Adi Shakti Puja: The Fruit of Knowledge

Campus, Cabella Ligure (Italy)

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आदिशक्ति पूजा- 1993-06-06 – कबेला, इटली

आज हम सभी पूजा करने जा रहे हैं ‘मेरी’ पहली बार !

पूजा सदा रही है मेरे किसी स्वरूप की, या मेरे अंश की।

अब, हमें  बहुत स्पष्ट रूप से जानना होगा कि आदि शक्ति क्या है?

जैसा कि हम कहते हैं, यह परमेश्वर की शुद्ध इच्छा है, सदाशिव की।

परन्तु क्या शुद्ध इच्छा है, सर्वशक्तिमान ईश्वर की ?

यदि आप देखें, आपकी अपनी इच्छाओं को उनका स्त्रोत क्या है?

दैवीय प्रेम में से नहीं, किन्तु शारीरिक प्रेम में से, भौतिक प्रेम में से, शक्ति के प्रेम में से ।

इन सभी इच्छाओं के पीछे प्रेम है।

यदि आप किसी चीज़ से प्रेम नहीं करते हैं, तो आप उसकी इच्छा नहीं करेंगे।

तो ये सांसारिक प्रकार के प्रेम जो आपके पास हैं,जिनके लिए हम अपना बहुत समय गवाँते हैं, व्यर्थ में।

वास्तव में वे आपको संतुष्टि नहीं देते हैं। 

क्योंकि वह सच्चा प्रेम नहीं है, जो आपके पास है ।

बस ‘मोह’ है थोड़े से समय के लिए 

और फ़िर आप बस इससे तंग आ जाते हैं

और यहाँ से आप कूद जाते हैं किसी अन्य चीज़ पर, फ़िर किसी अन्य चीज़ पर, फ़िर किसी अन्य चीज़ पर ।

तो आदि शक्ति अभिव्यक्ति हैं परमेश्वर के दिव्य प्रेम की ।

यह परमेश्वर का शुद्ध प्रेम है

और उनके प्रेम में, उन्होंने क्या चाहा?

उन्होंने चाहा कि वे मनुष्यों का निर्माण करें

जो बहुत आज्ञाकारी होंगे, उत्कृष्ट होंगे, स्वर्गदूतों की तरह होंगे।

और यह उनका विचार था, आदम और हौवा को बनाने का।

तो, स्वर्गदूतों को कोई स्वतंत्रता नहीं है।

स्वर्गदूतों को इसी प्रकार बनाया जाता है।

वे स्थायी हैं ।

वे नहीं जानते कि वे ऐसा क्यों करते हैं।

पशु भी नहीं जानते हैं की वे क्यों करते हैं कुछ क्रियाएँ।

वे बस करते हैं क्योंकि वे प्रकृति से बंधे हुए हैं।

वे बंधे हुए हैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर से। 

वे कहते हैं कि शिव पशुपति हैं। 

अर्थात, वे सभी पशुओं को नियंत्रित करते हैं, वे पशुपति हैं। 

वे सभी जानवरों को नियंत्रित करते हैं।

अतः सभी इच्छाएं जानवरों से आरंभ करके आती हैं। 

परन्तु, वे पश्चाताप नहीं करते हैं, उनको अहंकार नहीं है। 

वे नहीं सोचते कि यह अनुचित है या वह  अच्छा है।

उनको कर्म की कोई समस्या नहीं है क्योंकि उनको अहंकार नहीं है।

क्योंकि, उनको कोई स्वतंत्रता नहीं है।

ऐसी अवस्था में  आदि शक्ति, जो शुद्ध प्रेम थीं

तो एक पिता के बारे में सोचें जिन्होंने, अपना सारा प्रेम एक व्यक्तित्व में डाल दिया ।

फ़िर जो उनमें शेष रह गया है वह तो कुछ भी नहीं है।

वे मात्र देख रहे हैं ।

फ़िर वे  क्या सोचते हैं ?

वे केवल नाटक देख रहे हैं, उनकी इच्छा का, उनके प्रेम का।

वे देख रहे हैं कि  यह कैसे हो  रहा है।

और जब वे यह  देख रहे होते हैं, तब वे बहुत सावधान होते हैं ,

क्योंकि वे जानते हैं कि यह व्यक्तित्व जिसका मैंने निर्माण किया है वह और कुछ भी नहीं है, प्रेम और करुणा के अतिरिक्त।

और करुणा अपने आप में इतने महान प्रकार की है

कि वे सहन नहीं कर सकते, किसी का भी 

उस करुणा को चुनौती देना, उस करुणा को परेशान करना

या किसी भी तरह से इसे नीचा दिखाना, इसे कम करना या इसका अपमान करना।

वे उस विषय पर बहुत सतर्क हैं, और वे बहुत चौकस हैं ।

तो एक दरार उत्पन्न हुई है, हमें कहना चाहिए उनसे, उनकी अपनी प्रेम की इच्छा से।

अब प्रेम की इस इच्छा को एक व्यक्तित्व भी दिया गया,अर्थात अहंकार

और इस अहंकार को स्वयं ही कार्य करना होगा।

यह एक तरह का, बहुत स्वतंत्र व्यक्तित्व बन गया

जो स्वतंत्र था, वह करने के लिए जो उसे अच्छा लगे ।

मेरा कहने का तात्पर्य है, कि हम यह सोच नहीं सकते 

अपने सांसारिक जीवन में कि एक पति और पत्नी पूर्णतः स्वतंत्र हैं, वह करने के लिए जो उन्हें अच्छा लगता है

क्योंकि वहाँ कोई सामंजस्य नहीं है, कोई समझ नहीं है, कोई एकाकारिता नहीं है, वह तालमेल नहीं है।

परन्तु, यह एक चाँद और चाँदनी, सूरज और सूरज की रोशनी, की तरह है

यह एक ऐसा सामंजस्य है, कि जो कुछ भी एक करता है, दूसरा उसका आनंद लेता है।

और उस सुन्दर मन-मुटाव में, आदि शक्ति ने उनकी योजनाओं को परिवर्तित  करने का निश्चय किया।

वह अपनी संकल्प विकल्प  करोती, के लिए जानी जाती हैं।

आप कुछ भी बहुत अधिक निश्चय करने का प्रयत्न करेंगे, वह इसे तोड़ देंगी।

जैसे आज की ग्यारह बजे की पूजा।

तो जब यह आदम और हौवा का विषय शुरू हुआ

उन्होंने सोचा कि वे अन्य पशुओं या स्वर्गदूतों की तरह ही होंगे, इसका क्या लाभ?

उन्हें पता होना चाहिए कि वे क्या कर रहे हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं।

उन्हें यह समझने की स्वतंत्रता होनी चाहिए कि ज्ञान क्या है।

और स्थायी मशीन जैसा जीवन, जो इन पशुओं का है, उनका ऐसा क्यों होना चाहिए?

