Advice at Bharatiya Vidya Bhavan

मुंबई (भारत)

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परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी

सार्वजनिक प्रवचन,

भारतीय विद्या भवन,

बंबई, भारत

22 मार्च 1977

भारतीय विद्या भवन में सलाह (प्रश्न और उत्तर)

यह प्रकाश आप को इसलिए प्रदान किए गया है, क्योंकि आप दूसरों को प्रकाश देते हैं। यदि आप इसे दूसरों को नहीं देते हैं, तो धीरे-धीरे यह प्रकाश फीका पड़ जाता है। आपको यह प्रकाश ऐसे रास्ते पर रखना चाहिए, जहां लोग अंधकार में भटक रहे हों। इस प्रकाश को मेज के नीचे ना रखें, जहां ये बुझ जाए।

आप लोग यहां आएं, अगर आप को कोई समस्या है, कोई बीमार है तब हम इस के (उपचार) बारे में भी बताएंगे, और इसी प्रकार ये लोग आप को सहज योग के विषय में बताएंगे।

(श्री माताजी मराठी भाषा में – फड़के और अन्य सहज योगी वहां जाइए। उन्हे कुंडलिनी और सहज योग के बारे में बताइए। ये दो दिन में समाप्त नहीं होगा। इस में समय लगेगा। अब हमारे साथ लोग हैं जो वास्तव में बहुत ही अच्छे हैं। वे कुंडलिनी के विषय में सब कुछ जानते हैं।)

उन्होंने कुंडलिनी पर पूरी तरह से महारत हासिल कर ली है। कुछ लोग हैं, आप जानते हैं, लेकिन कुछ हैं जिन्हे पांच वर्ष पूर्व आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ था, पर वो एक शब्द भी नहीं जानते। उसके विपरीत, वे ऐसे ही आ कर हम से पूछते हैं, ”मेरी मां बीमार हैं। कृपया उनका उपचार कीजिए। मेरे पिता बीमार हैं। मेरा उपचार कीजिए। मेरा ये बीमार है।” बस इतना ही। इसलिए वे किसी काम के नहीं हैं।

तो इसलिए आप को औरों को भी देना है, और आपको स्वयं को अनुभव करना होगा, और सहज योग का प्रकाश बनना होगा। यह बहुत खुशी की बात है। इसे दूसरों को देना सबसे बड़ी खुशी है, और इसके लिए आपको कोई पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है, और न ही आपको इसके लिए कोई पैसा कमाना पड़ता है। यह सिर्फ एक मुक्त प्रवाह है। लेकिन आप को देना ही होगा। अन्यथा, यदि आप नहीं देते तो आप अटक जाते हो। पूरी तरह यह अटकाव आ जाता है।

आज यहां इतने सारे लोग लोग हैं। देखकर बहुत ख़ुशी हुई। मुझे आशा है कि आप यह संख्या बरकरार रखेंगे। कम से कम सोमवार को तो रख लें। 

(श्री माताजी का मराठी में) – सिद्धिविनायक जाकर एक घंटे खड़े रहने के बजाय श्री माताजी के ध्यान के लिए आएं। आपको यहां (ऑडियो) रिकॉर्ड मिलेंगे, वे वहां कुछ चला सकते हैं, आप उन्हे सुनिए और जरुरी बातें लिख लीजिए। उसके बाद वे इसके बारे में चर्चा करेंगे, वे पांच से छह सहज योगी आपको बताने आएंगे। वो सब के लिए फायदेबंद होगा। आप सभी सहज योग में गहराई प्राप्त करें, न कि केवल उथलेपन में रहें।

सहज योग कोई ऐसी चीज़ नहीं है, जिसे हल्के में लिया जाए। यह काम करता है। यह आपके अंदर कुछ ही समय में सहजता से कार्य करता है, लेकिन सभी मनुष्यों के लिए आत्म साक्षात्कार के पश्चात, कुंडलिनी और चैतन्य के संपूर्ण कार्य को समझना आवश्यक है। आप को पूर्ण विज्ञान की जानना होगा। अन्यथा, उस धन को प्राप्त करने का क्या फायदा, जिसे आप खर्च करना या उपयोग करना नहीं जानते? तो सबसे अच्छी बात यह है कि इसे प्राप्त करें, और आप पाएंगे कि भले ही आप बीमार हों और सहज योग से ठीक हो गए हों, आप पाएंगे कि आप बहुत अधिक स्वस्थ और बेहतर हो जाएंगे। आप और अधिक समृद्ध हो जायेंगे। 

यदि आप सहज योग नहीं अपनाते हैं, तो धीरे-धीरे आप पाएंगे कि कुछ समय बाद आप का चैतन्य खो जायेगा, क्योंकि परमात्मा उन लोगों पर अपना चैतन्य बर्बाद नहीं करना चाहते, जो इसे दूसरों को नहीं देना चाहते। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो स्पष्टीकरण देते हैं, “हमारा एक परिवार है। हम कैसे त्याग सकते हैं?” अब मेरा भी परिवार है। आप को पता है, मेरे पोते-पोतियां भी हैं।

एक पाई भुगतान किए बिना, यही एक अच्छा कार्य है जो आप कर सकते हैं। यह बिना एक पाई चुकाये आप को प्राप्त हुआ है, और आप को इसे बिना एक पाई चुकाये बांटना भी है, और आप को स्वयं इसका आनंद लेना है। आप इसका आनंद तभी उठा सकते हैं, जब आप इसे दे सकते हैं। आप को यह सब बातें सीखनी हैं।

भगवान की कृपा से आपके यहाँ इतने सारे लोग हैं। यहां अब कम से कम पचास प्रतिशत लोग, मैं कहूंगी, ऐसे हैं जो आपको कुंडलिनी के बारे में अच्छी तरह से बता सकते हैं, और वे आपके साथ कार्यान्वित कर सकते हैं। वे आपको इसके बारे में बताने जा रहे हैं। बुरा मानने की कोई बात नहीं, क्योंकि एक बार जब आप कुंडलिनी पर महारत हासिल कर लेते हैं, तो आप वैसे ही बन जाएंगे। इसलिए श्रेष्ठ या निम्न या कुछ भी महसूस करने की कोई आवश्यकता नहीं है। बात केवल इतनी है, कि आप आज समुद्र में कूदे हैं और आप ने तैरना सीख लिया है, और उन्होंने इसे बहुत पहले ही सीख लिया था, और धीरे-धीरे आप बहुत तेजी से सीख लेंगे। कुछ लोग इतनी तेजी से आगे बढ़ते हैं, कि कभी-कभी यह आश्चर्यजनक रूप से तेज हो जाते हैं, और यहां तक ​​कि जो लोग वर्षों से मेरे साथ हैं, वे भी उन्हें हरा नहीं पाते हैं। तो, यह होने के लिए केवल आप में सादगी और ईमानदारी होनी चाहिए। आप इसे बहुत अच्छी तरह से कार्यान्वित करते हैं।

मैं चाहती हूं कि आप मुझसे सवाल पूछें, क्योंकि जब मैं चली जाऊंगी, तो मैं नहीं चाहती कि आधे-अधूरे मन वाले लोग सवाल पूछें, क्योंकि अगर सवाल शुरू होंगे, तो (मर्मरिंग सोल्स) बड़बड़ाने वाले भी शुरू हो जायेंगे, और वे ऐसे लोगों को बाहर लाने का प्रयास करेंगे, जो अभी आधे-अधूरे नहीं हैं, और फिर वे नष्ट हो जाएंगे। तो, आपको सहज योग में पूरी तरह से परिपक्व होना होगा। किसी की बात मत सुनो क्योंकि वह ऐसा कहता है। आप उससे पूछें, “आप का अधिकार क्या है? क्या आप कुंडलिनी के बारे में कुछ जानते हैं? क्या आपने, कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया है? आपने कितने लोगों को जागृति दी है? किसी को नहीं! तो फिर आप चुप रहें।” बस इतना ही। आपने कुंडलिनी को चलते हुए देखा है। आप ने उसका स्पंदन देखा है। आपने चैतन्य का अनुभव किया है।

अब जो कोई भी सहज योग के विषय में बात करता है, वह बहुत आसान है, कोई भी कर सकता है। कोई भी ऐरा, गैरा, नत्थू खैरा कह सकता है। किसी भी चीज़ की आलोचना करना बहुत आसान है, बहुत आसान है क्योंकि इसमें कितना समय लगता है? इसके लिए आपको किसी पूंजी की आवश्यकता नहीं है। आपको कुंडलिनी के बारे में एक शब्द भी जानने की आवश्यकता नहीं है। कुछ लोग कह सकते हैं, कि यह एक मिथक है, यह एक मनोवैज्ञानिक चीज़ है। वे हर प्रकार की बकवास कहेंगे। लेकिन अगर आप गंभीर लोग हैं, तो आपको समझना चाहिए, कि आपने चैतन्य का अनुभव किया है। वह (चैतन्य) वहां हैं, और आप आगे बढ़ने जा रहे हैं। यह आपके ही भले के लिए है, और आपके ही मांगने से आपको इसे प्राप्त करना चाहिए। यदि आपके चक्रों पर कुछ समस्याएं हैं, तो उन्हें ठीक किया जाना चाहिए। तो, अब सवाल क्या है?

योगी: अहंकार और प्रतिअहंकार क्या है, और भगवान ने हमें यह क्यों दिया है?

श्री माताजी: अहंकार और प्रति अहंकार, ये दो संस्थाएं हैं। जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, वे हमारे भीतर बढ़ते जाते हैं, क्योंकि जब हम बढ़ने लगते हैं – मैं आपको एक उदाहरण दूंगी, कि अहंकार और अति-अहंकार कैसे बढ़ते हैं। एक माँ बच्चे की देखभाल कर रही है, और बच्चा पूर्ण शांति और आनंद में है। जब बच्चे को दूध पिलाया जाता है, तो माँ पूर्ण आनंद में होती है। अब क्या होता है, जब मां बच्चे को दूसरी तरफ ले जाती है, तो बच्चे को अच्छा नहीं लगता। तो वह प्रतिक्रिया देता है। यह प्रतिक्रिया आती है (श्री माताजी मराठी में – वहां मत देखिए। वे मंत्री नहीं हैं। वह टोपी पहनते हैं, इसलिए हर कोई सोचता है कि वह मंत्री हैं। आप का चित्त इधर नहीं है। वह सिर्फ एक वकील हैं। आपकी जानकारी के लिए, हां)

(श्री माताजी टोपी पहने व्यक्ति से कह रही हैं) अब वो टोपी हटा दो, वरना सब लोग फिर सोचेंगे, कि कोई नया मंत्री आ गया है (सब हंस रहे हैं)। अब हमें उनसे मिलना चाहिए। पिछली बार जब मेरे बेटे को नौकरी नहीं मिली थी। तब आप इसके बारे में सोचेंगे। (मां उसी व्यक्ति से पूछ रही है कि तुमने ये टोपी क्यों पहनी, अब सब सोच रहे हैं कि तुम मंत्री हो. अब लोग आपके पास आवेदन लेकर आएंगे तो मुझे मत बताना। (मां हंस रही हैं) 

मैं उनके उस प्रश्न का उत्तर दूंगी, जो उन्होंने अहंकार और प्रति अहंकार के बारे में पूछा है। क्या आप मेरी बात समझ गये? अब कोई जाएगा तो सब उसे देखेंगे, कि मुझे उससे कैसे लाभ मिल सकता है? मानव मस्तिष्क इतना तुच्छ क्यों है? आप के पास कुछ है, और भगवान ने आप को बड़ा सिर दिया है। आपको इसका सम्मान करना चाहिए। नजरें मत फेरो! वह कौन सी चीज़ है, जो आपका चित्त आकर्षित करती है? चित्त बहुत बड़ी चीज़ है। (अस्पष्ट) चित्त शुद्ध होना चाहिए। 

ये नज़र घुमाने की बुरी आदत है। हर समय इधर-उधर नजरें घुमाने के कारण, हमारी आंखें खराब हो जाती हैं। हमारा आज्ञा चक्र ख़राब हो जाता है। आप अपनी आंखों पर पूरी तरह से नियंत्रण खो देते हैं। आंखें सबसे महत्वपूर्ण चीज हैं. वे आपके हृदय के, आत्मा के प्रकाश को दर्शाती हैं। हर छोटी-छोटी जगहों पर क्या देखना जरूरी है?

(श्री माताजी मराठी भाषा में) यदि तुम बैठना चाहते हो तो बैठो, और जाना चाहते हो तो जाओ। 

और हमारे साथ यही समस्या है, कि हम अपने मूल्यों को नहीं समझते हैं, और हम यह नहीं समझते हैं, कि हमारी प्राथमिकता क्या होनी चाहिए, और हम यहां किसलिए हैं। हमें अपने बारे में वह गंभीरता रखनी चाहिए। कोई भी आता-जाता है या कुछ भी होता है, आपका चित्त अपनी ओर होना चाहिए। यह इस समय बहुत आवश्यक है, जब आप ध्यान में हों। यह पहली बार है, जब हम स्वयं को देखने की कोशिश कर रहे हैं। तो फिर किसी और में हमारी रुचि क्यों होनी चाहिए? यह बहुत ही कम समय है जब हम हैं, तो अब मैं आपको एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात बता रही हूं। उस समय आप आए और हर कोई आपको देख रहा था। ऐसा नहीं होना चाहिए। कोई आएगा और कोई जाएगा, लेकिन आपको उनकी तरफ नहीं देखना चाहिए। अब विषय बहुत गहरा है. भगवान ने हमें अहंकार और अति-अहंकार क्यों दिया है? यह बहुत बड़ा सवाल है। (माँ मराठी में बोलती )

भगवान ने हमारे अंदर यह अहंकार और प्रतिअहंकार क्यों पैदा किया है?

