Birthday Puja: Introspection New Delhi (भारत)

जन्मदिवस पूजा दिल्ली, १९ मार्च, १९८९  सहजयोग के काम में व्यस्त न जाने कैसे समय बीत जाता है। अब करिबन अठारह साल से सहजयोग कर रहे हैं और उसकी प्रगती अब काफी हो रही है। आपने देखा किस तरह से इसकी प्रगती बढ़ रही है। अब जन्मदिन के दिन अब हमारे तो आपकी सबकी स्तुति करनी चाहिए और सब अच्छा ही कहना चाहिए। लेकिन एक ही बात मुझे जो समझ में आती है, जो कहनी चाहिए वो है कि अपनी गहराई को बढ़ाना है। अपनी गहराई को बढ़ाना बहुत जरुरी है और ये गहराई हमारे अन्दर है, कहीं ढूँढने नहीं जाना है, अपने ही अन्दर बस, ये गहराई है। लेकिन जब हम गहराई को बढ़ाते हैं तो ये देखना चाहिए कि हम स्वयं कहाँ खड़े हैं। इसको पहले जान लेना चाहिए कि हम स्वयं कहाँ खड़े हैं। और उसे जानने के लिए एक तरीका है, सहज सरल तरीका है कि अपनी ओर दृष्टि करें। जैसे कि हमारा व्यवहार कैसा है?  हम क्या करते हैं?  हम किस तरह से अपने मन में विचार लाते हैं?  हमारे तौर-तरीके कैसे हैं?  हम अपने को कहाँ तक सीमित रखते हैं।  जैसे शुरुआत में जब दिल्ली में काम शुरू किया तो लोगों के तो अन्दाज ही और थे।  मैं तो एकदम सकुचा गयी थी, क्योंकि उस वक्त किसी को कुछ मालूम ही नहीं था पूजा के बारे में। सब प्लास्टिक के डिब्बियों में सामान-वामान लेकर के सब लोग पहुँचे तो मेरी तो हालात ही खराब हो गयी। मैंने कहा कि अब तो इनका क्या होगा, Read More …

Public Program, Satya aatma ke prakash men hi jana ja sakta hai (भारत)

Sarvajanik Karyakram 12th March 1989 Date : Noida Place Public Program Type Speech Language Hindi सत्य को खोजने वाले सभी साधकों को हमारा प्रणाम ! सब से पहले तो बड़ी दुःख की बात है, कि इतनी देर से आना हुआ और एरोप्लेन ने इतनी देरी कर दी और आप लोग इतनी उत्कंठा से और इतनी सबूरी के साथ सब लोग यहाँ बैठे हये हैं। और हम, असहाय माँ, जो सोच रही थी कि किस तरह से वहाँ पहुँच जायें? आप लोगों को देख कर ऐसा लगता है, कि ये दुनिया बदलने के दिन आ ही गये हैं। आपकी उत्कंठा बिल्कुल जाहीर है। और आपकी इच्छा यही है, कि हम सत्य को प्राप्त करें। सत्य के बारे में एक बात कहनी है, कि सत्य जैसा है वैसा ही है। अगर हम चाहें कि उसे हम बदल दें, तो उसे | बदल नहीं सकते। और अगर हम चाहे कि अपने बुद्धि या मन से कोई एक धारणा बना कर उसे सत्य कहें, तो वो सत्य नहीं हो सकता। तो सत्य क्या है? सत्य एक है कि हम सब आत्मा है। हम आत्मास्वरूप है। इतनी यहाँ सुंदरता से आरास की हुई है और इतने दीप जलायें हैं, जिन्होंने प्रकाश दिया है। जिससे हम एकद्सरे को देख रहे हैं और जान रहे हैं। पर अगर यहाँ अज्ञान का अंधेरा हों, अंधियारा छाया हुआ हो और हम उस अज्ञान में खोये हये हैं, तो एक ही बात जाननी चाहिये, कि हम सब प्रकाशमय हो सकते हैं और हमारे अन्दर भी दीप जल सकता है। और Read More …

Mahashivratri Puja New Delhi (भारत)

