Guru Puja: Creativity

Lago di Braies (Italy)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

                                                  गुरु पूजा

लागो डी ब्रे (इटली), 23 जुलाई 1989।

आज हमें उस अवस्था तक जिस में हम वास्तव में गुरु की पूजा कर सकते हैं पहुँचने के लिए सामान्य से थोड़ा अधिक समय व्यतीत करना पड़ा है। जब हम अपने गुरु की पूजा करते हैं, तो हमें यह जानना होता है कि वास्तव में हम अपने भीतर गुरु तत्व को जगाने का प्रयास कर रहे हैं। यह केवल ऐसा नहीं है कि आप यहां अपने गुरु की पूजा करने के लिए हैं। आप कई-कई बार पूजा कर सकते हैं, हो सकता है कि चैतन्य बहे, हो सकता है कि आप उससे भर जाएं और आप उत्थान महसूस करें, पोषित हों। लेकिन इस पोषण को हमें अपने भीतर बनाए रखना है, इसलिए हमेशा याद रखें कि जब भी आप बाहर किसी सिद्धांत की पूजा कर रहे होते हैं, तो आप उसी सिद्धांत की अपने ही भीतर पूजा करने की कोशिश कर रहे होते हैं।

जैसा कि आप जानते हैं, हमारे भीतर गुरु का सिद्धांत निहित है। नाभि चक्र के चारों ओर खूबसूरती से रचे गुरु तत्व को देखना बहुत दिलचस्प है। हमें कभी भी गुरुतत्त्व से जुड़ा कोई चक्र दिखाई नहीं देता। आप नाभि को देखते हैं, और चारों ओर भवसागर है। तो यह भवसागर जो कि भ्रम का सागर है, गुरु नहीं हो सकता। तो हमारे भीतर इस भवसागर में छिपे हुए चक्र हैं, जिन्हें जगाना है और प्रकाश में लाना है, अभिव्यक्त करना है। जैसा कि आप देख सकते हैं कि इस सिद्धांत की सीमाएं स्वाधिष्ठान चक्र की गति से बनती हैं।

स्वाधिष्ठान वह चक्र है जो आपको सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण चीज देता है, वह है रचनात्मकता। एक व्यक्ति जो गुरु है उसे स्वभाव से रचनात्मक होना चाहिए। यदि आप एक रचनात्मक व्यक्ति नहीं हैं तो आप गुरु नहीं बन सकते। उदाहरण के लिए, आपका सामना उन शिष्यों से होता है जिनके साथ आपको बातचीत करनी है।  गुरु रूप में आपकी ओर आकर्षित होने वाले लोगों अथवा शिष्यों को प्रभावित करने के लिए आपको ईश्वरीय चमत्कार का एक संसार बनाना होगा, यह प्रदर्शित करने के लिए कि आपके पास उनसे कहीं अधिक दिव्य आकर्षण है।

यदि आप एक अत्यंत ही सांसारिक प्रकार के व्यक्ति हैं, बहुत ही साधारण, एक सुंदर दोहा या एक सुंदर वाक्य, अथवा एक हास्य या मजाक, या एक सुंदर पेंटिंग या एक सुंदर टेपेस्ट्री या एक सुंदर घर नहीं बना सकते; यदि आपमें सृजनात्मकता की कमी है तो आपमें गुरु तत्व की कमी होगी, क्योंकि एक गुरु को साधारण लोगों में से कुछ असाधारण बनाना होता है। उसे एक पुराने क्षय हो रहे व्यक्तित्व से एक नया व्यक्तित्व बनाने में सक्षम होना चाहिए। तो पहला सिद्धांत आपको अपने भीतर समझना होगा कि आप किसी व्यक्ति में एक नए व्यक्तित्व का निर्माण करने में सक्षम हों।

