Sahasrara Puja: Realise Your Own Divinity

Ischia (Italy)

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स्वयं की दिव्यता को पहचानें

सहस्रार दिवस

 इस्चिया, 5  मई 1991 इटली

आज हम यहां उस सहस्रार दिवस मनाने के लिए एकत्र हुए हैं जिसे 1970 में इसी तिथि पर खोला गया था। मुझे यह सुंदर मंडप हमारे सहस्रार जैसा प्रतीत हो रहा है। और इस सहस्रार दिवस के लिए ऐसी सुंदर व्यवस्था करना बहुत उपयुक्त है।

हमें यह समझना होगा कि जब सहस्रार खुलता है तो क्या होता है।

जब कुंडलिनी पांच केंद्रों से होकर गुजरती है तो वह उस क्षेत्र में प्रवेश करती है जिसे हम लिम्बिक क्षेत्र कहते हैं। यह क्षेत्र हजारों तंत्रिकाओं से घिरा हुआ है और जब ये तंत्रिकाएं प्रबुद्ध हो जाती हैं तो वे इन्द्रधनुष के रंगों, सात रंगों की लौ की तरह दिखती हैं, और बहुत ही हल्के ढंग से, खूबसूरती से चमकती हुई, शांति बिखेरती हुई दिखाई देती हैं।

लेकिन जब कुंडलिनी किनारों पर अपना कंपन प्रसारित करना शुरू कर देती है तो ये सभी नसें धीरे-धीरे प्रबुद्ध हो जाती हैं और सहस्रार को खोलते हुए सभी दिशाओं में घूमने लगती हैं और फिर कुंडलिनी फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र से बाहर निकलती है, जिसे हम ‘ब्रह्मरंध्र’ कहते हैं। ‘रंध्र’ का अर्थ है ‘छिद्र’ और ‘ब्रह्म’ भगवान के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति है।

तो यह सूक्ष्म ऊर्जा में प्रवेश करता है, जो सर्वव्यापी है, जिसे हम सामान्य रूप से महसूस नहीं करते हैं। लेकिन फिर चैतन्य, अथवा स्पंदन, जो की इस ऊर्जा, सर्वव्यापी शक्ति, परमचैतन्य का हिस्सा हैं, वे हमारे मस्तिष्क में प्रवेश करना शुरू कर देते हैं और लिम्बिक क्षेत्र में अपना आशीर्वाद बरसाना शुरू कर देते हैं।

अब लिम्बिक क्षेत्र मस्तिष्क के सभी क्षेत्रों और तंत्रिकाओं से भी जुड़ा हुआ है। तो यह आपकी नसों में प्रवाहित होने लगता है और आपको कलेक्टिव कोंशियासनेस जिसे ‘सामुहिक चेतना’ कहा जाता है उसकी नई जागरूकता प्रदान करता है, ।

तो, आपको एक नई चेतना, एक नई जागरूकता मिलती है, जो आपके लिम्बिक क्षेत्र पर बरसती है। इन चैतन्य तरंगों की कार्यप्रणाली बहुत दिलचस्प है। ये आम तौर पर छोटे अल्पविराम की तरह बनते हैं, लेकिन फिर अलग-अलग रूपों में चले जाते हैं। वे स्वयं को अबोधिता के चार अंगों वाले प्रतीक स्वस्तिक के रूप में बनाते हैं या वे ॐ कार बन जाते हैं: जैसा कि आप जानते हैं कि ‘ओम’ कैसे लिखा जाता है, जो हमारे कार्य, हमारी जागरूकता का प्रतीक है।

इसलिए, जब वे स्वस्तिक बनाते हैं तो वे बाईं ओर को पोषण देने का प्रयास करते हैं और जब वे ॐ कार बनाते हैं तो वे दाईं ओर को पोषण देते हैं: बाएं और दाएं सहानुभूति तंत्रिका तंत्र को वे पोषण देते हैं।