तो उनकी स्वेच्छित शक्ति में, जिसे प्रदान किया गया था, निश्चित रूप से,

वह वही हैं, जो एक नागिन बनकर आईं

और उन्हें कहा कि तुम ज्ञान के फल का स्वाद लो।

अब ऐसे लोग जो सहज योगी नहीं हैं, आप यह नहीं बता सकते। वे चौंक जाएंगे।

परन्तु, यह नाग जो उनकी परीक्षा लेने के लिए आया था

और फ़िर उन्हें बताने के लिए कि अच्छा होगा आप इस फल का स्वाद ले लें।

इस नागिन ने महिला को बताया, पुरुष को नहीं।

क्योंकि कथित रूप से महिला सहजता से चीज़ों को स्वीकार करती है ।

वह भूतों को भी स्वीकार कर सकती है, यहाँ तक कि वह निरर्थकता भी स्वीकार कर सकती है।

परन्तु वही है  जो स्वीकार करती है।

जब कि पुरुष सहजता से स्वीकार नहीं करता है, वह तर्क करता है, वह विवाद करता है।

इसलिए  वह आया और उसने महिला से कहा

वह आई और महिला से कहा, मुझे कहना चाहिए।

यह पवित्र शक्ति (आदिशक्ति) वास्तव में नारी सुलभ है

और इसलिए एक महिला से अधिक समरूपता है।

यह नारी सुलभ शक्ति सर्प के रूप में आई और  बताया 

कि अच्छा होगा कि आप ज्ञान के फल का स्वाद लें। 

अब यह महिला का काम था, हव्वा का, अपने पति को मनाने का

क्योंकि महिलाएँ जानती हैं कि यह कैसे करना है। 

कभी-कभी वे उन्हें अनुचित तरीके से मना सकती हैं

उन्हें ऐसा कुछ बता सकती हैं जो बहुत अनुचित है, बहुत अशुभ है।

जैसे आप जानते हैं, मैकबेथ में क्या हुआ था ।

कई जगह हमने देखा है कि महिलाओं ने अपने पतियों का पथभ्रष्ट किया है।

पुरुषों का पथभ्रष्ट किया जा सकता है या उनका मार्गदर्शन किया जा सकता है, 

या उन्हें मुक्ति मिल सकती है यदि उनकी पत्नी उचित है ।

तो उन्हें अपनी पत्नी पर  पूरा विश्वास था, उस में विश्वास था

और उन्होंने ज्ञान का फल चखा।

इस पवित्र शक्ति (आदिशक्ति)  के मार्गदर्शन में जो परमेश्वर का एक नारी सुलभ व्यक्तित्व था

यह परिकल्पित नहीं किया जा सकता है उन लोगों द्वारा

जो केवल एक झलक पा रहे हैं ईसामसीह की, या एक झलक मोहम्मद साहब की, या एक झलक नानक साहिब की।

वे समझ नहीं सकते। 

उन्हें उनकी केवल एक झलक मिली थी।

यदि  उन्होंने बताया होता तो लोग कहते, बाह, यह क्या है? 

उन्होंने इसे कभी नहीं सुना होता ।

तो, उस समय, जिस तरह से चित्त था

जिस तरह से स्वीकृति थी, उन्होंने धर्म के बारे में बताया, उत्थान के बारे में ।

परन्तु भारत में लोगों ने कुंडलिनी के बारे में बहुत पहले से बात की है

और, यह कि वह आदि शक्ति हैं जो हमारे भीतर प्रतिबिम्भित हैं ।

अब आप देखिए, उन्होंने पहले ही आपको बता दिया है, कि मैं उनमें से हर एक में रहूँगी ।

अब यह समझिए कि यह आदि शक्ति , प्रेम की शक्ति है, शुद्ध प्रेम की, करुणा की।

उन के पास और कुछ नहीं है। केवल शुद्ध प्रेम है उन के ह्रदय के भीतर ।

परन्तु यह शुद्ध प्रेम इतना शक्तिशाली है, इतना शक्तिशाली है

यही प्रेम उन्होंने इस धरती माँ को दिया है।

उसके कारण, यह धरती माँ हम जितने भी पाप करें , हम कुछ भी करें

वह अपना प्रेम बरसा रही हैं, हम सभी के लिए इन सुन्दर चीज़ों के माध्यम से।

अब, हमारे पास भी यह सुंदरता व्यक्त होती है 

हर तरह से उनके प्रेम में, आकाश गंगाओं के माध्यम से जिन को आप देखते हैं, सितारे जिन को  आप देखते हैं

अब यदि आप इसे वैज्ञानिक ढंग  से देखना चाहते हैं

तो विज्ञान का अर्थ है इसमें कोई प्रेम नहीं है, प्रेम का कोई प्रश्न ही नहीं है।

यहाँ  तक कि लोग, योग की बातें करते हैं, वहाँ वे बात नहीं करते हैं प्रेम और करुणा की।

जब कोई प्रेम और करुणा नहीं होती है

तो उस व्यक्ति में कोई दिव्य चमक नहीं हो सकती है।

सब कुछ पूरी तरह से डूबा हुआ है इस दिव्य प्रेम में । 

जो कुछ भी रचाया गया है इस पृथ्वी पर, जो कुछ भी बनाया गया है इस ब्रह्मांड में 

और ब्रम्हाण्डों में, और ब्रम्हाण्डों में, यह सब दिव्य माँ के प्रेम के कारण है।

तो यह आदि शक्ति का प्रेम कुछ इतना, इतना सूक्ष्म है

इतना सूक्ष्म है,  कि आप कभी-कभी समझ नहीं पाते हैं ।

मुझे पता है आप सभी मुझे अत्यंत  प्रेम करते हैं ।

यह मेरे लिए अत्यधिक प्रेम है, और जब मुझे आपसे चैतन्य  मिलता है

यह लहरों की तरह होता है जो तटों तक पहुँचती हैं और फ़िर से वापस लौटती हैं।

और बहुत सारी, छोटी-छोटी जगमगाती बूंदें होती हैं किनारे पर भी ।

उसी तरह अपने ह्रदय में, मैं अनुभव करती हूँ आपका प्रेम, जगमगाते प्रकाश की सुन्दरता से गूँजता  हुआ 

इस दिव्य प्रेम में

जो मैं आपको नहीं समझा सकती, वह अनुभव जो यह उत्पन्न करता है।

पहली चीज़ जो यह बनाता है, कि मेरी आँखों में आँसू आ जाते हैं।

क्योंकि यह करुणा है, जो सान्द्र करुणा है, आद्र है, यह शुष्क नहीं है।

जैसे पिता की करुणा बहुत शुष्क हो सकती है।

ठीक है, यह करो, अन्यथा मैं तुम्हें गोली मार दूंगा, मैं यह करूंगा, वह बोलेंगे।

माँ कहेगी, परन्तु वह ऐसा कुछ नहीं कहेगी जो आहत करने वाला हो।

उसे कहना पड़ेगा कभी-कभी आपको ठीक करने के लिए।

परन्तु उसका कहना पिता से बहुत भिन्न है,

क्योंकि  उसके पास सान्द्र करुणा है, आन्द्र, आद्र है जो शुष्क नहीं है।

और इस तरह का ह्रदय उन्होंने विकसित किया

इस दिव्य प्रेम के कारण जो उनके भीतर था।

तो उनके शरीर का हर भाग, सब कुछ निर्मित है दिव्य प्रेम से ।

उसका हर छोटा भाग प्रसारित करता है केवल दिव्य प्रेम ।

चैतन्य, कुछ और नहीं अपितु दिव्य प्रेम है।

अब, जैसा कि मैंने आपको पहले भी बताया था

इस अवतार को आना था। समय आ गया था।

यह सब देखा जा रहा था कि समय आ गया है।

परन्तु अंतर है निश्चित समय और समय जो सहज है उसके के बीच। 

निश्चित समय ऐसा होता है कि आप कह सकते हैं

कि यह ट्रेन इस समय जाती है, इस समय पहुंचेगी।

आप कह सकते हैं कि कोई मशीनरी कुछ उत्पादन कर रही है, 

इतने-इतने समय में यह इतनी चीज़ों का उत्पादन करेगी ।

परन्तु जीवित चीज़ें, जो स्वैच्छिक हैं, जो सहज हैं, आप उनके समय का नहीं कह सकते।

उसी तरह से यह स्वतंत्रता की प्रक्रिया; आपके पास अधिकतम स्वतंत्रता है,

अतः कोई यह नहीं कह सकता कि यह किस समय होगा।

कि लोग उपलब्ध होंगे प्राप्त करने के लिए, दिव्य प्रेम के इस सूक्ष्म ज्ञान को ।

ज्ञान भी बहुत शुष्क  हो सकता है।

हमारे पास भारत में भयानक लोग थे जो पढ़ने में व्यस्त थे

और मंत्रों के उद्धरण के साथ, ये, वो,

और वे इतने शुष्क हो गए, इतने शुष्क, वे केवल हड्डियों के ढांचे हैं, वे केवल हड्डियाँ रह गए ।

