Shri Ganesha Puja

(India)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

1994-12-31 Shri Ganesha Puja Kalwe

English Transcript

Today I’m talking about Shri Ganesha. Now we’ll be parting we will be going to our own country and I must congratulate you the way you have come up to the expectations of Shri Ganesha. I’m very happy with you people. I wish Indians would learn a lesson from you that you are the people who don’t have this tradition; you don’t have Shri Ganesha established there. Still somehow you have come up to such a level that I feel very proud of you and all of them should learn a lesson from you.
They are going to the Western life, Western style, Western expression of the filth but you people have accepted it and have changed so much that they have to learn a lesson that’s what I’m telling them. It’s a very good lesson for them. First you used to come and learned here what was Sahaja Yoga and was respect, what was respecting yourself but I’m very happy to see this time you all have been a ideal example of Sahaja yogis. You tolerated all kinds of inconveniences and you saw [INAUDIABLE ?] of fort of your spirit not of your body and the way you have been behaving I’m over satisfied. I hope you’ll really grow to your spiritual dimensions and try to bring forth in this dimension in other people of your nationality – very important. You see all the bad points of these people and you see where they are going. You are worried about it, you are thinking about it but we have to do something about it so that they take to a very harmonic, real righteous life no use talking and giving big sermons. I’m sure you can do that and you have done it. There are certain points about Sahaja Yoga that you have to understand the precise way of curing your self and curing others. I’m hoping to write a book on that, I hope so if it is finished that will be useful for you to help your self and help others physically, mentally, emotionally and spiritually.
The best part is that the way you have control your children and you have brought them to proper lives and you have saved them of this is really remarkable because in India we have given up all children. We have become extremely [INAUDABLE ?] because they have become very arrogant and [INAUDABLE ?]. And our love is so much for the children but we allow them to do what they like. But you people have really saved your children and they will thank you very much for this.
I would like to thank all of you for bring this good work for yourself or others and for your country and I’m sure it will be very successful in a very short time and it will become global understanding of Sahaja Yoga.
May God bless you!

Marathi Transcript

आज हम लोग श्री गणेश की पूजा करेंगे | श्री गणेश की पूजा करना अत्यावश्यक है | उन्हींकी वजहसे सरे संसार में पावित्र्य फैला है | आज संसार में जो जो उपद्रव हम देखते है उसका कारण यही है की हमने अभी तक अपने माहात्म्य को नहीं पहचाना | और हम लोग ये नहीं जानते के हम इस संसार में किसलिए आए और हम किस कार्य में पड़े हुए है ,हमें क्या करना चाहिए | इस चीज को समजनेकेलिए ही सहजयोग आज संसार में आया है | जो कुछ भी कलियुग की घोर दशा है उसे आप जानते है | मुझे वो बतानेकी उतनी जरुरत नहीं है | पर हमे जान लेना चाहिए की मनुष्य जो है वो धर्म से परावृत हो गया | जैसे की उसकी जो श्रद्धा ए थी वो भी ऊपरी तरह से आ  गया | उसमें आंतरिकता नहीं रही | वो समझ नहीं पाता है की श्री गणेश को मानना माने क्या है | अपने जीवन में क्या चीजे होनी चाहिए | लेकिन ये बड़ा मुश्किल है ,कितना भी समझाइए ,कितना भी कहिए लेकिन मनुष्य ये समझ नहीं पाता है के श्री गणेश को हम किस तरह से मान सकते है | अगर वो एक तरफ श्री गणेश की एक आशीर्वाद से प्लावित है तो वो बड़े पवित्र है वो सोचते है | अगर आप बहोत ईमानदार आदमी है तो ठीक है लेकिन नैतिकतामे आप कम है तो गलत है | अगर आप संसार के जो कुछ भी प्रश्न है उसकी ओर ध्यान नहीं देते तो भी आपमें अभी संतुलन नहीं आया | और जो उनकी शक्तिया है वो अगर आपके अंदर जागृत करना है तो वो कुण्डलिनी के ही द्वारा जागृत  की जा सकती है दूसरा और उसका कोई रास्ता नहीं | 