हमारे पेट से मेद, जिसे आप वसा ग्लोब्यूल्स कहते हैं, आप मेध कह सकते हैं, पेट से उठ कर हमारे मस्तिष्क में पहुंचता है, इन सभी केंद्रों से गुजरते हुए, मस्तिष्क की कोशिकाओं के रूप में विकसित होता है। क्या आपने इस बिंदु को समझा? क्योंकि मस्तिष्क भी वसा कोशिकाओं से बना होता है, जिसे आप मेन्डु कहते हैं। इसलिए मेध को मेंडू बनने के लिए मानव जागरूकता के प्रति जागरूकता के एक निश्चित मात्रा को प्राप्त करने के लिए विकसित होना होगा, और मस्तिष्क, मानव मस्तिष्क, सबसे कीमती है क्योंकि इसका एक आयाम है, जो पशुओं के पास नहीं है, एक मानसिक आयाम, आप कह सकते हैं, एक भावनात्मक आयाम। इसके भौतिक आयाम का एक और आयाम भी है। हम कह सकते हैं कि प्रत्येक आयाम के चार भाग हैं। भावनात्मक रूप से हम प्यार को समझते हैं। हम समझते हैं कि कैसे प्राप्त करना है, कैसे प्रत्युत्तर देना है। हम सुंदरता को समझते हैं, हम कविता को समझते हैं, हम मीठे इशारों को समझते हैं। ये चीजें हम भी बना सकते हैं। मानसिक स्तर पर हमारे आयाम का एक चौथा आयाम है, मैं कहूंगी, जिसके द्वारा हम चीजों का निर्माण करते हैं।

जानवर सृजन नहीं कर सकते। हम सृजन कर सकते हैं। शारीरिक रूप से भी हमें एक विशेष लाभ है, कि हमने अपना सिर ऊपर उठा लिया है, हमारे हाथ हमारे पैरों की तुलना में अलग तरीके से काम करते हैं, हमारे पास चीजों को पकड़ने की बेहतर क्षमता है। इतना ही नहीं, बल्कि हम इस शरीर का उपयोग यहां मौजूद बहुत ऊंची चीजों को उठाने के लिए भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, हम एक क्रेन बना सकते हैं, और उसे उठा सकते हैं। तो हमें भी एक शक्ति मिल गयी है, जिसके द्वारा हम पदार्थ पर प्रभुत्व प्राप्त कर सकते हैं। ये जानवरों में नहीं है। तो, हमारे पास पहले से ही एक उच्च आयाम है, जो हमारे मस्तिष्क तक पहुँच गया है।

अब, इतना सुंदर मानव मस्तिष्क बनाया गया है। तो, मानव विकास के इस चरण में जब मनुष्य इस चरण तक पहुंच गया है, तो हमें यह कहना चाहिए, कि वह अभी भी बदलाव के दौर में है। उसे थोड़ा और छलांग लगानी पड़ती है, और वह वो बन जाता है, जिसके लिए उसे बनाया गया है। तो, इस बदलाव में उस मस्तिष्क की बहुत सावधानी से रक्षा करना आवश्यक है। एक उद्देश्य, दूसरे इस मस्तिष्क को ईश्वर की इच्छा से स्वतंत्र बनाना और इसे स्वयं उपयोग करने योग्य बनाना, ताकि यह सुबुद्धि का एक और आयाम विकसित कर सके। लड़खड़ाने से, गलतियाँ करने से, सुधारने से, गिरने से, अति में जाने से मनुष्य केंद्र में आने लगता है और समझ जाता है कि यही स्थिति है।

अब हमारे देश में राजनीतिक समाचार देखिए, कि किस प्रकार अंग्रेजों से हम यहां तक पहुंचे। अंग्रेजों को हमें छोड़ना पड़ा, फिर हमें, अब हमने जो नई चीज शुरू की वह विफल नहीं हुई, विफल हुई। 

तो, हमने एक और शैली शुरू की। तो, हमने उस तरह की एक और शैली शुरू की। आप देखते हैं, 

आप इस से दूसरे में बदलते रहते हैं, प्रयोग करते रहते हैं, और आप ऐसी स्थिति में पहुंच जाते हैं, जहां आप देखते हैं कि यह वह स्थिति है जिसके द्वारा आप वास्तव में उन्नति करते हैं। यह सब मानव मस्तिष्क द्वारा किया जाता है। तो, मानव मस्तिष्क सबसे प्रतिष्ठित चीज़ है, सबसे विकसित चीज़ है, और मस्तिष्क के साथ हृदय भी, मानव हृदय का भी मस्तिष्क से सह-संबंध होना चाहिए, और इसलिए दोनों चीजें बहुत अच्छी तरह विकसित होती हैं। हमारा पेट बहुत अच्छे से विकसित होता है। दरअसल, हमारा पेट बहुत अधिक सूक्ष्म होता है और वह स्थूल चीजों को ग्रहण नहीं कर सकता। उन्हें पचाने के लिए बहुत बढ़िया और परिष्कृत चीजों की आवश्यकता होती है, और बहुत सी बातें हैं जो आप जानते हैं, कि हम जानवरों से भिन्न हैं।

अब इस अवस्था में इस मस्तिष्क की सुरक्षा के लिए भी, आपको एक प्रकार के कठोर आवरण की आवश्यकता होती है। तो, भगवान ने यह व्यवस्था बनाई है जिससे आप पूरी तरह से ढक जाते हैं, एक अहंकार और अति-अहंकार का निर्माण करके, जो एक प्रकार का, आप कह सकते हैं, आपकी गतिविधियों का उप-उत्पाद है। मनुष्य जो भी गतिविधि करता है उसकी प्रतिक्रिया होती है। उदाहरण के लिए, यदि वह किसी चीज़ के लिए “नहीं” कहने की कोशिश करता है तो इसकी प्रतिक्रिया होती है: वह अपना अहंकार पैदा करता है। यदि वह कुछ स्वीकार करता है, तो वह अपना प्रति-अहंकार निर्मित करता है। ऐसा इसलिए भी किया जाता है, ताकि मनुष्य के मस्तिष्क को प्रकृति में त्रिकोणीय और प्रिज्मीय, प्रिज्मीय बनाया जा सके। यह प्रिज्म जैसा तल है, और मस्तिष्क के प्रिज्म में जब ईश्वर की दिव्य शक्ति की किरणें प्रवाहित होती हैं, तो यह अपवर्तन में, विभिन्न कोणों में, और बलों के समांतर चतुर्भुज के सिद्धांत द्वारा, पार हो जाती है इस तरफ और उस तरफ। इसीलिए मनुष्य भविष्य और अतीत के बारे में सोच सकता है, लेकिन जानवर इन चीजों के बारे में नहीं सोचता।

तो इस तरह मस्तिष्क विशेष रूप से बनाया गया है। यह पूरी तरह से अहंकार और प्रति अहंकार का निर्माण करके संरक्षित है, जिसके द्वारा हमारा तालु, जहां ब्रह्मरंध ढका हुआ है, आप उस सर्वव्यापी शक्ति से अलग हो गए हैं, जिसके द्वारा आपको अपनी स्वतंत्रता और आजादी मिलती है। आप जैसा चाहें वैसा कार्य कर सकते हैं। अपने मस्तिष्क का उपयोग अपनी इच्छानुसार कर सकते हैं, सीख सकते हैं, क्योंकि विकास को यदि और आगे जाना है, तो यह बदलाव का काल ​​है जब आपको प्रयास करना होगा। उपमा के लिए हम ऐसा कह सकते हैं, क्योंकि उपमा को ज्यादा दूर तक नहीं खींचना चाहिए।

लेकिन मान लीजिए कि यह उपकरण मैं तैयार करती हूं। इसे तैयार करने के बाद मैं पहले इसे अलग से एक छोटी सी कोशिका पर प्रयोग करती हूं, और फिर मुख्य यंत्र से जोड़ती हूं। इसी पहले इसे पहले इसका अलग से प्रयोग करके देखा गया, एक एक करके जोड़बंदी के साथ। पिछले दिनों मैंने अंडे की एक उपमा दी थी, जो शायद मराठी लोगों को थोड़ी अजीब लगी होगी। मुझे नहीं पता क्यों, एक अंडा पूरी तरह से जोड़कर बनाया जाता है। यह तब तक सुरक्षित रहता है, जब तक यह अपने पुनर्जन्म के पूर्ण चरण तक नहीं पहुंच जाता। इसे द्विज कहते है। तभी आप देखते हैं, माँ पक्षी अंडे को छेदती है और छोटे चूजे का पुनर्जन्म होता है। उसी प्रकार तुम्हें भी सुरक्षित बनाया जाता है ताकि तुम तैयार किये जाओ। अंततः, आप एक ऐसे चरण पर पहुँच जाते हैं, जहाँ आप किसी अन्य अवस्था में कूदने के लिए तैयार होते हैं, और ऐसा होता है। इनक्यूबेटर में भी, यदि आप इन अंडों को गर्मी के साथ रखते हैं, तो आप देखते हैं कि वे गर्मी महसूस करते हैं – गर्मी ही प्यार है, और इसके साथ ही वे बढ़ते हैं, और एक बिंदु पर उनमें से सभी बाहर निकलते हैं। मेरा मतलब है कि एक साथ नहीं, लेकिन हम थोड़ा अंतर कह सकते हैं, लेकिन उनमें से अधिकतर दो तीन दिनों के भीतर अंडे से बाहर निकलते हैं।

यह उसी तरह है जैसे आज का सहज योग काम कर रहा है, कि आप इसे पाने के लिए तैयार हैं। आपका अतीत बहुत अच्छा रहा है, आप खोज करते रहे हैं, आप चक्कर लगाते रहे हैं। आपको कोई अंदाज़ा नहीं है, कि आप क्या करते रहे हैं। और आज आप आम लोगों की तरह साधारण पोशाक पहने हुए हैं, और आज आप यहां मेरे साथ व्याख्यान सुनने आए हैं, और इस समय में ये घटित होता है। कुछ लोगों के लिए यह सबसे बड़ा चमत्कार है, लेकिन मेरे लिए यह बस एक घटना है। इस समय तो ये होना ही है। हमारे लिए यदि हम बहुत सारे फूलों को फलों में बदलते हुए देखते हैं, तो हम इसे कभी चमत्कार नहीं कहते, क्योंकि हमने इस का मूल्य नहीं कम आंका। जीवन के कितने ही चमत्कारों को हमने मान लिया है, लेकिन यह मनुष्य के साथ घटित होना ही है, और जब घटित होता है तो वैसा ही घटित होता है। 

स्वाभाविक रूप से आपके लिए, आप देखिए, यह मेरे लिए बच्चे का खेल है। यह मेरे लिए है। यह मेरे लिए बच्चे का खेल है क्योंकि मेरा काम तुम्हें मोक्ष देना है। मैं मोक्षदायनी हूं। इसके बारे में कोई संदेह नहीं है। अगर वह मेरा स्वभाव है, अगर वह मेरा स्वभाव है तो मैं ऐसा करूंगी। यदि सूर्य का स्वभाव आपको सूर्य की किरणें देना है, तो वह देगा। यह कठिन नहीं है क्योंकि यही स्वभाव है। आप देखिए, यदि एक इंसान के रूप में चीजों और रंगों को देखना आपका स्वभाव है तो आप देखेंगे। इसमें इतनी बड़ी बात क्या है? इसमें गर्व करने वाली क्या बात है? मेरा मतलब है, मुझे समझ नहीं आता; यदि आप वह हैं, तो आप वह हैं। ऊंचा या नीचा होना क्या है? मैं बस समझ नहीं पाती। यह सब मानवीय अहंकार के कारण है, कि मनुष्य में मूल्यांकन होता है। वह सोचता है कि यह उच्चतर है, वह कम है। एक तरह से मनुष्य, मनुष्य से ऊँचा है और मनुष्य देवताओं से बहुत ऊँचा है, और कभी-कभी सर्वशक्तिमान ईश्वर से भी बहुत ऊँचा है, क्योंकि उन्हें आपसे सहज योग में आने के लिए विनती करनी पड़ी, क्योंकि जब तक आप सहज योग को पूरी तरह से स्वतंत्र रूप से स्वीकार नहीं करते, तब तक यह काम नहीं करता है। आप को बिल्कुल आज़ाद होना चाहिए। मैं आप को लुभा नहीं सकती। मैं आप को सम्मोहित नहीं कर सकती। मैं कुछ नहीँ कर सकती। इसे वहां होना ही होगा। और इसीलिए यदि यह ऐसे ही काम करता है, आपको ऐसा क्यों लगता कि इसमें कुछ ग़लत है? इसने बहुत से लोगों के साथ काम किया है। बहुत से लोगों ने इसे अनुभव किया है। आपको भी इसका अनुभव होगा। यह आपका हक़ है। तो, आप इसे महसूस कर रहे हैं, और मान लीजिए कि बीज में कुछ गड़बड़ है, या पुष्प में कुछ गड़बड़ है, तो हम इसे भी सही कर देंगे। दो दिन और लग सकते हैं, कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे लिए यह कोई असाधारण बात नहीं है। हां, यह एक तरह से है भी, क्योंकि मैंने अपने पिछले सभी जन्मों में ऐसा नहीं किया है। तो मुझे बहुत ख़ुशी अनुभव होती है।