और इतने गर्म स्वभाव के कि वे किसी को देखते तो , वह व्यक्ति राख़ बन जाता था।

मेरा कहने का तात्पर्य है, क्या इस तरह से आप इस पृथ्वी पर आए हैं सभी तपस्याएँ  करने के लिए, सब कुछ

बस किसी को राख बनाने के लिए?

परन्तु इस कारण ही वे सोचते थे कि वे बहुत महान थे

क्योंकि वे किसी को देखते थे, वह व्यक्ति बन जाता है, गायब हो जाता है या राख हो जाता है।

भस्मीसात वे इसे कहते हैं।

परन्तु  उनके  ह्रदय  में परोपकारिता का कोई विचार नहीं था।

तो, जो पहली चीज़ प्राप्त की जाती है इस दिव्य प्रेम के माध्यम से, वह है आपकी परोपकारिता ।

अब परोपकारिता भी अपने आप में एक बहुत ही भ्रामक शब्द है।

परोपकारिता का अर्थ है, जो भी अच्छा है आपकी आत्मा के लिए ।

अब, जैसा कि आप जानते हैं कि आत्मा सर्वशक्तिमान ईश्वर का प्रतिबिंब है।

तो जब आत्मा आप में आरम्भ कर देती है

स्वयं को प्रतिबिंबित करना, अपने पूर्ण सौंदर्य में, तब आप केवल दाता बन जाते हैं।

आप अब ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जिसे कुछ भी लेना है, आप बस दाता बन जाते हैं।

आप इतने परिपूर्ण हो जाते हैं।

अब, यह अवतार एक ऐसे समय में आया

जिसे आँका गया कि यह किस समय आना चाहिए।

जैसा कि मैंने कहा कि आप को स्वतंत्रता थी।

लोग उन्मत्त हो रहे थे हर तरह कि चीज़ें कर रहे थे ।

तो यदि आप देखें  इससे ठीक पहले

हमारे पास एक बड़ी समस्या थी, लोगों के अपनी शक्ति का उपयोग करने की ।

जैसे, लोग भारत जाएंगे, भारत के क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के लिए

या चीन जाएंगे या इस ओर वे अफ्रीका और इन सभी स्थानों पर गए।

यहाँ तक कि अमरीकी भी गए ‘तथाकथित अमरीकी ‘ अमरीका गए

और उस पर कब्ज़ा कर लिया।

तो यह वह समय था जब वे अपनी स्वतंत्रता का उपयोग कर रहे थे, केवल सत्ता के लिए।

वह समय नहीं था आदि शक्ति के जन्म लेने का ।

वे वो लोग थे जो सत्ता-उन्मुख थे ।

ऐसा नहीं है कि आज हमारे पास नहीं हैं, हमारे पास हैं ।

परन्तु ये केवल सत्ता चाह रहे थे और इन क्षेत्रों को भी, जो महत्वपूर्ण नहीं है।

अतः यह उस समय नहीं हो सका।

उस समय  हमें संघर्ष करना पड़ा था अपनी स्वतंत्रता के लिए 

इन साम्राज्यवादियों के चंगुल से बाहर निकलने के लिए

और उन लोगों के जो वश में करने का प्रयत्न कर रहे थे।

अब, धीरे-धीरे यह बदल गया।

(क्या आप इसको बंद कर सकते हैं?)

यह बदल गया, और इतने सहज तरीके से बदला ।

बहुत आश्चर्य की बात है, मैंने खुद बदलाव आते देखा।

यह कार्यान्वित हुआ।

जैसा कि आप जानते हैं कि मैंने स्वयं भाग लिया था भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में।

यह महत्वपूर्ण है।

भारत ने आरंभ किया, भारत में यह आरंभ हुआ।

पहले स्वतंत्रता, साम्राज्यवाद से

और फ़िर धीरे-धीरे यह स्वतंत्रता साम्राज्यवाद से, हर देश में फैलने लगी।

लोगों ने इसके बारे में सोचना शुरू कर दिया।

वे समझने लगे कि कोई लाभ नहीं है उपनिवेशों और ऐसे सब का, अच्छा होगा कि वापस आ जाएँ अपनी जगह पर।

तो  जब ऐसा हुआ, मेरा कहने का तात्पर्य है कि यह मेरे अपने जीवनकाल में हुआ।

मुझे कहना होगा, पहले जिन लोगों ने स्वतंत्रता  पाने का प्रयत्न किया हमारे देश में , उनकी मृत्यु हो गई।

इतने लोग मारे गए, आप जानते हैं, हमारे यहाँ  भगत सिंह जैसे लोग थे।

हर देश में सभी क्रांतिकारियों को बाहर निकाल दिया गया

और उनके साथ दुरव्यवहार किया गया और उन्हें मार दिया गया।

यह केवल भारत का ही प्रश्न नहीं है।

परन्तु उस दौर से गुज़रना ही था ।

तो उनकी स्वतंत्रता की परीक्षा ली गई ।

अब उन्हें लगा कि यह निरर्थक बात थी जो हमने की ।

यह कोई स्वतंत्रता नहीं थी।

क्योंकि अंत में  वह सब करते हुए, फ़िर वे पश्चाताप करने लगे

और एक प्रकार का भय विकसित करने लगे और दूसरों से डरने लगे

और एक प्रकार का, जिसे आप कह सकते हैं, एक बहुत विक्षुब्ध बायीं विशुद्धि  शुरू हो गई।

उन्होंने अनुभव किया कि वे बहुत दोषी हैं , कि उन्होंने बहुत अनुचित किया है।

उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।

इस मोड़ पर अन्य समस्याएँ भी थीं।

जैसे हमारे यहाँ जाति-व्यवस्था थी और अन्य समस्याओं में, दासता और सभी प्रकार की चीज़ें, असमानताएं,

और कुछ लोगों को निम्न लोगों के रूप में माना जाता था, कुछ को उच्च लोगों के रूप में

