How to enlighten energy centers?

Unity of Houston Church, Houston (United States)

1986-05-30 How to enlighten energy centers? Houston, United States, 113' Chapters: Introduction by Yogi, Talk, Self-Realization
Download video - mkv format (standard quality): Download video - mpg format (full quality): Watch on Youtube: Watch and download video - mp4 format on Vimeo: View on Youku: Listen on Soundcloud: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

उर्जा केंद्रों को कैसे प्रबुद्ध करें
सार्वजनिक कार्यक्रम, यूनिटी चर्च। ह्यूस्टन (यूएसए), 30 मई 1986।

मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं।

हमें यह समझना होगा कि सत्य जो है सो है, हम उसकी कल्पना नहीं कर सकते। हम इसे प्रबंधित नहीं कर सकते। हम इसे आदेश नहीं दे सकते। बस एक वैज्ञानिक व्यक्तित्व की तरह से, हमारे पास यह देखने के लिए खुला दिमाग होना चाहिए कि यह क्या है। जैसे हम किसी भी विश्वविद्यालय या कॉलेज में जाते हैं, हम यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि वहां क्या है, उसी तरह जब हमें सच्चाई के बारे में पता लगाना है, तो हमें बहुत खुले विचारों वाला होना चाहिए।

लेकिन जब हम ‘प्रेम’ की बात करते हैं, तो हमें पता होना चाहिए कि प्रेम और सच्चाई एक ही चीज है। परमेश्वर के प्रेम और स्वयं सत्य में कोई अंतर नहीं है। यह अंतर तब होता है जब हम ईश्वर के साथ एकाकार नहीं होते। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी से बहुत सांसारिक स्तर पर भी प्रेम करते हैं, यदि आप किसी से शारीरिक रूप से प्रेम करते हैं, तो आप कह सकते हैं, या शारीरिक रूप से, आप उस व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ जानते हैं; तुम बस इसे जानते हो। लेकिन जब तुम सत्य को जान लेते हो, तब तुम प्रेम बन जाते हो। और जिस प्रेम के बारे में मैं आपको बता रही हूं वह वो प्रेम है जो सर्वव्यापी है, जो क्रियांवित होता है, समन्वय करता है और सत्य है।

लेकिन, इसके लिए हमें यह महसूस करना होगा कि हम उस स्तर पर नहीं रहे हैं, जिसे हम निरपेक्ष कहते हैं। हम एक सापेक्ष दुनिया में रह रहे हैं। और अपेक्षाकृत, जब हम चीजों को देखना शुरू करते हैं, तो यह सत्य नहीं हो सकता। सत्य सापेक्ष नहीं हो सकता। यह निरपेक्ष होना चाहिए।

और हमारे विकास की प्रक्रिया में, जब हम इंसान बन गए हैं, हम जो कुछ भी जानते हैं, सत्य के रूप में … उदाहरण के लिए, यदि आप जानते हैं कि मैंने साड़ी पहनी है, तो आपकी दृष्टि से आप निश्चित रूप से जानते हैं कि मैंने साड़ी पहनी है, जो कि सत्य है तुम्हारे लिए, सबके लिए सत्य है। सब एक जैसे ही देखते हैं। तो यह आपके केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से संबंधित है: कि आपको इसे अपने केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर जानना चाहिए – सच्चाई। यह कोई कल्पना नहीं हो सकती। यह कोई मानसिक प्रक्षेपण नहीं हो सकता है और यह ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता जिसे सिद्ध न किया जा सके।

इसलिए हमें ईसामसीह को, उसके अस्तित्व को, ईश्वर कोअपने केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर,सत्यापित करना है। हमें यह साबित करना होगा कि ईसामसीह ने जो कुछ कहा है, वह सत्य है। जब तक हम यह साबित नहीं कर देते, तब तक किसी भी बात पर हमारे वंशजों को यकीन होने वाला नहीं है।

अब हमारे लिए यह साबित करने का समय आ गया है। और वह प्रमाण, चाहे आप इसे वैज्ञानिक कहें या दैवीय, जो कुछ भी होना चाहिए, हमारे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर व्यक्त किया जाना है। यानी हमें इसे महसूस करना चाहिए, हमें इसे देखना चाहिए, ऐसा घटित होना चाहिए।

मोहम्मद साहब ने कहा है – उन सभी महापुरुषों जिस भी युग में वे हुए उस अनुसार एक ही बात कही है – कि, “पुनरुत्थान के समय, जब मानवता उन्नत होगी, उनके हाथ बोलेंगे।” वह ज्यादातर समय पुनरुत्थान की बात करते है, लेकिन किसी भी तरह वे लोग कभी इसके बारे में बात नहीं करते हैं, केवल प्रलय के दिन की ही बातें करते हैं।

और यही कारण है कि हर धर्म में जो महत्वपूर्ण था, उसे उचित महत्व नहीं दिया गया। इसलिए, आज स्थिति ऐसी है कि हम उन सभी को अलग-अलग खण्डों में पाते हैं; लेकिन वास्तव में वे ऐसे नहीं हैं। वे सभी अलग-अलग समय में जीवन के एक ही वृक्ष पर पैदा हुए थे। प्रेम की वही ऊर्जा जिसने उन्हें पोषित किया। और जब वे खिले तो लोगों ने उन्हें यह कहते हुए तोड़ लिया कि, “यह मेरा है!” “यह मेरा है!” और उन्हें हठधर्मिता में, विचारों में डाल दिया, उन्हें पूरी तरह से समाप्त कर दिया। और फिर, अब क्या हम देखते हैं कि झगड़ा चल रहा है।

तो किसी को पता होना चाहिए कि हमें कुछ और जानना चाहिए। मैं इसे इस तरह से कहूंगी: कि पश्चिम में, विज्ञान के बारे में या अन्य चीजों के बारे में हमें जो भी ज्ञान है, वह उस वृक्ष के बारे में सतही ज्ञान के समान है। अब डॉ. वारेन ने जो कुछ भी तुमसे कहा है, वह जड़ों का ज्ञान है।

अब मान लीजिए, यदि पूरब ने आपसे यह ज्ञान सीखा है, विज्ञान के ज्ञान को समझने की कोशिश की है – बेशक, जो बहुत उपयोगी नहीं है, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता – उन्होंने विज्ञान के इस ज्ञान को सीखने की कोशिश की है, हम क्यों नहीं जड़ों के ज्ञान को सीखने की कोशिश करते? जीवन के वृक्ष की जड़ें। क्यों हमें यह पता लगाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए कि वे कौन सी जड़ें हैं जिन्हें पोषित किया जाना है, जिनकी उपेक्षा की गई है, और इसलिए हमें समस्याएं हैं?
ये हमारे भीतर स्थित जड़ें हैं जिनका वर्णन किया जा रहा है, और जब इन जड़ों को समझ लिया जाएगा, तभी हम देख सकेंगे कि कुछ और घटित होना चाहिये: हमें उन जड़ों को महसूस करना है, और जिन्हें हम अपने मध्य तंत्रिका प्रणाली में महसूस नहीं करते हैं। हमारे भीतर जरा भी संवेदनशीलता नहीं है।

उदाहरण के लिए, अब मान लीजिए कि कोई व्यक्ति पागल हो रहा है, उसे इस बात का होश नहीं है कि वह पागल हो रहा है। या अगर उसे कोई बीमारी हो जाती है, तो उसे तब तक होश नहीं आता, जब तक कि उसे कुछ दर्द न हो जाए। लेकिन वास्तव में, ये केंद्र सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र हैं, जो प्लेक्सस को ऊर्जा देते हैं और हमारी बहुत अच्छी तरह से देखभाल करते हैं।

लेकिन इन केंद्रों को कैसे प्रबुद्ध करें? वह बड़ी समस्या थी: इन केंद्रों को कैसे प्रबुद्ध किया जाए, ताकि हम अपनी जड़ों को महसूस करने लगें। उसके लिए, सर्वशक्तिमान ईश्वर, जो हमारे पिता हैं, जो अपनी सभी देखभाल में बहुत दयालु और सौम्य हैं, ने हमारे भीतर इस खूबसूरत चीज को बनाया है और वे सभी हमारे विकास के मील के पत्थर की तरह हैं।

इन केंद्रों को प्रबुद्ध होना है और जब उन्हें प्रबुद्ध होना है, तो कुछ करना होगा। उसके लिए, यहाँ त्रिकोणीय हड्डी में कुंडलिनी नामक ऊर्जा को रखा गया है। यह एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है “कुंडल।” यह एक विशेष गणितीय कारण से साढ़े तीन कुंडलियों में होता है। एक गणितज्ञ समझ सकता है कि साढ़े तीन एक बहुत ही महत्वपूर्ण गुणांक है। साढ़े तीन कुण्डलियाँ में वहाँ रखी जाती हैं। और इन सभी छह केंद्रों को प्रबुद्ध करने के लिए, एक बीज में एक मूल तत्व की तरह, इसे जागृत करना होगा, और अंततः इस केंद्र (सहस्रार) से प्रवेश कर गुज़रना होगा, जो इस क्रम में छठा केंद्र है क्योंकि सातवां वाला कुंडलिनी के नीचे स्थित है। यह महत्वपूर्ण बात है जो आत्मा बनने के लिए, हमारे साथ घटित होनी है: , जैसा कि ईसामसीह ने हमें बताया है कि हमें आत्मा बनना है, कि हमें पुनर्जन्म लेना है।

