The Role of Tongue, Sight and Feet in Spiritual Evolution New Delhi (भारत)

                 “आध्यात्मिक विकास में जीभ, दृष्टि और पैर की भूमिका”  दिल्ली (भारत), 2 अप्रैल 1976। मैं इस बारे में बता रही थी कि एक माँ और गुरु होना कितना मुश्किल है, क्योंकि दोनों बहुत ही विरोधाभासी कार्य हैं। विशेष रूप से ऐसे व्यक्ति के लिए जो आपके मोक्ष का प्रभारी होना चाहे, मोक्ष दायिनी होना, यह अत्यंत कठिन है। क्योंकि पथ इतना नाजुक और इतना जोखिम भरा है कि आप सभी को खुद ही आना होगा, उस पार चलना होगा। और अगर तुम इस तरफ गिरते हो या उस तरफ तुम्हारे लिए विपत्ति है। मैं आपकी चढ़ाई देख रही हूं, और मैं आपको मॉ के हृदय और गुरु के हाथ के साथ उपर आता हुआ देख रही हूं। और फिर मुझे गिरते हुए लोगों की झलक मिलती है। मैं उन्हें बताने की कोशिश करती हूं, “ऊपर आओ”। कभी-कभी मैं चिल्लाती हूं, कभी-कभी मैं उन्हें खींचती हूं, कभी-कभी मैं उनसे प्यार करती हूं, उन्हें दुलार करती हूं। आप खुद अपने ही अंदर अंदाजा लगा सकते हैं कि मैंने आपके भीतर कितना काम किया है, मैंने आपसे कितना प्यार किया है। लेकिन मुद्दा यह है की, आप अपने आप से कितना प्यार करते हैं।मैंने आपको बताया है कि, एक सहज योगी के लिए, सब कुछ साक्षी भाव की शक्ति से तय किया जाना चाहिए। अब साक्षी शक्ति मौन में है, यह बात नहीं करती है। यदि आप बहुत बातूनी व्यक्ति हैं, तो यह आप के लिए बहुत मददगार नहीं है। आपको संतुलन में आना होगा। पहली बार,  इस अवतार के दौरान,  मैंने Read More …

Gudi Padwa, Meditation in thoughtless awareness New Delhi (भारत)

            [Hindi translation from English] “गुड़ी पड़वा, “विचारहीन जागरूकता में ध्यान” दिल्ली (भारत), 30 मार्च 1976। हम ध्यान नहीं कर सकते; हम केवल ध्यान में हो सकते हैं। जब हम कहते हैं कि हम ध्यान करने जा रहे हैं तो इसका कोई अर्थ नहीं है। हमें ध्यान में रहना होगा। या तो आप घर के अंदर हों या घर के बाहर। ऐसा नहीं हो सकता की आप घर के अंदर हो  और फिर कहें कि: “अब मैं घर के बाहर हूं।” या जब आप घर के बाहर हों तो आप यह नहीं कह सकते: “मैं घर के अंदर हूँ।” “उसी तरह, जब आप अपने जीवन के तीन आयामों,  भावनात्मक और शारीरिक और मानसिक में आगे बढ़ रहे होते हैं| आप अपने अंदर नहीं हैं। “वास्तव में होना चाहिए”  लेकिन जब आप अंदर होते हैं कि आप निर्विचार जागरूकता में होते हैं। फिर, न केवल आप वहां हैं, बल्कि आप हर जगह हैं, क्योंकि वह जगह है, यही वह स्थान है जहां आप वास्तव में सार्वभौमिक हैं … वहां से आप सम्पूर्ण विश्व के पदार्थ के हर कण में,हर सोच में जो की भावना है और हर योजना तथा विचार में व्याप्त होता शक्ति और मूल तत्व के संपर्क में हैं। आप इस सुंदर पृथ्वी का निर्माण करने वाले  सभी तत्वों में व्याप्त हो जाते हैं । आप पृथ्वी में, आकाश[इथर] में,तेज[प्रकाश] में,ध्वनि में व्याप्त हो जाते हैं| लेकिन आपकी गति बहुत धीमी है। फिर आप कहते हैं: “मैं ध्यान कर रहा हूं,” इसका मतलब है कि आप वैश्विक सत्ता  के Read More …

Description of Kundalini New Delhi (भारत)