लेकिन सहस्रार को खुला रखना लोगों के लिए काफी कठिन है क्योंकि यह एक दुष्चक्र है। सबसे पहले, इस चैतन्य को खुले हुए ब्रह्मरंध्र के माध्यम से आपके मस्तिष्क में प्रवेश करना चाहिए और उन्हें आपकी नसों को पोषण देना चाहिए जिससे आपका बायां और दायां भाग खुलता है और इन सभी चक्रों में अधिक चैतन्य प्रवाहित हो सकता है। लेकिन यदि आपका सहस्रार ठीक से नहीं खुला है तो यह प्रक्रिया नहीं हो पाती है। परिणामस्वरूप चक्र नहीं खुलते, रीढ़ की हड्डी में कुंडलिनी के बहुत ही कम धागे रह जाते हैं और नए धागे नहीं खुल पाते क्योंकि आपके चक्र खुले नहीं हैं। इसलिए, सहज योग में, अपने सहस्रार को खुला रखना बहुत महत्वपूर्ण है। अन्यथा, एक दुष्चक्र है।

सहस्रार को खुला रखना एक तरह से बहुत आसान भी है और कठिन भी। जैसा कि आप देवी महात्म्य में जानते हैं कि, “सहस्रार पर महामाया आती है।” वह एक महामाया है: उसे पहचानना आसान नहीं है, उसे जानना आसान नहीं है। वह बिल्कुल आपकी तरह रहती है. वह बिल्कुल आपकी तरह चलती है. और आप कभी भी उसके वास्तविक स्वरूप का पता नहीं लगा सकते। वह महामाया के रूप में हैं।

तो, सहस्रार पर, महामाया को पहचानना एक अन्य दुष्चक्र है। आप कह सकते हैं कि, “उन्हें महामाया क्यों होना हुआ। जाहिर तौर पर,  बेहतर होता वे किसी अन्य रूप में होती।” लेकिन आधुनिक समय में सहज योग का कोई अन्य रूप कारगर नहीं हो सकता था क्योंकि लोग भयभीत और परेशान हो जाते और उन्होंने सहज योग को कभी नहीं अपनाया होता क्योंकि,   पहले से ही उनके अंदर यह समझने योग्य विवेक नहीं था कि क्या सही है और क्या गलत है। इसीलिए इसे महामाया रूप में होना पड़ा।

महामाया स्वरूप को पहचानना है। यह एक और परीक्षा है क्योंकि महामाया को आप पहचान नहीं सकते, जबकि पहचानना आपको है। लेकिन सहज योग में आपने बहुत सारी ऐसी तस्वीरें देखी हैं जो,  मानसिक रूप से आप लोगों को इस महामाया स्वरूपा के बारे में आश्वस्त कर देंगी। आप देख सकते हैं, मानसिक रूप से आप समझ सकते हैं कि कुछ बहुत अलग है। यहां तक कि जब मैं नेपोली आयी तो पुलिसकर्मी और हर किसी को एक तस्वीर दी गई और उन सभी ने पहचाना कि कुछ बहुत अलग है। वे सभी मुझसे हाथ मिलाना चाहते थे। (नोट: जब माँ नेपोली हवाई अड्डे पर पहुँचीं तो सभी पुलिस वालों ने उनसे उनकी तस्वीरें और बैज माँगे) यह एक तरीका है।

दूसरा तरीका यह है कि आप प्राप्त आशीर्वादों को पहचानना शुरू कर दें और आप यह देखना शुरू कर दें कि आप भौतिक, शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से कैसे उत्तरोत्तर बेहतर होते जा रहे हैं। फिर भी अधिकांश लोग मानसिक स्तर पर  पहचानते हैं।

लेकिन, जब तक दिल में इसकी प्रचिती न हो जाए, तब तक पहचान नहीं होती। हृदय पहले से ही सात चक्रों की सात आभाओं से घिरा हुआ है और आत्मा, हृदय में निवास करती है। वैसे भी, यहाँ आपके सिर के ऊपर, सर्वशक्तिमान परमात्मा, सदाशिव का निवास है।

तो, जब कुंडलिनी उस बिंदु को छूती है तो आपकी आत्मा जागृत हो जाती है और आत्मा का प्रकाश फैलने लगता है और यह आपके मध्य तंत्रिका तंत्र पर कार्य करना शुरू कर देता है क्योंकि, चैतन्य स्वतः आपके मस्तिष्क में प्रवाहित होता है, जो आपकी नसों को प्रबुद्ध करता है।