उदाहरण के लिए, जब आप एक पत्ती होते हैं, तो आप एक फूल का काम नहीं कर सकते। जब आप एक जड़ हैं, तब तो आप ये बिलकुल भी नहीं कर रहे। किंतु जब आप एक फूल हैं, तब एक मधुमखी आ सकती है और ये काम कर सकती है। इसमें इतना आश्चर्यजनक क्या है? इस की भविष्यवाणी की गई है। कई बार ये कहा गया है। विवेकानंद ने भी यह कहा है, ‘मां आएंगी और यह कार्य करेंगी।’ उन्होंने यह भी कहा, बुद्ध तो बस एक हिस्सा हैं, एक छोटी सी बूंद।” उन्होंने ये सारी बातें कही हैं. जब आप विवेकानन्द को उद्धरण करें तो उसे ठीक से पढ़ें। वह यह भी कहते हैं, ‘मैं कुछ नहीं कर सकता।  माँ ही ये करने जा रही है।’ सब लोग मां को मान रहे है। 

शंकराचार्य कहते हैं कि, ‘मां आएंगी।’ बाइबिल में यदि आप ‘जॉन के रहस्योद्घाटन’ को पढ़ते हैं, तो लिखा है कि, “एक महिला आएगी, और वह पुनर्जन्म देगी और वह पुनर्जन्म देने से डरेगी। वह अपने बच्चों की रक्षा करेगी।”

ये सभी चीज़ें बताई हुई हैं, और अब जब माँ आती है तो आप कहते हैं, “मां आप यहां क्यों आई है?” अब माँ को कैसे आना चाहिए, सींग लेकर या उसे क्या करना चाहिए? लेकिन अगर मैं मां हूं जिसे ये कार्य करना है, तो मुझे कार्य करना ही होगा? अब आप मुझमें दोष ढूंढना शुरू कर दें। तो आप लोगों के साथ क्या किया जाए? मेरा मतलब है, आख़िरकार मेरे पास क्या होना चाहिए? जो भी मैंने उचित समझा, वह मेरे पास है। आप मुझसे और क्या चाहते हैं कि मेरे पास हो? देखिये, यदि गणेश जी के पास हाथी की सूंड है तो इसका एक अर्थ है, और यदि किसी के पास कुछ और है, तो इसका एक अर्थ है। हम कहते हैं कि सुरभि गाय, पहली गाय जो बृंदावन में प्रकट हुई थी – वैकुंठ चरण में वह प्रकट हुई थी? सभी देवता उसके अंदर थे। हम गाय को स्वीकार करते हैं, लेकिन हम उस इंसान को स्वीकार नहीं कर सकते जिसके पास ये शक्तियां हैं। ठीक है! स्वीकार न करें! मैं यह नहीं कह रही हूं, कि आपको मुझे स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लेना चाहिए, क्योंकि एक बात मैं कहती हूं, अब सब ओर बहुत सारी माताजी हैं। मैं ये कह रही हूं, कि आपको स्वयं चैतन्य अनुभव करना चाहिए। आपको उन्हें ग्रहण करना चाहिए। यदि आप उन्हें अनुभव करते हैं, यदि आप कुंडलिनी को ऊपर उठते हुए देखते हैं, तो यह पहला संकेत है। यदि आप कुंडलिनी को ऊपर उठते हुए देखते हैं, तो आपको ऐसा करना चाहिए।

जब मैं अंबरनाथ गई तो वहां एक जनार्दन महाराज थे। आप देखिए, वह आए था, क्योंकि उसने मेरे बारे में सुना था। वह सिर्फ मेरी परीक्षा लेने आए थे, जो कुछ भी है। तो वह मंच के पास बैठे थे, और लोगों ने मुझसे कहा, “हो सकता है कि वह आपको स्वीकार न करें, माताजी।” मैंने कहा, “देखते हैं। यदि वह एक आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति है, तो कर भी सकते है।” और जब मैं मंच पर अंदर गई तो वह मेरे पैरों पर गिर पड़े। फिर उन्होंने मुझसे कहा, “जैसे ही आपने अंदर कदम रखा, मैंने हर किसी की कुंडलिनी उठते देखी। मैं देख सकता हूं।” वे भी देख सकते हैं। जैसे ही मैं अंदर आई, उन्होंने देखा कि सबकी कुंडलिनी उठ रही है। वे तो नहीं उठे लेकिन कुंडलिनी उठ गई। “हम आप का स्वागत करते हैं।” तो, अगर वे जानते हैं, तो बहुत से लोग जानते होंगे।

गगनगढ़ महाराज जानते हैं। उन्होंने कई लोगों को बताया है। मैं उनसे नहीं मिली हूं। उन्होंने कई लोगों को मेरे बारे में बताया है। मैं उनसे पहले कभी नहीं मिली थी। फिर मैं उससे मिलने गई, और उन्होंने मुझसे ऐसे बात की, जैसे वह किसी अवतरण से बात करेंगे। उन्होंने मुझसे कभी इस तरह बात नहीं की जैसे वह श्रीमती सी.पी.  श्रीवास्तव से बात करेंगे। वो नहीं जानते थे। उसने मुझसे पूछा, ” इस दुनिया में बहुत सारे बुरे लोग हैं। आप यह कैसे कर सकती हैं? क्या वे आप को परेशान करते हैं? आप अचानक कैसे अवतरित हो जाती हैं? हमने श्री चक्र को खुलते हुए देखा तो हमें एहसास हुआ, कि श्री माताजी का जन्म हो गया है। श्री चक्र से पहले अकार, उकार और मकार भी आये हैं। आपके यहाँ आने से पहले हमने श्री गणेश, दत्तात्रेय को यहाँ आते देखा था।” उन्होंने इसे बहुत स्पष्ट रूप से कहा। यह रिकार्ड किया गया है। उन्होंने कहा कि ”श्री माताजी ने आपको बहुत कुछ दिया है – माँ मराठी में बोलती हैं], “उन्होंने आपको क्यों दिया है?” आप ने क्या किया है? आपमें से कितने लोग उनके लिए अपना जीवन देने जा रहे हैं? उन्होंने आप को यह बहुमूल्य वस्तु दी है। आप एक पैसा भी नहीं दे सकते। आप उनके लिए क्या करने जा रहे हैं?” उन्होंने सभी को डांटा। उन्होंने ये सब बातें कहीं। यह बातें टेप पर सुनी जा सकती हैं।

एक और व्यक्ति हैं श्री – उनका नाम है श्री प्रल्हाद ब्रह्मचारी। वह कालीकट से है। वे अमेरिका गए। उन्होंने लोगों को मेरे बारे में बताया। वे मेरे बारे में जानते हैं. उन्होंने बताया कि, ”वो आ गई हैं। चिंता की कोई बात नहीं है।” लेकिन आप लोगों के लिए, आप देखिए, आप लोग इतने अहंकारी हैं, कि आप किसी के बारे में ऐसी बात सुनना बर्दाश्त नहीं कर सकते। यही परेशानी है, आप बहुत अहंकारी हैं। ‘अधजल गगरी छलकत जाए’ खाली बर्तन बहुत ज्यादा आवाज करता है। यह ख़ालीपन की निशानी है। आप देखिए, वे लोग मुझे यह भी बता रहे हैं, कि [श्री माताजी किसी से पूछते हुए – अंबरनाथ से उनका नाम क्या था] नागनाथ बाबा, उन्होंने कहा, “माताजी, वे कभी स्वीकार नहीं कर सकते। उन्होंने कभी किसी अवतार को स्वीकार नहीं किया और वे आपको भी स्वीकार नहीं करने वाले हैं, आप अपने स्तर पर सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें।” और महाराज कहते हैं, “बारह साल तक आप प्रयास करिए। यदि वे ठीक हैं, तो मैं नीचे आऊंगा।” अन्यथा वे सभी अपने आप को छुपा रहे हैं। वे इंसानों से डरते हैं। वाकई ये सच है। ऐसे तो बहुत सारे हैं। तीन बहुत बूढ़े लोग मुझसे मिलने हरिद्वार आये। उन्होंने भी यही बात कही। 

अब क्या आप सही व्यवहार करेंगे या आप ऐसा व्यवहार करने जा रहे हैं जो आपकी आध्यात्मिक जीवन की प्रगति के लिए हानिकारक होगा? आप क्या करने जा रहे हैं, ये आपको तय करना है. यदि आप हैं, यदि आपने कुछ किताबें पढ़ी हैं तो आप बैठ नहीं सकते, मुझे उन किताबों में बसा नहीं सकते।

आप देखिए, योग शास्त्र है। अब योगशास्त्र को ही लीजिए। अब कल उन्होंने आपको बताया, कि यह सात्विक योगशास्त्र है। मेरे लिए योगशास्त्र क्या होना चाहिए? क्या राम ने कोई किताब पढ़ी या कृष्ण ने कोई किताब पढ़ी और मैं कोई किताब पढ़ने जा रही हूँ? क्या मैं इस योगशास्त्र का उपयोग करने जा रही हूँ? आप देखिए, यह उन लोगों के लिए है, उन इंसानों के लिए है जिन्हें ऊपर उठना है। मुझे सब पता है। तो मुझे इन चीज़ों के बारे में चिंता क्यों करनी चाहिए? मुझे बस आप को बाहर खींचना है, बस इतना ही। मुझे सारा काम मालूम है। जो व्यक्ति काम जानता है उसे ऐसा नहीं करना पड़ता। और नौबत यहां तक ​​आ जाती है, कि मुझे आपको ये बातें बतानी पड़ रही हैं। आपको खुद ही यह अहसास हो जाना चाहिए, कि क्या माताजी सिर्फ चित्त के माध्यम से ऐसा कर रही हैं।

अब देखिए आज वहाँ था, मैं आपको एक मामला बताती हूँ। आज वहाँ कल उन्होंने मुझे किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में बताया, जो एक भाई है [क्या यह हमारा भाई है – माँ मराठी में बोलती है] जो बहुत ज्यादा शराब पीता है और वह गोवा में है। मैंने कहा, “क्या करें? वह कैसे आ सकता है?” वह, वह आज आया [आपो आप]। वह ऐसे ही आ गया। बस यह मेरा चित्त है, आप देखिए। यदि आप कुछ भी मेरे चित्त में लाते हैं, तो वह काम करता है। मुझे परेशान होने की जरूरत नहीं है। यह कुछ ऐसा है जैसे कोई इंसान इसे उठा सकता है। अब एक चींटी कहेगी, “तुमने इसे कैसे उठा लिया?” मेरा मतलब है, एक इंसान के लिए इसे उठाना संभव है, और मेरे लिए आपकी कुंडलिनी को उठाना और ये सब करना आसान है, इस तरह की विविध चीज़ें क्योंकि यह मेरा चित्त, मेरा चित्त, चित्त है। मेरा चित्त स्वयं ही आनंद है। वह स्वयं ही परमानंद है, और वह स्वयं ही ज्ञान है। मुझे कुछ भी जानने के लिए किसी बुद्धि की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैं सब कुछ जानती हूं। मेरे दिमाग में  सभी पुस्तकालयों का ज्ञान है।

अभी आपने एक किताब पढ़ी है, कि बंदे को कहीं से कुछ पता चल गया। अब मैं आपको कैसे बताऊं, कि इस पागल आदमी को कहां से कुछ पता चला, और अंधेरे में उसे कैसे पता चला कि उसे क्या मिला। उसे शायद किसी का पैर मिला होगा, और वह सोच रहा होगा कि यह किसी का हाथ है। अब मेरे जैसे व्यक्ति के लिए हर व्यक्ति के पास जाना कितना कठिन है। जिस किसी ने भी वहां एक किताब, यहां का एक वाक्य पढ़ा है, वह आ जाएगा। मैंने कहा, “अब इसे छोड़ो। अब आप अपना आत्मसाक्षात्कार चाहते हैं। आओ इसे ले लो।” और फिर सबसे बड़ी समस्या यह है, कि यह सब प्रेम है। मेरा मतलब है, मैं सिर्फ प्यार का एक रूप हूँ, बस इतना ही। यह प्यार के अलावा कुछ नहीं है। आप देखिए, यह सिर्फ प्यार है, जो फैलता है, आपको चैतन्य देता है, फिर पीछे चला जाता है, फैलता है, वापस आ जाता है। यह उस तरह से पैराबोलिक रूप में चलता है, जिसे आप एक शक्ति की प्रदक्षिणा कहते हैं, जिसे आप देख रहे हैं। शक्ति क्या है, शक्ति की यह चीज़ पैराबॉलिक है, और अब आइंस्टीन पैराबोलिक के बारे में बात कर रहे हैं।