Mahashivaratri Puja 6th March 1989 Date : Place Delhi Type Puja : Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] रहे हैं लेकिन मुझे भी तो कुछ देना चाहिए। इस कलयुग में ईमानदारी से जो काम किया जाता है उसके लिये काफी विपत्तियाँ, आपत्ति, संकट उठाने पड़ते हैं। हालांकि सबसे बड़ा समाधान ये है कि हम लोग इंमानदार हैं। और सहजयोग में एक बात जाननी चाहिए कि जो चीज़ जिस वक्त बननी है उस वक्त जुरूर बन जाएगी, उसमें रुकावट नहीं हो सकती। गर कोई रुकावट हुई हैं तो जुरूरी आपमें अभी कमी रह गई है। इसको बनाने में जो थरी, गर समय उसमें ज्यादा लग गया यो कम लग गया, रुपया अधिक लगा या कम लगा, ये सब जरूरी थे इसलिए किसी भी चीज़ में दोष निकालना कुछ एक खेल है, ये सब एक खेल है और इस नहीं चाहिए, लेकिन उसका आनन्द पूरा प्राप्त करना चाहिए। अब हमें सोचना चाहिए कि दिल्ली में सबसे पहले हिन्दुस्तान का, सहजयोग का आश्रम बनाया गया जो अभी तक सारे भारत वर्ष में कोशिश करने से भी नहीं बना। ये कोशिश अठारह साल से हो रही थी और आज ये आश्रम देखकर मुझे बड़ा आनन्द आया। इसका पूरा उत्तरदायित्वच आप लोगों ने और किस तरह से इस चीज को बनाइएगा। सिर्फ लिया था और सारा श्रम आपने किया और इसका श्रेय भी, सारा Credit भी आप ही को है। जब आप लोग मुझे किसी चीज़ का श्रेय देते हैं तो मेरी समझ में नहीं आता है कि आप Read More …

Shri Mahalakshmi Puja New Delhi (भारत)

महालक्ष्मी पूजा दिल्ली, ३/११/१९८६ इस नववर्ष के शुभ अवसर पर दिल्ली में हमारा आना हआ और आप लोगों ने जो आयोजन किया है ये एक बड़ी हुआ महत्त्वपूर्ण घटना होनी चाहिए। नववर्ष जब शुरू होता है तो कोई न कोई नवीन बात, नवीन धारणा, नवीन सूझबूझ मनुष्य के अन्दर जागृत होती है। वो स्वयं होती है। जिसने भी नवीन वर्ष की कल्पना बनाई है वो कोई बड़े भारी द्रष्टा रहे होंगे कि ऐसे अवसर पर प्रतीक रूप में मनुष्य के अन्दर एक नई उमंग, एक नया विचार, एक नया आन्दोलन जागृत हो जाए । ऐसे अनेक नवीन वर्ष आये और गये, नई उमंगे आयी, नई धारणाऐं आयी और खत्म हो गयी। मनुष्य की आज तक की जो धारणाऐं रही है, एक परमात्मा को छोड़कर बाकी सब मानसिक क्रियाऐं या बौद्धिक परिक्रियाऐं थी। मनुष्य अपनी बुद्धि से जो भी ठीक समझता था उसका आन्दोलन कुछ दूर तक जा के फिर न जाने क्यों हटा और उसी विशेष व्यक्ति को और उसी समाज को या उस समय में रहने वाले लोगों पर आघात पहुँचा । इसका कारण क्या था ये लोग नहीं समझ सके। लेकिन आज हमें इसका साक्षात बहत ज्यादा अधिक स्पष्ट रूप से हो रहा है। जैसे कि धर्म की व्यवस्था हुई। धर्म की व्यवस्था में मनुष्य ने जब भी बुद्धि और मानसिक शक्तियों का उपयोग किया, तो बुद्धि के दम से वो एक वाद- विवाद के क्षेत्र में बंध गया और अनेक वाद-विवाद शुरू हो गये। गर सत्य एक है…. तो पन्थ इतने क्यो हुए? इतने धर्म क्यों हुए? Read More …

Public Program, Sahajyog Ke Anubhav कोलकाता (भारत)