उनकी जो विशेष चार शक्तिया है ,उसमेसे ओरभी अति विशेष है वो है सुबुद्धि | ये शक्तिया हमारे अंदर प्रज्वलित होने के लिए हमें चाहिए की हम कुण्डलिनीका जागरण करके अपने अंदर के गणेश को संतुष्ट करले | गणेश की नाराजी भी बहोत नुकसानदेह हो सकती है | उनका स्वाभाव तो एकतरफ बहोत शांत बहोत ठंडा है | और दूसरी तरफ वो देखते है की मनुष्य किस गलत रास्ते पे चल पड़ा है तो उससे इसकदर नाराज होते है ,जैसे की मैंने पूना में तीन बार कहा था की आप अगर गणेश जी की स्थापना करके उसके सामने ये गंदे डान्स और डिस्को ये सब गंदे गाने गाइएगा तो जरूर आप पर नाराज हो जाएंगे और भूकंप होगा | और वही  बात हुई भूकंप हो गया | अब आपको ध्यान देना चाहिए की हम कौनसी कौनसी गन्दी चीजोंकी ओर हम चलते है | पहले परदेसियोंको म्लेच्छ कहते थे | माने उनकी इच्छा सब मल की ओर जाती थी | लेकिन अब हम लोग भी म्लेच्छ हो गए | गंदे गंदे गाने हमें अच्छे लगते है ,गंदे पिक्चर हम देखते है | गन्दी वार्तालाप हम करते है ,जबानसे गन्दी बाते करते है | ये सब गणेशजीको बिलकुल पसंद नहीं | हमारी भाषा शुद्ध होनी चाहिए ,हमारे विचार शुद्ध होने चाहिए और हमारे शौक भी शुद्ध होने चाहिए | ये अब धीरे धीरे अपने यहाँ आने लग गया है | इस तरह की जब हम अपने अंदर भावना रखते है तभी हम अपनी इज्जत करते है तभी हम सोचते है की हमारी जिंदगीका कोई माहात्म्य है | हम कोई रास्ते पे पड़े लोग नहीं है | हम भारतीय है और भारत में जन्म लेनेके लिए अनेक वर्ष की तपस्या चाहिए ,अनेक वर्षोंके पुण्यके बाद ही आप भारत में जन्म लेते है | आपका जीवन ऐसी उछली चीजोंके लिए नहीं है | ये समजनेकी कोशिश करनी चाहिए | उधर सिद्धि विनायक मैं देखती हूँ लाइन लगी हुई है ,पर आप गणेश जीके लिए क्या कर रहे है | अगर आप लोग ये गंदे काम पसंद करना न करे तो ये सब ख़त्म हो जाएगा | गन्दी जगह जाना ,खाना खाना ,गन्दी बाते करना ये सब चीजे अपने यहाँ बड़ी ही सामान्य तोरपे लोग करने लग गए है | अब भी देखती हूँ रास्ते पर खड़े खड़े लोग खा रहे है ,कही जा रहे है ,गन्दी बाते कर रहे है ,ओरतोपे रिमार्क्स कर रहे है उनको गन्दी निगाह से देख रहे है | इसाने तो ऐसा कहा था अगर आप एक ऑंख  से दो बार किसी औरत की तरफ देखे तो अपनी आँख निकल के फेंक दीजिए | अगर अपने एक हात से कोई गंदा काम किया तो वो हात काट दीजिए \ मैंने ऐसा कोई ईसाई देखा नहीं अभी तक जिसकी आंख निकल गई हो जिसका हात कट गया हो पर वो अपनेको इसाई कहते है नाप पर असली में तो नहीं | 

