Public Program Jaipur (भारत)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी, सार्वजनिक कार्यक्रम, 23 मार्च, 1985 जयपुर, राजस्थान, भारत श्री माताजी के आगमन पूर्व का दृश्य बहुत सारे साधकों से हॉल भरा हुआ है।  एक सहज योगी भाई नए लोगों को अंग्रेजी भाषा में संबोधित कर रहे हैं। उसके पश्चात श्रीमती सविता मिश्रा भजन प्रस्तुत करती हैं। भजन समाप्ति की उपरांत श्री योगी महाजन दर्शकों को संबोधित कर रहे होते हैं।  तभी श्री माताजी का आगमन होता है, और वे स्टेज पर तेजी से चढ़ते हुए हम सब को दर्शन देती हैं। सब को प्रणाम कर के वे अपनी सिंहासन पर विराजमान होती हैं। योगी महाजन  श्री माताजी का स्वागत कर के सहज योग के विषय में संक्षिप्त में बोलते हैं। तत्पश्चात उनके आमंत्रण पर डॉक्टर वारेन भी सहज योग का संक्षिप्त परिचय देते हैं। श्रीमती सविता एक और भजन प्रस्तुत करती हैं। श्री माताजी को माल्यार्पण किया जाता है और उनके साथ उपस्थित सज्जन को भी। (वे अंग्रेजी में कहती है की – आई विल स्टैंड एंड स्पीक) (श्री माताजी खड़ी हो गई हैं, और सब पर दृष्टि डालते हुए अपना भाषण आरंभ करती हैं) जयपुर के साधकों को हमारा प्रणाम। श्री कृष्ण ने तीन तरह के लोग संसार में बताए हुए हैं, जिन्हे के वे तामसिक, राजसिक और सात्विक कहा करते थे।  तामसिक वो लोग होते हैं, कि जो अच्छा और बुरा, शुभ अशुभ कुछ भी नहीं पहचानते, पर अधिकतर अशुभ की ही ओर दौड़ते हैं, अधिकतर गलत चीजों की ओर ही दौड़ते हैं। जब वो अति इस में घुस जाते हैं, तो Read More …

Sahasrara – Atma New Delhi (भारत)

Sahastrar – Atma Date : 16th February 1985 Place Delhi Туре Public Program Speech Language Hindi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Nirmala Yog सत्य के खोजने वाले सभी साध्कों को हमारा प्रणाम । जीवित रहेंगे? यह हृदय का जो स्पन्दन है- अनहदू, हर आज का मधुर संगीत आज के विषय से बहत सम्बन्धित घड़ी अपने आप ही कार्यान्वित रहता है उसको चलाने के है जिसके लिए मैं देब चौधरी को बहुत-बहुत घन्यवाद देती लिए अगर हमें बाहुय से कोई उपचार करना पड़ता तो हूँ। सभी सहज व्यवस्था हो जाती है और आज संगीत में जो कितने लोग इस संसार में जीवित पैदा होते? ऐसी अनेक आपने सात स्वरों का खेल देखा, हमारे अंदर भी ऐसा ही चीजें जो जीवन्त हैं, हम देखते हैं। फल खिलते हैं अपने आप सुन्दर संगीत नि्माण हो सकता है। यह जो कण्डलिनी के और इनके फल भी हो जाते हैं अपने आप। यह ऋतम्भरा सात चक्र आप देख रहे हैं वे हैं मूलाधार चक्र, मलाधार, स्वाधिष्ठान, नाभि, हृदय, विश्द्धि, आज्ञा और सहस्रार। इसके अलावा हमारे अन्दर सूर्य और चन्द्र के भी चक्र हैं। ब्रहमरन्ध्र को छेदने के बाद भी तीन और चक्र हमारे अन्दर हैं और कार्य करते हैं जिन्हें हम अर्धबिन्द, बिन्दू और वलय कहते हैं। यह सार हमारे अन्दर स्वर हैं। जैसे “स” से शुरू करें तो “सा र गा मा पा धा नी” सहलार पर “नी” जाकर पहुँचता है। इसी प्रकार इन सब चक्रों को शक्ति देने वाले ऐसे ग्रह भी हैं। जैसे मूलाधार पर मंगल, स्वाधिष्ठान पर बुद्ध, नाभि Read More …

Public Program पुणे (भारत)

Public Program Sarvajanik Karyakram Date 4th December 1984 : Place Pune Public Program Type Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript 02 – 14 Hindi English Marathi || Translation English Hindi Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK सत्य को खोजने वाले सर्व आत्माओं को मेरा प्रणिपात! आज मैं सोच रही थी कि कौन सी भाषा में आप से वार्तालाप किया जाय ? यही सोचा की मराठी में, में पूना बहुत बार भाषण हुआ था। आज हिंदी में ही भाषण दिया जाय। क्योंकि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और मेरी मातृभाषा मराठी है किंतु हिंदी भाषा सीखना मैं सोचती हँ परम आवश्यक है और इसलिये आप लोग, मराठी प्रेमी लोग मुझे उदार अंत:करण से क्षमा करें और हिंदी बोलने वाले लोग, जो साहित्यिक हैं, वो भी मुझे क्षमा करें अगर कोई त्रुटियाँ हो जायें तो! किंतु सब से पहले जान लेना चाहिये, कि भाषा तो हृदय की होनी चाहिये। जहाँ भाषा हृदय से न होते हये शब्दजाल होती है, तब हर तरह के जंजाल खडे हो जाते हैं । इसलिये कोई भाषा जो हृदय से निकलती है, वही मार्मिक होती है। इसी का असर भी होता है। हम लोग सत्य को खोज रहे हैं अनेक वर्षों से । आज ही की ये बात नहीं है, अनेक वर्षों से हम सत्य को खोज रहे हैं। और उसकी खोज होते होते काफ़ी लोग भटक भी गये हैं । इसका कारण हमें समझ लेना चाहिये, क्योंकि आज की जो स्थिति है, आज का जो माहौल है, वातावरण है, उस वातावरण में ये समझ में नहीं आता है, Read More …

Sarvajanik Karyakram मुंबई (भारत)

Sarvajanik Karyakram, HINDI TRANSLATION (Marathi Talk) सत्य की खोज़ में रहने वाले आप सब लोगो को हमारा नमस्कार। आज का विषय है ‘प्रपंच और सहजयोग’। सर्वप्रथम ‘प्रपंच’ यह क्या शब्द है ये देखते हैं । ‘प्रपंच’ पंच माने | हमारे में जो पंच महाभूत हैं, उनके द्वारा निर्मित स्थिति। परन्तु उससे पहले ‘प्र’ आने से उसका अर्थ दूसरा हो जाता है। वह है इन पंचमहाभूतों में जिन्होंने प्रकाश डाला वह ‘प्रपंच’ है। ‘अवघाची संसार सुखाचा करीन’ (समस्त संसार सुखमय बनाऊंगा) ये जो कहा है वह सुख प्रपंच में मिलना चाहिए। प्रपंच छोड़कर अन्यत्र परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती। बहतों की कल्पना है कि ‘योग’ का बतलब है कहीं हिमालय में जाकर बैठना और ठण्डे होकर मर जाना। ये योग नहीं है, ये हठ है। हठ भी नहीं, बल्कि थोड़ी मूर्खता है। ये जो कल्पना योग के बारे में है अत्यन्त गलत है। विशेषकर महाराष्ट्र में जितने भी साधु-सन्त हो गये वे सभी गृहस्थी में रहे। उन्होंने प्रपंच किया है। केवल रामदास स्वामी ने प्रपंच नहीं किया । परन्तु ‘दासबोध’ (श्री रामदासस्वामी विरचित मराठी ग्रन्थ) में हर एक पन्ने पर प्रपंच बह रहा है। प्रपंच छोड़कर आप परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकते। यह बात उन्होंने अनेक बार कही है। प्रपंच छोड़कर परमेश्वर को प्राप्त करना, ये कल्पना अपने देश में बहुत सालों से चली आ रही है। इसका कारण है श्री गौतम बुद्ध ने प्रपंच छोड़ा और जंगल गये और उन्हें वहाँ आत्मसाक्षात्कार हुआ। परन्तु वे अगर संसार में रहते तो भी उन्हें साक्षात्कार होता। समझ लीजिए हमें दादर Read More …

Public Program, Hridhay Aur Vishuddhi Chakra New Delhi (भारत)

