Public Program Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)
1980-12-13 Bharatiya Vidya Bhavan, Mumbai
1980-12-13 Bharatiya Vidya Bhavan, Mumbai
परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी, ‘हम आत्म साक्षात्कार से क्या अपेक्षा रखते हैं’ कैक्सटन हॉल, लंदन (यू.के.) 27 अक्टूबर, 1980 अभी हाल में, मैं आपको आत्म-साक्षात्कार के पश्चात हमारे भीतर की प्रगति के बारे में बता रही थी। अंकुरण बहुत सरलता से होता है। कुंडलिनी बहुत सरलता से ऊपर उठती है, ब्रह्मरंध्र को भी बहुत सरलता से छेदती है। यह वास्तव में, जैसा कि आप इसे कहते हैं, ‘सहज’ है। यह एक जबरदस्त घटना है। लोगों को आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने में हजारों वर्ष लग जाते हैं। यह भी एक सच्चाई है। उन्हें बार-बार जन्म लेना पड़ा, और बहुत कम चुने हुए लोगों को ही आत्मसाक्षात्कार मिला। लेकिन आज, जैसा कि मैंने कहा, कई फूलों के फल बनने का समय आ गया है। तो यह घटना ज्यादा समय नहीं लेती है। यह कई लोगों में बस ‘तत्क्षण’ का काम है। लेकिन जिस विकास के बारे में मैं पिछली बार बात कर रही थी, मैंने आत्म-साक्षात्कार पर बात समाप्त की – आत्म-साक्षात्कार क्या है, और हम आत्म-साक्षात्कार से क्या अपेक्षा करते हैं। जैसा कि आप जानते हैं, पहली चीज़ जो आपके साथ घटित होती है, जब कुंडलिनी ऊपर उठती है, आप शारीरिक रूप से बेहतर महसूस करने लगते हैं। आपके स्वास्थ्य में सुधार होता है। यद्यपि कुंडलिनी मध्य भाग में सुषुम्ना के अंदर सबसे मध्य नाड़ी, जिसे ब्रह्म नाड़ी कहा जाता है, से उठती है। और पहली चीज़ जो घटित होती है, वह ये है, कि भौतिक प्राणी की सहायता होती है। वह हर चक्र का अंतरतम केंद्र नहीं है। Read More …
सार्वजनिक कार्यक्रम दिवस 2, 22 फरवरी 1980, नाइस, फ्रांस कल मैंने आपको हमारे भीतर की अवशिष्ट शक्ति के बारे में बताया जो कि “सैक्रम बोन” (त्रिकोणाकार अस्थि) में रहती है। इस शक्ति को कुंडलिनी कहा जाता है। यह वही शक्ति है जो ऊपर को चढ़ती है इन उर्जा केंद्रों में से होती हुई और हमें हमारा आत्मसाक्षात्कार दिलाती है, हमारा पुनर्जन्म। मैंने आपको यह भी बताया है कि कई लोगों में आप देख सकते हैं इस कुंडलिनी के स्पंदन को स्पष्ट रूप से अपनी खुली आँखों द्वारा। आप देख भी सकते हैं इसका ऊपर की ओर चढ़ना विभिन्न चक्रों में, इस चक्र तक। आप अपने सिर पर भी स्पंदन को अनुभव कर सकते हैं। और आप – बाद में भी, जब यह इस क्षेत्र का भेदन करती है – आप अनुभव कर सकते हैं ठंडी हवा का बहना अपने हाथ से । यह आपकी आत्मा की ऊर्जा है। हम कह सकते हैं कि यह अभिव्यक्ति है आत्मा की । इस प्रकार आप एक नए आयाम में प्रवेश करते हैं सामूहिक चेतना के । आप सामूहिक रूप से जाग्रत हो जाते हैं। आप दूसरों को अनुभव करना शुरू कर देते हैं अपनी उंगलियों पर । वास्तव में, ये सभी पाँच उंगलियाँ – साथही, छह और सात, बिंदु – हमारे भीतर के चक्र हैं। आप प्रबुद्ध हो जाते हैं – क्योंकि आप उन्हें यहाँ अनुभव कर सकते हैं और कभी-कभी भीतर भी। कुछ लोग हाथों पर इसे अनुभव नहीं कर पाते हैं, और कुछ लोगों ने कल कुछ समय तक इसे अनुभव Read More …