और हमारे देश में खास करके लिखा हुआ है की सबमें एकही आत्मा का वास है ,वो किसी भी जाती पाती का नहीं हो सकता | जात जो है मनुष्य के जन्म के अनुसार नहीं बनाई गई थी उसके कर्म के अनुसार बनाई गई थी | और जो लोग जात को लेके इतना माहात्म्य देते है वो भारतीय हो ही नहीं सकते | इसलिए जानना चाहिए की हम लोग कितने काम ऐसे करते है जो बिलकुल धरम के विरोध में है | और जब हम ऐसे कार्य करते है तो हमारे अंदर गणेशजी नाराज होते है | गणेशजीका नाराज होना भी बड़ाही दुखप्रद है क्योकि उनके नाराजगीसे हमें अनेक ऐसी बीमारिया हो जाती है किकिसी तरह से उसका कोई उपाय ही नहीं है | जिसको कहते है की इनक्युरेबल बीमारिया हो जाती है  इसलिए गणेशजीको हमेशा प्रसन्न रखना चाहिए | सबसे पहले तो इस पृथ्वी को, जो माँ है  ,पृथ्वीतत्व को जिससे वो गढ़े हुए है उसको बहोत मान देना चाहिए | पहले जमानेमें लोग उठनेसे पहले जमीन को छूते थे तो पहले माँ से क्षमा मांगते थे की तुझे मैं पैर से छूता हु क्षमा कर दो | इतना हमारे यहाँ मान था | आज कल तो कोई माबाप का ही मान नहीं रखता तो जमीन का कौन रखेगा | हरएक चीज को नमस्कार करना ,हरएक के प्रति श्रद्धा रखना ये अपने देश का एक विशेष स्वरुप था | अब वो सब नहीं रहा न बच्चे माबाप का मान रखते है ,न पति  पत्नीकी  परवाह करते है ,न पत्नी पतिकी परवाह करती है ,कोईभी संसारके जितने रिश्ते है वो बड़े मान पान से चलने चाहिए |   

और  इस प्रकार नाना धरम अपने देश में बताए गए ,राष्ट्र धर्म बताया गया है | अब विलायती चीजे लेना ,विलायती कपडे पहनना ,विलायती डान्स करना और विलायती उच्श्रंखल सब चीजे उठा लेना ये कोई बड़ी अकल की बात नहीं है | हमसे विलायती लोग सिख सकते है ,हम उन्हें सीखा सकते है क्योंकि अपनी संस्कृति इतनी ऊँची है वो भी श्री गणेश के आधार पर | खास कर इस महाराष्ट्र में अष्टविनायक बैठे हुए है ,महा गणेश बैठे हुए है तो यहाँ पर इस कदर गन्दगी मैं देखती हूँ तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता है | की लोग भूल गए की वो कहा बैठे हुए है ,कहा आए हुए  है |  तो अपनी आप इज्जत करे ,अपनेको आप समझे ,जब आप अपनी आत्मा को पहचानेंगे तो आप आश्चर्य चकित होंगे की आपके अंदर अनेक शक्तिया है और वो शक्तियोंको अपने जगाया नहीं इसलिए दुनिया भर की गरीबिया ,दुनिया भर की परेशानिया और दुनिया भर की गन्दगी आ गई | आवश्यक है की हम गणेशजीकी पूजा  जो बाह्य में करते है वो अंतर में भी करे | और देखे की हममे गणेश जी के कौनसे गुण आए | और ऐसी कौनसी हमारी विशेषता है की उनके आशीर्वाद से हम प्रसादित हो | ऐसे हमारे अंदर गुण  आने चाहिए | एकदुसरेकी इज्जत करना ,एकदूसरोंको मान रखना ये साडी चीजे बताई गई लेकिन सोचते ये क्या है ? परदेश में ऐसा कौन करता है और परदेश में तो इतनी समृद्धि है | आजकल उनकी समृद्धिकी हालत ख़राब हो गई | जिस चीज को वो समृद्धि सजाते थे अब समाज गए की वो कोई खास चीज नहीं है | और वो भी उसमे भी गिरे जा रहे है | उन लोगोकी जो भी बाते है वो बड़ी बाह्य है | रास्ते उनके  साफ सुतरे होंगे लेकिन दिल बहोत ख़राब है | उनके यहाँ जो जो  चीजे मैंने देखि वो यही है की अंदर बिलकुल गन्दगी है और बाह्य में दिखानेके लिए सब अच्छा | सारा इंतजाम वहा पर  बिगडनेका  है |कोई बच्चा अगर वहा जाए तो उससे शराब नहीं छूट सकती ,उसे सिगरेट पिलाई जाती है ,गन्दी जगह ले जाऍंगे ,डिस्को में ले जाएंगे ,ये करेंगे वो करेंगे इस कदर वह गन्दगी है की ,घोर घोर घोर कलियुग वहाँ बसा है | हम लोग सोचते है की वो लोग बड़े सुख में है | माँ बाप कहासे सुखी होंगे जिनके बच्चे ड्रग्ज लेते है | हम लोगोंको  अगर ठीक रास्ते पे रहना है और अपने अंदर के आनंद को उठाना है जो सबसे बड़ी हमारे पास संपत्ति है तो जरुरी है की अपनी पवित्रयताको बचाए | और अपनेको बहोतही समझबूझ करके और अपना जो व्यवहार है वो एक  शान से बिताए | ये नहीं की भिकारी बनके गंदगीसे अपनेको मलते रहे | 

