New Year Puja, Who Is A Sahaja Yogi? New Delhi (भारत)

1984-01-03, New Year Puja: Who Is A Sahaja Yogi?, Delhi Nav Varsh Puja – S. Sahajyogi Ki Pahechan 3rd January 1984 Date : Place Delhi : ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Nirmala Yog लेकिन माँ की व्यवस्था और है कि पहले चैतन्य को पा लो. जान लो कि परमात्मा है, उस पर विश्वास करो जो अन्धविश्वास नहीं है, सत्य के रूप हर साल नया साल आता है और पुराना साल खत्म हो जाता है। सहजयोगियों के लिए हर क्षण एक नया साल है, क्योंकि वो वर्तमान में रहते है। न तो वो भविष्य में रहते हैं, और न ही वो बीते हुए भूत में और अब थोड़ी सी मेहनत से भी बहुत बड़ा काम हो सकता है। जैसे कि किसी को पहले सिखाया जाये कि देखो पानी से डरना नहीं। लैक्चर दिया जाए। पहले अपने को जमीन पर ही तैरा के देखो। वहीं काल में रहते हैं। हर क्षण उनके लिए एक नया साल है, एक नई उमंग है, एक नई लहर है। तुम पर हाथ मारो दो-चार। और काफी दिन से मेहनत की जाए और फिर धीरे-धीरे पानी में लाया जाए। जैसे पानी देखा फिर भाग गए। जैसे कि समुद्र पर तैरते हुए हर क्षण कोई समुद्र के प्यार से उछाला जाय, उसी प्रकार हरेक सहजयोगी को आनन्द, प्रेम, शान्ति का आहुलाद मिलते रहता है। बस बात ये है कि क्या हम तैरना सीख गये हैं या नहीं। सहजयोंग में जिसने तैरना और एक होता है पानी में ढकेल दो, फिर सिखाते रहेंगे। इसी तरह आप लोग आनन्द Read More …

Parent’s day celebrations New Delhi (भारत)

माता-पिता का बच्चों के साथ सहज मन्दिर, दिल्ली, १५ दिसम्बर १९८३ स आज मैं आपको एक छोटी-सी हजयोग क्या है और उसमें मनुष्य क्या-क्या पाता है, आप जान सकते हैं। लेकिन बात बताने वाली हूँ कि माता-पिता का सम्बन्ध बच्चों के साथ कैसा होना चाहिए। सबसे पहले बच्चों के साथ हमारे दो सम्बन्ध बन ही जाते हैं, जिसमें एक तो भावना होती है, और एक में कर्तव्य होता है। भावना और कर्तव्य दो अलग-अलग चीज़ बनी रहती हैं। जैसे कि कोई माँ है, बच्चा अगर कोई गलत काम करता है, गलत बातें सीखता है, तो भी अपनी भावना के कारण कहती है, “ठीक है, चलने दो। आजकल बच्चे ऐसे ही हैं, बच्चों से क्या कहना । जैसा भी है ठीक है।” दूसरी माँ होती है कि वो सोचती है कि वो बच्चों को कर्तव्य परायण बनाए। कर्तव्य परायण बनाने के लिए वो फिर बच्चों से कहती है कि “सवेरे जल्दी उठना चाहिए आपको। पढ़ने बैठना चाहिए। फिर आप जल्दी से स्कूल जाइए। ये समय से करना चाहिए। वहाँ बैठना चाहिए। यहाँ उठना चाहिए, ऐसे कपड़े पहनना चाहिए।” इन सब चीज़ों के पीछे में लगी रहती है। अब इसे कहना चाहिए कि ये सम्यक नहीं है, integrated (सम्यक) बात नहीं है। इसमें integration (समग्रता) नहीं है और आज का सहजयोग जो है वह integration (समग्रता) है । दोनों चीज़ों का integration (विलय, एकीकरण, समग्रीकरण) होना चाहिए न कि combination (एकत्रीकरण) होना चाहिए। समग्रता और एकत्रीकरण में ये फर्क हो जाता है कि हमारी जो भावना है वो कर्तव्य होनी चाहिए और Read More …

Holi Puja New Delhi (भारत)

होली पुजा, २९।३।१९८३ , दिल्ही, इंडिया दिवाली के सुभ अवसर पे (सहजयोगी : होली श्री माताजी ) हा होली ! में यही सोचा कुछ गरबड़ कह दिया। लेकिन  कल दिवाली की बात कही थी ना यही ख्याल बना। फिर  होली के शुभ अवसर पे आज दिवाली मनाई जाएँगी।  होली के दिन आप जानते है की होलिका को जलाया गया। अग्नि का बड़ा भारी दान है कार्य है क्योंकि अग्नि देवता ने होलिका को वरदान दिया था की किसी भी हालत में तुम जल नहीं सकती।  और किसी भी कारण से मृत्यु आ जाए पर तुम जल नहीं सकती। और वरदान दे करके वो फिर बहोत पछताए। क्योकि प्रह्लाद को लेकर वो गोद में बैठी। और अग्नि देवता के सामने प्रश्न पड़ा , धर्मं का प्रश्न, की मैंने उनको वचन दे दिया इनको तो में जलाऊंगा नहीं और इस वचन को अभी में कैसे भंग करू ? और प्रह्लाद तो स्वयं साक्षात् अबोधिता है , स्वयं साक्षात् गणेश का पादुर्भाव है।  और इनको किस तरह से जलाया जाए ।  इनको तो कोई नहीं जला सकता। वो मेरी भी शक्ति से परे है। ये तो मेरी शक्ति से भी बड़े है। तो उन्होंने विचार ये किया की, “ये  अहंकार कैसा है की इतनी बड़ी शक्ति के सामने  में अपनी शक्ति की कौनसी बात कर रहा हूँ ? मेरी ऐसी कोई सी भी शक्ति नहीं है जो इनके आगे चल सके। इनकी शक्ति इतनी महान है । तो इनको तो में जला सकता ही नहीं चाहे जो कुछ भी करुलू । लेकिन इस Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

सहज योग जो है, यह अंतर विद्या है, अंदर की विद्या है. यह जड़ों की विद्या है,  इसलिए आँख खोलने की ज़रुरत नहीं। आँख बंद रखिये। अंदर में घटना घटित होती है, बाह्य में कुछ नहीं होता, अंदर  में होता है। अब इसी को, इस हाथ को आप ऊपर हृदय पर रख के कहें कि , ”मैं स्वयं आत्मा हूँ’। आप परमात्मा के अंश हैं। आप ही के अंदर उसकी रूह जो है, वह प्रकाशित होती है।  इसलिए कहिये कि ”मैं आत्मा हूँ’। बारह मर्तबा कहिये क्योंकि हृदय के चक्र पे बारह कलियाँ हैं।  जिनको हार्ट अटैक आदि आता है, उनके उनके लिए यही मंत्र है कि  ‘मैं आत्मा हूँ’। आत्मा जो है, निर्दोष है । उसमे कोई दोष नहीं हो सकता. निर्दोष है। अधिक तर लोग आदमी को जीतने के लिए ऐसे कहते हैं कि ‘तुम ऐसे खराब हो, ‘तुमने यह पाप किया, तुम फलाने हो, तुम किसी काम के नहीं हो और तुम को परमात्मा माफ़ नहीं करेंगे और तुम बड़े दोषी हो और तुम मानो के तुम दोषी हो’। उलटे हम कहते हैं ‘आपने कोई दोष नहीं किया। आप परमात्मा के बनाये हैं. परमात्मा के आगे, उनकी रहमत के आगे, उनकी अनुकम्पा के आप कोई दोष नहीं कर सकते क्योंकि  उनकी अनुकम्पा एक बड़े भIरी दरिया जैसी है।’  वह सब कुछ धो डाल सकती है।  इसलिए इस हाथ को फिर से ऊपर उठा कर के अपनी लेफ्ट साइड में विशुद्धि में रखें और कहें कि ‘माँ, मैं दोषी नहीं हूँ।  मैं निर्दोष हूँ, मैं आत्मा हूँ। मैं Read More …

Mahashivaratri Puja New Delhi (भारत)

