Christmas Puja Ganapatipule (भारत)

Christmas Puja, Ganapatipule (India), 25 December 2002. Merry Christmas to you all. According to Sahaja Yoga, Christ is settled on your Agnya Chakra. His whole life is depicting the qualities of a person who is a realised soul. What He has suggested in His own life is that you should not have any greed or lust. The way these days people are greedy all over the world is really shocking. Right from the childhood, our children also learn to ask for this or ask for that; only complete satisfaction in life can give you that equanimity, that balance by which you do not hanker after things. These days even India has become very much westernised in the sense they are also very much wanting to have this and that. Actually, now in America suddenly, with this happening, people are getting to spirituality. They come to spirituality because they think they have not found any satisfaction anywhere. But we have to see from His life, the great life of Christ. First He was born in a small little hut, as you saw many of them when you come round. Very much satisfied. And He was put in a cradle which was all covered with dry, very dry grass. Can you imagine? And then He sacrificed His life on the cross. Whole thing is a story of a sacrifice. Because He had a power, power of Spirit, that He could sacrifice anything, even sacrifice His own life, so you can understand the Read More …

Birthday Felicitations New Delhi (भारत)

Birthday Felicitations (English part), Delhi (India), 22 March 2000. HINDI TRANSLATION (English Talk) Scanned from Hindi Chaitanya Lahari है कि किस प्रकार इन लोगों ने विश्व के हजारों सम्माननीय अतिथिगण, सम्माननीय गृहमन्तरी श्री आडवाणी जी. जो कि महान देशभक्त रहे हैं लोगों को आत्मसाक्षात्कार की ज्योति प्रदान की! और उनके देश प्रेम के कारण जिनकी मैं सदैव प्रशंसक रही हूँ। वे अत्यन्त देशभक्त हैं और तरह से कार्य नहीं कर रही। जिस प्रकार ये आप जानते हैं मेरे माता-पिता भी अत्यन्त देशभक्त बधाई सन्देश हमें आए हैं, आप देख ही रहे हैं. थे उन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान ये सब इनके प्रयासों का फल है सहजयोगी वास्तव में यही लोग कार्य कर रहे हैं। मैं उनकी कर दिया। देशभक्त होने के कारण उसे समय उनसे मिलते हैं उन्हें सहजयोग के विषय में सबने मेरी भी बहुत भत्संना की। जिस देश में बताते हैं और उन्हें आत्मसाक्षात्कार भी देते हैं। इस प्रकार से इन्होंने इस कार्य को किया है। अतः हमें अपने देश और उसकी गहन सम्बन्ध है। मैने देखा है कि सहजयोग में समस्याओं के विषय में चिन्ता करनी चाहिए। ये आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके परिवर्तित होने के समस्याएं क्यों है? मैं जानती हूँ कि आपकी कामनाएं और प्रयत्न निश्चित रूप से आपके कमी है। सहजयोगी उन कमियों के विषय में देश की स्थिति को सुधारेंगे हर जगह ये घटित बहुत जागरूक हो जाते हैं । मैं हैरान हूँ कि सभी हो रहा है। भारत में भी ये घटित होना चाहिए। मुझे बताते हैं कि उनक दश में क्या Read More …

Public Program पुणे (भारत)

Public Program, Pune, India 7th March 2000 सत्य को खोजनेवाले सभी साधकों को हमारा प्रणाम !!    आज संसार भर में सत्य की खोज हो रही हैI क्योंकि लोग सोचते हैं जिस जीवन में वो उलझे हुए हैं, वो उलझन इसलिए है कारन वो सत्य को नहीं जानते। अपने देश में शायद ये भावना कम हो लेकिन और अनेक देशों मे ये भावना बहुत जबरदस्त है और अपने देश में भी होनी चाहिए I अब हम रोज अख़बार पढ़ते हैं तो यही सुनते हैं की इतने यहाँ लोग गुंडागर्दी कर रहे हैं, कोई है चोरी चकारी कर रहे हैं और हर तरह के गलत सलत काम कर के जीना चाहते हैं .भ्रष्टाचार हो रहा है। ये भी बहुत सुना जाता है। इतना पहले नहीं था। उसका कारन ये है कि मनुष्य पथभ्रष्ट हो गया वो जानता नहीं उसे कहाँ जाना है। उसे जो ये शरीर मिला, उसकी ये जो बुद्धि मिली, ये सब किस चीज़ के लिए मिली है? यही वो नहीं जानता है,इसलिए इसी शरीर से वो अनेक विध गलत काम करता है। इस गलती को ठीक करने का अपने अंदर कोई न कोई तो अंदाज़  होगा  ही, न कोई न कोई व्यवस्था होगी ही क्यों कि जिस परमात्मा ने हमें  बनाया है वो हमें ऐसे गलत रास्ते पर फेंकने वाले नहीं। कुछ न कुछ उन्होंने व्यवस्था  ज़रूर करी है की  जिस से हम सही रस्ते पर चलें। अब लोग  कहेंगे कि सही रास्ते पर चलना क्या जरुरी है। गर आप सही रस्ते पर नहीं चलते हैं तो सबसे बड़े नुकसान तो आपका ही होगा, और समाज का होता ही है। पर आपका सबसे बड़ा नुकसान ये होता Read More …