 कुण्डलिनी का विवरण.(दिल्ली), १९७६. माननीय न्यायाधीश तताचारी और दिल्ली के नगरवासी और सहज योगिओं।  हम अब  इतिहास के ऐसे मोड़ पर हैं जहां यह जरूरी हो गया है कि हम देवी शक्ति के अस्तित्व को सिद्ध करें। हमने पढ़ा है इस सर्वव्यापी शक्ति के बारे में। हमारे शास्त्रों में बहुत विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है इस देवी शक्ति के बारे में जो हमारे अंदर प्रवाहित होती है। और जो इस ब्रह्मांड की हर एक अणु रेणु  से भी प्रवाहित होती है। पर अभी तक बहुत कम लोग ही इस दिव्य देवी शक्ति के साम्राज्य में आने में समर्थ  हुए हैं इस दिव्य शक्ति की अनुभूति के लिए। ऐसे लोगों का जन्म बहुत ऊँचे स्तर पर हुआ था कि वह और दूसरे लोगों से बात नहीं कर पाए। उन्होंने सिर्फ देवी शक्ति के बारे में गीत गाए जो लोगों तक पहुंचे पर लोग उस शक्ति के अस्तित्व को अनुभव नहीं कर पाए जो अनुभव उस कविता या गीत के लिखने वालों ने किया |  जैसे मैंने पहले बताया मनुष्य की यह खोज रही है की अनंतता में जाना। पर उसकी सीमित बुद्धि और समझ अनंतता में नहीं जा पाती | तो अब बहुत कुछ मशीनी क्रिया या ऊपरी क्रिया हो गई है। धर्मों का महत्व कम हो गया और लोग विश्वास नहीं कर पाते धर्म या परमेश्वरी शक्ति की बातों में।  पर अब समय आ गया है लोगों के एक साथ परमेश्वर के साम्राज्य में उतरने का और उनके अस्तित्व को महसूस करने का जो उनके खुद के अंदर स्पंदन Read More …

Seven Chakras and their Deities, Paane ke baad New Delhi (भारत)

1973-11-25 Seven Chakras and their Deities (Paane ke baad) 1973, Mumbai कि आपको कुछ भी नहीं करने का है सहज में हो जाता है । सहज शब्द का अर्थ रोजमर्रा भाषा में सहज माने आसान। लेकिन सहज शब्द जहाँ से आया वो ‘सह’ और ‘ज’ के साथ मिले हुए सहज से आया। माने आसान है । मतलब जो हमारे साथ जो पैदा हुई आँख है, हमारे साथ जो पैदा हुई  हमारी नाक है, इसका हमें कुछ देखना नहीं पड़ता।[अस्पष्ट]  इस कारण इसमें कोई भी प्रतिबिम्ब पूरा नहीं पड़ता। अगर कोई ऐसा सरोवर हो कि जिसके अन्दर कोई भी लहर उठ नहीं रही। तो उसके चारों तरफ फैला हुआ उसका सौन्दर्य पूरा का पूरा अन्दर प्रतिबिंबित होता है । इतना ही नहीं पर पूरा तादात्म्य होता है। इसी तरह से जब आप किसी भी सुन्दर दृश्य को देखेंगे परमात्मा की रचना की ओर दृष्टि करेंगे आप निर्विचार हो जाएंगे। निर्विचार होते ही उसके अन्दर की जो आनन्द-शक्ति है वो आपके अन्दर पूरी प्रतिबिम्बित होगी I  इतना ही नहीं आप ने उसमें पूरी तरह से तादात्म्य पा लिया है।  इसी तरह से [अस्पष्ट] अनेक विधि परमात्मा ने आपके लिए श्रृंगार सजाए हैं, अत्यन्त सौन्दर्य चारों तरफ फैला हुआ है। उस सौन्दर्य के सूत्र ही में उतरने से ही आपके अन्दर आनन्द की उत्पत्ति हो जाती हैं। उस आनन्द को आप देखने के लिए ही पैदा हुए हैं, अपने को बेकार में दुखी बनाने की कोई ज़रूरत नहीं। [अस्पष्ट] बहुत लोगों ने ये भी पूछा है कि हमें अब आगे क्या करना होगा। Read More …

Question And Answers New Delhi (भारत)

                     प्रश्न और उत्तर  दिल्ली 1973-1124-11 सहज योगी: यह कार्यक्रम २४ नवंबर १९७३ को दिल्ली में रिकॉर्ड किया गया है। यहाँ श्री माताजी दिल्ली में आयोजित दस दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला के दौरान “साधकों” के प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं। श्री माताजी:…आपकी विषयवस्तु पर। मैं बस अपने विचारों को जारी रखने की कोशिश करूंगी। और बाद में, यदि आपको कोई समस्या है, तो मैं उनके बारे में उत्तर दूंगी। लेकिन जैसा कि मैंने तुमसे कहा, यह एक सागर है, ज्ञान का सागर है, और मैं पांच साल से ऐसे ही बोल रही हूं। और उनमें से कुछ लगभग पाँच वर्षों से मुझे सुन रहे हैं। लेकिन फिर भी, मैं जो कुछ भी कहती हूं, वे इसे रिकॉर्ड करना चाहते हैं और इसे फिर से सुनना चाहते हैं और मुझे नहीं पता, इसलिए मुझे लगता है कि यह सब एक अथाह कुंड है। अब, कुंडलिनी वास्तव में क्या है? आइए इस बिंदु से शुरू करते हैं, मैं एक-एक करके विभिन्न विषयों पर जाऊंगी। कुण्डलिनी से ठीक पहले आइए जानते हैं कि सृष्टि क्या है। क्योंकि सृष्टि के बिना आप कुंडलिनी के स्थान को नहीं समझ पाते हैं। जो मैं बहुत ही संक्षिप्त रूप में बताऊंगी। पूरी सृष्टि, वृक्ष की ही तरह, एक बीज की अभिव्यक्ति है, जिसे हम “ब्रह्म बीज” कह सकते हैं। सृष्टि का बीज है। अब हर बीज में अंकुरण शक्ति होती है। उसी तरह ब्रह्म बीज में भी अंकुरण शक्ति होती है। अब आपके लिए यह एक परिकल्पना है। सभी वैज्ञानिक समझ के लिए, यह एक परिकल्पना है। लेकिन Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