लेकिन पहचान ह्रदय में अब भी नहीं है. उसके बिना भी आपको शीतल लहरों का एहसास होने लगता है, आप दूसरों की कुंडलिनी उठा सकते हैं, आप लोगों को चंगा कर सकते हैं, आप बहुत कुछ कर सकते हैं। लेकिन फिर भी दिल में अभी इतना एहसास नहीं हुआ. इसीलिए हमारे पास संगीत है, कला है। ये सारी चीज़ें आपके दिल को खोलने लगती हैं. लेकिन फिर भी इसे प्रचिती नहीं कहेंगे क्योंकि पहचानना हृदय की एक मानसिक गतिविधि है। हृदय की मानसिक गतिविधि कैसे हो सकती है? यह एक और समस्या है जिसका आप सभी सामना कर सकते हैं – और मैं यह जानती हूं – कि, पहचान, यदि यह हृदय की एक मानसिक गतिविधि है, तो हम इसे कैसे करें?

मान लीजिए, यदि आप एक ईसाई हैं, तात्पर्य एक ईसाई परिवार में पैदा हुए हैं, जैसे ही आप ईसा मसीह की तस्वीर देखते हैं, तुरंत आपको लगता है “यह ईसा मसीह हैं,” आप देखते हैं, यहाँ कुछ है। या यदि आप हिंदू हैं, यदि आप श्री राम की तस्वीर देखते हैं, तो तुरंत आप जान जाते हैं, “यह श्री राम हैं,” आप देखिए। दिल में एक तरह की चीज़, एक पहचान होती है।

लेकिन आपके साथ ही रहने वाले किसी व्यक्ति को पहचानना बहुत मुश्किल है और आप केवल अपनी मानसिक गतिविधियों के शिखर पर रहते हैं। लेकिन आपके दिल की गहराई में जाने के लिए, “हमें क्या करना चाहिए?” लोग मुझसे कहते हैं, “माँ, हमें अपने दिल में कैसे उतरना चाहिए?” यह मानसिक क्रिया हृदय के माध्यम से कैसे की जा सकती है? अब, आपको ध्यान रखना चाहिए कि हृदय मस्तिष्क से बिल्कुल जुड़ा हुआ है – बिल्कुल जुड़ा हुआ है। यह कोई अलग चीज़

 नहीं है. यदि ऐसा होता तो यह काम ही नहीं करता। जब दिल फेल हो जाता है तो कुछ समय बाद दिमाग भी फेल हो जाता है। पूरा शरीर ख़त्म हो जाता है।

(यदि बच्चा रो रहा है तो कृपया बच्चे को बाहर निकालें। बेहतर होगा कि आप बच्चे को बाहर निकालें। यदि बच्चा रो रहा है तो बच्चे के साथ कुछ गड़बड़ है।)

तो, हृदय की इस मानसिक गतिविधि को इस प्रकार समझा जाना चाहिए: जैसे ही आप खतरे को देखते हैं, बिना विचारे, प्रतिवर्ती तरीके से, आपका हृदय अधिक रक्त पंप करना शुरू कर देता है और आपकी धड़कन बढ़ जाती है। इस के लिए आपको कुछ भी सोचने की जरूरत नहीं होती है. कोई मानसिक गतिविधि नहीं. बस आप देखिए, मान लीजिए, आपके सामने एक बाघ खड़ा है, तुरंत दिल धड़कने लगेगा। यह एक प्रतिवर्ती क्रिया है।