Hridaya Aur Vishuddhi Chakra Date 16th March 1984 : Place Delhi : Public Program Type : Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Nirmala Yog] शान्त-चित्त, धार्मिक और बहुत सरल, शुद्ध और सादे परादमी हैं। वो मेरे पर पर गिरके रोने लगे । कहने लगे, “माँ, ये सब मैंने किया। लेकिन मैं बड़ा सत्य को खोजने वाले सारे भाविक, सात्विक साधकों को मेरा अशान्त हो गया है। मैंने कहा, क्यों, क्या बात है ? श्रपने तो बहुत कुछ पा लिया। यहाँ सबकी सुभत्ता अ्र गयी कहने लगे, मैंने एक बात नहीं जानी प्रणाम । कल आपको मैंने आ्रपने अन्दर बसा हुआ जो नाभि चक्र है उसके वारे में बताया या कि ये नाभि चक् हमारे अन्दर जिससे हम अपने क्षेम थी कि इस सभत्ता से दुनिया इतनी खराव ही जायेगी। हमारे यहाँ लोग जो हैं इतने आदततयी को गये हैं । यहाँ शराब इस कदर ज्यादा चलने लग गयी है। यहां पर बच्चे बिलकुल वाहियात हो गये सर्वसे बड़ी शक्ति देता है को पाते हैं। जैमे कि कृष्ण ने कही था ” योग क्षेम वहाम्यहम । पहले योग होना चाहिए, फिर अ्षम होगा । योग के बगैर क्षम नहीं ही सकता औोर है। यहां पर कोई किसी की सुनता नहीं । औरतें ी पपने को पेसे में ही तोलने लग गई हैं। ये सब देखक र के मुझे लगता है कि ये मैने क्या कर क्योंकि हमने इस देश में पहले योग को खयोजा नहीं इसलिए हमारा देश क्षेम को प्राप्त नहीं। क्षेम के बारे में मैंने Read More …

Dinner Party New Delhi (भारत)

1984-0315 का Nabhi चक्र [हिंदी] नई दिल्ली (भारत) नाभि चक्र की तारीख 15 मार्च 1984: स्थान दिल्ली: सार्वजनिक कार्यक्रम प्रकार: भाषण भाषा हिंदी [मूल प्रतिलिपि हिंदी बातचीत, हिंदी निर्मल योग से स्कैन किया गया] परमात्मा को खोजने वाले सभी सत्य साधकों को हमारा प्रणाम! आज दो तरह के गाने आपने सुने हैं, पहले गाने में एक भक्त विरह में परमात्मा को बुलाता है। इसे अपराभक्ति कहते है और जब परमात्मा को पा लेता है, जैसे कबीर ने पाया था, तो उसे पराभक्ति कहते हैं। दोनों में ही भक्ति है। इसे कृष्ण ने अनन्य भक्ति कहा है- जहाँ दूसरा कोई नहीं होता, जहाँ साक्षात् परमेश्वर अपने सामने होते हैं, उस वक्त जो हम लोगों का भक्ति का स्वरूप होता है उसे उन्होंने पराभक्ति कहा-अनन्यभक्ति।  किन्तु जब हम परमात्मा को याद करते हैं. उनको स्मरण करते हैं, तब उसकी आदत-सी हो जाती है। जब इन्सान को इस चीज की आदत-सी हो जाती है, तो उस आदत से छूटने में उसे बड़ा समय लगता है।  वह यह मानने को तैयार ही नहीं होता कि उसकी यह जो साधना है, यह खत्म होने की बेला आई है । और इसी वजह से भक्तों ने भी दृष्टाओं को, सन्तों को, मुनियों को पहचाना नहीं। आप जानते हैं इतिहास में हमेशा सन्तों को इतनी परेशानियाँ उठानी पड़ीं। यह नहीं कि सबने उनको सताया, लेकिन जिन्होंने सताया उनको किसी ने रोका नहीं और समझाया नहीं कि ये सन्त है, ये साधु है। अब हमारे समाज में, खासकर के शंहरों में, विविध विचारों के लोग रहते हैं । Read More …

Sarvajanik Karyakram Rahuri (भारत)

राहुरी फैक्ट्ररी के माननीय अध्यक्ष श्री सर्जेराव पाटिलजी, मित्र संघ संस्था के संचालकगण, जितने भी राहुरीकार और पिछड़े/दलित जाती के लोग यहाँ एकत्रित हुए हैं, मुझे ऐसा कहना उचित नहीं लगता। क्योंकि वे सब मेरे बच्चे हैं। सभी को नमस्कार! दादासाहेब से मेरी एक बार अचानक मुलाक़ात हुई और मुझे तब एहसास हुआ कि यह आदमी वास्तव में लोगों की फिक्र (परवाह) करता है। जिसके हृदय में करुणा न हो उसे समाज के नेता नहीं बनना चाहिए. जिन्होंने सामाजिक कार्य नहीं किया है उन्हें राजनीति में नहीं आना चाहिए। जिन्होंने सामाजिक कार्य किया है, अगर वे राजनीति में आते हैं, तो उनके मन में जनसामान्य के लिए दया रहेगी। लेकिन ज्यादातर लोग सामाजिक कार्य इसलिए करते हैं ताकि हम राजनीति में आएं और पैसा कमाएं। मुझे सब पता है। मैंने बचपन से अपने देश का हाल देखा है। मैं शायद तुम सब में सबसे उम्रदराज हूँ। मेरे पिता भी बहुत धार्मिक हैं, एक बहुत ही उच्च वर्ग के सामाजिक कार्यकर्ता, देश के कार्यकर्ता, राष्ट्रीय कार्यकर्ता और डॉ अम्बेडकर के साथ बहुत दोस्ताना था,  घनिष्ठ मित्रता थी। उनका हमारे घर आना-जाना था। मैंने उन्हें (डॉ. अम्बेडकर को) बचपन से देखा है।  मैं उन्हें चाचा कहती थी। उनके साथ संबंध बहुत घनिष्ठ हैं। और वह बहुत तेजस्वी और उदार थे। मेरे पिता गांधीवादी थे और यह(डॉ. अम्बेडकर)  गांधी जी के खिलाफ थे। बहस करते थे। तकरार के बावजूद उनके बीच काफी दोस्ती थी। वह बहुत स्नेही थे! जब मेरे पिता जेल गए, तो वह हमारे घर आकर पूछते थे कि कैसे चल Read More …

Joy has no duality Société d’Encouragement pour l’Industrie Nationale, Paris (France)

सार्वजनिक कार्यक्रम, पेरिस (फ्रांस), 16 जून 1983।॥आनंद में कोई पाखंड नही होता ॥ मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। मनुष्य सत्य की खोज प्राचीन काल से करता रहा है। उन्होंने सत्य की खोज विभिन्न प्रकार की खुशीयो में करने की कोशिश की और कई बार उन्होंने इसका त्याग किया क्योंकि उन्होंने पाया कि खुशी स्थायी नहीं है। थोड़े समय के लिए उसे किसी चीज से खुशी प्राप्त हुई और फिर उसने पाया कि इससे उसे बड़ा दुख भी हुआ। जैसे,एकऔरत जिसकी कोई संतान नहीं थी इसलिए वह रोती-बिलखती रहती थी; और उसको एक बच्चा हुआ था जिसने बाद में उसे ही अस्वीकार कर दिया। फिर, मनुष्य सुख की तलाश, सत्ता में, अन्य पुरुषों पर अधिकार में, अन्य देशों पर शक्ति में खुशी पा कर करने लगे, फिर भी बहुत अधिक संतुष्ट नहीं थे। उनके बच्चे पूर्वजों ने जो किया उसके लिए खुद को दोषी महसूस करने लगे। फिर गतिविधी कुछ और सूक्ष्म की तलाश में शुरू की – जो की कला और संगीत में थी। उसकी भी सीमाएँ थीं। यह लोगों को वह स्थायी आनंद नहीं दे सकी। यह वादा किया जाता है कि एक दिन आप सभी को यह स्थायी आनंद प्राप्त करना होगा। और फिर उन्होंने ऐसे सभी लोगों को चुनौती देना शुरू कर दिया, जिन्होंने उपदेश किया था और जो वादा करते रहे हैं कि ऐसा दिन आएगा। कई लोग इस नतीजे पर पहुंचे कि आनंद जैसा कुछ नहीं है, जीवन हर समय लहरों के दो चेहरों हैं। एक सिक्के के दो पहलू की Read More …

Lord Buddha Brighton (England)