Shivaratri Puja आपके अंदर इस अनासक्ति को आना होगा …. इसमें थोड़ा समय लगता है। खासकर भारतीय लोगों में …. जो हर समय अपने बच्चों, माता और पिता के बारे में चिंतित रहते हैं और ये चलता रहता है। वर्षों तक मेरा बेटा … मेरी बेटी … मेरे पिता … पूरे समय ये चलता रहता है। अब परमात्मा की कृपा से कई लोग अपने दायित्वों से छुटकारा प्राप्त कर चुके हैं … सहजयोग के माध्यम से या जिस प्रकार से भी (श्रीमाताजी हंसती हैं)। जो लोग भी अब सहजयोग में आ रहे हैं कि हमें सहजयोग के आशीर्वाद प्राप्त करना है … उनमें भी इस अनासक्ति को लाया जाना है कि हमें आशीर्वाद प्राप्त हो रहे हैं … उन्हें इसका गर्व होना चाहिये। यदि आपको सहजयोग परिवार में आना है तो आप इसमें आंये परंतु किसी को भी सहजयोग में आने के लिये जबर्दस्ती न करें ….. उनके ऊपर सहजयोग को थोपे नहीं। अब वह अवस्था आ चुकी है कि आपको उनसे सहजयोग की बात करनी है। शुरूआत में मैं कहती थी कि उनसे इस बारे में बात मत करो … लेकिन उनके लिये कहती थी जो एकदम बेकार हैं यदि उनको सहज में नहीं आना है तो उनसे बात करें कि आप सहजयोग के लिये बिल्कुल ठीक नहीं हैं …… ऐसे लोगों से बिल्कुल बात न करें। तभी वे आ पायेंगे। कुछ लोगों में आपको कोई दिलचस्पी नहीं रखनी चाहिये … उन्हें कहें कि आप एकदम अक्षम हैं… भौतिकतावादी हैं … आप अच्छे नहीं हैं तो वे कहेंगे कि Read More …

Questions and Answers About America New Delhi (भारत)

अमेरिका के बारे में प्रश्नोत्तर, दिल्ली, भारत, 1983-02-10 Questions and Answers About America, Delhi, India 1983-02-10 सहजयोगियों से बातचीत 1983-02-10 योगी: हम काफी-कुछ वहीं प्रश्न पूछेंगे जो हमने उस दिन पुछे थे। हमें ऐसे उत्तरों की आवश्यकता होगी जो एक या दो मिनट लंबे हों। श्री माताजी: सिर्फ दो मिनट? वह अमेरिका जैसा बड़ा देश है। योगी: यदि यह बहुत लंबा हुआ तो हम इसे संपादित कर सकते है। (श्री माताजी प्रश्नों को देखती हैं।) . आत्मसाक्षात्कार का क्या महत्व है? . आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना क्यों महत्वपूर्ण है? . चैतन्य क्या है? . पश्चिम भारतीयों से और भारतीय पश्चिम से क्या सीख सकते है? श्री माताजी: यह भारत बनाम पश्चिम बहुत विवादास्पद है। भारत से कुछ नहीं सीखो और भारत को आपसे कुछ नहीं सीखना चाहिए। वे सभी एक ही नांव में सवार है। ब्रायन, क्या तुमने मुझे सुना? भारतीयों से स्थूल स्तर पर कुछ सीखने का नहीं और पश्चिम से कुछ सीखने का नहीं। दोनों एक ही नांव में सवार है। एक विकसित हो चुका है और एक विकसित हो रहा है। तुम क्या कहते हों? योगी: आध्यात्मिक स्तर पर, तो, माँ? श्री माताजी: आप भारतीयों के आध्यात्मिक स्तर के बारे में क्या सोचते हैं? शून्य है? यह क्या है? योगी: लेकिन आकांक्षाएं, जो कि इस देश में अभी भी संरक्षित है? श्री माताजी: अगर मुझे अमेरिकियों से बात करनी है, तो वे अहंकार उन्मुख हैं। उन्हें बुरा लगेगा। भारत उनसे अधिक महान है ऐसा ना कहना ही बेहतर होगा। योगी: माँ, आप राजनयिकों की राजनयिक हो। श्री माताजी: Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

Debu Chaudhuri plays raag Kambhoji on sitar, in the presence of Shri Mataji in a public program in Delhi, Feb 8th 1983, (part 2) Followed by a Hindi talk given by Shri Mataji. The sitar represents the Sahasrara chakra. Sahaja Yogis want to give a cushion to Shri Mataji but She refuses. Then they want to garland Her and She asks them instead to garland the artist. Everybody applauds. But Debu Chaudhuri refuses to be garlanded in place of Shri Mataji so he puts the garland around the head of his student (who is playing tempura). Everybody laughs. A senior Sahaja Yogi makes a small speech: My dear brothers and sisters, music is the nearest thing to God on earth. Mataji has often said the way to please God and His devotees is through music sound of devotion…He introduces the tabla player, an equally renowned artist. Shri Mataji seems to explain to Debu Chaudhuri that it is not a puja but a spiritual event. Shri Mataji: Now, I must say, that artist himself being a Realized soul, I’m just working on your Kundalini, I need not speak much. It’s working out. So don’t get impatient, this is also, is a silent speech of God’s music. So you just don’t get impatient about it. I’am also enjoying very much. May God bless you. Since Kambhoji, he’s going to play just now. Debu Chaudhuri: Well, it is my great pleasure, in a way, I requested Mataji to give Her blessings to all Read More …

Public Program Gandhi Bhawan, New Delhi (भारत)

क्योंकि बहुत लोगों ने इस पर लिखा है (अस्पष्ट) और बहुत से लोग सोचते रहे हैं कि इस मामले में कुछ करना चाहिए कि सत्य को खोजने का है। (अस्पष्ट) अब जब मानव (अस्पष्ट) तो उसकी ऐसी स्तिथि होती है कि वो सिर्फ इस चीज़ को मानता है (अस्पष्ट) और उसके पास कोई माध्यम नहीं है। जैसे कि साइंस की उपलब्धि जो हुई है, यह हमने सिर्फ बुद्धि के ही माध्यम से देखा है। लेकिन बुद्धि जो है, वो दृश्य जो संसार में है, उसी के बारे में बातें करता है। जो अदृश्य है उसे नहीं बता सकता। और सत्य और अदृश्य में क्या अंतर है यही नहीं बता सकता। तब पहले यह सोचना चाहिए, कि जब सत्य की खोज की इंसान बात करता है, तो सर्वप्रथम उसको यही विचार करना होगा कि जो कुछ हमने बुद्धि से जाना, कुछ भी नहीं जाना, तो भी हम भ्रम में बने रहे। बुद्धि से जानी हुई बात, जितनी भी हमने आज तक जानी है, उससे इतना ज़रूर हुआ, जो दृश्य में है उससे हमने ज्ञात (अस्पष्ट) लेकिन जो कुछ अदृश्य में है वो भी नहीं जाना और ये भी नहीं जान पाए कि वो आखिर जो हमने दृश्य में जानना है यह परम सत्य है या नहीं। अब साइंस की उपलब्धि जब हमारी है, तो साइंस के हम अपने सिर हुए, साइंस में हमने बहुत सारी बातें जानी। अणु परमाणु तक हम पहुँच चुके। गतिविधियों को जो समझा है, वो भी सब जो कुछ भी जड़ है, उसके बारे में। ….. हरएक Read More …

The Vishuddhi Chakra New Delhi (भारत)

