Shree Kalki Volume II
श्री कल्कि (अंक-2)
दसवां अवतरण का अनुगमन
श्री कल्कि को अर्पित गीति काव्य
सहस्रार की उच्चतर पहुँच में श्री कल्कि का मंदिर सजा है।
इनकेगुप्तकक्षोंमेंसंचितधनछिपापड़ाहै।
जिसेअनेकब्रहमाण्डधारणनहींकरसकते।
इनकेउद्यानमेंमधुसेमीठेअंगूरऔरखरबूजहैं।
त्रिभुवनोंसेसाधकजिनकेकरूणामय,
ऐश्वर्य (ज्ञान) की झलक पाने की स्पर्धा करते हैं।
केवल सौभाग्यशाली ही इसकी देहरी पार करते हैं,
वेअपनीताज–पोशी लेकर विश्व के महाराजाओं जैसे लौटते हैं।
अपने ओठों पर एक प्रार्थना लिए, मैं हौले–से उनके (माँ) के स्वर्गीय दरवाजे पर दस्तक देता हूँ।
“कौन आ रहा…..” उन्होंने पूछा।
”आपका भटका हुआ बच्चा“, मैंने उत्तर दिया।
”मांगो और मैं प्रदान करूंगी“, श्री माताजी ने कृपा–आशीष दिया।
”मुझे कुछ भी नहीं मांगना है, क्योंकि संसार के पास जो है, वह आपका उपहार नहीं है। मेरा उत्तर था।
”तब तुम यहां किस हेतु आए हो“, माँ ने पूछा।
”हे मातेश्वरी! आपके चरण–कमलों पर मरहम लगाने के लिए। मेरा उत्तर था।
अचानकसे, दरवाजा खुला।
शीतलबयारकेतेजझोंकेनेमेरीप्यासीआत्माकोशांतकिया।
कस्तूरी, चमेली, हिना और चंदन की सुगन्ध ने मेरी तपती इन्द्रिय–ज्ञान को शांत किया।
स्वर्गीयअप्सराओंसेनिसृतअति–नैसर्गिक संगीत के सौन्दर्य ने मुझे उन्मादित कर दिया। संपूर्ण विश्व के कण–कण से सुसज्जित हुआ, उनका मुखमंडल हजारों सूर्यों से और बेहतर चकाचौंध करता प्रकट हुआ, उनकी हर सम्मोहित करती मुस्कान से मोती बिखरे। मैं अनंत की आनंद–विभोरता में खो गया। जब होश में आया, मैंने उन्हें याद किया और खुद को भूल गया।
(उद्गार – योगी महाराज)
विवरण–कर्ता की टिप्पणी
अस्सीकेदशककेआरम्भमेंश्रीमाताजीनेश्रीकल्किकेसाहसीअवतरणकारहस्योद्घाटनएकपुस्तक ”क्रिएशन–द इटरनल प्ले“ में किया। हालाँकि इसका दूसरा प्रकाशन उन्होंने रोके रखा, जैसा कि वे चाहती थीं कि उनके सद्य–जात बच्चे पहले अपने आत्म–साक्षात्कार में स्थिरता प्राप्त कर लें। निस्संदेह बीजों का वपन आत्म–साक्षात्कार पर हुआ था, किन्तु कुछ बीज दूसरों की अपेक्षा देर से अंकुरित हुए और उन्होंने उनकी परिपक्वता तक प्रतीक्षा की, इसके पूर्व कि वे श्री कल्कि के सामूहिक स्वरूप को जन्म दे सकें।
यहवर्णनकरनाशब्दसीमासेपरेहै, जिस अनंत प्रेम और धैर्य से उन्होंने बीजों का पालन–पोषण किया। इसके अलावा हरेक माँ को प्रसव–पीड़ा को सहन करना पड़ता है, किन्तु इस प्रसंग को उन्होंने कभी प्रकट नहीं किया।
धीरे–धीरे, कोशिकाओं ने उनके विराट–शरीर (सामूहिक शरीर) में अपनी स्थिति धारण की और उनका आंदोलन, इसके पूर्व प्रकाशित पुस्तक दसवां अवतरण ‘द टेंथ इनकार्नेशन’ में अंकित किया गया था। नब्बे का दशक साक्षी बना– चेतना के हटते हुए उदाहरण (पैटर्न) का। व्यक्तिगत समस्याओं से सामूहिक समस्याओं की ओर, व्यक्तिगत कल्याण से सामूहिक कल्याण की ओर, वयष्टि से समष्टि की ओर जाती हुई, यह प्रकाशित चेतना (ज्ञान का आभास) सहज ही श्री कल्कि के भयानक शरीर में विकसित हुई, किन्तु यह शरीर बिना सिर का था। श्री माताजी ने श्री कल्कि का वर्णन बिना सिर वाला वर्णित किया है। “यहूदी धर्म में मोक्ष–प्रदायक देव का भी सिर नहीं है।”
समर्पणकीनजरोंसेउनकेचेहरे (मुख–मंडल) को पहचानना इतना मुश्किल नहीं है। कई बार श्री माताजी ने अनायास इसके चेहरे को प्रकट किया है और तब एक कौंध में यह गायब होगा, जिन्होंने उसे पकड़ा उन्होंने अमृत का आस्वादन कर आनंद उठाया, जबकि अन्य उनकी माया में उलझ गए। किन्तु एक बार उन्होंने उन्हें ‘माँ’ पुकारा, श्री माताजी ने उन्हें मझधार में नहीं छोड़ा। यह माँ का वचन था। उन्होंने बच्चों को सरंक्षण के लिए धरती पर उतारा। सृजन का वह भाग उनकी अनंत क्रीड़ा थी!
आनेवालेपृष्ठउनकीअनंतक्रीड़ाकीएकछोटीनाटिका (नाट्य) को प्रकट करते हैं। बहुत से पात्रों में मेरा मंचन हुआ है, मैंने उनकी (माँ की) सलाह का अनुसरण किया और उनका (पात्रों का) साक्षी होने की कोशिश की, किन्तु जितनी ज्यादा मैं कोशिश करता उतना ही उस खेल में ज्यादा उलझता जाता था। उन्होंने स्मरण कराया कि यह अवस्था सहज ही आयी। मैंने नम्रतापूर्वक विनती की– इस अनंत क्रीड़ा का हिस्सा बने रहने की और उनके वात्सलयमय बंधन में बने रहने की, जो भी रोल उन्हें भाता हो, मुझे करने हेतु दें, और ज्यादा महत्वपूर्ण था इसका मजा उठाना। तब सवेरा हुआ, मेरी इच्छानुसार नहीं, आपकी इच्छानुसार घटित हो और आनन्द–लहरें बहने लगीं! वे अपनी कृति का आनंद अपने बच्चों की आँखों से उठा सकीं।
तीसराभाग ‘द लास्ट जजमेंट’ कल्कि का उत्तर–भाग (बाद वाला) है और 2002 से 23rd फरवरी 2011 तक के घटनाक्रम को दर्शाता है, जब श्री माताजी ने अपने वैश्विक मिशन को पूर्ण किया और अपने विराट–स्वरूप को धारण किया।
उद्गार – योगी महाराज
सन् 1991
अध्याय – 1
कृतयुगकाप्रारम्भ (सवेरा) एक परिचायक–स्वरूप् माँ की श्री गणेश–पूजा के आशीर्वाद से एक जनवरी को मुकुंद–मंदिर (थाना) से हुआ। श्री माताजी ने बताया कि परम चैतन्य पूर्णतया प्रभावकारी हो गया था और नम्रतापूर्वक आगाह किया कि यह बहुत दक्षता से उन्हें दण्डित करेंगे, जिन्होंने कोई अधार्मिक कृत्य किया।
बादमेंशामकोअचानकश्रीमाताजीकोखांसीशुरूहुई।प्रत्येकबारएकविशेषव्यक्तिश्रीमाताजीकेसामनेआताऔरउनकीखांसीऔरतेजहोजातीथी।बादमेंमालुमहुआकिउसव्यक्तिकोश्वासनलीकीसूजन (शोथ) थी और श्री माताजी स्वयं उसे अपने अंदर खींचकर शुद्ध (clear) कर रहीं थीं। कृपालु माँ ने अपने शरीर को उसकी नकारात्मकता को सोखने के लिए तैयार किया, “मैं तुम्हारी तकलीफ को अवशोषित करने को स्वयं को नहीं रोक सकती, क्योंकि मेरे प्यार की शक्ति मेरे आगे–आगे दौड़ती है। जब मैं किसी की तकलीफ को देखती हूँ, मेरा शरीर उसकी तकलीफ को सोख लेता है।”
उनकीकरूणाहरेकसाधकपरबरसीजोभीउनकेद्वारआया, खाली हाथ कोई भी नहीं लौटा। रोज आने वाले साधकों की धारा के लिए उनकी रसोई निरन्तर (चौबीसों घंटे) पहिले से ही तैयार रहती थी। आराम करने से पहले वे देखती थीं कि उन्हें (साधकों को) क्या दिया गया था, यदि वे संतुष्ट नहीं होतीं, वे स्वयं खास मिठाइयों के लिए खरीददारी पर निकलती थीं।
उनकीकरूणा (दया) उनके द्वार से बहुत आगे गरीब और उत्पीड़ित के लिए विस्तृत फैली हुई थी। वे स्वयं संक्रान्ति–पर्व पर गरीब किसानों के लिए तिल–गुड़ से बनी मिठाइयों की तैयारी की देखभाल करती थीं। वे किसानों की खेती की उपज को बढ़ाने (उन्नत करने) हेतु पानी को चैतन्यित करती थीं। उनके आशीर्वाद से किसानों ने अच्छी उपज बटोरी। उन्होंने महसूस किया कि प्रकृति (पौधे और जानवर) चैतन्य के प्रति मनुष्यों की अपेक्षा ज्यादा प्रभावकारी तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, क्योंकि वे ब्रहमाण्डीय चेतना के प्रति पूर्णतया आज्ञा–पालन में कार्य–रत रहते हैं, जबकि मनुष्य उस चेतना से अलग हो गया था। परिणामस्वरूप मनुष्यों ने ब्रहमाण्डीय चेतना से अन्तः संचार (अन्तर्सम्बन्ध) खो दिया था।
तथापि (बहरहाल) कुण्डलिनी जागरण के आशीर्वाद से बच्चों के लिए ब्रहमाण्डीय चेतना से जुड़ना संभव हो पाया, क्योंकि वे उस शक्ति से एकाकार हो चुके थे, वे इसके सभी अंग– प्रत्यंगों से संबंधित हो चुके थे। उदाहरण के लिए, जब एक दक्षिण अफ्रीकी साधक (जो बीमार था), ने उन्हें फोन किया, श्री माताजी ने अपना चित्त उस पर डाला ओर वह निरोग हो चुका था। यह एक नया आयाम था। जिसे उन्होंने चौथा आयाम कहा। यह आयाम मानवीय विज्ञान से परे था। श्री माताजी ने इसे ‘मेटा सांइस’ कहा।
श्रीमहाशिवरात्रिपूजादिल्ली 9 फरवरी को श्रीमाताजी ने चौथा आयाम खोला। पूजा के दौरान उन्होंने अपने बच्चों को ब्रहमाण्डीय चेतना के नए क्षितिज तक उन्नत किया। आने वाले सप्ताह इटली के सिन्सीआनो शहर में भी श्री महाशिवरात्रि पूजा सम्पादित हुई। श्री माताजी ने स्पष्ट किया कि यह ब्रहमाण्डीय चेतना चक्रों का, स्पंदन या कुण्डलिनी का ज्ञान नहीं था, बल्कि सर्व–शक्तिमान परमात्मा का ज्ञान था। “एक बार आपका परमात्मा से स्पर्श (योग) हो गया, वही सच्चा ज्ञान था। यह ज्ञान बौद्धिक–स्तर का नहीं था। यह आपकी आनन्दानुभूति से आयेगा और आपके मस्तिष्क को भी आच्छादित कर लेगा, ताकि आप इससे असहमत न हों।”
जैसेहीउन्होंनेअपनेबच्चोंसेमस्तिष्कीयधुंधलापनहटाया, बच्चे सत्य की झलक पाकर चौंक गए। यह बोध मस्तिष्कीय/बौद्धिक ज्ञान से एकदम उल्टा था।
किन्तु, सत्य–दर्शन की झलक थोड़े–से समय (अल्पकालीन) ही रही। शीघ्र ही वे एक दूसरे बौद्धिक ज्ञान के भ्रम में गिर गए, ज्यादा खास–तौर से इटालियन साधक।
श्रीमाताजीनेअपनानिवासस्थानलंदनसेइटलीस्थानान्तरितकरनेकाविचारकिया।इटालियन (इटली के) सहजयोगियों ने मिलान के पास एक भव्य इमारत (महलनुमा) castle, जिसका मालिक एक इटालियन आर्ट–डीलर था, का सुझाव दिया। सहज–योगी उसकी ख्याली पुलाव पकाने (परियों की कहानी) वाली बातों से अपने होश गॅंवा बैठे और उस व्यक्ति की चैतन्य–लहरियों को देखना भूल गए। हालाँकि उसकी चैतन्य–लहरियां श्री माताजी से छिप न सकीं। उसने उस इमारत की एवज में पूरी कीमत पेशगी (advance) में मांगी, किन्तु श्री माताजी ने उसका खेल (मंतव्य) जान लिया था और रजिस्ट्रेशन से पूर्व कोई भी भुगतान करने से मना कर दिया। उसने श्री माताजी को फुसलाना चाहा, किन्तु श्री माताजी अपनी बात पर दृढ़ (कायम) रहीं। सौदा तय करने के समय सब पर यह जाहिर (स्पष्ट) हो गया था कि द्वितीय विश्व–युद्ध के दौरान उसने कई बेशकीमती कलात्मक वस्तुओं (कृतियों) को चुराया था, तथा उन्हें चर्चों (गिरजाघरों) में छिपा दिया था। इसके अतिरिक्त, वह कई ईमानदार खरीददारों की पेशगी (अग्रिम) भुगतान–राशि निगल चुका था ओर उनके सौदों को कभी रजिस्टर नहीं कराया।
इटालियनयोगियोंकीपिंगलानाड़ी (right side) भड़क उठी और उनका गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने पूछा “माँ आप एक कुटिल व्यक्ति को कैसे प्रेम कर सकती हैं?”
श्रीमाताजीनेयोगियोंकीपिंगलानाड़ी (right side) (उत्तेजना) को शांत किया “तुम्हें उनकी राह पर नहीं चलना और उसके साथ कुछ भी नहीं करना है, किन्तु यदि आप निर्व्याज प्रेम करते हैं, तब वह बदल सकता है। यदि वह नहीं सुधरता है, तो चिन्ता न करें।”
श्रीमाताजी 28 फरवरी को होली पर दिल्ली लौट आईं। हॅंसी–मजाक और कौतुकी (किल्लोल–प्रिय) माहौल में श्री माताजी ने उनका (चित्त) ध्यान हृदय पर रखने की सलाह दी, ताकि यह आज्ञा–चक्र पर प्रकाशित हो सके। “जब आप चित्त को नियंत्रण में रखते हो, इसका आशय यह नहीं कि आप जोर लगा रहे हो, किन्तु आत्मा के प्रकाश में अपने चित्त को देखने मा़त्र से (निगरानी से), यह प्रकाशित हो जाता है।”
श्रीकृष्णकीलीला–युक्त मनोदशाओं में, श्री माताजी ने मनोरंजक गाथाओं का वर्णन किया, जिसमें मस्तिष्क को संस्कारों के पिंड (चिपकाव) से मुक्त करने की युक्ति थी, “यह मन एक विदूषक (joker) की तरह है और उसे संस्कारों से चिपकाव (मोहमुक्त) कराने का रहस्य है– अपने चित्त को शांत (तनाव–रहित), प्रसन्न और स्वयं की (मूर्खताओं) पर मुस्कराते रहना।”
एकविशेषपेय (ठंडाई) गुलाब–जल, केसर और जड़ी–बूटी से निर्मित श्री माताजी को निवेदित की गई। श्री माताजी ने इसे चैतन्यित किया और थोड़ी–सी कुम्हलाए हुए गुलाब पुष्पों के गुलदस्ते पर छिड़क दी। सब आश्चर्य में थे, “गुलाब पुनः जीवित हो चुके थे।”
योगीजनआनंदमेंसराबोरहोगएऔरश्रीमाताजीकेइर्द–गिर्द नृत्य करने लगे–कालातीत होकर।
श्रीमाताजीनेमुस्करातेहुएकहा, “जब मैं तुम्हें एक दूसरे के प्रति निर्मल (निष्कपट) अहसास में देखती हॅं, यह अहसास (भाव) मुझे परमानन्द देता है।”
श्रीमाताजीकेजन्म–दिवस पर बच्चों के निस्पृह प्रेम की अनुभूति ने माँ को प्लावित कर दिया ओर वे मुस्कराईं, “मानव का उत्थान शुद्ध प्रेम की लहरियों से हो सकता है और किसी तरह से नहीं।”
माँकेप्रेमकीयहअनुभूतिप्रेमकेसागरमेंविस्तारितहोगई, जिसने नए साधकों को भी सराबोर (निमग्न) कर दिया, ऐसी हृदयानुभूति जिससे सारा संसार जान गया कि ये लोग प्रेम–योगी थे।
प्रेमकेलिएप्रेमओरयहनिर्व्याजप्रेमस्वयंबिनास्वार्थकेपरिपूर्णसम्पन्नता–दायक था।
श्रीमाताजीकाजन्म–दिवस मुंबई में 21 मार्च को समारोहित हुआ। बंगाल से माँ के बच्चे उनका जन्म–दिवस मनाना चाहते थे, किन्तु वे 25 मार्च को वहाँ पहुँच सकीं। यह रामनवमी का दिन था और श्री माताजी ने कृपा करके उन्हें पूजा का आशीर्वाद प्रदान किया।
श्रीमाताजीनेश्रीरामकेएकआदर्श–शासक होने के गुणों की प्रशंसा की, वे एक हितकारी राजा थे– जैसा कि सुकरात के द्वारा वर्णित है। किन्तु जिस तरह का कार्य श्री माताजी कर रहीं थीं, उसे न तो श्री राम, न श्री कृष्ण या न ईसा मसीह कर सकते थे। यह सामूहिक आत्म–साक्षात्कार का कार्य श्री माताजी के लिए छोड़ा गया था। “श्री राम ने जन–मत का मान रखा– सर्वोच्च समझा। यदि एक राजनेता इसे समझ ले, तो वह लालच छोड़ देगा। उसे यदि यह समझ आ जाये कि वह अपने साथियों (प्रजाजनों) पर शासन करके, उसे संतोष मिलेगा। जब उसके पास राजनीतिक शक्ति होती है, वह सत्ता (शक्ति) प्राप्त करने के लिए अपनी आत्मा को समर्पण करता है– अपनी सत्ता को बनाये रखने के लिए। वह चाहता है दूसरे उसकी आज्ञा मानें और उसे सम्मान दें, बजाय अपनी आत्माओं के प्रति झुकने के, उसे महत्व दें। तब वह अपनी राजनीतिक–सत्ता का उपयोग पैसे कमाने में करता है और राजनैतिक–शक्ति पाने के लिए पैसा कमाता है। क्योंकि इस व्याकुलताभरी हालत से सामाजिक–रूप से हमारे देश का अपमान हुआ है।”
श्रीमाताजीटिप्पणीकरतीगईं, “यदि हमारे राजनेता लोग आत्म–साक्षात्कार को प्राप्त हो जायें हमारे देश में हितकारी नेता होंगे, जो सामूहिकता की राजनीति को समझ पायेंगे। वे देख पायेंगे कि कहाँ क्या दोष है और क्या ठीक किया जाना है?”
उन्होंनेतत्कालीनप्रधानमंत्रीश्रीराजीवगांधीकोदेशमेंराम–राज्य प्रारम्भ करने की सलाह दी। उन्होंने उन्हें नारी–सम्मान (अस्मिता) की रक्षा करने हेतु प्रेरित किया। नारी–शक्ति (औरतों) को पुरूषों के बराबर मेहनताना नहीं मिल रहा था। एक स्त्री का स्त्री–धन (जो गहने उसे ससुराल से/पति से मिलते हैं) वही उसकी सुरक्षा (सिक्योरिटी) है। नारी शक्ति को सम्पत्ति कर (wealth tax) से भी निजात मिलनी चाहिए। संत्रस्त (पीड़ित) महिलाओं को संरक्षण दिया जाना चाहिये। महिलाएं जो नौकरी, व्यवसाय या आर्थिक संकट में फॅंसी हों, उन्हें शासकीय सहायता मिलनी चाहिये। तलाक/संबंध विच्छेद की स्थिति में उन्हें पति की सम्पत्ति का आधा हिस्सा मिलना चाहिये।
श्रीराजीवगांधीकोश्रीमाताजीकेप्रतिगहरासम्मानथाऔरउन्होंनेश्रीमाताजीकीसलाहपरचलनेकावचनदियाथा, किन्तु दुर्भाग्यवश 25 मई को उनकी हत्या कर दी गई।
पूजाकेउपरान्त, पूजा में उपस्थित एक सुप्रसिद्ध राजनेता की कुण्डलिनी के द्वारा भ्रष्टाचार की समस्या पर श्री माताजी ने कार्य करना शुरू किया, वे बहुत बीमार हो गईं और उस राजनेता के नाभि–चक्र की सफाई करते–करते पूरी रात उल्टियाँ करती रहीं। सुबह उस राजनेता ने अपना अपराध (रिश्वत–खोरी) स्वीकार करते हुए श्री माताजी से क्षमा मांगी। श्री माताजी ने दयार्द्र हो उसे क्षमा कर दिया। श्री माताजी की कृपा से वह राजनेता एक बहुत महत्वपूर्ण पद (केबिनेट–मंत्री स्तर) तक उन्नत हुआ। वे अपना वादा नहीं भूले और सफलतापूर्वक अपने विभाग से भ्रष्टाचार का उन्मूलन किया।
1991
अध्याय – 2
श्रीमाताजीकेजन्म–दिवस समारोह का आनन्द समय के साथ–साथ बढ़ता गया। सिंगापुर की सामूहिकता को श्री माताजी की आस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान (en-route) सिंगापुर एअरपोर्ट पर (transit lounge) में जहां वे आराम कर रहीं थीं, उनके जन्म–दिवस मनाने का अवसर प्राप्त हुआ। जन्म–दिवस पर केक काटते हुए श्री माताजी ने विनोदपूर्वक टिप्पणी की “मेरा जन्मदिन दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और अब सिंगापुर में मनाया जा रहा है। यदि आस्ट्रेलियन सहजी भी इसे मनाएं, तो मैं बहुत तेजी से बूढ़ी हो जाऊॅंगी।”
श्रीमाताजी 27 मार्च को आस्ट्रेलिया (पर्थ) पहुंचीं और उसी संध्या को 300 सत्य साधकों पर मध्य–रात्रि तक कार्य किया।
अगलेदिनशहरकेबाहरआश्रम–स्थल पर जहां से एक झील का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है, श्री महावीर पूजा का आयोजन हुआ। श्री माताजी ने जाहिर किया, “श्री महावीर इड़ा नाड़ी पर विचरण करते हैं और सुपर–ईगो (प्रति–अहंकार) के स्थान पर रहते हैं। वे हमारी बायीं नाड़ी को नियंत्रित करते हैं– उस पर कार्य करते हैं और उसे साफ करते हैं। जब बायीं ओर के किसी भी चक्र पर आक्रमण होता है, तब मानसिक व्याधि शुरू हो जाती है।”
आस्ट्रेलियाकापूर्वीसमुद्रीकिनारा 4 महीनों से सूखे से पीड़ित रहा था। जैसे ही श्री माताजी सिडनी पधारीं, बारिश शुरू हो गई। बरखा रानी ने आज्ञाकारी और करूणार्द्र हो 31 मार्च की प्रातः तक, ईस्टर–पूजा के ठीक पहिले तक वर्षा की।
श्रीमाताजीकीकुण्डलीईस्टरपूजापरसार्वजनिकरूपसेपढ़ीगई, एक सुप्रसिद्ध भारतीय ज्योतिर्विद ने इसे तैयार किया था ओैर इसकी तुलना महात्मा बुद्ध, ईसा मसीह, भगवान कृष्ण, मोहम्मद साहिब, गुरूनानक साहिब ओर श्री आदि शंकराचार्य की कुण्डली से की। उन्होंने कहा, यह कुण्डली श्री माताजी के जीवनवृत्त और सहज–योग से सही–सही मेल खाती है। एक उन्नीस–वर्षीय समय चक्र जो फरवरी 1994 से आरम्भ होकर सहज–योग के विश्व–स्तरीय प्रसार को तथा पूरे विश्व में श्री कल्कि–शक्ति के आभास को चिन्हित करेगा।
पूजाकेप्रवचनकेदौरानश्रीमाताजीनेदृढतापूर्वककहाकिपरमचैतन्यकार्यान्वितहोनाशुरूहोगयाहै, “इसलिए हमें सब चमत्कारी फोटोग्राफ्स (चित्र) मिले हैं, क्योंकि ये चमत्कार परमात्मा की सर्वव्याप्त शक्ति द्वारा सम्पादित किए गए हैं। बाह्य में कोई भी बाहरी चीजें प्राप्त कर सकता है, इसमें कोई भी महानता नहीं है, किन्तु आन्तरिक जीवन (सूक्ष्मता) प्राप्त करना ही वह तरीका है, जिससे हम स्वयं को साफ रख सकते हैं और यह पुनर्जीवन प्राप्त करना (आत्म–साक्षात्कार पाना) उसी तरह संभव हो सका, जैसी ईसा–मसीह ने भविष्य–वाणी की थी।”
इसकेबाद, 3 फीट ऊॅंचे ईस्टर–एग (ईस्टर–अंडा, यानि ईसा–मसीह के पुनरूत्थान त्यौहार पर प्रायः चॉकलेट से तैयार की गई अंडाकार कृति) के क्राउन (शीर्ष) को तोड़ने हेतु पहुंचीं माँ ने सांकेतिक रूप से विश्व के अहंकार को समाप्त किया।
स्काउटकैम्प्सलीडरसहजयोगियोंकेबीचप्यारदेखकरबहुतप्रभावितहुआ।उसनेश्रीमाताजीकोबधाईदीऔरउसनेउसेप्रमुखस्काउटसेवाओंकेलिएप्रदत्तस्काउट–मैडल (पदक) को, श्री माताजी को भेंट किया।
ब्रिसबेनमेंभवसागर–पूजा पर उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के गुरूतत्व को शक्तिशाली बनाया। उसके बाद, उन्होंने 8 अप्रैल को ऑकलैंड में आयोजित श्री गौरी–पूजा पर अबोधिता के सिद्धांत को आशीर्वादित किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि श्री गौरी श्री गणेश की माँ हैं, उसी प्रकार कुण्डलिनी भी श्री गौरी माँ हैं, “हमारी कुण्डलिनी (माँ) हमारी इच्छाओं की पूर्ति करती हैं और हमारे जीवन के अर्थ को पूर्ण करती हैं। हमें उस बिन्दु (मकाम) पर ले जाती हैं, जहां से हम पूरी दुनिया को एक (सम्पूर्ण) देखते हैं। वे हमें सामूहिक–चेतना प्रदान करती हैं।”
उन्होंनेस्मरणकरायाकिसहज–योग में स्वर्ग का टिकिट नहीं दिया जाता। यह कार्यान्वित करना पड़ता था– पूरी समझ–बूझ, सहयोग के साथ कि कुण्डलिनी माँ क्या हैं और कैसे उनका कार्य होता है।
अगलेदिन, सहज कार्यक्रम के बाद, उन्होंने सहज–साधकों पर तीन घंटे तक कार्य किया। अंतिम साधक बोला, “श्री माताजी, आपके धैर्य को देखकर मैंने अपना धैर्य विकसित कर लिया है।”
श्रीमाताजीनेकहा, “प्यार तुम्हें धैर्य प्रदान करता है।”
उनकेप्यारनेमेलबॉर्नकीसहिष्णुता (धैर्य) को उत्पन्न किया, 10 अप्रैल विराट पूजा के साथ। उन्होंने रहस्योद्घाटन किया कि विराट आदि पिता हैं, जो मस्तिष्क में सामूहिकता के लिए कार्य करते हैं। जो योगी सहस्रार पर आ गए हैं, उन्हें समझना होगा कि सामूहिकता ही हमारे आध्यात्मिक उत्थान का आधार है। यदि सहज–योग में सामूहिकता स्थापित नहीं हो पाई, तब यह समाप्त हो जायेगा। मैं बहुत खुश हूँ, यदि आप सामूहिकता को समझते हैं और एक दूसरे को परस्पर प्रसन्न रखते हो। ऐसा व्यक्ति (योगी) मुझे बहुत ही प्रिय है– मुझे बहुत खुश रखता है।
पूजाकेचैतन्यनेनकारात्मकताकोहटादियाथाऔर 400 साधकों को उनके चरण–कमलों पर ले आया। श्री माताजी को अचानक एक आदिवासी जैसा प्रतीत होता एक साधक दिखाई दिया। वह पुनः अपनी आदि–मानव की स्थिति में जाना चाहता था। श्री माताजी ने उसे समझाया, “यह संभव नहीं है, क्योंकि हम सबका मस्तिष्क आधुनिक है। बाह्य में इन सब चीजों को परिवर्तित करके मात्र अपनी पहचान प्राप्त करने से आप आदि–कालीन नहीं हो सकते।”
इसकेथोड़ीदेरबाद, श्री माताजी कैनबरा पधारीं। जब वे आश्रम में सामूहिकता से बातचीत कर रही थीं। अचानक एक शिशु खांसी करने लगा “तुम्हें मालुम है, मैं एक बच्चे को तकलीफ उठाते नहीं सहन कर सकती।”
श्रीमाताजीनेउसबच्चेकोगोदमेंउठायाऔरगलेलगाया, और तब उन्होंने नीलगिरि–तेल मॅंगवाया और उसकी रीढ़ की हड्डी पर मालिश करना शुरू किया, तब तक कि उसकी खांसी ठीक नहीं हो गई।
कैनबराकार्यक्रमप्रतिष्ठितराष्ट्रीय–प्रेस क्लब में आयोजित हुआ। श्री माताजी उस रात्रि बहुत स्पष्ट (निस्संकोच) बोलीं। एक स्थिति ऐसी आयी कि कुछ पुर्नजीवन–प्राप्त (born again) ईसाइयों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया कि ईसा मसीह मात्र एक ही थे और इन लोगों ने पहिले से ही कैसे होली–घोस्ट (आदिशक्ति) को अनुभव किया था। कार्यक्रम–स्थल (हॉल) में तनाव बढ़ने लगा और तब, ईसा मसीह की माँ अपने शाही (राज–मर्यादा) अंदाज में चर्च की कार्य–प्रणाली की पोल खोलते उठ खड़ी हुईं और कहा, कैसे ईसाई मत ने उनके पु़त्र ईसा मसीह को नुकसान पहुँचाया था। गूढ़ सत्य ने उपस्थित ईसाई–जन के अहंकार को आश्चर्य–चकित कर दिया और वे खामोश हो गए। इस शांति में सत्य साधकों की कुण्डलिनियाँ अपने सर्वोच्च अधिकारिणी के समक्ष नत मस्तक थीं।
14 अप्रैल को श्री माताजी ने श्री गणेश पूजा में नए आत्म–साक्षात्कारी बच्चों के मूलाधार चक्र को साफ किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि पश्चिम में (पाश्चात्य देशों में) ज्यादातर समस्याएं और विचित्र व्यवहार लोगों के मूलाधार चक्र में बाधाओं की वजह से हैं। अबोधिता को ग्रहण करने के लिए उन्होंने सलाह दी कि साधक अपनी आँखें (नजरें) 3 फीट के स्तर तक रखें, ताकि बच्चों, फूलों, घास (पत्तों), धरती माता तथा हरेक सुन्दर वस्तुओं को देखें उसके ऊपर कुछ भी सुन्दर देखने को नहीं है या इसके अतिरिक्त, ऊपर लोगों के सिर ही दिखेंगे।
15 अप्रैल को 1500 साधकों ने श्री माताजी का स्वागत राजकीय–छविगृह, सिडनी में किया। श्री माताजी ने उन पर मध्य–रात्रि तक कार्य किया और दूसरे दिन उन पर दुबारा कार्य करने आयीं और रात्रि 2 बजे वापस लौटीं।
18 अप्रैल को न्यु–कैसल के लार्ड मेयर ने श्री माता जी का न्यु–कैसल टाऊन हॉल (सभागार) में गर्म–जोशी से स्वागत किया। उन्होंने श्री माताजी के कार्य– मानवता के एकीकरण की प्रशंसा की। श्री माताजी ने उत्तर दिया कि उन्होंने सहज–योग में दूवदूतों को जन्म दिया है (सृजन किया है) जो कभी तर्क–वितर्क नहीं करते। यह जानकर उन्हें (मेयर साहब को) आश्चर्य हुआ, क्योंकि उनकी कौंसिल (परिषद) में वे हमेशा विचार–विमर्श तथा तर्क–वितर्क करते रहे थे।
श्रीमाताजीनेसमझायाकिसहजयोगमेंकोईतर्क–वितर्क नहीं होते, क्योंकि हरेक साधक सत्य के धरातल पर खड़ा होता है, यदि सभी सत्य (वास्तविकता) पर खड़े हों, वहां कैसे कोई तर्क–वितर्क हो सकते हैं। वहां केवल सहमति और स्वीकृति ही होगी।
न्यु–कैसल शहर के साधकों ने विचार–विमर्श (सोचने) में कोई समय नहीं गंवाया और वास्तविकता (पूर्णत्व) को स्वीकार किया!
हवाई (द्वीप समूह) रवाना होने से पूर्व श्री माताजी ने सहज–सामूहिकता को सलाह दी किस प्रकार से नए साधकों (नवजात बच्चों) का पालन–पोषण एकाग्रतापूर्वक उनके आंतरिक–विकास पर ध्यान द्वारा किया जाय और इस तरह उनकी शक्ति में वृद्धि करना।
हवाईकार्यक्रममेंश्रीमाताजीनेपायाकिसाधकोंकीकुण्डलिनीउनकीइड़ानाड़ीकीजड़ताकेबोझसेबोझिलथी।उन्होंनेथोड़ाजलचैतन्यितकियाऔरउसेछिड़कनेकोकहा।
23 अप्रैल को श्री माताजी लॉस–एन्जेलेस पधारीं। सन उन्नीस सौ तैरासी 1983 के बाद से यह पहला जन–कार्यक्रम था। पिछले 8 वर्षों से परम–चैतन्य कार्यान्वित हुआ और 300 साधक कार्यक्रम में लाए गए। श्री माताजी बहुत प्रसन्न थीं कि विश्व निर्मला धर्म कैलीफोर्निया में एक धर्म की हैसियत से पंजीकृत हुआ।
26 अप्रैल को श्री माताजी न्युयार्क कार्यक्रम के लिए रवाना हुईं। यह कार्यक्रम फ्लशिंग मीडो पार्क, जो कि 1960 के विश्व–मेले का घर था, वहां पर आयोजित हुआ था। करीब 450 साधकों ने अपना आत्म–साक्षात्कार पाया। इसके बाद यूनाइटेड–नेशंस में एक कार्यक्रम आयोजित हुआ।
श्रीमाताजीनेआराममनातेहुएक्वीन्सस्थित, जैकसन–हाइट्स शॉपिंग सेंटर, जो एक विशाल भारतीय (बस्ती) के (क्वीन्स स्थित) पड़ोस में है, खरीददारी की। इस शॉपिंग सेंटर के मालिक ने उनका स्वागत किया, श्री माताजी इस शॉप पर पहले आ चुकीं थीं। श्री माताजी की पूर्व यात्रा के बाद से उस दुकान मालिक ने दुकान में श्री माताजी की छवि (फोटोग्राफ) स्थापित की थी और तब से उसका व्यापार खूब फला–फूला था।
श्रीमाताजीनेमहसूसकियाकिअमेरिकाकाहंसाचक्रखोलनेकोपरिपक्वसमयआचुकाथा। 28 अप्रैल को श्री माताजी ने न्यूयार्क को हंसा–चक्र स्वामिनी पूजा का आशीर्वाद दिया। “हंसा हमें सद्–असद् (विवेक) प्रदान करता है। हमें अपने विवेक द्वारा समझना चाहिए कि हमारी गुरू श्री माताजी हैं। वे महामाया और आदि–शक्ति हैं। वे बहुत दयालु हैं और विनम्र हैं। अतः हंसा–चक्र पर आत्म–अनुशासन होना चाहिये ताकि हम विवेक के प्रति सचेत हों, क्या अच्छा है, क्या बुरा है, इसके प्रति सतर्क हो सकें।”
अमेरिकाकीमुसीबतकावक्तकटगयाहै, (इससे) भय–मुक्त आश्वासित हो, वे इटली के लिए रवाना हुईं।
1991
अध्याय – 3
मईमहीनेकीशानदारसुबहश्रीमाताजीनेइस्कीयाद्वीप (Ischia) जो नेपल्स के नजदीक था, जाने की तैयारी की।
पूजा 5 मई को स्पोर्ट्स स्टेडियम जो कि सहस्त्रार की पंखुड़ियों के सदृष प्रतीत होता था, वहां हुई। श्री माताजी ने स्पष्ट किया “सहस्रार पर महामाया प्रकट होती हैं ओर उन्हें पहचानना आसान नहीं होता है, क्योंकि वह ठीक साधारण मानव जैसा जीवन व्यतीत करती हैं। आधुनिक समय में सहस्रार ही वह राह है, जो सहज–योग को कार्यान्वित करती है, यदि हम समझ जायें कि हृदय का सहस्रार में बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है।”
एकसुन्दरउदाहरणअनुरूपताकादेतेहुएश्रीमाताजीनेवर्णनकियाकिसमुद्रचन्द्रमाकेसाथकैसेप्रतिक्रियाकरताहै।वहउसकीगतिशीलताकोसांकेतिकरूपमेंजवाबदेताहै।उसीप्रकारसेप्रतीकात्मकरूपसेअंतस्थमेंआध्यात्मिकताकेअनुभवद्वाराहृदयमेंसंवेदनाकीलहरोंकासृजनहुआ।
जैसेहीश्रीमाताजीबोलीं, उनके बच्चों ने उनके सहस्रार पर माँ की चैतन्य लहरियों का अहसास किया और वे उस ब्रहमाण्डीय शक्ति कल्कि के अभिन्न अंग–प्रत्यंग बन गए।
नेपल्सकेएककार्यक्रममेंएकसाधकनेपूछा, “क्या यह विश्व समाप्ति की ओर जा रहा है?”
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “नहीं, क्योंकि सहज–योग प्रारम्भ हो चुका है।”
इसीबीचधर्मशालास्कूलसेएकअपशकुन–सूचक रिर्पोट आयी कि 17 मई को फ्रांसीसी–पत्रकारों का एक समूह छद्म–वेश में, एक फ्रांसीसी बच्चे जोहान (विद्यार्थी) के सम्बन्धी के रूप में स्कूल पहुंचे। जोहान की माँ जोसेट इस मुलाकात (visit) से अनभिज्ञ थी। यह EDFI (एक गुप्त कैथोलिक संस्थान) की (अनुचित) एक चाल थी, सहज–योग को हानि पहुँचाने/बदनाम करने की। उन्होंने फ्रेंच (फ्रांस के) समाचार–पत्रों में स्कूल को बदनाम करते हुए कलंकित करने वाली रिर्पोट छापी और आम जनता का गलत मार्ग–दर्शन किया, यह विश्वास दिलाते हुए कि सहज–योग एक पंथ, पूजा करने की विधि (cult) है। उनकी विस्तृत विरोधी–विज्ञापन के परिणाम–स्वरूप बहुत से योगियों की नौकरियाँ छूट गईं और वहां के वासियों ने सहज–योग के लिए कार्यक्रम–स्थल/हॉल आदि किराये से देने बंद कर दिए।
धर्मशालास्कूलनेपत्रकारोंपरमुकद्दमाकायमकियाऔरकोर्टनेझूठेछद्म–वेश धारण करने और अनधिकार–प्रवेश करने के आधार पर वारण्ट्स जारी किए (गिरफ्तारी के आदेश जारी किए)।
इससाजिशसेखुलासाहुआकिजोहानकेनानाजीसहज–योग के विरोधी थे और अपनी बेटी जोसेट को उसके सात–वर्षीय पुत्र को स्कूल भेजने से मना किया था, किन्तु उसने ध्यान नहीं दिया और पिताश्री की इच्छाओं के विरुद्ध अपने पुत्र को (धर्मशाला) स्कूल भेजा। उसके प्रतिकार में उसके पिता ने EDFI (कैथोलिक संस्थान) के साथ गठबंधन किया और सहज–योग के विरुद्ध (केस) मुकद्दमा दायर किया। अंत में, फ्रेंच कोर्ट (फ्रांसीसी न्यायालय) ने फैसला दिया कि यह झगड़ा बच्चे के नाना–नानी और माता–पिता के बीच का था और इसका स्कूल की ख्याति– शोहरत, स्कूल के संचालक/सहज–योग से कोई लेना–देना नहीं बनता था।
श्रीमाताजीइसघटनाक्रमसेउदासहोगईं।उन्होंनेमानवताकेउत्थानकेलिएसबकुछन्यौछावरकरदियाथाऔरधर्मशालामेंअपनेस्वयंकेपैसोंसेअपनेबच्चोंकेसहजलालन–पालन (प्रारंभिक शिक्षा) हेतु स्कूल खोला था। उन्होंने जोहान को घर लौटने की सलाह दी।
जुलाईमेंश्रीमाताजीमिलानपधारीं, एक आवासी–मकान देखने के लिए। एक सुबह एक अंग्रेज सहज–योगी जो कि पहले जुड़े 7 सहज–योगी–समूह से था, हेवियर के आवास पर घंटी (call bell) बजाकर दस्तक दी, श्री माताजी के फोटोग्राफ वापिस करने के लिए। उसने शिकायत की कि सहज–योग उसके लिए बहुत भीड़–भाड़ युक्त हो गया था, श्री माताजी के इर्द–गिर्द बहुत ज्यादा लोग हो गए और उसने श्री माताजी के साथ की अंतरंगता खो दी थी।
श्रीमाताजीनेसमझायाकिवेएकान्तिक (सीमित) नहीं हैं, बल्कि समावेशी हैं, सबको शामिल करने वाली हैं। बूँद को सागर बनना था, और जब तक कि वह सामूहिक नहीं होता, वह सहज–योग में ऊॅंचा नहीं उठ सकता। अपनी आँखों में आंसुओं के वे साथ बोलीं, ”क्राइस्ट (ईसा मसीह) ने कहा था, पहिला वाला अंतिम होगा।“
अगलेदिन, जिनोआ कार्यक्रम में कबेला के मेयर (नगर–अध्यक्ष) को उनका आत्म–साक्षात्कार मिला और उन्होंने श्री माताजी को कबेला आने का न्यौता दिया। उन्होंने श्री माताजी को पंद्रहवीं सदी का एक कैसल castle ड्यूक ऑफ़ जिनोआ द्वारा निर्मित दिखाया।
यहकिला (castle) पहाड़ी की चोटी पर एक चक्कस (चिड़ियों के बैठने का अड्डा) जैसा, उनकी कार के चढ़ने हेतु अति चढ़ाई पर था। श्री माताजी प्रसन्नतापूर्वक लुढ़कती हुईं हरियाली से आच्छादित पहाड़ियों के चमत्कार–पूर्ण दृश्य की सराहना करती हुईं ऊपर चढ़ती गईं। यह महल (castle) अपने अंतिम पायदान पर खड़ा प्रतीत होता था। यद्यपि, महल की अंदरूनी छतें खूब–सूरती से रंगी हुईं थीं, महल की छत पहली तूफानी हवा के साथ उड़ान भरने को तैयार दिखाई दी। लकड़ी की फर्श चरमरा रही थी और सहज–योगियों ने श्री माताजी को इसे खरीदने से निरूत्साहित किया। “माँ, यह एक ऐसा दूरगाामी दुर्गम स्थान है, कौन आयेगा यहां, आसपास यहां माफिया हैं।”
जबयोगीजनइसकामजाकउड़ारहेथे, श्री माताजी अनायास मुड़ीं, “हॅंसो मत, मैं चैतन्य–लहरियों से अभिभूत (प्लावित हूँ) चैतन्य लहरियां देखें, इसकी सम्भावनाएँ देखें। संभावनाओं को महसूस करने के लिए इस स्थान की चैतन्य–लहरियां देखें।”
जैसेहीयोगियोंनेचैतन्यदेखेउनकेहाथगानेलगे।यहमहल (किला) पूर्व में एक आर्ट डीलर द्वारा ऑफर किए गए किले (castle) से कीमत में चौथाई मूल्य का था। इसके अतिरिक्त, इस में दुगुनी आवास व्यवस्था थी।
योगियोंनेअपनेकानखींचेऔरक्षमाकीभीखमांगी।
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “अपना नजरिया (vision) सुधारने हेतु तुम्हें ध्यान करना होगा। यह नजरिया नहीं होना चाहिये, जो किसी खास वस्तु के बारे में तुम्हारे खास विचार प्रतिबिम्बित करे, किन्तु आपका नजरिया स्पष्ट (स्वच्छ) होना चाहिए। आप केवल ध्यानावस्थित होइये और यह अवस्था चैतन्य प्रसारित करती है और आपके लिए पथ का सृजन करती है।”
यहकिलारेपिटीपरिवारों (Repitti families) की संयुक्त सम्पत्ति था। गुरू पूजा अगले सप्ताह आ रही थी और श्री माताजी उसके पूर्व ही सौदा तय करना चाहती थीं। रेपिटी परिवार छुट्टियों पर बाहर गए हुए थे। मेयर साहब उनसे संपर्क स्थापित करने में थोड़े संकोच–शील थे कि इटालियन लोग छुट्टियों पर परेशान होना पसंद नहीं करते थे।
श्रीमाताजीनेएकबंधनदियाऔरमेयरसाहबनेश्रीमतीरेपिटीसेसंपर्ककाप्रयासकिया।एकआदर्शात्मकइटालियनबातचीतकेबाद (जैसा कि इटालियन लोग सभी दिशाओं में हाथ लहराते हैं), मेयर साहब अंततः रजिस्ट्रेशन के पूर्व (रजिस्ट्रेशन बकाया था) एक तल (one floor) के उपयोग हेतु श्रीमती रेपिटी को फुसलाने में सफल हो गए।
जबश्रीमाताजीफ्लोरेंसकार्यक्रमसेवापसआयीं, गुरू के सुन्दर निवास ने उनका स्वागत किया, तथापि उनका ध्यान किले की सुविधाओं पर नहीं था। किन्तु अपने बच्चों की सुविधाओं पर था। उनकी तुरन्त चिन्ता आगे आने वाली गुरू पूजा जो कि 28 जुलाई को अनुसूचित थी, के भोजन–प्रबन्ध को लेकर थी। इटालियन योगियों ने प्रस्तावित किया कि एक भोजन–प्रबन्धन की सेवाएं ली जायें, क्योंकि योगियों की संख्या 500 को पार कर गई थी, किन्तु श्री माताजी का हृदय योगियों की संख्या से बोझिल नहीं था। वे बच्चों के नाभि–चक्र को खोलना चाहती थीं, ओर भोजन तैयार करने के कार्य को स्वयं राजी हो गईं। बिना आना–कानी के, किराने के सामान और भोजन बनाने के बर्तनों की खरीददारी के लिए वे मिलान रवाना हो गईं।
किले (castle) के आगे आंगन में एक खुला रसोईघर बनाया गया, श्री माताजी ने खाद्य–सामग्री के अंश (ingredients) स्वयं तैयार किए और युवा शक्ति की एक टीम को लकड़ी के चूल्हे की देखभाल हेतु निर्देशित किया गया। उनकी रसोई की सुगन्ध बच्चों के लिए एक न्यौता बनी। अपेक्षा से भी ज्यादा (दुगुनी संख्या में) सहजी पूजा में पधारे। श्री माताजी ने ख़ुशी–ख़ुशी उनके नाभि–चक्र को आशीर्वादित किया और भोजन (प्रसादी) पर्याप्त से भी ज्यादा (प्रचुरता) मात्रा में रही। भोजन से इतने ठंडे चैतन्य प्रवाहित हुए, लगा कि पूजा अभी से शुरू हो गई थी।
चैतन्यलहरियाँ, पर्वतों से बहती हुई ताजा हवा, स्वच्छ कंचन जैसी बहती छोटी जलधारा (झरना) ने इस सम्पूर्ण दृश्य को एक स्वर्गीय गुरू निवास में स्थानान्तरित कर दिया था। सादे व मजबूत टेन्ट्स (पंडाल) रेतीली जमीन पर खड़े किए गए, जो ठीक गुरू पूजा के माहौल के अनुरूप थे। श्री माताजी के बच्चे धरती माता की गोद में इतने सुरक्षित और निर्भय थे और और अपनी आत्मा के आराम में मजे से सोए।
शामकोगाँव–वासी संगीत कार्यक्रम में उमड़े। मेयर साहब ने श्रीमाताजी का गर्म–जोशी से स्वागत किया और कहा कि वे कबेला के भूतपूर्व गरिमा को पुनः स्थापित करने पधारी हैं। कार्यक्रम के समापन पर वे बोले कि योगीजन देवदूत के सदृश हैं, क्योंकि वे इतनी शांतिपूर्वक 6 घन्टे के कार्यक्रम में बैठ पाए हैं, जबकि उनके सभा (जलसे) में लोग कुछ मिनटों से ज्यादा नहीं बैठ पाते थे।
स्थानीयहोटलकेमालिकनेश्रीमाताजीकीछवि (फोटो) अपनी कॉफ़ी मशीन पर देखी। एक दूसरे ने पुरातन भविष्यवाणी का उदाहरण देते हुए कहा, जिसमें मदर मैरी के कबेला पधारने की पूर्व घोषणा थी। वह ख़ुशी के आंसुओं से अभिभूत हो गया था और जमीन जो किले (castle) से लगी हुई थी, वह प्रदान कर दी ताकि श्री माताजी की कार आसानी से (टर्न कर) घूम सके। इसी ग्रामीण ने पूर्व में एक बहुत लाभदायक ऑफर (प्रस्ताव) इसी भू–खण्ड हेतु अस्वीकार कर दिया था– जो प्रस्ताव प्रिंस दोरिया ने उसे दिया था।
श्रीमाताजीकेद्वाराएकफ्रेंचपत्रकारकेबारेमेंलिखेएकउल्लास–पूर्ण उपहास के साथ ये संगीत–सन्धया समाप्त हुई। इस पत्रकार ने धर्मशाला स्कूल का अवलोकन एक सांस्कृतिक–शोधकर्ता के छद्म–वेश में किया था।
1991
अध्याय – 4
एम्स्टरडेमकेकार्यक्रमोंकेबाद 4 अगस्त को बेल्जियम के चित्र–लिखित से सुन्दर नगर डेनिज़ में श्री बुद्ध पूजा का आयोजन हुआ। आत्म–बोध की प्राप्ति से पूर्व बुद्धजी के द्वारा की गई कठोर तपस्या का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा मेरे समक्ष एक प्रश्न था कि आप लोगों को वही सब (उसी) लम्बी प्रक्रिया से गुजारूं या तुम्हें आत्म–साक्षात्कार प्रदान करूँ क्योंकि भ्रान्ति के इन दिनों में इतना सारा समय देना संभव नहीं है, जिस स्थिति से (तपश्चर्या से) बुद्ध गुजरे। और, वह एक अकेले थे, मुझे तुम सबको आत्म–बोध देना था।
इसकेबादश्रीमाताजीविएनाकार्यक्रमकेलिएनिकलीं। 7 अगस्त को उनके बुडापेस्ट पहुंचने पर, उनका हृदय यह देखकर द्रवित हो गया कि पश्चिमी यूरोप से सहजी बच्चे पूर्वी यूरोप में सहज–योग स्थापित करने के लिए कठोर–परिश्रम कर रहे थे, जो हमें आत्म–बोध देती है, वह हमारी कुण्डलिनी है। कुण्डलिनी–जाग्रति का अर्थ है सामूहिकता। जब तक कि आप शुद्ध सामूहिकता अपने स्वयं में नहीं चाहते, कुण्डलिनी उठेगी नहीं।
सहजयोगियोंकीशुद्धइच्छा 600 साधकों को श्री माताजी के चरण कमलों पर ले आई।
9 अगस्त को उन्होंने फ्रैंकफर्ट में साधकों के हृदय खोले। उन्होंने उनके प्रश्नों के उत्तर दिए– उनके मन बहलाने के हिसाब से, किन्तु उन्हें स्मरण कराया कि वे प्रश्नों के उत्तर देने में माहिर हैं और किसी न किसी प्रकार से यह सब दिमागी कसरतें थीं। उन्हें उनका उत्तर मिल गया और उन्होंने आत्म–साक्षात्कार ले लिया।
श्रीकुण्डलिनीपूजाकासप्ताहांत (week end) एक सटीक नाटक ‘The little Prince’ ‘छोटा राजकुमार’ से शुरू हुआ। जिसमें मनुष्य के अहंकार को उसका मजाक बनाते हुए (हास्य– व्यंग्य) से उजागर किया गया था। यह श्री माताजी का संदेश था, जो साधकों को दिया गया था– अपने अहंकार का मजाक उड़ाओ। यह हास्य–व्यंग्य बड़े स्तर पर प्रसारित हुआ, जहां सहजी बच्चों ने उल्लास में नाचना शुरू कर दिया।
बच्चोंनेपूछा, चैतन्य लहरियों को अवशोषित करने की बेहतर अवस्था क्या है, नृत्य करना या ध्यान में स्थिर हो जाना?
श्रीमाताजीनेमुस्करातेहुए (उत्तर दिया) आवश्यक बिंदु है केवल खो जाना– आनंद के महासागर में खो जाना है।
11 अगस्त को श्री कुण्डलिनी पूजा पुरातन गाँव वेलबर्ग Weilburg में आयोजित हुई। श्री माताजी ने समझाया कि हरेक व्यक्ति की अपनी स्वयं की अलग कुण्डलिनी होती है, उसकी क्रिया करने की शक्ति में, तरीकों में वह एक जैसी ही है।
सहजकार्यक्रमवारसॉ, बर्लिन और प्राग में हुए। प्राग Prague कार्यक्रम में केवल 700 लोग उपस्थित हुए, पिछले वर्ष की तुलना में, जब 3000 लोग आए थे। किन्तु पिछले वर्ष के कार्यक्रम से मुश्किल से कोई साधक (स्थायी) रूका था। इसके विपरीत इस कार्यक्रम के बाद बहुत से साधक जम गए।
दूसरेकार्यक्रमकीशामकोकुछकैथोलिकधर्मानुयायीअपनेहाथोंमेंबाईबिललिएप्रदर्शनकरनेलगे।श्रीमाताजीनेउत्तरदिया, “क्राइस्ट (ईसा मसीह) ने कहा था, मैं तुम्हें होली–घोस्ट (आदिशक्ति) भेजूंगा, यदि मैं आदिशक्ति हूँ, एक ईसाई धर्मावलंबी की हैसियत से आप मुझे कैसे पहचानेंगे।”
श्रीमाताजीने (थोड़ा रूककर) कहा, “मैं आदिशक्ति हूँ।”
कार्यक्रमहॉलअसाधारणचैतन्यलहरियोंसेव्याप्तहोगया।
अपनेहाथजोड़करऔरसिरझुकातेहुएश्रीमाताजीनेघोषणाकी, “मैं आपको वह बता रही हूँ, जो ईसा मसीह नहीं बता पाए, क्योंकि साढ़े तीन सालों में ही उन्हें मार दिया गया। ये वही लोग थे, जो बाईबिल पढ़ रहे थे और कह रहे थे कि वे (ईसा) हमारे रक्षक saviour नहीं हैं और इन्होंने ही उन्हें मारा…..मैं तुम्हें आत्म–साक्षात्कार दे रही हूँ, इस बार इससे वंचित न हों।”
तभीएकचमस्कारहुआ, एक वृद्धा एक लकड़ी के सहारे, with a walking stick जो बमुश्किल चल सकती थी, बोली, “मैं आप पर विश्वास करती हूँ, माँ! मैं उस पर विश्वास करती हूँ जो आप कहती हैं, मैं विश्वास करती हॅूं आप कौन हैं!”
इसस्वीकारिताकेबादउसनेअपनीलाठी, walking stick फेंक दी और स्टेज की ओर दौड़ने लगी। दर्शकों ने ताली बजाकर बड़े जोश से तारीफ की।
कार्यक्रमसेलौटतेहुएश्रीमाताजीनेइसघटनाकीप्रतिच्छायादी, देखो उस महिला ने मुझे पहचान लिया। बस इतना ही, और सब कुछ घटित हो गया है।
मनुष्योंसेज्यादाआसानीसेप्रकृतिश्रीमाताजीकोपहचानतीहै।चैतन्यलहरियोंकीप्रचुरतानेआकाशकोगुलाबीरंगमेंबदलदियाथा।श्रीमाताजीनेआकाशकीओरइशाराकरतेहुएकहा, “आकाश में चन्द्रमा नहीं है, यह सब प्रकाश कहाँ से आ रहा है?”
राडिमनेनम्रता–पूर्वक झुकते हुए कहा, “यह आप ही हैं! यह परम चैतन्य है। प्यारी माँ, आपका धन्यवाद।”
देवीमाँप्रसन्नथींऔरश्रीगणेशपूजाकाआशीर्वाददिया।यद्यपिकेवल 100 योगीजन पूजा में उपस्थित थे, उन्होंने माँ के चैतन्य को अवशोषित किया और श्री माताजी ने बहुत हल्कापन महसूस किया।
श्रीमाताजी 19 अगस्त को मॉस्को पहुंचीं, रूस के राष्ट्रपति के विरोध में सत्ता हथियाने के षड्यंत्र का दिन था। आपात–काल (इमरजेंसी) की घोषणा हो गई थी। सभी आवागमन के साधन व रास्ते बन्द थे। फिर भी, हरेक सहज योगी एयरपोर्ट (हवाई अड्डे) पर उनकी तारणहार श्री माताजी के स्वागत हेतु इकट्ठे हुए थे, जबकि मॉस्को (राजधानी) भय से थरथराया हुआ था। श्री माताजी के बच्चों ने अपनी माँ के वात्सल्य की लालिमा में स्वयं को सुरक्षित महसूस किया।
श्रीमाताजीनेजाननाचाहा, “क्या आप लोग परेशान नहीं हैं।”
सहजयोगियोंनेउत्तरदिया, “हमें परेशान होने की क्या जरूरत है। हम लोग परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हमारा संबंध इस देश से नहीं है।”
उनकीश्रद्धा (विश्वास) से श्री माताजी की आँखें भर आईं, “तुम्हारा अडिग विश्वास ही रूस को बचाएगा।”
उसरातमॉस्कोअशांतरहा, सोया नहीं। श्री माताजी भी नहीं सोईं। उस रात श्री माताजी का नकारात्मकताओं से युद्ध हुआ, जो रूस पर आक्रमण कर रही थीं और प्रातः बहुत थकी हुई–सी उठीं, थोड़ा–सा नाश्ता किया और पुनः सोने चली गईं। अपराह्न (दोपहर बाद) वे जागीं, वे बहुत तरो–ताजा लग रहीं थीं, साथ ही विजयी भी। राष्ट्रपति गोर्बेचेव की सत्ता बचायी जा चुकी थी!
कर्फ्यूकीवजहसेसभीकार्यक्रमरद्दहोचुकेथे।एकपुनःपरम–चैतन्य ने जादू दिखलाया– उस शाम मॉस्को में केवल सहज–योग के कार्यक्रम को इजाजत मिली थी। कर्फ्यू के बावजूद 4000 साधक कार्यक्रम में हाजिर हुए। श्री माताजी के वात्सल्य ने उनके मध्य–हृदय को संबल प्रदान किया और उन्हें भय–मुक्त किया।
सहजसाधकोंनेएककदमआगेबढ़ायाऔरश्रीमाताजीनेउनका 100 कदम का रास्ता साफ कर दिया। मा़त्र एक सन्ध्या के दौरान श्री माताजी ने उन्हें मायूसी (उदासी) से उल्लसित स्थिति में परिवर्तित कर दिया था! वे सहज कार्यक्रम में हताशा में आए थे, किन्तु कार्यक्रम के उपरान्त आँखों में चमक और चेहरों पर मुस्कराहट लिए विदा हुए!
मार्शललॉद्वाराथोपीगईनिर्धारितसमय–सीमा के भीतर डा. बोहडेन (Dr.Bohdan) श्री माताजी की सुरक्षित घर वापसी को लेकर आतंकित थे। जैसे ही वे श्री माताजी को लेकर लेनिनग्राडस्काया स्ट्रीट में तेजी से बढ़े, उनकी कार मोसविच (Mosevitch) का एक टायर (पहिया) पंक्चर हो गया था। उसी स्थिति में करीब 60 T-82 बड़े युद्ध–टैंक्स कार की ओर बढ़े। उन्होंने (Dr. Bohdan) सोचा, यह वह अंत–समय था और उन्होंने श्री माताजी से प्रार्थना की, कृपया रूस की रक्षा कीजिए, जैसा कि वे पंक्चर पहिए (flat tyre) को बचा रहे थे।
श्रीमाताजीकाशांत–चित्त टैंकों पर रूका। ये टैंक (Putsch) पुट्स्क आर्मी कमाण्डर्स के अधीनस्थ, श्री गोर्बेचेव के विरोध में थे, किन्तु श्री माताजी के दैवीय चित्त ने आर्मी–कमाण्डर्स के इरादों को प्रभावहीन कर दिया। और बजाय विरोध करने के वे गोर्बेचेव को बचाने के लिए चारों ओर घूमकर चल दिए।
1991
अध्याय – 5
एकसितम्बरकोश्रीमाताजीश्रीकृष्णपूजाकेलिएकबेलालौटीं।उन्होंनेश्रीकृष्णकेगुणोंकाबखानकिया, “वे लीला (नाटक) करते हैं, उसमें अभिनय करते हैं, किन्तु साथ ही वे दृष्टा भी हैं। वे प्रसन्न रहते हैं– मुस्कराते रहते हैं, सब कुछ जानते हैं, किन्तु व्यंग्य–रहित हैं। किसी की छींटा–कशी या मजाक नहीं करते, बहुत ही प्रेमी व चाहने वाले हैं।”
कोईकैसेश्रीमाताजीकावर्णनकरसकताहै, चेहरे पर सदा मुस्कराहट हॅंसी लिए, विनोदपूर्णता से भरे, सब कुछ जानते हुए किन्तु इतनी कोमलता से सबको ठीक करती हुईं और फिर भी अपनी पीड़ा बिना जताए सामूहिक नकारात्मकता के तेज आघात को सहन करती हैं। एक–एक पायदान पर वे धैर्यपूर्वक अपने लड़खड़ाते बच्चों को कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करतीं। बहुत कोमलता से अपने नवजात बच्चों का पालन–पोषण करतीं। थोड़ा–थोड़ा करके उन्होंने बच्चों को उनके हृदय, मस्तिष्क और शरीर की जटिलताओं से सर्तक बने रहने की योग्यता प्रदान की। मृदुलता से मार्ग–दर्शन द्वारा इशारों से (हल्के से) ठीक करते हुए और बाद में अपनी सुरक्षा–सीमाओं को सुधारने के चुनाव का अधिकार उन्हीं पर छोड़ दिया। उसके बाद (तुरन्त बाद) उनकी सुरक्षा–सीमाओं (fencing) की मरम्मत का कार्य कबेला आश्रम में हुआ।
कबेलाकाकिला (castle) राजकीय आदेश के अधिकार में बैले–आर्ट की पैतृक–सम्पत्ति के रूप् में सूची–बद्ध अंकित था। भवन की छत बुरी तरह टपक रही थी और उसे तुरन्त मरम्मत की जरूरत थी। श्री माताजी ने एक ठेकेदार की सेवाएं लेने का सुझाव दिया, किन्तु सहजी बच्चों ने यह कार्य करने का आग्रह किया। श्री माताजी ने मृदुलतापूर्वक इस शर्त पर हाँ की कि योगियों को एक उदारतापूर्वक दी गई भत्ता–राशि स्वीकारनी होगी। भवन की मरम्मत की देखभाल के अलावा उन्होंने योगियों के चक्रों की देखभाल करना शुरू की। श्री माताजी के भौतिक सानिध्य ने उनकी चेतना के प्रति सतर्कता को ग्रसित कर दिया और मर्यादा की दीवार भंग हो गई।
यहमर्यादाउल्लंघनहोना, श्री माताजी के चित्त से मुक्त नहीं हो पाया, किन्तु श्री माताजी को योगियों को सहज आचार–संहिता के बारे में बताना कठिन प्रतीत हुआ। श्री माताजी के लिए यह एक संवेदन शील/नाजुक चीज थी कि बच्चों को कहें कि उन्हें कैसे व्यवहार करना है।
श्रीमाताजीकेमाधुर्यनेश्रीगणेशपूजाप्रवचनमेंबच्चोंकोसन्देशदिया, “श्री गणेश जीवन के स्रोत हैं और चैतन्य प्रदायक हैं, यदि उन्हें सड़े हुए सभी सेबों (सेब फलों) के मध्य रखा गया, वे सब सेब स्वस्थ (पूर्णतः ठीक) हो जायेंगे, क्योंकि वे जीवन प्रदायक शक्ति हैं।”
श्रीगणेशकीशक्तिनेसड़ेहुएसेबोंकीटोकरीकोछांटकरअलगकरदियाथाऔरमार्यादारूपीबाड़ (fencing) मरम्मत हो चुकी थी।
श्रीमाताजीकेबच्चोंनेअपनीगहन–कृतज्ञता उपहार स्वरूप श्री गणेश की मूर्तियां अबोधिता के प्रतीक स्वरूप दर्शायी। पोर्सलेन की मूर्तियां, माँ और बच्चे की अभिन्नता को प्रकट करती हुई, सामूहिकता को प्रदान की गई थीं। श्री माताजी ने बच्चों के लिए कलाकार की अभिव्यक्ति की प्रशंसा की, “जब भी मैं इन मूर्तियों को देखूंगी, ये कृतियां मुझे़ विश्व–भर के सभी बच्चों की याद दिलाते रहेंगी।”
बादमेंकिले castle (आश्रम) में श्री माताजी ने बताया कि “परम चैतन्य तभी कार्य करते हैं, जब आप मुझे अपनी समस्याओं को समर्पित करते हैं। ये (परम चैतन्य) आपके हृदय से निकली हुई प्रार्थना का जवाब देते हैं और आपकी बुद्धिमत्ता का जवाब नहीं देते। जब आप उनकी कार्य–शैली को साक्षी अवस्था में देखते हैं, आप एक भयमुक्त आदर (awe) से भर जाते हैं और आप विनम्र (दीन) हो जाते हैं किन्तु जो स्वेच्छाचारिता (मर्यादा–विहीनता) का वरण करते हैं, उन्हें अपने पतन के लिए उत्तरदायी होना होगा।”
21 सितम्बर को श्री माताजी ने अपने बच्चों को सहस्रार में स्थित सभी चक्रों के पीठ पर गहन ध्यान कराया। यद्यपि बाह्य मर्यादाओं की सीमा (बाड़) की मरम्मत हो चुकी थी, परन्तु आन्तरिक सीमा–रेखा में सुधार के लिए चित्त की जरूरत थी और माँ ने दूसरे दिन उन पर कार्य किया, “मेरे फोटो की ओर देखें और मुझे अपने हृदय में स्थापित करें। आप कितना लम्बा ध्यान करते हैं– महत्वपूर्ण नहीं है,, किन्तु कितनी गहनता में आप जाते हैं– यह महत्वपूर्ण है।”
उन्होंनेअपनीआन्तरिकसीमाएं (मर्यादाएं) सुधारने के लिए महान प्रयास किए। 2 अक्टूबर को श्री माताजी ने उन्हें बिना प्रयत्न के ध्यान करने की सलाह दी, “उसका कारण यह है कि जब आप ध्यान का प्रयास करते हैं, आप अपनी आज्ञा (चक्र) से कार्य करते हैं– अतः जो भक्ति में रंग गए हैं उन्हें केवल शांत तथा प्रयास–रहित होना है ताकि कुण्डलिनी आज्ञा के पार होकर सहस्रार का भेदनकर परम चेतन से एकाकार होती है।”
योगीजनोंनेभक्तिकोअंगीकारकिया।जैसेउनकीभक्तिकीगहराईबढ़ी, ध्यान प्रयास–रहित हो गया। हालाँकि श्री माताजी उनकी कुण्डलिनी में आराम–दायक स्थिति में स्थापित हो गईं, किन्तु स्वयं को योगियों की सर्तक चेतना में रखने के लिए उनके मस्तिष्क, हृदय और शरीर की सभी जटिलताओं पर कार्य करना जरूरी था। उनके दिन की शुरूआत होती थी, “श्री माताजी आप ही आदिशक्ति हैं, हम अपने मस्तिष्क, हृदय और शरीर की सब जटिलताओं को आपके चरण–कमलों में न्यौछावर करते हैं।”
उन्होंनेअपनेहृदयसेप्रार्थनाकीऔरधीरे–धीरे उनके मस्तिष्क, हृदय और शरीर की जटिलताएं सहजता से अदृश्य (समाप्त) हो गईं। उनके कार्य पूजा–सम हो गए और बहुत कम समय में किले (castle) की छत के मरम्मत का कार्य आश्चर्यजनक रूप से पूर्ण हो गया!
उनकीभक्तिनेउन्हेंनवरात्रिपूजा, (13 अक्टूबर) के लिए पूजा आशीर्वाद को आत्म–सात करने हेतु तैयार कर दिया। पूजा प्रवचन के दौरान श्री माताजी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे अपने प्यार के बन्धन में बॅंधी हैं– वे इससे मुक्त नहीं हो सकतीं। वे इसे प्रकट करने हेतु, कार्यान्वित करने हेतु और अपने सभी बच्चों की सुरक्षा प्रदान करने हेतु बाध्य हैं। इसके अलावा, उन्हें अपने महामाया स्वरूप को धारण करना पड़ा, ताकि वे अपने बच्चों के करीब रह सकें, उनसे बात कर सकें, उन्हें आश्रय दे सकें, उन्हें योग के बारे में सब कुछ बता सकें और स्वयं के प्रति पूर्णतया सतर्क रहना सिखा सकें।
देवीमाँउनकीभक्तिसेप्रसन्नथींऔरउन्हेंएकवरदानस्वीकृतकिया।बच्चोंनेमाँसेप्रार्थनाकीकिवेमानवताकेवैश्विक–उत्थान (उन्नति) के प्रेरणा हेतु एक पुस्तक लिखें।
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “मैंने एक हजार से भी ज़्यादा प्रवचन दिए हैं, जिन्हें पुस्तकों के रूप में संकलित किया जा सकता है।”
उन्होंनेतर्कदिएऔरप्यारीनिर्मलामाँउनकेप्यारमेंआबद्धथींकिन्तुअपनीकनखियोंसेमुस्करातेहुएआगेबोलीं, “बशर्ते तुम लोग मुझे अति–व्यस्त कार्यक्रमों से कुछ समय दो।”
दूसरेदिनश्रीमाताजीप्रातः 5 बजे जागीं और कुछ घंटे लेखन–कार्य किया। योगियों ने उनकी शय्या के बाजू में एक (voice recorder) (आवाज अंकित करने वाली मशीन) रखी और बहुत जल्दी पूर्ण भरी जा चुकी थी।
एकसहजयोगीभाईजोप्रतिलिपि–करण में मदद कर रहा था, उसने तर्क दिया, “किन्तु श्री माताजी, प्लाटो (Plato) ने ऐसा कहा और रूसो (Rousseau) ने वैसा कहा था।”
श्रीमाताजीनेउत्तरदिया, “उन्हें कहने दो, जो वो कहना चाहते हैं। मैं वही कहती हूं, जो मैं जानती हूं। मैं क्यों उनका उल्लेख (हवाला) लूं। मुझे वाचनालय जाने की जरूरत नहीं है और पढ़ने की जरूरत नहीं है कि रूसो या प्लाटो ने क्या कहा…. मैंने ऐसे बहुत से लोग देखे हैं जिनका मस्तिष्क दूसरों की किताबों से भरा पड़ा है, दूसरे के शब्दों और कथनों से भरा पड़ा है। वे कहीं नहीं हैं, आप उन्हें खोज नहीं सकते, वे खो गए हैं (लुप्त हो गए हैं)। अपनी जिन्दगी में मैंने जो भी देखा है, आत्मसात किया है, मुझे उसी को स्पष्टतया लिखना चाहिए, बिना यह सोचे कि दूसरे लोग (इस विषय में) क्या कहना चाहते हैं।”
तबश्रीमाताजीनेअपनीपुस्तककेकुछउद्धरण (अंश) पढ़े। उस योगी का सहस्रार खुला और अपने सहस्रार से श्री माताजी को सुना। उसने यूनीवर्सल–डाटा–बेस को लॉग–ऑन किया, जहाँ से वह सभी जानकारी को डाउनलोड़ कर सकता था, जो उसे चाहिए थी। किन्तु श्री माताजी की सुबुद्धि के बेशकीमती मोतियों ने उसकी ज्ञान–पिपासा शांत कर दी थी और उसके बौद्धिक प्रश्नों के लिए कोई जगह नहीं छूटी थी। उसने अपने कान खींचकर, नम्रतापूर्वक श्री माताजी के समक्ष साष्टांग प्रणाम किया।
अगलेदिन, वह श्री माताजी के फोटोग्राफ्स का अपना संकलन, पुस्तक के मुख–पृष्ठ के चुनाव हेतु लाया। सहज योग के प्रारम्भिक वर्षों में एक योगिनी द्वारा श्री माताजी की खींची हुई फोटो का सुझाव दिया। श्री माताजी ने बताया कि इस फोटो में कोई चैतन्य–लहरियाँ नहीं थीं, क्योंकि वह वृद्धा जिसने फोटो खींचा था, वह नकारात्मक थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिस व्यक्ति ने फोटो ली, उसकी चैतन्य–लहरियाँ उस फोटो में परावर्तित होती हैं और इसलिये यह आवश्यक था कि उनके फोटो को कहीं भी उपयोग करने से पूर्व उस फोटो की चैतन्य–लहरियों को जांचना आवश्यक था।
तबउसयोगीनेदूसराफोटोनिकाला।श्रीमाताजीआश्चर्यचकितथींकिवहफोटोपूराइतनाहीदीप्ति–हीन (darkened) था, “इसे किसने उपयोग किया है।”
उसयोगीनेजवाबदियाकिउसनेउसकेएकसम्बन्धीकोदियाथा, जो कि एक झूठे गुरू का शिष्य था।
श्रीमाताजीनेटिप्पणीकी, “यह फोटो कितना गहरा दीप्ति–विहीन darkened हो गया है, क्योंकि मेरा चित्त इससे हट गया है, इसमें चैतन्य नहीं है। बेहतर है इसे नदी में प्रवाहित कर दें। यह सजावट के लिए नहीं है, किन्तु इसका सम्मान होना चाहिए। जहां तक सम्भव है फोटो का सम्मान इस सूझ–बूझ से होना चाहिए, “यह माँ हैं– मेरे साथ।”
10 नवम्बर को दीवाली की प्रकाश व्यवस्था को देखकर उन्होंने गम्भीरता से कहा कि उनके बच्चों का जीवन, दूसरों के जीवन में आनन्द का प्रकाश देने के लिए है, “थोड़ा आपको सहना होगा” तब क्षण–भर के लिए अपनी आँखों में चमक लिए आगे बोलीं, ”मैंने तुम्हें सहन करने की शक्तियां दी हैं।”
1991
अध्याय – 6
दिसम्बरकेआरम्भमें, श्री माताजी ने अपने बच्चों के लिए 500 योगियों को ठहराने वाली एक विशेष ट्रेन (रेलगाड़ी) का प्रबन्ध किया। दिन में योगीजन चेन्नई कार्यक्रमों में उपस्थित रहे और रात्रि में ट्रेन में वापस चले गए।
श्रीमाताजीनेइंडिया–टूअर (भारत–भ्रमण) के लिए कृपा करके एक कर्नाटकीय नृत्य–नाटिका की प्रस्तुति का प्रबन्ध किया, जिसमें कर्नाटक नृत्य–अकादमी द्वारा श्री सीताराम के राज्याभिषेक की प्रस्तुति थी।
श्रीमाताजीअकादमीकेकलाकारोंकेसमर्पण, भक्ति, निपुणता और कलात्मकता से प्रसन्न थीं ओर उन्होंने उदारतापूर्वक दान दिया। कलाकारों ने श्री माताजी के चरणों में रामायण के देव–पात्रों के स्वरूप में फोटोग्राफी ली। एक बार फिर उनके बच्चे माया में खो गए और श्री गणेश पूजा 6 दिसम्बर को उन्होंने इस पौराणिक धारणा को दूर कर दिया, “तुम लोगों ने देवी–देवताओं की पवित्रता अपने अंतस में सूक्ष्म–यंत्र में अनुभव की है, किन्तु इन प्रस्तोताओं ने बाह्य में इसे प्रकट किया है।”
चेन्नईकार्यक्रममें, बुद्धिवादी राइट–साइड (पिंगला, रजोगुण में) की काल्पनिकता में खो गए। श्री माताजी ने उनके काल्पनिकता को उनके प्रश्नों की प्यास शांत होने तक तुष्ट किया, शनैः शनैः उनकी आज्ञा स्थायित्व को प्राप्त हुई। उन्होंने श्री माताजी के उस उपहार को स्वीकार किया, जिसे प्रदान करने वे आईं थीं।
इससेबड़ाउपहारश्रीमाताजीकीपिटारीमेंबैंगलोरकेलिएश्रीमहाकालीपूजा, (9 दिसम्बर) के रूप में था। पूजा प्रवचन में श्री माताजी ने स्पष्ट किया, “यदि आप अब कहते हैं, मैं श्री माताजी में विश्वास करता हूँ – इसका आशय क्या है़….श्री माताजी, आपके जीवन में होनी चाहिये, आपके चेहरे के भाव (मुखाकृति) में, आपके व्यवहार में, दूसरों के साथ बर्ताव में, एक दूसरे को आपस में समझने में और आपसी प्यार में होनी चाहिये।”
श्रीमाताजीनेहैदराबादकोश्रीलक्ष्मीपूजा (11 दिसम्बर) से आशीर्वादित किया। उन्होंने आगाह किया, “आनन्द में हमने जो पाया, वह सर्वोच्च है। उसी के साथ हमें याद रखना है कि वहां सामूहिक सुप्त–चेतन है और वह कभी–कभी ठीक उछल सकता है और वापस आ सकता है।”
श्रीमहालक्ष्मीनेअपनावात्सल्यउढ़ेलदियाओरउनकेबच्चेउसकेआनन्दसागरमेंगोतेलगारहेथे।पूजन (प्रसाद) के स्वरूप शाम के जन–कार्यक्रम में 300 साधक पधारे।
(यह) ट्रेन अंततः 14 दिसम्बर को पूना (पुणे) पहुंची। श्री माताजी ने यात्रा में शामिल योगियों को प्रतिष्ठान में दोपहर–भोज (lunch) में आमंत्रित किया। श्री माताजी ने हरेक योगी का ममत्व–भरा स्वागत किया और उसकी सुख–सुविधा की जानकारी ली, “ट्रेन–यात्रा कैसी रही, भोजन–व्यवस्था कैसी थी, मुझे अफसोस है, मैं वहां नहीं थी़…. मुझे उम्मीद है कोई बीमार नहीं हुआ।”
शामकोसहजीबच्चेश्रीमाताजीकेसाथकीर्तिशिलादारद्वारादीगई, श्री रूक्मिणी कृष्ण के विवाह–प्रसंग पर आधारित एक संगीत प्रस्तुति पर उपस्थित थे। श्री माताजी ने प्रस्तुति का आनन्द उठाया और कलाकारों को उपहारों से आशीर्वादित किया। “नाट्य–संगीत शास्त्रीय कला अब समाप्त हो रही है, मेरा यह सपना है कि यह कला पुर्नजीवित हो। आपके सहस्रार की 1000 पंखुड़िया आपको अनगिनत योग्यताएं प्रदान करती हैं। वहां से लोगों ने सभी महान आविष्कार किए हैं और विज्ञान के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान अर्जित किया है। ऐसे लोग जो सहजावस्था को प्राप्त कर चुके हैं– वे कला और संगीत के महान सृजनकार हैं। वे जो भी सृजन करते हैं, वह स्थायी (सनातन) हो जाता है। तुम्हें उनकी कृतियों को समर्थन प्रदान करना चाहिये यदि तुम्हें कुछ ज्यादा भी खर्च करना पड़े।”
वेथोड़ाहीसमझपाएथे, खजाने में अभी बहुत सारे आशीर्वाद बाकी थे। श्री माताजी ने 500 सहज बच्चों को प्रतिष्ठान पर डिनर सायं–भोज हेतु आग्रह किया। डिनर के पश्चात् उन्होंने विस्तार–पूर्वक कला, नृत्य और नाट्य–कला पर बात की। “मराठी ड्रामा (नाटक) बहुत ही संवेदनशील है। अभी भी महाराष्ट्र में बहुत से महान नाटक हैं। यहाँ बहुत सारे मेधावी योगीजन हैं, क्यों नहीं एक थिेयेटर ग्रुप (नाट्य–मंडली) शुरू किया जाय। लोगों को सनातन मूल्यों से अवगत कराया जाय। आत्म–साक्षात्कार प्राप्त होने पर आपके अंतस से सृजनात्मकता तुरन्त प्रफुल्लित होती है। आप गीत–संगीत, काव्य–रचना, साहित्य सभी सृजन कर सकते हैं। किन्तु सर्वोपरि आपको सहज योगी बनाना है, वही मुख्य सृजन है, जिसे आपको पाना है। तुम्हें उन्हें प्रेरणा देना है और उन्हें आत्मा के आनन्द से आशीर्वादित करना है….. हमने भारतीय शास्त्रीय गीत–संगीत हेतु एक संगीत–अकादमी पहिले ही प्रारम्भ कर दी है, शीघ्र ही भारतीय शास्त्रीय नृत्य भी शामिल करेंगे। हमें लघु कलाओं के लिए एक प्रशिक्षक भी मिल गया है। यह इतना शान्तिदायक है ओर आपको निर्विचारिता प्रदान करता है।”
टेजीविजनपरएकहिन्दीफिल्मचलरहीथी, “हिन्दी फिल्मों में बहुत ज्यादा अश्लीलता है…..जब मैं फिल्म सेंसर बोर्ड में थी, तब इतनी नहीं थी। फिल्मकार शादी के पूर्व पूरा रोमांस दिखा देते हैं और शादी के बाद यह प्रणय–उत्साह समाप्त हो जाता है।”
यहएकबहुतहीउल्लास–भरा दिन योगियों के जीवन में था। प्रातः काल वे शेरे कैम्प चले जाते थे। यह एक सुन्दर (खूबसूरत) नीची पहाड़ी ढलान थी– चैतन्य से भरपूर थी और अपने हृदय से योगियों ने श्री माताजी को एक और दूसरे आशीर्वाद के लिए धन्यवाद दिया।
15 दिसम्बर को श्री माताजी ने शेरे कैम्प को श्री गणेश पूजा से नवाजा। उन्होंने जाहिर किया, “क्षमा करने में ही बुद्धिमत्ता है… क्योंकि सहज–योग में एक चीज बनी है कि जिन्होंने तुम्हें तकलीफ देने की कोशिश की, वे भी मुसीबतों में पड़ेंगे। कोशिश करें, किसी के पीछे न पड़ें, किसी को परेशान न करें, न किसी के प्रति बहुत सख्ती से पेश आएं और न ही मामले में पीछा करें।”
बच्चोंनेउत्साहपूर्वकश्रीगणेशकीशक्ति, सुबुद्धि के लिए प्रार्थना की। शाम के कार्यक्रम में, श्री माताजी साधकों से दिल–से–दिल उनकी मातृ–भाषा (मराठी) में बोलीं, उनकी कुण्डलिनियाँ तुरन्त उठ खड़ी हुईं।
अगलेदिनपरमचैतन्यनेबच्चोंकोश्रीमाताजीकेजीवन–वृत्त पर एक टेलीविजन–डाक्युमेंटरी फिल्म (वृत्त–चित्र) शूट करने में भागीदारी प्रदान करने का एक अनूठा सुअवसर प्रदान किया। उन्हें साधकों का रोल करने का काम सौंपा गया था, जो सहज–योग पर श्री माताजी से प्रश्न करते दिखाई दिए। इसके बाद साधक के रोल करने वाले ये सहजी बच्चे माँ के अबोध बच्चों के असली रूप में वापस आ गए जिन्हें श्री माताजी ने उनके रूचिकर व्यंजनों में आसक्त कर दिया।
श्रीमाताजीनेमिठाइयोंकीविशेषताओंकीप्रशंसाकीऔरउन्हेंज्यादामिठाईयांखानेहेतुफुसलाया।
दोपहरलंचबाद, श्री माताजी ने उन्हें कुर्तों से नवाजा। उन्होंने योगिनियों को अपनी मनपसंद रंग की साड़ियां चुनने के लिए कहा। यह स्वर्ग में एक जन्म–दिन समारोह था। अपने नए परिधान में चमकते हुए वे कोल्हापुर हेतु बसों में चढ़े।
कोल्हापुरश्रीमहालक्ष्मीजीकास्थानहैऔर 21 दिसम्बर को श्री महालक्ष्मी पूजा का आयोजन हुआ। श्री माताजी ने यह रहस्योद्घाटन किया, कैसे महालक्ष्मी तत्व से खोज को परिपूर्णता मिली, जब एक बिन्दु पर आकर आत्म–संतोष, समाधान प्राप्त होता है। बच्चों की नाभि शांत हुई और उन्होंने महान आतंरिक संतोष (तृप्ति) का अनुभव किया और जिसने उन्हें गहन से गहन शांति (सुकून) में उतारा।
श्रीमाताजीरात्रिमेंविवाहोत्सवकेप्रबन्धहेतुअपनेबच्चोंकेसाथकैम्पमेंरूकीं। श्री माताजी को अपने बीच पाकर सहजी बच्चे इतने उत्साहित थे कि जब वे आराम करती थीं, वहां सहज योग पर एक लम्बी वार्ता शुरू हो जाती थी।
श्रीमाताजीयहशिकायतकरतीहुईउठींकिबच्चोंकीव्यर्थकीबातचीतनेउन्हेंसोनेनहींदिया।श्रीमाताजीनेजंगलकेउदाहरणको (शेर की समानता का उदाहरण) देते हुए कहा, “जब जंगल में शेर (वन का राजा) होता है, सभी जानवर (प्रजाजन) आदरयुक्त भय में शांत होते हैं। तुम जानते हो, जब मैं सोती हॅं, मेरे चैतन्य कितने शक्तिशाली होते हैं, तुम्हें इस मौके का फायदा लेते हुए ध्यान करना चाहिये था ओर समाधि में होना चाहिए था। समाधिस्थ होने का अर्थ अचेतन अवस्था में जाना नहीं है, किन्तु अचेतन आपकी चेतना में होता है। किन्तु इसके लिए शांति पहिले अपने अंदर व बाहर स्थापित होनी चाहिये। मैंने तुम्हें सहज–योग पर चर्चा करते सुना और मैं अभी नहीं जानती कि क्या चर्चा (तर्क) की जाय। आप सब कुछ जानते हो। तुम्हें मालूम है कि कुण्डलिनी कैसे चढ़ती है, कैसे आत्म–साक्षात्कार देना है, कैसे चक्रों को ठीक किया जाता है, इस सब के बारे में क्या चर्चा की जाय! विवेचन अब समाप्त हो गए हैं। ज्यादा से ज्यादा आप अपने अनुभवों के बारे में बात कर सकते हैं।”
उन्होंनेश्रीमाताजीसेक्षमा–याचना की और ध्यान में चले गये। धीरे–धीरे उन्होंने अपने अंदर शांति को महसूस किया। शांति की गहनता में उन्होंने माँ की उपस्थिति को बेहतर महसूस किया। कुछ चक्रों पर थोड़ा–सा अवरोध था, किंतु श्री माताजी की सलाह मानते हुए चक्रों की पकड़ और संवेदनाओं की चिन्ता (परवाह) किए बिना वे माँ की उपस्थिति (चैतन्य) के साथ अभिन्न बने रहे। जैसे ही श्री माताजी ने उनकी आन्तरिक शांति में उन्हें चारों ओर से घेर लिया, योगियों ने श्री माताजी की उपस्थिति ब्रह्माण्ड का पारगमन करते हुए (भेदते हुए) महसूस की। वे प्रातःकाल (ऊषाकाल) की ओस–कणें में उपस्थित थीं, फूलों की मधुर सुगन्ध में थीं, बुलबुल की चहचहाहट (गीतों) में थीं, शीतल बयार में, जो प्रकृति को हौले–से दुलारती हुई और नव–जात की अबोध मुस्कान में, हर जगह थीं।
जैसेहीबच्चोंनेउनकेचरण–कमलों में नमन किया, गणपतिपुले में श्री माताजी का स्वागत करने एक–सहस्र हृदय आपस में लिपट गए। उनके बच्चों की कुण्डलिनियाँ आपस में गुँथ कर एक हो गईं– सामूहिक कुण्डलिनी, जिसे उन्होंने शक्ति प्रदान कर श्री कल्कि के प्रगटीकरण का रूप दिया। हर सहज–योगी हजारों हाथ वाले हो गए। ठीक वैसे ही जैसे उनके लिए एक हाथ को दूसरे हाथ की अपेक्षा ज्यादा प्यार करना संभव न था, इसी प्रकार उनके लिए यह संभव नहीं था, एक बच्चे को दूसरे की तुलना में ज्यादा प्यार करना। वे सब उनके शरीर (विराट) में कोशिकाएं थीं और उन्हें सब के बारे में और उनकी जरूरतों के बारे में स्वाभाविक जानकारी थी।
जिसप्यारनेश्रीमाताजीकेचरण–कमलों से थकान को धो दिया था, वही दैवीय (अलौकिक) संगीत की धारा के रूप में बह निकला, जिसने संगीत के जादू से रात्रि को सम्मोहित कर दिया था। धर्मशाला सहज स्कूल से आए उनके बच्चों ने दर्शनीय कुचीपुड़ी नृत्य और शास्त्रीय रागों की प्रस्तुति दी। अपने सहज योग स्कूल के स्वप्न (कल्पना) को साकार होते देख श्री माताजी बहुत प्रसन्न थीं।
भारतीयपंचांगकेअनुसारक्रिसमस–पूर्व संध्या शुभ अंगारकी चतुर्थी के दिन आयी। हरेक चतुर्थी को श्री गणेश का जन्म–दिवस मनाया जाता है जो प्रत्येक महीने के चौथे दिन आती है, किन्तु यदि चतुर्थी मंगलवार को पड़ती है, जो कि श्री गणेश का दिन है, तब यह विशेषता होती है। परम चैतन्य ने यह दैवीय–संयोग बनाया। आकाश में तारों की आकाश गंगा से दमकती श्री माताजी की दैवीय उपस्थिति ने क्रिसमस पूजा के बहुत ही मंगलमय दिवस पर सामूहिकता को आशीर्वादित किया।
श्रीमाताजीनेजाहिरकियाकिपरमचैतन्यनेसबकार्यकिएऔरजबसहज–योगी इससे जुड़े हैं, वे जान जायेंगे वास्तव में क्या करना है। यह ठीक क्रिसमस–गिफ्ट (उपहार) था, जिसकी जरूरत भविष्यवादी (रजोगुणी) (right sided) को थी। श्री माताजी ने योगियों की पिंगला नाड़ी जो सरगर्मियों से भरी, उनके व्यस्त योजनाओं से युक्त थी, उन्हें शांन्ति के महासागर में शांत कर दिया। जब योगियों ने आँखें खोलीं, तो यह नहीं बता पाए थे, या तो उनका हृदय प्रेम के महासागर में विकसित हो गया था या यह महासागर उनके हृदयों में विकसित हो गया था।
श्रीकुबेरनेखजानेकेमहासागरकामंथनकरदियाथाऔरश्रीमाताजीनेप्रसन्नतापूर्वकउसमंथनसेबच्चोंकेलिएउपहारनिकाले। 10 घंटे प्रातः साढ़े छह बजे तक श्री माताजी के वात्सल्य की मूसलाधार वर्षा को समय स्तब्ध होकर यकायक सादर अपलक देख रहा था। श्री माताजी ने कुबेर के खजाने को प्रसन्नतापूर्वक खाली कर दिया होता, किन्तु तब तक 8000 योगीजनों की नाभि पूर्ण–रूपेण भरी जा चुकी थी।
इतनाहीनहीं, एक बहुत गरीब योगिनी श्री माताजी से अपनी बेटी के विवाह हेतु मदद मांगने आयी। श्री माताजी उसके दुःख से इतनी द्रवित हुईं कि उन्होंने अपनी साड़ियां उसे दे दीं और उसके विवाह खर्च का वादा कर लिया।
26 दिसम्बर, प्रातःकाल ऊषा किरणों ने सत्य युग के प्रभात–काल का मार्ग दर्शन कराया। नगाड़ों की मंगलमय ध्वनि (मंगल—वाद्य) ने विवाह के जोड़ों को हल्दी–समारोह (रस्म) हेतु जगा दिया। सागर–तट पर विवाह–जोड़े समूह में इकट्ठे हुए, जहां चैतन्यित कुंकुम का लेप उनके गालों पर किया जा रहा था। शादी के जोड़ों की चमकती हुई आँखों ने श्री माताजी को अत्यधिक ख़ुशी से भर दिया था और उन जोड़ों ने माँ को चारों ओर से घेर लिया था तथा वे नृत्य करने लगे। श्री माताजी का एक विश्व का सपना पूरा हो चुका था।
उनकीजिव्हाओंपरअमृतकामाधुर्यबहुतदेरतककायमरहा, जैसे ही उन्होंने गणपतिपुले के पावन सागर–तट को चूमते हुए अलविदा कहा और वे अलीबाग के लिए रवाना हुए।
29 दिसम्बर को श्री लक्ष्मी पूजा का आयोजन अलीबाग के सागर–तट पर हुआ। सागर से बहुत कुछ सीखना बाकी था, “यह अपनी गहनता में रहता है उसी प्रकार से आपको भी गहनता सहज योग में मिली है, आपको उस पर कायम रहना है।”
नववर्षकीपूर्वसन्ध्याकोकाल्वेमेंश्रीगणेशपूजाकाआयोजनकियागया।श्रीमाताजीकाविदाई–संदेश था कि नए साधकों को बहुत प्यार व सावधानी से उनकी देखभाल करनी है, “उनसे तर्क–वितर्क नहीं करना है, किन्तु उन्हें आत्म–साक्षात्कार देना है और उन्हें चैतन्य महसूस होने देना है, तब सब चीजें सहज ही घटित हो जायेंगी।”
1992
अध्याय – 7
शीत–कालीन सत्र के लिए सहज स्कूल धर्मशाला से कोंकण भवन, नवी मुंबई में स्थानान्तरित हो गया था। श्री माताजी ने नव वर्ष समारोह नव–जात बच्चों के साथ मनाया। यह एक पारिवारिक पुनर्मिलन था, बच्चे श्री माताजी की साड़ी के पीछे खींचे चले आते और उन्हें तब तक नहीं छोड़ते, जब तक कि वो उन्हें हृदय से नहीं आलिंगन करतीं। प्यार से वे उनकी शिकायतें सुनतीं और उन्हें मन ललचाने वाले उपहारों से सुख प्रदान करतीं। वे उन्हें विद्यालयीन–शिक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित करतीं, “तुम मेरी आँखों के उजाले हो, तुम्हें प्रकाश फैलाना है।”
बच्चोंनेउन्हेंवचनदिया।
श्रीमाताजीनेस्कूल–टीचर्स को सहज–शिक्षा का अनूठा स्वप्न विस्तार–पूर्वक प्रकट किया, “बच्चे भगवान की महानतम कलात्मक कृति हैं और हमें उनमें निहित योग्यता को श्रृंगारित करने की सही तकनीक पता करनी है। हमें उनके आत्म–सम्मान और सतर्कता को एक मधुर तरीके से विकसित करना है। तुम्हें उन्हें मारना–पीटना नहीं है, किन्तु उन्हें उनके चक्रों पर ध्यान देते हुए ठीक करना है। उनकी उरोअस्थि (sternum bone) अभी–भी एन्टी–बॉडीज (जीवाणु निरोधक) का सृजन कर रही है और यह महत्वपूर्ण है उन्हें पूरी सुरक्षा (अपनत्व) प्रदान करें, जिसकी उन्हें आवश्यकता है। उन्हें सम्मानपूर्ण रहना सिखाएं, किन्तु उन्हें बिगाड़ें नहीं, उन्हें अपने मन–माने तरीकों से न चलने दें जैसे ही आप उनके आत्म–सम्मान को विकसित करेंगे वे संतुलन में रहना सीख जायेंगे।”
श्रीमाताजीकाआदर्श–विश्व का स्वप्न (नजरिया) एकदम साफ था, किन्तु उनके बुद्धि–सम्पन्नों की दृष्टि में यह विचलित हो गया। उन बुद्धि–जीवियों के चश्मों को साफ करने में थोड़ा समय लगा। उन्होंने कई तर्क–वितर्क दिए, किन्तु श्री माताजी ने अपने स्वप्न के साथ कोई समझौता नहीं किया।
बच्चोंकेडिनर (रात्रि भोजन) में मोटे चावल (भात) परोसे जाने को देखकर वे नाखुश हो गईं। स्कूल के प्राचार्य ने इसे न्याय–संगत ठहराते हुए कहा कि यह चावल ज्यादा किफायती था। श्री माताजी ने उन्हें याद दिलाते हुए कहा कि, “वे मेरे बच्चे हैं, यह आप कैसे भूल सकते हैं कि माँ अपने बच्चों को हमेशा सर्वोत्तम ही देती है। यदि आपके कोष में कमी है, मैं भुगतान कर दूंगी, किन्तु तुम्हें उनकी लागत पर खर्च में कमी नहीं करना चाहिए।”
श्रीमाताजीनेबच्चोंकेचक्रोंकेउपचारकेलिएतथाउनकेवैयक्तिक–स्वास्थ्य पर निर्देश दिए, “विशेषतया खेल–कूद सामूहिक हों तथा प्रतिस्पर्धा से मुक्त हों। यदि कोई इनाम किसी सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को दिया जाता है, फिर भी यह कक्षा के सभी बच्चों को दिया जाना चाहिये। किसी एक खिलाड़ी की उपलब्धियों को वैशिष्ट्य प्रदान करना अहंकार को विकसित करता है, किन्तु सामूहिक प्रशंसा (महत्व) आत्मा को पोषित करती है।”
श्रीमाताजीकेअनंतधैर्यनेउनकीआँखोंसेपर्दाहटादियाथाऔरकमसमयमेंहीहिमालयकीनीचीपहाड़ियोंपरसुदूरचिड़ियोंकेबैठनेकेअड्डेजैसाछोटा–सा स्कूल, बच्चों के प्रारम्भिक लालन–पालन का आदर्श बन गया। श्री माताजी आदि कलाकार हैं और उन्होंने एक आदर्श मानव, एक आदर्श परिवार, एक आदर्श समाज, एक आदर्श राष्ट्र और एक आदर्श विश्व का सृजन किया है।
3 फरवरी को कोलकाता में श्री महासरस्वती पूजा का आयोजन हुआ। यद्यपि श्री माताजी अपने बच्चों की भक्ति से प्रसन्न थीं, वस्तुतः (अपेक्षतया) वे बच्चों के आलस्य (सुस्त स्वाधिष्ठान) की वजह से उनकी धीमी उन्नति के कारण निराश थीं, जबकि जिस भाग ने उन्हें कलाकृतिक स्वभाव प्रदान किया, वह विकसित हुआ और शेष भाग (स्वाधिष्ठान) अनदेखा और जड़वत (सुस्त) हो गया था। उनके पास बहुत सशक्त इच्छा–शक्ति थी, किन्तु कार्य–शक्ति में कमजोर रहे थे। उन्हें क्रियाशील बनाने के लिए श्री माताजी ने श्री महालक्ष्मी और श्री महा–सरस्वती की शक्तियों को आपस में एक बिन्दु पर अभिसरित कर दिया था– मिला दिया था।
इसकार्यनेजादुईकामकियाऔरउनकेद्वाराअभिसरित (converged) शक्तियों ने कोलकाता को जगा दिया। साधकों का सागर नेताजी इनडोर स्टेडियम में सहज–योग जन–कार्यक्रम में उमड़ पड़ा। उनके कलाकृतिक स्वभाव ने उन्हें (दैवीय कलाकार/श्रीमाताजी को) मान्यता प्रदान की और वे उनकी रचना में आनन्द मनाने लगे।
श्रीमाताजीकाचित्तहोटललौटनेकेसमयरास्तेमेंनंगेपैरहाथ–रिक्शा खींच रहे एक वृद्ध आदमी पर गया, जो अपने रिक्शे में दो महिलाओं को खींच रहा था। वह चढ़ाई चढ़ते समय कड़ा संघर्ष कर रहा था और लगभग संतुलन खो चुका था। उन्होंने गाड़ी रूकवाई तथा योगियों को रिक्शे को ऊपर चढ़ाने में मदद करने को कहा। उस रिक्शे वाले की भौंहों से बहता हुआ पसीना श्री माताजी की आँखों में आंसुओं के दरिये के रूप में उमड़ पड़ा। श्री माताजी ने अपने पर्स (बटुए) से कुछ हजार रूपये निकालकर उसे एक ऑटो–रिक्शा (स्व–चालित रिक्शा) खरीदने हेतु दिए। इस घटना के एक महीने बाद भारत सरकार ने एक योजना की घोषणा की जिसमें हाथ–रिक्शा चालकों को ऑटो–रिक्शा हेतु कर्ज लेने की सुविधा थी।
इसघटनानेकोलकाताकेजन–परिवहन की वेदना को खोलकर रख दिया था। श्री माताजी ने मुख्यमंत्री श्री ज्योति बसु को सलाह दी “क्यों नहीं, मेट्रो रेल शुरू की जाय।”
उन्होंनेकहा, “माँ! मेट्रो के बारे में मैं स्वप्न में भी नहीं सोच सकता, हमारे पास संचित धन (funds) नहीं है।”
श्रीमाताजीनेआकाशकीओरदेखातथाहामीभरी।
कुछवर्षोंबादपरमचैतन्यनेकोलकाताकोआर्ट–मेट्रो का देश में प्रथम राज्य होने का गौरवपूर्ण आशीर्वाद दिया।
1992
अध्याय – 8
मध्यफरवरीमेंश्रीमाताजीनेपर्थ (ऑस्ट्रेलिया) को आशीर्वादित किया। श्री माताजी के आगमन के पूर्व, पर्थ झुलसाने वाली गर्मी का सामना कर रहा था। श्री माताजी के आगमन के तुरंत बाद बारिश शुरू हो गई। अनवरत वर्षा से यह समझा गया कि साधक–गण शायद कार्यक्रम में न आएं।
श्रीमाताजीमुस्करादीं, “यह एक परीक्षा का आधार है, यदि लोग वास्तव में साधक हैं, वे आएंगे, अन्यथा बिना साधना की इच्छा के, बड़ी मात्रा में लोगों के आने का कोई अर्थ नहीं।”
बारिशहोयाधूपनिकले, साधक आए!
