Makar Sankranti Puja House in Pratishthan, पुणे (भारत)

Hindi Talk आज का दिन पृथ्वी के उत्तर भाग में महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि सूर्य दक्षिण से उत्तर में आता है। इसलिये नहीं कि ये हम कर रहे हैं। हर साल एक ही तारीख जो कि सूर्य के ऊपर कार्य हम करते हैं,  तो हम लोग उसको क्यों इतना मानते हैं? क्या विशेष बात है कि सूर्य अगर उत्तर में आ गया, तो हम लोगों को उसमें इतनी खुशी क्यों? बात ये है कि सूर्य से ही हमारे सब कार्य जो हैं प्रणीत होते हैं। अँधेरे में, रात्रि में हम लोग निद्रावस्था में रहते हैं। लेकिन जब सूर्य उदित होता है, तो उसके बाद ही हमारे सारे कार्य चलते हैं। इसलिये इस कार्य को प्रभावित करने वाली जो चीज़ है वो है सूर्य। और वो क्योंकि हमारे कक्ष में आ जाती है, तो हम इसको बहुत मान्य करते हैं। सबसे बड़ी बात तो ये है कि बाकी सारे त्यौहार चंद्रमा पर आधारित होते हैं और सिर्फ यही एक त्यौहार ऐसा है, कि जो हम सूर्य के आधार पे  करते हैं। ऐसे हमारे यहाँ सूर्यनारायण की भी बहुत महती है और लोग सूर्यनारायण को मानते हुये गंगाजी पर जा कर नहाते हैंऔर अनेक तरह के अनुष्ठान करते हैं। पर सब से महत्त्वपूर्ण है यही एक दिन है। अब हम लोगों को ये तय करना पड़ता है, कि इस दिन क्या करना चाहिये? इस विशेष दिन को क्या कार्य करना चाहिये? सूर्य का नमस्कार हो गया, सूर्य को अर्घ्य दे दिया और सूर्य के प्रति अपनी कृतज्ञता हम लोगों ने संबोधित की। Read More …

Public Program Satya Ki Prapti Hi Sabse Badi Prapti Hai New Delhi (भारत)

Satya Ki Prapti Hi Sabse Badi Prapti Hai, Type: Public Program   Place: New Delhi, Date: 2001-03-25 सत्य को खोजने वाले और जिन्होंने सत्य को खोज भी लिया है, ऐसे सब साधकों को हमारा प्रणाम। दिल्ली में इतने व्यापक रूप में सहजयोग फैला हुआ है कि एक जमाने में तो विश्वास ही नहीं होता था कि दिल्ली में दो-चार भी सहजयोगी मिलेंगे। यहाँ का वातावरण ऐसा उस वक्त था कि जब लोग सत्ता के पीछे दौड रहे थे और व्यवसायिक लोग पैसे के पीछे दौड़ रहे थे। तो मैं ये सोचती थी कि ये लोग अपने आत्मा की ओर कब मुडेंगे। पर देखा गया कि सत्ता के पीछे दौड़ने से वो सारी दौड निष्फल हो जाती है, थोडे दिन टिकती है। ना जाने कितने लोग सत्ताधारी हुए और कितने उसमें से उतर गये।  उसी तरह जो लोग धन प्राप्ति के लिए जीवन बिताते हैं उनका भी हाल वही हो जाता है। क्योंकि कोई सी भी चीज़ जो हमारे वास्तविकता से दूर है उसके तरफ जाने से अन्त में यही सिद्ध होता है कि ये वास्तविकता नहीं है। उसका सुख, उसका आनंद क्षणभर में भंगूर हो जाता है, ख़तम हो जाता है। और इसी वजह से मैं देखती हूँ कि दिल्ली में इस कदर लोगों में जागृति आ गई है। ये जागृति आपकी अपनी संपत्ति है। ये आपके अपने शुद्ध हृदय से पाये हुए, प्रेम की बरसात है। इसमें ना जाने हमारा लेना देना कितना है।  किन्तु समझने की बात ये है कि अगर आपके अन्दर ये सूझबूझ नहीं होती, तो Read More …

Shri Bhoomi Devi Puja New Delhi (भारत)

Shri Bhoomi Puja    Date:  April 7, 2000    Place: Noida    श्री भूमि देवी पूजा   सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा प्रणाम। मैंने तो इतनी आशा नहीं की थी कि आप इतने लोग इतनी बड़ी तादाद में इस जगह आएंगे और इस कार्य को समझेंगें। एक बार एक प्रोग्राम में हम जा रहे थे, ये दौलताबाद उस जगह का नाम है।  उससे गुज़र के एक सामने जाना था, रास्ते में गाडी खराब हो गई। वो भी योग ही है, सहज में ही गाडी खराब हो गई। सो उतर के देखा तो वहां बहुत सी औरतें, सौ से भी अधिक, अपने बच्चों समेत। बहुत से बच्चे, उनसे कई गुना ज्यादा। वहाँ एक नल फुटा था उससे पानी ले रहीं। इतनी धूप, बड़े फटे से कपड़े पहने हुए किसी तरह सर पे चुन्नी लिए हुए।  मुझे समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है। तो मैने उनसे पूछा कि आप लोग यहाँ क्या कर रहे हो?  यहाँ कैसे आये?  तो उन्होंने कहा कि हम सब मुसलमान औरतें हैं और हमारा तलाक हो गया। और ये हमारे बच्चे हैं और जो महर थी वो बहुत ही थोड़ी थी उसमें तो एक महीना भी चलना मुश्किल था। लेकिन किसी तरह से हमें यहाँ काम मिल गया तो हम यहाँ गिट्टी फोडते हैं। और रहते कहाँ हो?  तो कहने लगी सामने जो आपने देखें हैं कुछ टिन थे, के टुकड़े थे, टूटा-फूटा सा एक मकान तो नहीं कह सकते, उसी में हम लोग सब रहते हैं।  बाप रे! मैंने कहा, वहीं पता नहीं Read More …

Public Program पुणे (भारत)

Public Program, Pune, India 7th March 2000 सत्य को खोजनेवाले सभी साधकों को हमारा प्रणाम !!    आज संसार भर में सत्य की खोज हो रही हैI क्योंकि लोग सोचते हैं जिस जीवन में वो उलझे हुए हैं, वो उलझन इसलिए है कारन वो सत्य को नहीं जानते। अपने देश में शायद ये भावना कम हो लेकिन और अनेक देशों मे ये भावना बहुत जबरदस्त है और अपने देश में भी होनी चाहिए I अब हम रोज अख़बार पढ़ते हैं तो यही सुनते हैं की इतने यहाँ लोग गुंडागर्दी कर रहे हैं, कोई है चोरी चकारी कर रहे हैं और हर तरह के गलत सलत काम कर के जीना चाहते हैं .भ्रष्टाचार हो रहा है। ये भी बहुत सुना जाता है। इतना पहले नहीं था। उसका कारन ये है कि मनुष्य पथभ्रष्ट हो गया वो जानता नहीं उसे कहाँ जाना है। उसे जो ये शरीर मिला, उसकी ये जो बुद्धि मिली, ये सब किस चीज़ के लिए मिली है? यही वो नहीं जानता है,इसलिए इसी शरीर से वो अनेक विध गलत काम करता है। इस गलती को ठीक करने का अपने अंदर कोई न कोई तो अंदाज़  होगा  ही, न कोई न कोई व्यवस्था होगी ही क्यों कि जिस परमात्मा ने हमें  बनाया है वो हमें ऐसे गलत रास्ते पर फेंकने वाले नहीं। कुछ न कुछ उन्होंने व्यवस्था  ज़रूर करी है की  जिस से हम सही रस्ते पर चलें। अब लोग  कहेंगे कि सही रास्ते पर चलना क्या जरुरी है। गर आप सही रस्ते पर नहीं चलते हैं तो सबसे बड़े नुकसान तो आपका ही होगा, और समाज का होता ही है। पर आपका सबसे बड़ा नुकसान ये होता Read More …

Guru Nanak Birthday (भारत)

