Mahashivaratri Puja

New Delhi (भारत)

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Mahashivaratri Puja Date 16th March 1997 : Place Delhi : Type Puja Hindi & English

[Orignal transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

आज हम लोग शिवजी की पूजा करने जा भी चीज का महत्व नहीं रह जाता। रहे हैं। शिवजी के स्वरूप में एक स्वयं साक्षात अब शंकर जी की जो हमने एक आकृति सदाशिव हैं और उनका प्रतिबिम्ब शिव स्वरुप है। देखी है, एक अवधूत, पहुँचे हुए, एक बहुत कोई ये शिव का स्वरूप हमारे हृदय में हर समय औलिया हो, उस तरह के हैं। उनको किसी चीज़ आत्मस्वरूप बन कर स्थित है। ये मैं नहीं कहूँगी की सुध-बुध नहीं, बाल बिखरे हुए हैं, जटा जूट बने कि प्रकाशित है जब कुण्डलिनी का जागरण होता हैं। कुछ नहीं, तो बदन में कौन से कपड़े पहने हुए हैं, क्या कहें, इसका कोई विचार नहीं। ये सब है तो ये शिव का स्वरूप प्रकाशित होता है और वो हुए प्रकाशित होता है हमारी नसों में। चैतन्य के लिए काम उन्होंने नारायण को, विष्णु को दे दिया है। वे कहा है ‘मेदेस्थित’, प्रथम ‘इसका प्रकाश हमारे स्वयं मुक्त हैं। व्याघ्र का च्म पहन कर घूमते ह मस्तिष्क में, पहली मर्तबा हमारे हृदय का और और उनकी सवारी भी नन्दी की है जो किसी तरह हमारे मस्तिष्क का योग घटित होता है। नहीं तो से पकड़ में नहीं आ सकते। कोई घोड़े जैसा नहीं सर्वसाधारण तरह से मनुष्य की बुद्धि एक तरफ कि उसमें कोई लगाम हो, जहाँ नन्दी महाराज और उसका मन दूसरी तरफ दौड़ता है। योग जायें वहाँ शिवजी चले जाएं। उनको किसी चीज़ में घटित हो जाने से जो प्रकाश हमारे अन्दर आत्मा कभी ये ख्याल नहीं आता कि लोग क्या कहेंगे, से प्रगटित होता है वो चैतन्य स्वरूप बन कर हमारे दसरों का क्या विचार होगा? हम अगर ऐसे कपड़े हाथों और तालू से प्रवाहित होता है। ये तो आप पहनकर और नन्दी पर बैठकर इधर-उधर भटकें लोग जानते हैं; पर आगे की बात समझने की यह तो लोग हमें क्या कहेंगे ? क्योंकि वो अपने ही तो है कि जब यह प्रकाश हमारे अन्दर आता है अन्दर समाये हुए हैं। अपने ही खुशियों में बैठे हुए धीरे-धीरे हम देखते हैं कि हमारी जिन्दगी बदलने हैं। उनको कोई भी संसार से ये मतलब नहीं है कि लगती है, हमारे अन्दर का क्रोध और हमारे जो दुनिया हमें क्या कहेगी, लोक-लाज क्या होती है। षटरिपु हैं वो खत्म होने लगते हैं धीरे-धीरे सब ये तो इनके विवाह में भी आपने वर्णन होगा सुना चीजें गिरती जाती हैं और मन में श्रद्धा प्रस्थापित कि जब ये विवाह करने आए तो श्री विष्णु ने जब होती है। श्रद्धा में त्यागबुद्धि जागृत होती है, किसी देखा तो उन्होंने सोचा कि ये क्या दूल्हा मेरी बहन