खुद को ऐसा प्रमाणित करके कि हम born again पुनर्जन्म पाये हुए हैं, आप हो नही जाते! आइए एक बात स्वीकार करें: हम मिथकों और बेईमानी के साथ नहीं जीने वाले हैं। अगर हम खुद के प्रति ईमानदार रहेंगे तो यह हमारे लिए फायदेमंद होगा। स्वयं के प्रति ईमानदार रहना, यह हमारे लिए हितकर है और स्वयं को प्रमाण-पत्र देने से हम कुछ बन नही जाते। यह केवल एक मानसिक प्रक्षेपण है।

मैं खुद को ईसाई कहता हूं या मुसलमान या हिंदू, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं जो भी पोशाक पहनता हूं या जो भी मैं अपने बालों में कंघी करता हूं, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पूरी ईमानदारी से, हमें समझना और देखना है।

उस पूर्ण अवस्था तक पहुँचने के लिए इस कुंडलिनी को उठना होगा। कोई दूसरा रास्ता नहीं है। और यही हमारे भीतर पवित्र आत्मा है। यह पवित्र आत्मा है, यह पवित्र आत्मा का प्रतिबिंब है। और पवित्र आत्मा ईश्वर की ऊर्जा है, जो प्रेम है, जो उसकी इच्छा है। उनकी इच्छा पवित्र आत्मा है, और हमारे भीतर कुंडलिनी के रूप में परिलक्षित होती है।

तो परमात्मा की इच्छा है कि आप उनके राज्य के नागरिक बनें, कि आप उनके राज्य में प्रवेश करें और उनके आशीर्वाद के सभी फलों का आनंद लें: समझदारी से, अपनी जागरूकता में, अपने मध्य केद्रीय तंत्रिका तंत्र पर। यह उनकी शुद्ध इच्छा है, और अगर वह शुद्ध इच्छा हमारे भीतर उठती है, तो हम देखते हैं कि हमारी अन्य सभी इच्छाएं बेकार थीं, और वे शुद्ध भी नहीं हैं। क्योंकि माना कि हमारी कोई इच्छा है, उदाहरण के लिए, हम एक कार चाहते हैं: ठीक है, एक कार पायें; तो हम एक घर चाहते हैं: एक घर मिलता है। वे कभी संतुष्ट नहीं होते। सामान्य तौर पर, यह कहा जाता है कि इच्छाएँ तृप्त नहीं होती हैं क्योंकि वे वास्तविक चाहत नहीं हैं, वे कृत्रिम इच्छाएँ हैं। वास्तविक इच्छा, असली इच्छा, वह एक है: शुद्ध इच्छा की यह ऊर्जा जो कहती है कि आपको ईश्वर की सर्वव्यापी शक्ति के साथ, ईश्वर के साथ एकजुट होना है।हमारी शुद्ध इच्छा यही है, और जब तक वह इच्छा पूरी नहीं हो जाती, आप किसी भी तरह की चीजें कर सकते हैं, आप हर तरह की चीजों में जा सकते हैं, कुछ भी करने की कोशिश कर सकते हैं: आप इसे कभी हासिल नहीं कर सकते।

अब, यह एक जीवंत प्रक्रिया है क्योंकि ईश्वर एक जीवंतअस्तित्व है। वह खाली शब्द नहीं है। वह निर्जिव किताब की तरह नहीं है। वह नहीं है। वह एक जीवंत परमेश्वर है। वह एक जीवंत ऊर्जा है और यह एक जीवंत प्रक्रिया है, इसलिए इसे सहज होना चाहिए। यदि वह जीवंत है तो उसे स्वतःस्फूर्त होना ही चाहिए।

उदाहरण के लिए, एक बीज है और आप उसे अंकुरित करना चाहते हैं। क्या आप इसे आदेश कर सकते हैं? क्या मानसिक रूप से आप कह सकते हैं, “ठीक है, अब यह अंकुरित हो गया है।” क्या आप ऐसा कह सकते हैं, “ठीक है, मैंने आप के लिये ये मंत्र पढ़े हैं, या बाइबल” या ऐसा कुछ करते हैं? क्या यह उठेगी? नहीं, ऐसा नहीं होगा। यह एक जीवंत प्रक्रिया है। आपको इसे धरती माता में डालना होगा और यह स्वतः ही उग जाएगा। आपको कुछ नहीं कहना है। आपको कोई भी कल्पना करने की ज़रूरत नहीं है। यह उगेगा। और ऐसा ही है, कि इस कुण्डलिनी को उसी तरह जगाना पड़ता है, जीवंत प्रक्रिया में।

अब, बहुत से लोग हैरान हैं कि मैं कोई पैसा नहीं लेती। सबसे पहले आप प्रेम के लिए पैसे कैसे चार्ज कर सकते हैं? और यह प्रेम, जो इतना सहज है? मैं कुछ नहीं करती, मैं बस तुम्हारे सामने खड़ी हूं, मैं कुछ भी नहीं कर रही हूं। परन्तु यदि वह प्रेम चारों ओर बह रहा है और यदि मेरी उपस्थिति के कारण तुम्हें यह जागृति मिलती है, तो मैं कुछ नहीं कर रही हूं; यह आपका अपना है। जो कुछ भी तुम्हारा है, यह कुण्डलिनी तुम्हारी अपनी है, तुम्हारी इच्छा तुम्हारी है: और यदि तुम अपना आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त कर लेते हो, तो वह तुम्हारा अपना है। पैसा चार्ज करने की क्या बात है? सच कहूं तो मैं कुछ नहीं करती। बिल्कुल कोई उपकार नहीं है। यह सिर्फ उत्प्रेरक है। तब तुम उत्प्रेरक बन जाते हो। तब फिर तीसरा व्यक्ति उत्प्रेरक बन जाता है। हर कोई उत्प्रेरक बन सकता है। लेकिन व्यक्ति को ईमानदार और सच्चा होना चाहिए अन्यथा आप सत्य को नहीं खोज सकते। यदि आप मिथकों के साथ जी रहे हैं, तो आप सत्य को कैसे खोज सकते हैं?

अब आधुनिक सहज योग, जैसा कि मैं इसे कहती हूं, जिस तरह से मैं कोशिश कर रही हूं, यह उससे थोड़ा भिन्न है जैसा कि लोग पहले इस्तेमाल कर सकते थे। जैसे कि पहले वे चक्रों को साफ करना चाहते थे, चक्रों के बाद, सब कुछ, और फिर सभी प्रकार की तपस्याओं में और वह सब कुछ फिर कुंडलिनी को ऊपर उठाना चाहते थे – क्योंकि लोगों को इस सफाई की आवश्यकता थी।

अब सबसे आसान तरीका जो मुझे लगा कि किसी तरह कुंडलिनी को ऊपर उठा देना है, इसे लोगों में प्रकाश की एक छोटी सी झलक भी आने दें, दीपक में प्रकाश आने दें, लोग खुद दीपक को देख लेंगे।
जब कुंडलिनी उठती है और प्रबोध की टिमटिमाहट होती है, तो आप स्वयं देख सकते हैं कि आपके साथ क्या गलत है, कौन सा चक्र पकड़ रहा है, समस्या कहां है, और फिर इसे ठीक करना बहुत आसान है। लेकिन अगर मैं कहूं, “यह करो!” और “ऐसा करो!” – सब बर्बाद! या तो वे मुझे यीशु की तरह स्पष्ट रूप से नष्ट कर देंगे, या वे मुझे हिटलर कह सकते हैं या ऐसा ही कुछ। बेहतर यह है कि, उन्हें खुद का आकलन करने दें, उन्हें खुदअपना मार्गदर्शक बनने दें, उन्हें अपना गुरु बनने दें और पता करने दें। पर कैसे?