श्रीगणेशपूजाकेअवसरपरश्रीमाताजीनेसाधकोंकेगुरूत्व (गम्भीरता) की प्रशंसा की, “एक व्यक्ति जिसके पास सब कुछ है, विचलित नहीं होता, प्रलोभन में नहीं पड़ता, आत्म–निष्ठ, निरपेक्ष, बदले की भावना से मुक्त होता है। वह हमेशा क्षमा करता है, क्योंकि उसके पास अपने गुरूत्व से बाहर आने के लिए कोई रास्ता नहीं होता, वह केवल वहीं रहने के लिए बाध्य है।”
पूजाकेबादयोगीजनोंकीअपनीव्यक्तिगतसमस्याएंबाहरआनेलगी।श्रीमाताजीनेबतायाकिसमस्याओंहेतुउनकेपासआनेकीकोईजरूरतनहीं, क्योंकि उन्होंने महसूस किया है, हरेक को अपनी स्थिति पता है, समस्याएं पता है और क्या करना है– पता है।
20 फरवरी को श्री महालक्ष्मी पूजा का आयोजन ब्रिसबेन में हुआ। श्री माताजी ने स्पष्ट किया कि श्री महालक्ष्मी सिद्धान्त उनकी कुण्डलिनी पर चित्त रखते हुए स्थापित किया जा सकता है, “एक साधारण कार्य करना है– मेरी कुण्डलिनी पर स्थिर रहना उसके बाद तुम्हारा अहंकार निश्चित ही अदृश्य हो जायेगा, क्योंकि तब तुम्हें मालूम हो जायेगा कि माँ ही सब कुछ कर रही हैं, “मैं कुछ भी नहीं कर रही हूँ, इसलिए मुझे कार्य करने का गर्व क्यों होना चाहिए? साथ ही संस्कार भी अदृश्य हो जायेंगे, क्योंकि मेरी कुण्डलिनी सम्पूर्णतया निर्मल है। यह किसी से भी युक्त (लिप्त) नहीं है। यह सहज योग से भी मुक्त है। इसका कार्य है सबका पालन–पोषण करना। यदि कुण्डलिनी यह कार्य करती है तो वह ठीक और अच्छा है, यदि नहीं करती है तो भी ठीक और अच्छा ही है।”
श्रीमाताजीकेसंज्ञानमें (जानकारी में) यह लाया गया था कि कुछ सहज–योगी श्री महालक्ष्मी सिद्धान्त के विरोध में जा चुके थे, गुरूओं की तरह बर्ताव करने लगे थे और दूसरों पर रौब जमाने के लिए श्री माताजी के वचनों को अपने तरीकों से व्याख्या करने में लगे थे।
श्रीमाताजीनेआगाहकिया, किसी को उनके प्रवचनों की व्याख्या करने की कोई जरूरत नहीं है और जिन्होंने व्याख्या करने की कोशिश की, उन्हें समझना चाहिए कि उनके मस्तिष्क उस क्षमता के योग्य नहीं हैं, उनमें कुछ त्रुटियाँ हो सकती हैं। इसके अलावा जिन लोगों ने सहज–योग के बारे में वक्तव्य दिया, उन्हें सावधान (सतर्क) हो जाना चाहिए कि अहंकार के बिना रहें और ऐसी बात नहीं कहें, जो श्री माताजी ने न कही हो। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो व्यक्ति आत्म–साक्षात्कार देता है, वह गुरू नहीं है– और उसके प्रति किसी तरह का आदर–युक्त डर या उपकार (अहसान) नहीं होना चाहिए!
23 फरवरी को श्री माताजी ने न्यूजीलैंड को श्री महासरस्वती पूजा का आशीर्वाद दिया। उन्होंने महसूस किया कि श्री महासरस्वती तत्व का कलाकारों में जाग्रत होना, उनकी सृजनात्मकता को संतुलित तरीके से विकसित करने के लिए जरूरी है। श्री माताजी ने कई महान संगीतकारों जैसे देबू चौधरी, उनके बेटे अनिल, उस्ताद अमजद अली खान और महान् संतूर वादक मास्टर पंडित भजन सपोरी की सृजनात्मकता जाग्रत की।
पूजाप्रवचनकेदौरानश्रीमाताजीनेस्पष्टकिया, “सहज योग में मुख्य चीज प्यार, करूणा और परमात्मा की अनुकम्पा है, जो सभी प्रकार की रचनात्मक वस्तुओं का सृजन करती है।”
एकयोगीकाभाईसहज–योग छोड़ चुका था, क्योंकि वह आलोचना नहीं झेल पाया। श्री माताजी ने उसे सान्त्वना देते हुए कहा कि जो भी उसने सहज–योग के लिए किया, उसे एक प्रार्थना की तरह, एक संवेदनशील संवाद और ईश्वर के प्रति एकनिष्ठता की तरह करना चाहिए। इसके बाद उसने ऐसा सम्बन्ध और समझ महसूस की, किसी आलोचना के विरोध में कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की।
एकमार्चकोन्यू–कैसल में श्री शिव पूजा पर श्री माताजी ने बच्चों को अपना दृष्टिकोण विस्तृत करने हेतु तथा खुले दिलवाली दुनिया के लिए प्रार्थना करने हेतु प्रोत्साहित किया, “क्योंकि आपके पास शक्ति है तथा इस ईश्वरीय शक्ति को यदि आप कार्यान्वित कर सकते हो, तब इसे हम स्वयं क्यों न कार्यान्वित करें? केवल अपना हृदय, मस्तिष्क और चित्त को विस्तारित करना शुरू कर दें।”
श्रीशिवपूजानेउनकेहृदयोंकोविशालकरदियाथाऔरइसनेपूरेब्रह्माण्डकोढॅंकलियाथा!
उत्तरीअमेरिकाकेविशालहृदयनेताइवानकेहृदयकीज्योतिजलादी।परमचैतन्यभीचीनी–साधकों के विशाल जन–समूह को मार्ग–दर्शक बनने को आगे–आगे कार्यान्वित हो उठा।
महान्आस्ट्रेलियन–हृदय करीब 350 साधकों को बैंकाक के सागर तट पर ले आया– श्री माताजी ने उनकी ईस्ट–एशिया में सहज–योग के प्रसार हेतु प्रशंसा की और बताया कि वे बच्चों के बीच महान उदारता पाकर बड़ी आनन्दित हैं, विषेशकर जब बच्चे निरपेक्षता से सहज–योग का प्रसार करते हैं!
1992
अध्याय – 9
श्रीमाताजीकाजन्म–दिवस बधाई कार्यक्रम (समारोह) दिल्ली में आयोजित हुआ था। उनके बच्चों के प्यार ने उन्हें इतनी गहनता से स्पर्श किया कि उन्हें अपनी उम्र भी अनुभव नहीं हो रही थी– क्योंकि अपने इतने सारे बच्चों को अपनी जिंदगी का मज़ा लेते हुए देखकर–यह उनके लिए शक्ति–प्रदायक था!
काश्मीरसेएकसूफ़ीसंतकेअनुयायियोंनेकाश्मीरघाटीसेआतंकवादकेनिपटारेकेलिएश्रीमाताजीसेप्रार्थनाकी, “हमारे सूफ़ी संत ‘नन्द ऋषि‘ ने भी कुण्डलिनी और शक्ति के बारे में चर्चा की थी। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम को अपने अमन के सन्देश से एकता के बंधन में बांधा था, किन्तु आज शक्ति (अमन) कहाँ है ? काश्मीर एक ऐसा उन्मादित स्थान बन गया है, जहाँ वे केवल इस्लाम के नाम पर लड़ रहे हैं।“
श्रीमाताजीनेकहा, “यह इस्लाम नहीं है। आप इस्लाम के नाम पर हत्याएं नहीं कर सकते हैं। कोई भी किसी को जान से मारने का अधिकारी नहीं है, जब तक कि उस पर आक्रमण न किया गया हो। इस्लाम का अर्थ समर्पण है। जब आप परमात्मा को समर्पण करते हो, आप ईश्वर के साथ एकरूप (सारूप्य) हो जाते हो और सभी विध्वंसक आदतें छूट जातीं हैं। मोहम्मद साहिब लोगों को एकता के सूत्र में बांधने आए थे, अलग–अलग करने के लिए नहीं, क्योंकि कियामा मानव के उत्थान के लिए है, जिसमें आपके हाथ बोलते हैं, आपको अपनी उँगलियों के पोरों पर चैतन्य लहरियां महसूस करना चाहिये। मुस्लिम का अर्थ है जिन्होनें परमात्मा को समर्पित कर दिया है– उनके हाथ बोलेंगे, उनके हाथों में चैतन्य कि लहरियां होनी चाहिये। हमें यह एक नया और सुंदर विश्व तैयार करना है और किसी भी मूर्खतापूर्ण कृत्यों से हम इस विश्व को नष्ट नहीं होने दे सकते हैं।”
श्रीमाताजीयहजानकरदुखीहुईं, कैसे हज़रत मोहम्मद साहिब के सन्देश का गलत अर्थ लगाया गया– मानवता को आपस में तोड़ने के लिए। उनके अनुयायियों ने केवल इस्लाम के अक्षरों का उपयोग किया और उसकी आत्मा को पीछे छोड़ दिया।
श्रीमाताजीनेकुछयोगियोंकोकाश्मीरभेजनेहेतुवादाकियाऔरशामकोउन्हेंपूजामेंआमंत्रितकिया।पूजाकेदौरानश्रीमाताजीकाध्यानकाश्मीरसमस्याकीओरगया, “जैसे हमारा सहजयोग में विकास हो रहा है, यह आवश्यक है कि हम परिपक्व हों और एक विशाल वृक्ष की तरह दूसरों को फायदा दें– उनके लिए लाभप्रद हों।”
सहज–योग वृक्ष की शाखाएं दिल्ली, गाज़ियाबाद और हरियाणा की ओर फैलीं। 25 मार्च को ग़ाज़ियाबाद कार्यक्रम की ओर आते हुए वे ट्रैफिक–जाम में फंसीं और कार्यक्रम में विलम्ब से पहुंचीं। इतने विलम्ब के बावजूद भी किसी भी साधक ने स्थान नहीं छोड़ा। श्री माताजी अति प्रसन्न थीं, “क्योंकि उन्होंने (साधकों ने) मुझे अपने हृदय से पहचान लिया था, वहां सहज–योग बहुत जल्दी बढ़ेगा।“
औरयहघटितहुआ!
यमुनानगरकार्यक्रममेंपंजाबसेआएयोगीजनोंनेश्रीमाताजीकाध्यानखालिस्तानकेनामपरपंजाबकीआतंकवादसमस्यापरआकृष्टकिया।
श्रीमाताजीनेकहा, “गुरु नानक जी ने हमेशा आत्मा की बात की थी। उन्होंने कहा– ‘आपा चीन्हें’ अर्थात स्वयं को जानो, केवल यही उनकी शिक्षा है, यही शिक्षा है, इसी से सिक्ख learning (शिक्षा) का उद्भव हुआ। किन्तु लोग क्या कर रहे हैं? बिना अंदर झांके और बिना अंतर्जात शक्ति को अनुभव किये वे कैसे सिक्ख धर्म का अनुसरण कर सकते थे? जब तक कोई आत्म–साक्षात्कार नहीं लेता, वह इसे समझ नहीं सकता है। खालिस्तान का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता, यह मेरे मस्तिष्क में है ही नहीं। गुरु नानक साहिब ने हमेशा सहज–योग की बात की थी। अब सिक्ख लोग सहज–योग में आने लगे हैं। जब आप अख़बार पढ़ें, तो आपको सामूहिकता में इच्छा प्रकट करनी चाहिए कि पंजाब में आतंकवाद समस्या हल होनी चाहिए और ये हल हो जायेगी। यह समस्या आपके द्वारा व्यक्त की गयी शुद्ध इच्छा से हल होगी।“
योगियोंनेश्रीमाताजीकीसलाहकापालनकिया (अनुसरण किया) और उन्होंने उत्साह पूर्वक प्रार्थना करना शुरू किया। धीरे–धीरे पंजाब के हालात सुधरे और समस्या हल हुई।
1992
अध्याय – 10
19 अप्रैल को श्री माताजी ने रोम को ईस्टर–पूजा का आशीर्वाद दिया। लम्बी शीत ऋतु के बाद श्री माताजी इटली के लिए धूप की सौगात ले आईं। जैसे ही ईस्टर एग भेंट किया गया, उन्होंने कहा, “यह सुझाव युक्त है, ताकि ये एग्स (अंडे) चूजों में परिवर्तित हो जायें। इसी तरह हमें अपने संस्कारों से मुक्त होना है तथा सुन्दर कमलों की तरह ऊपर आना है।”
श्रीमाताजीकेसूर्य–सम तेज ने रोम, नेपल्स, पेरूजिया और फ्लोरेंस के सुन्दर कमलों को विकसित किया। श्री माताजी ने उनके पुनर्जन्म (आत्म–साक्षात्कार) के रहस्य का उद्घाटन किया, “अहंकार से डरो मत, किन्तु उसके साक्षी बनो।”
सहस्रारपूजाकेलिएवेकबेलावापसआईं। 10 मई को पूजा प्रवचन में श्री माताजी ने स्मरण कराया, उनकी यात्रा कैसे एक मैराथन दौड़ जैसी रही थी। श्री माताजी ने बहुत कठिन परिश्रम किया, क्योंकि उन्हें इस संसार को आनन्दमय, खुशहाल और पवित्रतायुक्त अवस्था में लाना था।
कैसल (आश्रम) वापस लौटते समय रास्ते में उन्होंने प्रतिक्रिया–स्वरूप कहा, “मुझे तुम्हें इतना सब कुछ देना है, किन्तु तुम्हें इसे स्वीकार करने के लिए स्वयं को खोलना है।”
यहजागजानेकेलिएआहवानथा।उनकेबच्चोंकेलिएसबेरा (प्रभात) हो गया था, किन्तु उन्होंने अपने ऊपर दिए गए आशीर्वाद से नज़रें चुरा लीं। सूर्य ने उनके ऊपर अपनी अनुकम्पा की किरणें फैलायीं थी, किन्तु उनका चित्त (ध्यान) तुच्छ चीजों जैसे परिवार, पैसा, नौकरी आदि में खो गया था। माँ ने उनके उत्थान के लिए अवतरण लिया था और उनके लिए हरेक चीज न्यौछावर कर दी थी। अपनी उम्र के हिसाब से उन्होंने किसी से भी ज्यादा यात्राएं विश्व–भर में अपने आराम या स्वास्थ्य की चिन्ता किए बिना की, किन्तु बच्चों ने श्री माताजी पर अपना अधिकार–मात्र जताया।
बच्चोंनेश्रीमाताजीसेनम्रतापूर्वकक्षमा–याचना की और प्रार्थना की कि वे अपनी यात्राएं कम कर दें। बच्चों ने विश्व के सभी देशों से पूजा हेतु कबेला आने की पहल की और बारी–बारी से (क्रम वार) पूजा–होस्टिंग (पूजा की मेजबानी) के लिए कहा। हरेक योगी अपने देश का प्रतिनिधित्व करता और उसकी कुण्डलिनी के द्वारा श्री माताजी उसके देश को आशीर्वादित करती थीं। उसकी कुण्डलिनी के द्वारा ही वे उसके देश की समस्याओं पर कार्य करती थीं। जैसे ही एक देश की समस्या हल होती, परम चैतन्य उसी तरह की समस्याओं को विश्व के आर–पार हल करते। इस तरह, एक जगह आयोजित हुई पूजा से उनके आशीर्वाद का अनुनाद विश्व–भर में परम–चैतन्य के द्वारा प्रसारित होता। समय व स्थान का प्रतिबन्ध (रूकावट) परम–चैतन्य के लिए कोई माने नहीं रखती।
श्रीमाताजीनेअंततःसभीपूजाओंकेआयोजनकीस्वीकृतिकबेलाकेलिएदेदी।यद्यपिश्रीबुद्धपूजादिनांक 31 मई को शुडी कैम्प्स लंदन में पूर्व–नियोजित थी। पूजा प्रवचन में उन्होंने जाहिर किया कि श्री बुद्ध अंहकार के संहारक और नियंत्रक थे। उन्होंने पिंगला नाड़ी पर नियंत्रण, मात्र हॅंसते हुए कर दिया और इसलिए उन्हें मोटा (थुलथुल) और हंसते हुए दिखाया गया था (laughing budhha)।
पूजाकेदौरान, उन्होंने हरेक के चक्रों की, व्यक्तिगत समस्याओं की देख–भाल की और उनकी जड़ों को उजागार किया। जड़ें व्यक्तिगत–चक्र से परे फैल गई थीं और सामूहिक इड़ा नाड़ी पार हो गई। श्री माताजी का चित्त उत्प्रेरित करने वाला था और वे सामूहिकता की इड़ा नाडी को भेदन कर व्यक्तिगत चक्रों को ठीक करती थीं। उनकी इस उत्प्रेरक शक्ति के पीछे उनकी अनंत शक्ति करूणा की थी। विश्व में यह सबसे शक्तिशाली ताकत थी और कोई भी नकारात्मकता इसका सामना नहीं कर सकती थी। इसने मानव–चेतना को अपने सूक्ष्मतम घेरे से उठाकर ईश्वरीय चेतना तक उन्नत कर दिया था।
1992
अध्याय – 11
21 जून को कुण्डलिनी पूजा कबेला में आयोजित हुई। श्री माताजी ने महसूस किया कि कुण्डलिनी जाग्रति के बाद, कुण्डलिनी–जागरण की देखभाल करने का समय आ गया था। उन्होंने इसका रहस्य जाहिर किया कि कुण्डलिनी की सुश्रूषा (देखभाल) हो सकेगी, यदि बच्चों ने अपने अंदर शुद्ध प्रेम (निर्वाज्य प्रेम) और करूणा विकसित की होती। “हमारी जड़ें (मूल) प्यार, करूणा और नम्रता हैं— कुण्डलिनी शुद्ध प्रेम की सरिता है, कुण्डलिनी ही एक शुद्ध इच्छा है– हरेक को समान रूप से प्यार करना….. जब आप कहते हैं कि यह मुश्किल है, तब इसका अर्थ है कि आप सहज–योग का प्रयत्न नहीं कर रहे हैं।”
पूजानेउनकीसतर्कताकोएकनएआयाममेंबढ़ाया, जिसने एक असीमित करूणा/दया को जन्म दिया– दूसरों के कल्याण के लिए।
अगलेदिनश्रीमाताजीअपनेपरिवारकेसाथएकपिकनिककेलिएडगलिओकीदिशामेंगईं।जैसेकिसड़कएकनदीकीधाराकेइर्द–गिर्द घूमती जा रही थी, जिसे देखकर श्री माताजी को गंगा नदी की चैतन्य–लहरियां की याद हो आई तथा उन्होंने इसे Little Ganges, लघु गंगा कहा। श्री माताजी ने शांत प्राकृतिक दृश्य का बहुत मजा उठाया। अचानक, उन्हें अत्यन्त ज्यादा चैतन्य–लहरियां जंगल में से एक कोने से आईं। एक पहाड़ी पगडंडी मुख्य सड़क से अलग हो गई थी। श्री माताजी ने योगियों को उस पगडंडी–नुमा रास्ते पर जाने को कहा। यह रास्ता एक सीधी पहाड़ी चढ़ाई पर जाता था और रास्ता संकरा था, किन्तु श्री माताजी के चित्त से कार पूरे रास्ते से ऊपर पहॅंच पायी।
एकटूटा–फूटा (जीर्णावस्था में) goat farm बकरी–पालन–फार्म पहाड़ी के शिखर पर एक चक्कस (चिड़ियों के विश्राम स्थल) जैसा दिखाई दिया, किन्तु दृश्य अद्भुत था! तितलियाँ असंख्य जंगली फूलों और नवीन गहरे हरे जंगलों के मध्य मुक्त अवस्था में क्रीड़ा कर रही थीं। श्री माताजी चैतन्य में नहा गईं और टिप्पणी की कि यह काश्मीर से भी ज्यादा सुन्दर स्वर्गीय नजारा था।
श्रीमाताजीफार्मकेमालिकसेमिलीं– इसे खरीदने हेतु। उसे बहुत सम्मान मिला और उसने कहा कि यदि उसे इस फार्म को श्री माताजी को बेचने का आशीर्वाद मिला, तो उसकी आत्मा को शांति मिलेगी।
जुलाईकीएकखुशनुमासुबहकोसूर्यदेवप्रसन्नतापूर्वकश्रीमाताजीकीखिड़कीसेझांके, श्री माताजी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और वे उत्सुकता से अपने सुनहरे–रथ पर सरपट चल दिए। श्री माताजी ने कुछ गीत रचे और अपना हारमोनियम मंगवाया, जैसे ही उन्होंने गीतों को रागों में पिरोया, पारलौकिक संगीत उनके शयन–कक्ष से बह निकला। उनके बच्चों की कुण्डलिनियाँ उनके द्वार पर प्यास बुझाने को उत्सुक थीं। श्री माताजी ने अनुग्रहपूर्वक उन्हें अन्दर प्रवेश दिया और मधुरतम–अमृत से उनकी पिपासा (प्यास) शांत की।
श्रीमाताजीनेगुरूपूजाहेतुएकप्रार्थना ‘विनती सुनिए…..’ अभी–अभी पूर्ण की और उसका तत्व योगियों का समझाया, “गुरू लोग बहुत सख्त–मिजाज होते हैं, किन्तु मैं वैसी नहीं हो सकती। मैं तुम्हारी माँ हूँ और तुम्हें हृदय से प्यार करती हूँ। मैं किसी भी प्रकार से तुम्हारी भावनाओं को ठेस (चोट) नहीं पहुँचाना चाहती हूँ, किन्तु आप मेरी उद्देश्य–पूर्ति अपने प्यार की दीनता/विनय के द्वारा आसान कर सकते हो। उस प्रार्थना में (‘विनती सुनिए…’.) गुरू–पद की याचना की गई है, जो कि गुरू–तत्व है। यह कोई सामाजिक–स्थान नहीं, बल्कि एक स्वाभाविक (जन्म–जात) स्थिति है। सामाजिक–स्तर (status) बाह्य में है, जबकि गुरू की अवस्था अपने अंदर विकसित होनी होती है। तुम्हें गुरू के लक्षण (गुण)- प्यार, विनय, माधुर्य, क्षमाशीलता और सर्वोपरि एक माँ की तरह हृदय की कोमलता, इन गुणों को ग्रहण करने के लिए विनती करनी चाहिए।”
श्रीगुरूपूजाप्रवचनमेंश्रीमाताजीनेगुरूकेगुणोंकीशुद्धताकीगहराईकेबारेमेंबताया।वेस्वयंइनसबगुणोंकीमूर्तिथीं।उन्हेंअपनेबच्चोंकोइतनासारादेनाथाऔरबच्चोंनेइसेप्राप्तकरनेकेलिएअपनेहृदयखोलदिएथे।
1992
अध्याय – 12
4 जुलाई को श्री विष्णुमाया पूजा बेल्जियम में आयोजित की गई। पूजा प्रवचन में श्री माताजी ने बताया कि जब साधक के मस्तिष्क और हृदय के बीच तालमेल खत्म हो गया, तब अपराध–बोध, दोषी–भाव बढ़ गया था। पूजा से मस्तिष्क और हृदय का सम्बन्ध सशक्त हो गया और माँ अपने बच्चों को संतुलन में ले आयीं।
21 जुलाई को श्री माताजी कार्यक्रमों के लिए बुखारेस्ट पधारीं। रोमवासियों ने सहज–योग की एक अनुपम प्रदर्शनी, जिसमें मानव–विकास को आत्म–साक्षात्कारी संतों जैसे लाओत्से, विलियम ब्लेक और दूसरे आत्म–साक्षात्कारियों के प्रकाश में प्रदर्शित किया गया, प्रस्तुत की। उनके दर्शन vision के विस्तार से 500 सत्य साधक कार्यक्रम में आए। ये लोग श्री माताजी का साथ बाजार में भी नहीं छोड़ते थे। साधक शॉपिंग–स्टोर्स बाजार के बाहर इकट्ठे हुए, जहाँ श्री माताजी योगियों के लिए उपहार खरीद रहीं होतीं और उनसे पूछते, “क्या, आप होली घोस्ट holy ghost हैं।”
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “अपने हाथ सामने करो और खुद पूछो यदि मैं होली–घोस्ट हूँ।”
शीतललहरियोंनेसकारात्मकउत्तरदिया, वे ही होली–घोस्ट हैं। उन्होंने उन्हें नम्रतापूर्वक नमन किया।
दूसरेकार्यक्रममें, 8000 साधकों ने सोफिया में आत्म–साक्षात्कार पाया!
किन्तु, जब श्री माताजी पेरिस पधारीं, हालात इतने आश्वासित करने वाले नहीं थे। फ्रांसीसी बच्चे EDFI की प्रतिरोध/प्रतिहिंसा के बारे में चिंतित/आशंकित थे (EDFI –कैथोलिक चर्च की एक एन्टी–कल्ट–आउट–फिट है) और कार्यक्रम में जाने के लिए श्री माताजी से विरोधाभास दर्शाने की कोशिश की। श्री माताजी ने एक साहसी कदम उठाया और अपने बच्चों के डर/ आशंका को कुचलते हुए कहा, कि वे उनकी जिम्मेदारी लेने को और ज्यादा बाध्य थीं!
श्रीमाताजीनेकार्यक्रममेंखुलेतौरपर EDFI की आलोचना की। जिन्हें आत्म–साक्षात्कार नहीं चाहिये, उन्हें माँ ने जाने को कहा। वहां पूर्ण शांति थी। दर्शकों में प्रतिरोधी ग्रुप में से एक ने भी हलचल नहीं की! किन्तु इतना ही पर्याप्त नहीं था। श्री माताजी ने उनके विरोध में इतनी दृढ़ता दिखाई कि चैतन्य ने उनके ऊपर बिजली (तड़ित–प्रहार) की तरह प्रहार किया और उनकी आँखों से असत्य का पर्दा उठा दिया। वे सत्य की शक्ति के आगे आश्चर्य–चकित थे और श्री माताजी के प्रवचन के हरेक शब्द को निमग्न हो ध्यानपूर्वक सुना। अपने मस्तिष्क से किसी संदेह से मुक्त हो, अपने सहस्रार में अनहद्–नाद (संगीत) के गुंजन के साथ उन्होंने कार्यस्थल (हॉल) को छोड़ा!
यहफ्रांसीसीबच्चोंकेलिएजीवनभरकापाठथा– यह न भूलें श्री माताजी कौन थीं तथा कभी नहीं डरें– चैतन्य लहरियों की शक्ति के प्रयोग करने से।
बच्चोंनेश्रीमाताजीकीक्षमायाचनाकी।श्रीमाताजीनेउनकीप्रार्थनाओंकाउत्तर, श्री महाकाली शक्ति पूजा सेंट डेनिस में 25 जुलाई, से दिया। उन्होंने बच्चों को स्मरण कराया कि उन्होंने उन्हें अपने स्वरूप (छवि) में धारण कर लिया था और अपनी सभी शक्तियों से आशीर्वादित किया था और इसीलिये डरने की कोई बात नहीं थी।
प्रातःश्रीमाताजीविएनाकेलिएरवानाहुईं।उन्होंनेनएसाधकोंपररात्रिएकबजेतककार्यकिया।यहरोजानाकीदिनचर्याथी।उन्होंनेदिनऔररातकठिनपरिश्रमकिया– पूरे वर्ष भर। एक लक्ष्य task (कार्य) जो किसी भी मनुष्य के लिए पूरा करना असम्भव था। श्री माताजी के बच्चों ने नए साधकों के लिए अपनी क्रम–वार सेवाएं प्रदान कीं, किन्तु माँ के लिए यह एक अथक मैराथन (बिना थके लम्बी दौड़) एक देश से दूसरे देश थी। यद्यपि श्री माताजी ने उनके विचारों को पढ़ लिया था, वे हॅंस पड़ीं, “तुम्हारी दौड़ रिले रेस (एक दौड़ जिसमें प्रत्येक टीम में चार खिलाड़ी होते हैं– यानि लक्ष्य की पूर्ति आपसी मदद द्वारा) जबकि, मेरी दौड़ मैराथन है (बिना थके लम्बे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दौड़ना)।”
श्रीमाताजीनेपायाऑस्ट्रियनसाधकोंकेचक्रसंकुचितहोगएथे।उनकेचक्रोंकोपोषणदेनेहेतुउन्होंनेउनकेसाथबुडापेस्टतकसमुद्रीयात्राकरनेकानिश्चयकिया।श्रीमाताजीनेउनकाध्यानमनोरंजकगाथाओं/वृत्तांतों में बंटाया, जबकि श्री माताजी का चित्त उनके (योगियों के) चक्रों पर कार्यान्वित था। वे बुडापेस्ट में चैतन्य–लहरियों से रोमांचित होते हुए उतरे। 1500 साधकों ने अपना आत्म–साक्षात्कार प्राप्त किया।
मैराथनप्राग Prague तक अनवरत चलती रही, जहां 2500 साधकों ने आत्म–साक्षात्कार प्राप्त किया। प्राग की समुद्री यात्रा के दौरान श्रीमाताजी की आँखें बाल–सुलभ कौतूहल (आश्चर्य) से चमक उठीं (फैल गईं)- पुरातन शिल्प कला देखकर और बोलीं कि प्राग शहर अभी तक देखी गई सभी नगरियों में सर्वाधिक सौन्दर्य–मयी थी!
अगलेदिन, श्री माताजी की पोलैंड के लिए उड़ान (flight) चूक गई, क्योंकि सहज–योगियों ने समय–सारिणी पढ़ने में गलती कर दी थी। पोलिश बच्चे (पोलैंडवासी) अपनी प्यारी माँ के स्वागत में वारसा हवाई–अड्डे पर उड़ान के बदले जाने से अनभिज्ञ (आगमन–हॉल) arrival hall पर प्रतीक्षा कर रहे थे। पूरे रास्ते, श्री माताजी का चित्त बच्चों पर था और वे शीतल–लहरियों से नहाये हुए (स्नात) थे। बाद वाली उड़ान (flight) से पहुंचने पर बच्चों को इतना लम्बी प्रतीक्षा कराने के लिए श्री माताजी को बहुत खराब लगा। बच्चों ने माँ को आश्वस्त किया कि वे तो स्वर्गीय (अलौकिक) आनन्द में खोए हुए थे। श्री माताजी उनकी भक्ति से प्रसन्न थीं और पोलैंड को आशीर्वाद दिया, “सहज–योग पोलैंड में बहुत तेजी से फैलेगा, क्योंकि तुम्हारे हृदय इतने खुले हुए हैं।”
उनकेहृदयहजारोंकमलोंकीतरहखिलगए।
अगलेदिन, श्रीमाताजी मॉस्को के लिए रवाना हुईं। प्रेसीडेंट येल्त्सिन ने अपने सचिव को श्री माताजी को आमंत्रित करने हेतु भेजा, किन्तु चूंकि उनकी यात्रा का कार्यक्रम पहिले से ही अति–व्यस्त था, वे प्रेसीडेंट येल्त्सिन का आमंत्रण स्वीकार नहीं कर सकीं। तथापि प्रेसीडेंट को एक पत्र में श्री माताजी ने रूस में व्याप्त आचार नीति (नैतिकता) तथा बुनियादी–धार्मिक सोच के सख्त–समर्थन की समस्या के बारे में अपनी चिन्ता प्रेषित की। आर्थिक मोर्चे पर उन्होंने सलाह दी कि विदेशी–सामान का आयात सीमित करना चाहिये, क्योंकि इससे स्थानीय उद्योग के विकास में बाधा आई है।
उन्होंनेनम्रतापूर्वकप्रेसीडेंटश्रीयेल्त्सिनकेराजकीय–आतिथ्य को मना कर दिया तथा मॉस्को के बाहर रूसी ग्रामीण कुटिया Dacha डाचा की किसानों जैसी सादगी में रहना पसंद किया। इस कुटिया में लौटना, घर वापसी आने जैसा था। जैसे कैसल की खरीदी कबेला में सम्पन्नता लायी थी, डाचा भी रूस के लिए आशीर्वाद लाया– श्री महालक्ष्मी का आशीर्वाद! अति विपन्नता की अवधि से, अनायास देश में सम्पन्नता (प्रचुरता) आ गई। नागरिक सुविधाएं सुधर गईं, सड़कें चुस्त–दुरुस्त और स्ट्रीट लाइट्स सुसज्जित हो गईं। श्री माताजी के द्वारा निर्मित हर घर स्वयम्भू था और उससे प्रसारित चैतन्य–लहरियों ने न केवल बच्चों को, बल्कि शहरों और गावों को भी आशीर्वादित किया। जहाँ भी श्री माताजी ठहरीं श्री महालक्ष्मी तत्व ने सम्पन्नता प्रदान की।
ग्रामवासीधन्यवाद–उपहार स्वरूप फल, सब्जियां और फूल अपने बगीचों से लाए। श्री माताजी ने बड़े आकार के गुलदाउदी के फूलों की प्रशंसा की और उन्हें मिठाइयों (विशेष कर भारत से लायी हुईं) से आशीर्वादित किया।
दूसरेदिनश्रीमाताजीनेएकमेडिकलकॉन्फ्रेंस (चिकित्सीय सभा) को मॉस्को में संबोधित किया। शाम को वे चार्टर्ड–फलाइट पर टोग्लियाटी के लिए सवार हुईं। टोग्लियाटी कार्यक्रम में भाव–विहवल कर देने वाली अनुक्रिया/उत्तरदायिता थी। करीब 15000 से ज्यादा साधकों ने आत्म–साक्षात्कार प्राप्त किया। प्रश्नोत्तर में एक व्यक्ति ने पूछा कि यह अच्छा होता कि संसार कृत्रिम वैश्विक भाषा सीखता। उन्होंने टिप्पणी देते हुए कहा कि प्यार ही (वह) केवल विश्व–व्यापक भाषा है।
एकमहिलाचलनहींसकतीथी, डॉक्टरों ने उसकी टांग काटने की अनुशंसा की थी। श्री माताजी ने उस पर कार्य किया और वह चल पड़ी।
श्रीमाताजीकीविदाईसेपूर्वबच्चेवोल्गानदीकेकिनारेअपनीमाँकेइर्द–गिर्द इकट्ठे हुए और भजन गाने लगे। श्री माताजी की करूणा ने उन्हें सहस्रार से ऊपर उठा दिया था। डॉ. वैलेन्टिना की आँखों में आनन्दाश्रु थे, “माँ, यह गणपतिपुले की तरह है।”
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “नहीं, यह उससे भी ज्यादा है…. मैं इतनी ज्यादा अभिभूत हूँ।”
टोग्लियाटीकेमेयरनेसिटी–कौंसिल (नगर–सभा) की ओर से श्री माताजी का सम्मान किया और आश्रम हेतु एक भूखण्ड भेंट किया।
रूस–मातृभूमि का चमत्कार एक बार और साक्षी बना कीव Kiev में, जहाँ 15000 साधकों के समूह ने अपना आत्म–साक्षात्कार पाया।
श्रीमाताजीनेसेंटपीटर्सबर्गकोभीश्रीमहालक्ष्मीपूजासेआशीर्वादितकिया।श्रीमाताजीनेरूसीबच्चोंकोअपनेहाथोंकोखड़ेकरनेकोकहाऔरतीनबारएकप्रार्थनाश्रीमहालक्ष्मीकोउनकेआशीर्वादहेतुकरनेकोकहा।तीसरीबारप्रार्थनाकरनेकेबादबच्चोंकेनाभि–चक्र ठंडे हो गए। जैसे ही उन्होंने श्री माताजी को कहते सुना, “श्री महालक्ष्मी तत्व तुम्हारे अन्दर प्रकट (आभासित) हो गया है,” संतोष (तृप्ति) की अनुभूति ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया था, ऐसा पहले कभी नहीं घटित हुआ– अभूतपूर्व!
इसकेबाद, श्री माताजी ने श्री महालक्ष्मी का आशीर्वाद नव–विवाहित जोड़ों को दिया।
श्रीमाताजीसुबहहेलसिंकीकेलिएरवानाहोगईं।उन्होंनेकार्यक्रममेंएकलड़केपरकार्यकिया, जो बैसाखी के सहारे था। 10 मिनट बाद श्री माताजी ने उसे पैदल चलने को कहा, किन्तु वह सहमा, हिचकिचाया–सा था। श्री माताजी ने उसे आशीष दी और वह सामान्य रूप से चलने लगा।
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अध्याय – 13
16 अगस्त को श्रीकृष्ण की माधुर्य–लीला की शुरूआत पूजा की तैयारियों से आरम्भ हुई, अमेरिका में डालजिओ Dallgio और इटली में कबेला से!
प्रातःकालश्रीमाताजीनेअमेरिकीयोगियोंकास्वागतकिया, जो पूजा का आयोजन कर रहे थे। उन्होंने सावधानीपूर्वक एक लम्बी प्रश्न–सूची श्री माताजी के लिए तैयार कर रखी थी। श्री माताजी ने प्रश्न–सूची पर एक कटाक्ष निरीक्षण किया और तब उन्हें (योगियों को) पुश्किन, गोर्की और टॉलस्टॉय की धातु से बनी हुईं गोलियां (संभवतया धातु के घुंघरू, गहने नुमा), जो वे रूस से लायीं थीं– उपहार स्वरूप दिए। तब बातचीत, कुछ भारत से खरीदी हुईं पानी की टोंटियां (water taps) के कहीं छूट जाने की (खोने की) विषय पर चली गई। इटालियन योगियों ने उन्हें कैसल के हरेक कोने में ढूँढा, किन्तु असफल रहे। श्री माताजी ने पल भर के लिए आँखें मूँदीं और उन्हें चांदी के आइटम वाले डिब्बे (box) में देखने को कहा, जो छत के पास वाली टांड पर था। एक आदर्शात्मक इटालियन आचरण के ढंग में, इटालियन योगियों ने अपने हाथ ऊपर नचाते हुए कहा, (विरोधात्मक अंदाज में कहा), “असंभव!”
अचानकएकजोरकीटक्करकीआवाज (धमाका) आई। एक वैनेटियन पोर्सलन वेस ऊपर की शेल्फ से गिरा। इसके गिरने का कोई कारण नहीं बनता था। इटालियन योगी ने समझ लिया, यह परम–चैतन्य का इशारा था। उन्होंने क्षमा माँगी और छत के पास वाली टांड पर देखने गए।
निश्चयही, पूजा के चांदी की वस्तुओं के नीचे, वह भारतीय पानी की टोंटियां Indian water taps दबी हुई रखीं थीं! इटालियन योगी परेशान puzzled थे, नहीं मालूम था कि हॅंसे या रोएं!
एकबारपुनःअमेरिकीयोगियोंनेश्रीमाताजीकाध्यानअपनीलम्बीप्रश्न–सूची पर आकृष्ट करने का प्रयास किया। अपनी आँखों में झिलमिलाहट लिए श्री माताजी ने योगियों का ध्यान श्री कृष्ण जी के बचपन की मनोरंजक गाथाओं में व्यस्त कर दिया। वे (ध्यान–मग्न हो) यमुना मैया के किरानों पर ला दिए गए थे और अपने प्रश्नों को भूल गए। श्रीकृष्ण जी की लीलाओं के आनन्द में वे निर्विचार हो गए थे। श्रीकृष्ण की लीला–चातुरी और अमेरिकन योगियों के बीच श्री माताजी ने सुदूरवर्ती फोन कॉल्स के उत्तर दिए, पत्र लेखन करवाए, निर्देश–प्रसारित किए, जहाँ–जहाँ पानी की टोंटियां लगनी थी– निर्देश दिए, अपने पति के मध्यान्ह भोज lunch पर ध्यान दिया और अमेरिकन योगियों को विनोदपूर्ण याद दिलाई कि पूजा कबेला में थी और डाग्लियो (अमेरिका) में नहीं। श्री माताजी के इस नाटक के पीछे एक उद्देश्य दिखाई दिया, श्री माताजी उनका ध्यान (चित्त) उनके आज्ञा–चक्र से ऊपर उठा रहीं थीं, जहाँ वे निर्विचारिता का अनुभव कर सकें। ऐसी स्थिति में उनके सभी प्रश्नों का उत्तर उनकी स्वयं की कुण्डलिनियाँ देंगी।
मनोविनोदपूर्णस्थितिशामकेसंगीतकार्यक्रमतकजारीरही, जहाँ पर कान्हा की बांसुरी ने साधकों को बैकुण्ठ में पहुंचा दिया। अंततः उनके प्रश्नों का प्याला खाली हो चुका था और उन्होंने सिर्फ कृष्णानन्द का मजा उठाया।
पूजा 10 घंटे चली। पूजा के बाद श्री माताजी अपने बच्चों के सांस्कृतिक–प्रस्तुतियों को ज्यादा नजदीकी से देखने हेतु मंच के किनारे आसीन हो गईं। एक सिंथेसाइजर सामूहिक भेंट के स्वरूप श्री माताजी को समर्पित किया गया। जैसे ही श्री माताजी ने हरेक note स्वर को दबाया, चैतन्य लहरियां विभिन्न चक्रों को चैतन्यित कर गईं। सामूहिकता की कुण्डलिनी के तार श्री माताजी की अंगुलियों के नियंत्रण में थे। जब श्री माताजी अपनी पांचवीं अंगुली को तारों पर (struck) मारतीं, स्वरों ने सामूहिकता को डांडिया रास (नृत्य) हेतु हिला दिया। अमेरिकन योगी आश्चर्य में थे कि वे कहाँ थे, क्या यह यमुना मैया का किनारा था या यह शायद बैकुण्ठ ही था। योगीजन, प्यार की सुरा का आस्वादन करने के बाद, उनके (अमेरिकन योगियों के) बौद्धिक–प्रश्नों की भूख समाप्त हो गई थी।
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अध्याय – 14
23 अगस्त को श्री माताजी जिनेवा पधारे। जब वे स्विस सामूहिकता से आश्रम में बातचीत कर रहीं थीं, छोटे–छोटे बच्चे श्री माताजी के सिंहासन के आस–पास खेल रहे थे और चुपचाप पॉप–कॉर्न और चने श्री माताजी की प्लेट से खाने लगे। उनकी अबोधिता से श्री माताजी आनंदित थीं, वे मुस्कराईं, “बेहतर होगा कि इन्हें चॉकलेट्स की बजाय चने खाने के लिए दें।”
बच्चोंकीअबोधिताजिनेवाविश्व–विद्यालय कार्यक्रम में 600 साधकों को ले आयी। श्री माताजी प्रसन्न थीं, वहां की चैतन्य लहरियां पिछली मुलाकात की अपेक्षाकृत बेहतर थीं।
कबेलाअगस्तमेंअसामान्य–रूप से गर्म हो गया था और छोटी–गंगा भी सूख गई थी, किन्तु श्री माताजी के आगमन पर इतनी जोरों से बारिश हुई कि श्री गणेश पूजा के सम्मुख संगीत कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। बच्चों ने अपनी माँ से प्रार्थना की और संगीत कार्यक्रम के कुछ मिनटों पूर्व बारिश नरम पड़ गई थी।
श्रीमाताजीनेऑस्ट्रियनबच्चोंकीमधुरअबोधिताकामजाउठाया, जिसमें वे श्री गणेश जी के सृजन की प्रस्तुति दे रहे थे, “यह प्रशंसनीय है, कैसे हमारे बच्चों ने सहज–योग को समझ लिया है।”
श्रीमाताजीकोअबोधितानेबहुतस्पर्श (प्रभावित) किया। वे गंभीर से गंभीर गलती को नजर अंदाज कर देंगी, यदि यह भूल अनजाने में हो गई हो।
शनिवारशामकोश्रीमतीराजमऔरउनकीपुत्रीनेवायलिन–कन्सर्ट से सामूहिकता की आत्माओं को उन्नत कर दिया। कार्यक्रम के बीच एक तूफानी बारिश से टेंट में जल–प्लावन हो गया। टेंट को तूफानी हवा द्वारा उड़ने से रोकने हेतु योगीजन टेंट के खम्भों (poles) को पकड़े रहे, किन्तु आंधी उमड़ी और खम्भे हाथ से फिसलने शुरू हो गए। योगीजन हतोत्साह हो गए और श्री माताजी की स्तुति–गान करने लगे। मिनटों में तूफान शांत हो गया।
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “श्री गणेश जी तुम्हारी भक्ति की परीक्षा ले रहे थे। तूफान रूक गया, जब तुमने अपनी माँ की स्तुति करनी शुरू की, केवल यह सिद्ध करने के लिए कि श्री माताजी की स्तुति–गान में इतनी शक्ति है– ये गीत मंत्र हैं।”
छोटीगंगामेंबाढ़आगईथी।चिंतितग्रामीणपरेशानथेकिबाढ़कुछयोगियोंकोबहालेगईहोगीऔरसंकटसेमुक्तकरनेकेलिएपुलिसकोलेआए।उन्होंनेअविश्वसनीयतापूर्वकयोगियोंकोआनन्द–पूर्वक गाते और नृत्य करते पाया!
बारिशनेबच्चोंकेचक्रोंकोपूजासेपूर्वसाफकरदियाथा।पूजाप्रवचनमेंउन्होंनेस्पष्टकियाकिअबोधिता ‘गुरू–पद’ स्थापित करने में पहली सीढ़ी है। पूजा के दौरान हरेक योगी ने अपनी पवित्र माँ के वात्सल्य में अबोध शिशु–सम सुरक्षित महसूस किया।
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अध्याय – 15
7 सितम्बर को श्री माताजी ने न्यूयार्क के साधकों पर कृपा की। कार्यक्रम के दौरान फोटोग्राफ्स की दिखाई गई स्लाइड्स ने साधकों में विद्युत–संचरण किया और उन्होंने आधुनिक युग के महानतम चमत्कार को अनुभव किया। यूनाइटेड–नेशन्स UNO के कर्मचारी भी चमत्कार को साधने में पीछे नहीं रहे। सिनसिनाटी के मेयर ने भी चमत्कारों को मान्यता दी और श्री माताजी के सहज–योग कार्यक्रम के दिन को ‘श्री निर्मला देवी दिवस’ घोषित किया।
11 सितम्बर को टोरेंटो शहर 1000 साधकों को आत्म–साक्षात्कार प्राप्त करते हुए चमत्कार का साक्षी बना। श्री माताजी ने साधकों पर मध्य–रात्रि तक कार्य किया। श्री माताजी ने टिप्पणी की, यदि साधक क्षमा कर सकते, तो उनकी कुण्डलिनियाँ उठाने में केवल चौथाई समय लगा होता और अहंकार की समस्या से मुक्त हो सकते थे, “मुझे क्यों क्षमा करना चाहिए।”
अगलेदिनवेवैंकूवरकेलिएहवाई–मार्ग से रवाना हुईं और अपने बच्चों के साथ आरामदायक संध्या बिताई। सितम्बर 13 को श्री हंसा–चक्र पूजा को श्री माताजी ने उनके हंसा–चक्र को जाग्रत किया और उन्हें विवेक–बुद्धि प्राप्त हुई। क्या गलत था और क्या अशुभ था।
पूजाकेचैतन्यनेसिएटलकेसाधकोंकोविवेक–बुद्धि का आशीर्वाद उनकी (माँ की) मंगलमय उपस्थिति को महसूस करने के लिए प्रदान किया और साधकों ने अपने गहन सम्मान और कृतज्ञता, श्री माताजी को आत्म–साक्षात्कार के उपहार प्रदान करने हेतु, ज्ञापित की।
दूसरेदिनप्रातःकाल, श्री माताजी लॉस–एंजेलेस के लिए हवाई–मार्ग द्वारा रवाना हुईं। श्री माताजी ने ईरानी लोगों को विवेक–बुद्धि (हंसा चक्र) का आशीर्वाद प्रदान किया, यह समझाने के लिए कि प्रेषित Prophet हजरत मुहम्मद साहिब ने सहज–योग की ही बात की थी। श्री माताजी ने धार्मिक कट्टरतावाद की वजह से ईरान–यात्रा में न जा सकने की असमर्थता पर खेद जताया (दुःख प्रकट किया) किन्तु ईरानी लोगों को आश्वस्त किया कि यह समस्या उन ईरानी योगियों के द्वारा हल हो रही है, जिन्होंने काफी समय पूर्व (सन 1971 में) आत्म–साक्षात्कार पाया था!
अगलीसंध्याकोकार्यक्रममें, श्री माताजी ने बताया कि अमेरिका में क्या गलत हो रहा था और साधकों से सहज–योग अपनाकर अपनी रक्षा करने की अपील की। 400 लोगों के जन–समूह ने इस संदेश को स्पष्ट सुना और अपना आत्म–साक्षात्कार लिया।
19 सितम्बर को श्री विष्णुमाया–पूजा का आयोजन होटल ‘शॉनी–इन’ Shawnee Inn में पेनसिल्वानिया में हुआ। डेलावियर Delaware नदी के किनारों ने श्री माताजी को यमुना मैया की याद दिला दी। उन्होंने यह रहस्योद्घाटन किया कि एक विशेष समय ‘कृत–युग’ का है, जहाँ मनुष्य को अपनी गलतियों के लिए (जो भी गलतियां की हों), दण्डित होना पड़ता है। किन्तु आत्म–साक्षात्कार प्राप्त करने के बाद जीन्स genes पूर्णतया बदल जाते हैं और साधक को स्वयं को अब अपराधी नहीं महसूस करना है। अतः सहज–योगी को अपनी भूतकाल में की गई गलतियों के लिए कष्ट नहीं उठाने हैं और इस प्रकार अनेक प्राकृतिक महाविपत्तियां जो अमेरिका को डरा रही हैं, उन्हें टाल दिया गया है।
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अध्याय – 16
27 सितम्बर को नवरात्रि पूजा का आयोजन कबेला में हुआ। श्री माताजी ने स्पष्ट किया कि देवी माँ का अवतरण 9 बार हुआ था और दसवीं बार उन्होंने आत्म–साक्षात्कार प्रदान किया। उन्होंने विनोदपूर्वक कहा, “दसवें अवतरण में देवी माँ का वाहन हवाई–जहाज था।”
किसीकीसमझमेंयहथोड़ासाहीआयाकियहमजाककितनीगंभीरथी! कुछ दिनों बाद वे मैड्रिड से बगोरा की हवाई यात्रा पर पुरातन कोलम्बियन कथा को पूर्ण करने हेतु सवार थीं।
एकपौराणिककथाकेअनुसारभगवानविष्णुअपनेवाहनगरूढ़परकोलम्बियापधारेथे।संयोगसेकोलम्बियानेअपनाराष्ट्रीयचिन्हगरूढ़रखा।
संयोगवशकोलम्बियनबच्चोंनेएकनाटककाप्रदर्शनकिया, जिसमें पौराणिक कथा–वर्णन (प्रदर्शन) किया गया था। वे वास्तव में जुड़े हुए थे। नवरात्रि पूजा के दौरान श्री माताजी ने बताया, उनका प्रगाढ़ संबंध योग से (आदिशक्ति से) था और उसे उनके पुरातन पैतृक सम्पत्ति का प्रतीक बताया, जिसका उद्गम आदि कुण्डलिनी आदिशक्ति से था। श्री माताजी उनके पुरातन मूर्तियों में स्पष्टतया कुण्डलिनी और कुम्भ (घड़े) को मुद्रित देख सकती थीं।
मेडेलिनकेरास्तेमध्य–कोलम्बिया स्थित इबेग Ibague नगर को श्री माताजी ने आशीर्वादित किया। एअरपोर्ट स्टाफ, पायलट्स, पोलिस और गायकों के एक समूह ने श्री माताजी का स्वागत किया। यद्यपि वे वहां केवल आधे घंटे के लिए अपना प्यार देने के लिए रूकीं थीं, किन्तु बच्चों के लिए इतना ही पर्याप्त था, इसकी स्मृति (याददाश्त) उनके हृदय–पटल पर जीवन–पर्यन्त बनी रही।
मेडेलिनमेंएकपत्रकारनेस्वागतसंबोधनमेंकहा, “श्री माताजी हमें आपके आगमन की आशा है, क्योंकि हमें आपके आशीर्वाद और सलाह की जरूरत है। कृपया, हमारे नगर को बोध (प्रकाश) प्रदान कीजिये। हमें आपका संरक्षण दीजिये। हमारे देश को आप क्या संदेश देना चाहेंगी?”
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “दक्षिण–अमेरिका के वासियों को बताइये कि क्रिस्टोफर कोलम्बस के आने के 500 वर्ष बाद मैं इस महाद्वीप की आध्यात्मिक स्वतंत्रता के लिए आई हूं।”
श्रीमाताजीकेसंदेशनेमेडेलिनऔरबोगोटाकेसाधकोंकोस्वतंत्रताप्रदानकी।यद्यपिउनकामध्य–हृदय (चक्र) लगातार अत्याचार व हिंसाचार से कमजोर हो गया था, माँ के वात्सल्य ने उनके हृदयों को पुनः सशक्त कर दिया था।
तबएकचमत्कारहुआ, एक कोलाम्बियन योगी एक केले के खेत में कार्टाजेना (Cartagena) के नजदीक काम कर रहा था– तब आतंकवादियों ने आक्रमण किया। उन्होंने कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी, किन्तु जब वे उस योगी के कक्ष में घुसे, उन्होंने उसे ध्यानावस्था में पाया और भाग खड़े हुए!
ब्युनस–आयरेस (Buenos Aires) के रास्ते लीमा को श्री माताजी ने आशीर्वादित किया। उन्होंने रात्रि एक बजे तक ब्युनस–आयरेस में साधकों पर कार्य किया। श्री माताजी की मैराथन–यात्रा के बावजूद उनके मुख–मंडल पर एक स्मित–आभा विराजित थी। रविवार को उन्होंने अर्जेन्टिना को श्री गणेश पूजा का आशीर्वाद दिया। पूजा के बाद, जब श्री माताजी उठीं, उनके चरण–कमलों ने ताम्बे की थाली पर दक्षिण–अमेरिका के मानचित्र के रूप में अपने (पद चिन्ह) foot print छोड़े।
अपनीआँखोंमेंएकझिलमिलाहटलिएवेमुस्कराईं, “यह आपका आशीर्वाद है।” (यानि यह आशीर्वाद आपके लिए है)
14 अक्टूबर को श्री माताजी ने ब्राजील को श्री महाकाली पूजा से आशीर्वादित किया। श्री माताजी 3 रातों तक नहीं सो पाईं, क्योंकि वे नकारात्मक शक्तियों से युद्ध कर रहीं थीं। अंत में, तीसरे दिन उन्होंने काले जादू के नाम को दूर भगा दिया।
उप–सभापति (चेम्बर ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव) ने श्री माताजी का सम्मान ब्राजिलियन पार्लियामेंट हाउस में किया। सीनेट के प्रेसीडेंट ने कहा, “भारत से पधारे ऐसे महान आध्यात्मिक नेता का स्वागत करना ब्राजील के लिए एक बड़ा सम्मान है।” सीनेट प्रेसीडेंट ने नम्रतापूर्वक श्री माताजी से आशीर्वाद प्रदान करने की प्रार्थना की। राजनैतिक दबाव के कारण वे काफी तनाव में थे, श्री माताजी ने उन पर कार्य किया और मात्र 15 मिनटों में उनका शुभ परिवर्तन हुआ। श्री माताजी मुस्कराईं, “अब आप सुरक्षित हैं, कोई भी आपका अब और ज्यादा नुकसान (हानि) नहीं कर सकता।”
रिओकार्यक्रममें, एक महिला दुर्घटना की वजह से चल नहीं सकती थी और उसे क्षमा नहीं कर पा रही थी, जिसके द्वारा दुर्घटना हुई थी, श्री माताजी ने उस महिला को अपने हृदय से उस व्यक्ति को क्षमा करने की अपील की। जैसे ही महिला ने दुहराया, “मैं सबको क्षमा करती हूँ।” दर्शकों ने देखा, आश्चर्य से, उस महिला ने चलना आरम्भ कर दिया।
श्रीमाताजीकाटेलीविजनइन्टरव्यू (दूरदर्शन साक्षात्कार) दस करोड़ ब्राजील वासियों ने देखा।
25 अक्टूबर को श्री माताजी ने टिमि–सोआरा (Timi Soara) जो कि हंगेरी देश की सीमा पर स्थित रोमानिया का कस्बा है, उसमें ईस्टर्न–ब्लाक (पूर्वी यूरोप) के लक्ष्मी–तत्व को दिवाली पूजा पर आशीर्वादित किया। श्री माताजी का मातृत्व (वात्सल्य) उपहारों के रूप में अपने बच्चों के लिए बहा, जो पोलैंड, बुल्गेरिया, चैकोस्लावाकिया, रशिया, और यूक्रेन से आए थे और यह जाहिर किया, “श्री लक्ष्मी तत्व को स्थापित करने के लिए दोनों दरवाजे हमेशा खुले रहने चाहिये, एक दरवाजे से हरेक चीज देने के लिए और दूसरे से प्राप्त करने के लिए केवल तभी परमात्मा कार्य कर सकते हैं।”
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अध्याय – 17
साधकोंकीएकसुनामीलहर (ज्वार) ने उत्तर भारत की सफाई नवम्बर अन्त में दिल्ली के सहज–कार्यक्रमों में कर दी। जो कार्यक्रमों से चूक गए, उन्होंने गलियों में लगे सहज–योग पोस्टरों से अपना आत्म–साक्षात्कार लिया। साधकों ने सम्मानपूर्वक पोस्टरों को मढ़वाकर (after getting framed) उन्हें अपने घर के पूजा–स्थल पर (आदरपूर्वक) स्थापित कर दिये।
श्रीमाताजीकीमैराथनअनवरतचलरहीथीऔरउनकेबच्चोंनेउनसेनम्रतापूर्वककुछआरामकरनेकीप्रार्थनाकी।श्रीमाताजीनेउनकीप्रार्थनाओंकाउत्तरदियाऔरमाँकीकृपासेभारत–भ्रमण (India tour) का मार्ग हरियाणा, देहरादून, हरिद्वार, राजस्थान और गुजरात होते हुए, तय हुआ। श्रीराम मंदिर के विवाद पर उत्तर–भारत में साम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गए। मुगल शासक बाबर के शासन–काल में श्रीराम जन्म–स्थल (मंदिर) की जगह मस्जिद बना दी गई। हिन्दुओं ने हक जताया कि मंदिर, मस्जिद के पूर्व अस्तित्व में था और इसलिए श्रीराम का जन्म–स्थान अन्यत्र स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता था, जबकि मस्जिद पास के स्थान पर स्थानान्तरित की जा सकती थी, जो स्थल उन्हें दिया जाता।
श्रीमाताजीनेचैतन्य–लहरियां देखीं और दृढ़तापूर्वक कहा कि श्रीराम मंदिर उनके जन्म–स्थान (जहाँ मस्जिद खड़ी थी) पर था। “आप अपने हाथों पर महसूस कर सकते हैं कि श्री राम का जन्म वहां हुआ था। आप सब जानते हो, श्री राम आपके अंदर कहाँ विराजित हैं और जानते हो कि उनकी पूजा कैसे करनी है। एक बार यह सत्य जानकारी मालुम है, तो झगड़ने का कारण क्या है? हरेक आत्म–साक्षात्कारी को एक जैसी अनुभूति होगी। आप क्यों झगड़ा करोगे? असत्य के लिए झगड़ने का क्या उपयोग है? यह अँधेरे के लिए झगड़ने जैसा है। उजाला (प्रकाश) क्यों नहीं करते, खुद जान लो! किन्तु, क्या आप सोचते हैं कि जहाँ श्री राम मंदिर बना है, उससे देश की समस्या हल हो सकेगी? यह अंत नहीं है या उद्देश्य नहीं है, किन्तु एक ऐसा तरीका है, जिससे श्रीराम के प्रति सम्मान प्रदर्शित कर आशीर्वादित होना है।”
भारत–भ्रमण (India tour) तूफान में फॅंस गया और श्री माताजी के बन्धन से सहज–योगी सुरक्षित गणपतिपुले पहुंचे। उन्होंने देखा (महसूस किया) कि कैसे एक सहज–योगी की उपस्थिति ने एक शहर में पूरी जनसंख्या को बचा लिया था। योगियों ने श्री माताजी को चमत्कार–पूर्ण सुरक्षित रखने हेतु धन्यवाद दिया और समीक्षा की, कैसे सहज–योगियों की उपस्थिति ने दंगा–ग्रस्त क्षेत्रों में शांति स्थापित कर दी थी।
श्रीमाताजीप्रसन्नथींऔरक्रिसमस–पूजा पर दृढ़तापूर्वक कहा, “एक सच्चा योगी पार्श्व (पीछे) में खड़ा होता है, जहाँ वह मजा उठाता है– मैं सर्वत्र हूँ।”
ठीकयहीसहज–योगी बच्चे सुनना चाहते थे! श्री माताजी की शारीरिक उपस्थिति एक मानसिक विचार बन गया था। जैसे साधकों की संख्या उमड़ी उनके (माँ के) दर्शनों के लिए भीड़ इकट्ठी होनी शुरू हुई। साधकों ने जैसे ही श्री माताजी के पास आने हेतु धक्कम–धक्की की, इसने बहुत–सी आक्रमण–कारी शक्ति को मुक्त कर दिया, जिससे सामूहिकता में विभंजन (fractures) हो गए। पूजा के दौरान बैक–बेंचर्स (पिछली पंक्तियों में विराजित) योगीजन, यद्यपि श्री माताजी को नहीं देख पाए। उन्होंने माँ के प्यार को (चैतन्य लहरियों को) ज्यादा प्रबलता से महसूस किया, बजाय उनके जो अगली पंक्तियों में विराजित थे। यह परम–चैतन्य का स्पष्ट बताने का तरीका था कि श्री माताजी वहां थीं, जहाँ साधकों का हृदय था और यह आवश्यक नहीं था कि श्री माताजी के व्यक्तिगत–दर्शन हों।
अगलेदिन, संगीत कार्यक्रम में आगे की पंक्तियाँ खाली थीं और हरेक साधक ने खुशी–खुशी पीछे बैठना बेहतर समझा। श्री माताजी प्रसन्न हुईं और बैक–बेंचर्स (पीछे की कतार वालों) से आगे आने के लिए कहा। धीरे–धीरे उपहार–वितरण आरम्भ हुआ। श्री माताजी ने पीछे की ओर बैठे साधकों को पहले उपहार दिए और अगली कतार वालों को बाद में। यह ईसा की भविष्यवाणी थी, “पहला वाला, अंतिम होगा…..।”
अनायास, एक उत्तेजित सहज–योगी स्टेज पर कूद पड़ा। स्वयं–सेवकों ने उसे खींचकर दूर कर दिया। श्री माताजी ने उन्हें कड़ी फटकार लगायी, “इतनी सख्ती से पेश आने की जरूरत नहीं है। शायद उसे कुछ समस्या (बाधा) हो और मेरा ध्यान आकर्षित करना चाहता हो। यदि कोई स्टेज पर बैठना चाहता हो, मुझे इसमें कोई शिकायत नहीं है। यदि, किसी कारण उसे वहां से हटाना भी था, यह काम दयापूर्वक भी हो सकता था। निस्संदेह, एक निश्चित तरह का आत्म–अनुशासन जरूरी है, इस तरह की दस हजार लोगों की बड़ी सामूहिकता (gathering) में यह कार्य संवेदनापूर्वक होना चाहिए। मैं नहीं चाहती कि सहज–योग में कहीं कोई फौजी शैली का अनुशासन आयोजित किया जाय।”
यात्राकीसततसरगर्मीसेभरेसालकेबादगणपतिपुलेकार्यक्रमप्रियश्रीमाताजीकेलिएएकपारिवारिकमिलनथा।श्रीमाताजीअपनेबच्चोंकेलिएमनचाही (स्व रूचि पकवान) और उनके ठहरने/आराम सुख–सुविधाओं की बारीक से बारीक देखभाल करने में लिप्त थीं। उन्होंने हर पल को वात्सल्यमय कर दिया था। बच्चों के आनन्द को बढ़ाने के लिए ख्याति–प्राप्त कलाकारों को आमंत्रित किया गया था। रात–रात भर वे अपनी सत्तासी (87) शादी लायक बेटियों के लिए, आदर्श दूल्हों के चयन (matching) करने हेतु बैठीं। वे बच्चों को सब–कुछ देना चाहती थीं और अपने लिए कुछ भी नहीं, उन्हें इसके एवज में कुछ भी नहीं चाहिए था…. (निरपेक्ष)। यदि बच्चे उन्हें कुछ देना चाहें, तो वह था– बच्चे आपस में प्यार करें। उन्हें सबसे ज्यादा क्या चीज पीड़ित करती थी, जब वे आपस में झगड़ते।
श्रीमहालक्ष्मीपूजा (काल्वे में), अपने विदाई संदेश में उन्होंने अपील की, “मुझे इससे बहुत ही महान आनन्द मिलेगा, सबसे बड़ी उपलब्धि और मेरे जीवन की पूर्णता होगी, जब आप आपस में प्यार करें, हरेक योगी से प्यार करें। तब, आपका श्री महालक्ष्मी तत्व सदा के लिए प्रकाशित रहेगा।”
1993
अध्याय – 18
9 घंटे की यात्रा के बाद श्री माताजी गणपतिपुले से पुणे (पूना) पधारीं। रास्ते में उन्होंने कुछ भी नहीं खाया, किन्तु उनके चेहरे पर तनिक भी थकान के चिन्ह नहीं थे। उन्होंने पुणे योगियों से फूल ग्रहण किए और विश्राम हेतु अपने कक्ष में गईं। उन्होंने एक टेलीविजन बुलेटिन देखा, जिसमें महाराष्ट्र के अकाल–ग्रस्त हिस्सों को दिखाया गया था और उनका हृदय दर्द से पीड़ित हो उठा। उनकी डिनर ट्रे (रात्रि–भोजन) बिना उपयोग किए रसोई घर को वापस हो गई। वे भावनात्मक पीड़ा से रात्रि में सो नहीं पाईं। सुबह उन्होंने एक ट्रक–लोड (लॉरी भरकर) अनाज मॅंगवाया और उसे चैतन्यित करके अकाल–पीड़ितों को भिजवाया।
उन्होंनेअपनेखेत (farm) पर चैतन्यित बीजों को न्युजीलैंड के बीज–विषेशज्ञ की मदद से पनपाया। वैज्ञानिक रसायन उर्वरकों का उपयोग पैदाबार बढ़ाने के लिए करना चाहते थे, किन्तु श्री माताजी ने उस विचार को असहमति दी। एक सप्ताह तक तर्क–वितर्क चलते रहे। वह वैज्ञानिक अपने तर्क के समर्थन में सभी तरह की सच्चाई और आंकड़ों के साथ प्रस्तुत हुए। अंत में नतीजे में, यह सहमति बनी कि दो प्लॉट्स (खेतों/भूखंडों) पर प्रयोग किए जायें। पहले प्लॉट पर रसायनिक खाद उपयोग होगी और दूसरे प्लॉट पर केवल (ऑर्गेनिक) जैविक खाद पानी के साथ (चैतन्यित–जल के साथ) उपयोग होगी। जब फसलें तैयार हुईं तो पाया गया कि दूसरे प्लॉट, जिसमें चैतन्यित–जल और जैविक–खाद का उपयोग हुआ, उसकी फसल प्लॉट नं.1 से दो गुनी रही।
उन्होंनेसमझायाकिरसायनबहुतगर्महोतेहैंऔरपहलेप्लॉटकीचैतन्य–लहरियां भी गर्म कर दीं। अत्यधिक गर्मी ने प्राकृतिक (जैविक) क्रियाओं को बाधित किया, जबकि चैतन्यित–जल ने जैविक–क्रियाओं को बढ़ाया।
यहबिन्दुयादरखागया (noted) और कृषि वैज्ञानिक ने धरती–माँ से क्षमा प्रार्थना की व उसे प्रदूषित करने के लिए क्षमा माँगी।
श्रीमाताजीनेपहिलेप्लॉटपरउसकीचैतन्य–लहरियों को ठंडा करने के लिए चैतन्यित जल छिड़का। तब पहिले प्लॉट पर की चैतन्य–लहरियां देखने को कहा, वे वास्तव में शीतल थीं।
इसप्रासंगिकघटनाक्रमनेधरतीमाँकेबोध (ज्ञान) को विषेशज्ञों के लिए बदल दिया था। वे धरती के चक्रों और चैतन्य–लहरियों के बारे में सचेत हो गए। धरती माँ ही कुण्डलिनी (सर्वशक्तिमान) थी और वे धरती माँ से चैतन्य–लहरियां खींच सकते थे। कोई आश्चर्य नहीं कि धरती माँ की पूजा पुरातन सभ्यता में होती थी, जैसे भारत, इन्कास, होपी इंडीयन्स और ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के आदिवासी, करते थे। इस नई सतर्कता का फैलाव (विस्तार) काफी मोहक व आकर्षक था, वैज्ञानिकों ने धरती माँ को एक जीवन्त–शक्ति की तरह जाना और धरती के प्रति शिष्ट–रीति से रक्षा करने की सौगंध ली।
हाथजोड़ेहुएकृषिवैज्ञानिकनेश्रीमाताजीकोउनकीउदारताकेलिएधन्यवाददिया।वेबोले, “हम अपनी उत्तर–जीविता के लिए धरती माँ के प्रति ऋणी हैं और तो भी हम बिना सोचे–समझे (अविवेकी तरह से) धरती माँ का शोषण करते हैं। वे हमारी माँ, जननी हैं और हम उन के अंग–प्रत्यंग हैं। कृपया, धरती माँ (प्रकृति माँ) की रक्षा कीजिए।”
श्रीमाताजीनेकहा, “यदि किसानों को सिखाया जाय, कैसे वे बीजों को चैतन्यित करें और मिट्टी को चैतन्यित–जल से सींचे, तो भारत की खाद्य–समस्या का निवारण हो सकता है।”
कृषिवैज्ञानिकनेश्रीमाताजीकीआज्ञालेकरकृषिमंत्रालय (भारत सरकार) तथा संसद सदस्यों से संपर्क स्थापित किया। कृषि वैज्ञाानिक ने योजना बनाना शुरू किया उनके विवेकयुक्त मस्तिष्क ने ताना मारते हुए कहा, “हमें एक उचित संगठन बनाना चाहिये। श्री माताजी, आपके पास तो एक सचिव तक नहीं है।”
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “तुम सब योगीजन मेरे सचिव हो। तुम मेरी आँखों के तारे हो। मेरे मंदिर के स्तंभ हो। तुम्हारी कुण्डलिनी स्वयं संगठन करने वाली है। मुझे किसी अन्य संगठन की जरूरत नहीं है।”
उसवैज्ञानिकनेतर्कदियाकिकुछलोगसहजयोगकीकीमतपरपैसेबनारहेहैंऔरयहआवश्यकहैकिकमसेकमएकएकाउन्टेंट (लेखाकार) रखा जाय।
श्रीमाताजीनेकहा, “सहज योगी मेरे लेखाकार हैं। यदि तुम सहज–योग से कुचेष्टा करते हो, अपनी चेतना में अपने नाभि–चक्र में से तुरंत आप बाहर कर दिए जाते हो। आप यहां हजार रूपये बना लेते हो, किन्तु आपके दस हजार रूपये चले जाते हैं।”
सहज–योग बिना किसी संगठन के विकसित हुआ, श्री माताजी की माधुर्य–लीला (खेल) से यह वैश्विक स्तर पर फैल गया। बिना किसी संगठन के श्री माताजी ने अकेले सहज–योग स्थापित किया। वह वैज्ञानिक सहज योग द्वारा वैश्विक परिवर्तन के विशालकाय कार्य की कल्पना भी नहीं कर सका, जो घटित हो चुका था। सामूहिक सहयोग, यदि कोई था, केवल सहज–योग कार्यक्रम हेतु पोस्टर्स लगाना मात्र था। वह भी इतना आनंदित करने वाला अनुभव था– भजन गाते हुए और आते–जाते (गुजरते हुए) लोगों को श्री माताजी के पोस्टर (फोटोग्राफ) के सम्मुख आत्म–साक्षात्कार देना!
श्रीमाताजीनेहरदेशकीकुण्डलिनीजाग्रतकरतेहुए, प्रत्येक देश में सहज–योग प्रारम्भ किया। इसके बाद, उन्होंने चक्रों को खोला और उन्हें संतुलित किया। जब सामूहिकता के सहस्रार खुले, उन्होंने उन्हें सामूहिक चेतना से आशीर्वादित किया। धीरे–धीरे सामूहिकता एक विराट शरीर में एकरूपता को प्राप्त हो गई और श्री माताजी ने कल्कि की शक्ति आगे संचलित की। व्यक्तिगत रूप से हरेक साधक एक बिन्दु तक उन्नत हो सकता था, उसके परे श्री कल्कि की शक्ति ने कार्य सम्हाला।
जैसेपूर्ण–चन्द्रमा ने ज्वार–भाटा को शक्ति प्रदान की, उसी प्रकार श्री माताजी की उपस्थिति ने श्री कल्कि की शक्ति को गति प्रदान की। जैसे ही सहज–योग का सामूहिक शरीर श्री माताजी के साथ एकनिष्ठ हो गया। श्री कल्कि की शक्ति सहज–योगियों की छोटी–छोटी इच्छाओं को अनुक्रिया प्रदान करती (जवाब देती) और उनके कल्याण के लिए हर वस्तु को विषेश महत्व प्रदान करती। सही वक्त पर सही चीज घटित होना, यहां तक कि सहज–कार्यक्रम के लिए सही हॉल (सही कार्यक्रम स्थल) का चयन होना। ऋतम्भरा प्रज्ञा ने उनके कल्याण के लिए जवाबदेही ली– कार्यक्रम हॉल के लिए किराए की उचित राशि लगातार बहुत ही अप्रत्याशित स्रोतों से प्रकट हो जाती।
इसकेअलावा, श्री कल्कि ने उनके बच्चों की हर कदम पर रक्षा की। यदि बच्चों का ध्यान (चित्त) अस्थिर (संशय–युक्त) होता और योग से हट जाता, श्री कल्कि की शक्ति बच्चों को उनके रास्ते पर सही पथ–संकेतक द्वारा सही मार्ग पर लाती! यद्यपि श्री कल्कि का मुख–मंडल (चेहरा) नहीं है, तो भी वे आत्म–संगठन से प्रेरित हैं और किसी अन्य प्रबन्धन की उन्हें जरूरत नहीं पड़ती। श्री माताजी का लक्ष्य एक संगठन की सफलता के बारे में नहीं था, किन्तु श्री आदिशक्ति के प्यार (वात्सल्य) के भेदन का था। तथाकथित मानव–निर्मित प्रबन्धन और वाद–विवाद केवल, इसके बहाव को बाधित करते हैं।
श्रीआदिशक्तिकेप्यारकीसर्व–व्याप्त शक्ति ने श्री कल्कि के सामूहिक स्वरूप को निर्व्याज–प्रेम में प्लावित (सराबोर) कर दिया था। यह प्यार केवल प्यार के लिए था। वस्तुतः उनके बच्चे अक्सर यही कमी महसूस करते थे कि माँ को कैसे खुश करें। वे निरपेक्ष थीं और थोड़ी सी भावाभिव्यक्ति से प्रसन्न हो जातीं, “अहा कितने सुन्दर फूल हैं! कितनी प्यारी चाय!! केक, मुझे मेरी मां की रेसिपी की याद दिलाता है। पास्ता किसने बनाया? इस चादर पर इतनी सुन्दर कशीदाकारी किसने की?”
एक भी उपहार (भेंट) उन्हें प्यार से अर्पित की गई– उनकी प्रशंसा से नही बचा। उनके बच्चों द्वारा उनके प्रति छोटी सी छोटी कृति से भी उन्हें संतुष्टि/प्रसन्नता हुई। हरेक हृदय से की गई सहज पुकार को उनका हृदय अनुक्रिया respond देता था और प्यार की वह शक्ति सब कुछ संगठित करती। प्यार की उस शक्ति ने समय चक्र को घुमाया और सहज–योग को आगे बढ़ाया। कैसे, सहज–योग इतने कम समय में विश्व–भर में फैला!
किन्तु, अल्प–दृष्टि (short sighted) वाले मानव–मस्तिष्क के प्रबन्धन ने लापरवाही से उनके शो (show) को विकृत किया। श्री माताजी ने पुणे के बाहरी क्षेत्र में स्थित शेरे में पूजा हेतु सुन्दर पहाड़ी का चयन किया। तुरंत आयोजकों ने सभी संभावित समस्याओं की कल्पना रख दी– “इतनी दूर शहर से बाहर, ट्रान्सपोर्टेशन का प्रबन्ध करना, कितना मुश्किल होगा– आदि आदि (समस्याएं)।” अतः अपने बौद्धिक सोच अनुसार उन्होंने शहर के मध्य पूजा का आयोजन रखा। ठीक जैसे ही, श्री माताजी ने पूजा प्रवचन शुरू किया, बिजली गुल हो गई और कोई भी उन्हें नहीं सुन सका।
श्रीमाताजीनेभली–भांति विचार करके चैतन्य की वजह से पूजा–हेतु स्थान का चयन प्राकृतिक–वातावरण में किया। भारी जनसंख्या वाले शहरों में चैतन्य–लहरियां इतनी भारी थीं कि उनकी सफाई करना, पहाड़ को उठाने जैसा था। इससे उनकी कुण्डलिनी पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। जबकि, ऋतम्भरा प्रज्ञा उनकी सहायता सामूहिकता की आज्ञा को शांत करने, उसकी चैतन्य–लहरियों को आत्म–सात करने और उसके चक्रों की सफाई में करती है।
श्रीमाताजीविरलेही (कभी– कभी) आदेश जारी करती थीं, किन्तु सूक्ष्म में संकेत भेज देती थीं। किन्तु सामूहिकता की कुण्डलिनी का उनके साथ ताल–मेल के बिना उस संकेत का आशय समझना संभव नहीं था। उनके साथ एक–निष्ठता (योग), योगियों की कुण्डलिनी को सशक्त करके संकेतक को पढ़ने (समझने) का विवेक प्रदान करता।
श्रीकल्किकेसाथएकनिष्ठताकारास्ताकुण्डलिनीकेद्वाराहीसंभवहै।इसकेअतिरिक्तकिसीकीकुण्डलिनीकाअनुसरणकरकेकोईतर्ककेबन्धनकोटालसकताथा, जिसका हल आज्ञा ने निकाला है। यह आवश्यक था किसी साधक की व्यस्त आज्ञा को श्री कल्कि के साथ एकनिष्ठ करके शांत करना। इसलिए श्री माताजी किसी भी लाल फीताशाही के पक्ष में नहीं थीं या पिरामिड जैसी संरचना, जो सहजयोग में साधकों के आज्ञा चक्र पर दबाव डाले। यदि वे सहज–योग में कड़ाई से नियम पालने वाला किसी को पातीं, वे उसे भली–भांति विचार करके उन्हें हटा देंती। “सहज–योग स्व–संगठित और स्व–संतुलित है। आप सब मेरे शरीर की कोशिकाएं हो, किन्तु यदि कोई कोशिका (cell) मुझे तकलीफ देती है, मेरा पूरा शरीर प्रतिक्रिया करता है।”
श्रीमाताजीनेस्पष्टकियाकिजबयोगीजन– उनकी (अपनी) कुण्डलिनियों से जुड़ जाते हैं, वे श्री माताजी के कल्कि स्वरूप के साथ समन्वय (समान विचार धारा) में कार्य करते हैं और उन्हें कुछ भी चीज तकलीफ नहीं दे सकती। कभी भी कोई नकारात्मकता उनके अंदर प्रवेश नही कर सकती। नकारात्मकता केवल उनके बच्चों के द्वारा ही उनमें प्रवेश कर सकती थी, जो बच्चे (योगीजन) सामूहिकता से कटे–से रहते थे। हर योगी उनके (विराट) शरीर में एक सेल (कोशिका) था। यदि कोशिकाएं दुर्भावनापूर्ण (विद्वेषी) बन जाती हैं– स्वाभाविक है शरीर को पीड़ा सहनी पड़ेगी। इसके विपरीत, यदि सेल्स (कोशिकाएं) समन्वित हैं, वे उनके श्री कल्कि स्वरूप के साथ एकनिष्ठ होते हैं।
“किन्तु आपस में सलाह/राय में भिन्नता हो सकती थी” आयोजक ने प्रतिवाद (विरोध) किया ।
श्रीमाताजीनेसंकेतदिया, “जैसे कि सामूहिक चेतना में दो मत नहीं होते, सलाह/राय में भी भिन्नता का प्रश्न ही नहीं होता है। यह भिन्नता अहंकार की वजह से पैदा होती है। आपकी कुण्डलिनी के द्वारा आप सामूहिक रूप से चेतित हो जाते हो और सम्पूर्ण सत्य को जानते हो। पूर्ण सत्य के प्रकाश में दोहरापन नहीं होता।”
एकनिष्ठताकेबारेमेंमुंबईमेंमहाशिवरात्रिपूजापरभीश्रीमाताजीनेसमझाकरस्पष्टकिया।
“यदि आप प्रकाश हैं और आप दीपक हैं, तो दोहरापन कहाँ है, यदि आप चन्द्रमा हैं और आप ही चन्द्रिका हैं, तो दोहरापन कहाँ हुआ? यदि आप सूर्य हैं और आप सूर्य–प्रकाश हैं, तो दोहरापन कहाँ हुआ?”
