Shri Krishna Puja

Pune (India)

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Shri Krishna Puja. Place: Pune (India), Date: August 10, 2003

[Marathi Transcript]

हम लोगोंको ये सोचना है के सहजयोग तो बहोत फैल गया और किनारे किनारे पर भी लोग सहजयोग को बहोत मानते है |   लेकिन जब तक हमारे अंदर सहजयोग पूरी तरह से ,व्यवस्तित रूप से प्रगटित नहीं होगा तब तक सहजयोग को लोग मानते है वो मानेंगे नहीं | इसलिए जरुरत है के हम कोशिश करे की अपने अंदर झांके | यही कृष्ण का चरित्र है की हम अपने अंदर झांके और देखे की हमारे अंदर ऐसी कौनसी कौनसी ऐसी चीजे है जो हमे दुविधामें डाल देती है | इसका पता लगाना चाहिए | हमें अपने तरफ देखना चाहिए हमारे अंदर देखना चाहिए | और वो कोई कठिन बात नहीं है | जब हम अपनी शकल देखना चाहते है तो हम शिशेमे देखते है | उसी प्रकार जब हमें अपने आत्मा के दर्शन करने होते है तो हमें देखना चाहिए हमारे अंदर | वो कैसा देखा जाता है | बहोतसे सहजयोगियोने कहा की माँ ये  कैसा देखा जाता है के हमारे अंदर क्या है | उसके लिए जरुरी है के मनुष्य पहले स्वयं ही बहोत नम्र हो जाए | क्योंकि अगर आपमें नम्रता नहीं होंगी तो आप अपने ही विचार लेकर बैठे रहेंगे | तो कृष्ण के लाइफ में पहले दिखाया गया की छोटेसे लड़के के जैसे वो थे | बिलकुल जैसा शिशु होता है | बिलकुल ही अज्ञानी उसी तरह से | उनकी माँ थी ,उसी माँ के सहारे वो बढ़ना चाहते थे | उसी प्रकार आप लोगोंको भी अपने अंदर देखते वक्त ये सोचना चाहिए की हम एक शिशु बालक से है | कृष्ण ने बार बार कहा ,लेकिन जीजस क्राइस ने भी कहा की हम एक छोटे बालक बने | बालक की जो सुबोध स्वाभाव की छाया  है वो आपको देखनी चाहिए | के हम क्या बालक जैसी बाते करते है ,हमारे अंदर कौनसा ऐसा गुण है के हम बालक बन जाते है | अब बालक माने अबोधिता ,भोलापन | और वो भोलेपनसे हमको अपनी तरफ देखना है | और उसीसे अपनेको ढकना है | और वो भोलापन बड़ा प्यारा होता है | आप अगर बच्चोंको देखें तो उनपे उपर  जो प्यार चढ़ता है वो इसलिए की वो भोले है | वो चालाकी नहीं जानते ,अपना महत्त्व नहीं जानते ,कुछ भी नहीं | क्या जानते है वो ?| वो जानते ये है की ये सब लोग हमारे कोई है | ये हमारे भाई बहन और ये सब कुछ है | लेकिन ये किस तरह से उन्होंने जाना ये प्रश्न है | बच्चोने जिस तरह से जाना उसी तरह से हम भी जाने | के हम भी एक भोले बालक और एक भोलापन है हममें | 