Quawwali – Baba Zaheer पुणे (भारत)

Talk आपको चैतन्य कहाँ महसूस होता है? ऐसे ही सूफ़ी हो जाए गुणगान हो जाएकवाल हो जायमशरूफ हो जाए| तो सारे दूर हम  मन चैतन्य को तो इनके गाने के मध्यम से फेला सकते है| बहुत आसान है इन्होंने इनके भाई लोग है  मे पता नही भाई नाम | मैं अपना सूफ़ी नाम बता देता हूँ!आप बता दो!  (कव्वाल अपना नाम श्रीमताजी को बताते हुए|) तो आप सब लोगो का बहुत बहुत धन्यवाद की आप लोग आए और इसको क़्वाली को सुनने के लिए मैं चाहती हूँ की और भी लोग सहज योगी आ गये होते तो अच्छा होता| पर शायद यह जगह थोड़ी दूर हो इसलिये इस वजह से नही आ पाए हो  ….बहरहाल इस तरह की चीज़े अगर हमारी यहाँ धीरे धीरे फैल जाए तो सहज की जो धारा है वो ओर भी सहज हो जाए | अच्छा, दिल्ली मे भी अंदर तीन साल पहले वहाँ मुस्लिम लोग बैठ ते है| तो वहाँ हुँने ग्राउंड मैं सबके रहने  की व्यवस्था की तो पोलीस के लोगो ने हमे वहाँ खबर की वहाँ मुसलमान लोग रहते है और वो आप पे बॉम्ब छोड़ेंगे मैने कहाँ मेरे पे कोई बॉम्ब नही छोड़ने वाला आप चिंता मत करो, मैने कहाँ कौन है वो मुसलमान| कहने लगे निज़ामुद्दीन साब, निज़ामुद्दीन साब एक बहुत बड़े औलिया उनके एक शिष्य थे| आप ने सुना होगा उनका नाम उनकी इतनी सुंदर कविताए हैं जो की शृंगारिक रूप से लिखी है पर परमातमा पे | वो फिर वो लोग मैने कहाँ अरे मैनेउनकी कब्र पर सबसे पहले उनके ऊपर चादर चढ़ाई थी तब तो कोई वहाँ Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

Sarvajanik Karyakram 22nd March 1993 Date : Place Delhi : Public Program Type [Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सहजयोग का ज्ञान सूक्ष्मज्ञान है और सूक्ष्मज्ञान को प्राप्त करने कास्प पे दोड़ते रहते हैं। आज ये विचार आया। कल ये विचार के लिये, हमें भी सूक्ष्म होना है। ये सूक्ष्मता क्या है कि हमें आत्मा स्वरुप होना चाहिये। आत्मा से ही हम इस सूक्ष्म ज्ञान को समझ चढ़ती है तो क्या होता है कि विचार कुछ लम्बा हो जाता है। सकते हैं। क्योंकि आत्मा का अपना प्रकाश हैं और वो प्रकाश इन दोनों विचारों के बीच में जो स्थान है उसे विलम्ब कहते हैं। जब हमारे ऊपर प्रगटित होता है तो उस आत्मा के प्रकाश में इस विलम्ब स्थिति में आप आ जाते हैं और विलम्ब की स्थिति ही हम इस सूक्ष्मज्ञान को जानते हैं ये हमारे ही अन्दर की आत्मा जो बहुत संकीर्ण होती है वो बढ़ जाती है। ये हो वर्तमान है। है। ये परमात्मा का प्रतिबिम्ब हमारे ही अन्दर आत्मा स्वरुप है और कुण्डलिनी परमात्मा की इच्छा शक्ति आदि शक्ति का से सतर्क है, बेसुध अवस्था में नहीं जाते। आप सुप्ता अवस्था में प्रतिबिम्ब है। कुण्डलिनी साढ़े तीन वलयों में है जिन्हें कुण्डल नहीं जाते। जरुरत से ज्यादा सतर्क हो जाते हैं। लेकिन कोई कहते हैं इसलिये उसका नाम कुण्डलिनी है। कुण्डलिनी जब विचार आपके अंदर नहीं आता। बस सब चौज देखना मात्र बनता उठतो है तो ये साढ़े तीन कुण्डल पूरे के पूरे नहीं उठते। जैसे है। इसे साक्षो स्वरूप कहा गया है Read More …

Public Program Day 2, Atma Kya Hai New Delhi (भारत)