1993
अध्याय – 19
श्रीमाताजीनेसहजयोगउद्यानकोप्यारसेचित्रितकिया, जिसमें स्कूल, अस्पताल की पुष्पाच्छादित शय्याएं बिछायीं गईं। 11 मार्च को उन्होंने विभिन्न कमेटी को हरेक शय्या की देखभाल करने हेतु कार्य–भार सौंपा। एक कृषि कमेटी बनाई गई फसलों की पैदावार चैतन्य की मदद से बढ़ाने हेतु समिति बनाई गई। एक कमेटी को वैवाहिक कार्यों की देख–भाल हेतु कार्य–भार सौंपा। उन्होंने स्पष्ट किया कि बायीं ओर की भक्ति ने राईट–साइड में सृजनात्मकता का चित्रण किया। अतः रंगमंच और नाट्य–कला की समितियों को सहज–योग के सनातन–मूल्यों को उन्नति प्रदान करने हेतु व्यस्त हो जाना चाहिये। एक आडियो–वीडियो समिति टेप्स के उत्पादन, संरक्षण और वितरण हेतु और दूसरी कमेटी (समिति) पुस्तकों के प्रकाशन के लिए खड़ी (सुसज्जित) की गई।
एकवित्तीयसमितिकोसहजप्रोजेक्ट्सकीअर्थ–व्यवस्था को ध्यान से समझने हेतु देखना था। श्री महालक्ष्मी तत्व को ऊपर उठाए रखने के लिए श्री माताजी ने मार्ग–दर्शन दिया, “जो भी दान–राशि एक प्रोजेक्ट के लिए इकट्ठी होती है, वह राशि उसी प्रोजेक्ट में खर्च की जाय और अन्यत्र कहीं भी न भेजी जाय।”
यद्यपिवेकठोरअनुशासनमेंविश्वासनहींकरतीथीं, उन्होंने जतलाया कि कैसे सहज–योगी को व्यवहार करना और शिष्टता को कायम रखना चाहिये। उन्होंने कहा, हमेशा संचार माध्यम (मीडिया) से आक्रमण होता था और एक कमेटी को उन्हें (मीडिया) संबोधित करना चाहिये।
वेचाहतीथीं, सामूहिकता का चित्त पत्रकारिता के संकीर्ण–सोच सीमा से बाहर जाए और वैश्विक समस्याओं को संबोधित करे। वैश्विक–समस्याओं का हल सामूहिक चेतना से प्रकट होगा, यदि उन पर सामूहिकता का चित्त गया। 19 मार्च को दिल्ली के मेरिडियन होटल की प्रेस–वार्ता पर उन्होंने मीडिया को प्रेरित किया, “यह एक इतनी महान चीज होगी–एक पुण्य का कार्य होगा, यदि आप अपनी शक्ति का उपयोग उचित चीजों हेतु करेंगे।”
श्रीमाताजीका 70th जन्म–दिवस (पूजा) निजामुद्दीन स्काउट ग्राउन्ड्स, दिल्ली में मनाया गया था। कार्यक्रम स्थल के पास ही महान सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह थी। श्री माताजी ने कहा, “वे एक आत्मसाक्षात्कारी थे और उनकी मजार पर चादर (शॉल) भेंट करना मंगल–मय होगा।”
20 मार्च को सुबह जैसे ही योगीजनों ने उनकी मजार पर चादर चढ़ाने (भेंट करने) हेतु प्रवेश किया, वे संगीत की वर्षा के फव्वारों से आश्चर्य–चकित रह गए। सूफी संगीतज्ञों का एक समूह एक कव्वाली में डूबा हुआ था, जिस कव्वाली का संकेत प्यार के विरोधाभासी रहस्य को लेकर था और इसका इशारा एक भंयकर तूफानी नदी की ओर था, जिसमें जो प्रवेश करता, उसे डूबना चाहिए किन्तु उसी समय विरोधाभासी कथन यह था, जो केवल डूब गए, वही उस नदी से पार हुए यानि जो उसमें डूब गए, वही उबर गए यानि पार हो गए।
सूफीचेतनानेयोगियोंकोउसमेंकूदनेऔरडूबनेकोप्रेरितकिया।वेकहाँथे, उन्हें पता नहीं था, जब तक कि एक हाथ ने उन्हें ऊपर खींचा, “श्री माताजी के जन्म–दिवस समारोह (बधाई समारोह) के लिए देर हो रही है।” यह समय किनारे (बाहर) निकलने का था!
विदाहोनेसेपूर्वयोगियोंनेमजारकेपीरसाहबकोश्रीमाताजीकेजन्म–दिवस बधाई समारोह कार्यक्रम में आमंत्रित किया। जैसे ही उन्होंने आंगन को पार किया, अनायास ही सूफी कवि अमीर खुसरो की दरगाह से एक शीतल लहरियों के झोंके ने उन्हें उस ओर आकर्षित किया। वे आत्मसाक्षात्कारी थे और दिल्ली–सुल्तान के दरबार में सन् 1253 से 1325 तक मुख्य–संगीतज्ञ थे।
उन्होंनेरूपकद्वाराआत्माकीपरमात्मासे (प्रियतमा की प्रियतम से) मिलन की तीव्र इच्छा को भावनात्मक–उत्कंठा लिए काव्य–मय रचना की, एक नए प्रकार के संगीत विधा का (कव्वाली का) जन्म हुआ, जिसका अर्थ ‘परमात्मा से संवाद’ है। (कव्वाली यानि–परमात्मा से बात)। उनकी खुदा से (परमात्मा से) गुप्त मुलाकात उजागार हुई– एक विशेष अनुबन्ध से, जिसे उन्होंने अपने गुरू हजरत निजामुद्दीन औलिया से साझा किया, एक ऐसा अनुबन्ध जिसने सभी दूसरे सम्बन्धों की सीमा को पार किया। उन्होंने वसीयत की, उन्हें उनके गुरू के पास दफनाया जाय, किन्तु वे अपनी (रचनाओं) कव्वालियों की वजह से अमर हो गए।
दोपहरमेंमजारकेपीरअपनेशिष्योंसहितअपनीचमकीलीऔपचारिक (उत्सव–संबंधित) पोशाक में पधारे। उन्होंने श्री माताजी का सम्मान करने के लिए एक चादर (शॉल) भेंट की। श्री माताजी ने उन्हें पहिचानने के लिए, उनकी गहराई और सूक्ष्मता की प्रशंसा की। इसके बाद, उनकी (टीम की) हृदय–विदारक कव्वालियों ने जन्नत के दरवाजे खोल दिए!
कार्यक्रमकेबादमजारकेपीरसाहिबसम्मानसुरक्षापूर्वकश्रीमाताजीकोहजरतनिजामुद्दीनऔलियाकीमजारपरलेगए।यद्यपिऔरतोंकोमजारकेअन्दरप्रवेशवर्जितहै, पीर साहिब ने घोषणा की, कि नहीं, वे फातिमा बी के अलावा कोई नहीं हैं। जैसे ही श्री माताजी ने मजार पर शॉल भेंट की, चैतन्य–लहरियां का जल–प्रपात इतनी तेजी से बह निकला कि सामूहिकता के सहस्रार स्तुति–गान करने लगे। ऐसा लगा जैसे हजरत निजामुद्दीन औलिया अपनी आराम व शांति पूर्ण निद्रा से उठ गए हों– माँ के आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए।
अवश्यम्भावी, श्री माताजी की उपस्थिति ने हमेशा छिपी हुई नकारात्मकता को उजागर किया है। यह पता चला था कि मजार पर चढ़ाई हुई भेंट/उपहार (offerings) का पिछले 700 वर्षों से कोई हिसाब (लेखा–जोखा) नहीं कायम रखा गया था। यह पैसा कुछेक व्यक्तियों की जेबों में जा रहा था, जो हजरत निजामुद्दीन औलिया के वंशज (खानदानी) होने का अधिकार जमाए हुए थे और बच्चों को उपदेश के लिए सूती कपडों (रंगीन धारियों वाले वस्त्रों) से सुसज्जित थे। दिल्ली वक्फ बोर्ड ने दिल्ली हाई कोर्ट में जमीन के लीगन–ऑनर (वैधानिक मालिकाना हक) हेतु एक लॉ–सुइट फाइल किया, जिसमें मजार पर चढ़ाई हुई भेंट/उपहार चेरिटेबल उद्देश्य के उपयोग में लायी जाय और मजार का सही हिसाब–किताब कायम किया जाय। कुछ महीनों बाद हाई कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के हक में डिक्री (फैसला) दिया।
इसीप्रकारकाएकमामलासप्तश्रृंगीकासन् 1982 में उजागार हुआ था, जहाँ पुजारी लोग अपनी तिजोरियां भरने में व्यस्त थे। जैसे ही श्रीमाताजी ने उस मंदिर के दर्शन किए, भारत सरकार ने सप्तश्रृंगी मंदिर के प्रबन्धन को हस्तगत कर लिया।
हाथियोंकेएकशानदारजोड़ेनेश्रीगजलक्ष्मीकाउनकेजन्म–दिवस पूजा पर स्वागत किया। श्री माताजी ने कृपा करके श्री गजलक्ष्मी की उदारता प्रदान की और कलियुग के आखिरी दिन तथा सत्य–युग के महत्वपूर्ण आगमन की घोषणा की जहाँ सत्य सर्वोच्च शासन करेगा। चैतन्य लहरियां चन्द्र कलाओं की तरह बढ़ने लगीं, और पंडाल की छत हिलोरें लेने लगी, फिर भी पंडाल के बाहर एक पत्ती में भी हलचल नहीं हुई!
अगलेदिनकार्यक्रममेंश्रीमाताजीनेसाधकोंकीपिंगलानाड़ी (right side) को उनके प्रश्नों की पिपासा को शांत करते हुए शीतलता प्रदान की। शाम को संगीत कार्यक्रम में बहुत तेजी से बारिश शुरू होने लगी और पंडाल से पानी टपकने लगा। शीघ्र ही श्री माताजी का ध्यान उनके भीगते हुए बच्चों पर गया और श्री माताजी ने एक बंधन दिया और बरखा रानी ने सम्मानपूर्वक आज्ञा–पालन किया (बारिश रूक गई)।
यहबहुतहीव्यस्तसप्ताहथाऔरश्रीमाताजीकेपासआरामकासमयनहींथा।बच्चोंनेप्रार्थनाकी– कुछ दिन आराम कर लेने की। और उन्होंने आखिर में एक दिन के आराम की स्वीकृति प्रदान की। किन्तु, अगली शाम निर्मल संगीत सरिता के आहवान पर, संगीत कार्यक्रम में बिरजू महाराज, अजीत कड़कड़े और प्रतीक चौधरी ने उन्हें प्रातः तीन बजे तक जगाए रखा।
गुड़ीपड़वाकेशुभदिन, जैसे ही अगुआ गणों ने उनके चरण–कमलों पर पुष्पार्पण किया, श्री माताजी ने उन्हें शिष्टतापूर्वक अंहकार से मुक्त रहने की सलाह दी। “केवल आप ही एक संचार का माध्यम हो, जैसे एक पत्र लिफाफे में डालकर उसे पोस्ट करना होता है।”
25 मार्च को श्री माताजी ने नोयडा स्थित सहज–मंदिर का उद्घाटन किया। वे नोयडा के सहज योगियों की भक्ति से बहुत प्रसन्न थीं और उन्हें उपहारों से आशीर्वादित किया।
संध्याकोश्रीमाताजीनेमेरीडियनहोटलमेंएकचिकित्सीयसभाकोसंबोधितकिया।प्रश्नोत्तरकालकेदौरानएकराइट–साइड डॉक्टर (hyperactive) ने सहज योग के उस दावे को चुनौती दी, जिसमें बिना दवाओं के इलाज का दावा था। एक सहज डॉक्टर ने उसे समझाने का प्रयास किया जो एक गर्म बहस में परिणत हो गया। श्री माताजी ने देखा कि उस डॉक्टर की आज्ञा अवरोधित थी, उन्होंने बीच में हस्तक्षेप किया। धीरे–धीरे उन्होंने उस डॉक्टर का ध्यान दूसरी और बॅंटाया, एक विनोदपूर्ण किस्सा अपने पति के बारे में बताने लगीं, कैसे उनके पति महोदय बेचैन (अति उत्सुक) थे, जब उन्हें हवाई जहाज flight पकड़ना था और कैसे वह हवाई यात्रा अवश्यम्भावी रूप से लम्बित हो गई थी! डॉक्टर की राइट साइड पिघलने लगी और वह हंसने लगा।
तबश्रीमाताजीपुनःविषयपरआईंऔरनतीजनबतायाकिउनकेजीवनकाउद्देश्यलोगोंकोआत्मसाक्षात्कारदेनाहै, इलाज करना मात्र नहीं। “केवल आत्म–साक्षात्कार देने से एक रोगी का इलाज नहीं हो जाता, उसे सहज ध्यान निरन्तर करते हुए अपनी कुण्डलिनी को सहस्रार में स्थापित रखना होता है।”
उसअतिवादीडॉक्टरनेस्वीकारितामेंहामीभरीऔरउत्सुकतापूर्वकआत्म–साक्षात्कार प्रदान करने के लिए प्रार्थना की।
उसेशीतल–लहरियां महसूस हुईं और अगले दिन अपने सभी मरीजों को ले आया। श्री माताजी ने उसे उस शक्ति के साथ अपने मरीजों की समस्याओं को ठीक करने के लिए प्रोत्साहित किया, जिस शक्ति का आशीर्वाद उन्होंने उसे प्रदान किया था, “अतः, क्या होगा कि जो बोझ अब मेरे ऊपर है, वह तुम्हारे द्वारा बांटा जायेगा और उसके द्वारा तुम आगे बढ़ोगे और उन्नति करोगे।”
श्रीमाताजीकेजन्म–दिवस समारोह के अंतिम अंश का बड़ा हिस्सा एक मजेदार संगीतमय–रचना के साथ समाप्त हुआ। हरेक कलाकार ने प्यार के महासागर में आनन्द की संकेन्द्री–लहरों का सृजन किया।
1993
अध्याय – 20
ईस्टर–पूजा रोम में 11 अप्रैल को आयोजित हुई। श्री माताजी ने बताया, “हम बहुत ज्यादा भाग्यशाली हैं– अपने आत्मसाक्षात्कार और पुनरूत्थान को प्राप्त करके, किन्तु अब हमें अपने पुनरूत्थान में विश्वास होना चाहिये। सहज–योग में इसका अर्थ है कि तुम्हारा विश्वास (श्रद्धा) प्रगाढ़ होना चाहिये।”
बच्चोंनेसमझलिया, यदि उनका विश्वास पक्का (ठोस) था, उनकी समस्याएं सहज ही हल होंगी ।
यहआवश्यकनहींथा, उनकी समस्याएं श्री माताजी तक लाना, क्योंकि वे स्वयं योगियों के अंतस में थीं।
श्रीमाताजी 25 अप्रैल को एथेन्स पधारीं। उन्हें उनकी पिछली यात्रा सर सी.पी. के साथ (15 वर्ष पूर्व की) स्मरण हो आई। उन्होंने सर सी.पी. को कहा था कि वह दिन दूर नहीं, जब सहज योग एथेन्स में बहुत अच्छी तरह फैल जायेगा और अब वह दिन आ गया था!
पाल्लास Pallas में अथेना पूजा में, श्री माताजी ने महसूस किया, चैतन्य लहरियां सहज–योगियों द्वारा ग्रीस में वापस आ गई थीं। उन्होंने यह रहस्योद्धाटन किया कि डेल्फी Delphi विश्व की नाभि है (थी)। श्री माताजी ने स्मरण किया कि उन्होंने एक छोटा सा मंदिर, छोटे श्री गणेश का अपनी पिछली यात्रा में, टेम्पल आफ डेल्फी (डेल्फी मंदिर) यात्रा के दौरान ढूंढ लिया था।
एकसंवाददाता–साक्षात्कार में एक प्रसिद्ध पत्रकार को श्री माताजी ने कहा कि सहज–योग जो था, वही है जिसे ग्रीक लोक पूर्व से ही जानते थे और उनकी विरासत को पुनः चलन में लाया गया। पांच लाख से ज्यादा दर्शकों ने इस साक्षात्कार (interview) को देखा और साधकों का एक सागर सहज–कार्यक्रमों में उमड़ पड़ा। मदर गोडेस (देवी माँ) के प्रति उनके पूज्य भाव ने उन्हें श्री माताजी को पहिचानने (मानने) योग्य बनाया।
23rd सहस्रार पूजा, कबेला में 9 मई को मजेदार संगीत कार्यक्रम और नाट्य–कला प्रदर्शन के साथ मनाई गई। श्री माताजी ने सहस्रार के खुलने को सभी अवतरणों, भविष्य दृष्टाओं, संत–महात्माओं और प्रेषितों (prophets)) के कार्यों की चरम–सीमा कहकर वर्णित किया। उसमें से सभी ने उस बसंत के समय (blossom time) की भविष्यवाणी की थी, जिसका विचार श्री माताजी ने किया था।
जैसाकिबच्चोंनेश्रीमाताजीकोकहतेहुआसुनाथा, “सहस्रार की पारदर्शिता से आप अपने हृदय, मस्तिष्क को देख सकते हैं और साफ देख सकते हैं कि आपके अन्दर क्या दोष हैं।” (इस कथन पर) शीतल लहरियां बच्चों की रीढ़ पर बरसने लगीं। बच्चों ने स्वयं को श्री माताजी के सहस्रार में विलय कर दिया था और श्री माताजी की कृपा द्वारा अपने चक्रों की रूकावट को पिघलते हुए महसूस किया। अपने मस्तिष्क और बुद्धि–कौशल से सोचना, तर्क करना, योजना बनाना और विश्लेषित करना यह संभव था, किन्तु अपने चक्रों से दाग–धब्बों की धूल को वे दूर तक नहीं हटा सकते थे, केवल श्री माताजी की कृपा ही यह जीवंत कार्य कर सकती थी। जितना ज्यादा वे श्री माताजी को समर्पित करते, उतने ही ज्यादा वे उनकी कृपा को अवशोषित कर सकते थे।
इसकेअतिरिक्त, जब योगियों ने श्री माताजी के चैतन्य को अवशोषित किया, पूजा के बाद भी आनन्द कम नहीं हुआ, यह आनन्द की स्थिति महीनों तक बनी रही और जब यह टिमटिमायी, कुण्डलिनी के प्रकाश ने इसे पुनर्जाग्रत कर दिया!
6 जून को श्री आदिशक्ति पूजा के लिए श्री माताजी कबेला वापस लौटीं। श्री माताजी ने सलाह दी कि उन्हें सोने/चांदी के महॅंगे उपहार देने के बजाय, वे हर देश की हस्त–कला (handicrafts) को आशीर्वाद देना पसंद करेंगी। इससे कारीगरों को आशीर्वाद मिलेगा और समाप्तप्राय हस्त–कला का उत्साह–वर्धन होगा। श्री माताजी के इस मशविरे से प्रेरित हो श्री आदिशक्ति पूजा का रंगमंच (स्टेज) बहुत ही परम्परागत सांस्कृतिक कलात्मकता से सुसज्जित की गई थी।
पूजाप्रवचनमेंश्रीमाताजीनेआदिशक्तिकीसूक्ष्मप्रकृतिकोप्रकटकिया, “मेरे हृदय में मैं तुम्हारे प्यार को इस ईश्वरीय प्यार के स्फुरण के साथ प्रतिध्वनित होते हुए महसूस करती हूँ। मैं तुम्हें नहीं समझा सकती उस अनुभव को जो यह सृजित करती हैं। प्रथम तो यह मेरी आँखों में अश्रुओं की धारा को सृजित करती है, क्योंकि यह करूणा (दया) है, जो सांद्र–करूणा है…… तुम्हारे और मेरे बीच का यह संबंध निस्संदेह बहुत ही प्रगाढ़ है– अंतरंग है कि तुम्हें मेरे शरीर (विराट) में होना चाहिये। किन्तु यदि आप ध्यान नहीं करते हैं, तब मेरा आपसे कोई सम्बन्ध नहीं रहता… मेरे लिए तुम न के बराबर हो…तुम सहज योगी हो सकते हो।”
सांद्र–करूणा का हृदय रूपी सागर प्रेमाश्रुओं से भर गया। शीतल लहरियों cool breeze ने अपनी वाष्प–राशि उठाकर, संघनित करके मानवता (मानव–जाति) पर बरसा दी थी।
1993
अध्याय – 21
1993 की गर्मियों में सान्द्र–करूणा ने इस्तांबुल (टर्की) पर शीतल लहरियों के बादलों की बारिश की। तुर्क वासियों (ट्यूलिप पुष्प सम तुर्क बच्चों ने) जलालुद्दीन रूमी की कविता अपनी माँ के प्रति प्यार के इजहार स्वरूप गाई–
तुम्हारे दिल में एक ज्योत, है जलने को तैयार।
तुम्हारी रूह में एक खाली जगह, है भरने को तैयार।
तुम्हें अहसास होता है, क्या, नहीं हो रहा?
और उन्हें मिल गई– उनकी मंजिल!
श्रीमाताजीनेअनुक्रियाकी, “मैं तुम्हारे दिलों में उस दीप को जलाने आई हूँ और तुम्हारी अन्तरात्मा में रिक्तता भरने आई हूँ। सहज योग आनन्द (अपार खुशी) देने के लिए है और यही है जिसके बारे में रूमी ने बताया है। मैं तुर्की के सूफियों को धन्यवाद देती हूँ– सहज– योग के लिए मार्ग प्रशस्त करने के लिए और इसी तरह, तुर्की में सहज–योग बहुत तेजी से फैलेगा।”
सूफ़ी–जन श्री माताजी के इर्द–गिर्द उनके मुखिया ‘बाबा’ के साथ एकत्रित हुए। उनके मुखिया ने उन्हें (माँ को) पहचान लिया, “यह संभ्रान्त महिला फातिमा–बी हैं, बल्कि वे उनसे भी बढ़कर हैं।”
4 जुलाई को तुर्की के ट्यूलिप की मधुर सुगंध कबेला तक पहॅुंची। गुरू–पूजा के शुभ–अवसर पर योगियों ने प्रार्थना की कि यह शिष्यों का धर्म (कर्तव्य) है– गुरू चरणों में भेंट अर्पित करना और गुरू का धर्म नहीं– शिष्यों को उपहार देना, किन्तु श्री माताजी मुस्कराईं, “पहले मैं तुम्हारी माँ हूँ।”
श्रीमाताजीकोसबसेज्यादाप्रसन्नक्याचीजरखतीथी, वह है जब उनके बच्चे दूसरों में अच्छाई और महानता देखते थे। श्री माताजी बच्चों का ख्याल हर कदम पर रखती थीं, उन्होंने उनके लिए आश्रम बनाए, पूजा के दौरान उनके आराम के लिए प्रबन्ध किए, यहां तक कि उनके लिए भोजन तक बनाया और उन्हें उपहारों से आशीर्वादित भी किया। उन्होंने बच्चों को पूरी स्वतंत्रता दी और इसके बदले में कुछ भी नहीं माँगा। उनके बच्चों ने उनके प्यार की सौगात को फैलाते हुए उनको सदा प्रसन्न रखने के प्रयास किए।
कुछसमयपूर्ववेपेरिसकेलिएरवानाहुईं।उन्होंनेमहसूसकियाफ्रांसकीबायींसाइड (इड़ा नाड़ी) ने फ्रांसीसियों को बनिस्बत आलसी और असुरक्षित बना दिया था। परिणाम स्वरुप उन्होंने स्वयं को बाहरी दुनिया से बहिष्कृत (अलग–थलग) कर दिया था और उस खालीपन में बहुत से कुरूप व अनिष्टकारी गतिविधियां उनमें प्रवेश कर गयीं। उन्होंने शुद्ध इच्छा–शक्ति (श्री महाकाली शक्ति) को दबा दिया था। 11 जुलाई को फ्रांसीसी बच्चों ने इस खालीपन को श्री महाकाली की शक्ति से (शुद्ध इच्छा शक्ति से) भरने की प्रार्थना की।
श्रीमाताजीनेबताया, “श्री महाकाली शक्ति भ्रान्ति का सृजन करती हुई अहंकार को ठीक करती है। यदि वे भ्रान्ति (भ्रम) नहीं सृजित करेंगी, तो लोग इतने अहंकारी हो जायेंगे कि विश्व समाप्त हो जायेगा।”
श्रीमाताजीकेआशीर्वादसेशुद्धइच्छा–शक्ति सत्य के साधकों को कार्यक्रम में ले आयी। उनमें से एक प्रमुख हस्ती शिया धर्मगुरु अयातुल्लाह रौहानी आये। वे ईरानी शिया कम्युनिटी से मान्यता प्राप्त 4 धर्म गुरुओं में से एक थे। उन्होंने श्री माताजी को एक पत्र भेंट करते हुए खुलकर मुस्लिम धर्मान्धता की आलोचना की। श्री माताजी ने यह पत्र एक उल्लसित श्रोताओं के बीच ऊंचे स्वर में पढ़ा। फ्रांस में पहली मर्तबा एक उच्च पदासीन मुस्लिम अधिकारी ने आमतौर पर मुस्लिम धर्मान्धता पर आक्रमण किया और सहज–योग के पक्ष में बोले। इससे, पूरे विश्व में मुस्लिम साधकों के लिए सहज–योग का रास्ता खुल गया।
श्रीमाताजीकेआदेशपरउन्होंनेऔरउनकेअनुयायिओंनेफातिमाबीकेपुत्रोंकेशोकमेंपहिनेजानेवालेकालेकपड़ोंकोपहननेकीआदतछोड़दीऔरपुनर्जन्म (मिराज) miraj का स्वागत करने के लिए सफ़ेद कपड़े पहनना शुरू किये। श्री माताजी अत्यधिक प्रसन्न थीं, “पेरिस को देखो! कितने लम्बे अंतराल के बाद वे आए हैं।”
औरवेएम्स्टरडेम, ब्रुस्सेल्स, ऐंटवर्प, हैम्बर्ग, बर्लिन और प्राग (कार्यक्रमों में) आते रहे। शुद्ध इच्छा शक्ति ने चेक गणराज्य के साधकों की भीड़ को इकठ्ठा किया। वे अध्यात्म में इतने गहरे उतरे कि श्री माताजी के कार्यक्रम–स्थल (हॉल) से चले जाने के बाद भी स्वयं को वहां से नहीं हटा पाए।
26 जुलाई को श्री गणेश पूजा बर्लिन शहर में हुई। श्री माताजी ने याद दिलायी यदि बच्चों का गणेश–तत्व ठीक नहीं है, तब पूरा आन्दोलन यकायक समाप्त हो जायेगा। उन्होंने प्रारम्भ से लेकर पूरी सूक्ष्म चीजें नहीं बतायीं, क्योंकि बच्चे उन्हें सहन नहीं कर सकते थे, किन्तु जैसे–जैसे बच्चे बड़े हुए (समझदार हुए), श्री माताजी ने उन्हें धीरे–धीरे शिक्षित किया। श्री माताजी ने संकेत दिया (बताया), जो भी वे अपनी चैतन्य–लहरियों से सत्यापित कर सके, अब उनका ज्ञान बन जाना चाहिए। यह आवश्यक नहीं था, कि उन्होंने क्या जाना था किन्तु यह आवश्यक था कि उन्होंने कौन सी अवस्था पा ली थी।
1993
अध्याय – 22
यूरोपियनटुअरसमाप्तहुआऔररशियनटुअरआरम्भहुआ! 28 जुलाई को परम चैतन्य ने कीव Kiev के योगियों को उनके संरक्षक के आगमन की घोषणा स्वरूप आकाश में बहुत–से चमत्कारिक दृश्य दिखाए। एक ठसाठस भरे हुए स्टेडियम ने अपने संरक्षक का एक मेघ–गर्जना–सम स्तुति से स्वागत किया। श्री माताजी उनके प्यार द्वारा गहराई तक अभिभूत थीं और उनके उत्थान कार्य में आई समस्याओं को हल किया। “हमारे अंदर दूसरी समस्याएं हैं, जो कि बौद्धिक हैं और ये समस्याएं हमारी अत्यधिक चिन्ताओं से पनप रही हैं और बहुत अधिक चिन्तनशीलता से हम स्ट्रेस और स्ट्रेन में फंस जाते हैं, अत्यधिक शक्ति के उपयोग से तनाव को ओढ़ लेते हैं और बहुत से लोग उन कार्यों को करने की कोशिश करने लगते हैं, जिन्हें उनको नहीं करना चाहिये और बहुत सारी दिमागी समस्याओं में लिप्त हो जाते हैं। लोग मानसिक बीमार या पागल हो जाते हैं। कुण्डलिनी जाग्रति से सभी प्रकार की मानसिक समस्याएं हल की जा सकती हैं।”
जो (साधक) पिछले 25 वर्षों से दवाइयों का सेवन करते रहे थे, उन्होंने बताया कि आत्म–साक्षात्कार लेने के बाद, उन्होंने कोई दवाईयां छुईं तक नहीं।
सेंटपीटर्सबर्गकोजातीहुईएकचार्टर्ड–उड़ान के दौरान श्री माताजी ने सोवियत रूस की समस्या को आज्ञा–केन्द्रित बताया। सत्ताधारी सोवियत प्रणाली ने सामूहिक आज्ञा को घमण्ड से फूला दिया। उस आज्ञा ने विनम्र योगियों, सहज–अगुआ जैसों को भी निगल लिया था। श्री माताजी उसके बारे में घंटों बात करती रहीं और वस्तुतः रेखांकित करने की शुरूआत में थी। यद्यपि वे कभी नाराज नहीं हुईं। वे एक तरह की गम्भीर मुद्रा धारण करती–सी दिखीं, जिसे रूसी बच्चे नहीं समझ सके। उन्होंने श्री माताजी के ध्यान को विषय से परे हटाने के कई प्रयत्न किए, किन्तु किसी अज्ञात कारण से वे विषय को नहीं बदलना चाहती थीं।
जबवेसेंट–पीटर्सबर्ग पधारीं, रूसी लीडर (अगुआ) उन के चरणों में गिर गया। अचानक श्री माताजी एक सात–वर्षीय अबोध बालिका–सम प्रतीत हुईं। यह आश्चर्य–चकित करने वाला दृश्य था, कैसे उसके (ईगो) अहंकार का गुब्बारा फूट चुका था। तब यह आभास हुआ, श्री माताजी ने एक युक्ति का उपयोग किया, अपने चित्त को उस पर डालकर उसके अहंकार के गुब्बारे को फोड़ने के लिए (युक्ति का उपयोग किया)। उसकी आज्ञा की सफाई के लिए वे उसके बारे में बात करती रहीं। भली–भांति उन्होंने कड़े शब्दों में बोलते हुए उसकी नकारात्मता को दूर किया। जब उन्होंने किसी व्यक्ति के बारे में बात की, उनका ध्यान (चित्त) उस व्यक्ति पर गया और उसे साफ कर दिया।
बादमें, रूसी लीडर ने अपनी गलती स्वीकार की, “जब मैं एयरपोर्ट (हवाई–अड्डे) पहुंचा, मेरी राइट–साइड कूद रही थी और मैं हरेक व्यक्ति पर चिल्ला रहा था। चॅूंकि हवाई–उड़ान (air flight) कई घंटे विलम्ब से चल रही थी, हम एयरपोर्ट के बाहर एक पेड़ के नीचे बैठे और भजन गाए। धीरे–धीरे मेरी राइट–साइड शांत होने लगी और मुझे आराम मिला। एक घंटे के बाद, मैंने उद्घोषणा सुनी, हवाई–उड़ान आ चुकी थी। अचानक, मैंने महसूस किया मेरी आज्ञा पीछे और आगे जाने लगी और लियो–टॉलस्टॉय के शब्द मेरे जेहन में उदित हुए, “इसलिये कि जीवन का अर्थ हो सकता है। जीवन, सार्थक हो सकता है, इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु मानव–मस्तिष्क की सीमाओं से परे जाना चाहिये।
मुझेअपनेभाइयोंपरचिल्लानेकेलिएबहुतअपराध–बोध महसूस हुआ और मैंने नम्रतापूर्वक श्री माताजी की क्षमा मांगी। तब मेरी कुण्डलिनी उत्साहपूर्वक चढ़ी और मेरे आज्ञा–चक्र को खोल दिया। ठीक तभी, मैंने श्री माताजी को मेरी ओर आते देखा।”
खुशीकेआंसूउसकेगालोंपरबहेजारहेथे।सामूहिकताकीपिंगला–नाड़ी शीतल हो गई। उसके द्वारा श्री माताजी ने सामूहिकता की आज्ञा को साफ कर दिया।
इसघटनासेरूसीबच्चोंकोएकसबकमिलाकिजबभीश्रीमाताजीकिसीकेबारेमेंबातचीतकरतीथीं, उन्हें श्रीमाताजी का चित्त हटाने का या उस व्यक्ति को बचाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये। उनका कल्पनात्मक क्रोध बहुत से सूक्ष्य–स्तरों पर कार्य करता है– नकारात्मकता को बाहर फेंकने से लेकर बहुत भारी प्राकृतिक विपत्तियों को टालने/हटाने तक कार्य करता है!
सेंटपीटर्सबर्गकेविशालकायस्टेडियममेंआयोजितजन–कार्यक्रमों में, साधकों ने उनके हर शब्द का गहराई से पान किया और उनके शब्दार्थ के सूक्ष्मतम अंतर का अनुसरण किया। यही था वह सत्य, जिसके लिए वे इन्तजार करते रहे थे और वे इस के रास्ते में आने वाले (पड़ने वाले) किसी अवरोध को अब और नहीं इजाजत देंगे। विवेकपूर्ण ज्ञान के हर मोती को उन्होंने संग्रहित कर लिया था। उनकी संरक्षक आ चुकी थी और उन्होंने आनन्दित हो कहा “भूतकाल समाप्त हो गया, अब हम परमात्मा के साम्राज्य में हैं और हमें इसका आनन्द उठाना है।”
आदिशक्तिउनकेसीधेसहज–सरलता से सहज–योग को समझ लेने से बहुत प्रसन्न थीं, “उन्होंने स्वयं को अपराधी महसूस नहीं किया। उन्होंने कभी भूतकाल की बात नहीं की, वे भविष्य के बारे में भी चिंतित नहीं थे और वे अपने शोक/अफसोस से ऊपर थे। वे अब आत्म–साक्षात्कारी थे और उन्होंने महसूस किया, उनकी समस्याएं हल हो चुकीं थीं।”
श्रीमाताजीनेअपनेटेलीविजनप्रसारणमेंएकअगस्तको, श्री गोर्बेचेव को धन्यवाद दिया, देश की राष्ट्रीय–नीति को बदलने के लिए, जिसने उनके रूस–आगमन (रूस–प्रवास) को संभव बनाया, “यह एक ईश्वरीय हस्तक्षेप था!”
उन्हेंआश्चर्यथा, कैसे रूसी लोग इतनी जल्दी समझदार (परिपक्व) हो गए, “जबकि पश्चिमी साधकों को लम्बा समय लगा, क्योंकि उन्होंने हर चीज को तर्क–शीलता से लिया, किन्तु रूसी लोग इसकी गहराई में कूद पड़े। शायद वे इतने ज्यादा भौतिकवादी नहीं थे और उनका चित्त (ध्यान) आसानी से जम गया।”
वेश्रीमाताजीकेलिएतैयारथे!
2 अगस्त को रूसी बच्चे श्री माताजी को लेकर एक चार्टर्ड–फ्लाइट (किराये के विमान) से टोग्लिआटी Togliatti पहुंचे। उनके बच्चे दूर–दूर से साइबेरिया, व्लाडिवोस्टक, जार्जिया, यूक्रेन, मिन्स्क और प्रेयरीज से अपनी माँ (संरक्षक) को आराम देने इकट्ठे हुए।
श्रीमाताजीऔरसरसी.पी. वोल्गा नदी किनारे एक कैम्पिंग–साइट पर लकड़ी से निर्मित कुटिया में ठहरे। उसकी उष्मा में उन्हें अपने घर जैसा लगा। और वोल्गा नदी की शीतल, शुष्क–ताजी हवा का आनन्द प्राप्त किया।
3 अगस्त को वोल्गा नदी के तट पर देवी–पूजा का आयोजन हुआ। वोल्गा नदी ने अपनी लहरों से श्री माताजी के चरण–कमलों का प्रक्षालन किया। नदी के बीच एक बहुत बड़े द्वीप जो एक हाथी के मस्तक के आकार का था, उसकी ओर इशारा करते हुए श्री माताजी ने बताया यह श्री गणेश का स्वयम्भू है।
दूसरेदिनएकट्रकउपहारोंसेलदाहुआपूजा–स्थल पर आया। उसमें श्री माताजी द्वारा स्वयं चुने हुए उपहार रिंग्स (मुंदरी), हार, कंगन, चूड़ियां और साड़ियों की सुन्दर पिनें आदि वस्तुएं जो उन्होंने यूरोपीय–यात्रा में हर शहर से बच्चों के लिए चुनी थीं। उसमें बच्चों के लिए शर्ट्स, वालेट्स, सन–ग्लासेस, पेन और स्विस–नाइफ– ये सब वस्तुएं योगियों के लिए थीं। यहां तक कि 2000 उपहारों को बांटने के बाद भी 4 पेटियां और बाकी थीं! श्री माताजी का ऐसा प्रचुर आशीर्वाद था।
15000 से ज्यादा साधक–गण खुले स्टेडियम में (मुक्ताकाश खेल परिसर) इकट्ठे हुए और बारिश होने के बावजूद एक भी साधक स्थान से हिला नहीं। एक छाते के नीचे से श्री माताजी ने संक्षिप्त संबोधन दिया और उन्हें अपनी और हाथ करने को कहा और उन्हें आशीर्वादित किया। जैसे ही उन्होंने लोक–नृत्य का अवलोकन किया, एक योगिनी को भारतीय शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुति देते देखकर, उन्होंने उसे भारत में भारतीय–शास्त्रीय नृत्य सीखने हेतु स्कॉलर–शिप प्रदान की। जब श्री माताजी कार्यक्रम–स्थल से जाने को तैयार थीं, बारिश आज्ञाकारिता–पूर्वक रूक गई। परम चैतन्य ने शहर पर कृपा–वृष्टि की। यह एक अविस्मरणीय क्षण था।
मॉस्कोजानेवालीहवाई–यात्रा में हवाई–जहाज में उन्होंने एरोफ्लोट क्रू मेंबर्स (रूसी हवाई सेवा कर्मचारियों) को आत्म–साक्षात्कार दिया। मॉस्को एयरपोर्ट पर उतरते समय, रूसी–पायलट (हवाई–जहाज–चालक) ने उन्हें इन्टर–कॉम पर प्रणाम करते हुए कहा, “जय श्री माताजी।”
6 अगस्त को श्री माताजी ने विशालकाय कार्यक्रम को एक इनडोर–स्टेडियम में संबोधित किया। मास्को के साधक–गण बहुत सामान्य/सरल थे और श्री माताजी चिंतित थीं कि उन्हें वे लोग मेस्मराइज (मन्त्र मुग्ध) करने का प्रयत्न कर रहे हैं, उन्हें (साधकों को) जान–बूझकर बहका सकते हैं। श्री माताजी ने साधकों को सलाह दी, “जब तक कि परिवर्तन (बदलाव) नहीं आता है और आप अपनी कमजोरी पर विजय नहीं पा सकते, आपकी समस्याएं हल नहीं की जा सकती हैं।”
उनकेभाषणकेदौरानउनकीसरलता/सहजता ने उन्हें शीतल लहरियां महसूस कराईं। उन्होंने नोयडा के संगीतकारों के साथ भक्ति–गीत गाए और नृत्य भी किया।
जबसेस्वास्थ्यमंत्रालयकेसाथप्रोटोकॉलपरहस्ताक्षरकिएजारहेथे, कई डॉक्टर्स ने सहज–योग ध्यान का अभ्यास शुरू कर दिया। उन्होंने श्री माताजी को 7 अगस्त को एक चिकित्सीय–सभा को संबोधित करने के लिए प्रार्थना की। श्री माताजी ने समझाया कि सहज–योग परमात्मा का ज्ञान है, क्योंकि विज्ञान का तरीका खोज (research) की शुरूआत एक उपकल्पना से होती है, जो सहज–योग में उपयोग नहीं होता। सहज–योग में खोज की जरूरत किसी चीज में नहीं होती, क्योंकि परमात्मा ने पहिले ही इसे खोजा हुआ था। उन्होंने (माँ ने) कठिन समस्याओं के लिए सरल हल बताये। वे उनके पूर्णतः आदर्श–रोग–निदान के निर्णय से आश्चर्य–चकित थे और एक मेडिकल एकेडमी खोलने हेतु श्री माताजी से प्रार्थना की। श्री माताजी ने सूचना दी कि सहज–योग केन्द्र पूरे रूस में इस मुफ्त सेवा को पहले से ही दे रहे थे और वे उन केन्द्रों पर जा सकते थे।
अगलीसुबह, रूस के स्वास्थ्य–मंत्रालय की ओर से मेडिकल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख प्रोफेसर इलीयन Illian ने लाल गुलाबों से तैयार एक विशाल पुष्प गुच्छ bouquet श्री माताजी को एक अश्रुपूरित विदाई में भेंट किया। उन्होंने मिनिस्ट्री ऑफ़ हेल्थ, रशियन गवर्नमेंट (स्वास्थ्य मंत्रालय USSR सरकार) का प्रेषित एक पत्र भी श्री माताजी को दिया, जिसमें स्वास्थ्य–मंत्रालय ने उनसे स्वास्थ्य–विभाग के सलाहकार होने के लिए विनती की थी। रूसी डॉक्टर्स को यह समझने का शुद्ध ज्ञान (अक्ल) था कि श्री माताजी के पास मेडिकल–साइन्स के भविष्य की कुंजी (चाबी) है। और वे इस महान् सम्पदा को खोना नहीं चाहते थे। श्री माताजी उनके प्यार के गुलाबों की गहनता से अभिभूत थीं और शीघ्र ही उन गुलाबों की खुशबू उन्हें वापस रूस में ले आयी।
1993
अध्याय – 23
श्रीमाताजीकेइटलीमेंनिवासकरनेकेबादसहज–योग का प्रसार एक समुद्री–ज्वार की लहर की तरह हुआ। किन्तु इससे जहाँ किनारे कमजोर थे, वहां किनारों पर पूर (बाढ़) आ गई। एक भाई ने सहज योग छोड़ दिया, क्योंकि दूसरे भाई ने उसे श्री माताजी से नहीं मिलने दिया। दूसरे सहज–योगी ने यह सोचा, अच्छा हुआ, कचरे (बेकार) से छुटकारा मिला। श्री माताजी ने स्वयं को गहन–शांति में अलग किया और अपने खोए हुए बच्चे पर बड़ी दया महसूस की। उन्होंने समझाया कि उनका राह से भटका बच्चा खो जायेगा, यदि उसे बेसहारा छोड़ दिया गया। अंत में उसका असन्तोषी (बगावती) भाई उसे वापस लाने में सफल हो गया। श्री माताजी बहुत प्रसन्न थीं और यह मामला अहंकार को ठेस पहुंचाने वाला था तथा उसे कोई तर्क का मुद्दा बनाने की जरूरत नहीं थी।
श्रीमाताजीक्षमाकीमहासागरहैं।जोभीगल्तीहोती, जैसे ही एक बच्चे ने क्षमा याचना की, वे तत्काल क्षमा कर देती थीं। यदि अभी भी बच्चा प्रकाश देखने से इन्कार करता था, तब वे एक नाटक करती थीं। यदि अभी भी बच्चा प्रकाश देखने से इन्कार करता था, तब वे एक नाटक करती थीं– उसके भ्रम को दूर करने के लिए, उसके ध्यान को बचाते हुए। 15 अगस्त को श्री कृष्ण पूजा में उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी किसी को दण्डित नहीं किया और किसी को अपना अपराध स्वीकार करने की कोई जरूरत नहीं पड़ी या अपने द्वारा की गई गलतियों पर विचार करने की जरूरत पड़ी। एक आत्मसाक्षात्कारी होने के नाते, उसे जानना चाहिये कि वह परमात्मा के साम्राज्य में था और उसका मजा उठाये!
जहाँतकएकशिशुनेउन्हेंअपनेहृदयमेंस्थापितकरलिया, वे उसके संरक्षण के लिए धरती पर स्वर्ग ले आयीं। उन्होंने उसकी कुण्डलिनी को उसकी नकारात्मकता से छुड़वाने के लिए शक्ति–संपन्न कर दिया। यद्यपि, उन्होंने आगाह किया, यदि वह अधार्मिक आचरण करता है, उसे नहीं बचाया जायेगा।
नजदीककेशहरमें, सहज–सामूहिकता और एक सहज–योगी में प्रतिस्पर्धा उठ खड़ी हुई, जिसमें योगी ने अपनी आदेशात्मक दावेदारी सामूहिकता पर कायम रखने की जतायी, क्योंकि वह श्री माताजी के नजदीक था। श्री माताजी ने याद दिलायी, “यह महत्वपूर्ण नहीं है, आप मेरे साथ कितना समय बिताते हो, पर यह महत्वपूर्ण है कि आप कितनी गहनता से मुझसे (ध्यान द्वारा) जुड़े हो। एक सहज योगी प्रत्यक्ष रूप से मुझ से न मिला हो, किन्तु वह मेरे बहुत पास हो सकता है– अपने प्यार की गहनता के द्वारा।”
5 सितम्बर को 1000 से ज्यादा रोम वासियों ने श्री माताजी का स्वागत बुखारेस्ट (Bucharest) में किया। श्री माताजी ने उन पर उपहारों की बारिश कर दी। बीतते हुए हर घंटे में श्री माताजी और तरो–ताजा लग रहीं थीं। उनकी जिन्दगी के सबसे ज्यादा खुशी के पल वे थे, जब वे बच्चों को हमेशा कुछ न कुछ प्रदान करतीं।
एकसकारात्मकप्रेस (संवाददाता) ने श्री माताजी का एक फोटोग्राफ (चित्र) इस संवाद के साथ प्रकाशित किया, “अपने दोनों हाथ श्री माताजी के चित्र के सामने रखो और तुम्हें शीतल लहरियां (cool breeze) महसूस होंगी।”
शीतललहरियोंकोप्राप्तकरनेकेबादसाधक–गण आधी–रात तक कतार बद्ध हुए– उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए। श्री माताजी दैदीप्यमान लग रहीं थीं, “रोमवासियों की भक्ति को देखो।”
वर्जिनमैरीकेजन्म–दिवस पर श्री माताजी सोफिया (Austria) पधारीं। इस मंगलमय अवसर पर श्री माताजी ने बुल्गारिया को श्री महालक्ष्मी पूजा से आशीर्वाद दिया। उन्होंने इसका रहस्योद्धाटन किया कि आध्यात्मिकता के इतिहास में सहज–योग सबसे महान घटना है और योगियों को इस दुनिया को परिवर्तित करना था।
रोमवासियोंनेश्रीमाताजीकोधन्यवाददिया, उन्हें आध्यात्मिकता के ऐसे ऐतिहासिक क्षणों में भाग लेने हेतु इजाजत दी। 10 सितम्बर को श्री माताजी बुडापेस्ट के लिए रवाना हुईं। उन्हें अपनी विएना यात्रा स्थगित करनी पड़ी, किन्तु कहा कि उनकी अनुपस्थिति में कार्यक्रम आयोजित किया जाय। श्री माताजी के चित्र से 1400 साधकों को आत्म–साक्षात्कार मिला। जब ऑस्ट्रियंस (ऑस्ट्रिया–वासी) ने उन्हें फोन पर धन्यवाद दिया, श्री माताजी हॅंसीं, “कभी–कभी मेरा चित्त (attention) बेहतर कार्य करता है। हो सकता है परमात्मा न चाहते हों कि मैं इतनी ज्यादा यात्रा करूँ।”
कबेलापहुँचनेपरश्रीमाताजीकोखबरलगीकिमहाराष्ट्रमेंएकविध्वंस–कारी भूकम्प आया था– श्री गणेश (मूर्ति) विसर्जन की रात्रि को। लातुर जिले में सभी घर/मकान जमींदोज हो गए थे, केवल सहज–योग केन्द्र को छोड़कर। इस भूकम्प ने 50,000 जानें ले लीं, किन्तु श्री माताजी की कृपा से उनके सब बच्चे सुरक्षित थे। श्री माताजी बहुत चिंतित थीं और भूकम्प–पीड़ितों को सहायता भेजी। ऐसा मालुम हुआ कि ये (पीड़ित लोग) गणेश विर्सजन के समय शराब पी रहे थे। उन्होंने अश्लील गाने गाये और गंदे–गंदे नृत्य किए। श्री माताजी ने इसे श्री गणेश का कोप बताया।
यहबातबच्चोंकीचेतनामेंसाफ–साफ आ गई कि उनका शरीर परमात्मा का मंदिर है और इसे अपवित्र करने के लिए कुछ नहीं करना चाहिये। बच्चों ने उत्साहपूर्वक श्री माताजी से क्षमा माँगी– परमात्मा के नियमाचरण के विरोध में किए गये सभी अपराधों के लिए। अंत में, श्री माताजी की क्षमा–शक्ति चारों ओर फैल गई।
1993
अध्याय – 24
सितम्बरकेअन्तमें, न्यूयार्क में स्थित युनाइटेड–नेशन्स UNO के शिशुओं के स्कूल को श्री माताजी ने आशीर्वादित किया। उसके बाद मेनहेट्टन के आज्ञा–चक्र से अहंकार के पहाड़ को उठाना शुरू किया। कार्यक्रम में श्री विराट की शक्ति साधकों के आज्ञा को पार करने के लिए बरस पड़ी। श्री माताजी का मुख–मंडल दमक उठा, तब वे विजय–गौरव के साथ मुस्कराईं, “काम हो गया है।”
उत्तरीअमेरिकाऔरकनाडाकेइस्लामिक–सर्कल के उपाध्यक्ष ने श्री माताजी का आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्होंने न्युयॉर्क शहर के मेयर को भी आशीर्वादित किया। उसके बाद उन्होंने एशिया–नेट पर अपना टेलीविजन साक्षात्कार दिया।
टोरेंटोकार्यक्रमपरनाइजीरियासेचीफअगाडाछोटेद्वीप (पाइन्ट) तक पहुंचे और श्री माताजी को संबोधित किया, “मेरी बहन 4 वर्ष पूर्व कनाडा प्रवास पर गई और आपके संस्थान से जुड़ी और योगियों ने उसकी बहुत मदद की। माँ, वह आपको बहुत चाहती है। कृपया, मेरी विनम्र भेंट (दौ सौ डालर) स्वीकारिये।”
श्रीमाताजीनेनम्रतापूर्वकमनाकरदिया।
श्रीमाताजीकेकनाडाभ्रमणकेपूर्व, वैंकूवर (कनाडा) में मौसम कई दिनों से शुष्क चल रहा था। दोपहर बाद वहां अनायास मेघ–गर्जना और विद्युत–स्फुलिंग (बिजली कौंधने) के बाद वर्षा हुई और ओले बरसे। कार्यक्रम में आंशिक रूप से एक अंधे शिक्षक ने श्री माताजी के चरणों में प्रणाम किया। श्री माताजी ने उसे यह कहने को कहा, “आप गुरुओं की भी गुरू हो।”
उसशिक्षककीआँखोंमेंज्योतिआचुकीथी।
सबकेबाद, एक व्यक्ति आया, जिसने बौद्ध–धर्म का अनुसरण किया, किन्तु उसके पास एक पैसा भी नहीं था। श्री माताजी ने उसे यह प्रार्थना करने का कहा, “आप ही मात्रेया हैं (आने वाले बुद्ध हो)।”
उसेआत्म–साक्षात्कार मिल गया था।
10 अक्टूबर को श्री माताजी ने लॉस–एंजेलेस को श्री विराट और विराटांगना पूजा से आशीर्वादित किया। उन्हें जाहिर किया कि विराटांगना श्री विराट की शक्ति है और वह सामूहिकता और वैश्विक चेतना की शक्ति है। इसका स्थान ललाट के ऊपरी हिस्से में बालों की लाइन hairline के मध्य में है। यह विशुद्धि चक्र का और एकादश रूद्र का एक हिस्सा है। इसके अलावा सहज योग का अर्थ केवल योगियों के उत्थान के लिए ही नहीं था, किन्तु पूरे विश्व के उत्थान के लिए भी था। यह विराट–शक्ति के द्वारा संभव हुआ कि सहज–योग विश्व–भर में फैलेगा।
श्रीमाताजीनेचारअमौलिकआस्ट्रेलियनरहवासीलीडर्सको, जो ग्रेब्रिलिनो/शोसहोन और टोंगुआ देशों के, लॉस–एंजेलेस के निवासी थे उनको आशीर्वादित किया। श्री माताजी ने कहा कि वे ईश्वर के बहुत निकट (भक्त) हैं और उन्हें सभी जन–जातियों को अपनी आध्यात्मिक शक्ति से एक–बद्ध होना चाहिये, तभी केवल सरकार द्वारा उनकी जमीन पर हक जमाने की समस्या से सफलतापूर्वक पार हो पायेंगे।
1993
अध्याय – 25
अक्टूबरकेमध्यमेंश्रीमाताजीनवरात्रिपूजाहेतुकबेलालौटआयीं।पूजाके 9 दिन पहिले बच्चों ने अपने चक्रों को साफ करने में सुनियोजित प्रयत्न किए। उन्होंने अपने बच्चों को प्यार से प्रेरित/उत्साहित किया, जिससे वे अपना मूल्य समझ सकें, क्यों वे इस धरती पर थे, उनके जन्म का क्या उद्देश्य था, अपने उत्थान के लिए उन्हें क्या प्राप्त करना था, “सत्य के साधकों का प्रतिशत बहुत कम हो सकता है, किन्तु वे परमात्मा के लिए बहुत कीमती हैं, ठीक वैसे ही जैसे थोड़ा सा सोना एक लोहे के टीले से ज्यादा कीमती होता है।”
24 अक्टूबर को बच्चों ने देवी माँ के विविध अवतरणों की स्तुति की– जगदम्बा, दुर्गा, चण्डिका, महिषासुरमर्दिनी आदि। वे प्रसन्न हुईं और बच्चों के संस्कारिता और भौतिकता के प्रति लिप्तता (मोहासिक्त), ये सब उनके उत्थान को बाधित कर रहे थे, उन्हें अवशोषित कर लिया।
सहजयोगियोंमेंसेएकयोगीनेश्रीमाताजीकास्टेजपरफोटोग्राफलिया।आश्चर्यजनकरूपसे, फोटोग्राफ में पूरी तरह से अलग परिदृश्य आया, स्टेज के परिदृश्य से भिन्न। बनिस्बत, वह भ्रमित था और उनसे (माँ) से पूछा। श्री माताजी ने “हाँ मालुम है” (बताया)। 12 नवम्बर को दिवाली–पूजा रूस में आयोजित हुई। देखो! स्टेज की ‘बैक–ड्रॉप’ परिदृश्य एक दम वैसी ही थी, जो नवरात्रि पूजा के लिए खींचे गए फोटो ग्राफ में 24 अक्टूबर को प्रकट हुई थी।
अपनीआँखोंमेंएकचमककेसाथ, श्री माताजी मुस्कराईं, “जिन्हें हम चमत्कार समझते हैं, वह वास्तव में सर्वव्याप्त परमात्मा की प्रेम–शक्ति का नाटक (खेल) है– हमें विश्वास दिलाने के लिए।”
इसकेबादपरमचैतन्यनेचमत्कारोंकीएकश्रृंखलाखोलदी।जबश्रीमाताजीमॉस्को पधारीं, बाहर का तापमान -20 डिग्री (सेन्टीग्रेड) था, उनके आने के बाद -4 डिग्री (सेन्टीग्रेड) तक बढ़ा। 12 नवम्बर, दिवाली पूजा पर यह बढ़कर +10 डिग्री (सेन्टीग्रेड) हो गया और दिन गर्म से गर्मतर होने लगे।
दिवालीपूजापरश्रीमाताजीनेरूसकेनाभि–चक्र को श्री लक्ष्मी तत्व से समृद्ध कर दिया, “नाभि में श्री लक्ष्मी निवास करती हैं और आप लोग उस स्थिति में पहुँच गए हो, जहाँ वे आपके अन्दर वास्वविकता में हैं, वे कोई संकेत मात्र नहीं है। श्री ल़क्ष्मी–तत्व जिसमें आप दूसरों के लिए काम करके मजा उठाते हैं। सामूहिक चेतना में आप दूसरों के लिए काम करना चाहते हैं।”
श्रीमाताजीनेसाधकोंकीआत्माकेदीपकोजाग्रतकरदियाऔरपूरीरातवेआनन्दभाव–विभोरता में नृत्य करते रहे। अगली सुबह पेट्रोवस्काया ऐकेडमी ऑफ़ साइन्स एण्ड आर्ट्स, सेंट पीटर्सबर्ग द्वारा श्री माताजी को उस ऐकेडमी की मानद सदस्यता प्रदान किए जाने से योगियों के आनन्द में और वृद्धि हो गई। इस ऐकेडमी द्वारा अभी तक केवल ऐसे 10 आवार्ड्स दिए गए। पिछला यह अवार्ड (अलंकरण) अल्बर्ट आइंस्टीन को दिया गया था। प्रोफेसर वाय–ए–वोरोनोव ने कहा कि श्री माताजी का कार्य बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है और दूरगामी है, किसी भी वैज्ञानिक खोज से जो अभी तक की गई हैं, क्योंकि विज्ञान को अभी भी उस स्तर (ज्ञान) तक पहुंचना है, जो स्तर सहज–योग ने प्राप्त किया है।
13 नवम्बर को मॉस्को में एक प्रेस–कान्फरेंस पर मीडिया (संचार–माध्यमों) ने एक दमकता हुआ ज्वलंत सम्मान श्री माताजी को उनकी उपलब्धियों पर दिया। श्री माताजी भाव–विहवल थीं, अभिभूत थीं, “उन्होंने मुझे पहचाना, अपनी शुद्ध–मेधा (विवेक बुद्धि) से।”
यद्यपि, श्री माताजी की विदाई से पूर्व बच्चों की “टीथिंग प्राब्लम्स“ (समझदारी में अल्पज्ञता) उनके चित्त में आई। कुछ शिकायतें अलगाववादी–समूहों की थीं, जो सामूहिकता को तोड़ने का प्रयत्न कर रहे थे। श्री माताजी ने कहा– कोई शिकायत उनके पास लाने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि उनके पास जन्म–जात जानने की विवेकमय चेतना है, जिसके द्वारा वे एक उड़ती चिड़िया का भी पता कर सकती हैं। “जब मैं किसी व्यक्ति को देखती हूँ, मैं अपने अंदर जाती हूँ (झांकती) हूँ और उस व्यक्ति को एक बहुत भिन्न–स्वरूप तथा सूझ–बूझ से देखती हूँ। तुम्हारी कुण्डलिनी हरेक कृत्य को अंकित करती है। तुम्हारी कुण्डलिनी पर चित्त डालकर, मैं तुम्हारी समस्याओं को जान लेती हूँ।”
शीघ्रहीश्रीमाताजीकेममत्वनेउसअलगावकोदृढतासेएककरदियाऔरसभीऐबों (टेढ़ेपन) को शांत कर दिया। कुछ धीमी गति से चलने वाले डिब्बे (coaches) थे, किन्तु वे मातृत्व की मूर्ति थीं और उन्होंने उन्हें आराम से परिवार के आगोश में दबा दिया था।
1993
अध्याय – 26
नवम्बरकेअंतमेंफूलोंसेसजीअर्द्ध–गोलाकार बन्दनवार ने श्रीमाताजी का दिल्ली, फरीदाबाद, गुडगाँव और नोयडा में स्वागत किया। 2 दिसंबर को नोयडा कार्यक्रम में उन्होंने एक 12 वर्षीया गूंगी और बहरी बच्ची को स्वस्थ किया। बच्ची ने अपना पहला शब्द ‘माँ’ उच्चारित किया और उनकी बाहों में समा गई।
इससंध्याकोपरमचैतन्यनेकईचमत्कारसम्पन्नकिए, जैसे कि श्री माताजी ने अपनी आँखों के सामने एक मोमबत्ती पकड़ी और एक अंधी महिला को चैतन्य प्रदान किया, उसकी नेत्र–ज्योति लौट आयी।
5 दिसम्बर को श्री गणेश पूजा में उन्होंने बताया, “यद्यपि परम चैतन्य सर्व व्याप्त शक्ति है, यह तभी सक्रिय होती है, जब यह हमारे अंदर विकसित होती है। श्री गणेश को मूर्ति पूजा से, उनकी स्तुति करने से या प्रवचन से नहीं प्राप्त किया जा सकता है, हमें उन्हें हमारे भीतर जाग्रत करना होगा।”
एकमीठीअनुरूपताउदाहरणसेउन्होंनेविस्तारपूर्वकबतायाकिकैसे ‘वात्सल्य रस’ (प्रेम का सहज–संचार और बच्चे की सुरक्षा), बड़ों को बच्चों की ओर आकर्षित करता है। सहजी बच्चे अपनी प्यारी माँ के वात्सल्य–रस में नहा चुके थे। इससे उनकी सर्वाधिक इच्छा पूर्ण हो गई और चाहने के लिए कुछ भी नहीं शेष बचा था।
8 दिसम्बर को श्री माताजी का रथ पौराणिक युद्ध–स्थल धर्मक्षेत्र ‘कुरूक्षेत्र’ में अवतरित हो चुका था, जहाँ महाभारत का महा–युद्ध लड़ा गया और श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता का उपदेश अर्जुन को दिया था। यद्यपि श्री माताजी के दसवें अवतरण के समय, महाभारत का यह युद्ध–स्थल मनुष्य के मस्तिष्क में स्थानान्तरित हो गया था। अधर्म मानव–मस्तिष्क में कर्क–रोग cancer की तरह फैल चुका था और श्री माताजी के सामने उससे भी अति भयानक कार्य, श्री कृष्ण की अपेक्षाकृत, जिसकी (बाधाओं) हानिकारक खरपतवार को समूल हटाना था। युद्ध के मैदान में एक दुश्मन पर आक्रमण करना बनिस्बत आसान था, किन्तु मस्तिष्क की पेचीदा कार्यों की शैली में छिपे हुए दुश्मन पर प्रहार करना असम्भव था– जो इन्सानी दिमाग में ईर्ष्या, लोभ, क्रोध, आक्रामकता, काम–वासना, मोह, स्वामित्व (नियंत्रण में लेना) आदि के रूप में विद्यमान थे। इसके अतिरिक्त झूठे गुरूओं ने सत्य के साधकों की कुण्डलिनियाँ जड़वत दबोची हुई थीं। यह एक असम्भव स्थिति किसी भी अवतरण की क्षमता से परे थी। केवल वे (आदिशक्ति) ही इसे हल कर सकती थीं।
सर्वप्रथमआदि–शक्ति को साधकों की कुण्डलिनियाँ जाग्रत करने के लिए अवतरित होना जरूरी था। इसके अतिरिक्त उन्हें उनकी प्रसव–पीड़ा भी सहन करनी थी और नव–जात शिशुओं की कुण्डलिनियों को स्थापित करने के लिए उनका पालन–पोषण करना था। केवल इतना ही नहीं, उन्हें इन नव–जात योगियों को अंदर व बाहर से नकारात्मकता से संरक्षित करना था। इसके अलावा उन्हें आराम देना, सलाह देना और उद्धार करना था। और यह सब उन्होंने अकेले ही प्राप्त किया।
ब्रहम–मुहूर्त में वह हथिनी–कुंड के अतिथि–गृह के हरित भूखण्ड में गहन विचार–मग्न बैठीं, एक और दूसरा महाभारत जीता जा चुका था, किन्तु अभी भी बहुत सारे साधक अपार क्रोध (उन्माद) में बैठे थे। यह एक बहुत लम्बा संघर्ष था और उसका कोई अन्त नहीं दिखाई दिया। किन्तु, उनकी करूणा (दया) ऐसी थी कि उन्होंने इस संघर्ष को अंतिम सांस तक जारी रखने का निश्चय कर रखा था। अपने बच्चों को बचाने का और कोई मार्ग नहीं था। जैसे ही ऊषा की पहली किरण ने श्री माताजी के चरण–कमलों को चूमा वे आकाश की ओर मुड़ती हुईं निर्णयात्मक हो बोलीं, “श्री कृष्ण ने केवल एक व्यक्ति अर्जुन को परिवर्तित किया, जबकि मैं पूरी मानवता को परिवर्तित करने आयीं हूँ।”
श्रीमाताजीकेसंकल्पनेपरमचैतन्यकोस्फूर्तिप्रदानकीऔरउनकीकृपाकाजलप्रपात (स्रोत) फूट पड़ा। चैतन्य लहरियां प्रकाशमान अवतरण–चिन्हों (inverted commas) की तरह प्रकट हुईं और उनकी गाड़ी का चण्डीगढ़ तक अनुसरण किया।
चण्डीगढ़कार्यक्रममें 9 दिसम्बर को उन्होंने यह जाहिर किया कि शहर का नाम देवी चण्डी के नाम से रखा गया था, जिन्होंने सहज–योग के बीज समय से पूर्व ही बो दिए थे। अब उनके बच्चों को सहज–योग के बीज फैलाना है।
अगलेदिन, यमुनानगर शहर ने श्री माताजी के स्वागत में उत्सवोचित स्वरूप धारण कर लिया। एक महान सूफी गायक को उनका आत्म–साक्षात्कार मिला और उन्होंने उसे सहज–कैम्प में कॅन्सर्ट (संगीत द्वारा मनोरंजन कार्यक्रम) में प्रस्तुति हेतु आमंत्रित किया। उत्तर भारत शीत लहर की गिरफ्त में था और संगीत कार्यक्रम (concert) खुले में आयोजित था और बच्चों ने श्री माताजी से रात्रि में कार्यक्रम हेतु आने के विचार को बदलवाने की कोशिश की, किन्तु कोई भी उन्हें अपने बच्चों से दूर नहीं रख सका और वे शालों से लदी एक गाड़ी के साथ अपने बच्चों को आश्रय देने पहुंचीं। बच्चों ने अपनी माँ के वात्सल्य की दीप्ति में गीत गाए और नृत्य किया। अपने प्यार की गर्माहट के उत्साह में श्री माताजी ने उन्हें सम्मोहित करने वाले बहुत सारे ऐश्वर्य–युक्त अपने घर में पहुंचा दिया!
श्रीकृष्णजीकीबांसुरीसेमधुरसुरीलेपनकोप्रतिध्वनितहोतेहुएयमुनामैयाअपनेकोकाबूमेंनहींरखपायी।श्रीकृष्णपूजाकेदौरानश्रीमाताजीनेश्रीकृष्णकीसम्मोहितकरनेवालीशैशवावस्थकास्मरणकराया।परमात्माकीसर्वव्याप्तशक्तिप्यारकरनाचाहतीथीऔरकरुणाकरकेकुछतरहकेचमत्कारप्रकटकिए, चमत्कारिक फोटोग्राफ प्रकट कर के बच्चों को अपने प्यार का भरोसा दिलाया।
12 दिसम्बर की सुबह को वे देहरादून के लिए रवाना हुईं। जैसे ही वे हिमालय की छोटी पहाड़ियों foot hills (चरणों) से गुजरीं, वे हिमालय के चैतन्य से भीग गईं/तर हो गईं। श्री माताजी ने अनुक्रिया की, “मैंने महाराष्ट्र के गाँवों में वर्षों कार्य किया और उन्हें उनकी भक्ति की वजह से आत्म–साक्षात्कार मिला। यद्यपि वे अपने आत्म–साक्षात्कार को सॅंभाल नहीं सके, क्योंकि उनके भोलेपन (अबोधिता) के कारण झूठे गुरूओं ने उन्हें मूर्ख बनाया।”
कार्यक्रमकेठीकबाद, सीधे वे दिल्ली की ट्रेन में विराजित हुईं। परम चैतन्य ने एक और संयोग रचा। पास के ही केबिन में भारत के मुख्य निर्वाचन–आयुक्त श्री टी.एन. शेषन यात्रा पर थे, वे श्री माताजी के चरणों में शरणागत हुए और उनकी स्तुति आदि शंकराचार्य की पदावलि (काव्य) से की।
उन्होंनेमाँसेकहा, “माँ, मैं भारत की दुर्दशा से इतना चिंतित हूँ, मुझे नींद नहीं आती। हरेक सुबह (ब्रहमकाल) में मैं चार बजे उठता हूं, कुछ प्रार्थना करता हूँ और चिंता होती है, मेरे देश का क्या होगा।”
श्रीमाताजीनेसांत्वनादेतेहुएकहा, “मुझे तुम जैसे पुत्र पर गर्व है। अब तुम्हें चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। मैंने श्री कल्कि की शक्ति को कार्यान्वित कर दिया है। किन्तु तुम भ्रष्टाचार से लड़ने के कठिन कार्य में मेरी मदद कर सकते हो। शासन में भ्रष्टाचार ने नैतिकता (सदाचार) को क्षीण कर दिया है। लोग सोचते हैं वे भगवान को पैसे से खरीद सकते हैं। तथाकथित धर्म गुरूओं godmen ने अपनी दुकानें खोल ली हैं और लोग भगवान को खरीदने की भीड़ में दौड़े जा रहे है।”
शेषनसाहबनेश्रीमाताजीकेकार्यकोपूराकरनेकेलिएनौकरीछोड़नेकेलिएस्वेच्छासेसमर्पितकिया।श्रीमाताजीनेउनकीरायबदलवाईऔरकहाकिउनकीकार्य–शैली अलग है। वे चाहती थीं कि हरेक व्यक्ति अपनी नौकरी, व्यवसाय करते हुए अपनी पारिवारिक जवाबदारियाँ पूरा करते हुए सहज योग करे और सहज का कार्य करे।
आधीरातमेंट्रेनबिनानिर्धारितस्टापकेहरिद्वार–स्टेशन पर रूक गई। श्री माताजी गहरी नींद में सोई हुईं थीं, अचानक जय–जयकार से उनकी नींद खुली। उन्होंने खिड़की से देखा, हज़ारों सहज योगी/योगिनियाँ रेलवे प्लेटफार्म पर फूलों से सुसज्जित खड़े थे। उनका प्यार श्री माताजी को प्लेटफार्म पर खींच लाया और उन्होंने उनसे फूलों को स्वीकार किया। उन्होंने हरिद्वार दर्शन visit के लिए खेदपूर्वक असमर्थता व्यक्त की और कहा कि उनकी भक्ति इतनी गहन थी कि वे उसमें बंध गई थीं, अतः परम चैतन्य ने एक तरीका निकाला– उनके दर्शनों का लाभ इतने सहज तरीके से कराने का!
1993
अध्याय – 27
18 दिसम्बर को श्री माताजी ने छिंदवाड़ा को श्री गणेश पूजा से आशीर्वादित किया। उनकी जन्म–स्थली पर लौटना भाव–विह्वल करने वाला था। जब वे मात्र चार वर्ष की थीं, उनके पिता नागपुर स्थानान्तरित हो गये थे, किन्तु आश्चर्यजनक रूप से उन्हें हरेक चीज स्पष्टता से ज्ञात थी, जैसे उन्होंने कल ही छिंदवाड़ा छोडा था।
“मेरे पिता ने 80 वर्ष पहले यह घर बनाया था। उनके मित्रगण नागपुर से आया करते थे, अतः उन्होंने उनके लिए गेस्ट रूम्स (अतिथि कक्ष) बनवाये थे। उस समय केवल वे ही थे, जिन्होंने मेरे मिशन को समझा था। उन्होंने मुझसे कहा था– सामूहिक आत्म–साक्षात्कार की विधि खोजने को। मैं वास्तव में सहस्रार खोलने का नहीं सोच रही थी, किन्तु शब्दशः literally मुझे इसके लिए बाध्य किया गया।”
जबसेउनकेपिताजीनेइसमकान (जन्म–स्थली) को बेचा था, यह मकान कई हाथों से गुजरा था। हाथ जोड़कर बच्चों ने प्रार्थना की कि यह मकान माँ को वापस होना चाहिये। दुर्भाग्यवश, वर्तमान मकान मालिक ने बच्चों की भावना का लाभ उठाया और कीमत दुगुनी कर दी। जैसे ही श्री माताजी ने एक बंधन दिया, परम चैतन्य ने कोमल पॅंखुडियों की कृपा– वृष्टि की। यह स्वर्ग से एक संकेत था, मकान लौटाए जाने का, यह परमात्मा की इच्छा थी।
अगलेदिनश्रीमाताजीबाबामामाकेपुत्रकीशादीकेलिएनागपुरवापसआयीं।श्रीमाताजीनेकृपाकरकेअतिथि–सत्कार करने वाली बड़ी बहिन की जवाबदारी के अभिनय को धारण किया और सभी इन्तजामात् का ख्याल रखा, सभी विवाह संस्कार सम्बन्धी औपचारिकता का निरीक्षण किया, दुल्हिन के परिवारजनों का गर्म–जोशी से स्वागत किया और मेहमानों को मिठाइयां परोसीं। वे इतनी कल्पना से परे थीं कि उनके सम्बन्धियों को उनके विशालकाय कठिन कार्य colossal task करने का विचार तक न था, जिसे उन्होंने प्राप्त कर लिया था। उनके लिए तो वे उनकी प्यारी और आदरणीया ”नीरू ताई“ या ‘अका’ बनी रहीं।
श्रीमाताजीकेभतीजेऔरभतीजियोंकोउनकेनव–जात बच्चों के लिए उनका आशीर्वाद मिला। उन्होंने उन्हें प्यार से दुलारा और उनकी कुण्डलिनियों को उठाया। पुणे विदा होने के पूर्व उन्होंने बच्चों और नौकरों (सेवकों) को महंगे उपहारों से नवाजा और उनसे प्रतिष्ठान पधारने का वादा लिया।
प्रतिष्ठानमेंएकदिनकेआरामकेबाद, वे गणपति पुले के लिए रवाना हो गईं। वे क्रिसमस के लिए केक, बेक करना चाहती थीं, किन्तु गणपति पुले में ओवन उपलब्ध नहीं थी। उन्होंने एक देशी तरीका बिना ओवन के बेक करने का आविष्कृत किया। अपनी मातुश्री की रेसिपी (पाउन्ड–केक्स) का अनुसरण करते हुए, उन्होंने केक की सभी सामग्रियां समान मात्रा में ‘हार्ट–मोल्ड’ हृदयाकार सांचों में ढालकर और उनके सांचों को टिन प्लैटर पर उल्टा कर रख दिया। इसके बाद उन्होंने पीछे अल्प–पारदर्शी कोयले (जीवाश्म कोयले) को टिन के ऊपर जलाया। ठीक, क्रिसमस कैरोल्स तैयार किए जाते हैं, (इस तरह)। तरोताजा बेक्ड केक्स की सुगन्ध ने 500 योगियों को मंत्र–मुग्ध कर दिया था।
पूजाप्रवचनमेंश्रीमाताजीनेबच्चोंपरजोरदेकरकहाकियद्यपिईसामसीहकेसमयमेंलोगअनभिज्ञथे, फिर भी उन्होंने सत्य के बारे में कहा। इसने उनके हृदयों को एक बार पुनः खोल दिया, उनकी मोटी–मोटी संदेह–जनक किताबों को, जिसे वे नकार चुके थे। आत्म– विश्वास से रहित (आत्म–संशयी) साधकों के आत्म–साक्षात्कार समाप्त हो गए, वह श्री माताजी ही थीं जिन्होंने आत्म–साक्षात्कार दिए– वे केवल उनके यंत्र–मात्र थे। जैसे ही उन्होंने निर्णयात्मक बनना बन्द किया, उनके आज्ञा चक्र शीतल हो गए थे।
श्रीमाताजीअपनेबच्चोंकेलिएअवतरितहुईंथीं, वे उनके लिए जीं और हर सांस उनके लिए ली। पूजा के दौरान बच्चों के प्यार ने उनकी पूरी थकान धो डाली, जो उन्हें वैश्विक मैराथन से हुई थी।
28 दिसम्बर को श्री माताजी ने 85 नए शादी–शुदा जोड़ों को आशीर्वाद दिया।
नववर्षकाआगमनमुकुन्द–टेम्पल में श्री गणेश–पूजा के साथ मनाया गया। उनके बच्चों ने उत्साहपूर्वक उन्हें मध्य–रात्रि में ठीक बारह बजे इकट्ठे होकर नमन किया। उन्होंने इस भ्रान्त धारणा को नकार दिया कि नव वर्ष मध्य–रात्रि से शुरू हुआ और स्पष्ट किया कि वास्तव में यह सूर्योदय से प्रारम्भ होता है!
यहकैसेसंभवहोसका!
1994
अध्याय – 28
श्री माताजी का उदार चित्त बहुत–सी कृषि–परियोजनाओं में पहिले से लगा हुआ था। उन्होंने टिश्यू–कल्चर प्रोजेक्ट, बैंगलोर में कार्यरत योगियों को चैतन्य–लहरियों का उपयोग करने हेतु उत्प्रेरित किया। शुरुआत में वे आत्मविश्वास से रहित थे, किन्तु श्री माताजी ने उनके आज्ञा चक्र को साफ किया, उनकी समझ में आ गया की वे शुद्ध ज्ञान की स्रोत हैं।
श्रीमाताजीनेउन्हेंस्मरणकरायाकियद्यपिउन्होंनेउन्हेंज्ञान (जानकारी) से आशीर्वादित किया था, ये पूरी मानवता के कल्याण हेतु थी। इसके अलावा, उन्होंने योगियों को सावधान किया, सफलता बहुत सा पैसा लाएगी, किन्तु उन्हें इसके प्रोलभन से सावधान रहना चाहिए।
अनुभवसेउन्होंनेजानाकिनिर्मल–विद्या का बहाव उनके प्रति समर्पण के बाद ही शुरू हुआ। सफलता के तुरंत मिलते ही, उनकी आज्ञा अभिमान से फूल गई और चैतन्य–लहरियां बंद हो गईं। जैसे ही उन्होंने आत्मावलोकन किया, उन्हें समझ में आ गया कि उनके अहंकार ने उन्हें अहसास करा दिया कि उनका ज्ञान तार्किक (बौद्धिक) था। इसलिए उन्होंने श्री माताजी से अहंकार के विरूद्ध अपना संरक्षण प्रदान करने की प्रार्थना की। वे मुस्कराईं, जैसे एक बीज के भीतर 1000 वृक्ष होते हैं, जिसे वह पैदा करने वाला होता है, इसी तरह से तुम्हारे भीतर हजारों साधकों (विभिन्न रंगों के फूलों) को आत्म–साक्षात्कार की क्षमता है, किन्तु आवश्यकता है विश्वास की।
उनकाविश्वासबहुतसेसाधकोंकोकार्यक्रममेंलेआया।
17 जनवरी को वे चेन्नई के लिए रवाना हुईं। वे दक्षिण भारत में बढ़ती हुई बेकारी से चिंतित थीं और स्कूल के ड्राप–आउट्स (जिन्होनें स्कूली पढ़ाई बंद कर दी है) को प्लम्बर्स, इलेक्ट्रीशियन्स, कारपेंटर्स, और टेक्नीशियंस की व्यावसायिक ट्रेनिंग देने की सोची।
कार्यक्रममेंउन्होंनेसाधकोंकोप्रश्नपूछनेकाअवसरप्रदानकिया।
प्रश्न– मनुष्य के अस्तित्व का क्या कारण है?
उत्तर– परमात्मा का यंत्र बनना और उनके आशीर्वाद का आनंद उठाना।
इसप्रश्नकेउत्तरमेंशीतललहरियोंकाबहावश्रोताओंमेंव्याप्तहोगया।श्रोताओंमेंकाफीबीमारथेऔरउन्हेंश्रीमाताजीनेअपनेनिवास–स्थान पर इलाज हेतु बुलाया।
प्रातःकालकेकुछसमयपूर्वतकबीमारलोगोंकीलम्बीकतारमकान (निवास–स्थान) के बाहर लगी थी। श्री माताजी ने श्री मूर्ति (एक सहजयोगी) को विभिन्न चक्रों के समुच्चय/अपचय permutations and combinations के द्वारा चक्रों की सफाई करना दिखाया। पेशेंट्स (बीमारों) का इलाज करते हुए, लम्बे फोन कॉल्स का जवाब देते हुए और आदेश देते हुए, श्री माताजी ने बीमारों को मनोरंजक गाथाएं सुनाते हुए आराम पहुँचाया और उन्हें नाश्ता भी दिया। थोड़े से समय में मूर्ति साहब थक गए थे, जबकि श्री माताजी रोगियों पर 6 घंटे कार्य करतीं रहीं– बिना सुस्ताए (बिना आराम किए)। वे मुस्कराईं, “यह प्यार है, यह आपको बहुत सारी शक्ति प्रदान करता है।”
श्रीमूर्तिसाहबनेआवश्यकबातसमझली, कि वे थक गए थे, क्योंकि वह कर्त्ता–भाव में खो गए थे। अपना (ध्यान) चित्त श्री माताजी पर रखते हुए, वे पुनः युद्ध–मैदान में कूद पड़े। जैसे ही शाम का समय होने वाला था, श्री मूर्ति ने श्री माताजी का ध्यान लंच (दोपहर के भोजन) हेतु आकृष्ट करने का प्रयत्न किया। श्री माताजी ने कहा वे अभी नहीं नहायी हैं। अंत में, उन्होंने अपने लंच (मध्यान्ह भोज) का लंघन (स्किप) कर दिया, क्योंकि कलाक्षेत्र में रामायण महाकाव्य के उद्घाटन के लिए समय बीता जा रहा था।
21 जनवरी को श्री माताजी ने हैदराबाद को श्री राज–राजेश्वरी पूजा से आशीर्वादित किया। वे सहजयोग के विकास से प्रसन्न थीं, किन्तु हैदराबाद के बच्चों को स्मरण कराया कि उन्हें अपनी प्रगति पर अन्तरावलोकन introspect करना है, सहजयोग केवल योगियों की संख्या बढ़ाने तक नहीं, बल्कि सहजयोगियों के गुणों के बारे में है, केवल संख्या बढ़ाने से ही कार्य (लक्ष्य) पूर्ण नहीं होगा, उन्हें हृदय से दूसरों को भी प्यार करना होगा।
27 जनवरी को पुणे में न्यू इंग्लिश हाई स्कूल में श्री माताजी ने शुद्ध मराठी भाषा में महाराष्ट्र के महान आध्यात्मिक सनातन सम्पदा के बारे में प्रवचन दिया और साधकों को उस सम्पदा की ऊंचाई प्राप्त करने की प्रेरणा प्रदान की।
आत्म–साक्षात्कार प्राप्त करने के बाद एक झूठे गुरु ने घोषणा की कि, “यदि मेरे पास श्री माताजी कि शक्तियां होतीं, तो में विश्व का महाराजा बन जाता।”
श्रीमाताजीखुशनहींथीं, “यदि आपके पास इच्छाएं हैं, आपके पास शक्तियां नहीं हो सकतीं हैं।”
श्रोताओंकाजोशीलास्वागतमेघ–गर्जना सदृश फूट पड़ा।
श्रीमाताजीपुणेमेंसहज–योग के विस्तार से प्रसन्न थीं। उन्होंने सहजी बच्चों को पुणे प्रतिष्ठान में कव्वाली डिनर कार्यक्रम में आमंत्रित किया।
मध्यफ़रवरीमेंश्रीमाताजीने YPO (एक बहु–राष्ट्रीय व्यापारियों की एक वैश्विक यूनियन) के वार्षिक सम्मेलन में (गोवा में) सम्बोधित किया। श्री माताजी ने जाहिर किया कि श्री लक्ष्मी जी का आशीर्वाद पैसे और संपत्ति से नहीं बढ़ता, किन्तु उसके लिए आत्मा की उन्नति जरुरी है। उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अध्यक्षों से अपील की कि वे पिता–सम स्वरुप धारण करें और अपने कर्मचारियों को दया और औदार्यता–पूर्वक उनके कल्याण (well being) को देखें।
थोड़ा–थोड़ा करके श्री माताजी ने बच्चों को आराम (राहत) देने के लिए मनोरंजक गाथाएं सुनाना आरम्भ की। अंत में, उनकी, कॉर्पोरेट की राइट साइड (निगम सम्बन्धी/सीमित उत्तरदायित्व वाली कम्पनियाँ) संतुलन में आई और वे शीतल लहरियों में नहा लिए। छोटे शिशुओं की तरह उन्होंने अबोधिता भरे प्रश्न पूछे। एक महिला ने शिकायत की कि उनके पति की दूसरों को उपदेश देने की जबरदस्त आदत है।
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “उनके मुँह में एक सुपारी दे दो, तब वे इतना ज्यादा नहीं बोलेंगे।”
श्रोतागणहंसपड़े।
24 फरवरी को श्री माताजी ने मुंबई के शिवाजी पार्क में एक विशालकाय सभा को सम्बोधित किया। श्री माता जी ने अपनी गंभीर चिंता व्यक्त की, जिस तरह से महाराष्ट्र के लोग, जिन्हें इतनी महान आध्यात्मिक विरासत से आशीर्वाद मिला, वे पाश्चात्य बुराईयों को स्वीकार कर रहे थे। 30,000 से ज्यादा साधकों को उनका आत्म–साक्षात्कार मिला। श्री माताजी प्रसन्न थीं और उन्होंने साधकों को कव्वाली कार्यक्रम में आमंत्रित किया।
4 मार्च को श्री माताजी ने पूरे भारत से सहजयोगियों को अपनी सबसे बड़ी नातिन आराधना के विवाह में मुंबई में आमंत्रित किया। उन्होंने विशेष तौर पर उपहार नहीं लाने को कहा था। बहुत आग्रह के बाद उन्होंने कुछ उपहार (सामूहिक रूप से) स्वीकार करने की सहमति प्रदान की। योगियों ने नव–विवाहित जोड़े के लिए एक आशीर्वाद समारोह reception आयोजित करने की पेशकश की, परन्तु श्री माताजी ने मना कर दिया।
उनकेबच्चोंने 10 मार्च को पुणे में शिवरात्रि पर भक्ति–पूर्वक पुष्पार्पण किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि शिवरात्रि शिवजी के जन्म दिवस (जन्मोत्सव ) मनाने में नहीं आयोजित होती। उनका कोई जन्मदिवस नहीं होता है, वे तो अनंत हैं। यद्यपि, शिव–रात्रि पर्व उनकी वर्षगांठ (जाग्रति की वर्षगांठ) को चिन्हित करता है।
14 मार्च को श्री माताजी श्री शिवरात्रि पूजा के लिए दिल्ली लौट आयीं। अति–व्यस्त सप्ताह की लम्बी वैवाहिक व्यस्तताओं ने उन्हें थका दिया था और उन्हें बुखार हो गया था। सामूहिकता ने शिवरात्रि पूजा को स्थगित करने के लिए विनती की और उन्होंने योगियों की चिंता को एक तरफ झाड़ दिया, “यह कोई गंभीर बात नहीं है, और मैं ठीक हो जाऊंगी, यह केवल एक लीला है।”
जैसेहीशिवजीकीस्तुति–गान में उनके नाम सस्वर संगीतमय गाए गए, उनका बुखार उतर गया, शारीरिक तापमान सामान्य हो गया। उनके बच्चों की प्यार की शक्ति ने उनकी चैतन्य लहरियां प्रसारित कर दीं। उनका शरीर सूक्ष्म तंत्र का यंत्र था। उनका स्वास्थ्य समृद्ध होता है, जब बच्चे आपस में प्यार करते हैं और उन्हें तकलीफ होती है, यदि कोई कलह (झगड़ा) हो। यह इस बारे में नहीं है कि कितना बच्चों ने सहज–योग के लिए काम किया/ दान किया, किन्तु इस विषय में है कि कितना उन्होंने दूसरों को प्यार किया।
1994
अध्याय – 29
19 मार्च को श्री माताजी कोलकाता में अपनी इकहत्तरवें 71वे जन्म–दिवस के लिए पधारीं। मुख्यमंत्री श्री ज्योति बसु उन्हें लेने हवाई–अड्डे पर आने वाले थे, किन्तु उन्हें विलम्ब हो गया, क्योंकि काली मंदिर में उन्हें भेंट अर्पण करने के लिए रूकना पड़ा था।
श्रीमाताजीकोआश्चर्यहुआ, एक कम्युनिस्ट ने भगवान की पूजा की!