के लिए आया है, बेकार सा! इससे कैसे मेरी बहन है। हिन्दुस्तानी अब भी जहाँ जाते हैं उनको बाथरूम शादी करेगी ? लेकिन पार्वती जी जानती थीं कि चाहिए साथ जुड़ा हुआ। पता नहीं और दुनिया भर अभी तक इससे उठ नहीं पाए हैं । उनके योग्य यही पति है जो एक मस्त-मौला की चीजें 1. आदमी है। किसी चीज़ की उनको कद्र नहीं है। स्वभावतः मुझे आश्चर्य होता है कि अपने गरीब देश सब चीज़ों से जब आदमी ऊपर उठ जाता है तो में भी लोगों में अभी काफी कामनाएं बची हैं। बड़े आश्चर्य की बात है! हमें लोगों ने कहा कि माँ एक उसके लिए सब चीज़ एक किन्चित पदार्थ हो जाती आश्रम के लिए एक बड़ी सी जगह ले लें। हमारे हैं। उसका ध्यान इस ओर नहीं जाता। ये शिवजी का जो अवतार हम लोग देखते हिन्दुस्तानी कभी आश्रम में रहते नहीं। अब ये हैं हमें बहुत प्यारा लगता है, मोहक लगता है और आश्रम जब हम लोगों ने बनाया, इतनी मेहनत से, सब लोग सोचते हैं कि शिवजी का सारा ही काम खर्च करके तो इसमें रहने के लिए कोई तैयार कुछ तो भी विशेष है। लेकिन जब सहजयोगियों में नहीं। हमने कहा बाबा हम तुमको तनख्वाह देते हैं. शिवजी का प्रकाश आ जाता है तो उनका भी तुम रहो। पर तैयार नहीं। मेरा जो जन्मस्थान है. जीवन बदलने लगता है। मैंने देखा है कि जैसे छिन्दवाड़े में, उस घर के लिए इतना रुपया-पैसा पहले सहजयोग में आए, औरतें भी, आदमी भी, सब खर्चा किया और मैंने कहा जो रिटायर हो गए हैं वहाँ रहें। बड़ी अच्छी आबो-हवा है, पहाड़ी स्थान सजना-धजना शुरु कर देते थे। सारा ध्यान इसी में रहता था कि आज क्या पहनें, कल क्या पहनें, है कोई रहने को तैयार नहीं। सब अपने आराम को सोचते हैं इन लोगों में यह बात नहीं है वे और आजकल तो इसका प्रादुर्भाव बहुत हो गया है क्योंकि सब जगह बहुत सारे सौन्दर्य प्रसाधन गृह निकल आए हैं, ये है, वो है, तो औरतें इसमें बहुत लोग आश्रमों में बड़े सुख से रहते हैं। मेरा घर, मेरी जगह, मेरी बीवी, खाना बनना चाहिए इस तरह से फँसी हैं। पर जब आपके अन्दर से निखार, आपके ये यही खाना खाएंगे। हम लोग इतने स्वाद में सौन्दर्य का, इस प्रकाश से आता है तब इन सब उलझे हुए हैं। इन लोगों में ये स्थिति नहीं है । हिन्दुस्तानी खाना भी शौक से खाते हैं। लेकिन मुझे चीज़ों का कोई महत्व नहीं रह जाता। उसी तरह आराम, आराम भी एक तरह से आत्मा का ही मालूम है कि जब हिन्दुस्तानी कबेला आते हैं तो अपनी रोटियाँ, परांठे-वराठे, अचार-वचार बाँध के आराम मनुष्य खोजता है। अपने आराम से दूर लाते हैं क्योंकि उनके जीभ से नहीं उतरेगा । सभी रहता है। इसमें जो परदेशी लोग हैं, इनको देखिए, ये बड़े-बड़े घरों में रहते हैं, इनके पास मोटरे हैं तो जीभ में ही फॅसा हुआ है सो ध्यान करने से सबकुछ, रईस हैं। पर यहाँ आते हैं तो हर जगह जब तक ये चीजें छूटेंगी नहीं तो आप धर्म से परे नहीं जा सकते। एक छोटी सी बात समझने की है समा जाते हैं। पर हिन्दुस्तानियों का ये हाल नहीं

