The Meaning of Puja Pamela Bromley’s house, Brighton (England)

                                              “पूजा का अर्थ”  ब्राइटन (इंग्लैंड), 19 जुलाई 1980। अब पूजा के लिए यह समझना होगा कि बिना आत्म-बोध के पूजा का कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि आप अनन्य नहीं हैं। ऐसा है कि, आपको अपने पूरे के प्रति जागरूक होना होगा। कृष्ण द्वारा प्रतिपादित भक्ति का वर्णन है “अनन्य”। वे कहते हैं, “मैं तुम्हें अनन्य भक्ति दूंगा”, वे अनन्य भक्ति चाहते हैं, अर्थात जब दूसरा कोई नहीं हो, अर्थात जब हमें आत्मसाक्षात्कार हो जाता है।  अन्यथा वे कहते हैं “पुष्पम, फलम तोयुम” (भगवद गीता श्लोक 26) “एक फूल, एक फल और एक पानी: तुम जो कुछ भी मुझे देते हो, मैं स्वीकार करता हूं” लेकिन जब देने की बात आती है, तो वे कहते हैं, “तुम्हें मेरे पास अनन्य भक्ति से आना होगा,” जिसका अर्थ है: जब तुम मेरे साथ एक हो गए हो, ऐसी तुम्हें भक्ति करनी चाहिए, उससे पहले नहीं। इससे पहले, आप जुड़े नहीं हैं।  अब पूजा बाईं ओर का प्रक्षेपण है। यह दायें पक्ष की अति का निष्प्रभावीकरण है, । विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो बहुत दाहिने पक्ष वाले हैं, ऐसा वातावरण जो बहुत दाहिने पक्ष का है, पूजा उनके लिए आदर्श है। यह भक्ति है, भक्ति है… जो आप प्रोजेक्ट करते हैं। अब वास्तव में क्या होता है जब आप इस पूजा को प्रक्षेपित करते हैं?  यह पता चला है, और अब जैसा कि मैं आपको बता रही हूं कि पहले आपको अपने भीतर सोए हुए देवताओं को उनकी पूजा कर के जगाना होगा। लेकिन चूंकि ये देवता, मूल देवता, मेरे साथ Read More …