Swadishthan, Thinking, Illness Part 1 Hilton Hotel Sydney, Sydney (Australia)

“स्वाधिष्ठान, सोच, बीमारी”  हिल्टन होटल, सिडनी (ऑस्ट्रेलिया), 16 मार्च 1990। मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। आपको यह जानना होगा कि सत्य वही है जो है। हम अपनी मानवीय चेतना के साथ इसकी अवधारणा नहीं कर सकते। हम इसे आदेश नहीं दे सकते, हम इसमें हेरफेर नहीं कर सकते, हम इसे व्यवस्थित नहीं कर सकते। जो था, है और रहेगा। और सच क्या है? सत्य यह है कि हम घिरे हुए हैं या हममें समायी हुई है अथवा एक बहुत ही सूक्ष्म ऊर्जा द्वारा हमारा पोषण, देखभाल और प्रेम किया जाता है ऐसी उर्जा जो दिव्य प्रेम की है। दूसरा सत्य यह है कि हम यह शरीर, यह मन, ये संस्कार, यह अहंकार नहीं हैं, बल्कि हम आत्मा हैं। जो मैं कह रही हूं उसे आंख मूंदकर स्वीकार करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अंधविश्वास कट्टरता की ओर ले जाता है। लेकिन वैज्ञानिकों के रूप में आपको अपने दिमाग को खुला रखना चाहिए और जो मैं कह रही हूँ उसे खुद पड़ताल करना चाहिए: यदि ऐसा जान पड़े, तो ईमानदारी से आपको इसे स्वीकार करना चाहिए। हम अपनी सभ्यता, अपनी उन्नति के बारे में विज्ञान के माध्यम से बहुत कुछ जानते हैं। यह एक वृक्ष की उन्नति के सामान है जो बाहर बहुत अधिक बढ़ गया है; लेकिन अगर हम अपनी जड़ों को नहीं जानते हैं, तो हम नष्ट हो जाएँगे। इसलिए जरूरी है कि हम अपनी जड़ों के बारे में जानें। और मैं कहूँगी की यही है हमारी जड़ें हैं। जैसा कि आप देख सकते हैं, Read More …

Thinking and How we trigger a cancer Auckland (New Zealand)

                                           सार्वजनिक कार्यक्रम  1990-03-14, ऑकलैंड, न्यूजीलैंड उदाहरण के लिए, हम बहुत मेहनत करते हैं, बहुत ज्यादा सोचते हैं, आप राइट साइडेड हैं; इसकी भरपाई करने के लिए,  कहते हैं, हम स्लिपिंग पिल्स या ड्रिंक्स, या ऐसा ही कुछ लेते हैं, केवल क्षतिपूर्ति करने के लिए। बहुत ज्यादा राईट साइड को हम सहन नहीं कर पाते। लेकिन ऐसा सब करने से आपको कोई मदद नहीं मिलती, क्योंकि आप एक छोर से दूसरे छोर तक झूलते रहते हैं। इसलिए, आपको मध्य में गति करनी होती है, और उसके लिए हमारे भीतर एक विशेष तंत्र है। जैसा कि मैंने कल आपको बताया था, आपको बहुत वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखना होगा, अपने दिमाग को खुला रखना होगा। अगर यह काम करता है, तो आपको ईमानदार लोगों के रूप में इसे स्वीकार करना होगा। हम कहते हैं कि हम संशयवादी हैं। ठीक है, लेकिन हम इसके बारे में खुद को खुला रख सकते हैं, क्योंकि आखिरकार, हम परम सत्य तक नहीं पहुंचे हैं। तो, अगर आपको उस सत्य तक पहुंचना है, तो हमें कैसा होना चाहिए? हो सकता है कि भारत के लोगों को इसकी अधिक जानकारी है, आंतरिक दुनिया में उनकी खोजों के कारण। लेकिन, पश्चिम में भी,इस ज्ञान कि आवश्यकता है क्योंकि, जैसा कि मैंने कल कहा था, कि जो पेड़ इतना बड़ा हो गया है, उसे अपनी जड़ों को जानना है। वरना हमेशा कोई एक समस्या होती है, जिसका सामना करना आपको नहीं आता। इसलिए, जैसा कि मैंने आपको जड़ों के बारे में बताया है, अब, बाईं बाज़ू और दाईं बाज़ू, दो अनुकंपी तंत्रिका Read More …

Public Program, Sakshi Swaroop (भारत)