                                                   भगवान बुद्ध                                       सार्वजनिक कार्यक्रम 1983-0526, ब्राइटन, यूके आज, फिर से, यहाँ ब्राइटन में होना ऐसा आनंददायक है; और, धीरे-धीरे और लगातार, मुझे लगता है कि सहज योग इस जगह पर स्थापित हो रहा है। जब मैं पहली बार ब्राइटन केवल मिलने आयी थी, तो मुझे लगा कि इस जगह पर अवश्य ही बहुत से साधक होना चाहिए हैं, जो शायद खो गए हैं और हमेशा एक बड़ी उम्मीद थी कि एक दिन वे वास्तविकता में आने में सक्षम होंगे। आज का दिन बहुत खास है क्योंकि आज भगवान बुद्ध का जन्मदिन है। और सुबह में, मैंने उनके महान अवतार के बारे में सहज योगियों से बात की, और किस तरह वह इस धरती पर आए और उन्हें उनका बोध हुआ, और फिर कैसे उन्होंने बोध का संदेश दूसरों में फैलाने की कोशिश की। बहुत से लोग मानते हैं और सोचते हैं कि क्राइस्ट एक नास्तिक था … बुद्ध एक नास्तिक थे, जबकि क्राइस्ट एक ऐसे व्यक्ति थे जो, ईश्वर में आस्था रखते थे। और कुछ लोग बुद्ध को ईसा मसीह के मुकाबले अधिक पसंद करते हैं। यह कुछ बहुत ही आश्चर्यजनक है … कि जब लोग विशेष परिस्थितियों में पैदा होते हैं, तो उन्हें उन चीजों के बारे में बात करनी होती है जो उस समय बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। जिस समय बुद्ध भारत में इस धरती पर आए थे, उस समय हमारे पास बहुत अधिक ब्राह्मणवाद का कर्मकांड और परमात्मा और धर्म के नाम पर धनार्जन करने वाले व्यवसायी जो भगवान के नाम पर और धर्म के नाम पर Read More …

Public Program मुंबई (भारत)

सार्वजनिक भाषण मुंबई, ४ मई १९८३ परमात्मा को खोजने वाले सभी साधकों को मेरा प्रणाम ! मनुष्य यह नहीं जानता है कि वह अपनी सारी इच्छाओं में सिर्फ परमात्मा को ही खोजता है। अगर वह किसी संसार की वस्तु मात्र के पीछे दौड़ता है, वह भी उस परमात्मा ही को खोजता है, हालांकि रास्ता गलत है। अगर वह बड़ी कीर्ति और मान-सम्पदा पाने के लिए संसार में कार्य करता है, तो भी वह परमात्मा को ही खोजता है। और जब वह कोई शक्तिशाली व्यक्ति बनकर संसार में विचरण करता है, तब भी वह परमात्मा को ही खोजता है। लेकिन परमात्मा को खोजने का रास्ता ज़रा उल्टा बन पड़ा। जैसे कि वस्तुमात्र जो है, उसको जब हम खोजते हैं-पैसा और सम्पत्ति, सम्पदा-इसकी ओर जब हम दौड़ते हैं तो व्यवहार में देखा जाता है कि ऐसे मनुष्य सुखी नहीं होते। उन पैसों की विवंचनायें, अधिक पैसा होने के कारण बुरी आदतें लग जाना, बच्चों का व्यर्थ जाना आदि ‘अनेक’ अनर्थ हो जाते हैं। जिससे मनुष्य सोचता है कि ‘ये पैसा मैंने किसलिये कमाया? यह मैंने वस्तुमात्र किसलिये ली?’ जिस वक्त यहाँ से जाना होता है तो मनुष्य हाथ फैलाकर चला जाता है। लेकिन यही वस्तु, जब आप परमात्मा को पा लेते हैं, जब आप आत्मा पा लेते हैं और जब आप का चित्त आत्मा पर स्थिर हो जाता है, तब यही खोज एक बड़ा सुन्दर स्वरूप धारण कर लेती है। परमात्मा के प्रकाश में वस्तुमात्र की एक नयी दिशा दिखाई देने लग जाती है। मनुष्य की सोौंदर्य दृष्टि एक गहनता से हर Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

सहज योग जो है, यह अंतर विद्या है, अंदर की विद्या है. यह जड़ों की विद्या है,  इसलिए आँख खोलने की ज़रुरत नहीं। आँख बंद रखिये। अंदर में घटना घटित होती है, बाह्य में कुछ नहीं होता, अंदर  में होता है। अब इसी को, इस हाथ को आप ऊपर हृदय पर रख के कहें कि , ”मैं स्वयं आत्मा हूँ’। आप परमात्मा के अंश हैं। आप ही के अंदर उसकी रूह जो है, वह प्रकाशित होती है।  इसलिए कहिये कि ”मैं आत्मा हूँ’। बारह मर्तबा कहिये क्योंकि हृदय के चक्र पे बारह कलियाँ हैं।  जिनको हार्ट अटैक आदि आता है, उनके उनके लिए यही मंत्र है कि  ‘मैं आत्मा हूँ’। आत्मा जो है, निर्दोष है । उसमे कोई दोष नहीं हो सकता. निर्दोष है। अधिक तर लोग आदमी को जीतने के लिए ऐसे कहते हैं कि ‘तुम ऐसे खराब हो, ‘तुमने यह पाप किया, तुम फलाने हो, तुम किसी काम के नहीं हो और तुम को परमात्मा माफ़ नहीं करेंगे और तुम बड़े दोषी हो और तुम मानो के तुम दोषी हो’। उलटे हम कहते हैं ‘आपने कोई दोष नहीं किया। आप परमात्मा के बनाये हैं. परमात्मा के आगे, उनकी रहमत के आगे, उनकी अनुकम्पा के आप कोई दोष नहीं कर सकते क्योंकि  उनकी अनुकम्पा एक बड़े भIरी दरिया जैसी है।’  वह सब कुछ धो डाल सकती है।  इसलिए इस हाथ को फिर से ऊपर उठा कर के अपनी लेफ्ट साइड में विशुद्धि में रखें और कहें कि ‘माँ, मैं दोषी नहीं हूँ।  मैं निर्दोष हूँ, मैं आत्मा हूँ। मैं Read More …

We have to understand that truth is not a mental action Maccabean Hall, Sydney (Australia)

                             सत्य मानसिक क्रियाकलाप नहीं है सार्वजनिक कार्यक्रम दिवस १. सिडनी (ऑस्ट्रेलिया), 15 मार्च 1983 लेकिन इससे पहले कि हम अपनी खोज के बारे में सही निष्कर्ष पर पहुंचें, हमें यह समझना होगा कि सत्य कोई मानसिक क्रिया नहीं है। अगर आपका मन कहता है कि “यह ऐसा है” तो आवश्यक नहीं की ऐसा ही होना चाहिए। जीवन में यह हमारा प्रतिदिन का अनुभव है कि मानसिक रूप से जब हम कुछ स्थापित करने का प्रयास करते हैं, तो कुछ समय बाद हम पाते हैं कि हम उसके बारे में बिल्कुल सही नहीं हैं। जो कुछ भी हमें ज्ञात है वह पहले से ही है। लेकिन जो कुछ भी अज्ञात है, उसके बारे में भी, यदि आपके पास पूर्वकल्पित विचार हैं, कि “यह अज्ञात है, यह ईश्वर है, यह आत्मा है”, तो ऐसा भी हो सकता है कि आप सत्य से बहुत दूर हैं। लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से अगर आपको किसी विषय पर जाना है तो आपको अपना दिमाग बिल्कुल साफ और खुला रखना होगा, कि कई महान संतों, कई महान गुरुओं ने कहा है कि हमें फिर से जन्म लेना है और हम आत्मा हैं। क्या हमें उन पर विश्वास करना चाहिए या नहीं? शायद, हमें कम से कम इस निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए कि उन्होंने किसी से कोई पैसा नहीं लिया और वे नकली लोग नहीं हो सकते थे, उन्होंने पैसे के लिए ऐसा नहीं किया। इसलिए, यदि हमें नया जन्म लेना है, तो सही निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए हमें पता होना चाहिए कि हमारे साथ क्या होना Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