19830202 TALK ABOUT Vishuddhi, DELHI [Hindi transcript Q&A] सवाल – माताजी, क्या पितरों के श्राद्ध करने चाहिये ? उनके चित्र रखने चाहिये ?   श्रीमाताजी – इन्होंने सवाल किया है क्या पितरों के श्राद्ध करने चाहिये? पितरों के फोटोग्राफ्स रखने चाहिये ? जब उनकी तेरहवी होती है तब तो करने ही चाहिये उनके श्राद्ध। और श्राद्ध भी डिस्क्रिशन्स की बात आ ‘गयी फिर से। अगर समझ लीजिये कि आपके सहजयोग में आपने देखा कि आपका राइट हार्ट पकड़ रहा है। याने आपके पिता जो है, जो मर गये हैं, वो अभी भी संतुष्ट नहीं तो श्राद्ध करना चाहिये। इसमें कोई हर्ज नहीं। पर सहजयोग स्टाइल से श्राद्ध करना चाहिये। न कि एक ब्राह्मण को बुलाओ और उसको खाने को दो।   एक बार लखनो में हमें पता हुआ कि हमारे जो पूर्वज थे उनका श्राद्ध नहीं हो पाया। तो हमने कहा हम श्राद्ध करेंगे। तो उन्होंने कहा कि, ‘तुम्हारा श्राद्ध का क्या विधि है ?’ हमने कहा, ‘हमारा तो ये है कि हम खाना बनाते हैं और सब को खिलायेंगे खाना। बस यही हमारा श्राद्ध है।’ तो हमारी सिस्टर इन लॉ बेचारी ट्रेंडिशनल थी। उन्होंने ‘कहा कि, ‘यहाँ श्राद्ध ऐसा होता है कि पाँच ब्राह्मण बुलाओ।’ मैंने कहा, ‘पाँच क्‍या, यहाँ तो एक भी ब्राह्मण दिखायी नहीं दे रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘नहीं, अपने पाँच ब्राह्मण हैं। वो आएंगे और उनका श्राद्ध करेंगे।’ मैंने कहा, “चलो, बुलाईये।’ फिर पाँच ब्राह्मण आयें। वो तो बिल्कुल पार नहीं थे न ब्राह्मण थे। पाँच आदमी आ के बैठ गये। मैंने सोचा, देखिये तो सही क्‍या Read More …

Mooladhar, Swadishthan-Sakar Nirakar ka bhed New Delhi (भारत)

मूलाधार, स्वाधिष्ठान – साकार निराकार का भेद ३०.०१.१९८३ दिल्ली परमात्मा के बारे में अगर कोई भी बात करता है इस आज कल की दुनिया में तो लोग सोचते हैं कि एक मनोरंजन का साधन है। इससे सिर्फ मनोरंजन हो सकता है । परमात्मा के नाम की कोई चीज़ तो हो ही नहीं सकती है सिर्फ मनोरंजन मात्र के लिए ठीक है। अब बूढ़े हो गये हमारे दादा-दादी तो ठीक है, मंदिर में जाकर के बैठते हैं और अपना समय बिताने का एक अच्छा तरीका है, घर में बैठ कर बहु को सताने से अच्छा है कि मंदिरो में बैठे। इससे ज़्यादा मंदिर का कोई अर्थ अपने यहाँ आजकल के जमाने में नहीं लगाये। ये जो मंदिर में भगवान बैठे हैं इनका भी उपयोग यही लोग समझते हैं कि इनको जा कर अपना दुखड़ा बतायें, ये तकलीफ है, वो तकलीफ है और वो सब ठीक हो जाना चाहिए। लेकिन ये मंदिर क्या हैं? इसके अन्दर बैठे भगवान क्या हैं? उनका हमारा क्या संबंध है और उनसे कैसे जोड़ना चाहिए संबंध? आदि चीज़ों के बारे में अभी भी बहुत काफी गुप्त हैं। अब ये बातें अनादि काल से होती आयीं हैं। आपको मालूम है कि इंद्र तक को आत्मसाक्षात्कार देना पड़ा, जो अनादि है । करते -करते ये बातें जब छठी सदी में, सबसे बड़े हिंदू धर्म के प्रवर्तक, आदि शंकराचार्य संसार में आयें तब उन्होंने खुली तौर से बातचीत शुरू कर दी। नहीं तो अपने यहाँ एक भक्तिमार्ग था और एक वेदों का तरीका था, जैसे कि गायत्री मंत्र आदि। जब Read More …

Mahashivaratri Puja: What makes Mother pleased? New Delhi (भारत)

                                              महाशिवरात्रि पूजा  नई दिल्ली, भारत, फरवरी, 20, 1982 आज वह दिन है जब हम महाशिवरात्रि मनाते हैं। एक महान दिन है, या हमें कहना चाहिए महान रात। यह पूजा रात में होनी चाहिए थी। एक महान रात है जब शिव इस धरती पर स्थापित हुए थे। क्योंकि उस तरह शिव अनादि हैं। तो, कोई यह कहेगा कि, “शिव क्यों?” शिव के जन्मदिन की तरह आप कह सकते हैं या कुछ और, “यह कैसे हो सकता है?”, क्योंकि वह शाश्वत है, वह हर समय वहां है। तो, आज का उत्सव जो दर्शाता है, वह है इस धरती पर शिव की स्थापना। पदार्थ में स्व। हर तत्व एक देवता के साथ बनाया गया है और उस देवता को उस तत्व में स्थापित किया गया है, जैसा कि आप जानते हैं। इसलिए, जब आदि शक्ति ने सोचा था कि पहले हमें शिव की स्थापना करनी चाहिए; शिव के बिना आप कुछ भी स्थापित नहीं कर सकते। पहले, वह स्थापित होना है, क्योंकि वह निरपेक्ष है। तो आपको शिव की स्थापना करनी होगी। और अब हमें क्या करना चाहिए? उनकी स्थापना कैसे करें? वह तमो गुण के देवता हैं। वह शीतल है, वे जो कुछ भी निष्क्रिय है उनका भगवान है। इसलिए सबसे पहले, यह पृथ्वी, जब यह सूर्य से निकली, जो बहुत गर्म थी, चंद्रमा के बहुत करीब ले जायी गई थी। चंद्रमा शिव के साले हैं। इसलिए इसे चंद्रमा के इतने पास ले जाया गया कि पूरी पृथ्वी बर्फ से ढक गई। और फिर इसे धीरे-धीरे सूर्य की ओर बढ़ाया गया। जब Read More …

The Power of Brahma New Delhi (भारत)

“The Power of Brahma”, Public Program,  Delhi (India), 11 March 1981. [Hindi translation from English] उस दिन मैंने आपको बताया था कि चैतन्य लहरियाँ ब्रह्मशक्ति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं–ब्रह्मा की शक्ति | ब्रह्मा की शक्ति वह शक्ति है जो सृजन करती है, इच्छा करती है, उत्क्रान्ति करती है तथा आपको जीवन्त-शक्ति प्रदान करती है। यही शक्ति हमें जीवन्त शक्ति प्रदान करती है | अब ये समझना सुगम नहीं है की मृत शक्ति क्या है और जीवन्त शक्ति क्या है।.जीवन्त शक्ति को समझना अत्यन्त सुगम है। कोई पशु या हम कह सकते हैं, एक छोटा सा कीड़ा जीवन्त शक्ति है। इच्छानुसार ये अपने को घुमा सकता है, किसी खतरे से अपनी रक्षा कर सकता है | ये जितना चाहे छोटे आकार का हो परन्तु जीवन्त होने के कारण ये अपनी रक्षा कर सकता है। परन्तु कोई भी मृत चीज़ अपने आप हिलडुल नहीं सकती। जहाँ तक ‘स्व’ (self) का प्रश्न है वह तत्व इस में नहीं होता। जीवन्त शक्ति होने के नाते अब हमें यह पता लगाने का प्रयत्न करना चाहिए कि, “क्या हम जीवन्त शक्ति बनने वाले हैं या जीवन- विहीन |” इस विश्व में रहते हुए हम अपनी सुख सुविधाओं के विषय में सोचने लगते हैं कि हमें कहाँ रहना है और क्या करना है। जब हम इन चीजों के विषय में सोचते हैं तो हम मत्त चीज़ों के विषय में सोच रहे होते हैं| परन्तु जीवन्त कार्य करने के लक्ष्य से जब हम कोई स्थान, कोई आश्रम प्राप्त करने के विषय में सोचते हैं तब हम उस Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