Sahajyog Ke Anubhav 31st March 1986 Date : Place Kolkata Public Program Type Speech Language Hindi सत्य को खोजने वाले सभी साधकों को हमारा प्रणिपात! सत्य क्या है, ये कहना बहुत आसान है। सत्य है, केवल सत्य है कि आप आत्मा हैं। ये मन, बुद्धि, शरीर | अहंकारादि जो उपाधियाँ हैं उससे परे आप आत्मा हैं। किंतु अभी तक उस आत्मा का प्रकाश आपके चित्त पर | आया नहीं या कहें कि आपके चित्त में उस प्रकाश की आभा दृष्टिगोचर नहीं हुई। पर जब हम सत्य की ओर नज़र करते हैं तो सोचते हैं कि सत्य एक निष्ठर चीज़ है। एक बड़ी कठिन चीज़ है। जैसे कि एक जमाने में कहा जाता था कि ‘सत्यं वदेत, प्रियं वदेत।’ तो लोग कहते थे कि जब सत्य बोलेंगे तो वो प्रिय नहीं होगा। और जो प्रिय होगा वो शायद सत्य भी ना हो। तो इनका मेल कैसे बैठाना चाहिए? श्रीकृष्ण ने इसका उत्तर बड़ा सुंदर दिया है। ‘सत्यं वदेत, हितं वदेत, प्रियं वदेत’ । जो हितकारी होगा वो बोलना चाहिए। हितकारी आपकी आत्मा के लिए, वो आज शायद दुःखदायी हो, लेकिन कल जा कर के वो प्रियकर हो जाएगा। ये सब होते हुए भी हम लोग एक बात पे कभी-कभी चूक जाते हैं कि परमात्मा प्रेम है और सत्य भी प्रेम ही है। जैसे कि एक माँ अपने बच्चे को प्यार करती है तो उसके बारे में हर चीज़ को वो जानती है। उस प्यार ही से उद्घाटन होता है, उस सत्य को जो कि उसका बच्चा है। और प्रेम की भी Read More …

Public Program, Satya मुंबई (भारत)

1986-01-21 Public Program: Satya, Mumbai (Hindi) सत्य का स्वरूप, मुंबई 21/01/1986 बंबई शहर के सत्यशोधकों को हमारा प्रणिपात। सत्य की खोज के बारे में अनादि काल से इस देश में अनेक ग्रंथ लिखे गए हैं। इसकी वजह यह है, कि इस भारत वर्ष की जो भूमि है, इस भूमि में बहुत से आशीर्वाद छिपे हुए हैं, जिसके बारे में हम जानते नहीं। यहां की आबोहवा इतनी अच्छी है, कि आप जब घर से निकलते हैं, आपको जैसे लंदन में लबादे लबादे लादने पड़ते हैं और निकलने से पहले 15 मिनट तैयार होना पड़ता हैं, ऐसी कोई आफत नहीं। बाहर आते ही प्रच्छन्न ऐसी सुंदर प्रच्छन्न हवा बहती रहती है। यहां एक इंसान जंगलों में भी, पहाड़ी में भी, झरनों के पार, नदियों के किनारे, बड़े आराम से अपना जीवन बिता सकता है। यह हालत किसी भी देश में इतनी अच्छी नहीं है। या तो देश बहुत ज्यादा गर्म है, या बहुत ज्यादा ठंडे हैं। अतिशय्ता की प्रकृति होने की वजह से वहां पर लोगों को हर समय प्रकृति से झगड़ना पड़ता है, और ये संग्राम करते करते लोगों की वृत्ति आक्रमक; आक्रमण करने वाली हो जाती है। आप आक्रमणकारी हो जाते हैं। जब पहली मर्तबा मैं लंदन गई थी, तो मैं सोचती थी कि यहां कोई प्रकोप है परमात्मा का कि श्राप है, कि आप बाहर एक मिनट भी खड़े नहीं हो सकते। शुद्ध हवा आप एक मिनट भी नहीं ले सकते। घर से निकलीये तो बंद, मोटर में बैठिए दौड़ कर और फिर जहां भी जाइए वहां से दौड़कर Read More …

Public Program Jaipur (भारत)