जब कुंडलिनी अपने आप उठती है और उसमें से भेदन करती है, तो क्या होता है कि आपके हाथ बोलने लगते हैं। आप अपने चारों ओर पवित्र आत्मा की शीतल हवा का अनुभव करने लगते हैं। आप अपने सिर से भी पवित्र आत्मा की शीतल हवा के निकलने का अनुभव करने लगते हैं। अब, जब मैं आपको बताती हूं कि ये केंद्र किस लिए हैं, वे आपकी उंगलियों पर क्या दर्शाते हैं और आप इसका अभ्यास करना शुरू करते हैं, तो आप यह जानना शुरू करते हैं कि यह कैसे काम करता है और तब आपको पता चलता है कि यह सच है। तब मैं कहती हूं, अब मान लीजिए कि क्राइस्ट का चक्र पकड़ रहा है – यह (कपाल) क्राइस्ट का चक्र है। अगर मैं ऐसा कहती हूं तो आप ऐसा कह सकते हैं कि, “आप ऐसा कैसे कहती हैं, माँ कि, यह ईसामसीह का चक्र है?” क्योंकि यहां आपको लोर्ड्स प्रेयर कहनी है। यदि आप उस पर पकड़ रहे हैं, तो लोर्ड्स प्रेयर कहे बिना वह नहीं उठेगी। लेकिन कोई व्यक्ति जो एक साक्षात्कारी-आत्मा नहीं है, अगर वह लोर्ड्स प्रेयर कहता है तो ईश्वर उसे बिल्कुल नहीं सुनते हैं। मान लीजिए कि यह (माइक) जुड़ा नहीं है, यह काम नहीं करता है।

आपको मुख्य से जुड़ा हुआ होना है। आपको उसके साथ जुड़े रहना है। एक बार जब आप उसके साथ जुड़ जाते हैं, तो सब कुछ जीवंत हो जाता है और आपके बीच एक तालमेल हो सकता है [और] वे समझ सकते हैं। तब आप लोर्ड्स प्रेयर कह सकते हैं और यह काम करती है, यह बस काम करती है।

और एक और सरल बात मैंने इसे और भी आसान कर दिया है कि अगर आप ऐसा भी कह देते हैं कि, “मैं सभी को क्षमा करता हूं। मैं सभी को माफ कर देता हूं।” यह काम करता हैं ! अब, यह इतना आसान तरीका है। दूसरे दिन जब मैं स्पेन गयी तो मुझे आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा, “माँ, नहीं, यह इतना आसान कैसे हो सकता है?” और फिर एक अन्य शख्स ने मुझसे कहा कि, “देखो, माँ, हम भ्रमित हैं, कि हमें परमेश्वर को प्राप्त करने के लिए कष्ट उठाना पड़ेगा। “

मैंने कहा, “आप किस धर्म को मानने वाले हैं?” उन्होंने कहा, “ईसाई धर्म। “मैंने कहा,” असंभव! ईसाई धर्म में ऐसा बिल्कुल नहीं है। यह यहूदी लोग हैं जिन्होंने उस बात पर विश्वास किया क्योंकि वे यह स्वीकार नहीं करना चाहते थे कि ईसामसीह ने उनके लिए दुख उठाया। आप यहूदी हैं या ईसाई? पहले फैसला करो।” “ईसाई।” मैंने कहा, “तो यह गलत है। जब ईसामसीह ने आपके लिए दुख उठाया तो आप कैसे दुख उठा सकते हैं? क्याआप उसकी पीड़ा में विश्वास नहीं करते हैं।” या क्या उसने तुम्हारे लिए इतना कष्ट नहीं उठाया कि तुम अब भी पीड़ित रहो?”

फिर मैंने उनके अहंकार को थोड़ा सा चुनौती दी, बताते हुए मुझे खेद है लेकिन मैंने किया। क्योंकि मुझे लगा कि ऐसे वे इसे नहीं समझेंगे। मैंने कहा, “आपने कहा था कि आप पीड़ित हैं। मुझे नहीं पता कि स्पेन के लोग कहीं भी पीड़ित हैं। अगर कोलंबस अमेरिका नहीं गया होता, तो हम भारत में पूरी तरह से खत्म हो जाते! आपके पास यह नहीं होता। स्पेनियों को कब नुकसान हुआ? मुझे जरा यह तो बता दें। ईसाइयों को ईसाइयों के हाथों गैर-ईसाईयों के रूप में कब कष्ट हुआ? जो तुम मुझे बता रहे हो? मैं नहीं समझ सकती।” ऐसा है ही नही।

यह कुछ और है जिसे आपको जानना चाहिए। कि किसी कष्ट की आवश्यकता ही नहीं है। वह सर्वशक्तिमान ईश्वर है जो प्रेम का सागर है, जो अनुग्रह और करुणा का सागर है। यदि एक साधारण पिता अपने पुत्र को कष्ट नहीं होने देगा, तो वह परम पिता आपको कैसे कष्ट दे सकता है? आप उसके प्यार को चुनौती देते हैं आप उसकी करुणा को चुनौती देते हुए कहते हैं कि आप पीड़ित होना चाहते हैं। ठीक है, आप यहूदियों की तरह कष्ट उठाना चाहते हैं? तब हिटलर होता है! आपके पास हिटलर होगा। तुम भुगतना चाहते हो, तो अच्छी तरह भुगतो! (हँसी) इतना आसान! तुम्हें अब और कष्ट नहीं उठाना है। कोई दुख नहीं। आपको परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना है। मैं यहां आपको आनंद का संदेश और खुशी और अनंत जीवन का संदेश देने आयी हूं। मैं यहां आपको दुखों के बारे में बताने नहीं आयी हूं। और मैं इसमें विश्वास नहीं करती।

आप अहंकार या प्रति-अहंकार के कारण पीड़ित होते हैं।

हमारे भीतर दो संस्थाएं हैं जो लेफ्ट साइड और राइट साइड की हमारी गतिविधियों से बनी हैं।

श्री माताजी : मुझे नहीं पता, वारेन, क्या आपने उन्हें बाएँ या दाएँ के बारे में बताया?
वॉरेन: नहीं।

नहीं, तो लेफ्ट साइड हमारी इच्छा की शक्ति है। और राइट साइड हमारी क्रिया की शक्ति है। और अपनी क्रिया शक्ति का परिणाम हम यहाँ अपने अहंकार के रूप में इकट्ठा करते हैं; और अपनी इच्छा शक्ति के परिणामस्वरूप, हम प्रति-अहंकार, अर्थात् संस्कारबद्धता एकत्र करते हैं। हमारे पास दोनों चीजें हैं। एक पक्ष प्रति अहंकार है, दूसरा पक्ष अहंकार है।

अब, जब ये दोनों यहां आज्ञा में मिलते हैं, और एक साथ जुड़ते हैं और यहां हमारे फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र पर एक कैल्सीफिकेशन का कठोरपन होता है, तब ऐसा होता है कि हमारे भीतर एक ‘मै-पन विकसित होता है और हम मिस्टर सो, मिस्टर सो और मिसेज बन जाते हैं। तो और वह सब। लेकिन जब कुंडलिनी उठती है, तो यहाँ वह प्रभु ईसामसीह स्थित है, वह इन दोनों को शोषीत कर लेते है। इसलिए हम कहते हैं कि वह हमारे पापों के लिए, हमारे कर्मों के लिए मरे। यह साबित हो गया है क्योंकि वह अंदर शोषीत करता है, वह यहाँ का द्वार है। वह इन दोनों में से खींच लेता है

हमारे भीतर की संस्थाएं, जहां हमारी संस्कार्बद्धता और हमारे तथाकथित कर्मों को शोषित किया जाता है, और यह द्वार खुल जाता है और कुंडलिनी बाहर निकल जाती है।

आप स्वयं अपने सिर से अपनी कुंडलिनी के निकलने का अनुभव कर सकते हैं। मुझे आपको प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है। अनुभव आपका है। सब कुछ खुद आपका है। मुझे यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि आप इसे महसूस करते हैं, ऐसा कुछ भी नहीं: आप इसे महसूस करते हैं और फिर आप अपनी उंगलियों पर महसूस करते हैं।

अब यहाँ मुझे लगता है कि तुम्हारे पास शुद्ध बुद्धि होनी चाहिए। यदि आप पुर्वाग्रह से ग्रसित है, तो यह पहले से ही आपके अपने हठधर्मिता, आपकी अपनी विचारधाराओं और इन सभी चीजों से खराब हो रहा है, आप आसानी से सच्चाई को नहीं देख पाएंगे।

मैं आपको डॉ. वर्लीकर या डॉ. वारेन का उदाहरण दूंगी। हमारे पास अन्य डॉक्टर भी हैं, बहुत पढ़े-लिखे लोग और बहुत ही साधारण गाँव के भी लोग, बेहद साधारण लोग। यदि आप क्रॉस-सेक्शन को लें तो आप ऐसे लोगों को पा सकते हैं जो बिल्कुल अशिक्षित हैं, आप ऐसे लोग भी पाएंगे जो बहुत शिक्षित हैं, जीवन के सभी क्षेत्रों के सभी प्रकार के लोग हैं। लेकिन, मैंने उनके बारे में एक सामान्य बात देखा है कि, ऐसा है कि उनके पास शुद्ध बुद्धि है; कि एक बार प्रकाश को देखने के बाद, वे इसे स्वीकार करते हैं और वे इसे पूरा करते हैं। यही एकमात्र बिंदु है जहाँ मैंने लोगों को असफल होते देखा है, और इस तरह कुछ लोग बहुत तेजी से सहजयोगी बन जाते हैं और उस अवस्था को विकसित करते हैं।

अब इन डॉ. वारेन ने ऑस्ट्रेलिया में हजारों लोगों को आत्म्साक्षात्कार दिया होगा, आप हैरान रह जाएंगे। फिर ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने ऐसा किया है। लेकिन आपको स्थापित करना आपकी अपनी मूल्य प्रणाली है। बोध पाना मुश्किल नहीं है, लेकिन इसे स्थापित करने के लिए आपको समझना होगा कि अपनी कुंडलिनी को कैसे ऊपर उठाना है, इसे कैसे स्थापित करना है।