साक्षी स्वरूप हैद्राबाद, ७.२.१९९० सत्य के बारे में बताया था कि सत्य अपनी जगह अटूट, अनंत है और उसे हम अपने बुद्धि से, मन से, किसी भी तरह से बदल नहीं सकते। और सत्य क्या है? सत्य ये है कि हम, जो आज मानव स्वरूप हैं वो वास्तविक में आत्मास्वरूप है। एक आज ऐसी स्थिति पर हम खड़े हैं जहाँ हम स्वयं को एक मानव रूप में देख रहे हैं। और इससे एक सीढ़ी चढ़ने से ही हम जान लेंगे कि हम इस मानव स्वरूप से भी एक ऊँचे स्वरूप में उतर सकते हैं जहाँ हम आत्मास्वरूप हो जाते हैं। ये एक महान सत्य है। लेकिन परम सत्य ये है कि ये सारी चराचर सृष्टि, सारी दुनिया, मनुष्य, प्राणीमात्र, जड़ चेतन सब जीव है। एक ब्रह्मचैतन्य के सहारे जी रही है, पनप रही है, बढ़ रही है। और ये परम चैतन्य चारों तरफ सूक्ष्मता से फैला हुआ है जो कि सब चीज़ों को बनाता है, सब चीज़ों को सृजन करता है, बढ़ाता है और जो कुछ भी आज हम इन्सान बने हैं वो भी इस परम चैतन्य के कृपा से ही बने हैं। इस परम चैतन्य में ऐसी शक्ति है कि जिससे वो हमें ज्ञान दे सकता है, ऐसा ज्ञान कि जो एकमेव ज्ञान है। जिसे कि हम ये जान सकेंगे कि हम क्या है? हमारे अन्दर क्या स्थिति है? हम कहाँ हैं? और हमारा लक्ष्य क्या है? वो ज्ञान देता है कि जिससे हम अन्दर से ही महसूस करते हैं, अन्दर से ये हमें ज्ञात होता है कि हम Read More …

Reach the Absolute Truth Kyiv, Antonov Aircraft Corp. Palace of Culture (Ukraine)

सार्वजनिक कार्यक्रम दिवस 1 एंटोनोव एयरक्राफ्ट कार्पोरेशन, पैलेस ऑफ कल्चर, कीव,यूक्रेन,यूएसएसआर,  22 अक्टूबर, 1989 मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। सबसे पहले हमें यह जानना होगा कि सत्य जो है वह है। हम इसे व्यवस्थित नहीं कर सकते, हम इसे आदेश नहीं दे सकते। और मानवीय स्तर पर हम इसे हासिल नहीं कर सकते। हम अमीबा से इंसानों की इस अवस्था तक बन गए हैं। लेकिन अभी भी हम अपने परम सत्य तक नहीं पहुंचे हैं। कुछ लोग मानते हैं कि अमुक अच्छा है, कुछ लोग मानते हैं कि वह अच्छा है। तो इसके तहत हम भावनात्मक आधार पर या तर्कसंगत आधार पर कुछ तय कर सकते हैं। और ये दोनों सीमित हैं। तार्किकता से किसी भी बात को जायज ठहराया जा सकता है। साथ ही भावनात्मक रूप से हम न्यायोचित ठहरा सकते हैं; हमारी भावनात्मक जरूरतें हो सकती हैं। तो हर कोई अपने अनुमानों के अनुसार अलग तरह से सोच सकता है। तो आपको एक ऐसे अवस्था पर जाना होगा, एक ऐसी स्थिति जहां आप सभी इसे एक सामान रूप से ही कह सकते हैं, यह सत्य है। पूरी मानवता को उस स्थिति में आना होगा जहां वे जान सकें कि यह है निरपेक्ष। इसलिए हमें यह समझना होगा कि हमारा विकास अभी पूरा नहीं हुआ है। इसमें एक और महत्वपूर्ण खोज़ है। यह खोज़ है आत्म-साक्षात्कार। अपने आप को जानना है। स्वयं को जानना संभव नहीं है यदि आप इसे मानसिक, शारीरिक या भावनात्मक रूप से क्रियान्वित करते हैं। आखिर जब हम अमीबा से इस Read More …

The International Situation (Location Unknown)

                                        अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति  1989-0901 [एक सहज योगी के अनुरोध के जवाब में दी गई वार्ता। स्थान अज्ञात। संभवतः यूके] हमारे ग्रह, या धरती माता की स्थिति बहुत ही नाज़ुक है। एक तरफ हम इंसानों के हाथों महान विनाश के संकेत देखते हैं और इसलिए ये हमारा खुद का कृत्य हैं। विनाश का प्रबल प्रभावशील विचार मनुष्य के अंदर काम कर रहा है, लेकिन यह विनाश बाहर पैदा करता है। जरूरी नहीं की यह विनाशशीलता जानबूझकर है, लेकिन अंधी और बेकाबू है। इसी अंधेपन और अज्ञानता को ज्ञान प्रकाशित कर दूर करना है। भारत के प्राचीन पुराणों के अनुसार यह आधुनिक समय निश्चित रूप से कलियुग के काले दिन हैं जो बड़े पैमाने पर आत्म-साक्षात्कार या आत्मज्ञान का युग भी हैं। लेकिन, हमारे पास अभी भी हमारे अतीत या हमारे इतिहास की कई समस्याएं हैं जिन्हें पहले ही सुलझाना होगा। इनका अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति पर प्रभाव पड़ता है, तो पहले देखते हैं कि किस समस्या या किन समस्याओं का समाधान करना है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में, हाल के वर्षों में कई मूलभूत समस्याएं रही हैं। विश्व युद्ध के बाद का सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक विकास साम्यवाद और लोकतांत्रिक विचार के बीच संघर्ष रहा है। इन राजनीतिक विचारों के स्वरुप और सरकार के बीच एक मौलिक दरार थी, और इसके परिणामस्वरूप पूर्व और पश्चिम के बीच लगातार तनाव बना रहा। यह मानवता के भविष्य के लिए हमारे समय के बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक बन गया। हाल के वर्षों में, हालांकि, एक बड़ा बदलाव शुरू हुआ, सबसे पहले चीन में श्री डेंग (देंग जियानपिंग) Read More …