हम अंदर क्या हैं? पब्लिक प्रोग्राम, कैरस लेन चर्च सेंटर, कैर्स लेन, बर्मिंघम बी४ ७एसएक्स (इंग्लैंड), ९ अगस्त १९८०। मुझे देर से आने के लिए वास्तव में खेद है लेकिन केवल आपके ग्रैंड होटल ने ही मुझे देरी करवाई | हमने पैंतालीस मिनट पहले से चाय का आर्डर दिया था और वे हमारे लिए चाय नहीं बना सके! अब हमारे यहाँ क्या हो रहा है? हमें यह समझना होगा कि इस आधुनिक समय में लोग सामान्य नहीं हैं। कहीं न कहीं उनके साथ कुछ गलत हो रहा है। और शायद हमारे भीतर कुछ गंभीर हो रहा है, जो बाहर ऐसा सामूहिक प्रभाव दे रहा है। अब परेशानी यह है कि हम नहीं जानते कि हम अंदर क्या हैं। जब तक हम यह नहीं जान लेते कि हम क्या हैं, जब तक हमारे भीतर प्रकाश नहीं होगा, तब तक हम यह नहीं समझ सकते कि हमारे साथ समस्या क्या है। हम जो कुछ भी हमारी सीमित जागरूकता से जानते हैं उसे स्वीकार करते हैं। क्योंकि मानव जागरूकता उस फलदायी स्थिति तक नहीं पहुंची है जहां कोई यह कह सके कि, “मैं निश्चित रूप से जानता हूं कि यह मेरा उपयोग है। मैं निश्चित रूप से जानता हूं कि मैं यहां क्यों हूं। मैं निश्चित रूप से जानता हूं, मेरा उद्देश्य क्या है – मैं अमीबा अवस्था से मनुष्य क्यों बना; मुझे इंसान बनाने के लिए प्रकृति ने ये सब मुसीबतें क्यों उठाईं। हम इन सवालों के जवाब बिल्कुल नहीं दे पाए हैं। लेकिन इंसान का दिमाग ऐसा है कि वह हर Read More …
“द गुरु प्रिंसिपल”, कॉक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 28 जुलाई 1980 कल मैंने आपको भवसागर, धर्म के बारे में बताया था जिसे मनुष्य को स्थापित करना है। आधुनिक समय में लोगों ने अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग उस सीमा तक किया है, वो बहुत आगे चले गए हैं, इस अति तक या उस अति तक। उन्होंने अपने केंद्रीय मार्ग को त्याग दिया है और स्वयं को स्वीकार और पहचान लिया है इस प्रकार के, प्रत्येक चीज़ के बारे में अतिशय विचारों के साथ, कि लोगों को यह समझाना कठिन है कि उन्होंने अपना मार्ग खो दिया है। कोई भी अतिशयता अनुचित हैं। संतुलन वह मार्ग है जिससे हम वास्तव में समस्या का समाधान करते हैं। किन्तु मानव जाति इस प्रकार की है कि प्रत्येक बहुत तेज़ी से दौड़ना आरंभ कर देता है, आप देखें और इसमें एक प्रतियोगिता निर्धारित है: कौन पहले नरक में जाता है। यह मात्र एक दिशा में नही है, आप किसी भी दिशा को ले सकते हैं, किन्तु ये सभी दिशाएं रैखिक हैं। वो सीधे जाते है और घूम जाते हैं और नीचे जाते हैं – उस प्रकार का कोई भी संचलन। उदाहरण के लिए मानो, हमारा औद्योगिक विकास। हमने अपने औद्योगिक विकास का आरंभ सम्पूर्ण को समझे बिना किया है, सम्पूर्ण संसार, कि सम्पूर्ण संसार ईश्वर द्वारा बनाया गया था, एक भाग नहीं, एक राष्ट्र। संपूर्ण के साथ संबंध को समझे बिना, जब हम औद्योगिक रूप से आगे बढ़ना आरंभ करते हैं, तब हमने उद्योगों का निर्माण किया और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए हमें अन्य उद्योगों Read More …
परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ‘विक्षेप, आधुनिक काल का लक्षण’ सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल,लंदन 14 जुलाई, 1980 आधुनिक काल में आज के समय में हमारा सामना (कन्फ्यूजन) विक्षेपों से है। ये आधुनिक काल का लक्षण है। साथ ही, सत्य को खोजने की सामूहिक तीव्र जिज्ञासा प्रकट हो रही है। ये सिर्फ एक व्यक्ति नहीं है जो ऐसा अनुभव करता है, ये सिर्फ आठ और दस लोग नहीं हैं जो ऐसा अनुभव करते हैं, परंतु जनसमूह के जनसमूह, बहुताय अनुभव कर रहे हैं, कि उनको एक उत्तर खोजना होगा। आप को पता करना होगा कि आप यहां क्यों हैं। आप को जानना होगा, आप कौन हैं। आपको अपनी हितकारिता का पता लगाना है। आपको संपूर्णता का पता लगाना है। ये एक बहुत बड़ी गतिविधि एक बहुत ही सूक्ष्म तरीके से होती है, यानी जन समूह को इस खोज की ओर ले जाना। परंतु शायद हमें इस बारे में कोई अंदाजा नहीं, कि क्या माहौल है जिस में हम जन्मे हैं, क्या परिस्थिति है, पूरा मंच कैसे बिछाया गया है! हमें कुछ नही पता! जैसा कि हमने खुद को इंसान के रूप में बिना उसके महत्व को समझे स्वीकार कर लिया है। हम हर चीज उपलब्ध होने के कारण उस का महत्व नहीं समझते। हम मनुष्य रूप में अपनी उत्क्रांति के द्वारा जन्मे हैं, परंतु हम विचार भी नहीं करना चाहते, कि हम अमीबा से इस उच्चतर अवस्था तक कैसे विकसित हुए! सारे ‘क्यों’ हम बंद कर देते हैं! जो कुछ भी है हम इन आंखों के द्वारा, इन कानों के Read More …
अन्य लोकों में क्या हो रहा है कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड, 30 जून 1980। आज, मुझे आपको यह बताने में कोई आपत्ति नहीं है कि अन्य लोकों में क्या हो रहा है, अन्य लोक जो हम नहीं देखते हैं, जिसके बारे में हमें जानकारी नहीं है। यह आपको थोड़ा डरा सकता है, लेकिन अब समय आ गया है कि हम यह जानें कि संपूर्ण के संबंध में हमें कैसे रखा गया है, परमेश्वर की क्या योजनाएँ हैं, और हम उन्हें कैसे पूरा करने जा रहे हैं। अब यहाँ आप में से अधिकांश आत्मसाक्षात्कारी है। आप में से कुछ पहली बार आए हैं; आपको भी आपका आत्मसाक्षात्कार होगा। लेकिन सामान्य बात यह है कि आप सभी मुमुक्षु हैं, ईश्वर के साधक हैं, शांति के खोजी हैं, प्रेम पिपासु हैं, यह एक सामान्य बात है। लेकिन यह इच्छा आपके पास आपके लिए नहीं आई है, किसी व्यक्तिगत उत्थान के लिए या किन्ही ऐसी उपलब्धियों द्वारा हासिल स्थान के लिए जहां से कोई वापसी नहीं है, बल्कि यह अंतिम निर्णय है जिसका सभी मनुष्यों को सामना करना होगा। उन्हें इससे गुजरना होगा और अपने अंतिम स्थान को प्राप्त करने के लिए, ईश्वर के राज्य में अपना स्थान प्राप्त करना होगा। आज तुम मेरे सामने बैठे हो, तुम मेरे साथ पहले भी रहे हो और बहुत पहले भी। लेकिन आज विशेष रूप से जब आप मेरे साथ हैं, तो आप इसका सामना करने और स्वयं के लिए सुनिश्चित करने यहां आए हैं कि आप सत्य, प्रेम, ईश्वर का आशीर्वाद धारण करने में सक्षम हों। Read More …
जो परे है उसकी चाहत सार्वजनिक कार्यक्रम स्ट्रैटफ़ोर्ड, ईस्ट लंदन, लंदन (यूके), १३ जून १९८० वे झूठे नहीं हो सकते थे। वे हमसे झूठ नहीं बोल सकते थे। उदाहरण के लिए आइए हम सुकरात का मामला लें। सुकरात ने हमें बताया है कि हमें दूसरे जीवन के लिए शरीर छोड़ना है और जब हम इस दुनिया में रहते हैं, जब हम इस धरती पर इंसान के रूप में रहते हैं, तो हमें खुद को इस तरह रखना होगा कि हम अपने अस्तित्व को खराब न करें, ऐसा है कि हमारे ही भीतर जीवन की एक क्षमता है, एक ऐसा गुण जो हमें मनुष्य बनाता है, जिससे हम मनुष्य कहला सकते हैं। इंसान और जानवर में