Guru Nanak Puja Type: Puja Speech Language: Hindi Place: Noida  Date: 23rd November 1999 12.11 आज गुरु नानक साहब का जनम दिन है और सारे संसार में मनाया जा रहा है वैसे। और आश्चर्य की बात है कि इतना हिन्दुस्तान में मैंने नहीं देखा, फर्स्ट टाइम इतना पेपर में दिया है, सब कुछ किया है। और उन्होंने सिर्फ सहज की बात की है। सहज पे बोलते रहे और हमेशा कहा, कि साहब सब जो है बाहर के आडम्बर हैं।  धर्म के बारे में कहा, कि उपवास करना, तीर्थयात्रा करना और इधर जाना, उधर जाना, ये सब धर्म के आडम्बर हैं सब धर्म के।  और आपको सिर्फ अपने अन्दर जो है उसको खोजना है। अपने अन्दर जो है उसको स्थित करना है। बार-बार यही बात कहते रहे, उन्होंने कोई दुसरी बात कही ही नहीं। मतलब यहाँ तक है कि कोई भी रिच्युअल (ritual) की बात नहीं करी उसने।  पर उसके बाद जब तेग बहादूर जी आये तो उनका भी कहते हैं आज ही शहीदी दिन है, कल है, कल है। कल है उनका भी शहीदी दिन, तो वो भी उसी विचार के थे। पर जो लास्ट गुरु थे उनके, उन गुरु ने जो कि युद्ध हो रहा था इसलिये सब बनाया, कि आप कड़ा पहनिये, बाल रखिये, ये सब जो चीज़ें बनायीं, ये सब उन्होंने बनायी। पर गुरु नानक साहब ने तो सिर्फ स्पिरिट ( spirit )की बात करी। उन्होंने कहा कि बाकी सब चीजें बेकार हैं, बिल्कुल साफ़-साफ़ कहा है। कोई अब पढ़ता ही नहीं उसे अब करें क्या? वो Read More …

Christmas Puja, You have to be loving, affectionate, kind and disciplined Ganapatipule (भारत)

Christmas Puja IS Date 25th December 1997: Ganapatipule Place: Type Puja Hindi & English आज हम लोग यहाँ ईसा मसीह का जन्म दिन मनाने के लिए उपस्थित हुए हैं। ईसा मसीह की जिन्दगी बहुत छोटी थी और अधिक काल उन्होंने हिन्दुस्तान में ही बिताया, काश्मीर में। सिर्फ आखिरी तीन साल के लिए वापिस गए और लोगों ने उन्हें क्रॉस पर टॉँग दिया। ये सब कुछ विधि का लिखा हुआ था। आज्ञा चक्र को खोलने के लिए उनको ये बलिदान देना पड़ा और इस तरह से उन्होंने आज्ञा चक्र की व्यवस्था करी। आज्ञा चक्र बहुत संकीर्ण है, छोटा सा, और आसानी से खुलने वाला नहीं है। क्योंकि मनुष्य में जो स्वतंत्रता आ गई उससे वो अहंकारी बन गया। इस अहंकार ने उसका आज्ञा चक्र बंद कर दिया और उस बंद आज्ञा चक्र से निकालने के लिए अहंकार निकालना ज़रूरी है। और अहंकार निकालने के लिए आपको अपने मन पे ही काबू लेना पड़ता है। लेकिन आप मन से अहंकार नहीं निकाल सकते। जैसे ही आप मन से अहंकार निकालने का प्रयत्न करेंगे, वैसे ही मन बढ़ता जाएगा और अहंकार बढ़ता जाएगा। “अहं करोति सः अहंकार:”।  हम करेंगे, इसका मतलब कि अगर हम अपने अहंकार को कम करने की कोशिश करे, तो अहंकार बढ़ेगा क्योंकि हम अहंकार से ही वो ही कोशिश कर रहे हैं। जो लोग ये सोचते हैं कि हम अपने अहंकार को दबा लेंगे, खाना कम खाएंगे, दुनिया भर के उपद्रव।  एक पैर पे खड़े हैं, तो कोई सिर के बल खड़ा है!  हर तरह के प्रयोग लोग करते Read More …

Diwali Puja: Sahaj Yog ki shuruvaat (भारत)

Diwali Puja – Sahajayog Ki Shuruvat Date 29th October 1995 : Place Nargol Puja Type Speech Language Hindi ये तो हमने सोचा भी नहीं था इस नारगोल में २५ साल बाद इतने सहजयोगी एकत्रित होंगे। जब हम यहाँ आये थे तो ये विचार नहीं था कि इस वक्त सहस्रार खोला जाए। सोच रहे थे कि अभी देखा जाय कि मनुष्य की क्या स्थिति है। मनुष्य अभी भी उस स्थिति पे नहीं पहुँचा जहाँ वो आत्मसाक्षात्कार को समझें। हालांकि इस देश में साक्षात्कार की बात अनेक साधू-संतों ने सिद्धों ने की है और इसका ज्ञान महाराष्ट्र में तो बहुत ज़्यादा है। कारण यहाँ जो मध्यमार्गी थे जिन्हें नाथ पंथी कहते हैं, कि नाथ लोग उन लोगों ने आत्मकल्याण के लिए एक ही मार्ग बताया था; आत्मबोध का। खुद को जाने बगैर आप कोई भी चीज़ प्राप्त नहीं कर सकते हो, ये मैं भी जानती थी। लेकिन उस वक्त जो मैंने मनुष्य की स्थिति देखी वो बहुत विचित्र सी थी। कि वो जिन लोगों के पीछे में भागते थे उनमें कोई सत्यता नहीं। उनके पास सिवाय पैसे कमाने के और कोई लक्ष्य नहीं था। और जब मनुष्य की स्थिति ऐसी होती है कि जहाँ वो सत्य को बिल्कुल ही नहीं पहचानता उसे सत्य की बात कहना बहुत कठिन है और लोग मेरी बात क्यों सुनेंगे? बार-बार मुझे लगता था कि अभी और भी मानव को बड़ना चाहिए। किन्तु मैंने देखा कि कलयुग की बड़ी घोर यातनायें लोग भोग रहे हैं। एक तो पूर्वजन्म में जिन्होंने अच्छे कर्म किये थे, उन लोगों को Read More …

Public Program, Sarvajanik Karyakram कोलकाता (भारत)

Public Program सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा प्रणाम इस कलियुग में मनुष्य जीवन की अनेक समस्याओं के कारण विचलित हो गया है, और घबरा रहा है। कलियुग में जितने सत्य को खोजने वाले हैं, उतने पहले कभी नहीं थे और यही समय है जबकि आपको सत्य मिलने वाला है। लेकिन ये समझ लेना चाहिए कि हम कौनसे सत्य को खोज रहे हैं ? क्या खोज रहे हैं? नहीं तो किसी भी चीज़ के पीछे हम लग करके ये सोचने लग जाते हैं कि यही सत्य है। इसका कारण ये है, कि हमें अभी तक केवल सत्य, अॅबसल्यूट ट्रूथ (absolute truth – परम सत्य) मालूम नहीं । कोई सोचता है कि ये अच्छा है, कोई सोचता है वो अच्छा, कोई सोचता है कि जीवन और ही तरह से बिताना चाहिए। तो विक्षुब्ध सारी मन की भावना और भ्रांति में इन्सान घूम रहा है। इस संभ्रांत स्थिति में उसको समझ में नहीं आता है कि,’आखिर क्या कारण है,जो मेरे अन्दर शांति नहीं है। मैं शांति को किस तरह से अपने अन्दर प्रस्थापित करूं । मैं ही अपने साथ लड़ रहा हूँ, झगड़ रहा हूँ, कुछ समझ में नहीं आता।’ यही कलियुग की विशेषता है और इसी कारण इस कलियुग में ही मनुष्य खोजेगा। पहले इस तरह की संभ्रांत स्थिति नहीं थी। मनुष्य अपने मानवता से ही प्रसन्न था। अब आप इस मानव स्थिति में आ गये हैं। इस स्थिति में अगर आपको केवल सत्य मालूम होता तो कोई झगड़ा ही नहीं होता, हर एक इन्सान एक ही बात Read More …

Public Program Galat Guru evam paise ka chakkar (भारत)

Type: Public Program, Place: Dehradun, Date:12/12/19 गलत गुरु एवं पैसे का चक्कर सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार! संसार में हम सुख खोजते हैं, आनन्द खोजते हैं और ये नहीं जानते कि आनन्द का स्रोत कहाँ है। सत्य तो ये है कि हम ये शरीर बुद्धि, अहंकार, भावनायें और संस्कार ये उपाधियाँ नहीं हैं। हम शुद्ध स्वरूप आत्मा हैं।  ये एक सत्य हुआ, और दूसरा सत्य ये है जैसे कि आप ये सारे यहाँ इतने सुन्दर फूलों की सजावट देख रहे हैं, न जाने कितने सारे आपने लगा दिये हैं। ये फूल भी तो एक चमत्कार हैं कि एक बीज़ को आप लगा देते हैं, इस पृथ्वी में और इस तरह के सुन्दर अलग-अलग तरह के फूल खिल उठते हैं। हम इसे चमत्कार समझते नहीं हैं। ये डॉक्टरों से पूछिये कि हमारा हृदय कौन चलाता है तो वो उसका नाम कहते हैं,(Autonomous Nervous System), स्वयंचालित। लेकिन ये स्वयं है कौन? इसका वो निदान नहीं बना सकते।  साइन्स में आप एक हद तक जा सकते हैं और वो भी ये जड़ चीज़ों के बारे में बता सकते हैं।  जो कुछ खोजते हैं, जो पहले ही बना हुआ है उसको वो समझा सकते हैं।  लेकिन साइन्स की अपनी अनेक सीमायें हैं और सबसे बड़ी उसकी ये सीमा है कि केवल सत्य को उन्होंने प्राप्त नहीं किया है। और इस वजह से साइन्स एक हद तक जाता है और फिर उसके खोज में दूसरी खोज आ जाएगी। फिर तीसरी खोज आ जाएगी, और पहली खोज को मना कर देते Read More …