कुछ उच्च जातियाँ, कुछ निम्न जातियाँ ।

ये सब मूर्खता भरी बातें थीं।

अपनी स्वतंत्रता के द्वारा उन्होंने इसे बनाया है, अपनी स्वतंत्रता के माध्यम से।

ऐसा नहीं है, यह नहीं है, यह तथ्य नहीं है, यह सच्चाई नहीं है।

परन्तु उन्होंने बनाई एक ऐसी चीज़ ।

अब यह मान लीजिए  कि मैं यहाँ कुछ बनाना चाहती हूँ।

केवल कहने के लिए, कि ठीक है , यह एक कालीन नहीं है

आपको बताती जा रही हूँ , यह एक कालीन नहीं है, यह एक कालीन नहीं है।

मस्तिष्क परिवर्तित हो जाता है , आप देखिए।

आप सोचते हैं, यह एक कालीन नहीं है, कुछ और होगा।

यह एक मंत्रमुग्ध करने वाली बात की तरह है, मुझे लगता है।

जिस तरह से लोगों ने स्वीकार किया जातिभेद की निरर्थकता को 

सभी प्रकार की विषमताओं को, दास-प्रथा को,

जातिवाद को और विशेष रूप से महिलाओं से दुर्व्यवहार करने को।

यह सब उस विकल्प देने के कारण हुआ, जो उन्हें दिया गया था 

चुनने के लिए, क्या अच्छा है, क्या बुरा है।

तो उनके लिए यह बहुत अच्छा था, आप देखिये यह एक अच्छी बात थी करने के लिए।

इन परिस्थितियों में, करुणा व्यर्थ हो जाती इन लोगों पर ।

ईश्वरीय प्रेम उन पर व्यर्थ होता।

क्योंकि मानसिक रूप से लोग तैयार नहीं थे समझने के लिए ।

आप उन्हें यह नहीं बता सकते थे  कि यह पूर्णतः आपके अंधेपन, अज्ञानता, के कारण है कि

आप ऐसा कर रहे हैं, यह आपके लिए सही चीज़ नहीं है, यह आपको महान नहीं बनाएगी।

यह अधम है। 

आप अधम कार्य कर रहे हैं।

निस्संदेह, इतने सारे संत आए, उन्होंने महानता की बात की

क्षमा की, एकता की, एकिकारिता की, सब कुछ उन्होंने कहा।

बड़े द्रष्टा पैदा हुए, वे भी उस स्थान तक पहुँचे इस बारे में बात करने के लिए ।

परन्तु,  फ़िर भी लोग इतने तैयार नहीं थे।

धीरे-धीरे मुझे लगता है कि उनकी शिक्षाएं और वो सब लोगों में काम करने लगीं।

परन्तु सबसे बड़ी समस्या आई इन तथाकथित धर्मों के साथ जो उन्होंने आरम्भ किए।

ये सभी धर्म पटरी से उतर गए

और उन्होंने बनाया एक प्रकार से पोखरों को, आप देखिए।

मुसलमान यहाँ, ईसाई यहाँ , हिंदू वहाँ , ये ये है , ये ये है ।

तो आपको वास्तव में जीवन के इस दाता की आवश्यकता थी

इन सभी पोखरों को भरने के लिए और उन्हें एक बनाने के लिए।

यह पूर्ण अज्ञानता है, सरासर मूर्खता है, यह सोचना कि एक मनुष्य दूसरे से ऊँचा है।

आप केवल एक बात कह सकते हैं, कि आप एक अलग स्थिति में हैं।

कुछ अलग स्थिति में हैं, कुछ उच्च अवस्था में हैं।

परन्तु  सामान्य तौर पर आप किसी की निंदा नहीं कर सकते हैं

कि वह किसी योग्य नहीं है, यह समाज अच्छा नहीं है, यह समाज, सामान्य तौर पर! 

व्यक्तिगत रूप से आप कह सकते हैं।

सामान्य तौर पर आप नहीं कह सकते।

परन्तु यह अज्ञान इतना अंधकारमय था, क्योंकि यह सामूहिक हो गया।

यह एक सामूहिक अज्ञानता है। सामूहिक अज्ञानता!

वे सब इकठ्ठे हो गए, सामूहिकता में।

यह कहने के लिए कि यही वह धर्म है जो सबसे अच्छा है।

हम ही हैं जो बचाए गए हैं।

एक अन्य ने कहा, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं

ये निश्चित रूप से निंदनीय लोग हैं, हम सर्वश्रेष्ठ हैं।

और धर्म के नाम पर, सर्वशक्तिमान ईश्वर के नाम पर, उन्होंने इस निरर्थकता की शुरुआत की।

तो अब, आदि शक्ति को ज़ोर लगाना पड़ा, पूरी शक्ति लगानी पड़ी।

तो पहली बात जो उन्होंने अनुभव की , कि आप को पता होना चाहिए कि परिवार क्या है।

एक बच्चा बढ़ता है परिवार में।

यदि बच्चों को उचित ध्यान नहीं मिलता है, पिता या माँ से

हम कह सकते हैं कि यदि उनको बिगाड़ दिया जाता है

या यदि बिगाड़ा नहीं जाता, यदि उनमें अत्यधिक आसक्तता दिखाई जाती है

या उनकी उपेक्षा की जाती है

तो बच्चा नहीं जानता है  कि प्रेम क्या है।

यदि कोई बच्चा नहीं जानता कि प्रेम क्या है

प्रेम का अर्थ यह नहीं है कि आप बच्चे को बिगाड़ दीजिए

या खेलने के लिए बहुत सारे खिलौने दीजिए और उससे छुटकारा पाईये।

इसका तात्पर्य यह है  कि सारा समय आपका ध्यान अपने बच्चे पर है।

और वह ध्यान आसक्तता नहीं है, परन्तु एक ध्यान जो बच्चे के परोपकार के लिए है ।

तो हर समय आप देख रहे हैं कि वहाँ परोपकार है।

और इस प्रकार, मैंने सोचा कि पारिवारिक जीवन सबसे पहले सिद्ध करना है।

यह बहुत महत्वपूर्ण है,

क्योंकि इन दिनों भी धर्म के नाम पर उन्होंने शुरुआत की है भिक्षुणी-मठों और फ़िर पुजारियों,

और फ़िर सन्यासियों की और सभी प्रकार के बाबा हैं वहाँ ।

वे इतने शुष्क हैं!

और वे लोगों को इतना भ्रमित कर रहे हैं, कि लोग इस तरह के सन्यास लेने लगे हैं,

अपने घरों से बाहर निकल रहे हैं, अपनी पत्नियों, अपने बच्चों से दूर भाग रहे हैं।

तो पहली बात जो मैंने अनुभव की वह है

कि मनुष्यों के पास प्रेम नहीं हो सकता जो नहीं जानते कि प्रेम क्या है ।

और यह प्रेम अधिक प्रभावी होता है, अगर यह सामूहिक हो।

देखिए हम, आपने देखा होगा कि भारत में लोग वास्तव में एक परिवार में एक दूसरे से प्रेम करते हैं।

मेरा कहने का तात्पर्य है कि इतने सारे संबंध हमें नहीं पता, कि हम उनसे कैसे संबंधित हैं।

हम उन्हें केवल भाई, बहन, ये, वो कहते हैं।

हम नहीं जानते कि रिश्ता क्या है, तो किसके पिता थे, किसकी बहन, कुछ नहीं।

परन्तु  हमें बस लगता है कि यह हमारा भाई है

और यदि आप पूछें कि यह आपका भाई कैसे है तो आपको नहीं पता होगा कि यह आपका भाई कैसे है।