कुछ लोगों को मुश्किल से तीन से चार दिन लगते हैं और वे इसे स्थापित कर लेते हैं। कुछ लोगों को ज्यादा से ज्यादा एक महीना लग जाता है। लेकिन किसी को इसके पीछे पड़ना होगा और अपने आत्मसाक्षात्कार का सम्मान करना होगा और पहले खुद से प्यार करना होगा: कि आप ईश्वर के साधन हैं, और ऐसा कि जिस तरह यह उपकरण (माइक्रोफोन), जैसा कि यह जुड़ा हुआ है, आपको परमात्मा से जुड़ा हुआ होना है। और अगर यह कनेक्शन थोड़ा ढीला है, तो आपको इसे ठीक करना होगा – यह काम आपका है। और अगर आप इसे सीखते हैं, तो यह आपके लिए बहुत आसान है। जब एक साधारण ग्रामीण कर सकता है तो आप क्यों नहीं? ऐसा होते ही आप हैरान रह जाएंगे।

हम शांति की बात करते हैं। वे लोग जो शांति की बात करते हैं… दूसरी तरफ, जैसा कि आप जानते हैं, मेरे पास एक और तरह का जीवन भी है: वे शांति की बात करते हैं, और संयुक्त राष्ट्र, यह, वह, बड़ी, बड़ी बातें। लेकिन वहां भीतर कोई शांति नहीं है। जिनके भीतर शांति नहीं है, आप संयुक्त राष्ट्र या शांति के आधार पर कुछ भी कैसे बोल सकते हैं? आप नहीं कर सकते, क्योंकि यह सिर्फ मानसिक है और जैसे ही ऐसा कुछ होगा, यह एक पल में टूट जाएगा, आपके अहंकार या प्रति-अहंकार को चुनौती देगा।

इसलिए उचित स्थिति पर पहुंचने के लिए यह समझना चाहिए कि हमें जो भी मानवीय समस्याएं हैं, वे अंदर से आ रही हैं, बाहर से नहीं। तुम परमाणु बमों की चिंता मत करो, वे हमें नष्ट नहीं करेंगे। हमारे भीतर के परमाणु बम हमें नष्ट करने वाले हैं। जैसा कि आप देख रहे हैं, एड्स आ गया है, यह आ गया है, वह आ गया है। वे हमें नष्ट करने जा रहे हैं और यदि आप किसी न किसी तरह से इस कुंडलिनी को वहां ले जाकर वहां स्थापित करने का प्रबंधन कर सकते हैं, तो आपको किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं होगी, किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं होगी।

मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो सहज योग के माध्यम से कैंसर से उबर चुके हैं। हमारे देश के राष्ट्रपति थे और वह थे, नीलम संजीव रेड्डी – आप उन्हें लिख सकते हैं और उनसे पूछ सकते हैं – वे कैंसर से ठीक हो गए। और उन्हे ठीक होने में केवल दस मिनट लगे। आप एड्स से भी निरोग हो सकते हैं, अगर आप सहज योग को अपनाएं तो आपको आश्चर्य होगा।

लेकिन आप जो भी कोशिश करें, आप देखते हैं, यह उन लोगों के दिमाग में नहीं जाता है जो बहुत अधिक हठधर्मिता से भरे हुए हैं। वे विश्वास नहीं कर सकते कि परमेश्वर आपको ठीक कर सकता है! मुझे नहीं पता, उनके घर में ईसामसीह की तस्वीर है, उनके हाथों में बाइबिल है। ईसामसीह ने क्या किया? क्या उसके पास लोगों को निरोगी करने की ऊर्जा नहीं थी?

अब यह इलाज करना महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन इस घटना के उप-उत्पाद के रूप में आप अपना शारीरिक स्वास्थ प्राप्त करते हैं, आप उप-उत्पाद के रूप में अपना मानसिक स्वास्ठ प्राप्त करते हैं। जैसे ही एक प्रकाश आता है … अब देखें, मान लीजिए कि मैं अपने हाथ में एक सांप को पकड़े हूं और कोई प्रकाश नहीं है। अँधेरे में कोई कहता है, “तुम एक सर्प को पकड़े हुए हो! इसे दूर फेंक दो!” आप नहीं सुनेंगे। लेकिन अगर थोड़ी सी भी रोशनी है, तो आप सर्प को देख पाते हैं और आप उसे फेंक देते हैं, “हे भगवान!” इसी तरह लोगों ने अपनी नशीली दवाओं की लत की बुरी आदतों से छुटकारा पाया है और वह सब, ठीक यूं ही। लेकिन मुझे आपको यह बताना होगा’ आधुनिक लोगों को यह समझाना इतना कठिन है कि इस सब से कहीं ऊंचा भी कुछ है!

हमें बहुत बुरे अनुभव हुए, कभी-कभी इंग्लैंड में। जैसे, बीबीसी के लोगों ने मुझे टेलीविज़न पर बुलाया और मुझे उस पर बोलने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने कहा कि हम विश्वास नहीं कर सकते कि आप इसे बिना पैसे के कर सकती हैं। मैंने बोला क्यू? आप मुझे कितना भुगतान करेंगे?” वह बोला, नहीं! एक एंग्लो-सैक्सन दिमाग पैसे के बिना कुछ भी नहीं समझ सकता है।” मैंने कहा, “तब एक एंग्लो-सैक्सन मस्तिष्क को बोध नहीं हो सकता! यही समीकरण है।” ईसामसीह ने आप से कितना धन लिया? यदि आप ईसामसीह को बिल्कुल भी समझते हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि हमने उसे बेच दिया, और हम अभी भी उसे बेच रहे हैं!

आप परमात्मा को नहीं बेच सकते, और आप इन सभी चीजों को नहीं बेच सकते। जिस पर उन्हें आश्चर्य हुआ। और वे मुझे बीबीसी पर नहीं रखेंगे। मैंने कहा, “ऐसे में मैं बीबीसी के खिलाफ कुछ नहीं कहूंगी, लेकिन जहां तक ​​मेरे काम की बात है तो आप मुझे पैसे नहीं दे सकते.” आप मुझे कितना भुगतान करेंगे आप मुझे बताएं? यह सिर्फ प्यार और सिर्फ स्नेह है। जैसे सिड आया और उसने मुझसे कहा, “नमस्ते,” मुझे उसके लिए कितना भुगतान करना चाहिए?

प्यार का भुगतान नहीं कर सकते, चार्ज नहीं कर सकते। ठीक है, अपने हॉल के लिए, आप कर सकते हैं, अन्य चीजों के लिए जो आप कर सकते हैं। यह एक बात है जिसे हम समझ नहीं सकते। और जब मैं टोरंटो गयी, मुझे आश्चर्य हुआ कि उन्होंने मुझसे एक सवाल पूछा, “आपके पास कितनी रोल्स रॉयस हैं?” मैंने कहा, “मेरे पास बिल्कुल नहीं है!” (हँसी)। तब उन्हें मुझमें कोई दिलचस्पी नहीं रही, इसमें कोई व्यापार नहीं है!
अब, हमें यह समझना होगा कि हम सत्य के साधक हैं, और हम भीतर की शांति के साधक हैं, भीतर का मौन, भीतर का प्रेम, और वह शक्ति जो आपको देती है, आपको दूसरों से प्रेम करने की शक्ति देती है। अब, जब हम दूसरों से प्रेम करते हैं, तो प्रेम के बारे में हमारा विचार या तो किसी प्रकार का अधिकार है या शायद कोई लालच या शायद कोई वासना या कुछ और। लेकिन इस प्रेम का इन सबसे कोई लेना-देना नहीं है, यह शुद्ध प्रेम है। और शुद्ध ईश्वरीय प्रेम ऐसा है, जैसे पेड़ में एक रस, जो चढ़ता है और पेड़ के सभी भागों में जाता है, फूल में जाता है, फल में जाता है, पत्तियों पर जाता है, और वापस लौटआता है। मान लीजिए यह एक फूल में उलझ जाये तो? वृक्ष मरेगा और शक्ति भी मरेगी। यह चिपकता नहीं है, लेकिन यह पोषण करता है। यह पूरी तरह से शामिल है, लेकिन संलग्न नहीं है।