“1981-02-17 सार्वजनिक कार्यक्रम, शंकर रोड 1981: ब्रह्म तत्त्वों का स्वरुप, दिल्ली” सार्वजनिक प्रवचन – ब्रह्म तत्व का स्वरूप नई दिल्ली, १७ फरवरी १९८१  आदर से और स्नेह के साथ आपने मेरा जो स्वागत किया है यह सब देख करके मेरा हृदय अत्यन्त प्रेम से भर आया। यह भक्ति और परमेश्वर को पाने की महान इच्छा कहाँ देखने को मिलती है ? आजकल के इस कलियुग में इस तरह के लोगों को देख करके हमारे जैसे एक माँ का हृदय कितना आनन्दित हो सकता है आप जान नहीं सकते| आजकल घोर कलियुग है, घोर कलियुग। इससे बड़ा कलियुग कभी भी नहीं आया और न आएगा। कलियुग की विशेषता है कि हर चीज़ के मामले में भ्रान्ति ही भ्रान्ति है इन्सान को। हर चीज़ भ्रान्तिमय है। इन्सान इतना बुरा नहीं है जितनी कि यह भ्रान्ति बुरी है।हर चीज़ में, अंग्रेजी में जिसे अजीब (chaos) कहते हैं, हर चीज़ में जिसे समझ में नहीं आता कि यह बात सही है कि वो बात सही है, कोई कहता है यह करो और कोई कहता है वो करो, कोई कहता है इस रास्ते जाओ भाई, तो कोई कहता है उस रास्ते जाओ। तो कौन से रास्ते जायें? हर मामले में भ्रान्ति है पर सबसे ज़्यादा धर्म के मामले में भ्रान्ति है। पर जो सनातन है, जो अनादि है, वो कभी भी नष्ट नहीं हो सकता, कभी भी नष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि वो अनन्त है। वो नष्ट नहीं हो सकता। उसका स्वरूप कोई कुछ बना ले, कोई कुछ बना ले, कोई कुछ ढकोसला बना ले, Read More …

Tattwa Ki Baat New Delhi (भारत)

1981-02-15 Talk at Delhi University 1981: Tattwa Ki Baat 1, Delhi Tattwa Ki Baat – 1 Date 15th February 1981 : Place Delhi Public Program Type Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 – 18 Hindi English Marathi || Translation English Hindi 19 – 30 Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindii Chaitanya Lahiri कल मैंने आपसे कहा था कि………….. है? अगर धरती माता की वजह से ही सारा कार्य आज आपको तत्व की बात बतायेंगे जब हो रहा है तो घरती माता की वजह से यह जो हम एक पेड़ की ओर देखें और उसका उन्नतिगत पत्थर है वो क्यों नहीं पनपता ? इसका मतलब यह होना, उसका बढ़ना देखें, तो यह समझ में आता है कि अनेक तत्वों में एक तत्व है, लेकिन तत्व है कि उसके अन्दर कोई न कोई ऐसी शक्ति अनेक हैं । प्रवाहित है या प्रभावित है जिसके कारण वो पेड़ बढ़ रहा है और अपनी पूरी स्थिति को पहुँच रहा समाये हैं और यह जो अनेक तत्व हैं यह हमारे है। यह शक्ति उसके अन्दर है नहीं तो यह कार्य अन्दर भी स्थित हैं, अलग अलग चक्रों पर इनका नहीं हो सकता। लेकिन यह शक्ति उसने कहां से वास है, लेकिन एक ही शरीर में समाये हैं और पाई ? इसका तत्व मर्म क्या है ? जो चीज बाह्य एक ही ओर इनका कार्य चल रहा है, और एक ही में दिखाई देती है, जैसे कि पेड़ दिखाई देता है इनका लक्ष्य है और एक ही चीज़ को इनको पाना उसके Read More …

What To Do After Self-realisation and Sahasrara Chakra, Delhi New Delhi (भारत)

“1981-0210 स्वयं-उपलब्धि के बाद क्या करें, सहस्रार चक्र [हिंदी] नई दिल्ली (भारत)” “स्वयं-प्राप्ति के बाद क्या करें, सहस्रार चक्र [हिंदी] नई दिल्ली (भारत)” सहजयोग में प्रगति नई दिल्ली, १० फरवरी १९८१ यहाँ कुछ दिनों से अपना जो कार्यक्रम होता रहा है उसमें मैंने आपसे बताया था कि कुण्डलिनी और उसके साथ और भी क्या-क्या हमारे अन्दर स्थित है। जो भी मैं बात कह रही हूँ ये आप लोगों को मान लेनी नहीं चाहिए लेकिन इसका धिक्कार भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये अन्तरज्ञान आपको अभी नहीं है। और अगर मैं कहती हूैँ कि मुझे है, तो उसे खुले दिमाग से देखना चाहिए, सोचना चाहिए और पाना चाहिए। दिमाग जरूर अपना खुला रखें । पहली तो बात ये है कि सहजयोग कोई दकान नहीं है। इसमें किसी प्रकार का भी वैसा काम नहीं होता है जैसे और आश्रमों में या और गुरुओं के यहाँ पर होता है कि आप इतना रुपया दीजिए और सदस्य हो जाइए। यहाँ पर आप ही को खोजना पड़ता है, आप ही को पाना पड़ता है और आप ही को आत्मसात करना पड़ता है।  जैसे कि गंगाजी बह रही हैं। आप गंगाजी में जायें, इसका आदर करें, उसमें नहाएं- धोएं और घर चले आएं। अगर आपको गंगा जी को धन्यवाद देना हो तो दें, न दें तो गंगाजी कोई आपसे नाराज नहीं होती। एक बार इस बात को अगर मनुष्य समझ ले, कि यहाँ कुछ भी देना नहीं है सिर्फ लेना ही है, तो सहजयोग की ओर देखने की जो दृष्टि है उसमें एक तरह की गहनता Read More …

Public Program, Swadishthana Chakra New Delhi (भारत)

Public Program, New Delhi (India), 6 February 1981. [Hindi Transcript] आपने विनती की है कि हिंदी मे भाषण कीजिएगा बात ये है कि ये तय किया गया था कि इस जगह मे अंग्रेजी मे बातचीत करुँगी अ.. उसकी वजह ये है कि अभी तक हिन्दुस्तान मे अंग्रेजी मे मैंने कहीं भी बातचीत नहीं की और ये जो अतिथि लोग आयें है आज तक मेरा भाषण सुन नहीं पाए इसलिए इनसे कहा था कि यहाँ पर मे मे अंग्रेजी मे बातचीत करुँगी और जब मंदिरों मे आदि या मेरे ख्याल से दिल.. दिल्ली के विद्यापीठ मे भी जो भाषण होने वाले है वो हिंदी भाषा में ही होंगे इसलिए कृपया आप दूसरे भाषणों मे भी आएंगे तो मैं हिंदी मे बातचीत करुँगी आशा हैं आप लोग बुरा नहीं मानेंगे क्योंकि आतिथी है थोड़ा सा इनका भी कभी ख्याल करना चाहिए हालाँकि आप लोग सब थोडा-बहुत तो अंग्रेजी समझते है और मैं कोई ऐसी कठिन अंग्रेजी बोलती नहीं हूँ अगर आपको कोई उसमे प्रश्न हो तो मैं आपको बता दूंगी सिर्फ ये पांच ही लेक्चरस जो है ये मे अंग्रेजी मे देने वाली हूँ इसके लिए क्षमा कीजिएगा ……कल मैंने आपसे उन सूक्ष्म केंद्रों के बारे में बात की , जो हमारे अस्तित्व के भीतर मौजूद हैं। इसका ज्ञान हजारों वर्षों पहले यहाँ के कई भारतीयों को ज्ञात था, लेकिन उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया, दो प्रकार के लोग थे जो प्रकृति की उच्च शक्तियों के बारे में जानते थे। उनमें से एक ऐसे लोग थे जिन्होंने सोचा था कि हम स्वयं Read More …

Public Program, Introduction to Mooladhara Chakra New Delhi (भारत)

Public Program, India, Delhi, 05-02-1981 आज मैं सहज योग और कुंडलिनी जागृति के बारे में सामान्य रूप से बात करने जा रहीं हूँ। सहज, जैसा कि आप जानते हैं, का अर्थ है,’सह’ साथ और ‘जा’आपके साथ पैदा हुआ। लेकिन शायद लोगों को एहसास नहीं है सहज का वास्तव में क्या अर्थ है। यह स्वतःस्फूर्त है लेकिन क्या है स्वतःस्फूर्त? स्वतःस्फूर्त वह नहीं है – मान लीजिए मैं कार में जा रहीं हूँ और अचानक कोई मिल जाए तो मैं कहूँ, ‘मैं अनायास/सहज ही उस व्यक्ति से मिल गई।’ सहज का अर्थ है, वह घटित होना जो कि एक जीवंत घटना है। यह एक जीवित वस्तु होनी चाहिए जो कि स्वतःस्फूर्त है; यह बहुत ही रहस्यमय शब्द है जिसे समझाया नहीं जा सकता और जो, इस बारे में बिना किसी ज्ञप्ति के घटित होता है, जो मनुष्य के लिए समझना संभव नहीं है, यही सहज है। सहज का अर्थ हो सकता है, यह बहुत सरल है, बहुत आसान है – यह है, इसे होना ही है। उदाहरण के लिए, ईश्वर ने हमें ये आँखें दीं हैं। ये अद्भुत आँखें जो मनुष्य को मिलीं हैं, ऐसा नहीं कि वे रंग देख सकतीं हैं वरन इसकी सराहना भी कर सकतीं हैं। भगवान ने उन्हें नाक दी है, जो इतनी अच्छी तरह से विकसित है कि यह गंदगी को महसूस कर सकती है – जानवर इसे महसूस नहीं कर सकते। आप एक मानव बन गए हैं, मैं एक मानव बन गईं हूँ, और हर कोई इंसान बन गया है – बन गया है – Read More …