अब बहोतसे सहजयोगी ऐसे है वो बहोत कपटी ,चालाकी दिखाने ,कोई आते है ,वो सोचते है की हम बहोत होशियार है ,कोई आते है और सोचते है की हम माँ को सिद्ध कर देंगे | मुझे सिद्ध करनेसे क्या फायदा | मुझे तो मालूम ही है सबकुछ ,तो आपको ये करना  चाहिए की अपनी ओर नजर करे | और अपने भोलेपन को पहचाने | वो कहा है ,कैसा है और बड़ा मजेदार है ये सोचना चहिए | अब कृष्ण की बात जो है वो यही है की बचपन में तो एकदम भोले थे | और बड़े होने पर उन्होंने गीता समझाई | जो बहोत गहन है | ये कैसे हुआ की मनुष्य उसमे बढ़ गया | इसी प्रकार हम सब भी सहज में बढ़ सकते है | हमने पाया है लेकिन हम उसमे अभी बढ़े नहीं है | और बढ़ने के लिए हमें चाहिए की जो अपने बारेमे हमारे खयालात है उसको छोड़ दे | पहले तो बच्चे जैसा स्वाभाव होना चाहिए | अब ऐसा किसीसे कहे की आप बच्चे जैसा स्वाभाव बनाओ | वो तो कठिन बात है | ऐसा तो कर  कह सकते की आप जो है वो छूट के बच्चे बन जाओ | लेकिन बच्चोंके  साथ रहकर बच्चोंके प्रति एक आस्था रखिए | उनकी बातोंको देख करके बहोत फरक पड़ सकता है | और बदल सकते है सारी  चीजे अपने अंदर की | तो सबसे पहले हमें जानना चाहिए की हमारे अंदर जैसे जैसे हम बड़े होते है बहोतसे दोष समा जाते है उस दोषोंको कैसे निकालना चाहिए | कैसे कैसे दोष हमारे अंदर आए | इसपे हम सिर्फ सोचे नहीं उसपर ध्यान दे | तो हम इसको ठीक कर सकते है | ध्यान ऐसे देना है की जैसे हम किसीसे घोर दुष्टता से बात करते है या हम किसीको ताना मारना चाहते है या हम सोचते रहते है की दूसरे आदमी को हम कैसे ठीक करे | जब हमारा चित्त दुसरोंपे जाता है तभी हम अपनेसे अलग हो जाते है | क्योंकि हमें खुद ठीक होना है | इसलिए दूसरोंके बारेमे सोचनेसे क्या फायदा | तो सबसे पहले हमें अपनी ओर ही द्रिष्टि करनी चाहिए | पर जो सब बताया हमने वो सहजयोगियोंके बारेमे घटित नहीं हो रहा है | उनके अंदर कुण्डलिनी जागृत होती है और वो सब रास्ते हमें दिखाई देती है | अब रही बात ये की हम किस तरह से जो मलिनता है उसको ठीक कर सके | पहली तो बात ये है की दूसरोंके दोष देखनेकी जो हमारी  दृष्टि है उसे हम बदलदे |क्योकि वही दोष हमारे अन्दर भी है  दूसरोंके दोष देखनेसे हमारे अंदर क्या दोष है ये देखना चाहिए | अगर ये देखना हमें आ जाए तो बहोत कुछ अपने आप ठीक हो सकता है | कोई साधु संतोका क्या है वो अपने अंदर के ही दोष देखते है और अपनेकोही सोचते है की ये ऐसे क्यों हो गए हम | ऐसी कड़वी बात हम क्यों कहते है ,ऐसी झूटी बात हम क्यों कहते है | तो ये अपने को देखनेका एक प्रवाह होता है ,ज्यादा तर हम उसको मानते नहीं | और उस प्रवाह में बैठते नहीं | हम खुदको उससे अलग समजते है | पर ऐसी बात नहीं है ,कई लोग समझते है की हमारे अंदर जो समा गए ,जो हमें ऐसी रास्ते पर ले जाता है की जहा हम अपनेको नहीं पहचान सकते तो फिर आदमी अंदर की तरह मूड सकता है | अब कहनेसे तो अंदर की तरफ जाओ ,ध्यान करो ,अपने अंदर देखो और बुरी बाटे निकालो | सब कहनेकोतो है ही इसिलए ध्यान करना प्रयत्नशील रहना चाहिए | और हमारे पास ऐसे साधन है जैसे कृष्ण का ध्यान करना ,कृष्ण के ध्यान से हमारे अंदर की सफाई हो जाती है | पर हम उलटे है ,कृष्ण के ध्यान में हम ये सोचते है के दूसरोंके दोष देखे | कृष्ण का दोष हमें दिखाई देता है पर हमें अपना दोष दिखाई नहीं देता | ये हमारे साथ बहोत ज्यादती है ,की हम अपने  दोष तो नहीं देख सकते लेकिन कृष्ण के दोष तो देख लेंगे बहोतसे लोगोंको मैंने देखा है के द्युत के खेलमें उन्हें कृष्म में क्या क्या दोष दिखे |  क्या गलत काम किए ,उनको कैसे रहना चाहिए | अपने बारेमें वो नहीं जानते ,लेकिन जब अपने बारेमे सोचते है ,और जब देखा जाता है तो कभीभी ये दृष्टि नहीं होती की हमारे अंदर ये दोष है और ये चला जाना चाहिए | तो हम दूसरोंके दोशोंपे चर्चा करते है ,पर यही हमको करना है की अपने अंदर क्या दोष है ये देखना चाहिए | कृष्ण से बढ़कर कोई योगी नहीं है | उन्होंने ये रास्ता बताया की तुम  अपने अंदर की गलतिया देखो | अपने अंदर के दोष देखो | ये बहोत बड़ी बात है | उन्होंने सिर्फ कह दिया ,करनेवाले बहोत कम है | ज्यादातर दूसरोंके दोष देख ते है ,तो सबको याद रहे ,सबको मालूम है अपने दोष बहोत कम लोगोंको समजमे आते  है इसीलिए वो ठीक नहीं हो पाते  अपने दोषोंसे परिचित होना चाहिए | और हसना चाहिए अपने ऊपर की देखो हम क्या दोष लेकर चल रहे है | हमारे अंदर क्या दोष है | ये हमें सोचना चाहिए | बजाय इसके की हम लोगोंके दोष देखे | तो होता क्या है की चित्त हमारे ऊपर नहीं रहता | दूसरोंके दोषोंके उपर जाता है | और उससे वो विचलित हो जाते है लोग और समज नहीं पाते की अरे ये तो हमारे ही दोष है | हम क्यों दूसरोंके दोष देख रहे थे उससे क्या हमारे दोष ठीक हो जाएंगे | बिलकुल नहीं हो सकते | धीरे धीरे ये बात समजमें जब आ जाएगी तो मनुष्य जो है वो दुसरों के दोशोपे लक्ष नहीं देगा | अपने ही दोषोंको देख करके हैरान होगा की हमने कितने सारे राक्षस पाल  रखे है हमारे मनके अंदर और कितनी सारी गंदी गंदी बाते  हम सोचते रहते है | जब ये समजमे आएगा तो मनुष्य एक तरह से विशेष रूप धारण करेगा | और वो रूप ये है की उअसके अंदर शक्ति आ जाएगी | और उस शक्तिसे वो अनेक कार्य कर सकता है | इसलिए नहीं की उसका अहंकार बढ़ेगा ,पर इसलिए की उससे सफाई होगी | अब ये सफाई वाला तो काम है ,तो दोष देनेसे हम अपनी सफाई करते है और उन दोषोंको छोड़ देते है 
| पर अभी ये कैसे हो ? क्योंकि दोषोंको देखना मुश्किल नहीं है | लेकिन उससे छूटना मुश्किल है | इसलिए उसको देखना जो है वो सूक्ष्म होना चाहिए ,और बारीक़ होना चाहिए | और उस तरफ नजर जानी चाहिए | उससे बहोत कुछ सफाई हो सकती है |   