अब, कोई पूछ सकता है कि यह गतिविधि कैसे होती है? इस लिए क्योंकि  आपके भीतर ऐसा अंतर्निहित है कि जैसे ही आप कुछ आपातकालीन स्थिति देखें, आपका सहानुभूति तंत्रिका तंत्र सक्रिय हो जाए और आपको डर महसूस होने लगता है, आपको ऐसा महसूस होने लगता है कुछ सुरक्षा होनी चाहिए, आपको इसके बारे में कुछ करना चाहिए। लेकिन आप सोचते नहीं हैं, आप बस दौड़ते हैं, आप जितनी तेजी से संभव हो दौड़ते हैं। आप इसके बारे में नहीं सोचते, “मुझे क्या करना चाहिए, मुझे कहाँ भागना चाहिए।” बस आप खतरे से भागते रहें. और आप वह कैसे करते हैं? क्योंकि ऐसा आपके भीतर अंतर्निहित है, यह सब आपके मस्तिष्क में है, कि जैसे ही हृदय बहुत अधिक रक्त पंप करना शुरू कर देता है, उसे बस पैरों को काम करना चाहिए और हाथों को काम करना चाहिए और आपको दौड़ना चाहिए। या हम कह सकते हैं, यह मध्य तंत्रिका तंत्र में निर्मित होता है – भय। कोई भी प्रतिक्रिया, ऐसी कोई भी प्रतिक्रिया आपके भीतर अंतर्निहित है।

लेकिन आध्यात्मिकता की प्रतिक्रिया अभी तक अभिव्यक्त नहीं हुई है। यह सुनिश्चित है, यह सब निर्मित है, इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन यह अभी तक अभिव्यक्त नहीं हुआ है। और यह कैसे प्रकट होगा? लोग मुझसे यही पूछते हैं, “माँ, यह कैसे प्रकट होगा?”  जैसे, तुमने अपने अतीत से सीखा है कि तुम्हें इससे डरना है, तुम्हें उससे डरना है। साथ ही इस जीवनकाल में आपने बहुत सी चीजें सीखी हैं। एक बच्चा जलती मोमबत्ती पर अपना हाथ रख सकता है, उसे डर नहीं लगेगा, लेकिन एक वयस्क को ऐसा अनुभव होगा। क्रमिक अनुभव के साथ धीरे-धीरे आप अपने अंदर प्रतिवर्ती प्रतिक्रिया विकसित करते हैं ताकि आप खुद को बचाने की कोशिश करें।

अब,मुख्य बात यही है की उसे अपने हृदय में स्थापित करने के लिए आपको कौन सी अनुभूति होना चाहिए। और यह अनुभूति है आपकी दिव्यता की, आपकी अपनी आध्यात्मिकता की। एक बार जब आप की अनुभूति विकसित होना शुरू हो जाती हैं तो आप समझ जाते हैं कि आप एक दिव्य व्यक्ति हैं। जब तक आप पूरी तरह से इस बात के प्रति जागरूक नहीं हो जाते कि आप एक दिव्य व्यक्ति हैं, चाहे आपको मुझ पर कितना भी विश्वास क्यों न हो, पहचान पूरी नहीं है। क्योंकि जो मुझे पहचान रहा है वह खुद एक अंधा व्यक्ति है. यदि कोई अंधा व्यक्ति मुझे पहचान रहा है तो उसके हृदय की वैसी प्रतिक्रिया नहीं होगी।

तो, सबसे पहले खुद आपको स्वयं को एक दिव्य व्यक्ति के रूप में पहचानना होगा, अपने आप पर विश्वास करना होगा। सहजयोगी होते हुए भी हमें खुद पर विश्वास नहीं है। अगर कोई दिक्कत होगी तो वे मुझे पत्र लिखेंगे. यदि वे बीमार हैं तो वे मुझे पत्र लिखेंगे। यदि कोई परिवार प्रश्न पूछ रहा है तो वे मुझे लिखेंगे। यदि कोई उन्हें कुछ प्रश्नों से परेशान कर रहा है तो वे मुझसे पूछेंगे। लेकिन यदि आप आत्मनिरीक्षण और ध्यानमग्न हो जाएँ तो आप अपने भीतर स्थित उस दिव्यता को छू लेंगे। जब आप उस दिव्यता को छूते हैं तो आप जानते हैं कि आप एक दिव्य व्यक्ति हैं।