Mahakali Shakti New Delhi (भारत)

                   “महाकाली शक्ति” सार्वजनिक कार्यक्रम, 8 फरवरी 1980 नई दिल्ली, भारत। सहज योगी : दो दिन पहले मुझे दिल्ली के एक मंदिर में माताजी का परिचय कराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था और बड़ी भीड़ आई थी। यह भीड़, कार्यक्रम के अंत में, माताजी के पैर छूने के लिए बहुत उत्सुक थी और एक बार फिर मुझे एहसास हुआ कि आप इस देश में कितने भाग्यशाली और धन्य हैं क्योंकि आपकी परंपराओं, आपके पालन-पोषण ने आपको एक गहरी धारणा और अध्यात्म के आयाम के प्रति बेहतर संवेदनशीलता दी है।  ऐसा लगता है कि आप कई अन्य लोगों, अन्य देशों और सभ्यताओं की तुलना में ईश्वर के प्रति अधिक जागरूक हैं। यही कारण है कि हम में से बहुत से लोग भारत आए हैं, मैं कहूंगा, लगभग बीस। इस सदी के साथ प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बड़ी संख्या में पश्चिम के साधक भारत आए, वह खोजने जो उनकी अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता नहीं दे सकी। यह जीवन के कुछ बुनियादी सवालों का जवाब है, हमारे भाग्य के अर्थ का आत्म-संतुष्टि के सवाल का जवाब। अब, यह कहानी दयनीय हुई क्योंकि इस देश से ऐसे चोर और बदमाश हुए हैं जिन्होंने खुद को गुरु कहा है, और बिना किसी दैवीय अनुमति के उन्होंने नेतृत्व किया था, या यूं कहें कि उन्होंने बड़ी संख्या में साधकों को गुमराह किया था। जब मैंने भारतीय लोगों से इन चीजों के बारे में बात की, तो उन्होंने कहा, “हम इन सभी नकली गुरुओं पर विश्वास नहीं करते हैं। यह Read More …

Public Program, Sahasrara New Delhi (भारत)

Public Program: Sahasrar March 18, 1979 सहस्त्रार सार्वजानिक कार्यक्रम, १८ मार्च १९७९  इसे समझ लेना चाहिए सहस्त्रार क्या चीज़ है। किसी ने अभी तक… किसी भी शास्त्रों में सहस्त्रार के बारे में विशद-रूप से कुछ भी वर्णित नही है। इसकी ये वजह नही है कि लोगबाग जानते नही होंगे, लेकिन पूरी तरह से सहस्त्रार खुला नही था तब तक, इसलिए इसके बारे में बहुत कुछ किसी ने लिखा नही। सहस्त्रार माने, जैसे ये कली है, इसी प्रकार हमारे ब्रेन (मस्तिष्क) को ग़र एक कमल का फूल समझें, तो उसके अंदर परत-न्-परत जैसे ये पंखुड़ियां हैं, उसी प्रकार एक-एक अलग-अलग स्तर बना हुआ है। और ये स्तर एक ही उसको, पता नही आप जानते हैं कि, दो मॅटर (पदार्थ): अपने व्हाइट्-मॅटर (श्वेत पदार्थ) , ग्रे-मॅटर (धूसर पदार्थ) – दो चीज़ होती है (मस्तिष्क में), जैसे आप देख सकते हैं कि दो हैं। इसके आलावा ग़र इसके बीचोबीच आप देखें खोलने पर, तो आपको दिखाई देगा कि बीच में गाभा है, और उसके अंदर हज़ारों छोटे-छोटे पराग हैं। इसी प्रकार हमारा जो ब्रेन (मस्तिष्क) है, ये भी मेद से बना है, fat (वसा) से बना है, लेकिन उसकी परते हैं। ग़र आप उसको क्रॉस-सेक्शन, माने यहाँ से ऐसे क्रॉस-सेक्शन करें, और उसको ग़र आप स्टडी (अध्ययन) करें तो आपको आश्चर्य होगा कि इसके अंदर ये एक-एक पर्त आपको दिखाई देगी, जैसे कि कमल के पुष्प हों, कमल की पंखुड़ियां जैसे। वैसे दिखाई देता है एकदम से। लेकिन डॉक्टरों का कभी कविता से संबंध नही रहा तो वो इस तरह का कंपॅरिज़न (तुलना) Read More …

Vishuddhi Chakra New Delhi (भारत)

Vishudhi Chakra (Hindi). Delhi (India), 16 March 1979. विश्व के लोग हमारी ओर आँखें किये बैठे हैं  कि भारतवर्ष से ही उनका उद्धार होने वाला है, तब तक नहीं पा सकेंगे। और हमारी ये हालत है कि एक साधारण सा व्यवहार जो होता है, वो भी नहीं है। कल मैंने आप से कहा था कि मैं आपको हृदय में बसे हुए शिवस्वरूप सच्चिदानंद आत्मा के बारे में बताऊंगी आज। लेकिन सोचती हूँ कि आखिर में ही बताऊंगी जब सारे ही चक्र बता चुकुंगी, वो अच्छा रहेगा। हालांकि उनको पहले से आखिर तक, अपनी दृष्टि वहीं रखनी चाहिये। बाकी जो भी चक्र हैं, एक उनके चक्र को जानने से ही ठीक हो जाते हैं। इन तीन हृदय चक्र के तीन हिस्सों से उपर एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण चक्र है, जिसे हम लोग विशुद्धि चक्र कहते हैं, विशुद्धि चक्र। जहाँ पे हमारा कंठ होता है, इसके बराबर पीछे में ये चक्र होता है। अब इसके लिये आप एक्झॅक्टली (exactly) किसी के लिये नहीं कह सकते हैं कि ये यहीं होता है। क्योंकि ये बड़ी ही सूक्ष्म चीज़ है, थोड़ा ऊँचे, नीचे होता ही है। जैसी-जैसी मनुष्य की प्रकृती होती है और जैसे-जैसे उसका फॉर्म होता है, वैसे ही इसकी चक्र की भी स्थितियाँ उस तरह से थोड़ी बहुत आगे-पीछे होती हैं। कभी कभी एक इंच का भी फर्क होता है। इसलिये आप ये नहीं कह सकते, कि ये बराबर उस जगह ही होगा। थोड़ा सा मैंने देखा है, किसी का ऊपर होता है, किसी का नीचे होता है। किसी का और भी Read More …

Advice to Delhi Yogis New Delhi (भारत)