आज के दिन श्री कृष्ण का सन्देश जो है वो ये है की आप अपने अंदर झांको | और देखो | ये श्री कृष्ण ने कहा है | पर वो करना लोगोंको मुश्किल लगता है | वो घटित नहीं होता | उसकी क्या वजह है क्यों हम अपनेको देख नहीं पाते | बिच में पड़ता क्या है ,पड़ता यही सब अहंकार अदि ,जो दुर्गुण है वही खड़े है | और उन दोषोंको आप देख नहीं पाते ,पर उसे देखना चाहिए ,ये बहोत जरुरी चीज है | आपने  आज की पूजा रखी ,मै बहोत खुश हो गई | कृष्ण की पूजा हो जाएगी तो अंदरसे बहोतसे लोग साफ हो जाएंगे | क्योंकि ये कृष्ण का कार्य है ,वो खुदही इसे करेंगे | पर आप चाहते है की आपकी पूरी तरह से सफाई हो जाए | आप जानते नहीं ये कितना गहन प्रश्न है हमारे यहाँ का | वो ठीक करनेके लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ी | लोग पहले कसरत करते थे ,गुरुके आगे ,बहोत कुछ करते थे | पर गहनता नहीं आती थी | पर आप तो सहजयोगी है ,आपके लिए मुश्किल नहीं है | तो मै यही कहूँगी की अपने अंदर झांकना सीखिए ,बड़ा मजा आएगा | अभी तक तो ठीक है पर पता नहीं क्यों इस तरह से करने लगे | आप अपनी तरफ नजर करीए के कैसा चलता है माहोल | तो बड़ा मजा आएगा अपनेकोही | आप देखकर हसेंगे की वा कहने | फिर एक तरह का भोला पन आपके अंदर जागृत होगा | यही कृष्ण की बाल लीला है | जब इस भोले पन से आप साफ होंगे ,इसीसे नहा लेंगे तो आपकी नजर जो है वो स्टेडी हो जाएगी ,| अपने आप अपनेको समझने लगेंगे | असल में दोष हमारे ही अंदर है ,दूसरोंके दोष देखनेसे हमारे दोष कैसे ठीक होंगे | एक साधासा प्रश्न है हमारे साडी पर कुछ गिरा है तो हम उसे हटा देंगे ,दूसरोंको बुरा कहनेसे वो दाग चला जाएगा क्या ,नहीं जाएगा | इतनी तो अकल है हममें | पर वो इस अकल को इस्तेमाल नहीं करते ,पर इसी अकाल को आप इस्तेमाल करे | किसीको समजमे बात नहीं आई हो तो आप प्रश्न पूछ सकते है | अब देखिए अपना चित्त तो जा रहा है अंदर ,ये सब अपनेआप होना चाहिए | चित्त को आदत हो जाएगी की वो अपनेआप अंदर जाए | मै जानती हूँ की आप लोगोके सामने अनेक प्रश्न  है | लेकिन वो बहोत क्षुद्र है उसको कोई अर्थ नहीं है | उससे उपर उठनेकी बात होती है हमेशा | पर लोग कहते है माँ कैसे उठा जाए | ध्यान ,आप अपने उपर ध्यान करो | ध्यान में जाओ ,ध्यान में अपनेकोही देखना है | आपका क्या चल रहा है ,आप कहा खो गए | धीरे धीरे आपकी सफाई होगी | आज का दिन वैसे भी बड़ा महत्त्व पूर्ण है ,फिर कृष्ण का अवतार जो है इसने बहोत हमारी सफाई की ,बहोत हमारी मदत की है | उनके आनेसे बहोत फरक हो गया | और कुण्डलिनी के जागरण में भी मै देखती हूँ कृष्ण के आशीर्वाद से बहोत सुंदर चल रहा है | आप लोग जरा अपने तरफ ध्यान दे | एक तो अपनेसे नाराज नहीं होना और दूसरा दूसरोंसे नाराज नहीं होना | बड़ा आनंद आया इस कृष्ण की पूजा में | 

प्रश्न 

ध्याना मधे काही विचारायच नसत.नुसत जाणायच असत ,विचारायच नाही ,जानल पाहिजे . तुम्ही ध्यानात होते मग तुम्ही काही जाणलं कि नाही . त्यात काय जाणलं तर सर्वात प्रथम तुम्हाला तुमचे दोष दिसतील . हे तुमचं चुकलं होत ,हे तुमचं बरोबर होत . इथे गडबड होती . स्वतः बद्दल दिसलं म्हणजे ते खर आहे . समजा आपण आरशात बघायचं तर त्याच्या मध्ये आपला फोटो दिसला पाहिजे ना . दुसऱ्यांचा फोटो बघून काय फायदा . आमचं काय आम्ही दुसऱ्यांचाच फोटो बघतो . तर दोष कसे दिसणार . 