What is the difference between Sahaja Yoga and other yogas? Milan (Italy)

                              सहज योग और अन्य योग में अंतर  मिलान, 6 अगस्त 1989 मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। आप यहां सत्य को महसूस करने के लिए आये हैं। न की केवल मानसिक रूप से इसकी अवधारणा करने। अब,  एक प्रश्न है, कल लोगों ने पूछा कि सहज योग और अन्य योगों में क्या अंतर है। इन सभी योगों को पतंजलि नामक एक संत ने बहुत पहले लिख दिया था। और उन्होंने इसे आठ पहलुओं वाला अष्टांग योग, अष्टांग कहा। उनका अस्तित्व हजारों साल पहले हुआ था, और उस समय हमारे पास एक प्रणाली थी जिसमें छात्र किसी प्रबुद्ध आत्मा, एक गुरु, सतगुरु के अधीन अध्ययन करने के लिए विश्वविद्यालय में जाते थे। तो, योग अर्थात परमात्मा के साथ मिलन के आठ पहलू हैं। तो, पहला उन्हें जिस रूप में मिला ‘यम’ है। यम, नियम। यम पहले हैं जिसमें उन्होंने लिखा है कि हमें अपने श्वसन को ठीक करने के लिए या अपने दुर्व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए क्या करना चाहिए। तो उसमें से एक तिहाई आसन हैं जहां आप किसी विशेष प्रकार की समस्या के लिए शारीरिक व्यायाम करते हैं। लेकिन वह हठ योग नहीं है। हठ योग एक पूर्ण पतंजलि योग शास्त्र है, योग – अर्थात पूर्ण पतंजलि योग शास्त्र है। आसन या शारीरिक व्यायाम के ये अभ्यास बहुत छोटा भाग हैं, उनमें से एक का चौबीसवां भाग हैं। ‘ह’ और ‘ठ’, ह का अर्थ है सूर्य और ठ का अर्थ है चंद्रमा। अतः हठ योग में दोनों का विचार किया गया है। क्योंकि हमारा अस्तित्व Read More …

Become the light and give the light Spreckels Organ Pavilion, San Diego (United States)

Public Program Day 2, San Diego (USA), 19th of June, 1989 सार्वजनिक कार्यक्रम  दूसरा दिवस   सैन डिएगो (यूएसए), 19 जून, 1989 कृपया बैठ जाएँ। मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। जैसा कि मैंने कल आपको बताया था कि हम सत्य की अवधारणा नहीं बना सकते। हम इसे बदल नहीं सकते, हम इसे व्यवस्थित नहीं कर सकते। सत्य की समझ एक अनुभव है|  सत्य को आपकी अनुभूति में होना आवश्यक है। यह इसके बारे में सिर्फ एक मानसिक रवैया नहीं है। क्योंकि दुनिया में,  अगर आप देखें तो ऐसे लोग हैं जो इस या उस तरह के दर्शन को मानते हैं,  इस या उस धर्म को मानते हैं,  हर तरह की बातों को मानते हैं और बड़े आत्मविश्वास से कहते हैं, मैं उस पर विश्वास करता हूं। लेकिन आपके जो भी विश्वास हों, आपका दर्शन या आपका धर्म कोई भी हो, कोई भी व्यक्ति कुछ भी पाप कर सकता है, किसी भी प्रकार की हिंसा कर सकता है, किसी का भी अहित कर सकता है। कोई रोकथाम नहीं है। आप ऐसा नहीं कह सकते कि चूँकि मैं अमुक -अमुक हूं , ऐसा नहीं कर सकता। इसका मतलब है कि विश्वास केवल ऊपरी तौर पर है। और इसलिए हम दूसरों की आलोचना किए चले जाते हैं। अब उदाहरण के लिए यदि आप मुसलमानों के बारे में जानना चाहते हैं, तो आप यहूदियों से बात करें। और अगर आप यहूदियों के बारे में जानना चाहते हैं तो आप ईसाइयों से बात करें। यदि आप ईसाइयों के बारे में जानना चाहते Read More …

Public Program, Kundalini Ke Jagran Ke Bad Labh (भारत)