Atma Kya Hai Date 3rd March 1991 : Place New Delhi Public Program Type : Speech Language Hindi [Original transcript, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सत्य को खोजने बाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार । डाक्टर साहब ने अभी आपको सभी चक्रों के बारे में बता दिया है । उसी प्रकार कल मैने आपको तीन नाड़ियों के बारे में बताया था ये थी ईड़ा, पिंगला और सुष्म्ना नाड़ी । ये सब नाड़ियां, ये सारी व्यवस्था, परमात्मा ने हमारे अन्दर कर रखी है । इस उत्क्रान्ति के कार्य में, जबकि हमारा विकास हुआ है, तब धीरे – धीरे एक अन्दर प्रस्फुटित हुआ । किन्तु सारी योजना करने के बाद, पूरी तरह से इसकी व्यवस्था करने के बाद भी एक प्रश्न था कि हमारे अन्दर ये जो परमेश्वरी यंत्र बनाया हुआ है इसको किस तरह उस परमेश्वरी तत्व से जोड़ा जाय । मैने आपको कल बताया था चारों तरफ ब्रहुम चैतन्य रूप ये परमात्मा का प्रेम, उनकी शुद्ध इच्छा कार्य कर रही है । लेकिन ये ब्रहम चैतन्य अभी तक कृत नहीं था इसलिए जब कलयुग घोर स्थिति में पहुंच गया तो उसी के साथ-साथ एक नया युग शुरू हुआ है जिसे हम कृतयुग कहते हैं और एक चक्र हमारे रा युग आ सकता है । है । इसी कारण सहजयोग में हजारों लोग पार होने लगे हैं अर्थात् सहस्रार का खोलना बहुत जरूरी था । इस कृतयु ग के बाद ही सत्य इस कृतयु ग मैं ये ब्रहृम चैतन्य कार्यान्वित हो गया जब से सहस्रार खुला है, कृतयुग शुरू हो Read More …

Public Program Day 1 कोलकाता (भारत)

1st Public Program C Date 10th April 1990 : Place Kolkata Public Program Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सत्य के बारे में जान लेना चाहिए कि सत्य अनादि है और उसे हम मानव बदल नहीं सकते। सत्य को हम इस मानव चेतना में नहीं जान सकते । उसके लिए एक सूक्ष्म चेतना चाहिए। जिसे आत्मिक चेतना कहते हैं। आप अपना दिमाग खुला रखें वैज्ञानिक की तरह, और अगर सत्य प्रमाणित हुई तो उसे अपने इमानदारी में मान लेना चाहिए। एक महान सत्य यह है कि सृष्टि की चालना एक सूक्ष्म शक्ति करती है जिसे परम चैतन्य कहते हैं। ये विश्व व्यापी है और हर अणु-रेणु में कार्यान्वित है । हमारे शरीर के स्वयं चालित ( ओटोनौमस संस्था ) को चलाती है। जो भी जीवित- कार्य होता है वो उससे होता है पर अभी हममें वो स्थिती नहीं आई है जिससे हम परम चैतन्य को जान लें। दूसरा सत्य यह है कि हम यह शरीर,बुध्दी, अहंकार और भावनाफँ आदि उपादियां नहीं हैं। हम केवल आत्मा हैं। और ये सिध्द हो सकता है। तीसरा सत्य यह है कि हमारे अन्दर एक शक्ति है जो त्रिकोना- कार असती में स्थित है, और यह शक्ति जब जागृत हो जाती है तो हमारा सम्बन्ध उस परम चैतन्य से प्रस्थापित करती है। और इसी से हमारा मसा आत्म दर्शन हो जाता है। फिर हमारे अन्दर एक नया तरह का अध्याम तैयार हो जाता है, जो हमारे नसँ पर जाना जाता है। जो नस नस में जानी जाए वोही Read More …

Public Program Day 2 New Delhi (भारत)

Public Program, Ram Lila Maidan Delhi, India 05th April 1990 सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार!   कल आपसे मैने कहा था कि हमारे अंदर एक बड़ा भारी सत्य है और बाह्य में दूसरा सत्य। पहला सत्य तो ये है कि हम आत्मा हैं, हम आत्मा स्वरूप हैं और दूसरा सत्य ये है कि ये सारी सृष्टि, ये सारा संसार एक बड़ी सूक्ष्म ऐसी शक्ति है, उससे चलता है। और ये शक्ति जो है, इस शक्ति को ही पाना, उसमे एकाकारिता में जाना, यही एक योग है। ये दूसरा वाला सत्य है और इन दोनों सत्य को हमें इस वक़्त मान लेना चाहिए। संशय करना तो बहुत आसान है और पढ़ लिख कर मनुष्य और अधिक संशय करने लगता है, इसीलिए कबीर ने ये कहा है की “पढ़ी पढ़ी पंडित मूरख भये” क्योंकि पढ़-पढ़ के उनके अंदर संशय और ज़्यादा हो जाता है और उनकी संवेदना कम हो जाती है और वो बुद्धि से ही तर्क वितर्क से जानना चाहते हैं कि सत्य क्या है पर सत्य बुद्धि के परे है, सत्य बुद्धि से परे है और ये इस जीवंत क्रिया के साथ होगा। अब अगर आप एक साइंटिस्ट् है, आप एक शास्त्रीय आधार को देखना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे पहले धारणा दी जाती है, हैपोथेसिस (hypothesis) दिया जाता है। अगर वो धारणा सही है तो उस धारणा को आपको पहले समझ लेना चाहिए और अपने दिमाग़ को खुला रखना चाहिए जैसे साइंटिस्ट् को चाहिए और उसके बाद देखिए कि अगर ये हो जाता Read More …