अगुरुंच्या बाधा पासून आपलं संरक्षण कस करायचं ? 

पहिल्यांदा तुम्ही गेले कसे तिकडे अगुरुंकडे ,हा प्रश्न स्वतः ला विचारायचा . कोणच्या गोष्टीने आकर्षित झाले ,कसे गेले हा स्वतः  लाच प्रश्न करायचा . म्हणजे तुमच्या लक्षात येईल कि त्या अगुरु मध्ये जे दोष होते तेच तुम्ही बघितले नाहीत . तेच तुम्ही सांभाळलं नाहीत . अगुरुंवर मी एक लेक्चर दिलेलं आहे ,त्यात मी सांगितलं आहे कि हे लोक काय काय प्रकार करतात आणि कशाने लोकांना भुरळ घालतात . 

इसका मतलब ये है की इनका ये धंदा है | आप लोगोंको फसा देता है ये धंदा | तरह तरह के धंदे होते है ,इसमेसे गुरुका भी ये धंदा की आप लोगोंको हम फसा देते है | और आप फस जाते है | इसको सोच लेना चाहिए की हम कौनसे इसमें फसे है | कौनसे चक्कर में आ गए | ये सोच लेना चाहिए | पहले तो वो आपकी जेब देखते है | जैसे ही उन्होंने आपकी जेब देखना शुरू कर दी तो आपको समझना चाहिए की चक्कर में फस गए | पर ये तो बहोत मोटी बात है ,बहोतसे चक्कर में नहीं जाना चाहते पर अपना महत्त्व दिखाना चाहते है ,इसलिए गुरु बन जाते है | तो ये देखना चाहिए, इसका मतलब आपको क्रिटिकल होना चहिए इस मामलेमें तो उससे छूट जाएगा | लेकिन ज्यादातर लोग उन्हिकि बाधा ए ले लेते है ,उनका अहंकार ,उनका गुस्सा ,उनकी तबियत बहुतसी बाटे आप गुरुसे ले लेते है | फिर ऐसे गुरु जब बीमार पड़ते है तो उसकी छाया अपने अंदर भी पड़ती है | इसलिए पहले अपनाही विश्लेषण करना चाहिए अपनेकोही देखना चाहिए | की मैंने इस गुरु से क्या लिया | बहोत जरुरी है ,तब जब सफाई होगी आपकी तो आप देखेंगे की बड़ा फायदा है | आप गुरु के पास गए क्यों ,क्योंकि आप वो कमाना चाहते थे अपना उत्थान ,आप गुरु के पास गए क्यों के आप जाने क्या है ,| लेकिन उनके और ही धंदे ,ऐसे गुरुओंसे बचनेके लिए क्या करना चाहिए ये खुद ही समझ सकते है | कैसे दूर रहना चाहिए | मैं बहोत सारे ऐसे  गुरुओंके पास देखने गई थी ,की करते क्या है ,किस तरह से फसाते है ,तो मैंने देखा की पहले तो ये लोग आपकीही कमजोरिया देखते है | के आपमें क्या कमजोरी है | और ये नहीं होगा तो आपके अंदर कोई बाधा दाल देते है | अब बाधा हर तरह की होती है ,सबसे बड़ी बाधा तो ये डालते है की तुम हमें छोड़ दोगे तो ये होगा वो होगा | इस तरह का भय डाल देते है |  वो डराते  है | इसी भय से मनुष्य उन लोगोंके चक्कर में घूमते रहते है | उसके लिए कृष्ण है वो सबका भय निकाल देते है | 

[Translation Hindi to Marathi]

हम लोगों को अब ये सोचना है कि सहजयोग तो बहुत फैल गया और किनारे-किनारे पर भी लोग सहजयोग को बहुत मानते हैं। लेकिन जब तक हमारे अन्दर सहजयोग पूरी तरह से, व्यवस्थित रूप से प्रकटित नहीं होगा तब तक लोग सहजयोग को मानते हैं वो मानेगें नहीं। इसलिए ज़रूरत है कि हम कोशिश करें कि अपने अन्दर झांकें। यही कृष्ण का चरित्र है कि हम अपने अन्दर झांके और देखें कि हमारे अन्दर खुद कौन सी कौन सी ऐसी चीजे हैं जो हमें दुविधा में डाल देती हैं। इसका पता लगाना चाहिए, हमें अपने तरफ देखना चाहिए, अपने अन्दर देखना चाहिए। और वो कोई कठिन बात नहीं है जब हम अपनी शक्ल देखना चाहते हैं तो हम शीशे में देखते हैं। उसी प्रकार जब हमें अपनी आत्मा के दर्शन करने होते हैं तो हमें देखना चाहिए हमारे अंदर वो कैसा देखा जाता है बहुत से सहजयोगियों ने कहा कि माँ यह कैसे देखा कर जायेगा कि हमारे अन्दर क्या है, और हम कैसे हैं? उसके लिए ज़रूरी है कि मनुष्य पहले स्वयं ही बहुत नम्र हो जाए क्योंकि अगर आपमें नम्रता नहीं होगी तो आप अपने ही विचार लेकर बैठे रहेंगे। तो कृष्ण के लाइफ (life) में पहले दिखाया गया कि एक छोटे लड़के के जैसे वो थे। बिलकुल जैसा शिशु होता है बिलकुल ही अज्ञानी वो इसी तरह थे। वो अपने को कुछ समझते नहीं थे। उनकी माँ थी उसी माँ के सहारे वो बढ़ना चाहते थे। इसी प्रकार आप लोगों को भी अपने अन्दर देखते वक्त ये ही सोचना चाहिए कि हम एक शिशु बालक से हैं। कृष्ण ने बार-बार कहा, लेकिन जीसस क्राइसट ने भी कहा कि हम एक छोटे बालक बनें। बालक की जो सुबोध स्वभाव की छाया है वो हमको दिखनी चाहिए। कि हम क्या बालक जैसी बाते करते हैं? हमारे अन्दर कौन सा ऐसा गुण है कि हम बालक बन जाते हैं। अब बालक माने अबोधिता, भोलापन। और वो भोलेपन से हमको अपने तरफ देखना है, और उसी से अपने को ढकना है। अब वो भोलापन बड़ा प्यारा होता है। आप अगर बच्चों को देखें तो उनसे जो प्यार ( अष्पष्ट ) छलकता है वो इसलिए कि वो भोले हैं। वो चालाकी नहीं जानते, अपना महत्व नहीं जानते, कुछ भी नहीं, क्या जानते हैं वो? वो जानते ये हैं कि ये सब लोग हमारे प्रिय हैं। ये हमारे ही भाई बहन और ये सब कुछ हैं। लेकिन ये किस तरह से उन्होंने जाना, ये प्रश्न है, बच्चों ने जिस तरह से जाना उसी तरह से हमने भी भुला दिया कि हम भी एक भोले बालक हैं और एक भोलापन है हमारे अन्दर।

