Guru Purnima Puja: What is our duty? Campus, Cabella Ligure (Italy)

गुरु पूर्णिमा पूजा, कबेला लिगुरे (इटली), 24 जुलाई 2002 यह बहुत ही रोचक है कि जिस तरीक़े से आपने पता लगाया कि, आज असली गुरु पूर्णिमा है। पूर्णिमा वह दिन है जब चंद्रमा पूर्ण होता है। मुझे यह पता था, लेकिन सहजयोगियों के लिए हमें शनिवार, रविवार, सोमवार – शुक्रवार, शनिवार, रविवार की व्यवस्था करनी होती है। चाहे वह तारीख़ पर हो या ना हो, हमें इसकी व्यवस्था करनी होती है । तो उस मामले में, यह इस समय दो दिन पहले था शायद, हमने व्यवस्था की, ठीक है  इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। आख़िरकार, चंद्रमा हमारे लिए है और हम चंद्रमा के लिए हैं, इसलिए यह कुछ ऐसी चीज़ नहीं हो सकती है जो इसमें बहुत ग़लत होगी। गुरु सिद्धांत के बारे में मैं आपको पहले ही बहुत बता चुकी हूँ। गुरु सिद्धांत में, हमने इस पृथ्वी पर आए लोगों को देखा है। वे सब अधिकतर  जन्मजात साक्षात्कारी थे, वास्तव में, और उन्होंने कभी  साक्षात्कार नहीं दिया किसी को –  एक बहुत बड़ा अंतर है। वे सब  जन्मे थे साक्षात्कारी  आत्माओं की भाँति  और वे सूफ़ी हो गए और उन्हें अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है किन्तु उन्हें साक्षात्कार नहीं दिया गया, उनके पास था, और उनके आत्म- साक्षात्कार के कारण, जैसा कि उनके पास था, उनके पास इतना ज्ञान है और वही जो उन्होंने प्रयास किया लोगों को देने का । वे चक्रों के बारे में सब कुछ जानते थे, वे जानते थे,  उनके पिछले जीवन की उपलब्धियों के कारण वे जानते थे , शायद उनमें से कुछ Read More …

Guru Puja: The Advice Campus, Cabella Ligure (Italy)

गुरु पूजा , कबेला , इटली – २१ जुलाई ,२००२ तालिओं की जोरदार गड़गड़ाहट… भारत में वो सब मानसून की राह देख रहे थे, और वो बहुत परेशान थे क्योंकि बारिश नहीं आयी | तो मै बरसात को बंधन दे रही थी, और वो यहां आ गई(तालियां बजने लगी और माँ हंसने लगी)|  और अब टेलीविजन पर बताया है, की भारत में भी बरसात होने वाली है | पर पहले इटली में ! (हँसी) मुझे बताया गया था की इटली में आपको बरसात  की बहुत आवश्यकता थी| और पहली बरसात जो आपने पाई कुछ दिन पहले और अब ये दूसरी बरसात है| क्योंकि हमारे किसानों की परेशानियों की समझ यहाँ है|  और जो बरसात है, आप देखे, इतनी दयालू है, की वो सही समय पर बरसती है| मै आश्चर्यचकित हूँ उसकी तुरंत गतिविधि पर और उसकी आज्ञाकारिता पर|  आज का दिन बहुत बड़ा है, हम सभी के लिए क्योंकि हम गुरु पूजा मना रहे है|और सभी बड़े गुरुओं को याद कर रहे है, जो इस धरती पर आये संसार को सत्य के बारे में सिखाने के लिए | बहुत सारे थे ऐसे संत| और उन्होंने पूरी तरह से प्रयत्न किया मानव जाति को समझाने का, की अध्यात्म क्या है | पर यह ऐसी विषमता है की लोग कभी नहीं समझ पाए की अध्यात्म सबसे महत्वपूर्ण है जिसकी हमें ज़रूरत है| की हमे देवी शक्ति से एकरूप होना चाहिए| उनका सब परिश्रम गलत दिशा में था | पहले वो निश्चित ही बहुत होशियार थे, जानवरों से ज्यादा, और ढूंढ़ने लगे, सत्य Read More …

Guru Puja: Shraddha Campus, Cabella Ligure (Italy)