कि त्याग में भी हम लोग कम पड़ जाते हैं। इस नहीं सकता वह सहजयोगी नहीं है। वो अभी बार इन्होंने कहा कि माँ आप इतनी बड़ी जमीन ले भी सोचता है कि मैं कोई विशेष हूँ, मेरा अलग रहे हैं, इतना खर्चा कर रहे हैं, तो पूजा के लिए सब इंतजाम होना चाहिए। वो सहजयोगी नहीं हो थोड़ा सा ज्यादा पैसा कर दो। न जाने कितनी सकता। वो नाम मात्र को सहजयोगी हैं। जो शंकर चिट्ठियाँ मेरे पास आईं कि आप पूजा का पैसा जी का भक्त है उसको शंकर जी जैसा होना है। कहीं भी सुला दो, कहीं भी बैठा दो, कुछ भी खाने कम कर दीजिए, पूजा का पैसा कम कर दीजिए । अरे भई एक बार दिल्ली में पूजा हो रही है उसमें को दो, उसको किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं भी चिट्ठियों पर चिट्ठियाँ । पान खाकर लोग फेंक है। समय की पाबन्दी नहीं, किसी चीज की माँग देंगे लेकिन पूजा में जरूरी है पैसा देना! आपसे नहीं; ऐसा ही आदमी, हम कह सकते हैं, सहजयोगी पहले हमने कोई पैसा नहीं है । लिया। सारी चीजें शिवजी का आपके अन्दर प्रादुर्भाव हो गया। अपने ही दम पर सब करी। लेकिन इतना सा कहते ही आज आधा मण्डप खाली है। क्यों ? लोग तो इसको प्राप्त करने से पहले ही न जाने क्या-क्या कर्म करते हैं। और किसी पद्धति में आप क्योंकि पूजा का पैसा नहीं देना। फोन करते हैं कि हमारी पूजा माफ कर दीजिए। अरे भई आप कोई जाइए वो आपके सारे पैसे नोच लेंगे, आपके सारे कम नौकरी हो ऐसा नहीं है । हमारे पति देंगे मैं बाल नोच लेंगे पता नहीं क्या-क्या करेंगे। सहजयोग में ऐसा नहीं है लेकिन ये वृत्ति, जो अब भी हमारे नहीं दूंगी। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। अभी अगर अन्दर बनी हुई है, इसको छोड़ना चाहिए । यह कोई औघड़ गुरु होते तो आप लोगों के सबके बाल अ मुंडा कर और आपको गेरुआ वस्त्र पहनाकर सर प्रयत्न करना चाहिए कि हम क्या-क्या चीज़ छोड़ सकते हैं जब तक ये मस्ती आपके अन्दर नहीं के बल खड़ा कर देते। लेकिन मैं यह नहीं चाहती, क्योंकि सहज की बात है। सब चीज़ सहज में आएगी तब तक आपको शिवजी का भक्त नहीं कह आना चाहिए। हमने बहुत लोगों को त्याग करते सकते। माता जी के तो हर तरह के भक्त हैं। अपने जीवन में देखा है। और आजकल लोगों में उसकी कोई विशेषता तो है नहीं। सब तरह के मैंने वो देखा ही नहीं। हमारी माँ का मुझे मालूम है भक्त हैं, चाहे जो भी करें, चलो माँ ही है, माँ माफ कर देती हैं। पर माफ कर देने से आप उस पद को कि छःसाडियों से सातवीं साड़ी उनके पास हो जाए तो दे डालती थीं वहाँ भी लोग आते हैं प्राप्त नहीं कर सकते। माफ करने की बात सबसे 1 बड़ी यह है कि शिवजी से हर समय माफी माँगनी कबेला में तो आश्चर्य होता है कि उन्हें अलग से कमरा चाहिए, घर चाहिए, अलग से रहेंगे। सबके चाहिए, हर समय क्षमा माँगनी चाहिए, क्योंकि साथ नहीं रहेगें। जो सब के साथ मिलकर रह पग-पग हम ऐसे काम करते हैं जो हमें नहीं करना

चाहिए। उनसे क्षमा माँगनी चाहिए कि, हे शम्भो इससे तो आपका सोना हो गया और सोने पर तो हमें क्षमा कर दें हम ये गलती करते हैं, हम वो कोई कलंक लग ही नहीं सकता, उसपे कोई चीज गलती करते हैं, हमारे अन्दर ये जरूरतें हैं, हमारे चढ़ ही नहीं सकती। वो अब आप हो गए हैं, उस अन्दर वो जरूरते हैं. हमको ये चाहिए, हमको वो स्थिति को प्राप्त करें। अब भी क्यों ये गुलामी चाहिए । जब तक चाहिए. अपने अन्दर हैं, तब तक दुनिया भर की चीज़ों की ? यही कुण्डलिनी की आप