हिन्दुस्थानियोंकी जो परिप्रशंसा है |  ,अभी एक मुझे चायनीज साब मिले थे तो कहने लगे की अच्छा यही वो सम्पदा है जो हमने बहोत सालोंसे पढ़ा था की हिन्दुस्थान में अध्यात्म की सम्पदा बड़ी जबरदस्त है | अब अध्यात्म की सम्पदा है इसमें कोई शक नहीं | पर उधर रुझान होना चाहिए | रुझान तो हम लोगोंको म्लेच्छ की ओर है | मल की ओर ही हमारी इच्छा जाएगी | जो चीज हमें मलिन करेगी उधर ही हम दौड़ेंगे | तो ये सुंदरता अपने अंदर है वो कैसे प्रगट होगी ,वो कैसे दिखाई देगी ये देखना है | इसलिए ये जरुरी है की गणेश की पूजा करते वक्त ध्यान रखे की अपने अंदर भी गणेश की स्थापना करे | नहीं तो उनकी नाराजगी दूर करना बड़ा कठिन है ,उनको समझाना बहोत मुश्किल है | वो किसी चीज को पवित्रता से ऊँचा नहीं मानते ,उनके सामने कोई बहस नहीं चलती ,उनको कोई चीज से समझाया नहीं जाता | उन्होंने जो पवित्रता के बंधन बनाए हुए है उसमे रहनेसे हमें भी सुख मिलता ओर वो भी प्रसन्न रहते | 

