबके उपयोग के लिए हो जाती, अन्यथा इसका कोई अर्थ ही नहीं है। यदि आप ऐटॅम बम तथा विज्ञान द्वारा बनाई गई अन्य सभी चीज़ों की बात करें तो भी ये अत्यन्त सुरक्षात्मक हैं। यदि उन्होंने इन चीज़ों का सृजन न किया होता तो लोगों के मस्तिष्क युद्ध से न हटते। अब कोई भी Read More …

Shri Mahakali Puja (भारत)

Shri Mahakali Puja, Lonawala, Maharashtra (India), 19 December 1982. [English to Hindi Translation] HINDI TRANSLATION (English Talk) Scanned from Hindi Chaitanya Lahari आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् पहली योग के इस महान देश में आप सब सहज-योगियों का स्वागत है। आज सर्वप्रथम बाधा जो आपके सम्मुख आती है वो ये है कि आप अपने परिवार के विषय में सोचने लगते हैं, “कि अपने अन्तस में हमें अपनी इस इच्छा को स्थापित करना है कि हम साधक हैं। तथा हमें पूर्ण मेरी माँ को जागृति नहीं प्राप्त हुई. मेरे पिताजी को उत्क्रान्ति एवं परिपक्वता प्राप्त करनी है। आज की जागृति नहीं हुई, मेरी पत्नी को जागृति नहीं हुई. मेरे बच्चों को जागृति नहीं हुई।” आपको ये समझ पूजा पूरे ब्रह्माण्ड के लिए है। इस इच्छा से पूरा ब्रह्माण्ड का ज्योतिर्मय होना चाहिए। आपकी लेना चाहिए कि ये सारे सम्बन्ध सांसारिक हैं । इच्छा इतनी गहन होनी चाहिए कि इससे आत्मा संस्कृत भाषा में इन्हें लौकिक कहा जाता है, ये प्राप्ति की शुद्ध इच्छा, महाकाली शक्ति से निकलने अलौकिक नहीं हैं, ये सांसारिक सम्बन्धों से परे नहीं वाली पावन चैतन्य-लहरियाँ बहनी चाहिए। यही हैं। सांसारिक सम्बन्ध हैं। सारे मोह सांसारिक हैं । इस सांसारिक माया में यदि आप फँसे रहे, क्योंकि आप जानते हैं कि महामाया शक्ति आपको ऐसा सच्ची इच्छा है। बाकी सभी इच्छाएं मृगतृष्णा सम हैं। आप लोग विशेषरूप से परमात्मा द्वारा चुने गए खिलवाड़ करने देती हैं, तो आप इसमें किसी भी हैं, सर्वप्रथम इस इच्छा की अभिव्यक्ति करने के सीमा तक जा सकते हैं। लोग मेरे पास अपने लिए Read More …