ज्योति बसु ने कहा, “क्या! मैं माँ को भूल जाने वाला हूँ, क्योंकि मैं एक कम्युनिस्ट हूँ? ऐसी अवस्था में बेहतर होगा कि मैं कम्युनिज़्म छोड़ दूँ, क्योंकि पावित्र्यमयी माँ मेरे लिए सर्वस्व हैं।”
माँकाजन्मोत्सवएकनृत्य–नाटिका से हुआ, जिसमें ‘जटायु मोक्ष’ की पौराणिक (रामायाण) कथा का मंचन (प्रदर्शन) हुआ। श्री माताजी ने एक समानान्तर प्रासंगिकता बताते हुए कहा, जिस तरह जटायु (गिद्ध पक्षी) श्री सीताजी की रावण से रक्षा करते हुए लड़ा था, उसी तरह एक और युद्ध, अधर्म से धर्म की रक्षा करने हेतु सहज–योगियों का महा–युद्ध था, “जिसमें यद्यपि सत्य को कई बार क्षति (हानि) हुई, किन्तु यह लड़ाई निरन्तर रही। जटायु की देह बुरी तरह से विक्षत हो गई थी, किन्तु उसने परवाह नहीं की, अपनी अंतिम साँसें श्री राम की गोद में लीं, और उन्होंने उसे मोक्ष (पद) प्रदान किया। इसी तरह, जब आप अपनी साधना के लिए संघर्ष करते हो, अंत में तुम्हें आत्म–साक्षात्कार मिल जाता है।”
श्रीमाताजीनेकलाक्षेत्रकेकलाकारोंकीप्रशंसाकी, “सहज–योग एक कला है, क्योंकि यह हदय का संकेतक (उद्गार) है।”
भारतीयथलसेनास्टाफकेप्रमुखबी.सी. जोशी दिल्ली से श्री माताजी को बधाई देने हेतु जन्मोत्सव बधाई–समारोह पहुंचे। श्री माताजी ने बहुत आत्मीयता से कहा, “मैं कुछ नहीं कर रही हूं, यह तुम्हारी कुण्डलिनी है, जो इसे (आत्म–साक्षात्कार) कार्यान्वित कर रही है। किन्तु एक बात है– यह शक्ति मुझे पहचानती है, वही सब कुछ है।”
बधाईकार्यक्रमकेलंच (मध्यान्ह भोज) में, श्री माताजी ने आर्मी चीफ, थल सेनाध्यक्ष से कहा, “थल सेना में शराब बहुत चलती है।”
थलसेनाध्यक्षनेबचावमेंकहा, “किन्तु युद्ध–स्थल मोर्चे पर सैनिकों के मनोबल को सहारा देने (बढ़ाने) हेतु यह आवश्यक है।”
श्रीमाताजीनेकहा, “शिवाजी की सेना ने भी कई बड़ी लड़ाईयां लड़ीं, किन्तु वहाँ शराब का सेवन नहीं था। वे महान् सदाचारी (चारित्रिक) थे। वे अपने आत्म–बल से प्रेरित थे, शराब से नहीं। शराब (व्यसन–मात्र) आत्मा को कमजोर करती है।”
तबउन्होंनेशिवाजीकेसेनाध्यक्षवीरतानाजीकीकहानीकावर्णनकरतेहुएकहा, वीर तानाजी जिन्होंने मराठा राजकुमारी, जो मुस्लिम आक्रमणकारी के कोंडाना के किले में बन्दी बनायी हुई थी, की सम्मान (आबरू) की रक्षा करने हेतु प्राण न्यौछावर कर दिये। उन्होंने बताया कि, “भारतीय सेना में व्याप्त बुराईयां ब्रिटिश–शासन की वसीयत की वस्तु हैं। ब्रिटिश वसीयत पूर्णतया भारतीय आचार–विचार की विरोधी है। हमें इन्हें छोड़ने की जरूरत है और अपने स्वाभाविक (जन्म–जात) मूल्यों, शिवाजी महाराज द्वारा अनुकरणीय मूल्यों को स्थापित करने की जरूरत है। जब जवानों को आत्म–साक्षात्कार मिलेगा, उनकी कुण्डलिनियाँ उन्हें प्रेरणा देंगी।”
जनरलबी. सी. जोशी चैतन्य में नहा गए थे और उन्होंने शराब छोड़ते हुए एक व्यक्तिगत उदाहरण स्थापित किया।
धीरे–धीरे बातचीत (वार्ता) का बहाव देश की सुरक्षा की ओर गया और उन्होंने सचेत किया– भारतीय समुद्री सीमाएं पर्याप्त संरक्षित नहीं हैं। उनमें से घुसपैठ हो रही है। जनरल जोशी स्तब्ध रह गए कि श्री माताजी को कैसे मालुम हुआ! केवल अभी–अभी उन्हें गुप्त सूचनाओं से समुद्री सीमा–पार से बड़ी मात्रा में हथियारों की खेप (चोरी से) स्मगल हुई है, यह ज्ञात हुआ है।
(दुर्भाग्यवश, जनरल जोशी कुछ कार्यवाही कर पाते, उनकी मृत्यु हो गई। 28 नवम्बर 2008 को आतंकवादियों ने मुंबई की समुद्री–सीमा से गेट वे ऑफ़ इंडिया के पास घुसपैठ की थी। आतंकवादी कार्रवाई से 200 से ज्यादा नागरिक मारे गए और होटल ताजमहल और होटल ओबेरॉय को भारी तबाही उठानी पड़ी थी)
21 मार्च, शाम को उनकी जन्म–दिवस पूजा आयोजित हुई, श्री माताजी बोलीं, “जब तुम मेरा जन्म–दिन मनाते हो, मैं भूल जाती हूँ कि इस धरती पर मैं कितने वर्षों से रह रही हूँ, क्योंकि जैसा कि मैंने तुम्हें बताया कि समय कुछ चिन्ह नहीं छोड़ता– दिनांक का, वर्षों का, उस सुन्दर अवस्था में……..मेरी उम्र इसी तरह गुजरती रही कि हर बार जहाँ मैं जाती हूँ मुझे बहुत अच्छे लोग अंदर आते मिलते और कुछ बहुत बुरे (वीभत्स) लोग पुराने सामूहिकता से गायब होते हुए, यह उसी तरह से है, जैसे एक वृक्ष वृद्धि प्राप्त करता है पुरानी पत्तियां गिरती रहती हैं और नई पत्तियां आने लगती हैं।”
नेताजीइन–डोर स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में माँ के प्रति साधकों की भक्ति ने माँ के हृदय को उत्साहित कर दिया था। श्री माताजी ने बताया कि साधकों का मातृत्व के प्रति सम्मान ने उन्हें प्यार भरा व्यवहार प्रदान किया, जिससे वे मुझे पहचान पाए। उन्होंने आश्वस्त किया कि उनका माँ के प्रति उद्गार (भावनात्मक) उनके प्रदेश को पुनः ‘सोनार बांग्ला’ के गौरव को प्राप्त करायेगी। बाद में कोलकाता दूर–दर्शन ने कार्यक्रम का प्रसारण किया।
संगीतकार्यक्रमकेअन्तमेंसूफीकव्वाली, बाबा जहीर ने हृदय के टुकड़े कर देने वाले तुक्तक (दोहे) और पद्य सुनाए। श्रीमाताजी एक शर्मीली दुल्हन की तरह शर्म से लाल हो उठीं, “अब मुझे उम्मीद है कि सभी सूफी सहज योग में आने लगे हैं, सभी मुस्लिम भी आयेंगे क्योंकि मैं उनके लिए बहुत चिन्तित हूँ।”
श्रीमाताजीकेपर्थ (आस्ट्रेलिया) विदा होने से पूर्व उन्होंने कोलकाता की सामूहिकता को कृतज्ञता ज्ञापित की, जिस प्यार, और आत्मीयता से उन्होंने सभी मेहमानों की देखभाल व सुश्रुषा की।
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अध्याय – 30
3 अप्रैल को ईस्टर पूजा का आयोजन सिडनी में हुआ। एक लम्बी अनवरत् बारिश के बाद हर्षोल्लास प्रदान करने वाली धूप ने श्री माताजी का स्वागत किया। उन्होंने अपने बच्चों को पुनर्जन्म (आत्म–साक्षात्कार) एक उद्देश्य–पूर्ति के लिए दिया। यह लक्ष्य, इस दुनिया को एक सुन्दर स्थान में परिवर्तित करना था।
सिडनीकेटाऊनहालकार्यक्रममेंवहाँकेशहरकेउपाध्यक्षलॉर्डमेयरनेश्रीमाताजीकोधन्यवाददिया, मानवता के उद्धार (मोक्ष) के लिए अथक प्रयास करने हेतु। श्री माताजी ने बताया कि सत्य का समय (सतयुग) आ चुका है और साधकों को न केवल आत्म–साक्षात्कार लेना चाहिये, बल्कि खुद को आध्यात्मिक लोगों की तरह से स्थापित करना है।
कुछयोगियोंनेएक ‘आर्टिस्ट को–ऑपरेटिव’ ग्रुप बनाया। श्री माताजी ने कहा सहज–योग में ऐसे ग्रुप्स बनाने की जरूरत नहीं है।
श्रीमाताजीनेयाददिलायीकिवेसर्वप्रथमसहज–योगी हैं और ऐसे ग्रुप्स बनाकर आर्ट्स, संगीत या जो भी वे कर रहे थे, उसमें खोना नहीं है।
अपनेविवाहकीवर्षगांठकेमंगलमयअवसरपरश्रीमाताजीनेउनसबकोक्षमाकरदिया, जिन्होंने उन्हें तकलीफ दी थी। एक बार लोगों ने उन्हें माँ कह दिया, उन्होंने उन्हें क्षमा कर दिया।
10 अप्रैल को श्री महामाया पूजा न्यूजीलैंड में उन्होंने यह जाहिर किया, उन्हें अपने बच्चों के नजदीक आने के लिए महामाया स्वरूप लेना पड़ा, उन्हें बिना डराए या आदरयुक्त–भय के। ऐसा करने हेतु उन्हें सामान्य मानव–मात्र की तरह से व्यवहार करना, प्रतिक्रिया करना था। उन्होंने बच्चों को अपने अंदर समाया हुआ था, किन्तु बच्चे नहीं देख पाए, कैसे– यह महामाया थीं।
जबवेबच्चोंकीनकारात्मकताकोअवशोषितकरतीं, उनके बच्चों को माँ की तकलीफ महसूस नहीं हुई, बच्चों को नहीं मालुम हुआ, उन्हें माँ ने कैसे स्वस्थ किया, “यह एक मेरे अवतरण का गुप्त–हिस्सा है, तुम कोई भी/कुछ भी गलती करो, छोटी सी भी, मुझे वह तकलीफ देती है। इसे तकलीफ देना है, क्योंकि मैं अपने बारे में कुछ नहीं सोचती, मैं हमेशा तुम्हारे बारे में सोचती हूँ। अतः यह एक इशारा है मुझे, कि कहीं कुछ गड़बड़ी हुई है।”
12 अप्रैल को श्री माताजी ने वामारा Wamara (जहाँ ब्रिसबेन के बाहर श्री माताजी की सम्पत्ति है), उसे आशीर्वाद दिया। श्री माताजी ने अपने बच्चों को प्रकृति को अंगीकार करने के लिए प्रेरित किया। क्योंकि उनकी आत्मा के आनन्द के लिए यह बहुत अच्छी थी। उन्होंने याद दिलायी, यद्यपि परम चैतन्य कार्यान्वित है, बच्चों को इसे पोषित करना था। निस्संदेह, हरेक चीज के लिए बड़ी सम्भावना है, किन्तु यदि बच्चे इसके (परम चैतन्य के) वाहक (माध्यम) नहीं बने, तो यह कार्यान्वित नहीं हो पायेगी।
श्रीमाताजीकेटोक्योरवानाहोनेसेठीकपहलेश्रीमाताजीकोएकटेलीफोनकॉलआया, यह फोन–कॉल एक नवजात योगी से था, जिसने उन्हें धन्यवाद दिया। वह अपनी मोटर सायकल से तेज गति से चला जा रहा था, अचानक दोनों ओर से आ रहीं दो गाड़ियां (ट्रक्स) उससे टकराईं। वह मोटर बाईक सवार आश्चर्यजनक तरीके से एक शटल कॉक की तरह ऊपर उठाया गया और दूसरी बाजू फेंक दिया गया। उसकी बाइक पूरी तरह से ध्वस्त हो गई, किन्तु उसे एक खरोंच तक नहीं आयी।
टोक्योमेंआमलोगोंकीअनुक्रिया response आशातीत थी। श्री माताजी आश्चर्य में थीं कि ऐसे रजोगुणी right sided materialistic देश में बहुत से साधकों को आत्म–साक्षात्कार मिला।
19 अप्रैल को वे ताइवान के लिए रवाना हुईं। उन्होंने चमत्कार पूर्ण फोटोग्राफ देखे और चैतन्य–लहरियों की विभिन्न् रचनाओं की गुत्थी सुलझाायी। पहला चित्र, जो गणपतिपुले में लिया गया था, उसमें मैडोना श्री माताजी के समक्ष प्रकाश की तरह खड़ी थी। दूसरे चित्र में, ब्रिसबेन में एक इन्द्रधनुष का लिया गया था, जहाँ बादलों में मैडोना अपने बच्चों को पकड़े हुए दिखाई दीं। अगले चित्र में श्री माताजी के चेहरे (मुखमंडल) की जगह सूर्य दिखाई दिया, और उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा, “कल्कि का वर्णन बिना चेहरे के किया गया है। (ज्यूइश) यहूदी धर्म में भी मोक्ष प्रदायिनी redeemer बिना चेहरे के हैं।”
जैसेहीश्रीमाताजीनेबतायासबबच्चेगहनध्यानमेंचलेगए।
श्रीमाताजीकेहॉंगकॉंगविदाहोनेसेपूर्वउन्होंनेबतायाकि, “भविष्य के बुद्ध का वर्णन ‘मात्रेया’ तीन माताओं का एक स्वरूप, किया गया है। मंत्र है, “श्री माताजी, आप मात्रेया हैं।” हमारा शरीर एक कंप्यूटर की तरह है– यह उत्तर देगा, यदि लोग आत्म–साक्षात्कारी भी नहीं हैं (तब भी)।”
इसकेपश्चात्उन्होंनेकुआलालम्पुरऔरथाईदेशकोआशीर्वाददिया। 29 अप्रैल को वे दिल्ली के लिए रवाना हुईं।
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अध्याय – 31
सहस्रारपूजासमारोहकबेलामें 4 मई को शुरू हुआ। ऑस्ट्रियन योगियों ने एक ऑस्ट्रियन क्लॉडिस्कोप (बहुमूर्ति–दर्शी यंत्र), नृत्य, नाटक, कव्वालियाँ और युगल गान (duets) प्रस्तुत किया। सूर्योदय से बहुत समय पूर्व से ही ब्रहम चैतन्य चन्द्रमा की कलाओं की तरह वर्द्धित हुआ और माँ के बच्चे अपनी प्रिय माँ के आसपास आनन्द में नाचने लगे।
श्रीमाताजीपरमआनन्दमेंपहुँचगईं, “सभी अवतरणों ने भविष्य के बारे में बताया, किन्तु मैंने भविष्य की बात नहीं की। भविष्य या भूतकाल का अस्तित्व नहीं है। वे भ्रान्ति (काल्पनिक) हैं और उनका कोई अर्थ नहीं निकलता। अब हमारे पास केवल सनातन eternal वर्तमान है।”
अनंतवर्तमानकामहत्वमाँकेबच्चोंपरसेनहींनष्टहुआथा।बहुत–सारे जन्मों के बाद उन्हें देवी माँ के अवतरण का आशीर्वाद मिला था और यह स्वर्णिम अवसर क्षण–मात्र में खोया जा सकता था, यदि बच्चे उन्हें मानने (स्वीकारने) में असफल हो जाते। उन्होंने अपना चित्त बौद्धिक–कल्पना से निकाला और श्री माताजी को अपने ह्रदय–मंदिर में विराजित कर लिया।
श्रीमाताजीउनकीउन्नतिसेप्रसन्नथींऔरकहादूसरोंकोउनकेमाध्यमसेउन्नतहोना (बढ़ना) है।
श्रीमाताजीकेसहस्रारकेविस्तारमेंवेशरीरकेसेल्स (कोशिकाएं) थे। पूजा ने उनकी मान्यता (श्रद्धा) को गहरा कर दिया और परम चैतन्य मातृ–दिवस का दोहरा आशीर्वाद ले आए!
यदृयपिसहस्रारमेंआनन्दकाप्रसारअनंतथा, पूजा टेंट कर प्रसार (फैलाव) capacity to accomodate सिकुड़ रहा था। श्री माताजी बच्चों के आराम के लिए ज्यादा जगह देना चाहतीं थीं। एक ग्रामवासी ने नदी के किनारे अपने क्रशिंग–प्लॉट (जबरदस्त–भूखण्ड) की साइट (स्थान) को कार्यक्रम हेतु प्रस्तावित किया। बच्चे उस स्थान की आदर्श भौतिक–स्थिति से प्रभावित हुए, जो नदी किनारे था और उस स्थान को होनहार आशापूरित–स्थल घोषित कर दिया। वे उस स्थान के लिए दवाब बना रहे थे, किन्तु किसी वजह से परम–चैतन्य इसे टालता रहा। आदिशक्ति पूजा के ठीक पहले वहाँ इतनी जोरों से बारिश हुई कि वह होनहार (आशा पूर्ण) भूखंड पूरी तरह नदी के पूर आने से डूब गया था। एक बार पुनः बच्चों को समझ आ गया था कि उन्हें उनके अवबोध (समझदारी) ने मार्ग–दर्शन दिया था और वे श्री माताजी द्वारा दिए गए संकेतों को भूल गए थे!
श्रीमाताजीनेउन्हेंसान्त्वनादी, “यह तुम्हारे कल्याण (क्षेम) के लिए है कि परम चैतन्य ने तुम्हें बचा लिया। जब कोई चीज मेरे चित्त में आती है, उसके सहज प्रतिक्षेप (प्रति–छाया) में परम चैतन्य कार्य करते हैं। मैं कुछ नहीं करती, मैं केवल दृष्टा (साक्षी) हूँ।”
श्रीआदिशक्तिपूजामेंयहस्पष्टहुआकिजबश्रीमाताजीकिसीचीज/विषय के लिए दृष्टा (साक्षी) रहीं, परम चैतन्य शक्ति कार्यान्वित हुई, “क्योंकि आदिशक्ति की शक्ति परम चैतन्य होकर प्रकट हुई……..यह शक्ति आपको प्यार करती है और इसका प्रकृति पर पूरा नियन्त्रण है। जब आपकी कुण्डलिनी चढ़ती है, यह सहस्रार भेदन कर परम चैतन्य को स्पर्श करती है और उससे शक्ति प्राप्त करती है। तब, तुम्हें पूरे विस्तार (फैलाव) की कल्पना/दृष्टि मिलती है।”
श्रीमाताजीनेअपनेबच्चोंकेलिएगहनचिन्ताव्यक्तकी, “मुझे कभी संतोष नहीं मिला कि मैंने अपना काम कर लिया है और बिना सोचे किसी भी चीज के बारे में आज रात सो सकूँ, इस बारे में, उस बारे में चिंतित रहती हूँ और यह चैतन्य बहता रहता है– क्योंकि यह वास्तविकता है! मैं कभी अपने बारे में चिन्तित नहीं हूँ – कभी नहीं!”
श्रीमाताजीकेऐसाकहनेपर, उनकी चिन्ताओं ने उनके बच्चों की आँखों में आंसू ला दिए और उन्होंने उनकी असीम दया/करूणा के लिए बारम्बार धन्यवाद दिया।
आनेवालेसप्ताहमेंउनकीअपारकरूणाकेविस्तारनेटर्की, स्विट्ज़रलैंड, फ्रांस, जर्मनी और ऑस्ट्रिया को आशीर्वादित किया। 13 मई को उन्होंने फ्रांस को उसके धर्म की स्थापना के लिए श्री विष्णु पूजा से आशीर्वादित किया। उन्होंने जोर देकर कहा, धर्म की स्थापना बिना आत्म–साक्षात्कार दिए सम्भव नहीं हो सकती, “यह करें/और यह न करें” के बारे में बात करने की कोई जरूरत नहीं थी। जो भी कहा जाता है या लिखा जाता है, वो जबानी ही रह जाता है, यही कारण है कि सभी धर्मों ने जो शिक्षा/उपदेश जिस विषय या वस्तु पर दिए, वही अलग–अलग पंक्तियों/रास्तों में चले गये।”
श्रीमाताजीगुरूपूजाकेलिएकबेलालौटीं।जैसेहीबच्चोंनेअपनेगुरूकोउत्साहपूर्वकप्रार्थनाकी, वे बोलीं– उन्हें मालुम है, हरेक बच्चे ने उन्हें कितना प्यार दिया, किन्तु यह प्यार दूसरों तक फैलाना भी चाहिये। “हमें उनकी जरूरतों के बारे में मालुम होना चाहिये और उनके लिए क्या करना है– मालुम होना चाहिये।”
उनकेमातृवतप्यार (वात्सल्य) के प्रसार ने हरेक बच्चे को घेर लिया था, “एक गुरू दूसरों पर शासन नहीं करता, रौब नहीं जमाता, किन्तु नम्रतापूर्वक बच्चों (शिष्यों) की देखभाल करता है।”
बादकेसप्ताहमें, उनके कारूण्य के प्रसार ने बेल्जियम और हॉलैंड पर कृपा–वृष्टि कर दी।
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अध्याय – 32
श्रीकृष्णपूजाकाआयोजनकबेलामें 28 अगस्त को हुआ। अमेरिकी सहजी बच्चों ने श्री कृष्ण जी की आनन्दित करने वाली हास्य–व्यंग्यात्मक लघु नाटिका प्रस्तुत की।
प्रमुदितअवस्थामेंश्रीमाताजीनेअपनेबच्चोंसेश्रीकृष्णकीमाधुरी (मधुरता) में बातचीत करने को कहा। जैसे ही बच्चों ने मधुरता से मन्त्र लिए उनकी विशुद्धि खुल गई। यह संसार एक रंगमंच है, जहाँ हरेक को अपना रोल (स्वांग) खेलना है। आरम्भ में उस रंगमंच से माधुरी वाला अंश छूटा हुआ था, धीरे–धीरे आदिशक्ति की स्वांसोच्छ्वास ने वापस इसमें माधुरी–रूपी प्राण फूंक दिए।
आनेवालेसप्ताहनेवारसाको ‘माधुरी’ से आशीर्वादित किया। पासपोर्ट कंट्रोल लेडी ने श्री माताजी के पास–पोर्ट फोटो से चेकिंग के समय आती हुई मधुर सुगन्ध के झोंके से आशीर्वाद प्राप्त किया।
एक 16 वर्षीय किशोर ने माधुरी–गान की हिन्दी रचना की, जिससे श्री माताजी की आँखें करूणार्द्र हो उठीं। यद्यपि उसे हिन्दी नहीं आती थी, उसने पुस्तकालय से हिन्दी शब्द–कोष से शब्द चुने थे। श्रीमाताजी ने उसे सान्ध्य–कार्यक्रम में माधुरी को प्रसारित करने को कहा।
इसमाधुरीकीसुगन्धकाझोंकामॉस्कोपहुंचा।श्रीमाताजीरूसीबच्चोंकीमधुरसुगन्धसेअभिभूतहोउठीं। “तुम मेरे उदृयान के फूल हो।”
श्रीमाताजीनेसभीफूलोंकोडाचा Dacha (श्री माताजी का निवास–स्थल, कुटिया) भेजने को कहा। वहाँ पर्याप्त संख्या में फूल–दान नहीं थे, अतः उन्होंने लम्बी डंडी वाले फूलों को बगीचे में रोप दिया। दिन प्रति दिन उन्होंने श्री माताजी के क्षणिक दृष्टिपात (कटाक्ष) से चैतन्य अवशोषित किया और आकार में बड़े से और बड़े विकसित हो गए। प्रकृति उनकी उपस्थिति के प्रति ज्यादा संवेदनशील थी, मनुष्यों की अपेक्षाकृत और उनके चैतन्य को सहज ही आत्म–सात कर लिया था। मानव को चुनने की स्वतंत्र इच्छा थी और इसी वजह से चैतन्य को उनकी आज्ञा के पार जाने को दूर रखा।
श्रीगणेशपूजासमारोहपरबच्चोंनेएकनाटककामंचनश्रीगणेशकेविभिन्नपहलुओंकोदर्शानेहेतुप्रस्तुतकिया।श्रीमाताजीकोआश्चर्यहुआकिइतनेकमसमयमेंउन्होंनेश्रीगणेशकेबारेमेंइतनासाराकैसेजानलिया।श्रीमाताजीअतिप्रसन्नथीं– रूस में इतने सारे आत्म–साक्षात्कारी (संत) जन्म ले रहे थे।
11 सितम्बर को आयोजित हुई पूजा में श्री माताजी ने स्पष्ट किया कि अबोधिता ही प्यार का स्रोत है और प्यार से आनन्द मिला। अबोधिता बहुत शक्तिशाली गुण है, जिसने अहंकार को समाप्त कर दिया है।
पूजाकेबादश्रीमाताजीनेसभीबच्चोंकोहस्त–कला निर्मित खिलौनों से आशीर्वादित किया और बच्चों के माता–पिता को प्राकृतिक–वस्तुओं से तैयार खिलौने खरीदने हेतु उत्प्रेरित किया।
14 सितम्बर को पेट्रोस्वस्काया एकेडमी ऑफ़ आर्ट्स ने, श्री माताजी को अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन में– मेडीसीन, आत्म–ज्ञान और सदाचार के बारे में प्रबोधन हेतु आमंत्रित किया। सम्मेलन सभा ने श्री माताजी के अनमोल मार्ग–दर्शन के लिए अपनी गहन कृतज्ञता ज्ञापित registered की और उनका नाम नोबेल शांति पुरूस्कार के लिए प्रस्तावित किया। इस संस्था ने श्री माताजी के मार्ग दर्शन में मानव के शारीरिक और नैतिक उत्थान हेतु एक रिसर्च सेंटर, अनुसंधान केन्द्र स्थापित करने का संकल्प (निश्चय) किया।
एकस्वागतसमारोहकाआयोजनश्रीमाताजीकेसम्मानमेंसिटीकौंसिल, टोग्लिआटी द्वारा रखा गया, मेयर ने शहर की क्राइम–रेट (आपराधिक गति) में एक अकस्मात (नाटकीय) गिरावट की वजह सहजयोग को ठहरायी। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष आपके आशीर्वाद के बाद से राष्ट्रीय अर्थ–व्यवस्था सुधरी थी। इसके अतिरिक्त सम्मेलन–सभा ने सहज–योग को स्कूलों में शुरू करने का दृढ–निश्चय किया।
मॉस्कोमें 7000 साधकों ने अपना आत्म–साक्षात्कार पाया और अन्य 5000 साधकों ने सेंट पीटर्सबर्ग में आत्म–साक्षात्कार पाया। श्री माताजी प्रसन्न थीं और उन्होंने सुझाव दिया कि विश्व के अन्य देशों को रूस में आकर देखना चाहिये, कैसे सामूहिकता को मिला आशीर्वाद सभी चीजों पर कार्यान्वित रहा– “कैसे, थोड़े से शुरू कर, उन्होंने बहुत–सी उपलब्धि प्राप्त की।”
रूसीप्रवासियोंनेअमेरिकामेंइसउदाहरणकाअनुसरणकियाऔरशिकागोजैसेउच्च–आपराधिक शहर में सहज–योग का एक कार्यक्रम आयोजित करने का साहस उठाया। श्री माताजी ने महसूस किया शिकागो का हृदय कमजोर था और यह हालत असुरक्षा और डर की वजह से थी। कार्यक्रम होटल इन्टर–कान्टिनेन्टल में आयोजित हुआ था। एक रूसी सहज योगी ने श्री माताजी को एक हाथ से नक्काशी की गई कुर्सी भेंट की, वे उसके प्यार से अवाक् रह गईं।
श्रीमाताजीनेप्रेमकेमहत्वकोसमझायाऔरअपनेबच्चोंपरकिसीपरकभीदबावनदेनेपरजोरदिया, “केवल प्यार व दया (करुणा) का ही उपयोग हो, कोई हर्ज नहीं, किसी ने कैसा बर्ताव किया हो।”
25 सितम्बर को टोरेंटो कार्यक्रम में श्री माताजी ने विज्ञान, शरीर, मस्तिष्क और आत्मा के बीच संबंधों को स्पष्ट समझाया। अगले दिन, दूसरे 800 साधकों को वैंकूवर में उनका आत्म–साक्षात्कार मिला। मैराथन दौड़ लॉस–एंजेलेस तक जारी रही। श्री माताजी पालोस वरदेस Palos Verdes के नए आश्रम में रूकीं। उन्होनें हारमोनियम पर भजन गाये और उनके अर्थ भी समझाए। जैसे ही उन्होंने अपने बच्चों को प्यार के आनन्द–सागर में स्नात किया(नहलाया), वे स्वर्गीय आनन्द में खो गए थे।
ईरानीयोगियोंनेएककार्यक्रमसेरिटोस Cerritos में आयोजित किया किन्तु बहुत कम साधक आए। सहज–योगियों को निराशा हुई। श्री माताजी ने उनके आत्म–बल को उठाया/सहारा दिया, यह कहते हुए कि वे एक साधक के लिए भी आ सकती थीं!
दूसरेदिनसेरिटोस (शहर) में कार्यक्रम में 800 साधकों को देखकर सहज–योगियों की आत्माएं आकाश को छूने लगीं। उन्होंने बताया कि लॉस–एंजेलिस की स्वाधिष्ठान की समस्याओं को कैसे काबू करना है। न्युयॉर्क की रात्रि–कालीन उड़ान पकड़ने हेतु श्री माताजी कार्यक्रम स्थल से सीधे ही टोरेंटो एअरपोर्ट (हवाई–अड्डा) पहुंचीं।
एकअक्टूबर (प्रथम दिन) सामूहिकता ने श्री माताजी के अवतरण के समय की उद्घोषणा सेंट्रल–पार्क की एक रैली में की। श्री माताजी ने अपनी माँ के खोए हुए बच्चों को अपने पास आने हेतु हाथ से इशारा किया और बच्चे माँ की ओर चल दिए।
उन्होंनेबच्चोंकोश्रीयोगेश्वरपूजाकाआशीर्वादकैम्पवकामास Camp Vacamas में दिया। उन्होंने बताया कि यदृयपि श्री कृष्ण का आशीर्वाद सामूहिकता में एक नया आयाम लाया, किन्तु अमेरिकी संस्कार अमेरिका–वासियों को पकड़े हुए थे और उन्हें उन संस्कारों को काबू में करना होगा।
अमेरिकीबच्चोंकेद्वारासंगीतकीप्रस्तुतिसेवेआनन्दितहुईंऔरउन्होंनेबच्चोंकोउनकेसंगीतकेमाध्यमसेसाधकोंतकपहुँचनेहेतुप्रोत्साहितकिया।
पूजाकेचैतन्यकेप्रभावसे, क्वीन्स Queens के गीता–मंदिर में साधक आए। इसके बाद, श्री माताजी ने एक 3 घंटे का साक्षात्कार interview एक भारतीय पत्रकार को अमेरिका में चल रही बुराईयों पर दिया, उन बुराइयों ने कैसे शेष–विश्व को प्रभावित किया और सहज योग कैसे इन सब समस्याओं का हल था– बताया था।
अगलेदिन, जैसे ही श्री माताजी मिलान Milan हेतु रवाना हुईं, बच्चों ने अपनी प्यारी माँ को एक अश्रुपूरित विदाई दी। एअरपोर्ट स्टाफ ने बच्चों को गेट की ओर जाने से रोका, किन्तु बच्चों के प्यार ने एअरपोर्ट स्टाफ का निश्चय बदल दिया। तब वे बोले– श्री माताजी हवाई–जहाज में फूल नहीं ले जा सकतीं, किन्तु उनके बच्चों के प्यार में भीगे हुए पुष्पों ने स्टाफ का मन बदल दिया (निर्णय बदल दिया)। आगे, वे बोले योगीजन वहाँ खड़े होकर माँ के हवाई–जहाज को उड़ान भरते हुए take off देखने के लिए इन्तजार नहीं कर सकते थे। एक बार पुनः, सामूहिकता की भक्ति (समर्पण) ने स्टाफ का मन बदल दिया था।
1994
अध्याय – 33
नवरात्रिपूजाकाआयोजनकबेलामें 9 अक्टूबर को हुआ। निरन्तर (अनवरत) बारिश, मेघ–गर्जना और तड़ित–चालन ने संगीत कार्यक्रम स्थल को पूजा से पहले ही लबालब भर दिया था। हैंगर से टपकता हुआ वर्षा जल आतंकित करने लगा। यद्यपि, श्री माताजी के मुख–मंडल पर व्याप्त शांति इस बात का स्मरण करा रही थी कि सभी प्राकृतिक तत्व उनके हाथ में थे। जैसे ही, बच्चों ने विनम्रता से हृदय से प्रार्थना की, बारिश रूक गई। काले डरावने बादलों ने श्री माताजी के चरण–कमलों को पखारने की शुद्ध इच्छा व्यक्त करते हुए, बारिश की फुहार को रोक दिया था।
पूजासेपूर्वबादलोंकीवापसीहुई, श्री माताजी के स्वागत के लिए और श्री माताजी के स्वागत–पथ में पॅंखुड़ियों को बिखेरने के बाद विनम्रता से नमन कर चले गए। दूसरे प्राकृतिक तत्व भी ज्यादा पीछे नहीं रहे और अचानक (वायुमंडलीय) तापमान शून्य डिग्री सेन्टीग्रेड, 0°C तक चला गया, किन्तु श्री माताजी के प्रवचन के क्षण से तापमान बढ़ने लगा और उन्होंने अपनी शॉल उतार दी। श्री माताजी ने प्रवचन में यह जाहिर किया कि किस तरह प्राकृतिक–तत्व प्रार्थना की शक्ति के प्रति अनुक्रिया respond करते हैं।
11 अक्टूबर को परम्परागत “बास्क–म्युजिक Basque music ने श्री माताजी का बार्सेलोना Barcelona में स्वागत किया और उन्होंने इसके सागर–तटीय पहाड़ों की हवा का आनन्द लिया। सहजी बच्चे सहज–योग में अपने सभी प्रयासों के बावजूद मंद–गति से होते हुए विकास से निरूत्साहित थे। श्री माताजी ने प्रतिक्रिया दी, “स्पेन में सहज–योग के विकास की गति धीमी है, किन्तु इसकी जड़ें–जमने में समय लेती हैं। मुझमें विश्वास रखें, एक दिन ये जड़ें प्रस्फुटित होकर बड़े वृक्षों में परिणत हो जायेंगीं।”
सहज–योग की जड़ें ब्राजील में पहले से ही बड़े वृक्षों में प्रस्फुटित हो चुकी थीं। उनकी शाखाएं फैल गईं और सत्य के पथिकों को छाया देने लगीं थीं। 14 अक्टूबर को ब्राजील–वासी बच्चों ने अपनी माँ का जोशीला (उत्साहपूर्ण) स्वागत किया। 2 वर्षों के अन्तराल ने उनके हृदयों को स्नेहासिक्त कर दिया। पारिवारिक पुनर्मिलन के उत्साह की प्रचुरता में, लम्बी यात्रा की थकान भूली जा चुकी थी और पावित्र्य मूर्ति माँ ने अपने उत्साह पूर्ण बच्चों को उपहार वितरित करते हुए आनन्दमयी सन्ध्या बितायी।
पहलीबार, सरकारी तंत्र ने उनकी ब्राजील यात्रा को प्रायोजित किया। श्री माताजी सहज–कार्यक्रम से बहुत प्रसन्न थीं, जहां 1200 साधकों ने अपनी माँ विश्व–वंदिता का ख़ुशी से स्वागत किया। साओ–पौलो में पुर्तगालियों द्वारा अति प्रसन्नता से ‘विश्व –वंदिता’ की पुनरावृत्ति हुई।
17 अक्टूबर, ब्राजिलिया के मेयर ने हवाई–जहाज के पायदान पर (on stairs) श्री माताजी को शहर की चाबियाँ (keys of the city) भेंट कीं।
श्रीमाताजीनेगहनतासेहृदय–स्पर्शी हो कहा, “आपको बहुत सा–धन्यवाद। मैं इन्हें (चाबियों को) अपने हृदय में रखूंगी।”
जैसेहीमेयरसाहिबश्रीमाताजीकोप्रेस–वार्ता के लिए मार्ग–दर्शन हेतु साथ गए, उन्होंने बताया कि देश के इस हिस्से में बहुत सूखा पड़ा था। श्री माताजी ने उन्हें पुनः भरोसा दिलाया कि बारिश होगी। निस्संदेह, दूसरे दिन जब श्री माताजी शॉपिंग कर रही थीं, जोरों की बारिश शुरू होने लगी। यह बारिश कार्यक्रम के दिन भी जारी रही और मेयर साहिब को चिन्ता होने लगी। मेयर साहिब आश्चर्य में थे कि बारिश के बावजूद 2000 अधीर (उतावले) साधक–गण श्री माताजी के लिए आशावान होकर इन्तजार कर रहे थे। उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा जब योगियों ने “महाराष्ट्र देशा जाग्रत करूया” की जगह भजन में “ब्राजिलिया देशा जाग्रत करूया” गाकर प्रसन्नता जाहिर की।
बच्चोंनेएकसहजस्कूलकेलिएप्रार्थनाकी।श्रीमाताजीनेहामीभरीऔरपरमचैतन्यनेआज्ञाकारीहोअनुक्रियाव्यक्तकी, एक सहजयोगी ने स्कूल के लिए जमीन दान कर दी और शिक्षा–मंत्रालय ने अपना सहयोग प्रदान किया।
ब्युनसऐरेस Buenos Aires में श्री माताजी ने 1500 साधकों को एक घंटे तक सम्बोधित किया। कई बार उन्होंने दुभाषियों को सही (दुरूस्त) किया। उस व्यक्ति को आश्चर्य हुआ, श्री माताजी को कैसे पाता चला कि अनुवाद सही नहीं था। श्री माताजी ने जाहिर किया कि परावाणी नाभि–चक्र के स्तर से आरम्भ हुई और हृदय के स्तर पर सारांश विचार बन गई। अन्त में विशुद्धि स्तर पर यह शब्द और भाषा बनी। उन्होंने अपना चित्त प्रथम या दूसरे स्तर पर यानि नाभि या हृदय स्तर पर डालने से, यह जान लिया कि दुभाषिया क्या कहने जा रहा था।
श्रीमाताजीअपनेबच्चोंकीभक्तिसेबहुतप्रसन्नथींऔरउनकेलिएराजसी–भोज बनाया।
24 अक्टूबर को श्री माताजी एक दिन के लिए बोगोटा रूकीं और 1500 साधकों को आत्म–साक्षात्कार दिया।
नवम्बरकेप्रारम्भिकदिनोंमेंतुनिसिया Tunisia सरकार ने उन्हें एक सेमीनार के लिए आमंत्रित किया। श्री माताजी साधकों की गुणवत्ता से प्रसन्न थीं ओर कहा कि उनके पास सहज–कार्य के लिए बड़ी सम्भावित शक्ति थी।
6 नवम्बर को इस्तांबुल में दिवाली–पूजा आयोजित हुई। श्री माताजी का हृदय ऊंचाईयां कूदने लगा– जब उन्होंने देखा कि तुर्की की छोटी सामूहिकता ने इतने थोड़े से, इतना ज्यादा कैसे प्राप्त कर लिया और पूजा प्रवचन के दौरान उन्होंने टिप्पणी की, “मैं नहीं जानती हूं कि क्या कहूँ, आनंद की सभी लहरें मुझे भाव–विहवल कर दे रही हैं।”
आनन्दकीलहरेंबोस्पोरससेग्रीसकेबीचफैलीं।श्रीमाताजीकोयहजानकरआश्चर्य हुआ, ग्रीक (ग्रीस–वासी) अपनी विरासत को इतनी आसानी से भूल गए थे। श्री माताजी ने याद दिलायी, ग्रीस भारत का एक अंग था और गान्धर्व के नाम से जाना जाता था। गांधारी महाराज धृतराष्ट्र (कुरूवंशी) की पत्नी ग्रीस से थी। यह देश ब्रहमाण्ड की नाभि था। राईट–साइड गॉड्स (रजोगुणी देवतागण), जैसे जेस Zeus (परशुराम), वरूण, और इन्द्र यहाँ रहते थे। सुकरात की मृत्यु के बाद ग्रीक देवताओं की विकृति (विरूपण) शुरू हुई। उन्होंने अपने देवताओं का मानवी–करण कर दिया। यह एक ग्रीक विडम्बना है।
कार्यक्रमोंमेंश्रीमाताजीनेसामूहिकआज्ञा–चक्र पर विस्तृत कार्य किया और सलाह दी, “आपकी आज्ञा से प्यार (क्षमा) बहना चाहिये।”
1994
अध्याय – 34
नवम्बरअन्तमेंसाधकोंकेएकसागरनेदिल्ली, फरीदाबाद, नोयडा और गाजियाबाद में सहज कार्यक्रमों को मानव–समूहों से भर दिया। साधकों की राइट–साइड (पिंगला नाड़ी) जल रही थी और श्री माताजी ने पहले इसे ठंडा करने का निश्चय किया, ताकि यह समस्या निर्विचार–चेतना के आनन्द उठाने के रास्ते का व्यवधान न बने।
उन्होंनेअपनेपतिसरसी.पी. को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन पर एक पुस्तक लिखने की सलाह दी। भारत के महान प्रधानमंत्री होने के बावजूद वे इतने विनम्र थे। भारतीय राजनीति में विनय के प्रेरणा–दायक एक आदर्श–स्वरूप थे। उन पर कई वर्षों की शोध और कड़ी मेहनत के बाद सर सी.पी. ने पुस्तक पूरी की। श्री माताजी ने कृपा करके पुस्तक का विमोचन निजामुद्दीन स्काउट्स मैदान में 3 दिसम्बर सन् 1994 को किया। उन्होंने अपने पति को उनकी इच्छा पूर्ण करने के लिए गहरी कृतज्ञता ज्ञापित की, “पुस्तक का महत्व विशेष है, जिसके द्वारा बहुत से लोग अपना चेहरा दर्पण में देख पायेंगे और स्वयं को सुधार सकने के योग्य हो सकेंगे, ऐसा मैं महसूस करती हूँ। और हो सकता है, राजनीतिक–क्षेत्र में हम समझदार और बेहतर लोगों को पा सकें।”
पुस्तककीएकप्रतिमेंबर्सऑफ़पार्लियामेंट (सांसदों) को भेजी गई, ताकि वे समझ सकें कि उनका जीवन ऐसा बहुत उच्च और मूल्यवान था, जो कि पैसे और सत्ता की तुलना में उच्चतर और कीमती था।
पुस्तकपढ़नेकेबादकईराजनीतिज्ञोंनेश्रीमाताजीकेमात्रदर्शनकीतीव्रइच्छाव्यक्तकी।प्रारम्भमेंश्रीमाताजीउनसेबहुतसतर्करहीं, “जब व्यापारी लोग घाटे को पूरा करना चाहते हैं, मेरा आशीर्वाद खोजते हैं, अब राजनीतिज्ञ लोग मेरा आशीर्वाद चुनाव जीतने हेतु चाहते हैं। चुनाव जीतने के बाद वे मेरा आशीर्वाद मंत्री बनने के लिए चाहते हैं। जब मंत्री बन जाते हैं, वे प्रधान–मंत्री बनना चाहते हैं, किन्तु वे आत्मा नहीं बनना चाहते। मैंने व्यक्तिगत दर्शन देने बन्द कर दिये हैं और कहा है कि वे लोग सहज–योग के कार्यक्रम में आएं, जहां उन्हें उनका आत्म–साक्षात्कार मिल सके। तब, उन्हें उनकी कुण्डलिनियाँ श्री राज–लक्ष्मी का आशीर्वाद प्रदान करेंगी।”
औरउन्हेंआशीर्वादमिला।एकमहत्वपूर्णराजनीतिज्ञजिन्हेंसहज–कार्यक्रम में उनका आत्म–साक्षात्कार मिला बाद में उप–प्रधानमंत्री के पद तक उन्नत हुए। उन्होंने शीघ्रता से महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए श्री माताजी द्वारा दिए गए सुझावों को कार्यान्वित किया।
इससेकुछयोगियोंकोभ्रष्टाचारसेलड़नेकीप्रेरणामिलाऔरउन्होंनेएकराजनीतिक–पार्टी ‘सत्य–मार्ग’ आरम्भ की। श्री माताजी ने चेताया, “ग्रुपिज्म (समूह बनाना) राजनीति से प्रारम्भ होता है।” उन्होंने श्री माताजी की चेतावनी को ध्यान में नहीं रखा और शीघ्र ही, महत्वाकांक्षी योगियों ने ग्रुप बनाना शुरू कर दिया। उनके अहंकार को नीचे लाने के लिए परम–चैतन्य ने हस्तक्षेप किया और ये चुनाव हार गए। उन्हें समझ आ गया कि उनका परमात्मा से संपर्क (योग) चूक गया था और उन्होंने पार्टी समाप्त कर दी। उन्होंने भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए श्री माताजी से श्री राज–लक्ष्मी के आशीर्वाद हेतु विनम्र प्रार्थना की। 4 दिसम्बर को श्री माताजी ने श्री राज–लक्ष्मी के आशीष की वर्षा की।
पूजाकेबादएकआइ.ए.एस. (भारतीय प्रशासनिक सेवाएं) आफीसर को भ्रष्टाचार से लड़ने की प्रेरणा मिली। उस अधिकारी की पत्नी श्री माताजी से मिली, ताकि उसे राजनीति में जाने से रोका जा सके, क्योंकि उसके राजनैतिक–विकास (वृत्ति) को समर्थन देते रहने के लिए उनके पास पैसों funds की कमी थी। अपनी आँखों में क्षण–भर के लिए एक चमक के साथ श्री माताजी ने उसे हरेक चीज को श्री राजलक्ष्मी पर छोड़ने के लिए कहा। उस व्यक्ति ने न केवल पार्लियामेंट का चुनाव जीता, बल्कि वह केन्द्रीय वित्त मंत्री के पद तक ऊपर उठा।
6 दिसम्बर को मेहरचंद महाजन डी.ए.वी. कॉलेज फॉर वीमेन ने श्री माताजी को चंडीगढ़ आमंत्रित किया। विद्यार्थियों ने कौतूहल पूर्वक अपना आत्म–साक्षात्कार प्राप्त किया और सहज योग का प्रसार विद्यार्थियों में किया।
अगलाकार्यक्रमयमुनानगरमेंहुआ, जहां एक अंधी लड़की स्टेज (मंच) तक जय श्री माताजी उच्चारित करती हुई दौड़ पड़ी। श्री माताजी ने उसकी पृष्ठ आज्ञा back agnya पर कार्य किया और उसने अपनी आँखें खोलीं। उसने श्री माताजी की चूड़ियों के दर्शन किए, फिर बिन्दी और तब उनकी साड़ी के दर्शन कर कहा, “श्री माताजी परमात्मा हैं।”
जनता (जनार्दन) में विद्युत–संचरण हो गया और उनके जयकारों, ‘जय श्री माताजी’ ने उन्हें शीतल लहरियों में नहला दिया।
श्रीमाताजीप्रसन्नथींऔरउन्हेंपूजाकाआशीर्वाददिया।उन्होंनेनवजातसाक्षात्कारियोंकामार्गदर्शनकिया, “ध्यान एक दिमागी (क्रिया) विधि नहीं है। तुम्हें अपने आध्यात्मिक–विकास के लिए निर्विचार चेतना (ध्यानावस्था) में जाने का अभ्यास करना होगा। प्रकृति की ओर चित्त देकर निर्विचार–चेतनावस्था में जाएं। प्रकृति को चिन्ता करने की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि यह पूर्णतया परमात्मा के नियंत्रण में रहती है।”
श्रीमाताजीकीबेशकीमतीसलाहकोध्यानमेंरखतेहुएबच्चोंनेप्रकृतिकेसाथअपनाआन्तरिकसमन्वयबैठाया।हिमालयकीतराईकीगुनगुनातीस्वरलहरी–सी उठती हरियाली का अपने नेत्रों से पान किया, जिसने उनके आज्ञा चक्र को बहुत शान्ति प्रदान की और वे देहरादून के कार्यक्रम में चैतन्य–लहरियों से रोमांचित होते हुए आए।
10 दिसम्बर को श्रीमाताजी ने जयपुर में हजारों साधकों को आत्म–साक्षात्कार प्रदान किया। आगामी दिन, उन्होंने श्री आदिशक्ति पूजा का आशीर्वाद दिया। उन्होंने बताया कि राजस्थान में सती देवी के रूप में आदिशक्ति ने अवतार लिया था।
अपनेपुरखोंकीपरम्परामेंवेपरम्परागतराजस्थानीसाड़ीमेंश्रृंगारितहोपधारीं।उन्होंनेप्रकटकियाकिउनकासम्बन्धराजस्थानसेबहुतपुरानाथा, क्योंकि उनके पूर्वज चित्तौड़गढ़ के पुरातन सिसौदिया राजवंश से सम्बन्धित थे।
23 दिसम्बर को श्री माताजी गणपतिपुले पधारे। एक भ्रष्ट अधिकारी कैम्प–साइट के निर्माण में रूकावटें डाल रहा था, क्योंकि उसे पैसा चाहिये था। अपने धर्म के पक्के होने से सहज–योगियों ने रिश्वत देने से इन्कार कर दिया और श्री माताजी से प्रार्थना की। श्री माताजी के आगमन के पूर्व ही वह भ्रष्ट अधिकारी बर्खास्त कर दिया गया था। और कैम्प–साइट (शिविर –स्थल) का निर्माण ऐन वक्त पर पूर्ण हो गया।
अंतिममिनटमें, आवास की समस्या उठ खड़ी हुई, क्योंकि 1000 योगीजन अप्रत्याशित रूप से हाजिर हो गए। श्री माताजी ने बताया कि वे लोग अपनी आत्मा के आनन्द के लिए आए थे और शारीरिक सुख हेतु नहीं। जब आपस में बच्चे प्यार करते हैं, तो उन्हें आत्मिक–आनन्द मिलता है। जैसे ही श्री माताजी ने उन्हें आत्मा का आनन्द दिया, सभी बच्चों के लिए जगह का विस्तार हो गया!
27 दिसम्बर को श्री जीसस पूजा पर श्री माताजी ने समझाकर कहा कि ईसा का जन्म बहुत अभाव में (गरीब परिस्थितियों में) हुआ, केवल यह स्पष्ट करने के लिए कि आध्यात्मिकता किसी भी परिस्थितियों में, किन्हीं भी समस्याओं में रह सकती है। “हरेक चीज में केवल एक चीज है और वह है प्यार…यह सच्चा होना चाहिए। जीवन के हर क्षेत्र में हरेक सहज–योगी के भाव (चेहरे के भाव/संकेत) स्वाभाविक होने चाहिए।”
बच्चोंकोदियाहुआपाठ (शिक्षा) व्यर्थ नहीं गया और शादियों (विवाहोत्सव) की उद्घोषणा के साथ, वास्तविक और स्वाभाविक प्यार सहज ही बहना शुरू हो गया। जिनके पास कुछ नहीं था, उन्हें जिनके पास थोड़ा–सा था– उन्होंने मदद की। और यह थोड़ा–थोड़ा काफी लम्बा चलता रहा। योगीजन इन दुल्हिनों के लिए साड़ी व जेवर ले आए, जो खरीद–पाने में असमर्थ थे। जब श्री माताजी ने अपने बच्चों के बीच यह प्यार देखा, तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा, “मेरा सपना– एक विश्व का, सच हो गया है।”
1995
अध्याय – 35
संक्रान्तिपूजापरश्रीमाताजीनेतिलवशक्करकीमिठाईयांलीवरकीगर्मीकोसंतुलितकरनेकेलिएशक्करकीशीतलताकेसाथदेकरआशीर्वादितकिया।उनकास्वास्थ्यपुणेकीसामूहिकताकीगर्मराइट–साइड से तकलीफ में था। उन्होंने याद दिलायी, “हमने 5 पूजायें की हैं, किन्तु सहज–योगी चैतन्य लहरियां नहीं अवशोषित करते हैं और मुझे कष्ट होता है। तुम्हें स्वयं को पूजा हेतु तैयार होना है, जब आप पूजा में आते हैं, आपको बहुत स्थिर–मस्तिष्क होना है, ताकि आप गहराई में जा सकें।”
एकयुवायोगीनेपूछायदिनकारात्मकतासृष्टिकेसृजनसेआरम्भहुईहोतीतो।
“नहीं, नकारात्मकता तब शुरू हुई, जब मानव मध्य से बायें या दायें हटा। नकारात्मकता हमारे बायें या दायें ओर हटने का उप–फल by product है। नकारात्मकता स्वयं का मजा लेती है। व्यक्ति को स्वयं को दृढता से सकारात्मकता में रहना चाहिये, तब नकारात्मकता उसे छू भी नहीं सकती है, यह जानवरों में भी आ सकती है। सभी विषाणु virus (नकारात्मकता) मरे हुए जीव हैं।”
प्रश्न– श्री माताजी, क्या आपके प्रति समर्पण अहंकार को समाप्त नहीं करता है?
उत्तर– यह होना चाहिये, किन्तु होता नहीं है। यहाँ तक कि आप मेरे को समर्पित हैं, यह सोच/अहसास भी एक अहंकार ही है। अतः अहंकार पर आत्मावलोकन द्वारा कार्य किया जाना है, किन्तु मुझे आत्म–समर्पण करना–यही सबसे ज्यादा कार्य करता है, सहायक होता है। मुझे आत्म–समर्पण होना– सबसे ज्यादा सहायक है। मानव ने ईश्वरीय योजना से बाहर स्वयं के लिए, स्वयं की उन्नति हेतु सृजन किया है। अंतिम और सबसे सूक्ष्म वस्तु बची वह अहंकार है। यहाँ तक कि कुछ संतों (ऋषियों) ने भी इसके कष्ट उठाए थे।
प्रश्न– क्या हम सहज–योगी आपस में व्यापार कर सकते हैं?
उत्तर– मुनाफा सहज–योग से बाहर कमाया जा सकता है। सहज–योग का उपयोग व्यापार के लिए न करें या पैसा कमाने में न करें। पैसों के बारे में सतर्क रहें।
श्रीमाताजीकाबचपनछिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश ) में गुजरा। एक बार जब वे अपने पिताश्री के साथ जगदलपुर के जंगलों में बाघ के शिकार पर थीं, उन्होंने आदिवासियों के जीवन में गरीबी देखी ओर उनका हृदय पीड़ा से कराह उठा। वे बीमार पड़ गईं और उनके पिताश्री ने उन्हें सान्त्वना देने की कोशिश की। उनकी तकलीफ तब तक दूर नहीं हुई, जब तक कि उनके पिताजी ने एक गाड़ी भर कर अनाज व कपड़े आदिवासियों के लिए नहीं भेजे। उन्होंने सौगन्ध ली, बड़ी होकर वे उनकी सहायता करेंगी।
श्रीमाताजीअपनावादानहींभूलीं।संक्रान्तिकेमंगलमयपर्वपरउन्होंनेआदिवासीजन–जातियों की मदद के लिए एक कल्याणकारी योजना A welfare project शुरू किया। आरम्भ में, उन्होंने उन्हें आर्थिक मदद देने की सोची, किन्तु उनके भाई ने उनका विचार बदलवाया, यह कहते हुए कि पैसे देने पर आदिवासी उसे देशी शराब में उड़ा देंगे।
उन्होंनेपतालगायाकियद्यपिवेलोगअपनेकाममेंनिपुणहैं, किन्तु उनकी डिजाइनें सीमित थीं। पीढ़ी दर पीढ़ी वे उन्हीं डिजाइनों को दोहराते रहे हैं। अतः खरीददार उनके सामान products की डिजाइनों की एक–रसता से संपृक्त (थक गए) हो गए और उनका विक्रय sales धीरे–धीरे कम होता गया। श्री माताजी ने नई डिजाइनें तैयार कीं और उन्हें कच्चा माल खरीदने हेतु अग्रिम राशि advance payment दी, ताकि नई डिजाइनों पर कार्यान्वयन शुरू हो। जैसे ही, ईश्वरीय–कलाकार ने सृजन का कार्य शुरू किया, चैतन्य ने भौतिक–पदार्थों की गहराई में भेदना शुरू किया। उनके वात्सल्य की गति ने भौतिक–पदार्थों में चैतन्य अवशोषित कराना शुरू कर दिया। चैतन्य ने मस्तिष्क में ऐसी विलक्षण (आश्चर्य–युक्त) नमूनों का विचार उत्पन्न किया कि वे स्वयं उनके विस्तृत–दृश्य पर चौंक उठीं, “छोटी–छोटी चीजें जिन्दगी को इतना सुन्दर बना सकती हैं, इसी तरह से चैतन्य पदार्थों में प्रवेश कर आनन्दित कर सकता है, जब इतने सारे आत्म–साक्षात्कारी कलाकार सृजन शुरू करेंगे, पूरा परिदृश्य बदल जायेगा।”
श्रीमाताजीनेउनकीपॉटरीकेमार्केटिंग (विपणन) हेतु देश के बाहर वितरण केन्द्र स्थापित किए। इस योजना ने एक जबरदस्त माँग की शुरूआत यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से प्रारम्भ की। श्री माताजी ने इस प्रकार की माँग के बारे में मन में सोचा भी नहीं था और उन्होंने अपने भाई बाबा मामा को इस प्रोडक्शन के प्रबन्धन हेतु नियुक्त किया। आदिवासी जन–जातियों की कमाई तीन गुनी हो गई और इस व्यापार का लाभ आदिवासियों के कल्याण के लिए वापस उपयोग किया गया।
इसप्रोजेक्टकोसंगठितकरनेकेमध्यमेंश्रीमाताजीकेभाईबालासाहिबकोएकहृदयाघातकीतकलीफहुई।श्रीमाताजीनेऑस्ट्रेलियनटूअरकोस्थगितकियाऔरभाईकीदिन–रात सेवा–सुश्रुषा की। उनकी नाजुक देखभाल से वह स्वस्थ हो गए और फरवरी में श्री माताजी सिडनी के लिए रवाना हो गईं।
जबवे 12 फरवरी को सिडनी पहुंचीं, ऑस्ट्रेलिया गंभीर सूखे की चपेट में था। सहजी बच्चों ने बारिश के लिए प्रार्थना की। श्री माँ ने सोद्देश्य आकाश की ओर देखा ओर दूसरे दिन बारिश होना शुरू हुई। इसके बाद बारिश ने श्री माताजी के ऑस्ट्रेलिया टूअर की दिशा कभी नहीं छोड़ी।
मेलबोनकार्यक्रममेंश्रीमाताजीनेनएयुगकीकल्पनाकी, जहां आत्मा का आन्दोलन कुण्डलिनी द्वारा संचालित होना था। उन्होंने खेद जताया कि कैसे मानव हमेशा सभी महान धर्मों और अवतरणों के पीछे छिपे हुए महत्वपूर्ण बिन्दु को भूल गया, जिस बिन्दु से उनका उद्गम हुआ।
सिडनीकेसाधकइसबिंदुकोभूलेनहींओरसिडनीस्टेटथियेटरमेंसमूहोंमेंपहुंचे।सहजयोगियोंकोनएसाधकोंकीउमड़तीसंख्याकेलिएअपनीसीटेंखालीकरनीपड़ीं।श्रीमाताजीनेउन्हेंयाददिलायी, वे उनके प्रश्नों के उत्तर कई वर्षों से देती रही हैं और बुद्धि– सम्पन्न को संतुष्टि मिल गई, इससे उन्हें आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने में मदद नहीं मिली। साधकों को तत्व की बात समझ में आ गई ओर उन्होंने नम्रतापूर्वक श्री माताजी को अपने हृदयों में दृढ़ता से धारण कर लिया।
सामूहिकतानेश्रीमाताजीकेसंदेशकेसारको 24 फरवरी को शिवरात्रि शिविर में प्रक्षेपित किया। उन्होंने भगवान शिव पर एक नाटक का मंचन किया औेर दिखाया कि मनुष्य ने कैसे इस बिंदु को बार–बार छोड़ दिया। श्री माताजी मर्म–स्पर्शी हो बोलीं, “यद्यपि इस नाटक ने मुझे भूतकाल की याद दिलायी। मैं भूतकाल के बारे में नहीं सोचती या क्या घटित हुआ था।”
श्रीमाताजीपूजाप्रवचनमेंविषयपरलौटीं, “सहज योग इस धरती पर मानवता को सभी प्रकार की तकलीफों से बचाने के लिए आया है। सहज–योग का प्रसार प्यार व करूणा से करें, न कि बढ़ी–चढ़ी बातों से या आक्रामकता से।”
श्रीमाताजीकीकरूणाविश्वकोबचानाचाहतीथीओरइसेएकसामूहिककार्य (लक्ष्य) होना था और कोई दूसरा रास्ता नहीं था!
श्रीमाताजीकीकरूणा (दयालुता) की लहरें जापान, हाँगकाँग, ताइवान, मलेशिया और बैंकाक तक फैलीं। थाई देश के राजा रामा (नवम्) को हाल ही में दिल का दौरा पड़ा था। श्री माताजी ने उन्हें उनके फोटाग्राफ द्वारा चैतन्य प्रदान किया। अगले दिन ‘बैंकाक पोस्ट’ ने खबर दी कि महाराजा रामा (नवम्) की हालत में पर्याप्त सुधार था और जल्दी ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी।
श्रीमाताजीनेनएलोगोंकोसहज–योग संबंधी जानकारी कैसे प्रदान की जाय, इस पर सहज–सामूहिकता की चेतना (सर्तकता) जाग्रत की। उन्होंने बताया, “अब तुम्हें मालुम होना चाहिए कि हम लोग प्यार की शक्ति में विश्वास करते हैं। हमें नए साधकों को अपनापन, शांतिपूर्ण और अति–सुरक्षित महसूस कराना है– सहज–योग सामूहिकता में आकर।”
श्रीमाताजीनेसाधकोंकोप्रभावितकियाकिउनकेवीडियोसहज–सभाओं में दिखाए जायें, “तब देखें, यदि उन्हें कोई प्रश्न हों, शांतिपूर्वक उनको जवाब देते हुए, ध्यान में चले जायें…. इस बिन्दु (स्थिति) पर पहुंचकर उनसे बात करना, उन्हें खराब कर देगा ओर हमें भी खराब कर देगा।”
उन्होंनेताइवानीबच्चोंकोअन्तर्–अवलोकन (अपने भीतर झांकना) की सलाह दी, “आत्म–अवलोकन यह दिमागी (मस्तिष्क) क्रिया–कलाप नहीं है। जब हम निर्विचारिता में होते हैं, हम स्वतः ही आत्मावलोकन की स्थिति में होते हैं। हम स्वयं को स्वयं से हटकर देखते हैं, खुद के लिए दृष्टा बन जाते हैं।”
श्रीमाताजीकेटोक्योआगमनपरमार्चप्रथमदिनपरपंच–तत्व इतने उत्साहित हो गए कि अचानक बारिश, बर्फबारी snowing में बदल गई, जो कि मौसम के लिए असामान्य था।
श्रीमाताजीनेहाँगकाँगमें 1000 लोगों को आत्म–साक्षात्कार दिया ओर दूसरे 500 लोगों को कुआलालम्पुर में आत्म–साक्षात्कार दिया– दिल्ली के लिए रवाना होने से पहिले।
1995
अध्याय – 36
18 मार्च को होली के जीवन्त रंगों ने श्री माताजी का दिल्ली में स्वागत किया। श्री माताजी ने होली का महत्व स्पष्ट किया, “लोग बाह्य में होली मनाते हैं। असली होली हमारे अंदर जलाई जानी चाहिये…. सर्वप्रथम। जब आप अन्दर छिपी नकरात्मकता को जलाते हैं, आप तपकर शुद्ध सोना हो जाते हैं। तब आप दूसरों को आनन्द दे सकते हैं।”
जैसेहीबच्चोंनेअपनीछिपीहुईनकारात्मकताकोजलाया, वे अपने अंतस् में देवी माँ के योग को बेहतर (ज्यादा परिपक्वता से) महसूस कर सके थे। उन्होंने श्री माताजी के विवेकपूर्ण ज्ञान के मोतियों को एकत्र कर लिए, “यदि इस खजाने को आप अपने तक ही सीमित रखते हो, आप कभी खुश नहीं हो सकते।”
20 मार्च को श्री माताजी का ‘जन्मदिवस बधाई समारोह’ का आयोजन निजामुद्दीन स्काउट ग्राउन्ड में हुआ। चीफ इलेक्शन कमिश्नर श्री टी.एन. शेषन ने ललिता–सहस्रनाम के कुछ पद सुर में सुनाए। श्री माताजी ने अनुक्रिया की, “72 वर्ष बीत गए। मुझे अपनी उम्र का अहसास नहीं है, क्योंकि मैं इस बारे में नहीं सोचती। यदि मेरा प्यार कुछ करना चाहता है, तो वह विश्व में हरेक को आत्म–साक्षात्कार देना है, जहां भी साधक हों।”
तुर्कीस्तानीबच्चोंनेउन्हेंजन्म–दिवस पूजा पर पुष्प अर्पित किए और बताया कि एक अंग्रेज युवा ने सहज–योग के विरोध में मीडिया में शब्दों द्वारा एक हिंसक आक्रमण शुरू किया। श्री माताजी ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, “परम चैतन्य हरेक चीज की देखभाल करते हैं। यह शक्ति बहुत ही जाग्रत (सतर्क) और योग्य है। आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं, जहां आप पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं।”
जबवहलड़काटर्की (तुर्किस्तान) आया, उसने अपना गुनाह स्वीकार किया, लाखों–लाखों टेलीविजन दर्शकों के सामने कि जो भी उसने कहा, वह सही नहीं था। इसके अतिरिक्त उसने घोषणा की कि सहज योग एक पुरातन दर्शन है और एक पंथ नहीं है। उसने अपने द्वारा हुई सभी समस्याओं के लिए क्षमा माँगी।
सहजकार्यक्रम– दिल्ली में राष्ट्रीय चैनल ‘दूरदर्शन’ के डायरेक्टर को आत्म–साक्षात्कार मिला। उन्होनें श्री माताजी को प्राइम टाइम इन्टरव्यू के लिए आमंत्रित किया, किन्तु वे दूरदर्शन स्टुडियो जाने की इच्छुक नहीं थीं। आखिर में, उनका साक्षात्कार उनके निवास–स्थान पर आयोजित किया गया। इन्टरव्यू (साक्षात्कार) के ठीक पूर्व जैसे ही एक रजोगुणी योगी ने श्री माताजी को पुष्प अर्पित किए, अचानक, उनके दायें पैर में ऐंठन शुरू हो गई। टी.वी. चैनल कर्मचारीगण अवाक् रह गए, धीरे–धीरे सहजी बच्चों ने श्री माताजी के दायें पैर से चैतन्य–लहरियां ग्रहण कीं और उनके दायें पैर की ऐंठन शांत हो गई। टी.वी. चैनल ने प्रश्न किया, “आपके शरीर ने दूसरों के शरीर से नकारात्मकता को क्यों अवशोषित किया।” उत्तर में श्री माताजी ने उन्हें अपने हाथ उनकी ओर खोलने को कहा और स्वयं चैतन्य–लहरियों को महसूस करने के लिए कहा।
यहपरमचैतन्यकातरीकाउन्हेंआस–पास लाने का था, तत्काल उन्हें उनका आत्म–साक्षात्कार प्राप्त हो गया, वे दर्शकों को चैतन्य–लहरियां पहुँचाने वाले माध्यम बन गए। इस तरह, हजारों दूरदर्शन दर्शकों को उनका आत्म–साक्षात्कार टी.वी. स्क्रीन के माध्यम से प्राप्त हो गया।
31 मार्च को श्री माताजी गुड़ी पड़वा के लिए मुंबई के लिए रवाना हुईं। एक लम्बी कतार उनके घर के बाहर दर्शनों के लिए प्रतीक्षारत थी। वे घर की बालकनी में समुद्र का मजा उठाते हुए लम्बे समय तक बैठी रहीं, “लोगों को मेरा दर्शन या पूजा चाहिये। मेरे दर्शनों का क्या लाभ है, यह बेहतर है कि वे स्वयं का दर्शन करें। बिना ध्यान के दर्शन या पूजा सहायता नहीं कर सकती है। यहाँ तक कि बहुत अच्छे योगीजनों का भी पतन हो जाता है, क्योंकि वे ध्यान नहीं करते।”
अपनेकारूण्यमेंश्रीमाताजीनेयोगियोंकोरामनवमीपरदर्शनोंकाआशीर्वादप्रदानकिया।उन्होंनेध्यानकेन्द्रोंकोमार्ग–दर्शन दिया, “केवल मेरे टेप्स (प्रवचन) ही केन्द्रों पर लगाए जायॅं। जो टेप्स में है, वही प्रमाणिक है। कोई भी सहज ट्रीटमेंट (सहज–उपचार), भाषण या स्वयं को केन्द्रों पर प्रक्षेपित करके आगे निकलने की कोशिश न करे। अगुआओं के बारे में कुछ भी विशेष नहीं है। उनकी नियुक्ति मात्र मेरा संवाद (आदेश) सामूहिकता तक पहुँचाने/संचारित करने मात्र तक है। तुम्हें झूठे गुरूओं के बारे में चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। मैं उनकी खबर ले रही हूँ। लोग तुम्हें देखकर ही सहज–योग में आएंगे।”
10 अप्रैल को एक मेगा प्रोग्राम (विशद कार्यक्रम) नेताजी इनडोर स्टेडियम, कोलकाता में संचालित हुआ। बंगाल में सहज–योग के प्रसार से वे प्रसन्न थीं, “सहज–योग प्रसार के लिए, सहज–योगियों के पूरे हृदय के अलावा कुछ भी नहीं चाहिये, किन्तु उसमें कुछ भी बौद्धिक–गणना नहीं होना चाहिये।”
श्रीमाताजीप्रसन्नथींऔर 14 अप्रैल को योगियों को ईस्टर–पूजा का आशीर्वाद मिला। उन्होंने योगियों को जीसस क्राइस्ट (ईसा मसीह) की तरह पुनर्जीवित होने के लिए प्रभावित किया, “मृत्यु के बाद नहीं, किन्तु अभी, जब तुम जीवित हो।”
1995
अध्याय – 37
25 अप्रैल को श्री माताजी सहस्रार पूजा हेतु कबेला पधारीं। उनके आगमन से पूर्व भारी बर्फबारी हो चुकी थी और जमीन, टेंट लगाने में खम्भे poles गाड़ने के लिए बहुत सख्त हो चुकी थी। ठीक जैसे ही उनकी उड़ान flight आयी, आकाश साफ हो गया और सूर्यदेव अपनी किरणों से श्री माताजी के स्वागत में मुस्करा रहे थे।
ऑस्ट्रियामेंसूचनापहुंचीकिएकबारफिर EDFI संस्था ने धर्मशाला स्कूल को बदनाम करने के लिए बगावती (असंतोषित) दादा/दादी के साथ मिलकर एक षडयंत्र रचा। दादा/दादी ने अपने 13 वर्षीय पोते के संरक्षण (कब्जे में लेने) की मांग की, यह दोषारोपण करते हुए कि बच्चे की माँ उसे धर्मशाला स्कूल भेजकर अपने कर्तव्य की अनदेखी कर रही है। ऑस्ट्रिया के सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार, ऑस्ट्रियन राजदूत ने धर्मशाला स्कूल का मुआयना किया और एक सकारात्मक–रिपोर्ट तैयार की। उसके बाद, स्थानीय अधिकारियों ने बच्चे का परीक्षण किया और उसे असाधारण तौर पर वयस्क पाया। कोर्ट ने पाया कि वह बच्चा भारतीय–स्कूल में शिक्षण प्राप्त कर अपनी कक्षा से पर्याप्त रूप से आगे था। अंततः कोर्ट ने (डिक्री) सरकारी आदेश दिया कि बच्चे की माँ ने अपने कर्तव्य में कोई कोताही नहीं बरती थी और उसे अपने बच्चे को धर्मशाला स्कूल भेजने का हर अधिकार था, निर्णयानुसार बच्चे का कब्जा (संरक्षण) उसके दादा/दादी को नहीं दिया जाना था। दादा/दादी द्वारा यह दोषारोपण कि सहज–योग एक पंथ है– वह बेअसर (रद्द) हुआ।
किन्तु EDFI ने क्रूरतापूर्वक अपना तथाकथित धर्म–युद्ध सहज योग के विरूद्ध स्विटजरलैंड में जारी रखा। स्विस कोर्ट ने मनो–चिकित्सकों को यह सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त किया कि धर्मशाला–स्कूल भेजे गए स्विस बच्चे सामान्य थे। मनोचिकित्सकों ने बच्चों के दिमागी–स्तर से पूर्णतया संतोष व्यक्त किया। इसके बाद जज (न्यायाधाीश) ने हरेक बच्चे का साक्षात्कार विस्तारपूर्वक लिया और बच्चों की कुशाग्रता, विस्तृत सोच, सामान्य ज्ञान और दयालुता से ख़ुशी से आश्चर्य में थे। एक बार पुनः, बेल्जियम में EDFI ने अपना खेल खेलने की कोशिश की, किन्तु कोर्ट ने सहज–योग के पक्ष में निर्णय दिया।
इनप्रकरणोंनेआम–जनों की पूछताछ की इच्छा को उत्तेजित किया और कई पत्रकारों ने श्री माताजी का साक्षात्कार लेने की इच्छा व्यक्त की। श्री माताजी उदास हो गईं, ”जब आप सत्य की बात करते हो, जिस तरह से लोग आपके पीछे पड़ जाते हैं…… यह एक बहुत खतरनाक कार्य भी है, वैसे लोगों से लड़ना, जो हमेशा क्रूरता, असत्य, आक्रामकता से प्रीति बनाए रखने के प्रयास में रहते हैं। यह सब आत्म–घाती तत्व हैं। किन्तु, इस दुरावस्था (गड़बड़ी) में, इन समस्याओं के बीच, लोग सत्य प्राप्त कर लेंगे।”
एकसाक्षात्कारमेंश्रीमाताजीनेवैश्विक–धर्म की जरूरत पर जोर दिया, “एक धर्म, जहां आप परमात्मा के साथ एकाकारिता में हों।”
पत्रकारोंनेअनुक्रियादी responded, “हम पूरे विश्व में एक धर्म नहीं चाहते हैं।”
श्रीमाताजीनेइशाराकिया, “आप एक वैश्विक–धर्म नहीं स्वीकार करना चाहते, क्योंकि आप लड़ना चाहते हैं।”
6 मई को कबेला में सहस्रार खुलने की 25th साल–गिरह (वर्षगांठ) मनायी गयी। सभी देशों के योगियों ने सांकेतिक रूप से अपने देशों के झंडे श्री माताजी को भेंट किए, इस प्रार्थना के साथ कि वे पूरे विश्व का सहस्रार खोलें।
आदिशक्तिकीसर्व–व्याप्त प्रेम–शक्ति ने उनके बच्चों के हृदयों को भेद कर दिया और उन्हें एक सामूहिक हृदय कल्कि के बंधन में बाँध दिया। श्री कल्कि के प्रकाश ने उनकी शुद्ध इच्छा का भेदन कर कार्यान्वयन करने और जो सही, शुभ, रचनात्मक और विश्व के लिए सहायक हो, उसे कार्यान्वित किया।
श्रीमाताजीकोबच्चोंकीशुद्धइच्छाकेइसअदभुतविकासपरअपनीभावनाओंकोव्यक्तकरतेसमयशब्दोंकीकमीलगी।
पूजाकेसमयश्रीमाताजीनेपिछले 25 वर्षों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कुछ लोग उनके प्रति बहुत ही क्रूरतापूर्ण रहे। बहुत से संगठन तथाकथित धर्म खासकर फ्रेंच मीडिया उनके पीछे पड़े रहे, “मैं वास्तव में आश्चर्य–चकित हूँ कि ये 25 वर्ष किस तरह से बीते, बहुत प्रकार की बेबकूफी–भरी समस्याओं से और अच्छी चीजों से भी, ऐसा मिश्रण– किन्तु, इन सभी चीजों (मामलों) ने मुझे कभी विचलित नहीं किया। मोटे तौर पर, यह एक किसी बड़े जहाज में बैठने जैसा लगा। हम कह सकते हैं, हम सब परमात्मा के प्रेम शक्ति के संरक्षण में पहुंचा दिए गए हैं, और यही आनंद हरेक को उठाना है। यदि एक व्यक्ति के लिए वह करुणा और निस्वार्थ प्रेम है, तो वह व्यक्ति उस प्रेम को सभी को प्रसारित कर सकता है। इस करूणा का संवाद बहुत ही सुंदर है, इसे शब्दों में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता है।”
श्रीमाताजीकेशब्दोंनेसहस्रारकीएकहजारपंखुड़ियाखोलदीं, “हम कभी नहीं सोचें कि आप दूसरों से बेहतर हैं। कभी नहीं सोचें कि आप दूसरों से विशेषतर हैं। किसी ने कहीं आपको तकलीफ दी हो (क्षति पहुंचाई हो)- कोई फर्क नहीं पड़ता। किसी ने आपको डाँट दिया हो, कोई फर्क नहीं पड़ता। आपकी क्षमता है, दूसरों को प्यार करना। आप स्नेही और दयालु बने रहें।”
माँकेबच्चोंनेगंम्भीरतापूर्वकवचनदिया।उनकीकरूणानेबच्चोंकोशक्तिप्रदानकीओरउन्होंनेवचननिभानेकाभरोसाजताया।जैसाउन्होंनेसोचा, यह बिल्कुल भी कठिन नहीं था।
एकयोगीजोकैमरूनसेथे, उन्होंने अपने भाई को कैंसर से बचाने के लिए, (कृतज्ञता स्वरूप) श्री माताजी को लाल गुलाब का पुष्प–गुच्छ (बुके) भेंट किया। वह व्यक्ति केवल श्री माताजी के फोटोग्राफ से चैतन्य ग्रहण कर स्वस्थ हो गया था। श्री माताजी प्रसन्न थीं और उन्होंने पूछा कि कैमरून में कितने योगी थे। उसने जवाब दिया– पुष्प–गुच्छ (बुके) में 200 गुलाब थे, हर एक योगी से एक गुलाब (हर बच्चे से एक गुलाब) श्री माताजी ने प्रत्येक योगी को आशीर्वाद देते हुए 200 छोटे चांदी से बने गणेश प्रदान किए।
इसकेतुरन्तबाद, श्री माताजी सहज–कार्यक्रम हेतु मिलान रवाना हुईं ‘ग्रान्दे माद्रे’ उच्चारित करते हुए उनका अभिवादन किया गया। श्री माताजी इटालियन–हार्ट (इटली के हृदय) की विशेषताओं से प्रसन्न थीं, और उनकी कला–कृतियों में उसके प्रक्षेपण की प्रशंसा की। यद्यपि, एक छलपूर्ण स्थिति पैदा हुई, दो संगठन–कर्ताओं के बीच प्रति–द्वंद्विता की वजह से सामूहिकता विभाजित हो गई थी। दोनों में से प्रत्येक अपनी आज्ञा–पत्र को मनवाना चाहता था, जैसे कि वह श्री माताजी के ज्यादा नजदीक हो। श्री माताजी ने समझाया, “आप अपने प्यार को तौल नहीं सकते, आप उसकी काबिलियत (योग्यता) नहीं बता सकते, आप उसकी मात्रा नहीं बता सकते।”
किन्तुवे (तत्व) बात को भूल गए और परिणामतः परम चैतन्य को हस्तक्षेप करना पड़ा। अनायास उनमें से एक योगी बीमार हो गया। दूसरे योगी को उसके प्रति बड़ी दया (करूणा) महसूस हुई और उसने पहिले वाले की रात–दिन सेवा की। बीमार योगी इतना अभिभूत हो गया कि उसका विरोधी स्वभाव स्थायी भाई–चारे में परिवर्तित हो गया। श्री माताजी ने दोनों को आशीर्वाद दिया, “यदि आप अपना हृदय खोलते हो, यह सहस्रार खोलने जैसा है।”
श्रीमाताजीव्हायाजिनोआकबेलालौटआयीं।कार्यक्रमकेबादबच्चोंनेउनसेएकपिजैरियाको (समुद्र के सामने) आशीर्वाद देने हेतु प्रार्थना की। श्री माताजी ने अपनी कल्पना के थिएटर ‘थियेटर ऑफ़ इटरनल वेल्युज’ (अमर मूल्यों का नाट्य–गृह) के बारे में बताया, “यह उच्चतम कला–कृतिक मापदण्ड़ों के अनुसार व्यावसायिक होना चाहिये।” उन्होंने मौलिऐरे की प्रशंसा की…. उन्होंने स्वयं एक नाटक अपने स्कूल के दिनों में लिखा था और उसे निर्देशित किया, ‘रात पागल हो गई’, जिसे इनाम मिला।
4 जून को श्री आदिशक्ति पूजा में श्री माताजी ने कुण्डलिनी और श्री आदिशक्ति का अन्तर स्पष्ट किया। श्री आदिशक्ति परमात्मा की संपूर्ण शक्ति है, जबकि कुण्डलिनी केवल वह हिस्सा है, जो मानव में परावर्तित है। “यह परावर्तन सहज–योग के द्वारा सुधरता रहता है। सहज–योग आपके कल्याण के लिए है। आपके जीवन का ध्येय आत्मिक उत्थान है और इसमें प्रवीणता पाना आपका काम है।”
बेनिनदेशसेएकसहज–योगी ने प्रार्थना की– अपने देश को आशीर्वादित करने की, जहां 4000 से ज्यादा योगीजन श्री माताजी के दर्शनों के लिए उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा–रत थे। श्री माताजी बहुत आश्चर्य–चकित थीं कि यद्यपि उन्होंने कभी बेनिन की यात्रा नहीं की, वहां कैसे इतने सारे बीज अंकुरित हो गए थे। उसी महीने में, बाद में रॉयल अल्बर्ट हॉल लंदन में प्रतिबिम्बित हो कहा, “बहुत से बीज अंकुरित हो जाते हैं, किन्तु जो भूमि की गोद में पड़ते हैं, वे वृक्ष बन जाते हैं, जबकि चट्टानों पर गिरने वाले बीज नष्ट हो जाते है– व्यर्थ हो जाते हैं।”
श्रीमाताजीप्रसन्नहुईंऔरबतायाकिकरूणाकेद्वाराइंग्लैंडमेंबीजअंकुरितहोगएथे।
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अध्याय – 38
15 जुलाई को श्री माताजी गुरू पूजा के लिए कबेला लौटीं। सब गुरुओं की माँ को श्रृंगारित करने हेतु विस्तृत तैयारियां चल रही थीं। परम्परागत गुरू के आदरयुक्त भय से शिष्य (बच्चे) अपेक्षतया गंभीर हो गए थे। श्री माताजी ने बच्चों की तनावग्रस्त चैतन्य–लहरियों को अवशोषित कर लिया था और उन्हें राहत देने के लिए मनोरंजक गाथाएं सुनाना शुरू किया। उन्होंने समझाया कि उनकी चैतन्य–लहरियां सबसे ज्यादा तब अवशोषित होती हैं, जब बच्चे तनावमुक्त relaxed होते हैं, “एक गुरू माँ की तरह भी होता है, उसे माँ की तरह दयालु, भद्र ओर क्षमाशील होना होता है।”
बच्चोंनेश्रीमाताजीसेप्रार्थनाकी, उनके मातृ–वत गुणों को अपने में आत्म–सात करने की। श्री माताजी ने अपना गुप्त नुस्खा बच्चों के लिए खोल दिया, “मैं पूर्णतया अनभिज्ञ हूँ कि मैं तुम्हें प्यार, करूणा या कुछ और भी दे रही हूँ। मैं इससे भी अनभिज्ञ हूँ कि मैं तुम्हें कुछ भी दे रही हूँ। मैं इससे भी अनभिज्ञ हूँ, जैसे मैंने कैसे इतने सारे सुन्दर लोगों का सृजन किया। मैं अनभिज्ञ हूँ, यह मेरी चेतना में नहीं आता, यह केवल घटित होता है ठीक वैसे ही जैसे पेड़, यहाँ है– यह अनभिज्ञ है इस ज्ञान से, कि यह क्या है। क्यों और कैसा यह दिखाई देता है। यह ठीक यहाँ स्थित है। ठीक उसी तरह यदि वह आपको होता है, तो आप सबके लिए आनन्द का एक स्रोत बन जाते हो।
श्रीमाताजीकेबच्चेधरतीमाँकेउदरमेंबोएबीजोंकीतरहथेऔरजबबीजअंकुरितहुएउनकेवात्सल्यनेकोमलपौधोंकीदेखभालकी।किन्तुउनकेबच्चोंकोइसबातकीचेतना (ज्ञान) नहीं थी, एक छोटा पौधा कैसे एक पेड़ में परिवर्धित हो गया। जब फल परिपक्व हो गए, बच्चों ने केवल उनका आस्वादन किया। पूरी विधि इतनी सहज थी, वहाँ कोई औपचारिक पढ़ाई, पाठ्य–पुस्तकें, कर्म–काण्ड, प्रार्थना या ध्यान की अनुसूची (सारणी) नहीं थी।
नहीउनकेबच्चेइसजानकारीसेचेतित (वाकिफ) थे कि वे उनके शरीर में कोशिकाएं थे। यद्यपि हर कोशिका cell पर उनका चित्त था, तो भी हर कोशिका ने अपनी स्वतंत्रता का पूरा मजा (आनन्द) लिया। यद्यपि हर कोशिका के लिए उन्होंने संकेतक लगा रखे थे ओर यदि उसने (कोशिका) संकेतक को नजर–अंदाज किया, उन्होंने उसे गलत (उल्टा) टर्न लेने के लिए जाने दिया और तब वे उसे वापिस खींचकर सही–मार्ग पर ले आयीं। किन्तु यदि उस कोशिका ने बार–बार गलत रास्ते पर बने रहने का निश्चय किया, श्री माताजी ने एक नाटक रचा, ताकि उसे अपने गलत–चुनाव की चेतना का अहसास हो सके। इस नाटक ने गलती कर रही कोशिका को अपनी दिशा–ज्ञान का साक्ष्य होने ओर यह समझने कि वह कर्ता नहीं है, बल्कि परम चैतन्य ने हर कार्य किया– इसकी समझ प्रदान की। यदि कोई तरीका उपयोग किया गया, वह था केवल बच्चों की कुण्डलिनियों की प्यार से देखभाल करना। उसके बाद, कुण्डलिनी ने स्वयं का आभास प्रकट किया। उसने बच्चों की चेतना को उस स्थिति तक उन्नत किया, जहां वे स्वयं को जान सकें, स्वयं साक्ष्य बन कर अपनी कमियों को देखना और उन्हें ठीक करना आसान था।
असीम (अनंत) धैर्य से उन्होंने अपने बच्चों की गल्तियों को बर्दाश्त किया, उनकी परिपक्वता प्राप्त करने की प्रक्रिया के तहत सहन किया। बच्चों के छिपे हुए अहंकार को उजागार करने के लिए उन्होंने महामाया स्वरूप को क्रियान्वित किया। किन्तु, यदि बच्चों ने माँ की आँखों में चमक पर ध्यान दिया, उन्होंने भूलों के सुखान्त नाटक comedy of errors को आसानी से आरम्भ होने से पहिले ही नष्ट कर दिया।
कलियाँखिलनेकेलिएबुल्गेरियाकेउद्यानमेंआयीं। बुल्गेरिया के पर्यावरण–विद् अपने लम्बे अन्वेषण में व्यस्त थे, बसंत–काल blossom time के खोज में व्यस्त थे। 25 जुलाई को एक बुल्गेरियन संगठन जिसका नाम Eco Forum ईको–फोरम था, उसने श्री माताजी को पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं पर तथा मानव–प्रजाति के अस्तित्व (उत्तरजीविता) के बारे में प्रकाश डालने हेतु आमंत्रित किया।
स्वास्थ्यमंत्रीनेप्रश्नकियाकिअंतर्राष्ट्रीय–फोरम पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं को हल करने में अब तक क्यों नहीं सफल हो सके। श्री माताजी मुस्कराईं, “इसके पीछे कारण है कि उस फोरम में उलझे हुए लोगों के पास कृत्रिम विचार थे और वे सामूहिक नहीं थे। लोग नहीं समझे कि वे अन्दर से गहराई में सामूहिक थे। इस सामूहिकता को आध्यात्मिकता के सामान्य कार्य के रूप में व्यक्त किया जा सकता था। पर्यावरण संबंधी समस्याओं का हल है कि सभी पर्यावरण–विदों को आत्मा बनना चाहिये।”
इको–फोरम के प्रतिनिधियों और स्वास्थ्य मंत्री महोदय ने पूछा, कैसे आत्मा बनना है। श्री माताजी उन्हें उनके आंतरिक पर्यावरण–शास्त्र के आंतरिक–क्षेत्र में ले गईं और सबने उसके अमृत का आस्वादन किया।
दूसरेदिनश्रीमाताजीकाप्रबोधनप्रसिद्ध ‘सेंटर ऑफ़ हाइजिन’ centre of hygiene पर योगा, मेडीसीन और इकोलॉजी पर हुआ। ईको–फोरम ने श्री माताजी को उनके मानव मात्र के आध्यात्मिक–उत्थान के लिए किए गए असाधारण (विशाल) सफलतापूर्ण सहयोग हेतु ‘गोल्ड मेडल फॉर पीस’ ‘शांति के लिए स्वर्ण पदक’ से सम्मानित किया। श्री माताजी ने ईको–फोरम की खोज research के समर्थन में 2000 डॉलर की राशि दान की।
28 जुलाई को श्री माताजी का आगमन इस्तांबुल में हुआ। बोस्फोरस की समुद्री यात्रा पर इस्तांबुल की सुन्दर, आकर्षक प्राकृतिक स्थलों पर वे आश्चर्य–चकित थीं। कार्यक्रम में उन्होंने साधकों के प्रश्नों के उत्तर विनोदपूर्णता से दिए और इससे उनके और उनके बच्चों के बीच एक प्रगाढ़ संवाद की शुरुआत हुई। श्री माताजी के वात्सल्य की दमक से वे और भी प्यार में आकर उनके वात्सल्य के प्यासे हो गए। रोमेनियन योगियों ने उनकी इस प्यास को कव्वालियों से बुझाया। उन्होंने तारीफ करते हुए कहा, “रोमानिया में गंधर्वों ने जन्म लिया है।”
31 जुलाई को डिपार्टमेंट ऑफ़ सायकोलॉजी और पैरा–नार्मल–फिनामिना (मनोविज्ञान विभाग और सामान्य परीक्षण की सीमाओं से परे– असाधारण घटना), दोनों वैज्ञानिक संस्थानों ने श्री माताजी को बुखारेस्ट की इकोलॉजिकल–युनिवर्सिटी में एक मेडिकल कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित करने हेतु आमंत्रित किया। युनिवर्सिटी के अध्यक्ष ने श्री माताजी को एक डिप्लोमा (उपाधि) cognitive sciences (विचार/मत को अनुभव करने वाले विज्ञान) में प्रदान किया।
बादमें, रात्रि में श्री माताजी ने परावर्तित हो कहा, ”मुझे मालुम नहीं कि क्या सोचकर उन्होंने मुझे यह सर्वोच्च इनाम दिया, क्योंकि जो मैं नहीं जानती, किन्तु उन्होंने कहा कि आप विज्ञान से परे उच्चतर अवस्था में हैं। उन्होंने कहा, “माँ, यह विचार/मत को अनुभव करने वाला विज्ञान है और उसी तरह हर जगह उन्होंने मुझे इनाम दिए। मैंने कभी नहीं जाना कि यह cognitive science क्या है, किन्तु यह ज्ञान बुद्धि से परे का है। यह असीमित ज्ञान है।
4 अगस्त को रोमानियन कव्वाली गायकों ने हंगेरियन साधकों के हृदयों को खोल दिया। यद्यपि उनके कान कव्वाली के शब्दों को नहीं समझ सके, उनके हृदय आनन्द में उछल पडे। श्री माताजी ने हंगेरियन बच्चों को अपने हृदय के पथ का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित किया, “उन्हें मत कहो, कि तुम्हें अहंकार है, किन्तु इसके बनिस्बत कहो कि तुम रजोगुणी right sided हो।”
हृदयकीगहराईसेउन्होंनेश्रीमाताजीकोएकताज crown भेंट किया और श्री माताजी ने उन्हें उपहारों से आशीर्वादित किया।
20 अगस्त को श्री कृष्ण के विनोदी स्वभाव में श्री माताजी कबेला पहुंचीं। अमेरिकन बच्चों ने उनका ध्यान आकर्षित किया कि अनैतिकता ओर होमो–सेक्सुअलिटि की समस्या ने उनके देश को चारों ओर से घेरा हुआ है। श्री माताजी ने उन्हें सांत्वना दी कि परम चैतन्य उनके देश की समस्याओं को हल कर रहे हैं, “वैश्विक स्तर पर एक शुभ परिवर्तन होने जा रहा है। अब मैं इसे इतनी स्पष्टता से देख सकती हूँ। हरेक देश में मैं इसे देखती हूँ और यह हल हो रही है…. मैंने कभी नहीं सोचा, मैं अपने जीवन में इसे देखूंगी, किन्तु, यह समस्या वास्तव में अपने विकास की सर्वोच्च अवस्था तक पहॅुंच चुकी है। तुम सब परिवर्तित हो गए हो, यह भविष्यवाणी भारत में बहुत समय पूर्व हो चुकी है।”
भृगुमुनिनेदोहजारवर्षपूर्वनाड़ी–ग्रन्थ में भविष्यवाणी की थी। एक और साधु भुजेन्दर ने करीब 300 वर्ष पूर्व मराठी में टिप्पणी की थी। उसमें कहा गया था कि वर्ष 1970 में एक नया परिवर्तन मानवीय चेतना में होगा। वर्ष 1922 में एक योगी की मृत्यु के बाद एक महायोगी के रूप में आदिशक्ति का अवतरण होगा, जो परमात्मा की सभी पवित्र–शक्तियों का साकार–रूप होगा। उस योगी के द्वारा आरम्भ की हुई अदभुत (अपूर्व) प्रणाली की कृपा से सहज में ही साधक–गण मोक्ष के आनन्द को अपने जीवन में प्राप्त करने के योग्य होंगे और वह कुण्डलिनी के उत्थान को देख सकेंगे। शरीर छोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी– समाधि में रहते हुए…..मोक्ष का आनन्द प्राप्त कर सकेंगे। इस योग के द्वारा आत्म–साक्षात्कार प्राप्तकर्ता (साधक) को रोटी, कपड़ा ओर मकान की चिन्ता करने की जरूरत नहीं रहेगी। शारीरिक और दिमागी बीमारियां (मनोरोग) पूर्णतया समाप्त होंगी और ऐसे लोगों को अस्पताल जैसे किसी संस्थानों की जरूरत अब नहीं रहेगी। उनके पास सूक्ष्म शरीर विकसित करने की एक शक्ति होगी और दूसरी शक्तियां भी उनके पास होंगी।
महामुनिभृगुस्वप्न–दृष्टा थे। उनके स्वप्न ने आधुनिक समय के साधकों को आदिशक्ति के अवतरण को मान्यता देने की योग्यता प्रदान की। उनकी हर भविष्यवाणी जीवन में सत्य सिद्ध हुई और श्री माताजी के समय में सत्य सिद्ध हुई।
1995
अध्याय – 39
अगस्तकेअन्तमेंश्रीमाताजीदक्षिण–अमेरिका के लिए रवाना हुईं। रियो Rio के लम्बी हवाई यात्रा (flight में) विमान में आत्म–साक्षात्कार कार्यक्रम की वजह से छोटी पड़ गई! हवाई–यात्रा के कर्मचारी crew members ने अपने जूते उतारे और यात्री–सीटों के बीच के रास्ते passage में शीतल लहरियों का आनन्द लेने बैठे। जब विमान रियो पहुंचा (वायुमंडलीय तापक्रम 22 डिग्री सैल्सियस से 33 डिग्री सैल्सियस हो गया। कस्टम अधिकारी के गालों पर ख़ुशी के आंसू बह निकले। श्री माताजी ने उसे प्यार से बाहों में ले लिया, “जब आप अपनी माँ से मिलते हैं– यही होता है।”
1600 निर्मल–हृदयों के बने पुष्प गुच्छ (बुके) ने श्री माताजी का कार्यक्रम में स्वागत किया। श्री माताजी को प्रसन्नता हुई और इस बुके के प्रत्येक पुष्प को (योगी को) आशीर्वाद मिला। बच्चों ने (The seeking girl) ‘एक खोजी–बालिका’ नामक एक नाटक तैयार किया था। हालांकि देर हो चुकी थी, श्री माताजी उन्हें निराश नहीं करना चाहती थीं।
दूसरेदिनब्राजीलकेमेयर (नगर अध्यक्ष) ने श्री माताजी का विमान–पत्तन airport पर स्वागत किया और ब्राजील शहर पर उनके आशीर्वाद की प्रार्थना की। बहुत से राजकीय उच्च पदासीन अधिकारियों ने अपने देश की कर्ज, भ्रष्टाचार, अर्थ–व्यवस्था, कृषि और न्याय–सम्बन्धी समस्याओं के लिए श्री माताजी की सलाह माँगी। किसी भी अन्य देश के उच्चासीन अधिकारियों जिनसे वे मिलीं, अभी तक किसी ने भी इतने खुलकर आध्यात्मिकता के बारे में बातें नहीं की। श्री माताजी ने उन्हें प्रभावित करते हुए कहा, सर्वप्रथम हर व्यक्ति के अन्दर धर्म की स्थापना होनी चाहिये, ताकि एक सशक्त और ईमानदार राजकीय व्यवस्था का सृजन हो सके। सुप्रीम कोर्ट के अध्यक्ष (मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय) को उन्होंने न्यायाधीशों को आत्म–साक्षात्कार लेने के महत्व पर जोर देकर कहा, क्योंकि उन्हें अपने काम में काफी विवेक को अपनाने की जरूरत थी।
इसकेबाद, श्री माताजी ने ब्राजीलियन हैंडी–क्राफ्ट्स की शॉपिंग करते हुए आराम का दिन बिताया। बच्चे शॉपिंग–स्टोर्स में दोपहर का भेाजन lunch ले आये और श्री माताजी ने स्टोर्स–स्टाफ के साथ लंच किया। प्रेम की भावाभिव्यक्ति में उन्होंने अजनबियों का आलिंगन किया और उन्हें अपने परिवार में मिला लिया। वस्तुतः उनके लिए कोई पराया नहीं था, उन्होंने मनुष्य–मात्र को अपने बच्चों जैसे सम्मान से देखा।
प्राकृतिकतत्वभीउनकेपारिवारिकअंगथे।पिछलीरात्रिको, जब वे ब्यूनस–ऐरेस पधारीं, वातावरण का तापमान 12 डिग्री सैल्सियस था, किन्तु जब वे हवाई–अड्डे से बाहर आयीं, तापमान आरामदायक 20 डिग्री सैल्सियस तक पहुँच गया।
कार्यक्रमएकबहुतसुन्दरनाट्य–गृह एल–आवेनिदा में शाम को आयोजित होना तय था, किन्तु साधकों की कतारें दोपहर से लगनी शुरू हो गई थीं। जो जल्दी आए, उन्हें प्रवेश मिल गया था और 200 से ज्यादा साधक बाहर ही छूट गए थे। स्थिति हाथ से बाहर निकल गई, क्योंकि साधकों की भीड़ में धक्का–मुक्की व चिल्लाहट शुरू हो गई। बच्चों ने अपनी प्रिय माँ से प्रार्थना की। अनायास नाट्य–गृह के एक कर्मचारी ने खबर फैलायी, “किन्तु, अन्दर खड़े रहने की बहुत जगह है।”
सभीबाहरखड़ेसाधकअन्दरपहुँचगए! वे श्री माताजी के बिछुड़े बच्चे थे और जब माँ ने उन्हें देखा, उनके लिए अपने आंसुओं को रोक पाना मुश्किल हो गया।
वापसहोटलमेंएकप्रसिद्धपत्रकारनेश्रीमाताजीकासाक्षात्कार (एक घंटे से ज्यादा) लिया। यह एक दूसरे जन–कार्यक्रम जैसा था।
श्रीमाताजीनेअपनेबच्चोंसेविस्तारपूर्वकबातकीऔरसभीसहज–योगिनियों (शक्तियों) को उपहार प्रदान किए। श्री माताजी कोलम्बिया जाना चाहतीं थीं, किन्तु उनकी यात्रा रद्द करनी पड़ी– वहाँ की अशान्ति व समस्याओं की वजह से। श्री माताजी ने अपना चित्त वहाँ की गोरिल्ला–समस्या पर डाला और कोलम्बियन बच्चों को आश्वस्त किया कि वे हमेशा माँ की सुरक्षा में थे।
श्रीमाताजीकीविदाईसेपूर्व, दक्षिण–अमेरिकी देशों के बच्चों ने भजनों के माध्यम से अपनी कृतज्ञता माँ पर न्यौछावर कर दी। उन्होंने माँ को धन्यवाद दिया कि उनके लिए वे इतने लम्बे रास्ते को तय करके पधारीं। श्री माताजी ने कहा, बच्चों के प्यार की पुकार द्वारा वे वहाँ आने को बाध्य थीं। और उन्हें भी ध्यान देना चाहिये– माँ के नव–जात बच्चों की पुकार पर जिन्हें वे सहज–योगियों की नाजुक देख–रेख में पीछे छोड़े जा रहीं थीं।
1995
अध्याय – 40
श्रीमाताजीसितम्बरकेप्रारंभिकदिनोंमेंश्रीगणेशपूजाकेलिएकबेलालौटीं।अनवरतवर्षानेविमान–पत्तन से कैसल तक के चैतन्य को साफ़ कर दिया। कैसल castle परियों की कहानियों सदृश बर्फ के गोलों से ढंका हुआ दिखाई दिया। इतने प्रचंड मौसमी बदलाव के लिए ये असंभव था। श्री माताजी ने इसे श्री गणेश के शुद्धीकरण करने का प्रतीक बताया, “श्री गणेश आपके अंदर विराजित हैं और किसी भी प्रकार की बाधा/समस्या जो आपको है, आसानी से हल होगी। यदि आप अबोधिता को स्वीकारते हैं, यह अबोधिता ऐसे संयोग बनाएगी, जैसा कि आम लोग ऐसा बोलते हैं, यह संयोग मात्र नहीं बल्कि चैतन्य–लहरियां हैं– कैसे समस्याएं, चीजें हल होंगी, आप आश्चर्य–चकित रह जायेंगे।”
यहसंयोगमात्रनहींथा– निरन्तर बारिश होना, स्नो बॉल्स snow balls होना और पूजा के वक्त धूप निकलना। इस चैतन्य ने बच्चों की सोच को कांच के सामान स्वच्छ कर दिया। श्री गणेश की शक्ति को बेहतरी से देखने के लिए कि जीवन में कई संयोगों के पीछे उनकी शक्ति कार्य करती है, जैसे अनायास मित्रों का मिलना, अनपेक्षित घटनाओं का आकार ग्रहण करना, सही समय सही चीज़ों का आश्चर्यजनक रूप से घटित हो जाना। ऐसी घटनाएं परमात्मा की कृपा के आशीर्वाद को प्रकट करती हैं, और श्री माताजी ने इसे चौथा आयाम fourth dimension कहा है।
यहचौथाआयामचेतितमस्तिष्ककेक्षेत्रसेपरेहै, क्योंकि ये कारण और नतीजे से परे जाता है। हिन्दू धर्म (सनातन) में ऐसे शुभ–क्षणों को ‘मुहूर्त‘ कहा जाता है। वे आकाश गंगा में स्थित तारों से सम्पर्क कर के शुभ समय ‘मुहूर्त‘ शुभ कार्यों, विवाहादि को निश्चित करते थे। ऐसे मुहूर्त भली भांति विचार कर के निश्चित होते थे और ईश्वरीय संयोग–मात्र नहीं थे। एक ईश्वरीय संयोग, एक सहज आशीर्वाद परम चैतन्य द्वारा लहराया जाता है। एक ‘मुहूर्त’ में परमात्मा की सर्व–व्याप्त शक्ति का आशीर्वाद नहीं होता और इसीलिए परम–चैतन्य ने ईश्वरीय कृपा बरसाने के लिए हस्तक्षेप नहीं किया।
कुछसमयपूर्वपरमचैतन्यनेयहसुझायाकिकैसेईश्वरीयसंयोगनेसम्मोहितकिया।श्रीगणेशपूजाकेबादश्रीमाताजीचीनकीयात्राकेलिएयोजनाबनारहीथीं, किन्तु वीजा के लिए एक आमंत्रण जरूरी था। अप्रत्याशित समय में, एक आधिकारिक आमंत्रण बीजिंग से 13 सितम्बर को आयोजित होने वाले चौथे विश्व–महिला–सभा (सम्मेलन) हेतु मिला। यद्यपि यह बहुत अल्प–कालीन सूचना थी। श्री माताजी ने यह आमंत्रण स्वीकार किया। इटालियन सहज–योगी बच्चे श्री माताजी के लिए हवाई–टिकट के प्रबन्ध तथा उनके यात्रा–प्रबन्धन के लिए इतने कम समय में आशंका–भरी परेशानी में दौड़ चले। परम चैतन्य ने हस्तक्षेप किया और सहज ही समय–सीमा के अन्दर सभी यात्रा प्रबन्ध कार्यान्वित हो गए। एक चार्टर्ड विमान ने उन्हें स्विटजरलैंड से फ्रैंक–फर्ट और वहाँ से आगे की फ्लाइट से बीजिंग के लिए पहुँचाया।
श्रीमाताजीकरीबसाढ़ेआठबजे (सुबह) बीजिंग पहुंचीं और सम्मेलन (conference) दस बजे थी। दो चीनी विद्यार्थियों ने उनका स्वागत किया और उन्हें नम्रतापूर्वक सीधे ही कान्फ्रेंस–हॉल (सम्मेलन–स्थल) जाने की सलाह दी। श्री माताजी सम्मेलन के उद्घाटन के कुछ समय पूर्व ही पहुंचीं और उनके चेहरे पर थकान के कोई चिन्ह नहीं थे।
ज्योंहिवेहॉलमेंदाखिलहुईंउनकेतेजनेसम्मेलनकोआच्छादितकरलिया!