Advice to Delhi Yogis (Hindi). Delhi (India), 15 March 1979. हर जगह के अपने वाइब्रेशन्स होते है दिल्ली, १५.३.१९७९ देलही के निवासियों ने सहजयोग में जो मेहनत की है वो बहुत प्रशंसनीय है क्योंकि आप जानते हैं कि सहजयोग में हमारे कोई भी मेंबरशिप नहीं है, कोई रूल्स नहीं है, कोई रेग्युलेशन्स नहीं है, ना ही कोई हम लोग रजिस्टर रखते हैं और ऐसी हालात में कुछ लोग इससे इतने निगडित हो जायें और इसके साथ इतने मेहनत से काम करें और ये सोंचे कि एक जगह ऐसी होनी चाहिए जहाँ सब लोग आ सके। अभी तो इनके घरों में ही प्रोग्राम होते हैं। तो इन्होंने मुझसे कहा था। मैंने कहा, ‘अच्छा देखो भाई, अगर कोई मिल जाये तुमको कोई जगह तो ठीक है। सबके दृष्टि से जो भी होना है वो अच्छा ही है।’ पर मेरे विचार से देहली के लोगों में ही ज्यादा परमात्मा का आशीर्वाद कार्यान्वित हुआ है। क्योंकि इस तरह से इन लोगों ने बहुत काम किया है कि देख कर बड़ा आश्चर्य होता है और जगह में तो बहुत कोशिश करने पर भी कुछ नहीं हो पाया है। ये सब आप ही का अपना है। आप ही के लिये जगह बनी हुई है और आप ही वहाँ रहेंगे और आप ही उसको इस्तेमाल करें, उसका उपयोग करें। लेकिन ये जरुरी है कि एक उसका न्यूक्लिअस होना चाहिए, एक जगह होनी चाहिए जहाँ गणेश जी की स्थापना होनी चाहिए। इस तरह की एक जगह होना जरूरी होती है। क्योंकि हर जगह के अपने- अपने वाइब्रेशन्स होते Read More …

Shri Mataji commenting on Early SY Experiences New Delhi (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date : 14nd March 1979 Place : Mumbai Туре Public Program [ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] आप एक बहुत सुन्दर प्रकृति की रचना हैं। बहुत मेहनत से, तो आखें हैं नहीं हम इसे कैसे जानेंगे और हमारे लिए भी यह नजाकत के साथ, बनाया है। आप एक बहुत विशेष अनन्त योनियों में से घटित होकर इस मानव रुप में स्थित हैं। आप इसलिए इसकी महानता जाएगी। इस प्रकार आपके अन्दर भी कोई चीज ऐसी ही बनी नहीं जान पाते क्योंकि, ये सब आपको सहज में ही प्राप्त हुआ हुई है। पूरी तरह से तैयारी कर परमात्मा ने रखी हुई है। उसको है। यदि इसके लिए मुश्किलें करनी पड़तो, आफते उठानी पड़ती जगाना मात्र है। जब आप आलौकित हो जाते हैं तो सारी की और आप इसको अपनी चेतना में जानते तो आप समझ पाते सारी चीज आपको आसानी से समझ आ जाती है। पर अगर कि आप कितनी महत्वपूर्ण चीज हैं। मनुष्य को जानना चाहिए कि परमात्मा ने हमें क्यों बनाया, इतनी मंहनत क्यों की? हम किस लिए संसार में आये और हमारा भविष्य क्या है ? हमारा कैसे बना, तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है। लेकिन आधुनिक अर्थ क्या है? जैसा कि कल मैने कहा था कि अगर हम मशीन बनायें पर इसको इस्तेमाल नहीं करें तो कोई भी अर्थ नहीं फिर उसको हटाए। उनको कोई चीज आसानी से मिल जाए तो निलकता। लेकिन जब तक ये मेन स्रोत से नहीं लगाया जाता बड़े आश्चर्य से पूछता है हमने तो कुण्डलिनी के Read More …

Mooladhara New Delhi (भारत)

Public program, Mooladhara (English & Hindi). Delhi, India. 12 March 1979. मूलाधार (परमात्मा की और आत्मा की उपलब्धि) दिल्ली, १२ मार्च १९७९ उसके लिए कुछ न कुछ घटना अन्दर होनी चाहिए, कुछ हॅपनिंग होनी चाहिए। ऐसा मैंने सबेरे बताया था आपसे मैंने। दूसरी और एक बात बहुत जरूरी है, कि परमात्मा की और आत्मा की उपलब्धि अगर एक-दो लोगों को ही हो, सिलेक्टेड लोगों को हो, और सर्वसामान्य अगर इससे अछूते रह जाये तो इसका कोई अर्थ ही नहीं निकलता । परमात्मा का भी कोई अर्थ नहीं लगने वाला , ना इस संसार का कोई अर्थ निकलने वाला है। इस क्रिएशन का भी कोई अर्थ नहीं निकलने वाला। ये उपलब्धि सर्वसामान्य की होनी ही चाहिए। अगर ये सर्वसामान्य की न हो और बहत ही सिलेक्टेड लोगों की हुई तो वही हाल होगा जो सब का हआ। जो ऐसे रहे उनको कभी किसी ने माना नहीं । और मानने से भी क्या होता है ये बताईये मुझे! समझ लीजिये कि कोई अगर बड़े राजा हैं, तो राजा हैं अपने घर में, हमको क्या ? हमको तो कुछ मिला नहीं। हमको भी तो मिलना चाहिए। तब तो उसका मतलब होता है। इसलिये ये घटना घटित होनी ही चाहिए। इतना ही कुछ नहीं, ये सर्वसामान्य में अधिक होना चाहिए। काफ़ी लोगों में होना चाहिए। साइन्स का भी मैंने बताया ऐसा ही तरीका होता है की कोई आप एक, बिजली का आपको पता लग गया, जिसको पता लगा होगा, वो अगर सर्वसामान्य के लिये नहीं उपयोग में आयेगी तो उस बिजली का क्या मतलब! Read More …

Talk about Gandhi New Delhi (भारत)

Talk about Gandhi. Mumbai, Maharashtra, India. 11 March 1979. बिल्कुल सामने आ रहा है ,जो बताया गया है ,  विशुद्धि चक्र के बारे में I अब इसी विशुद्धि चक्र से ही collective conciousness की  सीढ़ी है Iमैंने कहा था कि कृष्ण को पूर्ण अवतार माने क्योंकि ये विराट है विराट वो शक्ति है जिसमें संपूर्ण समावेश है ह्रदय में शिव जी की शक्ति है और पेट में गुरुओं की शक्ति है और स्वाधिष्ठान चक्र में ब्रह्मा देव शक्ति है ब्रेन में ब्रह्मा देव की शक्ति है आप कह सकते हैं और जब विराट जागृत हो जाता है जब  विराट का सहस्त्रार खुलता है तब इसके अंदर बसे हुए अनेक cell का पेशियों का भी सहस्त्रार खुलता है I Bible मैं कहा जाता है  परमात्मा ने मनुष्य को अपने जैसा बनाया अपना इमेज बनाया है और ये बात सही है जैसे विराट हैं वैसे ही संपूर्ण आप हैं, फर्क इतना ही है कि वो करता है और आप बनाए गए हैं इतना ही अंतर है उन्होंने बनाया और आप बनाए गए हैं Iअब वो चाहते हैं कि आप उनसे परिचय करें उनकी चाह  है उनकी चाहत में आपको बनाया है Iऔर आप को बनाने के बाद वो चाहते हैं कि आप उन्हें जाने उनकी इच्छा है जब ये उनकी इच्छा है तो वो होकर रहेगी उसके लिए भी उन्होंने पूरी व्यवस्था करके रखी है अपने अंदर पूरा Instrument बनाया है पूरी चीज बनाई है Iमैंने आपको बताई थी आज सवेरे और अब सिर्फ इतना करने का है कि आपको उनसे संबंधित Read More …

Seminar Day 2 New Delhi (भारत)

Seminar in Delhi (India), 10 March 1979. भारतवर्ष योगभूमि , सेमिनार दिल्ली, १०/३/१९७९ आज सबेरे मैंने आपसे बताया था अंग्रेजी में कि परमात्मा ने हमें जो बनाया है, आप इसे माने या न माने, उसका अस्तित्व आप समझे या न समझे वो है। और उसने हमें जिस प्रकार बनाया, जिस तरह से बनाया है वो भी | एक बड़ी खूबी की चीज़ है। मैंने सबेरे बताया था कि कैसे बहुत थोड़े से समय में एक अमीबा जैसे प्राणी से मनुष्य बनाया गया। और आप को मनुष्य बनाया गया सो क्यों? और आगे इसका क्या होने वाला है या ऐसे ही भटकता रहेगा? मैंने बताया कि आपको भगवान ने स्वतंत्रता दे दी है। चाहे तो आप परमात्मा को पायें और चाहे तो आप शैतान के राज्य में जायें। ये आपकी स्वतंत्रता है। इसके लिए कोई भी आप पर, कोई भी आप पर परमात्मा का बंधन नहीं । अगर आप गलत रास्ते जाएंगे तो आप पर वहाँ के जो कुछ भी कृपायें हैं वो होंगी। और जो आप सही रास्ते जाएंगे तो सही रास्ते का जो भी आशीर्वाद है वो आपको मिलेगा । गलत और सही जानने के लिए भी बहुत बड़ी-बड़ी हस्तियाँ संसार में आयीं, उनको हम ‘अवतार ‘ कहते हैं, अवतरित हैं। बड़े-बड़े गुरु इस संसार में आयें जो असली गुरु थे। वो जब भी आये उन्होंने सही रास्ता, धर्म का रास्ता बताया कि आप कायदे से रहिये, बीचो-बीच रहिये, अति न करिये। धर्म के नाम पर जब -जब कोई-कोई संकट आये और जब ये देखा गया कि संसार से Read More …