परमात्मा से क्षमा माँगे। मेरा घर मेरी बीवी, विशेषता है कि यह आपको पूरी तरह से सफाई में इस तरह एक अधिकार की भावना, जो हमारे डाल देती है। सेवा, हाँ भई सेवा भी करनी चाहिए. पर मुझे तो कोई सेवा खास आपकी चाहिए नहीं। अन्दरं है, इसको जब हम छोड़ नहीं सकते तो हम शिवजी के भक्त नहीं हो सकते। इस मामले में मैं खुद ही मस्त-मौला हूँ मुझे आप क्या सेवा देंगे? आश्चर्य की बात है कि परदेश के लोगों ने तो सिर्फ ये है कि आप अपने अन्दर ये मस्त-मौलापन इतना पा लिया, जिन्होंने कभी सुना भी न था ले आइए। एक आनन्द में विभोर रहने पर ये शिवजी का नाम और हम लोग अभी भी उसी में सोचना चाहिए कि यह सब चीजें कुछ तो आनन्द हैं, और उसी को इतना मानते हैं। चिपके ही के लिए हैं और वो आनन्द हमको अगर मिलता हुए शिव होने का मतलब यह है कि सर्वथा ही है बगैर कुछ किए तो ये सब करने की क्या दुनिया भर की जो हमारे अन्दर लोलुपता है. जो जरूरत है ? बहुत कुछ सोचने पर मैं इस नतीजे पर उसको छोड़ देना है। पर मनुष्य सहजयोग में आने पहुँची हूँ कि सहज जो है वो है तो बहुत सरल और इसलिए बहुत कठिन है। अगर कोई डण्डा हमारे अन्दर नफरत है, जो हमारे अन्दर दुष्टता है पर भी अपने को देख नहीं पाता। मैंने सुना एक सास हैं जो अपनी को सता रही हैं। मैंने कहा लेकर खड़ा हो और कहे कि चलो सब बाल बहू तुम क्यों सता रही हो तो वो कहने लगी मैंने तो मुंडाओ, गेरुए वस्त्र पहनो, 14 दिन तक भूख सताया ही नहीं। सिनेमा में जाएंगे, देखेंगे कोई हड़ताल, तो हो गया। उसमें ठीक हो जाते हैं। पर सास बहू को सता रही है तो रोएंगे, वही और घर जो सहज है उसको अपने हृदय से, अपने मन से, में आकर बहू को सताएंगे या बहू सास को अपनी बुद्धि से स्वीकार्य करके और उसमें अपनी ही सताएगी । लेकिन कहेंगे कि मैंने कभी किसी को ताड़ना करना, अपने को ही ठीक करना, मैं ऐसे सताया ही नहीं। इस तरह के झूठ को अपने क्यों करता हूँ? ऐसा मुझे करना चाहिए क्या ? आवरण में रखकर सहजयोग में आप उठ नहीं इसमें बहुत कुछ छूट जाएगा और इससे एक तरह सकते। क्योंकि ये आप की जिन्दगी बदल देता है, से आप अपने को पाइएगा कि आप समर्थ हैं।

आपको कोई चीज़ की गरज नहीं, आपको कोई नाथ लोग थे, वे भ्रमण करते थे, दुनिया भर में जाते चीज़ की इच्छा नहीं, बस बैठे हैं आराम से। और थे और उन्होंने बहुत कुछ लोगों को शिक्षा दी | मैं आश्चर्य की बात है कि जब चैतन्य यह जानता है तो हैरान हुई कि ये लोग कहाँ-कहाँ पहुँचे थे। 1 कि आपको कोई चीज़ की गरज नहीं तो आपके कोलम्बिया में गई थी तो वहाँ पता हुआ कि सामने थाली परोस कर लाता है। हो सकता है बोलीविया में ये लोग आए थे अब कोलम्बिया में प्रलोभन के लिए हो। फिर देखिएगा आपको क्या अगर आप जाएं तो हवाई जहाज में चक्कर आने है। कोई आपकी जरूरत ऐसी है ही नहीं जो लगते हैं इतना ऊंचा है। और उस वक्त तो स पूरी नहीं कर सकता। पर इसमें थोड़ी सी लगन पैदल ही लोग जाते होंगे ! तो ये गए कैसे होंगे ये होनी चाहिए। ही समझ में नहीं आता ? रूस में, रूस के और