New Year’s Eve Puja (भारत)

New Year Puja Date 31st December 2002: Place Vaitarna: Type Puja Speech [Hindi translation from Marathi and English talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] इतनी बड़ी संख्या में कार्यक्रम के लिए बुद्धिमान तथा विद्वान व्यक्ति थे परन्तु आए आप सब लोगों को देखकर मैं बहुत उन्होंने सर्वसाधारण लोगों की ओर ध्यान प्रसन्न हू। वास्तव में मैंने ये जमीन 25 वर्ष दिया, उनकी देखभाल की और उनमें संगीत पहले खरीदी थी। परन्तु इस पर मैं कुछ न कला को बढ़ावा दिया। इसी विचार के साथ कर सकी क्योंकि इस पर बहुत सारी मैंने निर्णय किया कि कला और संगीत के आपत्तियाँ थीं, आदि-आदि। परन्तु किसी तरह से मैंने इसकी योजना बनाई और अब प्रचार-प्रसार के उनके लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मैं ये स्थान समर्पित कर दूं। ये देखकर मुझे प्रसन्नता हो रही है कि मेरा ये विचार फलीभूत हो गया है काश कि आप लोगों कि इतनी कठिनाइयों का सामना करने को प्रसन्न करने के लिए आज मेरा भाई भी के पश्चात् आज मेरे सम्मुख मेरी पूजा के यहां होता! वो अत्यन्त प्रेम एवं करुणामय व्यक्ति था। मैंने देखा कि वो कभी किसी से नाराज़ नहीं हुए। सदा उन्होंने सभी लोगों यहां पर मुझे अपने भाई बाबा की याद की बहुत अच्छी तस्वीर मेरे सम्मुख पेश की। आती है जिन्होंने भारतीय संगीत, शास्त्रीय परन्तु इस विषय में कोई भी क्या कर सकता ये सब कार्यान्वित हो गया है। आप सब लोगों को यहां देखकर मुझे प्रसन्नता हो रही है कार्यक्रम में भाग लेने के लिए इतने सारे सहजयोगी उपस्थित हैं Read More …

Makar Sankranti Puja पुणे (भारत)

Makar Sankranti Puja 14th January 2001 Date: Place India Type Puja [Hindi translation from Marathi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] अत्याधिक कर्मकाण्ड करने वाले लोग जल्दी से परिवर्तित नहीं होते हमें अपने कि तप करो, उपयास करो पति-पत्नी का स्वभाव परिवर्तित करने चाहिए। उत्तर भारत में कर्मकाण्ड इतने अधिक नहीं हैं। वे लोग तपस्या से कहीं श्रेष्ठ है। भक्ति आनन्द का गंगा में स्नान करते है परन्तु अब उनमें बहुत स्रोत है। सहजयोग अपनाने वाले लोगों को बदलाव आया है बहुत से सुशिक्षित लोग न कोई तपस्या करनी है न कुछ त्यागना है। सहजयोग में आए हैं और उन्हें देखकर आश्चर्य जहाँ हैं वहीं पर सब कुछ पाना है। होता है । महाराष्ट्र के लोगों को यदि कहा जाए त्याग करो तो वे ये सब करेंगे। परन्तु भक्ति आत्मसाक्षात्कार अन्य लोगों को भी देना चाहिए नहीं तो आत्मसाक्षात्कार का क्या लाभ है? महाराष्ट्र में बहुत से साधु संत हुए जिन्होंने तपस्वी लोग देना नहीं जानते। अपनी भक्ति बहुत परिश्रम किया परन्तु उसका कोई उपयोग नहीं हुआ। सारा जीवन कर्मकाण्ड में चला गया। परन्तु अब परिवर्तन होना चाहिए और हम सबको जागृत होना चाहिए। होता। केवल हृदय से प्रार्थना करनी होती है भोर हो गई है, अब सोने का क्या अर्थ है? से आप सबकुछ दे सकते हैं। भक्ति में भी कुछ छोड़ना त्यागना नहीं कि. “मैं अपना पूरा जीवन सहजयोग के लिए समर्पित करता हूँ ।” न कुछ छोड़ना है महाराष्ट्र की स्थिति देखकर बहुत दुख न तपस्या करनी है। आपमें इतनी भक्ति होता है। यहाँ पर लोग इतना Read More …