 तो हम ऐसा कैसे करें? अवश्य ही कुण्डलिनी जगाने की शक्तियाँ आपके पास हैं, लोगों को ठीक करने की शक्तियाँ हैं, बड़ी-बड़ी बातें करने की या छोटी-छोटी बातें करने की शक्तियाँ आपके पास हैं। इन सबके बावजूद, यदि आप उन लोगों में से एक नया व्यक्तित्व नहीं बना सकते जिनके साथ आप व्यवहार कर रहे हैं, तो आप गुरु नहीं हैं। और नए व्‍यक्तित्‍व को एक विशेष व्‍यक्‍तित्‍व होना चाहिए जिसमें करुणा और गतिशीलता का एक बहुत ही अनूठा संयोजन हो। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आपको अपनी रचनात्मकता में करुणा की ऊर्जा का उपयोग करना है। आप केवल करुणा के माध्यम से ही लोगों को ढाल सकते हैं और क्रोध के माध्यम से कभी नहीं, दमन के माध्यम से कभी नहीं, गुरुत्व की अपनी शक्तियों को दिखाकर कभी नहीं। जब तक आप उस व्यक्ति को जिसे आप आत्मसाक्षात्कार दे रहे हैं, उस स्थिति को, काफी सावधानी से, उस व्यक्ति के प्रति सभी सम्मान, पूर्ण परवाह,  सारा प्यार प्रदर्शित करते हुए नहीं संभालते केवल यह दिखावा करना कि आप एक महान गुरु हैं, यह बस आपके बारे में एक प्रकार का भय पैदा करेगा, और कुछ समय बाद लोग आपका चेहरा नहीं देखना चाहेंगे।

तो गुरु तत्व के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको सृजन करना है। बहुत से लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिलता है, ठीक है, उन्हें आत्म बोध  होता है और फिर वे शायद किसी आश्रम में रहते हैं। वे पूजा में आते हैं, वे संगीत सुनते हैं, वे नृत्य कर सकते हैं, वे हंसते हैं, वे सामूहिक होते हैं, लेकिन फिर भी उनका गुरु तत्व तब तक जागृत नहीं होता जब तक कि उन्होंने कई, कई सहज योगियों, सहज योगियों को नहीं बनाया है। तो एक गुरु का दृष्टिकोण होना चाहिए, “मैं कितने सहज योगी बनाने जा रहा हूँ? मैं और अधिक सहजयोगी बनाने के लिए इस रचनात्मकता का उपयोग कैसे करूँ?”

तो स्वाधिष्ठान चक्र का आधार या सार, हालांकि सौंदर्य शास्त्र है, स्वाधिष्ठान चक्र की शक्ति और ऊर्जा चित्त है। अगर आपका चित्त भटकता है, अगर आपका चित्त एक मिनट यहां है, एक मिनट वहां है; यदि आपके पास ऐसा चित्त है जिससे आप केवल दूसरों की आलोचना कर सकते हैं और अपने दोषों को नहीं देख पाते हैं; यदि आपके पास ऐसा चित्त है जिससे आप लोगों को दिखाते हैं कि आप एक तुच्छ, निरर्थक व्यक्ति हैं, तो आपका गुरु सिद्धांत व्यर्थ चला जाता है।  सहज योग का यह जो प्रयास है व्यर्थ  चला जाता है, और आपके गुरु का कार्य भी व्यर्थ चला जाता है।