तो, सहस्रार पूजा में, वास्तव में, आपको अपनी दिव्यता का अनुभव करके, अपनी दिव्यता की पहचान करनी होगी, कि आप दिव्य हैं। आप अपनी दिव्यता का अनुभव कैसे करते हैं? जब आप दूसरों को आत्मसाक्षात्कार दिलाते हैं. दूसरों को आत्मसाक्षात्कार दिलाना एक बेहतरीन अनुभव है। इतना ही नहीं की,  आप बोध दिलाते हैं बल्कि आप उनके चक्रों के बारे में बता सकते हैं, आप जानते हैं कि उनमें क्या खराबी है – आप काफी आश्वस्त हैं। और मानसिक रूप से आप जानते हैं कि, “हाँ, हाँ, यह काम कर रहा है” आप कहेंगे, इसमें लिप्त हुए बिना कि “यह मैं करता हूँ!” आप कहेंगे, “माँ, यह कार्यान्वित हो रहा है। यह हो रहा है। यह यह चीज़ है, वैसी बात है।”

लेकिन आप कभी आत्मनिरीक्षण नहीं करते की, “ऐसा कैसे की मैं काम कर रहा हूँ?” किस प्रकार मैं इस पर काम कर रहा हूँ? किस प्रकार मैं यह महसूस कर पाता हूँ? क्या हो गया है मुझे। मुझ में क्या सुधार हुआ है? मुझमें क्या पैनापन आ गया है? मुझमें क्या विकास है? परिवर्तन क्या है?”

एक बार जब आप इसके बारे में सोचना शुरू करते हैं, अपने स्वयं के अस्तित्व का अनुभव, तो महामाया के प्रति एक प्रकार की भावना – भावना – विकसित होती है। अनुभूति। मैं फिर कहती हूं ‘भावना’। जैसे डर का एहसास, ख़ुशी का एहसास, डिप्रेशन का एहसास. आपमें जो भी भावना विकसित होती है। और इस भावना को आप कृतज्ञता की भावना, प्रेम की भावना, एकता की भावना, आनंद की भावना कह सकते हैं। यह सब आपके दिल में काम करना शुरू कर देती है और फिर आपको प्रतिक्रियाएं महसूस होती हैं। यदि, मान लीजिए, समुद्र चंद्रमा के अनुसार प्रतिक्रिया कर रहा है तो इस बात का मतलब है कि उसमें भी प्रतिक्रिया देने के लिए गतिशीलता है। कोई पत्थर चंद्रमा पर प्रतिक्रिया नहीं करेगा.

उसी तरह: आपके हृदय में इन भावनाओं की तरंगें आध्यात्मिकता के अनुभव से, आपके स्वयं के अनुभव से उत्पन्न होती हैं। और फिर आप उन्हें व्यक्त करना शुरू कर देते हैं। और मैं इसे पहचान सका. ऐसा व्यक्ति भले ही इतना बातूनी न हो, सहज योग के बारे में ज्यादा न जानता हो, लेकिन दिल में, दिल में वह एक प्रतिसाद महसूस करता है की कुछ हासिल करना है क्योंकि आप जानते हैं कि हृदय का केंद्र यहीं स्थित है। हृदय की पीठ, स्थान, ब्रह्मरंध्र पर है।

यदि आपका हृदय खुला नहीं है, हृदय में यदि वे प्रतिक्रियाएँ अंतर्निहित नहीं हैं… तो उन्हें विस्मय या डरने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन जब एक स्वाभाविक प्रोटोकॉल विकसित होता है। तब आप कभी भी गलत नहीं कर सकते क्योंकि आपके ह्रदय में आप जानते हैं कि क्या अच्छा है। मान लीजिए कि आप किसी को दिल से प्यार करते हैं – तो आप उस व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुँचाएँगे। उसी तरह, जब आप उन प्रतिक्रियाओं को अपने दिल में महसूस करना शुरू कर देते हैं, तो आप कभी भी गलत नहीं कर सकते क्योंकि जो आपके भीतर निर्मित थे वे अब अभिव्यक्त हो रहे हैं। चूँकि वहां आध्यात्मिकता थी, वहां वह दिव्यता थी जो अंतर्निहित थी। अब वह प्रकट हो रही है।