Shri Mahavira Puja New Delhi (भारत)

श्री महावीर पूजा, नयी दिल्ली, भारत कह रहे है की आज महावीर जयंती है। बड़ा अच्छा दिन है। और महावीर जी जो थे, वो हमारी इडा नाडी पर उनका राज्य है। और हमारे अंदर जो संस्कार, कुसंस्कार ये सब होते है उसको वो ठीक करते है। और उन्होंने नर्क की व्याख्या की है। नर्क के बारे में बताया की नर्क क्या है। मनुष्य नर्क में जाता है, तो उसका क्या हाल होता है और उसकी क्या दुर्दशा होती है, बहुत गहनता से समझाया उन्होंने। बुद्ध और महावीर दोनों समकालीन थे, और दोनों का ही जीवन बहुत तपस्विता का था। दोनों ही राजपुत्र थे, और तो भी उन्होंने अपने को बहुत तपस्या में ला के मनन से जान लिया की, जब मनुष्य गलतिया करता है और left side में जाता है तो कैसे नर्क में उतर के उसकी क्या दुर्दशा होती है। नर्क तो यही संसार में ही हमें भोगने का है। मरने से पहले ही मनुष्य भोग सकता है अगर वो बहुत ज्यादा पापी हो, और वो पाप करते ही जा रहा है, उससे भागता नहीं और समझता भी नहीं की ये गलत काम है। तो ऐसे लोग आजकल के आधुनिक काल में अपने आप ही नष्ट हुए जा रहे है, अंदर से ही। उसके लिए कोई बाह्य की शक्ती की जरुरत नहीं है, क्योंकि उनको दुर्बुद्धि ही इतनी आती है की, अपने को किस तरह से नष्ट किया जाय इसी की व्यवस्था करते है। कभी कभी ये भी सोचते है की हम बहुत ठीक है, हमे कौन हाथ लगा Read More …

Shri Mahalakshmi Puja, The Universal Love (भारत)

30 /12/ 1992  महालक्मी पूजा, सर्वव्यापी प्रेम, कल्वे, भारत  सहज योगियों को ऐसे साधारण सांसारिक लोगों के स्तर तक नहीं गिरना चाहिए। अंत में आपके साथ क्या होगा? जो लोग इस प्रकार की चिंता कर रहे हैं, मैं उन्हें कहूँगी कि वह गहन ध्यान में जाएं, यह समझने के लिए कि आप स्वयं का अपमान कर रहे हैं। आप संत हैं। आप इस बात की चिंता क्यों करें कि आपको कौन सा विमान मिलने वाला है, कौन सा नहीं? यह दर्शाता है कि आपका स्तर बहुत नीचा है – निश्चित रूप से। आप सभी जो चिंतित हैं, आप मेरे संरक्षण में यहां आए हैं, और मेरी सुरक्षा में ही वापस जाएंगे।  आज सुबह मैं ईतनी बीमार हो गई कि मुझे यह विचार आया, आज हम कोई पूजा का आयोजन नहीं करेंगे। आपको यह पता होना चाहिए कि आप सब मेरे अंग प्रत्यंग है। आपको अपने शरीर में स्थान दिया है, और आप आपना आचरण सुधारें !  ऐसे शुभ दिन में हम सभी यहां आए हैं, यह विशेष पूजा करने के लिए। मैं कहूँगी की इसे महालक्ष्मी पूजा कहना चाहिए क्योंकि इसका सम्बन्ध हमारे देश के और सारे संसार के उद्योग से है।  जब तक मनुष्य के सभी प्रयासों को परमात्मा के साथ जोड़ा न जाए, वह अपने उत्तम स्थिति और पद को प्राप्त नहीं कर सकते। इस कारण पश्चिम के देशों में अब हमें समस्याएं आती हैं। तथाकथित अत्यंत समझदार, अति चुस्त, संपन्न और शिक्षित लोग – अब यहाँ हमें आर्थिक मंदी जैसी स्थिति दिखती हैं, क्योंकि उनमें कोई संतुलन Read More …

Shri Rama Puja कोलकाता (भारत)

रामनवमी पूजा – कलकत्ता, २५.३.१९९१ रामनवमी के अवसर पे एकत्रित हुए है, और सबने कहा है कि श्री राम के बारे में माँ आप बताइये। आप जानते हैं कि हमारे चक्रों में श्री राम बहुत महत्वपूर्ण स्थान लिए हुए हैं। वो हमारे राइट हार्ट पर विराजित हैं।  श्रीराम एक पिता का स्थान लिये हुए हैं, इसलिये आपके पिता के कर्तव्य में या उसके प्रेम में कुछ कमी रह जाये तो ये चक्र पकड़ सकता है।  सहजयोग में हम समझ सकते हैं कि राम और सब जितने भी देवतायें हैं, जो कुछ भी शक्ति के स्वरूप संसार में आये हैं, वो अपना-अपना कार्य करने आये हैं।  उसमें श्रीराम का विशेष रूप से कार्य है। जैसे कि सॉक्रेटिस ने कहा हआ है कि संसार में बिनोवेलंट किंग आना चाहिए।  उसके प्रतीक रूप श्रीरामचन्द्रजी इस संसार में आये हैं।  सो वो पूरी तरह से मनुष्य रूप धारण कर के आये थे।   वे ये भी भूल गये थे कि मैं श्रीविष्णु का अवतार हूँ, भुला दिया गया था।  किन्तु सर्व संसार के लिए वो एक पुरुषोत्तम राम थे। ये बचपन का जीवन सब आप जानते हैं और उनकी सब विशेषतायें आप लोगों ने सुन रखी हैं।  हम लोगों को सहजयोग में ये समझ लेना चाहिए कि हम किसी भी देवता को मानते हैं, और उसको  अगर हम अपना आराध्य मानते हैं तो हमारे अन्दर उसकी कौनसी विशेषताऐं आयी हुई हैं?  कौन से गुण हमने प्राप्त किये हैं?  श्रीरामचन्द्र जी के तो अनेक गुण हैं। क्योंकि वो तो पुरूषोत्तम थे। उनका एक गुण था Read More …

Birthday Puja Talk New Delhi (भारत)

Birthday Puja, Delhi, India, 3rd of Octoer, 1991 आज आप लोगों ने मेरा जन्म-दिवस मनाने की इच्छा प्रगट की थी I अब मेरे कम-से-कम चार या पांच जन्म-दिवस मनाने वाले हैं लोग I इतने जन्म-दिवस मनाइएगा उतने साल बढ़ते जाएंगे उम्र के I लेकिन आपकी इच्छा के सामने मैंने मान लिया कि इसमें आपको आनंद होता है, आनंद मिलता है तो ठीक है I लेकिन ऐसे दिवस हमेशा आते हैं I उसमें एक कोई तो भी नई चीज हमारे जीवन में होनी चाहिए, क्योंकि हम सहजयोगी हैं, प्रगतिशील हैं, और हमेशा एक नयी सीढ़ी पर चढ़ने का यह बड़ा अच्छा मौका है I सहजयोग में जो आज स्थिति है वो बहुत ही अच्छी है I जबकि हम देश की हालत देखते हैं आज, तो लगता है की सहजयोग एक स्वर्ग है हमने हिंदुस्तान मे खड़ा किया है I और, इसकी जो हमारी एक साधना है, इसमें जो हम समाए हुए हैं, इसका जो हम आनंद उठा रहे हैं, वो एक स्थिति पर पहुंच गया है I और इसका आधार भी बहुत बड़ा है I इसका आधार है कि आपने अपनी शुद्धता को प्राप्त किया है, अपनी शांति को प्राप्त किया और अपने आनंद को प्राप्त किया I यह आपकी विशेष स्थिति है जो औरों में नहीं पाई जाती I और इसको सब लोग देख रहे हैं समझ रहे हैं कि यह कोई विशेष लोग हैं और उन्होंने कोई तो भी विशेष जीवन प्राप्त किया है I मैं जहां भी जाती हूं और जगह, लोग मुझसे बताते हैं कि हम एक Read More …

Public Program पुणे (भारत)