कारण यह है कि हमारे पास संयुक्त परिवार प्रणाली थी।

संयुक्त परिवार प्रणाली पूर्णतः एक सामूहिक प्रणाली की तरह।

तो किसी को पता नहीं होता था कि कौन किसका सगा भाई था,

कौन उसका सौतेला भाई था, कौन उसका चचेरा भाई था, कुछ भी नहीं।

वे सभी एक साथ रहते थे केवल संबंधी के रूप में।

परन्तु  फ़िर यह भी टूट गया, यह संयुक्त परिवार भी टूट गया

आर्थिक कारणों और उस तरह की चीज़ों से जो कुछ भी है । 

तो अब इस समय जब देखिए ये बहुत ही महत्वपूर्ण समय था,

जब लोगों को प्रेम जानना था

और परिवार टूटना आरम्भ  हो गए थे हर देश में ।

विशेष रूप से कहिए पश्चिमी देशों में।

क्योंकि पुरुषों और महिलाओं ने कभी समझा ही नहीं, महत्व पारिवारिक जीवन का।

उन्हें कभी विश्वास नहीं था अपने पारिवारिक जीवन पर ।

तो यह इतनी कुटिल बात बन गई बेचारे बच्चों के लिए, वे अस्थायी आधार पर थे

और वे ठीक से विकसित नहीं हो सके।

अतः उन्होंने एक पीढ़ी पैदा की, हिंसक और भयानक रूप से भूतग्रस्त बच्चों की।

यह पीढ़ी तब युद्ध विक्रय में चली गई।

उन्हें नहीं पता, उन्हें लड़ने का मन करता है।

मैंने बच्चों को पेड़ से लड़ते देखा है।

मैंने कहा, आप क्यों लड़ रहे हैं? लड़ना अच्छा है, आप जानते हैं।

परन्तु आप क्यों लड़ रहे हैं, वे नहीं जानते। 

कारण ‘कोई प्रेम नहीं है।

तो जो कुछ भी आप देखते हैं, आप घृणा करते हैं।

मुझे यह पसंद नहीं है, मुझे यह पसंद नहीं है।

हर चीज़ से घृणा करते हैं।

आप प्रयत्न करते हैं, अपनी कुण्ठा के कारण,

नष्ट करने का जो कुछ भी आप देखते हैं ।

तो एक नया प्रचलन आरम्भ हुआ।

युद्ध के अलावा, जब यह खत्म हुआ, तो स्वाभाविक रूप से मूल्य प्रणाली समाप्त हो गई।

लोगों ने अनुभव किया, क्या लाभ है, आप देखिए, हमारे पास ये सभी मूल्य थे तो हमें क्या मिला?

युद्ध और युद्ध, किसलिए है युद्ध?

युद्ध ने हमारे सभी समाजों को मार डाला है।

उन्होंने हमारे बच्चों को मार दिया है हर किसी को

और इस युद्ध के बारे में क्या महान है?

तो समग्र रूप से लोगों का मन यही था कि

आप देखें, किसी न किसी तरह, आपको लड़ना चाहिए।

जैसे योग्यतम आदमी सबसे अच्छा है।

अतः जो हावी हो सकता है, वह जो ऊपर आ सकता है वह सबसे अच्छा है।

तो वर्चस्व इस शाही शैली की सरकार का, समाप्त हो गया

परन्तु व्यक्तिगत रूप से यह प्रक्रिया बन गई वर्चस्व की ।

और वर्चस्व की इस प्रक्रिया से अहंकार का विकास होने लगा।

यहाँ तक कि वे बच्चों को इस तरह से शिक्षा देते थे कि बच्चे बहुत अभिमानी हो जाते थे।

बहुत ही कृत्रिम, अत्यधिक अभिमानी और कृत्रिम।

यह समझना असंभव था, क्यों ये बच्चे बिल्कुल नियंत्रित नहीं थे

क्यों नहीं बताया गया कि यह अनुचित है।

क्योंकि माता-पिता ने भी बहुत रक्षात्मक मनोभाव अपनाया।

वे अपने बच्चों का सामना नहीं करते थे और उन्हें नहीं बताते थे कि क्या अनुचित है।

वे उस विचार से इतना जुड़े हुए थे कि ये बच्चे हमें छोड़ देंगे,

कि उन्होंने कहा, ठीक है, जो चाहते हो वो करो परन्तु हमारे साथ रहो ।

इन परिस्थितियों में मनुष्य भी जैसे क्षीण हो रहा था

एक अच्छे पारिवारिक जीवन और तलाक और अजीब से समाज के बीच में

जो विश्वास करता है, महिलाओं को साझा करने या पुरुषों को साझा करने में और सभी प्रकार की चीज़ों में ।

अतः कितनी भयानक स्थिति थी, आदि शक्ति के लिए स्वयं को दृढ़तापूर्वक स्थापित करने के लिए ।

तब भी बहुत बड़ी समस्या थी इन धर्मों के बारे में कि ये बलपूर्वक अपने आप को,

अपने विचारों को, अपनी झूठी मर्यादाओं को लोगों पर डाल रहे थे और उन्हें पूर्णत: अंधा कर रहे थे।

तो यह एक उत्पात था, यह एक उत्पात था

और इस उत्पात कि स्थिति में ही, आदि शक्ति को आना पड़ा धर्म की स्थापना के लिए ।

उन्हें काम करना पड़ा धर्म की स्थापना के लिए ।

यह बहुत ही कुटिल जगह थी, बहुत कुटिल रेत थी वहाँ।

परन्तु जब मेरा जन्म हुआ, तो मैं स्तंभित थी जैसे लोग थे.

उस समय, मुझे नहीं लगता कि मैं  बहुत  साधकों से मिली।

निस्संदेह मैं एक या दो आत्मसाक्षात्कारियों से मिली।

परन्तु अधिकतर वे चिंतित थे, अपने बीमा के, अपने पैसे, अपने इसके, उसके, विषय में।

अर्थात् यदि आप उनसे बात करते, मेरा कहने का तात्पर्य है कि आपको पता नहीं चलेगा कि आप कहाँ आ गए हैं,

किसी जंगल में या कहाँ?

आपको नहीं पता होता था कि उनसे क्या बात करनी है।

आप कैसे उन्हें बताना शुरू कर सकते हैं दिव्य प्रेम के बारे में, जब वे जिज्ञासु भी नहीं थे।

फ़िर, धीरे-धीरे, मुझे आत्मविश्वास अनुभव हुआ।

पहले मुझे लगा कि मैं थोड़ा जल्दी आ गई हूँ, मुझे थोड़ा और प्रतीक्षा करनी चाहिए थी, अच्छा होता।

क्योंकि यहाँ लोग हर किसी से  घृणा करते हैं, और हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध  है,

और वे एक-दूसरे को धोख़ा दे रहे हैं और वे एक-दूसरे से बहुत ईर्ष्या भी करते हैं,

और उच्च पद भी चाहते हैं, और ये और वो।

या अन्य, वे हर किसी की टाँग खींचना चाहते हैं।

तो हो सकता है कि अभी समय नहीं है सहज योग शुरू करने का ।

परन्तु फ़िर, मैंने देखा इन सभी भयानक झूठे गुरुओं को

लोगों पर अपना आकर्षण डालते हुए, और उन्हें नियंत्रित करने का प्रयत्न करते हुए।

इसने मुझे वास्तव में, वास्तव में  सोचने पर विवश कर दिया कि अब अच्छा होगा मैं बंद कर दूँ

चिंता करना कि क्या वातावरण है, यह चिंता करना कि किस तरह के लोग हैं, चलो शुरू कर देते हैं ।

