Shakti Puja

(India)

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Shakti Puja. Kalwe (India), 31 December 1997.

आज हम लोग शक्ति की पूजा करनेके लिए एकत्रित हुए है | शक्ति का मतलब   पूरी  ही  शक्तिया | और किसी एक विशेष शक्ति की बात नहीं | ये पूरी शक्तिया हमारे  हर एक चक्र पे अलग अलग स्थान पर विराजित है | और इस शक्ति के बगैर किसी भी देवता का कार्य नहीं हो सकता | जैसे आप जानते है की कृष्ण की शक्ति राधा है | और राम की शक्ति सीता और विष्णु की  शक्ति लक्ष्मी | इसी प्रकार हर जगह शक्ति का सहवास देवताओंके साथ है | पर देवता लोग शक्ति के बगैर कार्य नहीं कर सकते | वो शक्ति एक मात्र आपके अनाहत चक्र में बीचोबीच जगदम्बा स्वरूपिणी विराजमान है | ये जगदम्बा शक्ति बहोत शक्तिमान है | उससे आगे गुज़रनेके बाद आप जानते है की कहि वो माता स्वरुप और वो कही पत्नी स्वरुप देवताओंके साथ रहती है | तो शक्ति का पूजन माने सारे  ही देवताओंके शक्तिका पूजन आज होनेवाला है | इन शक्तियोंके बिगड़ जाने सेही हमारे चक्र ख़राब हो जाते हैऔर उसी कारण हमारे शारीरिक ,मानसिक ,बौद्धिक अदि जो भी हमारी समस्याए है वो खड़ी हो जाती है | इसलिए इन शक्तियोंको हमेशा प्रसन्न रखना | कहा जाता है की ”देवी प्रसन्नो भवे ”| देवी प्रसन्न रहनी चाहिए | देवी को अप्रसन्न करनेसे न जाने क्या हो जाए | अब कुण्डलिनी के जागरण से इस शक्ति को और एक विशेष शक्ति मिली | इन शक्तियोंमे और एक विशेषता होती है | वो ये है की जो सर्वव्यापी शक्ति ,जो परम चैतन्य है जो आदिशक्ति की शक्ति है उससे इसकी एकाकारिता एकदम हो जाती है | उस एकाकारिता के कारण इसके अंदर वो शक्ति ा जाती है | इन छोटी छोटी जिनको कहना चाहिए जो विभक्त शक्तिया है उसमे पूरी तरहसे एकाकारिता हो के शक्ति का संचार हो जाता है | माने  ये समझलो की आपकी रिधय की शक्ति कमजोर हो गई है तो उसका सबंध जब इस परम चैतन्य से हो जाता है तो वो निर्मल शक्ति शक्ति शालिनी होजाती है | और उसका सन्देश सारे शक्तियोंके पास पहुँच जाता है की अब कोई फिकर  करनेकी बात नहीं है | अब ये शक्ति जो है प्रबल हो गई | वो शक्ति जो है वो स्त्री स्वरुप है | और देवता जो है वो पुरुष स्वरुप है | तो स्त्री का मान रखना ,स्त्री का आदर रखना ,गृहलक्ष्मी को गृहलक्ष्मी जैसे रखना अदि बहोत जरुरी बाते है जो हमारे यहाँ पुरुष है इनको सिखना चाहिए | 

इसका मतलब ये नहीं की औरते उनको हमेशा लेक्चर झाड़ते रहे ,या उनसे बिगड़ते रहे | ओरतोंको तो गृहलक्ष्मी के स्वरुप में रहके अपने पती ,अपने बच्चे ,घरद्वार सबकी सेवा तो करनी होती है | उसको तो एकही काम होता है पर पतिको तो हजारो काम होते है | और वो ठीक से निभाए ,उसको ठीक से संभाले ये बहोत जरुरी है | लेकिन पतीका कार्य होता है अपनी पत्नी को देवी स्वरुप माने। अपने