1990-12-05 Public Program, Hindi Pune India   सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा प्रणाम! सत्य के बारे में हमें ये जान लेना चाहिए कि सत्य है सो अपनी जगह है। उसे हम बदल नहीं सकते,  उसकी हम धारणा नहीं कर सकते,  उसकी हम हम व्यवस्था नहीं कर सकते। सबसे तो दुःख की बात ये है कि इस मानव चेतना से हम उस सत्य को जान नहीं सकते। इसीलिए हम देखते हैं कि दुनियाँ में भेद-अभेद है। इसीलिए लोग अन्धेपन से आपस में लड़-झगड़ रहे हैं। अनेक तरह की नयी-नयी गतिविधियाँ उत्पन्न हो रही हैं। और नये-नये विचार, नयी-नयी प्रणालियां और नये-नये प्रश्न आज हमारे सामने खड़े हैं। ये हमारे भारतवासियों का ही प्रश्न नहीं है,  ये सारे दुनियाँ का प्रश्न है। सारी दुनियाँ में एक तरह की बड़ी आशंका मनुष्य के मस्तिष्क में घूम रही है और वो आशंका ये है  कि हम कहाँ जा रहे हैं?   और हमें क्या पाना है?   जब मैं आपसे आज सारी बातें कहुँगी, तो मैं आपसे ये विनती करना चाहती हूँ, कि आप एक वैज्ञानिक ढंग से, एक साइंटिफिक (scientific)  ढंग से अपना दिमाग खुला रखें।  जिस आदमी ने अपना दिमाग बंद कर लिया वो साइंटिस्ट हो ही नहीं सकता। और जो कुछ भी हम बात बता रहे हैं इसे एक धारणा, एक हाइपोथीसिज़ (hypothesis) समझ कर के आप सुनिए। और अगर ये बात सिद्ध हो जाए तो इसे आपको एक ईमानदारी के साथ मानना चाहिए।  जो लोग भारतवर्ष में रहते हैं वो ये सोचते हैं कि हमारे देश में Read More …

Public Program Day 2 New Delhi (भारत)

Public Program, Ram Lila Maidan Delhi, India 05th April 1990 सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार!   कल आपसे मैने कहा था कि हमारे अंदर एक बड़ा भारी सत्य है और बाह्य में दूसरा सत्य। पहला सत्य तो ये है कि हम आत्मा हैं, हम आत्मा स्वरूप हैं और दूसरा सत्य ये है कि ये सारी सृष्टि, ये सारा संसार एक बड़ी सूक्ष्म ऐसी शक्ति है, उससे चलता है। और ये शक्ति जो है, इस शक्ति को ही पाना, उसमे एकाकारिता में जाना, यही एक योग है। ये दूसरा वाला सत्य है और इन दोनों सत्य को हमें इस वक़्त मान लेना चाहिए। संशय करना तो बहुत आसान है और पढ़ लिख कर मनुष्य और अधिक संशय करने लगता है, इसीलिए कबीर ने ये कहा है की “पढ़ी पढ़ी पंडित मूरख भये” क्योंकि पढ़-पढ़ के उनके अंदर संशय और ज़्यादा हो जाता है और उनकी संवेदना कम हो जाती है और वो बुद्धि से ही तर्क वितर्क से जानना चाहते हैं कि सत्य क्या है पर सत्य बुद्धि के परे है, सत्य बुद्धि से परे है और ये इस जीवंत क्रिया के साथ होगा। अब अगर आप एक साइंटिस्ट् है, आप एक शास्त्रीय आधार को देखना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे पहले धारणा दी जाती है, हैपोथेसिस (hypothesis) दिया जाता है। अगर वो धारणा सही है तो उस धारणा को आपको पहले समझ लेना चाहिए और अपने दिमाग़ को खुला रखना चाहिए जैसे साइंटिस्ट् को चाहिए और उसके बाद देखिए कि अगर ये हो जाता Read More …

Birthday Puja, Sahaja Yoga me pragati ki Teen Yuktiyaan New Delhi (भारत)

Janm Diwas Puja Date 30th March 1990 : Place Delhi : Type Puja Speech Language Hindi आज नवरात्रि की चतुर्थी है और नवरात्रि को आप जानते हैं रात्रि को पूजा होनी चाहिए। अन्ध:कार को दूर करने के लिए अत्यावश्यक है कि प्रकाश को हम रात्रि ही में ले आएं। आज के दिन का एक और संयोग है कि आप लोग हमारा जन्मदिन मना रहे हैं। आज के दिन गौरी जी ने अपने विवाह के उपरान्त श्री गणेश की स्थापना की। श्री गणेश पवित्रता का स्रोत हैं। सबसे पहले इस संसार में पवित्रता फैलाई गई जिससे कि जो भी प्राणी, जो भी मनुष्यमात्र इस संसार में आए वो पावित्र्य से सुरक्षित रहें और अपवित्र चीज़ों से दूर रहें। इसलिए सारी सृष्टि को गौरी जी ने पवित्रता से नहला दिया। और उसके बाद ही सारी सृष्टि की रचना हुई। तो जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य हमारे लिए यह है कि हम अपने अन्दर पावित्र्य को सबसे ऊंची चीज़ समझें| लेकिन पावित्र्य का मतलब यह नहीं कि हम नहाएँ, धोएं, सफाई करें, अपने शरीर को ठीक करें किन्तु अपने हृदय को स्वच्छ करना चाहिए। हृदय का सबसे बड़ा विकार है क्रोध। क्रोध सबसे बड़ा विकार है, और जब मनुष्यमें क्रोध आ जाता है तो जो पावित्र्य है वो नष्ट हो जाता है क्योंकि पावित्र्य का दूसरा ही नाम निर्वाज्य प्रेम है। वो प्रेम जो सतत बहता है और कुछ भी नहीं चाहता। उसकी तृप्ति उसी में है कि वो बह रहा है और जब नहीं बह पाता तो वह कोंदता है, परेशान होता Read More …

Arrival and Kundalini Puja (भारत)

Kundalini Puja talk Date: 1990/02/05 आप सब लोगों को मिल करके बड़ा आनन्द आया।  और मुझे इसकी कल्पना भी नहीं थी कि इतने सहजयोगी हैद्राबाद में हो गये हैं।  एक विशेषता हैद्राबाद की है  कि यहाँ सब तरह के लोग आपस में मिल गये हैं।  जैसे कि हमारे नागपूर में भी मैंने देखा है कि हिन्दुस्थान के  सब ओर के  लोग नागपूर में बसे हुए हैं।  और इसलिये वहाँ पर लोगों में जो संस्कार हैं,  उसमें बड़ा खुलापन है और एक दूसरे की ओर देखने की दृष्टि भी बहुत खुली हुई है । अब हम लोगों को जब सहजयोग की ओर नये तरीके से मुड़ना है तो बहुत सी बातें ऐसी जान लेनी चाहिये  कि सहजयोग ही सत्य स्वरूप है, और हम लोग सत्यनिष्ठ हैं।  जो कुछ असत्य है,  उसे हमें छोड़ना है।  कभी-कभी असत्य का छोड़ना बड़ा कठिन हो जाता है क्योंकि बहुत दिन तक हम किसी असत्य के साथ जुटे रहते हैं।   फिर कठिन हो जाता है कि उस असत्य को हम कैसे छोड़ें।  लेकिन जब असत्य हम से चिपका रहेगा  तो हमें शुद्धता नहीं आ सकती।  क्योंकि असत्यता एक भ्रामकता है और उस भ्रम से निकलने के लिए हमें एक निश्चय कर लेना चाहिए कि जो भी सत्य होगा उसे हम स्वीकार्य करेंगे और जो असत्य होगा उसे हम छोड़ देंगे।  इसके निश्चय से ही आपको आश्चर्य होगा कि कुण्डलिनी स्वयं आपके अन्दर जो कि जागृत हो गयी है,  इस कार्य को करेगी।  और आपके सामने वो स्तिथि ला खड़ी करेगी कि आप जान जाएंगे कि सत्य Read More …

Birthday Puja: Introspection New Delhi (भारत)