Debu Chaudhuri plays raag Kambhoji on sitar, in the presence of Shri Mataji in a public program in Delhi, Feb 8th 1983, (part 2) Followed by a Hindi talk given by Shri Mataji. The sitar represents the Sahasrara chakra. Sahaja Yogis want to give a cushion to Shri Mataji but She refuses. Then they want to garland Her and She asks them instead to garland the artist. Everybody applauds. But Debu Chaudhuri refuses to be garlanded in place of Shri Mataji so he puts the garland around the head of his student (who is playing tempura). Everybody laughs. A senior Sahaja Yogi makes a small speech: My dear brothers and sisters, music is the nearest thing to God on earth. Mataji has often said the way to please God and His devotees is through music sound of devotion…He introduces the tabla player, an equally renowned artist. Shri Mataji seems to explain to Debu Chaudhuri that it is not a puja but a spiritual event. Shri Mataji: Now, I must say, that artist himself being a Realized soul, I’m just working on your Kundalini, I need not speak much. It’s working out. So don’t get impatient, this is also, is a silent speech of God’s music. So you just don’t get impatient about it. I’am also enjoying very much. May God bless you. Since Kambhoji, he’s going to play just now. Debu Chaudhuri: Well, it is my great pleasure, in a way, I requested Mataji to give Her blessings to all Read More …

Public Program Gandhi Bhawan, New Delhi (भारत)

क्योंकि बहुत लोगों ने इस पर लिखा है (अस्पष्ट) और बहुत से लोग सोचते रहे हैं कि इस मामले में कुछ करना चाहिए कि सत्य को खोजने का है। (अस्पष्ट) अब जब मानव (अस्पष्ट) तो उसकी ऐसी स्तिथि होती है कि वो सिर्फ इस चीज़ को मानता है (अस्पष्ट) और उसके पास कोई माध्यम नहीं है। जैसे कि साइंस की उपलब्धि जो हुई है, यह हमने सिर्फ बुद्धि के ही माध्यम से देखा है। लेकिन बुद्धि जो है, वो दृश्य जो संसार में है, उसी के बारे में बातें करता है। जो अदृश्य है उसे नहीं बता सकता। और सत्य और अदृश्य में क्या अंतर है यही नहीं बता सकता। तब पहले यह सोचना चाहिए, कि जब सत्य की खोज की इंसान बात करता है, तो सर्वप्रथम उसको यही विचार करना होगा कि जो कुछ हमने बुद्धि से जाना, कुछ भी नहीं जाना, तो भी हम भ्रम में बने रहे। बुद्धि से जानी हुई बात, जितनी भी हमने आज तक जानी है, उससे इतना ज़रूर हुआ, जो दृश्य में है उससे हमने ज्ञात (अस्पष्ट) लेकिन जो कुछ अदृश्य में है वो भी नहीं जाना और ये भी नहीं जान पाए कि वो आखिर जो हमने दृश्य में जानना है यह परम सत्य है या नहीं। अब साइंस की उपलब्धि जब हमारी है, तो साइंस के हम अपने सिर हुए, साइंस में हमने बहुत सारी बातें जानी। अणु परमाणु तक हम पहुँच चुके। गतिविधियों को जो समझा है, वो भी सब जो कुछ भी जड़ है, उसके बारे में। ….. हरएक Read More …

The Vishuddhi Chakra New Delhi (भारत)

19830202 TALK ABOUT Vishuddhi, DELHI [Hindi transcript Q&A] सवाल – माताजी, क्या पितरों के श्राद्ध करने चाहिये ? उनके चित्र रखने चाहिये ?   श्रीमाताजी – इन्होंने सवाल किया है क्या पितरों के श्राद्ध करने चाहिये? पितरों के फोटोग्राफ्स रखने चाहिये ? जब उनकी तेरहवी होती है तब तो करने ही चाहिये उनके श्राद्ध। और श्राद्ध भी डिस्क्रिशन्स की बात आ ‘गयी फिर से। अगर समझ लीजिये कि आपके सहजयोग में आपने देखा कि आपका राइट हार्ट पकड़ रहा है। याने आपके पिता जो है, जो मर गये हैं, वो अभी भी संतुष्ट नहीं तो श्राद्ध करना चाहिये। इसमें कोई हर्ज नहीं। पर सहजयोग स्टाइल से श्राद्ध करना चाहिये। न कि एक ब्राह्मण को बुलाओ और उसको खाने को दो।   एक बार लखनो में हमें पता हुआ कि हमारे जो पूर्वज थे उनका श्राद्ध नहीं हो पाया। तो हमने कहा हम श्राद्ध करेंगे। तो उन्होंने कहा कि, ‘तुम्हारा श्राद्ध का क्या विधि है ?’ हमने कहा, ‘हमारा तो ये है कि हम खाना बनाते हैं और सब को खिलायेंगे खाना। बस यही हमारा श्राद्ध है।’ तो हमारी सिस्टर इन लॉ बेचारी ट्रेंडिशनल थी। उन्होंने ‘कहा कि, ‘यहाँ श्राद्ध ऐसा होता है कि पाँच ब्राह्मण बुलाओ।’ मैंने कहा, ‘पाँच क्‍या, यहाँ तो एक भी ब्राह्मण दिखायी नहीं दे रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘नहीं, अपने पाँच ब्राह्मण हैं। वो आएंगे और उनका श्राद्ध करेंगे।’ मैंने कहा, “चलो, बुलाईये।’ फिर पाँच ब्राह्मण आयें। वो तो बिल्कुल पार नहीं थे न ब्राह्मण थे। पाँच आदमी आ के बैठ गये। मैंने सोचा, देखिये तो सही क्‍या Read More …

Mooladhar, Swadishthan-Sakar Nirakar ka bhed New Delhi (भारत)

मूलाधार, स्वाधिष्ठान – साकार निराकार का भेद ३०.०१.१९८३ दिल्ली परमात्मा के बारे में अगर कोई भी बात करता है इस आज कल की दुनिया में तो लोग सोचते हैं कि एक मनोरंजन का साधन है। इससे सिर्फ मनोरंजन हो सकता है । परमात्मा के नाम की कोई चीज़ तो हो ही नहीं सकती है सिर्फ मनोरंजन मात्र के लिए ठीक है। अब बूढ़े हो गये हमारे दादा-दादी तो ठीक है, मंदिर में जाकर के बैठते हैं और अपना समय बिताने का एक अच्छा तरीका है, घर में बैठ कर बहु को सताने से अच्छा है कि मंदिरो में बैठे। इससे ज़्यादा मंदिर का कोई अर्थ अपने यहाँ आजकल के जमाने में नहीं लगाये। ये जो मंदिर में भगवान बैठे हैं इनका भी उपयोग यही लोग समझते हैं कि इनको जा कर अपना दुखड़ा बतायें, ये तकलीफ है, वो तकलीफ है और वो सब ठीक हो जाना चाहिए। लेकिन ये मंदिर क्या हैं? इसके अन्दर बैठे भगवान क्या हैं? उनका हमारा क्या संबंध है और उनसे कैसे जोड़ना चाहिए संबंध? आदि चीज़ों के बारे में अभी भी बहुत काफी गुप्त हैं। अब ये बातें अनादि काल से होती आयीं हैं। आपको मालूम है कि इंद्र तक को आत्मसाक्षात्कार देना पड़ा, जो अनादि है । करते -करते ये बातें जब छठी सदी में, सबसे बड़े हिंदू धर्म के प्रवर्तक, आदि शंकराचार्य संसार में आयें तब उन्होंने खुली तौर से बातचीत शुरू कर दी। नहीं तो अपने यहाँ एक भक्तिमार्ग था और एक वेदों का तरीका था, जैसे कि गायत्री मंत्र आदि। जब Read More …

Public Program: The Meaning Of Swajan मुंबई (भारत)