भी आज शिवजी का हम लोगों ने इतना आहान देशों में इनका भ्रमण हुआ, और कैसे करते थे, कहाँ किया और उनको तो ऐसे लोग अच्छे लगते हैं। रहते थे, क्या पहनते थे, कुछ पता नहीं। क्योंकि वो उनमें हममें यही फर्क है कि हमें सब तरह के लोग दशा आ जाती है फिर आप एक चमत्कार पूर्ण अच्छे लगते हैं उनको नहीं। उनको ऐसे ही लोग इन्सान हो जाते हैं। जैसा हम जानते हैं कि शिरडी अच्छे लगते हैं जिन्होंने ये सब छोड़ दिया ये सब के साईनाथ, कहीं भी उद्भव होता है उनका, वे कहीं भी आते है। कहीं भी किसी की मदद कर देते व्याधियाँ हैं हमारे अन्दर। एक-एक चीज़ में कि भई कपड़े ऐसे पहने, नहीं पहने तो क्या हो जाएगा ? हैं। लोग कहते हैं माँ हमने तो उनको देखा. हाँ लेकिन हमारे यहाँ सन्यास बाह्य का नहीं माना देख सकते हैं, क्यों नहीं ? ऐसे लोग अमर हो जाते जाता, अन्दर से; अन्दर से आप सन्यस्थ हो जाएंगे हैं क्योंकि उनकी मारने वाली जो वृत्तियाँ हैं खत्म और सन्यस्थ होने पर कोई भी चीज़ की कामना हो गईं फिर वो अमर हो जाते हैं और इसी नहीं रह जाती। जहाँ है वहीं मस्त बैठे हैं। पहले अमरत्व को प्राप्त करना ही शिवजी की पूजा है ।

[Translation from English to Hindi]

मैं इन लोगों से (भारतीय) श्री शिव की पूजा की बात कर रही थी। आपके साथ क्या घटित होना चाहिए? आज मैं आपको बताऊंगी कि जब आपको आत्मसाक्षात्कार होता है तो हमारे अन्दर क्या घटित होता है। यहाँ ग्यारह रुद्रों का स्थान है, वे श्री शिव की शक्तियों के अंश हैं और हमारे अन्दर जीवन के प्रति जो मिथ्या विचार हैं उन्हें निकाल फेंकने के लिए वे सब प्रयत्नशील रहते हैं। जब कुण्डलिनी की जागृति होती है तो वे सब जागृत हो जाते हैं। उदाहरणार्थ बुद्ध और महावीर भी उन्हीं का एक हिस्सा हैं। वे सभी हमें बुराइयों में फँसने से रोकते हैं। मान लो हममें अहं है तो बुद्ध इसको नियंत्रित करेंगे और ये देखेंगे कि अपने अहं से आपको सदमा पहुँचे। इस सदमे के पश्चात् आप हैरान हो जाते हैं कि इतने अहंकारी, अपमानजनक और ओछे, आप किस प्रकार हो सकते हैं। परन्तु जब यह रुद्र जागृत नहीं होता, जब इसमें प्रकाश नहीं होता तब क्या होता है? तब आप अपने कार्यों को न्यायसंगत ठहराने लगते हैं। आप सोचते हैं कि जो भी कुछ आप करते हैं वह ठीक है। जो भी कुछ आपने किया, जो भी कुछ आपने कहा, जो भी आपने प्राप्त किया, आप सोचते हैं कि वह आपका अधिकार है तथा आपने कुछ गलत नहीं किया। इसके लिए रुद्र रूपी बुद्ध का जागृत होना आवश्यक है। इसके विपरीत यदि आप अहंकारी बनते चले जाएं तो आप पूर्णत: आक्रामक व्यक्तित्व बन जाएंगे। आप जानते हैं कि ऐसे व्यक्ति की क्या निशानियाँ हैं। मात्र देखें और अन्तर्दर्शन करें और स्वयं के लिए देखें कि अहं ने आपको क्या हानि पहुँचाई है । स्वयं के विषय में आपके कितने गलत विचार थे। इसी कारण मोहम्मद साहब ने कहा था कि जूतों से अपने अहं की पिटाई करो । अहं को रोकने की कोई और विधि उनकी समझ में नहीं आई । यह अहं वास्तव में आपके मस्तिष्क का विस्फोट कर सकता