अब बहुत से सहजयोगी ऐसे हैं कि जो वो आते हैं वो बहुत अपनी चालाकी दिखाने।
और कोई आते हैं सोचते हैं कि हम बहुत होशियार हैं। कोई आते हैं और सोचते हैं कि हम माँ को सिद्ध कर देंगे, मुझे सिद्ध करने से क्या फायदा। मुझे तो मालुम ही है सब कुछ। तो आपको ये करना चाहिए कि अपनी ओर नज़र करें, और अपने भोलेपन को पहचानें। वो कहाँ है, कैसा है, और बड़ा मजेदार है उसको सोचना चाहिए। अब कष्ण की जो बात है वो यही है कि बचपन में तो वो एकदम भोले थे, और बड़े होने पर उन्होंने गीता समझाई, जो बहुत गहन है। ( अष्पष्ट ) ये कैसे हुआ कि मनुष्य उसमें बढ़ गया। इसी प्रकार हम भी सहज में बढ़ सकते हैं, हमने पाया है लेकिन उसमें अभी तक हम बढ़े नहीं। और बढ़ने के लिए हमें चाहिए कि जो अपने बारे में जो ख्यालात हैं उसको छोड़ दें। पहले तो बच्चे जैसा स्वभाव होना चाहिए। अब ऐसा किसी से कहें कि आप बच्चे जैसा स्वभाव बनाओ तो कठिन बात है। ऐसा तो नहीं कर सकते कि आप जो हैं वो छूट गया और आप बच्चे बन जाओ। लेकिन बच्चों साथ रह कर के बच्चों के प्रति एक आस्था रखकर, उनकी बातों को देखकर के आप बहुत फर्क कर सकते हैं और बदल सकते हैं सारी चीजें अपने अन्दर की। तो सबसे पहले तो ये जानना चाहिए कि हमारे अन्दर जैसे-जैसे हम बड़े होने लग गए, बहुत से दोष समा गए हैं। उन दोषों को कैसे निकालना चाहिए? कैसे-कैसे दोष हमारे अन्दर आए हैं? इसको अगर हम सोचे नहीं और उधर ध्यान दें तो हम उसको ठीक कर सकते हैं। ध्यान ऐसे देना है कि जैसे हम किसी से जोर से या, घष्टता से बात करते हैं या हम किसी को ताड़ना करना चाहते हैं। या हम सोचते रहते हैं कि दूसरे आदमी को हम कैसे ठीक करें। जब हमारा चित्त दूसरों पे जाता है तभी हम अपने से अलग हट जाते हैं। क्योंकि हमें खुद ठीक होना है इसलिए दूसरों के बारे में सोचने से क्या फायदा? तो सबसे पहले हमें अपने बारे में ही दृष्टिपात करना चाहिए, देखना चाहिए। पर वो सब हो रहा है और वो बताया है हमने। वो तो सहजयोगियों में घटित भी हो रहा है। क्योंकि अन्दर ये कुण्डलिनी जागृत होती है और वो सब रास्तों में दिखा देती है। अब रही बात यह कि हम किस तरह से जो मलिनता है उसको ठीक कर सकते हैं।