कम से कम, पहले चित्त शुद्ध होना चाहिए। लेकिन शुद्ध चित्त का मतलब रुखापन नहीं है, इसका मतलब तप करना भी नहीं है, इसका मतलब घोड़े की आँखों पर बंधे पर्दे की तरह से अपनी आंखों को अनुशासित करना नहीं है, बल्कि आपकी पूर्ण स्वतंत्रता में आपका चित्त एकाग्र होना है। हम सबसे ज्यादा चित्त कहाँ लगाते हैं? अगर हम ईमानदार हैं और हम मानवीय स्तर पर सोच पाते हैं तो हम अपने बच्चों पर, अपनी पत्नी पर, अपने पतियों पर, अपने परिवार पर, उन रिश्तों पर जो प्यारे हैं चित्त लगाते हैं। तो,जब आपके चित्त में किसी अन्य व्यक्ति के लिए करुणा और प्रेम हो, तभी आप दूसरों के आत्मसाक्षात्कार का कार्य कर सकते हैं। यदि आपको अन्य लोगों के आत्मसाक्षात्कार को कार्यान्वित करना है, तो आप में किसी अन्य व्यक्ति के लिए एक गहन प्रेम होना चाहिए। यदि आपके प्रेम में वह तीव्रता नहीं है, तो चूँकि आपकी माँ ने आपको शक्तियाँ दी हैं, आप बस कुंडलिनी को ऊपर उठाते हुए अपने हाथ हिला रहे हैं और बस यह समाप्त हो गई है। आपके शुद्ध चित्त के साथ प्यार की वह तीव्रता आपको सफलता दिला सकती है, और मुझे लगता है कि केवल शुद्ध चित्त ही प्यार कर सकता है। अशुद्ध चित्त प्रेम नहीं कर सकता, क्योंकि सारा अशुद्ध चित्त स्व-उन्मुख है, मैं-उन्मुख है। वे “आध्यात्म-उन्मुख” अर्थ में “स्व” नहीं हैं। लेकिन यह विचार कि आध्यात्मिकता प्रेम है, बहुत से लोगों के लिए यह एक नया विचार प्रतीत होता है। उन्हें लगता है कि आध्यात्मिकता का मतलब एक ऐसे व्यक्ति से है जो फली के डंठल की तरह बिल्कुल शुष्क है और कोई भी उस व्यक्ति के पास नहीं जा सकता है, कोई भी ऐसे व्यक्ति से संवाद नहीं कर सकता है क्योंकि वह व्यक्ति “बहुत शुद्ध” है। अगर साबुन आपके शरीर को साफ नहीं कर सकता है, तो साबुन होने का क्या फायदा? अगर साबुन आपके पास आने से डरता है, तो बेहतर है कि आप साबुन न कहलाएं।

तो हम इस मुद्दे पर आते हैं कि रचनात्मकता, यदि यह हमारा लक्ष्य है, लक्ष्य, उसके लिए हमें चित्त को शुद्ध करना चाहिए, और प्रेम से, करुणा के माध्यम से शुद्ध करना चाहिए। और वही चित्त जब प्रेम और करुणा से भरा होता है तो यह आपको बहुआयामी बनाता है, यह आपको शक्ति देता है, यह आपको अथक उत्साह देता है। और किसी अन्य व्यक्ति में अपने प्रतिबिंब को देखने का आनंद बहुत सुंदर है। कोई भी शब्द इसका वर्णन नहीं कर सकता। असल में जब आप किसी दूसरे व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार देते हैं, तो आप उस व्यक्ति में अपनी छवि देखने की कोशिश करते हैं, जैसे कि आप एक साधारण कांच को एक सुंदर दर्पण में रूपांतरित कर रहे हों और फिर आप उसे देखना चाहते हैं। इस तरह आप सृजन करते हैं, आप अपने स्वयं के प्रतिबिंब बनाते हैं और परावर्तकों की सफाई के माध्यम से, तब एक बारगी  आप यह समझ जाते हैं कि रचनात्मकता के बिना यह गुरु पूजा आपके लिए बेकार है। यदि आप सिर्फ अपने लिए, अपने परिवार के लिए, अपने पति के लिए या सिर्फ एक आश्रम के लिए जीते हैं, तो आपने बिल्कुल भी विस्तार नहीं किया है, आपने अपने गुरु के प्रति कोई कर्तव्य नहीं निभाया है।