श्री माताजी ने अपना वक्तव्य ईश्वरीय संयोग को धन्यवाद देते हुए प्रारम्भ किया, “इसके पूर्व, किसी तरह से मैं अपना कार्य प्रारम्भ नहीं कर सकी, किन्तु परमात्मा के संयोग ने मुझे एक अवसर प्रदान किया है, इस सभा के माध्यम से चीन–वासियों से आध्यात्मिकता की महान् सम्पदा के बारे में बात करने का। यह अवश्यम्भावी (अनिवार्य) था और परमात्मा की सर्वव्याप्त शक्ति के आशीर्वाद से उद्घाटित होना था। आपके जीवन में भी आपने महसूस किया होगा, बहुत सी संयोगवश घटनाएं, किन्तु आप नहीं जानते कि इन घटनाओं को कैसे ईश्वरीय आशीर्वाद से जोड़ें, जब तक कि आप उस ईश्वरीय सत्ता से जुड़ नहीं जाते हो।”
श्रीमाताजीकेवात्सल्यनेउनकेहृदयखोलदिएऔरविभिन्नदेशोंकेप्रतिनिधियोंनेउनकाआशीर्वादप्राप्तकिया।जैसेहीश्रीमाताजीनेउन्हेंस्पर्शकिया, उन्हें उनका आत्म–साक्षात्कार मिल गया। एक यूनीसेफ (UNICEF) प्रतिनिधि जो फिलीपाइन्स से थीं, श्री माताजी के स्पर्श–मात्र से इतना अद्भुत महसूस किया कि उनकी आँखों में आनन्दाश्रु प्रवाहित हो रहे थे।
शामकोश्रीमाताजीनेउनकेहोटलमेंएककार्यक्रमकोसंबोधितकिया।साधक–गण दूसरे प्रान्तों से लम्बी दूरी तय करके आए थे। श्री माताजी ने लाओत्से (Lao-Tse) की प्रशंसा की और यांग्त्जी नदी (Yangtze river) और कुण्डलिनी के बीच समानताएं बतायीं। उन्होंने सावधान किया कि नदी की यात्रा करते समय आप आसपास की चीजों में स्वयं को न लुभाएं।
जैसेहीश्रीमाताजीनेयहकहाउनकीकुण्डलिनियाँप्रज्जवलित (जाग्रत) हो उठीं। श्री माताजी उनकी सूक्ष्म–ग्राह्यता पर आश्चर्य में थीं और बोलीं कि वे लोग जन्म–जात (स्वाभाविक रूप से) महान् आध्यात्मिक लोग थे। श्री माताजी ने उनकी अबोधिता को श्री गणेश के आशीर्वाद का प्रतीक माना, “वे सहज योग को बहुत जल्दी ही अपना लेंगे, किन्तु प्रारम्भिक परिचय बहुत जरूरी था।”
आश्चर्यहै, पुरातन चीनी लोग ‘चाइल्ड गॉड’ शिशु–देवता में आस्था रखते थे।
श्रीमाताजीनेचीनमेंसहज–योग के प्रसार के सबसे अच्छे तरीकों के बारे में चिन्तन किया। उन्होंने एक मेडिकल कान्फ्रेंस आयोजित करने का सुझाव, स्वास्थ्य–मंत्रालय को भेजने का प्रस्तावित किया, ताकि सहज–योग को आधिकारिक मान्यता मिलने में सहायक हो सके। इस तरह से सोवियत यूनियन में (रूस में) सहज–योग के प्रवेश में सफलता मिली थी।
(3 सितम्बर 1996 को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चायना और इन्टरनेशनल सहज–योग रिसर्च और हेल्थ सेंटर, नवी मुंबई, के बीच एक निष्ठा के प्रोटोकॉल (आपसी निष्ठा के संधि पत्र) पर हस्ताक्षर हुए। यह पत्र डायरेक्टर जनरल, डिपार्टमेंट ऑफ़ फॉरेन अफेयर्स, स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ़ ट्रेडीशनल चायनीज मेडीसीन द्वारा हस्ताक्षरित हुआ, जो शोध के क्षेत्र में सहयोग प्रदान करने के लिए मानवता के हित के लिए हस्ताक्षरित किया गया।)
दोचीनीविद्यार्थियोंनेश्रीमाताजीकापल्लूनहींछोड़ा।खरीददारीकेलिएउनकीसुरक्षा–व्यवस्था देखते हुए उनमें से एक ने कहा, “माँ, कल मैं नहीं आ पाऊॅंगा– क्योंकि मेरी शादी है।”
श्रीमाताजीनेकहा, “आप आज ही क्यों नहीं चले जाते और तैयारियां करते।”
उसनेजवाबदिया, “मुझे आपका सानिध्य बहुत मजेदार लगता है। मैं मेरी दुल्हन को भी आपके आशीष के लिए लाऊॅंगा।”
शॉपिंगमालमेंहस्त–शिल्प का तल तीसरी मंजिल पर था और उन दोनों ने (चीनी विद्यार्थियों ने) श्री माताजी की व्हील–चेयर को अपने हाथों से उठायी। श्री माताजी ने मना किया कि वहाँ जाने की जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा, “नहीं, हम चाहते हैं आप वहाँ अवलोकन करें। हम चाहते हैं, आप चलें।”
श्रीमाताजीनेपूछा, “क्यों?”
उन्होंनेकहा, “वहाँ के सभी लोगों के लिए यह बहुत शानदार होगा।”
श्रीमाताजीभाव–विह्वल हो उठीं, “मेरी आँखों में आंसू आ गए। ऐसा प्यार, ऐसी विनम्रता! मैंने उनके लिए कुछ भी नहीं किया! मैंने उन्हें कोई पैसे नहीं दिए, कुछ भी नहीं! हे भगवान! आखिर तक वो मेरे लिए इतने अधिक सावधान (समर्पित) थे और वो मेरी व्हील–चेयर (चलित कुर्सी) को तीन मंजिल तक ऊपर अपने हाथों से ले गए थे।”
हस्त–शिल्प मंजिल (on the third floor) पर श्री माताजी ने वहाँ के सेल्स–मैन (विक्रेता गणों) को आत्म–साक्षात्कार का आशीर्वाद दिया। उन्होंने चीन–वासियों को बहुत समझदार और विनम्र पाया, “यदि आप उनकी तारीफ करें, तो वे असहमत होते हैं और कहते हैं, अभी भी बहुत सारा कार्य बाकी है। वे अपनी कमजोरियाँ जानते हैं।”
हवाई–पत्तन (airport) पर श्री माताजी की विदाई से पूर्व एक चीनी डॉक्टर ने नम्रतापूर्वक उन्हें नमन किया।
श्रीमाताजीनेउसेकहा, “आप पूछिए, श्रीमाताजी क्या आप मात्रेया हैं।” उसे शीतल–लहरियां महसूस हुईं।
जैसेहीश्रीमाताजीइमीग्रेशन–चेक (immigration check) के लिए पहुंचीं, राष्ट्रीय चीनी टेलीविजन ने कान्फ्रेंस पर श्री माताजी की टिप्पणी जानना चाही। श्री माताजी ने अपनी गहन–कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा, “मैंने अपना हृदय (दिल) चीन में पीछे छोड़ दिया है। अपना हृदय चीन में छोड़ आई हूँ।”
एकबारपुनःईश्वरीयसंयोगनेश्रीमाताजीकोचीनी–हृदयों को उनके राष्ट्रीय टेलिविजन चैनल के माध्यम से आशीर्वादित करने का अवसर प्रदान किया।
1995
अध्याय – 41
चीनके 3 दिवसीय चक्रवाती–टूअर के बाद श्री माताजी मास्को पधारीं। 70 वर्ष की उम्र में वे मिलान से बीजिंग की 3 दिनों की यात्रा पर थीं। बीजिंग विमान–पत्तन से वे सीधे 3 घंटों की सभा में गईं, दूसरे अपने कक्ष में सभी योगियों का आतिथ्य किया और शाम को 2 घंटे के कार्यक्रम को संबोधित किया– यह सब केवल एक दिन में! केवल यही नहीं, दूसरे दिन भी 9 घंटे की फ्लाइट (हवाई यात्रा) से बीजिंग से मास्को! हर अवसर पर उनका बर्ताव ज्यादा से ज्यादा स्फूर्ति के साथ चमकदार होता गया। प्यार की शक्ति इससे ज्यादा स्पष्ट (प्रत्यक्ष) नहीं दिख सकती थी!
श्रीमाताजीनेचीन–वासियों को बड़ा ही सराहा, “उनके भीतर नैतिकता है। बीजिंग कान्फ्रेंस इतनी अच्छी तरह आयोजित किया गया था। विद्यार्थी स्वयं सेवकों द्वारा जिन्हें कोई कुछ खर्च नहीं दिया गया था….. वे लोग बहुत देश–भक्त हैं और हरेक को उनसे सीखना चाहिये।”
17 सितम्बर को देवी माँ पूजा पर भी श्री माताजी ने रूसी लोगों को चीनी लोगों की देशभक्ति की भावना को ग्रहण करने की अपील की। उनके देश की समस्याओं को हल करने का केवल एक ही उपाय था। रूसी वित्तीय स्थिति खतरे की घंटी की सूचना दे रही थी। केवल पाश्चात्य सामान ही स्वदेशी वस्तुओं की जगह नहीं ले रहा था, बल्कि पाश्चात्य मूल्य स्वदेशी मूल्यों की जगह ले रहे थे। सीधे से, रूस में पाश्चात्य संस्कृति घुसपैठ कर चुकी थी।
श्रीमाताजीनेसत्यसाधकोंकोरूसकोबचानेकेलिएएकनएप्रस्ताव (दृढ़–संकल्प) बनाने पर जोर दिया, “आपको देशभक्त होना होगा। तुम्हें त्याग करना होगा और समझना होगा कि इन फालतू की पाश्चात्य चीजों पर पैसा बर्बाद न करें। और परमात्मा की सहायता आप तक पहुँच जायेगी।“
रूसवासियोंकीआत्माआकाशकोछूगई!
कईहजारसाधकसाइबेरियासेआएथे, जिनमें से ज़्यादा चेर्नोबिल–न्युक्लीयर–हादसे के शिकार थे और सौभाग्य से सहजयोग द्वारा स्वस्थ हो गए थे। वे शांतिपूर्वक पार्किंग स्थल पर श्री माताजी की एक क्षणिक–झलक पाने के लिए प्रतीक्षारत थे। वे सहज योग के प्रचार करने को मज़बूत (फौलादी) तरीके से इच्छुक थे कि कोई भी उस पर अविश्वास नहीं कर सकता था। उन्होंने नम्रतापूर्वक कहा, “माँ, क्या हम ठीक हैं? क्या हमने हमारे उत्थान को ईमानदारी से लिया है।”
श्रीमाताजीउनकेहृदयोंकीपवित्रतासेअभिभूतहोउठीं, “यह केवल रूस में ही संभव है, यहाँ तक कि भारत में भी नहीं। मैं आपका बहुत सम्मान करती हूँ। मुझे नहीं मालूम, आप किस धातु के बने हैं।”
एकजैसी (समान) सांस्कृतिक परम्परा वाले Ethnic groups समूह भी श्री माताजी को सहज–योग द्वारा आन्तरिक शान्ति प्रदान करने के लिए धन्यवाद देने में पीछे नहीं रहे। आगे भी, छोटे–एथनिक समूहों के बीच विरोध का मुकाबला करने के लिए सहज–योग सामूहिक चेतना ने मदद की, क्योंकि सहज–योग ने उन्हें उसका हल प्रदान किया।
एकप्रसिद्धरूसीवैज्ञानिकनेएकयंत्रकाविकास, शक्ति को मापने के लिए किया। जब उसने श्री माताजी की शक्ति को मापने का प्रयास किया, तो उन्होंने पाया कि उसकी क्षमता से परे श्री माताजी की शक्ति थी। जब उसने श्री माताजी के फोटोग्राफ से चैतन्य को मापना चाहा, तब भी माँ की शक्ति यंत्र की मापने की क्षमता से बाहर थी। उसने समझ लिया कि श्री माताजी की शक्ति अनंत है और वह उनके सामने घुटने टेक कर बोला, “माँ! आप इस आधुनिक युग में परमात्मा का अवतरण हैं।”
उसरूसीवैज्ञानिकनेश्रीमाताजीसेउनकेफोटोग्राफकोसैटेलाइट (संचार–उपग्रह) पर लगाने की आज्ञा मांगी। उपग्रह के द्वारा उन्होंने श्री माताजी के फोटोग्राफ से उनकी चैतन्य–लहरियों को पृथ्वी पर विद्युत चुम्बकीय बल द्वारा प्रक्षेपित करने की योजना तैयार की। “विश्व के जिस क्षेत्र में यह चैतन्य प्रक्षेपित होगा, वहाँ की समस्याओं को चैतन्य हल करेगा। यह फसलों की पैदावार को बढ़ाएगा। लोगों को परिवर्तित करेगा, उस क्षेत्र की वनस्पति और प्राणियों में बदलाव लायेगा और जीवधारियों और वातावरण की समस्याओं को हल करेगा।“
उसकेबाद, उन्होंने एक दूसरा प्रयोग किया और उस यंत्र के सेंसर (probe) को चैतन्यित पानी में डुबाया, तो पानी चैतन्य से बुदबुदाने लगा। उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “यह प्रयोग सिद्ध करता है, चैतन्य–लहरियाँ मूल तत्वों को परिवर्तित कर सकती हैं। यदि इस शक्ति ने सभी चीजों का सृजन किया है, इसलिये यह हरेक वस्तु पर कार्य कर सकती है। मैं बादलों में चैतन्यित जल को प्रविष्ट कराउँगा, ताकि चैतन्यित जल की वर्षा हो सके।”
श्रीमाताजीउसकीमेधा (शुद्ध–बुद्धिमत्ता) से और चैतन्य शक्ति के प्रति उसकी विश्वसनीयता से आश्चर्य–चकित थीं। श्री माताजी ने उन्हें कबेला आमंत्रित किया।
शामकोवेसेंटपीटर्सबर्गकेलिएरवानाहुईं।रात्रिट्रेनमेंबैठनेकेसमयडॉ०वैलेन्टिनानेआगाहकियाकिसेंटपीटर्सबर्गमेंबहुतठंडहै।श्रीमाताजीनेकहा, “आप केवल चित्त दीजिये, ध्यान कीजिये, सूर्यदेव आपकी सेवा में होंगे, ….अब आप परमात्मा की शक्ति से एकाकार हो गए हैं, पूरी प्रकृति आपकी सेवा में होगी।”
निस्संदेह, प्रातःकाल, सूर्यदेव ने श्री माताजी की अगवानी की।
19 सितम्बर को श्री माताजी महत्वपूर्ण भाष्यकार (Speaker) के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस में ‘सदाचार स्वास्थ्य शांति’ विषय पर उपस्थित थीं। पेट्रोस्वस्काया अकादमी ऑफ आर्ट्स की ओर से मेट्रोपॉलिटन लोआन (Loann) ने श्री माताजी के एक कथन के साथ जोर देकर कहा, “अब मानवीय विकास काफ़ी हद (सीमा) तक उस रास्ते पर निर्भर होगा, जिस रास्ते को रूस अपनाएगा।”
अयोतुल्लाहमेहदीरोहानीनेइस्लामी–दुनिया के लिए आख्यान दिया और श्री माताजी को महादी, ‘बारहवाँ–इमाम’ कहकर संबोधित किया। उन्होंने अतिवादिता को नकारा और कहा इस्लाम सभी धर्मों का सम्मान करता है, क्योंकि सभी धर्मों का स्रोत एक ही है।
आध्यात्मिकताकेराजकीयविभागनेसहज–योग को सहयोग करने का प्रस्ताव रखा।
श्रीमाताजीनेप्यार–भरी अनुक्रिया दी, “असल में मुझे आप लोगों से कुछ नहीं चाहिये। मैं स्वयं में परिपूर्ण हूं। मुझे सहज–योग की ज़रूरत नहीं है। किन्तु, मैं क्यों सब जगह दौड़ रही हूँ? क्योंकि यह प्यार, यह दयालुता जो मेरे अन्तर्जात हैं, मुझे यह सब करने के लिए प्रेरित करती है। क्योंकि लोग अंधे हैं, वे देख नहीं पा रहे हैं। मुझे और ज़्यादा चर्च (गिरजाघर), मस्ज़िद या यहूदी मंदिरों की ज़रूरत नहीं है, किन्तु मानव–हृदय में आत्मा निवास करती है। हमें अपने हृदय में शांति का सृजन करना होगा।”
शांतिकीस्थापना 108 देशों से आए हजारों प्रतिनिधियों के हृदयों में हो गई थी। उन्होंने सर्व–सम्मति से प्रस्ताव पारित किया– श्री माताजी का नाम ‘नोबल शांति पुरस्कार हेतु‘। ‘सेंट्रल चेरिटी क्रिश्चियन आर्थोडक्स फंड‘ ने इस हेतु श्री माताजी के नाम का समर्थन किया। वैज्ञानिकों के प्रतिनिधि–मंडल (सीबिरस्क से) ने एक रिसर्च टीम का गठन एक भारतीय योगी डॉ. खान के तत्वाधान में किया, जिन्हें मानव–मस्तिष्क पर चैतन्य के प्रभावों का अध्ययन करना था।
22 सितम्बर को श्री माताजी टोग्लिआटी में पधारीं। श्री माताजी के मनोरंजन हेतु टोग्लिआटी के एक योगी ने एक अमेरिकन योगी से पूछा, “अमेरिका में कितने सहज–योगी हैं?”
उसयोगीनेउत्तरदिया, ‘छप्पन‘ (56)।
टोग्लिआटीकेयोगीनेकहा, “आपके यहाँ 56000 हैं, हमारे यहाँ केवल 21000 योगी हैं।”
माफियाडॉन, जिसे अपना आत्म–साक्षात्कार मिला, उसे श्री माताजी का आशीर्वाद मिला।
उसनेपूछा, “माँ, मैंने बहुत से पाप–कर्म किए हैं, क्या मुझे क्षमा किया जा सकेगा।”
श्रीमाताजीनेकहा, “तुम्हें क्षमा कर दिया गया है। वह सब भूतकाल का है (बीत चुका है), आज मैं तुमसे वर्तमान में बात कर रही हूँ। महत्वपूर्ण है वर्तमान, अब आप सहज–योगी बन गए हो, यह आपकी आध्यात्मिक–उन्नति के लिए एक उपलब्धि है, जिस तरह से आपने इसे प्राप्त किया है।
डॉन– श्री माताजी, अब मुझे वह शांति है, आनन्द है और मैं इसे दूसरों में बाँटना चाहता हूँ। मैं कभी अपनी सम्पत्ति (धन) दूसरों से नहीं साझा कर सकता था, मैं दूसरों से पैसा, धन हड़प लेता था!
श्रीमाताजी– मुझे अब कोई दोष–स्वीकारिता नहीं सुनना है। समाप्त हो गया। अब तुम सहज–योगी बन गए हो, तुम अब क्या करोगे?
डॉन– श्री माताजी, मैं भारत को प्याज़ भेजूंगा (निर्यात करूँगा)।
श्रीमाताजी– “क्यों?”
डॉन– “क्योंकि, भारत में प्याज़ की कमी है।”
श्रीमाताजी– “तुम चिन्ता मत करो, वहाँ ऐसी कोई समस्या नहीं है।“
डॉन– “श्री माताजी, कृपया मुझे म्युनिसिपल चुनाव के लिए आशीर्वाद दीजिये।”
श्रीमाताजी– “आगे बढ़ो, तुम चुनाव जीत जावोगे और यदि नहीं भी चुने गए, कोई फर्क नहीं पड़ता है।”
श्रीमाताजीनेसामूहिकताकोउसकाउदाहरणदिया, “इस व्यक्ति को देखो! यह कैसा ईमानदार हो गया है, कितना मानवीय! वही आदमी जो एक बड़ा माफिया डॉन था, उतना ही महान और आदरणीय व्यक्ति बन गया है। कैसे यह माफिया डॉन इतना ज्यादा परिवर्तित हो सका? उसे कोई प्रवचन नहीं दिया गया, न ही उसे कुछ समझने के लिए कहा गया। यह एक घटना है, यह कलियुग में घटित होना था, क्योंकि कलियुग में लोग परिवर्तित हो जायेंगे। परिवर्तन के बाद व्यक्ति इतना सुन्दर और शुद्ध हो जाता है। आपको लोगों को परिवर्तित करने के लिए लीक से हटने की ज़रूरत नहीं है या कोई त्याग करने की ज़रूरत नहीं है। जब आपको आत्म–साक्षात्कार मिल जाता है, आपका चित्त प्रकाशित हो उठता है। आप सहज ही अपने विध्वंसकारी आदतों, विचारों और कार्य–कलापों को छोड़ने लग जाते हैं। ऐसा व्यक्ति संसार–भर के कल्याण के लिए कार्य करता है। यदि मानव का परिवर्तन हो जाता है, सभी समस्याएँ हल हो जायेंगी।”
अगलेदिनश्रीमाताजीकीव (kiev) के लिए रवाना हो गईं। सामूहिकता ने उन्हें एक ‘प्री क्रिश्चियन अबोरिजिनल आर्ट‘ अल्बम (चित्र–संग्रह) भेंट किया, जिसमें चक्रों और आदिशक्ति के बारे में चित्रण था।
ईसासे 3000 वर्ष पूर्व उन्हें ‘अदिति‘ कहते थे। श्री माताजी ने कहा, “श्रीराम के दो पुत्र थे, लव जो यहाँ रूस में आए और कुश चीन चले गए। उसके पश्चात् मछिंदरनाथ ने रूस और युक्रेन को कुण्डलिनी का ज्ञान प्रकट किया। इसीलिये, उनकी कुण्डलिनियाँ मेरे चैतन्य के प्रति इतनी संवेदनशील हैं।“
कार्यक्रममेंश्रीमाताजीसाधकोंकेप्रेमसेअभिभूतहोउठीं, “मैं सभी देशों में जाती हूँ। उन सब में से आप लोग खास लोग हो। मुझे पता नहीं, जब मैं तुमसे विदा होऊँगी, मुझे लगता है कोई मेरे हृदय को उद्वेलित कर रहा हो।“
1995
अध्याय – 42
नवरात्रिकेशुभअवसरपरश्रीमाताजीनेसामूहिकताकीशुद्धइच्छाउनकीपुस्तक ‘मेटा मॉडर्न इरा‘ के लिए आशीर्वादित किया।
पूजासमारोहकाशुभारम्भकोलकातासेआईकलाकारोंकीमंडलीद्वारादेवीमाहात्म्यपरएकनृत्यनाटिकाकेमंचनसेहुआ।इसनृत्यनाटिकाद्वारायहप्रदर्शितकियागयाकिआध्यात्मिकउत्थानकेपथकेबाधकराक्षसोंकोकिसप्रकारआदिशक्तिनेदुर्गाकेरूपमेंअवतरितहोकरकैसेउनकासंहारकिया।देवी माँ अपने पूरे अस्त्र–शस्त्रों से सुसज्जित हो महिषासुर पर प्रहार करने को उद्यत हुईं। वे भयंकर स्वरूप में प्रकट हुईं, क्रोध से परिपूर्ण, फिर भी उनकी आँखों में करुणा भरी हई थी। इस विरोधाभास को समझ पाना अत्यन्त कठिन था कि वो कैसे इतनी अधिक करुणामयी हो सकती थीं, तो भी उसी समय अत्यन्त क्रोधित भी थीं।
अपनीआँखोंमेंचमककेसाथश्रीमाताजीनेइसविरोधाभासकोसुलझाया, “यह क्रोध भी उनकी करुणा (दया) से ही उत्पन्न हुआ था, अपने बच्चों की रक्षा के लिए। उदाहरण के लिए किसी चीज के लिए मुझे कभी–कभी क्रोधित होने का उपक्रम करना पड़ता था, क्योंकि उस समय उसकी आवश्यकता थी।”
नृत्य–नाटिका की समाप्ति देवी माँ की राक्षस पर विजय के साथ हुई। श्री माताजी ने अपनी कल्याण–कारिता में अपने भक्तों पर हजारों आशीर्वाद बरसाए। आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने राक्षस को भी क्षमा कर दिया! श्री माताजी ने सविस्तार बताया कि राक्षस को देवी माँ के हाथों मरने का आशीर्वाद मिला हुआ था, जिन्होंने उसे उसके राक्षसी–अहंकार, जिसने उसकी बुद्धि को आत्मा के विरोध में कर दिया था, को समाप्त कर मोक्ष प्रदान करने का आशीर्वाद दिया था।
इसप्रकारदेवीमाँनेकरुणाकेकारणहरयुगमेंभ्रान्तिकेआवरणको, जिसने मानव उत्थान को अवरुद्ध कर दिया था, इस धरा पर अवतरित होकर दूर किया। इसकी भविष्यवाणी हो चुकी थी कि कलियुग में श्री आदिशक्ति दसवें अवतरण में कल्की–रूप की शक्तियों को प्रकट करेंगी। वे मानवता को सामूहिक परिवर्तन करने की एक सहज विधि का आशीर्वाद प्रदान करेंगी। वे मनुष्य के अहंकार को समझने के लिए स्वयं मनुष्य रूप में आयेंगी। उसके बाद, वे अपनी माया के नाटक द्वारा इस मानवीय अहंकार पर विजय प्राप्त करेंगी।
नृत्य–नाटिका का संदेश उनके बच्चों से गायब नहीं हुआ। श्री आदिशक्ति ने सभी चीजें सृजित कीं। सभी चीजें उन्हीं का स्वरूप थीं। किसी के लिए उनसे विलग सोचना ही भ्रान्ति (माया) है। जीवन का उद्देश्य उनके साथ आत्म–साक्षात्कार को प्राप्त करके इस भ्रांन्ति (माया) के आवरण से मुक्त होना था, सभी प्राणियों में स्वयं को देखना और उन्हें श्री माताजी में देखना।
ठीकजैसेहीदेवीमाँकेक्रोधनेराक्षसकाअन्तकिया, वैसे ही उनके बच्चों ने उनसे प्रार्थना की कि उनकी नकारात्मकता को वे अपने क्रोध से नष्ट कर दें।
अपनीआँखोंमेंचमककेसाथवेमुस्कराईं, “मुझे इसके लिए कोई समस्या नहीं है, किन्तु जब तक कि आप लोग अपनी साक्षी अवस्था में स्थापित नहीं होते, आप पुन: अपनी पूर्व अवस्था में गिर जावोगे!”
जबश्रीमाताजीन्यूयॉर्कपधारीं, सहज योगी–जन लीडरशिप की भ्रान्ति में खोए हुए थे। कैम्प वकामास (Camp Vacamas) में श्री देवी शक्ति पूजा पर 9 अक्टूबर को उन्होंने इस भ्रान्ति को दूर कर दिया, “मैं यह कहकर कि आप एक लीडर हैं, केवल आपको मूर्ख बना रही हूँ। यह एक भ्रम है… यदि मैं आपको लीडर कहती हूँ, आपको समझना चाहिये कि माँ आपकी और दूसरों की परीक्षा ले रही हैं, जो इस लीडरशिप की शक्ति के खेल में उलझ रहे हैं।“
आगे, यह परीक्षण भ्रान्ति के द्वार ‘हॉलीवुड’ की ओर मुड़ गया।
भ्रान्तिमेंखोएहुएएकसाधकनेकृष्ण–भक्त की तरह सवाल किया, “मैंने सुना है आप एक महान संत हैं, किन्तु आपके पास जीवन की सभी सुविधाएँ हैं, अत: आप कैसे संत हो सकते हैं?”
श्रीमाताजीनेप्रत्युत्तरदिया, “आप कैसे एक संत हैं?”
उसनेशेखीबघारतेहुएकहा, “मैंने अपना परिवार, घर, कार सभी छोड़ दिए हैं।“
श्री माताजी मे मुस्कराते हुए कहा, “एक और चीज आप छोड़ चुके हो– वह है आपकी बुद्धि!”
“आप ऐसा कैसे कहते हो?” वह बोला।
श्रीमाताजीबोलीं, “बहुत सरल है, मैंने कुछ नहीं छोड़ा है, क्योंकि मैं कुछ पकड़ती नहीं हूँ। यदि आप कुछ पकड़े हुए नहीं हो तो छोड़ने का कोई मतलब ही नहीं है। आप छोड़ने (त्यागने) के बारे में क्यों शेखी बघार रहे हो– आपने केवल जड़ पदार्थों को छोड़ा है।” वो साधक श्री माताजी के चरणों में गिर गया। भ्रान्ति के नगर से पर्दा उठ गया था।
जबश्रीमाताजीदिल्लीपधारीं, एक और पर्दा उठने वाला था। गुरु–सिंड्रोम (गुरु बनने की बीमारी) की भ्रान्ति में खोए हुए पुराने (वरिष्ठ योगीजनों) ने रूढ़िबद्ध उपदेश (सैद्धान्तिक उपदेश) देना शुरू कर दिया था।
श्रीमाताजीनेचिन्तनकरतेहुएकहा, “उन्होंने दूसरों पर अधिकार जताना (शासन करना) शुरू कर दिया है और सभी तरह की चीजें करना शुरू कर दी हैं, किन्तु जब उन्हें परमात्मा की शक्ति का अनुभव होगा, वे स्थापित होना शुरू हो जायेंगे। तब वे देखेंगे, ऐसी कई संयोगपूर्ण घटनाएँ व चमत्कार हो रहे हैं। तब उन्हें समझ आयेगी, ऐसी कोई शक्ति है, जो उन्हें सही मार्ग पर ला रही है।”
अभीएकऔरभ्रममुंबईमेंदूरहोनेकेइन्तज़ारमेंथा।जैसेहीदिल्लीऔरमुंबईमेंदिनदूनीरातचौगुनी (अति शीघ्रता से) सहजयोगियों की संख्या में इजाफा हुआ, उसी गति से प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी। दिवाली पूजा को आयोजित करने के लिए दो शहरों के बीच झगड़ा शुरू हुआ उस भ्रांति को हटाने के लिए परम चैतन्य ने एक नाटक दिखाया (सम्मोहित किया)।
फ्रांसकीसामूहिकतादिवालीपूजाकोआयोजितकरने वाले थे। जैसा कि सहस्रार खुलने की पच्चीसवीं साल गिरह आने से उन्होंने श्री माताजी से नारगोल पधारने की प्रार्थना की, जहां उन्होंने सहस्त्रार खोला था। अनायास, श्री माताजी की आँखों में चमक आ गई, उन्होंने कहा, “क्यों नहीं, दिवाली पूजा का आयोजन नारगोल में हो।”
श्रीमाताजीनेप्रति–स्पर्धित शहरों को स्मरण कराया कि वे शरीर की कोशिकाएँ हैं और एक हिस्से में हुई पूजा पूरे (संपूर्ण) शरीर को आशीर्वादित करती है।
इसप्रकारपूजानतोदिल्लीऔरनहीमुंबईमेंहोपाई, किन्तु नारगोल में पूजा आयोजित हुई!
समयकमथाऔरफ्रेंचयोगियोंनेनारगोलकेउसबंगलेकेबारेमेंपताकरनेकीकोशिशकी, जहाँ श्री माताजी 5 मई 1970 को ठहरी थीं। परम चैतन्य ने उन्हें उस बंगले के मालिक के फ्लैट (निवास स्थान), मुंबई की ओर मार्ग–दर्शन किया। श्री माताजी उनके बँगले को आशीर्वाद प्रदान करेंगी, यह जानकर उन्हें प्रसन्नता हुई। श्री माताजी सर सी.पी. के साथ 29 अक्टूबर की शाम को वहाँ पधारीं और उस स्थान की पूरी जानकारी उनकी स्मृति में आ गई। सहस्रार खुलने की घटना उनके स्मृति–पटल पर उभर आयी और उन्होंने उस घटना का इतनी सजीवता से वर्णन किया, जैसे कल ही उन्होंने सहस्त्रार खोला था।
(सन्-2009 में राजकीय अधिकारियों ने उस स्थान का पुन: नामकरण “निर्मला वन” किया)
जैसे–जैसे पूजा आगे की ओर प्रगति पर थी, श्री माताजी का मुख–मंडल तरुण लगने लगा। अनायास, वे अट्ठारह साल की शर्मीली तरुणी लगीं। यह एक अविश्वसनीय घटना लगी। ठीक जैसे ही उनके बच्चों का ध्यान इस स्वर्गीय–दृश्य पर गया, श्री माताजी ने अनुमोदन दिया, “जिस तरह से परम चैतन्य कार्य कर रहे हैं, यह चमत्कारिक है। बहुतों को चमत्कारिक अनुभव हुए थे, क्योंकि परम–चैतन्य अब आशीर्वादों से परिपूर्ण हैं.. हरेक चीज़ वहाँ है, किन्तु अब इसके आन्दोलन में काफ़ी गति आ गई है।”
जबयहघटनाश्रीमाताजीकोबताईगई, वे मुस्कराईं, “जैसी आपकी भक्ति है, वैसा ही आशीर्वाद आपको मिला। बहुतों को मेरे विभिन्न रूपों के दर्शनों का आशीर्वाद मिला है। आप जानते हो, मैं महामाया हूं।“
इसऐतिहासिकपूजाकीयादगारकोबनाएरखनेके लिए फ्रेंच (फ्रांसीसी) योगी सिल्वर–क्वाइन्स (चाँदी के सिक्के) लाए। जैसे ही चाँदी के सिक्कों का वितरण शुरु हुआ, बच्चे चाँदी की चमक से आकर्षित हो लुभाने लगे, धक्कम–धक्का करने लगे और सिक्कों के लिए भगदड़ मच गई।
श्रीमाताजीप्रसन्ननहींथीं, “पूजा एक कर्म–काण्ड मात्र बन गई है।“
आत्मसाक्षात्कारपानेकेबादभीआपइतनेप्रलोभनमेंपड़ेहैं।मैंनेकड़ीमेहनतकीहै।मैंनेवास्तवमेंबहुतकड़ीमेहनतकीहै।यहशरीर, यह मन, मेरा सम्पूर्ण स्वास्थ्य, हरेक चीज़ मैंने तुम्हें बचाने में चुका दी है, किन्तु अभी भी तुम्हारा समर्पण कम है।“
बच्चोंनेअपनेकानखींचतेहुएश्रीमाताजीसेक्षमायाचनाकी।वेक्षमाकीमहासागरहैं, किन्तु उस महासागर को भी ऐसे लालच (प्रलोभन) को समाप्त करने हेतु उमड़ना पड़ा था– हमेशा के लिए हृदय से ध्यान करते हुए, मस्तिष्क (बुद्धि) से नहीं!
1995
अध्याय – 43
3 दिसम्बर को श्री आदिशक्ति के स्वागत के लिए दिल्ली ने उत्सवी स्वरूप धारण कर लिया। श्री माताजी के पोस्टर्स (चित्र) हरेक प्रकाश–स्तंभ (electric pole) पर दिखाई दिए और सहज कार्यक्रम में 25000 साधक पधारे। जैसे ही श्री माताजी स्टेज पर पधारीं, चैतन्य की बौछार होने लगी। साधकों की जितनी विशाल भीड़ थी, चैतन्य का बहाव भी उतना ही ज्यादा शक्तिशाली था। सामूहिकता की पिंगला नाड़ी के तापमान ने चैतन्य में गोता लगाया और दिल्ली की सरगर्मी से भरी आज्ञा की चढ़ी त्योरियों ने श्री माताजी की मोनालिसा मुस्कान के लिए रास्ता छोड़ दिया।
श्रीआदिशक्तिप्रसन्नथींऔरदिल्लीकोसत्यशक्तिपूजासेआशीर्वादितकिया।उन्होंनेबताया, “जो साधक कहता है, मुझे कुछ नहीं चाहिये मेरी सभी सांसारिक इच्छाएँ समाप्त हो गई हैं, तब परम चैतन्य सोचते हैं, मैं तुम्हारी इच्छाएं पूरी करूँगा। तब उनकी इच्छा आपकी इच्छा होती है, तब वे आपको ऐसी चीजों की ओर ले जायेंगे, कि आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे, हमने कभी नहीं सोचा, यह कार्य कैसे हो गया? विश्व की सभी समस्याएँ और चिन्ताएँ दूर चली जायेंगी। आप दाता बन जाते हो।“
प्राय: पूजा के दौरान उनके बच्चे कुछ चीज या दूसरी चीजों के लिए पूछते थे। परिवर्तन के लिए उन्होंने पूछा वे क्या दे सकते थे। किसी चीज की फ़रमाइश करने में हमेशा अलग होने का अहसास (द्वैत–भाव) होता था, किन्तु जब उनकी इच्छा देने की हुई, वे उनके विराट स्वरूप में विलीन हो गए। दूसरों की देखभाव स्वयं से ज़्यादा करने से मस्तिष्क की परतें खुल गईं, जो उनकी आत्मा को ग्रसित किए हुए थीं। जैसे ही परम चैतन्य का परावर्तन बेहतर पूर्णता को प्राप्त हुआ, वे हर कदम पर श्री माताजी के आशीर्वाद को ज्यादा स्पष्ट देख सकते थे और इस तरह वे अपनी आत्मा की प्रति–मुस्कान का आनन्द ले सकते थे।
अनंत प्रेम की धारा देहरादून के किनारों से बह चली। आनंद के महासागर में गोते लगाने हेतु एक चल–समारोह ने साधकों को आमंत्रित किया और वे इस आनन्द–सागर में पैठ गए थे!
एकनज़दीकीडॉक्टरमित्रनेश्रीमाताजीसेलखनऊमेंएककार्यक्रमहेतुअनुरोधकिया।वेउनकेसाथमेंअपनामकानलखनऊमेंबनातेरहींथीं।आरम्भमेंवेमुस्लिमबुनियादिता (मुस्लिम–फ़ण्डामेंटलिस्ट्स) को लेकर आशंकित थी, किन्तु तब उन्होंने दया करके इसे स्वीकार लिया। आश्चर्यजनक रूप से बहुत से मुसलमानों ने अपना आत्म–साक्षात्कार प्राप्त किया। उन्होंने इस्लाम और सहज–योग पर एक अन्तर्राष्ट्रीय–फोरम (वाद–विवाद केन्द्र) बनाने की सलाह दी, ताकि मुस्लिम यह बेहतर समझ सकें कि वे (श्री माताजी) हज़रत मोहम्मद साहिब का ही कार्य कर रही हैं।
अगलेदिनश्रीमाताजीनेपवित्र–नगरी वाराणसी को आशीर्वादित किया। यद्यपि सभी पवित्र नगरों में पवित्र शहर होते हुए भी यह झूठे गुरुओं की अंतिम शरण स्थली का एक भाग निकला। इस नगरी को साफ करने का कार्य विशाल था। श्री माताजी ने वहाँ इतनी नकारात्मकता को अवशोषित किया कि वो उनके बाएं घुटने में इकट्ठी हो गई और उन्हें चलने भी नहीं देती थी, जैसे घुटने में सूजन शुरू हो गई, इससे तीव्र दर्दनाक तकलीफ हो गई। श्री माताजी ने एंटीबायोटिक्स लेने से इन्कार कर दिया और एक आयुर्वेदिक वैद्यजी को बुलावा भेजा। सौभाग्य से, परम चैतन्य सहज ही शहर के अति नामी आयुर्वेदिक वैद्यजी पूरनचंद मालवीय को ले आए, जो पास ही में रहते थे।
उनवैद्यजीनेश्रीमाताजीकीनाड़ीपरीक्षणकियाऔरघोषणाकीकिउन्हेंऐसीकोईबीमारीनहींथी।बच्चेपरेशानथे, “तब घुटने में सूजन और तीव्र पीड़ा क्यों थी?”
हाथजोड़करउन्होंनेश्रीमाताजीसेप्रार्थनाकी,
“ओ देवी (माँ)! इस धरा पर कोई शक्ति आपका इलाज़ नहीं कर सकती है, आपको कोई बीमारी नहीं हो सकती, किन्तु आप दूसरों की बीमारियाँ अपने ऊपर ले लेती हो। आपसे प्रार्थना है (कृपया) उनकी बीमारियाँ दूर करो और स्वयं को स्वस्थ करो।”
वैद्यजीकीप्रार्थनाचमत्कारिक–रूप से कार्यान्वित हुई। मिनटों में उनके घुटने से चैतन्य प्रसारित हुआ और धरती में समा गया। घुटने की सूजन उतर गई और दर्द गायब हो गया।
श्रीमाताजीबोलीं, उनके लिए बहुत काम था और उनके बच्चे उनका बोझ उनके द्वारा प्रसारित चैतन्य को अवशोषित करके कम कर सकते हैं। बच्चों का समर्पण, श्री माताजी की लहरियों को अवशोषित करने की विधि का केन्द्र बिंदु था। यह और अधिक गहन हो सकता था, उनके प्रति श्रद्धा से।
कार्यक्रममेंबच्चोंनेअपनेसमर्पणकीगहराईबढ़ानेपरध्यानकेन्द्रितकिया।श्रीमाताजीघुटनेकेदर्दबिनादोघंटेखड़ीरहीं।यहएकसंकेतथा।उन्होंनेबच्चोंकोआशीर्वाददेतेहुएइसकीपुष्टिकीतथा ‘शंकर भोले भाले ……’ गाने को कहा। भगवान शिव की कीर्ति–गान के साथ चैतन्य बहने लगा। देवी माँ ने भगवान शिव के निवास–स्थान के चैतन्य को विजय–गौरव के साथ बहाल कर दिया।
1995
अध्याय – 44
20 दिसम्बर को श्री माताजी ने एक विशाल रैली को शिवाजी पार्क, मुंबई में सम्बोधित किया। टेलीविजन चैनल्स ने श्री माताजी के मराठी वक्तव्य का सीधा प्रसारण किया, जिसमें उन्होंने साधकों को अपने महान आध्यात्मिक विरासत के अनुसरण के लिए प्रेरित किया।
अपनीप्यारीमाँकोहृदयमेंधारणकिएऔरओठोंपरप्रार्थनाएँलिएमाँकेबच्चोंनेगणपतिपुलेकोसम्मानदिया।जबमहासागरनेयोगियोंकीकायाको स्नासित किया, श्री आदिशक्ति ने उनकी आत्माओं को स्नान कराया।
क्रिसमसपर्वकीपूर्वसंध्याको, श्री माताजी ने मराठी में कैरोल गीत (क्रिसमस पर गाए जाने वाले आनन्द के गीत) के गायन का मार्ग–दर्शन किया और उनकी दैवीय वाणी ने उनके बच्चों को ईसा मसीह (रक्षक) के जन्म दिवस समारोह को मनाने हेतु स्वर्ग के राज्य में भेज दिया था। श्री माताजी ने अपने क्रूसारोपित पुत्र को स्नेहासिक्त हो याद किया। अपने पुत्र की प्रसन्नता के लिए माँ ने बच्चों को अपने संस्कारों से मुक्त होने और ध्यान करने के लिए कहा, “यदि तुम लोग ध्यान नहीं करते हो, मुझे तकलीफ सहन करनी पड़ती है।”
यहजागनेकेलिएएकआव्हानथा।माँकेबच्चोंनेसोचाकिश्रीमाताजीउनकीनकारात्मकताकोआत्म–सात करती हैं, जब वे उनके बहुत नज़दीक होते हैं, किन्तु वे सब उनके विराट शरीर में कोशिकाओं के रूप में थे और माँ को उनकी पीड़ा सहन करनी पड़ती थी। सहज–योगियों की नकारात्मकता ने श्रीमाताजी के स्वास्थ्य में बाधा डाली, जबकि उनके आपसी प्यार ने उन्हें सशक्त किया। श्री माताजी ने उनके लिए बहुत कुछ किया और बच्चों ने माँ को वचन दिया कि वे उन्हें आगे (भविष्य) में तकलीफ नहीं देंगे।
जैसेहीश्रीमाताजीनेअपनाआशीर्वाद 80 नव–विवाहित जोड़ों पर बरसाया, बच्चों ने अपनी माँ की सर्व–व्याप्त दैवीय प्रेम–शक्ति का अनुभव प्रगाढ़ता से किया। यह पूर्णतया निश्चित हो गया कि उनका वादा शान्ति, आनन्द और आध्यात्मिकता से परिपूर्ण एक नई दुनिया का हाथ–भर की दूरी पर था।
श्रीमाताजीकेविदाहोनेसेपहलेउन्होंनेहरेकयोगीकोमहान्मराठाशासकशिवाजीकीलोहनिर्मितप्रतिमा (Bust) उपहार स्वरूप दी। “उनके जीवन–वृत्त के बारे में देखने से हमें मालुम होगा कि धर्म क्या है, उनके आदर्श क्या थे और अपने आदर्शों के निर्वाह के लिए उन्होंने क्या–क्या नहीं किया। इतने अल्प–काल में उन्होंने इतना महान कार्य किया।”
मुंबईकेरास्तेमें (en route) श्री माताजी ने शिवाजी महाराज की चौंका देने वाली ज़िन्दगी की एक झलक दिखाने हेतु एक मुक्ताकाश–प्रस्तुति (open air presentation) का प्रबन्ध किया। योगीजन एक लकड़ी के मंच, जो करीब 3 मंजिल मकान की ऊँचाई का था, उस पर बैठे हुए थे। रंगमंच (स्टेज) पर दौड़ते हुए घोड़ों के सजीव दृश्य के बीच, अचानक एक जोरदार धमाके की आवाज़ हुई और मंच पर बैठे हुए योगीजन धीरे से धरती पर लाए गए, रंगमंच का ढांचा ध्वस्त हो गया था, वे उससे भी अनभिज्ञ थे। चमत्कारिक रूप से, कोई भी घायल नहीं हुआ। उस ढाँचे की ऊँचाई और उस पर 500 से ऊपर योगीजन के भार को देखते हुए यह बहुत बड़ा हादसा हो सकता था। यद्यपि श्री माताजी साकार में वहाँ उपस्थित नहीं थीं उनकी उपस्थिति का अहसास श्री कल्कि के हाथों हुआ, जिन्होंने आराम से योगियों को धरती तक सहारा दिया।
1996
अध्याय – 45
संक्रान्तिपूजाकाआयोजन 14 जनवरी को हुआ। यही दिन शालिवाहन पंचांग में निश्चित है, जो नए संवत्सर का उद्घोषक है। पंचांग का आरम्भ चंदेले मुनि ने किया, जो कि शालिवाहन राज्य के संस्थापक थे और श्री माताजी के पूर्वज थे।
12 जनवरी को वरुण ग्रह ने राशि–चक्र की कुम्भ राशि में प्रवेश किया। पुणे में संक्रान्ति पूजा पर श्री माताजी ने स्पष्ट किया कि वरुण–ग्रह कुण्डलिनी के साथ एक–सीध में आया और इसके अनुसार सहज–योग का प्रसार सुदूर चारों ओर फैलेगा, किन्तु नकारात्मकता पीछे–पीछे चल रही थी। बढ़ते हुए साधकों की संख्या के आस–पास सभी प्रकार की नकारात्मकताओं ने घेरा डाला, जो मनो–जनित समस्याओं में प्रकट हो गईं। पूजा के दौरान श्री माताजी ने इतनी शक्तिशाली चैतन्य लहरियाँ प्रसारित कीं, जिसने छिपकर घात लगायी हुई नकारात्मकताओं को भगाना शुरू कर दिया।
पूजाकीचैतन्य–लहरियाँ 25000 साधकों को पुणे कार्यक्रम में लायीं और साधकों को मंच पर आते ही तत्क्षण शीतल–लहरियों का अनुभव प्रारम्भ हो गया।
19 जनवरी को उन्होंने रोटरी क्लब, अध्यक्ष, जिसे हृदय की बीमारी थी, उसे ठीक कर दिया था। “श्री माताजी अपने बच्चों की तकलीफ नहीं सह सकती हैं और उनकी तकलीफ़ों को अवशोषित कर लेती हैं। सुबह से रात तक वे सैकड़ों बीमारों को स्वस्थ करती हैं। श्री माताजी के स्वास्थ्य पर दबाव से हम बहुत चिंतित हैं।” रोटरी क्लब अध्यक्ष बोले।
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “बीमारों को ठीक करना बहुत आसान है। यदि एक पेड़ बीमार है और आप उसकी पत्तियों का इलाज करने की कोशिश करते हैं, तब यह नहीं हो पायेगा। यह मेरा भाग्य है, मैंने उसे स्वीकार किया है। मैंने सभी तकलीफें अपने ऊपर ले ली हैं। सभी अवतरणों ने अपने भाग्य को स्वीकार किया था और दुःख उठाए। किन्तु, तब उन्होंने हार मान ली। मैं हार नहीं मान रही हूँ। पुरुषार्थ के द्वारा साधक इसका सामना कर सकता है, इसका साक्षी हो और प्रतिक्रिया नहीं करे। जीवन में घटना–क्रम नहीं बदलते, किन्तु सहज–योग के द्वारा परिणाम बदलते हैं। यदि आप अपनी सफाई करें, तो मेरा शरीर अव्यवस्था और तकलीफों से मुक्त हो जायेगा। मैंने तुम्हें अपने शरीर में ले लिया है, इसीलिये मैंने तुम्हारी बीमारियाँ मेरे ऊपर ले ली हैं।”
श्रीमाताजीपरभारकमकरनेकेलिएबच्चोंनेएकसहज–ट्रीटमेंट–सेंटर के लिए प्रार्थना की। परम चैतन्य ने पहले ही सोच रखा था। कुछ वर्षों पहले श्री माताजी ने एक भू–खण्ड (Plot) कोंकण–भवन, नवी मुंबई में अपनी स्वयं की बचत से खरीदा हुआ था। उसके बाद, उन्होंने पाश्चात्य योगियों के बच्चों के लिए एक स्कूल बनाया था। वर्ष 1991 में यह स्कूल धर्मशाला (हिमाचल) में स्थानान्तरित हो गया था और स्कूल भवन खाली पड़ा था। उन्होंने उस स्कूल भवन का जीर्णोद्धार (renovation) सहज योग रिसर्च और हेल्थ सेंटर के लिए करवाया था। बड़े हॉलों को छोटे आराम–देह कमरों में मरीजों के लिए परिवर्तित किया गया और आँगन को एक सुन्दर बगीचे (lawn) के रूप में परिवर्तित किया गया। उन्होंने स्वयं अपने हाथों फर्नीचर व अन्य सामान चुनकर अपने वात्सल्य से सुसज्जित किया।
थानेकेसहज–कार्यक्रम से सीधे, उन्होंने सहज–योग रिसर्च और हेल्थ सेंटर को 19 फरवरी को उद्घाटित किया। डॉ यू. सी. रॉय ने मेहरबानी से अपनी सेवाएं इस सेंटर की देखरेख के लिए अर्पित कीं, डॉक्टरों की एक टीम के साथ, जो सहज ट्रीटमेंट (सहज उपचार) में पारंगत थी। यद्यपि इलाज मुफ़्त था, किन्तु अस्पताल के रख–रखाव के लिए कमरों का किराया वसूला जाना था।
डॉ. राय ने श्री माताजी से मार्ग–दर्शन के लिए प्रार्थना की, मन और बुद्धि की बीमारियों की जटिलता पर “मनोदेहिक बीमारियों के क्या–क्या विभिन्न क्रमचय और संचय होते हैं?”
श्रीमाताजीनेकहा, “मानव की सम्पूर्णता का इलाज इस कुण्डलिनी के द्वारा होता है, क्योंकि जब यह उठती है, तब एक धागे की तरह चक्रों के पीठों से गुजरती है और आपका योग परमात्मा की सर्व–व्यापक शक्ति से कराती है, जो बाद में आपके चक्रों को पूरी तरह से स्वस्थ करती है।“
श्रीमाताजीनेस्पष्टकियाकिएकव्याधिग्रस्तव्यक्तिकेवलआत्म–साक्षात्कार मात्र से ही स्वस्थ नहीं हो सकता, उसके किए रोज़ (नियमित) ध्यान–धारणा करना आवश्यक है और सहज–उपचार तकनीक ज़रूरी है।
23 जनवरी को श्री माताजी ने शिवाजी पार्क में एक विशालकाय जन–समूह को संबोधित किया।
अन्तर्राष्ट्रीयव्यापारीसंघ YPO फोरम ने श्री माताजी को मुंबई के ओबेरॉय होटल में अन्तर्राष्ट्रीय–कान्फ्रेंस को संबोधित करने हेतु आमंत्रित किया। बच्चों ने श्री माताजी के विचार परिवर्तन की कोशिश करते हुए कहा कि YPO तुच्छ करोड़पतियों का एक क्लब है, जिन्हें साधना की कोई इच्छा नहीं थी। उन्होंने बाईबल का दृष्टांत देते हुए कहा, “धनवान लोग परमात्मा के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते।”
श्रीमाताजीनेकहा, “मैं इस बात से सहमत नहीं हूं, क्योंकि कुछ अति धनवान लोग सहज–योग में आए और धनवान से और ज्यादा धनवान हो गए, केवल वाह्य (भौतिकता) में नहीं, बल्कि आंतरिक–रूप (आध्यात्मिक–रूप) से भी धनवान हो गए। सहज में आप अपने ही मूल्यों का आनन्द लेते हैं, स्वयं की उदारता का आनन्द लेते हैं….आप आनन्द के महासागर में कूद पड़ते हैं।”
निश्चयही, वे आनन्द के महासागर में कूद पड़े थे। उन्होंने श्री माताजी का उनके होटल–कक्ष (suite) तक अनुसरण किया, वे और जानना चाहते थे, ज्ञान–पिपासु थे। श्री माताजी ने अपने ऑस्ट्रेलियन–टूअर की तैयारी के बीच उनके प्रश्नों के उत्तर देते हुए उनकी ज्ञान–पिपासा (प्यास) को अपने वात्सल्य के अमृत से बुझाया (शांत) किया।
1996
अध्याय – 46
श्रीमाताजी 29 फरवरी को सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) पधारीं। बच्चों को देखते ही उनकी आँखें आनन्दाश्रुओं से भर गईं। श्री माताजी के इस आनन्द में वर्षा के रूप में पंच महाभूतों ने अपना योगदान दिया।
एक रेडियो साक्षात्कार में एक पत्रकार ने पूछा, “एक सहजयोगी के रूप में हमें क्या इच्छा करनी चाहिये?”
श्री माताजी ने उत्तर दिया, “मोक्ष और स्वातंत्र्य।“
उनकेसंदेशनेउनकेबच्चोंकीसुषुम्नाकोआगामीमहाशिवरात्रि–पूजा के लिए पूर्णतया खोल दिया। बुन्दिला कैंप पर 3 मार्च को महाशिवरात्रि–पूजा के आयोजन पर श्री माताजी ने स्पष्ट किया, “मैं महामाया हूँ। मेरे बारे में प्रत्येक और सब कुछ जानना आपके लिए कठिन है। मैं एक बहुत ही चालाक (माया–मय) व्यक्ति हूँ और जो भी मैं करती हूँ या प्राप्त करती हूं, यह मात्र तुम्हारे देखने और समझने के लिए है– आखिरकार वे आदिशक्ति हैं, वे ये सब कार्य (चीजें) कर सकती हैं।”
उनकेपाससंसारकोपरिवर्तितकरनेकीशक्तिथीऔरबच्चेइसपरिवर्तनकीप्रक्रियाकोतेजीसेगतिशीलकरसकतेथे, यदि उनका विश्वास श्री माताजी में और ज्यादा विकसित हुआ होता। सिडनी शहर के सबसे विशाल सभागृह “द सिडनी डार्लिंग हार्बर कन्वेंशन सेंटर” (सिडनी बंदरगाह का प्रिय अधिवेशन केन्द्र) 3000 आत्म–साक्षात्कार प्राप्त साधकों को स्थान देने में बहुत छोटा सिद्ध हुआ, किन्तु श्री माताजी के हृदय में उन्हें धारण करने कि लिए पर्याप्त से भी ज्यादा जगह थी और वे श्री माताजी के सुन्दर नए संसार में बने रहने के लिए– आनन्दातिरेक में मस्त थे।
श्रीमाताजीनेसहजयोगियोंकेमनपरप्रभावडालतेहुएकहा, उन्हें अपना आपा नहीं खोना है और नव–जात सहजयोगी बच्चों पर नाराज नहीं होना है! “उनके प्रति दयालु रहें, कम बोलने की कोशिश करें और काम ज्यादा करें। उनकी कुण्डलिनियों को उठाएँ, किन्तु उन्हें स्पर्श न करें, यह जरूरी नहीं है।“
5 मार्च को श्री माताजी ताइपे पहुंचीं। वे शेराटन होटल की सोलहवीं मंजिल पर ठहरी थीं, जब एक भूकम्प ने होटल को हिला दिया। होटल शेराटन एक पेण्डुलम की तरह झूलने लगा। श्री माताजी ने एक बंधन दिया और कम्पन बन्द हो गया। रिक्टर पैमाने पर भूकंप 4.5 था। श्री माताजी ने बच्चों को आश्वस्त किया, चिंता न करें, लघु से मध्यम आकार के भूकंप नियमित रूप से धरती के तनाव को मुक्त करते हैं, इस तरह एक बड़े भूकंप को टाल दिया गया।
कार्यक्रममेंश्रीमाताजीनेज़ाहिरकियाकिमस्तिष्क (मन) एक अवास्तविक रचना है, जो अहंकार और प्रति अहंकार से सृजित हुई। यह विचारों के बुलबुलों से ज्यादा कुछ नहीं। वे साधकों की विशेषताओं से प्रसन्न थीं। होटल पहुंचने के रास्ते उन्होंने चीनी–लेंटर्न–त्यौहार (कंदील त्यौहार) के रंगारंग प्रदर्शन को सानंद देखा।
हाँगकाँग के लिए रवाना होने से पूर्व, उन्होंने सामूहिकता को नवजात बच्चों (नवजात योगियों) को कैसे रखना है– यह निर्देशित किया, “उनके प्रति बहुत ही कारुण्य–भाव से और धैर्य से रहें, किन्तु तुम्हें स्वयं को पता होना चाहिये कि तुम्हारे बीच में (सामूहिकता में) कौन से चक्रों में बाधा है। तुम्हें सहज–योग की भाषा में बात करना चाहिये, ताकि वे परेशानी या शर्मिंदगी या आहत न महसूस करें, क्योंकि तुम सहज–योग के बारे में इतना सारा जानते हो।“
श्रीमाताजीकेहाँगकाँगपधारनेपरमौसमअचानकचीनीलोगोंकीपिंगलानाड़ी को शीतलता प्रदान करने के लिए ठंडा हो गया। श्री माताजी ने सुन्दर नए संसार में एक 1000 बच्चों के आत्म–साक्षात्कार प्राप्त होने पर, उनकी आँखें करुणा के आँसुओं से भर आईं ।
श्रीमाताजीनेनवजातबच्चोंकोदोनोंहाथऊपरउठानेकेलिएकहाऔरपूछा “क्या यह परमात्मा के प्रेम की शक्ति है?”
शीतललहरियोंनेहॉलमेंझरना–सा बहा दिया। श्रीमाताजी ने बहुत सारी नकारात्मकता को अवशोषित किया और उनके सोने के पहले सहज–योगियों ने पूरी रात बैठ कर मां के चरणों से निकले चैतन्य को अवशोषित किया।
अगलेदिन, नाश्ते के समय श्री माताजी ने उनके द्वारा की गई भविष्यवाणियों को याद किया जो घटित होने वाली थीं। 20 वर्ष पूर्व उन्होंने प्रोटीन कोशिकाओं (protein cells) के बारे में भविष्यवाणी की थी, जो कैंसर की शुरुआत करते हैं। पुनः अपनी पहिली अमेरिकी यात्रा में 1972 को उन्होंने अमेरिकियों को एड्स (AIDS) जैसी बीमारियों के बारे में सचेत किया था, यदि उन्होंने अपने मूलाधार चक्र की हिफाज़त नहीं की। उन्होंने दृढ़ता से कहा था, ये सब भविष्यवाणियाँ 25 वर्षों में घटित होंगी, सत्य सिद्ध होंगी। उन्होंने बताया कि नोस्त्रादामस की भविष्यवाणियाँ अस्पष्ट और सही नहीं है। जब कि विलियम ब्लेक की भविष्यवाणियाँ सही थीं।
एकयोगिनीनेवर्णनकियाकिआत्म–साक्षात्कार प्राप्त करने के बाद उसे बहुत फायदे हुए और उसे आश्चर्य हुआ कि ये फायदे क्यों अचानक बन्द हो रहे थे। श्री माताजी ने समझाया कि आन्तरिक–समृद्धि को बनाए रखने के लिए, उसे सहज–योग का प्रसार करते हुए, अपना ध्यान दूसरों पर बनाए रखना है।
कुआलालम्पुर (मलेशिया) विदा होने से पूर्व श्री माताजी ने एक आनन्दमयी सन्ध्या अपने बच्चों के साथ हारमोनियम पर भजन सिखाते हुए व्यतीत की। श्री माताजी ने उन्हें कलोइसोन–चॉपस्टिक्स और हस्तशिल्प से बने खिलौनों के साथ छोटे पेय पदार्थ (soft drinks, सॉफ्ट ड्रिंक्स) से आशीर्वादित किया।
श्री माताजी ने 2000 ज्ञान–पिपासु बच्चों को कुआलालम्पुर कार्यक्रम में बहुत प्यारी वाणी में बताया, “मानव–जीवन बेशकीमती है और इसका पूर्ण अर्थ प्राप्त करना चाहिये। आत्म– साक्षात्कार जैसा अनमोल उपहार व्यर्थ नहीं जाना चाहिये।”
सुबहश्रीमाताजीइंडिया–टुअर के लिए खरीददारी हेतु गईं। दुकान के मालिक सहज योग के बारे में विस्तारपूर्वक जानना चाहते थे और उन्होंने श्री माताजी से अपने कैफेटेरिया को आशीर्वादित करने के लिए अनुग्रह पूर्वक प्रार्थना की। श्री माताजी ने स्वीकृति दी, “आप इतने प्यार से माँग रहे हैं, अत: मैं नकार नहीं सकती हूँ।”
कैफेटेरियासहजहीएकआत्म–साक्षात्कार कार्यक्रम में परिवर्तित हो गया।
शामकोवे ‘द सन’ और ‘द स्टार्स’ न्यूज़ पेपर्स के रिपोर्टर्स से मिलीं। एक रिपोर्टर ने पूछा, “श्री माताजी जब आपके अनुयायी (शिष्य) आपको परमात्मा समझते हैं, आप कैसा महसूस करती हैं।“
श्रीमाताजीनेअनुक्रियाव्यक्तकरतेहुएकहा, (responded) वे किसी से नहीं कहतीं कि उन्हें उस तरह से परमात्मा (दैवीय शक्ति) सम्बोधित किया जाय। उन्होंने उन्हें जो भी सम्बोधन दिया, उन्होंने अपनी स्वेच्छा से पाया है और इसे बदला नहीं जा सकता। हालांकि परमात्मा की दैवीय शक्तियाँ बहुत से (वाङ्मय) ग्रंथों में वर्णित हैं और जब उन्होंने श्री माताजी में उन शक्तियों को पाया, उन्होंने उन्हें आदिशक्ति (देवी माँ) पुकारना शुरु कर दिया ।
श्री माताजी के वात्सल्य ने उस पत्रकार महोदय के अहंकार को पिघला दिया और वह एक शिशु–सम बन गया। यद्यपि वह और प्रश्न पूछना चाहता था, किन्तु वह निर्विचार हो गया।
श्री माताजी ने बच्चों को प्रभावित किया कि वे अपने राष्ट्रों की समस्याओं पर अपना चित्त डालें और उन्हें सामूहिक बन्धन दें।
14 मार्च को श्री माताजी बैंकाक पधारीं। विमान पत्तन (airport) से सीधे श्री माताजी थाई देश के संसद अध्यक्ष के साथ एक सभा में पहुंचीं। उन्होंने जानना चाहा यदि वे थाई देश के मंदिरों की यात्रा पर आईं थीं। श्री माताजी ने कहा, “मैं यहाँ मंदिरों के दर्शन–यात्रा पर नहीं आई हूँ, बल्कि मानव–मात्र के हृदय में परमात्मा के मंदिर बनाने आई हूँ।“
एककार्यक्रममेंडॉ. साटिन (थाई–संसद के उपाध्यक्ष) ने कहा, “श्री माताजी अपने बच्चों को ढूँढने पधारीं हैं, उन्हें विशेष ज्ञान (आत्म–साक्षात्कार) प्रदान करने और थाई देश–वासियों की मदद करने पधारीं हैं।”
एकशांतसन्ध्याकोअपनेबच्चोंकेसाथश्रीमाताजीनेएकगुप्तरहस्यअपनेबच्चोंकोबताया, कैसे उनका मंदिर हृदय में बनाना है, “यदि कोई व्यक्ति तर्क–वितर्क करता है, बस छोड़ दें, उससे विवाद न करें, क्योंकि आपको अपने मस्तिष्क के स्तर से परे जाना है….., आप उन्हें नहीं कह सकते, यह नहीं करो, वह नहीं करो। केवल आत्मा के प्रकाश से ही वे ठीक हो सकते हैं। इसलिए मुख्य चीज़ है कि आप उन्हें आत्म–साक्षात्कार दें, और उन्हें आत्म–विश्वास अनुभव होने दें/खुद पर भरोसा होने दें, ताकि वे समझ जायेंगे कि वे भी आपकी तरह बन पाएंगे। वे पहले से ही दु:खी हैं और हमें अपनी पूरी करुणा (दया) का उपयोग करना चाहिये।“
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अध्याय – 47
श्रीमाताजीकेजन्म–दिवस मनाने का उत्सव 19 मार्च को दिल्ली के स्काउट–कैम्प पर आरम्भ हुआ। श्री माताजी ने दिमागी–भ्रान्ति पर चिन्तन किया, जिसे साधकों को सत्य को प्राप्त करने के लिए काबू करना था। युवा शक्ति ने भ्रान्ति (माया) पर एक हास्य–व्यंग्य द्वारा प्रमुखता से समझाया कि कैसे साधक–गण सहज–योग तक पहुँचने के लिए छद्म गुरुओं के चंगुल से मुक्त हुए।
श्रीमाताजीपूजाप्रवचन (विषय) पर लौट आईं, “आप मेरा जन्म दिवस मना रहे हैं। अब मैं बहुत बूढी–सी लगती हूँ, यद्यपि मैं ऐसा नहीं सोचती, क्योंकि मैं सोचती नहीं। व्यक्ति को बुद्धि से परे जाना होता है।“
पूजानेबच्चोंकोबुद्धिसेपरे (मन से परे) उठा दिया। वे भूत और भविष्य के दलदल की समय सीमा और दूरी से बाहर जा चुके थे, किन्तु वर्तमान बिल्कुल खाली नहीं था, यह खुशियों के मारे बुलबुला रहा था!
खुशीसेओत–प्रोत (उछाल भरते हुए) छोटे बच्चों ने देवताओं की वेश–भूषा में जन्म–दिवस केक की गाड़ी खींचते हुए श्री माताजी को भेंट की। उन बच्चों ने श्री माताजी को चूमने और उनसे लिपटने की गहन इच्छा जताई, किन्तु श्री माताजी की सेवा में उपस्थित आंटियों ladies ने उन्हें ऐसा न करने का निर्देश दिया। अच्छा, जब बच्चों की बारी आई, वे इतने चुस्त (त्वरित) थे कि ये महिला सेविकाएँ (aunties) जान पाएं, (उसके पूर्व) उन्होंने अपनी शुद्ध इच्छा को पूरा कर लिया था, वे आगे हो लिए अपनी माँ को चूमने और लिपटने (प्यार भरी झप्पी देने), सहजी–गण हँसने लगे और ताली बजाकर प्रशंसा की, जैसी श्री माताजी ने प्रशंसा की। अबोधिता बहुत से कार्य करवा सकती है! ऐसा लगा कि हरेक व्यक्ति की हृदय–अनुभूतित मनोकामना बच्चों के माध्यम से परिपूर्ण हो चुकी थी!
श्रीमाताजीनेअपनाप्यारउनबच्चोंपरबरसादियाऔरबच्चेगानेमें, नृत्य करने में और हास–विलास में मंत्र–मुग्ध हो गए थे। ऐसा कि पूजा भी उतनी जल्दी समाप्त हो गई। बच्चों की इच्छा, प्यार से हमेशा अपनी मां की ओर अपलक (टकटकी लगाए) निहारते रहने की, व्यक्त करने की, हमेशा के लिए आगे बढ़ गई।
श्रीमाताजीनेकरुणाकरकेबच्चोंकीतीव्रइच्छागुड़ी–पड़वा पर परिपूर्ण की। उन्होंने बच्चों का उत्साह–वर्धन किया, स्वयं में पूर्ण विश्वास करने और “सहज योग की कार्य–प्रणाली में आपकी चैतन्य–मय श्रद्धा और पूर्ण विश्वास होना चाहिये। मुझे देखो, मैंने अकेले ही सहज योग फैलाया है। यदि तुम्हें कुछ शक हो तो मुझे पूछो। आपको बताने के लिए बात करने के लिए भगवान नहीं हैं, किन्तु मैं यहाँ उपलब्ध हूँ। अब से, सहज–योग संदेह मुक्त होना चाहिये।”
दिल्लीकेव्यापारीसमुदायकीभीश्रीमाताजीके आशीर्वाद के लिए तीव्र इच्छा जागृत हुई और 5 अप्रैल को उनकी साधना को धन की भ्रान्ति से आध्यात्म की ओर परिवर्तित कर दिया।
एकवरिष्ठव्यापारीजिसेअपनेभ्रमकेघेरेकोतोड़नेमेंसफलतामिली, उसने श्री माताजी की उपस्थिति को इसकी वजह बताया, “मुझे आपकी उपस्थिति में निर्विचार–चेतना महसूस हुई, इससे प्रतीत हुआ कि सहज–योग मात्र ध्यान–धारणा से बहुत आगे है।“
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “जब आप सामूहिक ध्यान में आवोगे, आपका यह अनुभव और भी गहन होगा।”
9 अप्रैल को श्री माताजी ने मेडिकल कॉन्फरेंस (चिकित्सकीय–सभा) को ‘लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज‘ में संबोधित किया। श्री माताजी ने समझाया कि सहज–योग पूरी चीज (विषय) का समन्वय है, जहाँ यदि कोई बीमार पड़ता है, तो उसके आंतरिक बुनियादी ढांचे का अवलोकन किया जाता है।
अगलेसाप्ताहिककार्यक्रमोंमेंसहजयोगकार्यक्रमकोलकातामेंहुए।उनकीप्रेम–शक्ति ने बच्चों के दिलों और उनके घर–परिवार का भेदन कर दिया था। उन्होंने साधकों का घर पर स्वागत किया और उनके ऊपर अपनी मां के प्रेम की बौछार की। वे अपने बच्चों के बीच प्रेम (अपनत्व) देखकर बहुत प्रसन्न हुईं और बोलीं, यह देवी मां की बंगाल पर विशेष कृपा थी।
14 अप्रैल को आयोजित ईस्टर–पूजा पर उन्होंने बच्चों को पुनर्जन्म (आत्म–साक्षात्कार) के संवाद को प्रसारित करने हेतु प्रभावित किया, इसके बिना देश की स्थिति में सुधार नहीं होगा।
अगलेदिनश्रीमाताजीनेपालप्रस्थानकरगईं।तांत्रिकोंनेनेपालकीइड़ानाड़ीकोपकड़ाहुआथा।उन्होंने चेताया कि यदि सामूहिकता ने उन्हें उखाड़कर फेंक नहीं दिया, वे देश को समाप्त कर देंगे। पिछले वर्ष के विदाई समारोह से भिन्न, इस वर्ष अपशकुन–प्रभाव ने उनके दमकते हुए मुखमंडल की मुस्कान को ग्रहण लगा दिया। श्री माताजी के कपाल पर चिंता की रेखाएँ नेपाल वासियों को आश्चर्य में डाल रहीं थीं…. (सन् 2007 में नेपाल में राजतंत्र समाप्त हो गया था।)
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अध्याय – 48
2 मई को इटली ने श्री माताजी का सम्मान ‘1996 La Plejade Award’ ‘प्लेजेड अवार्ड वर्ष 1996′ से किया। इस इनाम के संरक्षक (आश्रयदाता) प्रेसीडेन्सी ऑफ द कौंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स, द यूरोपियन पार्लियामेंट ऑफीस, द प्लानिंग इंस्टिट्यूट फॉर क्वालिटी ऑफ लाइफ, यूनीपाज़, द कॉसमॉस इन्टरनेशनल और आर्ट्स इवेंट्स एसोसिएशन थे।
दसवेंअन्तर्राष्ट्रीयअवार्डकेन्यायाधीशोंनेकहा, “एक दुनिया, जहाँ कोई सामूहिक रूप से व्यक्ति (मानव) की समस्याओं और मानवता हेतु, समस्याओं को हल करने की त्वरित आवश्यकता को महसूस कर सके, जो मानव के अस्तित्व के संज्ञान की सतर्कता की गहराई में जाने की आज्ञा दे सके, जो इसकी खोज में हैं, वे सहजयोग की संस्थापिका श्री माताजी सभाओं/अधिवेशन की पहल द्वारा मानव के उत्थान के पथ पर नई दिशाएँ प्रस्तावित कर रही हैं और एक संतुलित और शान्त समाज की नींव (बुनियाद) को स्थापित करने में मदद कर रही हैं, जहाँ शांति को वास्तव में महसूस किया जा सके, हरेक व्यक्ति के अंतरतम (आत्मा) में अनुभव कराते हुए।”
एकपोलैंड–वासी महिला ने एक पत्र भेजा यह वर्णित करते कि उसकी माँ को कैंसर था और यदि श्री माताजी परमात्मा हैं, उन्हें उसकी मां को कैंसर–मुक्त करना चाहिये। श्री माताजी ने टिप्पणी करते हुए कहा, “वह महिला इतनी चिन्तित है, यहाँ तक कि वह मुझे आह्वान (challenge) कर रही है, यह ठीक है! चाहे वह मुझे ईश्वर माने या न माने, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैं जो हूँ, वह हूँ। वो मानव–मात्र है और उसकी माँ बीमार है और वही उसकी जिंदगी का सहारा है, तब मैं समझती हूँ वह इतनी परेशान क्यों है।”
सहस्रारपूजाकेठीकपहलेउसपोलैंड–वासिनी महिला ने एक बड़ा बुके (गुलाब पुष्पों से आच्छादित टोकरी), उसकी माँ को कैंसर मुक्त करने के लिए धन्यवाद–हेतु श्री माताजी के चरण कमलों में प्रेषित की।
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “यदि इतने सारे सहस्रार खोले जा सकतें हैं, तो इस दुनिया का सहस्रार क्यों नहीं खोला जा सकता।“
सम्पूर्णविश्वकेसहस्रारकोखोलनेकेलिएबच्चोंनेश्रीमाताजीसेप्रार्थनाकी।श्रीमाताजीनेउनकीशुद्ध–इच्छा को आशीर्वादित किया और पूजा के दौरान विश्व के सहस्रार की हजारों पंखुड़ियां खिल गईं।
बच्चोंनेश्रीमाताजीको 108 धन्यवाद उनके चरणारविन्द में अर्पित किए और सर्वोपरि, उन्होंने श्री माताजी को उन्हें अपने बच्चों के रूप में स्वीकारने के लिए धन्यवाद दिए।
पूजा के पश्चात् एक ऑस्ट्रियन सहजयोगी डॉ. हमीद ने श्री माताजी से कुछ बीजों को चैतन्यित करने हेतु प्रार्थना की। इन चैतन्यित बीजों को वे बोस्निया को उनकी चैतन्य–लहरियां ठीक करने के लिए दान करना चाहते थे और साथ ही उनकी उजड़ी हुई भूमि में माँ के प्यार (चैतन्यित बीजों) को बोना चाहते थे।
डॉ. हमीद बोस्निया पहुंचे और उनके ट्रक पर बैनर लगा था, “प्यार कोई सीमा नहीं जानता।” बहुत से किसान उनसे मिले, किन्तु से विषम परिस्थिति में थे, उन्हें ये बीज दें या नहीं, हो सकता है वे उन बीजों को बेच डालें। उन्हें श्री माताजी की सलाह याद आई, “यदि आप असमंजस की स्थिति में हो, तब तुरंत सहस्रार पर जाकर थोड़ी देर ध्यान में चले जायें और आपको उत्तर मिल जायेगा।”
जैसेवेध्यानकीअवस्थामेंथे, एक अजनबी उनके पास आया, “क्यों महाशय! आप सो रहे हैं?” उन्होंने उन्हें अपनी विषम परिस्थिति के बारे में बताया और उस अजनबी व्यक्ति ने उन्हें यूनाइटेड नेशन्स के ‘विश्व–खाद्य संगठन‘ का रास्ता बताया।
ऑफीसडेस्कपरबैठेहुएप्रबन्धकनेप्रसन्नतापूर्वकतालीबजाकरकहा, “आपको जरूर ईश्वर ने भेजा होगा। कल हमें अपने सभी किसानों को बिना बीजों के भेजना पड़ा था।“
डॉ. हमीद मुस्कराए, “यह सत्य है, मुझे परमात्मा ने ही भेजा है।”
बादमें, मातृ–दिवस की दोपहर को श्री माताजी ने टिप्पणी की, “मैंने अपना काम पहले ही कर दिया है, किन्तु केवल तुम सब लोगों के द्वारा ही सहज–योग को फैलना चाहिये। मेरी कोई इच्छा नहीं है, मैं निरीच्छ हूं, किन्तु तुम्हें इसे फैलाने की इच्छा होना चाहिये। मुझे कोई भी इच्छा नहीं है, किंतु यदि कोई इच्छा है भी, वह यही है कि सहज योग हरेक–व्यक्ति तक फैलना चाहिये।”
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अध्याय – 49
श्रीआदिशक्तिपूजा 9 जून को कबेला में आयोजित हुई। मेज़बान देश हॉलैंड, बेल्जियम, स्पेन और फिनलैंड ने एक नाटक का प्रदर्शन किया, हॉलैंड के अधार्मिक–कानूनों के बारे में, जो पाँच ग्राम तक की ड्रग्स (नशीली दवाइयों) की बिक्री पर मान्यता प्रदान करते थे। श्री माताजी अपने बच्चों की धर्म को समर्थन देने की इच्छा और उनके देशों में हो रही अनैतिक–कृत्यों से चिन्तित, बच्चों से प्रभावित थीं। बच्चों की चिन्ता इन समस्याओं को परमात्मा के चित्त में ले आई और इस तरह परम चैतन्य आधुनिक युग की समस्याओं को हल कर पाए। यदि यह आदिशक्ति के लिए नहीं हुआ होता, जिन्होंने एक अवतरण लिया था, यह आधुनिक युग की समस्याओं को हल कर पाना सम्भव नहीं हो सकता था, क्योंकि इसे हल करने के लिए ऐसी हस्ती (व्यक्तित्व) होना चाहिए था, जो मानव जाति की गलत–स्वभावों, भद्दी मूर्खता को घेर सकती थी। इस व्यक्तित्व को ऐसा अवतरण होना चाहिये जो मानव को सम्पूर्णता से (पूर्ण रूप से) वास्तविकता में देख सके।
डिनर (रात्रि भोजन) के बाद श्री माताजी का ध्यान ड्रग्स (नशीली दवाओं) के सेवन की समस्याओं पर लौट आया, “आपको ड्रग्स–एडिक्शन से मुक्त होने के लिए पैसों की जरूरत नहीं है, केवल ड्रग्स–एडिक्टेड लोगों को आत्म–साक्षात्कार प्रदान करें। रातों–रात वे उन पदार्थों का सेवन छोड़ देंगे। आपकी आत्मा की शक्ति ऐसी है, केवल आत्मा के अस्तित्व की स्वीकारिता आपके चित्त में लाई जानी चाहिये!”