Public Program पुणे (भारत)

Velechi Hallk 25th March 1999 Date: Place Pune Public Program Type [Hindi translation from Marathi talk] सत्य साधको को हमारा प्रणाम ! इसके पहले भी मैंने कई बार आपको सत्य के बारे में बताया है । सत्य क्या है? सत्य और असत्य इन दोनों में क्या अन्तर है, ये कैसे जान सकते हैं। इसके बारे में मैंने बहुत अच्छी तरह से समझाया है । सबसे पहले इस पुणे में या पुण्यपट्टणम् में हम सत्य क्यों खोज रहे हैं, यह जानना जरूरी है । आज के इस कलियुग में ऐसी-ऐसी घटनाऐं होने लगी हैं कि मनुष्य घबराने लगा है। उसकी समझ में नहीं आ रहा है कि यह क्या हो रहा है और कलियुग की यही विशेषता है कि मनुष्य संभ्रान्ति की स्थिति में घिरा हुआ है। इस स्थिति में आकर वह घबरा जाता है। उसे पता ही नहीं चलता कि सत्य क्या चीज़ है? मैं कहाँ जा रहा हूँ? दुनिया कहाँ जा रही है? इस तरह के प्रश्नों से वह घिरा रहता है। ऐसी हालत सिर्फ महाराष्ट्र में नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष में, पूरी दुनिया में है। पूरी दुनिया को इस कलि की महिमा की जानकारी हो रही है। नल और दमयंती का जो बिछड़ना हुआ था वह कलि के कारण ही था और एक बार यह कलि नल के हाथों पकड़ा गया। उसने (नल ने) कहा, ‘मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूँगा ताकि किसी को भी तुमसे परेशानी न हो। कोई तकलीफ न हो।’ तब कलि ने नल से कहा कि, ‘पहले तुम मेरी महिमा सुनो। वह सुनने के बाद Read More …

Makar Sankranti Puja (भारत)

Makar Sankranti Puja 14th January 1987 Date: Place Rahuri Type Puja [Hindi translation from Marathi talk] आज का दिन बहुत शुभ है और इस दिन हम लोगों को तिल-गुड़ देकर मीठा-मीठा बोलने को कहते हैं। हम दूसरों को तो कह देते हैं, पर खुद को भी कहें तो अच्छा होगा। क्योंकि दूसरों को कहना बहुत आसान होता है। यह प्रतीत होता है कि – आप तो मीठा बोलें और हम कड़वा – इस तरह की प्रवृत्ति से कोई भी मीठा नहीं बोलता। कहीं भी जाओ , वहाँ चिल्लाने का कोई कारण न होने पर भी, चिल्लाने के अलावा लोगों को बात करना आता ही नहीं है। उसका कारण यह है कि हमने खुद के बारे में कुछ कल्पना की हुई है। हमें परमात्मा के आशीर्वाद की तनिक भी कल्पना नहीं है। इस देश में परमात्मा ने हमें कितना बडा आशीर्वाद दिया है। देखो, इस देश में स्वच्छता का कोई विचार ही नहीं है। इस देश में तरह-तरह के कीटाणु, तरह पैरासाइटस् अपने देश में हैं। जो कही भी नहीं मिलेगा वह अपने देश में हैं। दूसरे देशों में यहाँ के कुछ पैरासाइटस् जाएं तो वे मर जाते हैं। वहाँ की ठंड में वो रह ही नहीं सकते। सूर्य की कृपा से इतने पैरासाइटस् इस देश में है और उनको मात देकर हम कैसे जिंदा हैं । एक वैज्ञानिक ने मुझसे पूछा कि, ‘अपने इंडिया में लोग जीवित कैसे रहते हैं? मैंने कहा, जीवित ही नहीं रहते, हँसते- खेलते भी रहते हैं, आनंद में रहते हैं, सुख में रहते हैं । Read More …