पहली तो बात ये है कि दूसरों के दोष देखने की जो हमारी दृष्टि है उसको बदल दें, क्योंकि वही दोष हमारे अन्दर भी हैं। तो दूसरों के दोष देखने से हमारे अन्दर क्या दोष हैं ये देखना चाहिए। अगर ये देखना हमें आ जाए तो बहुत कुछ अपने आप ठीक हो जायेगा। कोई साधु सन्तों का क्या है कि वो अपने अन्दर के ही दोष देखते हैं और अपने ही को सोचते हैं कि ये ऐसे क्यों हो गए हम? ऐसी कड़वी बात हम क्यों कहते हैं। ऐसी झूठी बात क्यों कहते हैं? तो ये अपने को देखने का एक प्रवाह आ जाता है। ज्यादातर हम उसको मानते नहीं हैं और उस प्रवाह में बहते नहीं हैं । हम अपने को उससे अलग समझते हैं, पर ऐसी बात नहीं है। अगर हम समझ लें कि हमारे अन्दर जो ये प्रवाह है, जो हमें ऐसे रास्ते पर ले जाता है कि जहाँ हम अपने को ही नहीं पहचान सकते। तो फिर आदमी अन्दर की तरफ मुड़ सकता है। अब कहने से कि तुम अन्दर की तरफ जाओ, ध्यान करो, अपने अन्दर की बहुत सी बातें निकालो। सब कहने को तो कह देंगे, लेकिन उससे नहीं होगा। इसीलिए ध्यान करना, प्रयतनशील रहना चाहिए। और हमारे पास ऐसे साधन हैं, जैसे कृष्ण का ध्यान करना। कृष्ण के ध्यान से हमारे अन्दर की सफाई हो जाती है। पर हम उल्टे हैं तो कृष्ण के ध्यान में हम ये सोचते हैं कि हम दूसरों के दोष देखते हैं, जब हम कृष्ण का दोष देखते हैं तो हमें दिखाई देगा। पर हमें अपना दोष नहीं दिखाई देगा। ये हमारे साथ बहुत ज्यात्ति है कि हम अपने दोष तो नहीं देख सकते पर कृष्ण के दोष तो देख लेंगे। बहुत से लोग हैं, मैंने देखा है कि किताबें लिखी हैं उन्होंने कि कृष्ण में क्या-क्या दोष थे। क्या गलत काम किए? उनको कैसे रहना चाहिए था? अपने बारे में वो नहीं जानते। लेकिन जब अपने बारे में भी सोचते हैं और जब देखा जाता है, तो कभी भी ये दृष्टि नहीं होती कि भई हमारे अन्दर ये दोष है और ये चला जाना चाहिए। तो हम दूसरों ही के दोष से जाकर अटक जाते हैं। यही हमको करना है कि अपने अंदर क्या दोष है उसे देखना चाहिए।

कृष्ण से बढ़कर मैं कोई और योगी मानती नहीं हूँ। क्योंकि उन्होंने ये रास्ता बताया कि तुम अपने अन्दर की गलतियाँ देखो, अपने अन्दर के दोष देखो, ये बहुत बड़ी बात है। उन्होंने सिर्फ कह दिया और करने वाले बहुत कम हैं। अगर ज्यादातर दूसरों के दोष देख लीजिए तो सबको याद है, सबको मालूम है। अपने दोष बहुत कम लोगों को समझ में आते हैं। इसलिए वो ठीक नहीं हो पाते। अपने दोषों से परिचित होना चाहिए और हंसना चाहिए अपने ऊपर कि देखो हम क्या दोष कर रहे हैं, हमारे अन्दर क्या दोष हैं। ये हमें सोचना चाहिए, बजाय इसके कि हम और लोगों के दोषों को देखे। (अष्पष्ट) तो होता क्या है कि चित्त हमारे ऊपर नहीं रहता। दूसरों के दोषों पर जाता है और उससे वो विचलित हो जाते हैं हम लोग। और समझ नहीं पाते कि अरे ये तो हमारे ही दोष थे। हम क्यों दूसरों के दोष देख रहे थे। (अष्पष्ट) उससे क्या हमारे दोष ठीक हो जाएंगे? बिलकुल नहीं हो सकते। धीरे-धीरे ये बात जब समझ में आ जाएगी तो मनुष्य जो है वो दूसरों के दोषों पे लक्षित नहीं होगा। अपने ही दोषों को देखकर के हैरान होगा कि हमने कितने सारे ये राक्षस पाल रखे हैं अपने अन्दर। हमारे मन के अन्दर कितनी गन्दी-गन्दी बातें हम सोचते रहते हैं। जब ये सफाई होने शुरु होती है तो मनुष्य एक तरह से विशेष रूप धारण करता है। और वो रूप ये है कि उसके अन्दर शक्तियाँ आ जाती हैं और उस शक्ति से वो अनेक कार्य कर सकता है। इसलिए नहीं कि उसका अहंकार बढ़े पर इसलिए कि उससे सफाई हो गयी। अगर उससे अगर सफाई हो गयी तो अपनी सफाई का तो काम है। तो दोष देखने से हम अपनी सफाई करते हैं और उन दोषों को छोड़ देते हैं। पर अब ये कैसे हो, क्योंकि दोष तो देखना मुश्किल नहीं है, लेकिन उससे छूटना मुश्कल है। इसलिए उसका देखना जो है सूक्ष्म होना चाहिए और बारीक होना चाहिए और इस तरफ नजर जानी चाहिए। उससे बहुत कुछ सफाई हो सकती है।

आज का जो पर्व है इसमें श्री कृष्ण का जो सन्देश है वो ये है कि आप अपने अन्दर झाँको और देखो। ये श्री कृष्ण ने कहा है पर वो करना लोगो को मुश्किल लगता है। वो होता नहीं है, घटित नहीं होता।उसकी क्या वजह है? क्यों हम अपने को नहीं देख पाते? बीच में पर्दा क्या है? पर्दा यही सब अहंकार आदि जो दुर्गण हैं वो खड़े हो जाते हैं। और उन दोषों को हम देख नहीं पाते, जिनको देखना चाहिए। ये बहुत ज़रूरी चीज़ है।