हमारे यहां बहुत समय पहले एक पैराबोलिक स्थिति थी। हम जानते थे, कि यह शक्ति थी। देखिए, आप अपना सारा विज्ञान, और हर चीज़ समझा सकते हैं। इस जीवन में मैंने अंग्रेजी भाषा और थोड़ा विज्ञान और मनोविज्ञान सीखा, और इस बार मैंने अंग्रेजी भाषा और वह सब सीखा है, लेकिन ये मनोवैज्ञानिक बहुत एकतरफ़ा लोग हैं। योग शास्त्र बहुत एकपक्षीय लोग हैं। अब ये एक दूसरे से मेल नहीं खाते। मैं आपको दोनों के बीच का मूल सिद्धांत बता रही हूं। दोनों मानवीय प्रयास हैं। मैं एक अलग व्यक्ति हूं। अब अगर मैं ऐसी हूं, तो मुझे क्या करना चाहिए? मैं आपके जैसा कैसे बन सकती हूँ? मेरा मतलब है, अगर मुझे पता है कि कैसे ऊपर आना है, तो क्या मैं एक छोटे बच्चे की तरह बन जाऊं और कहूं,”ओह, नहीं, मुझे अब धीरे-धीरे घुटनों के बल ऊपर जाना होगा।” [माँ हँस रही है] 

मैं हजारों साल पुरानी बूढ़ी औरत हूं। तो मुझे सब पता है। आप अभी भी छोटे बच्चों जैसे हैं। तो मैं आपके जैसा कैसे बन सकती हूँ? देखिए, सीधी सी बात है और आज वह दिन है जब मैंने सोचा, कि बेहतर होगा कि मैं आपको इसके बारे में बताऊं, कि आप चीजों के बारे में चिंता न करें, कि मैं चीजों को कैसे करती हूं। मैं सचमुच यह करती हूं। मैं लोगों का उपचार करती हूं। अब यहाँ एक सज्जन हैं। वह हृदय रोगी है, पूछिए। मेरे उनसे मिलने से पहले ही वह काफी ठीक हो गये थे, और मैंने उन्हें स्वस्थ कर दिया। यहां बहुत सारे लोग हैं जो ऐसा कहेंगे. [हमने अपनी बीमारी के बारे में माताजी को बताया – माँ मराठी में बोलती हैं] क्यों? सवाल, वे व्यक्ति जिन्होंने मुझसे सवाल पूछा, आप उससे पूछिए। उसका एक मित्र है, जो एक फ्रांसीसी है, और उस फ्रांसीसी ने मुझसे पश्चिमी जीवन के बारे में एक प्रश्न पूछा। तो मैंने इसका उत्तर नहीं दिया। मैं कुछ और कहने लगी। वह बहुत बुद्धिमान लड़का है, यह राजेश। तो राजेश ने कहा, “अब, आप देखिए, माताजी ने आपके प्रश्न का उत्तर नहीं दिया है। इसका अर्थ है कि उन्होंने इसे रिकॉर्ड कर लिया है और यह कार्यान्वित होगा।” क्योंकि उनके मामले में ये कार्यान्वित हुआ है। तो भगवान ने जो कुछ भी किया है, वह आपकी भलाई के लिए है। उसने तुम्हें अहंकार और प्रति अहंकार दिया है, बिगड़ने और बरबाद होने के लिए नहीं। अब आप इसके लिए भगवान को दोष नहीं दे सकते। मान लीजिए कि भगवान ने आपको उस रास्ते पर जाने के लिए प्रकाश दिया है। उन्होंने आपसे कहा, “अब इसका पता लगाने के लिए एक स्वतंत्र प्रकाश लें।” और यदि आप स्वयं को उस प्रकाश से जलाने लगें, तो ईश्वर क्या कर सकते है? यह ईश्वर की गलती नहीं है।

बहुत से लोग सोचते हैं कि यह अहंकार भयानक है। पर आप में अहंकार होना चाहिए। अहंकार आप में होना चाहिए। तुम्हें इस अहंकार से नहीं लड़ना है। बात सिर्फ इतनी है, कि आपका अहंकार, ईश्वर के अहंकार के साथ एक हो जाना चाहिए। बस इतना ही। यह बहुत साधारण बात है। यदि आप उस ईश्वर के साथ एक हो जाते हैं – अब मान लीजिए कि इसमें अहंकार है, तो मैं इस पर कैसे बात कर सकती हूं? मैं कुछ कहूंगी, यह कुछ कहेगा। लेकिन अगर इसमें कोई अहंकार नहीं है, इसका अहंकार मेरे कहने के साथ एक हो गया है, तो यह मेरी आवाज को ले जाता है। इसमें मेरी बातें, सब कुछ आप तक पहुंचाता है। यह बहुत सरल है।

इसमें इतनी जटिल बात क्या है। जब लोग मुझे बड़ी-बड़ी चीजों के बारे में बताने लगते हैं, तो मैं सचमुच डर जाती हूं। मुझे लगता है, इसमें इतना जटिल क्या है? यह ऐसा है जैसे, आप देखिए, कोई जानना चाहता था कि हम पूड़ियाँ कैसे बनाते हैं, आप देखिए। तो एक विदेशी महिला आई थी। तो, आप जानिए उन्होंने सीखा कि  पूड़ियाँ कैसे बनाते हैं, और एक अन्य महिला ने पूरी चीज़ का मज़ाक उड़ाने की कोशिश की। उसने कहा, “हम एक रोटी यहां बनाते हैं, एक रोटी वहां बनाते हैं। फिर हम इसे एक के ऊपर एक रखते हैं और फिर, सभी प्रकार की चीज़ें। और हम इसे बड़ा बनाने के लिए अंदर कुछ डालते हैं और फिर हम इसे फुंकनी से उड़ा देते हैं,” और ये सभी चीजें। तो यह बेचारी महिला, उसने कहा कि, “आप इसे ऐसे कैसे बना रहे हैं, ऐसे कैसे ऊपर आ रहे हैं। आप इसे कढ़ाई में डाल रहे हैं, यह ऊपर आ रही है?” उन्होंने कहा, “यह हो रहा है क्योंकि यह करना सबसे आसान काम है,” लेकिन उसके लिए उसने कहा, “नहीं, मैं ब्लोअर का उपयोग कर रही थी, फूंक मार रही थी क्योंकि मैंने सोचा कि यही एकमात्र तरीका है, जिससे आप इसे कर सकते हैं।” यानी, किसी भी गृहिणी के लिए इस चीज़ को बनाना एक साधारण बात है।

तो आप देखिए, जब मैंने योग के बारे में ये सब बड़ी-बड़ी बातें सुनती हूं, ये, वो, तब मैंने कहा, “बाबा, आप क्या कर रहे हैं?” अब यह बहुत आसान है। अब यह बहुत आसान है. यह बहुत सरल बात है, लेकिन आप इसे नहीं कर सकते, यही बात है। तो मैं यहाँ हूँ एक बार जब आप जाग जाएं, एक बार आपका प्रकाश आ जाए, तो आप यह भी कर सकते हैं। क्यों नहीं? और मैंने गगनगढ़ महाराज को बताया है, जब उन्होंने मुझसे कहना शुरू किया, “मैं इस तरह के लोगों को, इन जैसे लोगों को आत्मसाक्षात्कार क्यों नहीं दे सकता?” मैं इतना जगह गया हूं और मैंने यह काम बहुत किया है [मैंने एक को दे दिया है और अब वह किसी काम का नहीं है – मां मराठी में बोलती है] और बेकार और आप कैसे, और ये लोग कैसे ये कर रहे हैं? वे बहुत अहंकारी हो जायेंगे।” मैंने कहा, “वे ऐसा नहीं होंगे।” उन्होंने कहा, “आप कैसे जानती हैं?” मैंने कहा, “वे श्री गणेश के पैटर्न पर बने हैं। उनके पास समान शक्तियाँ होंगी। उंगली हिलाने से भी मेरे पुत्र आत्म साक्षात्कार दे सकते हैं। वे कर सकते हैं। आप कौन होते हैं मुझे चुनौती देने वाले और मुझसे पूछने वाले?” वे चुप रहे। उन्होंने कहा, ”आप एक मां हैं. जो आप जो चाहे करिए, लेकिन ‘येद्य गबड़े छे काम नवे। [यह मूर्ख लोगों के लिए नहीं है]” मैंने कहा [मां मराठी में बोलती हैं] ”मैं उन्हें नहीं दे रही हूं।” यह एक शानदार चीज़ है, इसीलिए। आप देखिए, लोगों के लिए इसे समझना काफी कठिन है, लेकिन किसी भी ऐसी चीज को शानदार होना चाहिए।

और हमें ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करना होगा। हमें यह साबित करना होगा कि वह अस्तित्व में है और वे कार्य करते हैं, और वे सभी लोग, चैतन्य लहरी और कबीर और नानक और हिरण्य संहिता की बातें और आपके सभी योग, मैं पहले इसे आपके सामने साबित करने जा रही हूं। 

क्या आपने पहले कभी किसी कुंडलिनी को स्पंदित होते देखा है? मैं आप को कुंडलिनी का स्पंदन दिखाऊंगी। आपने कभी नहीं सुना होगा कि उंगलियों पर कहीं भी चैतन्य आ रहा हो, कुछ नहीं, लेकिन आपने इसे न केवल महसूस किया है, बल्कि आप किसी व्यक्ति का निदान भी कर सकते हैं। आप किसी व्यक्ति को बता सकते हैं कि वह किससे पीड़ित है। आप किसी व्यक्ति का इलाज कर सकते हैं। अब आप कहेंगे, “यह कैसे संभव है?” और कोई कहता है, “दस हज़ार साल पहले हमने इन चीज़ों के बारे में कभी नहीं सुना था।” सब कुछ दस हज़ार साल पहले होना चाहिए। तो फिर हम आगे क्यों बढ़ रहे हैं? बेहतर होगा वापस चले जाओ। ये कैसा तर्क है? आख़िरकार, हमने चाँद पर जाना खोज लिया है। फिर हम कभी नहीं कहते, “हम चाँद पर क्यों गए?” आप देखिए, यह एक सरल प्रश्न है। हम नहीं करते।

लेकिन हमें यह जानना होगा, कि कोई हमारे लिए अंदर खोज रहा है, और मुझे यह पता चल गया है। मैंने इन सभी राक्षसों के पास भी गई हूं। मैं इन सभी गुरुओं के पास गई हूं, उन सभी को बहुत अच्छे से उन्हें बेवकूफ बनाया, और मैंने यह पता लगाने की कोशिश की कि वे क्या कर रहे हैं। अब मैं भी उनकी चालें जानती हूँ। मैं जानती हूं कि उन्होंने आपके साथ क्या किया है, और इसी तरह मैं उसे सुधार सकती हूं। इसलिए मैंने कुंडलिनी के सभी क्रमपरिवर्तन और संयोजन और हर चीज, हर चीज का अध्ययन किया है, जो भी संभव है क्योंकि, आप जानते हैं, यह मनुष्यों के साथ इतना सरल नहीं है। उन्हें बहुत, बहुत आसानी से, बहुत आसानी से मनाया जा सकता है। उन्हें लुभाया जा सकता है। उन्हें सम्मोहित किया जा सकता है – मुझे सम्मोहित नहीं किया जा सकता, लेकिन आपको बहुत आसानी से सम्मोहित किया जा सकता है। ऐसे तो कोई भी आपको सम्मोहित कर सकता है। मैंने हजारों लोगों को सम्मोहित होते हुए, अपने कपड़े उतारते हुए, नाचते कूदते देखा है। मैंने कुछ लोगों को हर तरह के चेहरे बनाते देखा है, इस तरह, उस तरह, हर तरह की चीजें। ये किया जा सकता है, और सम्मोहन इतना है कि जब वे मेरे सामने भी आते हैं, तो वैसा ही करने लगते हैं। वे केवल सम्मोहन में आ जाते हैं क्योंकि वे इसके अभ्यस्त होते हैं। यह डॉ. जेकेल और मिस्टर हाइड की तरह है। वे बस मिस्टर हाइड बन जाते हैं, और डॉ. जेकेल खो जाते हैं। आप वह बन जाते हैं। यह बहुत आम बात है।