जयपुर के सर्व सत्य शोधकों को हमारा प्रणाम। जीवन में हर मनुष्य अपनी धारणा के बूते पर रहता है। जो भी धारणा वो बना लेता है उसके सहारे वह जीता है। लेकिन एक कगार ऐसी ज़िन्दगी में आ जाती है, जहाँ पर जा कर वह यह सोचता है, कि, “मैंने आज तक जो सोचा, जो धारणाएं लीं, वो फलीभूत नहीं हुईं। उससे मैंने आनंद की प्राप्ति नहीं की, उससे मुझे समाधान नहीं मिला, उससे मैंने शांति प्राप्त नहीं की।” जब वो कगार मनुष्य के सामने खड़ी हो जाती है, तब वो अपनी धारणाओं के प्रति शंकित हो जाता है। और उस वक़्त वो ढूँढने लग जाता है कि इससे परे कौन सी चीज़ है, इससे परे कौन सी दुनिया है, जिसे मुझे प्राप्त करना है। ये जब शुरुआत हो जाती है, तभी हम कह सकते हैं, कि मनुष्य एक साधक बन जाता है। वो सत्य के शोध में न जाने कहाँ-कहाँ भटकता है। कभी-कभी सोचता है कि, बहुत सा अगर हम धन इकठ्ठा कर लें, तो उस धन के बूते पे हम आनंद को प्राप्त कर लेंगे। फिर सोचता है कि हम सत्ता को प्राप्त कर लें – सत्ता को प्राप्त करने से ही हम आनंद को प्राप्त कर लेंगे। फिर कोई सोचता है कि अगर हम किसी मनुष्य मात्र को प्रेम करें, तो उसी से हम सुख को प्राप्त कर लेंगे। उससे आगे जब वो विशालता पे उठता है, तो ये सोचता है कि, हम प्राणी मात्र की सेवा करें, उनकी कुछ भलाई करें, उनके उद्धारार्थ कोई कार्य करें, Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

Debu Chaudhuri plays raag Kambhoji on sitar, in the presence of Shri Mataji in a public program in Delhi, Feb 8th 1983, (part 2) Followed by a Hindi talk given by Shri Mataji. The sitar represents the Sahasrara chakra. Sahaja Yogis want to give a cushion to Shri Mataji but She refuses. Then they want to garland Her and She asks them instead to garland the artist. Everybody applauds. But Debu Chaudhuri refuses to be garlanded in place of Shri Mataji so he puts the garland around the head of his student (who is playing tempura). Everybody laughs. A senior Sahaja Yogi makes a small speech: My dear brothers and sisters, music is the nearest thing to God on earth. Mataji has often said the way to please God and His devotees is through music sound of devotion…He introduces the tabla player, an equally renowned artist. Shri Mataji seems to explain to Debu Chaudhuri that it is not a puja but a spiritual event. Shri Mataji: Now, I must say, that artist himself being a Realized soul, I’m just working on your Kundalini, I need not speak much. It’s working out. So don’t get impatient, this is also, is a silent speech of God’s music. So you just don’t get impatient about it. I’am also enjoying very much. May God bless you. Since Kambhoji, he’s going to play just now. Debu Chaudhuri: Well, it is my great pleasure, in a way, I requested Mataji to give Her blessings to all Read More …

The Power of Brahma New Delhi (भारत)

“The Power of Brahma”, Public Program,  Delhi (India), 11 March 1981. [Hindi translation from English] उस दिन मैंने आपको बताया था कि चैतन्य लहरियाँ ब्रह्मशक्ति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं–ब्रह्मा की शक्ति | ब्रह्मा की शक्ति वह शक्ति है जो सृजन करती है, इच्छा करती है, उत्क्रान्ति करती है तथा आपको जीवन्त-शक्ति प्रदान करती है। यही शक्ति हमें जीवन्त शक्ति प्रदान करती है | अब ये समझना सुगम नहीं है की मृत शक्ति क्या है और जीवन्त शक्ति क्या है।.जीवन्त शक्ति को समझना अत्यन्त सुगम है। कोई पशु या हम कह सकते हैं, एक छोटा सा कीड़ा जीवन्त शक्ति है। इच्छानुसार ये अपने को घुमा सकता है, किसी खतरे से अपनी रक्षा कर सकता है | ये जितना चाहे छोटे आकार का हो परन्तु जीवन्त होने के कारण ये अपनी रक्षा कर सकता है। परन्तु कोई भी मृत चीज़ अपने आप हिलडुल नहीं सकती। जहाँ तक ‘स्व’ (self) का प्रश्न है वह तत्व इस में नहीं होता। जीवन्त शक्ति होने के नाते अब हमें यह पता लगाने का प्रयत्न करना चाहिए कि, “क्या हम जीवन्त शक्ति बनने वाले हैं या जीवन- विहीन |” इस विश्व में रहते हुए हम अपनी सुख सुविधाओं के विषय में सोचने लगते हैं कि हमें कहाँ रहना है और क्या करना है। जब हम इन चीजों के विषय में सोचते हैं तो हम मत्त चीज़ों के विषय में सोच रहे होते हैं| परन्तु जीवन्त कार्य करने के लक्ष्य से जब हम कोई स्थान, कोई आश्रम प्राप्त करने के विषय में सोचते हैं तब हम उस Read More …