यह सारा विवेक आप तब विकसित करते हैं जब आपके पास वायब्रेशन होते हैं और आपको आश्चर्य होता है कि आप तीसरे पुरुष की तरह बात करना शुरू कर देते हैं। जैसे हमारे पास भारत की एक महिला थी, वह मेरे साथ लॉस एंजिल्स आई और कहा कि हमारा बेटा होनोलूलू से आया। उसने कहा, “माँ, उसे साक्षात्कार दो!” मैंने कहा, “मैंने कोशिश की है, तुम दे दो।” उसने कहा, “मैं कैसे कर सकती हूँ? उसे नहीं मिल रहा है।” तो मैंने कहा, “फिर मैं कैसे कर सकती हूँ?” फिर मैंने कहा, “ठीक है, उसे एक प्रमाण पत्र दे दो कि वह एक साक्षात्कारी-आत्मा है!” “मैं उसे झूठा प्रमाण पत्र कैसे दे सकती हूँ, माँ?” मैंने कहा, “यही बात है: उसे बोध नहीं हो रहा है। यही तो बात है! सच को स्वीकार करो।” “तो हमें क्या करना चाहिए?” मैंने कहा, “यह एक अलग बात है! लेकिन उसे साक्षात्कार नहीं हो रहा है! इसे समझना चाहिए।” तो उसने कहा, “हाँ, यह सच है। यह नहीं जाता है; यह काम नहीं करता है।” “यह।” उसने ऐसा नहीं कहा कि, “मैंने किया है” या “मैं करती हूं।” “यह काम नहीं करता है।” आप तीसरे व्यक्ति रूप बन जाते हैं और आप तीसरे व्यक्ति स्वरूप की भाषा में बात करना शुरू कर देते हैं। जैसा कि संस्कृत में, हम इसे अकर्म कहते हैं: कि आपका कार्य अक्रिया हो जाता है।

तुम अब और कर्म नहीं करते, लेकिन यह एक अ-क्रिया, एक अनासक्त क्रिया बन जाती है। आप बस ऐसा कहने लगते हैं, “यह काम नहीं करता है। यह हिलता नहीं है। यह बाहर नहीं आता है।” या “होता है।” तो यह कोई और है जो इसे कर रहा है। दरअसल, आप कुंडलिनी को ऊपर उठा रहे हैं, लेकिन आप ऐसा नहीं कहते।

और यह शक्ति आप सभी के पास है। आप सभी को यह शक्ति प्राप्त है। आप सभी के पास होना चाहिए। आपको इसे न लेने में संकोच क्यों करना चाहिए, मुझे समझ नहीं आ रहा है? मान लीजिए कि आप किसी से सम्बंधित हैं, या कुछ विशेष हठधर्मिता या कुछ भी: जिसने आपको पूर्ण संतुष्टि नहीं दी है, जिसने आपको कुछ भी नहीं दिया है! तो क्यों न आपके पास यह शक्ति प्राप्त हो जो आपको पूर्ण रूप से गतिशील बनाती है?

अब, आप जानते हैं कि मेरी उम्र कितनी है, मैं बहुत बूढ़ी हूं और मैं एक गृहिणी हूं। मैं एक दादी हूँ और मुझे दूसरी तरफअपने विवाहित जीवन में बहुत कुछ करना है और मैं बहुत यात्रा करती हूँ; मैं जो कुछ भी करती हूं, मुझे बिल्कुल भी थकान नहीं होती है। और आप बहुत चुंबकीय बन सकते हैं और ऐसा व्यक्ति इतना शुद्ध व्यक्तित्व बन जाता है कि ऐसे व्यक्ति की एक झलक भी शांति पैदा कर सकती है, आपको आनंद दे सकती है, आपको ऊंचा उठा सकती है, आपको निरोग कर सकती है, कुछ भी कर सकती है।

शक्ति का ऐसा सागर आपकी पहुंच में है तो हम इसे प्राप्त क्यों न करें? यह बहुत सरल है। यह तो सभी ने कहा है। ऐसा नहीं है कि यह केवल क्राइस्ट ने कहा था, लेकिन उनमें से हर एक ने कहा है कि आपको अपना साक्षात्कार प्राप्त करना है। हजारों साल पहले की बात है जब राम आए थे, उससे पहले भी हमारे पास और भी कई लोग थे, वो आए। फिर श्री कृष्ण आए, फिर बुद्ध, महावीर आए: उन सभी ने कहा, “अपना साक्षात्कार प्राप्त करो।”

बुद्ध और महावीर इस हद तक चले गए कि उन्होंने कहा, ‘ईश्वर की बात मत करो। अवतारों की बात मत करो। बस अपना बोध प्राप्त करो।”, केवल आत्म-साक्षात्कार, और कुछ नहीं। क्योंकि उन्होंने सोचा था कि जब आप ईश्वर के बारे में बात करना शुरू करते हैं, तो वे फिसल जाते हैं।

तो, उन्हें बताएं, “आप अपनाआत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें,” यही मुद्दा है और यही महत्वपूर्ण है। तो लोगों ने उन्हें अनीश्वरवादी (अनीश्वरवाद – नास्तिक) कहा – जो नास्तिक हैं जो ईश्वर में विश्वास नहीं करते हैं। उन्होंने निस्संदेह ईश्वर में विश्वास किया था, लेकिन वे इसके बारे में बात नहीं करना चाहते थे, क्योंकि उन्होंने सोचा कि ईश्वर के बारे में बात करना केवल एक बात और एक बात और एक बात ही बन जाती है।

तो, अब अनुभव करने का समय आ गया है।

दुर्भाग्य से, ह्यूस्टन मेरे दौरे और उस सब के लिए थोड़ा दूर लगता है, लेकिन पूरी दुनिया में हमारे पास हजारों और हजारों लोग हैं जिन्हें साक्षात्कार हो गया है और यह काम कर रहे हैं। जरूरी नहीं कि आपको अपनी नौकरी छोड़नी ही पड़े। और कुछ नहीं छोड़ना है। आप इतने गतिशील हैं। आपको अपना नाम बदलने और अज़ीब कपड़े पहनने की ज़रूरत नहीं है। ऐसा कुछ नहीं! (हँसी)।
कुछ लोग सोचते हैं कि आपको कुछ सींग विकसित करने होंगे, आप देखिए। ऐसी सब बकवास करने की जरूरत नहीं है। आप कहीं भी हों, यह एक आंतरिक परिवर्तन होता है। यह आपकी खुद की शक्ति बन जाती है। केवलएक बात है किआपके चेहरे पर अलग ही चमक होती है; आंख में चमक है। और ऐसा व्यक्ति बहुत प्यार करने वाला, स्नेही और शांतिपूर्ण व्यक्ति होता है; किसी प्रकार का कोई दबाव नहीं, किसी प्रकार का कोई दबाव नहीं। एक बहुत, मुझे कहना चाहिए, संतुष्ट व्यक्ति। बहुत संतुष्ट व्यक्ति। यह सब तुम्हारा अपना है, बस, बस, यह सफलता घटित होनी ही चाहिये और मुझे यकीन है कि यह काम करेगी।

मुझे लगता है कि कल हम आप सभी के लिए एक कार्यशाला आयोजित करने जा रहे हैं।

मुझे नहीं पता, आज क्या आप चाहते हैं कि मैं उन्हें दे दूं? क्या मुझे आज अनुभव प्रदान करना चाहिए?

वॉरेन: मुझे यकीन है कि वे चाहेंगे।

श्री माताजी : नहीं, उनसे पूछो!

साधक: हाँ!

श्री माताजी: धन्यवाद। वे हमेशा ऐसा कहेंगे। (हँसी)

अब हमने सीमा पार से कम से कम पच्चीस सहजयोगियों को आयात किया है। और मुझे कहना होगा कि एक दिन ऐसा आना चाहिए जब हमें ह्यूस्टन से दुनिया भर में बहुत सारे सहज योगियों का निर्यात करना चाहिए। वह सबसे अच्छा समय होगा, जब मैं ह्यूस्टन आने का आनंद पाऊंगी।

इसलिए, जैसा कि मैंने कहा, सत्य, प्रेम और आनंद एक ही विषय हैं, क्योंकि ये सभी आत्मा के गुण हैं।

सत्य को, आप अपने ध्यान में जानते हैं। जब भी आप किसी पर अपना चित्त लगाते हैं, तो आप उस व्यक्ति के बारे में सच्चाई जान जाते हैं। आप अपने बारे में सत्य को जानते हैं, और आप परम सत्य को भी जानते हैं: कि आप आत्मा हैं।

तुम यह शरीर नहीं हो। तुम यह मन नहीं हो। तुम आत्मा हो। यही सबसे बड़ा सच है। और इसलिए इसे स्थापित करना होगा।

एक बार जब आप सत्य बन जाते हैं, तो आत्मा की सारी शक्तियाँ स्वतः ही प्रकट होने लगती हैं। एक टेलीविजन की तरह, यदि आप देखते हैं, तो एक छोटे से बॉक्स की तरह दिखता है, लेकिन एक बार कनेक्ट होने के बाद, आप इसकी गतिशीलता देखते हैं। ऐसे ही यह परम सिद्धि होनी है।

परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें।

इसके अंत में, मैं इस कार्यक्रम की व्यवस्था करने के लिए, मुझे उन सभी के साथ आने और बात करने का मौका देने के लिये आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहती हूं। आशा करती हूं कि अगली बार जब मैं सितंबर में फिर से आऊंगी, तो मैं वापस यहांआ सकूंगी। क्योंकि ह्यूस्टन, जैसा कि मैंने आपको बताया, मेरे रास्ते से थोड़ी दूर है, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता। हमें इसे सुलझाना होगा। अगर इस बार कुछ लोगों को साक्षात्कार हो गया तो मैं सितम्बर में यहाँ अवश्य आऊँगी।

