Sahasrara Puja: Realise Your Own Divinity Ischia (Italy)

स्वयं की दिव्यता को पहचानें सहस्रार दिवस  इस्चिया, 5  मई 1991 इटली आज हम यहां उस सहस्रार दिवस मनाने के लिए एकत्र हुए हैं जिसे 1970 में इसी तिथि पर खोला गया था। मुझे यह सुंदर मंडप हमारे सहस्रार जैसा प्रतीत हो रहा है। और इस सहस्रार दिवस के लिए ऐसी सुंदर व्यवस्था करना बहुत उपयुक्त है। हमें यह समझना होगा कि जब सहस्रार खुलता है तो क्या होता है। जब कुंडलिनी पांच केंद्रों से होकर गुजरती है तो वह उस क्षेत्र में प्रवेश करती है जिसे हम लिम्बिक क्षेत्र कहते हैं। यह क्षेत्र हजारों तंत्रिकाओं से घिरा हुआ है और जब ये तंत्रिकाएं प्रबुद्ध हो जाती हैं तो वे इन्द्रधनुष के रंगों, सात रंगों की लौ की तरह दिखती हैं, और बहुत ही हल्के ढंग से, खूबसूरती से चमकती हुई, शांति बिखेरती हुई दिखाई देती हैं। लेकिन जब कुंडलिनी किनारों पर अपना कंपन प्रसारित करना शुरू कर देती है तो ये सभी नसें धीरे-धीरे प्रबुद्ध हो जाती हैं और सहस्रार को खोलते हुए सभी दिशाओं में घूमने लगती हैं और फिर कुंडलिनी फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र से बाहर निकलती है, जिसे हम ‘ब्रह्मरंध्र’ कहते हैं। ‘रंध्र’ का अर्थ है ‘छिद्र’ और ‘ब्रह्म’ भगवान के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति है। तो यह सूक्ष्म ऊर्जा में प्रवेश करता है, जो सर्वव्यापी है, जिसे हम सामान्य रूप से महसूस नहीं करते हैं। लेकिन फिर चैतन्य, अथवा स्पंदन, जो की इस ऊर्जा, सर्वव्यापी शक्ति, परमचैतन्य का हिस्सा हैं, वे हमारे मस्तिष्क में प्रवेश करना शुरू कर देते हैं और लिम्बिक क्षेत्र में अपना आशीर्वाद Read More …