गुरु पूजा, कबैला, लिगुरे (इटली), २३ जुलाई २०००। आज हम यहाँ गुरु सिद्धांत के बारे में जानने के लिए आए हैं।गुरु क्या करते हैं,आपके पास जो कुछ भी है,आपके भीतर की सभी बहुमूल्य चीज़ें,वह आपके ज्ञान के लिए उन्हें खोजते हैं। वास्तव में यह सब कुछ आपके भीतर ही है। सम्पूर्ण ज्ञान, सम्पूर्ण अध्यात्म,सम्पूर्ण आनंद, सब यही है।सही समय!यह सब आपके  भीतर समाहित है।गुरु केवल एक ही कार्य करते हैं आपको आपके ज्ञान के बारे में और आपकी आत्मा के बारे जानकारी प्रदान करना। सबके भीतर आत्मा है। हर किसी के अंदर आध्यात्मिकता है।ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपको बाहर से मिले।लेकिन यह ज्ञान प्राप्त करने से पहले, आपका बर्ताव या कहें , आप अज्ञान में जी रहे हैं।उस अज्ञानता में आप नहीं जानते कि आपके  भीतर क्या निधि है।तो गुरु का काम है आपको बताना की आप क्या हैं? यह पहला कदम है।यह शुरुआत है आपके भीतर की जागृति होने की, जिसके द्वारा आप जान पाते हैं कि आपका अस्तित्व यह बाहर की दुनिया नहीं है, यह सब एक भ्रम है।और आप अपने भीतर ही प्रबुद्ध होने लगते हैं।कुछ लोगों को पूरा प्रकाश मिलता है और कुछ लोगों को यह धीरे-धीरे मिलता है।सभी धर्मों का सार यह है कि आपको स्वयं को जानना चाहिए।वह लोग जो धर्म के नाम पर लड़ रहे हैं,आपको उनसे जाकर पूछना होगा, आपको उनसे पूछताछ करनी होगी, कि क्या आपके धर्म ने आपको स्वयं की पहचान कराई ?अगर सभी धर्मों ने एक बात कही है तो आपको यह सारे कार्य केवल स्वयं को Read More …

Shri Rajalakshmi Puja New Delhi (भारत)

4-12-1994 Shri Rajlaxmi Puja, Delhi आज हम राजलक्ष्मी की पूजा करने जा रहे हैं, मतलब वह देवी जो राजाओं पर शासन करती है। आज यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि मूल रूप से कुछ गलत हो रहा है हमारी राजनीतिक व्यवस्थाओं की  कार्यप्रणाली में और क्यों लोगों ने अपनी न्याय, निष्पक्ष व्यवहार और परोपकार की भावना को खो दिया है। हम कहाँ गलत हो गए हैं कि ये सब खो रहा है? ये केवल भारत में नहीं, ये केवल जापान या इंग्लैंड में नहीं या किसी अन्य स्थान पर, जहाँ हमें लगता है कि लोकतंत्र है। सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि इन सभी देशों ने, यहां तक ​​कि जिन्होंने अपनी स्वतंत्रता पायी है, उन देशों का अनुसरण करना शुरू किया जो बहुत ही उच्च और पराक्रमी और बहुत शक्तिशाली माने जाते थे जैसे कि अमरीका, जैसे कि रूस, जैसे कि चीन, इंग्लैंड – सोचे समझे बिना कि वे अपने उस लक्ष्य को पाने में कितना सफल हुए हैं जो उन्हें प्राप्त करने थे। जैसा भी हो, इंग्लैंड जैसे देश में, आप देखते है यह राज-तंत्र, किस ढंग से यह काम करता है, आश्चर्य चकित कर देता है, बिल्कुल चौंका देता है । जिस तरह से उन्होंने अपने मंत्रियों के प्रति आचरण किया, जैसे क्रॉमवेल, आपको ऐसा लगता है जैसे कोई आदिम लोग कुछ प्रबंधन करने का प्रयत्न कर  रहे हैं। और राजा लोग इतने क्रूर, रानियाँ इतनी क्रूर, इतने चरित्रहीन, इतने अविश्वसनीय। उनमें कोई चरित्र नहीं था राजा और रानी बनने का। अपने राजलक्ष्मी सिद्धांत के प्रति कोई Read More …

Guru Puja: Gurus who belong to the collective Campus, Cabella Ligure (Italy)