और इस तरह प्रथम ब्रह्मरंध्र छेदन हुआ भारत में, 5 मई को ।

और 1970, 5 मई, सुबह के समय, निश्चित रूप से इसमें कुछ, कुछ घटनाएँ और भी थीं

जिनसे मुझे जल्दी हुई ये करने की।

मैं पूर्णतया तैयार थी , मुझे पता था कि मनुष्य की समस्याएँ क्या हैं।

परन्तु मैंने सोचा कि हो सकता है

वे कभी स्वीकार न करें कि उन्हें अपना आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो सकता है।

अब यह अवतरण वास्तव में एक बहुत ही अनोखे प्रकार का है।

इतने अवतरण आए। वह आए , उन्होंने आपको सब कुछ बताया, जैसे शब्द और कहा यह अच्छा है, यह अच्छा है, यह अच्छा है।

कुछ लोग,  जो उनके द्वारा आकृष्ट थे, उनका अनुसरण किया।

परन्तु उनके ह्रदय के अंदर कुछ भी नहीं था।

उन्होंने जो भी सुना, सब ठीक है, यह एक उपदेश है, यह एक व्याख्यान है, यह एक गीता है, बस।

और ऐसे व्यक्ति के जीवन में दिव्य प्रेम की चमक नहीं थी उस व्यक्ति के भीतर।

हमारे पास बहुत से अच्छे लोग आए हैं इस कम समय के दौरान में, यदि आप देखें।

यदि आप देखें, तो महात्मा गांधी थे, मार्टिन लूथर थे।

सभी प्रकार के लोग जिन्हें आप हर कहीं देखते हैं, अब्राहम लिंकन थे, जॉर्ज वाशिंगटन थे।

हमारे पास विलियम ब्लेक थे , हमारे पास शेक्सपियर थे, यह सब, इस समय,

आप देखिए साहित्य में, हर तरह से, लाओत्से, फ़िर हमारे पास सुकरात थे ।

सुकरात से आरम्भ कर आज तक,

हमारे पास बहुत से दार्शनिक रहे हैं, बहुत सारे लोग थे, जिन्होंने उच्च जीवन के बारे में बात की ।

ये सब होते हुए भी, लोग सोच रहे थे, ये कुछ बेतुके लोग हैं।

इसमें  कुछ भी नहीं है, बहुत अधिक समझने के लिए ।

कोई भी किसी चीज़ के बारे में कुछ नहीं पढ़ता था, जैसे कहिए, गुरु गीता, वे नहीं पढ़ते थे।

वे सोचते थे कि यह क्या निरर्थकता है, क्या उपयोग है  इसका , यह सब पाखण्ड चल रहा है, इस तरह ।

इस प्रवृत्ति के साथ, आप देखिए, आप चारों ओर पाते हैं।

जब मैंने देखा, ओह! मैंने कहा, वाह, मैं उन्हें कैसे बताऊं ?

आप क्या हैं? वे क्या हैं? और उन्हें क्या खोजना है?

और यह वास्तव में मेरी इच्छा थी कि लोगों में कुछ उत्सुकता होनी चाहिए,  बस थोड़ी सी।

यदि  वे मुझे थोड़ा अवसर  देते, तो यह दिव्य प्रेम इतना सूक्ष्म है, यह बस उनके ह्रदय में घुस जाएगा।

परन्तु उन्होंने नहीं किया, वे केवल पत्थर की तरह थे।

आप उनसे बात नहीं कर सकते थे, आप उन्हें किसी भी चीज़ के बारे में नहीं बता सकते थे ।

और वे अपने आपको बहुत अधिक विशेष समझते थे, जो इसका सबसे बुरा भाग है।

इन परिस्थितियों में सहज योग शुरु हुआ।

और वहाँ मुझे पता चला कि आदि शक्ति की शक्तियाँ समस्याओं से अधिक बड़ी हैं, आप देखिए ।

मैंने इसे बहुत स्पष्ट रूप से स्वयं देखा 

क्योंकि ये शक्तियाँ जागृत कर रही हैं  कुंडलिनी को ।

मुझे पता था कि मैं कुंडलिनी जागृत कर सकती हूँ  इसमें कोई संदेह नहीं है, मुझे पता था।

और यह भी पता था कि मैं इसे कर सकती हूँ सामूहिक रूप से, आत्मसाक्षात्कार ।

परन्तु मैं यह कभी नहीं सोच सकती थी कि जिन लोगों को मैंने जागृत किया था पुनः वापस आएंगे।

क्योंकि, आप देखिए, वे अज्ञानी लोग हैं।

मैंने कभी नहीं सोचा था कि वे वापस आएंगे

वे सहज योग का अभ्यास करेंगे या वे इस स्तर पर जाएंगे।

कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं सोचा!

यदि किसी ने मुझे बताया होता तो मुझे उस व्यक्ति पर हँसी आती।

वास्तव में क्या  होता था कि जब मैंने पहला व्याख्यान दिया, कहीं भी

वह हॉल बंद हो जाता था, सब कुछ समाप्त हो जाता था

और उस हॉल से कोई लेना देना नहीं होता था ।

मैं कहीं और रह रही होती थी , वो हॉल किराए पर होता था।

और आगे की कार्यवाही, निस्संदेह  बहुत कम होती थी।

तो मैंने सोचा कि, आप देखिए, उनके सिर में नहीं जाता है ।

बस उनके सिर के ऊपर से चला जाता है, मुझे लगता है।

वे कुछ भी समझना नहीं चाहते हैं। उन्हें कुछ समझ नहीं आता है ।

बड़े दबाव के नीचे, आप देखिए, मुझे पारिवारिक समस्याएं थीं, ये, वो।

वह इतना महत्वपूर्ण नहीं था।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी, कि कैसे भीतर घुसा जाए मानव मन में ।

तो एक मात्र उपाय था उनकी अपनी कुंडलिनी को ऊपर उठाना।

उन में थोड़ा प्रकाश पैदा करने के लिए।

क्योंकि यदि मैं बैठ जाती हूँ इस विचार के साथ कि

वे आएंगे और मुझसे पूछेंगे कुंडलिनी जागरण के लिए

और तब मैं उन्हें जागृत करुँगी ‘एक गलत विचार था।

मैं यह समझ सकी। अतः सामूहिक आत्मसाक्षात्कार का आरम्भ हुआ ।

और इसने वास्तव में लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया।

यह कोई जादू नहीं था, यह कहानी कहने की कला नहीं थी, अपितु यह सच्चाई थी।

वे इसे अपनी उंगलियों पर अनुभव कर सकते थे।

वे इसे अनुभव कर सकते थे अपने तालू भाग से।

इस सहज योग के प्रत्यक्षीकरण ने चमत्कार का काम किया है।

अन्यथा, यह असंभव होता।

ये सभी चमत्कार जो आप आज देख रहे हैं, यह आपकी ‘आपकी प्रतिक्रिया के कारण हैं।

क्योंकि  जिस तरह से आपने प्रतिक्रिया की , जिस तरह से आपने इसे प्राप्त किया।

अन्यथा आदि शक्ति क्या है? किसी काम की नहीं।

यदि आप स्वीकार नहीं करते हैं, तो मैं कुछ भी नहीं  हूँ।

वास्तव में, फ़िर से मैं कहती हूँ, यह आपका विवेक, आपकी समझदारी, आपकी आपकी इच्छा है,