इसलिए, शुरू करने के लिए, जैसा कि मैंने कहा, सबसे पहले, हमें खुद से प्यार करना चाहिए। हमें खुद को माफ कर देना चाहिए। हमें खुद को माफ करना होगा और हमें खुद का सम्मान करना होगा।

हम मनुष्य हैं। परमात्मा ने हमें अमीबा से इस अवस्था तक बनाया है। हम बेकार लोग नहीं हैं। उसकी नज़र में, हम सभी स्वर्ग और सभी ब्रह्मांडों के लायक हैं क्योंकि आप मंच पर हैं और आप उसकी इच्छा को पूरा करने जा रहे हैं, क्योंकि वह चाहता है कि आप सभी उसके क्षेत्र और उसके राज्य में हों।

इसलिए सबसे पहले आपको खुद को माफ करना होगा और खुद को बिल्कुल भी दोषी महसूस नहीं करना होगा। यदि आप दोषी महसूस करते हैं, तो मैं आपको बताऊंगी कि आपके साथ क्या होता है – यह चौंकाने वाला है। यदि आप दोषी महसूस करते हैं, तो आप यहां इस केंद्र की समस्या को विकसित कर लेते हैं, जो कि बायीं विशुद्धि है, जैसा कि हम इसे कहते हैं। उस केंद्र को विकसित करने से, आप शुरू से ही स्पॉन्डिलाइटिस विकसित करते हैं। यदि आपको स्पॉन्डिलाइटिस नहीं होता है, तो आपको एनजाइना नामक रोग हो जाता है। तो कृपया अपने आप को बिल्कुल भी दोषी न समझें।

शायद हमें नहीं पता कि परमात्मा का प्यार और उसकी करुणा क्या है। सबसे बढ़कर, वह क्षमा का सागर है – मेरा विश्वास करो! उसकी क्षमा इतनी महान है कि हम ऐसी कोई गलती नहीं कर सकते कि वह हमें क्षमा न कर सके। हमें बस खुद को माफ करना है। हमें खुद को भी नहीं आंकना चाहिए। खुद की निंदा करके हम अपनी मदद बिल्कुल नहीं करने जा रहे हैं। इसके विपरीत, केवल खुद देखें कि यदि वह वास्तव में करुणा है, सभी करुणा का स्रोत है, आनंद और प्रेम का सागर है, तो हमारे पास अपराधबोध जैसी एक फालतु सी चीज कैसे हो सकती है, क्योंकि वह आपके उत्थान को रोक देगी।

चुंकि पश्चिम में दोषी होना एक फैशन है। भाषा ही इस तरह सेआगे बढ़ती है कि,सारी “मुझे खेद है। मैं यह हूँ। मुझे डर है।” ऐसे शुरू होता है। तो सारी भाषा ही ऐसी है कि, सारी मानसिकता इसी तरह से काम करती है कि सारा दोष तुम खुद पर ले लो। “ओह यह दोष मेरा है, हाँ, यह मेरा है।”

तो कृपया, यह एक बात है: किसी को दोषी महसूस नहीं करना चाहिए। किसी को भी ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि आपने अमूक गलती की है और यह गलती की है: यह एक चीज है जिसके साथ शुरूआत करना है। और फिर यह केवल दस मिनट का काम है और आप अपना उत्थान प्राप्त कर लेंगे। और फिर तुम वही करोगे जैसा मैं यहाँ कर रही हूँ।

अब इस अनुभव के लिए सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि इन सभी केंद्रों का निर्माण भौतिक स्तर पर पांच तत्वों द्वारा किया गया है, और सबसे महत्वपूर्ण है मातृ तत्व, यह धरती माता। तो धरती माता से मदद लेने के लिए हमें अपने जूते उतारने होंगे और धरती माता पर पैर रखने होंगे। वह सबसे उपयोगी चीज है और इस त्रिकोणीय हड्डी का निर्माण उसके विशेष ध्यान से हुआ है। तो बस अपने दोनों पैरों को जमीन पर समानांतर स्तर पर रखें।

अब आपको आराम से बैठना है, असहजता से नहीं, लेकिन आलसी रवैये से नहीं, थोड़ा सतर्क रवैये के साथ; सीधा। अपने सिर को बहुत अधिक या नीचे की ओर नहीं धकेलना, बल्कि सीधे तरीके से।

अब इस तरह दोनों पैरों से- और आप अपना चश्मा भी उतार सकते हैं क्योंकि आपको हर समय अपनी आंखें बंद रखनी होती हैं। कोई मंत्रमुग्धता नहीं है – और यह आपकी दृष्टि में भी मदद करता है।

अब, ये दोनों हाथ, प्रतिनिधित्व करते हैं: बायां इच्छा की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है और दायां क्रिया की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। तो हम अपनी प्राप्ति की इच्छा के लिए बाएं हाथ का उपयोग करने जा रहे हैं। इसलिए आप इसे आराम से अपनी गोद में अपनी ओर या किसी भी तरह से रखें जिससे आप सहज महसूस करें। अगर आपको लगता है कि आप इसे अपनी कुर्सी की बाहों के ऊपर रख सकते हैं, जो भी आपको पसंद हो। और फिर दूसरे दाहिने हाथ का उपयोग अपने केंद्रों की मदद के लिए करना है।

मैं आपको बताऊंगी कि अपनी कुंडलिनी को कैसे ऊपर उठाया जाए ताकि आप इसे घर पर भी कर सकें, और इसे ठीक से उठाना बहुत आसान है। और अभी, आप इसे स्वयं उठा सकते हैं यह बहुत आसान है।

सबसे पहले, मैं आपसे अपने दिल पर हाथ रखने के लिए कहूंगी। आपको अभी अपनी आंखें बंद करने की जरूरत नहीं है। मैं आपको केंद्र दिखाऊंगी और आप इसे बस रख सकते हैं। अब पहले दिल पर फिर अपने पेट के ऊपरी हिस्से, पेट में। फिर दूसरा आपके पेट के निचले हिस्से में, बाईं ओर है।

हमारी सारी हरकतें बायीं ओर होंगी।

फिर हम वापस पेट के ऊपरी हिस्से पर चले जाते हैं। फिर हम फिर से ह्रदय पर उतर जाते हैं। फिर हम इस केंद्र पर वापस जाते हैं, जो मैं आपको बता रही थी, कोने के बीच, कंधे के कोने पर और गर्दन पर आप इस हाथ को इस तरह रख सकते हैं, और अपने सिर को अपनी दाईं ओर मोड़ सकते हैं ताकि हाथ पिछे चला जाए, बिल्कुल पीछे रीढ़ की हड्डी की ओर।

फिर इस हाथ को इस प्रकार ऊपर उठाएं कि कपाल को दोनों ओर से दबाएं, अपना हाथ कपाल पर रखें; और, हाथ के दोनों ओर से आप इसे इस तरह जोर से दबाते हैं। आप चाहें तो सिर झुका सकते हैं।

तब आप इस दाहिने हाथ को अपने सिर के पीछे रख सकते हैं; गर्दन पर नहीं, बल्कि सिर पर, जहां ऑप्टिक लोब होता है। और फिर अपने सिर को पीछे की ओर धकेलें, इस तरह ऊपर की ओर धकेलें।

फिर आखिरी यह है कि आपको अपनी हथेली को तानना है और अपनी हथेली का केंद्र, बिल्कुल अपनी हथेली का केंद्र, फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र पर रखा जाना है, जो आपके बचपन में नरम हड्डी थी। फिर आपको इसे जोर से दबाना है, अपनी उंगलियों को खींचकर जोर से दबाना है, इसे सात बार धीरे-धीरे अपने तालु पर घुमाएं। बस इतना ही। आपको बस इतना ही करना है। बस इतना ही। यह इतना आसान है।

ठीक है। लेकिन एक बात: कृपया अपनी आँखें मत खोलो, क्योंकि चित्त अंदर खींचना है और अगर आँखें खोली जाती हैं, तो चित्त विचलित हो जाता है, यह आप अच्छी तरह जानते हैं।

तो जैसे मेरी यह साड़ी, जब कुंडलिनी ऊपर आ रही है, तो यह कुंडलिनी की गति से चित्त को खींचती है। यह प्रयास सभी को करना चाहिए। यह बहुत सरल है। आपकी बहुत मदद करेगा।

और फिर कल, कार्यशाला के लिए, यदि आप आते हैं, तो हम इसे अच्छी तरह से स्थापित करेंगे और हम आपको बताएंगे कि इसके बारे में क्या करना है।

तो अब हम बाएँ हाथ को मेरी ओर रखते हैं, वह एक बात है, और दायाँ हाथ हृदय पर रखते हैं और अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। बस अपनी आंखें बंद करो।