गुरु पूजा, काबेला लंक (इटली), 04 जुलाई 1993. आज हम गुरु पूजा करने जा रहे हैं। वैसे मैं आपकी गुरु हूं। परंतु मुझे कभी-कभी लगता है कि एक गुरु की धारणा मुझसे अलग है। आम तौर पर, एक गुरु बहुत ही सख्त व्यक्ति होता है और किसी भी प्रकार का धैर्य नहीं रखता है। यहां तक ​​कि, उदाहरण के लिए संगीत: भारत में संगीत सिखाने वाले गुरु हैं; इसलिए, सभी नियमों का पूर्ण रूप से पालन किया जाना चाहिए। मैं इन महान संगीतकार, रविशंकर के बारे में जानती हूं। हम मैहर गए थे जहां वह आए थे और उनके गुरु, अलाउद्दीन खान साहब मेरे पिता का बहुत सम्मान करते थे। तो, उन्होंने उनसे पूछा, “तुम कुछ क्यों नहीं बजाते?” तब उन्होंने उस समय उन्हें कुछ भी नहीं बताया। तब उन्होंने यहां एक बड़ी सूजन दिखायी। उन्होंने कहा, “सर, क्या आप इसे देख पा रहे हैं?” उन्होंने कहा, “क्या?” “मेरा अपना तानपुरा उन्होंने मेरे सिर पर तोड़ दिया, क्योंकि मैं सुर से थोड़ा बाहर था।” अन्यथा, वह बहुत अच्छे आदमी थे, मेरे विचार में; मैं अलाउद्दीन खान साहब को जानती थी  परंतु जब  यह सीखने की बात आयी, तो यह एक परंपरा है जो मुझे लगता है, कि आपको सभी प्रकार के नियमो को छात्रों के सामने रखना होगा, परंतु फिर भी छात्र गुरु से चिपके रहेंगे। वे हर समय देखभाल करते हैं। वे गुरु के लिए परेशान हैं, उन्हें यह चीज़ चाहिए, वह दौड़ेंगे, यदि वह ऐसा चाहते हैं, तो वह करेंगे। एक गुरु शिष्य की विभिन्न प्रकार से परीक्षाएँ Read More …

Guru Puja, Four Obstacles Campus, Cabella Ligure (Italy)

Shri Adi Guru Puja. Cabella Ligure (Italy), July 28th, 1991. आज आप सब यहाँ उपस्थित हैं, अपने गुरु की पूजा करने के लिए   Iयह एक प्रचलित प्रथा है, विशेष रूप से भारतवर्ष में, की आप अवश्य अपने गुरु की पूजा करें, और गुरु का भी अपने शिष्यों पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए I गुरु के सिद्धांत बहुत कठोर हैं और इस कठोरता के कIरण बहुत से लोग एक शिष्य के आदर्शों के अनुसार स्वयं तो नहीं ढाल सकेI  उन दिनों गुरु को, पूर्ण रूप से, आधिकारिक बनना पड़ता था। और वह गुरु ही थे जो निश्चय करते थे कि कौन उनके शिष्य होंगे। और उनको कठिन तपस्या में लीन होना पड़ता था, बड़ी तपस्या में, मात्र एक शिष्य बनने के लिए। और यह कष्ट ही एक माध्यम था जिससे गुरु आकलन करते थे। गुरु हमेशा जंगलों में रहा करते थे। और वे अपने शिष्यों का चयन किया करते थे- बहुत कम, बिलकुल, बिलकुल थोड़े से। और उनको जाना पड़ता था, और भिक्षा मांगने, भोजन के लिए, आसपास के गावों से, और भोजन पकाते थे, अपने गुरु के लिए, स्वयं अपने हाथों से, और गुरु को खिलाते थे।   इस प्रकार की गुरु-प्रणाली सहजयोग में नहीं है। यह मूल रूप से हमें समझना पड़ेगा – कि जो अंतर उन शैलीयों के गुरु-पद में, और जो अब हमारे यहाँ है, वह यह है, कि बहुत कम व्यक्तियों को गुरु बनने का अवसर दिया जाता था, बहुत कम।  और इन गिने-चुनों का चुनाव भी अनेकों लोगों में से होता था, और उन्हें लगता Read More …

Shri Bhavasagara Puja 1991 Brisbane (Australia)

