The Last Judgement by Yogi Mahajan

   अंतिम निर्णय  The Last Judgement  Vol.III ओ माँ (O, Mother) आपने मेरे ऊपर सबसे पसंदीदा आशीषों की बारिश की है, किन्तु, कृपया कयामा के दिन (ईश्वरीयनिर्णय)  भी मुझे याद रखें।  मैं जानता नहीं कि मैं स्वर्ग जाऊँगा या नर्क, किन्तु जहाँ भी मैं जाऊँ,  कृपया, सदा मेरे हृदय में निवास करें।  योगी महाजन  OR ओ, माँ  आपने मेरे ऊपर सबसे चुनिंदा आशीषों की वर्षा की है, किन्तु कृपया, मुझे याद भी रखें ।  ईश्वरीय–निर्णय के दिन, मैं नहीं जानता कि मैं स्वर्ग जाऊँगा या नर्क को, किन्तु जहाँ भी मैं जाऊँ, कृपया मेरे अंतस में रहें।  योगी महाजन  “ईसा मसीह और महाविष्णु के विध्वंसक अवतरण श्री कल्कि के बीच मानव को स्वयं को सुधरने व परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करने योग्य बनने हेतु एक समय (मौका) दिया गया है। बाइबल इसे ‘अंतिम निर्णय’ कहती है – वह कि आपको परखा जाएगा। आपके कर्मों का निर्णय इस धरा पर होगा।  यह अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि सहज-योग ‘अंतिम-निर्णय’ भी है। यह वास्तविक है, सत्य है और इसे अपनाना अद्भुत है। आप समझ सकते हो, यद्यपि श्री माताजी का प्यार (वात्सल्य), आपको आपका आत्म-साक्षात्कार बहुत आसानी से प्रदान करता है और ‘अंतिम-निर्णय’ की पूरी कहानी, जो इतनी भयानकता (डरावनी) लिए प्रतीत होती है, वह बहुत सुंदर, नाजुक और उम्दा बना दी गई है और आपको विचलित होने की जरूरत नहीं है।” प्रस्तावना सन् 1541 ई॰ में क्रिसमस की पूर्व-संध्या को माइकल-एंजेलो द्वारा सिस्टीन चपेल (चर्च) की दीवारों पर ‘अंतिम-निर्णय’ का चित्रण उजागर होता देख रोम की सांसें उसके आश्चर्य में रुकी Read More …

The Tenth Incarnation by Yogi Mahajan

दशम अवतरण (The Tenth Incarnation) Volume I  परम् पूजनीय श्री आदिशक्ति माताजी निर्मला देवी के चरण कमल में सादर समर्पित जहाँ मरकत सी झील परमात्मा के चरण कमलों का अभिषेक करती है। जहाँ देवी माँ की कृपा से जंगल की भूमि हरित लबादा बिछाए लेती है। और असंख्य पुष्पों से लदी ये भूमि मानों शर्म से लाल सी हुई जा रही है। जहां देवी माँ की ऐश्वर्य की दासता से संभ्रांत-सी अवस्था में काल(समय) खड़ा है। जहाँ आत्मा की शीतल लहरियां मधुर-गीति-काव्य आदि गुरु के सम्मान में गुनगुनाती है। जहाँ लोहा-जैसा शुष्क हृदय भी प्रेमास्पद हो खुल रहा है, विश्व का गुरु तत्व खुल रहा है। जहाँ गुरुओं की गुरु, आदि माँ सहस्र सहस्र तीर्थ यात्राओं को फलित करने पावित्र्य प्रदान करती हैं। हे देवी माँ, हम कृतज्ञतापूर्वक अपने हृदय की गहराई से आपको बारम्बार समर्पण करते हैं।  आपने हमारे हृदय खोल दिए, किन्तु हमारे बीच प्रेम तत्व को प्रगाढ़ बनाये रखने के लिए हमें लौह तत्व (सुनिश्चय) प्रदान कर हमारी सुबुद्धि बनाये रखने के लिए हमें, विन्यान्वित रखें। आपने अपने सबसे पसंदीदा उपहार (आशीर्वाद) हम पर बरसाए। कृपया, हमें इन आशीर्वादों को मिल बाँटने का ज्ञान (सुज्ञता) दीजिये। कृपा करके ,हमें भी इस मरकत -वर्णी (निर्मल) झील की तरह, हमेशा के लिए आपके चरण कमलों में आनंदपूर्वक ‘चहकते हुए ‘ आशीर्वादित रखें। कथानक की टिप्पणी एक तीर्थ यात्रा की समाप्ति हुई और दूसरी की शुरुआत हो गई।गंतव्य पर पहुँचने पर लगा, मैं अभी इससे दूर हूँ।उनके दरवाजे की देहरी पार करके मैं चकित हो उठा ,यह मेरी हजारों तीर्थ यात्राओं की पूर्णता थी , वे एक दिव्य अवतरण थीं,परम पूजनीय श्री माताजी निर्मला देवी! सं 1976 से मुझे उनकी सेवा में Read More …