पत्नीको घरकी शक्ति माने | और उसके साथ जो सम्बन्ध हो वो निश्चल और शुद्ध हो | मनुष्य कभीकभी ये सोचने लगता है की वो जैसे चाहे चले और ठीक है क्योंकि पुरुष है | ये उसको बड़ी गलतफैमी है | इस तरह से करनेसे उसपे जो संकट आने है वो एते है | और पत्नी कितने भी वो संकट झेले तो भी उसका कुछ कह नहीं सकते | क्योंकी आप अगर घरके स्त्री को सताएँगे तो वहा पर देवताओंका रमण नहीं हो सकता | घरकी औरत को जिद नहीं करनी चाहिए ,पति को खुश रखना चाहिए ,घर द्वार को ठीक रखना चाहिए | ये तो बात सही है पर सबसे बड़ी बात ये है की घर की गृहलक्ष्मी जो है वो घरकी शक्ति है | इसलिए उससे एक तरह की बड़ी गहरी एकाकारिता साध्य करनी चाहिए | जब ये बेबनाव हो जाता है तो औरत भी एकतरहसे समझदारी छोड़के नाराज हो जाती है | कभी कभी बहोत ज्यादा स्पोटक होती है | कभी झगड़ा करती है | उससे बच्चोंपे बुरा असर आता है | और फिर समाज टूटने लग जाता है | समाज जब टूटता जाएगा तो बच्चे भी टूटते जाएंगे | उनके अंदर भी गलत गलत चीजे ा जाएंगी | और वो भी रास्ते पर नहीं आएंगे | और जो घरकी डिसिप्लिन है वो ख़राब हो जाएगी | जिस घरमे डिसिप्लिन नहीं होगी उसके बच्चे ख़राब हो जाएंगे उसका समाज ख़राब हो जाएगा | आज विलायत में क्या हो रहा है | वहा  की स्त्री इसकी जिम्मेदारी नहीं समजती की उसको समाज को बनाके रखना है | समजदारी से रहना है और पूरी समय लड़ती रहती है | लड़ने झगडनेसे कभीभी घरमें शांति नहीं आ सकती | शांति लानेके लिए क्या करना है तो पतिसे सुझाव करना है उससे बात करनी है की आखिर क्या बात है | क्यों न हम दोनों प्रेम के साथ रहे जिससे हमारे बच्चे ठीक रहे | परदेसमें कुछ भी सीखनेका नहीं है | क्यों की उनका समाज बिलकुल विचलित हो गया है | एक एक औरत है वहा आठ आठ शादिया करती है | और रईस हो जाती है | उसको बस पैसेकी लालच है | अपनी सामाजिक स्तिति के लिए जिम्मेदार नहीं है ,वो नहीं सोचती की हमारा समाज मेरे सरपे बैठा हुआ है | 

    आज भी हिन्दुस्थान का समाज इतना बिगड़ा नहीं है | उसका कारन माताए अच्छी है | पर माताओंको भी जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए ,समझाना चाहिए ,उनसे दोस्ती करनी चाहिए | और उनको अपने बराबर समजके ठीक रास्ते पे रखना चाहिए | अगर हमारा समाज ठीक हो जाए तो जो दुविधाए में हम पड़े है जो हम सुनते है समाज में की खूनखराबी हो रही है ,बॉम्ब फुट रहे है ,फलाना हो रहा है इस तरह का आशंकित जीवन जो हमारे उपर लाद गया है उसका कारण है इन लोगोंकी माए | माओने अगर इन बच्चोको ठीक तरह से रखा होता तो आज वो इस तरह से बेकाबू नहीं होते | इस तरह से गंदे काम नहीं करते | उनको एक तरह से ऐसा जीवन मिलजाना चाहिए की जो अत्यंत पवित्र हो ,और वो अपने पवित्रता को हमेशा माने और उसकी स्वच्छता रखे | क्योंकि जब पवित्र जीवन होगा तभी आपकी शक्ति जो है वो चलेगी नहीं तो शक्ति खतम  हो जाएगी | तो यही सोचना चाहिए की शक्ति का आधार पवित्रता है | और जब उसमे पवित्रता नहीं रह जाएगी तो शक्ति जहा के तहा बैठ जाएगी और आप निशक्त हो जाएंगे | 