इसलिए आप के लिए यह समझना बुद्धिमानी है, कि मैं ये सब बातें जानती हूं, और मैं आप को सब कुछ बताऊंगी। मैं इसे विशेष रूप से आपके लिए लाई हूं, और मैं सभी क्रमपरिवर्तन और संयोजन जानती हूं। आपको इसके बारे में कोई शोध करने की ज़रूरत नहीं है। कोई पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है। फिर भी, आप देखिए, ऐसे लोग हैं जो सात वर्षों से मेरे साथ हैं। फिर भी वो कह रहे हैं, ”माँ, हर बार जब आप कुछ कहती हैं, तो हमें सीखना पड़ता है।” यह यह है, यह वह है, यह संयोजन है, वह संयोजन है, सब कुछ। इस ज्ञान के बारे में थोड़ा जानने के लिए पांच जन्म भी पर्याप्त नहीं होंगे। तो इन शोधों और चीज़ों के बारे में चिंता क्यों करें? बस मेरी बात सुनिए और अपने हाथों का उपयोग करिए, और सीखिए और स्वयं भी खोजिए, कि यह सत्य है, और हर किसी की मत सुनिए। तीसरा व्यक्ति मोड़ से आ रहा है, वहां कोई पान बेच रहा है जो आपको बताएगा [मां मराठी में बोलती है] हो गया! जैसे कि हमारे पास बिल्कुल भी दिमाग नहीं है, आप देखिए। इसलिए हर किसी की बात नहीं सुननी चाहिए। आपको अफवाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। अवश्य, आप विशेष लोग हैं। ईश्वर की कृपा से आपको चैतन्य प्राप्त हुआ है। ये बहुत बड़ी बात है। जिनको नहीं मिला है उन्हें भी मिलेगा। मैं आपसे अनुरोध करूंगी, कि हर दिन आपको सात दिनों तक पानी पर बैठना होगा, यह देखने के लिए कि अब आप आत्मसाक्षात्कार के बाद स्वच्छ हो गए हैं, और बाद में जब भी आप थके हुए हों। यह बेहतर है। वह आपके लिए स्नान है। प्रतिदिन वह उपचार स्वयं करें। यह स्नान है। आप स्वयं को शुद्ध करते हैं, क्योंकि आप (विकार) इकट्ठा कर लेते हैं। मैं इकट्ठा नहीं करती। मुझे कुछ नहीं होता, लेकिन आप को होता है। इसलिए आप रात को जरूर जल क्रिया करें, और उस पानी में सारी परेशानियां निकालकर उसे फेंक दें। नमक वाला पानी एक समुद्र है जो आप की सभी समस्याएं दूर कर देता है।

तो ऐसा करने का प्रयास करें, और इसके बहुत सारे तरीके हैं। हम आकाश का उपयोग कर सकते हैं। हम पृथ्वी का उपयोग कर सकते हैं। वहाँ लोग हैं, वे आप को बता सकते हैं। वे जानते हैं। मैंने उनसे कहा है, कि पांच-छह लोगों को यहां आना चाहिए। हमें दिमाग पर भरोसा है। वे सभी यहां बैठे होंगे और आपसे बात कर रहे होंगे। तो अगली बार जब आएं, तो कोई समस्या हो तो पूछ सकते हैं। अब हो सकता है, कि आप विद्वान हों, लेकिन आप उनसे सीख सकते हैं। यहां तक ​​कि न्यायमूर्ति वैद्य जैसे व्यक्ति ने मुझसे कहा कि, “मुझे सहज योग के बारे में और अधिक जानना चाहिए।” तो मैंने कहा कि यह सैद्धांतिक से अधिक व्यावहारिक है, और यदि वे कार्यक्रम में आते हैं, या यदि कोई उसके पास जा सकता है, या यदि वह इसे अपने हाथ से हल कर सकते हैं, धीरे-धीरे वह इसमें निपुण हो जायेंगें, क्योंकि उनके पास ज्ञान है। यह इसमें इस तरह जुड़ जाएगा, जैसे कि गंगा सभी में, सभी खाइयों में या जल प्राप्त करने के लिए बनाई गई सभी चीजों में बह कर जाएगी, और वह पूरी तरह से उसमें जाकर बस जाएगी।

आपका पढ़ना व्यर्थ नहीं जाएगा, बल्कि आपको पता चल जाएगा कि क्या सही है, क्या गलत है। अब यदि कोई और प्रश्न हो? एक प्रश्न के लिए  मैंने इतना समय ले लिया, क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है।

साधक : स्नान क्या है ?

[स्नान का मतलब है कि तुम्हें मेरी तस्वीर मेरे सामने रखनी होगी – माँ मराठी में बोलती हैं]

फोटो में चैतन्य है, ये एक तथ्य है। इसके अलावा भी कई चीजें ऐसी हैं, जिनमें चैतन्य होता है। उदाहरण के तौर पर इस मूर्ति में भी चैतन्य है। यहाँ तक कि इन दोनों मूर्तियों में भी है, परन्तु उतना नहीं क्योंकि उनका अस्तित्व मुझ से हैं। सबसे पहले, मैं एक जीवित प्राणी हूँ। दूसरा यह कि उनका अनुपात गलत हो सकता है, क्योंकि वे मनुष्यों द्वारा, उनकी कल्पना द्वारा बनाए गए हैं, लेकिन ‘स्वयंभू लिंग’, उन सभी मे चैतन्य है। उदाहरण के लिए, अब मान लीजिए कि आपको प्रोस्टेट ग्रंथि की समस्या है, यदि आप इनमें से किसी के पास जाते हैं, तो कहते हैं [उनका नाम क्या है? हम उस गणपति के पास कहाँ गए? टिटवाला नहीं – माँ मराठी में बोलती है] रांझन गांव, रांझन गांव गणपति। आप देखिए, मैं वहां गई थी। उस में पूर्ण चैतन्य है। टिटवाला क्योंकि, जैसा कि आप देखते हैं, लोगों द्वारा इसे बहुत अधिक देखा जाता है। इसलिए कभी-कभी भीड़ हो जाती है, लेकिन रांझन गांव मुझे अभी भी ठीक लगा। लेकिन जैसे ही मैं कहती हूं रांझन गांव, सब लोग रांझन गांव पहुंच जायेंगे, और रांझन गांव भी खराब हो जाएगा। 

क्योंकि ये सब तो हैं ही, ये वो खास मूर्तियां हैं जो धरती माता द्वारा निकली हैं। उसने उन्हें बाहर फेंक दिया है। धरती माता सोचती है, वह इन चीजों को बनाती हैं, और वह इन चीजों को फेंकती हैं, और ये चीजें चैतन्य देती हैं। तो, आप उन सभी से चैतन्य लेते हैं। लेकिन मेरा फोटो एक असली वास्तविक (चैतन्ययुक्त) फोटो है। [किसी ने राम या कृष्ण की फोटो नहीं खींची – माँ मराठी में बोलती हैं]। 

दूसरी बात यह है कि, आप देखिए, मैं जो भी बोलती हूं, क्योंकि मैं वही हूं, उस में प्रणव प्रवाहित होता है। यह साक्षात् प्रणव है। हर बात में, हर चीज़ में एक मंत्र जा रहा है, और जब मैंने उसमें अपनी उंगली भी डाली तो मैंने पाया कि मेरी तरंगों को घुमाया जा सकता है. यहां तक ​​कि जब मैं [मां अपने मुंह से हवा निकालती हैं] ऐसा करती हूं, तो जो लोग आत्म साक्षात्कारी हैं, वे इसे अनुभव कर सकते हैं। अपने सहस्रार पर वे महसूस कर सकते हैं; एक तथ्य है। तो यह लोगों को इतना अजीब क्यों लगता है?

उनका प्रश्न क्या है? यदि आप उनके सभी चक्र देखते हैं [अस्पष्ट] तो कृपया इसे पढ़ें। उन्होंने नहाने के बारे में पूछा है – माँ मराठी में बोलती हैं] यह एक सरल विधि है. तुम मेरी तस्वीर उचित स्थान पर रख दो, उसके सामने थोड़ी रोशनी कर दो। मोमबत्ती काम करेगी, या आप निरंजन [तेल का दीपक] लगा सकते हैं, जो भी आपको पसंद हो। दोनों हाथ फोटो की ओर रखें। अब आप दोनों हाथों को फोटो की तरफ, और पैरों को थोड़ा सा नमक वाले पानी में डाल दें। आप जरूरत के हिसाब से थोड़ा गर्म पानी, ठंडा पानी या गुनगुना पानी ले सकते हैं। मान लीजिए कि आप बीमार हैं, सर्दी से पीड़ित हैं, तो गर्म पानी लेना बेहतर है। इसमें थोड़ा सा नमक डाल दीजिए। अपने हाथ तस्वीर की ओर रखें। आप आश्चर्यचकित होंगे कि सारी परेशानी पानी में चली जाएगी, और आप पानी को डब्लू. सी. में फेंक सकते हैं। और आप बहुत अधिक स्वच्छ होंगे। अब ये सज्जन, आप पूछें। उसने वैसा ही किया। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। यह बहुत गंभीर था। हर कोई इसे (जलक्रिया को) कर सकता है। 

अब विशुद्धि चक्र के लिए, विशेष रूप से ये चक्र, एक और सरल चीज़ जो आप आज़मा सकते हैं। वह है कि पहले अपना दाहिना हाथ तस्वीर की ओर रखें, और बायाँ हाथ बाहर निकालें। मान लीजिए कि आप पाते हैं कि उसमें चैतन्य प्रवाहित हो रहा है, तो आप बायां हाथ तस्वीर की ओर और दायां हाथ बाहर की ओर रखें, और आपको आश्चर्य होगा कि पूरी चीज़ इस चक्र को बहुत अच्छी तरह से साफ़ कर देगी। और यदि आप तस्वीर की ओर अपनी आंखें खुली रखें और अपने हाथ आकाश पर ऐसे या कभी-कभी ऐसे रखें, तो आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि इस से आपकी आंखें बेहतर हो सकती हैं। धरती माता भी; यदि आप अपना सिर धरती माता पर रखते हैं, तो बस उसे अपने माथे से स्पर्श करें और कहें, “माँ मुझे आप को पैरों से छूने के लिए क्षमा करें,” और वह आपकी दादी है। आप कुछ भी मांगें

वह आप को मिलेगा। वे सभी आपको वह देने की प्रतीक्षा कर रहे हैं जो आप चाहते हैं। आप हनुमान से मदद मांग सकते हैं। आप गणेश जी से मदद मांग सकते हैं।

अभी हाल ही में अखबार वालों ने मुझे बताया, वे मेरे दो शिष्य हैं, जो संवाददाता हैं और कहीं जा रहे थे और उनके पास मेरी तस्वीर थी। उन्होंने कहा, “यह बहुत आश्चर्यजनक था कि हम आ रहे थे और गाड़ी चलाते समय हमारा ड्राइवर एक ट्रक से टकरा गया और हमने कहा, ‘हम सब ख़त्म हो गए,’ और हमने अपनी आँखें बंद कर लीं। जब हमारी आंख खुली तो ट्रक आगे था और हम यहां थे। हम नहीं जानते थे कि हम सब कैसे बच गये। वहीं ड्राइवर ने भी अपनी आंखें बंद कर ली थीं। हमें नहीं पता था कि ट्रक उस तरफ कैसे गया और हम यहां कैसे थे।” इसलिए दुर्घटनाएं टल जाती हैं। चीजें हो सकती हैं, और लोगों ने देखा है। वे लंबे समय तक जीवित रहते हैं और स्वस्थ रहते हैं।

सब कुछ है। आख़िरकार, हमें करना ही होगा, हम परमेश्वर के राज्य में कूद पड़े हैं। सिर्फ इतना है कि फिलहाल अपने बीजों को ठीक रखें। फिर सारी चीज़ इसी तरह सतयुग में उठायी जायेगी। सतयुग पहले से ही प्रारम्भ हो चुका है।

[प्रश्न क्या है? – माँ मराठी में बोलती है]

साधक: यदि हम सभी छह चक्रों को देखें, तो लगभग हर चक्र में कोई न कोई एंडोक्राइन ग्लैंड्स  मौजूद होती है। इस चक्र का इस ग्रंथि से क्या संबंध है?

श्री माताजी: अब एंडोक्राइन ग्लैंड भी चक्रों द्वारा नियंत्रित होती हैं। उदाहरण के लिए, अब हम कह सकते हैं, कि मूलाधार चक्र इस प्रोस्टेट को वैसे ही नियंत्रित करता है। यहां तक ​​कि आज्ञा चक्र पिट्यूटरी और पीनियल, दोनों को नियंत्रित करता है, और इस तरह यह अहंकार और अति-अहंकार को नियंत्रित करता है। तो इसका उस पर बहुत अधिक नियंत्रणकारी प्रभाव पड़ता है। वे उन के विकास के एजेंट हैं। उदाहरण के लिए, आप देखिए, सारी प्रकृति को नियंत्रित करने के लिए भगवान ने सितारों को स्थापित किया है। कुछ तारे हैं, अधिकतर नौ, नौ तारे, सात तारे, जैसा कि आप जानते हैं, और दो अन्य को ब्रह्मांड और हर चीज़ को नियंत्रित करने के लिए वहां रखा गया है। इसे उन बिंदुओं के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है, और आप जानते हैं कि यह हमारे शारीरिक, भौतिक जीवन, पूरे ग्रह को प्रभावित करता है।

साधक: आदरणीय माताजी, कृपया मुझे ज्ञान दीजिए और मुझे स्पष्ट रास्ता दिखाइए। पहला, चैतन्य क्या हैं  (शारीरिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रूप से)? 2. ये चैतन्य कहां से आते हैं – आपसे, ब्रह्मांड से या वायुमंडल से? चैतन्य से हमें किस प्रकार लाभ होता है? सहज योग में – क्या करें और क्या न करें?