(श्रीभवसागर पूजा, ब्रिसबेन (ऑस्ट्रेलिया), 6 अप्रैल 1991। (संदीप दुरूगकर की पोस्ट का हिंदी अनुवाद) आज मैं आप सबको बताना चाहती हूं कि आपको अपने अंदर गहनता को प्राप्त करना होगा। यदि आप उस गहनता को अपने अंदर प्राप्त नहीं कर पाते हैं तो अभी भी आप साधारण दर्जे के सहजयोगी ही हैं। वास्तव में देवी और उनकी शक्तियों के विषय में पहले कभी भी किसी को नहीं बताया गया … कभी भी नहीं। इस विषय में उन्हें पूरी तरह से तब पता चला जब परमात्मा से उनकी एकाकारिता स्थापित हो पाई। इससे पहले उन्हें इस विषय पर बिल्कुल कुछ पता ही नहीं चल पाता था। आज सहजयोग का जमाना है और जैसे ही आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है वैसे ही आप अन्य लोगों को भी साक्षात्कार दे सकते हैं। तुरंत ही कुंडलिनी आपके हाथों की गति के अनुसार गति करने लगती है। आप अपना हाथ किसी के भी सिर पर रखें तो उस व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार मिल जायेगा। यह सच्चाई है। कुंडलिनी इसी प्रकार से कार्य करती है। लेकिन कुछ लोग सोचते हैं कि अब हमको कुछ नहीं करना है … हमने तो कुछ विशेष चीज प्राप्त कर ली है। जो कुछ करती हैं माँ ही करती हैं। आपको समझना है कि माँ केवल बहुत अच्छे यंत्र को ही कार्यान्वित कर सकती हैं न कि किसी कमजोर यंत्र को। हमारे कुछ सहजयोगी तो बहुत गहन हो चुके हैं। जब भी मैं उनसे पूछती हूं वे कहते हैं कि माँ हम लोग उठकर प्रत्येक दिन सुबह शाम आपकी पूजा किया करते Read More …

Guru Puja: The Gravity of Guru Principle Camping Borda d'Ansalonga, Ansalonga (Andorra)

गुरु पूजा, गुरु सिद्धांत का महत्व अंसलॉन्गा, एंडोरा, 31 जुलाई, 1988 आज हम सब यहाँ आपके गुरु की पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि गुरु तत्व भवसागर में स्थित है। यही वह सिद्धांत है जो आपको संतुलन देता है, जो आपको आकर्षण-शक्ति देता है। आपके गुरु तत्व के माध्यम से हमारी पृथ्वी माता में जो गुरुत्व है वह अभिव्यक्त होता है। गुरुत्वाकर्षण का पहला बिंदु यह है कि आपके पास एक व्यक्तित्व, एक चरित्र और एक ऐसा स्वभाव होना चाहिए कि लोग देखें कि आप एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो सांसारिक चीजों में नहीं शामिल नहीं हो जाते। यह एक ऐसा व्यक्तित्व है जो जीवन के झमेलों से बर्बाद नहीं होता है। उसके अस्तित्व में  एक गुरु का व्यक्तित्व गहराई से बैठ जाता है और किसी भी लिप्त कर लेने वाली परिस्थिति में भी आसानी से विचलित नहीं होता है, उसमे आसक्त नहीं हो जाता।  गुरु का पहला सिद्धांत यही है- निर्लिप्तता। जैसा कि मैंने आपको बताया, यह कुछ ऐसा है जिसे किसी भी बात में लिप्त  नहीं जा सकता। यह किसी के व्यक्तित्व में बहुत गहराई तक बैठ जाता है। इसलिए यह पानी में तैरता नहीं है। अभी आप देखते हैं कि जो देश बहुत विकसित हैं, उनमें हम सोचते हैं कि हमारे पास व्यक्तिगत उपलब्धि की बहुत बड़ी शक्ति है, कि व्यक्तिगत रूप से हम बिल्कुल स्वतंत्र हैं और हम जो चाहें कर सकते हैं; और इसीलिए सामूहिकता की उपेक्षा करते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता सभी लोकतांत्रिक देशों का लक्ष्य बन जाती Read More …

Guru Puja: Sankhya & Yoga Shudy Camps Park, Shudy Camps (England)