अमेरिका जैसे देश में मई देखती हु की बच्चे एकदम निशक्त ,कहते है की पैसट फ़ीस वती लोग अमेरिका में अब या तो बीमार पड़ जाएंगे या पागल हो जाएंगे | उसका कारण है घरमे जो माँ का प्यार ,माँ का दुलार मिलना था वो ठीक से नहीं मिला | और माँ का प्यार और दुलार भी इस तरह का नहीं होना चाहिए की जिससे बच्चे ख़राब हो जाए | उस प्यार दुलार में एकही विचार होना चाहिए की हमारा बच्चा जो है वो इस तरह का बने की एक श्रेष्ट नागरिक होजाए | एक श्रेष्ट मानव हो जाए | और एक श्रेष्ट सहजयोगी हो जाए | इस दृष्टि से आप अगर अपने बच्चोंको ट्रेनिंग देंगे तो अपना समाज एकदम ठीक हो सकता है | और उसके लिए ज्यादा करनेकी जरुरत नहीं है ,थोड़ी देर बच्चे अगर मेडिटेशन करले तो काम खतम | पर अगर बच्चोंको आपने छूट देदी तो नजाने आज कल का जमाना इतना ख़राब है के बच्चे कहिसे कही बहक सकते है | इसलिए आवश्यक है के जो औरते अपने को सोचती है की हम लक्ष्मी है ,फलाना है ,ठिकाना है ,सबसे पहले आप समाज का आधार है | समाज की ओर पुरुष की दृष्टि नहीं होनी और होती भी नहीं | उधर औरतोंकी होनी चाहिए | इसलिए मै हमेशा कहती हु की सहजयोग में औरते कमजोर है आदमी नहीं | इसका कारण मै नहीं समज पाती क्योंकि मै  एक औरत हूँ | ओरतोंको ध्यानधारणा और सहज के बारेमें सब मालूमात होनी बहोत जरुरी है | क्योंकि ओरतोंके ही कारण हम समाज को ठीक कर सकते है | आदमियोंका तो चल ही रहा है मामला | कही उनका राजकारण है तो कही अर्थव्यवस्था है ,ये है ,वो है उससे आपको कोई मतलब नहीं | आप अपने बच्चोंको ठीक करिये और उसके लिए आप भी रोज ध्यान करिए | आप भी आदर करे ,आप भी गहरे उतरे | गहराई लिए हुए कितनी औरते है ? | और जब कभी मिलती है तो अपना ही रोना लेके बैठती है | इसलिए मै आज कह रही हूँ  की आप शक्ति है तो आप शक्ति स्वरूपा  होइए और उससे समाज का भला करना वो करिए | उससे अपने देश का ,अनेक देशोंका कल्याण हो सकता है  | और देशोंके सामने एक बड़ा भारी  उज्वल उदाहरण हो सकता है | लोग देखकर सोचेंगे वा क्या अच्छा है | इस तरह का अपना देश अभी हुआ नहीं | अपने देश में अब भी इतनी खराबियाँ ओरतोंके अंदर आ गई है एक तो फौरन विदेशी चीजोंसे बहोत जल्दी प्रभावित होना ,सिनेमासे प्रभावित होना ,और अपने को कच्चा दिखाना जैसे की सिनेमाकी  नटिया है वैसे बननेकी  कोशिश करना |  