जो आपको सहज योग में ले आई है।

मैं कभी किसी को पत्र नहीं लिखती हूँ , मैं कभी किसी को फोन नहीं करती हूँ।

आप जानते हैं कि सभी गुरु ऐसा करते हैं।

जैसे ही वे किसी भी शहर में जाते हैं

वे सभी महत्वपूर्ण लोगों के नाम लिखते हैं, और फ़िर उन्हें पत्र भेजते हैं

और कम से कम दो-तीन मिल जाते हैं,  ऐसे कार्यक्रमों के लिए।

पर वह सब करे बिना ही, आप देखिए

कैसे हमने प्रबंधित किया है, इस सामूहिक कुंडलिनी जागरण को

जिससे लोग सहज योग को समझने लगे।

यह उनके भीतर घुसने लगा ।

अब उसके लिए, मुझे अपनी कुंडलिनी भी उसी तरह उठानी पड़ी ।

हर बार, सार्वजनिक कार्यक्रम में, मैं  मेरी कुण्डलिनी भी उठाती हूँ

और मेरी कुंडलिनी में ही मैं आपकी सभी समस्याओं को पकड़ती हूँ ।

यह पीड़ादायक है।

यही कारण है कि पूजा के बाद, मैं बन जाती हूँ बहुत, एक पत्थर की तरह,

मुझे कहना चाहिए, कुछ समय के लिए ।

कारण यह है कि मैं वह सब अवशोषित कर रही होती हूँ जो आपके भीतर है।

जैसे मैंने आप सभी को अपने शरीर में धारण किया है।

आप मेरे शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं।

हर कोशिका जो मेरे पास है, आपके लिए है, आपके निवास के लिए।

और आपको इतना सूक्ष्म होना है यह समझने के लिए

कि यदि हमारा स्वयं का कुछ है या यदि हमारे पास कुछ किया जाना है

सहज योग के लिए या कुछ भी

यदि हम आश्रम शुरू करना चाहते हैं, या कुछ भी, तुरंत मुझे पता चल जाता है।

मुझे कैसे पता चलता है, क्योंकि आप मेरे भीतर  हैं।

अधिकतर चीज़ें मैं बहुत स्पष्ट रूप से जानती हूँ।

परन्तु, इनमें से कुछ चीज़ें मैं उतना स्पष्ट रूप से नहीं जानती हूँ, एक  कारण से।

आपके और मेरे बीच का संबंध निस्संदेह बहुत अंतरंग है, कि आप मेरे शरीर में  रहें ।

परन्तु यदि आप लोग ध्यान नहीं कर रहे हैं

तो बहुत ही सांसारिक बात है, मुझे आपको बताना होगा, ‘ध्यानगम्य’।

यदि आप ध्यान नहीं कर रहे हैं, तो मेरा आपसे कोई संबंध नहीं है।

आपका मेरे साथ कोई रिश्ता नहीं है । मुझ पर आपका कोई अधिकार नहीं है।

आपके पास कोई प्रश्न नहीं है पूछने के लिए, यह क्यों हो रहा है, वह क्यों हो रहा है।

तो यदि आप ध्यान नहीं करते हैं

‘मैं हमेशा कहती हूँ कि ध्यान करो, ध्यान करो’, तो मेरा आपसे कोई लेना-देना नहीं है।

आप मेरे लिए नहीं हैं ।

आपका मुझसे कोई संबंध नहीं है।

फ़िर आप अन्य सभी लोगों की तरह हैं।

आप सहज योगी हो सकते हैं

आपको आपकी सहज योग की डिग्री मिल गई होगी अपने नेताओं से, हो सकता है

मुझे नहीं पता।

और हो सकता है कि आप कुछ बहुत उच्च कोटि के माने जाते हों ।

परन्तु , यदि आप अपना ध्यान नहीं करते हैं हर दिन, शाम, सुबह या शाम

तो आप वास्तव में श्री माताजी के राज्य में नहीं रहेंगे।

क्योंकि संबंध केवल ध्यान के माध्यम से है, ध्यान के माध्यम से।

मैं ऐसे लोगों को जानती हूँ जो ध्यान नहीं करते हैं।

फ़िर वे कष्ट भोगते हैं, उनके बच्चे कष्ट भोगते हैं, फ़िर कुछ होता है।

तब वे मेरे पास आना और बताना आरम्भ करते हैं।

परन्तु मैं स्पष्ट रूप से देखती हूँ कि वह व्यक्ति ध्यान नहीं कर रहा है।

मेरा उससे कोई संबंध नहीं है। उसे मुझसे कुछ भी पूछने का कोई अधिकार नहीं है।

आरम्भ में निस्संदेह, ध्यान में कुछ समय लगता है।

परन्तु एक बार जब आप जान जाएंगे कि ध्यान क्या है, कैसे आप मेरे सानिध्य का आनंद लेते हैं।

कैसे आप मेरे साथ एक हैं, कैसे हम एक दूसरे के साथ सौहार्द-स्थापित कर सकते हैं।

मध्य में कोई और चीज़ होने की आवश्यकता नहीं है।

जैसे पत्र लिखना या शायद किसी प्रकार का विशेष सम्बन्ध होना, ऐसा कुछ भी नहीं!

केवल एक चीज़ जिसकी आवश्यकता है, वह है ध्यान।

ध्यान में आप बढ़ते हैं।

उस में, आध्यात्मिक रूप से आप उच्च बनते हैं।

और जब ऐसा होता है, तो आप आरम्भ करते हैं,

एक तरह से, मैं कहूँगी, जब आप उस स्थिति में पहुँच जाते हैं, मुझे कहना चाहिए परिपक्वता की सहज योग में।

तब आप अपना ध्यान नहीं छोड़ना चाहते हैं।

क्योंकि उस समय, आप मेरे साथ पूर्णतः एक होते हैं।

इसका अर्थ  यह नहीं है कि तीन घंटे, चार घंटे आपको ध्यान करना चाहिए

परन्तु यह है कि आप मेरे साथ कितनी प्रचण्डता से हैं, यह महत्वपूर्ण है

अब यह नहीं है कि आप मेरे साथ कितना समय व्यतीत कर रहे हैं।

फ़िर मैं उत्तरदायी हूँ, आपके लिए, आपके बच्चों के लिए,  हर किसी के लिए

मैं उत्तरदायी हूँ , आपके उत्थान के लिए, आपकी रक्षा के लिए, आपको आपकी सारी नकारात्मकता से बचाने के लिए।

तो यह एक पिता की तरह नहीं है जो आपको सीधे दंड देंगे।

ऐसा नहीं है, परन्तु, यह बस ठीक है, आप से मेरा रिश्ता नहीं है, मैं पृथक हूँ ।

बस यही एक चीज़ हो सकती है।

यदि आप ध्यान नहीं कर रहे हैं, ठीक है, मैं आपको बाध्य नहीं कर सकती

मुझे आपसे कोई लेना-देना नहीं है।

आपके अन्य संबंध हो सकते हैं, बाहर की ओर, वाह्य रूप से।

परन्तु यह आंतरिक संबंध, जिसके द्वारा आप अपना परोपकार प्राप्त करते हैं।

आप नहीं पा सकते बिना ध्यान के ।

मैं आप सभी से कहती आ रही हूँ , कृपया ध्यान करें, कृपया हर दिन ध्यान करें।

परन्तु मुझे लगता है कि लोग भी इसका महत्व नहीं समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रही हूँ।

क्योंकि वे मुझे बताते हैं, “माँ, हम ध्यान नहीं करते हैं”।

“क्यों? “

” अब हम आत्मसाक्षात्कारी हैं, तो हमें ध्यान क्यों करना चाहिए ?”

अब यह यंत्र पूरी तरह से बना हुआ है।

परन्तु यदि यह पूरे समय बिजली के स्त्रोत से जुड़ा हुआ नहीं है, तो इसका क्या उपयोग है?

उस ध्यान में, आप प्रेम अनुभव करेंगे, दिव्य प्रेम, उस दिव्य प्रेम की सुंदरता को।

संपूर्ण परिदृश्य बदल जाता है।

एक ध्यान करने वाले व्यक्ति की एक बहुत ही अलग प्रवृत्ति होती है

एक बहुत ही अलग स्वभाव, एक बहुत ही अलग जीवन

और वह हमेशा अपनेआप से पूर्णतः संतुष्ट रहता है ।

अतः आज पहला दिन होने के नाते, जैसा कि आप कहते हैं, अवतार का।

कहने को, हम कह सकते हैं कि यह पहला दिन है जब अवतार का आगमन हुआ था।

जैसे कि हम आज पूजा कर रहे हैं।

निस्संदेह यह आज नहीं था, परन्तु फ़िर भी हम कह सकते हैं यदि  ऐसा है तो।

यदि ऐसा हुआ है और यह आपके लिए सहायक रहा है।

आपके लिए यह बहुत बड़ा आशीर्वाद रहा है।

तो इसे संरक्षित करने के बारे में जानना चाहिए,  जानना चाहिए इसे कैसे बढ़ाना है,

जानना चाहिए कि इसका आनंद कैसे लेना है।

आपको केवल एक से संतुष्ट नहीं होना चाहिए

या कह सकते हैं, एक नृत्य नाटक से, या एक इस बात, या उस बात से।

पर आपको पूर्ण एकात्मकता  होनी चाहिए दिव्य के साथ, पूर्ण एकात्मकता ।

और यह तभी संभव है जब आप वास्तव में ध्यान करें

जो कि करना बहुत आसान है, ध्यान करना ।

कुछ लोग कहते हैं, “माँ, हम समय की उपेक्षा नहीं कर पाते”, हम सोच नहीं सकते।

हम हर समय कुछ सोच रहे होते हैं।

या उस समय  हम घडी  देखना चाहते हैं।

आरम्भ  में हमें थोड़ी समस्या हो सकती है।

मैं यह नहीं कह रही  हूँ, आपको  नहीं हो  सकती, आपको हो सकती है।

परन्तु  यह केवल आरम्भ  में होती है।

परन्तु धीरे-धीरे आप  पूर्णतः ठीक हो जाएँगे।

धीरे-धीरे आप इसमें निपुण हो जाएँगे ।

धीरे-धीरे आप इतनी अच्छी तरह से इसे समझने लगेंगे कि आप तुच्छ प्रकार की कोई और चीज़ नहीं चाहेंगे।

आप ऐसी चीज़ों की परवाह नहीं करेंगे। आप देखिए

तो अपनी सुंदरता को पाने के लिए, अपने गौरव को पाने के लिए

अपने स्वयं के महान व्यक्तित्व को पाने के लिए, जो अब उजागर हो गया है।

केवल एक चीज़ जो आपको वास्तव में निष्ठापूर्वक करनी है वह है ध्यान ।

यह नहीं कि आज रात मैं बहुत देर से आया, तो मुझे ध्यान करने की आवश्यकता नहीं है।

कल, आप देखिए मुझे, काम के लिए जाना है तो मैं ध्यान नहीं कर सकता।

कोई भी बहाने नहीं जानना चाहता है । यह आपके और आपकी आत्मा के बीच है।

यह आपका लाभ है, किसी और का नहीं। 

यह आपके लाभ के लिए ही सब कुछ हो रहा है।

अब हमें जानना होगा कि हमने विकास की एक निश्चित ऊँचाई प्राप्त कर ली है।

और इस ऊंचाई से आप यहाँ तक जा सकते हैं, यहाँ तक, यहाँ तक ऊपर।

मैं यह नहीं कह रही हूँ कि ऐसा करना संभव नहीं है।

परन्तु सबसे प्रथम और महत्वपूर्ण बात

कि आप जो कुछ भी हों, हो सकता है कि आप बहुत उच्च श्रेणी के सहज योगी  माने जाते हों।

आपको ध्यान के बारे में विनम्र होना होगा।

यह ध्यानतत्परता का गुण, यहाँ तक कि जब मैं आपसे बात भी कर रही हूँ,

यह केवल, मैं इसमें सम्मिलित हो रही हूँ क्योंकि यह बहुत आनन्द देने वाला है।

आप बस आनंद के सागर में कूद जाते हैं।

शुरू में, यह कठिन  होगा

परन्तु  कुछ समय पश्चात  आपको पता चल जाएगा

कि यह संबंध जो आपका श्री माताजी के साथ है

केवल वही संबंध है जिसे आप खोज रहे थे।

और, एक और कारण है कि लोग (सहजयोग से) खो जाते हैं।

जो कि मैंने प्रायः देखा है कुछ लोगों के साथ, जो खो जाते हैं।

वे व्यक्तिगत रूप से ध्यान करते हैं, बहुत, यह बहुत सही है। व्यक्तिगत  रूप से वे ध्यान करेंगे।

और वे बैठेंगे, ध्यान करेंगे, हम पूजा करते हैं , हम करते हैं

परन्तु सामूहिक रूप से वे ध्यान नहीं करेंगे।

तो यह एक और कारण है जिसे याद रखना है, कि आपको सामूहिक रूप से ध्यान करना होगा।

क्योंकि मैं आप सभी का एक सामूहिक अस्तित्व हूँ ।

और जब आप सामूहिक रूप से ध्यान करते हैं, तो आप वास्तव में मेरे बहुत समीप होते हैं ।

तो यहाँ तक कि यदि आपका कोई कार्यक्रम या कुछ है, आपको उसके साथ कुछ ध्यान अवश्य करना चाहिए।

किसी भी कार्यक्रम के लिए ध्यान को प्राथमिकता के रूप में हमेशा रखें।

आप  गीत गाते हैं , समाप्त हो जाता है, सब हो जाता है, तब आप  ध्यान कर लीजिए।

अगर मैं किसी बात पर ज़ोर दे रही हूँ , तो आपको पता होना चाहिए कि यह अवश्य ही सत्य है जो मैं आपको बता रही हूँ।

पूर्ण रूप से इसका आधार, यद्यपि यह साधारण दिखता है, परन्तु यह बहुत महत्वपूर्ण है।

अब हमारा आदि शक्ति की पूजा करना, मुझे नहीं पता

या क्योंकि, नहीं है, कोई प्रार्थना या कुछ भी नहीं है आदि शक्ति के बारे में ।

वे भगवती तक गए हैं , परन्तु भगवती से आगे वे नहीं गए हैं ।

अतः मुझे नहीं पता कि किस तरह की पूजा आप करेंगे ।

परन्तु  कुछ करने का प्रयत्न करते हैं, हो सकता है!

मुझे लगता है कि ध्यान सबसे अच्छा तरीका है

जिससे हम वास्तव में कुछ प्राप्त कर सकते हैं, तो हम ध्यान में जा सकते हैं लगभग पाँच मिनट के लिए ।

क्या आप इसकी (स्पीकर की)मात्रा बढ़ा सकते हैं ?

कृपया अपनी आँखें बंद करें।

ग्यारह रुद्र जागृत हो गए हैं और वे नष्ट कर देंगे वह सब जो नकारात्मक है।

तो  क्या हम पूजा कर सकते हैं ?

आप सबको परमात्मा का अनंत आशीर्वाद।