                                                     गुरु पूजा शुडी कैंप (यूके), 12 जुलाई 1987 आज, यह एक महान दिन है कि आप यहां विश्व के हृदय के दायरे में अपने गुरु की पूजा करने के लिए हैं। अगर ऐसा हम हमारे हृदय में कर सकें तब, इसके अलावा हमें कुछ भी और करने की आवश्यकता नहीं होगी। आज, मुझे यह भी लगता है कि, मुझे आपको सहज योग और उसके मूल्य के बारे में बताना होगा, जो अन्य योगों से संबंधित है जो पूरे विश्व में पुराने दिनों में स्वीकार किए जाते थे। उन्होंने इसे कहा, एक, ‘योग’, ना कि सहज योग, ‘योग’। इसकी शुरुआत ‘अष्टांग ’के विभिन्न प्रकार के अभ्यासों से हुई है [संस्कृत / हिंदी का अर्थ है आठ चरण / भाग’] योगासन – आठ स्तरीय योग – एक गुरु के साथ। और एक साधक को बहुत कष्टों से गुजरना होता था । किसी भी विवाहित को उस अष्टांग योग में अनुमति नहीं दी गई थी, और उन्हें अपने परिवारों को छोड़ना पड़ा, अपने रिश्तों को छोड़ना पड़ा।  गुरु के पास जाने के लिए उन्हें बिलकुल बिना किसी लगाव वाला बनना पड़ा। उनका सारा सामान, उनकी सारी संपत्ति त्याग दी गई। लेकिन गुरु को नहीं दे दी गई जैसा कि आधुनिक समय में किया जा रहा है, बस त्याग दिया गया। और इसी को योग कहा गया। दूसरी शैली को सांख्य कहा जाता था। सांख्य है, जहां आपका सारा जीवन आपको निर्लिप्तता के साथ चीजों को इकट्ठा करना है, और फिर उन्हें पूरी तरह से वितरित कर के और एक गुरु के शरण में Read More …

Devi Puja: The Duties of a Guru Ganapatipule (भारत)

                                                      देवी पूजा  गणपतिपुले (भारत), 3 जनवरी 1987। आज चंद्रमा का तीसरा दिन है। चंद्रमा का तीसरा दिन तृतीया, कुंवारीयों के लिए विशेष दिन है। कुंडलिनी शुद्ध इच्छा है। यह कुंवारी है क्योंकि इसने अभी तक स्वयं को अभिव्यक्त नहीं किया है। और यह भी कि, तीसरे केंद्र नाभी पर, पवित्रता गुरु की शक्तियों के रूप में प्रकट होती हैं। जैसा कि हमें दस गुरु प्राप्त हैं, जिनका हम मूल गुरु के रूप में आदर करते  हैं, वे सभी उनकी बहन या बेटी को अपनी शक्ति के स्वरुप में रखते थे। बाइबिल के पुराने संस्करण में यह कहा गया है कि,  जो आने वाला है वह कुंवारी से पैदा होगा। और तब चूँकि यहूदी ईसा-मसीह को स्वीकार नहीं करेंगे, इसलिए उन लोगों ने ऐसा कहा कि “यह लिखा हुआ शब्द ‘कुंवारी’ नहीं है अपितु,  यह ‘लड़की’ लिखा है”।  अब संस्कृत भाषा में ‘लड़की’ और ‘कुँवारी’ एक ही शब्द है। हमारे पास आजकल की तरह 80 साल की लड़कियां नहीं थीं। तो एक महिला के कौमार्य का मतलब था कि वह एक ऐसी लड़की थी जिसकी अभी तक शादी नहीं हुई थी या जो अब तक अपने पति से नहीं मिली है। वह पवित्रता का सार है, जो गुरु सिद्धांत की शक्ति थी। तो, एक गुरु जो बोध प्राप्ति हेतु दूसरों का नेतृत्व करने का प्रभारी है, उसे यह जानना होगा कि उसकी शक्ति का उपयोग शुद्ध शक्ति की एक कुंवारी शक्ति के रूप में किया जाना है। एक गुरु इस शक्ति का उपयोग उस तरह से नहीं कर सकता जैसे एक Read More …

Guru Puja (Austria)

Guru Puja आपका चित्त कहाँ है? यदि आप गुरू हैं तो फिर आपका चित्त कहाँ है? यदि आपका चित्त लोगों को व स्वयं को सुधारने और अपना पोषण करने पर है तो फिर आप सहजयोगी हैं। फिर आप गुरू कहलाने योग्य हैं। जो भी चीज जीवंत है वह गुरूत्वाकर्षण के विपरीत एक सीमा तक उठ सकती है …. ये सीमित है। जैसे कि हमने पेड़ों को देखा है… वे धरती माँ की गोद से बाहर आते हैं और ऊपर की ओर बढ़ते हैं लेकिन केवल एक सीमा तक ही। हर पेड़ … हरेक प्रकार के पेड़ की अपनी एक सीमा होती है। चिनार का पेड़ चिनार का ही रहेगा और गुलाब का पेड़ गुलाब ही रहेगा। इसका नियंत्रण गुरूत्वाकर्षण बल द्वारा किया जाता है। लेकिन एक चीज ऐसी है जो गुरूत्व बल के विपरीत दिशा में उठती है…. जिसकी कोई सीमायें नहीं हैं …. और ये है आपकी कुंडलिनी माँ। जब तक आप कुंडलिनी को नियंत्रित नहीं करना चाहते हैं तब तक इसे गुरूत्व बल से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। इसको कोई चीज नियंत्रित नहीं कर सकती है लेकिन आप और केवल आप इसे नियंत्रित कर सकते हैं। अतः जब आप अपनी कुंडलिनी के इंचार्ज बन गये तो आपने एक कदम आगे रख लिया है कि आपने उस बल पर विजय प्राप्त कर ली है जिसको गुरूत्व बल कहते हैं। शायद सहजयोगी लोग नहीं जानते हैं कि उनको क्या प्राप्त हुआ है। आदि गुरू और गुरू के बीच केवल एक ही अंतर है और वो है सद्गुरू। मैं Read More …