१९८२-१२१७ जनसभा: स्वजन का अर्थ [हिंदी] परेल, मुंबई (भारत) सार्वजनिक कार्यक्रम, मुंबई, भारत, १७ दिसंबर १९८२ माताजी श्री निर्मला देवी जी द्वारा १७/१२/१९८२ को परेल में उनके सम्मानित किए जाने पर ‘स्वजन’ द्वारा दिए गए सलाह का रिकॉर्डिंग। उन्होंने ‘स्वजन’ का अर्थ का विवरण दिया है। “स्वजन” के सब सदस्य तथा इसके संचालक और सर्व सहज योगी आप सबको मेरा प्रणाम! जैसा कि बताया गया स्वजन शब्द यह एक बड़े ध्येय की चीज़ है। स्वजन ये जो नाम हम लोगों ने बदल के इस संस्था को दिया था, इसके पीछे कुछ मेरा ही (–महाम–) जिसको कहते हैं कि महामाया इसके कुछ असर थे | स्वजन ये शब्द समझना चाहिए । स्व मानें क्या ? स्व मानें आत्मा , जिसे जिसनें अपनें आत्मा को पाया है वो जन स्वजन हैं | उस वखत शायद किसी ने न सोचा हो कि ये नाम विशेषकर मैंनें क्यों कहा कि यही नाम बदल रखा और जितने सहजयोगी हैं ये स्वजन हैं, क्योंकि उन्होंनें भी आत्मा को पाया है| ‘स्व’ को पाया है| अपने ‘स्व’ को पाने हीं के लिए ही स्वजन बनाया गया है और फर्क इतना है कि ऊपरी तरह से देखा जाए तो स्वजन में ये बात कही नहीं गई, लेकिन उस शब्द में हीं निहित है | उसका ॐ उसमें निहित है कि हम स्वजन हैं और जो आत्मा है वह ‘स्व’ है जो हमारे हृदय में परमात्मा का प्रतिबिंब है, वह ‘स्व’ उसका स्वरूप सर्व सामूहिक चेतना से दिखाई देता है| यानी जो आदमी स्व का जन हो जाता है Read More …

The Left Side Problems of Subconscious Christchurch House, Brighton (England)

                “बायाँ पक्ष: अवचेतन की समस्याएं” होव, ब्राइटन के पास, यूके,१३ मई १९८२। [पहले तीन मिनट बिना आवाज के हैं] लेकिन जैसा कि मैंने आपको बताया कि अच्छी जड़ताएँ (कंडीशनिंग) हो सकती है। उसी तरह, आप में अच्छी आदतें और बुरी आदतें हो सकती हैं। आदतें यदि आपके उत्थान को रोकती या बाधित करती हैं, तो वे आपको स्थिर करने में मदद भी कर सकती हैं। जड़ता (कंडीशनिंग) आपके पास उन पदार्थों से आती है जिनके साथ हम दिन-प्रतिदिन का व्यवहार कर रहे हैं। जब कोई इंसान पदार्थों को देखता है, तो वह उन पर अतिक्रमण करता है और वह उस पदार्थ को अपने उपयोग\उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। वह अपने उपयोग\उद्देश्य के लिए पदार्थों के रूपों को बदलता है। वह आराम के रूप में, या जीवन में मदद या मार्गदर्शक के रूप में पदार्थो का उपयोग करने के लिए अभ्यस्त होने लगता है। जितना अधिक आप पदार्थ पर निर्भर होना शुरू करते हैं, उतना ही आपकी सहजता समाप्त हो जाती है, क्योंकि आप निर्जीव के साथ व्यवहार कर रहे हैं। पदार्थ, जब निर्जीव हो जाते है, तभी हम उस से व्यवहार करते हैं। जब यह जी रहा होता है तो हम इसके बारे में ज्यादा परवाह नहीं करते हैं। इसलिए उस पदार्थ की जड़ता हमारे भीतर तब बैठ जाती है जब हम उस पदार्थ को अपने प्रयोजन के लिए प्रयोग करने लगते हैं। लेकिन हम अन्यथा कैसे अपना अस्तित्व बनाये रख सकते हैं, यह सवाल लोग पूछ सकते हैं। अगर भगवान ने हमें यह भौतिक चीजें और इन Read More …

Shivaji School, Vishesh goshti sathi vel aali aahe (भारत)

Shivaji School, Vishesh goshti sathi vel aali aahe [Marathi to Hindi Translation] HINDI TRANSLATION (Marathi Talk) परमात्मा की बहुत सारी कृपायें हम पर होती हैं। मनुष्य पर भी उसकी अनेक कृपायें होती हैं। परमात्मा की आशीर्वाद से ही उसे अनेक उत्तम चीजें और उत्तम जीवन प्राप्त होता है। पर मनुष्य तो उसे हर क्षण भूल जाता है। साक्षात् परमात्माने यह पृथ्वी हमारे लिये बनायी है और पृथ्वी निर्माण कर के उसमें विशेष रूप से एक स्थान बनाया है। इसी कारण से वह सूर्य के ज़्यादा समीप नहीं और चंद्रमा से जितनी दर पृथ्वी ने होना चाहिये उतनी ही दूरी पर वह है। और उस पृथ्वी पर जीवजंतुओं का निर्माण कर आज वह सुंदर कार्य मनुष्य के रूप में फलित हो गया है। अर्थात् अब आप मानव बन गये हैं। और अब मानव अवस्था में आने पर हमें परमात्मा का विस्मरण होना यह ठीक नहीं है। जिस परमात्मा ने हमें इतना ऐश्वर्य, सुख और शांति दी है, उस परमात्मा को लोग बहुत ही शीघ्र भूल जाते हैं। पर जिन लागों को परमात्मा ने इतना आराम नहीं दिया, जो अभी भी दरिद्रता में हैं, दःख में हैं, बीमार हैं, पीड़ा में हैं, वो लोग परमात्मा का स्मरण करते रहते हैं। पर जिन लोगों को परमात्मा ने दिया है, वे परमात्मा को पूरी तरह भूल जाते हैं। यह बहुत आश्चर्य की बात है। और जिन्हें नहीं दिया वे तो परमात्मा की याद करते रहते हैं। फिर याद करने के बाद, उन्हें भी आशीर्वाद मिलने के बाद वे लोग भी भूल जाएंगे। मनुष्य का Read More …

बाएं तरफ की समस्याओं का मूल  Heartwood Community Center, Santa Cruz (United States)

                                  बाएं तरफ की समस्याओं का मूल  1981-1018 सांता क्रूज़, (यूएसए) कल रात आप सभी से मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई और मैं सोच रही थी कि मैं आप तक इतनी सहजता से कैसे पहुँच सकी हूँ। आपसे मिलन के क्षणों को संजोना बहुत अच्छी बात थी। मैं कल तुम्हारी समस्याओं के लिए तुम्हारे अस्तित्व में गयी। ग्रेगोइरे ने कहा कि आप सभी को ज्यादातर बाईं ओर की समस्या है, ना कि दाईं तरफ की। इसका मतलब है कि अहंकार इतना नहीं है जितना कि आपकी बाईं ओर की समस्या है और बाईं ओर की समस्या आपके तक कुछ गलतियों के कारण आती है जो आपने अपनी खोज के दौरान की हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, इसे हल किया जा सकता है। बाएं तरफ की समस्या का मूल इसलिए आता है क्योंकि मुझे लगता है कि आपको अपने माता-पिता का प्यार बचपन में भी नहीं मिला। सबसे बड़ी समस्याओं में से एक माँ की समस्या है, कि जब आप बच्चे थे, तो आपने उस सुरक्षा को महसूस नहीं किया था। यह एक माँ का पक्ष है। बाईं बाजु माता का पक्ष है। एक और बात यह हो सकती है कि जब आप समाज में गए तो उन्होंने जीवन के बारे में अपने स्वयं के मानदंडों और विचारों से आप में भेद  पैदा करने की कोशिश की। सफलता के बारे में उन का विचार एक साधक के विचार से बहुत अलग है। क्योंकि एक साधक को केवल तभी सफलता मिल सकती है जब उसने सत्य को जान लिया हो। यही वह Read More …

An ocean of illusion Reorganized Church of Jesus Christ, Los Angeles (United States)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी  ‘माया का सागर’ सार्वजनिक कार्यक्रम, दिवस 1,  पुनर्गठित जीसस क्राइस्ट गिरजाघर,  लॉस एंजिल्स (संयुक्त राज्य अमेरिका) 15-10-1981 कल मैंने आपको बताया था कि हमारे भीतर दो बहुत महत्वपूर्ण शक्तियाँ हैं। पहली शक्ति वह है जिसके द्वारा हम कामना करते हैं, जिसे संस्कृत भाषा में ‘इच्छा शक्ति’ कहा जाता है और दूसरी शक्ति जिसे ‘क्रिया शक्ति’, कार्य करने की शक्ति कहा जाता है। ये दोनों वास्तव में स्थूल शक्तियाँ हैं, जो बाहर बाएँ और दाएँ अनुकंपी तंत्रिका तंत्र के रूप में व्यक्त होती हैं।  केंद्रीय मार्ग को ‘सुषुम्ना नाडी’ कहा जाता है, जो हमारे उत्थान की नाड़ी है। यह नाड़ी युगों से हमारे विकास का प्रतिनिधित्व करती है। हम कह सकते हैं कि यह नाड़ी हमें अमीबा से मानव के रूप में इस अवस्था तक हमारे विकास के लिए जिम्मेदार है, और जितने केंद्र आप वहां देखते हैं, एक, दो, तीन, चार, पांच, छह और सात – ये सभी हमारे विकास में मील के पत्थर हैं। ये सब हमारे अंदर स्थित हैं। ये सूक्ष्म केंद्र हैं। यह सब वहां हैं और हम इस सुंदर यंत्र से बने हैं। बेशक हमें इसका बोध नहीं है, और हमें यह भी बोध नहीं है, कि हम उन्हें देख नहीं सकते क्योंकि वे सूक्ष्म केंद्र हैं और हम उन्हें अपनी खुली आँखों से नहीं देख सकते। हम इन चक्रों की अभिव्यक्ति को केवल स्थूल में प्लैक्सैज के रूप में बाहर देख सकते हैं।  आज, जैसा कि मैंने आपको कल बताया था, मैं हर एक चक्र के बारे में बताऊंगी, Read More …