क्या अंतर है? जैसा कि औरों ने भी यही कहा है कि हम मनुष्य हैं, चूँकि हम मनुष्य हैं, हमें मूल्यों की एक निश्चित मात्रा का आधार रखना चाहिए। सुकरात के बाद हमारे पास अब्राहम और मूसा जैसे लोग थे, उन्होंने भी यही बात कही। उन्होंने जो कहा और सुकरात ने जो कहा, उसमें बहुत अंतर नहीं है। सुकरात ने एक और बात कही थी, कि हमारे भीतर देवता हैं और हमें उस देवत्व का ध्यान रखना है, हमें उन्हें प्रसन्न रखना है। मूसा को जब दस आज्ञाएँ मिलीं, तो वास्तव में उन्होने वे दस विधियाँ खोजीं, जिनके द्वारा वह हमें बता रहे थे कि हम उन दस आज्ञाओं का पालन करके मनुष्य के रूप में अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम हों। गुण-धर्म का अर्थ है जिसे हम अपने भीतर धारण करते हैं। Read More …
आतंरिक कुशाग्रता कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 9 जून 1980 एक अन्य दिन आश्रम में, मैं आपको हमारी कुशग्राताओं के बारे में बता रही थी, जो कुशाग्रताएँ हमारे पास पहले से हैं, जिन्हें हम नहीं समझते हैं। हमारे अवचेतन मन से हो सकता है, हमारे अग्र चेतन मन से हो सकती है, कहीं से भी हो सकती है जो हमारे लिए अज्ञात है; लेकिन हमें उन कुशाग्रताओं की परवाह करना चाहिए जो हमें हमारे सार्वभौमिक अस्तित्व की ओर ले जाती हैं। हमने कभी-कभी ऐसे लोगों के बारे में सुना है जिन्हें संकेत मिलता है। जैसे कोई कहता है, “मुझे यह घर खरीदना चाहिए, मुझे एक सुझाव प्राप्त होता कि, मुझे यह खरीद लेना चाहिए।” या कभी-कभी लोग कहते हैं कि, “मैं हमेशा कुछ सुनता हूं, कोई मुझे बताता है कि ऐसा नहीं करना चाहिए।” लेकिन इस तरह के सभी सुझावों के बारे में आकलन किया जाना चाहिए कि वे आपको कुछ परे के बारे में सुझाव देते हैं अथवा कुछ सांसारिक जीवन से सम्बंधित, जैसे की,घर खरीदना। परमात्मा की इस बात में कोई अधिक दिलचस्पी नहीं है कि, आप कौन सा घर खरीदते हैं, या आप एक दौड़ में कितना पैसा कमाते हैं: उन्हें नहीं है ! क्योंकि यह परमात्मा के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। कोई व्यक्ति यह समझ सकता है, क्या ऐसा नहीं है। यह भी कि ईश्वर आपको किसी के विरुद्ध कान में यह बताने में दिलचस्पी नहीं रखते है कि, “इस आदमी से सावधान रहें, वह एक खतरनाक आदमी है!” क्योकि, अगर कोई आपको शारीरिक रूप से नुकसान Read More …
[Hindi translation from English] हम यहाँ क्यों है? हैम्पस्टेड, लंदन (यूके), 6 जून 1980 आप की बहुत मेहरबानी है की आप ने मुझे हेम्पस्टेड में आमंत्रित किया है, जो मैं पहले भी कई बार आ चुकी हूँ। और मैंने हमेशा महसूस किया कि इस खूबसूरत क्षेत्र में रहने वाले लोगों के ईश्वर के बारे में सुंदर विचार होना चाहिए, क्योंकि आप प्रकृति में, प्रकृति की सुंदरता में ईश्वर के प्रभाव को बेहतर देखते हैं। और फिर आप सोचने लगते हैं कि किस प्रकार ईश्वर ने हमें आनंद देने के लिए इस खूबसूरत दुनिया को बनाया है। लेकिन इतनी सारी चीजें हम हलके में ले लेते हैं, उदाहरण के लिए, स्वयम हमारा मानव जीवन। हमने इसे यूँ ही पा लिया ऐसा मान लिया है। हमें एक सुंदर शरीर, बहुत सुंदर व्यक्तित्व मिला है।