Diwali Puja Tivoli (Italy)

                                                दीवाली पूजा  टिवोली, रोम, 17 नवंबर 1985 आज हम यहां एकत्रित हुए हैं; दिवाली, दीपावली मनाने के लिए। दरअसल सहज योग शुरू होने के बाद ही, असली दिवाली आकार ले रही है। हमारे पास कई खूबसूरत दीपक थे और हमारे पास जलाने के लिए बहुत सारा तेल था। परंतु दीपों को रोशन करने के लिए कोई चिंगारी नहीं थी। और बत्ती जैसा कि आप इसे कहते हैं, हिंदी भाषा में बात्ती कहा जाता है- आपकी कुंडलिनी की तरह है। इसलिए कुंडलिनी को चिंगारी से मिलना था। सभी सुन्दर दीपक बेकार, उद्देश्यहीन, व्यर्थ थे। और यह आधुनिक समय में महान आशीर्वाद हैं, कि इतनी सारे दीपक प्रकाशित हो गए हैं, और हम मानव हृदयों की दीपावली मना रहे हैं। जब आप प्रकाश बन जाते हैं, आप दीपक के बारे में चिंता नहीं करते हैं, यह कैसा दिखता है, इसे कैसे बनाना है, यह सब हो गया है। आपको केवल लौ की, तेल की चिंता करनी है, क्योंकि वह तेल है जो जलता है और प्रकाश देता है। संस्कृत भाषा में – जो देवताओं की भाषा है – तेल को ‘स्निग्धा’, ‘स्निग्धा’ कहा जाता है; कुछ ऐसा जो नरम है लेकिन स्निग्धा है। और ‘स्नेहा’ का अर्थ है प्रेम की दोस्ती’, और अन्य भाषाओं के कवियों ने इस शब्द का इस्तेमाल अलग-अलग तरह से ‘नेहा’ कहकर किया है। उन्होंने इस प्रेम का गुणगान किया है। हर कवि, हर संत ने अपने सुंदर काव्य में इस शब्द का प्रयोग किया है, चाहे वे वियोग में थी या वे मिलन में थी, योग में, Read More …

Diwali Puja: Become The Ideals Temple of All Faiths, Hampstead (England)

                  दीवाली पूजा, “आदर्श बनना” “सभी धर्मों का मंदिर”, हैम्पस्टेड, लंदन (यूके), 6 नवंबर 1983 आज के चैतन्य से आप देख सकते हैं कि जब आपकी पूजा के लिए तैयारी  होती हैं तो आपको कितनी प्राप्ति होती है। आज आप इसे महसूस कर सकते हैं। तो ईश्वर बहुत उत्सुक हैं, कार्य करने के लिए| केवल एक बात है कि, स्वयं तुम्हें तैयारी करनी है। और ये सभी तैयारियां आपकी काफी मदद करने वाली हैं। जैसा कि हम अब सहजयोगी हैं, हमें यह जानना होगा कि हम जो थे उससे कुछ अलग हो गए हैं। हम योगी हैं, हम दूसरों से ऊंचे लोग हैं। और ऐसे में हमें एक बात और भी समझनी होगी कि हम दूसरे इंसानों की तरह नहीं हैं जो कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं, जो पाखंड के साथ जी सकते हैं. इसलिए सारी समस्याएं सभी धर्मों से उत्पन्न हुई हैं। एक व्यक्ति जो कहता है कि वह एक ईसाई है, वह पूरी तरह से मसीह विरोधी है; जो कहते हैं कि जो  इस्लामिक है, वह बिल्कुल मोहम्मद विरोधी है; जो कहता है कि वो हिंदू है, बिल्कुल श्रीकृष्ण विरोधी है। यही मुख्य कारण है कि अब तक सभी धर्म असफल रहे हैं, क्योंकि मनुष्य आदर्शों की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। वे सभी कहते हैं कि हमारे पास यह आदर्श है, वह आदर्श है, लेकिन वे खुद आदर्श नहीं हैं, वे उन आदर्शों के साथ नहीं रह सकते। आदर्श उनके जीवन में नहीं हैं, वे बाहर हैं। लेकिन वे यह कहते चले जाते हैं कि ये हमारे Read More …