Sarvajanik Karyakram मुंबई (भारत)

Sarvajanik Karyakram, HINDI TRANSLATION (Marathi Talk) सत्य की खोज़ में रहने वाले आप सब लोगो को हमारा नमस्कार। आज का विषय है ‘प्रपंच और सहजयोग’। सर्वप्रथम ‘प्रपंच’ यह क्या शब्द है ये देखते हैं । ‘प्रपंच’ पंच माने | हमारे में जो पंच महाभूत हैं, उनके द्वारा निर्मित स्थिति। परन्तु उससे पहले ‘प्र’ आने से उसका अर्थ दूसरा हो जाता है। वह है इन पंचमहाभूतों में जिन्होंने प्रकाश डाला वह ‘प्रपंच’ है। ‘अवघाची संसार सुखाचा करीन’ (समस्त संसार सुखमय बनाऊंगा) ये जो कहा है वह सुख प्रपंच में मिलना चाहिए। प्रपंच छोड़कर अन्यत्र परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती। बहतों की कल्पना है कि ‘योग’ का बतलब है कहीं हिमालय में जाकर बैठना और ठण्डे होकर मर जाना। ये योग नहीं है, ये हठ है। हठ भी नहीं, बल्कि थोड़ी मूर्खता है। ये जो कल्पना योग के बारे में है अत्यन्त गलत है। विशेषकर महाराष्ट्र में जितने भी साधु-सन्त हो गये वे सभी गृहस्थी में रहे। उन्होंने प्रपंच किया है। केवल रामदास स्वामी ने प्रपंच नहीं किया । परन्तु ‘दासबोध’ (श्री रामदासस्वामी विरचित मराठी ग्रन्थ) में हर एक पन्ने पर प्रपंच बह रहा है। प्रपंच छोड़कर आप परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकते। यह बात उन्होंने अनेक बार कही है। प्रपंच छोड़कर परमेश्वर को प्राप्त करना, ये कल्पना अपने देश में बहुत सालों से चली आ रही है। इसका कारण है श्री गौतम बुद्ध ने प्रपंच छोड़ा और जंगल गये और उन्हें वहाँ आत्मसाक्षात्कार हुआ। परन्तु वे अगर संसार में रहते तो भी उन्हें साक्षात्कार होता। समझ लीजिए हमें दादर Read More …

Sarvajanik Karyakram Rahuri (भारत)