जन्मदिवस पूजा दिल्ली, १९ मार्च, १९८९  सहजयोग के काम में व्यस्त न जाने कैसे समय बीत जाता है। अब करिबन अठारह साल से सहजयोग कर रहे हैं और उसकी प्रगती अब काफी हो रही है। आपने देखा किस तरह से इसकी प्रगती बढ़ रही है। अब जन्मदिन के दिन अब हमारे तो आपकी सबकी स्तुति करनी चाहिए और सब अच्छा ही कहना चाहिए। लेकिन एक ही बात मुझे जो समझ में आती है, जो कहनी चाहिए वो है कि अपनी गहराई को बढ़ाना है। अपनी गहराई को बढ़ाना बहुत जरुरी है और ये गहराई हमारे अन्दर है, कहीं ढूँढने नहीं जाना है, अपने ही अन्दर बस, ये गहराई है। लेकिन जब हम गहराई को बढ़ाते हैं तो ये देखना चाहिए कि हम स्वयं कहाँ खड़े हैं। इसको पहले जान लेना चाहिए कि हम स्वयं कहाँ खड़े हैं। और उसे जानने के लिए एक तरीका है, सहज सरल तरीका है कि अपनी ओर दृष्टि करें। जैसे कि हमारा व्यवहार कैसा है?  हम क्या करते हैं?  हम किस तरह से अपने मन में विचार लाते हैं?  हमारे तौर-तरीके कैसे हैं?  हम अपने को कहाँ तक सीमित रखते हैं।  जैसे शुरुआत में जब दिल्ली में काम शुरू किया तो लोगों के तो अन्दाज ही और थे।  मैं तो एकदम सकुचा गयी थी, क्योंकि उस वक्त किसी को कुछ मालूम ही नहीं था पूजा के बारे में। सब प्लास्टिक के डिब्बियों में सामान-वामान लेकर के सब लोग पहुँचे तो मेरी तो हालात ही खराब हो गयी। मैंने कहा कि अब तो इनका क्या होगा, Read More …

Sixth Day of Navaratri पुणे (भारत)

Navaratri Puja – Hamare Jivan Ka Lakshya Date: October 16th, 1988                      Place: Pune  Type: Puja Speech                                   Language: Hindi आज हम लोग यहाँ शक्ति की पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। अभी तक अनेक संत साधुओं ने ऋषि मुनियों ने शक्ति के बारे में बहुत कुछ लिखा और बताया है। और जो शक्ति का वर्णन उन्होंने अपने गद्य में नहीं कर पाये, उसे उन्होंने पद्य में किया। और उस पर भी इसके बहुत से अर्थ भी जाने (अष्पष्ट)।  लेकिन एक बात शायद हम लोग नहीं जानते हैं कि हर मनुष्य के अन्दर ये सारी शक्तियाँ सुप्तावस्था में हैं। और ये सारी ही शक्तयाँ मनुष्य अपने अन्दर जागृत कर सकता है। ये सुप्तावस्था की जो शक्तियाँ हैं उनका कोई अंत ही नहीं है, न ही उन का कोई अनुमान कोई दे सकता है। क्योंकि ऐसे ही पैंतीस कोटी तो देवता आपके अन्दर विराजमान हैं उस के अलावा न जाने कितनी ही शक्तियाँ उनको चला रही हैं। लेकिन इतना हम लोग समझ सकते हैं कि जो हमनें आज आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किया है, तो उसमें जरूर कोई न कोई शक्तियों का कार्य हुआ। उस कार्य के बगैर आप आत्मसाक्षाल्कार को नहीं प्राप्त कर सकते। ये आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करते वक्त हम लोग सोचते हैं कि ये सहज में हो गया। पर सहज में दो अर्थ हैं, एक तो सहज का अर्थ ये भी है कि Read More …

7th Day of Navaratri, Shri Mahadevi Puja कोलकाता (भारत)

Shri Mahadevi Puja Date: 10th October 1986    Place: Kolkata    Type: Puja Speech Language: Hindi आज पूजा में पधारे हुए सभी भाविकों को और साधकों को हमारा प्रणिपात! इस कलियुग में माँ की इतनी सेवा, इतना प्यार, और इतना विचार जब मानव हृदय में आ जाता है  तो सत्ययुग की शुरूआत हो ही गयी। ये परम भाग्य है हमारा भी कि षष्ठी के दिन कलकत्ता में आना हआ। जैसा कि विधि का लेखा है, कि कलकत्ता में षष्ठी के ही दिन आया जाता है। षष्ठी का दिन शाकंभरी देवी का है। और उस वक्त सब दूर हरियाली छानी चाहिये। हालांकि यहाँ पर मैंने सुना कि बहुत जोर की बाढ़ आयी, लोगों को बड़ी परेशानी हुई। लेकिन देखती हूँ कि हर जगह हरियाली छायी हुई है। रास्ते टूटे गये थे, पर कोई पेड़ टूटा हुआ नज़र नहीं आया। मतलब ये कि सृष्टि जो कार्य करती है, उसके पीछे कोई न कोई एक निहित, एक गुप्त सी घटनायें होती हैं। कलकत्ता का वातावरण अनेक कारणों से प्रक्षुब्ध है और अशुद्ध भी हो गया है। इसे हमें समझ लेना चाहिये, ये बहुत जरूरी है। इसीलिये देवी की अवकृपा हुई है या कहना चाहिये कि सफ़ाई हुई है।  कलकत्ते में, जहाँ कि साक्षात देवी का अवतरण हुआ। उनका स्थान यही है, जो कि सारे विश्व का हृदय चक्र यही पे बसा हुआ है।  ऐसी जगह हम लोगों ने बहुत ही अधार्मिक कार्यों को महत्त्व दिया है। और सबसे बड़ा अधार्मिक कार्य तांत्रिकों को मानना है। तांत्रिक तो वास्तविक में माँ ही है जो Read More …

Public Program: The Meaning Of Swajan मुंबई (भारत)

१९८२-१२१७ जनसभा: स्वजन का अर्थ [हिंदी] परेल, मुंबई (भारत) सार्वजनिक कार्यक्रम, मुंबई, भारत, १७ दिसंबर १९८२ माताजी श्री निर्मला देवी जी द्वारा १७/१२/१९८२ को परेल में उनके सम्मानित किए जाने पर ‘स्वजन’ द्वारा दिए गए सलाह का रिकॉर्डिंग। उन्होंने ‘स्वजन’ का अर्थ का विवरण दिया है। “स्वजन” के सब सदस्य तथा इसके संचालक और सर्व सहज योगी आप सबको मेरा प्रणाम! जैसा कि बताया गया स्वजन शब्द यह एक बड़े ध्येय की चीज़ है। स्वजन ये जो नाम हम लोगों ने बदल के इस संस्था को दिया था, इसके पीछे कुछ मेरा ही (–महाम–) जिसको कहते हैं कि महामाया इसके कुछ असर थे | स्वजन ये शब्द समझना चाहिए । स्व मानें क्या ? स्व मानें आत्मा , जिसे जिसनें अपनें आत्मा को पाया है वो जन स्वजन हैं | उस वखत शायद किसी ने न सोचा हो कि ये नाम विशेषकर मैंनें क्यों कहा कि यही नाम बदल रखा और जितने सहजयोगी हैं ये स्वजन हैं, क्योंकि उन्होंनें भी आत्मा को पाया है| ‘स्व’ को पाया है| अपने ‘स्व’ को पाने हीं के लिए ही स्वजन बनाया गया है और फर्क इतना है कि ऊपरी तरह से देखा जाए तो स्वजन में ये बात कही नहीं गई, लेकिन उस शब्द में हीं निहित है | उसका ॐ उसमें निहित है कि हम स्वजन हैं और जो आत्मा है वह ‘स्व’ है जो हमारे हृदय में परमात्मा का प्रतिबिंब है, वह ‘स्व’ उसका स्वरूप सर्व सामूहिक चेतना से दिखाई देता है| यानी जो आदमी स्व का जन हो जाता है Read More …

Birthday Puja मुंबई (भारत)

Birthday Puja. Mumbai, Maharashtra (India). 21 March 1979. [Hindi Transcript] आज …. (inaudible-Shri Mataji is describing what day it was) है। मेरा मन उमड़ आता है। आज तक लगातार बम्बई में ही ये जन्मदिवस मनाया गया। बम्बई में बहुत मेहनत करनी पड़ी है, सबसे ज्यादा बम्बई पर ही मेहनत की। लोग कहते भी हैं कि,”माँ, आखिर बम्बई में आपका इतना क्या काम है?“ पहले तो यहाँ पर रहना ही हो गया था, लेकिन बाद में भी बम्बई में काम बहुत हो सकता है, ऐसा मुझे लगता है। हालांकि बम्बई पे कुछ छाया सी पड़ी हुई थी। अभी दिल्ली में थोड़ा सा भी काम बहुत बढ़ जाता है| देहातों में भी बहुत काम हुआ है, हजारों लोग पार हो गये हैं, इसमें कोई शक नहीं। लंडन (London) जैसे शहर में भी बहुत काम हुआ है। लेकिन बम्बई के लोगों पे कुछ काली छाया सी पड़ी हुई है। मेरे ख्याल से पैसे के चक्कर बहुत जरुरत से ज़्यादा, बम्बई के लोगों में हैं। बड़ी आश्चर्य की बात है कि बम्बई में सालों लगातार मेहनत की है हमने, और सबसे कम सहजयोगी बम्बई शहर में हैं। इसका कोई कारण समझ में नहीं आता है। बहुत बार मैं सोचती हूँ और जब लोग मुझ से पूछते हैं कि, “माँ, आप बम्बई पे इतना क्यों अपना समय देती हैं? आखिर बम्बई में कौनसी बात है?” हालांकि शहरों से मैं बहुत घबराती हूँ। शहरों के लिए तो ठग लोग काफ़ी तैयार हो गये क्योंकि आप की जेब में पैसे हैं और ठग आपको ठगना चाहते हैं। Read More …