Guru Puja: this finger has to be strong (United States)

गुरु पूजा, ह्यूस्टन, यू.एस.ए, २० सितंबर १९८३  तो, आज हम सबसे पहले गणेश पूजा करेंगे, क्योंकि गणेश अबोधिता हैं और हमें उन्हें किसी भी ऐसे स्थान पर स्थापित करना चाहिये, जहाँ हम कोई कार्य आरंभ करना चाहते हैं या इसके विषय में कुछ करना चाहते हैं । क्योंकि वे अबोधिता हैं और अन्य कुछ और सृजित होने से पूर्व अबोधिता का सृजन हुआ था। मुझे कहना चाहिए कि यह सबसे प्रबल शक्ति है: अबोधिता।  और तब हम गुरु पूजा करेंगे, जो वास्तव में आदि गुरु हैं, ‘प्राइमोर्डीयल मास्टर’ (आदिकालीन गुरु), जिन्होंने इस पृथ्वी पर अनेकों बार अवतरण लिया । और जैसा कि आप जानते हैं, दत्तात्रेय के रूप में उनका जन्म हुआ, फिर जनक, नानक व अन्य अनेक रूपों में उनका जन्म हुआ। वह सिद्धांत हमारे अंदर है और यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि हमें गुरु नानक या जनक या इनमें से किसी भी आदि गुरु के सिद्धांत को अपने अंदर विकसित करना चाहिए। क्योंकि यदि आत्मा गुरु है तो हमें स्वयं का गुरु बनना होगा। और गुरुओं की शक्ति यह है कि वे अबोधिता के मूलतत्व हैं – सृजनकर्ता की, पालनकर्ता की, तथा संहारक की । वे इन सभी की अबोधिता हैं। उनमें से, इस महान व्यक्तित्व – इन तीन व्यक्तित्वों की अबोधिता से – इस महान अवतरण का निर्माण हुआ। और उनकी अबोधिता, वस्तुओं के प्रति उनकी निर्लिप्तता से प्रकट होती है। वे सब जगह अन्य मनुष्यों के समान रहते हैं: विवाहित, परिवारों में रहने वाले, किंतु पूर्णतः निर्लिप्त। जब तक आप में यह सिद्धांत जागृत नहीं होता, Read More …

Guru Puja: Awakening the Principle of Guru Lodge Hill Centre, Pulborough (England)

गुरु पूजा                              “गुरु के सिद्धांत को जागृत करना” लॉजहिल (यूके), 24 जुलाई 1983 आज आप सभी यहाँ गुरु पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। आपकी गुरु, पहले एक माँ है और फिर एक गुरु है और इस बात ने मेरी बड़ी मदद की है। हमने पहले भी कई गुरु पूजन किए हैं, ज्यादातर इंग्लैंड में। और आपको आश्चर्य होना चाहिए कि माँ हमेशा किसी भी तरह गुरु पूजा लंदन में क्यों कर रही हैं। समय चक्र हमेशा इस तरह से चलता है कि, गुरु पूजा के दिनों में, मैं यहां हूं, उस दौरान मुझे लंदन में रहना होगा। इतने सालों से हम इंग्लैंड में गुरु पूजा कर रहे हैं। यदि सभी चीजें ऋतुमभरा प्रज्ञा से होती हैं तो निश्चित ही कोई कारण है की माँ यहाँ गुरु पूजा के लिए इंग्लैंड में है। पुराणों में कहा गया है कि आदि गुरु दत्तात्रेय ने तमसा नदी के किनारे माता की आराधना की थी। तमसा वही है जो आपके थेम्स के रूप में है और वह स्वयं यहां आकर आराधना करते है। और ड्र्यूड्स,( जिसमे की स्टोनहेंज वगैरह की अभिव्यक्ति थी), उस प्राचीन समय से शिव के आत्मा रूपी इस महान देश में उत्पन्न हुआ है। इसलिए आत्मा यहाँ उसी प्रकार बसी हुई है जैसे की मनुष्यों के हृदय में रहती है और सहस्रार हिमालय में है जहाँ कैलाश पर सदाशिव विद्यमान हैं। हमारे यहाँ इतने गुरु पूजन होने का यह महान रहस्य है। इसे संपन्न करने Read More …