मैंने अभी सोचा था एक लड़की के बारेमें की उसकी शादी करादे तो खबर हुई की शिशेके सामने तीन तीन घंटे बैठी रहती है | तो वो फिर अपने बच्चोंको कब देखेगी ,अपने घरवालोंको कब देखेगी और इतना शिशेके सामने बैठने लायक है क्या | उसकी क्या इतनी जरुरत है और इतना भी करके क्या शकल नीकल रही है वो भी देख लीजिए | हम तो पांच मिनिट से ज्यादा शिशेके सामने नहीं बैठ सकते | वो भी काफी हो गया | और इसी प्रकार फिर बढ़ते बढ़ते लड़किया जो है वो गलत रास्ते पे जाती है | दूसरी वो लड़किया है जो बिगड़ गई है जो कॉन्वेंट की पढ़ी हुई है और इन्होने अंग्रेजी तबियत सीखी हुई है वो इनको निचा दिखती है | उनके निचा दिखानेसे ये लोग भी उसी तरह से चलने लगते है | आपको चाहिए की ऐसे लडकियोंको खुद आप सोचे की ये कहा है | ये तो बिलकुल गुलामी में फसी हुई है | आज वो कपडा आया तो वो पहन लिया कल दूसरा कपडा आया तो वो पहन लिया | घरमें ढेर की ढ़ेर लगाके रख देंगे | इससे मनुष्य की शोभा नहीं बढ़ती और विशेष कर स्त्री की शोभा इस रोज के कपडे बदलनेसे और फैशन करनेसे नहीं होती | अपनी शक्ति की जो भक्ति है वो करना चहिए | उसको समज़ना चहिए | उससे जो आपके अंदर एक अप्रतिम विशेष आशीर्वाद मिलेगा उससे आप सारे ही प्रश्न किसीभी तकलीफ के बगैर ठीक कर सकते है | क्योंकि अब आपकी एकाकारिता इस सर्वव्यापी शक्तिसे हो गई | तो लड़ने झगडनेसे कुछ नहीं होने वाला | शांतिसे ध्यान करके समजदारी रखके अपने बच्चोंको सीधे रास्तेपे लाना चाहिए | अब पति जो है वो बहोत ज्यादा समज लीजिए की राइट साइडेड है ,बहोत सोच रहा है की ये करूँगा वो करूँगा | लेकिन औरत को उसपे   ये नहीं होना चाहिए ,उसको कैसे तरह से मैं समउ ,समां जाना ,अपने घर खानदान में उसको समां जाना चाहिए | समुन्दर है उसको एक तरफ से दबाओं तो दूसरी जगह समां जाता है | इसी प्रकार स्त्री का रिधय होना चाहिए उसको एक तरफ से तकलीफ हुई दूसरी जगह समां जाना चाहिए | समाना माने क्या समाना माने  एकाकारिता | एकाकारिता लानी चाहिए ,अगर वो ये नहीं ला सकती तो वो शक्ति नहीं है | अगर वो झगड़ा करती है ,और सबसे वादविवाद ही करती है तो वो शक्ति नहीं है | सकती का मतलब ही वो है की आप सब चीज में समां सकते हो | सबसे ऊंचे ,कुछ भी हो  उससे आप ऊपर उठ जाए | तभी आप शक्ति है और अगर उससे आप दब  गए तो शक्ति नहीं है | 

स्त्री के बारेमें हमारे देश में अनेक बाते कही गई है और हम हमारे भारत माता को भी अपने माँ के रूप में देखते है | हमारे यहाँ माँ बहोत बड़ी चीज मानी जाती है | क्योंकि वो लड़के को गलत रास्ते से बचाती है | उसको सई तरीकेसे बड़ा करती है | उसको वो ऐसे बहुमूल्य गुण देती है जो उसको जिंदगी भर के लिए पुरे पड़े | ऐसी हालत में आप लोगोंको ये सोचना चहिए क्या हम अपने घरमें शांति ,सुख और आनंद देते है | घर पे पति आया और आप लड़ाई झगड़ा शुरू कर देती है या नहीं तो बस रहने दो ,रहने दो इस तरह से एक अछूता पन | अगर आप घरमें आनंद और प्रेम की सृष्टि करे तो आपके बच्चे ठीक से पनप जाए | उसी प्रकार पुरुषोंके लिए भी के हर समय अपनी