Creation, Man and his fulfillment (Universe is a beautiful cosmos) Gandhi Bhawan, New Delhi (भारत)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ‘सृजन, मनुष्य और उसकी संतोष-भावना’ [संपूर्ण जगत एक सुंदर ब्रह्मांड है] गांधी भवन, दिल्ली विश्वविद्यालय,  दिल्ली, भारत  1 फरवरी, 1979 इस व्याख्यान में मुझे सृजन के बारे में बात करनी चाहिए। मै उस समय से आरंभ करूंगी जब हम सिर्फ अमीबा थे। उससे पहले क्या हुआ और कैसे हम बने, ये सृष्टि बनी, मैं कल सुबह बताऊंगी। यह पता लगाना मुश्किल नहीं है कि यह ब्रह्मांड कैसे व्यवस्थित है। हर खुला दिमाग वाला वैज्ञानिक खुद देख सकता है कि यह जगत एक सुंदर ब्रह्मांड है। ये बहुत अच्छी तरह से व्यवस्थित है और बहुत सुचारू रूप से चल रहा है, और तर्क द्वारा यह भी निष्कर्ष निकाल सकता है कि इस ब्रह्मांड, इस ब्रह्मांड विशेष के निर्माण से इस धरती माता का निर्माण हुआ है। लगभग पचास लाख वर्ष पूर्व यह धरती माता गैस के रूप में अलग होकर ठंडी हो गई थी। यह कैसे ठंडा हुई, कोई नहीं जानता। लेकिन अगर उसे ठंडा किया गया तो वह सूरज जितनी ठंडी क्यों नहीं है? क्योंकि विज्ञान में कोई यह नहीं सोचता कि ‘कैसे’! वे जैसा है वैसा ही स्वीकार करते हैं। उन्हें जानना नहीं चाहिए, या वे पता नहीं लगा सकते क्योंकि उनकी सीमाएँ हैं। यह बात क्यों हुई? यह कैसे किया गया? यह कहना आसान है कि ईश्वर नहीं है लेकिन बहुत सी बातों को समझाना बहुत मुश्किल है बिना कहे कि ईश्वर है। उदाहरण के लिए, इस ब्रह्मांड को इंसान बनाने में जो समय लगा है, वह इतना कम है, इतना कम Read More …

How to Realise the Self New Delhi (भारत)

Seminar “How to Realise the Self”. Delhi (India), 8 March 1979. Shri Mataji: For the very first time? [ Hindi ? ] First time ? [ Hindi ? ] Please come. Just come forward. [ Hindi ? ] Please keep your hands like this. What are you doing? Yogi: [ ? ] Shri Mataji: [ Hindi ? ] What am I to speak? I don’t know. Yogi: How to realize Self? Shri Mataji: [Hari ?] – how to realize Self? [Loudspeaker hain – more Hindi ?]. Yogi: [ ? ] Shri Mataji: This is a very nice question, “How to realize the Self?” The first word – how. [On this ?] one can say, that Self can be realized and is to be realized, will be realized. But you cannot realize Self. You cannot. You have become a human being from amoeba. How did you become? What did you do? You got it just as a blessing from God. In the same way, Self-Realization is also the blessing of God. It is spontaneous. It is a living thing. Anything living happens spontaneously, by itself. Do you ever say – how am I to sprout the seed? It will sprout by itself. Why? Because all the mechanism, all the energy that is required for it to sprout is embedded in it, is built in it. In the same way, all that is required to reach to your Self is embedded within you. It is waiting there for that moment when it Read More …

Triguna New Delhi (भारत)

Trigun – Bhartiy Sanskruti Ka Mahatva IV Date 3rd February 1978 : Place Delhi : Public Program Type : Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] जिस शक्ति को आप इस्तेमाल कर रहे हैं उसे चल रहा है, माताजी थोड़ा म्यूजिक कर दें? हमने Refill कर लेते हैं हम। Modern बीमारी एक और कहा कर दो भाई। ऐसे ही बैठेगें आराम से। हमारे जिसे हम Tension कहते हैं। Tension’ मुझे तो Vibrations चलते रहते हैं, आप Receive करते Tension आ गया, पहले किसी को Tension नहीं रहिए। अब उन्होंने ज़रा लम्बा चौड़ा कर दिया जरा Music, तो लोग कहने लगे अब जरा जल्दी खत्म आता थी। तब तो Tension आना ही हुआ कि आप निकले पुरानी दिल्ली से माताजी के Programme करो, जल्दी खत्म करो। मैंने कहा क्यों भई तुमको में जाने के लिए। अब 6.30 बजे पहुँचना ही चाहिए, मेरा Lecture सुनने का है पर मेरी तो आज तबियत पहले सीट पर बैठना ही चाहिए। देर से जाएंगे, नहीं कर रही। अपने तो तबीयत से चलते हैं, कोई हर्ज नहीं, देर से भी आ सकते हैं। वो समय Temperamental आदमी हैं, अभी आज तो भई आप के आने का था आप आ गए कोई बात नहीं। ऐसी कौन सी आफत मची हुई हैं? भाई मुझे कहाँ भी सुनो मेरे साथ। आराम से क्यों नहीं सुनते? जाने का है और आपको कहाँ जाने का है? आराम अच्छा म्यूजिक चल रहा है, भई सुनो। ऐसी कौन तबीयत हो नहीं रही। तो म्यूजिक ही सुनने दो, तुम Read More …

Public Program, Brahmajana New Delhi (भारत)

Brahama Ka Gyan (Knowledge of Bramh) Date : 1st February 1978 Place Delhi Type Public Program ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK कुछ चक्रों के बारे में बता चुकी हूँ। और इसके आगे के चक्रों के बारे में भी आज बताऊंगी। जैसे कि पहले चक्र का नाम मैंने आपसे बताया मूलाधार चक्र है। जो नीचे स्थित यहाँ पर चार पंखुड़ियाँ वाला होता है। और इस चक्र से क्योंकि ये सूक्ष्म चक्र है और इसका जो जड़ अविभाव है, इसका जो ग्रोस एक्सप्रेशन है, उसे पेल्व्हिक प्लेक्सस कहते हैं। और इसमें श्रीगणेश के बहुत ही पवित्र चरण रहते हैं। और उससे ऊपर जो | त्रिकोणाकार यहाँ पर बना हुआ है, इसमें कुण्डलिनी का स्थान है और ये बड़ा भारी महत्वपूर्ण बिंदु मैंने आपसे बताया था की श्रीगणेश नीचे होते हैं और कुण्डलिनी उपर होती है। ये बहुत समझने की बात है। इसी चीज़ को ले कर के लोगों ने बड़ा उपद्व्याप किया हुआ है। कहना कि गणेश जी मूलाधार चक्र में होते हैं, जिसे सेक्स का संबंध से हैं। या तो बिल्कुल ही सेक्स से दूर हटा कर के और कहना कि सेक्स से दूर हट के और सारे ही कार्य करते रहना, ये परमात्मा है। इस तरह की दो विक्षिप्त चीज़ें चल पड़ती हैं । सेक्स का आपके उत्क्रांति (इवोल्यूशन) से कोई भी संबंध नहीं है। कोई भी संबंध नहीं । लेकिन सेक्स से भागने की भी सहजयोग में कोई भी जरूरत नहीं । एक जीवनयापन की वो भी एक चीज़ है। पर इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं जिसे लोग समझते हैं। और एक Read More …

The Normal Human Awareness New Delhi (भारत)