दिवाली पूजा Chelsham Road Ashram, London (England)

दिवाली पूजा चेल्शम रोड आश्रम, लंदन (यूके) – 1 नवंबर, 1981 आज मैंने आपको लक्ष्मी सिद्धांत के महत्व और तीन प्रक्रियाओं के बारे में बताया जिनसे हम गुजरते है । पहला गृह लक्ष्मी है। असल में,अधिकतर यह चंद्रमा के तेरहवें दिन मनाया जाता है, जहां वे कहते हैं कि गृहिणी को कुछ उपहार देना चाहिए। और सबसे अच्छी चीज जो है वह एक बर्तन है। तो लोग उसे कुछ बर्तन देते हैं, वास्तव में यह एक बहुत ही पारस्परिक बात है, क्योंकि यदि आप एक बर्तन देते हैं, तो उसे आपके लिए खाना बनाना चाहिए। यह सुझाव देने का एक बहुत ही प्यारा तरीका है कि आप हमारे लिए कुछ पकाइये। तब चौदहवा दिन बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उस दिन देवी शक्ति के रूप में है, क्योंकि यह कार्तिकेय थे जिन्होंने नरकासुर, शैतान को मार डाला था। और वह सबसे बुरों में से एक था, जिसे मारा न जा सका था। इसलिए शिव और पार्वती, इस शक्तिशाली शक्तिपुत्र को उत्पन्न करने के लिए, इस विशेष उद्देश्य के लिए विवाहित हुए थे, जिसका मतलब वह शक्ति का पुत्र है, जिसे कार्तिकेय कहा जाता है। और वह सिर्फ इस भयानक शैतान जिसे नरकासुर कह जाता था , को मारने के लिए पैदा हुआ था। और उसने मारा। वह दिन है, चौदहवें दिन। यह उस दिन हैलोवीन की तरह कुछ है। क्योंकि वह दिन है जब उन्होंने नरक के द्वार खोले और सभी शैतानों को नरक में डाल दिया। और यही कारण है कि उस दिन सुबह को जितना संभव हो सके आराम Read More …

Guru Purnima Chelsham Road Ashram, London (England)

आपको समझना होगा कि स्वयं से इस भौतिकता के लबादे को हटाने के लिये आपको अपने ऊपर कार्य करना होगा। और एक बार जब आपने इसे नियिंत्रत कर लिया तो कम से कम ….. अब आप कहीं भी सो सकते हैं अगर नहीं तो कुछ समय तक जमीन पर सोने का प्रयास करें। सन-टैनिंग के लिये आप क्या नहीं करते हैं … लोग इन बेवकूफियों के लिये स्वयं को रोक ही नहीं सकते हैं क्योंकि इन विचारों को आपके अंदर डाला गया है। इन विचारों को डालने वालों ने आपको शोषण किया है … आपको ये करना चाहिये … वो करना चाहिये… ये करना आवश्यक है … वो करना आवश्यक है। उन्हें तो बस अपने उत्पादों को बेचना है। कभी-कभी उपवास करने का प्रयास करें। मैंने भारतीयों को उपवास करने से मना किया है क्योंकि वे उपवास ही करते रहते हैं। छोटी-छोटी बातों के लिये वे उपवास करते हैं। भारत में अन्न की कमी है … इसलिये वे उपवास करते हैं। उनको उपवास करने की क्या जरूरत है? लेकिन यहाँ के लोगों के लिये ये आवश्यक है कि वे उपवास करना सीखें और भोजन की ओर ज्यादा ध्यान न दें। भोजन के प्रति आकर्षण का अर्थ है कि आपकी इंद्रियां आपको पागल बना रही हैं…. हैं कि नहीं? हमको सबसे पहले अपने शरीर और बाद में इंद्रियों पर आक्रमण करना चाहिये। हमारी सबसे बड़ी दुश्मन हमारी जीभ है। ये दो प्रकार से कार्य करती है। एक तो स्वाद … खाने का स्वाद और दूसरे ये कड़वे बोलों से दूसरों पर Read More …