बीवीसे मजाक करना कोई बड़ी अच्छी बात नहीं है | नॉर्थ इंडिया में बहोत ज्यादा है बीवी का बड़ा मजाक करते है सुबह शाम | उसमे कोई बड़ी भारी बुद्धि चातुर्य नहीं है | बेकार की बात है | अपने बीवी के गुण देखिए ,जरुरी नहीं की उसको की उसको बखानी है पर उसको समझिए | और उन गुणोंसे परिचित हो के उसका मान पान सब रखना चाहिए | आज मैं इसलिए बात कह रही हु के बहोत  सी औरते सहजयोग में आई है | लेकिन अब भी उनमें कर्म कांड बहोत है | फलाना है शुक्रवार ,खास कर महाराष्ट्र में ज्यादा | बहोत ज्यादा ,आप स्वयं गुरु हो गए आपको कर्मकांड करनेकी क्या जरुरत है | तो जो औरते इस कर्मकांड में फसी है उनको इसमेंसे बचाना है ,उनको समझाना है | और उनको समजाके ये बताना है आफिके अंदर शक्ति है और आप अपनी शक्तिसे ही कार्यान्वित हो सकती है | 

आज बम्बई शहर को देखके मुझे लगता है की इसमें परदेसी संस्कृति बहोत आ गई है | बहोत ज्यादा ,हलाकि अपने सहजयोगी बाहरसे जो आए देखिए किस तरह से साड़ी बाड़ी पहनके क़ायदेसे बैठे है | सब पढ़ीलिखी बड़े घर की लड़किया है लेकिन क़ायदेसे बैठी है | और हमारे यहाँ मैंने जो देखा ये की रत दिन लड़कियोंके शोक ही नहीं पुरे हो रहे | होटलमे जाना ,होटलमे खाना बनाना ,खाना | आता जाता तो कुछ नहीं | और घूमने का शौक ,दुनिया भर के शौक | एक शौक अगर आ जाए की सबको मै  आनंद देने वाली शक्ति हूँ तो ये शौक आप पूरा करे तो देखिए समाज पूरा बदलेगा | और आदमियोंको भी इस चीज का वरण करना चाहिए की,इस चीज को मानना चाहिए | और इसी तरह से स्त्री का मान रखनेसेही हमारा समाज ठीक होगा | क्योकि समाज स्त्री पर बहोत निर्भर है | पुरुषोपे नहीं | अब दूसरी बात हमें सोचनी है वो ये की पुरुषोंके मामलेमें होने देखा है वो यही है की उनके हाथमे राजकारण और देश की अर्थ व्यवस्था ए है | उस और भी उनको ध्यान देना चाहिए | अर्थ व्यवस्था जैसी भी हो बुरी हो अच्छी हो देश के लिए त्याग करना चाइए | हमें तो आश्चर्य लगता है की हम दो दुनिया में रहे | हम छोटे थे तब हमारे पिताजी जेल में माताजी जेल में ,घरमे कोई नहीं और हम अच्छे बड़े घरसे निकलके झोपड़ियोमे रहते थे | हम बहोत खुश थे | सारा पैसा हमारे माताजीके जेवर उन्होंने गांधीजीको दे डाले | इतनी त्यागमई प्रवृति थी ,हमारे पिताजी इतने त्यागमई थे | उनके पास इतने महंगे महंगे सूट थे जब वो कांग्रेस में आए तो उन्होंने चौराहे पे जाके सब जला दिया | वो लोग कुछ और ही थे | हमने जो लोग देखे वो कुछ और ही थे | ऐसे तो आज कल कोई देखा ही नहीं जाता जो त्याग की बात करता हो | ज्यादा तर लोग पैसा कैसे कमाना चाहिए ,किसका जेब कैसे काटना चाहिए यही सोचते है | वो लोग भी राजकरण में रहे वो लोग भी मेंबर पार्लमेन्ट थे और वो लोग भी कॉस्टिट्यूशन के मेंबर थे | लेकिन उनमें सिर्फ त्याग की भावना थी | मैंने तो