डच (हालैंड वासी) लोगों ने शिकायत की कि कई बार चैतन्य–लहरियां शीतल होने पर भी समस्याएँ हल नहीं हुईं।
उनके प्रश्न का उत्तर श्री माताजी ने पूजा–प्रवचन में दिया, “हमने चैतन्य–लहरियां देखीं, तो भी समस्याएँ वैसी ही रहीं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। कोई बात नहीं! आपने चैतन्य लहरियों पर कार्य किया– काफ़ी है। आपको केवल खेल (नाटक) देखना है, यह आपका सरदर्द नहीं है……. यह आदिशक्ति का सुन्दर खेल है। यदि आप साक्षी–अवस्था में हो (दृष्टा हो) आपका विलय (एकाकारिता) ईश्वरीय–शक्ति में हो जाता है।”
बच्चोंनेअपनाचित्तअपनीकुण्डलिनीपररखतेहुएश्री आदिशक्ति की पूजा की। उनकी पूरी सुषुम्ना श्री माताजी के वात्सल्य से भीग गई थी। हर चीज अर्थ–हीनता में धूमिल हो गई। केवल एक चीज़ महत्वपूर्ण थी, श्री माताजी के वात्सल्य के क्षण का आनंद लेना, मज़ा उठाना, जिस तरीके से भी यह प्रकट हो। चाहे उनके बच्चों की शुद्ध इच्छा को इसका आशीर्वाद मिले या न मिले, यह तर्क (वाद–विवाद) का मुद्दा न बना।
जिनोआकार्यक्रमसेप्रेरितसमाचार–पत्र में दो लेख प्रकाशित हुए, ‘मंत्रमुग्ध (प्रसन्न) भारत श्री माताजी निर्मला देवी के साथ रहता है।’ और ‘महान माँ जो शान्ति का मार्ग–दर्शन करती है।’
जिनोआकेसाधकोंनेअपनाह्रदयखोलदियाऔरमां से उनके सुन्दर नगर में बसने की प्रार्थना की। चैतन्य लहरियों की शीतलता श्री माताजी के प्यार (वात्सल्य) के बहाव को प्रकट करने का प्रयत्न कर रही थी। बहुत समय पूर्व ही श्री माताजी ने जिनोआ में एक विला खरीद ली थी!
इसकेतुरंतउपरान्त, श्री माताजी के वात्सल्य के आन्दोलन ने रॉयल अल्बर्ट हॉल के साधकों को आशीर्वाद प्रदान किया। हाल ही में, इंग्लैंड और जर्मनी के बीच हुए फुटबॉल मैच के बाद हुई हिंसा की घटना का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, लोगों का चित्त इतना ज्यादा उलझ गया कि वे लड़ने–झगड़ने लगे। वास्तव में, इससे बहुत थोड़ा फर्क पड़ता है कौन जीता या हारा! इसी तरह से, सांसारिक मोह ने लोगों के चित्त से परमात्मा की सर्वव्याप्त प्रेम–शक्ति के चलन के साक्ष्य भाव (दृष्टा–भाव) को ग्रसित कर लिया।
एककार्यक्रमकेबाद, साधकों में से एक महिला ने श्री माताजी का आलिंगन किया (गले लगी), वो महिला उनके महाविद्यालय के दिनों की पुरानी मित्र निकलीं। दोनों ने लुधियाना मेडिकल–कॉलेज में साथ ही पढ़ाई की थी। श्री माताजी ने उन्हें गर्म–जोशी से कबेला की गुरु–पूजा हेतु आमंत्रित किया।
5 जुलाई को उन्होंने सहज–कार्यक्रम हेतु हंगेरी, बुलगेरिया, रोमानिया और चेकोस्लोवाकिया के लिए प्रस्थान किया।
उन्हेंप्रागसेमॉस्कोकेलिएहवाईउड़ानपकड़नीथी।किसीकारण (मालूम नहीं कैसे) वोल्फ गैंग (Wolf Gang) ने उड़ान के छूटने का समय गलत पढ़ लिया था और जब उन्हें अपनी गल्ती का अहसास हुआ, तब उड़ान आधे घंटे में छूटने वाली थी। श्री माताजी अभी भी होटल में थीं और जब वे हवाई अड्डे (विमान–पत्तन) पर पहुंचीं, यात्री विमान में बैठ चुके थे। विमान में बैठाने वाली ग्राउन्ड–होस्टेस (परिचारिका) बहुत ज्यादा अभद्र (गंवारू) थी और वोल्फ गैंग (सहजयोगिनी) पर चिल्लाई, उनकी आँखों में आँसू थे। अचानक, आकाश जो एक मिनट पहले साफ था, वह काले डरावने बादलों से आच्छादित हो गया और मूसलाधार बारिश होने लगी। वह हवाई उड़ान (फ्लाइट) रद्द कर दी गई। श्री माताजी ने टिप्पणी की, उनके बच्चों का प्यार इतना शक्ति–शाली था कि उस प्यार की एक बूंद भी सभी पंच–तत्वों को हिला सकती थी।
श्रीमाताजी 28 जुलाई को गुरु पूजा के लिए कबेला लौट आईं। उनके शब्दों पर उनके बच्चों का हृदय कृतज्ञता से द्रवित हो गया, “यदि मेरे जीवन में मैं इतने सारे बच्चों को परिवर्तित देखती हूँ, इतने सुन्दर और अच्छे लग रहे हैं, ऐसे सुन्दर वातावरण का सृजन करते हुए मेरे लिए यह परम संतोषप्रद है। कभी–कभी मैं सोचती हूँ, अब कुछ करना बाकी नहीं रहा–समाप्त हो गया।“
“मेरा केवल स्वप्न है कि सभी सहज–योगियों को प्यार की शक्ति में भीगा हुआ देखूं, एक दूसरे के प्रेम का आनन्द लेते हुए, एक–दूसरे के सम्बन्ध का आनन्द लेते हुए और संबंधों को सुधरते हुए… मैं जानती हूँ कि समस्याएँ हैं, किन्तु आप लोग समस्याओं को हल नहीं कर सकते, तो गुरु बनने का क्या फायदा!”
बच्चोंकोसमझआयाकिगुरुकीसंतुष्टिकास्रोतकरुणाहैऔरउनकीबुद्धिनहीं।
बच्चोंकासचेतमस्तिकजोसतर्कतासेभरपूरहै, वह श्री माताजी की सूक्ष्म–शक्ति को ज्यादा स्पष्ट देख सकता था, जिसने पूरे जीवंत काम का जादू दिखाया। यह एक बल है, उनकी बुद्धि–चातुर्य से उत्तम और जिसने करुणा के प्रवाह को विवश किया है। अत: करुणा की शक्ति योगियों के प्रति–अहंकार (अति–संस्कारिता), पसंद और नापसंद को लगाम लगा सकती थी। इसके विपरीत, यह शक्ति उस व्यक्ति के हृदय को, जिसे नापसंद (घृणित) किया गया था, उस पर भी काबू करने हेतु लगाम लगा सकती थी। इस प्रकार, यह परिवर्तन देखने में एक चमत्कार जैसा लग सकता है, परन्तु वास्तव में यह करुणा (दया) की शक्ति का जीवंत कार्य था। तर्क–शक्ति से दूसरों को संतुष्ट करना, समझाना, प्रवचन देना, विश्लेषण करना, यांत्रिक संरचना बनाना संभव हो सकता था, किंतु वे एक दूसरे मानव में परिवर्तित नहीं कर सकते थे। एक भी हृदय का परिवर्तन तर्क–शक्ति से नहीं किया गया, जबकि उनकी करुणा की शक्ति ने हजारों ह्रदयों को परिवर्तित किया था!
और परिवर्तन की यह शक्ति सहज–योग के बताने (वर्णन) से नहीं निकली है, किन्तु श्री माताजी के ह्रदय की करुणा में है। उन्होंने सहज–योग प्रवचनों से या संगठन से नहीं फैलाया था किन्तु उनकी करुणा की शक्ति से फैलाया।
इससेप्रदर्शितहुआ, आत्मा केवल प्यार की भाषा जानती है, उसे प्यार से चलायमान किया जा सकता है, और बुद्धि (तर्कशक्ति) से नहीं। बिना कारुण्य के तर्क–शक्ति मानव–जाति को परिवर्तित नहीं कर सकती। कोई अचरज नहीं, कि सद्गुरुओं के प्रभावकारी संदेश (प्रवचन) मानव जाति को परिवर्तित नहीं कर सके।
1996
अध्याय – 50
श्रीकृष्णपूजासेमिनारएकसितम्बरकोकबेलामेंप्रारम्भहुई।अमेरिकी–योगियों ने विज़न (सपना) नामक एक डाक्यूमेंट्री श्री माताजी के जीवन पर आधारित (जीवन–वृत्त) प्रस्तुत की। इसकी शुरुआत श्री माताजी के बाल्यकाल के चित्रों से हुई, उसके बाद महात्मा गांधी द्वारा भारत के स्वतंत्रता–संग्राम और अन्त में सहस्रार के खुलने पर समाप्त हुई। श्री माताजी बहुत खुश थीं, “यह सच्ची डाक्यूमेंट्री (वृत्त–चित्र) है।”
पूजा के दिन सुबह गहरे भूरे रंग के बादल आकाश में भयानक दिखाई पड़े। अमेरिकी योगीजन चिन्तित थे, एक और तूफान आ रहा था। श्री माताजी आँखों में चमक के साथ बोलीं, “इंद्र देवता श्री कृष्ण के खेलों में विघ्न डालना चाहते हैं, किन्तु इस बार उन्हें ऐसा करने की आज्ञा नहीं है।“
निश्चय ही, पूजा के ठीक पहले बादल जा चुके थे।
पूजाप्रवचनकेदौरानश्रीमाताजीकेमुख–मंडल की लीलापूर्ण स्मिता मातृ–वत गहन चिंता में परिवर्तित हो गई, “जब आप श्री कृष्ण को पूजते हैं, आपको अपने अंदर सचेतनता जाग्रत करनी चाहिये कि अब श्री कृष्ण तुम्हारे सबके अन्दर हैं… क्योंकि वे सामूहिक हैं। तुम्हारी बातों से, गीतों से, दूसरों से संपर्क करने हेतु जो भी माध्यम आप उपयोग करते हैं– उसमें– शान्ति, सच्चाई, प्यार, करुणा और सर्वोपरि सहज–योग का संदेश जाना चाहिये!”
वे एक हाथ में सुदर्शन–चक्र धारण किए थीं और दूसरे हाथ में बांसुरी। अमेरिकी योगियों ने उन्हें घर में बना मक्खन भेंट किया और माँ ने उन्हें शंखों से आशीर्वादित किया– सत्य की घोषणा करने हेतु!
दक्षिण–अमेरिका से श्री माताजी के बहुत से बच्चे आए, वे अति प्रसन्न हुईं और करुणामय होकर उन्हें आने वाले सप्ताह में गणेश पूजा से आशीर्वादित किया।
श्रीगणेशपूजासमारोहएकसंगीतकार्यक्रमसेशुरू हुआ। श्री माताजी के चरणारविन्द में बैठकर संगीतज्ञों को सुनने के आनन्द ने बच्चों को बैकुण्ठ में स्थानांतरित कर दिया। इससे कोई फर्क नहीं पड़ा कि संगीत ताल बद्ध/लय बद्ध था या नहीं, क्योंकि बांसुरी खोखली थी और सुरों की स्रोत श्री माताजी थीं।
जबवेपूजाकेलिएपधारीं, अपराह्न में एक पत्ता भी नहीं हिल रहा था। जैसे ही भजन आरम्भ हुए, एक जोरदार ठंडी हवा सामूहिकता से श्री माताजी की ओर बहने लगी। हवा इतनी तेज थी कि श्री माता जी को किसी योगी का हाथ पकड़ना पड़ा था, श्री माताजी ने इसे ईश्वरीय–शक्ति का प्रकटीकरण कहा।
पूजाप्रवचनमेंश्रीमाताजीनेइसरहस्यकोजाहिरकिया, “यदि आप दूसरों को चैतन्य नहीं देते, दूसरों को आत्म–साक्षात्कार नहीं देते, दूसरों को ठीक नहीं करते, यदि आप उन्हें निर्वाज्य–प्रेम की शिक्षा नहीं देते तो आपकी सफाई करने का तथा पूजा में आने का क्या अर्थ हुआ।”
बाँसुरियोंनेश्रीमाताजीकेवात्सल्यकीधुनेंसुनानीशुरूकरदी।
बाँसुरीकीपुकारश्रीमाताजीको 8 सितम्बर को टोरेंटो ले गई। कनाडा के प्रधान–मंत्री श्री जीन क्रिस्टियन का ध्यान भी बांसुरी की ओर आकृष्ट हुआ और उन्होंने श्री माताजी को एक स्वागत संदेश भेजा। सहजी बच्चे एक विशालकाय प्रचार कार्यक्रम शुरू करने के इच्छुक थे, किन्तु उनके पास पैसों की कमी थी। परम चैतन्य ने उन्हें दिखलाया– कैसे उनकी कुंडलिनी शक्ति का उपयोग करना था। छोटी–सी सामूहिकता 10000 पोस्टर्स और 4000 झंडियां लगाने में सफल हो गई।
सहजीबच्चोंकीबांसुरीकीपुकार (आव्हान) ने आश्चर्य–चकित कर दिया और टोरेंटो के भव्य कन्वोकेशन हॉल (दीक्षान्त–समारोह हॉल) को 1000 से ज्यादा साधकों से भर दिया। जैसे ही श्री आदिशक्ति ने उन कलियों को (साधकों को) खोल दिया (विकसित कर दिया) उनकी खुश्बू टोरेंटो शहर में भर गई। यह हॉल केवल रात्रि ग्यारह बजे (11PM) तक ही (बुक्ड) दिया गया था और उसके बाद रोशनी बन्द कर दी गई, किन्तु श्री माताजी ने मोमबत्ती की रोशनी में आधी रात के बाद तक कलियों को खोलना जारी रखा। उन्होंने कहा कि उन्हें सभी कलियों (साधकों) को बचाना है और वे उन्हें आधे रास्ते (बीच में) नहीं छोड़ सकती थीं।
इनसभीकलियोंकीखुश्बूवैन्कोवरतकपहुंची।औरउन्होंनेजल–प्रपात के झंकृत करने वाले जीवन्त रंगों का बहुत आनन्द लिया। “मैं कभी चिंता नहीं करती, मैं कहाँ जा रही हूँ। मैं केवल मजा उठाती हूं।”
माँकीख़ुशीअपनेबच्चोंकोखुशीदेनेकेलिएथी।दोसहज–योगिनियां जो स्थानीय–बहुविभागीय दुकानों (Local departmental stores) में कार्यरत थीं, जब बिना पूर्व सूचना के श्री माताजी ने उनकी दुकान में पदार्पण किया, खुशी से नाच उठीं। जैसे कि उनकी बहुत तीव्र इच्छा श्री माताजी को विमान–पत्तन पर (airport) स्वागत करने की थी, किन्तु ड्यूटी से बच निकलना संभव नहीं था। श्री माताजी मुस्कराईं, “यह तुम्हारा प्यार (अपनत्व) था, जिसने मुझे यहाँ आने के लिए आकर्षित किया।“
साधकों से वे बोलीं, “आप अपना उत्थान खोज रहे हो.. केवल अपने ही लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए, जो इसे पाना चाहते हैं। ईश्वर हमें नहीं भूला है, हम उसे भूल गए है.. मेरा संदेश है कि आप आनन्दित रहें।”
लॉसएंजेलेसकेलिएविदाहोनेसेठीकपहलेबच्चोंनेनम्रतापूर्वकश्रीमाताजीकीक्षमा–प्रार्थना की, अपनी किसी भूलों या कृत्यों के लिए जो अनजाने से उनके द्वारा हो गए हों। श्री माताजी मुस्कराईं, “नहीं, नहीं, आप सबको पीछे छोड़े जाने से मैं उदास हूँ!”
25 सितम्बर को श्री माताजी ने लॉस एंजेलेस आश्रम के लिए खरीदी हुई भूमि को आशीर्वादित किया।
श्रीमाताजीन्यूयॉर्कलौटआईंऔरसहजीबच्चोंकेहृदयोंसेसीधेबातकी।श्रीमाताजीप्रसन्नथीं– कार्यक्रम में साधक–गण परिपक्व हो चुके थे और उन्हें श्री कृष्ण पूजा से आशीर्वादित किया। उन्होंने लीलापूर्वक कैम्प–वकामास (Camp Vacamas) को आच्छादित कर दिया और हरेक साधक ने महसूस किया कि उसकी ओर वे मुस्कुरा रहीं थीं, “हमें श्री कृष्ण के जीवन से शिक्षा लेना है– वह है सामूहिकता… किंतु जब तक यह तुम्हारे हृदय से नहीं किया जाता है, यह कार्यान्वित नहीं होने वाला।“
श्रीमाताजीकेबच्चोंकेहृदयसेश्रीकृष्णकेपुकारेगएनामबैकुण्ठमेंगूंजउठे।श्रीअमेरिकेश्वरीप्रसन्नथींऔरसहस्रोंआशीर्वादोंकीवर्षाकी।
मध्य अक्टूबर में मिस्र (Egypt) देश में श्री माताजी ने ‘शान्ति और प्यार’ विषय पर एक सभा को सम्बोधित किया।
श्री माताजी एयरपोर्ट पर इज़राइल सहज–योगियों को उनके स्वागत हेतु देखकर आश्चर्य–चकित थीं और उन्होंने पूछा, “तुम लोग क्यों आए हो?”
उत्तरमिला, “श्री माताजी मिस्र के योगियों से मित्रता करना, यह हमारा काम है।“
श्रीमाताजीप्रसन्नथीं, “तुम्हारा प्यार दूसरों पर कार्य कर रहा है। छोटी–छोटी और बहुत बड़ी चीज़े (समस्याएं), सभी प्यार से कार्यान्वित (हल) होती हैं। बिना किसी अव्यक्त मंशा के मित्रता करना, बिना किसी फायदे का सोचे, यह आपकी एकाकारिता का परिचायक है।” इजरायली योगीजनों की गहनता से मां अभिभूत हो गईं और उन्होंने श्री माताजी से इजराइल पधारने की प्रार्थना की।
श्री माताजी बोलीं, “मेरी वहां आने की बहुत इच्छा है, एक बार ये बमबारी बंद हो जाए।”
कैरो (मिस्र) के कार्यक्रम में हजारों साधक आए। श्री माताजी ने जानकारी चाही, “तुम्हें मेरे कार्यक्रम के बारे में कैसे मालूम हुआ।“
उन्होंने कहा, “हमने एक छोटा–सा विज्ञापन देखा था, श्री माताजी आप के चेहरे से यह इतना स्पष्ट था।”
उसकेथोड़ीदेरबाद, श्री माताजी 20 अक्टूबर को नवरात्रि पूजा हेतु कबेला लौट आईं। वे ब्रह्म मुहूर्त के पूर्व तक संगीत कार्यक्रम का आनन्द उठती रहीं। थोड़ा आराम करके, वे पूजा हेतु लौट आईं।
पूजाप्रवचनमेंश्रीमाताजीनेचेतना (आभास) और सतर्कता में अंतर बताया, “मुझे मालुम है, मैं आदिशक्ति हूं, किंतु जब आप ‘जय श्री माताजी‘ बोलते हैं, मैं भी जय श्री माताजी कहती हूं। मैं भूल जाती हूँ कि मैं वही हूं, जिसकी आप चर्चा कर रहे हैं …. मैं नहीं सोचती कि मैं बहुत विशेष हूँ। किंतु यदि आप मुझे पूछते हैं, तब मैं कहूंगी, “ठीक है, मैं आदिशक्ति हूँ ..मैंने कुछ नहीं प्राप्त किया है, मैं ऐसी ही रही हूँ और ऐसी ही रहूंगी। चाहे मैं शैतानों से लडूं या तुम्हारे सामने बैठूं, कोई फर्क नहीं पड़ता।“
श्रीमाताजीका (अहंकार–रहित) संकोची स्वभाव एक नम्रता–भरा अनुभव था और बच्चों की विशुद्धि में सूजन आ गई। मुसीबतों के दलदल से उठकर उन्होंने बच्चों को स्वर्ग का राज्य प्रदान किया और फिर भी कभी महसूस नहीं किया कि उन्होंने कुछ किया है। दूसरी ओर देखें, जब बच्चे सहज–योग के लिए छोटा–सा काम करते हैं, उन्हें यह एक उपलब्धि का आभास करा देता है। बच्चों ने माँ से साक्षी अवस्था के लिए आशीर्वाद प्रदान करने हेतु प्रार्थना की, जहाँ वे कर्ता–पन की पहचान से मुक्त हो सकें।
10 नवम्बर को दिवाली पूजा पर श्री माताजी ने बच्चों को रास्ता दिखाया। जैसे दिवाली के लिए दीये (दीपक) श्री माताजी के वात्सल्य की गर्माहट में दमक उठे, श्री माताजी ने महसूस किया कि ये दीये उससे अनभिज्ञ थे कि वे प्रकाश प्रसारित कर रहे हैं और इसी तरह से उनके बच्चे (कर्ता–भाव से मुक्त होकर) दूसरे दीयों को प्रज्वलित कर सकें।
पूजा का आयोजन सेंट्रा में, लिस्बन शहर के ग्रामीण क्षेत्र में हुआ, जहां वर्जिन मैरी की आत्मा दिखाई दी थी। श्री माताजी ने बताया कि वह स्थान श्री महालक्ष्मी पूजा के लिए एक विशेष स्थान था, क्योंकि सेंट्रा इशारा करता है– श्री महालक्ष्मी की शक्ति को, जो सुषुम्ना (central channel) में बहती है। “नागपुर में ऑरेंज को संतरा (Santra) कहते हैं, क्योंकि नागपुर भारत के ठीक मध्य में है। सेंटर का अर्थ है, जहाँ से हरेक चीज़ की रचना आकार लेती है। यह शब्द लैटिन भाषा के बाद केन्द्र (Kendra) से आरम्भ होता है। संस्कृत में ‘केन्द्रित‘ का अर्थ है एकाग्र होना (to concentrate) ध्यान का अर्थ है चित्त (attention)। जब आप अपने चित्त को एकाग्र करते हो, इसका अर्थ होता है आप अपना चित्त वहाँ डालते हो और तब उसे बाहर हटाते हो। पहले आप ध्यान (चित्त) केन्द्रित करते हो, तब आप वहाँ से उत्सर्जित (बाहर निकालते) करते हो। केन्द्र, जहाँ हरेक चीज़ आती है और तब वहाँ से वितरित होती है। हमारे चक्र (केन्द्र) पैरा–सिम्पैथेटिक (सुषुम्ना) शक्ति से भरते हैं और तब शक्ति पूरे शरीर को वितरित की जाती है। उदाहरण के लिए जब आप केंद्रित (एकाग्र) होते हो, आप अपने आज्ञा का उपयोग करते हो, तब आप बायें या दाएं की ओर जाते हो, किन्तु तब आपकी एकाग्रता पेंडुलम (गोलक) की तरह बायीं ओर जाती है।“
जैसेहीश्रीमाताजीकोगुलाबभेंटकिएगए, उन्होंने उन्हें अपनी आज्ञा पर लगाया और फूलों ने माँ से चैतन्य लहरियां अवशोषित कीं। चमत्कारपूर्ण तरीके से बच्चों की आज्ञा से दबाव समाप्त हो गया और माँ के वचन निकले, “यदि आप सोचते हैं कि सहज–योग में आप बहुत उच्च अवस्था में हैं, ऐसा नहीं है। यदि आप सोचने लगते हैं कि आप क्या हैं, तब आप विगलित/बाहर हो गए हैं। यह संभव नहीं है कि कुछ सहज–योगी दूसरे सहज–योगियों से ऊपर उठ जायेंगे।“
और वे बच्चे जिन्होंने सोचा कि वे पीछे छूट गए थे, उन्होंने श्री माताजी को कहते हुए सुना, “वे सभी बच्चे जिन्हें कोई भी गिफ्ट नहीं मिला, स्टेज की ओर आ जाएँ।“
श्री माताजी की देहरी से (द्वार से) कोई भी खाली हाथ नहीं लौटा। बच्चों के हाथ पर भाग्य की रेखाएँ लिखी हुई थी, किन्तु आज के दिन श्री माताजी ने भाग्य–रेखाओं को दुबारा लिखते हुए उन्हें भिखारी से राजकुमार में परिवर्तित कर दिया था। उनकी इतनी अनंत करुणा थी, इतनी उनकी दया (रहम) और उनके प्यार (वात्सल्य) की शक्ति थी!
1996
अध्याय – 51
संतज्ञानेश्वरकीसात–सौवीं वर्षगाँठ के अवसर पर पुणे के एम.आई.टी. कॉलेज में 25 नवम्बर को श्री माताजी ने विश्व–दार्शनिक सभा को संबोधित किया। क्लॉज़ नोबेल, जो अल्फ्रेड नोबेल के नाती थे, उन्होंने मां का उत्साह–पूर्वक सम्मान किया, “आपका सहज आत्म–साक्षात्कार का बोध प्रदान करने का संदेश, बहुत दुःखी और उलझन भरी मानवता के लिए एक असली आशा प्रदान करता है। आपके द्वारा अन्वेषित सहज–योग मानव–जाति के लिए एक नए सुनहरे युग की उद्घोषणा करता है। यह महत्व–पूर्ण युग मानवता के इतिहास में अपने को अति शाने (बुद्धिमान) समझने वाले मानव वर्ग के विकास क्रम में एक अति आवश्यक आगे की ओर लम्बी छलांग को स्थापित करेगा।”
उन्होंनेकोलम्बिया विश्व–विद्यालय में एक केंद्र शुरु करने का प्रस्ताव दिया और जानकारी चाही कि वे इस हेतु क्या शुल्क (charges) लेंगीं।
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “कुछ भी नहीं! अमेरिकन्स मुझे नहीं समझ सकते हैं, क्योंकि मैं पैसों की मांग नहीं कर रही हूँ। उनकी इस इच्छा का कैसे भेदन किया जाय?”
उन्होंनेप्रतिवादकिया, “हमारे जैसे उपभोक्ता समाज में जब तक वस्तु पर कीमत (price tag) नहीं अंकित होती, उसका मूल्यांकन नहीं होता। एक ‘टोकन फी’ के रूप में एक छोटा–सा (price tag) कीमत–अंकित कार्ड लगाने में क्या हर्ज है?”
श्रीमाताजीनेउत्तरदिया, “आप ईश्वर प्राप्ति के लिए कैसे मूल्य दे सकते हैं। अमेरिकियों को अपने स्वार्थ से परे जाना होगा, केवल तभी वे सहज–योग का मजा उठा सकते हैं। जब हम देते हैं, केवल तभी स्वयं आनन्द उठा सकते हैं। एक कंजूस अपनी सम्पत्ति का मजा नहीं उठा सकता है। सोना स्वयं अपनी कीमत नहीं जानता है। एक सुन्दर स्त्री अपने सौन्दर्य का आनन्द नहीं उठा सकती, वह अपना प्रतिबिंब दर्पण में देख सकती है। आत्म–साक्षात्कार को ब्रह्मांड में प्रतिबिम्बित होना होगा, ताकि, हम अपने स्वयं के प्रतिबिम्ब का मज़ा उठा सकें। सहज–योग ब्रह्म–चैतन्य का दर्पण है/प्रतिबिम्ब–कर्ता है। सहज योग के माध्यम से ब्रह्म–चैतन्य को अपनी चेतना (संज्ञा) की जानकारी मिलती है और वह अपने सौन्दर्य का आनन्द उठाता है। इस तरह से देने में बहुत ज्यादा आनन्द है बजाए लेने में।“
उन्होंने नम्रतापूर्वक श्री माताजी के चरण–कमलों में नमन किया, “आपकी इच्छा परमात्मा पूर्ण करें।“
श्री माताजी ने उन्हें प्रतिष्ठान में डिनर के लिए आमंत्रित किया और प्रतिष्ठान में उन्हें मिट्टी का बांध (Earthen dam) बताया (दिखाया) जो उन्होंने बारिश के पानी को इकट्ठा कर खेती की सिंचाई के लिए बनाया था। उनका स्वप्न था कि भारत के हर गाँव में पीने का स्वच्छ–पानी होना चाहिए। स्वच्छ जल की व्यवस्था करने के लिए उनके मित्र मिस्टर मोर्टेनसन, जो कोलम्बिया विश्व–विद्यालय में प्राध्यापक थे तथा मोरक्को के बादशाह के जल–प्रबन्धन के सलाहकार थे, उन्होंने अपनी सेवाएं प्रदान कीं।
डिनरकेबाद, क्लॉज नोबेल ने श्री माताजी को न्यूयॉर्क में विश्व–शान्ति शिखर–वार्ता के लिए भारतीय–मूल के अमेरिका–वासियों के साथ आमंत्रित किया। श्री माताजी ने समझाया कि उन्होंने उन्हें पिछली विभिन्न अमेरिकी–यात्राओं के दौरान आशीर्वादित किया था, किन्तु उन्होंने केवल अमेरिका–सरकार से अपनी जमीन दुबारा प्राप्त करने हेतु आशीर्वाद माँगा था, ताकि वे उस ज़मीन पर पशु–पक्षियों के लिए सुरक्षित शरण्य–स्थली बना सकें, उन्हें अपने आध्यात्मिक उत्थान में कोई रुचि नहीं थी।
यहबातचीतआत्म–साक्षात्कार के अर्थ की ओर मुड़ गई और उन्होंने पूछा, “संत ज्ञानेश्वर के अनुसार आत्म–साक्षात्कार की क्या परिभाषा है?”
श्रीमाताजी ने कहा:- उनके द्वारा वर्णित आत्म–साक्षात्कार का अर्थ आप सहज–योग के बाद ही समझ सकते हो। उन्होंने कुण्डलिनी के बारे में लिखा, किन्तु उनके अनुयायी जिन्हें ‘वारकरी‘ कहते हैं, उन्हें अपने अध्यात्मिक उत्थान में कोई रुचि नहीं थी। वे दो झांझ (मंजीरे) लेकर बजाते हुए पंढरपुर जाते हैं। उन्हें वहाँ पहुंचने में एक महीना लगता है। औरतें तुलसी के भारी गमले सिर पर ढोते हुए और उनकी पालकी आलन्दी ले जाते हैं। उन्होंने एक पंथ बना लिया है और उनके उद्देश्य (साक्षात्कार) को भुला दिया है। उन्होंने उनके पसायदान के महत्व को खो दिया है। जैसे कि चन्द्रमा चाँदनी के पीछे नहीं भागता और सूर्य सूर्य–प्रकाश के पीछे नहीं भागता, उसी तरह से एक आत्म–साक्षात्कारी अपने गौरव (ख्याति) की चिंता नहीं करता। यह अपने आप में धारित Self-contained होता है।
संतज्ञानेश्वरकेतत्वकोसमझनेकेलिएश्रीमाताजीनेउन्हें (Meta Modern Era) ‘आधुनिक परा युग‘ की एक प्रति भेंट की। श्री माताजी से विदा लेने से पूर्व, उन्होंने माँ से एक वरदान की प्रार्थना की कि उनकी पत्नी, जिन्हें वे अपनी जान से ज्यादा प्यार करते हैं उनके बिना इस दुनिया से पलायन न करें।
श्री माताजी ने उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा, “कोई भी जोड़ा दुनिया से एक साथ विदा नहीं होता। एक को दूसरे से पहले जाना होता है। किन्तु जाने वाले की मधुर यादें (स्मृतियाँ) कायम रहती हैं।“
उन्होंनेश्रीमाताजीकोबहुतज्यादाधन्यवाददियाऔरश्रीमाताजीसेअमेरिकापधारनेकावादालिया।
आनेवालेसप्ताहमेंउन्होंनेन्यूयॉर्कसेउन्हेंआत्म–साक्षात्कार देने के लिए फोन पर धन्यवाद दिया और श्री माताजी की पुस्तक दोबारा पढ़ी, और कहा कि यह आधुनिक–काल की बाईबल है।
5 सितम्बर को श्री माताजी ने दिल्ली की ऐतिहासिक सभा को रामलीला मैदान में संबोधित किया। यह क्षण जीवन में स्मरणीय था, क्योंकि 50,000 साधकों को शीतल–लहरियों का अनुभव हुआ। श्री माताजी प्रसन्न हुईं और अगले दिन उन्होंने दिल्ली को श्री राज–लक्ष्मी पूजा का आशीर्वाद दिया।
उसकार्यक्रमकेबादलखनऊमेंसहजकार्यक्रमहुआ।जहाँकईमुसलमानलोगोंनेसहज–योग स्वीकार किया। अगले दिन वे वाराणासी के लिए रवाना हुईं । 20 दिसम्बर को श्री माताजी ने मुंबई के शिवाजी पार्क में एक विशालकाय सभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि सबसे अच्छा धर्म वह है, जो हृदय से निकलता है और हृदय में रहता है। हजारों कुण्डलिनियाँ आकाश में उठीं और आकाश को गुलाबी बादलों से आच्छादित कर दिया।
श्री माताजी साधकों से प्रसन्न थीं और उन्हें कार्तिकेय पूजा से आशीर्वादित किया। पूजा के बाद एक दम्पत्ति श्री माताजी को रुपये भेंट करना चाहती थीं, क्योंकि उनका बच्चा अभी–अभी सहज–योग हेल्थ सेंटर में स्वस्थ हुआ था। श्री माताजी मे नम्रता–पूर्वक इन्कार करते हुए कहा कि आध्यात्मिक–कार्य के लिए उन्होंने रुपये–पैसे नहीं स्वीकार किए। यद्यपि उन्होंने कोई दान व्यक्तिगत रूप से नहीं स्वीकारा, ये दान राशियाँ विभिन्न सहज–योग चेरिटियों को दी जा सकती थीं। उनकी एक ही चिन्ता थी कि ये चैरिटी( समितियाँ) हिसाब किताब ठीक से रखें और इस राशि को दिखावटी (प्रदर्शन आदि पर) व्यर्थ खर्च न करें। भारत एक गरीब देश था और हरेक पाई (पैसे) का हिसाब होना चाहिये।
इसीबीचगणपतिपुलेमेंपरेशानीएकत्रहुई।एकभूतपूर्वयोगीनेयोगियोंकेएकसमूहकोसहज–सामूहिकता से दूर करने के लिए बहकाया। उन्होंने गणपतिपुले के शांत सागर तट पर एक तूफान लाने की योजना शुरू की। यद्यपि, शीघ्र ही श्री माताजी का चित्त वहाँ गया और वह तूफान शांत हो गया। उन्होंने श्री माताजी से क्षमा माँगी। अपने खोए हुए बच्चों को बचाने हेतु, श्री माताजी ने तुरंत ही क्षमा कर दिया किंतु उन्हें मालूम हुआ कि उस योगी ने योगियों को मंत्र–मुग्ध कर दिया था।
श्रीमाताजीकीकरुणाउमड़पड़ीऔरउन्होंनेबहुतप्यारसेयोगियोंकोसमझायाकिसेमिनारमेंशरीकहोनाउनकेलिएफायदेमंदनहींहै, उन्हें पहले उसके जादुई–मूर्छा से (मेस्मेरिज्म) से बाहर होना होगा। दुर्भाग्यवश, उन्होंने आक्रामक होकर सेमीनार को तहस–नहस करना शुरू कर दिया।
श्रीमाताजीघटनाक्रमसेनिराशहुईं, “वे लोग ध्यान धारणा नहीं करते होंगे, अन्यथा कैसे वे इनके चंगुल में जा सकते थे?” उन्होंने श्रीमाताजी से क्षमा माँगी। उन्हें क्षमा किया जा सकता है, किन्तु उसका अर्थ यह कतई नहीं होता है कि वे ठीक हो जायेंगे। उन्होंने स्वयं को विकृत कर लिया है और उन्हें सामूहिकता से दूर रहना चाहिये, जब तक कि उनकी सफाई नहीं हो जाती …. मन पवित्रता को आच्छादित कर लेता है और मन मस्तिष्क को आच्छादित करता है, यही कारण है कि वे पथ से भ्रष्ट हो गए… मैंने तुम्हें ठीक से बता दिया है कि क्या करना है और कैसे करना है। हमारा विश्वास नए समूह बनाने में नहीं है, यह राजनीति की देन है।”
क्रिसमसपूजामेंश्रीमाताजीनेगम्भीरतासेविचारकिया, “मैं तुम्हारे लिए जी रही हूँ, क्योंकि मैं देखना चाहती थी कि तुम लोग परिपक्व हो, आदेशात्मक अधिकार की योजना कभी मेरे प्रयासों को आगे नहीं आने देगी। जो लोग नकारात्मक हैं, वे हमें तकलीफ देने की कोशिश करेंगे।“
इनपंक्तियोंकेबीचबाधाडालने (रुकावटों) की चेतावनी थी। 27 दिसंबर को प्रात: नकारात्मक–समूह ने पूजा पंडाल में आग लगा दी। जैसे आग फैली, डरावनी आग की लपटें आकाश की ऊँचाइयों को छू गईं और कैम्प की ओर बढ़ीं। फायर ब्रिगेड सेवा उपलब्ध नहीं थी और सहजी बच्चों ने उत्साहपूर्वक श्री माताजी से कैम्प को बचाने की प्रार्थना की। ऐन वक्त पर श्री कल्कि ने हवा के रुख को उल्टी दिशा में बदल दिया और इस तरह से कैम्प को आग का ग्रास (निवाला) बनने से रोक दिया।
आगनेकुछऔरभीप्रदर्शितकिया– आग श्री माताजी की छवि (फोटोग्राफ) के प्रति कितनी सम्माननीय थी, यद्यपि इसने स्टेज (मंच) को नष्ट कर दिया था, इसने मंच के मध्य स्थापित श्री माताजी के सिंहासन को स्पर्श नहीं किया, जिस पर श्री माताजी की फोटोग्राफ रखी थी।
यद्यपिकितनाभीहो, आग ने वही सम्मान, साउंड सिस्टम, जो कि सिंहासन के पीछे लगाया गया था, उसे नहीं दिया, उसे पूर्णतया निगल लिया था।
विस्तारपूर्वक, श्री माताजी की श्री कल्कि शक्ति ने इस घोर संकट (विनाश) को टाल दिया था। श्री माताजी ने श्री कल्कि की शक्ति का वर्णन उनके बच्चों की सामूहिकता में प्रकट होती हुई उनकी शक्ति (श्री कल्कि) के रूप में किया। इसलिये, विनाशकारी संकट टल गए और उनके बच्चे सुरक्षित बच गए, जब वे श्री माताजी के ब्रह्मांडीय शरीर में सामूहिक चेतना द्वारा लीन थे। श्री कल्कि की शक्ति ने वहाँ एकत्रित योगियों की संख्या की वजह से घटना को नहीं टाला, किन्तु श्री माताजी के साथ उनके योग की गहनता की वजह से जबरदस्त मोड़ दिया, कि कितनी गहनता से वे श्री माताजी को आराम से अपने हृदयों में स्थापित किए हुए थे। अभी–अभी एक योगी गणपतिपुले सेमीनार में भाग लेने हेतु यात्रा कर रहे थे कि उनकी बस पहाड़ी दर्रे (घाटी) में नीचे गिरी। सभी यात्री–गण बचा लिए गए थे क्योंकि श्री माताजी उसके हृदय में विराजमान थीं।
यहअसंभवसाप्रतीतहोसकताहै, किंतु श्री कल्कि वैश्विक परिवर्तन के एक उत्प्रेरक थे, हालांकि जादू की तरह वे असंभव को प्राप्त कर सके। पूजा पंडाल जिसे खड़े करने में एक सप्ताह का समय लगा था, वो मिनटों में सन्ध्याकालीन कार्यक्रम हेतु श्री माताजी के पधारने के पूर्व दुबारा खड़ा कर लिया गया था। जिस गति से (चमत्कारिक–रूप से) पूजा–पंडाल दुबारा निर्मित किया गया, उस पर श्री माताजी आश्चर्य में थी।
श्रीकल्किबच्चोंकीसुरक्षाहेतुपधारे, जब श्री माताजी उन के बच्चों के हृदयों में विराजित थीं।
माँकेबच्चेकुकर्मियोंकेइसदुष्कर्मसेदु:खी हो रहे थे, किंतु श्री माताजी ने उन्हें क्षमा कर दिया। “मैं उन्हें क्षमा न करके सिरदर्द नहीं लेना चाहती। यदि आप किसी को क्षमा नहीं करते, आपको सिरदर्द होता है। मैं सभी योगियों को हमेशा क्षमा करती हूँ। कुछ अरुचिकर (गंदे) भयानक लोग रहे हैं, मैं उन पर नाराज नहीं होना चाहती हूं, क्योंकि श्री गणेश एकदम उनका अंत करेंगे, क्योंकि उन्होंने मुझे ‘मां‘ संबोधित किया और मैंने उन्हें सम्मान दिया था। नि:संदेह वे बहुत तकलीफदेह रहे हैं।“
श्रीमाताजीनेहरेकचीज़परमचैतन्यपरछोड़दीऔरवेकिसीकोदण्डितनहींकरनाचाहतीथीं।उन्होंनेक्षमा, केवल क्षमा किया, किन्तु जब किसी ने उन्हें पीड़ा पहुँचायी, परम–चैतन्य ने उसके साथ दांव–पेंच चले। श्री माताजी नहीं चाहती थीं, कि परम–चैतन्य किसी को नुकसान पहुंचाए और उनकी क्षमा–प्रार्थना हेतु मध्यस्थता की।
हरसाँसकेसाथश्रीमाताजीनेबच्चोंकोआशीर्वाद दिए, उनके लिए भी जिन्होंने उन्हें पीड़ा पहुंचाई। श्री माताजी का उदाहरण उनके बच्चों पर भी क्रियान्वित हुआ और उन्होंने भी उन कुकर्मियों को क्षमा कर दिया, जिन्होंने मंच (पूजा पंडाल) को जलाया था। बच्चों ने उन दुष्कर्मियों की सुरक्षा हेतु माँ से प्रार्थना की। बच्चों की प्रार्थना ने माँ के आशीर्वाद का आव्हान किया। माँ ने उनकी कुण्डलिनियों को आशीर्वाद का दान दिया और उनके परिवर्तन हेतु कुण्डलिनियों को शक्ति प्रदान की। वह क्षण था, जिसके लिए श्री माताजी प्रतीक्षा–रत थी।
उत्साहपूर्वकसंकल्पकेसाथउनदुष्कर्मियोंनेपश्चातापकिया।लम्बेसमयसे, विवाहोत्सव के आमोद–प्रमोद में उनकी खुशियाँ लौटा दीं। उन्होंने श्री माताजी के चरण–कमलों पर गुलाब की पंखुड़ियाँ अर्पित कीं और हाथ जोड़कर उन्होंने श्री माताजी को उन्हें स्वर्ग के राज्य में पुनः प्रवेश की आज्ञा दिलाने हेतु धन्यवाद दिया, इतने प्यार, आनन्द और करुणा के साथ प्रवेश कराने हेतु धन्यवाद दिया ।
1997
अध्याय – 52
श्रीमाताजीकीकाल्वेपूजासेवापसीपरपुणेकेएकप्रसिद्धज्योतिर्विदनेश्रीमाताजीसेअपनीबाईंआंख की ज्योति की बहाली के लिए प्रार्थना की। उन्होंने उनकी आंख को चैतन्य प्रदान किया और शीघ्र ही उनकी नेत्र ज्योति वापस मिल गई। कृतज्ञता की अश्रुधारा उनकी आंखों से कपोलों पर बह निकली, उन्होंने मां से उनकी जन्म–कुंडली तैयार करने की आज्ञा मांगी।
जैसेहीउन्होंनेश्रीमाताजीकीजन्मकुंडलीकेनव–ग्रहों को पढ़ना शुरू किया और उनसे प्रार्थना की, “श्री माताजी आपने अपना मिशन पूर्ण कर लिया है और अब आपको आम जीवन से मुक्त होकर आराम करना चाहिये।”
उन्होंनेउत्तरदिया, “मेरी कोई इच्छा नहीं है। मैं इस धरा पर अपने बच्चों के प्यार के कारण हूँ और मेरी अंतिम श्वास तक मैं उनकी सुरक्षा हेतु सब कुछ करूँगी।” ज्योतिर्विद् पुनः जन्म–कुंडली पर आए, “सन् 2003 और 2005 के बीच पूरा विश्व नकारात्मक–शक्तियों के आक्रमण से ध्वस्त होने की कगार पर होगा। आपकी जन्म कुंडली के अनुसार उनसे लड़ने के लिए अपनी सभी शक्तियों को संग्रहित करेंगी। इस निर्णयात्मक लड़ाई में निस्संदेह आप विश्व को बचाने में सफल होंगी, किंतु इसका असर आपके शरीर पर होगा। आप अपनी दैवीय–शक्ति द्वारा पुनः पूर्वावस्था में आ जाएंगी, किन्तु शारीरिक रूप से चलने की शक्ति (चली जायेगी) खो जायेगी।”
अपनीआँखोंमेंचमककेसाथश्रीमाताजीनेउन्हेंनौवेंघर (नौवें भाव) को पढ़ने को कहा। उन्होंने अपनी उंगली नौवें घर पर रखी और हैरानी से बताया “यह पुनर्जन्म दर्शाती है, जिस तरीके से ईसा मसीह ने पुनर्जन्म लिया था, आप भी पुनर्जन्म प्राप्त करेंगी। तीन वर्षों में आपका शरीर पहले से भी बेहतर शक्तिशाली रूप में प्रकट होगा। साधकों की कुण्डलिनियाँ सहज ही आपकी मंगलमय–उपस्थिति में उठेंगी। आपकी आँखों में ऐसी शक्ति होगी कि कटाक्ष मात्र (क्षणिक–दृष्टिपात) से घात लगाई हुई नकारात्मकता को नष्ट कर देगी और बीमारों को स्वस्थ कर देगी। जो भी आपकी वैभवपूर्ण उपस्थिति में आयेगा, उसे अपने जीवन–भर महानतम आशीष मिलेगा। आप लंबी अवधि तक मौन–अवस्था में रहेंगी, किन्तु आपके बच्चे आपका मार्गदर्शन अपने सहस्रार पर प्राप्त करेंगे।”
तबउनज्योतिर्विद्महोदयनेश्रीमाताजीकोसाष्टांगप्रणामकियाऔरनम्रतापूर्वकदेवीमाँकीस्तुतिमेंएक संस्कृत–स्तोत्र भेंट किया, जिसमें उनके कटाक्ष–निरीक्षण यानि क्षणिक दृष्टिपात का वर्णन किया गया था।( कटाक्ष–कटाक्ष निरीक्षण यानि उनका क्षणिक दृष्टिपात एक भक्त को आशीर्वादित करता है।)
श्रीमाताजीनेशिष्टतासेउत्तरदिया, “मैं बिलकुल कुछ नहीं करती हूँ! जब आप कुछ देखते हैं, प्रतिक्रिया करते हैं। अन्तर केवल इतना ही है कि जब मैं कुछ देखती हूँ, प्रतिक्रिया नहीं करती हूं। जब मैं तुम्हारी ओर देखती हूँ, तुम्हारी कुण्डलिनी प्रतिक्रिया करती है और ऊपर उठती है। जब मैं उपस्थित नहीं होती हूं, मेरे बच्चे मेरे फोटोग्राफ (चित्र) की ओर देखकर मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना कर सकते हैं।”
किन्तुबच्चोंकाचित्तकहींऔरथा! उनके शिव–रात्रि पूजा हेतु दिल्ली आने पर बच्चों ने हिमालय–क्षेत्र में एक सुन्दर छोटी पहाड़ी देखी और वहाँ पर सेवा–मुक्त होने के बाद शांति में जीवन व्यतीत करने का प्रस्ताव रखा। वे योगियों को व्यक्तिगत रूप से भूखंड आवंटित करके धन–राशि इकट्ठा करना चाहते थे। इस उद्देश्य से कि उनके बच्चे वहाँ आकर विरासत में उनका उपभोग करेंगे।
श्रीमाताजीनेचेतायाकि, क्या होगा यदि तुम्हारे बच्चे सहज–योग नहीं अपनाते हैं। सहज लीडर भी कई बार बदलते हैं। यह कानून–कायदों (नियमाचार संहिता) की वजह से नहीं है कि आप प्रसन्न और संतुष्ट, आपसी सहयोग से रहोगे, किंतु यह केवल शुद्ध सामूहिक चेतना और प्यार है। आप जानते हैं कैसे सामूहिकता में रहना है, आप सामूहिक जीवन का आनन्द लेते हैं, अत: आप अलग–अलग मकान क्यों चाहते हैं? हमें ऐसी सभी अलगाववादी भावनाओं पर लगाम लगानी चाहिये। हम ऐसे गैर मिलन–सार/एकान्तिक स्थानों पर गायब नहीं होने वाले हैं, वो केवल ध्यान–धारणा के लिए हैं– आप वहां जा सकते हैं, किन्तु संसार से बचने के लिए नहीं हैं।”
शिवरात्रिपूजासमारोहकेदौरानपंडितभीमसेनजोशीकेरागोंनेउनकीआज्ञाकोमस्तिष्कीयवाद–विवादों से दूर कर दिया था।
पूजाप्रवचनमेंश्रीमाताजीनेस्पष्टबतायाकिईश्वरीय शक्ति ने सहज–योग के द्वारा मन और शरीर संबंधित मानसिक–तनाव से उग्रता प्राप्त बिमारियों, समस्याओं को बेअसर किया, “यदि बहुत से सहज–योगी हों, तो वास्तव में वो सहज योग करते हैं, तब मैं सोचती हूं– हम मानवता के कल्याण के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। और इसीलिए हमें आत्म–साक्षात्कार मिला है। यह सिर्फ आपके लिए ही नहीं है, यह सिर्फ आपके परिवार के लिए ही नहीं है, न केवल आपके शहर या देश के लिए है, किन्तु पूरे विश्व के लिए समस्याएँ हल करने वाला है।“
यह दैवीय शक्ति लखनऊ सामूहिकता के द्वारा प्रभावकारी रूप से कार्य करती हुई देखी जा सकी है। मुस्लिम जन–संख्या बाहुल्य के बीच सहज–योग की जानकारी फैलाने हेतु योगियों ने एक अंतर्राष्ट्रीय मुस्लिम–सभा हेतु सहज–योग के प्रकाश में श्री माताजी से आशीर्वाद की याचना की। सुप्रसिद्ध तुर्की सूफी संत हुसैन तोप ने इस सभा की अध्यक्षता ‘कयामा का आगमन, आत्म–बोध द्वारा’ इस झंडे (पताका) के तले की। मुस्लिम राष्ट्रों के सहज–योगियों ने स्पष्ट बताया (जाहिर किया) कि श्री माताजी मेहदी थी जिसका उन्होंने इन्तज़ार किया था।
19 मार्च को राग बागेश्वरी ने श्री माताजी के जन्म दिवस समारोह के लिए आनन्दमय मनोस्थिति बना दी। हर रात्रि को श्री माताजी ब्रह्म–मुहूर्त तक (सूर्योदय के पूर्व तक) सहजी बच्चों के साथ संगीतकारों के संगीत के बंधन में अपना वात्सल्य–मय पोषण प्रदान करती हुई रुकी रहीं।
क्लॉजनोबेलकेसंदेशनेसामूहिकताकीबधाईमनोदशाकोउचितस्वरूपप्रदानकिया।
“हमारी धरती के उत्तरी गोलर्द्ध में 21 मार्च ‘वर्नल इक्विनोक्स‘ को प्रदर्शित करता है (यानि जब रात–दिन बराबर होते हैं।) यह दिनांक वसंत–ऋतु (काल), जन्म, नवीनीकरण के महत्व को अभिप्राय देती है और उस समय को हमारे पंचाग में अर्थ प्रदान करती है, जब प्रकाश (ज्ञान) की जीवनदायिनी शक्ति जड़त्व और अज्ञानान्धकार पर विजय प्राप्त करती है। साल के 365 दिनों में एक दिन आपकी परोपकारी और करूणामई आत्मा ने अपने मिशन ‘धरती पर शांति‘ को अवतरित करने का निश्चय किया, इस खास दिन जो प्यार, जीवन और प्रकाश के लिए निश्चल खड़ा है। एक सर्व–महत्वपूर्ण दिन जिसे मैं स्पष्टतया मान्यता देता हूँ एक प्रवेश–द्वार के दिवस के रूप में, जो सत्य निष्ठता का सम्माननीय, मानव–विकास का बहुप्रतीक्षित आरम्भ है!”
श्रीमाताजीनेप्यारसेजवाबदिया, “आप लोग अभी छोटे बच्चे हो और उन्हीं की तरह तुम्हारा हृदय निर्मल होना चाहिये, शांति की सुन्दरता को स्वीकारने और अवशोषित करने हेतु, जो तुम्हारे हृदय में है और साथ ही पावित्र्य के सौंदर्य को भी आत्म–सात करने की निर्मलता होनी चाहिये।”
जैसेहीबच्चोंनेअपने–अपने देशों की सौगात (भेंट) श्री माताजी के चरणों में अर्पण करना आरम्भ किया, श्री माताजी ने मधुर वाणी में बताया, “जब आप मुझे कुछ अर्पण करते हो, मैं केवल तुम्हारी खुशी के लिए स्वीकार करती हूँ। मुझे कुछ भी नहीं चाहिये। मेरे घर में कुछ भी वस्तु रखने की जगह नहीं है। आप इसे इतने सारे प्यार से देते हैं, मैं तुम लोगों से यह करते हुए थक गई हूं कि मुझे साड़ियां नहीं दें, मुझे जेवरात नहीं चाहिए, कुछ नहीं चाहिए, मैं केवल तुम्हारी खुशी (आनंद) के लिए ऐसा कर रही हूं।“
बच्चोंकेदिलकोरखनेकेलिए, श्री माताजी ने कृपा करके उनके द्वारा अर्पित कुछ फूल स्वीकार किये।
उनकेबच्चेउन्हेंक्यादेसकतेथे, जो सर्व–दात्री हैं। बच्चों का ऐसा क्या था, जो माँ का नहीं हो?
ईस्टर–संडे (रविवार) को उन्होंने लखनऊ सामूहिकता की प्रशंसा की, मुस्लिम–साधकों को पुनर्जन्म (आत्म–साक्षात्कार ) देने के लिए। “और इसी तरह सहज–योग की शक्ति पुनर्जन्म देने के लिए उपयोग में लाई जानी चाहिये!”
6 अप्रैल को भारतीय चिकित्सकीय–सम्मेलन ने अपना ह्रदय गैर–परम्परागत इलाज करने हेतु खोल दिया। श्री माताजी ने सरगर्मी से भरे स्वाधिष्ठान–चक्र, जिससे रजोगुणी समस्याएँ होती हैं, के ऊपर अभिनव–कार्य करने हेतु, उन्हें आत्म–साक्षात्कार दिया। यद्यपि यह मेडिकल साइन्स के कार्यक्षेत्र के बाहर का था, डॉक्टरों ने उनकी परिकल्पना को स्वीकार किया और सहज–योग स्वीकार किया।
राजनयिक, राजनेता और पदाधिकारियों की एक प्रसिद्ध सभा ने क्लेरिजेस होटल Claridges Hotel में यूनिटी इंटरनेशनल फाउन्डेशन द्वारा श्री माताजी को प्रतिष्ठित इनाम (यूनिटी अवार्ड फॉर इंटरनेशनल अंडरस्टैंडिंग) प्रदान किया था। गवर्नर बी. सत्यनारायण रेड्डी ने स्पष्ट किया कि सामान्यतया यह अवार्ड केवल हेड ऑफ स्टेट (राष्ट्राध्यक्ष) के लिए आरक्षित था, किंतु श्री माताजी के लिए अपवाद स्वरूप दिया गया, क्योंकि व्यावहारिक रूप से श्री माताजी ने किसी भी राष्ट्राध्यक्ष या यूनाइटेड नेशन्स से ज्यादा कार्य विश्व शांति हेतु किया था।
श्रीमाताजीनेनम्रतासेअनुक्रियादी, “बिना एकता के हम जी नहीं सकते। कारण कि यह विश्व एक है, हम उसके अंग–प्रत्यंग हैं, किन्तु सम्बद्ध नहीं हैं, क्योंकि हममें जागृति (सचेतनता) नहीं है। यह जागृति (एकता का अहसास) केवल आत्म–साक्षात्कार घटित होने से हो सकती है।
यदिहमविश्व–शांति और मानव जाति की एकता चाहते हैं, तब सहज–योग ही एक मात्र हल है। आप में से बहुत जानना चाहेंगे, सहज–योग ही क्यों एक मात्र हल है, कारण है कि यह आपको सामूहिक चेतना में ले जाता है।”
7 अप्रैल को श्री माताजी और सर सी.पी. ने कृपा करके सहज परिवार को उनकी शादी की वर्षगांठ पर होटल ताज पैलेस पर आमंत्रित किया। श्री माताजी ने अपने बच्चों का गर्मजोशी से स्वागत किया और उन्होंने उनके उदार आतिथ्य की गर्मी में आतिथ्य का मज़ा उठाया। दिल्ली के मशहूर पियानो–वादक ब्रायन विलास ने श्री माताजी के पौराणिक आतिथ्य की सुगंध और स्वाद को सहजयोग सामूहिकता की स्मृति–पटल पर अंकित कर दिया था।
1997
अध्याय – 53
4 मई को कबेला में सहस्रार–स्वामिनी देवी माँ को सत्ताइसवीं 27th सहस्रार पूजा अर्पित की गई। पूजा समारोह का आरम्भ सहजी बच्चों से निर्मित आर्केस्ट्रा के समर्पण (भक्ति) से हुआ। श्री माताजी उनके द्वारा की गई प्रस्तुति से प्रसन्ना थीं, “आर्केस्ट्रा एक रोज़री rosary गुलाब के बगीचे की भाँति सहज–योग के रत्नों से युक्त थी।“
पूजाप्रवचनमेंश्रीमाताजीनेबताया– कैसे एक नई चेतना विकसित हुई, जब यह खुशी से भर गई, “प्यार से उमड़ते हुए आप अपने प्यार को जताते रहें, चाहे आप बात करें या नहीं करें, कुछ कहें या न कहें, चाहे आप मुस्कराते हों या नहीं, यह खुशी (आनंद) आपके हृदय में होती है।”
सामूहिकता का सहस्रार खुशी से नाच उठा और विश्व के सहस्रार खोलने का काम शुरू हो गया।
श्री माताजी प्रसन्न थीं– बच्चों ने चैतन्य को आत्म–सात कर लिया था और अपने नातिनों को डेलजिओ के लिए पिकनिक हेतु ले जाने का निर्णय लिया। पिकनिक स्पॉट की अनछुई सुन्दरता ने बच्चों को प्रेम–पाश में बाँध लिया (बोले), “नानी बच्चों की कैंपिंग (शिविर) के लिए यह कितना अद्भुत स्थल है।” .
श्रीमाताजीनेपिकनिक–स्थल का विस्तार से सर्वेक्षण किया और एक योजना उसके जीर्णोद्धार (renovation) हेतु बनायी। जैसे ही योजना बनी, 100 बच्चों ने श्री माताजी की शान्ति प्रदायिनी प्रकृति का मजा उठाया!
उन्होंनेआदिशक्तिपूजापरश्रीमाताजीकोधन्यवाददेनेकेलिएएकगीततैयारकिया ‘The Mouse of Shri Ganesha’ ‘श्री गणेश का मूषक‘। श्री माताजी बच्चों की अबोधिता के माधुर्य से मर्म–स्पर्शी हो उठीं।
प्रातःकालविभिन्नदेशोंकेप्रतिनिधि–गण कैसल castle पर पूजा आमंत्रण हेतु एकत्रित हुए। जैसे ही वे श्रोता–हॉल में एकत्रित हुए, श्री माताजी को नाभि में यकायक तेज दर्द ने घेर लिया और उसके बाद आतिसार का दौरा हुआ। बच्चे बहुत चिंतित थे, किन्तु मालूम नहीं था, क्या करें! उन्होंने लघु–गंगा (कबेला आश्रम) में शरण ली, अपने चक्रों की सफाई के लिए और पूजा को स्थगित करने का निश्चय किया।
जैसेहीउन्होंनेनिर्णयउद्घोषितकियाकैसलसेफोनपरसूचनाआईकिश्रीमाताजीरास्तेमेंआरहीहैं, बच्चे उनके स्वागत–प्रबन्ध करने में घबरा गए किन्तु बाहरी दिखावे श्री माताजी के लिए आखिरी चीज़ थी, उनका ध्यान कुछ और ज्यादा त्वरित महत्वपूर्ण चीज़ पर अटका हुआ था– जो उनके बच्चों के लिए गम्भीर चिन्ता का विषय थी। यद्यपि दिन में पहले हुई तकलीफ के कोई निशान बाकी नहीं थे, किन्तु अपने बच्चों को बचाने के लिए उनकी आँखें करुण आर्द्रता से भरी हुईं थीं।
वहआहत–करुणा पूजा प्रवचन में प्रकट हुई, “एक माँ की हैसियत से मुझे कोई शिकायत नहीं है, जहाँ तक आपके स्वास्थ्य का प्रश्न है, आप स्वस्थ और शुद्ध हों, मैं भी तुम्हें प्यार करती हूँ। चाहे आप बुरे हों या अच्छे, यह मुद्दा नहीं है, किंतु आपको मेरे प्रति उदार–ह्रदय होना है। यदि आप प्रयत्न कर सकें, अच्छे सहज–योगी बनने का– दिखावा करने वाले नहीं, व्यावसायी जैसे नहीं, ज्यादा चिंतन करने वाले नहीं, न ही तर्क करने वाले और न ही दूसरों की आलोचना करने वाले हों। यदि आप रोज केवल 10 से 15 मिनट ध्यान करने का प्रयत्न करें– मैं बताती हूँ, मेरा स्वास्थ्य उत्तम दर्जे का हो जायेगा। यह मेरे लिए रोजाना का क्रूसारोपण है, मुझे पता नहीं, मैं क्या कहूँ?”
श्रीमाताजीकीआहतकरुणानेबच्चोंकीआँखेंखोलदीं।बच्चोंकोपताहीनहींचलाकिश्रीमाताजीनेअपनेऊपरकितनीपीड़ाझेलीहै।अपनीआँखोंमेंआँसूलिएबच्चोंनेश्रीमाताजीसेक्षमा–याचना की। अपनी उपेक्षा की वजह से माँ को हुई तकलीफ के लिए क्षमा माँगी। उन्होंने सौगन्ध ली, ध्यान करने की तथा दुबारा कभी भी अपनी नकारात्मकता को श्री माताजी पर नहीं थोपने की।
1997
अध्याय – 54
6 जून को कैम्प वकामास पर आयोजित श्री कृष्ण पूजा पर बच्चों ने अपना वादा पूरा किया। अमेरिकी बच्चों ने अपनी कुण्डलिनियों के सहस्रार पर नृत्य करते हुए अपनी प्यारी माँ का स्वागत भरत–नाट्यम् तथा स्पेनिश, रूसी और मराठी में भजनों से किया।
उनकीभक्तिनेमाँकेहृदयकोस्पर्शकियाऔरउन्होंनेबच्चोंकोआशीर्वादितकियाकिउनकीसृजनात्मकताअमेरिकीजीवनकेआध्यात्मिकपहलूकोजन्मदेगी, “वे सत्य को खोजने की अपनी प्रबल–लालसा द्वारा प्रेरित हुए हैं, एक नई तरह की विधा, एक नए तरह का गायन जिसमें अलग प्रकार की धुन है– उभर रही है, मुझे ऐसा लग रहा है, जो यह सुझा रही है कि कुछ उच्चतर अवस्था है जिसे हमें प्राप्त करना है। मज़ा लेने का विचार ही बदल गया.. वह संगीत से अलग ही चीज़ है, क्योंकि संगीत कुछ भी हो सकता है, किन्तु संगीत का आशय सुनना, वह केवल मनोरंजन ही नहीं करता, किन्तु आपको उत्थान प्रदान करता है, आपके अस्तित्व के उच्चतर क्षेत्र की ओर ले जाता है। वही संगीत है।“
रविवारसुबहश्रीमाताजीनेश्रीकृष्णकीमधुरलीलाओंकीओरअपनेबच्चोंकाध्यानखींचा, जबकि तैयारियाँ श्री महाकाली पूजा की की गई थीं, उन्होंने श्री कृष्ण के बारे में बोलना शुरू किया क्योंकि पहले वे श्री कृष्ण के माधुर्य–सिद्धान्त को स्थापित करना चाहती थीं। वे बेहिचक अमेरिका की बुराइयों को सुलझाना (ठीक करना) चाहती थीं। “परम चैतन्य जब अपने नियंत्रण में लेता है– यह प्रेम है–परम प्रेम। जो सोचता है, समझता है, साथ लाता है, सहयोग करता है, कार्य करता है और अत्यन्त ही संवेदनशील है। मैं कभी–कभी इतनी आश्चर्यचकित होती हूँ, जिस तरह से बिना असफलता के, बिना गलती के यह कार्यान्वित होता है। अत: जब हम कहते हैं कि सहज–योग में स्थापित हो गए हैं, तब हमारा आशय उस बात से है कि वे परमात्मा से एकाकार हो गए हैं, परम चैतन्य के पूर्ण नियंत्रण में पूर्णतया आ गए हैं।”
श्रीकृष्णजीनेसाधकोंकोमनसेपरेलेजानेकेवपरमचैतन्यसेजोड़नेकेलिएसभीदाँव–पेंच (उपायों) के प्रयास किए, किंतु वे केवल एक अर्जुन के साथ ही सफल हो पाए थे और उस हेतु भी उन्हें अपना विराट स्वरूप दिखाना पड़ा था। जब तक साधक–गण श्री आदिशक्ति से नहीं जुड़ते वे ज्यादा दूरी नहीं तय कर पाते। केवल श्री माताजी का असीम वात्सल्य ही साधकों को भवसागर से पार करा सकता था और श्री माताजी से जुड़ने के लिए किसी भी प्रयास की जरूरत नहीं थी, यदि साधकों ने श्री माताजी को अपनी स्वयं की मां जैसा प्यार किया होता, साधकों की प्यार भरी पुकार में श्री माताजी बंधी हुई थीं।
किन्तुउनकेवात्सल्यकीबाँधनेवालीशक्तिनेउनकेशरीरकोपासहीखड़ारखा।उनकेप्यारनेहरेककोउनकेशरीरमेंअवशोषितकिएरखाऔरयदिकिसीकाअसामंजस्यथायाबिनापूर्वसोचे–विचारे किसी ने व्यवहार किया, यह उनके तकलीफ/पीड़ा का कारण बना। उनके शरीर ने स्वयं सभी तकलीफें सहन कीं। उन्होंने अकेले ही बिना शिकायत के कष्ट को सहा।
औरअधिकस्पष्टरूपसे, परम–चैतन्य ने कैथेड्रल–चर्च, सेंट जॉन के पादरी को होली–घोस्ट (आदि–शक्ति) की घोषणा करने को चुना। न्यूयॉर्क सहज–कार्यक्रम के चैतन्य ने लॉस– एंजेलेस के कार्यक्रम को साधकों के महासागर से भर दिया। श्री माताजी के प्यार ने उनकी कुण्डलिनियों को आदिशक्ति की शरण लेने को मजबूर कर दिया।
17 जून को बर्कले (Berkeley) के बच्चों का प्यार एक स्वागत–कविता के रूप में बरस पड़ा–
हे विश्व की महारानी,
हे देवी आदिशक्ति।
हमें साधक होने का मिला था आशीर्वाद,
कई कई युगों पूर्व।
आज हमें इस जीवन का मिला आशीर्वाद,
हम सबके बीच पाकर विद्यमान आपको।
भगवान गरुड़, अपनी शान से,
ओ, गुरुश्रेष्ठ माँ, आपको करके आरूढ़।
अपनी पीठ पर, तेजी से करा रहे सवारी,
बर्कले की पवित्र–भूमि की ओर।
भूमि जो हरे–भरे वृक्षों से है आच्छादित,
जो आपके कटाक्ष मात्र पर करेगी नमन।
भूमि जो पुष्पों से है परिपूर्ण,
आपकी हर मुस्कान पर जो हैं खिले ।
भूमि जो कर रही है प्रतीक्षा, निरंतर मन में निर्मल–इच्छा लिए।
आपके दैवीय आशीर्वाद और,
कृपा को प्राप्त करने के लिए!
हे देवी महाकाली,
हे विश्व की रत्न।
हे मां, हमारी संरक्षक,
हमारी पुकार सुनो!
उस द्वार, ‘गोल्डन–गेट‘ से,
रेड–वुड्स (जंगल) जो सीधे ऊंचे खड़े हैं।
हम आपके मंगलमय आगमन का, कर रहे इंतजार,
(हृदय में) सबके लिए प्यार और आनंद लिए।
श्री माताजी अपने बच्चों के प्यार में बंधी हुईं थीं और बताया कि वे उन्हें कितना प्यार करती हैं।
श्री माताजी ने क्ले–माउंट होटल की खिड़की से बाहर झांका और अपने प्रेम की रचना को देखकर दंग रह गईं। योन्डर–बे (Yonder bay) (सामने स्थित खाड़ी) के किनारों ने श्री माताजी के चरण–कमलों को चूमने की तीव्र इच्छा (लालसा) व्यक्त की और इसके अद्भुत पुष्पों ने अपनी मधुर सुगंध उन्हें अर्पित की।
मार्कुसनोबेल (क्लॉस नोबेल के पुत्र) ने श्री माताजी का परिचय बर्कले–विश्वविद्यालय के व्हीलर्स–सभागार में साधकों से कराया।, “क्या फर्क पड़ा, बजाय इसके कि जीव–वैज्ञानिकों, ने जीव–विज्ञान के विकास के लिए हजारों पीढ़ियां आवश्य लगा दीं, जबकि मानव की चेतना का विकास एक पूरे जीवन–काल में हो सका या मात्र एक दोपहरी भर में (हो सका)।” श्री माताजी की आँखें आँसुओं से भर गईं और नम्रता से बोलीं। उनके वात्सल्य से माहौल इतना आवेशित हो गया कि कुण्डलिनियाँ सहज ही खुशी के आवेग में उछल पड़ी। यह केवल संयोग–मात्र नहीं था कि उनकी आत्मा की स्वतंत्रता का संयोग जुनेटींथ–समारोह से मिला, जिस दिन अफ्रीकी–अमेरिकन्स गुलाम लोगों को स्वतंत्रता प्रदान की गई थी।
बर्कलेमेयर (नगर अध्यक्ष) ने इस दिन को ‘श्री माताजी निर्मला देवी दिवस‘ घोषित किया और उनका ध्यान किशोरावस्था की समस्याओं की ओर आकृष्ट किया। श्री माताजी ने सलाह दी, “आपको अपने जीवन के उद्देश्य को जानना चाहिये और अपने इर्द–गिर्द स्थित सौन्दर्य का विस्तारपूर्वक अध्ययन करना चाहिए।“
सपनोंकेबारेमेंएकप्रश्नकेउत्तरमेंउन्होंनेकहा, “मैं सपने नहीं देखती, मेरा चित्त वास्तव में कार्यान्वित होता है। मैं अपने चित्त को सब जगह जाने देती हूँ, जहाँ यह जाना चाहता है और वहाँ मेरा चित्त कार्य करता है।”
श्रीमाताजीकेवैन्कोवर (कनाडा) रवाना होने से पूर्व उन्होंने बच्चों को साधकों के हृदयों तक पहुँचने का रास्ता निकालने हेतु प्रेरित किया, ताकि साधक–गण उन्हें सुनें। सहजी बच्चों को आदर और आज्ञापालन के महत्व को समझने की जरूरत थी।
वैन्कोवरमेंउनकेपधारनेकेबाद, उन्होंने सहज–आश्रम के लिए स्थान खोजने की शुरुआत की और इस तरह कनाडा का श्री गणेश–तत्व स्थापित किया। चाइना–टाऊन में खरीददारी हेतु आने से पहले उन्होंने एक इमारत की ओर इशारा किया, “एक यही है।”
तबउन्होंनेइसइमारतकीबीयर–क्रीक–पार्क (Bear creek park) से निकटता और स्थानीय रेलवे (local train) से शहर की दूरी की विश्वसनीय जानकारी हासिल की। इसके अतिरिक्त, यह बच्चों के शांतिपूर्वक रहने के लिए आदर्श–रूप से अनुकूल, पड़ोसियों की झंझट से मुक्त स्थल थी।
थोड़ेसेआरामकेबादश्रीमाताजीने 700 साधकों से भरे हॉल को संबोधित किया। बहुत से साधक बड़ी दूरी तय करके आत्म–साक्षात्कार प्राप्त करने आए थे। उनके वर्षों से परेशानी झेल रहे प्रयास फलीभूत हुए।
अगलेदिनश्रीमाताजीटोरेंटोमेंकार्यक्रमहेतुनिकलीं! वैन्कोवर कार्यक्रम का अनुनाद (गूंज) स्पष्ट दिखाई दिया, साधक–गण अपनी कुण्डलिनियों पर श्री माताजी की उपस्थिति से बहुत ज्यादा परिचित थे। श्री माताजी उनकी ग्राहयता (ग्रहणशीलता) से प्रसन्न थीं और बोलीं कि उनके संरक्षण को प्राप्त करने के लिए सामूहिक होना तथा एक दूसरे के साथ आनन्द से रहना बहुत महत्वपूर्ण है। जब वे एक दूसरे को प्यार करते हैं, उनका ध्यान छोटी–छोटी चीज़ों पर नहीं जाता, “सामूहिकता में सबसे प्यार करना इतना महत्वपूर्ण है।”
अगलेसप्ताह, क्लॉज नोबेल ने चेक गण–राज्य के राष्ट्रपति वेक्लोन हैवेल (Waclon Havel) के साथ फोरम-2000 के लिए एक भेंट–सभा का प्रबंध किया। यद्यपि, जैसे कि श्री माता जी के पूर्व नियोजित कार्यक्रम स्थागित नहीं हो सकते थे, अत: क्लॉज नोबेल ने श्री माताजी का आशीर्वाद फोरम-2000 के लिए अपने पत्र में चेक–गणराज्य राष्ट्रपति को प्रेषित किए, “अल्फ्रेड नोबेल की घोषणा (वसीयतनामा) ने 100 वर्ष पूर्व नोबेल–प्राइज की स्थापना की थी। नोबेल नाम शांति और दक्षता का पर्यायवाची बन गया है। मेरे पूर्वजों की धरोहर से प्रेरित मैं उसी प्रकार अविभाजित धरती के माध्यम से विश्व–कल्याण हेतु कार्य कर रहा हूँ।
परमपूजनीयश्रीमाताजीनिर्मलादेवीनेमहानयोगकोसहज–योग के दर्शन से दुबारा खोज निकाला है। यह पुरातन अनुशासन, जब एक व्यक्ति को दिया जाता है, तो उसके अंदर सहज आत्म–साक्षात्कार लाता है। ‘परम सत्य‘ का ज्ञान होता है और साधक को भविष्य में ब्रह्मांडीय–चेतना के आशीर्वाद से मार्ग–दर्शन प्राप्त होता है। श्री माताजी अब हजारों सहज–साधकों (छोटे और प्रौढ) के साथ समान–रूप से 65 देशों में विश्व–भर में कार्य कर रही हैं और अनेक साधकों ने उनके द्वारा आत्म–साक्षात्कार को सत्य के धरातल पर अनुभव किया है, जो व्यर्थ की शिक्षा से मुक्त है।”
जून महीने की एक गर्म सुबह श्री माताजी ने जब चाय की चुस्की ली, उनकी क्षणिक–निगाह अखबार में प्रकाशित एक विज्ञापन पर गई जो काना जोहरी, अप–स्टेट, न्यूयॉर्क में एक 140 एकड़ के भूखण्ड के बारे में था। श्री माताजी ने अति तेज चैतन्य–लहरियां महसूस कीं और इसे बिना देखे, इसे खरीदने के लिए, वे परम चैतन्य की प्रेम–शक्ति से बाध्य हो गईं।
1997
अध्याय – 55
श्रीमाताजीगुरुपूजाकेलिएकबेलालौटीं।सहजीशिष्योंनेबड़ीआतुरतासेअसंख्यउपहारतैयारकिए, अपने गुरु को प्रसन्न करने हेतु। अनंत–मूल्यों के रंगमंच ने एक आनन्ददायी नाटक ‘काल्पनिक अमान्य‘ (Imaginary Invalid) मोलेरे द्वारा, प्रस्तुत किया। श्री माताजी ने नाटक के द्वारा अनंत–मूल्यों को प्रदर्शित करने के बच्चों के प्रयास को सराहा।
श्री माताजी अपने बच्चों की निष्कपट–भक्ति से प्रसन्न हुईं और उन्हें एक बार नए आयाम में उठाया, “यहां प्रश्न आध्यात्मिक उन्नति का नहीं है, यहाँ प्रश्न है आपके अन्दर बढ़ रही सामूहिकता का। उसी तरह से आप एक सामूहिक व्यक्ति बनते हैं, जो सामूहिकता का आनन्द लेता है, जो सामूहिकता के साथ काम करता है और सामूहिकता के साथ रहता है। ऐसा ही व्यक्ति नई प्रकार की शक्तियों का विकास करता है।“
अन्तमें, श्री माताजी ने उन्हें स्मरण कराया कि वे गुरु बनने जा रहे है, किंतु उन्हें सावधान रहना है, गुरु होने के प्रति सचेत न रहते हुए (यानि गुरु हो गये, के अहं से मुक्त रहना है)। बच्चों ने अपने हृदयों से नम्रता–पूर्वक प्रार्थना की, “मां हम कुछ भी नहीं है, केवल हमें आपके हृदय में प्यार का एक निशान बनने की आज्ञा प्रदान कीजिए।“
उन्होंनेजितनामाँकोसमर्पणकिया, वे उतने करीब उनके ह्रदय के बन्धन में बंध गए। धीरे–धीरे उन्होंने माँ के हृदय में शरण ली और माँ ने उन्हें अपने नए आयाम में मार्ग–दर्शन प्रदान किया!
यद्धपिइसनएआयामकाप्रसारअसीमितथा, पूजा–टेंट का विस्तार सिकुड़ रहा था (स्थान कम पड़ रहा था)। बच्चों ने माँ से पूजा–टेंट के आकार के विस्तार हेतु प्रार्थना की। जैसे श्री माताजी मिलान की ओर जा रहीं थीं, कबेला से 3 कि.मी. आगे अल्बेरा के पड़ोस में उन्हें तीव्र चेतन–लहरियाँ सड़क व नदी के निकटवर्ती स्थान से आती हुई अनुभव हुईं। श्री माताजी ने बच्चों की प्रार्थनाओं का उत्तर दिया और उन्हें उनकी कल्पना से परे भूखण्ड के आयाम का आशीर्वाद प्रदान किया। श्री माताजी ने उदारतापूर्वक उस भूखण्ड को स्वयं के पैसों से खरीद लिया और अपनी कनखियों में चमक के साथ मुस्कराते हुए बोलीं, “देखो उसमें एक पवन–चक्की भी है।“
यह एक अनपेक्षित फल–लाभ था जिसे श्रीकृष्ण जी ने ‘योग क्षेम वहाम्यहम्….’ कहा है (अनन्य भक्ति के बाद आप मुझसे जुड़ जाते हैं, तब मैं केवल तुम्हारा कल्याण देखूंगा)। जैसे बच्चे अपनी माँ की साड़ी के संरक्षण में आए उन्होंने बच्चों को साड़ी के तहों में संरक्षण (कवच) प्रदान किया और उनके क्षेम की देखभाल की और इस प्रकार अपने बच्चों के प्यार से बाध्य हो, श्री आदि–शक्ति माँ ने इस अद्भुत सृजन का ताना–बाना बुना।
सितम्बरमहीनेकेआतेही, कबेला की पहाड़ियाँ और घाटियां अमेरिकी बच्चों द्वारा नृत्य, गीत और नाट्य प्रस्तुति से श्री कृष्ण की लीला–विनोदिनी–हास्य से गूंज उठीं।
श्रीकृष्णपूजाशनिवारशामकोहोनातयथी, किन्तु रोमेनियन बच्चे रास्ते में रुक गए थे और माँ उनके लिए प्रतीक्षा करना चाहती थीं। अंततः 50 घंटो की बस–यात्रा के बाद वे देर रात्रि में पहुंचे। उनकी प्यारी माँ ने वात्सल्य–पूर्ण सांत्वना देते हुए कहा कि उन्होंने उनके लिए और इन्तज़ार किया होता, यहाँ तक कि पूजा भी यदि दूसरे दिन के लिए स्थगित करनी पड़ती। उनके शांति–प्रदायक स्पर्श ने एक जादुई बाम (मरहम) की तरह काम किया और उनकी थकान को मिटा दिया। उन्होंने कभी अपने स्वयं के आराम का ख्याल नहीं रखा, किन्तु सबसे पहले बच्चों के आराम का ख्याल रखा और इसी तरह उनके बच्चों को श्री कृष्ण के प्रेम के धर्म को स्थापित करना था। ऐसे धर्म के साथ, उन्होंने अपने बच्चों को लोगों को अपने हृदयों में लाने और उन्हें प्रेम करने के लिए प्रवृत्त किया, “उस प्यार में, लोगों पर आप रहम या तरस का भाव न दिखाते हुए, केवल प्यार प्रदर्शित करें जोकि श्री कृष्ण की आह्लाद–दायिनी शक्ति है… मुझे तुम्हें यह नहीं कहना है कि आप यह मत करो, वह मत करो। मैं जो भी कहती हूँ यह स्वीकार्य न हो सके, किन्तु तुरंत तुम्हारी चैतन्य–लहरियाँ तुम्हें बता देंगी।”
श्रीकृष्णजीकासंदेशबच्चोंकेहृदयोंमेंप्रेमरूपीअसीमबसंतकीतरहअंकुरितहोउठा।धीरे–धीरे, यह आह्लादिनी प्रेम शक्ति को प्रसारित करने के लिए उमड़ पड़ा।
आह्लादिनीकाआनन्दरविवारकोअमेरिकीयोगीजनोंकेद्वाराइटलीमेंपहलीबारसहज–विवाहोत्सव की मेज़बानी के साथ ज्यादा ही जीवंत हो उठा। परम्परागत शहनाई का स्वर गिटार–पॉप (पाश्चात्य संगीत) की जगह ले चुका था। लघु गंगा के किनारों पर मेहंदी की रस्म का आयोजन हुआ। गौरी पूजन के दौरान कैसल (महल) में श्री माताजी ने व्यक्तिगत रूप से हर दुल्हिन की पोशाक का बारीकी से निरीक्षण किया और उन्हें सलाह दी कि दया और क्षमा सफ़ल वैवाहिक जीवन की कुंजी है।
शामकोविश्वकीमहारानीने 88 जोड़ों को आशीर्वादित किया। नवदम्पत्तियों ने एक दूसरे को इस अवसर पर दोहे (Duets) गाकर सुनाए। उनकी बिना रिहर्सल (पूर्वाभ्यास) के रची गई रचनाओं ने उनके शर्मीले स्वर में आह्लाद–दायिनी आनन्दानुभूति के आकर्षण को बढ़ाया।
यहआह्लाद–दायिनी मनोस्थिति mood नवरात्रि पूजा तक जारी रहा। नवरात्रि की पंचमी को रात में ब्रितानी (British) सामूहिकता ने एक नाटक की प्रस्तुति दी, साधकों की आध्यात्मिक प्राप्ति के प्रयास से संबंधित नाट्य प्रस्तुत किया और बताया कैसे वे अपने उद्देश्य से भटक गये थे (दिग्भ्रमित हो गए थे)। श्री माताजी ने इशारा किया, “और अहंकार के निवारण के लिए, यह स्वीकारना कि तुम्हें अहंकार हो गया है… यही एक तरीका है, आदि आप जान जाते हैं कि अहंकार आ गया है, यह अहंकार हट जायेगा।“
अगलानाटकस्विस (स्विट्जरलैंड) का था, जिसमें स्विस बैंक की ‘मनी–लॉन्ड्रिंग‘ का मंचन किया गया था, कैसे काले धन को सफेद बनाया जाता है। 5 अक्टूबर के पूजा–प्रवचन में श्री माताजी ने पुनः बायीं नाभि–चक्र (श्री गृह लक्ष्मी) की समस्याओं पर चर्चा की और बताया कि किस प्रकार से उन्होंने गृह–लक्ष्मी चक्र पर तकलीफ उठाई, क्योंकि सामूहिक गृह–लक्ष्मी–चक्र बदहाल (बुरी) स्थिति में था। यद्यपि बहुत से बच्चे अंग्रेजी नहीं समझे, उन्होंने माँ के श्री मुख से निकले शब्दों को आत्म–सात किया, जैसे वे मंत्र हों।
यहएकसंवादथाआत्माऔरपरमात्माकेबीचका।देवीमाँनेअमृतकीवर्षाकीऔरबच्चोंनेउसका आस्वादन किया। अंत में श्री माताजी ने सलाह दी कि जब भी कोई समस्या/खतरा आए, उन्हें निर्विचरिता की स्थिति में जाना चाहिये, क्योंकि समस्याएँ परम चैतन्य द्वारा हल हो जाएंगी। “यदि आप परम–चैतन्य पर निर्भर नहीं होते हैं, वे मदद नहीं करते, आपको कोई समाधान नहीं देते। तब आप अपने मस्तिष्क से गोल–गोल चक्कर लगाते रहते हैं।”
2 नवम्बर को श्री माताजी ने दीवाली–पूजा के साथ पुर्तगाल के श्री लक्ष्मी–तत्व को जागृत किया। पूजा से पुर्तगाली सामूहिकता को शांति, गरिमा और समृद्धि का दान मिला। पूजा के चैतन्य से 700 साधक सहज कार्यक्रम में आए। श्री माताजी प्रसन्न थीं कि साधक–गण उनकी उपस्थिति के प्रति इतने संवेदनशील थे।
4 दिसम्बर को दिल्ली में साधकों का भारी ज्वार (भीड़) उमड़ पड़ा। उत्तर–जीवी (follow up) कार्यक्रम में साधकों की संख्या बहु–गुणित हो गई। श्री माताजी इंडिया–टुअर (भारत–भ्रमण) के साथ नहीं जा सकीं, क्योंकि उन्हें नव–जात बच्चों (नए आत्म–साक्षात्कारियों) की देखभाल करनी पड़ी, हालांकि उन्होंने बच्चों को यकीन दिलाया कि वे जहाँ भी यात्रा करेंगे, उनका चित्त बच्चों पर रहेगा।
23 दिसम्बर को वैश्विक सहज–योग–परिवार ने अपनी माँ का स्वागत गणपतिपुले में किया। पंच–तत्व भी आपनी जीवंतता प्रदर्शित करने में पीछे नहीं रहे और उन्होंने आकाश को गुलाबी–छटा से क्रिसमस–पूजा पर आच्छादित कर दिया था। प्यारी मां बहुत प्रसन्न थीं और अपने बच्चों पर हजारों आशीषों की वर्षा की। माँ ने विवाहोत्सव की उद्घोषणा के साथ क्रिसमस पर्व की खुशियाँ और बढ़ा दीं। 28 दिसम्बर को उन्होंने नव–विवाहित दंपतियों को आशीर्वाद दिए।
प्रत्येकसन्ध्याकोस्नेहमयीमांनेअपनेबच्चोंकोसंगीतकीस्वर्गीयदावतमेंलिप्त (आसक्त) रखा, किंतु बच्चों ने इस संगीत को कानों से सुना और अपनी आत्मा (ह्रदय) से नहीं। उन्हें आश्चर्य हुआ कि बच्चों का चित्त बहुत अस्त–व्यस्त था और नव–वर्ष पूजा पर उन्हें ध्यान करने का स्मरण कराया और चैतन्य को आत्म–सात करने का ध्यान दिलाया। एक मृदुल सुधार से बच्चों का योग पुनः स्थापित हो गया। जैसे ही आरती के बाद उन्होंने माँ को नमन किया, श्री माताजी के वात्सल्य से चैतन्य का भारी झोंका आया, बच्चों को उनकी आगामी यात्रा के संरक्षण हेतु। अपने बच्चों से विदाई ने उनकी आँखों को आर्द्र कर दिया, किन्तु एक चमकती हुई मुस्कान ने उदासी को ग्रसित कर लिया और उन्होंने बच्चों को आश्वस्त किया कि वे हमेशा उनके साथ थीं।
1998
अध्याय – 56
मकरसंक्रान्तिकेशुभअवसरपरश्रीमाताजीकेचरणकमलोंपरपुष्पार्पणहुआ।श्रीमाताजीविश्व–भर में सहज–योग के प्रसार से प्रसन्न थीं, “अब सहज–योग बाहर की ओर फैल रहा है, लोगों को पोषण और मदद प्रदान कर रहा है, जिन्हें वस्तुत: मदद चाहिए। सहज–योग में यह नया क्षण है और मुझे आशा है यह सफल होगा।”
एकबारश्रीमाताजीदौलताबादएककार्यक्रममेंजारहीथीं, जब उनकी कार खराब हो गई। जैसे श्री माताजी कार से उतरीं, उन्होंने देखा कि करीब 100 महिलाएं बच्चों के साथ एक नल से पानी भर रहीं थीं। मौसम काफी गर्म था और वे मुश्किल से कुछ बाहरी कपड़े पहने थीं, ये औरतों तलाक–शुदा थीं और उनके बच्चे भी उनके पिता द्वारा छोड़ दिए गए थे। उनके पास पैसे नहीं थे और बमुश्किल अपना गुज़ारा पत्थर तोड़कर करती थीं। उनके रहने की कोई जगह नहीं थी और उन्होंने बोरों से बनी झोपड़ी में शरण ले रखी थी। श्री माताजी भाव–विह्वल हो उठीं और उनकी दयनीय दुर्दशा पर रोते हुए एक चट्टान पर बैठी रहीं।
“मेरे अंदर एक भावना जाग्रत हुई कि हमारा देश जो इतनी समृद्ध संस्कृति और पावित्र्य से परिपूर्ण है और जहाँ औरतों को लेकर चरित्र को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसके सबके बावजूद इतनी सारी तकलीफें क्यों हैं? जहाँ माताएँ इतनी तकलीफें झेल रही हैं, उनके बच्चों के क्या हाल होंगे और वे अपने बच्चों की कैसे देखभाल करेंगी और कौन उन्हें शिक्षा दिलायेगा?