                    मानव चेतना से परे  दिल्ली (भारत), 23 फरवरी 1977 और मैं कल ही कुंडलिनी पर दो घंटे बात कर चुकी हूं। जो लोग मेरा भाषण सुनना चाहते हैं वे श्री राय के साथ इसकी व्यवस्था कर सकते हैं और कभी आ सकते हैं और इसे सुन सकते हैं। लेकिन आज आपको हमारे स्वायत्त तंत्रिका तंत्र को नियंत्रित करने वाली तीन शक्तियों और हमारे सभी स्वायत्त व्यवहार की देखभाल करने वाले सात केंद्रों के बारे में बताने के बाद, जो हमारे विकास के विभिन्न चरणों के मील के पत्थर हैं … केंद्र देवताओं के प्रतीक धारण किये हैं जो हमारे विकास के लिए जिम्मेदार हैं, जिन्होंने हमें मार्गदर्शन देकर, हमें नेतृत्व देकर विकसित होने में मदद की है। पूरी कार्रवाई सहज रही है। जैसा कि मैंने कल आपको बताया, ‘सहज’: ‘सह’ का अर्थ है ‘साथ’, ‘ज’ का अर्थ है ‘जन्म’, आपके साथ पैदा हुआ। एक बीज में वृक्ष और भविष्य में आने वाले सभी वृक्षों का पूरा नक्शा सूक्ष्मतम रूप से रखा होता है। उसी तरह, हमारे अस्तित्व में, पूरा नक्शा रखा गया था। अमीबा या उससे भी पहले की अवस्था से हम इंसान होने के लिए काफी लंबी दूरी पार कर चुके हैं। आज मैं आपको सामान्य मानव चेतना के आसपास क्या है इसके बारे में बताने जा रही हूँ। हमें मनुष्य को उसकी संपूर्णता में समझना होगा। जो कुछ भी अज्ञात है उस सारे को जानना बहुत आवश्यक है, क्योंकि जो कुछ भी अज्ञात है वह सब परमात्मा नहीं है। हमें ऐसी गलतफहमी नहीं होना चाहिए की जो कुछ Read More …

The Creation New Delhi (भारत)

“The Creation”, New Delhi (India), 20 February 1977 [Hindi translation from English] आज हमने ‘सृजन’ विषय पर बात करने का निर्णय किया है, परन्तु हमारे आयोजक मेरे लिए श्यामपट और चाॉँक की व्यवस्था नहीं कर पाए हैं। में नहीं जानती, बिना रेखाचित्र बनाए मैं इसकी व्याख्या करने का प्रयत्न करूंगी। यह अत्यन्त कठिन विषय हे, परन्तु आपके लिए मैं इसे सुगम (बोधगम्य) बनाने का प्रयत्न करूंगी और ये अनुरोध भी करूंगी कि ‘सृजन’ जैसे दुर्गण विषय को समझने के लिए आप अपना पूरा चित्‌ इस पर बनाए रखें। आज एक अन्य आशीर्वाद भी है। आज का महानतम आशिष ये है कि आपमें से बहुत से लोग चैतन्य लहरियों को अनुभव कर सकते हैं। केवल इतना ही नहीं, आप ये भी जानते और महसूस करते हैं कि चेतन्‍्य लहरियाँ सोच सकती हैं और प्रेम कर सकती हैं – ये बहुत बड़ा वरदान है। नि:सन्देह आपमें से कुछ लोगों को ये प्राप्त नहीं हो पाई हैं, परन्तु जिन्हें प्राप्त हो गई हैं, वो जानते हैं कि ये (चेतन्‍्य लहरियाँ) आयोजन करती हैं, क्योंकि ये कुण्डलिनी उठाती हैं, ये उस स्थान पर जाती हैं जहाँ इनकी आवश्यकता होती है, करुणा के कारण ये शरीर के उस भाग में पहुँचती हैं जहाँ पर कमी होती है। वे समझती हैं, अपने सर्वव्यापी स्वभाव का आयोजन करती हैं और प्रेम करती हैं। जब-जब भी आप इनसे प्रश्न करते हैं, ये आपके प्रश्नों का उत्तर देती हैं – आपको उनसे उत्तर प्राप्त होते हैं। ये जीवन्त चैतन्य लहरियाँ हैं। ये परमेश्वरी देन हैं। परमेश्वर को ब्रह्म कहा Read More …

Talk To New Yogis, Problems From Fake Gurus New Delhi (भारत)

Naye Sahaj Yogiyose Batchit, New Delhi, 19-02-1977 आप में से बहुत से लोग पार हो गये हैं माने इनके हाथ में से वाइब्रेशन्स आये हैं। मैंने पहले भी चक्रों के बारे में बताया है आपको। और मैं ये मानती हूँ कि आप में से बहुत से लोगों के हाथ में से वाइब्रेशन्स आये। लेकिन ऐसे भी बहुत से लोग देख रही हूँ कि जिनके नहीं आये हैं। अब जो लोग पार हो गये हैं, जिनके हाथ से वाइब्रेशन्स आ रहे हैं और जो निर्विचार हो गये हैं, उनके लिये कोई बात कही जाये, तो उनको भी सुन लेना चाहिये जो अभी नहीं हये हैं। क्योंकि वो भी हो जायेंगे पार। पार तो जितने भी हो सकते हैं होने चाहिये और हो ही सकते हैं अधिकतर लोग पार। लेकिन किसको अगर ये पहले से ही दिमागी जमा-खर्च है बहत सारे और कुछ आयडियाज हैं फंड के बारे में, ये और वो, तो जरा उसको जरा टाइम जादा लगता है। क्योंकि पहले उसको उसके रस्ते पे लाना पड़ता है, जैसे कोई दूसरे रस्ते पे चला गया हो। जैसे अभी आपने मुझे चिठ्ठी दी कि बिल्कुल उल्टा रस्ता है, आपने जो बताया एकदम उल्टा रस्ता। और वो यही धंधे करते आ रहे हैं। हजारों आदमी उनके पास जाते हैं, और इसी तरह से उनका सर्वनाश होता है। और इस सर्वनाश में, मैं हिसाब लगा रही थी, कि इस देश में या समाज में करीबन तीन करोड़ लोगों का सर्वनाश हो गया है, अपने भारत देश में। तीन करोड़ लोगों का व्यवस्थित रूप से Read More …

Mahashivaratri Puja New Delhi (भारत)

1977-02-16 Mahashivaratri: Sat-Chit-Ananda, Delhi महाशिवरात्री, १९७७ फरवरी १६ आज का दिन कितना शुभ है की महाशिवरात्री के दिन हम लोग सब साथ शिव की स्तुती गा रहे हैं। शिव याने सदाशिव, इन्हीं से सृष्टी शुरू हुई है और इन्हीं में खत्म होती है। सबसे पहले गर आप ब्रम्ह को समझे तो ब्रम्ह से शक्ती और शिव, जैसे की एक cell के अंदर उसका न्युक्लिअस nucleus होता है, उसी की तरह शिव और शक्ती सबसे पहले ब्रम्ह में स्थापित होते हैं। सृष्टी कैसी हुई, किस प्रकार ये घटना घटित हुई, किस प्रकार ब्रम्ह शिव और शक्ती के रूप में प्रगट हुए ये सारी बातें मैं आपको शनिवार और रविवार में बताऊँगी। लेकिन शिव से निकलती हुई ये शक्ती जब एक paraboly में घूमती है, जब एक प्रदक्षिणा लेती हैं तो एक एक विश्व तैयार होते है। ऐसी अनेक प्रदक्षिणाएँ, शक्ती की होती रही। इसके बारे में भी मैं आपको बाद में बताऊँगी। अनेक विश्व तैयार होते रहे, अनेक भुवन तैयार होते रहे और मिटते भी रहे। शिव से शक्ती हटकरके विश्व बनाती हैं। शिव सिर्फ साक्षी स्वरूप रहते हैं। वे खेल देखते रहते हैं शक्ती का। शक्ती का अगर खेल उनकी समझ में न आए, तब वे जब चाहें तब अपनी शक्ती अपने अंदर खिंच ले सकते हैं। सारा ही खेल बंद हो जाता है। वे ही द्रष्टा हैं, वही देखनेवाले हैं। वही इस खेल के आनंद को उठानेवाले हैं। उन्ही के कारण सारा खेल है। इसलिए गर वो न रहें तो सारा खेल खत्म हो जाता है। वो स्थिति हैं। Read More …