श्री माताजी: बहुत अच्छा प्रश्न, बहुत बढ़िया! प्रश्न किसने पूछा है? बहुत अच्छा! पहला प्रश्न यह है कि ये चैतन्य क्या हैं? मैंने आपको कल बताया था कि हमारे हृदय में एक ज्योति की टिमटिमाती हुई रोशनी हर समय जलती रहती है, वह आत्मा है। जो हमारे हृदय में परमात्मा का प्रतिबिंब है। संक्षेप में मैं आपको बताती हूँ, विस्तार मैं नहीं। अब क्या होता है, कुंडलिनी ऊपर उठती है, वह ब्रह्मरंध्र को खोलती है और वहां सदाशिव का स्थान ‘पीठ’ होता है। आप देखिए, पीठ यहां है, लेकिन शिव हृदय में आत्मा के रूप में प्रतिबिंबित होते हैं। आप पीठ को देखते हैं और पीठ का निर्माण होता है क्योंकि, आप देखते हैं, पीठ सूक्ष्म को ग्रहण करता है, आप देखिए। यह सूक्ष्म ऊर्जा प्राप्त करता है जो सर्वव्यापी है। स्थूल जो सर्वव्यापी शक्ति में है, उदाहरण के लिए, यह मेरी आवाज़ एकत्र करता है। आवाज एक सूक्ष्म ऊर्जा है जिसे इसके माध्यम से एकत्रित किया जाता है। यहां अब हमारे पास हर तरह की तस्वीरें और हर तरह का संगीत चल रहा है, लेकिन अगर आपके पास रेडियो है तो वह खींच सकता है।

उसी तरह, पीठ मस्तिष्क में होते हैं और सदाशिव का पीठ यहां ऊपर है जो कि खुल जाता है ताकि सूक्ष्म, स्थूल में सूक्ष्मता एक बहुत ही सूक्ष्म चैनल के माध्यम से हमारे हृदय में प्रवेश करती है और गैस की रोशनी की तरह इसमें टिमटिमाहट होती है, और जब गैस बाहर खुलती है तो प्रकाश अंदर आता है। अब चैतन्य है, वह प्रकाश हमारे माध्यम से गुजर रहा है।

ये चैतन्य लहरियां हमारे अंदर प्रवाहित होने लगती हैं। अब मैं क्या करूं? आप कहेंगे, “माताजी आप क्या करती हैं?” मैं कुछ नहीं करती, लेकिन मैं बस आपको वह बल देने का प्रयास करती हूं, जो हम कह सकते हैं, गैस शक्ति है। वह गैस शक्ति है क्योंकि कुंडलिनी जानती है कि जब मैं आप के सामने होती हूं, तो वह ऊपर उठती है, खुलती है और प्रवाहित होने लगती है। यह मेरे अंदर से सर्वत्र प्रवाहित हो रहा है, लेकिन जब तक आप सूक्ष्म नहीं होते, तब तक आप इसे अनुभव नहीं कर सकते, कि यह आपके पास है। यह है, आप कह सकते हैं कि मैं उसके जैसी हूं, आप कह सकते हैं कि मैं सीमित हूं असीमित में, असीमित हूं सीमित में। असीमित सीमित में सीमित असीमित में, मैं दोनों हूं। [क्या आप समझ गए – माँ मराठी में बोलती है] 

तो जो ऊर्जा सभी सूक्ष्म ऊर्जाओं में उत्सर्जित होती है, वह मेरे माध्यम से गुजर रही है। ये विराट है। विराट से मान लीजिए पूरी चीज़ गुजरती है। यह सर्वव्यापी में जा रही है। वह सबमें व्याप्त है। हर जगह यह जा रहा है। यह सर्व्यापी शक्ति सब जगह  है। हर जगह यह जा रही है। यहाँ तक कि वह हर चीज़ में एक कोशिका में भी है। कार्बन परमाणु में यह मौजूद है। सभी परमाणुओं में, सभी व्यवस्थाओं में यह कार्य कर रही है। यह सूक्ष्म ऊर्जा है, जो मेरे माध्यम से उत्सर्जित होती है। 

जब तुम सूक्ष्म हो जाते हो तो तुम रेडियो की तरह हो जाते हो। आप इसे प्राप्त करना आरंभ कर देते हैं। अब आपको कैसे पता चलेगा कि क्या सही है और क्या ग़लत? आप सूक्ष्म से पूछते हैं, और सूक्ष्म आपको उत्तर देता है, और आपको उत्तर अपने हाथों पर मिल जाते हैं। यह ऐसा है। तो ये वे चैतन्य है, जो आप सर्वव्यापी शक्ति से प्राप्त करते हैं, और सर्वव्यापी शक्ति उत्सर्जित होती है, और आप इसे मुझसे या सर्वव्यापी से प्राप्त करते हैं। यह सब स्थानों से एक सा ही है। ये चैतन्य है।

लेकिन आत्म-बोध का मतलब है, जो कि एक बहुत ही सूक्ष्म बिंदु है, जिसे आप अभी समझने की कोशिश करते हैं, क्योंकि यह अब तक आपके लिए अचेतन है। आपकी आत्मा अचेतन में है। यह आपकी चेतना में नहीं है, यह अचेतन में है। यह आपकी चेतना में नहीं है, इसका मतलब है कि यह अचेतन में है। आप अभी तक इसके बारे में चिंतित नहीं हैं। आप को इसकी जानकारी नहीं है, ठीक है? 

लेकिन एक बार जब आपको आत्म साक्षात्कारी  हो जाते है, तो यह आपकी चेतना में प्रवाहित होने लगता है। इसका मतलब है, कि आप इसे अपने केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में महसूस करना शुरू कर देते हैं, क्योंकि आपका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम) आपकी चेतना है। मानव चेतना और कुछ नहीं बल्कि केंद्रीय तंत्रिका तंत्र है, लेकिन उसका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र अब चैतन्य का अनुभव करने लगता है,  इसके माध्यम से आत्मा के प्रकाश को महसूस करना शुरू कर देता है। तो, इसीलिए इसे ‘समाधि’ के नाम से जाना जाता है। ‘समाधि’ का अर्थ है अचेतन। जब अचेतन चेतन हो जाता है तो उसे ‘समाधि’ कहा जाता है। इसलिए लोग सोचते हैं कि ये बेसुध होना है। ‘बेसुध नहीं’। इसका मतलब है कि आप अचेतन के प्रति जागरूक हो जाते हैं। इतना ही नहीं, बल्कि पहले आप निर्विचार, फिर निर्विकल्प और फिर पूर्ण आत्म-साक्षात्कारी बन जाते हैं। तो, ‘समाधि’ एक शब्द है, एक बड़ा भ्रम है। ‘समाधि’ का अर्थ केवल सार्वभौमिक अचेतन है। इसका अर्थ है सार्वभौमिक अचेतन और अचेतन [लोग सोचते हैं कि बेहोश हो जाना ही समाधि है। [अस्पष्ट] – माँ मराठी में बोलती हैं]। यदि आप इस अर्थ में बेहोश हैं, अब मान लीजिए कि कोई आपको इंजेक्शन देता है या आप कोई दवा लेते हैं तो आप बेहोश हो जाते हैं, इसका मतलब क्या है? आप सुप्त-चेतन में या अग्र-चेतन में जाते हैं, लेकिन यह एक (सुपर कॉन्शियसनेस) अतिचेतनता है और अतिचेतना सर्वव्यापि, ‘सूक्ष्म’ है।

कल उन्होंने आपको तीन प्रकार की साधनाओं के बारे में बताया। सात्विक और राजसिक और तामसिक। तामसिक बायीं ओर जाता है, इसका अर्थ है बायीं ओर की कामेच्छा से जुड़े अवचेतन और सामूहिक सुप्त- चेतन में बायीं ओर कामेच्छा से जुड़ा है, और दाहिनी ओर पिंगला नाड़ी से जुड़ा अग्र-चेतन है जो इच्छाशक्ति है, जैसा कि आप इसे कहते हैं, और अग्र-चेतन पक्ष से जुड़कर सामूहिक अग्र-चेतन की ओर जाता है। देव और ये सभी लोग उस तरफ बैठे हैं  देव, देवता और ये सभी अधिकारी हैं, आप देखिए। गण शीर्ष पर इस तरफ हैं, और जो लोग इसमें असफल होते हैं, वे नरक में जाते हैं। लेकिन केंद्र  अतिचेतन है। सुषुम्ना के लिए मनुष्य अतिचेतना से ऊपर उठता है। वे धीरे-धीरे अधिक से अधिक जागरूक होने लगते हैं। लेकिन केंद्र अति-चेतन है। उनका समान शरीर है। उधारण के लिए, यदि आप मस्तिष्क की कोशिका को देखें, तो यह वसा ग्लोब्यूल की कोशिका के समान ही है, लेकिन इसमें अंतर है।

तो, अंतर आना शुरू हो जाता है, और जब तक आप यहां से बाहर खुलते हैं, तब उस कोशिका में, आपके मस्तिष्क को एक बड़ा आयाम दिया जाता है, कि वह चैतन्य प्राप्त करना शुरू कर देता है और इसे समझ सकता है। और फिर इससे भी बड़ा, निर्विकल्प में आपको एक और आयाम मिलता है जहां आपको कोई संदेह नहीं होता। तुम ज्ञान हो। और अंतिम है आत्म साक्षात्कार जहां आप सिर्फ आनंद में हैं, आनंद में पूर्ण हैं, कोई समस्या नहीं है। तुम्हे  पकड़ नहीं आती, कुछ नहीं होता है।

मैं कहूंगी कि हमारे वैद्य साहब आत्म-साक्षात्कार के बहुत करीब हैं, बहुत करीब हैं। जिस प्रकार उन्हें आत्म-साक्षात्कार हुआ, वह अद्भुत है, क्योंकि उसे लगा कि दो बर्फ के टुकड़े उसके अंदर आ रहे हैं और पिघल रहे हैं, लेकिन उन्हें पकड़ नहीं आती, आप जानते हैं! मैंने उन्हें किसी के बारे में बताया। उन्होंने कहा, ”मैं जानता हूं कि वह अच्छे नहीं हैं। वह एक तामसिक व्यक्ति है। उसे उसके कर्म के अनुसार चलने दीजिए माताजी, क्या कर सकते हैं?’ आप देखिए, उन्हें पकड़ नहीं आती, लेकिन आप लोगों को पकड़ आएगी।

[अब अगला सवाल शारीरिक के बारे में है – माँ मराठी में बोलती हैं]

शारीरिक, शारीरिक, आप इसे हाथ पर महसूस कर सकते हैं। आप उंगलियों पर महसूस कर सकते हैं. [वह मराठी किताब पढ़ें. उसमें सब कुछ लिखा है – माँ मराठी में बोलती है] 

साधक : वैज्ञानिक दृष्टि से बताइए।

श्री माताजी: ​ [इसमें वैज्ञानिक रूप से क्या बताएं – माताजी मराठी में बोलती हैं] आप देखिए, वैज्ञानिक रूप से आप कह सकते हैं, कि पैरासिम्पेथेटिक सक्रिय हो जाता है। आपको पैरासिम्पेथेटिक का नियंत्रण मिल जाता है। आप  अचेतन, सार्वभौमिक अचेतन में कूद पड़ते हैं। ये दो बिंदु हैं जो आप कह सकते हैं। अब क्या है [आध्यात्मिक रूप से बताया गया – माँ मराठी में बोलती है]

साधक: चैतन्य कहाँ से आता है? मुझसे, उससे?

श्री माताजी: हर जगह से। मैं उत्सर्जक शक्ति हूं, ठीक है! इसे स्वीकार करें!

साधक: आप इसे पाने के लिए क्या कर रही हैं?..[अस्पष्ट] किस तरह?

श्री माताजी: अब यह जीवन की महत्वपूर्ण शक्ति है। आप इसे देखिए। यह आपको पूर्ण संतुलन प्रदान करता है। यह आपके शारीरिक अस्तित्व को सही करता है। यह आपके मानसिक अस्तित्व को सही करता है। यह आपके भावनात्मक अस्तित्व को सही करता है। यह आपको ईश्वर के साथ पूर्ण आध्यात्मिक एकता प्रदान करता है, और यह आपको पूरी तरह से एकीकृत करता है। मेरा मतलब है, जहां तक ​​मेरा सवाल है, मुझे कोई पश्चताप नहीं है। मुझे समझ नहीं आता पश्चताप क्या है। मुझे समझ नहीं आता कि प्रलोभन क्या है। मैं इन बातों को नहीं समझती, क्योंकि मैं अपने आप में पूर्ण हूँ।  हर उंगली जो मैं हिलाती हूं, हर हाथ जो मैं हिलाती हूं। हर चीज जो मैं करती हूं, इसका कुछ अर्थ है। करना तो पड़ता ही है, मेरा मतलब है बिना विचार किए हो जाता है, लेकिन इसके पीछे बहुत बड़ी सोच होती है। ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि मैं हां कहती हूं, मैं हां कहती हूं, मैं हां कहती हूं। हां का अर्थ है फंदा है, यह तो आप जानते ही हैं। एक वृत्त का निर्माण होता है जो कार्य करता है। अब यह मुश्किल है कि आप जानिए कि मेरा तंत्र आपसे अलग है। इसलिए मैं यह नहीं बता सकती, कि मैं क्या करती हूं, क्योंकि आपके भीतर वह यांत्रिकी नहीं है, लेकिन यह ऐसा ही है। ‘हूं, हां, हैं’, ये सब कहना भी जबरदस्त शब्द हैं। हम कह सकते हैं, कि वे एक तरह की ताकत और एक तरह का बवंडर पैदा करते हैं। एक प्रकार की संरचना हो जाती है, जिसमें यह उन सभी बुरी चीजों को, जो वहां हैं या सभी राक्षसों को और उन सभी चीजों को अपनी चपेट में ले लेती है, और उन सभी को बाहर खींच सकती है। 

अब मैंने इसे मटके में दे दिया। बस मैंने उसमें अपनी सांस डाल दी। यह प्रणव ही है पूर्ण, और यह प्रणव तुम रात में देखोगे जब वे सो रहे होंगे, बाहर आएँगे और धीरे-धीरे ये सब चीजें बाहर निकालेंगे और बाँधकर अंदर डाल देंगे। आपने बहुत से पागलों को इसी तरह ठीक होते देखा होगा,लेकिन देखने में यह मटका जैसा लगता है और लोग कहते हैं, “यह माताजी मटका मटका क्या कह रही हैं?” और यह और वह.

और मैंने आपको अहमदाबाद के सिविल सर्जन के बारे में बताया था, कि उनके साथ क्या हुआ था। उन्होंने मुझसे कहा, “मैं ये सभी निरर्थक चीजें नहीं कर सकता।” वह बहुत गुस्से में था. “आप चाहती हैं कि मैं स्वयं को बेवकूफ़ बनाऊँ? मैं यह सब नहीं सुन सकता।” मैंने कहा, “ठीक है, तुम आगे बढ़ो। मैं नहीं कहती,”और वह थोड़ा पागल हो गया था। मैंने कहा, “ठीक है, मैं नहीं कहती। ठीक है, मटका मत लाना,” और तीसरे दिन जब मैं व्याख्यान दे रही थी, तो वह अपने सिर पर इतना बड़ा मटका लेकर आ रहा था। तो मैंने व्याख्यान के बाद कहा, “डॉक्टर।” मैं हँसे बिना नहीं रह सकी। व्याख्यान के बाद मैंने कहा, “आप इतना बड़ा मटका क्यों लाए? मैंने तुमसे इतना बड़ा मटका लाने को नहीं कहा था। मैने छोटा मटका लाने के लिए कहा था। उसने कहा, “माताजी, आपकी माया। इस तरह आपने मेरे अहंकार को पूरी तरह से खत्म कर दिया क्योंकि बाजार में कोई छोटा मटका उपलब्ध नहीं था। केवल इतना बड़ा ही उपलब्ध था। इसलिए मुझे इतना बड़ा मटका लाना पड़ा।” इस पूरी बात के दौरान वे चल रहे थे, और मैं उन्हें देख रही थी, और मुझे नहीं पता था कि कहाँ देखना है। मैंने कहा, “सिविल सर्जन को देखो,” और इससे लोगों को विश्वास हो गया। [हे सिविल सर्जन, एक बड़ा आदमी अपने सिर पर इतना बड़ा मटका लेकर श्री माताजी की ओर जा रहा है. अंदर भूत है या पागल? – माँ मराठी में बोलती है] बेचारा सिविल सर्जन, लेकिन वह बहुत अच्छे आदमी है और वह ठीक हो गए हैं। भगवान का शुक्र है। तो ये ऐसा है। फिर उसके बाद वह सेवानिवृत्त भी हो गए, और वह अभी भी एक बहुत अच्छे सहज योगी हैं। तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आप जानते हैं कि ये चीजें महत्वपूर्ण नहीं हैं। माँ कहती है, “ठीक है, मटका से मटके तक।”

[श्री कृष्ण ने मटका फोड़ा था। हर चीज़ का एक अर्थ होता है। मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगी और उसे सुनिए। उन्होंने गोकुल में सहजयोग बताया। यह मज़ेदार है। उन्होंने मटका क्यों फोड़ा? क्या इसका कोई अर्थ है? माँ मराठी में बोलती है।]

ये आपको किसी किताब में नहीं मिलेगा। ये आप को पता नहीं चलेगा, लेकिन माताजी को पता है। वह कृष्ण की सारी चालें जानती है। आख़िरकार, उन्होंने आप को उनकी सारी चालें भी बता दी हैं। [और यदि यह झूठ है तो आप इसे देखिये। अब प्रश्न ख़त्म – माँ मराठी में बोलती हैं]

साधक: सहजयोग में क्या करें, और क्या न करें?

श्री माताजी: क्या न करें और क्या करें; सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, वे चीज़ें जो एक सहज योगी धूम्रपान नहीं कर सकता और शराब नहीं पी सकता। एक बिल्कुल सौ प्रतिशत निश्चित, क्योंकि अगर आप शराब पीते हैं या धूम्रपान करते हैं, तो कुछ समय बाद आप पाएंगे कि या तो आपका चैतन्य खत्म हो जाएगा, या आपको उल्टी शुरू हो जाएगी। आप धूम्रपान नहीं कर सकते। यदि आप धूम्रपान करते हैं तो आप के विशुद्धि में पकड़ आ जाएगी। यदि आप पीते हैं तो आप के नाभि चक्र में पकड़ आ जायेगी, और जब भी आप तस्वीर की ओर अपना हाथ रखेंगे, तो पूरा नाभि चक्र जल रहा होगा। तो आप कहेंगे, “यह क्या हो रहा है?” और आप छोड़ देंगे। आप एक प्रकार से, कई लोगों ने इसे बिना किसी कठिनाई के किया है। उन्हें कोई कठिनाई नहीं होती; वे बस इसे छोड़ देते हैं। तो यह (धूम्रपान और मदिरा सेवन) सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक है, जिसे आपको धीरे-धीरे छोड़ना होगा। बस मेरा नाम ले लीजिए। आप इस पर काम कर सकते हैं। हमारे यहां लोग हैं, वे आपको बताएंगे कि वे शराबी थे, वे ड्रग्स ले रहे थे, और वे हर तरह की चीजें कर रहे थे। उन्होंने वह सब छोड़ दिया है, और अब वे बिल्कुल सामान्य लोग हैं। पहली बात यह है, कि शराब न पियें और धूम्रपान न करें।

दूसरी बात, उपवास न करें। जब माँ यहां है, तो आप को उपवास नहीं करना चाहिए। केवल नरक चतुर्दशी का व्रत करें, बस इतना ही। उस दिन आपको फ़रल [नाश्ता] नहीं खाना चाहिए [उस दिन, दोपहर 12:00 बजे उठना चाहिए। अच्छा खाओ – माँ मराठी में बोलती है]। अगर आपका खाने का मन नहीं है, तो कुछ और खाएं लेकिन अपना पेट खाली न रखें। आप कुछ फलों का रस या दूध या जो भी आपको पसंद हो ले सकते हैं। ये हैं भोजन और पेट, नाभि चक्र के बारे में कुछ खास बातें। 

दूसरी बात, आंखें बहुत महत्वपूर्ण चीज हैं, जहां आपको सावधान रहना होगा, कि आप अपनी आंखों को बहुत तेजी से न चलाएं। अपनी आँखें स्थिर और अधिकतर धरती माता पर रखने का प्रयास करें। आप देखिए, आपने लक्ष्मण के बारे में सुना है। उन्होंने कभी सीता जी के चरण नहीं देखे, कभी उनका मुख कभी नहीं, कभी नहीं देखा। उसने केवल उनके पैर देखते थे। यह कैसे हो सकता? वह हमेशा उसके साथ रहते थे। उन्होंने कभी उसका चेहरा नहीं देखा था। उन्होंने तो बस उनके पैर देखे थे। तो, आप कल्पना कर सकते हैं कि स्थिति क्या होनी चाहिए, और चौदह वर्षों तक उन्हें पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ा। वह बस, वह उसकी माँ की तरह थी। वह जानते थे कि वह आदिशक्ति है, लेकिन उन्होंने सिर्फ उनके चरण देखे।

हम को भी ऐसा ही होना चाहिए, यह बात, कि हमें एक पवित्र विवाहित जीवन जीना चाहिए। अब मान लीजिए कि कोई विवाहित है, तो उसे दूसरी स्त्रियों के साथ भागना नहीं चाहिए, और बाकी औरतें को दूसरे पुरुषों के साथ नहीं भागना चाहिए, और एक पवित्र जीवन जीएं। परिवार का एक घोंसला बनाएं। एक उचित पारिवारिक घर बनाएं। अपनाने का प्रयास करें, समझौता करें, समायोजित करें। अपनी पत्नी को एहसास कराएं या अपने पति को एहसास कराएं और परिवार में शांति लाएं, क्योंकि कई महान आत्माएं हैं जो जन्म लेना चाहती हैं, उनमें से कई।

जैसे ही आपको पता चलेगा, कि ऐसी शादियाँ होंगी, जो उन्होंने अब हमारे मामले में देखी हैं। आप हमारे यहाँ मौजूद लोगों से पूछ सकते हैं। इन लड़कियों से पूछिए। वहां मैंने उनसे कहा कि आप विवाह जरूर करिए। तो एक लड़की की शादी हो गई और उसकी एक बेटी है, जो पूर्णत: आत्म साक्षात्कारी है। बहुत से लोगों को आत्मसाक्षात्कारी बच्चे मिले हैं। [अस्पष्ट] बहुत से लोग जिन्होंने इस तरह से शादी की है, उन के पास आत्म साक्षात्कारी संतान हैं। इसलिए, आपको एक पारिवारिक जीवन, एक उचित परिवार, उचित रिश्ता पाने का प्रयास करना चाहिए। 

अपने माता-पिता की, अपनी माताओं की सेवा करो। अपने माता-पिता में दोष न निकालें और उनके प्रति दयालु बनने का प्रयास करें, साथ ही पत्नी के माता-पिता के प्रति भी दयालु बनने का प्रयास करें और परिवार में अच्छा बनने का प्रयास करें। यदि वे कठिन हों, तो अधिक शांति लाने का प्रयास करें। मेरा मतलब है, यह सब ठीक है। बच्चों को भी मत बिगड़िए। उन्हें सुधारिए, उन्हें प्रेममयी बनाइए। एक अच्छा समाज बनायें। आपमें से प्रत्येक को हर जगह, अपनी माँ के प्यार का वाहक बनना चाहिए। यह एक बात है, यदि आप सहज योगी हैं, और यदि आप अपने व्यवहार में परिवर्तन करते हैं, स्वाभाविक रूप से सहज योग की अपनी प्रतिष्ठा होगी, और हर कोई सहज योग को अपनाना शुरू कर देगा। [सहज योग करना और साथ में तस्करी करना अच्छा नहीं है। ये नहीं चलेगा। माँ मराठी में बोलती हैं] असंभव। यदि आप ऐसा कुछ भी करते हैं, तो तुरंत आपका चैतन्य चला जाएगा।

अमेरिका में एक सज्जन थे, जिन्हें आत्म साक्षात्कार मिला और उन्होंने सहज योग का आश्रम शुरू किया, पैसे लेने शुरू कर दिये। जब वह यहाँ आये तो लोगों ने मुझसे कहा, “माताजी, हमें इस आदमी में चक्कर लगता है। उस में क्या गलत है, आप मुझे बताएं।” ध्यान में तुरंत ही मुझे पता चल गया कि यह क्या है। मैंने कहा, “मुझे पैम्फलेट दो।” उन्होंने मुझे पैम्फलेट दिया। मैंने कहा, “आप पैसा नहीं कमा सकते। यदि आप पैसा कमाएंगे तो आपका समय ख़राब आएगा,” और उसके बाद उसका बहुत बुरा समय आया और पहले भी आया था। अब वह बिल्कुल ठीक है। वह कहते हैं, ”मैं कोई और काम करूंगा.” 