Shri Kalki by Yogi Mahajan (A sequel to the Tenth Incarnation book I)

Shree Kalki Volume II श्री कल्कि (अंक-2) दसवां अवतरण का अनुगमन श्री कल्कि को अर्पित गीति काव्य सहस्रार की उच्चतर पहुँच में श्री कल्कि का मंदिर सजा है। इनकेगुप्तकक्षोंमेंसंचितधनछिपापड़ाहै। जिसेअनेकब्रहमाण्डधारणनहींकरसकते। इनकेउद्यानमेंमधुसेमीठेअंगूरऔरखरबूजहैं। त्रिभुवनोंसेसाधकजिनकेकरूणामय,  ऐश्वर्य (ज्ञान) की झलक पाने की स्पर्धा करते हैं। केवल सौभाग्यशाली ही इसकी देहरी पार करते हैं, वेअपनीताज–पोशी लेकर विश्व के महाराजाओं जैसे लौटते हैं। अपने ओठों पर एक प्रार्थना लिए, मैं हौले–से उनके (माँ) के स्वर्गीय दरवाजे पर दस्तक देता हूँ। “कौन आ रहा…..” उन्होंने पूछा। ”आपका भटका हुआ बच्चा“, मैंने उत्तर दिया। ”मांगो और मैं प्रदान करूंगी“, श्री माताजी ने कृपा–आशीष दिया। ”मुझे कुछ भी नहीं मांगना है, क्योंकि संसार के पास जो है, वह आपका उपहार नहीं है। मेरा उत्तर था। ”तब तुम यहां किस हेतु आए हो“, माँ ने पूछा। ”हे मातेश्वरी! आपके चरण–कमलों पर मरहम लगाने के लिए। मेरा उत्तर था। अचानकसे, दरवाजा खुला। शीतलबयारकेतेजझोंकेनेमेरीप्यासीआत्माकोशांतकिया।  कस्तूरी, चमेली, हिना और चंदन की सुगन्ध ने मेरी तपती इन्द्रिय–ज्ञान को शांत किया। स्वर्गीयअप्सराओंसेनिसृतअति–नैसर्गिक संगीत के सौन्दर्य ने मुझे उन्मादित कर दिया। संपूर्ण विश्व के कण–कण से सुसज्जित हुआ, उनका मुखमंडल हजारों सूर्यों से और बेहतर चकाचौंध करता प्रकट हुआ, उनकी हर सम्मोहित करती मुस्कान से मोती बिखरे। मैं  अनंत की आनंद–विभोरता में खो गया। जब होश में आया, मैंने उन्हें याद किया और खुद को भूल गया। (उद्गार – योगी महाराज) विवरण–कर्ता की टिप्पणी अस्सीकेदशककेआरम्भमेंश्रीमाताजीनेश्रीकल्किकेसाहसीअवतरणकारहस्योद्घाटनएकपुस्तक ”क्रिएशन–द इटरनल प्ले“ में किया। हालाँकि इसका दूसरा प्रकाशन उन्होंने रोके रखा, जैसा कि वे चाहती थीं कि उनके सद्य–जात बच्चे पहले अपने आत्म–साक्षात्कार में स्थिरता प्राप्त कर लें। निस्संदेह बीजों Read More …