राहुरी फैक्ट्ररी के माननीय अध्यक्ष श्री सर्जेराव पाटिलजी, मित्र संघ संस्था के संचालकगण, जितने भी राहुरीकार और पिछड़े/दलित जाती के लोग यहाँ एकत्रित हुए हैं, मुझे ऐसा कहना उचित नहीं लगता। क्योंकि वे सब मेरे बच्चे हैं। सभी को नमस्कार! दादासाहेब से मेरी एक बार अचानक मुलाक़ात हुई और मुझे तब एहसास हुआ कि यह आदमी वास्तव में लोगों की फिक्र (परवाह) करता है। जिसके हृदय में करुणा न हो उसे समाज के नेता नहीं बनना चाहिए. जिन्होंने सामाजिक कार्य नहीं किया है उन्हें राजनीति में नहीं आना चाहिए। जिन्होंने सामाजिक कार्य किया है, अगर वे राजनीति में आते हैं, तो उनके मन में जनसामान्य के लिए दया रहेगी। लेकिन ज्यादातर लोग सामाजिक कार्य इसलिए करते हैं ताकि हम राजनीति में आएं और पैसा कमाएं। मुझे सब पता है। मैंने बचपन से अपने देश का हाल देखा है। मैं शायद तुम सब में सबसे उम्रदराज हूँ। मेरे पिता भी बहुत धार्मिक हैं, एक बहुत ही उच्च वर्ग के सामाजिक कार्यकर्ता, देश के कार्यकर्ता, राष्ट्रीय कार्यकर्ता और डॉ अम्बेडकर के साथ बहुत दोस्ताना था,  घनिष्ठ मित्रता थी। उनका हमारे घर आना-जाना था। मैंने उन्हें (डॉ. अम्बेडकर को) बचपन से देखा है।  मैं उन्हें चाचा कहती थी। उनके साथ संबंध बहुत घनिष्ठ हैं। और वह बहुत तेजस्वी और उदार थे। मेरे पिता गांधीवादी थे और यह(डॉ. अम्बेडकर)  गांधी जी के खिलाफ थे। बहस करते थे। तकरार के बावजूद उनके बीच काफी दोस्ती थी। वह बहुत स्नेही थे! जब मेरे पिता जेल गए, तो वह हमारे घर आकर पूछते थे कि कैसे चल Read More …

Shivaji School, Vishesh goshti sathi vel aali aahe (भारत)

Shivaji School, Vishesh goshti sathi vel aali aahe [Marathi to Hindi Translation] HINDI TRANSLATION (Marathi Talk) परमात्मा की बहुत सारी कृपायें हम पर होती हैं। मनुष्य पर भी उसकी अनेक कृपायें होती हैं। परमात्मा की आशीर्वाद से ही उसे अनेक उत्तम चीजें और उत्तम जीवन प्राप्त होता है। पर मनुष्य तो उसे हर क्षण भूल जाता है। साक्षात् परमात्माने यह पृथ्वी हमारे लिये बनायी है और पृथ्वी निर्माण कर के उसमें विशेष रूप से एक स्थान बनाया है। इसी कारण से वह सूर्य के ज़्यादा समीप नहीं और चंद्रमा से जितनी दर पृथ्वी ने होना चाहिये उतनी ही दूरी पर वह है। और उस पृथ्वी पर जीवजंतुओं का निर्माण कर आज वह सुंदर कार्य मनुष्य के रूप में फलित हो गया है। अर्थात् अब आप मानव बन गये हैं। और अब मानव अवस्था में आने पर हमें परमात्मा का विस्मरण होना यह ठीक नहीं है। जिस परमात्मा ने हमें इतना ऐश्वर्य, सुख और शांति दी है, उस परमात्मा को लोग बहुत ही शीघ्र भूल जाते हैं। पर जिन लागों को परमात्मा ने इतना आराम नहीं दिया, जो अभी भी दरिद्रता में हैं, दःख में हैं, बीमार हैं, पीड़ा में हैं, वो लोग परमात्मा का स्मरण करते रहते हैं। पर जिन लोगों को परमात्मा ने दिया है, वे परमात्मा को पूरी तरह भूल जाते हैं। यह बहुत आश्चर्य की बात है। और जिन्हें नहीं दिया वे तो परमात्मा की याद करते रहते हैं। फिर याद करने के बाद, उन्हें भी आशीर्वाद मिलने के बाद वे लोग भी भूल जाएंगे। मनुष्य का Read More …

1st Day of Navaratri Celebrations, Shri Kundalini, Shri Ganesha मुंबई (भारत)