और फिर आप चीजों के बारे में चिंता नहीं करते हैं और आप बाहरी तौर पर कुछ भी नहीं करते हैं। शांडिल्य उपनिषद, कठोपनिषद जैसे उपनिषदों में कहा गया है कि एक बार जब आप ब्रह्म को जान लेते हैं, तो सभी बाहरी चीजें जैसे यज्ञोपवीत का धागा पहनना और वह सब, फेंक देना चाहिए – यह आवश्यक नहीं है – क्योंकि अब आपको सूत्र (धागा) मिल गया है। अपने भीतर. फिर आपको उन सभी बाहरी चीजों को छोड़ देना चाहिए क्योंकि अब जो सब अंदर अंतर्निहित है, खुद को अभिव्यक्त कर रहा है। और ऐसा व्यक्ति स्वतः ही उच्च कोटि का योगी बन जाता है।

कलकत्ता में एक सज्जन थे, उनका नाम मिस्टर खान है, यद्यपि वे एक हिंदू सज्जन और भौतिकी के महान वैज्ञानिक हैं। उनमें ऐसी भावनाएँ विकसित हो रही थीं और एक दिन वह बाथटब में नहा रहे थे और पीठ के बल गिर पड़े। और वह पूरी तरह से टूट गया और कुछ टुकड़े मस्तिष्क में चले गये और वह पूरी तरह से कोमा में चला गया। यहाँ तक कि डॉक्टरों ने उसके बारे में पूरी उम्मीद ही छोड़ दी और कहा कि, “वह कभी भी जीवंत नहीं हो सकता।” और वह गहन चिकित्सा कक्ष में थे। लेकिन गिरने से ठीक पहले उसने पुकारा – प्रतिक्रियाएँ – “माँ!” बस इतना ही। तब मैं दिल्ली में था. उन्होंने मुझे बताया कि वह गिर गया है और यही हुआ है. मैंने कहा, “ठीक है।” मैंने बस उस पर ध्यान दिया. बंधन दिया. अगले दिन उसकी आँखें खुलीं। डॉक्टरों को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था. और फिर वे उसे दूसरे वार्ड में ले गए जहां सहज योगी गए और कहा, “हम तुम्हें चैतन्य देंगे।” उन्होंने कहा, “लेकिन मुझे कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा है, कुछ भी नहीं।” वह अब दस साल छोटा और बहुत अलग दिखता है। अब यह अनुभव: यह अब उसके लिए एक संपूर्ण चीज़ है। वह पूरी तरह से अपनी दिव्यता में है। तो वह कहता है, “माँ, मैं अब एक ऐसा इंसान हूँ जो किसी भी चीज़ के बारे में नहीं सोचता। जीवन, मृत्यु, किसी भी चीज़ के बारे मे, मेरे बच्चों के बारे में. मैं अब जानता हूँ कि आप कौन हैं. मैं जानता हूं कि मैं आपके संरक्षण में हूं. मुझे चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।”

दूसरा मामला एक डॉ. वर्लिकर का था, जिनका दिल बहुत ख़राब था, इसलिए उन्होंने उनके लिए एक बाईपास बना दिया। एक महान भक्त. और शायद उनका बाइपास बिगड़ गया और उन्हें बहुत ज़ोरदार दिल का दौरा पड़ा। वह फिर से कोमा में चले गये. उन्होंने उसे अस्पताल में भर्ती कराया. शुरुआत में उनकी महाधमनी अस्सी फीसदी बंद थी। इसलिए केवल बीस प्रतिशत ही खुला था। कोई उम्मीद नहीं थी. इसलिए उन्होंने उसके लिए ऐसा किया और उसने बस इतना कहा, “कृपया माँ को संदेश भेजें।” उसे ऐसा करने की ज़रूरत भी नहीं थी लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। और मैंने बस उसे बंधन लगा दिया। मैं ऑस्ट्रेलिया में थी. वह, फिर से, एक ना-उम्मीद हुआ मामला था। और उन्होंने कहा, “अब, कैसे हम एक और बाईपास कर सकते है। अब यह रास्ता ख़त्म हो गया है, हमें क्या करना चाहिए?” वे उसका ऑपरेशन करने वाले थे और इसके बारे में सोच रहे थे कि तभी उसकी आँखें खुलीं और उसने डॉक्टर को बताया। “डॉक्टर, मैं ठीक महसूस कर रहा हूँ। मुझे नहीं पता कि क्या हुआ है. मैं बिल्कुल ठीक महसूस कर रहा हूं। क्या मैं बैठ सकता हूँ?” तो डॉक्टर समझ नहीं पाए. उन्होंने उसका दिल टटोला। उन्होंने कहा, ”उनका दिल बहुत अच्छा काम कर रहा है. क्या हुआ है?” तो, उन्होंने उसका परीक्षण किया और उन्हें पता चला कि उसकी पुरानी महाधमनी पूरी तरह से खुल गई थी, जो चिकित्सा के इतिहास में कभी नहीं हुआ।

