6th Day of Navaratri, Recognize Me Campus, Cabella Ligure (Italy)

                                                नवरात्रि पूजा  कबेला (इटली), 13 अक्टूबर 1991 आज हम यहां नवरात्रि पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। नौ बार ऐसा हुआ था जब इस ब्रह्मांड की मां के प्रमुख अवतार प्रकट हुए थे। वे एक उद्देश्य के साथ प्रकट होते हैं। वह उद्देश्य अपने भक्तों, अपने शिष्यों, अपने बच्चों की रक्षा करना है। यह एक प्रेम का बंधन था, वह इससे बच नहीं सकती थी। माँ की ममता एक बंधन है, वह उससे बच नहीं सकती। और उसे उसे अभिव्यक्त करना ही होता है, उसे कार्यान्वित करना है और अपने सभी बच्चों को वह सुरक्षा देनी है। आधुनिक समय में इस सुरक्षा ने दूसरा रूप धारण कर लिया है। उन दिनों शैतान उन लोगों को नुकसान पहुँचाने, नष्ट करने की कोशिश कर रहे थे, जो धर्मी थे, जो भक्त थे, जो अच्छे काम कर रहे थे, जो एक बहुत ही धार्मिक जीवन जीना चाहते थे। इसलिए उन्हें बचाने के लिए उन्होंने अवतार लिया। उनकी रक्षा के लिए उन्होंने अवतार लिया। लेकिन वे जानते थे कि क्या अच्छा है, वे जानते थे कि क्या गलत है और वे अपने अच्छे जीवन, अपने कीमती जीवन को संरक्षित करना चाहते थे। उन्हें धन की परवाह नहीं थी, उन्हें सत्ता की परवाह नहीं थी, लेकिन वे सिर्फ अपना जीवन चाहते थे, यानी वे जीवित रहना चाहते थे, देवी की पूजा करना चाहते थे। और जब वे इन शैतानी शक्तियों से परेशान या नुकसान या नष्ट हुए, तो उसे प्रकट होना पड़ा। लेकिन आधुनिक समय में यह बहुत जटिल हो गया है क्योंकि आधुनिक Read More …

Guru Puja, Four Obstacles Campus, Cabella Ligure (Italy)

Shri Adi Guru Puja. Cabella Ligure (Italy), July 28th, 1991. आज आप सब यहाँ उपस्थित हैं, अपने गुरु की पूजा करने के लिए   Iयह एक प्रचलित प्रथा है, विशेष रूप से भारतवर्ष में, की आप अवश्य अपने गुरु की पूजा करें, और गुरु का भी अपने शिष्यों पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए I गुरु के सिद्धांत बहुत कठोर हैं और इस कठोरता के कIरण बहुत से लोग एक शिष्य के आदर्शों के अनुसार स्वयं तो नहीं ढाल सकेI  उन दिनों गुरु को, पूर्ण रूप से, आधिकारिक बनना पड़ता था। और वह गुरु ही थे जो निश्चय करते थे कि कौन उनके शिष्य होंगे। और उनको कठिन तपस्या में लीन होना पड़ता था, बड़ी तपस्या में, मात्र एक शिष्य बनने के लिए। और यह कष्ट ही एक माध्यम था जिससे गुरु आकलन करते थे। गुरु हमेशा जंगलों में रहा करते थे। और वे अपने शिष्यों का चयन किया करते थे- बहुत कम, बिलकुल, बिलकुल थोड़े से। और उनको जाना पड़ता था, और भिक्षा मांगने, भोजन के लिए, आसपास के गावों से, और भोजन पकाते थे, अपने गुरु के लिए, स्वयं अपने हाथों से, और गुरु को खिलाते थे।   इस प्रकार की गुरु-प्रणाली सहजयोग में नहीं है। यह मूल रूप से हमें समझना पड़ेगा – कि जो अंतर उन शैलीयों के गुरु-पद में, और जो अब हमारे यहाँ है, वह यह है, कि बहुत कम व्यक्तियों को गुरु बनने का अवसर दिया जाता था, बहुत कम।  और इन गिने-चुनों का चुनाव भी अनेकों लोगों में से होता था, और उन्हें लगता Read More …