किन्तुमेरेभीतरइसतरहकीजन्म–जात करुणा है कि मुझे कहीं, किसी तरह से एक भूखण्ड मिल जाए। मुझे किसी तरह का एक स्थान मिल जाय, जहाँ मुझे इस तरह के लोगों और अनाथ लोगों को रखने की जगह मिल जाय, उन्हें सभी तरह की मदद मिल जाय, ऐसे संगठन को सुव्यवस्थित रूप दे सकूँ। इस तरह की अभाव–ग्रस्त और गरीबी के बंधन से आप बहुत से कमल विकसित होते हुए प्राप्त कर सकते हो, किंतु यह एहसास सामूहिक होना चाहिए।“
उन्हेंगरिमाकेसाथउनकाख्यालरखनेकेअतिरिक्तश्रीमाताजीउन्हेंव्यावसायिकप्रशिक्षणदेनाचाहतीथीं, ताकि 2 वर्षों में वे लोग (स्त्रियां व बच्चे) अपने पैरों पर खड़े हो सकें।
दिल्लीकेसहजीबच्चोंनेतुरंतप्रतिक्रियादीऔरएक भूखण्ड की खोज शुरु कर दी, किन्तु, भूखंडों की कीमत उनके बजट से परे सिद्ध हुई। श्री माताजी ने दिल्ली का मानचित्र मंगवाया और यमुना–पार नोयडा से चैतन्य–लहरियाँ आती हुई महसूस कीं। इसके बाद उन्होंने नोयडा का मानचित्र मँगवाया और अपनी अंगुली एक स्थान पर रखी जहाँ से उन्हें चैतन्य–लहरियां महसूस हुईं। सहजी बच्चों ने चैतन्य–लहरियों के निर्देशानुसार अनुसरण किया और एक प्लॉट (भूखण्ड) जो किसी निश्चित उद्देश्य के लिए चिन्हित था –ग्रेटर नोयडा प्राधिकरण के द्वारा चेरिटेबल उद्देश्य के लिए चिन्हित था– एक चौथाई मूल्य पर उपलब्ध था! हालांकि यह प्लॉट केवल रजिस्टर्ड NGO को ही अलॉट (वितरित) हो सकता था। इसलिये श्री माताजी ने एच. एच. श्री माताजी निर्मला देवी फाउन्डेशन के टाइटल (झंडे) तले NGO, अशासकीय–संगठन के सृजन का आशीर्वाद प्रदान किया, क्योंकि यह प्लॉट काफ़ी विशाल था। यह प्लॉट (भूखण्ड) एक अनाथालय और अस्पताल दोनों के लिए दोहरा आशीर्वाद लाया।
शीघ्रही, उन्होंने अनाथालय के लिए योजना तैयार करना शुरु कर दिया और एक प्रेममयी माँ की तरह अपने बच्चों की सुविधा का ख्याल रखा।
बादमेंजनवरीमें, श्री माताजी की नातिन सोनालिका का विवाह कुणाल खट्टर से हुआ। जैसे ही उन्होंने दूल्हे का विशिष्ट स्वागत मेरिडियन होटल में किया, उन्होंने अपनी चमकती मुस्कान से सभी प्रबन्धनों को आंतरिक रूप से जान लिया, सम्बन्धियों को गले मिलना, उनके भोजन आदि का उचित प्रबन्ध देखना, शादी की रस्मों का निरीक्षण करते हुए।
इनसबउत्सवोंनेदिल्लीसामूहिकतापरआशीर्वादबरसाए।श्रीमाताजीनेगुड़गाँवकेपासपूजाकेलिएएकविस्तृतप्लाट (भूखण्ड) प्रदान किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने पालम–विहार पर एक भूखण्ड अपने बच्चों के नज़दीक खरीद लिया।
अपनीमाँकाजन्म–दिवस (पचहत्तरवाँ 75th जन्मदिवस) मनाने हेतु माँ के बच्चे पूरे विश्व से, उत्साहपूर्ण हो निजामुद्दीन स्काउट ग्राउन्ड्स को सुसज्जित करने में लग गये। उन्होंने 5 बड़े स्वागत द्वार और पण्डाल प्रवेश द्वार को जयपुर के हवा–महल की तरह स्वरूप प्रदान किया। मंच को फूलों की उपहार–सज्जा से तथा जल–प्रपात से इस तरह सज्जित किया गया कि वह ‘गार्डन ऑफ इडेन‘ की तरह प्रतीत हो रहा था।
इक्कीसवींसदीकापरमआनन्दप्रदानकरनेवालायहसमारोह 20 मार्च को श्री माताजी के बधाई कार्यक्रम से प्रारम्भ हुआ, जो अनेक मशहूर पदाधिकारी–गणों की सद्भावना से सुशोभित था। वे 50 से भी अधिक देशों से पधारे हुए हजारों सहज–योगी बच्चों की सामूहिकता को देख आश्चर्यचकित थे और समझ पाए कि श्री माताजी का वात्सल्य उनकी 75 वर्षीय जिन्दगी का आकर्षण था। केबिनेट मंत्री श्री पी. चिदम्बरम ने सविनय समर्पण भाव से कहा, “मैं अति क्षुद्र हूँ, और केवल आपका आशीर्वाद माँगने के अलावा कुछ भी मांगने के लिए अति–सामान्य हूँ, मैं आपका आशीर्वाद चाहता हूँ। आपका वात्सल्य और आपका मार्गदर्शन दीजिए। कृपया, इस विश्व के लोगों का मार्ग दर्शन कीजिए।” सामूहिकता की हृदय से निकली भावना सर सी. पी. द्वारा प्रदर्शित की गई एक आशु–काव्य (दोहे) के रूप में फूट पड़ी,
हम प्रार्थना करते हैं– “आप जियो हज़ारों साल
साल के दिन हों पचास हज़ार“
आपइसधरतीपरतबतकरहें, जब तक कि पाँच अरब मानवों में से प्रत्येक को आत्म–साक्षात्कार नहीं मिल जाता और हरेक सहज–योगी सहज–योग में स्थापित नहीं हो जाता।
बधाईसन्देशदेशकेराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उप–राष्ट्रपति से एक के बाद एक आए। आत्मा को झकझोर देने वाले जन्म–दिन संदेश में क्लॉज नोबेल ने लिखा, “परम आदरणीया माँ! इस धरती पर भ्रमित और उलझन–भरी मानवता में शान्ति और भाईचारा लाने के वैश्विक मिशन पर आप सत्य की मशाल धारण किए हुए अग्रसर हुई हैं। संसार के कल्याण के लिए आपने हजारों–हजारों साधकों को प्रभावित किया और उनका जीवन परिवर्तित किया। आपको इस अवतरण में इस ब्रह्मांड के रहस्यों का पता करने की विरली (अनूठी) योग्यता का आशीर्वाद मिला है। एक समकालीन अवतरण की हैसियत से आप अद्वितीय उदारता के साथ इन बेशकीमती अन्तर्दष्टि को (बांटते) वितरित करते हुए और प्रभावकारी–प्रदर्शन से साधकों के मस्तिष्क और हृदयों को समान रूप से खोलते हुए, व्यक्ति–मात्र को आत्म–साक्षात्कार के महत्व को उजागर करती, आप एक अनूठी अवतरण हैं। और इस तरह इन भाग्यशाली लोगों को जिनकी ज़िन्दगियाँ आपने स्पर्श की हैं और जो परम सत्य के आदर्श द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संरक्षण को प्राप्त करने की पूर्व–घोषित राह है– वह राह आप हमें दिखा रही हैं।”
अंततः, बहुप्रतीक्षित क्षण आ गया, जब श्री माताजी से ज्ञान के मोती बह निकले, “किसी भी अवतरण ने नहीं सोचा कि उनके अनुयायी एक–एक संगठित धर्म बना लेंगे और एक दूसरे के विरोध में लड़ने लगेंगे। उन्हें इस विरोध से मुक्त करने के लिए आपको उन्हें शुद्ध ज्ञान (सत्य) देना होगा, बौद्धिक ज्ञान नहीं, किंतु विवेकपूर्ण ज्ञान (शुद्ध–बुद्धि)… इस ज्ञान द्वारा ही मैंने कार्य किया है। यह ज्ञान (समझ–बूझ) मुझमें बचपन से ही था, किसी ने मुझे यह नहीं दिया। यह मेरे अंदर स्थित था। इस ज्ञान ने मुझे एक बात सिखाई कि साधक का तरीका कुछ भी हो, किसी तरह का हो, उसका अहंकार या प्रति अहंकार, यदि साधक प्यार का एहसास कर सकता है तब उसकी आत्म जाग्रत हो जाती है, यह परिवर्तन शुरू हो जाता है (घटित होता है)।”
अंतमें, युवा–शक्ति ने वन्दे मातरम् गाया, एक ऐसी रचना (कृति), जो श्री माताजी के हृदय को बहुत प्रिय है। गीत आरम्भ होते ही सम्मान–स्वरूप वे तुरंत खड़ी हो गईं, एक अनंत–क्षण के लिए, यह महसूस हुआ जैसे भारत–माता अपनी पूर्ण गरिमा में खड़ी हो गई हैं। श्री माताजी की गाने में सह–भागिता थी, जैसे वे भारत के स्वातंत्र्य–आंदोलन के दौरान, स्वतंत्रता– सेनानियों की आत्मा को उन्नत करने हेतु गाती थीं! उनके शब्द मंत्रों की तरह बरसे और उनके बच्चों की कुण्डलिनियों के प्रत्येक तार को झंकृत कर दिया। वह क्षण शब्दों से परे था, वह क्षण जीवन–पर्यन्त का था!
इसक्षणनेबच्चोंकीराष्ट्र–भक्ति के वीरतापूर्ण मनोभाव को जागृत कर दिया और 50 देशों से आए सहजी बच्चों ने अपने–अपने राष्ट्रीय–ध्वजों को लहराते हुए, ब्रह्मांड की जननी श्री माताजी को पूजा–स्थल के लिए मार्गदर्शन (संरक्षण) प्रदान किया।
उन्होंने बच्चों की साहसिक–भावना को आशीर्वादित किया और उन्हें अपने–अपने राष्ट्रीय ध्वजों को वापस अपने देशों में ले जाने का कहते हुए यह संदेश दिया कि पुनर्जीवन (आत्म– साक्षात्कार) का समय आ गया था।
श्रीमाताजीनेपुष्प–सज्जा और इंद्रधनुषी गुब्बारों की प्रशंसा की, “ये विभिन्न रंगों के हैं, जो मेरे प्रति तुम्हारे प्यार को प्रदर्शित कर रहे हैं….. मैंने तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं किया है, मुझे नहीं मालूम, आपको मेरे प्रति इतनी कृतज्ञता किस वजह से हो रही है। हालांकि, जो मानवीय चेतना में कमी थी कि मानव का चित्त आत्मा पर नहीं था। जब यह चित्त आत्मा पर स्थानान्तरित हो जाता है, तो मानव गुणातीत, कालातीत और धर्मातीत हो जाता है, साधक किसी भी चीज का गुलाम (दास) नहीं रहता है।”
श्रीमाताजीनेगगनगढ़महाराजकीएकमज़ेदारगाथाकाविवरणसुनाया, जो कि बहुत सख्त अनुशासित थे, “किन्तु सहजयोग में अनुशासन नहीं लागू की जाती है। कारण कि, आप आत्म–साक्षात्कारी हैं। आपकी आत्मा है, जो आपको प्रकाश (ज्ञान) प्रदान करती है। उस प्रकाश में आप स्वयं को देखते हो (स्पष्ट देखते हो) और स्वयं को अनुशासित कर सकते हो। मुझे तुम्हें बताने की जरूरत नहीं है।
पूजाकेदौरानउनकीआंखोंमेंअनंतता (अमरत्व) था और उनकी चमकती मुस्कान में हजारों सूर्य थे। वह एक स्वप्न (दृश्य) था, जिसे बयां नहीं किया जा सकता। समय की कोख में बोया हुआ बीज अंकुरित हो चुका था।
चैतन्यकीलहरियोंपेलहरियोंनेमांकेह्रदयकेविस्तारमेंअपनेबच्चोंकोसुरक्षितछुपालियाथा।
पूजाकेउपरान्त, श्री माताजी तीन घंटो तक पचास देशों से समर्पित उपहारों को स्वीकार कर रहीं थीं। उन्होंने हर देश के प्रतिनिधि से बातचीत की और उनके देश की कुशल–क्षेम की जानकारी ली। विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने भी उसके बदले में अपने देशों से सम्बंधित विभिन्न मामलों पर श्री माताजी की सलाह प्राप्त की, जैसे– नए आश्रम आरंभ करने, सहज–योग के प्रसार सम्बन्धी, ज़मीन की खरीदी और व्यक्तिगत समस्याओं पर।
अगली 5 रात्रियों के उत्सवों के दौरान श्री माताजी के बहुत से आशीर्वाद माँ के भण्डार में संचित थे! प्रत्येक रात्रि को कलाकार की कुण्डलिनी को अज्ञात गहराई से बाहर सुलझाया। मां सरस्वती ने संगीत के तारों को पकड़ा और उनके स्वप्न से परे उन्हें सृजनात्मक ऊंचाइयों की ओर ले गईं। समय जैसे ठहर गया हो ,यह वह सम्पदा थी, जिसे इस दुनिया के लिए पकड़े रहना संभव न था! सूफ़ी गायक पास ही स्थित हज़रत निज़ामुद्दीन और अमीर खुसरो की दरगाह से आए, पीछे नहीं रहे और मां के आशीर्वाद की संपदा की पिपासा को शांत करने आए। आने–जाने वाले लोगों को लगा कि उनके पांव श्री माँ की शरण पाने के लिए मुड़ रहे थे। शीघ्र ही पंडाल एक सहज–योग जन–कार्यक्रम में परिवर्तित हो गया। हर शाम को साधकों की भीड़ उमड़ती रही और पौ फटने तक स्वर्गीय सम्मान में खो गई और जब माँ विदा हुईं, उन्होंने उस ज़मीं को चूम लिया, जिस पर श्री माताजी के चरण–कमलों ने स्पर्श किया था और सम्मान–पूर्वक इस पवित्र मिट्टी को मुट्ठी–भर अपने बच्चों की सुरक्षा हेतु घर पर बचाकर रखा।
1998
अध्याय – 57
5 अप्रैल को श्री राम नवमी श्री माताजी के चरण कमलों पर पुष्पार्पण के साथ मनाई गई। श्री राम जो कि श्री विष्णु के सातवें अवतरण थे, चैत्र मास के शुक्ल–पक्ष की नवमी तिथि को दोपहर मध्याह्न बारह बजे, उनका जन्म हुआ। श्री माताजी का जन्म भी 21 मार्च 1923 को दिन के ठीक 12 बजे (मध्याह्न) में हुआ। शालिवाहन शक के अनुसार श्री माताजी का जन्म–दिवस चैत्र मास के प्रथम दिन हुआ। महाराष्ट्र में चैत्र माह का पहला दिन गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है, यह दिन शालिवाहन राजवंश के पहिले राजा के राज्याभिषेक को चिन्हित करता है।
श्रीमाताजीनेस्पष्टकियाकिश्रीरामकेजीवनकीसबसेमहत्वपूर्णचीजथी– ‘पुरुषार्थ‘- इच्छा शक्ति, जिन्दगी में सभी कठिनाइयों से ऊपर उठना और अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते रहना। हालांकि, एक योगी घरेलू समस्याओं के दलदल में फंसा रह सकता है, तो भी पुरुषार्थ के साथ उसे इन सब समस्याओं से ऊंचा उठना है ।
17 अप्रैल को श्री माताजी ईस्टर–पूजा हेतु इस्तांबुल (तुर्किस्तान) रवाना हुईं। माँ के बच्चों ने भाव–विभोर हो उनकी स्वागत–स्तुति–गान बादलों की गड़गड़ाहट की तरह से की। तुर्किस्तान के प्रेस ने उनके आगमन कार्यक्रम का प्रसारण मुख्य टेलीविजन चैनल पर प्रसारित किया। आगामी संध्या को संगीत कार्यक्रम पर सूफियों ने अपनी भक्ति एक नृत्य की प्रस्तुति के रूप में की। श्री माताजी ने उनकी नृत्य–कला की प्रशंसा की और बताया कि नृत्य के क्रियान्वयन में गति कैसे जरूरी थी, “उस प्रकार की गति नहीं, जब फ्लाइट पकड़ने के समय आती है, किन्तु लय–बद्धता की गति जरूरी थी।”
लीडर्स (अगुआ गण) उस लय–बद्धता को खोते हुए दिखाई दिए, जो उनके बच्चों के प्रति बहुत सख्ती (कठोरता) से पेश आते थे।
बजायसहजी–बच्चों के पुनर्जन्म पर कार्य करने के, उन्होनें उस रास्ते का अनुसरण किया, जहाँ मां का नाम उपयोग कर उन्हें दण्डित किया जाय। 19 अप्रैल को ईस्टर पूजा को श्री माताजी ने स्मरण कराया कि यदि क्राइस्ट का पुनर्जन्म हो सका, तो, मनुष्यों का भी पुनर्जन्म हो सकता था। “किन्तु यह महानता प्रभुत्व में रखने या दिखावे में नहीं होनी चाहिए, यह महानता अन्दर से आनी चाहिए। आपके अंतस में स्थित क्राइस्ट (ईसा) का पुनः उत्थान होना चाहिए।“
प्राइमटेलीविजनचैनलसेआयारिपोर्टरभीअपनेपुनर्जीवनकोप्राप्तकरनेमेंपीछेनहींरहाऔरटी.वी. साक्षात्कार के दौरान श्री माताजी ने टी.वी. के स्क्रीन (पर्दे) पर लाखों लोगों को आत्म–साक्षात्कार प्रदान किया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया श्री माताजी के अति सक्षम यंत्र (उपकरण) बने। जब उन्होंने समाचार पत्रों को पढ़ा, तो भी उसका ध्यान (मां का ध्यान) जहाँ भी गया, वहां उसकी ज़रूरत थी और दुनिया की समस्याओं के लिए अपने–आप ही कार्यान्वित हुआ।
टेलीविजनकेमाध्यमसेहुएआत्म–साक्षात्कार कार्यक्रम से साधकों की महा–लहर (ज्वार) सेग्लिक्ली यासाम डेरनेगी हॉल (Saglikli Yasam Dernegi hall) में उमड़ पड़ी। यह हॉल क्षमता से ज़्यादा भर गया और एक हजार से ज़्यादा साधकों ने हॉल के बाहर उत्सुकता–पूर्वक अपने आत्म–साक्षात्कार हेतु प्रतीक्षा की। श्री माताजी की कृपा से उन्हें हॉल के गलियारे में बैठने की अनुमति मिल गई। श्री माताजी ने उनकी आत्माओं को ‘सलाम‘ के उच्चारण के साथ नमन किया और उनकी कुण्डलिनियाँ तुरंत उठ गईं। जहां दुभाषिया गलती करता, श्री माताजी ने उसे दुरुस्त किया जैसे कि वे तुर्की भाषा जानती थीं। उनकी आत्माओं ने मां के प्यार की भाषा में शरण ली। तुर्की के ट्यूलिप्स के साथ कैसे भी यह हो सकता था। वे बिना खिले कैसे रह सकते थे!
ट्यूलिप्सकाएकसुंदरबगीचाश्रीमाताजीकेचरणकमलोंपरन्यौछावरहुआऔरश्रीमाताजीनेउनकीमधुरसुगंधकाआनन्दलिया।इसउद्यानमेंसंभावितसभीरंगकेट्यूलिपथे।हरबारजबमाँनेनयारंगदेखा, वे विस्मय से चिल्ला उठीं, “कितना सुन्दर रंग है।“
कबेलारवानाहोनेसेपूर्वउन्होंनेइस्तांबुल (टर्की) में ऑर्थोडॉक्स चर्च के पादरी को आशीर्वाद दिया।
कबेलामें, कैसल (castle) के सामने वाले हिस्से का प्लास्टर गिर गया, पत्थर की चुनावट का मूल स्वरूप दिख रहा था। इटालियन बच्चे उसके ग्रामीण (सादे) स्वरूप के कायल थे। श्री माताजी ने संदेश भेजा कि लक्ष्मी सिद्धांत का अर्थ मौलिकता को सहेजना है और उस छज्जे को सफेद पटीना से पुन: नवीनीकृत किया जाए, क्योंकि उनकी कबेला आगमन की संभावना 25th अप्रैल को थी, इटालियन योगी भयातुर उत्तेजना से मार्नोलिनो प्लॉस्टर को पूरा करने के लिए भागे। किन्तु तब श्री माताजी ने संदेश भेजा कि वे काम की प्रगति से खुश थीं और बच्चों की लयबद्धता को बहाल कर दिया!
जैसाप्रायःहोताहै, बारिश ने श्री माताजी का कबेला आगमन में स्वागत किया, बारिश ने कैसल के अग्रभाग की मरम्मत के काम में बाधा डाली। श्री माताजी मुस्कराईं, “चिन्ता न करो, मैं बारिश रोक दूंगी।”
जैसेहीश्रीमाताजीआकाशकीओरमुड़ीं (देखा) काले बादल छंटना शुरू हो गए और कई दिनों के बाद पहली बार सहस्रार–पूजा पर चमकती हुई धूप दिखलाई दी।
पहलेकेदोसंगीतकार्यक्रमोंकेदौरानउन्होंनेबच्चोंकीताल/लय–बद्धता को बहाल किया, पंडित भजन सपोरी, सुखविन्दर सिंह नामधारी और कई दिग्गज चमचमाते संगीत के सितारों ने सामूहिक लय–बद्धता को ऊँचाइयाँ प्रदान कीं।
अंतमेंएकलय–बद्धता बची रही– श्री माताजी के प्यार की लय–बद्धता। परम चैतन्य पीछे नहीं थे और 5 मई श्री माताजी दिवस (मातृ दिवस) का संयोग सहस्रार दिवस से हो गया!
पूजाप्रवचनमेंश्रीमाताजीनेबतायाकिकैसेछोटीउम्र में पिछले अवतरणों ने मानव की समस्याओं पर कार्य करने के प्रयत्न को त्याग दिया था। “किंतु माँ की स्थिति सबसे भिन्न है, वो फिर भी अपने बच्चों के लिए प्रयत्नशीन और संघर्षशील बनी रहती हैं और यह प्यार व क्षमाशीलता मां के अन्दर स्वाभाविक बनी होती है……… किन्तु सहज–योग बहुत बड़ा परिवार है और उसके लिए आपको वास्तव में माँ के सिद्धांत के द्वारा कार्यान्वित होते रहना था।“
तब, श्री माताजी ने जाहिर किया, कैसे आत्मा के प्रकाश से कलियुग की समस्याओं के पार जाया जा सकता है, “हमीं लोग हैं, जो सत्य–युग को सहारा देने, देखभाल करने वाले हैं और इसीलिये सहस्रार का खुलना बहुत, बहुत महत्वपूर्ण है।”
आत्माकेप्रकाशनेभौतिक–स्तर पर भी कार्य किया था और एक पुरातन पाषाण से बना कैसल (किला) एक शानदार ऐश्वर्य–शाली महल में देवी माँ के लिए परिवर्तित हुआ था!
1998
अध्याय – 58
8 जून के मॉस्को कार्यक्रम में रूसी–साधकों ने श्री माताजी को उनके पोस्टर्स में आसानी से पहचान लिया। वे आत्म–साक्षात्कार पाने के लिए इतने लालायित (उत्सुक) थे कि निर्धारित समय के कई घंटे पूर्व टिकट खरीदने की लाइन में खड़े रहे। यह मॉस्को शहर में हुई अब तक की सबसे बड़ी जन–सभा थी। श्री माताजी उनकी विनम्रता से बहुत प्रसन्न थीं, “उन्होंने कभी आँखें उठाकर भी ऊपर नहीं देखा।“
एकप्रसिद्धरूसीभौतिक–शास्त्री जिन्हें आत्म–साक्षात्कार मिला था, अपने सौभाग्य पर विश्वास नहीं कर सके, “माँ, मैं कल्पना नहीं कर सकता हूं कि मैं इस विश्व के सृजन–कार के सामने बैठा हुआ हूँ और तब भी मैं बहुत सामान्य हूँ। यह एक बहुत बड़ी बात है कि मैं आपके समक्ष बैठा हुआ हूँ और आप यहाँ विराजित हैं।“
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “यह अच्छा है कि आप मेरी उपस्थिति का अहसास नहीं करते हो, यह इतना प्रभावकारी है।”
उसनेकहा, “माँ, मैं ऐसे प्यार व करुणा का एहसास करता हूं।“
श्रीमाताजीनेउसेअपनाचमत्कारिकफोटोबताया, जिसमें उनके सहस्रार से छोटे–छोटे ह्रदय के आकार की तरह चैतन्य–लहरियां बाहर आ रहीं थीं।
वहशब्द–रहित (स्तब्ध) खड़ा रहा, “यह कैसे संभव है कि इतने सारे ह्रदय यहाँ बने हुए हैं।“
श्रीमाताजीनेउसेसमझाया “आप देखिए, जब यह फोटो लिया जा रहा था, सहज–योगी बच्चे गा रहे थे, ‘सीटिंग इन द हार्ट्स ऑफ द यूनीवर्स, वी नो योर लव इज़ फ्लोइंग थ्रू अस, श्री माताजी वी लव यू’ यानि ब्रह्मांड के ह्रदय–कमलों में विराजमान, हम जानते हैं आपका प्यार हमारे अंदर से प्रवाहित हो रहा है, श्री माताजी हम आपको बहुत–बहुत प्यार करते हैं।” यही वजह है कि इस फ़ोटोग्राफ में इतने सारे ह्रदय कमल खिलते दिखाई दे रहे हैं।”
उसनेपूछा, “फिर भी, क्या यह शक्ति सुनती है?”
श्रीमाताजीनेउत्तरदिया, “नहीं, यह मैं ही हूँ। मैं सुन सकती हूँ! मैं गीत सुन रही थी और तब इस शक्ति ने सब कुछ सुव्यवस्थित कर दिया।
महान्पूज्यभावसेउसनेश्रीमाताजीकाहाथलिया और उसे चूम लिया। “आप ही वास्तव में, सभी ब्रह्माण्डीय शक्तियों का स्रोत हैं।“
वेश्रीमाताजीकेचैतन्यपरएकपुस्तकप्रकाशितकरनाचाहतेथे।श्रीमाताजीनेउन्हेंकबेलाश्रीआदिशक्तिपूजाकेलिएआमंत्रितकिया।
(पूजा) हैंगर को अल्बेरा स्थानान्तरित करने की आधिकारिक–आज्ञा काफी समय से प्रतीक्षित थी। सहजी बच्चों का यह दृढ़–संकल्प था, हैंगर का उद्घाटन श्री आदिशक्ति पूजा पर करने का। उन्होंने श्री माताजी से प्रार्थना की और उन्होंने हैंगर निर्माण शुरू करने का आशीर्वाद दिया, और कहा कि अनुमति मिल जायेगी।
पूजाकोएकसप्ताहसेभीकमसमयबचाथाऔरकोईभीठेकेदारइसकार्यकोहाथमेंलेनेकेलिएतैयारनहींथा।किन्तुजैसेहीउन्होंनेअपनीप्यारीमाँकोप्रार्थनाकीश्रीकल्किकीशक्तिउनकीरक्षाहेतुआई।सामान्यसेपरे, ऑस्ट्रेलियन सामूहिकता ने कार्य को पूर्ण करने हेतु स्वेच्छा से स्वयं को समर्पित किया। उन्हें विश्वास था, “श्री माताजी की आशीषों से कुछ भी कार्य असंभव नहीं है।” उनके विश्वास ने वैश्विक सहज–परिवार को श्री कल्कि के सामूहिक–अस्तित्व में ढाल लिया था।
गुरुवारसुबहतकबमुश्किलकुछभीनहींदिखाईदिया।शनिवारसुबहसंदेहास्पद मज़ाक ने उम्मीदें छोड़ दीं! किन्तु शनिवार दोपहर बाद हैंगर की छत प्रकट होना शुरु हुई और रात्रि 11 बजे हैंगर खड़ा करने की आख़िरी कील ठोंकी जा चुकी थी।
एकबारपुनःश्रीमाताजीनेसंकेतदियाकिजोकाममानवीयक्षमतासेसंभवनहींथा, वह उनकी श्री कल्कि की शक्ति से प्राप्त किया जा सका था, केवल जरुरत थी, उनके सभी बच्चे उनसे सामूहिक रूप से जुड़ जाएँ।
यद्यपि, यह एक संवेदनशील मामला प्रोटोकॉल का अब भी बाकी था, श्री आदिशक्ति को संगीत कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करने का था। चूँकि काफी देर हो चुकी थी, बच्चे माँ को परेशान नहीं करना चाहते थे। इसी बीच एक फोन–कॉल पर कैसल से सूचना मिली कि श्री माताजी हैंगर के निर्माण को पूर्ण करने हेतु बन्धन दे रहीं थीं | चैतन्य–लहरियाँ ठंडी आ रहीं थीं। माँ के बच्चों ने साहस बटोरा और उन्हें आमंत्रित करने कैसल पहुँचे। देर रात के लिए क्षमा मांगते हुए, बच्चों ने संगीत कार्यक्रम को विलंबित करने हेतु सलाह दी। अपनी आँखों में एक चमक के साथ श्री माताजी मुस्कराईं, “विलंब कैसे हो सकता है, जबकि श्री कृष्ण जी का जन्म अर्ध–रात्रि को हुआ था।”
श्रीमाताजीरात्रिसाढ़ेग्यारहबजेहैगरमेंपधारीं, हँसते हुए बोलीं, “मैं अभी भी आधे घंटे समय से पूर्व हूँ।”
श्रीमाताजीनेबच्चोंकेप्रयासकोसराहा, “मैं अपने बच्चों के लिए पूरी रात रूक सकती थी, जिन्होंने हैंगर के कार्य को पूर्ण करने में इतना कठिन परिश्रम किया। निस्संदेह परम–चैतन्य सब कार्य करते हैं, किन्तु वे भी प्रेम की शक्ति का अनुसरण करते हैं।“
माँकेप्यारनेसबकीआंखेंनमकरदींऔरबच्चोंनेश्रीकल्किकोधन्यवाददिया, क्योंकि उन्होंने ही बच्चों को श्री माताजी के हृदय के समीप ला दिया था। अपने बच्चों के प्यार भरे भक्तिपूर्ण उपहारों से श्री माताजी प्यार में भीग गईं, प्यारी ममतामयी माँ ने स्नेहासिक्त हो, बच्चों की संगीतमयी प्रस्तुतियाँ प्रात: साढ़े चार बजे तक ध्यानपूर्वक देखीं, “एक दूसरे को प्रसन्न करना– यह एक दैवीय गुण है।“
21 जून को पूजा में श्री माताजी ने अपनी पिछली रूस–यात्रा का वर्णन किया, जहाँ एक प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री ने उन्हें ब्रह्मांडीय शक्ति का स्रोत स्वीकार किया था, “और वही आदिशक्ति हैं। वे ही हैं, जो हर वस्तु का सृजन करती हैं, किन्तु जहाँ मनुष्य का प्रश्न है, उन्हें अपनी स्वतंत्रता मिली हुई है, मानव ही वह प्रजाति है, जो विचारों और उनमें स्थित अहंकार की माया में घिरा हुआ है। इस अहंकार के साथ मानव पर माया ने कार्य किया, ऐसा मुझे कहना चाहिये और मनुष्य उस सिद्धांत के बारे में भूल गए, जिसने इस ब्रह्माण्ड की रचना की। मनुष्य ने इस विश्व पर अपना हक समझा।”
श्रीमाताजीनेदयार्द्रहोबतायाकिकिसप्रकारइसभूलेहुएमूलसिद्धान्तसेजुड़ाजाय, “अब आदिशक्ति स्वयं पधारीं हैं। किन्तु मैं देखने में बहुत साधारण हूँ। अपने व्यवहार से भी मैं बहुत विनम्र हूँ! लोग मुझ पर अपना अधिकार जताते है…… मैं तुम्हें सजा देना नहीं चाहती हूँ, मैं कुछ भी नहीं करना चाहती, किंतु आप खुद को सजा देते हो, आप स्वयं जानकर बेकार हो जाते हो, यदि आप स्वयं की देखभाल नहीं करते और आगे नहीं बढ़ते।”
अपनीबौद्धिक–दृष्टि से उनके बच्चे सर्वोच्च सिद्धान्त को अपनी माँ के पल्लू के आच्छादन में नहीं समझ पाए। उन्होंने अपने कान पकड़कर खींचे और माँ की क्षमा याचना की, अपने उस बौद्धिक–ज्ञान के लिए, जिसने उनकी मान्यता को अवरोधित कर लिया था। पूजा के दौरान श्री माताजी ने अपनी करुणा की शक्ति से उनके बौद्धिक ज्ञान को उनके चित्त से हटा दिया था और उनकी कुण्डलिनियों को अपने सर्वोच्च अस्तित्व का दास बना दिया था– मूलभूत आवश्यक सिद्धान्त से पर्दा उठाते हुए, जिसने ब्रह्माण्ड का सृजन किया।
1998
अध्याय – 59
5 जुलाई को लंदन के रॉयल अलबर्ट हॉल में आयोजित एक कार्यक्रम में श्री माताजी ने दुनिया में इंग्लैंड के कर्तव्य के बारे में रहस्योद्धाटन करते हुए बताया कि इंग्लैंड वासियों को अपनी जवाबदारियों को धारण करना है। साधकों ने श्री माताजी को ध्यान–मग्न हो सुना और जैसे ही वे बोलीं, साधकों की कुण्डलिनियाँ सहस्रार की ओर उठीं। साधकों का बहाव (आना–जाना) दूसरे दिन हॉलैंड पार्क स्कूल कार्यक्रम में जारी रहा। उन्होंने इंग्लैंड की धरती पर 25 वर्ष पूर्व बीज बोए थे और प्रसन्न थीं कि ये बीज अंकुरित हो चुके थे।
श्रीमाताजीश्रीगुरुपूजाकेलिएइटलीकीधरतीपरलौटीं।सर्वगुरुओंकीजननीकास्वागतकरनेहेतुविस्तृतप्रबन्धकिएगएथे।श्रीआदिशक्तिमाँनेकृपाकरकेसभीबच्चोंकेद्वाराभक्तिपूर्वकदीगईभेंट (उपहार) पौ फटने के पूर्व तक स्वीकार की।
थोड़ेसेआरामकेबादश्रीमाताजी 12 जुलाई की शाम को पूजा के लिए वापस लौटीं। पूजा प्रवचन में गुरु के गुणों को प्रकट किया। गुरु का एक महत्वपूर्ण पहलू (दृष्टिकोण) श्री माताजी द्वारा प्रदर्शित किया गया, उन्होंने कभी अपनी अस्वीकृति नहीं जाहिर की। यद्यपि कुछ योगियों ने जो किया, वह उन्हें पसंद नहीं था, “ऐसे लोगों को बार–बार क्षमा किया जाना है और देखें कि वे बदले हैं, क्योंकि मेरा विश्वास है कि सभी मानव सुगन्धित सुन्दर फूल बन सकते हैं।”
एकऔरपहलूउनकेजीवनमेंप्रदर्शितहुआकिउन्होंनेकभीअपनेबच्चोंकीकमियोंकोनहींबताया, किन्तु उसके बजाय उनकी कुण्डलिनियों को उन पर काबू पाने के लिए शक्ति प्रदान की। उनके अपने बच्चों में सन्निहित अडिग विश्वास से बच्चों की आँखों में आँसू झलक पड़े। हरेक अश्रु–कण श्री माताजी के चरण कमलों में प्यार का मोती बन गया।
श्रीआदिमाँप्रसन्नहोगईंऔरबच्चोंपरसहस्त्रोंआशीषोंकीवर्षाकी।
26 जुलाई को सुप्रसिद्ध इटालियन पत्रकार रोमानो बट्टाग्लिया ने वर्सिलिया में श्री माताजी का एक साक्षात्कार लिया। जब उन्हें पानी का ग्लास पेश किया जा रहा था, श्री माताजी ने उस पानी को चैतन्यित कर दिया। वे आश्चर्य में थे कि पानी का स्वाद ग्रेप–जूस (अंगूर के रस) जैसा लगा। श्री माताजी मुस्कराईं, “आप जानते हैं इसी तरह से ईसा ने एक विवाह समारोह में पानी को ग्रेप–जूस में बदल दिया था। यह शराब नहीं थी, क्योंकि शराब बनाने के लिए अंगूर को पहिले खमीर उठाने (उत्तेजित करने) की जरूरत होती है।“
बादमें, उस शाम उन्होंने मेरिना–दे–पेत्रासंता में आत्म–साक्षात्कार दिया। उन्होंने उनके मुक्त तथा प्यार–भरे ह्रदयों की प्रशंसा की और उन्हें 16 अगस्त को कबेला में श्री कृष्ण पूजा हेतु आमंत्रित किया।
15 अगस्त को भारत का स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। अपनी अश्रुपूरित आँखों से उन्होंने उस ऐतिहासिकता क्षण का स्मरण किया, जब उन्होंने भारत के तिरंगे झंडे को आरोहित होते हुए और ब्रिटिश झंडे (union jack) को अवरोहित होते हुए देखा था।
श्रीमाताजीकीआँखोंमेंआएआँसुओंनेअमेरिकीबच्चोंकोसमानताकेसिद्धान्तकासमर्थनकरनेकीप्रेरणाप्रदानकी, जिसके लिए उनके मूल–पूर्वजों ने संघर्ष किया था। श्री माताजी ने उनसे प्रजाति या नस्ल में अंतर या भेदभाव के विरोध में संघर्ष करने की प्रेरणा दी। यह स्मरण (याद) कराते हुए कि, “श्री कृष्ण जी स्वयं सांवले रंग के थे।”
दूसरेदिनआनंदमुरदेश्वरकीबांसुरीनेरंग, जाति, प्रजाति और धर्म के भेद–भाव को समाप्त कर दिया था और सामूहिकता को श्री कृष्ण की रास–लीला में ले जाकर लीन कर दिया था।
पूजाकेदौरानश्रीमाताजीकीरास–लीला पूजा परम्परा क्रम को बदलने के साथ आरंभ हुई। उन्होंने अमेरिकी सहजी बच्चों को पूजा से पहले श्री कृष्ण जी के एक सौ आठ (108) नाम याद रखने वाले कार्ड्स बंटवाने के लिए कहा, जो कि प्रायः बाद में दिए जाते थे। श्री माताजी ने श्री कृष्ण जी के नाम पढ़े और आवश्यक सुधार किए, ‘मोर–मुकुट धारी’ उनके सिर पर मोर–पंख का मुकुट सुशोभित होता है।
श्रीमाताजीनेबच्चोंकोस्थित–प्रज्ञ‘ बनने के लिए प्रेरित किया। स्थित–प्रज्ञ का अर्थ है साक्षी भाव में स्थित होना….. कुछ समय बाद आप आश्चर्य करेंगे कि आपकी साक्षी अवस्था बढ़ जाएगी और जब सामूहिकता में आप इस दशा में/अवस्था में होंगे, आप बिना कुछ किए, आश्चर्य–जनक कार्य/कमाल कर सकते हो, बिना कुछ कहे, बिना कुछ किए।
सहजीबच्चोंनेसम्पूर्णविश्वको, स्थित–प्रज्ञ बनने और धरती को बैकुंठ में परिवर्तित होने के लिए प्रार्थना की। पश्चात अमेरिकी योगियों ने श्री माताजी को राखी भेंट की, श्री माताजी ने अपनी तर्जनी अंगुली में सोने का चक्र धारण किया हुआ था, बच्चों को उनकी सुरक्षा का विश्वास दिलाते हुए। उसके बाद, उन्होंने प्यार से सहजी बच्चों की आत्माओं को शांति प्रदान करने हेतु बांसुरी धारण की। उन्होंने ताज़े मक्खन (नवनीत) से परिपूर्ण पात्र को आशीर्वादित किया और उसे प्रसाद स्वरूप वितरण करने हेतु कहा।
ज्योंहिश्रीमाताजीनेउपहार–वितरण शुरू किया, बच्चों ने अपनी स्थित–प्रज्ञ स्थिति खो दी। वे बातचीत और शोर करने लगे। पुनः श्री माताजी को उन्हें याद दिलाना पड़ा कि वे वहाँ अभी भी उपस्थित थीं, “मैंने आपको सैकड़ों बार कहा है कि पूजा के बाद आपको बिलकुल निर्विचार होना है। यदि ऐसा होता है तो आपको पूजा–आशीर्वाद प्राप्त हो गया है।“
बच्चोंनेअपनेकानखींचेऔरध्यानमेंचलेगए।इससंशोधन (भूल सुधार) ने एक मंत्र की तरह कार्य किया और जैसे ही वे स्थित–प्रज्ञ अवस्था को प्राप्त हुए, वे श्री कृष्ण जी की लीला से प्रकट हुई माया को साफ़–साफ़ देख सके। निस्संदेह उनकी लीला ने बच्चों के चक्रों को कुंडलिनी–उत्थान हेतु तनाव–मुक्त कर दिया था, किंतु इसका मूल उद्देश्य उनके विराट–स्वरूप की गुत्थी सुलझाना था।
कुछदिनोंकेलिएश्रीमाताजीकाध्यान (चित्त) अमेरिका पर लगा रहा। जैसे ही उन्होंने अमेरिका की समस्याओं पर चिन्तन आरम्भ किया, वे सहज ही हल हो गईं। एक बच्चा न्यू–जर्सी आश्रम के तरण–ताल (स्वीमिंग पूल) में डूब गया। तुरंत ही श्री माताजी ने न्यू–जर्सी आश्रम को सहज ही फोन किया। जैसे ही उनका ध्यान डूबे बच्चे पर गया, वह चमत्कारिक रूप से मृत्यु की दाढ़ से बच निकला।
जबउनकाध्यानअमेरिकापरगया, उस चित्त ने वहाँ उनके सभी बच्चों की सुरक्षा की। श्री माताजी ने यह रहस्य उद्घाटित किया कि जब कभी उनके बच्चों को कुछ हुआ, उनका चित्त तुरंत की वहाँ पहुँचा, “मुझे टेलीफोन के उपयोग की आवश्यकता नहीं होती, मुझे तुरंत पता लग जाता है।“
तबवेअचानकचुपहोगईं, जैसे अमेरिका की समस्याओं के मूल में चिन्तन–शील हों, “किन्तु यदि कूटनीति (चातुर्य) की भूमि, (राजनयिक) कूटनीतिक होना समाप्त कर दे, यदि माधुर्य की भूमि कटुता में परिवर्तित हो जाय, शायद भगवान श्रीकृष्ण अपना संरक्षण वापस ले लें।“
उन्होंनेअब्राहमलिंकनकीसराहनाकी, “वे एक आत्म–साक्षात्कारी थे और सामूहिकता के लिए डटे रहे। रूजवेल्ट एक और आत्म–साक्षात्कारी थे, जिन्होंने कहा था, “गरीबी कहीं भी हो, वह सम्पन्नता के लिए हर जगह एक चेतावनी (धमकी) है।“
सप्ताहांतमें, उन्होंने डग्लियो की यात्रा की और उसके जीर्णोद्धार की योजनाएं बनाईं, “यह एक सुविचार होगा कि कबेला के आस–पास एक प्री–स्कूल (नर्सरी) हो, जहाँ मैं उनकी समस्याओं पर ध्यान दे सकूँ।”
आरहीश्रीगणेश–पूजा के साथ श्री माताजी का ध्यान सहज ही अपने नव–जात बच्चों पर गया और उन्होंने उनके गणेश–तत्व के पालन–पोषण हेतु निर्देश दिए। उन्होंने हरेक बच्चे को उसके नाम से पुकारा और चांदी के सिक्कों के पर्स से आशीर्वादित किया। उनके अच्छे स्वास्थ्य पर वे प्रसन्न थीं और कमजोर बच्चों के लिए कैल्शियम सेवन करने की सिफारिश की। जैसे ही उन्होंने बच्चों को गोद में लिया और दुलारा, उनकी अपनी थकान गायब हो गई।
शामकोश्रीगणेशपरबनीफिल्मकोमाँनेबहुतसराहा, जिसमें योगियों के अंतरजात श्री गणेश की उपस्थिति को दर्शाया गया था, जो योगियों का मार्ग दर्शन, क्या करना है और क्या नहीं करना है, करती है। बाद में संध्या को, वैवाहिक–उद्घोषणा ने पंच–महाभूतों को उत्साहित कर दिया और एक तूफानी हवा बहने लगी। यह तूफ़ान एक सशक्त चक्रवात में विकसित हो गया और योगियों के रहवासी टैन्ट्स को धराशयी कर दिया और उन्हें दूर उड़ा दिया। केवल, श्री माताजी से प्रार्थना के बाद, यह तूफान कमजोर हुआ। सितम्बर 5 को, सूर्य–देव पूजा में भाग लेने के लिए चमक उठे।
श्रीमाताजीनेबतायाकिविश्व–शांति विचलित हुई, क्योंकि श्री गणेश की पूजा नहीं की गई, सरकारें चलाने वाले (राजनेता) प्रभारी स्वयं के प्रभारी नहीं थे। “आप को शीतल–लहरियां श्री गणेश की वजह से मिलती हैं, वे आपको ठंडा रखते हैं, आपको संतुष्ट रखते हैं और पूर्ण शान्त व्यक्ति बनाते हैं। शांति के साथ आप एक–निष्ठ होते हैं। यह एकाकारिता, सामूहिकता, एक निष्ठता स्थापित हो जाती है।“
“आप लोगों के साथ एकाकार होने लगते हैं, जो आपके साथ एकाकार हैं और वे भी इसी चीज में विश्वास करते हैं। उनके विचार आपके जैसे होते हैं, उनकी सोच भी आपकी जैसी होती है, उनकी खुशी भी वही होती है और वे एक दूसरे का बहुत आनन्द उठाते हैं।“
श्रीमाताजीनेयोगियोंमेंप्रबललालसाजागृतकीकिसहजीबच्चोंनेअपनेदेशोंमेंजोभीबुराइयांदेखीहैं, उन्हें सुधारने की कोशिश करना चाहिये।
आनेवालीशामकोशहनाई–वादन के आनन्दमय सुरों और रागों का इस शुभ अवसर पर श्रोताओं ने आनन्द लिया। देवी मां के कवच में सुसज्जित दुल्हिनों ने दूल्हों को हार पहनाए। वैवाहिक समारोह की गंभीरता के बाद श्री कृष्णजी की गाथाएं लौट आईं। हंसते हुए श्री माताजी ने दुल्हिनों को अपने पतियों को खिलाने के लिए कहा। “दुल्हिनों को बड़े विनोदमय तरीके से अपने पतियों को खूब खिलाना चाहिए।”
जैसेहीदुल्हिनोंऔरदूल्होंनेअपने–अपने जीवन–साथी के नाम मनोरंजक दोहे (तुक्तक) तैयार किए, श्री माताजी रूक–रूक कर हँस रही थीं। उनकी हंसी से स्वर्ग का राज्य इस धरा पर आ गया था!
1998
अध्याय – 60
श्रीमाताजीकेआशीर्वादसेमिलानकीसामुहिकतामेंदिन–दूनी, रात–चौगुनी वृद्धि हुई। उनका दृढ़ संकल्प था, मिलान में नवरात्रि पूजा से पहले आश्रम हेतु ज़मीन ढूंढने का। एक महीने की खोज के बाद उन्हें बहुत सस्ती एक केन्द्रीय जगह मिली। सहजी बच्चे बहुत उत्साहित थे और जमीन का फोटोग्राफ श्री माताजी को दिखाया। उन्होंने चैतन्य लहरियां महसूस कीं और बड़ी तकलीफ में अपने हाथ हिलाते हुए कहा, “क्या आप लोगों ने उस जगह की चैतन्य लहरियां पता की थीं?”
“नहीं।”
जबसहजयोगीउसस्थानपरवापसगए– चैतन्य लहरियों की जाँच करने के लिए, उनके हाथ जलने लगे। उन्होंने पता किया कि वह जमीन पूर्व में एक गुरु द्वारा केन्द्र के रूप में उपयोग की गई थी!
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “आपको अपना आत्म–संयम नहीं खोना चाहिए, क्योंकि यह सस्ती या सुलभ जगह है, किन्तु उसकी चैतन्य लहरियां देखनी चाहिए। जब मैं कबेला में कैसल Castle खरीदना चाहती थी, हर सहज–योगी ने इसका विरोध किया, “माँ इतनी दूर कौन आएगा? यह इतनी जीर्णावस्था में है, आदि–आदि। किन्तु मैने चैतन्य लहरियां देखीं और उसे खरीद लिया। यही बात रोम आश्रम की है– केवल एक कटाक्ष मात्र में मैंने उसे खरीद लिया।”
श्रीमाताजीकेवचनोंनेउनकीतार्किकताऔरचैतन्यकेबीचसंघर्षकीस्थितिमें, स्पष्टतया देखने में मदद की। अपनी बात को उचित ठहराने में तार्किकता (बौद्धिकता) ने उन्हें विश्वास दिलाया कि चैतन्य–लहरियाँ अच्छी थीं, किंतु जब वास्तविकता में उन्होंने चैतन्य–लहरियां परखीं, तो वे उतनी अच्छी नहीं थीं। श्री माता ने दृढ़ता–पूर्वक कहा कि यह एक सामान्य मानवीय त्रुटि थी, गलत चीज को सही मान लेने की।
नवरात्रिसेपहले 9 रात्रियों के लिए दूसरे आश्रम की खोज प्रारम्भ करने से पूर्व योगियों ने चैतन्य लहरियों पर अपनी बौद्धिकता की आज्ञाकारिता के बंधन से मुक्त कराने का कठिन कार्य किया। प्रकृति ने सफाई की प्रक्रिया में सहायता की। रोजाना बारिश हुई और हैंगर को संगीत–कार्यक्रम हेतु सुखाना एक समस्या हो गई।
बारिशनेकर्तव्य–परायणता से हिस्सा लिया, हर बार सामूहिकता ने संगीत प्रस्तुति को सराहा, बारिश ने बराबर सहभागिता की। युगल–गान की प्रस्तुति एक स्वर–मेल में थी। यह कहना मुश्किल था, या तो सहज–योगी वर्षा के स्वर–मेल में थे, या वर्षा उनके स्वर–मेल में थी। श्री माताजी ने स्पष्ट किया कि प्रकृति उनके चैतन्य के प्रति, प्रतिक्रिया (उत्तर) देती थी और पंच महाभूत उनके नियमाचरण के प्रति बहुत सम्माननीय थे। उनके नियमाचरण को ध्यान में रखते हुए वर्षा आज्ञाकारिता में कुछ क्षण पूर्व ही रुकी, जैसे ही श्री माताजी ने विदा होने के लिए मंच से पदार्पण किया। किन्तु, श्री माताजी के विदा होने के तुरंत बाद वर्षा आनन्द–मग्न ह्रदय से मूसलाधार बरसी और हैंगर को जल–मग्न कर दिया।
जलतत्वकेअलावादूसरेतत्वभीआज्ञापालनमेंपीछेनहींरहे।पूजाकेदिनवायुमण्डलीयतापमाननाटकीय तरीके से गिर गया और हीटर्स (उष्मक) लाने पड़े। किन्तु श्री माताजी के आने के तुरंत बाद तापमान नाटकीय तरीके से बढ़ गया और श्री माताजी ने हीटर्स बन्द कराने के लिए कहा।
किन्तुमानवीय बुद्धि/तार्किकता अभी आज्ञापालन में पीछे थी। पूजा प्रवचन में श्री माताजी ने स्पष्ट बताया कि किस तरह मानवीय आज्ञाकारिता को कैसे बंधन में डालना चाहिये, जैसे सूर्य और सूर्य–प्रकाश में कोई अंतर (विरोध) नहीं है, इसी तरह से प्रेम शुद्ध–ज्ञान की शक्ति है और चैतन्य–लहरियाँ ही प्रेम हैं।
“बुद्धिमत्ता परम चैतन्य की कार्य–प्रणाली को समझने में है। कैसे यह आपका मार्गदर्शन करती है, कैसे आपकी सहायता करती है, कैसे आपको संरक्षित रखती है, परम चैतन्य पर निर्भरता से आप कैसे बहुत मज़े में निरंतर रह सकते हो……यह परम की चैतन्य की शक्ति हरेक कार्य करती है और कैसे यह प्रबन्धन करती है, क्योंकि वास्तव में संयोग परम–चैतन्य द्वारा की संचालित होते हैं– परमात्मा ही परम–चैतन्य हैं।“
बच्चोंनेपरम–चैतन्य से प्रार्थना की, उनकी बुद्धि को पूजनीय श्री माताजी के चरण–कमलों की दासता (बंधन) से जोड़ दें। उनकी उपमा सूर्य और सूर्यप्रकाश, चाँद और चाँदनी में उत्तर निहित था। केवल आरती के बाद ही, उत्तर सही जगह मिल गया!
जैसेशीत–ऋतु पास आई श्री माताजी कैसल में ठहरे हुए योगियों को शीत से राहत देने हेतु चिन्तित थीं। वे मिलान गईं और हीटर्स (उष्मक) तथा कमरों के लिए कारपेट्स (दरियां) खरीदीं। उन्होंने अपना एक निजी कमरा उनके इनडोर गेम्स (Indoor games) के लिए खाली करा दिया। एक और कमरा उन्होंने किचन के वास्ते छोटे शिशुओं सहित माँओं की सुविधाओं के लिए खाली करा दिया।
दिवालीपूजापुर्तगालमेंहोनाप्रस्तावितथी।यद्यपि पुर्तगाल यात्रा के अग्रिम टिकट खरीदे जा चुके थे, किन्तु पूजा के लिए हॉल नहीं मिल पाया था। जैसे पूजा की तारीख पास आई, बच्चे आशंका से परेशान थे। श्री माताजी ने सामूहिक तनाव को आत्मसात किया और उन्हें दुबारा स्मरण कराया कि हरेक चीज़ को परमात्मा पर छोड़ दें।
किसीकारण–वश, परम–चैतन्य नहीं चाहते थे कि श्री माताजी वहां जाएँ और चीजें नहीं हल हो पाईं। जब आयोजक–गण हॉल नहीं खोज पाए, उन्होंने अपनी बुद्धि (तार्किकता) को माँ को समर्पित कर दिया। जैसे ही उनका अहंकार हल हुआ, इसने जाने वाले अहंकार–विरोध को (खंडित) हल कर दिया, जिसने सामूहिकता का बँटवारा कर दिया था।
परमचैतन्यकीलीलानेपुनःप्रदर्शितकियाकिश्रीमाताजीसेकिसीस्थानकोदेखनेकीइच्छाप्रकटकी, उनका चित्त वहां गया और सामूहिक मामले हल हो गए। यह जरूरी नहीं था कि उन्हें विरोध (संघर्ष) के बारे में सूचना दी जाय और न ही उनकी शारीरिक उपस्थिति ज़रूरी थी। समस्याओं को हल करने के लिए उनका चित्त ही पर्याप्त था। उनके बन्धन ने पुर्तगाल में एक रोगी को निरोग कर दिया। इसी तरह से, उनके प्यार का बंधन विश्व में उपस्थित कहीं भी हो, एक रोगी को स्वस्थ कर देगा।
श्रीमाताजीनेप्रदर्शितकिया, “आप देखते हैं मेरा चित हमेशा तुम्हारे आस–पास होता है, हमेशा तुम्हारे साथ बंटा होता है, मेरा यह चित्त वैश्विक है। इसलिये, यदि तुम्हें कुछ होता है, कुछ गड़बड़ी होती है कुछ चित्त का विचलन होता है, मेरा ध्यान (चित्त) वहां होता है।”
जैसेकिपुर्तगानमेंहॉलनहींमिलसका, श्री माताजी ने बताया कि सहज–योगियों को काबेला के आसपास एक गर्म–हैंगर के किए (जगह) खोजना चाहिये। इटालियन योगियों ने बार–बार खोज की, लेकिन नहीं ढूंढ पाए। केवल नवरात्रि–पूजा से मिली सीख के बाद उन्हें याद आया और अपनी तार्किक बुद्धि को श्री माताजी को समर्पित कर दिया, परम–चैतन्य ने हस्तक्षेप किया।
दूसरेदिनहीएकयोगीजोनोवीलिगर (Novi Ligure) से था, उसने एक हीटेड–इनडोर–हैंगर अपने ही पड़ोस में योगियों के बज़ट से भी कम लागत में ढूंढ निकाला। किन्तु उनकी मुख्य चिन्ता थी कि यह हैंगर कैसल से दूर स्थित था और श्री माताजी के लिए एक तनाव व थकान भरा होगा। श्री माताजी ने योगियों की चिन्ता ठंडे बस्ते में डाल दी, यह सूचना देते हुए कि हैंगर की चैतन्य लहरियां बहुत अच्छी थीं और श्री माताजी को वहां आने में खुशी होगी।
दिवालीपूजाकासमारोह 24 अक्टूबर को आरम्भ हुआ, एक फ्रांसीसी नाटक ‘जोन ऑफ आर्क‘ से। श्री माताजी प्रसन्न थीं कि जोन ऑफ आर्क की विशेषताएँ इतनी अच्छी तरह से दर्शाई गईं थीं, इस बात ने उन्हें भारत में स्वतंत्रता–संग्राम की याद दिलाई।
पूजाप्रवचनमेंश्रीमाताजीनेस्पष्टकियाकिश्रीलक्ष्मीजीकीपूजाकामतलबपैसोंकीपूजामेंनिहितनहींथा, पैसों की पूजा करना गलत था। “यही लक्ष्मी महालक्ष्मी बन जाती है, जब आप पैसों की कीमत समझते हैं और जब आप संपृक्त (Saturated )होते हैं और अन्दर से पैसों से तृप्त हो जाते हैं, आप मोह–मुक्त हो जाते हैं। तब श्री लक्ष्मी का नया–स्वरूप सामने आता है, वही महालक्ष्मी–तत्व है। वही शक्ति है जो आपको उत्तम अवस्था में ले जाती है, जो उच्चतर दशा में ले जाती है, वही आत्मा की जागृति है।”
1998
अध्याय – 61
14 नवम्बर को श्री माताजी ने एक अन्तर्राष्ट्रीय प्रेस कॉन्फ्रेंस को दिल्ली में संबोधित किया। उन्होंने 25 विभिन्न देशों से पधारे पत्रकारों को आशीर्वादित किया, जिनमें दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, इंडोनेशिया, मिस्र, जांबिया, तंजानिया, ओमान और सीरिया देश शामिल थे। उन्होंने कहा उनका (पत्रकारों का) बहुत महत्वपूर्ण कार्य विश्व में आध्यात्मिकता बढ़ाने, शांति व भाईचारा और परमात्मा से अंतर्मिलन (योग) कराने का है।
16 नवम्बर को बच्चों ने अपनी प्यारी माँ को निजामुद्दीन स्काउट–मैदान पर बधाइयां दीं। उन्होंने उनकी सामूहिक नाभि की पकड़ को शांत किया और उन्हें अपनी समस्याओं के बारे में चिंता न करने को कहा, “मैं यहाँ तुम्हें आत्म–साक्षात्कार और समझ प्रदान करने आई हूँ कि आपको जो भी मिला है, आपको इसे एक चुनौती (आह्वान) जैसे स्वीकारना है, एक चुनौती की तरह लेना है और आप आश्चर्यचकित होंगे, आपकी कैसे सहायता की जायेगी और कैसे आपको उसके परिणाम मिलेंगे।“
रामलीलामैदानमें 18 नवम्बर को आयोजित एक विशालकाय कार्यक्रम में श्री माताजी ने साधकों को अपने आध्यात्मिक विरासत के चिपके रहने के लिए प्रवृत्त किया। जन–समूह जितना बड़ा होता है, उतनी ही ज्यादा शक्तिशाली बहाव उनकी शक्ति का होता। यहाँ तक कि जैसे ही वे बोलीं, ठंडी हवा की लहरियों ने साधकों के सागर को आशीर्वादित किया। जैसे ही धर्मशाला स्कूल के बच्चों ने ‘वन्दे मातरम‘ की प्रस्तुति दी, वे खड़ी हो गईं। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कि भारत–माता स्वयं भय–संत्रस्त संतों की भूमि की रक्षा हेतु अपनी राज–मर्यादा की शान में खड़ी हुई हों। उन्होंने अपने आंसुओं को पोंछा और श्रोताओं के आनन्द के आंसुओं की धारा बह निकली।
महीनेकेअन्तमें, श्री माताजी गणपतिपुले के लिए निकलीं। क्रिसमस पूजा पर माँ के बच्चों ने अपनी प्यारी मां के स्वागत हेतु एक शानदार मेहराब को खड़ा किया। उन्होंने महत्वपूर्ण रूप से श्री कल्कि के रथ को जो उस मेहराब के ऊपर आकाश में बादलों के बीच दो शानदार राजसी सफ़ेद घोड़ों के द्वारा खींचा जा रहा था, इस अभिप्राय को दर्शाया गया था।
पूजाप्रवचनकेदौरान, श्री माताजी ने जाहिर किया कि क्राइस्ट (ईसा मसीह) उन लोगों द्वारा पूजित थे– जो बौद्धिक थे, “किन्तु तुम्हारे मस्तिष्क में भी ईसा बौद्धिक हैं। अब क्या करना है? जिन्होंने बौद्धिक धारणा को तोड़ा, आपने उसे बौद्धिकता में रच दिया, जैसे एक पत्थर की मूर्ति की तरह।”
माँकेबच्चोंनेउन्हेंउनकीमानसिक/बौद्धिक पकड़ से ऊपर उठाने के लिए उनकी कृपा हेतु प्रार्थना की। श्री माताजी ने उनकी आज्ञा पर 7 घंटो तक कार्य किया और धीरे–धीरे उन्हें अपने सहस्रार के आनन्द में खींच लिया। उन्होंने विनम्रता–पूर्वक श्री गणेश की पवित्र मिट्टी को चूमा और परम पावनी श्री माताजी के चरण–कमलों की पूजा हेतु उन्हें अनुमति प्रदान करने के लिए श्री ईसा मसीह को धन्यवाद दिया।
अगलीसंध्याकोधर्मशालास्कूलकेबच्चोंद्वाराभेंटकिएउपहारोंनेबचपन की अबोधिता की वापसी की। श्री माताजी यह देखकर प्रसन्न हुईं कि उनके नवजात बच्चे अनायास ही इतने सुंदर फूलों में विकसित हो गए थे। यद्यपि हर फूल का अपना जीवन्त (झंकृत कर देने वाला) रंग था, लेकिन इसकी (फूल की) गंध (भ्रम–रहित) श्री माताजी की थी!
सहज–संगीत अकादमी के परिपक्व–फलों ने सुगंध से लेकर स्वाद तक बाँटा। स्नेहमयी माँ को आश्चर्य हुआ, कैसे इन बच्चों ने मात्र तीन महीनों में इतनी महान् दक्षता (प्रावीण्य) प्राप्त कर लिया था।
अंतिमदिनश्रीमाताजीने 75 वैवाहिक–जोड़ों को आशीर्वादित किया। माँ ने उन्हें सहज–विवाह के गहन महत्व पर सलाह दी और उनके आगे महान सहज–कार्य, उनकी रचना को संभालने की सलाह दी।
नव–वर्ष की पूर्व संध्या (काल्वे पर), विदाई के दु:ख में मधुरता छा गई जैसे ही माँ ने बच्चों को बताया कि उन्हें उन पर कितना गर्व था। उनके प्यार की पवित्रता से उनके गुप्तचरों ने उनके प्यार व शांति के संदेश को सुदूर किनारों के पार पहुंचाया।
1999
अध्याय – 62
14 फरवरी को श्री माताजी ने दिल्ली को श्री शिव पूजा का आशीर्वाद प्रदान किया। उन्होंने अपने बच्चों को ध्यान में प्रवृत्त होने को कहा, “ध्यान इतना गहन होना चाहिये कि आपकी हर कोशिका आनन्द से भर जाए और उससे आनन्द बरसने लगे… आप स्वयं को ठीक करें, दूसरों को ठीक करने का प्रयास न करें …. जब तक कि आप अपनी कमियों को जान नहीं लेते, आप उन्हें कैसे साफ कर सकेंगे…. केवल इसी शोधन–कार्य से आप अपने अंदर स्थित परमपिता सर्वशक्तिमान ईश्वर को महसूस कर पाएंगे।“
पूजाकेदौरानभगवानशिवकीकरूणावास्तविकमहसूसहुई, “जिस प्यार ने हमें, यह प्यार दिया, जो हमें अपनी कमियों को ठीक करने की शक्ति प्रदान करता है।“
औरउनकेप्यारनेनकेवलअपनेबच्चोंकोशक्तिप्रदानकी, बल्कि भारत के उप प्रधानमंत्री एल. के. आडवाणी को शक्ति प्रदान की। उनका हृदय पड़ोसी देश पाकिस्तान के लिए खुला और 20 फरवरी को प्रधानमंत्री के साथ वे शांति मिशन (प्रतिनिधि मण्डल के साथ) पर लाहौर के लिए बस में रवाना हुए। लाहौर घोषणा–पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद, उन्होंने श्री माताजी के बन्धन के लिए प्रार्थना की। पाकिस्तानी राष्ट्रपति को बार–बार बंधन देने के बावजूद चैतन्य–लहरियों ने शीतल होने से मना कर दिया। उन्होंने श्री माताजी के बन्धन से बाहर बने रहने को ही पसंद किया और श्री माताजी ने आशावादी श्री आडवाणी को आगाह किया, “एक बूँद जो सागर से बाहर हो गई है, सूख जाती है।”
श्रीमाताजीकेचेतावनीदेनेके 2 महीनों के भीतर आडवाणी जी कुछ समझे, कारगिल युद्ध शुरू हो गया।
यहबच्चोंकेलिएएकशिक्षाथीचैतन्य–लहरियों पर गंभीरतापूर्वक ध्यान देना, उनके संकेत/इशारों को पढ़ना और लोक–प्रिय सलाह या मीडिया की अतिशयता के बहाव में नहीं पड़ना है।
एकऔरजन्म–दिवस बधाई कार्यक्रम 19 मार्च को, श्री माताजी ने विश्व के नेताओं और वैश्विक समस्याओं को चैतन्य (बन्धन) देने हेतु बच्चों को उत्साहित किया, बिना प्रतिरोध करते हुए, क्योंकि उनकी चैतन्य–लहरियाँ प्राय: गर्म थीं, श्री माताजी ने उन्हें बन्धन देते रहने को कहा।
बर्थ–डे पूजा पर श्री माताजी का चित्त ज्यादातर विश्व की आवश्यकताओं पर तथा उनके लिए क्या किया जाना चाहिये, पर स्थित था। “तुम सब प्यार से चैतन्यित हो और इस प्यार का प्रकाश स्वतः ही, सहज ही फैलता है।……”
इसीतरहसेनिर्मल–प्रेम की आनंदमयी स्थिति पूरे विश्व को परिवर्तित करेगी और सत्य–युग की स्थापना करेगी।
24 मार्च को श्री माताजी के पुणे एयरपोर्ट (हवाई–अड्डे) आगमन पर उनके बच्चों का प्यार उनकी आंखों में निर्मल–प्रेम के मोतियों के रूप में झलक आया। कार्यक्रम में माँ की आँखों में करुणा के आंसुओं ने खोए हुए बच्चों को घर पहुंचा दिया और जिन बच्चों ने उनके आहवान पर ध्यान नहीं दिया, उन्हें (Last judgement) ‘अंतिम–न्याय‘ की चेतावनी मिली और यदि वे इस मौके को चूक जाते हैं, वे बाहर फेंक दिए जायेंगे।
यहएकमौकाउन्हेंजीवन–काल में मिला था और उन्होंने उसे अपना लिया!
31 मार्च को, श्री हनुमान पूजा पर श्री माताजी ने बच्चों को इशारे से बुलाया, श्री हनुमान से भक्ति सीखने के लिए, जो कि भक्ति और शक्ति के पूर्ण संतुलन हैं। यद्धपि श्री हनुमान ने पिंगला नाड़ी को नियंत्रित किया, इसके द्वारा उपजी गर्मी को भक्ति द्वारा संतुलित किया। “भक्ति और शक्ति दोनों एक ही हैं… यदि आपकी भक्ति है उनके प्रति, आपको छूने की भी कोई हिम्मत नहीं जुटा पायेगा!”
वेअपनेबच्चोंकीभक्तिसेप्रसन्नथींऔरउन्हेंअपनीशादीकीवर्ष–गाँठ समारोह (wedding anniversary celebrations) में प्रतिष्ठान में आमंत्रित किया। हैदराबाद से आए हुए कव्वालों ने बच्चों को अपनी मां के अनन्त घर सहस्रार में पहुंचा दिया था।
1999
अध्याय – 63
25 अप्रैल को श्री माताजी ने इंस्ताबुल को ईस्टर पूजा का आशीर्वाद दिया। उन्होंने बताया कि ईसा का संदेश पुनर्जन्म था, “हमें कोई नष्ट नहीं कर सकता, कोई भी हमें समाप्त नहीं कर सकता, क्योंकि हमारे पास फिर से जीवन प्राप्त करने की शक्ति है, मृत्यु से उठने की शक्ति है। किन्तु आप ध्यान करें, इतनी करुणा और प्यार से कि आपकी आँखों से निकले आँसू भी उन लोगों पर प्रभाव डाल सकें, जो मूर्ख हैं, क्रूर हैं और एक दूसरे की हत्या कर रहे हैं।“
श्रीमाताजीकेबच्चोंनेवादाकियाऔरउनकेआँसुओंनेदूसरोंकोप्यारवकरुणासेपुनर्जीवनप्रदानकिया।
श्रीमाताजीकेकबेलापधारनेकेबाद, श्री माताजी को आश्चर्य हुआ, कई लोगों की नौकरियाँ चलीं गईं– यूरोपियन अर्थ–व्यवस्था की गिरावट से। उन्होंने बताया कि यूरोपियन यूनियन में गलत घटनाएं आत्म–विध्वंसी थीं। “ऐसी गलत चीजें आपके राष्ट्र को, आपके पारिवारिक जीवन को और आपकी मूल्य–प्रणाली को नष्ट करती हैं।“
समस्याकाहलसहस्रारपूजामेंनिकला, “यदि आप विनम्र हैं, तब आपको आश्चर्य लगेगा, यह देखकर कि आप पूर्णतया परम–चैतन्य के संपर्क में हैं। केवल यही नहीं, बल्कि आप खुद परम–चैतन्य हो गए हैं.. तब आपको सभी अच्छे विचार आने लग जाते हैं, हर वस्तु जो ईश्वरीय है, केवल इतना ही नहीं, किन्तु ईश्वरीय सहायता या परमात्मा का समाधान (हल) मिलने लगता है।“
जैसेहीबच्चोंनेपरम–चैतन्य को समर्पित किया, न केवल उनकी समस्याएँ हल हुईं, किन्तु वैश्विक समस्याएँ भी हल हुईं। प्रकृति भी जीव–विज्ञान और उनके वातावरण संबंधी समस्याओं को हल करने में पीछे नहीं रही। श्री माताजी के टोरेंटो प्रवास के 3 दिन पूर्व स्थानीय प्रशासन अधिकारी चिंता मग्न थे, क्योंकि झीलों का जल–स्तर तेज़ी से घट रहा था। श्री माताजी के आते ही अनवरत वर्षा शुरू हो गई और झीलें जल से परिपूर्ण हो गईं।
सिर्फझीलेंहीनहीं, किन्तु टोरेंटो विश्व–विद्यालय का दीक्षांत–समारोह हॉल किनारों तक भर चुका था। श्री माताजी ने चिंता व्यक्त की जिस दिशा में अमेरिकन–सोसाइटी (अमेरिकी–समाज) जा रहा था। उनकी करुणा इतनी प्रबल थी कि चैतन्य–लहरियों से श्री माताजी के पीछे लगे बैनर्स भी झूलने लगे थे।
श्रीमाताजीबहुतप्रसन्नथींऔरकृपाकरकेउन्होंनेप्रश्नपूछनेकीअनुमतिप्रदानकी।
एकप्रश्नकेउत्तरमें, कि वे कौन हैं। उन्होंने उत्तर दिया, “बजाय इसके कि मैं कौन हूँ, आप क्यों समझने का प्रयत्न नहीं करते कि आप कौन हैं? आप स्वयं को जानने से समझ जायेंगे कि मैं कौन हूँ।“
15 जून को न्यूयॉर्क के ‘कंजील–हॉस्पिटेलिटी‘ के भारतीय रेस्तराँ में श्री माताजी ने बौद्धिक/तार्किक लोगों की समस्या को संबोधित किया, “उन लोगों के मस्तिष्क पहिले से ही बहुत–सी पुस्तकों से भरे हुए हैं, मैं नहीं जानती– उनसे कैसे बात करूँ…… किंतु अब वे परिवर्तित हो रहे हैं।“
उनकीबौद्धिकताद्रवितहोनेलगी, जैसे ही उन्होंने श्री माताजी को कहते हुए सुना, “हरेक का हृदय प्रेम से परिपूर्ण है, किन्तु लोगों को अपने हृदयों को खोलने में डर लगता है… क्योंकि हमने अपना सच्चा प्यार प्रकट नहीं किया है, यह प्यार विकृत हो रहा है, आपकी बहुत–सी समस्याएँ इसी विकृत प्यार से आई हैं।“
बौद्धिकों ने अपने ह्रदय खोल दिए और प्रेम की पिपासा को शांत करने हेतु टाऊन–हॉल में एकत्र हुए। श्री माताजी ने उनकी प्यास अमृत से शांत की और उनकी चैतन्य–लहरियों की गुलाबी आभा ने न्यूयॉर्क के क्षितिज को धनुषाकार में आच्छादित कर दिया।
उनकाक्षितिजअनंतथाऔरकानाजोहरीमेंएकनएवैकुण्ठकीकल्पनाकी।श्रीमाताजीनेइसकेखर्चकाखाकाखींचा।हैंगरकास्थान, रंगमंच की रचना, कुएं की जगह, सड़कों की दिशा और अंतिम, किचन के बर्तनों से सम्बन्धित! पूरा नक्शा प्लान किया।
श्रीशक्ति–पूजा के 5 दिन पूर्व हैंगर का सामान भेजा गया था और कोई तरीका नहीं था कि यह पूजा से पहिले खड़ा किया जा सके। बच्चों ने अपनी माँ से प्रार्थना की और श्री कल्कि की शक्ति ने चमत्कारिक रूप से शुक्रवार को संगीत–कार्यक्रम से पूर्व हैंगर तैयार करा दिया था।
20 जून को पूजा प्रवचन में श्री माताजी ने अपनी गहरी चिंता नव–जात अमेरिकी सहजी बच्चों पर प्रकट की। श्री माताजी ने इशारे से अपने बच्चों को बुलाकर उस परेशानी को लेने को कहा, “चिंताएं हरेक चीज से संबंधित, धरती माँ से संबंधित, अपने पड़ोसी से संबंधित और विश्व–भर के उन सभी दुःखी/परेशान लोगों से संबंधित परेशानियाँ, ये चैतन्य लहरियां निश्चय ही अपना आपका मार्ग–दर्शन करने के लिए वहाँ होंगी– आपकी सहायता करने, आपको संबल प्रदान करने और आपको प्यार करने हेतु।“
पूजानेउनकेबच्चोंमेंउनकीचिन्ताकेमहत्वकोउत्पन्नकिया, चिंता दिग्भ्रमितों के लिए, अज्ञानी और दुःखी मानवता के लिए। निर्णयात्मक न होना, किन्तु केवल दया के दरवाजे खोलें और अपने चित्त को जहाँ ज़रूरत है, जाने दें।
वैन्कोवरकार्यक्रममेंयहस्पष्टहोगयाकिउनकीदयासेउनकीपरेशानीदिखाईदी, कैसे उनकी दया, उनकी चिन्ता बन गई और उस चिन्ता ने उनके चित्त को जहां–जहां जरूरत थी, वहाँ आकर्षित किया, यह चित्त मस्तिष्कीय चुनाव/रुचि से शासित नहीं था, किन्तु एक महासागर की तरह था, जो अपने को पुकारते हुए किनारों की ओर बहा जा रहा था और उनकी प्यास बुझाने पर पुनः पूर्वावस्था में आ गया।
एकसाधकनेप्रश्नकिया, “जीवन का उद्देश्य क्या है?”
उत्तर, “यह आसान है– ईश्वरत्व को पाना।“
लंदनसेविदाहोनेसेपूर्वश्रीमाताजीनेसुरे आश्रम को आशीर्वादित किया, “परम चैतन्य इतने प्रसन्न थे, कि वे घर को चैतन्य से भरना चाहते थे, केवल इसे बहते रहने के लिए।“
लंदनमें 8 जुलाई को एक प्रेस–कॉन्फरेंस में श्री माताजी ने बताया कि उनके 20 वर्ष के लंदन–निवास के दौरान प्रेस (पत्रकारिता) कभी भी सहयोग–पूर्ण नहीं रही थी, किन्तु अब ऐसे सकारात्मक पत्रकार से मिलने की उन्हें प्रसन्नता थी।
श्रीमाताजीनेस्पष्टबतायाकियहअंतिमनिर्णयहै, यदि आप सत्य का वरण करते हैं, ठीक और अच्छा है। किन्तु यदि आप सत्य को नहीं लेते हैं, आपका न्याय होगा/आप तौले जायेंगे।“
उन्होंने (साधकों ने), श्री माताजी की सलाह पर ध्यान दिया और रॉयल अल्बर्ट हॉल, लंदन में सत्य का साक्षात्कार करने आए।
और, सत्य ने उन्हें स्वतंत्रता प्रदान की!
1999
अध्याय – 64
श्रीमाताजीएकअगस्तकोश्रीगुरु–पूजा के लिए कबेला लौट आईं। उन्होंने पुरानी स्मृतियों को याद करते हुए कहा, उन्होंने कबेला में अपने निवास के 10 वर्ष पूरे कर लिए थे, और कबेला–वासी उनके प्रति बहुत ही दयालु रहे। यद्यपि यह स्थान इतना दूर है, बहुत से लोग सहज–योग में आए। आइवरी–कोस्ट (Ivory Coast) के अध्यक्ष ने नम्रतापूर्वक प्रार्थना की, “श्री माताजी, कृपया मेरे सभी देश–वासियों को सहजयोगी बना दीजिए।”
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “ठीक है, आप स्वयं इस कार्य को कर सकते हैं।“
उन्होंने 3 पत्नियों को तलाक दिया था और पछताए, “मेरा जीवन क्या है? क्यों मैंने अपनी जिंदगी की योजना इस तरह से बनाई? किन्तु अब मैं आनन्द, शांति और आराम से हूँ। आइवरी कोस्ट में 600 सहज–योगी हैं और मुस्लिम धर्म छोड़ चुके हैं।”
श्रीमाताजीनेपूछा, “आपने मुस्लिम धर्म क्यों अपनाया था?”
उन्होंनेकहा, “फ्रेंच लोगों में नैतिकता (आचार–नीति) बिलकुल भी नहीं है, इसलिये हमने मुस्लिम–धर्म अपनाया था।“
श्री माताजी ने कहा, “सहज योग में सभी धर्म समान हैं।“
पूजा–समारोह शुक्रवार को आरम्भ हुआ, सह्रदय–स्तुति–गान से, “यद्यपि किसी के पास पद हो, शक्ति हो या नेतृत्व हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, यदि आपका मन श्री माताजी के चरण–कमलों में नहीं लगा है, तो बहुत फर्क पड़ता है।“
नाटककेकरीब 70 पात्रों (योगियों) ने महाभारत की प्रेरणास्पद प्रस्तुति मंच पर दी। श्री माताजी ने कलाकारों को रंगमंच, ड्रामा (नाट्य) और अदाकारी के पेचीदा संयोजन (संगत) की चौंकाने वाली कृति के लिए बधाई दी।
पूजाप्रवचनमेंमानवीयमूल्योंपरचिंतनहुआ, “पहला मूल्य है– विरासत, दूसरा है– मानव क्या सोचता है और तीसरा गुण है कि वो प्यार की कीमत जानता है…। प्यार का यह विचार (युक्ति) है, कुछ ऐसी चीज़ जो साधक को निर्लिप्तता प्रदान करे। आपका चित्त मोह–बाधित नहीं होना चाहिये। आपका चित्त पूर्णतया स्वतंत्र होना चाहिए, ताकि यह स्वतः (बन्धन–मुक्त) कार्य करे।“
माँकेप्यारकीशक्तिनेउनकेबच्चोंकोलौकिक–मोह से मुक्त कर दिया था और उनकी चेतना को स्वच्छ कर दिया था, यह देखने के लिए कि प्यार ही सत्य था और सत्य ही प्यार था।
आगामीसप्ताहश्रीमाताजीऔरसरसी.पी. अपने अभी तक के पहले अवकाश पर अपने नातिनों के साथ टुस्केनी (Tuscany) पहुंचे। तथाकथित इस अवकाश के दौरान श्री माताजी ने 3000 लोगों के लिए कार्यक्रम किया। हरेक दुकान या रेस्तरां जहाँ श्री माताजी गईं लोग अपने आत्म–साक्षात्कार के लिए प्रतीक्षा में थे! श्री माताजी के वापस लौटने के दौरान जब वे पोर्तो विनेरा (Porto Venera) में डिनर ले रहीं थीं, लोग उनके इई–गिर्द इकट्ठा होने से स्वयं को रोक नहीं पाए, क्योंकि उन्हें अति तीव्र प्यार की अनुभूति हुई और उनके दर्शन से आनन्द मिला। श्री माताजी को उनके मुक्त ह्रदयों को देखकर आश्चर्य हुआ, जिन्होंने श्री माताजी को इतनी आसानी से पहचानने की योग्यता प्रदान की। रेस्टोरेंट के मालिक को आत्म–साक्षात्कार मिला और उन्होंने श्री माताजी की कुर्सी और कटलरी को उनकी अगली यात्रा के लिए सुरक्षित रख दिया।
5 सितम्बर को श्री माताजी की श्री कृष्ण पूजा कबेला में आयोजित हुई। पूजा की पूर्व–सन्ध्या को अमेरिकी बच्चों ने एक आश्चर्य–जनक मूवी–ड्रामा (Back to the Present) प्रस्तुत किया। इसके बाद मोरक्को–वासी संगीतज्ञों द्वारा एक आनन्द–दायक प्रस्तुति दी गई थी, ये लोग एक ऑस्ट्रियन पहल पर अभी–अभी सहज–योग परिवार में शामिल हुए थे। श्री माताजी ने उनके अरबी संगीत की प्रशंसा की और कहा कि यह विराट के लिए सही (उचित) संगीत था, विराट, जो साक्षात अल्लाह भी हैं।
पूजाकीसुबहश्रीमाताजीनेमेजबानदेशोंकोएकशंख, विराट शक्ति के उद्घोषणा स्वरूप और एक बाँसुरी, विश्व में माधुर्य फैलाने हेतु देकर आशीर्वादित किया।
“विराट की शक्ति इतनी तीव्र (असाधारण) हो जाती है कि यह विश्व–भर में कार्य करती है। यह इस तरह से कार्य करती है कि आप यहाँ बैठे हैं और यहाँ से कहीं भी विश्व भर में कार्य कर सकती है…… उस स्तर पर आप विश्व–व्यापक व्यक्तित्व बन जाते हैं, क्योंकि जो भी हमारी समस्याएँ हैं, वे विश्व व्यापक हो जाती हैं। जरूरी नहीं कि वे समस्याएं आप से सम्बन्धित हों या जुड़ी हुई हों।“
श्रीमाताजीकेबच्चे विराट–शक्ति के अंग–प्रत्यंग हो गए। उन्होंने विश्व–शान्ति हेतु बोस्निया में युद्ध समाप्ति हेतु और भारत–पाकिस्तान संबंधों में दृढ़ता (स्थायित्व) हेतु प्रार्थना की। (आने वाले महीने में सेना के कोप–डिटेट (coup detat) द्वारा आर्मी–प्रमुख को सत्ता सौंप दी, जिन्होंने दोनों देशों में शांति–प्रक्रिया शुरू की, इसके तुरंत बाद बोस्निया युद्ध समाप्त हो गया।)
श्रीमाताजीनेउपहारवितरणमेंलंबासमयबितायाऔरबच्चेउनकेप्यारकीऊष्मामेंबैठेरहे।श्रीमाताजीप्रसन्नथींकिबच्चोंनेपूजाकेचैतन्यकोगहनतासेअवशोषितकियाथाऔरआनेवालेसप्ताहमेंउन्हेंश्रीगणेशपूजासेआशीर्वादितकरकेप्रसन्नथीं।
श्रीकृष्णकीआज्ञाकारिताकेसाथअमेरिकीबच्चोंनेपूरेसप्ताहउनकेऊपरश्रीगणेशकीअबोधिताकोप्रदानकरनेकीप्रार्थनाकी।श्रीमाताजीकीअसीमकरुणामें, उन्होंने बच्चों के चक्रों की सफाई की और उन्हें नन्हें–नन्हें गणेशों की तरह पावित्र्य प्रदान किया।
17 अक्टूबर को नवरात्रि पूजा पर श्री माताजी ने दृढ़तापूर्वक कहा, “यदि आपका हृदय साफ नहीं है, यदि आप सहजयोग किसी के साथ स्पर्धा में अपना रहे हो या किसी प्रकार की भौतिक पदार्थों की प्राप्ति के लिए कर रहे हो, यह कार्यान्वित नहीं हो पाएगा। आपको इसे एक तरीके से करना है, जो कि एक अबोध–कार्य है, कि आप अपनी माँ की पूजा एक छोटे बच्चे जैसी करना है, जैसे छोटा बच्चा माँ की पूजा करता है और अपनी माँ को प्यार करता है…. वह कुछ चीज है बहुत ही साधारण है, आपको अपने बचपन को जानना है और यही ‘शिशुपन‘ आपके अन्दर वापस आना है, यदि आप वास्तव में माँ की पूजा करते हैं।“
7 नवम्बर को श्री दिवाली पूजा डेल्फी में मनाई गई थी, डेल्फी एक पहाड़ पर जो अथेन्स से साढ़े तीन घंटे की यात्रा की दूरी पर स्थित था, यह बहुत मंगलमय था कि यह स्थल श्री दिवाली पूजा के लिए चुना गया था जैसा कि श्री माताजी ने जाहिर किया कि यह श्री विष्णु का घर था, ग्रीस का देवलोक था और जिसे पुराणों में मणिपुर–द्वीप के नाम से वर्णित किया गया था– जो विश्व के ठीक मध्य नाभि–बिंदु पर स्थित है।
पूजासेपूर्वश्रीगणेशकाचेहराआकाशमेंप्रकटहुआऔरजबसहज–योगी मंदिर की ओर मुड़े, तो उन्होंने पता किया कि श्री गणेश का स्वयंभू एक कोने में स्थित था।
बच्चोंनेअपनीप्रियमांकास्वागतपारंपरिकग्रीक–मुकुट जो शांति के प्रतीक स्वरूप ऑलिव की पत्तियों के रूप में बनाया गया था, उससे (स्वागत) किया। श्री माताजी ने ग्रीस को अनंत–शान्ति का आशीर्वाद दिया, “आप ज्योतित आत्मा हैं। मेरे लिए यही दीवाली है।”
पूजाप्रवचनमेंश्रीमाताजीनेबताया, “वो लोग कह रहे हैं, माँ, कुछ लिखित नियम होने चाहिये, मैंने कहा– ‘नहीं‘। यदि आपके अनुभव द्वारा आप कार्य कर सकते हैं… चैतन्य से आप तुरंत जान जाते हैं कि आपको पकड़ आ रही है या जान जायेंगे कि आप ठीक हैं। जो भी निर्णय लिया जाना है, आपको पूरी तरह अपने हाथों का उपयोग करना है।”
पूजाकेपश्चात्मणिपुरद्वीपकेनिवासियोंनेअपनासम्मानश्रीमाँकेचरणोंमेंमूसलाधारबारिशमेंप्रकटकिया।पिछलेदसवर्षोंमेंयहपहलीबारहुआकिइतनीभारीबारिशहुई! श्री माताजी रात 11 बजे तक अथेन्स नहीं छोड़ सकीं। जैसे ही श्री माताजी रवाना हुईं, प्रकाश की किरणों के दो पुंज, (Beams of light) पहाड़ पर स्थित अपोलो मंदिर (श्री राम मंदिर) से निकलती हुईं प्रकट हुईं। एक प्रकाश किरण समूह (प्रकाश पुंज) ने उनकी कार का रास्ता दिखाया और दूसरी प्रकाश किरण समूह आकाश की ओर थी। सड़क के हर मोड़ पर अंधियारी–बारिश में रास्ता बताने के लिए बिजली चमकती रही। श्री माताजी ने टिप्पणी की कि यह विद्युत–तड़ित (lightening) 108 बार जारी रहेगी और तभी चमकना बंद होगी, जब तक कि कार हाइवे की सुरक्षा में पहुँच नहीं जाती। जैसे ही कार ने हाइ–वे का स्पर्श किया श्री विष्णु माया ने स–सम्मान विदा ली।
प्रातःकालग्रीकपॉटरीकेलिएशॉपिंगकरतेसमयश्रीमाताजीप्रसन्नथींकिअथेनानेग्रीकवासियोंकोइतनीसुन्दरकलाकाज्ञानप्रदानकियाथा।
9 नवंबर का कार्यक्रम श्री अथेना के बच्चों को श्री माताजी के चरण–कमलों की शरण में ले आया। उन्हें श्री माताजी को मानने/पहचानने में समय नहीं लगा। अंततः, उन्हें उनकी प्यारी माँ मिल चुकी थीं!
1999
अध्याय – 65
श्रीमाताजीके 5 दिसम्बर को दिल्ली लौटने पर उनकी तुरंत चिंता उड़ीसा के अभी आए तूफान से पीड़ित बच्चों की दुर्दशा को लेकर थी। श्री माताजी ने स्पष्ट बताया कि हालांकि अंतिम–निर्णय (Last judgement) सक्रिय था, किंतु उनके प्यार के बंधन में सहज–योगी बच्चों की रक्षा हुई। इसी तरह से पहले भी तुर्की के भयानक भूकम्प में भी उनके बच्चों की आश्चर्यजनक रूप से रक्षा की गई, “मैंने देखा है कि सभी सहज–योगी पूर्णतया सुरक्षित हैं और आप सुरक्षा में उन्नति कर रहे हैं।“
श्रीगुरुनानकजन्म–दिवस पर उनके बच्चे उड़ीसा से, जो तूफान से बच गए थे, श्री माताजी को धन्यवाद भेंट करने आए। श्री माताजी ने उन्हें सान्त्वना दी और पूर्वी भारत में सहज–योग के प्रसार हेतु ऑस्ट्रेलियन सहज–योगियों को उनकी सहायता के लिए भेजा।
श्रीमाताजीनेश्रीगुरूनानकजीकेसंदेशकोस्पष्टबताया, “उन्होंने ‘स्वयं को जानो‘ की बात सहज–समाधि द्वारा प्राप्त करने की बात की थी, किन्तु उन्होंने कैसे प्राप्त करें– यह नहीं बताया– कुण्डलिनी का उत्थान कौन करेगा? श्री गुरुनानकजी ने केवल दो शिष्यों को आत्म–साक्षात्कार दिया था….. एक साधक की शक्ति की जाग्रति करना, यह शिक्षा हमें श्री गुरु नानक से लेनी है। हम आत्म–साक्षात्कारी सहज–योग को इतनी गहनता से समझते हैं कि अब इसका कोई भी दूसरा अर्थ निकालने की कोई जरूरत नहीं है। अभी भी लोग कर्म–काण्ड का सुझाव देते हैं। यह सब व्यर्थ है। मैंने कभी ऐसा नहीं कहा। अभी तक लोग वो कर रहे हैं, जिसे मैंने कभी नहीं कहा। अतः अब जब वे मेरे प्रवचन की टेप रिकार्डिंग सुनते हैं और समझते हैं कि माँ ने ऐसा नहीं कहा है, हमें क्यों वैसा करना चाहिये?”