अब उनका यह अनुभव भी उनकी दिव्यता के कारण है कि मैं उन पर काम कर सकी – कनेक्शन इतना अच्छा था – और यह काम कर गया। लेकिन यदि आप मानसिक रूप से हर चीज का विश्लेषण करते रहेंगे और मानसिक रूप से सहज योग को समझते रहेंगे तो आप दिव्यता की उस स्थिति तक नहीं पहुंच पाएंगे जहां से आपको सभी आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। यह आशीर्वाद हर तरह से आप पर बरसने लगता है। यदि आप सुनें कि इन लोगों को किस तरह से मदद की गई, जहां तक पैसे का सवाल है, जहां तक इमारतों का सवाल है, परिवहन का सवाल है – हर चीज – जैसे कि कोई इसे पूरा कर रहा हो। भले ही आप मानसिक रूप से सहज योगी हों, ये सभी चीजें काम करती हैं। लेकिन जब आपकी दिव्यता बहुत, बहुत बड़े पैमाने पर, इतने बड़े पैमाने पर प्रकट हो रही हो तब आपको निश्चित रूप से मदद मिलती है जो कि अन्यथा संभव नहीं है।

ये चमत्कार नहीं हैं. इंसानों के लिए ये चमत्कार हो सकते हैं, लेकिन परमेश्वर के लिए ऐसा नहीं है। आख़िरकार पूरी दुनिया उसने बनाई है, पूरा ब्रह्मांड उसने बनाया है, ब्रह्मांड के ब्रह्मांड उसने बनाए हैं तो उसके लिए इतना महान क्या है? लेकिन ये अनुभव वाला विश्वास है, अंध विश्वास नहीं. अनुभव के साथ विश्वास. और आत्मनिरीक्षण के माध्यम से, “मैं ऐसा क्यों करता हूँ? मुझे ऐसा क्यों करना चाहिए?” “आपको ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए?” ये आत्म मंथन शुरू होना चाहिए. जब आप आत्मनिरीक्षण कर रहे होते हैं तो ध्यान के माध्यम से यह गहराई और भी अधिक बढ़ जाती है। इसलिए मैं आपसे हमेशा कहती हूं कि कृपया सुबह उठकर ध्यान करें और शाम को उठकर ध्यान करें। कम से कम बिस्तर पर जाने से पहले, आपको इसे करना चाहिए। यही एकमात्र तरीका है जिससे आप अपनी दिव्यता में गहराई तक जा सकते हैं जो सारी रचनात्मकता का स्रोत है, सारी अबोधिता का स्रोत है, सारे ज्ञान का स्रोत है और सारे आनंद का स्रोत है।

तो जब आप इसे अपने सहस्रार में प्राप्त करते हैं – हाँ, यह सच है कि सहस्रार खुल गया था [और] उसके कारण आपको यह सामूहिक अनुभूति हुई। यह सच है। लेकिन अब गुणवत्ता बढ़ानी होगी. मात्रा काफी बड़ी है. सहस्रार की गुणवत्ता बढ़नी है। और सहस्रार ही एकमात्र साधन है जो आधुनिक समय में सहज योग को क्रियान्वित कर सकता है यदि हमें इस बात का एहसास हो कि हृदय सहस्रार में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहीं (सहस्रार के मध्य में) हृदय केन्द्र है। यह कितना महत्वपूर्ण है कि आपको अपने दिल से पहचानना होगा अन्यथा यह (सहस्रार) केंद्र नहीं खुलेगा। तो फिर तुम्हें आत्मसाक्षात्कार कैसे प्राप्त होगा? कितना सुंदर संबंध बना है: कि यह केंद्र हृदय का स्थान है, हृदय का पीठ है। और इसे खुलना होगा. तभी कुण्डलिनी अन्दर आती है।