है और आप भिन्न कठिनाइयों में फँस सकते हैं। परिणाम स्वरूप मैंने देखा है कि लोग युप्पीज़ रोग ग्रस्त हो जाते हैं जिसमें चेतन मस्तिष्क बिल्कुल बेकार हो जाता है, व्यक्ति हिल भी नहीं सकता, चेतन अवस्था में वह हिल-डुल नहीं सकता परन्तु अचेतन स्थिति में वह हिल-डूल सकता है। यह रोग इतना भयंकर है कि व्यक्ति रेंगने वाले जीव की तरह से हो जाता है। ऐसे लोगों को कन्धे पर लाद के ले जाना पड़ता है, स्वयं तो वे चल भी नहीं सकते, बैठ भी नहीं पाते। बहुत ही छोटी उम्र में ऐसा हो सकता है। अमेरिका में ऐसा हुआ है और भारत में भी मैंने ऐसे कुछ रोगी देखे हैं। अत: यदि आप अपने अहं का ध्यान नहीं रखते, इसे नियन्त्रित नहीं करते इस पर आपको पश्चाताप नहीं होता (यद्यपि सहजयोग में पश्चाताप जैसी कोई चीज़ नहीं है क्योंकि हमें विश्वास है कि आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है और आप गलतियों से परे हैं) तो आपको परेशानी हो सकती है। अपनी गलतियों पर हमें पश्चाताप होना चाहिए। अंग्रेजी में एक शब्द है (वततल) मुझे खेद है हर चीज़ के लिए खेद है, फोन उठाते हुए भी वे कहते हैं मुझे खेद है। हर चीज़ के लिए वे कहते हैं मुझे खेद है। काहे का खेद? परन्तु यह खेद भी अर्थहीन है इसमें कोई गहनता नहीं। मुझे खेद है कहते हुए आपको देखना चाहिए कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं और कौन सी त्रुटि का सुधार होना आवश्यक है। आज की पीढ़ी में बहुत बड़ी समस्या यह है कि उसमें भयानक अहं विकसित हो गया है क्योंकि हमारी सारी

आर्थिक उन्नति ने, औद्योगिक विकास ने बड़ी- बड़ी संस्थाओं ने हमें एक मार्ग दिया है कि हम अपने अहं को विकसित करें। बताया गया है कि यदि हम अपने अहं को विकसित नहीं करते तो हम खो जाएंगे, कहीं के नहीं रहेंगे। इस प्रकार हम अहं को बढ़ावा देने लगते है तथा दाईं ओर की समस्याएं आरंभ हो जाती हैं। तब प्रतिक्रिया के रूप में इसका प्रभाव बाईं ओर पर पड़ता है। वास्तव में बाईं ओर का स्थान हमारे सिर में दाईं तरफ है तो हमारा अहं बाईं आज्ञा में आ जाता है। श्री महावीर बाईं ओर के रुद्र हैं। अहंवश होकर लोग पापमय, अनुचित कार्य करते हैं जो श्री गणेश के विरुद्ध हैं । श्री महावीर जी की शक्तियाँ नियंत्रण करती हैं, वे कहते हैं कि तुम नर्क में जाओगे, ऐसा | होगा। उन्होंने सभी प्रकार के नर्कों का वर्णन किया है तथा आपको डराने के लिए बताया है कि आप नर्क में जाओगे जहाँ आपको जिन्दा जलाया जाएगा, आदि-आदि। परन्तु इससे कोई लाभ नहीं होता और लोग बाईं ओर को, इस रुद्र की ओर, झुकने लगते हैं तथा ये रुद्र मजबूर हो जाता है और ऐसे व्यक्ति को भयंकर उदासीनता रोग हो जाता है। व्यक्ति भयंकर उदासीन हो जाता है। हे परमात्मा! मुझे यह कैसा रोग हो गया है? मैं इतना बीमार हूँ आदि, आदि। अपनी उदासीनता से आप अन्य लोगों को डराने लगते हैं, आप भावनात्मक भय-दोहन करने लगते हैं, अपना सिर पीटते हैं आदि, आदि। ऐसा अहं के कारण भी हो सकता है और बाईं ओर की स’स्याओं के कारण भी । ये दोनों रुद्र बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन दोनों का सम्बन्ध सीधे हमारी बायीं और दायीं अनुकम्पी प्रणाली से है। अत: यह आवश्यक है कि इनको ठीक करते हुए आप इन दोनों रुद्रों के शिकार न बन जाएं। इन रुद्रों का संतुष्ट होना आवश्यक है। अत: सामान्य होने के लिए इन दो रुद्रों का ध्यान रखना आवश्यक है क्योंकि इनमें से एक अहं का नियंत्रण करता है दूसरा आत्मग्लानि का। मैं ऐसा नहीं कर सकती। इस प्रकार के उदासीनता आदि रोगों का शरीर पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है, इससे कैंसर तक हो सकता है। यदि ये रुद्र पकड़ जाएं तो व्यक्ति को कैंसर हो जाता है। आज्ञा में मेधा सूज जाती है। पूरा हिस्सा ही सूज जाता है। किसी कैंसर के रोगी को आप देखें तो उस पर सूजन दिखाई देगी, कम से कम मस्तक के बायीं या दायीं ओर। व्यक्ति के स्वभाव में इतना दोलन होता है कि कहा नहीं जा सकता कि कौन से रुद्र से आपने मनोदैहिक रोग ले लिए हैं। सभी प्रकार के मनोदैहिक रोग रुद्रों के प्रभावहीन हो जाने के कारण, उदासीन या निष्ठर स्वभाव के कारण भी होते हैं। यह बहुत से अन्य कारणों से भी हो सकते हैं। परन्तु यह सभी कारण श्री शिव या सदाशिव की शक्तियों के | अंग-प्रत्यंग ही होते हैं। श्री शिव करुणा से परिपूर्ण हैं, वे करुणा के सागर हैं। आप यदि उनसे क्षमा माँगें तो वे क्षमा कर देते हैं, चाहे जो भी अपराध आपने किया हो। परन्तु यदि आप सोचते हैं कि आपने जो भी किया अच्छा किया, आपने कभी किसी को परेशान नहीं किया, किसी को दुःख नहीं दिया तो ये सब जानते हैं। शिव सभी कुछ जानते हैं और अपनी जानकारी के कारण वे त्यागने लगते हैं, आपको आपके भाग्य पर छोड़ देते हैं। अत: आपकी अपनी इच्छा शक्ति तथा शिव के आशीर्वाद का बहुत बड़ा योगदान है। जब शिव आपको आशीर्वादित करते हैं तो आपकी इच्छा शक्ति भी बहुत उच्च हो जाती है। परन्तु ये जानने के लिए कि आपको अत्यन्त उच्च स्तर का व्यक्ति होना है। आपमें पूर्ण इच्छा शक्ति होनी चाहिए वे बिल्कुल सांसारिक किस्म के नहीं है । मान लीजिए कि श्री शिव को किसी पार्टी आदि में जाने के लिए कहा जाए तो वे कैसे लगेंगे? वहाँ लोग उन पर हँसेंगे । मैं जब कुछ हिप्पियों से मिली और उनसे पूछा कि तुम इस प्रकार के बेतुके बाल क्यों रखे हुए हो? उन्होंने उत्तर दिया कि हम आदि मानव

बनना चाहते हैं। मैंने कहा कि आपका मस्तिष्क तो आधुनिक है, आदि मानव की तरह बाल रखने का क्या लाभ है? तो धोखा, स्वयं को धोखा देने से कोई लाभ न होगा। सबसे अच्छी बात तो ये होगी कि स्वयं का सामना करें और समझें कि आप क्या गलतियाँ करते रहे हैं? यदि ऐसा हो जाए, और जितने भी सहजयोगी यहाँ बैठे हैं, मैं आपको बता दें, यदि आप स्वयं को सुधार लें और शिव सम बन जाएँ तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि सभी समस्याएं, राजनीतिक, आर्थिक तथा अन्य सभी प्रकार की समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। परन्तु आज कलियुग के कारण ऐसा