बेशक, जैसे ही आप इस सिद्धांत को अपनाते हैं, आप अपने भीतर बहुत सारे गुण विकसित कर लेते हैं। सबसे पहले आप में जो विकसित होता हैं वह विवेक है, क्योंकि आपको एहसास होता है कि आप कहां गलत हो रहे हैं, यह काम क्यों नहीं कर रहा है, कोई समस्या क्यों है, आपकी रचनात्मकता काम क्यों नहीं करती है। यह तुम्हारे लिए स्पष्ट हो जाता है, तुम्हारे लिए स्पष्ट हो जाता है और तुम सीखना शुरू कर देते हो; और आपको विवेक प्राप्त होता है, और आप समझ जाते है कि, विवेक तब है जब आप अपनी गलतियों को महसूस करते हैं और उन्हें सुधारते हैं, और इसके साथ आप संतुलन,और  कि दूसरे व्यक्तित्व से व्यवहार करने की समझ विकसित करते हैं। मैं हमेशा एक कार की कहानी कहती हूं, कि उसमें एक्सीलेटर भी है और ब्रेक भी है। शुरुआत में आपको दोनों का उपयोग करना होगा बिना यह समझे कि यह क्या है, फिर भी आप गुरु नहीं हैं, आप ड्राइवर भी नहीं हैं। फिर जब आप जान जाते हैं तो आप स्वचालित रूप से ड्राइव करते हैं; तो तुम ड्राइवर हो जाते हो, लेकिन फिर भी मालिक पीछे बैठा है। तो अब आपको स्वामी बनना है, और जब आप स्वामी बन जाते हैं तो आप वाहन को संतुलित कर सकते हैं और आप ड्राइवर, एक्सीलेटर और ब्रेक को भी देख सकते हैं। और आप इसे बहुत ही सरल तरीके से संचालित कर सकते हैं।

तो यह गुरु तत्व सीमित है, और क्षितिज की तरह अपनी सीमाओं को बढ़ाता चला जाता है। जैसे-जैसे आप अधिक रचनात्मकता में बढ़ने लगते हैं, उतने ही अधिक लोग आप बना पाते हैं। और इसका केंद्र बिंदु नाभी है, यह वह चक्र है जो एक बड़े धुरी बिंदु की तरह है जिस पर यह सारी गतिविधि होती है। नाभि चक्र जैसा कि आप जानते हैं, शुरुआत में आप इसे अपनी मां से प्राप्त करते हैं| तो एक गुरु को माँ होना चाहिए, उसमें माँ के गुण होने चाहिए, आधुनिक माताओं की तरह नहीं, लेकिन शब्द के वास्तविक अर्थों में। अर्थात एक गुरु को अपने बच्चों से प्यार करना होता है और अपने बच्चों को सुधार करने के लिए शक्ति और साहस रखना होता है। और बच्चों को मार्गदर्शन करने और उन्हें ऊपर उठने में मदद करने के लिए बच्चों को सही रास्ते पर लाने की सच्ची इच्छा होनी चाहिए। तो पहला पोषण हमें तभी मिलता है जब हम मां के गर्भ में होते हैं, मां के द्वारा; और इसलिए आप माँ हैं, भले ही आप पुरुष या महिला हों, लेकिन गुणवत्ता में आप माँ हैं। और आप जो भी सोचते हैं या जो कुछ भी करते हैं उसका प्रभाव बच्चे पर पड़ता है। आप जिस तरह से व्यवहार करते हैं, जिस तरह से बात करते हैं, जिस तरह से आप रहते हैं, सब कुछ बच्चे के विकास पर असर डालता है। उसी तरह जब, एक सहजयोगी जो आत्मज्ञान देने की कोशिश कर रहा है, यदि एक पाखंडी व्यक्ति है, अगर वह एक गलत प्रकार का व्यक्ति है, अगर वह अपने गुरु का सम्मान नहीं करता है, तो बच्चे उसी तरह का व्यवहार करते हैं और वे गलत चीज़ों को जल्दी अपनाते हैं, वे पहले गलत चीजों को देखते हैं। तो आपको अपने गुरु के प्रति अपने व्यवहार में निपुण होना होगा, आपको अपने गुरु का पूर्ण रूप से सम्मान करना होगा। अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण महत्वपूर्ण है; तब वे देखेंगे कि आपने अपने गुरु के साथ कैसा व्यवहार किया है, और वे आपके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे। यदि आप अपने गुरु के साथ उस सम्मान के साथ, उस समझ के साथ, उस समर्पण के साथ व्यवहार नहीं करते हैं, तो यह अपेक्षा न करें कि आपके बच्चे या जिन लोगों का आप मार्गदर्शन कर रहे हैं, वे आपका सम्मान करने वाले हैं।