तो यह सारी मशीनरी इस तरह से जुड़ी और बनाई गई है कि आपको इस मस्तिष्क के माध्यम से जुड़े दिल के महत्व को समझना होगा जो पूरी तरह से दिल के साथ एकीकृत है। यह सहस्रार है जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए। केवल बाएँ से दाएँ, दाएँ से बाएँ डालकर और हर चीज़, बल्कि पहचान कर इसे खोलें। आत्मनिरीक्षण करके भी आप पूछ सकते हैं कि, “मैं उस तरह से क्यों नहीं पहचान पाता? मैं ऐसा क्यों नहीं कर सकता? मेरी रुचि क्या है?”

अब, यदि आप किसी प्रकार का पॉवर गेम खेलने के लिए सहज योग में आते हैं, आप एक शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप चुक गए हैं। आप पैसा चाहते हैं या किसी प्रकार का व्यवसाय चाहते हैं, आप समाप्त हो गए हैं। आप जो कुछ भी करने का प्रयास करते हैं, जैसे कि अपने बच्चों के लिए या अपनी शादी या परिवार के लिए या ऐसी किसी बाहरी चीज़ के लिए, यदि आप सहज योग में आते हैं तो यह काम नहीं करेगा। लेकिन यदि केवल अपने दिल का विस्तार करने के लिए, अपने प्यार को हर किसी तक फैलाने के लिए, अपने दिल के भीतर उनके प्यार को महसूस करने के लिए और फिर खुद को उस स्थिति में बनाये रखने के लिए ऐसा करते हैं तब वह प्रतिक्रिया करता है, आपका ह्रदय पूरी मानसिक गतिविधि के साथ आपके भीतर की दिव्यता और आपकी माँ के प्रति प्रतिक्रिया करता है।

आज का विषय आपको समझने में थोड़ा कठिन लग सकता है लेकिन मुझे यह एक दिन कहना पड़ा क्योंकि हम अपने सिर से निकलने वाली कुंडलिनी की थोड़ी सी रेशों से काफी संतुष्ट हैं। काफ़ी कुछ बाहर आना शेष है। इतनी दिव्यता को सामने आना हैऔर यदि आपको ऊपर उत्थान करना है और यदि आप उस नए युग की नींव हैं जो पूरी दुनिया को बदलने जा रहा है तो हमें कड़ी मेहनत करनी होगी। हमें यह नहीं कहना चाहिए, “मुझे नहीं पता कि सुबह कैसे उठना है।” मुझें नहीं पता।” आप युद्ध पथ पर हैं. अब आप सैनिक हैं. और यदि आपको अज्ञानता और अंधकार की ताकतों से लड़ना है तो आपको इसे क्रियान्वित करना होगा। इस पर काम करना होगा. इस पर ध्यान देना होगा.

तो आपको जो करना है वह यह कि, आज अपने भीतर पूरी तरह से तय करना है कि, “हम इसे इस तरह से कार्यान्वित करने जा रहे हैं कि हम सभी बहुत शक्तिशाली सहज योगी बन जाएंगे और हमारे माध्यम से पूरी दुनिया बच जाएगी।” ये आप सभी को समझना बहुत जरूरी बात है.

आज सहस्रार दिवस है, बेशक, मैं इस बात से सहमत हूं कि मैंने आखिरी चक्र खोला। लेकिन, आगे बढ़ने के लिए, बढ़ने के लिए, आपको ध्यान की ओर जाना होगा जहां आप शांत हो जाएंगे और आपका जीवन का वृक्ष शांति में विकसित होगा, उथल-पुथल में नहीं। यदि आप इसे समझते हैं, तो कृपया इसे इस तरह से कार्यान्वित करें कि आप सभी अपनी दिव्यता से पूरी तरह अवगत हो जाएं जिसके द्वारा आप देख सकें।

यदि आपको छवि देखनी है तो आपके पास एक बहुत अच्छा दर्पण होना चाहिए। उसी तरह, यदि आपको महामाया को महसूस करना है तो आपके अंदर पूर्ण, शुद्ध, दिव्यता प्रकट होनी होगी।

परमात्मा आप पर कृपा करे।