आपने आज की पूजा रखी, मैं बड़ी खुश हो गई कि कृष्ण की पूजा हो जाएगी तो अन्दर से बहुत से लोग साफ हो जाएंगे। क्योंकि ये कृष्ण का कार्य है। ये कृष्ण का कार्य है, वो खुद ही इसे करेंगे। पर आप उधर रुचि दिखाएं, उधर झुकाव दिखाइएँ कि आप चाहते हैं कि आपकी पूरी तरह से सफाई हो जाए। आप जानते नहीं हैं कि (अष्पष्ट) कितनी आपके अन्दर शक्तियां आ जाती हैं और उस शक्ति से वो अनेक कार्य कर सकता है। इसलिए नहीं कि उसका अहंकार बढ़े पर इसलिए कि उससे सफाई हो जाये। अगर उससे अगर सफाई हो गयी तो अपनी सफाई का तो काम है। तो दोष देखने से हम अपनी सफाई करते हैं, और उन दोषों को छोड़ देते हैं। पर अब ये कैसे हो, क्योंकि दोष तो देखना मुश्किल नहीं है, लेकिन उससे छूटना मुश्किल है। इसलिए उसका देखना जो है वो सूक्ष्म होना चाहिए और बारीक होना चाहिए। और इस तरफ नजर जानी चाहिए बहुत बारीक होनी चाहिए उससे बहुत कुछ सफाई हो सकती है ।

आज का जो पर्व है इसमें श्री कृष्ण का जो सन्देश है वो ये है कि आप अपने अन्दर झाँको’ और देखो। ये श्री कृष्ण ने कहा है पर वो करना लोगों को मुश्किल लगता है। वो होता नहीं है घटित नहीं होता। उसकी क्या वजह है, क्यों हम अपने को नहीं देख पाते? बीच में पर्दा क्या है? पर्दा यही सब अहंकार आदि जो दुर्गण हैं वो खड़े हो जाते हैं। और उन दोषों को हम देख नहीं पाते, जिनको देखना चाहिए, ये बहुत ज़रूरी चीज़ है।

Repetition in green

आपने आज की पूजा रखी, मैं बहुत बड़ी खुश हो गई कि कृष्ण की पूजा हो जाएगी तो अन्दर से बहुत से लोग साफ हो जाएंगे। क्योंकि ये कृष्ण का कार्य है। ये कृष्ण का कार्य है वो खुद ही इसे करेंगे। पर अगर आप उधर रुचि दिखाएं, उधर झुकाव दिखाइएँ कि आप चाहते हैं कि आपकी पूरी तरह से सफाई हो जाए। आप जानते नहीं हैं कि (अष्पष्ट) कितना गहन ये हमारे यहाँ का प्रश्न है। इस प्रश्न को ठीक करने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, लोग पहले कसरत करते थे, गुरु के आदेश सुनते थे, बोहत कुछ करते थे बेचारे, पर गहनता नहीं आती थी। पर आप तो सहजयोगी हैं आप के लिए मुश्किल नहीं है। तो मैं यही कहूँगी कि अब अपने अंदर झांकना सिखये, बड़ा मज़ा आएगा। अभी तक तो ठीक थे पर अभी पता नहीं क्यों अब इस तरह से करने लग गए ( अष्पष्ट ) आप अपनी तरफ नज़र करिये। ये कैसा चलता है मामला, तो बड़ा मज़ा आयेगा आपको। ( अष्पष्ट ) आप देख कर हसेंगे और कहेंगे, वाह क्या कहने। फिर एक तरह का भोलापन आपके अंदर जागेगा, यही कृष्ण की बाल लीला है। जब इस भोलेपन से ( अष्पष्ट ) आप इसी से नहा लेंगें, भोलेपन से तो आपकी नज़र जो है वो बहुत स्टेडी हो जाएगी। अपने आप अपने को आप समझने लगेंगे। असल में दोष हमारे ही अंदर है, दुसरो के दोष देखने से हमारे कैसे ठीक होंगे।

एक सादा सा एक प्रश्न है अगर हमारी साड़ी पर कुछ गिरा है और हम इसे हटआते नहीं तो, और अगर दूसरों को बूरा कहते हैं क्या वो चले जायेंगे, नहीं कभी नहीं। इतनी तो अकल है हमारे पास। पर वो अकल हम इस्तेमाल नहीं करते। और इसीलिए इस अकल को भी आप इस्तेमाल करें ( अष्पष्ट )

किसी को समझ में बात नहीं आयी हो तो वो प्रश्न पूछ सकते हैं। ( अष्पष्ट ) मराठी में भी ( अष्पष्ट ) पूछ सकते हैं कुछ तो सवाल पूछना चाहिए ना। चित्त अन्दर जा रहा है अब देखिए अपना चित्त जा रहा है अन्दर? पर हम डरते ही रहते हैं। पर अब अपने आप होना चाहिए, चित्त अपने आप अंदर जाना चाहिए, चित्त को आदत हो जाएगी कि वो अपने आप अंदर जायेगा।