मराठी =

आज पूजे मध्ये सगळ्यांनी निश्चय करायचा कि आम्ही आपलं आयुष्य श्री गणेशाच्या चरणी वाहून घेऊ आणि पवित्रता आपल्या मध्ये आणून घेऊ . त्या पवित्रतेत आम्ही आमच्या मुलांनाही आणू .  त्यानाही आम्ही चांगल्या मार्गावर ठेऊ त्यांनाही आम्ही चांगलं शिक्षण घरात देऊ आणि चांगलं वळण लावू  . त्यात घाबरू नये ,शिस्त हि मुलांना लावलीच पाहिजे . जर शिस्त हि मुलांना लावली नाही तर तुमच्या डोक्यावर बसतील . म्हणून मी निक्षून सांगते कि जर तुम्हाला गणपती बद्दल खरच प्रेम असेल तर तुम्ही आपल्या मुलांना सांभाळलं पाहिजे . भलतं प्रेम काही कामाचं नाही त्यांनी मूल खराब होतील आणि तुम्हाला फार त्रास होईल . म्हणून ह्या वेळेला त्यांना जी शिस्त पाहिजे ती दिलीच पाहिजे . त्या साठी थोडस वाईट वाटत कधी कधी मुलांना ,आपण बोलतो किंवा मुलांचं असं झालं वैगेरे पण तस काही वाटून घेतलं नाही पाहिजे . हे कर्तव्य आहे आणि आपलं कर्तव्य हे केलाच पाहिजे असं समजून जर केलं तर ती जी समोर येणारी वाईट पिढी आहे ती आपण टाळू शकू . आणि त्याला आपण योग्य रस्त्यावर अनु शकू . हा जो समाज आपला बिघडत चाललाय त्याला जर ठीक करायचं असलं तर सर्व प्रथम पालकांनी लक्ष द्यायला पाहिजे . त्यात शिक्षक काही करू शकत नाहीत ,पालकांनी लक्ष दिल पाहिजे . आणि मुलांना हे समजून सांगितलं पाहिजे कि तुम्ही उद्याची पिढी आहात . तुम्हाला या समाजाला सांभाळायचं आहे . या घाणेरड्या समाजात जायचं नाही आहे . ह्या सिनेमा वाल्यांचं सुद्धा दिवाळं वाजवलं पाहिजे . म्हणजे ते असले घाणेरडे पिक्चर काढणार नाहीत ,घाणेरड शिकवणार नाहीत ,आणि घाणेरड्या गोष्टी मुलांना येणार नाहीत . इतकं होईल कि मुलांना कि हे  नकोच अस म्हणतील . आताची मूल  फार चांगली मूल आहेत . जन्मतःच पार झालेली पुष्कळ मूल आपल्या देशात आहेत . पण त्यांना जर नीट वळण लावल नाही त्यांना वाईट काय चांगलं काय समजल नाही तर ती मूल तेच तेच वाईट काम करत रहाणार . म्हणून आज श्री गणेशाच्या चरणी तुम्ही आपल्या मनात ठरवून घ्यायचं कि आम्ही माताजींना दाखवून देऊ कि आम्ही आणि आमची मुलं ,आमचं घरद्वार आणि आमचा समाज हा गणेशाला प्रसन्न करणारा झाला पाहिजे . मला पूर्ण आशा  आहे कि तुम्ही इकडे लक्ष द्याल . बाहेरून गणेशाची स्तुती करण्यात काही नाही ,बाहेरून त्याची प्रार्थना करण्यात किंवा त्याच्या देवळात जाऊन घंटा वाजवण्यात काही अर्थ नाही . आपल्या हृदयात घंटा वाजली पाहिजे . ती जेव्हा वाजेल तेव्हाच हे पावित्र्य पसरेल . आणि त्या पावित्र्यानी सगळ्यांचं भलं होईल आणि उत्तम होईल .सगळ्यांनी सहजयोगा मध्ये जागृती घेतली आहे ,तुम्ही सगळे सहजयोगी आहात तेव्हा तुम्हाला जास्त सांगायला नको . पण बाकीचे जे लोक आहेत नातलग ,तुमचे मुलं बाळ ,लेकी सुना सगळ्या ,सगळ्यांना सहजयोग हा आला पाहिजे . असा निश्चय करूनच आज जायचं . आणि तस घडेल ,आणि तुमची इच्छा असली तर हळदी कुंकू करून त्यांना बोलवून हे सांगा कि सहजयोग घ्या . सहजयोगा शिवाय मार्ग नाही . ते तुम्हाला पाहूनही ते सहजयोग घेतील . अशी व्यवस्था आहे . तेव्हा श्री गणेशाला जे रुचेल त्याला जे आवडेल तसच आपण केलं पाहिजे . नुसतं त्याला मोदक देऊन काय फायद्याचं . मोदकांमध्ये काय आहे ते पाहिलं पाहिजे . मोदक मध्ये जर तुमची सदिच्छा असली ,तुमची जर शुद्ध इच्छा असली तर च त्याला ती पसंत आहे नाहीतर बाकीचं मोदक तर त्याला काही नको . तेव्हा आता शुद्ध इच्छा ठेवायची ,शुद्ध इच्छा म्हणजे कुंडलिनी आणि हि शुद्ध इच्छा म्हणजे आम्हाला सहजयोगा मध्ये पूर्ण पणे उतरू द्या तसच आमच्या घराण्यातले सर्व लोकांना सहजयोगाचा लाभ होऊद्या . सगळ्यांना अनंत आशीर्वाद .