अब बाएं हाथ को आराम से रखना चाहिए। कहीं कोई असुविधा नहीं होनी चाहिए। मेरा मतलब है, अगर आपको कहीं भी कोई असुविधा महसूस होती है, यह तंग है या कुछ भी है, तो आप इसे ढिला छोड़ सकते हैं ताकि आप सहज हों, यह बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि बेचैनी उस तरफ आपका ध्यान खींच सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि आराम से रहें, तनावमुक्त रहें और सीधे तरीके से बैठें।
अब कृपया अपना दाहिना हाथ अपने ह्रदय पर रखें। अब यहाँ सर्वशक्तिमान परमेश्वर का प्रतिबिंब है जो हृदय में आत्मा है। मनुष्य में यह हृदय में निवास करता है। यद्यपि सर्वशक्तिमान ईश्वर का आसन आपके सिर के ऊपर फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र के ऊपर है, लेकिन प्रतिबिंब हृदय में है, इसलिए हृदय इतना महत्वपूर्ण है। यहां आपको कहना है, या आपको मुझसे एक बहुत ही बुनियादी सवाल पूछना है। आप मुझे श्री माताजी कह सकते हैं। अगर आसान हो तो आप मुझे माँ कह सकते हैं। “माँ, क्या मैं आत्मा हूँ?” कृपया इस मौलिक प्रश्न को अपने दिल में तीन बार पूछें। “माँ, क्या मैं आत्मा हूँ?” जो सच है, लेकिन आप कृपया मुझसे सवाल पूछें।

दोषी महसूस न करें। मैं अभी भी महसूस कर पा रही हूं कि यह बहुत अधिक अपराध बोध चल रहा है, ताकि हम सोचें, “हम आत्मा कैसे हो सकते हैं?” तुम सब आत्मा हो। तुम अपनी महानता को नहीं जानते। तुम अपनी महिमा को नहीं जानते।

केवल कहो, “माँ, क्या मैं आत्मा हूँ?”

बायाँ हाथ मेरी ओर और दाहिना हाथ हृदय पर रखें। दिल पर सिर्फ एक हाथ, एक हाथ मेरी तरफ।

अब दाहिने हाथ को बायीं तरफ, पेट के ऊपरी हिस्से में, बायीं तरफ नीचे की तरफ ले जाएं और उंगलियों से दबाएं। अब यह आपकी गुरुत्व का केंद्र है। यदि आप आत्मा हैं, तो आप अपने स्वामी हैं और आप अपने मार्गदर्शक हैं, जैसा कि मैंने आपको बताया था।

अब यहां इसे जोर से दबाएं और तीन बार फिर से एक प्रश्न पूछें, “माँ, क्या मैं अपना स्वामी हूँ? क्या मैं अपना खुद का मार्गदर्शक हूं? क्या मैं अपना गुरु हूँ?” हम उन सभी महान गुरुओं के खिलाफ नहीं जा रहे हैं जो वास्तविक गुरु हैं, सत पुरुष, सत गुरु हैं; महान अवतारों की तरह; महान पैगम्बरों की तरह। वे सभी महान ईश्वरीय लोग हमें अपना मार्गदर्शक बना सकते हैं। कृपया तीन बार।

अब आपको अपने हाथ को अपने पेट के निचले हिस्से में बायीं तरफ ले जाना है। अब, यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण, बहुत, बहुत महत्वपूर्ण केंद्र है। यह केंद्र वह केंद्र है जो उन सभी दैवीय तकनीकों और दैवीय नियमों को क्रियान्वित करता है जिनके बारे में हम अब तक नहीं जानते हैं। हम नहीं जानते। जब ईसामसीह के शिष्यों ने पवित्र आत्मा के माध्यम से अपनी अनुभूति प्राप्त की, तो उन्हें पवित्र आत्मा की शीतल हवा का अनुभव हुआ, और वे एक अलग भाषा में बात करने लगे। वे किसी भाषा जैसे लैटिन या ग्रीक या कुछ भी नहीं बोलते थे, वे चक्रों की भाषा बोलते थे। और वे हाथ हिलाने लगे, तो लोगों को लगा कि वे पागल हैं।

लेकिन अब आप देखेंगे कि यदि आप अपनी आत्मबोध प्राप्त कर लेते हैं तो आपकी उंगलियों के माध्यम से सभी दिव्य नियमों का प्रबंधन किया जा सकता है, क्योंकि आपकी उंगलियां सक्रिय हो जाती हैं और पवित्र आत्मा की ठंडी स्पंदन या ठंडी हवा का उत्सर्जन करती हैं। तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन जिन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं हुआ वे लोग नहीं समझ सकते हैं और इसलिए उन्होंने उन्हें पागल कहा।

आज वह स्थिति नहीं है।

अब, कृपया अपना हाथ उस केंद्र पर रखें जिसे स्वाधिष्ठान कहा जाता है। और यहां आपको पूछना है कि आप इस तकनीक का सच्चा ज्ञान, शुद्ध ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं। मैं आप पर कुछ भी थोप नहीं सकती क्योंकि आपकी स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना है। अगर आपको पूरी स्वतंत्रता मिलनी है तो अपनी मर्जी से और अपनी आजादी पर करनी चाहिए।

तो यहाँ आपको बस इतना कहना है, “माँ, कृपया मुझे ईश्वरीय, शुद्ध ज्ञान प्र्दान करें?”

कृपया छह बार मांगे क्योंकि इस केंद्र में, जैसा कि आपको बाद में पता चलेगा, छह पंखुड़ियां हैं। कृपया प्रार्थना करें, “माँ, कृपया मुझे परमात्मा का शुद्ध ज्ञान दिजिये?” “माँ, क्या कृपया मुझे परमात्मा का सच्चा ज्ञान दिजीये है?” छ: बार। अब आपको छह बार यही मांगना है।

फलस्वरूप कुण्डलिनी गति करने लगी है। तो अब उच्च केंद्रों को फैलाने के लिए, और कुंडलिनी को पूर्ण विश्वास देने के लिए, हमें अपना दाहिना हाथ पेट के ऊपरी हिस्से में बाईं ओर रखना होगा और इसे जोर से दबाना होगा, और यहाँ कहना है, पूर्ण विश्वास होगा स्वयं, “माँ, मैं अपना स्वामी हूँ। माँ, मैं अपनी खुद की मार्गदर्शक हूँ।

कृपया इसे पूरे विश्वास के साथ कहें। इसमें कोई अहंकार नहीं है। पूरे विश्वास के साथ कहना चाहिए ताकि आपकी गुरुपद का केंद्र खुल जाएगा और कुंडलिनी अच्छी तरह से गुजर सकती है। यह सहज है। केवल एक चीज है कि हम कुंडलिनी को ऊपर की ओर अपना रास्ता बनाने में मदद कर रहे हैं।

यह तुम्हें दस बार कहना है, क्योंकि इसमें दस पंखुड़ियां हैं। यह वास्तव में दस आज्ञाएँ हैं, जो इन दस पंखुड़ियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। और दस थे

अतीत में सतगुरु जो इस धरती पर बार-बार आए, जैसे पैगंबर: जैसे मूसा, अब्राहम, लाओ त्से, सुकरात।

कृपया इसे दस बार कहें।

अब कृपया अपना दाहिना हाथ फिर से अपने दिल की ओर उठाएं, और इसे जोर से दबाएं। यहाँ तुम्हारी आत्मा है। फिर से, पूरे विश्वास के साथ, आपको सबसे बड़ा सत्य देखना होगा: “माँ, मैं आत्मा हूँ।” कृपया इसे दस बार कहें, “माँ, मैं आत्मा हूँ।”

यह आपको बारह बार पूरे विश्वास के साथ कहना है। बारह बार, “माँ, मैं आत्मा हूँ।”
अब कृपया अपना दाहिना हाथ उठाएं और इसे अपने कंधे पर, कंधे और गर्दन के बीच के कोने में, बाईं ओर रखें और जोर से दबाएं।

अपने सिर को दाईं ओर मोड़ें, ताकि अब आप अपना हाथ पीछे धकेल सकें। इसे सामने की तरफ से लें, हाथ को पीछे की तरफ न लें, बल्कि सामने की तरफ से पार करें। तुम कर सकते हो। और यहाँ आपको सोलह बार कहना है, “माँ, मैं बिल्कुल भी दोषी नहीं हूँ” सोलह बार। अपने सिर को दाईं ओर मोड़ें और इसे सोलह बार कहें और फिर भी, यदि आप महसूस करना चाहते हैं कि आप दोषी हैं, या यदि आप वास्तव में मानते हैं कि आप दोषी हैं, तो मुझे लगता है कि आप इसे एक सौ आठ बार कहकर खुद को दंडित करें। . (हँसी)

आपको अपने प्रति सुखद दृष्टिकोण रखना चाहिए, जैसा कि मैं आपसे अनुरोध करती रही हूं, कि आप अपने प्रति सुखद रहें। हर समय स्वयं की निंदा , स्वयं में दोष ढूंढ़ना और यह कहना कि आपने अमूक-अमूक गलती और वह गलती की है ऐसा न करें- ऐसा कुछ भी नहीं है। तो बस इसके बारे में बहुत सुखद और खुश रहो और बस इतना कहो, “माँ, मैं बिल्कुल भी दोषी नहीं हूँ।” कृपया अपना सिर दाईं ओर मोड़ें, कृपया, यह आपकी मदद करेगा। सोलह बार।

यह अभी भी बहुत जोरों पर है। बस चलते रहो, दिल से कहो। कृपया इसे दिल से कहें। अभी भी बहुत कुछ ग्रसित हो रहा है, मुझे नहीं पता कि मैंने क्या कहा है कि आप दोषी महसूस करते हैं। अगर मैंने ऐसा कुछ कहा है तो भूल जाओ। मेरे व्याख्यान के बारे में भी भूल जाओ। कभी-कभी अपराध बोध व्यवसाय के साथ ऐसा बहुत अधिक होता है।

अब, अपना हाथ, दाहिना हाथ, अपने कपाल पर उठाएं। इसे दोनों तरफ से दबाएं। अब यहाँ, अपने दिल से, कितनी बार, अपने दिल से, आपको अपने मन में कहना है, “माँ, मैं सभी को क्षमा करता हूँ”।

आप में से बहुत से लोग सोच सकते हैं कि क्षमा करना कठिन है। लेकिन यह मिथक है। चाहे आप क्षमा करें या न करें। केवल एक चीज होती है, जब आप उन्हें माफ नहीं करते हैं, तो आप गलत हाथों में खेलते हैं। तो कृपया इसे अपने दिल से कहें, “माँ, मैं उन सभी को क्षमा करता हूँ। उनमें से हर एक को।” और यह याद रखने की कोशिश न करें कि किसे माफ करना है, कृपया, सामान्य तौर पर।

अब, यह एक अच्छा खुश मिजाज है, मुझे लगता है।

अब, कृपया अपना हाथ पीछे की ओर ले जाएं। और अब मैं आपसे अनुरोध करूंगी कि आप इसके बारे में बहुत चिंतित न हों, क्योंकि अगर मैं कुछ कहती हूं तो आपको इसे चिंता से नहीं करना चाहिए। यह एक बहुत ही आसान तरीका है।

तो बस अपने सिर को पीछे धकेलें और यहां बिल्कुल भी दोषी महसूस करने के लिए नहीं। आपको इसे एक बार और सभी के लिए, अपनी संतुष्टि के लिए कहना होगा, कि, “हे ईश्वर, अगर मैंने कुछ गलत किया है, तो कृपया मुझे क्षमा करें।” लेकिन ऐसा कुछ भी याद करने की कोशिश न करें, आपने क्या गलत किया है, या आपने क्या नुकसान किया है, ऐसा कुछ भी नहीं है। बस एक मिनट के लिए अपने सिर को पीछे धकेलें।

अब अपने हाथ को फैलाएं, अपने हाथ को फैलाएं और इस हाथ को इस तरह रखें कि आपकी हथेली का मध्य भाग फॉन्टानेल बोन एरिया पर चला जाए जो कि एक नर्म हड्डी थी। इसे जोर से दबाएं, अपनी अंगुलियों को खींचकर सात बार घुमाएं, धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, घड़ी की सुई की दिशा में(दक्षिणावर्त)। बस इतना ही। अपना सिर दबाएं। अपनी खोपड़ी को जोर से दबाएं।

(श्री माताजी माइक्रोफोन मे प्रणव फुंकते हैं)।

कृपया अपना हाथ नीचे करें। इसे पहले गोद में रखें।

अब आप अपनी आंखें धीरे-धीरे खोल सकते हैं। अब निर्विचार हो मुझे देखो। निर्विचार बस मुझे देख लो।

यह पहली अवस्था है, जिसे ‘निर्विचार समाधि’ कहा जाता है, जहाँ आप बिना विचारों के हैं।

अब अपना दाहिना हाथ मेरी ओर इस तरह धीरे-धीरे रखो। ऐसे ही दाहिना हाथ। और बाएं हाथ से यह देखने की कोशिश करें कि क्या आपके सिर से कोई ठंडी हवा निकल रही है।

यह काफी ऊंचा भी हो सकता है, कुछ लोगों के साथ ऊंचाई पर भी हो सकता है। ठीक है?

अब इसे रखो, यह वाला, मेरी ओर, इस तरह, बायां वाला। अब दाहिने हाथ से सिर्फ महसूस करने की कोशिश करें। आपको कुछ गरमी भी महसुस हो सकती है; गर्म हवा निकल रही है, क्योंकि गर्मी भी निकल रही होगी। कोई फर्क नहीं पड़ता कि।

अब कृपया इस हाथ को रखें, अब यहां आपको अपने आत्मसाक्षात्कार के लिए प्रार्थना करना है। मैं आप पर जबरदस्ती नहीं कर सकती। तो आपको इस तरह दोनों हाथ रखने हैं और कहना है, “माँ, कृपया हमें आत्मसाक्षात्कार दिजीये? क्या मुझे मेरी आत्मबोध प्राप्ति हो सकती है?”

अब अपने दोनों हाथों को इस तरह आकाश की तरफ पीछे धकेलें, और अपने सिर को पीछे की ओर धकेलते हुए एक प्रश्न पूछें, एक प्रश्न पूछें:

“माँ, क्या यह पवित्र आत्मा की ठंडी हवा है?” “क्या यह ईश्वर की सर्वव्यापी शक्ति है?” “क्या यह ब्रह्म शक्ति है?”

इनमें से किसी एक प्रश्न को तीन बार पूछें।

अब कृपया अपना हाथ नीचे करें। अब आप स्वयं देखें: क्या आप हाथों में कुछ महसूस कर रहे हैं या नहीं? ठंडी हवा। इसे महसूस करना? अच्छा।

सब हो चुका है। बस आप इसे अपने भीतर महसूस कर सकते हैं। सब हो चुका है। अब आप ऐसा भी सोच सकते हैं कि यह एयर कंडीशनिंग है: इसका [उससे] कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि यह कार्य करता है। आप देखिए, बहुत से लोग पहले सोचते हैं कि यह एयर कंडीशनिंग है। यह कार्य करता है, वातानुकूलन कार्यांवित नहीं हो सकता। ठीक है?

आज पहला दिन है। एक दिन में कोई कितना समझा सकता है? यह ज्ञान का विशाल सागर है।

मैंने अब तक अंग्रेजी भाषा में कम से कम दो हजार व्याख्यान दिए होंगे। और आप ये सभी टेप और सब कुछ यहां प्राप्त कर सकते हैं – वे वीडियो टेप में भी हैं – हर चीज के बारे में। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण चीज है’अनुभव’। और अनुभव को बनाये रखना।
यह बहुत आराम देने वाला है। यह बहुत शांतिपूर्ण है। अब, मैं चाहती हूं कि जिन लोगों ने अपने सिर से या अपने हाथों से ठंडी हवा को महसूस किया है, वे अपने दोनों हाथों को उठाकर देखें कि परिणाम कैसा है?

उस ओर देखो! परमात्मा आपका भला करे! परमात्मा ह्यूस्टन को आशीर्वाद दे! ईश्वरन् आपका भला करे! (तालियाँ)

आप कैसे हैं? आपको यह मिला? उसे वह मिल गया? महान! बधाई हो!

अब अपने बोध का सम्मान करें। आप इसके बारे में बहस नहीं कर सकते क्योंकि आप विचार से परे जाते हैं।

कल, मुझे आशा है कि आप कार्यशाला में आने के लिए इसे सुविधाजनक बनाएंगे जहां हम आपके सभी प्रश्नों का उत्तर देंगे, हम आपकी, आप में से प्रत्येक की देखभाल करेंगे। और इन दो दिनों में जो कुछ भी संभव होगा, हम उसे आपके लिए कार्यांवित करने का प्रयास करेंगे।

परमात्माआपको आशिर्वदित करे।

दोषी मत समझो! अभी भी मैं उस उंगली को पकड़ महसूस कर रही हूं, इसलिए मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि यदि आप दोषी महसूस करते हैं तो आप इस उंगली को ग्रसित महसूस करेंगे, ताकि आप यहां थोड़ा जल सकें, इसलिए कृपया दोषी महसूस न करें। बहुत खुश और खुश रहो। आपको इस परअब हंसना चाहिए। आपने इसे पाया है! जैसे मैं रोम गयी थी और राष्ट्रीय टेलीविजन के निदेशक एक बहुत ही दिलचस्प व्यक्ति थे, और उन्होंने कहा, “पहले मुझे आत्मसाक्षात्कार दो, उसके बाद ही मैं आपकासाक्षात्कार लूंगा। मैंने कहा, “ठीक है!” उसे इसका आत्मबोध मिला और वह हंसने लगा। उसने कहा, “मैं कार्यक्रम कैसे करूंगा? मुझे हर समय हंसने का मन करता है।” मैंने कहा, “बेहतर हँसो! यही सबसे अच्छा तरीका है।”

तो अब, कल मैं आप सभी से मिलने की आशा करती हूँ। कृपया इसे सुविधाजनक बनाएं।

परमात्मा आपको आशिर्वादित करे।

इसलिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। मैं आपको बहुत बहुत धन्यवाद देती हूं। परमात्मा आपको आशिर्वादित करे!