Public Program, Sahasrara New Delhi (भारत)

Public Program: Sahasrar March 18, 1979 सहस्त्रार सार्वजानिक कार्यक्रम, १८ मार्च १९७९  इसे समझ लेना चाहिए सहस्त्रार क्या चीज़ है। किसी ने अभी तक… किसी भी शास्त्रों में सहस्त्रार के बारे में विशद-रूप से कुछ भी वर्णित नही है। इसकी ये वजह नही है कि लोगबाग जानते नही होंगे, लेकिन पूरी तरह से सहस्त्रार खुला नही था तब तक, इसलिए इसके बारे में बहुत कुछ किसी ने लिखा नही। सहस्त्रार माने, जैसे ये कली है, इसी प्रकार हमारे ब्रेन (मस्तिष्क) को ग़र एक कमल का फूल समझें, तो उसके अंदर परत-न्-परत जैसे ये पंखुड़ियां हैं, उसी प्रकार एक-एक अलग-अलग स्तर बना हुआ है। और ये स्तर एक ही उसको, पता नही आप जानते हैं कि, दो मॅटर (पदार्थ): अपने व्हाइट्-मॅटर (श्वेत पदार्थ) , ग्रे-मॅटर (धूसर पदार्थ) – दो चीज़ होती है (मस्तिष्क में), जैसे आप देख सकते हैं कि दो हैं। इसके आलावा ग़र इसके बीचोबीच आप देखें खोलने पर, तो आपको दिखाई देगा कि बीच में गाभा है, और उसके अंदर हज़ारों छोटे-छोटे पराग हैं। इसी प्रकार हमारा जो ब्रेन (मस्तिष्क) है, ये भी मेद से बना है, fat (वसा) से बना है, लेकिन उसकी परते हैं। ग़र आप उसको क्रॉस-सेक्शन, माने यहाँ से ऐसे क्रॉस-सेक्शन करें, और उसको ग़र आप स्टडी (अध्ययन) करें तो आपको आश्चर्य होगा कि इसके अंदर ये एक-एक पर्त आपको दिखाई देगी, जैसे कि कमल के पुष्प हों, कमल की पंखुड़ियां जैसे। वैसे दिखाई देता है एकदम से। लेकिन डॉक्टरों का कभी कविता से संबंध नही रहा तो वो इस तरह का कंपॅरिज़न (तुलना) Read More …

Vishuddhi Chakra New Delhi (भारत)

Vishudhi Chakra (Hindi). Delhi (India), 16 March 1979. विश्व के लोग हमारी ओर आँखें किये बैठे हैं  कि भारतवर्ष से ही उनका उद्धार होने वाला है, तब तक नहीं पा सकेंगे। और हमारी ये हालत है कि एक साधारण सा व्यवहार जो होता है, वो भी नहीं है। कल मैंने आप से कहा था कि मैं आपको हृदय में बसे हुए शिवस्वरूप सच्चिदानंद आत्मा के बारे में बताऊंगी आज। लेकिन सोचती हूँ कि आखिर में ही बताऊंगी जब सारे ही चक्र बता चुकुंगी, वो अच्छा रहेगा। हालांकि उनको पहले से आखिर तक, अपनी दृष्टि वहीं रखनी चाहिये। बाकी जो भी चक्र हैं, एक उनके चक्र को जानने से ही ठीक हो जाते हैं। इन तीन हृदय चक्र के तीन हिस्सों से उपर एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण चक्र है, जिसे हम लोग विशुद्धि चक्र कहते हैं, विशुद्धि चक्र। जहाँ पे हमारा कंठ होता है, इसके बराबर पीछे में ये चक्र होता है। अब इसके लिये आप एक्झॅक्टली (exactly) किसी के लिये नहीं कह सकते हैं कि ये यहीं होता है। क्योंकि ये बड़ी ही सूक्ष्म चीज़ है, थोड़ा ऊँचे, नीचे होता ही है। जैसी-जैसी मनुष्य की प्रकृती होती है और जैसे-जैसे उसका फॉर्म होता है, वैसे ही इसकी चक्र की भी स्थितियाँ उस तरह से थोड़ी बहुत आगे-पीछे होती हैं। कभी कभी एक इंच का भी फर्क होता है। इसलिये आप ये नहीं कह सकते, कि ये बराबर उस जगह ही होगा। थोड़ा सा मैंने देखा है, किसी का ऊपर होता है, किसी का नीचे होता है। किसी का और भी Read More …

Public Program Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Public Program (Hindi). Birla Krida Kendra, Mumbai (India). 14 January 1979. आशा है, आप लोग यहाँ सत्य की खोज में आए होंगे मैं आपसे हिंदी में बातचीत कर रही हूँ, कोई लोग ऐसे हों जो हिंदी बिलकुल ही नहीं समझते हैं तो फिर अंग्रेजी में बातचीत करुँगी| ठीक है| सत्य की खोज में मानव ही रह सकता है, जानवर, प्राणी नहीं रह सकते, उनको इसकी जरूरत नहीं होती मनुष्य ही को इसकी जरूरत होती है, कि वह सत्य को जाने| मनुष्य इस दशा में होता है, जहाँ वह जानता है कि कोई ना कोई चीज उससे छुपी हुई है और वह पूरी तरह से यह भी नहीं समझ पाता कि वह संसार में क्यों आया है? और वह इस उधेड़बुन में हर समय बना रहता है, की क्या मेरे जीवन का यही लक्ष्य है कि मैं खाऊ- पिऊ और जानवरों जैसे मर जाऊँ? की इसके अलावा भी कोई चीज सत्य है? सत्य का अन्वेषण मनुष्य के ही मस्तिष्क में जागरूक होता है| लेकिन सत्य के नाम पर जब हम खोजते हैं तो हम ना जाने किस चीज को सत्य समझ कर बैठते हैं, जैसे कि जब मानव सोचने- विचारने लग गया तो उसने संसार की जितनी जड़ चीजें थी उधर अपना ध्यान लगाया यानि यहाँ तक की वह चाँद पर पहुँच गया| कौन सा सत्य मिला उसे चाँद पर? साइंस की खोज की, तो उसमें उनको कौन सा सत्य मिला? जिन लोगों ने साइंस की खोज करके और अपने को बहुत प्रगल्भ समझा है एडवांस समझा है जिन्होंने सोचा है Read More …

Atma Ki Anubhuti मुंबई (भारत)

Atma Ki Anubhuti, 28th December 1977 [Hindi Transcription]  ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK आपसे पिछली मर्तबा मैंने बताया था, कि आत्मा क्या चीज़ है, वो किस प्रकार सच्चिदानंद होती है, और किस प्रकार आत्मा की अनुभूति के बाद ही मनुष्य इन तीनों चीज़ों को प्राप्त होता है। आत्मसाक्षात्कार के बगैर आप सत्य को नहीं जान सकते। आप आनन्द को नहीं पा सकते। आत्मा की अनुभूति होना बहुत जरूरी है। अब आप आत्मा से बातचीत कर सकते हैं। आत्मा से पूछ सकते हैं। आप लोग अभी बैठे हुए हैं, आप पूछे, ऐसे हाथ कर के कि संसार में क्या परमात्मा है? क्या उन्ही की सत्ता चलती है? आप ऐसे प्रश्न अपने मन में पूछे। ऐसे हाथ कर के। देखिये हाथ में कितने जोर से प्रवाह शुरू हो गया। कोई सा भी सत्य आप जान नहीं सकते जब तक आपने अपनी आत्मा की अनुभूति नहीं ली। माने जब तक आपका उससे संबंध नहीं हुआ। आत्मा से संबंध होना सहजयोग से बहुत आसानी से होता है। किसी किसी को थोड़ी देर के लिये होता है। किसी किसी को हमेशा के लिये होता है। आत्मा से संबंध होने के बाद हम को उससे तादात्म्य पाना होता है। माने ये कि आपने मुझे जाना, ठीक है, आपने मुझे पहचाना ठीक है, लेकिन मैं आप नहीं हो गयी हूँ। आपको मैं देख रही हूँ और मुझे आप देख रहे हैं। इस वक्त मैं आपकी दृष्टि से देख सकूँ, उसी वक्त तादात्म्य हो गया। आत्मा के अन्दर प्रवेश कर के वहाँ से आप जब संसार पे दृष्टि डालते Read More …