The Scientific Viewpoint Birmingham (England)

                                               वैज्ञानिक दृष्टिकोण बर्मिंघम (यूके), 14 अगस्त 1981। बाला एक वैज्ञानिक हैं और उसकी तरह के अन्य लोग हैं जो विज्ञान से मोहित हैं। ऐसा लगता है कि पूरा आधुनिक विश्व विज्ञान से बहुत अधिक प्रभावित है। लेकिन एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण को एक बहुत ही खुले दिमाग वाला रवैया होना चाहिए जैसा कि उन्होंने आपको बताया है। हमें सबसे पहले अपने भीतर कुछ निष्कर्षों पर पहुंचना होगा। दूसरे आपको यह समझना होगा कि यदि आपके सामने कोई परिकल्पना रखी जाती है तो उसे पहले देखा जाना चाहिए, उस पर प्रयोग किया जाना चाहिए और फिर सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। अब प्राचीन काल से, चाहे भारत में, इंग्लैंड में, अमेरिका में, यरुशलम में, कहीं भी, हम सर्वव्यापी शक्ति के बारे में सुनते आ रहे हैं, दूसरा जन्म या आत्म-साक्षात्कार, आत्मा साक्षात्कार, बपतिस्मा जैसा कि वे इसे कहते हैं। ये सब बातें जो हमने सुनी हैं, उन्हें सिद्ध करना है या उन्हें असत्य समझकर त्याग देना चाहिए। हम सत्य और असत्य दोनों को साथ साथ नहीं चला सकते। तो हमें यह पता लगाना होगा कि इन लोगों ने हमें जो भी बताया है,  क्या यह पूरी तरह से झूठ था और ऐसा कुछ भी नहीं था, जो अस्तित्व में था। यह एक आसान तरीका है जिसमें कुछ लोगों ने यह कहकर खारिज कर दिया है कि कोई ईश्वर नहीं है, कोई दैवीय शक्ति नहीं है। यह सब बेकार चीजें हैं; हम उनकी ओर पीठ करके व्यर्थ ही नहीं जा रहे हैं। ऐसा करना बहुत आसान है। दूसरों ने आँख Read More …

The Right Side Caxton Hall, London (England)

                                                 “राइट साइड,”  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 18 मई 1981। मैं आपसे राइट साइड, दायें तरफ की अनुकंपी प्रणाली Right Side sympathetic nervous system के बारे में बात करूंगी, जो हमारी महासरस्वती की सूक्ष्म ऊर्जा द्वारा व्यक्त की जाती है, जो हमें कार्य करने की शक्ति देती है। बाईं बाजु से हम कामना करते हैं और दाईं ओर, पिंगला नाड़ी की शक्ति का उपयोग करके, हम कार्य करते हैं। मैं उस दिन आपको राइट साइड के बारे में बता रही थी। आइए देखें कि हमारा राइट साइड कैसे बनता है। जो लोग पहली बार आए हैं उनके लिए मुझे खेद है लेकिन हर बार जब मैं विषय का परिचय शुरू करती हूं, तो फिर वही हो जाता है लेकिन बाद में मैं आपको सहज योग के बारे में समझाऊंगी। अब यह दाहिनी ओर, पिंगला नाडी, एक बहुत ही महत्वपूर्ण ऊर्जा देने वाली शक्ति है जो हमें कार्य करने और सक्रिय करने के लिए प्रेरित करती है। अब यह सभी पांच तत्वों से बना है: आप उन सभी पांच तत्वों को जानते हैं जिन्होंने हमारे भौतिक अस्तित्व और हमारे मानसिक अस्तित्व को बनाया है। इस तरह यह हमारी सभी शारीरिक और मानसिक समस्याओं, मानसिक गतिविधियों और मानसिक और शारीरिक विकास को पूरा करने में हमारी मदद करता है। अब यह, उन पांच तत्वों द्वारा निर्मित होने के कारण, जब, पहली बार, मनुष्य किसी भी संदर्भ में कुछ कार्रवाई करने के बारे में सोचने लगे, जैसे कहो भारत में उन्होंने पहले विचार किया कि, “क्यों नहीं, किसी न किसी तरह, इन तत्वों के Read More …

Christ and Forgiveness Caxton Hall, London (England)

इसा मसीह और क्षमा कैक्सटन हाल, यूनाइटेड किंगडम (यू.के.) 11 मई, 1981 …उस सत्य की खोजना जिस के बारे में सभी धर्मग्रंथों में वर्णन किया गया है। सभी ग्रंथों में कहा गया है कि, आप का पुनर्जन्म होना है। आप का जन्म होना है, उस  के बारे में पढ़ना नहीं है, सिर्फ यह कल्पना नहीं करनी कि आपका पुनर्जन्म हुआ है, सिर्फ यह विश्वास नहीं करना कि आप का पुनर्जन्म हुआ है या फिर कोई नकली कर्मकाण्ड जो यह प्रमाणित करता है आप दोबारा जन्मे है उस को स्वीकारना नहीं है अपितु निश्चित रूप से हमारे अंदर कुछ घटित होना चाहिए। सच्चाई का कुछ अनुभव तो हमारे अंदर होना ही चाहिए। यह सिर्फ कोई विचार नहीं है कि ये ऐसा है कि, हां! हां! हमारा पुनर्जन्म हुआ है! अब हम चुने हुए लोग हैं! हम सब से बढ़िया लोग हैं! परंतु निश्चित ही कुछ है कि हमारे अंदर कुछ क्रमागत उत्क्रांति है जो प्रकट होनी चाहिए, जिस की सभी धर्मग्रंथों में भविष्यवाणी की गई है। बिल्कुल भी कोई अपवाद नहीं है! हिंदू धर्म से शुरू कर के आज के सब से अधिक आधुनिक व्यक्तित्व, जो हम कह सकते हैं कि नए गुरु नानक है, हम कह सकते हैं कि ये वो हैं जिन्होंने धर्मग्रंथ लिखा। कुरान में साफ़ कहा गया है कि, आप को पीर बनना है,  वह जिसके पास ज्ञान है। वेद स्वयं यही कहते हैं, वेद पढ़ने से, वेद का अर्थ है ‘विद’ माने जानना, अगर आप नहीं जानते तो यह बेकार है।’ पहले अध्याय में, पहले छंद Read More …

Aim of Seeking Royal Exhibition Building, Melbourne (Australia)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी, ‘खोज का उद्देश्य’ रॉयल एग्जीबिशन बिल्डिंग, मेलबॉर्न, ऑस्ट्रेलिया 2 अप्रैल, 1981 मेलबॉर्न आ कर वास्तव में प्रसन्नता हो रही है। मैं यहां आई क्योंकि कोई व्यक्ति जो सिडनी आया था बोला, ‘मां आप को मेलबॉर्न जरूर आना चाहिए। हमें आप की आवश्यकता है।’ जब मैं यहां किसी और उद्देश्य से आई, मुझे अनुभव हुआ की मेलबॉर्न में चैतन्य वास्तव में बहुत अच्छा है, और ये बहुत संभव है, कि यहां अनेक साधक हो सकते हैं। जैसे मैंने कहा, यहां आप सब के बीच होना वास्तव में बहुत सुखद है। ये एक सत्य है, कि समय आ गया है हजारों, हजारों और हजारों के लिए और लाखों लोगों के लिए अपना आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने का, जो इस धरती पर साधकों के रूप में जन्में हैं। उन्हे अपना अर्थ जानना होगा। उन्हे जानना होगा कि प्रकृति ने अमीबा से मनुष्य क्यों बनाया। उनके जीवन का क्या उद्देश्य है? जब तक आप अपने जीवन का उद्देश्य ना पा लें आप खुश नहीं हो पाएंगे, आप संतुष्ट नहीं हो पाएंगे। आप कुछ भी अन्य आज़मा लें। आप अंहकार यात्रा या अन्य यात्राएं जैसे पैसे की खोज पर निकलें, या आप अन्य चीजें आजमा लें जैसे मादक पदार्थों का सेवन, मदिरा का सेवन, योगिक ऊर्जा से हवा में उड़ना, हर प्रकार की चीज़ें, परंतु इन चीज़ों ने किसी को भी संतुष्टि नहीं दी है। आप को वो परम पाना होगा, जिस के बिना हम भ्रांति में हैं। ये परम आप के अंदर है, इस लिए सहज योग एक Read More …