Kundalini Ani Shri Ganesha 22nd September 1979 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type [Hindi translation from Marathi talk] आज के इस के प्रथम दिन शुभ घड़ी में, ऐसे इस सुन्दर वातावरण में इतना सुन्दर विषय, सभी योगायोग मिले हुए दिखते हैं। आज तक मुझे किसी ने पूजा की बात नहीं कही थी, परन्तु वह कितनी महत्त्वपूर्ण है! विशेषतः इस भारत भूमि में,महाराष्ट्र की पूण्य भूमि में, जहाँ अष्टविनायकों की रचना सृष्टि देवी ने (प्रकृति ने) की है । वहाँ श्री गणेश का क्या महत्त्व है और अष्टविनायक का महत्त्व क्यों है ? ये बातें बहुत से लोगों को मालूम नहीं है । इसका मुझे बहुत आश्चर्य है। हो सकता है जिन्हें सब कुछ पता था या जिन्हें सब कुछ मालुम था ऐसे बड़े-बड़े साधु सन्त आपकी इसी सन्त भूमि में हुए हैं, उन्हें किसी ने बोलने का मौका नहीं दिया या उनकी किसी ने सुनी नहीं। परन्तु | इसके बारे में जितना कहा जाए उतना कम है और एक के जगह सात भाषण भी रखते तो भी श्री गणेश के बारे में बोलने के लिए मुझे वो कम होता । आज का सुमुहूर्त घटपूजन का है। घटस्थापना अनादि है । मतलब जब इस सृष्टि की रचना हुई, (सृष्टि की रचना एक ही समय नहीं हुई वह अनेक बार हुई है।) तब पहले घटस्थापना करनी पड़ी । अब ‘घट’ का क्या मतलब है, यह अत्यन्त गहनता से समझ लेना जरूरी है । प्रथम, ब्रह्मत्त्व में जो स्थिति है, वहाँ परमेश्वर का वास्तव्य होता है । उसे हम अंग्रेजी में Read More …

Sahajayogyanmadhe Dharma Stapna Aur Sahajayog, Dharma has to be established Within मुंबई (भारत)

Dharma Talk [Translation from Marathi to Hindi] HINDI TRANSLATION (Marathi Talk) सहजयोग का ये कार्य कितना खास है। मैं आपको पहले ही बता चूकी हूँ कि मैंने श्री गणेशजी की तरह एक नया मॉडल बनाया है तुम्हारा। ये एक नया तरीका है। और इसे विशेष रूप से आपने ग्रहण किया है। इसका कारण ये है कि आपण उसे ग्रहण करने योग्य हो। मैंने अयोग्य दान नहीं दिया है। आपकी योग्यता को मैं हर क्षण, हर पल जानती हूँ। मैं तो सिर्फ इतना कह सकती हूँ कि ये जो कुछ भी हुआ ये सब माँ के प्यार की वजह से, बहुत ही धीरे से, प्रेम से, सम्वेदनापूर्ण ये कार्य हुआ है। पर अगर आप इसके योग्य नहीं होते तो ये सम्भव नहीं होता। आज भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो इधर-उधर भाग रहे हैं । वे पागल हो गये हैं। अनादिकाल से जो भी शास्त्रों ें कहा गया है उस पर विचार तक नहीं करते हैं ये। जो कहा है, बड़े-बड़़े ज्ञानी, श्रीकृष्ण जैसे महान परमेश्वरी अवतरण से सुनकर भी वे सब कुछ छोड़कर वे लोग नयी-नयी योजनाओं से लोगों को अपने जाल में फँसाते है, उसके बारे में कोई भी विचार ये लोग नहीं करते हैं। किसी भी शास्त्र में, चाहे वो मोहम्मद साहब ने लिखा हो या फिर क्राइस्ट ने कहा हो या श्रीकृष्ण की कही गयी ‘गीता’ हो, इन सब में एक ही तत्व है कि आप अपने ‘स्व’ को समझें। अगर आप अपने अन्दर के ‘स्व’ को जानेंगे तो उसकी शक्ति से आपको लाभ होगा। पर Read More …

Sahajyog Sagalyana Samgra Karto मुंबई (भारत)