Public Program, Dhyan Kaise Karein, How to Meditate मुंबई (भारत)

How to Meditate, Bombay29 May 1976. …आपसे दादर में मैंने बताया था कि सहजयोग में पहले किस प्रकार [अस्पष्ट] समाधि लगती है। तादात्म्य के बाद आदमी को सामीप्य हो सकता है और उसके बाद सालोक्य हो सकता है। लेकिन तादात्म्य को प्राप्त करते ही मनुष्य का इंटरेस्ट (Interest) ही बदल जाता है। तादात्म को पाते ही साथ, मनुष्य की अनुभूति के कारण वो सालोक्य और सामप्य… सामिप्य की ओर उतरना नहीं चाहता। माने ये की जब आपके हाथ में से चैतन्य की लहरियां बहने लग गई और जब आपको दूसरों की कुंडलिनी समझने लग गईं और जब आप दूसरों की कुंडलिनी को उठा सकें, तब उसका चित्त इसी ओर जाता है कि दूसरे की कुंडलिनी देखें और अपनी कुंडली को…कुंडलिनी को समझें। अपने चक्रों..अ..चक्रों के प्रति जागरूक रहें और दूसरों के भी चक्र को समझता रहे। आकाश में भी अगर आप निरभ्र आकाश की ओर देखें या बादल हों तब भी देखें, आपको दिखाई देगा कि अनेक तरह की  कुण्डलिनी आपको दिखाई देगी। क्योंकि अब आपका चित्त कुण्डलिनी पे गया है। आपको कुण्डलिनी के बारे में जो कुछ भी जानना है, जो कुछ भी देखना है, जो कुछ भी सामिप्य है, वो जान पड़ेगा।                  बैठो…बैठो…बैठो…। बीच में आके, देर से आके, बीच में नहीं आते। चलो…।                  कुण्डलिनी के बारे में, इंटरेस्ट जो है, वो बढ़ जाता है। बाकि के इंटरेस्ट (Interests) अपने आप ही लुप्त हो जाते हैं। ऐसा ही समझ लीजिए कि आप Read More …

महाशिवरात्री पूजा-उत्पत्ति, आदिशक्ति और शिव मुंबई (भारत)

1976-02-29 Mahashivaratri Puja: Utpatti – Adi Shakti aur Shiva ka Swaroop, Mumbai, महाशिवरात्री पूजा-उत्पत्ति, आदिशक्ति और शिव मुंबई २९/२/७६ आप से पहले मैने बताया उत्पत्ति के बारे में क्योंकि महाशिवरात्रि के दिन जब शिवजी की बात करनी है तो उसका प्रारंभ उत्पत्ति से ही होता है इसलिए वह आदि है । पहले परमेश्वर का जब पहला स्वरूप प्रगटीत होता है, याने मॅनिफेस्ट होता है जब की वह ब्रह्म से प्रकाशित होते है, उस वक्त उन्हे सदाशिव कहा जाता है । इसलिए शिवजी जो है, उनको आदि माना जाता है। ऐसे समझ लीजिए की किसी वृक्ष को पूर्णत: प्रगटीत होने से पहले उसका बीज देखा जाता है और इसलिए उसे बीजस्वरूप कहना चाहिए । इसलिए शिवजी की अत्यन्त महिमा है। उसके बाद, उनके प्रकटीकरण के बाद उन्ही के अन्दर से शक्ति अपना स्वरूप धारण कर के आदि शक्ति के नाम से जानी जाती है। वही आदिशक्ति परमात्मा के तीनों रूपों को अलग अलग प्रकाशित करती है, जिसको आप जानते हैं । जिनका नाम ब्रह्मा, विष्णू और महेश याने शिवशंकर है। याने एक ही हीरे के तीन पह्लु आदिशक्ति छानती है । और जब प्रलय काल में सारी सृजन की हुई सृष्टि, सारा manifested संसार विसर्जित होता है, उसी ब्रह्म में अवतरित होता है, तब भी सदाशिव बने ही रहते है। और उनका सम्बन्ध परमात्मा के उस अंग से हमेशा ही बना रहता है, जो कभी भी प्रकटीकरण नहीं होता है जो की एक non-being है। परमात्मा की जो शक्तियाँ प्रकट होती है वो .being से होती है, जो नहीं होती है Read More …

Lalita Panchami मुंबई (भारत)

ललिता पंचमी पूजा    दिनांक: 5 फरवरी 1976   स्थान:  मुम्बई   प्रकार: पूजा … की हो कि उसे सुलझा सके। इतना सब होते हुए भी बार-बार इस तरह की बात बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं कि हमारा क्या फ़ायदा हुआ?  इस प्रश्न में निहित एक बहुत ही छोटी सी छुपी हुई बात है कि हमें जो कुछ मिला है उसके प्रति हमें कोई भी उपकार बुद्धि नहीं है।  ज़रा सी भी उपकार बुद्धि नहीं है कि हम सोचते हैं कि हमने क्या सहज में ही पा लिया। उपकार बुद्धि जिसे सेंस ऑफ़ ग्रेटिटूड  (sense of gratitude )अंग्रेजी में कहते हैं जब तक आपके अंदर होगा नहीं सब बात उलटी बैठती जाएगी। आज का दिन बड़ा शुभ है,ललिता पंचमी है। ललित का मतलब है सुंदर, अति सुंदर।  और ललिता गौरी जी का नाम है क्योंकि कल गणेशजी का जन्म हुआ है इसलिए आज गौरी जी का दिन मनाया जाता है।  वैसे भी आप जानते हैं कि मेरा कुंडलिनि का नाम, मतलब कुंडली का नाम ललिता है। लालित्य सौंदर्य को कहते हैं। मनुष्य वही सौंदर्य होता है, वही सुंदरतम होता है जिसमें सेंस ऑफ़ ग्रेटिटूड होती है। जिस इंसान में सेंस ऑफ़ ग्रेटिटूड ज़रा भी न हो वो इंसान पशुवत है।  पशु में भी होती है, कुत्ते में भी होती है। एक कुत्ता उसको आप थोड़े दिन पालिये-पोसिये देखिये आपको आश्चर्य होगा कि वो किस कदर वफादार होता है, वफादार होता है। जैसे ही सेंस ऑफ़ ग्रेटिटूड आपके अंदर जागृत होगा वैसे ही प्रेम के दर्शन अंदर से आने शुरू हो जाते Read More …

Talk to Sahaja Yogis Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

1975-0331 Advice at Bhartiya Vidya Bhavan  आप लोग जो पहले ध्यान में आये थे तो आपसे मैंने बताया था कि परमात्मा के तीन आस्पेक्ट होते हैं,  और इसी कारण उनकी तीन शक्तिया संसार में कार्य करती हैं।  पहली शक्ति का नाम महालक्ष्मी,  दूसरी का महासरस्वती, तीसरी का महाकाली।  उसमें से महाकाली की शक्ति हर एक जड़ जीव,  हर एक पदार्थ में प्रणव रूप से है।  प्रणव रूप से रहती है, माने जिसे हम अभी वाइब्रेशन कह रहे हैं जो आपके हाथ से निकले हैं, इसी रूप में। जो सिर्फ मनुष्य के ह्रदय में और प्राणी मात्र के ह्रदय में ये शक्ति स्पनदित है, पलसेट (pulsate) करती है। जब वो शक्ति जड़ चीजो में रहेती है महाकाली की वो शक्ति जो जड़ चीजो में रहेती है  तो वही प्रणव एलेक्ट्रोमेग्नटिक वाइब्रेशन  (electromagnetic vibration) की तोर पर दिखाई देता है। जब वो शक्ति जिवित चीज में जागृत होती है तब वो स्पंदन पल्सेसन की तरह से दिखाई देता है। (डॉक्टर आप के लिये खास कर बोल रहे हैं,  आज का इधर आइये) पर महाकाली की जो शक्ति है उसी शक्ति से सारी श्रुष्टि का संचार होता है।  मतलब ये है की स्थिति होती है स्थिति।  हर एक चीज होती है एक्सिस्ट (Existence) होती है। पर जिस दिन मोलेक्यूल में से उसकी ये स्थिति नस्ट होती है तो मोलेक्यूल ही नस्ट हो जाता है।  और इसी शक्ति का उपयोग  एटॉमिक एनर्जी (atomic energy) और हाइड्रोजन बोंब  ( hydrogen bomb) आदि के लिये होता है। ये शक्ति जब उलटी तरह से घुमादी जाती है तब बड़ी विनाशकारी होती है। और सारे संसार का नाश इस शक्ति से हो सकता है। जैसे कि इसका सृजन भी हो सकता है,  ये दोनों ही कार्य कर सकती है। क्योकि ये शक्ति साक्षी स्वरुप पाई गई है। इस शक्ति से परमात्मा श्रृष्टि की सारी रचना देखते रहते हैं, उसका कार्य देखते रहते हैं। आदिशक्ति की  माने प्रकृति, आदिशक्ति की इस शक्ति को ये पावस होते हैं। ये उसके अंदर अधिकार होते हैं कि चाहे तो वो उसे देखे और चाहे तो उसे बनाये।  जब उनको ये खेल और भाता नहीं, जब संसार में हाहाकार मच जाता है, जब गंदी, मैली विद्याये फ़ैल जाती हैं, अधन पतन हो जाता है, और बिलकुल Read More …