Seminar for the new Sahaja yogis Day 3 Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

1980-01-30, Seminar for the new Sahaja yogis Day 3, Bordi 1980 (Hindi) और जाते समय, आप सब लोगों को, यहाँ पर छोड़ के, इतनी प्यारी तरह से, इन्होंने, अपने हृदय से निकले हुये शब्द कहे, जिससे, चित्त बहुत खिच सा जाता है। आजकल के जमाने में, जब प्यार ही नहीं रह गया, तो प्रेम का खिंचाव और उससे होने वाली, एक आंतंरिक भावना भी संसार से मिट गयी है। मनुष्य हर एक चीज़ का हल बुद्धि के बूते पर करना चाहता है। बुद्धि को इस्तेमाल करने से मनुष्य एकदम शुष्क हो गया। जैसे उसके अन्दर का सारा रस ही खत्म हो गया और जब भी कभी, कोई भी आंतरिक, बात छिड़ जाती है तो उसके हृदय में कोई कंपन नहीं होता, क्योंकि हृदय भी काष्ठवत हो गया। न जाने आज कल की हवा में ऐसा कौनसा दोष है, कि मनुष्य सिर्फ बुद्धि के घोड़े पे ही चलना चाहता है, और जो प्रेम का आनन्द है उससे अपरिचित रहना चाहता है। लेकिन मैं तो, बहुत पुरानी हूँ, बहुत ही पुरानी हूँ और मैं मॉडर्न हो नहीं पाती हूँ। इसलिये ऐसे सुन्दर शब्द सुन के, मेरा हृदय बहुत ही आंदोलित हो जाता है । लेकिन आज कल की, बुद्धि भी, अब हार गयी। अपना सर टकरा टकरा के हार गयी है। और जान रही है कि उसने कोई सुख नहीं पाया, कुछ आनन्द नहीं पाया। उसने जो कुछ भी खोजा, जिसे भी अपनाया, वो सिर्फ उसका अहंकार था। उससे ज्यादा कोई उसके अन्दर अनुभूति नहीं आयी। धीरे धीरे मनुष्य, इससे परिचित हो Read More …

Christmas And Its Relationship To Lord Jesus Caxton Hall, London (England)

The Incarnation Of Christ, The Last Judgement Date : 10th December 1979 Place : London Туре Seminar & Meeting Speech [Translation from English to Hindi,Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] आज का दिन हमारे लिए यह स्मरण करने का के लिए यंह बात अत्यन्त कष्टकर है और उन्हें है कि ईसामसीह ने पृथ्वी पर मानव के रूप में जन्म खेद होता है कि जो अवतरण हमें बचाने के लिए लिया। वे पृथ्वी पर अवतरित हुए और उनके आया उसे इन परिस्थितियों में रखा गया। क्यों नहीं, सम्मुख मानव के अन्दर मानवीय चेतना प्रज्जवलित परमात्मा ने, उन्हें कुछ अच्छे हालात प्रदान किये? करने का कार्य था मानव को यह समझाना कि वे परन्तु ऐसे लोगों की इस बात से कोई फ़र्क नहीं यह शरीर नहीं हैं, वे आत्मा हैं। ईसामसीह का पड़ता, कि चाहे वो सूखी घास पर लेटे रहें या पुनर्जन्म ही उनका सन्देश था अथात् आप अपनी अस्तबल में या किसी भी और स्थान पर, उनके आत्मा हैं यह शरीर नहीं । अपने पुनर्जन्म द्वारा उन्होंने लिए सभी कुछ समान है क्योंकि इन भौतिक चीजों दर्शाया कि किस प्रकार वे आत्मा के साम्राज्य तक का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वो इतने उन्नत हो पाए, अपनी वास्तविक स्थिति तक। क्योंकि निर्लिप्त होते हैं तथा पूर्णतः आनन्द में बने रहते हैं। वे ब्रह्मा थे, महाविष्णु वे अपने स्वामी होते हैं। कोई अन्य चीज उन पर थे, जैसे मैंने उनके जन्म के विषय में आपको स्वामित्व नहीं जमा सकती है। कोई पदार्थ उन पर वे ‘प्रणव’ थे, वे ब्रह्मा थे – Read More …