योगियोंनेश्रीमाताजीकोउनकेआशीर्वादकेलिएधन्यवाददियाऔरगणपतिपुलेमेंनव–शताब्दी के जन्मोत्सव को अति–उदार खर्चे वाले संगीत–कार्यक्रम द्वारा मनाने की अनुमति मांगी। बहरहाल, श्री माताजी इस विचार (फ़िज़ूल खर्ची) से इतनी उत्साहित नहीं थीं, क्योंकि यह धारणा कैथोलिक–चर्च की पैसे बनाने की थी, “अपना कार्य लोगों को पुनर्जन्म देना है और उन्हें सत्य देना है।“
श्रीमाताजीकीसलाहनेक्रिसमसपूजापरउनकामार्गदर्शनकिया।उन्होंनेयादकरायाकैसेएकस्टार (तारे) ने तीन बुद्धिमान विद्वानों को नव–जात ईसा के जन्म–स्थल Manger (भेड़ों को सानी देने की जगह) की ओर मार्ग–दर्शन दिया था। इसी प्रकार, कई वर्ष पूर्व जब वे नाव से रत्नागिरि यात्रा कर रहीं थीं, एक तारे ने गणपतिपुले की ओर मार्ग–दर्शन किया था। श्री माताजी ने प्यार से अपने पुनर्जीवन–प्राप्त पुत्र ‘ईसा‘ को याद किया, “ईसा ने कहा था कि वह प्रकाश थे, उन्होंने यह नहीं कहा था कि वे लक्ष्य हैं। उन्होंने कहा था, “’होली–घोस्ट‘ (आदि–शक्ति) आयेंगी। मैं तुम्हें एक काउंसलर, कम्फर्टर और एक रिडीमर भेजूंगा” यानि सलाह देने वाली (महासरस्वती), आराम–दायिनी (महाकाली), उत्क्रांति दायिनी (महालक्ष्मी)।
आज, जब हम उनके जीवन का स्मरण करते हैं, हमें उनके जीवन का अनुसरण करना होगा। वे हमारे आदर्श हैं। हमें बहुत सी बातें सहन करनी होंगी। हमें सहनशील होना होगा। हम आक्रामक नहीं हो सकते। हम दूसरों की स्वतंत्रता के प्रति डर या घुड़की नहीं दे सकते/उन्हें डरा या धमका नहीं सकते। मैं जानती हूं, शैतानी शक्तियां यहाँ हैं …..हमारी सच्चाई उनसे लड़ेगी।”
पूजानेउनकेबच्चोंकोशैतानीताकतोंपरविजयपानेकेलिएनिर्मल–तत्व से शक्ति प्रदान की।
नव–विवाहित युगलों की आँखों में निर्मल–तत्व दिखाई दिया और नव–शताब्दी के आगमन की उद्घोषणा सत्य–युग के प्रभात की तरह हुई।
2000
अध्याय – 66
26 जनवरी को पुणे की युवा–शक्ति श्री माताजी के शयन–कक्ष के बाहर भारत के गणतंत्र–दिवस के लिए आशीर्वाद लेने हेतु इकट्ठे हुए। श्री माँ ने उन्हें अन्दर आमंत्रित किया और उनकी ओर प्रवृत्त हो बोलीं, “यदि आपको अपने देश के प्रति देश–भक्ति है, कितना भी बलिदान/त्याग संतोषप्रद नहीं होगा। आप सब कुछ देना चाहते हो, आप उदासी महसूस किए बगैर, आप सब चीज़ कर सकते हो। उसी समय आपका अहसास बहुत गहन हो जाता है।“
श्रीमाताजीनेयोगियोंकोशिवाजीकीमूर्तियांदींऔरउन्हेंउनकेसाहसकेमहानकार्योंसेप्रेरितकिया, “आपको याद होना चाहिये, आपको आदर्श सहज–योगी बनना है, क्योंकि आपको पूरे विश्व को बदलना है, और यही आपकी माँ आपसे आशा करती है, यही मेरी केवल इच्छा है। इसके अलावा हरेक वस्तु व्यर्थ है, निरर्थक है। तभी आप परमात्मा के साम्राज्य में होने का आनन्द उठा सकते हो। आपको हर दिन ध्यान करना है, सहज–योग में प्रौढ़ता प्राप्त करने का वही एक मात्र मार्ग है।“
सहजयोगियोंनेश्रीमाताजीकोवचनदियाऔरएकराष्ट्रीय–पत्रिका ‘युवा–दृष्टि‘ के प्रकाशन की अनुमति मांगी।
एकयुवासहजयोगीनेअपनेभाईकीशिकायतकी, जो नशे का आदी था।
एकदूसरेयोगीनेटी.वी. के आदी लोगों की शिकायत की।
श्रीमाताजीनेस्पष्टबतायाकि, “आपकी आंखे टी. वी. एक्टर्स (कलाकारों) से नकारात्मकता ग्रहण करती हैं, यदि आप उनमें एकाग्र होते हैं, यह नाटक जैसा ही है। नाटकी (व्यक्ति) जब आपकी आंखों में अपनी आंखे डालता है, तो जो भी नकारात्मकता उनकी आँखों में इकठ्ठी है, वह आपकी आँखों में चली जाती है। इसी तरह से यह नकारात्मकता आपकी आँखों में टी.वी. पर्दे द्वारा प्रवेश कर जाती है। आपको विवेक होना चाहिये क्या देखना चाहिए और कितनी मात्रा में देखना चाहिए।“
प्रश्नपूछनेकोबहुतसेहाथउठे।श्रीमाताजीनेजवाबदिया, “जब आप प्रश्न पूछते हो, इसका आशय है– आप वहाँ नहीं हो। यदि आप वहां हों (वर्तमान में हों), कोई भी प्रश्न नहीं होंगे।“
फरवरीकेआरम्भमेंकांचीकेशंकराचार्यनेघोषणाकीकिश्रीमाताजीराजलक्ष्मीथीं।दुबईकेएकयोगीनेउनसेअपनेविशालजन–समूह को आत्म–साक्षात्कार देने की अनुमति मांगी, किन्तु वह बोला, वे लोग बहुत ज्यादा कर्मकाण्डी लोग हैं, अपनी कुंडलिनी की जागृति प्राप्त करने को अक्षम हैं। सहज योग के बारे में अपने शिष्यों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि सहज–योगी हजारों सूर्य/हजारों चन्द्रमा की शक्ति को अनुभव कर सकते हैं। शक्ति का आशय केवल सूर्य के प्रकाश और चंद्रमा की शीतलता से था।
दुबईकेसाधक–गण अपना आत्म–साक्षात्कार लेने हेतु आतुर थे और उन्होंने श्री माताजी के दर्शनों की अनुमति मांगी। यह समय 28 फरवरी को नियुक्त किया गया था, किंतु दुर्भाग्य से श्री माताजी को अनायास नागपुर के लिए रवाना होना पड़ा क्योंकि बाबा मामा (श्री माताजी के छोटे भाई) गंभीर–रूप से बीमार हुए थे, वे एयरपोर्ट से सीधे अस्पताल पहुंचीं, किन्तु उस समय तक वो शान्तिपूर्वक इस संसार से विदा हो चुके थे। श्री माताजी ने किसी से भी बातचीत नहीं की और शांत समाधि में चली गईं।
श्रीशिव–पूजा 5 मार्च को आयोजित होना निश्चित थी किन्तु अभी हाल ही में पारिवारिक–शोक की वजह से बच्चों ने पूजा निरस्त करने का प्रस्ताव रखा। किन्तु श्री माताजी बोलीं, “यदि आप कुण्डलिनी को देखते हैं– आप समझ जाते हैं कि मृत्यु नहीं है। मृत्यु में ही जीवन छिपा है। यह केवल एक दूसरी ज़िन्दगी में जाना है। जहाँ वो थोड़ी देर आराम करेगा और बड़े उत्साह के साथ मानव के उद्धार के लिए वापस लौटेगा।“
पूजाप्रवचनमेंश्रीमाताजीनेजीवनकेरहस्योंकोसुलझाया, “यदि बहुत बुरे मनुष्यों की और गए–बीते लोगों की कुंडलनियाँ उठा देते हो, वे या तो नष्ट हो जायेंगे या उनकी रक्षा होगी और वे अच्छे मनुष्य बन जायेंगे।“
बादमें, शाम को टोग्लीआटी के माफिया–चीफ के उदाहरण के साथ स्पष्ट बताया, जो आत्म–साक्षात्कार लेने के बाद परिवर्तित हो गया और समाज के लिए अच्छे कार्य करने लगा, “मुझे आश्चर्य हुआ कैसे वही माफिया (अपराधी) जो इतना डरावना लग रहा था, इतना सम्माननीय व्यक्ति बन गया। आत्म–साक्षात्कार के बाद आपका चित्त प्रकाशित होता है और आप अपनी विध्वंसकारी आदतों, विचारों और क्रिया–कलापों को स्पष्टतया देखते हैं। इसके अलावा आपके पास उन्हें ठीक करने की शक्ति आ जाती है। आप न केवल अपने लिए किन्तु अपने परिवार, अपने समाज के लिए, सबके लिए कर सकते हो। ये विध्वंसकारी विचार और विध्वंसकारी कार्य–कलाप सहज में ही छूट जाते हैं।“
श्रीमाताजीकीगहनरुचिभारतीयबच्चोंकेलिएएकस्कूलखोलनेमेंथीऔरपुणेसे 35 कि. मी. दूर शेरे में जमीन खरीदी। विद्यालय के शिलान्यास समारोह पर श्री माता जी ने बच्चों की संभावित–क्षमता का अनुकूलतम विकास उनकी आध्यात्मिक–क्षमता के वास्तवीकरण के द्वारा समझने के लिए एक पाठ्यक्रम की कल्पना की, “शिवाजी जैसे कल्याणकारी और दयालु दिशा–निर्देशक (leaders) के बीजों का वपन (बोना) शैशवावस्था में होना चाहिये। स्कूल को मानवीय गुणों (जन्म–जात) जैसे प्यार, करुणा, दया, सम्मान, साहस, औचित्य, संवेदनशीलता, आत्म–सम्मान, स्वाभाविकता और चिन्तन–शीलता की देख–भाल (पोषण) करना चाहिये। जैसे ही बच्चे में मजबूत नींव विकसित होती है, वह आसानी से झूठापन, धोखेबाजी, और सतही–मूल्यों (दिखावटी–पन) को आसानी से पहचान लेगा। आत्म–साक्षात्कार के परिणाम स्वरूप बच्चे सदाचारी, संतुलित, जवाबदार, समझदार और दूसरों की परवाह करने वाले (caring) बनेंगे।
बादमें, शाम को श्री माताजी ने कोठरूड़ आश्रम (पुणे) का उद्घाटन किया।
11 मार्च को उन्होंने यशवंतराव चव्हाण सभागार, मुंबई में, महाराष्ट्र के आइ.ए.एस. ऑफीसर्स को स्ट्रेस–मैनेजमेंट पर संबोधित किया| श्री माताजी को अचंभा लगा, यह जानकर कि अधिकारियों की उच्च सरकारी अवस्था के बावजूद वे चैतन्य के प्रति ग्रहणशील थे। उन्होंने उन्हें देश–भक्ति स्वीकार करने के लिए प्रवृत्त किया, तब मातृ–भूमि की दैवीय शक्ति उनका पालन–पोषण करेगी और उनकी क्रिया शक्ति (पिंगला) को मानसिक तनाव और खिंचाव से मुक्त करेगी।
12 मार्च को एक विशाल कार्यक्रम शिवाजी पार्क, मुंबई में आयोजित हुआ। उन्होंने महाराष्ट्रियनों को अपने धर्म के सम्मानपूर्ण और शानदार पैतृक सम्पत्ति (विरासत) का अनुगमन करने के लिए प्रेरित किया।
2000
अध्याय – 67
होलीकेउत्सवपरश्रीमाताजीनेऑस्ट्रेलियाकेसहज–योगियों की पूर्वी–भारत में सहज–योग प्रसार की पहल की प्रशंसा की। “आस्ट्रेलिया के सहज–योगी सहज–योग प्रसार के मदद के लिए भारत में आए और अब भारतीय सहज–योगियों को सहज–योग प्रसार के लिए आस–पास जाना चाहिए। सहज–योग के कार्यान्वयन के लिए, जो सम्भव हो सका, मैंने किया है। अब तुम्हें आत्म–साक्षात्कार मिल गया है और तुम्हें इसे दूसरों को प्रदान करना है।“
श्रीमाताजीके 77वें जन्म–दिवस पर उन्होंने पुरानी स्मृतियां याद करते हुए कहा, “मेरा 77 वर्ष का अनुभव वास्तव में सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं (शतरंज की बाज़ी जैसे) से रहा है और यह एक अच्छी कल्पना (स्वप्न) है, जिसे आपकी आँखों के सामने सत्य घटित होते हुए देखकर कि बहुत सी बाधाओं के बावजूद, इतने सारे सुन्दर कमल खिले हुए हैं। ये कमल इतने खुशबूदार, इतने सुन्दर, इतने रंगीन और आकर्षक (भव्य) हैं।“
श्रीमाँकेजन्म–दिवस के बधाई–कार्यक्रम में काश्मीर में भारत सरकार के विशेष कूटनीतिज्ञ (दूत) ने काश्मीर–समस्या पर श्री माताजी के आशीर्वाद की याचना की। उन्होंने खेद प्रकट करते हुए कहा, “वहाँ खून–खराबा है। इन्सानियत ने हैवानियत का रूप धारण कर रखा है। उन्होंने बहुत गलत काम किए हैं। मेरी इच्छा है आपका आशीर्वाद, आपका प्यार, आपकी शांति और आपका अपनत्व उन्हें मिले। भगवान श्री कृष्ण ने कहा था, जब धर्म की अवनति (ग्लानि) होती है और क्रूरता सत्ता धारण करती है, मैं धर्म की स्थापना करने को अवतरित होता हूँ। श्री माताजी, आप इस धरा पर इस वचन को पूर्ण करने हेतु अवतरित हुई हैं।”
श्रीमाताजीनेअपनेह्रदयसेउन्हेंआशीषदिया, ” मैंने कुछ सहज–योगियों को काश्मीर जाने के लिए और काश्मीरियों को सहज–योगी बनाने को कहा है।” यदि आप उन्हें सहज–योगी बनाएं, यह समस्या हल हो जायेगी….. आपके देश के साथ क्या–क्या दोष हैं, गलतियां हैं, आप हर चीज़ बहुत स्पष्टतया देखते हो और आपके पास इन्हें ठीक करने की शक्ति है। यदि आप अपनी शक्तियों के प्रति सचेत हैं और यदि आपने अपने सहज–योग पर प्रभुत्व प्राप्त कर लिया है, तब आप इसे कर सकते हो। आप इसे न केवल अपने स्वयं के लिए, बल्कि अपने परिवार के लिए, अपने समाज के लिए, हरेक के लिए कर सकते हो।“
श्रीएल. के. आडवाणी, भारत के गृहमंत्री ने श्री माताजी को उनके आशीर्वाद के लिए बहुत–बहुत धन्यवाद दिया और काश्मीर को चैतन्य प्रसारित करने के लिए प्रार्थना की।
डॉ. शोभा दास, प्राणिशास्त्र के विभागाध्यक्ष, लेडी हार्डिंग अस्पताल, दिल्ली ने दो शोध ग्रंथ (thesis) ‘तनाव प्रबंधन में सहज योग का योगदान‘ इस विषय पर पूर्ण करके दिल्ली विश्व–विद्यालय को उनके अध्ययन हेतु प्रस्तुत की, जिसे विश्व–विद्यालय ने मान्यता प्रदान की और थीसिस (शोधग्रंथ) को स्वीकार किया।
दूसरेदिनश्रीमाताजीने 33 वैवाहिक जोड़ों को आशीर्वादित किया और नव विवाहित दंपतियों को एक दूसरे में दोष नहीं निकालने की सलाह दी, किंतु एक दूसरे की अच्छाइयां देखने की और एक दूसरे को क्षमा करने की सलाह दी, “क्षमाशील होने का अर्थ, सहते रहना या दुःख उठाते रहना नहीं है। आप क्षमा करते हो, क्योंकि आप बहुत उदार (कुलीन), महान हैं, आप सहज–योगी हैं।”
25 मार्च को दिल्ली के नागरिकों की ओर से, रामलीला मैदान में सहज–योग जन–कार्यक्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने लाल गुलाब के गुलदस्ते के साथ श्री माताजी का स्वागत किया। 50000 साधकों ने श्री माताजी के प्रबोधन को मंत्र–मुग्ध हो सुना, “सहज योग अंदर से न किसी धर्म को अयोग्य ठहराता है और न ही विरोध करता है। इसमें सभी धर्मों के शुद्ध–स्वरूप का निगमन (मिलाना) इसकी विशेषता है……किन्तु लोगों का परिवर्तन करना और कुंडलिनी–जागरण ही इस उद्देश्य को प्राप्त करने का रास्ता है। सहज–योग का सबसे महान गुण प्रेम की शक्ति है…. यह पौधा सामूहिक–प्यार के पालन–पोषण के बिना बढ़ नहीं पायेगा….. सबसे बड़ी ज़रूरत इसकी है– सत्य के लिए तीव्र–लालसा/प्रबल–इच्छा होना।“
एकआक्रामकपत्रकारनेप्रश्नपूछनाशुरूकिया, “आप को कैसे मालूम हुआ कि आप ईश्वरीय या दैवीय शक्ति हो?”
श्रीमाताजीनेसिर्फउसकीकुंडलिनीउठायी।
उसनेपूछा, “क्या हो रहा है? मेरे हाथों में कैसे यह ठंडी हवा बह रही है?”
श्रीमाताजीमुस्कराईं, “यह ठंडी हवा तुम्हारे सिर (सहस्रार) से भी बह रही है।“
वहउनकेचरणोंमेंगिरपड़ाऔरक्षमामांगी।
अगलेसप्ताह, वे गुड़ी पड़वा के लिए पुष्प अर्पण करने के लिए आए। बच्चे बड़ी पूजा करना चाहते थे, किंतु उन्होंने सलाह दी, “बड़ी पूजाओं और भजन का कोई महत्व नहीं है। हमें ध्यान करना और अंतरावलोकन करना है…. ध्यान में चैतन्य आपकी उन्नति करता है, आप बढ़ते हैं और अन्तरावलोकन करने से आप अपनी सभी नकारात्मकताओं को दूर करते हैं और आपको तीसरा आयाम मिलेगा। वही है, जिससे आप दूसरों की सुंदरता और अच्छाइयाँ देखते हैं। अतः सहज–स्थिति में आपका चित्त नकारात्मकता की ओर नहीं जायेगा। क्या लाभ है? आपको जाकर नकारात्मक लोगों को मारना नहीं है। यह कार्य देवी माँ का है, आपको इसे नहीं करना है।“
श्रीमाताजीकेविवाहकेवर्षगांठकीमंगलमयपावन–वेला पर ग्रेटर नोयडा में (एन.जी.ओ. में) परित्यक्ता महिलाओं और अनाथ बच्चों के लिए भूमि पूजा अर्पित की गई। श्री माताजी ने बताया कि भारत में दुःख और असंतोष का कारण गृहलक्ष्मी का सम्मान न होना था। “धर्म का सार (तत्व) प्रेम है। जो अपनी पत्नी को प्रेम नहीं कर सकते, वो किसको प्रेम कर सकेंगे?” अतः मैंने इस संगठन NGO के लिए कड़ी मेहनत करने और ऐसी महिलाओं की हालत दुरुस्त करने का निश्चय कर लिया। गरीब, उत्पीड़ित और असहाय महिलाओं को यहाँ लाया जा सके और उनकी मदद की जा सके… यह मेरा स्वप्न है। आप लोग इसे पूर्ण कर सकोगे और मुझे मेरे हृदय की पीड़ा से मुक्त कर सकोगे।“
श्रीमाताजीकेवैवाहिक–वर्षगांठ समारोह के सांध्य–भोज (dinner) पर सर सी. पी. ने उन्हें अशासकीय संगठन (NGO) के आरंभ पर बधाई दी और पूछा, “आप इतना सब कुछ कैसे प्रबंध करती हैं।“
श्रीमाताजीसरलतासेमुस्कराईं, “मुझे नहीं मालूम है। इसके पीछे मुख्य चीज़ है– मेरा प्यार, जो दूसरों के लिए है। यह इतनी सुन्दरता से सब कुछ प्रबंध कर देता है।“
8 अप्रैल को उन्होंने (I.A.S.) आई.ए.एस. अधिकारियों के फोरम को संबोधित किया। श्री माताजी ने वह समय याद किया, जब उनके पति I.A.S. थे और बड़े उपद्रव और त्याग उन्होंने देखे। भारतीय सरकारी सेवा भारत की रीढ़ की हड्डी (अहम चीज़) थी, इसे खड़ा करने में सब के सब समाघातें तकलीफें और दायित्व लगे, “निस्संदेह हम खास लोग हैं।” सत्ता के बिना दुरुपयोग किए, आप कौन हैं? कुछ नहीं! यदि आप अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं, तब यह ठीक नहीं है, और यदि आप इसे उपयोग नहीं करते हैं, आप अशक्त हैं। “
श्रीमाताजीनेसरलतासेआगेकहा, “यदि अभी तक मैंने कुछ किया है, वह है कि मैंने सामूहिक चेतना का रास्ता पता कर लिया है, वही एक काम है, जो मैंने किया है, अन्यथा (अलग ढंग से) यह पहले से ही था। नाथपंथी इसे करते थे। यह लोगों में सभी को मालुम थी, किन्तु मैंने क्या किया है, मैंने पता करने का प्रयत्न किया कि मनुष्यों में समस्याओं के क्रमचय और संचय क्या हैं और उन्हें आत्म–साक्षात्कार क्यों नहीं मिलना चाहिये।“
भारतीयराजस्व–सेवा सभा भी श्री माताजी को आमंत्रित करने में पीछे नहीं रही। उनकी असीम करुणा ने उनके हृदयों में तत्काल एक स्वर–लहरी की दस्तक दी, “मैं एक सरकारी सेवक की पत्नी रही हूँ और जानती हूं कि सरकारी नौकरों की क्या समस्याएँ होती हैं। पहली चीज़ उनमें यह व्यग्रता पैदा करती है, वे हमेशा इस बात से चिन्तित होते हैं, हमें कैसे नौकरी का बोझ संभालना है। आप जो भी कर सकते हैं, आप जो भी कोशिश कर सकते हैं, आपको यह अलग–अलग स्तर पर मालूम होगी कि इसका कोई प्रतिफल आपको नहीं मिलता, इसे नहीं समझा जाता और न ही लोग आपका उत्साह–वर्धन करते हैं। वास्तव में, सरकारी कर्मचारी अपनी ईमानदारी की वज़ह से तकलीफ़ उठाते हैं।“
देखोऔरनिहारो! आराम–दायिनी शक्ति उन सबका बोझ (तकलीफ) अपने ऊपर लेने के लिए आ चुकीं थीं और उनके बच्चों ने उनके चरण–कमलों में शरण ली।
2000
अध्याय – 68
19 मार्च को श्री माताजी दुबई पधारीं और बच्चों ने उनके चैतन्य को दुबई में फैलाने के लिए प्रार्थना की और एक समुद्री–विहार (cruise) का प्रबंध किया। वे जैसे ही दुबई के ब्रेक वाटर्स (बंदरगाह के समीप) नौका–विहार कर रहे थे, उन्हें उस स्थान ने गणपतिपुले की याद दिला दी और बच्चों ने ब्रेक–वाटर्स के सागर–तट पर एक और गणपतिपुले बनाने का वचन दिया।
श्रीमाताजीउनकीभक्तिसेबहुतप्रभावितहुईं, “हर जगह रुकावटें और बाधाएं आती हैं और उतार–चढ़ाव हमेशा आते हैं, किंतु अपने घरों से इतनी दूर आप जिस तरह से सामूहिक हो गए हैं, उसी तरह आप मेरे निवास (सहज–निवास) बनायेंगे, क्योंकि आपने सहज–योग को अपने दिलों से मान्यता दी है। आपने महासागरीय गहराइयों को प्राप्त किया है। आप मुझे चमकते हुए हीरों के सदृश प्रतीत होते हैं। सहज–योग को समझने के लिए आपको एक विशाल ह्रदय की जरूरत होती है। यह आप सब के अंदर घटित हो गया है। आपकी गहनता देखकर दूसरे लोग सहज–योग में आयेंगे। यह वातावरण का भेदन करेगा। यह अंतिम निर्णय है, या तो आपकी रक्षा होगी या आप नष्ट हो जायेंगे।”
21 मार्च को श्री माताजी तुर्किस्तान (Turkey) में ईस्टर–पूजा हेतु पधारीं। पूजा से पहिले ‘सूफी–नृत्य–संध्या‘ ने दर्शाया कैसे अपने अंतर्जात शांति को प्राप्त किया जाय। पहिले परमात्मा की ओर उन्मुख होना, उसके बाद उनका सानिध्य प्राप्त करना, तथा तीसरे, उनके साथ तदाकारिता (ईश्वर मय) प्राप्त करना। और अंत में, असलियत (हकीकत) की स्थिति, इंद्रियातीत अनुभव होना, कुछ देखने का नहीं, बल्कि इसके बजाय कुछ बन जाना…. परमानन्द में विभोरता का प्राचीन अनुभव होना।
श्रीमाताजीनेसमझायाकिसहीमानोंमेंसूफीकाअर्थहै, जो साफ़ है। अपने पावित्र्य में सूफ़ी संतों ने केवल ईश्वरी कृपा, प्रेम और शान्ति देखी और कुछ भी नहीं।
23 मार्च को ईसा का पुनर्जन्म उत्सव मनाया गया। श्री माताजी ने जाहिर किया कि इसी उदाहरण की तरह योगियों का भी पुनर्जन्म हुआ, जहाँ वे ईश्वरीय प्रेम के नवजीवन में उन्नत हुए। “शुद्धता (पावित्र्य) इसका संदेश है और जब आपके अन्दर यह पवित्रता आ गई, आप दूसरों को प्रेम करोगे। जैसे मैं तुम्हें प्यार करती हूं, आप सभी को प्यार करेंगे।“
ईस्टर–एग (ईस्टर पर भेंट दिया गया अंडा) आंतरिक–परिवर्तन का प्रतीक है और जब वह पुनर्जीवन प्राप्त हुआ, तो (मानवता के) छह शत्रु काम, क्रोध, मोह, अहंकार (मद), मत्सर (द्वेष) और लोभ पर विजय की जा सकती है।
औरइसतरहसेमाँनेप्यारसेटर्की (तुर्किस्तान) के साधकों को आत्म–साक्षात्कार प्रदान किया, टर्की के ट्यूलिप्स (फूलों) को पुनर्जीवन प्रदान किया।
औरउन्होंनेतुर्किस्तानमेंआत्म–साक्षात्कार की सौरभ को देश–भर में फैलाया।
तीसवांसहस्रारदिवससमारोह 5 मई को कबेला में प्रारम्भ हुआ। श्री माताजी अति प्रसन्न थीं कि 30 वर्षों में इतने सारे सहज योगी उनके क्रीड़ा–क्षेत्र (क्रीड़ा–प्रशाल) में प्रवेश कर चुके थे और इस सहस्रार की अनगिनत आशीषों का आनंद प्राप्त किया, “यह आपको आनंद प्रदान करता है, शांति प्रदान करता है, योग्यता (सामर्थ्य) प्रदान करता है और इतनी सारी चीज़ें देता है कि आप उन्हें गिन भी नहीं सकते और वहीं से लोगों को सम्पूर्ण ज्ञान–विज्ञान के बारे में और सभी महान अन्वेषणों की जानकारी मिलती है… इससे आप विनम्र हो जाते हैं… और आपको दूसरों को आत्म–साक्षात्कार देना चाहिये, अन्यथा आप अपने को पूर्ण नहीं महसूस करेंगे।“
औरएकहज़ारपंखुड़ीवालेकमलने (सहस्रार ने) मानव–जाति को अपने में समा लिया था।
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अध्याय – 69
12 मई को श्री माताजी लॉस एंजेलेस पधारीं। उनके बच्चे अपना प्यार अपने अन्दर नहीं रख पाए और श्री माताजी से अमेरिका में अपना निवास बनाने की प्रार्थना की। श्री माताजी मुस्कराईं, “यदि तुम ऐसा सोचते हो कि ऐसा करने से अमेरिका में सहजयोग की सहायता होगी, मैं यहाँ निवास करने में बहुत प्रसन्न होऊंगी।“
केवलइतनाहीनहीं, शीघ्र ही एक सुयोग्य मकान की तलाश शुरु हुई। बच्चों ने माँ को सुन्दर घरों के चित्र दिखाए और उन सभी चित्रों में से एक मकान से माँ ने चैतन्य–लहरियाँ महसूस कीं, कलबासास (Calbasas) में स्थित मकान से, “कलबासास का अर्थ है जहां काली रहती हैं।“
मकानकीखोजकेतुरंतबादकलबासासकेमकानकीआन्तरिकसज्जाशुरूहोगई।सुबहकीचायपरश्रीमाताजीकाचित्तअखबारकेकोनेमेंएकछोटेविज्ञापनसेनिःसृतहोतीहुईचैतन्य–लहरियों पर अटक गया, जो एक फर्नीचर की तरलता (ऋण भुगतान करने) हेतु बिक्री पर था। यह ‘ऋतम्भरा प्रज्ञा‘ थी… यह फर्नीचर ठीक उसी प्रकार का था जिस स्टाइल का फर्नीचर प्रतिष्ठान के लिए श्री माताजी ने चुना था। महोगनी की लकड़ी पर हाथों से की गई नक्काशी, संगमरमर की पच्चीकारी से युक्त टॉप्स और पीतल का महत्वपूर्ण काम। इसके अलावा, (यह सब) 70% कम कीमत पर। वेयर हाउस का मालिक इतना खुश था कि उसने 10% अतिरिक्त कम करके (Extra 10% off) दिया। उसे अपना आत्म–साक्षात्कार मिला और वह आने वाले सप्ताह में विल्टन–थियेटर के सहज–जन–कार्यक्रम में अपने परिवार को आत्म–साक्षात्कार हेतु लाया।
उसनेश्रीमाताजीकेफोटोग्राफकेमहत्वकेबारेमेंपताकिया।
श्रीमाताजीनेजाहिरकिया, “आपको कुछ आधार चाहिए, इसलिए लोग फोटोग्राफ का उपयोग करते हैं। यदि तुम्हें इसकी जरूरत नहीं लगती है, ठीक है, किन्तु आपको मालूम हो जायेगा कि आप को उसकी आवश्यकता होगी।“
एकदूसरेसाधकनेपुछा, “क्या नकारात्मक प्रवृत्तियों पर कार्य करने की पहले जरूरत नहीं है और तब कुण्डलिनी–जाग्रति दी जाए?”
श्रीमाताजीनेउत्तरदिया,”सहज योग में कोई जरूरत नहीं कि इन्हें (नकारात्मकताओं को) हल किया जाय। नकारात्मक–शक्तियां कुण्डलिनी के प्रकाश से भाग जाती हैं।“
श्रीमाताजीबच्चोंकेसहज–योग प्रसार के प्रयत्नों से प्रसन्न थीं और उन्हें अपनी नातिन अनन्या के जन्म–दिवस पर आमंत्रित किया। बर्कले से उनके बच्चों ने जन्म दिवस की शुभकामनाएं भेजीं और बर्कले को आशीर्वाद प्रदान करने की इच्छा प्रकट की।
10 वर्ष के एक इकलौते पुत्र ने श्री माताजी के पोस्टर्स बर्कले में देखे और अपनी मां से 5 जून को जूलिया मोरगन हॉल में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित होने का अनुरोध किया, माँ नहीं जा सकी, किंतु यह बालक कार्यक्रम में आया। जब उसने श्री माताजी को देखा तो बोला, “मां तो भगवान हैं।” (अंततः उस बच्चे की माँ को आत्म–साक्षात्कार उत्तर–कार्यक्रम (follow up Program) में मिला।)
दर्शकोंमेंसेएकमहिला, जिसने श्री माताजी का चेहरा website पर देखा था, उसने एक प्रेरणास्पद कविता रची। श्री माताजी उसके प्यार से बहुत प्रभावित हुईं और बोलीं, “बर्कले से एक महान् शक्ति प्रकट होगी, क्योंकि बहुत से विद्यार्थी यहाँ से सहज–योग में आए हैं, जो विश्व को परिवर्तित करेंगे।“
भारीबारिशकेबीचवैन्कोवरकार्यक्रम 11 जून को मैसी–सभागार में आयोजित हुआ। तूफान और बारिश के बावजूद साधक कार्यक्रम में आए। वैन्कोवर के सिम्फनी आर्केस्ट्रा से संगीतकारों ने श्री माताजी का स्वागत अपने प्रिय गीत स्कुबर्ट (Schubert) से किया। श्री माताजी बहुत प्रसन्न हुईं और कार्यक्रम के बाद शहर को चैतन्य प्रदान करने हेतु लंबी यात्रा (long drive) पर गईं।
अगलेन्यूयॉर्ककार्यक्रम 16 जून को श्री माताजी ने स्वयं श्रुति–वाक्य (Text) लिखा, “सबसे अधिक आश्चर्य–चकित करने वाली घटना न्युयॉर्क में होने जा रही है।“
औरयहघटनाघटी!!!
चैतन्यलहरियोंकाप्रवाहइतनासशक्तथाजैसापूजामेंहोताहै।कार्यक्रमकेबादश्रीमाताजीथोड़ीदेरज्यादारुकीं– साधकों पर कार्य करने के लिए। इस भवन की दूसरी मंजिल पर एक स्वागत–समारोह का प्रबन्ध किया गया था, जहां एक कांग्रेस–मेन ने श्री माताजी को उनके महान कार्य और व्यक्तित्व को मान्यता प्रदान करते हुए, यू.एस.ए. के कांग्रेस के पुराने दस्तावेजों के आधिकारिक–संग्रह की एक प्रतिलिपि भेंट की।
19 जून श्री माताजी एक मेडिकल–सभा के लिए वॉशिंगटन के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ NIH (राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान) के लिए रवाना हुईं। श्री माताजी ने बताया, “आपको स्वीकार करना होगा कि आत्मा का अस्तित्व है और सहज–योग निश्चय ही कैंसर का इलाज कर सकता है और इसने इलाज किया है।“
अगलीशामकोयूनिवर्सिटीऑफमैरीलैंड (मैरीलैंड विश्वविद्यालय) में एक और कार्यक्रम रखा गया, किंतु इस कार्यक्रम की अल्प–उपस्थिति, पूर्व–वर्ती सहज–योग कार्यक्रम के प्रतिकूल थी, जहाँ पूर्व–संध्या को साढ़े पांच सौ दृढ़–संकल्पी साधकों ने अपना आत्म–साक्षात्कार प्राप्त किया था।
श्रीमाताजीनेटिप्पणीकी, “आप देखिए, लोग कैसे हैं। कल का सम्मेलन (मंत्रणा हेतु) स्वास्थ्य संबंधी था, बहुत सारे लोगों ने रुचि ली, जबकि आज, हम आत्मा के बारे में बात कर रहे हैं, सभा हॉल खाली है, किन्तु आपको मालूम होना चाहिये कि हरेक चीज आत्मा से आती है, इसलिए यदि आपके जीवन में आत्मा है, आपको स्वास्थ्य–लाभ होगा, सभी भौतिक–आवश्यकताओं को समाधान (हल) मिलेगा। सभी आशीर्वाद मिल जायेंगे, किंतु इसके उलट कुछ भी नहीं!”
न्यूयॉर्करवानाहोनेसेपहलेश्रीमाताजीनेलिंकन–मेमोरियल (अब्राहम लिंकन स्मारक) को आशीर्वादित किया। श्री माताजी ने अब्राहम–लिंकन के सभी दस्तावेजों को सराहते हुए लम्बा समय बिताया और कहा कि उन्होंने वैश्विक–एकता के मूल सिद्धांत (सहज योग में स्पष्ट प्रकटित) के प्रयोग के लिए इतना कड़ा प्रयत्न किया।
जैसेहीश्रीमाताजीभवनकेबाहरआईं, उन्होंने प्राकृतिक–दृश्य की तारीफ की और पानी के किनारे भ्रमण किया। किसी ने पास वाले स्टॉल से उन्हें अमेरिकी–झंडा भेंट किया। अमेरिकन सहजी बच्चे इस जादुई क्षण को कैमरे की गिरफ्त में लेने को आतुर दिखे, जहां श्री माताजी उनके राष्ट्रीय झंडे को पकड़े हुए थीं और उन्होंने फोटोग्राफ ले लिया। परम चैतन्य और भी ज्यादा जोश से भरा लगा और श्री माताजी के फोटोग्राफ की पृष्ठभूमि में लिंकन–स्मारक और जॉर्ज वाशिंगटन–स्मारक दोनों ही दिखाई दिए। वास्तव में, श्री माताजी ने अमेरिका को आपने हाथों से थाम लिया था।
22 जून को मेनहेट्टन के वारविक होटल में अपार हर्ष की दैवीय प्रेरणामयी एक संध्या को सामुदायिक नेता, वकील, डॉक्टर्स और प्रकाशक–गणों का श्री माताजी से परिचय हुआ। इस संध्या ने नई युग–चेतना के अन्तस्थ में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन को देखा।
अपनेबच्चोंकेलिएउपहारऔरपेंटिंग्सकीखरीदारीकेबादश्रीमाताजी, श्री आदिशक्ति पूजा के लिए काना जोहरी के लिए रवाना हुईं। तथापि, अपने सबसे उत्तम प्रयत्नों के बावजूद, बच्चे श्री माताजी के रुकने हेतु हैंगर की बाजू में निवास हेतु प्रबंध करने में असमर्थ रहे। उन्होंने श्री माताजी से प्रार्थना की और परम–चैतन्य उनके बचाव हेतु आए, पास ही स्थित एक विला के मालिक ने जो छुट्टियों पर जा रहे थे, सहज ही इसे प्रस्तुत कर दिया। श्री माताजी के आगमन पर सुन्दर गुलाबों की कतारों से वे खुश हो गईं और विला के प्यारे बगीचे में, वैवाहिक–जोड़ों की जोड़ियां तैयार करने में (matching the pairs) सुबह व्यतीत की।
पूजाप्रवचनमेंउन्होंनेसमझायाकिश्रीआदि–शक्ति की विशेषता सभी अनुचित विचारों वालों को मुक्ति प्रदान करना है। अमेरिका में जो भी अनुचित ग्रहण किया गया था, उससे उसे मुक्त होना था। श्री गृहलक्ष्मी सिद्धान्त की स्थापना भावनात्मक–बुद्धिमानी से होनी थी, “आप समझते हैं कि यदि आप वास्तव में किसी को प्यार करते हैं, तब आपको हर प्रकार की समस्याओं से गुजरना होगा। आपको बहुत–सी व्यर्थ की बातों को सहन करना होगा आपको दिखाना होगा…. आपको दिखाना होगा कैसे आप प्यार से समस्या पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।“
पूजानेअमेरिकाकोसभीअनुचितकृत्यों (अन्याय पूर्ण) और दोषों से मुक्त किया, जो उसकी सुन्दर आत्मा पर छाए हुए थे।
दूसरेदिन 90 कलाकारों की एक टीम जिसमें 20 देशों से आए हुए संगीतकार, अभिनेता, गायक, नर्तक और समूह–गान के दल ने एक अचंभित करने वाली प्रस्तुति ‘मैजिक–फ्लूट‘ (जादुई–बाँसुरी) से अमेरिकी–आत्मा को प्रेरित किया। श्री माताजी ने अनंत–मूल्यों से युक्त रंगमंच की बड़े उत्साह से प्रशंसा की और उन्हें विभिन्न उपहारों से आशीर्वादित किया।
3 जुलाई को श्री अमेरिकेश्वरी ने नॉर्थ–अमेरिका के पहले सहज–विवाह उत्सव को आशीर्वाद दिया। 26 नव–विवाहित जोड़ों की आँखों में अपने देश (अमेरिका) को स्वतंत्र (मुक्त) करने का निश्चय चमक रहा था, जैसे ही उन्होंने श्री माताजी के चरण–कमलों में नमन किया।
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अध्याय – 70
कबेला में गुरु पूजा के लिए वापस आने पर श्री माताजी को पता चला कि कुछ शादियां सही मार्ग से भटक गई थीं, क्योंकि नव–विवाहित दम्पतियों ने दृढ़ता से कहा कि उनमें आपस में भाई–बहिन का एहसास पैदा हो गया था। श्री माताजी ने बताया कि ये हास्यास्पद विचार उनके मस्तिष्क में आ गए थे, क्योंकि उनकी आज्ञा (चक्र) अवरुद्ध थे। बिना आत्मा के प्रकाश के उन्होंने विवेक–शक्ति खो दी थी, “शादियां तभी असफल होती हैं, जब अहंकार का खेल होता है।“
श्रीमाताजीनेउनकीआज्ञाकोसाफकियाऔरवेशामकेसंगीत–कार्यक्रम में नव–विवाहित जोड़ों की तरह लजाते हुए लौटे!
पूजाकेपूर्वयोगियोंनेप्रतीकात्मकरूपसे 10 आदि–गुरुओं की तरह वेश–भूषा धारण करके सभी गुरुओं की गुरु आदिशक्ति श्री माताजी को सादर पुष्पार्पण किया। श्री माताजी ने आदि–गुरुओं से प्रतिस्पर्धा करने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित किया, क्योंकि वे लोग झगड़ों, वैमनस्य और अनुचित बातों से ऊपर उठ चुके थे।
पूजाकेदौरानउन्होंनेबच्चोंकोअपनेअन्दरखोजनेकाइशाराकिया, “वाह्य में कुछ भी नहीं है,….. परमात्मा को जानने के लिए आप पहले स्वयं को जानो, स्वयं को जाने बिना आप परमात्मा को नहीं जान सकते हो।”
किसीभीवस्तुकीअपेक्षासेबेहतरबच्चोंकोअपनेस्वयं (आत्मा) से जुड़ना होगा, ईश्वर से योग होने के पूर्व। सौभाग्य से श्री आदिशक्ति स्वयं अवतरित हुईं हैं, उनकी (साधकों की) कुण्डलिनियों को शक्ति देने को, ताकि ईश्वर से योग आसान बन जाय। पूजा का अनुभव इतना सशक्त अनुभव हुआ, जैसे 40 वॉट के बल्ब को 1000 वॉट शक्ति प्रदान कर दी गई हो। यह पर्याप्त से भी ज्यादा था, उन अस्त–व्यस्तताओं को दूर करने के लिए, जो कुण्डलिनी के पथ को बाधित करने में और योग प्राप्त करने में रोड़ा बन रहीं थीं। बहरहाल, श्री कृष्ण की बंसी के बिना उनकी आत्मा कैसे, श्री आदिशक्ति की लीला (खेल) का आनंद ले सकती थी।
20 अगस्त को श्री कृष्ण की बांसुरी ने उन्हें अपनी प्यारी माँ की मौलिक–मुस्कान (स्मिता) से जोड़ दिया।
किन्तुइसयोगकोपोषितभीहोनाथा।श्रीगणेशपूजापर, प्रिय मां ने रहस्योद्घाटन करते हुए कहा कि इस योग को सँभाले रखने हेतु अबोधिता का गुण आवश्यक था। “अबोधिता ही आत्मा है, आत्मा ही अबोधिता है। इसकी पारदर्शिता इतनी आनंद–दायिनी है।”
उनकेबच्चोंकीअबोधिताहीवहगुणथा, जिसे पूज्य श्री माताजी ने सर्वोपरि सावधानीपूर्वक पोषित किया। बच्चों की पारदर्शिता ने माँ के प्यार को प्रवेश करने और संरक्षण प्रदान करने दिया। यही गुण माँ की इच्छा को परमात्मा के साम्राज्य को धरती पर पारगमन (प्रवेश) कराने में सहायक रहा।
यद्यपि, इस पारदर्शिता ने श्री माताजी को नव–विवाहित जोड़ों के शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक एकीकरण को शुद्ध करने और उन्हें सहज–योग के प्रसार में माँ के उपकरणों के रूप में परिवर्तित करने की स्वीकार्यता प्रदान की।
8 अक्टूबर को पूजा प्रवचन में श्री माताजी ने बताया कि बायीं ओर का सबसे बड़ा आशीर्वाद ‘श्रद्धा‘ थी। “अतः उस विश्वास (श्रद्धा) को विकसित करें और विश्वास आपको ऐसा आनन्द व खुशी देता है, आप वचन–बद्ध हो जाते हैं, आप पूर्णतया रम जाते हैं और आप इससे बाहर आना नहीं चाहते हैं।”
सभीचमत्कारिकफोटोग्राफऔरस्वास्थ्यकेबावजूद ‘श्रद्धा‘ की परम आवश्यकता थी। माँ के बच्चों ने उत्साहपूर्वक प्रार्थना की, “हे माँ! हमारी श्रद्धा को गहनता प्रदान करो।“
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अध्याय – 71
दिवालीपूजासेपहलेश्रीमाताजीनेएकमहीनाआराम–युक्त बिताया, उनके कलबासास निवास को सुसज्जित करने हेतु। सुप्रसिद्ध अमेरिकी कलाकारों ने अपने कला को प्रदर्शित किया और श्री महासरस्वती ने उन्हें उदारतापूर्वक प्रोत्साहित किया। श्री माताजी ने घर के लिए मॉडर्न पेंटिंग्स नहीं चुनीं, क्योंकि ये पेंटिंग्स उन्हें वस्तुतः बौद्धिक स्तर की लगीं।
श्रीमाताजीकाचित्तअमेरिकाकेराष्ट्रपति–चुनाव की ओर आकृष्ट हुआ। श्री माँ ने चिन्तन किया कि देवी का एक नाम ‘भ्रांति‘ था, जिसका अर्थ भ्रम और संशय की सृजन–कर्त्री, और वे संशय की स्थिति का निर्माण कर रहीं थीं, ताकि अपेक्षित परिणाम लाए जा सकें।
इसीबीचसमाचारमिलाकिसेन–फ्राँसिस्को की एक योगिनी की कैंसर से मौत हो गई थी। श्री माताजी भावुक हो गईं, “मैं तुम्हें नहीं बताने वाली किन्तु उसके बारे में कुछ गलती हुई होगी। कुछ चीजें उसके साथ गलत हुई होंगी, क्योंकि सामान्यतया, सहज–योग ध्यान से सहायता मिलनी चाहिये। समस्या हल होनी चाहिये। सहज योग से बहुतों की समस्याएँ हल हुईं। यहाँ तक कि कुछ लोग जो बीमार थे, एक बार कबेला आए, मैं वहाँ नहीं थी, किन्तु वे ठीक हो गए।“
यहनतीजानिकलाकिमृतयोगिनीकोड्रग्स (नशा) की आदत थी। यद्यपि वह सहज–योग में बहुत लम्बे समय तक रही थी, किन्तु वह बमुश्किल ध्यान करती थी या सामूहिक ध्यान में उपस्थित होती थी।
उन्होंनेयोगियोंकाध्यानाकर्षणकरतेहुएकहा, योगियों को सामूहिक ध्यान करना चाहिये और ध्यान की गहराई में उन्नत होना चाहिये। श्री माताजी के फोटोग्राफ के सामने बैठना–मात्र पर्याप्त नहीं था और चैतन्य लेना भी पर्याप्त नहीं था। वे चैतन्य लहरियां तो श्री माताजी की थीं, किन्तु योगियों की चैतन्य–लहरियों के बारे में क्या? अंतर्वलोकन करना महत्वपूर्ण था। यदि निर्विचारिता की स्थिति फोटोग्राफ के बिना भी बनी रहती, क्या उनकी स्थिति में उत्थान था? क्या, उत्थान में कुछ सुधार हुआ था?
यहसबकोजाग्रतकरनेकाआव्हानथा।बच्चेरोजानाध्यानकरनेलगेऔरआत्मावलोकनकरनेलगे।श्रीमाताजीप्रसन्नहुईंऔरकानाजोहरीकीभूमिअपनेबच्चोंकोप्रदानकरतीहुईंश्रीमहालक्ष्मीकेआशीषोंकीवर्षाकरनेलगीं, “प्रारम्भ में मैंने इसे नहीं प्रदान किया, क्योंकि ‘सामाजिक–काम‘ Social Work के नाम लोग शोषण करना चाहते हैं। यही कारण है कि मैंने इतने दिनों तक इन्तजार किया और हालांकि उनमें से हुए दान पहले ही जैसे गणपतिपुले, अस्पताल और धर्मशाला स्कूल, के लिए दिए हैं, किन्तु अब मैं और भी ज़्यादा देना चाहती हूँ।“
श्रीमाताजीकीअसीमउदारतानेअमेरिकाकाश्रीलक्ष्मी–सिद्धान्त खोल दिया। उन्होंने अपने बच्चों से सामाजिक कार्य हाथ में लेने का आव्हान किया, “बहुत सी चीजें की जानी हैं और इतनी सारी समस्याएं हल की जानी हैं, जिसे मैं लगातार कर रही हूँ। किन्तु तुम्हें अपनी और अपने देशों की समस्याएँ हल करने का प्रयत्न करना चाहिये।“
बच्चोंनेपूजाकेचैतन्यकोअवशोषितकिया।श्रीमाताजीप्रसन्नहुईंऔरबच्चोंकोउनकेनातीअनंतकेबच्चेकेजन्म–दिवस उत्सव पर आमंत्रित किया। अति स्नेही माँ ने अपने बच्चों के लिए वैभवशाली भोज और कुछ सुन्दर उपहारों की उदारतापूर्वक बिसात लगा दी। नव–जात बच्चों के लिए कैंडी और मेहमानों के लिए मैजिक शो (जादुई–करिश्मे) की व्यवस्था की गई! श्री माताजी का चेहरा, मुख–मंडल एक बच्चे की तरह आश्चर्य से भर उठा, जैसे ही एक योगी ने जादुई दांव–पेंच की प्रस्तुति दी। मनोरंजन (क्रीड़ा) में दायित्व का निर्वहन उनके महामाया स्वरूप का रहस्य था, जैसे ही वे अपने बच्चों की ओर मुस्कराईं, उन्हें काले लोगों के बीच कार्य करने की जवाबदारी का स्मरण कराते हुए, वे बोलीं, “तुम्हें उनके बीच इतने सुन्दर, इतने सौम्य लोग मिलेंगे। अतः तुम्हें उनसे बात करनी चाहिए और उनका ख्याल रखना चाहिये।“
मैजिकशो (जादू के करतब) और नृत्य के बीच श्री माताजी ने मनोरंजन (खेल–खेल) में अमेरिका में सहज–योग के प्रसार हेतु विस्तार–पूर्वक योजनाओं की रेखाएं खींच दी। ऐसा न हो कि इस मनोरंजन और उल्लास का वाह्य आवरण उनके आन्तरिक दृश्य को ग्रहण लगा दे, श्री माताजी ने अपने वाक्यों को टेप–रिकार्ड करके और बच्चों के बीच संचारित करने को कहा।
दिसंबर 8 को श्री माताजी दिल्ली को रवाना हो गईं। रास्ते में उन्होंने हाँगकाँग को आशीर्वादित किया। जैसा कि ताओ (Tao) चीनी लोगों द्वारा बेहतर समझा गया, श्री माताजी ने यांग्त्सी नदी की पुरातन चीनी पेंटिंग जिस पर लाओत्से ने लिखा था, उस पेंटिंग पर उनका मुस्कराता हुआ मुख–मंडल सुपर–इम्पोस्ड किया गया, उसे (पोस्टर को) (approve) अप्रूव कर दिया और भी आगे 4 चीनी अक्षरों की कैलीग्राफी में समझाया गया था कि ताओ ने सहज–सिद्धान्त, सहजता का अनुसरण किया था, जिसने चीनी साधकों को सहज ही श्री माताजी को मान्यता देने हेतु सम्भव (योग्य) बनाया।
श्रीमाताजीनेउनकेप्रतिबहुतअपनत्व (प्यार) का अहसास किया और अपने हृदय से उन्हें आशीर्वादित किया।
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अध्याय – 72
दिसम्बरमध्यमेंश्रीमाताजीदिल्लीवापसपहुंचीं।वेभ्रष्टाचारकोलेकरबहुतचिंतितथीं, जो साधकों के नैतिक ताने–बाने को नष्ट कर रहा था। “भारत इतना ज्यादा भ्रष्ट हो गया है कि मुझे विश्वास नहीं हो सकता! मैं यहाँ 35 वर्ष पूर्व थी, हमने कभी भ्रष्टाचार का नाम भी नहीं सुना था। अब, वे इतने भ्रष्ट हो गए हैं, वही सहज–योग को उत्साह–हीन कर रहा है… अब यह लालच इतना बढ़ गया है कि पूरा देश नष्ट हो रहा है। हम कुछ उपलब्ध नहीं कर पाते, क्योंकि हरेक जगह लालच का साम्राज्य है, किन्तु यदि आप अपने देश को प्यार करते हैं, आप ऐसा काम नहीं करेंगे, किन्तु वह देश प्रेम अब दिखता नहीं है।“
श्रीमाताजीनेउनकेपतिकोभ्रष्टाचारकोसमाप्तकरनेहेतु, एक पुस्तक लिखने की सलाह दी। वे बहुत प्रसन्न थीं, जब पुस्तक अंततः पूर्ण हो गई। 17 दिसम्बर को पुस्तक का विमोचन करते हुए श्री माताजी ने अपनी चिंता प्रकट की, “एक माँ की हैसियत से मैं महसूस करती हूँ कि यदि आप वास्तव में अपनी मातृभूमि को प्यार करते हैं– ‘देश–भक्ति‘, वही एक हल इस पूरी समस्या का है। यदि आप देशभक्त हैं, आप भ्रष्ट नहीं हो सकते।“
23 दिसम्बर को गणपतिपुले में बच्चों की प्यारी माँ का स्वागत गर्मजोशी से वैश्विक–सहज–योग–परिवार ने किया, किन्तु इतने उत्साह–पूर्वक स्वागत के बीच श्री माताजी ने महसूस किया कि चैतन्य–लहरियां ठीक नहीं थीं। एक असंतोषी–समूह, जिसने सहज–योग छोड़ दिया था, ने श्री माताजी के विरोध में बेईमानी से एक कोर्ट–केस दायर किया और उसमें settling the case समझौते के लिए श्री माताजी को कोर्ट में उपस्थित होना ज़रूरी था। श्री माताजी ने बच्चों को दिलासा देते हुए कहा कि समस्याएँ केवल चैतन्य से हल होने के लिए आती हैं और इसका अनुभव आवश्यक था कि सहज–योग में गहरे उतरें, सबसे महत्वपूर्ण चीज थी आत्म–साक्षात्कार, और कुण्डलिनी हर समस्या को हल करेगी।
ज्योंहि उन्होंने नाटक को देखना शुरू किया (इसके साक्ष्य हुए) भूरे बादल हट गए और आकाश को एक सप्ताह भर के लिए उत्सव हेतु खोल दिया (स्वच्छ कर दिया)। दिल्ली से आए सूफ़ी संगीतकार ने उनकी रास–लीला के दोहे रचे। रास–लीला ने गणपतिपुले के किनारों पर उनके बच्चों को बेथलेहेम की साधारण गोशाला की सैर कराई, जहाँ श्री माताजी ने उनके पुत्र के जन्म के सरल संदेश को प्रकट किया, ‘खुद को जानो‘। ‘know thyself’.
पूजाप्रवचनमेंदिखायागया, “कैसे, ‘खुद को जानो‘। पहले कुण्डलिनी की जागृति को कार्यान्वित करें और तब उसमें स्थापित हों…. अपने अन्दर बने रहें।”
श्रीमाताजीनेअनुभवकियाकिउनकास्वप्न वैश्विक–साक्षात्कार का शायद एक जीवन–काल के लिए ज्यादा ही था। किंतु, तब उन्होंने प्रतिक्रिया की, यदि ईसा के केवल 12 शिष्य, ईसा के संदेश को विश्व–भर में फैला सकते थे, तब कितने और हजार सहज–योगी इसे प्राप्त कर सकते थे !!!
नव–वर्ष पूजा में सहजी बच्चों ने सौगंध ली, “अब हम नए तरीके से सहज–योग शुरू करने जा रहे हैं, एक विशाल तरीके से। एक ज्यादा गतिदायक (प्रगतिशील) तरीके से।“
श्रीआदि–शक्ति के आशीर्वादों के बिना, यह कैसे होगा!!!
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अध्याय – 73
संक्रान्तिपर्वकेआतेहीधूपनेनिर्मलखुशबूकोदृढ़ताप्रदानकी।श्रीमाताजीबगीचेमेंधूप–सेवन करने बैठीं और प्रकृति को अपने असंख्य सुन्दर फूलों से उनकी पूजा करने की आज्ञा प्रदान की। श्री माताजी के आगमन से बंजर पहाड़ी भी गुनगुनाती हरियाली से सजीव हो उठी। उनका ध्यान बगीचे के एक खाली कोने (empty patch) की ओर गया जो प्रतिष्ठान–रोड के किनारे स्थित था और एक सामान्य विचार उनके चित्त में श्री अन्नपूर्णा के आशीर्वाद को प्रसारित करने हेतु, वहाँ एक रेस्तराँ खोलने हेतु आया। श्री माताजी ने इसकी योजना की रूप रेखा खींची, किन्तु यह क्षेत्र एक वर्गीकृत ‘ग्रीन–जोन‘ में स्थित था, अतः योजना ताक पर रख दी गई।
भारतकेगणतंत्र–दिवस के अवसर पर युवा–शक्ति ने श्री माताजी का ध्यान देश को चारों ओर से घेरा डाले समस्याओं पर डाला। उन्होंने बच्चों को अपना चित्त समस्याओं पर डालने को कहा और उनका सामूहिक चित्त समस्याओं को दूर भगा देगा। श्री माताजी ने उन्हें करुणा, धैर्य और समर्पण को व्यवहार में लाने के लिए प्रवृत्त किया। सभी सम्प्रदायों के लोगों को सहज–योग में लाने के लिए कहा, “लोगों के ह्रदयों को जीतने के लिए प्यार की जगह वास्तविकता, साक्ष्य और भाषण नहीं ले सकते हैं।“
धीरे–धीरे समस्याओं के धागे सुलझे, “भारत के स्वतंत्रता–संघर्ष में पत्रकारिता ने बहुत अहम् भूमिका निबाही, किन्तु अब यह पीली–पत्रकारिता के हाथों का खिलौना हो गई। हमें अपनी प्रेस खुद शुरू करना चाहिये।“
23 फरवरी को महाशिवरात्रि पूजा का महोत्सव पुणे के विशालकाय स्पोर्ट्स स्टेडियम में हुआ। स्टेडियम के ट्रैक (दौड़ने का मार्ग) ने देश से आए सभी सहज–योग केन्द्रों को अपनी भक्ति का प्रदर्शन उनके अपने लोक–नृत्यों के अप्रतिम मार्च–पास्ट के द्वारा करने का सुअवसर प्रदान किया। जैसे ही कर्नाटक के संगीतकारों द्वारा पखावज–वादन ने श्री माताजी को भगवान शिव द्वारा सृजित सुन्दर लय–ताल का स्मरण कराया (वे बोलीं), “हर चीज़ में ताल या लयबद्धता है और वे लय–ताल के ईश्वर हैं, जो प्रकृति में लय–ताल कायम रखते हैं।“
पूजाकेदौरानउनकेबच्चोंकेदिलोंकीताल–बद्धता ने श्री माँ के ह्रदय को स्पर्श कर लिया, “मैं जानती हूँ आप सब मुझे बहुत प्यार करते हैं, किन्तु आपको आपस में प्यार करना चाहिये, आपका हृदय प्रेममय होना चाहिये और दूसरों के प्रेम में समाधानी रहें….. ऐसा नहीं होना चाहिये कि हर समय आप खुद की चिंता में रहें, किंतु तुम्हें दूसरों की भी फ्रिक्र होना चाहिये; दुनिया में जो हो रहा है, वह प्यार है। यह प्यार सहज है और जब यह कार्यान्वित होता है, यह चमत्कार करता है। भारत में मैंने 16 प्रोजेक्ट्स (परियोजनाएं) शुरू की हैं, अब वह सब किया गया है, केवल इस कारण कि मैं खुद को नहीं शामिल कर सकती हूँ।“
उड़ीसा के सहज–योगियों ने अपने राज्य में बाढ़ की भरमार से संरक्षण हेतु श्री माताजी से प्रार्थना की। श्री माताजी उनकी दुर्दशा से बहुत चिंतातुर थीं, “यह राज्य सबसे ज्यादा संकटग्रस्त राज्य है। हमें पता करना चाहिये कि यह राज्य क्यों इतना ज्यादा संकटग्रस्त है? यहाँ क्या समस्या है? और मैं तुम्हें बताती हूँ यह एक बहुत महान प्रदेश है, मैंने वहाँ का भ्रमण किया है। वहाँ मुख्य चीज़ की कमी है– अभी भी लोगों में आत्म–विश्वास नहीं है। यदि वे लोग अपने अन्दर सहज–योग विकसित कर लें, कोई बाढ़ या सैलाब नहीं आ सकती, कोई समस्याएँ नहीं आ सकती हैं। यही बात तुम्हारे देश में और हरेक व्यक्ति के देश में घटित हो सकती है।“
भारतीय कौंसिल ऑफ मैनेजमेंट एक्जेक्यूटिव्स ICME, मुंबई ने श्री माताजी को ‘मानव–रत्न‘ उपाधि प्रदान की, साथ ही ‘माता श्री‘ नामक लेखपत्र (Title) मानवता के उद्धार और शिक्षा हेतु उनके प्रमुख कार्यों हेतु प्रदान किया गया।
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अध्याय – 74
श्रीमाताजीकाअठहत्तरवांजन्मदिवसनिर्मल–धाम में बड़े जोश के साथ मनाया गया। उनका वात्सल्य बरस पड़ा, “मैं कहूंगी कि 78th जन्म–दिवस पर मैं ठीक वैसी ही हूँ, मैं ज्यादा नहीं बदली हूँ क्योंकि मैं अपनी अंतरात्मा में महसूस करती हूँ कि मुझे लोगों को बताना है कि वे क्या हैं… आप क्या हैं…. यह जानने से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है…. इस जन्म दिवस पर यदि आप मुझे कुछ देना चाहते हैं, तब मुझे आपका अपना आत्म–विश्वास दिखाएँ और आप समस्याओं को हल कर पायेंगे।
औरवहीएकभेंट (उपहार) थी, जिसे बच्चों ने अपने ह्रदय से उन्हें समर्पित किया। श्री माताजी प्रसन्न हुईं, “यह अच्छा है कि आप मेरा जन्म दिवस इतने उत्साह और खुशी के साथ मना रहे हैं। यह सब देखकर अच्छा लगा और मैं चाहती हूँ कि आप सब मेरे अलंकरण बनें। पूरे विश्व में लोग देखें कि तुम मेरे बच्चे हो और यह कि आप लोग इतने महान् मूल्यों और ऐसी महान् समझ–बूझ से सज्जित हो। मैंने वास्तव में तुम्हारे लिए कार्य किया यानि मेरी ज़िन्दगी के हरेक मिनट, हरेक पल मैंने तुम्हारा ही ख्याल किया है। मैं इसे इतने सुंदर तरीके से हल करना चाहती थी कि आप लोग भी असलियत में अच्छे लोग, आदर्श लोग और विशेष लोग (विशेष समझ–बूझ वाले) बनें। ताकि, इस दिन आप महसूस कर पाएँ कि आपका जन्म–दिवस मनाया जा रहा है…… मैं तुम सबको बहुत–बहुत खुशनुमा जन्म–दिवस की शुभकामनाएँ देती हूँ, ताकि आपका एक नया जीवन, नई सूझ–बूझ (सुबुद्धि) और नया व्यक्तित्व हो।“
श्रीमाताजीनेनएजीवन, नई सूझ–बूझ और नए व्यक्तित्व के विश्लेषण को जाहिर किया, “मैंने तुम्हारे ऊपर कभी कोई प्रतिबन्ध नहीं डाला। जो पसंद हो, करो। जिस तरीके से करना चाहते हो उसे कर सकते हो। मैंने तुम्हें पैसों या किसी चीज के लिए कभी परेशान नहीं किया है, किन्तु यह एक परीक्षा–स्थल है, जब आप खड़े हुए हैं। “आप विद्यार्थी हैं, आप ही परीक्षक हैं और आप ही वो हैं जिसे अपने–आपको अपना प्रमाण–पत्र देना है। इतनी सारी चीजें समझते हुए, जिन्हें अब आप लोगों ने समझ लिया है।“
26 मार्च को स्टेडियम साधकों के ज्वार (भीड़) से भर गया। साधकों के प्यार ने उन्हें भाव–विह्वल कर दिया, “मेरे ह्रदय में हलचल हो रही है, आपको इतनी बड़ी संख्या में देखकर वास्तव में मैं अत्यन्त प्रफुल्लित हूँ। कभी मैं सोचती थी, इस शहर के वासी सहज–योग को कैसे स्वीकार करेंगे। किन्तु आज मैं इसे देख रही हूं कि आप सभी ने उसे स्वीकार किया और आत्म–सात किया है।“
50000 साधकों में से प्रत्येक साधक उनके हृदय से मर्म–स्पर्श पा चुका था। साधकों का प्यार एक महासागर के रूप में लबालब हो गया था। माँ का हृदय आनन्द से उछल पड़ा, “दिल्ली के लोग इतनी सीमा तक जाग्रत हो रहे हैं। यह जाग्रति आपकी अपनी संपत्ति है, प्रेम की फुहार आपके दिलों से बरस पड़ी है।“
माँकावात्सल्यअपनेनव–जात बच्चों के संरक्षण हेतु लहरों की तरह आगे बढ़ा, “अब परम चैतन्य सक्रिय हैं और हरेक चीज को हल कर रहे हैं। दुष्ट लोगों पर बार–बार प्रहार होगा और उन्हें मालुम होगा, उनके कार्य समाज के विरोध में हैं।“
गुड़गाँवमेंश्रीमाताजीकेलिएनए–निवास में स्थान परिवर्तन ने नए जन्म, नए समझ–बूझ (सुबुद्धि) और नए व्यक्तित्व को पहचान दी। श्री माताजी के वात्सल्य की ऊष्मा ने नए निवास के हरेक कोने को आभासित कर दिया। चाँदी के सजे हुए दरवाजे, लकड़ी की नक्काशीदार कंगूरे और संगमरमर से सुसज्जित फर्श की जीवंतता चमक उठी। किन्तु उनके हृदय को सबसे प्रिय लगने वाले उनके बच्चों द्वारा भेंट की गई प्यार की सौगात थी। श्री माताजी ने उन सौगातों को विशेष रूप से काँच की बनी मंदिर–नुमा पेटिकाओं में सुरक्षित रखा।
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अध्याय – 75
श्रीमाताजीकीवैवाहिकवर्षगांठकेबादवेयोजनानुसारइस्तांबुल (टर्की) के लिए रवाना होने वाली थीं। तथापि, जैसा कि उनका पासपोर्ट नवीनीकरण के लिए बाकी था, उनका निर्गम (विदेश यात्रा) स्थगित होनी थी। जैसे ही उनके यात्रा के स्थगन की खबर तुर्की के सहज–योगियों तक पहुँची। वे दिल्ली पहुँचे और श्री माताजी के चरण–कमलों में प्रार्थना की, “तुर्किस्तान (टर्की) की वित्तीय–स्थिति बहुत ज्यादा नीचे चली गई है। देश की अर्थ–व्यवस्था पूरी तरह से गिर चुकी है, हम बर्बाद हो गए हैं। कृपया, आप पधारें और हमारे देश को बचाएँ।“
सहजीबच्चोंकीशुद्धइच्छा–शक्ति श्री माताजी को अंदर तक स्पर्श कर गई और इस सम्बन्ध में श्री कल्कि–शक्ति कार्यान्वित हुई। पासपोर्ट नवीनीकरण, जिसे 15 दिन लगने वाले थे, चमत्कारिक रूप से तुरंत दूसरे ही दिन नवीनीकृत हो गया। श्री कल्कि की शक्ति ने इतनी सुन्दरता से कार्य किया, इतने गुप्त तरीके से कि यह चमत्कार प्रतीत हुआ, क्योंकि इसकी कार्य शैली दिख नहीं सकी।
श्रीकल्कि की गुप्त कार्य–पद्धति इस्तांबुल के स्विस होटल में स्पष्ट दिखाई दी, जहाँ श्री माताजी रुकी हुईं थीं। अचानक आतंकवादियों ने होटल पर आक्रमण कर दिया और गोलियाँ उड़ती हुईं उनके कमरे तक आईं। श्री कल्कि ने न केवल माँ के बच्चों को संरक्षित किया, किंतु होटल कर्मचारियों की भी सुरक्षा की। नकारात्मकता से संरक्षण प्रदान करने के एक दिन के अंदर ही, विश्व बैंक ने एक करोड़ डॉलर की मदद टर्की के लिए उद्घोषित की!
जैसेहीबच्चोंनेकृतज्ञतामेंट्यूलिपकेपुष्प–गुच्छ (बुके) श्री माताजी को अर्पित किए, श्री माताजी कनखियों से मुस्कराईं, “अब मैंने विश्व–बैंक से बात नहीं की, मेरा उनसे कुछ लेन–देन नहीं बनता…. हो सकता है, आप जानते हैं, वे आपकी सहायता कर रहे हैं, क्योंकि आप इतनी तकलीफ़ में हो।“
स्विसहोटलमेंश्रीकल्किकीगुप्तकार्य–पद्धति की एक झलक पाने के बाद, बच्चे माया में नहीं पड़े। श्री माताजी को पहचानने पर उन्होंने अपनी आत्मा को जान लिया। इसके अलावा इस अनुभव ने यह विश्वास पक्का कर लिया कि वे ही कर्ता हैं। धीरे–धीरे जैसे–जैसे उनका विश्वास गहन होता गया, भक्ति का आनंद प्रवाहित होने लगा। भक्ति ने उन्हें देखने, जानने और समझने का ज्ञान प्रदान किया, “किंतु इतने सारे देश हैं, उन्होंने हमें ही क्यों मदद की।” अपनी आंखों में एक चमक के साथ उन्होंने हामी भरी, “यही महत्वपूर्ण बिंदु है।“
ईस्टर–पूजा प्रवचन में यह बात आगे (स्पष्ट) समझ में आई, “जब आपकी आज्ञा मुक्त है, आप इतने बड़े स्रोत ईश्वरीय–शक्ति के बन जाते हो कि यह हर चीज़ को हल कर सकता है, लोगों को बदल सकता है, परिवर्तित कर सकता है।“
इसबिन्दुनेउनकीचेतनाकोनिर्मलकरदिया, सबसे आखिर में, श्री कल्कि को भी अपने कार्य के लिए उपकरण की जरूरत थी, किंतु यंत्र (उपकरण) का सामर्थ्य श्री माताजी के साथ तदाकारिता से जुड़ा है, क्योंकि श्री कल्कि कोई नहीं बल्कि श्री माताजी के प्यार की शक्ति है, जो सहजी बच्चों की सामूहिकता के द्वारा प्रकट (भासित) होती है।
सहस्रारपूजा 6 मई को श्री माता जी ने बताया कि अपने यंत्र को उनसे कैसे जोड़े रखना। जब सहस्रार की हजारों पंखुड़ियां चैतन्यित हो गईं, ईश्वरीय प्रेम जो आदिशक्ति की शक्ति थी, यंत्र से प्रवाहित हुई। सहस्रार पर जितना ध्यान (चित्त) रहा, उतनी ही तेजी से यह कार्यान्वित हुई!
“आप प्रेम के बहुत सौम्य सैनिक हो, वही तुम्हें प्रसारित करना है और दूसरों को बताना है, उन्हें वही आनंद दो जो तुम्हारे पास है।”
परमात्माके (परम चैतन्य के) चमत्कारों के साक्ष्य बनने के बावजूद कुछ सिपाही (योगी) पीछे रह गए और अपने पदों में विभाजन का कारण बने। श्री माताजी इस घटना–क्रम से उदास को उठीं। उनके बच्चों ने पूछा, “इतनी उच्चतम स्थित प्राप्त करने के बाद योगीजन कैसे इतने नीचे गिर जाते हैं?”
श्रीमाताजीसेचिन्तनकिया, “क्योंकि उन्हें एहसास ही नहीं हो पाया, कि उन्हें क्या मिला था। जब वे आए, उन्होंने अपने बारे में विचार करना प्रारम्भ किया और चीज़ों को संगठित करने की कोशिश की। तब, उन्होंने स्वयं को प्रोन्नत (प्रमोट) करने की कोशिश की।“
श्रीमाताजीनेखिड़कीसेबाहरस्वच्छनीलेआकाशकीओरनिहाराऔरथोड़ारुककरबोलीं, “मैंने बचपन से कड़ी मेहनत की और मुश्किल–भरे समय से गुजरी। किन्तु सबसे खराब समय मेरे सामने है, जब मैं इन लोगों को देखती हूँ कि जिन्हें मैंने आत्म–साक्षात्कार दिया है, जो आत्म–आत्मसाक्षात्कारी हैं, उनके पास दूसरों के लिए जवाबदारी नहीं है। उनमें करुणा नहीं है, उनमें वह प्यार नहीं है कि हमें संसार को बचाना है, मानवता को बचाना है… यदि आप वो (आत्मा) बन जाते हो, आप शक्तिशाली प्रगतिशील हो सकते हो। आपकी आकांक्षाएं नहीं होंगी, इच्छाएं नहीं होंगी आपको क्रोध नहीं होगा, आपको लालच नहीं होगा। ये सब चीजें आसानी से हट जाएंगी।“
3 जून को श्री आदिशक्ति पूजा पर माँ ने आगे समझाकर स्पष्ट किया, “और आदिशक्ति का कार्य आपके जीवन में प्रदर्शित होना चाहिये। यह बिना इनाम के उनकी करुणा है…. आपको इसे बड़ी नम्रता से करना है, बहुत सुन्दरतापूर्वक तरीके से करना है और आप यह देखकर आश्चर्य–चकित होंगे— कैसे आपकी सुरक्षा की गई है, कैसे आपको सहारा दिया गया है, और हरेक चीज़ कैसे हल होती है।“
श्रीमाताजीनेश्रीगुरुपूजापरअपनेयंत्रोंकोठीकतरहसेगढ़ा, “सहज–योग की तकनीक इसी तरह की है, इसमें क्रोध नहीं, घृणा नहीं, अलगाव नहीं है, किन्तु यह तकनीक है, जिसमें आप अपने प्रेम को दर्शाते हो।“
14 जुलाई को श्री माताजी ने रॉयल अल्बर्ट हॉल लंदन में इस तकनीक का प्रदर्शन उदाहरण द्वारा किया। उन्होंने बताया कि वे वहाँ मनोरंजन के लिए नहीं थीं, वे पिछले 20 वर्षों से इंग्लैंड में कठिन परिश्रम करती रहीं थीं, किंतु लोग नही समझ पाए, उन्हें क्या करना चाहिए था।
उन्होंनेआगाहकिया, “यह आपात–काल है, आप बहुत आपात–स्थितियों में जी रहे हैं, समझने का प्रयत्न करें। मैं तुम्हें चेतावनी देना चाहती हूँ कि यदि आप अपने अंदर गहराई में नहीं उतरते हैं और मालुम करते हैं कि आप कौन हैं और अपने परिवर्तन को नहीं स्वीकारते हैं, कुछ भी संभव है/कुछ भी हो सकता है। आपको होने वाली सभी बीमारियां, सभी प्रकार की बच्चों की समस्याएँ, सभी तरह की राष्ट्रीय–समस्याएँ, और सभी तरह की अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएं, जिन्हें हल करने में लोग असमर्थ हैं, जिनमें लोग सहायता नहीं कर सकते। अतः हमें इस संकट–काल से उबरना है और परमात्मा (सत्य) का एक सुदृढ़ व्यक्तित्व बनना है।“
शुद्धइच्छाकेसाधक–गण सत्य के सुदृढ़ व्यक्तित्व बनने हेतु लहरों की भाँति आगे बढ़े। उनके आत्म–साक्षात्कार का आनंद “जोगवा..” सहज–गीत में प्रदर्शित हुआ, “ओह माँ! मुझे योग प्रदान करो।“
दोदिनबाद, उन्होंने हॉलैंड पार्क स्कूल में नव–जात योगियों का पोषण किया, “आज रात यहां आप लोगों में से बहुतों को देखकर मैं अतिप्रसन्न हूँ। मैं तुम्हें अब किसी तरह साधक नहीं पुकार सकती आप वो लोग है, जिन्होंने सत्य को पाया है।“
एक नवजात योगी ने प्रश्न किया कि उसे क्षमा करने के लिए कहा गया था, किन्तु उसने इसे बिना क्षमा किए ही दोहरा दिया था।
श्रीमाताजीनेउत्तरदियाकिइससेकोईफर्कनहींपड़ाऔरउसेनिरंतरकहतेरहनाचाहिये, “मैं हरेक को क्षमा करता हूँ। यह एक मंत्र है और यह कार्य करेगा।“
एकऔरयोगीनेपूछा, “श्री माताजी, कृपया आप हमें क्षमा करने और निर्विचार चेतना में जाने को कहती हैं। यह इतना आसान और सरल लगता है, जब आप हमें यह कहती हैं, जब हम इसे करने की कोशिश करते हैं और ध्यान में जाते हैं, यह कठिन और निराशाप्रद होता है।”
श्रीमाताजीनेमधुरतासेसलाहदी, “बिना सोचे, बिना प्रतिक्रिया किए, केवल देखने का अभ्यास करो/दृष्टा बनो। इस अभ्यास में आपकी आज्ञा स्वच्छ होगी…. जब कोई विचार आता है, कहो “यह नहीं, यह नहीं….. मालुम करो, यह विचार कहाँ से आया है।“
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अध्याय – 76
अहा, जुलाई और श्री माताजी ने न्यू–जर्सी में अपने नए घर को आशीर्वादित किया। वे प्रसन्न थीं कि केवल 200 वर्ष पुराना देश अमेरिका दूसरे देशों की बनिस्बत अपनी साधना में बहुत गहनता में उतर चुका था और सहज–योग को एक धर्म की तरह से आधिकारिक मान्यता प्रदान कर चुका था।
29 जुलाई को काना जोहरी में श्री कृष्ण पूजा पर श्री माताजी ने श्री कृष्ण के अर्जुन को दिए गए उपदेशों के सार को जाहिर किया, “श्रीकृष्ण जी शिक्षा देते हैं– सामूहिक होने की, सामूहिकता के मनोविनोद (हंसी–मज़ाक) और सामूहिकता के आनंद लेने की….. अमेरिका भी बहुत सामूहिक है, जैसे यह हरेक देश में रुचि लेगा। यह हरेक की चिंता, परवाह करेगा किन्तु यह गलत तरीके से मदद देने की कोशिश करता है… इसमें विवेकशीलता गायब है।“
श्रीमाताजीनेबच्चोंकोउपहारोंसेआशीर्वादितकियाऔरउन्हेंधर्मकेनिर्वाहकेलिएहाथकेइशारेसेबुलायाऔरविश्वकीसमस्याओंकीबेहतरसमझ–बूझ पैदा करने हेतु तथा सभी देशों से आ रहे लोगों को प्यार व अपनत्व देने के लिए बुलाया। दूल्हों और दुल्हिनों को उन्होंने सफल–विवाह के रहस्यों को प्रकट किया। “यह प्यार का सवाल है। यदि तुम्हारे ह्रदय में प्यार है, आप किसी पर भी विजय प्राप्त कर सकते हो…. यह एक सामान्य विवाह नहीं है। सहज–विवाह का अर्थ होता है, दो आत्माओं का एक दूसरे से विवाह हुआ है, वे जिन्होंने अपना आत्म–साक्षात्कार प्राप्त कर लिया है– उनकी शादी हुई है। अतः दूसरों के साथ कुछ की बात हो, आपके मामले में सहज–विवाह सबसे ज्यादा आनंद, प्यार, शांति और आशीषों भरा होना चाहिये।“
विश्वशांतिहेतुश्रीमाताजीकेअसाधारणकार्यन्यूयॉर्कराज्यसेछिपनहींपाएऔरन्यूयॉर्ककेराज्यपालनेपिछले 30 वर्षों से उनके द्वारा असाधारण मानव–कल्याण के कार्य को मान्यता प्रदान करते हुए एक घोषणा–पत्र उन्हें भेंट किया।
हडसनकेमेयरने 3 अगस्त को ‘श्री माताजी निर्मला देवी दिवस‘ घोषित किया। श्री माताजी ने अपना समर्थन जेल–सहवासी (jail inmates) के लिए देने हेतु उन्हें आश्वस्त किया और तब श्री माताजी की निष्कपट–वार्ता अनायास ही ‘ड्रग–एडिक्ट्स‘ (नशा–बाजों) को ठीक करने के विषय की ओर मुड़ी। श्रोताओं में से दस–दस ड्रग एडिक्ट्स के समूह एक रिहैब–कैम्प (पुनर्वास–शिविर) में सहज–योग ध्यान का अभ्यास करते रहे थे, उन्हें आश्चर्य हुआ, कैसे श्री माताजी ने सीधे उनकी और देखा और बताया कि ड्रग्स–एडिक्ट्स को कैसे काबू करना है। उन्होंने कहा, ”वो (श्री माताजी) यथार्थ में जानती हैं कि हम कौन हैं और हम क्या हैं? वे हर चीज़ जानती हैं; क्या नहीं जानती हैं?”
जैसेहीउन्होंनेश्रीमाताजीकोमानलिया, वे स्वयं को पहचान पाए।
मोहॉक (Mohawk) के लोग श्री माताजी को मान्यता देने में पीछे नहीं रहे और उन्हें ‘Sage’ (बुद्धिमान) से सम्मानित किया। यह सम्मान वे उसे देते हैं, जिन्हें वे सृष्टा (Creator) की मान्यता दे चुके थे।
वाशिंगटनकार्यक्रमकेपहलेउन्होंनेएकसाक्षात्कारस्पेनिश–भाषा में टेलीविजन को दिया। अपना आत्म–साक्षात्कार पाकर उस दूरदर्शन–साक्षात्कार–कर्त्ता (T.V. Interviewer) ने इतना सुधार महसूस किया, वह विस्मय से चिल्ला उठा, “Oh my God … ओह, मेरे ईश्वर, मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में इस तरह कोई अनुभव नहीं महसूस किया, यह आश्चर्य–जनक है।“
वाशिंगटनस्मारककेकदमोंमेंलिंकनमेमोरियलकेनज़दीकसहज–योग कार्यक्रम आयोजित हुआ। आत्म–साक्षात्कार के बाद श्री माताजी ने प्रश्नों के उत्तर दिये।
प्रश्न– आपने अपने कार्यक्रम के लिए इस स्थान को क्यों चुना?
उत्तर– क्योंकि मैं अब्राहम लिंकन की बहुत बड़ी प्रशंसक हूं, उनकी वजह से अमेरिका इतना महान बना है!
फिर से, श्री गणेश पूजा में श्री माताजी ने शिशु–सम बच्चे–जैसी अबोधिता का उदाहरण बयान किया। “यही अबोधिता मानव में उसके अंतर्जात होती है, श्री गणेश की शक्ति आपको जो अनुभव, क्षमता, सुबुद्धि प्रदान करती है, कि आपको अबोध बच्चों की, भोले–भाले लोगों की रक्षा करना है और पूरा विश्व उन लोगों का सामना कर सकता है, जो भोले–भाले और अबोध लोगों को मारने का प्रयत्न कर रहे हैं।“
श्रीमाताजीनेहालहीमेंवर्ल्डट्रेडसेंटरपर 9/11 को हुए आक्रमण के उदारण से समझाकर स्पष्ट किया, कैसे सभी देशों ने साथ मिलकर पीड़ितों का साथ दिया, “वे उसी धर्म से सम्बन्धित नहीं हो सकते हों, वे उसी देश से भी सम्बन्धित नहीं हो सकते थे और न ही उस पंथ से सम्बन्ध रखते थे, किंतु इस क्षण (इस समय) जो अबोधिता के पक्षधर नहीं हैं, वे पहचाने जायेंगे और उनका अंत होगा।“
9/11 के पीड़ितों की दुर्दशा उनकी याददाश्त में बार–बार आई, “मेरा दिल रोता है। मैं इस धरा पर कैसे समय आई हूं। जहाँ मानव एक दूसरे से घृणा (नफ़रत) कर रहा है।“
श्रीमाताजीकेआशीर्वादसेटॉवरऔरगलियोंमेंउनकेबच्चेचमत्कारिकरूपसेबचालिएगए।उन्होंनेअमेरिकाकेआंसुओंकोपोंछाऔरअमेरिकीराष्ट्रपतिकोश्रीकृष्णभगवानकीसलाहकेसाथसान्त्वनादी, जिसमें निराश अर्जुन, जिसने युद्ध–स्थल में अपने अस्त्र–शस्त्र त्याग दिए थे और युद्ध से मना कर दिया था, “साक्षी अवस्था में व्यक्ति को बिल्कुल संशय नहीं होता और उसका मस्तिष्क स्वच्छ होता है। वह बुराई करने वालों को नष्ट करने की शक्ति और इच्छा विकसित करता है।“
श्रीमाताजीनेपुन: आगे कहा, “लॉर्ड जीसस ने भी ईश्वर के मंदिर के बाहर व्यापार/धंधे करने वालों को एक चाबुक से पीटा था। अब, इस कलियुग में आप लोगों का चयन इस कार्य के लिए, बुराई से मुक्ति के लिए हुआ है। भूतकाल और वर्तमान काल की सभी आध्यात्मिक–शक्तियाँ (हस्तियां) आपको इन कायर लोगों को नष्ट करने की हिम्मत और शक्ति से आशीर्वादित करती हैं, जिन्होंने सबसे अधिक जघन्य, घृणित अपराधों को चिर–स्थाई बना दिया है।”
श्रीमाताजीनेशैतानीशक्तियोंकोजोघृणितअपराधोंकोचिर–स्थाई बना रहे हैं, उन्हें नष्ट करने के लिए अपनी श्री कल्कि–शक्ति को सहज–योगियों की सामूहिकता में वितरित कर दिया है। श्री माताजी ने स्पष्ट बताया कि “श्री कल्कि के वर्णन में उन्हें बिना चेहरे के दिखाया गया है। यहूदी धर्म के मुक्ति–दायक देवता का भी चेहरा नहीं है।“
ग्रीसकीनवरात्रिपूजापरश्रीमाताजीनेअपनेबच्चोंकीसामूहिकताकोउनकामस्तिष्क (ध्यान) ऐसी सभी शैतानी शक्तियों को नष्ट करने हेतु संकेत दिया, “इस युद्ध में हम सब एक हैं और हम इसे नष्ट करने जा रहे हैं। इसके बाद मनुष्यों के प्रति कोई भी क्रूरताएँ नहीं होंगी, कोई युद्ध अब नहीं होंगे, क्योंकि यह युद्ध राक्षसों व हमारे बीच है और इसे उन्हें भी ठीक से समझाया जाना है, जो शैतानी ताकतों का साथ देते हैं।“
श्रीमाताजीनेसामूहिकताकोशक्तिप्रदानकी, “मेरी सभी सद्भावनाएँ, शक्तियां और सभी प्रयास आपके हाथ में हैं और उसी हेतु आपको तैयार रहना चाहिये। केवल पढ़ाई मात्र से या मात्र बातचीत से ही नहीं, तुम्हें अपने अन्दर प्यार की शक्ति को पनपाना है।“
उनकेप्रेमकीशक्तिसेसज्जितसाहसीनिर्मला–भक्त प्यार और शान्ति के सिपाहियों में परिवर्तित हो गए।
शैतानीताकतेंहरादीगईंऔरश्रीमाताजीलॉसएंजेलेसमेंविजय–गैरवान्वित हो लौटीं। लॉस एंजेलेस की गलियाँ बुराई पर प्रकाश के विजयोत्सव मनाने को दीपावलियों से प्रकाशित की गईं।
श्रीमाताजीप्रसन्नहुईं, “आज यह एक अत्यन्त ही महान दिवस है, जहाँ बुराई का दमन हुआ है, मेरी इच्छा इस कार्य को दिवाली से पूर्व करने की थी और वह घटित हुई। यह एक चमत्कार है। कैसे समस्याएँ हल हुईं, अब नया दौर (नया–युग) प्रारम्भ हुआ है।“
किंतुचेतावनीकीएकटिप्पणीभीथी, “यह सब होता है, यह एक नाटक है, जैसा कि मैंने तुम्हें बताया, किन्तु आप इसे बेहतर (ठीक से) पढ़ लें।”
आपइसेठीकसेअध्ययनकरलेंऔरइसेस्वयंपरघटितकरें।इसकास्वयंपरपालनकरेंऔरदेखेंआपभीइसनाटककेअंग–प्रत्यंग हैं। इस हेतु आपको ऊँचा उठना होगा, अपने अहंकार और प्रति अहंकार, अपने संस्कारों से और वहाँ से स्वयं को देखना होगा। यह क्या है? क्यों, मैं ऐसा काम कर रहा हूँ, ऐसी चीज़ कर रहा हूँ? मेरे मोह का क्या कारण है, मुझे कहना चाहिये या मेरी अपनी गलत–धारणाओं के लिए? क्यों, मैं गलत चीजों को स्वीकारता हूँ?
यहवीर–सहजियों Nirmalites के लिए एक जागृति–आह्वान था और उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को परिवर्तित करने के लिए वादा किया। श्री माताजी के प्यार की धूप ने संदेह के बादलों को दूर कर दिया। और सभी रुकावटों को हटा दिया। स्वच्छ नीले आकाश में यह सम्भव हो पाया कि सहज–योग परमात्मा के प्यार में चारों ओर से घिर गया और इसे कोई भी हानि नहीं पहुंचा सकता था!
समयचक्रकोघूमनाथाऔरआगेबढ़नाथा।
गणपतिपुले, क्रिसमस पूजा पर श्री माताजी ने याद किया, उन्हें अमेरिका जाना था, क्योंकि शैतानी ताकतें दुनिया को नष्ट करने का यत्न कर रही हैं। “कैसी मूर्खतापूर्ण सोच है कि वे परमात्मा की कृति को इस तरह नष्ट कर सकते हैं… यदि आप सभी न्यायिक–जांच को नज़र–अंदाज़ करना चाहते हैं और बेकार की ज़िंदगी के कष्ट से उन्हें बचाना चाहते हैं, आपको उनकी रक्षा करनी होगी।“
पूजाकेबादश्रीमाताजीकेचित्तनेविवाहप्रार्थना–पत्रों को आशीर्वादित किया। वैवाहिक प्रार्थना–पत्रों का दबाव बढ़ गया था और उन्होंने याद दिलाई, “विवाह संचालित करना कभी हमारा विचार नहीं रहा। किन्तु, तब हमें विवाहों के लिए आज्ञा देनी पड़ी और अब यह सबके साथ मुख्य विषय बन गया है। या तो उनकी शादियों नहीं हुईं, यदि हो गई हैं, वे खुश नहीं हैं। यदि उनमें तलाक हो गया है, उनका दुबारा विवाह होना चाहिए– सभी प्रकार की चीजें, जटिलताएँ, जिसके लिए मैं तैयार नहीं हूँ। सहज–योग इसके लिए नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण क्या है, वह है कितनों को आप आत्म–साक्षात्कार देते हो।“
अपनीअनंतकरुणामेंउन्होंनेनाजुककमलोंकोसंरक्षणदिया, “यदि एक कमल है, यह खिलेगा परन्तु इसे सुगंध देनी होगी। यहाँ तक कि कमल की भी जवाबदारी है, तब आप लोगों के बारे में क्या कहा जाए?”
समय–चक्र को आगे बढ़ाने के लिए और श्री माताजी की अमन और प्रेम की सुगंध को फैलाने हेतु सभी सहजी (कमल–पुष्प–सम) श्री कल्कि के सामूहिक हृदय में विलक्षण हो उठे, इससे ज्यादा आनंददायी कुछ भी नहीं हो सकता था!
हम सभी इस पथ पर चलें, जो इतनी धीरज, समझ–बूझ और प्यार से सृजित किया गया था।
श्री कल्कि, अंक-2. समाप्त.