Kundalini Ke Jagran Ke Bad Labh Date 16th March 1989 : Noida Place Public Program Type Speech Language Hindi सब से पहले तो कहना है कि नोएडा का कुछ ऐसा नसीब है, कि कितनी भी कोशिश करिये आप जल्दी (अस्पष्ट)। कब से वही इंतजार कर रहा था नोएडा, मुझे भी और आप को भी। क्योंकि बिना वजह की देर हो गयी। रास्ते में कोई वीआयपी साहब अगर दिल्ली में आ जाये तो सब रस्ते बंद हो जाते हैं। फिर कोई आदमी हिल नहीं सकता। इसी प्रकार न जाने कितने लोगों को अपना समय बर्बाद करना पड़ता है। आप लोग भी बहुत देर से इंतजार कर रहे थे और मैं भी, कि कब हम पहुँच रहे हैं, कब हम पहुँच रहे हैं। पर कुछ ऐसा ही नसीब है कि नोएडा में आने में एक इंतजार का भी मजा उठाना पड़ता है। आप लोगों की भी कमाल है कि आप इतनी देर से बैठे रहे। और अपनी माँ को मिलने के लिये तो सभी बहुत लालायित होते हैं, पर कलियुग में ऐसा ही सुना था कि बच्चे तो माँ की परवाह ही नहीं करेंगे। मैं तो उल्टा ही हाल देख रही हूँ। इसका मतलब कलियुग भी खत्म हो गया, कृतयुग भी खत्म हो गया और ये सत्ययुग आ गया है। कृतयुग में परम चैतन्य जो है वो कार्यान्वित होता है। ये तो आप जानते हैं कि परम चैतन्य का कार्य शुरू हो गया है। अगर परम चैतन्य कार्य न करते तो हम इतने लोगों को पार नहीं करते। उनके कार्यान्वित होने में Read More …

Public Program, Satya aatma ke prakash men hi jana ja sakta hai (भारत)

Sarvajanik Karyakram 12th March 1989 Date : Noida Place Public Program Type Speech Language Hindi सत्य को खोजने वाले सभी साधकों को हमारा प्रणाम ! सब से पहले तो बड़ी दुःख की बात है, कि इतनी देर से आना हुआ और एरोप्लेन ने इतनी देरी कर दी और आप लोग इतनी उत्कंठा से और इतनी सबूरी के साथ सब लोग यहाँ बैठे हये हैं। और हम, असहाय माँ, जो सोच रही थी कि किस तरह से वहाँ पहुँच जायें? आप लोगों को देख कर ऐसा लगता है, कि ये दुनिया बदलने के दिन आ ही गये हैं। आपकी उत्कंठा बिल्कुल जाहीर है। और आपकी इच्छा यही है, कि हम सत्य को प्राप्त करें। सत्य के बारे में एक बात कहनी है, कि सत्य जैसा है वैसा ही है। अगर हम चाहें कि उसे हम बदल दें, तो उसे | बदल नहीं सकते। और अगर हम चाहे कि अपने बुद्धि या मन से कोई एक धारणा बना कर उसे सत्य कहें, तो वो सत्य नहीं हो सकता। तो सत्य क्या है? सत्य एक है कि हम सब आत्मा है। हम आत्मास्वरूप है। इतनी यहाँ सुंदरता से आरास की हुई है और इतने दीप जलायें हैं, जिन्होंने प्रकाश दिया है। जिससे हम एकद्सरे को देख रहे हैं और जान रहे हैं। पर अगर यहाँ अज्ञान का अंधेरा हों, अंधियारा छाया हुआ हो और हम उस अज्ञान में खोये हये हैं, तो एक ही बात जाननी चाहिये, कि हम सब प्रकाशमय हो सकते हैं और हमारे अन्दर भी दीप जल सकता है। और Read More …

Conversation with doctors New Delhi (भारत)

Conversation with doctors, New Delhi (India), 4 November 1986. Left symphatetic nervous system represents our emotional side. Right symphatetic nervous system represents our physical side. When both come into play (i.e. psyche as well as somatic) then psychosomatic problems result. In the over activity of Right side, liver is the commonest to be disturbed. This is because of too much thinking. “Swadistan Centre” has to manufacture grey cells for the brain when brain is over active – futurustic and indulges in wasteful thinking – then these cells are used too much. Liver disorders are also of two types i.e. – slow or inactive liver (in a left sided emotional person) this leads to allergies; – Overactive liver disorders in a Right sided person. Right sided liver disorder (that is overactive or hot liver). Liver has an important function to remove poisions from the body. It removes the heat from the body system into the water in blood. H O = 2. H + O H becomes H-O-H after absorbing 2 O H heat from liver. In alcohol LIVER O H No penetration is possible. H So the heat in the system remains. But with vibrations it is possible to correct it Left side is Hydrogen (MOON), Right is Oxygen, Amino-Acids (NITROGEN) forms the para sypathetic and carbon is below (i.e. Mooladhar). Alcohol causes sluggish liver. In overactivity of liver, Co2 is formed and Oxygen is sucked. So the fuction of liver is disturbed. In lethargic liver, poisions are not removed Read More …

Public Program कोलकाता (भारत)

1986-10-12 Calcutta Public Program (Hindi) और आप सबसे मेरी विनती है, कि जो लोग परमात्मा की खोज में भटक रहे हैं, उन्हें भी पहले संगीत का आश्रय लेना पड़ेगा – उसके बगैर काम नहीं बनने वाला। क्योंकि अपने भारतीय संगीत की विशेषता यह है कि यह अत्यंत तपस्विता से और मेहनत से ही मिलती है। उसकी गंभीरता, उसकी उड़ान, उसका फैलाव, उसकी गहराई, उसकी नज़ाकत, सब चीज़ों में परमात्मा के दर्शन मनुष्य को हो सकते हैं। और सारा ही संगीत उस ओम(ॐ) से निकला है, जिसे लोग रूह के नाम से जानते हैं। इसलिए, जब इस संगीत से मनुष्य तल्लीन हो जाता है, उसके लिए आसान है कि वो परमात्मा को पाए। शायद आपको मेरी बात कुछ काव्यमय लगे और कुछ यथार्थ से दूर प्रतीत हो, शायद ऐसा अहसास हो कि मैं कोई बात को इस तरह से कह रही हूँ, जैसे कि संगीत कलाकारों को आनंद आये, किन्तु यह बात सच नहीं है। अपने अंदर भी सात चक्र हैं और सब मिला कर के बारह चक्र हैं, उसी प्रकार संगीत में भी सात स्वर और पांच और स्वर मिला कर के पूरा एक स्केल बन जाता है। हमारे चक्रों में जब कुण्डलिनी गति करती है, और जो स्वर उठाती है, वही स्वर हमारे संगीत में माने गए हैं। हमारा भारतीय संगीत बड़े दृष्टों ने, ऋषियों ने, मुनियों ने पाया हुआ है। वह चाहे किसी भी धर्म के रहे हों, वह किसी भी देश के हिस्से में पैदा हुए हों, उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम वह कहीं भी उनका जन्म हुआ Read More …

Sahajyog ke Anubhav कोलकाता (भारत)

Sahajyog ke Anubhav Sahajyog Ke Anubhav31st March 1986Place KolkataPublic ProgramSpeech Language Hindi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK सत्य को खोजने वाले सभी साधकों को हमारा प्रणिपात! सत्य क्या है, ये कहना बहुत आसान है। सत्य है, केवल सत्य है कि आप आत्मा हैं। ये मन, बुद्धि, शरीर | अहंकारादि जो उपाधियाँ हैं उससे परे आप आत्मा हैं। किंतु अभी तक उस आत्मा का प्रकाश आपके चित्त पर | आया नहीं या कहें कि आपके चित्त में उस प्रकाश की आभा दृष्टिगोचर नहीं हुई। पर जब हम सत्य की ओर नज़र करते हैं तो सोचते हैं कि सत्य एक निष्ठर चीज़ है। एक बड़ी कठिन चीज़ है। जैसे कि एक जमाने में कहा जाता था कि ‘सत्यं वदेत, प्रियं वदेत।’ तो लोग कहते थे कि जब सत्य बोलेंगे तो वो प्रिय नहीं होगा। और जो प्रिय होगा वो शायद सत्य भी ना हो। तो इनका मेल कैसे बैठाना चाहिए? श्रीकृष्ण ने इसका उत्तर बड़ा सुंदर दिया है। ‘सत्यं वदेत, हितं वदेत, प्रियं वदेत’ । जो हितकारी होगा वो बोलना चाहिए। हितकारी आपकी आत्मा के लिए, वो आज शायद दुःखदायी हो, लेकिन कल जा कर के वो प्रियकर हो जाएगा। ये सब होते हुए भी हम लोग एक बात पे कभी-कभी चूक जाते हैं कि परमात्मा प्रेम है और सत्य भी प्रेम ही है। जैसे कि एक माँ अपने बच्चे को प्यार करती है तो उसके बारे में हर चीज़ को वो जानती है। उस प्यार ही से उद्घाटन होता है, उस सत्य को जो कि उसका बच्चा है। और प्रेम की भी Read More …

How to enlighten energy centers? Unity of Houston Church, Houston (United States)

उर्जा केंद्रों को कैसे प्रबुद्ध करेंसार्वजनिक कार्यक्रम, यूनिटी चर्च। ह्यूस्टन (यूएसए), 30 मई 1986। मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। हमें यह समझना होगा कि सत्य जो है सो है, हम उसकी कल्पना नहीं कर सकते। हम इसे प्रबंधित नहीं कर सकते। हम इसे आदेश नहीं दे सकते। बस एक वैज्ञानिक व्यक्तित्व की तरह से, हमारे पास यह देखने के लिए खुला दिमाग होना चाहिए कि यह क्या है। जैसे हम किसी भी विश्वविद्यालय या कॉलेज में जाते हैं, हम यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि वहां क्या है, उसी तरह जब हमें सच्चाई के बारे में पता लगाना है, तो हमें बहुत खुले विचारों वाला होना चाहिए। लेकिन जब हम ‘प्रेम’ की बात करते हैं, तो हमें पता होना चाहिए कि प्रेम और सच्चाई एक ही चीज है। परमेश्वर के प्रेम और स्वयं सत्य में कोई अंतर नहीं है। यह अंतर तब होता है जब हम ईश्वर के साथ एकाकार नहीं होते। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी से बहुत सांसारिक स्तर पर भी प्रेम करते हैं, यदि आप किसी से शारीरिक रूप से प्रेम करते हैं, तो आप कह सकते हैं, या शारीरिक रूप से, आप उस व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ जानते हैं; तुम बस इसे जानते हो। लेकिन जब तुम सत्य को जान लेते हो, तब तुम प्रेम बन जाते हो। और जिस प्रेम के बारे में मैं आपको बता रही हूं वह वो प्रेम है जो सर्वव्यापी है, जो क्रियांवित होता है, समन्वय करता है और सत्य है। लेकिन, Read More …

Public Program, About all chakras कोलकाता (भारत)

Samast Chakra Date 2nd April 1986 : Place Kolkata Public Program Type Speech Language Hindi सहजयोग की शुरुआत एक तिनके से हुई थी जो बढ़कर आज सागर स्वरूप हो गया है। लेकिन इससे अभी महासागर होना है। इसी महानगर में ये महासागर हो सकता है ऐसा अब मुझे पूर्ण विश्वास हो गया है। आज आपको मैं सहजयोग की कार्यता तथा कुण्डलिनी के जागरण से मनुष्य को क्या लाभ होता है वो बताना चाहती हूँ। माँ का स्वरूप ऐसा ही होता है कि अगर आपको कोई कड़वी चीज़ देनी हो तो उसपे मिठाई का लेपन कर देना पड़ता है। किंतु सहजयोग ऐसी चीज़ नहीं है । सहजयोग पे लेपन भी मिठाई का है और उसका अंतरभाग तो बहुत ही सुंदर है। सहजयोग, जैसे आपने जाना है, सह माने जो आपके साथ पैदा हुआ हो। ऐसा जो योग का आपका जन्मसिद्ध हक्क है, वो आपको प्राप्त होना चाहिये। जैसे तिलक ने कहा था, बाल गंगाधर तिलक साहब ने भरी कोर्ट में कहा था, कि जनम सिद्ध हक्क हमारा स्वतंत्र है। उसी तरह हमारा जनम सिद्ध हक्क ‘स्व’ के तंत्र को जानना है। ये ‘स्व’ का तंत्र परमात्मा ने हमारे अन्दर हजारो वर्ष संजोग कर प्रेम से अत्यंत सुंदर बना कर रखा हुआ है। इसलिये इसमें कुछ करना नहीं पड़ता है। सिर्फ कुण्डलिनी का जागरण होकर आपका जब सम्बन्ध इस चराचर में फैली हुई परमात्मा की प्रेम की सृष्टि से, उनके प्रेम की शक्ति से एकाकार हो जाती है तब योग साध्य होता है और उसी से जो कुछ भी आज तक वर्णित Read More …

Public Program, Sahajyog Ke Anubhav कोलकाता (भारत)

Sahajyog Ke Anubhav 31st March 1986 Date : Place Kolkata Public Program Type Speech Language Hindi सत्य को खोजने वाले सभी साधकों को हमारा प्रणिपात! सत्य क्या है, ये कहना बहुत आसान है। सत्य है, केवल सत्य है कि आप आत्मा हैं। ये मन, बुद्धि, शरीर | अहंकारादि जो उपाधियाँ हैं उससे परे आप आत्मा हैं। किंतु अभी तक उस आत्मा का प्रकाश आपके चित्त पर | आया नहीं या कहें कि आपके चित्त में उस प्रकाश की आभा दृष्टिगोचर नहीं हुई। पर जब हम सत्य की ओर नज़र करते हैं तो सोचते हैं कि सत्य एक निष्ठर चीज़ है। एक बड़ी कठिन चीज़ है। जैसे कि एक जमाने में कहा जाता था कि ‘सत्यं वदेत, प्रियं वदेत।’ तो लोग कहते थे कि जब सत्य बोलेंगे तो वो प्रिय नहीं होगा। और जो प्रिय होगा वो शायद सत्य भी ना हो। तो इनका मेल कैसे बैठाना चाहिए? श्रीकृष्ण ने इसका उत्तर बड़ा सुंदर दिया है। ‘सत्यं वदेत, हितं वदेत, प्रियं वदेत’ । जो हितकारी होगा वो बोलना चाहिए। हितकारी आपकी आत्मा के लिए, वो आज शायद दुःखदायी हो, लेकिन कल जा कर के वो प्रियकर हो जाएगा। ये सब होते हुए भी हम लोग एक बात पे कभी-कभी चूक जाते हैं कि परमात्मा प्रेम है और सत्य भी प्रेम ही है। जैसे कि एक माँ अपने बच्चे को प्यार करती है तो उसके बारे में हर चीज़ को वो जानती है। उस प्यार ही से उद्घाटन होता है, उस सत्य को जो कि उसका बच्चा है। और प्रेम की भी Read More …

Dharma Ki Avashyakta – Why is Dharma needed (Evening) Sir Shankar Lal Concert Hall, New Delhi (भारत)

Dharma Ki Avashyakta Aur Atma Ki Prapti 23rd February 1986 Date : Place Delhi : Public Program Type : Speech Language Hindi आत्मा को खोजने वाले सभी साधकों को हमारा प्रणिपात! आज का स्वर्गीय संगीत सुनने के बाद क्या बोलें और क्या न बोलें! विशेषकर श्री. देवदत्त चौधरी और उनके साथ तबले पर साथ करने वाले श्री गोविंद चक्रवर्ती, इन्होंने इतना आत्मा का आनन्द लुटाया है कि बगैर कुछ बताये हये ही मेरे ख्याल से आपके अन्दर कुण्डलिनी जागृत हो गई है। सहज भाव में एक और बात जाननी चाहिए कि भारतीय संगीत ओंकार से निकला हुआ है। ये बात इतनी सही है, इसकी प्रचिती, इसका पड़ताला इस प्रकार है कि विदेशों में जिन्होंने कभी भी कोई रागदारी नहीं सुनी, जो ये भी नहीं जानते कि हिन्दुस्तानी म्युझिक क्या चीज़ है या किस तरह से बनायी गयी है। जिनके बजाने का ढंग और संगीत को समझने का ढंग बिल्कुल फर्क है। ऐसे लोग भी जब पार हो जाते हैं और गहन उतरते हैं, तो आपको आश्चर्य होगा कि बगैर किसी राग को जाने बगैर, ताल को जाने बगैर, कुछ भी जानकारी इसके मामले में न होते | हुए, बस, खो जाते हैं। और जैसे आपके सामने आज चौधरी साहब ने बजाया, जब लंदन में बजा रहे थे, तो घण्टों लोग अभिभूत उसमें बिल्कुल पूरी तरह से बह गये। मैं देखकर आश्चर्य कर रही थी कि इन्होंने कोई राग जाना नहीं, इधर इनका कभी रुझान रहा नहीं, कभी कान पर वे उनके ये स्वर आये नहीं, आज अकस्मात इस तरह का Read More …

Public Program, Satya मुंबई (भारत)

1986-01-21 Public Program: Satya, Mumbai (Hindi) सत्य का स्वरूप, मुंबई 21/01/1986 बंबई शहर के सत्यशोधकों को हमारा प्रणिपात। सत्य की खोज के बारे में अनादि काल से इस देश में अनेक ग्रंथ लिखे गए हैं। इसकी वजह यह है, कि इस भारत वर्ष की जो भूमि है, इस भूमि में बहुत से आशीर्वाद छिपे हुए हैं, जिसके बारे में हम जानते नहीं। यहां की आबोहवा इतनी अच्छी है, कि आप जब घर से निकलते हैं, आपको जैसे लंदन में लबादे लबादे लादने पड़ते हैं और निकलने से पहले 15 मिनट तैयार होना पड़ता हैं, ऐसी कोई आफत नहीं। बाहर आते ही प्रच्छन्न ऐसी सुंदर प्रच्छन्न हवा बहती रहती है। यहां एक इंसान जंगलों में भी, पहाड़ी में भी, झरनों के पार, नदियों के किनारे, बड़े आराम से अपना जीवन बिता सकता है। यह हालत किसी भी देश में इतनी अच्छी नहीं है। या तो देश बहुत ज्यादा गर्म है, या बहुत ज्यादा ठंडे हैं। अतिशय्ता की प्रकृति होने की वजह से वहां पर लोगों को हर समय प्रकृति से झगड़ना पड़ता है, और ये संग्राम करते करते लोगों की वृत्ति आक्रमक; आक्रमण करने वाली हो जाती है। आप आक्रमणकारी हो जाते हैं। जब पहली मर्तबा मैं लंदन गई थी, तो मैं सोचती थी कि यहां कोई प्रकोप है परमात्मा का कि श्राप है, कि आप बाहर एक मिनट भी खड़े नहीं हो सकते। शुद्ध हवा आप एक मिनट भी नहीं ले सकते। घर से निकलीये तो बंद, मोटर में बैठिए दौड़ कर और फिर जहां भी जाइए वहां से दौड़कर Read More …

The Truth Has Two Sides Geneva (Switzerland)