Spirits of the dead मुंबई (भारत)

[Hindi translation from English]                                    “मृतात्माएं”  बॉम्बे (इंडिया), 22 दिसंबर 1976 अब, एक आधुनिक व्यक्ति के लिए, सवाल यह होता है कि, यह विश्वास करना है या नहीं कि आत्माएं हैं या नहीं। क्योंकि यह एक बहुत ही अज्ञात क्षेत्र है। और जब तक और जहाँ तक यह पूरी तरह से खोज नहीं लिया जाता है और पता चलता है, अज्ञात क्षेत्र, हमेशा एक मतिभ्रम बनाता है कि यह कुछ दिव्य है। इसलिए हमें आत्माओं के बारे में भी जानना होगा: वे कौन हैं, वे कैसे कार्य करते हैं, और वे कैसे कार्यान्वित होते हैं। अब, कई कहेंगे कि “हम आत्माओं में विश्वास नहीं करते हैं।” चाहे आप इसे मानें या न मानें – लेकिन वे वहीं हैं। ईसा-मसीह, वह झूठे नहीं थे। उन्होंने आत्माओं को निकाल कर और उन्हें सुअर में डाल दिया। और यह वही व्यक्ति हैं जिन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से कहा है कि “आत्माओं से दूर रहो।”आत्माएं स्थिति {अस्तित्व}हैं। यदि हम बनना चाहते हैं तो हम कल आत्मा हो सकते हैं। जब हम मरते हैं, तो हम पूरी तरह से नहीं मरते हैं। केवल स्थूल पृथ्वी  तत्व, या स्थूल जल तत्व जिसने हमें … प्रकट होने के लिए बनाया है, – वह हिस्सा केवल मर जाता है, बाकी सब बना रहता है। और यह एक ऐसे क्षेत्र में चला जाता है जिसे हम प्रेतलोक (मृतकों की दुनिया) कहते हैं, जहां यह भ्रूण के आकार में आने तक छोटा और छोटा होने लगता है, या, आप कह सकते हैं, बहुत छोटा भ्रूण।यह वहां इंतजार में होता है। लेकिन Read More …

Public Program Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Updesh – Bhartiya Vidya Bhavan- 1, 17th March 1975 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi ( … अस्पष्ट) उन सब के बारे में काफ़ी विशद रूप से मैने आपको बताया है। और जिस चैतन्य स्वरूप की बात हर एक धर्म में, हर समय की गयी है उससे भी आप में से काफ़ी लोग भली भाँति परिचित हैं। उस पर भी जब मैं कहती हूँ कि आप गृहस्थी में रहते हो और आप हठयोग की ओर न जायें, तो बहुत से लोग मुझसे नाराज़ हो जाते हैं। और जब मैं कहती हूँ कि इन संन्यासिओं के पीछे में आप लोग अपने को बर्बाद मत करिये और इनको चाहिये की गृहस्थ लोग दूर ही रखें। तब भी आप लोग सोचतें हैं कि माँ, सभी चीज़ को क्यों मना कर रहे हैं।  ऐसे तो मैं सारे ही धर्मों को संपूर्ण तरह से आपको बताना चाहती हूँ। इतना ही नहीं, जो कुछ भी उसमें आधा-अधूरापन भापित होता है उसको मैं पूर्ण करना चाहती हूँ। मैं किसी भी शास्त्र या धर्म के विरोध में हो ही नहीं सकती। लेकिन अशास्त्र के जरूर विरोध में हूँ और अधर्म के। और जहाँ कोई चीज़ अधर्म होती है और अशास्त्र होती है, एक माँ के नाते मुझे आपसे साफ़-साफ़ कहना ही पड़ता है। बाद में आपको भी इसका अनुभव आ जायेगा  कि मैं जो कहती हूँ वो बिल्कुल सत्य है, प्रॅक्टिकल है। जब आप अपने हाथ से बहने वाले इन वाइब्रेशन्स को दूसरों पे आजमायेंगे, आप समझ लेंगे, कि मैं जो कहती हूँ Read More …