Public Program [Hindi Translation from Marathi] HINDI TRANSLATION (Marathi Talk) ऐसी विचित्र कल्पना लेकर के लोग यहाँ आते हैं। ऐसे में आपको अपनी समझदारी से चलना है। समझदारी से कार्य करना है। समझदारी तो बड़ी मुश्किल से आती है मूर्खपना तो बड़ी जल्दी से आ जाता है । ऐसे हालात में आपको अपने समझदारी को लेकर आगे बढ़ना है। मैं माँ हूँ। मैं आपकी मूर्खता और खराबियों के बारे में बताने वाली हूँ। उसे आप मत करिये, इसी में आपकी भलाई है। मैं कोई गुरु नहीं हूँ। मुझे आपसे कुछ भी नहीं चाहिए । मैं तो केवल आपकी भलाई और कल्याण चाहती हूँ। आपके हित के लिए जो अच्छा है वही में आपसे कहूँगी। इसका आप कोई बुरा न माने। अभी कुछ नये लोग आये हुए हैं। उन्हें मैं बता देती हूँ कि अगर किसी को कुछ खराब लग जायेगा तो फिर वो तो गये काम से। वाइब्रेशन्स चले जाएंगे । मैं नहीं निकालती हूँ इसे। (वाइब्रेशन्स को) आप को जो अभी आवाज आयी है वैसी ही आवाज ‘ओम’ जैसे हम कहते हैं उनकी होती है। समझ में आया क्या। मतलब ये जो एनर्जी बहती है और जब वो बहती है पर पूरी तरह से चैनलाइज्ड़ नहीं हुई होती है तब ऐसी आवाज आती है। जब यह चैनलाइज्ड़ होने लगती है तब ऐसी ‘ओम’ की आवाजें कभी अपने कानों में या फिर कभी अपने सिर में आने लगती है, तभी ये समझ लेना चाहिए कि एनर्जीपूर्ण तथा एड़जेस्ट और चैनलाइज्ड नहीं हुआ है इसलिए ऐसी आवाजें आती हैं। जब ऐसी Read More …

Public Program Dhule (भारत)

HINDI TRANSLATION (Marathi Talk) वास्तव में धूलिया नगर का यह बहुत बड़ा सौभाग्य है कि राजकुंवर राऊल जैसी स्त्री यहाँ है। उनके प्रेम के आकर्षण से ही मैं यहाँ आयी हूँ। मैंने उनसे कहा था कि मैं धूलिया एक बार अवश्य आऊंगी। और यहाँ मुझे अंदर से अनुभूति हो रही है कि उनका भक्तिभाव और प्रेम कितना गहन है । हमारे देश में धर्म के संबंध में सब ने बहुत कुछ लिखा हुआ है और बहुत सारी चर्चायें भी हो चुकी हैं। मंदिरो में भी घंटियाँ बजती हैं। लोग चर्च में जाते हैं, मस्जिद | में जाते हैं। धर्म के नाम पर अपने देश में बहुत सारा कार्य हुआ है। परंतु वास्तव में जो कार्य है वह कहीं भी हुआ है ऐसा दिखता नहीं। हम मंदिर में जाते हैं, सब कुछ यथास्थित करते हैं। पूजा- पाठ भी ठीक से करते हैं, घर आते हैं पर ऐसा कुछ लगता नहीं कि हमने कुछ पाया है। हमारे अन्दर अंतरतम में जो शांति है, अन्दर जो प्रेम है ये सब हम कभी भी नहीं प्राप्त करते। कितना भी किया, तो भी ऐसा लगता नहीं कि हम भगवान के पास गये हैं और हमें वहाँ ऐसी माँ मिली है जिन की गोद में सिर रखकर हम आराम से कह सकते हैं कि हमें अब कुछ नहीं करना है। मेरा ऐसा कहना नहीं है कि मनुष्य ने मंदिर नहीं जाना चाहिये । जाईये, अवश्य जाईये। अगर आप को मधु (शहद) की पहचान कर लेनी है, तो यह ही ठीक रहेगा कि पहले फूल की बातें Read More …