देखा है ,अच्छा चलो ये कार्पेट रखा है न देदो बेच डालेंगे ,उससे ही कुछ पैसा मिल जाएगा | जो घरमें रखा है देदो क्या करनेका है | इतने त्याग वाले ऐसे लोग हमने देखे है और उसके बाद आज कल ये जो भिकारी सबके पैसे मार रहे है वो भी देख रहे है | बहोत दुःख लगता है ,की इतना अंतर कैसे आ गया ,पचास साल में ये क्या हो गया | कहासे कहा ये अपना देश कैसे चला गया | इतनी लालसा इतना पैसा करोडो रुपये होंगे तो भी उनको समाधान नहीं | तो भी और किसी तरह से और जोड़ो और जोड़ो  और जोड़ो और सत्ता के पीछे दौड़ रहे | ये पुरुषोंको समझना चाहिए की हमने क्या त्याग किया | हमारे फॅमिली के लिए  हमने क्या त्याग किया | हमने अपने देश के लिए क्या त्याग किया | हमने इस विश्व के लिए क्या त्याग किया | कुछ तो हमने दिया या ऐसेही हम आ गए और दुनिया को लूट कर चले गए | अपने राजकारणी लोग ऐसा करते है ,उनको मालूम नहीं कितना महान पाप है | ये तो जीवन इतनासा है ,और इसके बाद का जो जीवन काटना होगा तब पता चल जाएगा सबको जिन्होंने अपने देश के सारे पैसे लूट लाट के अपनी जेबे भरी है | और फिर हमारा देश गरीब है ,ऐसे चोर लोग अगर अपने देश के राजकारणी नेता होंगे तो और क्या होगा | और अबका इलेक्शन आ रहा है तो किसी चोर को वोट मत देना | सहजयोगियोंको निश्चय कर लेना है की चोर को वोट मत दो | इश्तीहार लगा देना चाहिए की चोर को वोट मत देना | इन्होने हमारी सारी  सम्पत्ति ,सारा खजाना खाली कर दिया है रिक्त हो गया है ,है नहीं पैसा सब खा खा के करोड़ो  रुपये चले गए | उधर ध्यान ही नहीं इन लोगोंका | तो जिन्होंने आज तक चोरी की और चोरी कर कर के अपने देश को इस तरह से जलील कर दिया है ऐसे लोगोंको आप वोट मत दीजिए | 

मैं कोई किसी पार्टी की तरफ से नहीं बोल रही हूँ पर मैं रिधय से कहती हु की अब आपको उन्ही लोगोंको मदत करनी चाहिए जो ईमानदार है | क्योंकि आप की माँ बहोत ईमानदार है | आप अगर बेईमान होते तो आपको सहजयोग नहीं मिलता | इसलिए बहोत आवश्यक है की आप अपनी कीमत आके की आप क्या है | चलो दोचार कमी कपडे ले लिए ,दोचार जेवर कम  ले लिए तो क्या हो गया | किन्तु त्याग की बुद्धि बहोत जबरदस्त है ,वो बड़ी मदत करती है | और उसीसे अपना देश बदलेगा | वो त्याग करनेवाले लोग कहा गए वो पता नहीं सब जेल में गए और अब यहाँ है नहीं | दुनियामें बहोत कम दिखाई देते है | इसलिए एक चीज है के हम सत्य पे चले और हम किसीको भी लालच ,रिशवत कभी  भी नहीं देंगे | कभी नहीं देंगे | ऐसे आप लोग तय करले तो बम्बई से सब अपना बिस्तर बांध के सब भाग जाएंगे | आप लोग काफी है और मै आपको आज आज्ञा करती हु इलेक्शन में आप जा जा के नारे लगाए की चोरोंको वोट मत दो | और उसके बड़े बड़े बैनर्स बनाए और उस पर लिखे की चोरोने देश खा लिया है ,चोरोंको वोट मत दो | हर एक गाँवमे | 