Public Program, Chitt apni aur rakhiye मुंबई (भारत)

Chitt Apni Aur Rakhiye   Date:5th March 1975 Place: Mumbai   Type: Seminar & Meeting speech   Language: Hindi अभी कल मैंने आपसे बताया था कि सहजयोग में जब आप पार हो जाते हैं, तो क्या चीज़ हो जाती है। किस तरह से आप गुणातीत में उतरते हैं और गुणातीत में उतर के आप किस तरह से अपनी चेतना में चैतन्य लहरियों को देखते हैं। और उनके द्वारा दूसरों का उद्धार करते हैं, ये गुणातीत का आशीर्वाद है, ये कलियुग का भी बड़ा भारी आशीर्वाद है। और इसकी भविष्यवाणी पहले बहुत बार हो चुकी है, कि कलियुग में जब बहुत से लोग परमात्मा को खोजते हुए जंगलों में, कंदरों में और बड़ी-बड़ी कठिन तपस्या में संन्यस्त भाव से वहाँ तपाचरण कर रहे थें।  उनकी भक्ति का फल, उनके पाचारण का फल कलियुग में होने वाला है।  जहाँ पर कि सहज में ही कुण्डलिनी  की  जागृति हो कर के और सामूहिक उद्धार होगा, कल्याण होगा, मंगल होगा, लोग पार होंगे। सो तो सहजयोग की बात सही है और जिसके बारे में कहा है, वो भी सही बात है, क्योंकि सहज जो है वही एक तरीका प्रकृति का है। प्रकृति का अपना तरीका कोई सा भी असहज नहीं है।  सब चीज़ सहज होती है, जैसे अपना श्वास लेना।  हर तरह का काम जो प्रकृति करती है, जीवंत कार्य, वो सारा ही सहज होता है। लेकिन सहजयोग में एक सहज होने के नाते कुछ प्रशन भी खड़े हो जाते हैं। या जिसको कहना चाहिये कि मनुष्य इतना असहज है। मनुष्य ने अपने को इतना Read More …

Teen Shaktiya मुंबई (भारत)

TEEN SHAKTIYAN, Date: 21st January 1975, Place: Dadar, Type: Seminar & Meeting [Hindi Transcript] जैसे कोई माली बाग लगा देता है और उस पे प्रेम से सिंचन करता है और उसके बाद देखते रहता है कि देखें कि बाग में कितने फूल खिले खिल रहे हैं। वो देखने पर जो आनन्द एक माली को आता है उसका क्या वर्णन हो सकता हे! कृष्ण नाम का अर्थ होता है कृषि से”, कृषि आप जानते है खेती को कहते हैं। कृष्ण के समय में खेती हुई थी और क्राइस्ट के समय में उसके खून से सींचा गया था। इस संसार की उर्वरा भूमि को कितने ही अवतारों ने पहले संबारा हुआ था। आज कलियुग में ये समय आ गया है कि उस खेती की बहार देखें, उसके फूलों का सुगन्ध उठायें। ये जो आपके हाथ में से चेतन्य लहरियाँ बह रही हैं ये वही सुगन्‍ध है जिसके सहारे सारा संसार, सारी सृष्टि, सारी प्रकृति चल रही है। लेकिन आज आप वो चुने हुये फूल हैं जो युगों से चुने गये हैं कि आज आप खिलेंगे और आपके अन्दर से ये सुगन्ध संसार में फैल कर के इस कीचड़ के इस मायासागर के सारी ही गन्दगी को खत्म कर दे। देखने में ऐसा लगता है कि ये केसे हो सकता है ? माताजी बहुत बड़ी बात कह रही हैं। लेकिन ये एक सिलसिला है, कन्टिन्यूअस प्रॉसेस (continuous process) है। और जब मंजिल सामने आ गयी तब ये सोचना कि मंजिल क्‍यों आ गयी ? कैसे आ गयी ? कैसेहो सकता है ? जब Read More …

Public Program Bordi (भारत)

1973-0125 Public Program, Bordi (Hindi) सो आपके स्वाधिष्ठान चक्र पे कोई सी भी गड़बड़ हो तो ये अंगूठे आप ठीक कर सकते हैं।  अंगूठे से। अब आपको अपना महत्व देखना है कि आप क्या हैं?  आप शीशे के सामने खड़े हो जाएं ऐसे पोज़ करके, आप के अंदर चेंज (बदलाव) आने लगना शुरु हो जायेगा। आपका जो रिफ्लेक्शन (प्रतिबिंब) शीशे में पड़ रहा है उसी से आप समझ सकते हैं कि आप क्या चीज हैं? अपना खुद ही प्रतिबिंब आप देखें शीशे में, उसकी ओर देखते रहें। अब आप अपने स्वाधिष्ठान को रगड़े, ऐसे दबाएं [श्री माताजी किसी से बात करते हुए] आपको हाथ पे यहाँ पे उसका थ्रोबिंग आ जायेगा।  इसको दबाते जाइए।  या उसको sooth करें।  स्वाधिष्ठान चक्र की सब तकलीफे आपकी जो भी हैं वो दूर हो जाएँगी।  तो अंगूठे पर स्वाधिष्ठान चक्र का स्थान है।   उससे ऊपर मणिपुर चक्र का स्थान, बीच वाली ऊँगली पर है। ऐसे लाइन से नहीं है।  जैसा है वैसा है।  बीचवाली ऊँगली पर है।  आपकी अगर बीचवाली ऊँगली जलती है तो जरूर आप देख लेना वो जो आदमी सामने बैठा है उसके नाभि चक्र की पकड़ है। अपने यहाँ कुमकुम लगाना आदि वगैरह जो कुछ भी है [श्री माताजी साइड में किसी से बात करते हुए –ये सेंटर, this is मणिपुर] इसलिए खाना खाते वक्त कभी भी ये ऊँगली हम लोग ऊपर नहीं रखते हैं।  हमेशा ये साथ में आनी पड़ती है। ये ऊँगली भी ऊपर करके बहुत लोग खाना खाते है वो बहुत गलत बात है। चारों पांचों उंगलियों से Read More …

Unidentified Talk (Extract on Agnya Chakra) New Delhi (भारत)

1970-0101 Unidentified Hindi Talk (Extract on Agnya Chakra) बैठे थे, प्रोग्राम में आये थे, तो भी कुछ न कुछ अपनी विपदा सोचते रहे । अरे ! मेरे साथ ये हुआ, मेरे साथ वो हुआ, ऐसा हुआ, वैसा हुआ । और माताजी से मैं कब बताऊं, मेरी विपदा क्या हुई? माताजी आप देवी हैं, मेरी ये विपदा है| बजाय उसके कि जो कहे जा रहे हैं उसको समझें, अपनी ही अंदरूनी बात को ही सोच-सोच करके आप चली गई उस बहकावे में ।  और उस बहकावे में आपको कैन्सर की बीमारी हो गई, नहीं तो ये बीमारी हो गई, वो बीमारी हो गई । वैसे ही मानसिक बातें हैं । हम मन से क्या सोच रहे हैं? मन में हमारे कौन से विचार आ रहे हैं? सब यही ना कि हमको ये दुःख है, वो दुःख है, ये पहाड़ है । लेकिन सोचना क्या चाहिए – काउन्ट  यॉर ब्लेसिंगज़ (count your blessings)। अपने पे कितने आशीर्वाद हैं परमात्मा के । ये दिल्ली शहर में करोड़ों लोग रहते हैं, कितनो को सहज योग मिला है? हम कोई विशेष व्यक्ति हैं, कोई ऐसे-वैसे नहीं कि अपने चित्त को बेकार करें। हमें सहज योग मिला है । इसकी धारणा होनी चाहिए अंदर से और उस अंतर्मन में उतरना चाहिए। उसी से ये जो झूठी मर्यादा है सब छूट जाएगी और अगर आप नहीं तोड़िएगा, तो किसी न किसी तरह से ऐसे कुछ आपको अनुभव आयेंगे कि ये टूटते जायेंगे । जिस चीज को आप सोचेंगे कि ये हमारा अपना है। आप कहेंगे हम दिल्ली Read More …