मैं जानती हूँ कि आप लोगों के खुद प्रश्न हैं। अपने लोगों को खुद उलझने हैं इसमें कोई शक नहीं। लेकिन वो बहुत क्षुद्र है उसका कोई अर्थ नहीं लगता। उससे उपर उठने की बात होती है हमेशा, पर लोग कहते हैं कि माँ कैसे उठा जाए, ध्यान से। ध्यान में क्या, आप अपने ही ऊपर ध्यान करते हैं। अपने ही को देखना है की आपका दिमाग कहाँ चल रहा है? अब कहाँ घूम रहा है। धीरे-धीरे आपकी सफाई हो जाएगी।

आज का दिन वैसे बड़ा महत्त्वपूर्ण है कि कृष्ण का अवतार जो है इसने बहुत हमारी सफाई की है। और बड़ी मदद कर दी है और उनके आने से बहुत फरक हो गया है। और कुण्डलिनी के जागरण में भी मैं देखती हूँ कि कृष्ण के आशीर्वाद से बहुत सुन्दर चल रहा है आप लोग जरा अपनी तरफ ध्यान दें। और एक तो अपने से नाराज नहीं होना और दूसरे दूसरों से नाराज़ नहीं होना, बड़ा आनद आएगा, यही कृष्ण की पूजा है।

25:40 मराठी

इसका मतलब ये है कि इनका ये धंदा है आप लोगों को फसाने का ये धंदा है। तरह-तरह के धंदे होते हैं। उसमें से गुरु का भी है धंदा कि हम आपको फसा लेते हैं, और आप फस जाते हैं। तो इसको सोच लेना चाहिए कि हम कौन से इसमें फसे हैं। कौन से चक्कर में आ गए, ये सोच लेना चाहिए।

30.12 मराठी

30.59 पहले तो वो आपकी जेब देखते हैं, है ना। जैसे ही उन्होंने आपकी जेब देखना शुरू करी तो आपको समझना चाहिए कि चक्कर कुछ और है। पर ये तो बहुत मोटी बात है साधारण बात ये है कि वो आपको देते क्या हैं? बहुत से कोई चक्कर में नहीं डालना चाहते पर अपना महत्त्व करना चाहते हैं और इसलिए गुरु बन जाते हैं।

31.40 मराठी

31.44 तो ये देखना चाहिए कि इसका मतलब आपको क्रिटिकल होना चाहिए इस मामले में तो उससे छूट जायेगा लेकिन ज्यादातर लोग उन्हीं की बाधाएं ले लेते हैं। उनका अहंकार, उनका गुस्सा, उनकी तबियत बहुत सी बातें आप गुरु की ले लेते हैं। फिर ऐसे गुरु जब बीमार पड़ते हैं तो उसकी छाया आपके अंदर भी दिखाई देती है। इसलिए पहले अपना ही विश्लेषढ़ करना चाहिए, अपने को ही देखना चाहिए। कि मैंने इस गुरु से क्या लिया? बहुत जरूरी है तब जब सफाई होगी आपकी तो आप देखेंगे कि बड़ा फायदा रहेगा। आप गुरु के पास गए क्यों? क्योंकि आप वो करना चाहते थे, अपना उत्त्थान। आप गुरु के पास गए कि आप जाने क्या है लेकिन वो उलटे वापस आप ही फस गए। तो ऐसे गुरु हैं उनसे बचने के लिए क्या करना चाहिए? आप खुद ही समझ सकते हैं कि कैसे दूर रहना चाहिए? मैं बहुत सारे ऐसे गुरुओं के पास गई देखने के लिए कि ये करते क्या हैं? किस चीज़ से लुभाते हैं लोगों को, किस चीज़ में फसाते हैं? तो मैंने देखा कि पहले तो ये लोग आप ही की कमजोरियां देखते हैं कि आप में क्या कमजोरी है? और ये नहीं होगा तो आपके अंदर कोई बाधा डाल देंगे। अब बाधा हर तरह की होती है। अब इस बाधा में देखना चाहिए कि आपके अंदर कौन सी बाधा इन्होंने अंदर डाली है कि आप बाहर नहीं निकल सकते। तो सबसे बड़ी तो बाधा ये डालते हैं वो है भय। कि आप अगर हमें छोड़ोगे तो तुम्हारा ये होगा वो होगा। छोड़ने से ये होगा इस तरह का भय आ जाता है। और उस भय में कोई जान नहीं होती पर वो डराते रहता है। पहले तो ऐसा अगर कोई भय आए तो उसको कहना चाहिए अच्छा आप रहने दीजिये हमें पता है। इसी भय से मनुष्य गुरुओं के चक्कर में घूमते ही रहता है। उसके लिए कृष्ण हैं वो सबका भय निकाल देते हैं।

मराठी 34.59

कह रहे हैं कि सब लोग विचार में बैठे हैं हमें तो विचार से परे जाना है। निर्विचार वो कैसे होगा? क्या (..अष्पष्ट) कितनी अच्छी पूजा बनाई है आपने कि मैं भी देखती रह जाती हूँ यही बात है।(..अष्पष्ट)

मराठी 36.12

जो आदमी अपने ही को देख के हस सकता है वो ही ठीक है। दूसरों को देख के हसता है तो उसका मतलब उसकी दृस्टि दूसरी तरफ है। जो अपने ही को देख के हस सकेगा, अपने ही वातावरण को अपने ही तौर तरीके को वो ठीक है।

मराठी 37.41

अनंत आशीर्वाद!