आता सगळ्यांना सांगितल हिंदी भाषेत ,मराठी लोक हिंदी बिंदी शिकलेत का नाही का मराठीतच गुंतले आहेत . स्वतः म्हणजे मराठी इतकी सुंदर भाषा आहे कि त्या भाषेला तुम्ही जो पर्यंत हिंदी शिकणार नाही तो पर्यंत वैशिष्ट्य येणार नाही .  तेव्हा ज्यांना मराठीच येत ,आम्ही आता मराठीच आहोत ते काय आता चालणार नाही . देवाला सुद्धा आता इंग्लिश समजू लागलय . मग तुम्हाला कमीतकमी हिंदी आली पाहिजे . कमीतकमी ,इंग्लिश आल तर बरच आहे पण निदान हिंदी तर बोलता आल पाहिजे . पण मराठी लोकांचा हेका फार आहे प्रत्येक गोष्टीत . हेकेखोर लोक आहेत आणि घमेंड फार ,आम्ही मराठी म्हणजे शिवाजी महाराज ,सगळे शिवाजी महाराज आणि सगळ्या जिजाया . काही समजतच नाही या लोकांचं . तेव्हा नम्रता धारण करून सहजयोगात उतरलं पाहिजे . नम्रता हा शब्द इकडे नाही आहे . कुणी वापरत नाही ,वापरला तरी ती नम्रता असायला पाहिजे . मला नमस्कार करतील ,जितक्यांना  मी त्यांना बघेन तितक्यांना  नमस्कार पण बाकी ,बाकी काय . तेव्हा मराठी लोकांची जी आढ्यता आहे आणि जो हेकेखोर पणा आहे तो मी इथून तिथून पाहिलेला आहे . त्यातून अनेक गुरु लागलेले आहेत अनेक कर्मकांड लागलेली आहेत . ते सुटणार नाहीत . मग यांचं भलं कधी होणार . नावाला सहजयोगी ,माझा बॅच लावून कुणी सहजयोगी होणार नाही आहे . हृदया पासून सहजयोगी व्हायला पाहिजे . आणि त्यात पहिल्यांदा नम्रता , गोडवा आणि दुसऱ्यांच्या प्रति अत्यंत कळकळ असायला पाहिजे . तुमची आई कशी आहे तस बनण्याचा प्रयत्न करा . नम्रता पूर्वक राहणं शिका . नाहीतर रस्त्यावर जशा बायका भांडतात तशा च मी पाहिलेत सहजयोगिनी भांडताना . मला आश्चर्य वाटल . अहो तुम्ही सहजयोगिनी आहात ,तुम्ही योगी जनांमध्ये आलात ,तुम्हाला असा भांडकुदळ पणा कुठून येतो . पण नम्रता म्हणजे कुणाच्याच पाचवीला पुजलेली नाही असं दिसतय . तेव्हा माझी अत्यन्त कळकळीची विनंती आहे कि मराठी बायकांनी नम्रता धारण करा . आणि पुरुषांनी सुद्धा . पुरुष जरा कुठे शिपाई झाला तर त्याच डोकं खराब होत महाराष्ट्रात . तस तिकडे उत्तरेला नाही . आश्चर्याची गोष्ट आहे कि कमिशनर असला तरी अगदी बरोबर ठिकाणावर बसतो . जराशी नोकरी मिळाली कि त्याच डोक फिरलं म्हणून समजा म्हणजे महाराष्ट्रीयन . इतक्या उथळ माथ्याचे लोक झाले आहेत . तेव्हा मला समजत नाही आता कि कस समजावून सांगायचं कि अहो गहनात उतरा . काय मिळवायचं आहे ते जाणून घ्या . तुमच्या इथे जेवढ्या संत साधूंनी जन्म घेतला ते सगळे हारून ,सगळ्यांना नमस्कार करून ,समाधी घेऊन गेले . नकोरे बाबा या महाराष्ट्रात रहायला . कुणाला सोडलं नाही . छळून छळून काढलं ,माझ्या हि मागे लागले होते . तेव्हा सगळ्यांशी प्रेमाने बोला . सगळ्यांचा आदर ठेवा . आणि तो मानव आहे मी मानव आहे आणि माझी मानवता त्याला दिसली पाहिजे असा प्रयत्न केला पाहिजे . नसत्या फुशारक्या मारण्यात आणि