वातावरण बन गया है कि अच्छे-बुरे सभी प्रकार के लोग चले जा रहे हैं। अब हमारी जिम्मेदारी है कि विश्व की रक्षा करें, एक अत्यन्त सम्माननीय जीवन की सृष्टि करें जो दिखावा मात्र (सतही) न हो। यह अन्दर से इस प्रकार विकसित हो कि आपकी आत्मा का प्रकाश फैले और पूरे विश्व को प्रकाशित करे। यह समझना अत्यन्त आवश्यक है। ये सब कष्ट, रोग, मनोदैहिक रोग तथा अन्य सभी समस्याएं जैसे, राजनीतिक, आर्थिक तथा अन्य समस्याएं मानव की बनाई हुई हैं। सामूहिक रूप से ये कलियुग की देन है। परमेश्वरी शक्ति ने इन्हें नहीं बनाया। अत: यदि बहुत से सहजयोगी हों, जो सत्यनिष्ठापूर्वक सहजयोग कर रहे हों, तो यह परमेश्वरी शक्ति इन्हें निष्प्रभावित करने का प्रयत्न करती है। यदि ऐसा हो जाए, यदि ये उपलब्धि हम पा सकें तो, मैं सोचती हूँ, हम बहुत | कुछ कर सकते हैं- मानव के हित के लिए बहुत कुछ। इसी कारण आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है। ये केवल आपके लिए ही नहीं है, केवल आपके परिवार के लिए ही नहीं है, केवल आपके नगर या देश के लिए ही नहीं है परन्तु यह पूरे विश्व के लिए है। सहजयोग कार्यान्वित होगा। आपने यदि परस्पर मुकाबला करना है तो उत्थान में करें, और किसी चीज़ में नहीं। परन्तु लोग इतने उथले हैं कि वे सोचते हैं कि दिखावा करने से या अपने आपको बहुत बड़ी चीज़ मान बैठने से वे उत्थान का बहुत ऊँचा स्तर पर लेंगे। परन्तु ऐसा नहीं है। स्वयं के प्रति भी अत्यन्त विनम्र दृष्टिकोण होना चाहिए ताकि आप समझ सकें कि आपके सभी कार्य ब्रह्माण्डीय समस्याओं के समाधान के लिए हैं। नि:सन्देह आप इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं क्योंकि आप ही परमात्मा के माध्यम हैं। यदि मैं अकेली ये सब कार्य कर सकती तो मैंने कर दिया होता, परन्तु मैं ये कार्य करने में असमर्थ हूँ। इसीलिए मुझे आप सब लोगों को यह बताने के लिए इकट्ठा करना पड़ा कि आपको परमात्मा का माध्यम बनना होगा। परन्तु साथ ही साथ आप जीवन का आनन्द ले रहे हैं। आपका हर क्षण आनन्द बन जाता है। यह भी श्री शिव का ही वरदान है। शिव ही इस महान सराहना तथा हर क्षण की महान अनुभूति की सृष्टि करते हैं। यही स्थिति आपने प्राप्त करनी है, अपनी भत्त्सना द्वारा नहीं और न ही अपने अहं को बढ़ावा देकर, परन्तु ये देखते हुए कि आप क्या हैं। यही विशेष चीज़ है जिसे आपने देखना है, कि आपमें क्या बुराइयाँ है। आप स्वयं ही स्वयं को कष्ट दे रहे हैं। इस बात को यदि आप समझ लें तो मुझे विश्वास है, पूर्ण विश्वास है कि आप इतनी बहुमूल्य चीज़ बन जाएंगे जो पूरे विश्व के लोगों को, स्वयं को देखने और परिवर्तित होने में सहायक होगी। समस्याओं की जड़ें इतनी गहन हैं कि उथले स्तर पर रहते हुए आप परिवर्तित नहीं हो सकते। माँ कुण्डलिनी आपको इस प्रकार आशीर्वादित कर रही हैं। मैं कहूँगी, कि आप सत्य, प्रेम और आनन्द के मार्ग पर, वास्तव में, एक महान मशाल (ज्योति) बन सकते हैं। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें ।