Public Program Day 2, Atma Kya Hai New Delhi (भारत)

Atma Kya Hai Date 3rd March 1991 : Place New Delhi Public Program Type : Speech Language Hindi [Original transcript, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सत्य को खोजने बाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार । डाक्टर साहब ने अभी आपको सभी चक्रों के बारे में बता दिया है । उसी प्रकार कल मैने आपको तीन नाड़ियों के बारे में बताया था ये थी ईड़ा, पिंगला और सुष्म्ना नाड़ी । ये सब नाड़ियां, ये सारी व्यवस्था, परमात्मा ने हमारे अन्दर कर रखी है । इस उत्क्रान्ति के कार्य में, जबकि हमारा विकास हुआ है, तब धीरे – धीरे एक अन्दर प्रस्फुटित हुआ । किन्तु सारी योजना करने के बाद, पूरी तरह से इसकी व्यवस्था करने के बाद भी एक प्रश्न था कि हमारे अन्दर ये जो परमेश्वरी यंत्र बनाया हुआ है इसको किस तरह उस परमेश्वरी तत्व से जोड़ा जाय । मैने आपको कल बताया था चारों तरफ ब्रहुम चैतन्य रूप ये परमात्मा का प्रेम, उनकी शुद्ध इच्छा कार्य कर रही है । लेकिन ये ब्रहम चैतन्य अभी तक कृत नहीं था इसलिए जब कलयुग घोर स्थिति में पहुंच गया तो उसी के साथ-साथ एक नया युग शुरू हुआ है जिसे हम कृतयुग कहते हैं और एक चक्र हमारे रा युग आ सकता है । है । इसी कारण सहजयोग में हजारों लोग पार होने लगे हैं अर्थात् सहस्रार का खोलना बहुत जरूरी था । इस कृतयु ग के बाद ही सत्य इस कृतयु ग मैं ये ब्रहृम चैतन्य कार्यान्वित हो गया जब से सहस्रार खुला है, कृतयुग शुरू हो Read More …

Dinner Party New Delhi (भारत)

Nabhi Chakra Date 15th March 1984 : Place Delhi : Public Program Type : Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Nirmala Yog] होते हैं कि वो जो कहते हैं कि “परमात्मा वगैरह सब ढकोसला है, यह झूठी चीज है। परमात्मा नाम की कोई चीज ही नहीं है ।” परमात्मा को खोजने वाले सभी सत्य साधकों को हमारा प्रणाम! आज दो तरह के गाने आपने सुने हैं, पहले गाने में एक भक्त विरह में परमात्मा को बुलाता है। इसे अपराभक्ति कहते है और जब परमात्मा को पा लेता है, जैसे कबीर ने पाया था, तो उसे पराभक्ति कहते हैं। दोनों में ही भक्ति है। इसे कृष्ण ने अनन्य भक्ति कहा है- जहाँ दूसरा कोई नहीं होता, जहाँ साक्षात् परमेश्वर अपने सामने होते हैं, उस वक्त जो हम लोगों का भक्ति का स्वरूप होता है उसे उन्होंने पराभक्ति कहा-अनन्यभक्ति। सब तरह के विचार करने का अधिकार परमात्मा ने मनुष्य को दे दिया है। यह मनुष्य को दी हुई देन परमात्मा की ही है कि वो स्वतन्त्र है। जो चाहे वो सोच सकता है इस बुद्धि से। लेकिन हम लोगों को तीनों दशा में ये ही सोचना चाहिए कि आज तक हमने जो भी किया, चाहे परमात्मा में विश्वास किया, कुछ उनको भजा या उनके ऊपर लैक्चर दिये, या उन पर किताबें पढ़ीं, जो भी मेहनत करी या हमने उन पर विश्वास नहीं किया, उनको कहा कि वे हैं नहीं, उनसे हमने मुठभेड़ की और कहा कि देखते हैं परमात्मा कहाँ है? इन सभी दशाओं में हमें यह सोचना Read More …