Just mere awakening of the Kundalini is not sufficient Sydney (Australia)

       कुण्डलिनी जागरण हो जाना मात्र ही पर्याप्त नहीं है  सिडनी (ऑस्ट्रेलिया), 29 मार्च 1981। मोदी ने अवश्य ही बहुत स्पष्ट रूप से आपको बताया होगा कि सहज योग में कैसे विकास किया जाए क्योंकि वह उनमें से एक हैं जिन्होंने अपने विकास को सुनिश्चित करने के लिए वास्तव में बहुत सकारात्मक कदम उठाये हैं। अब बोध के बारे में एक सरल बात समझनी होगी कि, केवल कुंडलिनी का जागरण पर्याप्त नहीं है, यह केवल शुरुआत है। आपको अपना बोध प्राप्त होता है लेकिन आपको वृक्ष बनना होगा, आपको विकसित होना होगा, आपको बनना होगा। यदि आप विकसित नहीं हो सकते हैं तो आपने वह हासिल नहीं किया है जो आप बनना चाहते थे। और ध्यान के साथ और ध्यान के बारे में समझ के साथ आप बहुत तेजी से बढ़ते हैं, बहुत तेजी से । अब हमारे पास जो कुछ बाधाएं हैं, उनमें से एक है, जिसे मैंने देखा है, जो सहज योग में ही निर्मित हैं। उनमें से एक यह है कि आप इसे इतनी आसानी से प्राप्त कर लेते हैं कि आप इसे हल्के में लेते हैं। यह इसके ढांचे में ही है, केवल सहज रूप से निर्मित। आप देखते हैं कि जो कुछ भी आपको इतनी आसानी से मिल जाता है आप उसे हल्के में लेते हैं। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि जब आपकी आंखें होती हैं तो आप अपनी आंखों की कीमत नहीं जानते, आप इसे हल्के में लेते हैं। लेकिन जब आपके पास नहीं होती हैं तो आप आंखों की कीमत जानते हैं, Read More …

Mooladhara and Swadishthan Maccabean Hall, Sydney (Australia)

1981-03-25 मूलाधार और स्वाधिष्ठान, सिडनी, ऑस्ट्रेलिया  सत्य के सभी साधकों को हमारा नमस्कार।  उस दिन, मैंने आपको पहले चक्र के बारे में थोड़ा बहुत बताया था, जिसे मूलाधार चक्र कहते हैं और कुंडलिनी, जो त्रिकोणाकार अस्थि, जिसे sacrum (पवित्र) कहते हैं, में बची हुई चेतना है। जैसा मैंने आपको बताया था कि यह शुद्ध इच्छा शक्ति है, जो अभी तक जागृत नहीं हुई है और न ही आपके अंदर अभी तक प्रकट हुई है, जो यहाँ पर उस क्षण का इंतजार कर रही है जब वह जागृत होगी और आपको आपका पुनर्जन्म देगी, आपका बपतिस्मा। या आपको शांति देती है। या आपको आपका आत्म-साक्षात्कार देती है। यह शुद्ध इच्छा है कि आपकी आत्मा से आपका योग हो। जब तक यह इच्छा पूर्ण नहीं होगा, वे लोग जो खोज रहे हैं, काभी भी संतुष्ट नहीं होंगे, चाहे वे कुछ भी करें।   अब, यह पहला चक्र बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि या सबसे पहला चक्र था जिसका निर्माण किया गया, जब आदिशक्ति ने अपना कार्य करना शुरू किया था। यह अबोधिता, जो कि पवित्रता, का चक्र है। इस पृथ्वी पर सबसे पहली वस्तु का निर्माण किया गया वह पवित्रता थी। यह चक्र सभी मनुष्यों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि जानवरों में अबोधिता है, उन्होंने उसको खोया नहीं है, जबकि हमारे पास अधिकार है या हम काह सकते हैं, हमारे पास यह स्वतंत्रता है कि हम इसका परित्याग करे दें। हम यह कर सकते हैं, हम अपने तथाकथित स्वतंत्रता के विचारों के द्वारा किसी भी प्रकार से इसको नष्ट कर सकते हैं।   Read More …

The Power of Brahma New Delhi (भारत)

“The Power of Brahma”, Public Program,  Delhi (India), 11 March 1981. [Hindi translation from English] उस दिन मैंने आपको बताया था कि चैतन्य लहरियाँ ब्रह्मशक्ति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं–ब्रह्मा की शक्ति | ब्रह्मा की शक्ति वह शक्ति है जो सृजन करती है, इच्छा करती है, उत्क्रान्ति करती है तथा आपको जीवन्त-शक्ति प्रदान करती है। यही शक्ति हमें जीवन्त शक्ति प्रदान करती है | अब ये समझना सुगम नहीं है की मृत शक्ति क्या है और जीवन्त शक्ति क्या है।.जीवन्त शक्ति को समझना अत्यन्त सुगम है। कोई पशु या हम कह सकते हैं, एक छोटा सा कीड़ा जीवन्त शक्ति है। इच्छानुसार ये अपने को घुमा सकता है, किसी खतरे से अपनी रक्षा कर सकता है | ये जितना चाहे छोटे आकार का हो परन्तु जीवन्त होने के कारण ये अपनी रक्षा कर सकता है। परन्तु कोई भी मृत चीज़ अपने आप हिलडुल नहीं सकती। जहाँ तक ‘स्व’ (self) का प्रश्न है वह तत्व इस में नहीं होता। जीवन्त शक्ति होने के नाते अब हमें यह पता लगाने का प्रयत्न करना चाहिए कि, “क्या हम जीवन्त शक्ति बनने वाले हैं या जीवन- विहीन |” इस विश्व में रहते हुए हम अपनी सुख सुविधाओं के विषय में सोचने लगते हैं कि हमें कहाँ रहना है और क्या करना है। जब हम इन चीजों के विषय में सोचते हैं तो हम मत्त चीज़ों के विषय में सोच रहे होते हैं| परन्तु जीवन्त कार्य करने के लक्ष्य से जब हम कोई स्थान, कोई आश्रम प्राप्त करने के विषय में सोचते हैं तब हम उस Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

“1981-02-17 सार्वजनिक कार्यक्रम, शंकर रोड 1981: ब्रह्म तत्त्वों का स्वरुप, दिल्ली” सार्वजनिक प्रवचन – ब्रह्म तत्व का स्वरूप नई दिल्ली, १७ फरवरी १९८१  आदर से और स्नेह के साथ आपने मेरा जो स्वागत किया है यह सब देख करके मेरा हृदय अत्यन्त प्रेम से भर आया। यह भक्ति और परमेश्वर को पाने की महान इच्छा कहाँ देखने को मिलती है ? आजकल के इस कलियुग में इस तरह के लोगों को देख करके हमारे जैसे एक माँ का हृदय कितना आनन्दित हो सकता है आप जान नहीं सकते| आजकल घोर कलियुग है, घोर कलियुग। इससे बड़ा कलियुग कभी भी नहीं आया और न आएगा। कलियुग की विशेषता है कि हर चीज़ के मामले में भ्रान्ति ही भ्रान्ति है इन्सान को। हर चीज़ भ्रान्तिमय है। इन्सान इतना बुरा नहीं है जितनी कि यह भ्रान्ति बुरी है।हर चीज़ में, अंग्रेजी में जिसे अजीब (chaos) कहते हैं, हर चीज़ में जिसे समझ में नहीं आता कि यह बात सही है कि वो बात सही है, कोई कहता है यह करो और कोई कहता है वो करो, कोई कहता है इस रास्ते जाओ भाई, तो कोई कहता है उस रास्ते जाओ। तो कौन से रास्ते जायें? हर मामले में भ्रान्ति है पर सबसे ज़्यादा धर्म के मामले में भ्रान्ति है। पर जो सनातन है, जो अनादि है, वो कभी भी नष्ट नहीं हो सकता, कभी भी नष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि वो अनन्त है। वो नष्ट नहीं हो सकता। उसका स्वरूप कोई कुछ बना ले, कोई कुछ बना ले, कोई कुछ ढकोसला बना ले, Read More …

Tattwa Ki Baat New Delhi (भारत)

1981-02-15 Talk at Delhi University 1981: Tattwa Ki Baat 1, Delhi Tattwa Ki Baat – 1 Date 15th February 1981 : Place Delhi Public Program Type Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 – 18 Hindi English Marathi || Translation English Hindi 19 – 30 Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindii Chaitanya Lahiri कल मैंने आपसे कहा था कि………….. है? अगर धरती माता की वजह से ही सारा कार्य आज आपको तत्व की बात बतायेंगे जब हो रहा है तो घरती माता की वजह से यह जो हम एक पेड़ की ओर देखें और उसका उन्नतिगत पत्थर है वो क्यों नहीं पनपता ? इसका मतलब यह होना, उसका बढ़ना देखें, तो यह समझ में आता है कि अनेक तत्वों में एक तत्व है, लेकिन तत्व है कि उसके अन्दर कोई न कोई ऐसी शक्ति अनेक हैं । प्रवाहित है या प्रभावित है जिसके कारण वो पेड़ बढ़ रहा है और अपनी पूरी स्थिति को पहुँच रहा समाये हैं और यह जो अनेक तत्व हैं यह हमारे है। यह शक्ति उसके अन्दर है नहीं तो यह कार्य अन्दर भी स्थित हैं, अलग अलग चक्रों पर इनका नहीं हो सकता। लेकिन यह शक्ति उसने कहां से वास है, लेकिन एक ही शरीर में समाये हैं और पाई ? इसका तत्व मर्म क्या है ? जो चीज बाह्य एक ही ओर इनका कार्य चल रहा है, और एक ही में दिखाई देती है, जैसे कि पेड़ दिखाई देता है इनका लक्ष्य है और एक ही चीज़ को इनको पाना उसके Read More …

What To Do After Self-realisation and Sahasrara Chakra, Delhi New Delhi (भारत)

“1981-0210 स्वयं-उपलब्धि के बाद क्या करें, सहस्रार चक्र [हिंदी] नई दिल्ली (भारत)” “स्वयं-प्राप्ति के बाद क्या करें, सहस्रार चक्र [हिंदी] नई दिल्ली (भारत)” सहजयोग में प्रगति नई दिल्ली, १० फरवरी १९८१ यहाँ कुछ दिनों से अपना जो कार्यक्रम होता रहा है उसमें मैंने आपसे बताया था कि कुण्डलिनी और उसके साथ और भी क्या-क्या हमारे अन्दर स्थित है। जो भी मैं बात कह रही हूँ ये आप लोगों को मान लेनी नहीं चाहिए लेकिन इसका धिक्कार भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये अन्तरज्ञान आपको अभी नहीं है। और अगर मैं कहती हूैँ कि मुझे है, तो उसे खुले दिमाग से देखना चाहिए, सोचना चाहिए और पाना चाहिए। दिमाग जरूर अपना खुला रखें । पहली तो बात ये है कि सहजयोग कोई दकान नहीं है। इसमें किसी प्रकार का भी वैसा काम नहीं होता है जैसे और आश्रमों में या और गुरुओं के यहाँ पर होता है कि आप इतना रुपया दीजिए और सदस्य हो जाइए। यहाँ पर आप ही को खोजना पड़ता है, आप ही को पाना पड़ता है और आप ही को आत्मसात करना पड़ता है।  जैसे कि गंगाजी बह रही हैं। आप गंगाजी में जायें, इसका आदर करें, उसमें नहाएं- धोएं और घर चले आएं। अगर आपको गंगा जी को धन्यवाद देना हो तो दें, न दें तो गंगाजी कोई आपसे नाराज नहीं होती। एक बार इस बात को अगर मनुष्य समझ ले, कि यहाँ कुछ भी देना नहीं है सिर्फ लेना ही है, तो सहजयोग की ओर देखने की जो दृष्टि है उसमें एक तरह की गहनता Read More …

Public Program, Swadishthana Chakra New Delhi (भारत)

Public Program, New Delhi (India), 6 February 1981. [Hindi Transcript] आपने विनती की है कि हिंदी मे भाषण कीजिएगा बात ये है कि ये तय किया गया था कि इस जगह मे अंग्रेजी मे बातचीत करुँगी अ.. उसकी वजह ये है कि अभी तक हिन्दुस्तान मे अंग्रेजी मे मैंने कहीं भी बातचीत नहीं की और ये जो अतिथि लोग आयें है आज तक मेरा भाषण सुन नहीं पाए इसलिए इनसे कहा था कि यहाँ पर मे मे अंग्रेजी मे बातचीत करुँगी और जब मंदिरों मे आदि या मेरे ख्याल से दिल.. दिल्ली के विद्यापीठ मे भी जो भाषण होने वाले है वो हिंदी भाषा में ही होंगे इसलिए कृपया आप दूसरे भाषणों मे भी आएंगे तो मैं हिंदी मे बातचीत करुँगी आशा हैं आप लोग बुरा नहीं मानेंगे क्योंकि आतिथी है थोड़ा सा इनका भी कभी ख्याल करना चाहिए हालाँकि आप लोग सब थोडा-बहुत तो अंग्रेजी समझते है और मैं कोई ऐसी कठिन अंग्रेजी बोलती नहीं हूँ अगर आपको कोई उसमे प्रश्न हो तो मैं आपको बता दूंगी सिर्फ ये पांच ही लेक्चरस जो है ये मे अंग्रेजी मे देने वाली हूँ इसके लिए क्षमा कीजिएगा ……कल मैंने आपसे उन सूक्ष्म केंद्रों के बारे में बात की , जो हमारे अस्तित्व के भीतर मौजूद हैं। इसका ज्ञान हजारों वर्षों पहले यहाँ के कई भारतीयों को ज्ञात था, लेकिन उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया, दो प्रकार के लोग थे जो प्रकृति की उच्च शक्तियों के बारे में जानते थे। उनमें से एक ऐसे लोग थे जिन्होंने सोचा था कि हम स्वयं Read More …

Public Program, Introduction to Mooladhara Chakra New Delhi (भारत)

Public Program, India, Delhi, 05-02-1981 आज मैं सहज योग और कुंडलिनी जागृति के बारे में सामान्य रूप से बात करने जा रहीं हूँ। सहज, जैसा कि आप जानते हैं, का अर्थ है,’सह’ साथ और ‘जा’आपके साथ पैदा हुआ। लेकिन शायद लोगों को एहसास नहीं है सहज का वास्तव में क्या अर्थ है। यह स्वतःस्फूर्त है लेकिन क्या है स्वतःस्फूर्त? स्वतःस्फूर्त वह नहीं है – मान लीजिए मैं कार में जा रहीं हूँ और अचानक कोई मिल जाए तो मैं कहूँ, ‘मैं अनायास/सहज ही उस व्यक्ति से मिल गई।’ सहज का अर्थ है, वह घटित होना जो कि एक जीवंत घटना है। यह एक जीवित वस्तु होनी चाहिए जो कि स्वतःस्फूर्त है; यह बहुत ही रहस्यमय शब्द है जिसे समझाया नहीं जा सकता और जो, इस बारे में बिना किसी ज्ञप्ति के घटित होता है, जो मनुष्य के लिए समझना संभव नहीं है, यही सहज है। सहज का अर्थ हो सकता है, यह बहुत सरल है, बहुत आसान है – यह है, इसे होना ही है। उदाहरण के लिए, ईश्वर ने हमें ये आँखें दीं हैं। ये अद्भुत आँखें जो मनुष्य को मिलीं हैं, ऐसा नहीं कि वे रंग देख सकतीं हैं वरन इसकी सराहना भी कर सकतीं हैं। भगवान ने उन्हें नाक दी है, जो इतनी अच्छी तरह से विकसित है कि यह गंदगी को महसूस कर सकती है – जानवर इसे महसूस नहीं कर सकते। आप एक मानव बन गए हैं, मैं एक मानव बन गईं हूँ, और हर कोई इंसान बन गया है – बन गया है – Read More …