तो यह गुरु सिद्धांत हमारे भीतर एक महान ऋषि या एक महान द्रष्टा की तरह होना चाहिए, जो सामान्य सांसारिक लोगों से ऊपर है और चीजों को उचित परिप्रेक्ष्य में देखता है, और इस सभी परिप्रेक्ष्य की उचित समझ अपने शिष्यों को देता है, उन्हें विकृत या गलत विचार नहीं देता। अब कोई कह सकता है कि, “माँ, ऐसा कैसे संभव हो सकता है कि हम प्यार भी व्यक्त कर सकें और उन्हें सच भी बता सकें?” आपको कल्याण होने की देखभाल करनी है – हित। आपको अपने शिष्य के कल्याण का ध्यान रखना होगा। ऐसा प्रतीत हो सकता है कि आप उस व्यक्ति को आज जो कुछ कह रहे हैं, वह उसे पसंद नहीं आएगा, लेकिन एक दिन आएगा जब वह सोचेगा, “भगवान का शुक्र है कि आपके गुरु ने आपको सुधारा है और आपको सही रास्ते पर रखा है।” यदि शिष्य का लक्ष्य उत्थान नहीं है, बस किसी प्रकार के उद्देश्य के लिए वहां रहना है, तो ऐसे शिष्यों का न होना ही बेहतर है। इस प्रकार का कोई भी व्यक्ति जो वहां अपने स्वयं के उत्थान के लिए नहीं अपितु किसी अन्य लाभ के लिए हो जो बिल्कुल फ़ालतू हो।

 कभी-कभी यह सवाल भी उठता है कि प्यार कैसे करें? यह एक बहुत ही मजेदार सवाल है कि हम इंसानों से प्यार करना नहीं जानते। हम अपनी चीजों से प्यार कर सकते हैं, हम अपनी फ़ालतू चीजों से प्यार कर सकते हैं, हम किसी तरह के खूबसूरत दृश्यों से इसलिए प्यार कर सकते हैं क्योंकि यह हमें खुशी देता है। हम किसी अच्छे रेस्तरां से प्यार कर सकते हैं क्योंकि आपको वहां अच्छा खाना मिल सकता है, या कोई ऐसी चीज जो बहुत ही निम्न प्रकृति की हो। लेकिन प्यार के लिए प्यार का अर्थ यह है कि जब आप वास्तव में प्यार के लिए प्यार करते हैं, तो आप उस प्यार को किसी और में डालने या प्रत्यारोपित करने की कोशिश करते हैं, कि आप दूसरे व्यक्ति को अपने जैसा प्यारा बना लें।

अगर आप यह समझ लें कि हमें अपनी सारी प्रगति, अपना सारा प्रेम, अपनी सारी हरकतों, अपने सारे व्यवहार, अपनी सारी समझ को प्रेम पर आधारित करना होगा तब तो हमारी सारी कार्य प्रणाली ही भिन्न हो जाती है| अन्यथा आपका गुरु तत्व बेहद कमजोर है, और कुछ समय बाद आप पाएंगे कि आप सहज योग के किनारे से बाहर खड़े हैं।

कोई भी जो आसक्त या पक्षपाती है और जिसके पास कंडीशनिंग(संस्कार) हैं, वह गुरु नहीं बन सकता, नहीं बन सकता; क्योंकि अगर वह तथाकथित हो भी जाए, तो वे सारी बातें उस व्यक्ति में प्रतिबिम्बित होंगी। या यूं कहें कि अगर वह बहुत अहंकार से भरा हुआ है, अपना कोई पार नहीं समझता है और सोचता है कि, “मैं एक महान गुरु हूं,” वह अहंकार भी व्यक्त होगा। माना कि, ऐसा गुरु बहुत अधिक बातें करता है, तो उनके शिष्य की भी वैसी ही शैली होगी। यदि वह शांत प्रकार का है, तो आप शिष्य को भी उसी शैली का पाते हैं। अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि पहले हमें अपना गुरु तत्व को विकसित करना होगा। यदि हम इसे विकसित नहीं कर सकते हैं, तो कोई भी गुरु पूजा करने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि यह सिर्फ अस्थायी है, जब तक और जहाँ तक आप वास्तव में यह तय नहीं करते हैं कि आप अपने गुरु सिद्धांत का पोषण और विकास और स्थापना करने जा रहे हैं, यह आपकी बहुत मदद करने वाला नहीं है।

इसलिए आज जब आप मुझे गुरु के रूप में पूज रहे हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि मेरी कितनी भी बात, मेरा आपको कितना भी आशीर्वाद या कुछ भी देना काम नहीं करता है, जब तक कि हम वास्तव में अपने स्वयं के गुरु सिद्धांत, और गहराई को विकसित नहीं करते हैं। क्योंकि एक गुरु अपने शिष्य को भवसागर पार करवाता है, वह उस नाव की तरह है जो अपने शिष्यों को ले जाती है और प्यार और उचित दिशा के साथ पार करती है। यह आप सभी के साथ होना है। वैसे तो आप सभी आत्मसाक्षात्कारी हैं और जैसा कि मैंने आपको बताया है, आप सभी देवदूत हैं। लेकिन अगर आप अपने गुरु सिद्धांत को स्थापित नहीं करते हैं, तो आप देवदूतों के बारे में जानते हैं कि वे कैसे नीचे गिरे और हमेशा के लिए चले गए। इसलिए सावधान रहें: फरिश्ता बनना आसान है लेकिन उसे बनाए रखना मुश्किल है। देवी-देवता बनना मुश्किल है, लेकिन इसे बनाए रखना आसान है।

तो आप सब यहाँ हैं। मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि आप मुझे अपने गुरु के रूप में पूजने आए हैं। और मैं अपेक्षा करूँगी कि मेरे बच्चे मेरी छवि के अनुरूप हैं। कि मेरी छवि ऐसी हो कि मेरे बच्चे मेरी छवि के साथ उस एकाकारिता को महसूस करें, और मैं इतने सारे बच्चों की गौरवशाली मां बनूं जो इतने सारे देशों से आए हैं।

परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें।

अब यहाँ इतने सारे लोगों के साथ, यहाँ इतने सारे बच्चे हैं, हम सभी बच्चों को सिर्फ मेरे पैर धोने के लिए ले सकते हैं, और उसके बाद हमें कुछ लड़कियों की आवश्यकता होगी जो  हम कह सकते हैं, सोलह वर्ष से लेकर इक्कीस वर्ष तक की हों। और फिर कुछ महिलाएं देवी शक्ति की पूजा करने के उद्देश्य से। शक्ति के बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता है। इसलिए पहले बच्चों को सिर्फ पैर धोने के लिए ऊपर आना होगा।

और मैं आशा करती हूँ कि विश्व के नेता भी यहां होंगे। अभी, वे गुरु की छवि में हैं। और नेताओं को कुछ खास होना चाहिए। यदि आप एक साधारण, सांसारिक प्रकार के व्यक्ति हैं तो आप नेता नहीं हैं।

अब संगीतकार कहां हैं? संगीतकार कहाँ हैं? ठीक है। तो आपको पहले अथर्वशीर्ष बोलना होगा, और फिर आपको गणेश स्तुति गाना होगी, या हो सकता है कि कुछ अन्य चीज़ जो आप गणेश के बारे में जानते हों।