आप सहज योग से कोई पैसा नहीं कमा सकते। व्यापारिक साझेदारी के लिए सहज योग का इस्तेमाल न करें। नहीं, वे सहज योगी हैं। सहज योग का उपयोग पैसा कमाने के लिए न करें। किसी ने हाल ही में जूते की जोड़ी चुरा ली – माँ मराठी में बोलती है]। आप देखिए, इस प्रकार इस हद तक जाना, इस प्रकार के लोग कभी भी सहज योगी नहीं हो सकते। आपको उदार व्यक्ति बनना होगा। आपको बिल्कुल ईमानदार रहना होगा [किसी ने मेरी चीज़ें चुरा लीं। यह एक बकवास है। क्या आप चोरी करने वाले हैं? – माँ मराठी में बोलती है]। वे चोर हैं। वे यहां सिर्फ चोरी करने आते हैं। वे सहज योगी नहीं हैं। तो ऐसे लोग भी होते हैं। [वे जूते की जोड़ी लेते हैं – माँ मराठी में बोलती है] ऐसा नहीं करना चाहिए।

जैसा कि आप जानते हैं, दस आज्ञाएं (कमांडमेंट्स) हैं, और आपको किसी की चीज़ें नहीं लेनी चाहिए, और अपने दिल में संतुष्ट रहना चाहिए। यह काम करने का एक बहुत ही सरल तरीका है। लेकिन आप को पवित्र जीवन जीना होगा, और पवित्र चीजें भी देखनी होंगी। उदाहरण के लिए, [खराब फिल्में अच्छी नहीं होती – माँ मराठी में बोलती है] आप को भी यह पसंद नहीं आएगा। आपकी प्राथमिकताएं बदल जाएंगी। आपके मित्र धीरे-धीरे बदल जायेंगे। आपको गंदे चुटकुले पसंद नहीं आएंगे, कुछ भी नहीं। आप बस बदल जायेंगे और आप उनसे दूर भागेंगे। मैंने इन विदेशियों को देखा है; अब वे मुझसे कह रहे हैं, कि वे अब ये सब बर्दाश्त नहीं कर सकते। एक समय जो कुछ वे सहन कर सकते थे और आनंद भी ले सकते थे कभी-कभी, वे इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते और इसे सहन नहीं कर पाते, क्योंकि अब आप संत बन गए हैं। आपको सभ्य इंसान बनना होगा।

राजनीति करने की जरूरत नहीं. [अस्पष्ट] – माँ मराठी में बोलती है] इसलिए इन सभी अफवाहों और फालतू बातों में मत पड़िए। अपना बहुमूल्य जीवन बर्बाद मत करिए। आप सहज योगी हैं। सभी निरर्थक चीज़ों पर एक भी क्षण बर्बाद नहीं करना चाहिए। प्रत्येक क्षण को अपनी गरिमा बनाए रखने में, दूसरों के लिए, दूसरों से प्रेम करने में व्यतीत करना चाहिए। [अगर किसी को कुछ चाहिए तो दे दो – माँ मराठी में बोलती है]।

कंजूस बिल्कुल मत बनिए। कंजूस लोग सहज योग के खिलाफ हैं, और अगर कंजूस लोग आते हैं, तो मैं उन्हें परेशानी में डाल देती हूं। यदि आप कंजूस हैं, तो आपको बहुत परेशानी होती है। तो आप कंजूस मत बनिए। हां, मैं आप से कह रही हूं, और बहुत ज्यादा बातूनी भी मत बनिए, बहुत ज्यादा बातूनी और परेशान करने वाले मत बनिए। मैं आप का बोलना बंद कर सकती हूं, और अगर आप बिल्कुल भी बात नहीं करते, तो यह भी अच्छा नहीं है। यानी किसी भी चीज की अति पर न जाएं।

ये कुछ बातें हैं जो आपको जानना जरूरी है। महिलाओं को पुरुषों की तरह कपड़े नहीं पहनने चाहिए, और पुरुषों को महिलाओं की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए। ये सब बकवास आप को नहीं करनी चाहिए। आप जैसे हैं वैसे रहना चाहिए। मान लीजिए कि आप कुछ हैं, और आप कुछ कर रहे हैं, तो आपको वैसे ही कपड़े पहनने चाहिए जैसे आप हैं। अब अजीब पोशाकें पहनने, घूमने-फिरने और बाल यहां तक रखने की या दिखावा करने की जरूरत नहीं हैl आप देखिए, ये सब भ्रामक बातें हैं। सामान्य, प्राकृतिक लोग बनें और एक सामान्य, प्राकृतिक, सभ्य जीवन जिएं, और यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है। खाना इतना महत्वपूर्ण नहीं है। जो मिले सो खाओ, आराम की बहुत बातें मत करो और कांटों पर भी मत सोओ, नहीं, नहीं, नहीं! लेकिन बिल्कुल बेकार मत बनो। मध्य में रहो! सहज योगियों के लिए यह बहुत सरल बात है।

और आप अपनी चैतन्य से देखते हैं अगर  आपको निर्णय लेना है, “मुझे यह घर लेना चाहिए या नहीं?” चैतन्य देखो! आप कुछ भी देखें, “मुझे क्या करना चाहिए? क्या मेरे पास ये होना चाहिए? मेरा प्रधान मंत्री कौन होना चाहिए? अब आप खुद ही देख लीजिए, कि आप किसे प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं। आपने जिन चार लोगों को रखा है उन्हें देखें, चैतन्य देखें। किस का सबसे अच्छा है? अब आप उस व्यक्ति के बारे में सोचें। वह प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। आप यह नहीं कह सकते कि वे ही होंगे (प्रधानमंत्री), क्योंकि हो सकता है कि वहाँ बहुत सारे भयानक लोग हों। लोकतंत्र में किसी को भी लाया जा सकता है, लेकिन जो एक, एक अच्छा है, वह एक सहज योगी है। उन्हें प्रधान मंत्री होना चाहिए, और आपको मांगना चाहिए। अगर ज्यादा लोग ये मांगे तो वह हो सकता है। इसलिए, अपने लिए, सामूहिकता के लिए या किसी भी चीज़ के लिए, चैतन्य के साथ सब कुछ तय करें, और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आप इसे दूसरों को दें।

और सहज योग आपके घरों, परिवारों या छोटे छोटे समूहों में काम नहीं करता है, बल्कि यह ‘भारतीय विद्या भवन’ में काम करता है, जब आप सभी यहां होते हैं क्योंकि मैं यहां हूं। यह एक सामूहिक कार्य है। आप सभी एक शरीर की कोशिकाएँ हैं, और जितनी अधिक कोशिकाएँ जागृत होती हैं, शरीर उतना ही अधिक सक्रिय होता है। तो आपको एक साथ आना होगा, एक साथ रहना होगा। एक दूसरे से प्यार करिए। दूसरों के साथ घुलमिल जाएं। समूह मत बनाइए, नहीं। आपको एक-दूसरे से बहुत खुलकर बात करनी चाहिए, चाहे आपकी भाषा, राष्ट्रीयता या जो भी हो। और आप को दूसरों के साथ घुलना-मिलना चाहिए। उचित नहीं है, यदि आपके पास कोई समूह है तो असुरक्षा की भावना व्यक्त होती है। अब हम ब्राह्मण हैं, तो वे सभी ब्राह्मण एक साथ बैठेंगे – माँ मराठी में बात करती हैं]। इस तरह की कोई छोटी बात वहां नहीं है [मुसलमान एक समूह में एक साथ बैठे हैं – माँ मराठी में बात करती है] विदेशी लोग एक समूह में एक साथ बैठे हैं। आप देख रहे हैं कि मैं क्या कह रही हूं, कोई समूहीकरण नहीं किया जाना चाहिए। कोई ज़रुरत नहीं है। सब से मिलिए। हम सब, हम सब एक ही माँ से पैदा हुए हैं, हमें असुरक्षित महसूस नहीं करना चाहिए। हमें एक समूह में नहीं रहना चाहिए। ऐसा नहीं है कि आपको बचना चाहिए। यदि आप सब साथ हैं तो ठीक है, अब साथ हो तो ठीक है, हम सब भाई-बहन हैं।

बहुत मिलनसार और दयालु बनें और दूसरों का विश्लेषण या आलोचना न करें। दूसरों का विश्लेषण करने से बेहतर है कि आप स्वयं की आलोचना करें। बैठ जायेंगे, “वह ऐसा है क्योंकि वैसा है।” [वह ऐसे हैं और वैसे हैं, और आपके बारे में क्या? अपनी ओर ध्यान दो. – माँ मराठी में बात करती है]। हमें अपना को देखना चाहिए, दूसरों का नहीं। कोई ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है, आप चिंता न करें। आप स्वयं कैसा व्यवहार कर रहे हैं? क्या आप ठीक हैं? क्या आपके वाइब्रेशन ठीक हैं? और इसी तरह प्यार, धैर्य, समझ के साथ, मुझे यकीन है कि एक दिन हम सभी एकता महसूस करेंगे, हम सभी, और हमें एक दूसरे की मदद करनी चाहिए। अगर कोई बीमार है तो हमें मदद करनी चाहिएl

कोई आपको बताता है [अगर उसने आपको बताया कि आपका हृदय चक्र पकड़ रहा है – माँ मराठी में बोलती है] कोई। तो गुस्सा होने की कोई बात नहीं है। वास्तव में, यह बहुत अच्छी बात है कि उसने आपको बताया है कि वह आपको ठीक कर सकता है और आप देख नहीं सकते [पिछले समय में यह एक समस्या थी। यदि कोई कह रहा है कि आपका हृदय चक्र ठीक नहीं है तो वह कहेगा, आप कैसे कह सकते हैं कि मेरा हृदय चक्र पकड़ रहा है? यह स्पष्ट है क्योंकि यह उंगली जल रही है – माँ मराठी में बात करती है]। तो यह एक ऐसे व्यक्ति द्वारा बताई गई कहानी है, जिसका ईश्वर से कोई संबंध नहीं है। यह स्पष्ट है क्योंकि यह उंगली जल रही है – माँ मराठी में बात करती है]। इसलिए, आप को अपने बाहरी जीवन से तादात्म्य नहीं बनाना चाहिए, बल्कि आपको  उस शाश्वत जीवन के साथ जोड़ कर देखना चाहिए जो आपके भीतर है, और आप इसका भरपूर आनंद लेंगे। इसलिए असुरक्षित महसूस न करें, किसी चीज़ के लिए बहुत अधिक इच्छाएँ न रखें, और आप आश्चर्यचकित होंगे, कि अचानक आप पाएंगे कि [अगर ऐसा हुआ या नहीं हुआ तो कुछ भी तो कुछ फर्क नहीं पड़ता – माँ मराठी में बोलती है]। यदि यह हो जाता है, तो बहुत अच्छा, यदि नहीं होता तो भी अच्छा, क्योंकि आख़िरकार हम वहीं हैं। और अगर गाड़ी पंक्चर हो जाए तो ठीक है, हम तो हैं ही, और अगर कार वहां नहीं है, तो भी हम वहां हैं। हम खो नहीं गए हैं।

इसलिए भविष्य के बारे में मत सोचिए, अतीत के बारे में मत सोचिए, बल्कि वर्तमान के बारे में सोचिए और आनंद लीजिए। यही सहज योग का संदेश है, और शायद मैंने आप लोगों के लिए अधिकांश बिंदुओं को समझा दिया है। और कभी भी किसी की आलोचना करने की कोशिश नहीं करें, कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं। और दृढ़ रहें और जानें, कि आप अभी-अभी पार हुए हैं, आप में से बहुत से लोग अभी-अभी पार हुए हैं। तो स्थिर रहिए, स्थिर रहिए [सामने देखिए – माँ मराठी में बात करती है] क्या होने वाला है, देखते हैं! देखते हैं! उसी के साथ रहें।

अचानक, इसके बारे में उतावले मत होइए, अन्यथा आप फिर से वापस आ जाएंगे, आप देखिए। तो धीरे-धीरे पूरी बात को टटोलें। जब आपको इस पर महारत हासिल हो जाए, तो इसे पकड़ लें। लेकिन अगर आप घमंडी हैं, तो कोई भी आपको यह कहकर नीचे धकेल सकता है कि [यह अच्छा नहीं है। माँ मराठी में बोलती है]। ऐसे तो बहुत हैं। तो सावधान रहिए।

आप देखिए, हर कोई आपको नीचे धकेलने की कोशिश कर रहा है। इस दुनिया में शैतानी ताकतें हैं, और आप बहुत खास चुने हुए लोग हैं। इसीलिए आप को चैतन्य मिला है। बम्बई में बहुत सारे लोग हैं, लेकिन कितनों ने इसे महसूस किया है? आप बहुत कम लोग हैं, जिन्होंने इसे महसूस किया है। इसलिए इसे लेकर सावधान रहें, और इसी संख्या में एक साथ मिलते रहें। यदि आप एक साथ आएं, एक साथ बैठें तो आप सभी पूर्ण आत्म साक्षात्कारी हो सकते हैं। वे कहते हैं कि जब माताजी यहां होती हैं, तभी सब यहां आते हैं। फिर माताजी तो हर वक्त व्यस्त ही रहती हैं। [इसीलिए मैं इस बार मुंबई नहीं आई। माताजी सबके पकड़ ठीक कर रही हैं – माँ मराठी में बोलती हैं] वे आठ या दस लोग जो नियमित रूप से इसमें शामिल होते रहे हैं, वे सर्वश्रेष्ठ हैं और वे आपकी सफाई में भी व्यस्त हैं। [ऐसा मत करिए। एक दिन मंगलवार को ये करिए। आज आखिरी दिन है। मैं वापस आऊंगी। – माँ मराठी में बोलती है]।

आज आखिरी दिन है, क्योंकि मैं 25 तारीख की शाम को जा रही हूं। मैं दिसंबर में फिर से वापस आऊंगी। मुझे उम्मीद है, एक या दो दिनों के लिए। हमारा एक कार्यक्रम होगा। कोई लंबा कार्यक्रम नहीं, क्योंकि हम छुट्टियों पर जा रहे हैं,  मेरे पति के जीवन में पहली बार। तो, मुझे आशा है कि आप बुरा नहीं मानेंगे। फिर मैं अगली गर्मियों में वापस आऊंगी। शायद, मुझे नहीं पता, या हो सकता है कि अगले साल मैं न आऊं। मुझे आशा है, कि उस समय तक आप लोग [कार्यक्रम – अस्पष्ट] के अनुसार चलेंगे।