‘सत्य के दो पहलू होते हैं’जिनेवा सार्वजनिक कार्यक्रम 11 जून 1985 मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। लेकिन सत्य के दो पहलू हैं: माया जो हमें दिखाई देती हैं वह सत्य की तरह लग सकती है, और भ्रम का सार भी सत्य प्रतीत हो सकता है। लेकिन दूसरा पहलू निरपेक्ष है और इसे महसूस करना होगा, अपने मध्य तंत्रिका तंत्र पर अनुभव करना होगा। यह कोई मानसिक प्रक्षेपण (कल्पना)नहीं है जिसके बारे में हम सोच सकते हैं, न ही भावनात्मक कल्पना, लेकिन सच्चाई यह है कि इसे बदला नहीं जा सकता है। यह समझौता नहीं कर सकता। सत्य जानने के लिए हमें खुद को नम्र करना होगा। अब इतनी सारी चीजें जो हमें अब तक ज्ञात नही थी हमने विनम्रता से विज्ञान में खोज ली हैं । लेकिन बाहरी रूप में जो कुछ भी जाना जाता है, जैसे पेड़, उसकी जड़ें होनी चाहिए, और अगर आप सिर्फ पेड़ को देख रहे हैं तो इन जड़ों का ज्ञान नहीं हो पायेगा। और जब कोई जड़ों की बात करता है, तो हम हिल जाते हैं, क्योंकि हमें इसका पहले से कोई ज्ञान नहीं था। इस प्रकार हम केवल वृक्ष को देखने के लिए संस्कारित हैं, और हम अपने मन को यह नहीं समझा पाते हैं कि इसकी कुछ जड़ें होनी चाहिए। तो हम कह सकते हैं कि लोग विज्ञान में काफी आगे बढ़ चुके हैं, और तरक्की कर चुके हैं और विकसित देश बन गए हैं। लेकिन वे नहीं जानते हैं कि, अगर वे अपनी जड़ों की तलाश नहीं Read More …

Public Program (भारत)

॥ जय श्री माता जी ।। धर्मशाला 31-03-85 धर्मशाला के मातृभक्तों को मेरा प्रणाम ! यहाँ के मन्दिर की कमेटी ने ये आयोजन किया, जिसके लिए मैं उनका बहुत धन्यावाद मानती हूँ। असल में इतना सत्कार और आनंद, दोनों के मिश्रण से हृदय में इतनी प्रेम की भावना उमड़ आयी है कि वो शब्दों में ढालना मुश्किल हो जाता है। कलियुग में कहा जाता है कि कोई भी माँ को नहीं मानता । ये कलयुग की पहचान है कि माँ को लोग भूल जाते हैं। लेकिन अब ऐसा कहना चाहिए कि कलियुग का समय बीत गया, जो लोगों ने माँ को स्वीकार किया है । माँ में और गुरू में एक बड़ा भारी अन्तर मैंने पाया है, कि माँ तो गुरू होती ही है, बच्चों को समझाती है, लेकिन उसमें प्यार घोल – घोल कर इस तरह से समझा देती है कि बच्चा उस प्यार के लिए हर चीज करने को तैयार हो जाता है । ये प्यार की शक्ति, जो सारे संसार को आज ताजगी दे रही है, जो सारे जीवन्त काम कर रही है, जैसे ये पेड़ का होना, उसकी हरियाली, उसके बाद एक पेड़ में से हो जाना और फूल में फूल से फल हो जाना, ये जितने भी कार्य हैं, जो जीवन्त कार्य हैं, ये कौन करता है? ये सब करने वाली जो शक्ति है वो परमात्मा की प्रेम की शक्ति है। उसी को हम आदि शक्ति कहते हैं। परमात्मा तो सिर्फ नज़ारा देखते हैं कि उनकी शक्ति का कार्य कैसे हो रहा है? जब उनको Read More …

Public Program Jaipur (भारत)

जयपुर के सर्व सत्य शोधकों को हमारा प्रणाम। जीवन में हर मनुष्य अपनी धारणा के बूते पर रहता है। जो भी धारणा वो बना लेता है उसके सहारे वह जीता है। लेकिन एक कगार ऐसी ज़िन्दगी में आ जाती है, जहाँ पर जा कर वह यह सोचता है, कि, “मैंने आज तक जो सोचा, जो धारणाएं लीं, वो फलीभूत नहीं हुईं। उससे मैंने आनंद की प्राप्ति नहीं की, उससे मुझे समाधान नहीं मिला, उससे मैंने शांति प्राप्त नहीं की।” जब वो कगार मनुष्य के सामने खड़ी हो जाती है, तब वो अपनी धारणाओं के प्रति शंकित हो जाता है। और उस वक़्त वो ढूँढने लग जाता है कि इससे परे कौन सी चीज़ है, इससे परे कौन सी दुनिया है, जिसे मुझे प्राप्त करना है। ये जब शुरुआत हो जाती है, तभी हम कह सकते हैं, कि मनुष्य एक साधक बन जाता है। वो सत्य के शोध में न जाने कहाँ-कहाँ भटकता है। कभी-कभी सोचता है कि, बहुत सा अगर हम धन इकठ्ठा कर लें, तो उस धन के बूते पे हम आनंद को प्राप्त कर लेंगे। फिर सोचता है कि हम सत्ता को प्राप्त कर लें – सत्ता को प्राप्त करने से ही हम आनंद को प्राप्त कर लेंगे। फिर कोई सोचता है कि अगर हम किसी मनुष्य मात्र को प्रेम करें, तो उसी से हम सुख को प्राप्त कर लेंगे। उससे आगे जब वो विशालता पे उठता है, तो ये सोचता है कि, हम प्राणी मात्र की सेवा करें, उनकी कुछ भलाई करें, उनके उद्धारार्थ कोई कार्य करें, Read More …