स्वतःचा मोठेपणा स्वतः वरती लादून  घेण्यात काही अर्थ नाही . आता माझा अनुभवच झालेला आहे कि मी बघते नॉर्थ इंडिया चे लोक मी समजायचे हे लोक बेकार आहेत पण महाराष्ट्रात सगळ्यात जास्त बेकार लोक आहेत . खेडोपाडी मी गेले ,कुठे कुठे मी गेले पण नम्रताच नाही त्या लोकांना . आणि जे मोठे लोक आहेत त्यांची भलतीच शिस्त चालते . मग मूल कशी ठीक होणार . पुरुष तर एव्हडे शिस्त वाले कि विचारू नका कि कुठून मिलिट्रीतून आलेत कि काय असं वाटत मला . अहो प्रेमळ पणा ,सगळ्यांशी प्रेमाने वागणं ,सगळ्यांना आपलीच मूल समजणं ,पण आपल्याच मुलांना तुम्ही त्रास देता तर दुसऱ्यांना काय समजणार . तर महाराष्ट्रातले जे गुण आहेत ते नम्रतेत आले पाहिजेत . गणपतीची नम्रता आपल्याला माहित आहे मला सांगायला नको . तशीच नम्रता यायला पाहिजे . तोच गोडवा यायला पाहिजे . तस दिसत नाही . आणि एकदुसऱ्यांशी मानाने बोललं पाहिजे . कारण तुम्ही सगळे योगिजन आहात . सगळ्यांनी एकदुसऱ्याचा मान केला पाहिजे ,हे सगळे योगी आहेत . म्हणजे एकदा मी सांगत होते कि चोखामेळा आणि हि मंडळी निघाली ,त्यांचं म्हणणं हा महार आहे जातीचा तर या वरती तुकारामांनी अभंग लिहिले आहेत कि मी महार झालो हेच बर झालं . अशी अनेक उदाहरण या साधुसंतांची आहेत . पण ते आले त्यांना तुम्ही झोडपून काढलं आणि ते निघून गेले . काही डोक्यात गेलेलं नाही लोकांच्या . काही समज आलेली नाही . कोणच्याही तऱ्हेचं प्रेम असं तुमच्या आदर्शात नाहीच . 

मी काँग्रेस चे ते युवा शक्तीचे आले त्यांना मी विचारलं काय हो तुमचं धोरण काय ? धोरण ,धोरण काहीच नाही . मग धोरण शिवाय असे झाले का ? नाही आमचे जे मोठे सांगतात तेच आम्ही करतो . म्हंटल तुमचे मोठे जे  सगळे पैसे खातात तुम्ही पण तेच करता का ? हो म्हणे आम्ही तेच करतो . अगदी भोळे पणाने . तर महामूर्खानच इथं काम नाही आहे . मूढांच काम नाही आहे . परत परत त्याला पाहिजेत जातीचे . आता कसही  करून महाराष्ट्राची स्तिती नीट करावी , आणि इथल्या तरुण मुलांचा आदर ठेवावा . त्यांचा मान ठेवला पाहिजे . मला मुळीच आवडलं नाही तुम्हाला रानावनात पाठवलं आणि तुम्हाला पूजेलाही बसू दिल नाही ,मी स्पष्ट सांगितलं असं करून चालणार नाही . प्रेम हे मुख्य आहे . आपण किती कुणावर प्रेम करतो ते मोजायचं नसत . नुसतं ते प्रेम वाहत . निर्वाज्य वाहील पाहिजे . सगळ्यांना प्रेमाने ,आदराने वागून एक नवीन आम्हाला सहजयोग्यांचा समाज निर्माण करायचा आहे . केलाय म्हणा पण अजून तेव्हडा चमकत नाही . तो चमकवायला लागेल . ते तुमच्या वागण्याने ,तुमच्या प्रेमाने ओथंबलेल्या शब्दाने ,प्रत्येक गोष्टीने स्पष्ट होईल . आणि आपला समाज अत्यन्त सुंदर समाज होईल , . अत्यन्त सुंदर म्हणून जे वाईट ते नकोच . आणि जे चांगल ते हवं अशी प्रवृत्ती बाळगून सगळ्यांनी राहील पाहिजे . सगळ्यांना माझा अनंत आशीर्वाद .