 1973/11/17 Public Program, New Delhi   जानवर में, जो प्रश्न होते ही नही है, जो मनुष्य में होते है। जानवर के लिए तो कोई प्रश्न ही नही होता है, वो सिर्फ जीता है। जिस शक्ति के सहारे वो जीता है, उसकी ओर भी, उसका कोई प्रश्न नही होता है कि  वो कौन सी शक्ति है, कि जिसके सहारे मैं जीता हूँ। उसकी वजह ऐसी है, कि ये चैतन्य शक्ति है , क्योंकि सारी सृष्टी की रचना करती है, उसकी चालना करती है उसकी व्यवस्था करती है। वो प्राणीमात्र में बहती हुई और गुजर जाती है। क्योंकि इंसान ने उसके एक विशेष कारण , उसके एक विशेष तरह के जीवन, से संबंधित ऐसी कुछ रचनाऍ हो जाती है कि जिससे मनुष्य उस शक्ति से वंचित हो जाता है। इसको अगर हम समझे तो साधारण शब्दो में इस तरह से कहा जाएगा कि मनुष्य में जो अहंकार हो जाता है वो प्राणीमात्र में नही होता। मनुष्य की दिमागी, हार जो है वो बहुत ही और तरह की है| उसका दिमाग एक त्रिकोणाकार है और इस त्रिकोण में जब ये शक्ति, बच्चा तीन महीने के माँ के गर्भ में होते समय अंदर की ओर गुजरती है, तो वो एक रिफरेकशन (अपवर्तन) जिसे अंग्रेजी में कहते है, विलिनीकरण जिसे कहते है, विकेंद्रिकरण कहते है उससे तीन हिस्सो में बट जाती है। एक तो हिस्सा जो कि सर के माथे के पीछे सीधा ही नीचे गुजर के जाता है और बाकी दो हिस्से जो कि सर के दो कोणो में से नीचे गुजर के और घुम करके पीछे की ओर चला जाता [है]। इस तीन Read More …

Unidentified Talk (Extract on Agnya Chakra) New Delhi (भारत)

1970-0101 Unidentified Hindi Talk (Extract on Agnya Chakra) बैठे थे, प्रोग्राम में आये थे, तो भी कुछ न कुछ अपनी विपदा सोचते रहे । अरे ! मेरे साथ ये हुआ, मेरे साथ वो हुआ, ऐसा हुआ, वैसा हुआ । और माताजी से मैं कब बताऊं, मेरी विपदा क्या हुई? माताजी आप देवी हैं, मेरी ये विपदा है| बजाय उसके कि जो कहे जा रहे हैं उसको समझें, अपनी ही अंदरूनी बात को ही सोच-सोच करके आप चली गई उस बहकावे में ।  और उस बहकावे में आपको कैन्सर की बीमारी हो गई, नहीं तो ये बीमारी हो गई, वो बीमारी हो गई । वैसे ही मानसिक बातें हैं । हम मन से क्या सोच रहे हैं? मन में हमारे कौन से विचार आ रहे हैं? सब यही ना कि हमको ये दुःख है, वो दुःख है, ये पहाड़ है । लेकिन सोचना क्या चाहिए – काउन्ट  यॉर ब्लेसिंगज़ (count your blessings)। अपने पे कितने आशीर्वाद हैं परमात्मा के । ये दिल्ली शहर में करोड़ों लोग रहते हैं, कितनो को सहज योग मिला है? हम कोई विशेष व्यक्ति हैं, कोई ऐसे-वैसे नहीं कि अपने चित्त को बेकार करें। हमें सहज योग मिला है । इसकी धारणा होनी चाहिए अंदर से और उस अंतर्मन में उतरना चाहिए। उसी से ये जो झूठी मर्यादा है सब छूट जाएगी और अगर आप नहीं तोड़िएगा, तो किसी न किसी तरह से ऐसे कुछ आपको अनुभव आयेंगे कि ये टूटते जायेंगे । जिस चीज को आप सोचेंगे कि ये हमारा अपना है। आप कहेंगे हम दिल्ली Read More …