आपने जागरूकता पाई है जो कि किसी भी अन्य बनाई गई चीज़ की तुलना में बहुत अधिक है। उदाहरण के लिए, एक जानवर कहीं भी किसी भी सुंदरता को नहीं समझता है। अगर कोई गंदी या भद्दी चीज है या किसी चीज से अजीब सी बदबू आ रही है तो कोई जानवर नहीं समझ सकते हैं। पशु स्वच्छता को नहीं समझते हैं, लेकिन मनुष्य ईश्वर द्वारा बहुत अच्छी तरह से बनाया गया है। वे इतने विकसित हैं कि वे इन सभी चीजों को महसूस कर सकते हैं, बहुत, जानवरों की तुलना में बहुत अधिक या किसी भी अन्य चीज को जो पहले कभी बनाई गई है। जागरूकता के इस बिंदु पर हम उस चीज़ के बारे में भी Read More …
परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी (आत्मा की) खोज क्या है? ब्राइटन पवैलियन, यूनाइटेड किंगडम 31st March, 1980 मैंने कल आपको बताया था कि आप को कैसे अनुभव होता है अपनी खोज का? आप को अपनी खोज का अनुभव क्यों होता हैं। हमारे अंदर ऐसा क्या है जो इस खोज को कार्यान्वित करता है? और यह योग सहज है। और कोई रास्ता नहीं है जिससे आप अपना आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर सकें, क्योंकि अगर आपको एक बीज को अंकुरित करना है तो उसमें अंकुरण होना चाहिए। इसी प्रकार अगर आपको अपनी नई चेतना में अंकुरित होना है, वह आपके कुंडलिनी जागरण के द्वारा ही होना है, क्योंकि इसी कार्य के लिए कुंडलिनी वहां है। अगर आप को ये (माइक) मुख्य स्विच में लगाना है तो आप को तार प्रयोग करना होगा। इस के लिए और कोई रास्ता नहीं है। जैसे कल मैंने आपको बताया था कि ये सुंदर यंत्र बनाया गया है, सारे प्रयास किये गए हैं। आप इस से गुजर चुके हैं, कितने, हम ने इसे पैंतीस करोड़ के लिए कितना गिना था? पैंतीस! हां? सहज योगी: तीन सौ पचास मिलियन श्री माताजी : तीन सौ पचास मिलियन प्रकार के जीवन! और अब आप मनुष्य बन गए हैं। तो, आखिरकार अवश्य ही इस सुंदर मानवीय ढांचे, इस यंत्र का कोई अर्थ होगा कि क्यों इसका निर्माण किया गया। इसका अवश्य कोई कारण होगा। और जैसे आप को अपना मानवीय साक्षात्कार प्राप्त हुआ है, जैसे आपको यह मानवीय शरीर मिला है, अगर आपको और विकसित व्यक्तित्व तक पहुंचना है, तो Read More …
“महाकाली शक्ति” सार्वजनिक कार्यक्रम, 8 फरवरी 1980 नई दिल्ली, भारत। सहज योगी : दो दिन पहले मुझे दिल्ली के एक मंदिर में माताजी का परिचय कराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था और बड़ी भीड़ आई थी। यह भीड़, कार्यक्रम के अंत में, माताजी के पैर छूने के लिए बहुत उत्सुक थी और एक बार फिर मुझे एहसास हुआ कि आप इस देश में कितने भाग्यशाली और धन्य हैं क्योंकि आपकी परंपराओं, आपके पालन-पोषण ने आपको एक गहरी धारणा और अध्यात्म के आयाम के प्रति बेहतर संवेदनशीलता दी है। ऐसा लगता है कि आप कई अन्य लोगों, अन्य देशों और सभ्यताओं की तुलना में ईश्वर के प्रति अधिक जागरूक हैं। यही कारण है कि हम में से बहुत से लोग भारत आए हैं, मैं कहूंगा, लगभग बीस। इस सदी के साथ प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बड़ी संख्या में पश्चिम के साधक भारत आए, वह खोजने जो उनकी अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता नहीं दे सकी। यह जीवन के कुछ बुनियादी सवालों का जवाब है, हमारे भाग्य के अर्थ का आत्म-संतुष्टि के सवाल का जवाब। अब, यह कहानी दयनीय हुई क्योंकि इस देश से ऐसे चोर और बदमाश हुए हैं जिन्होंने खुद को गुरु कहा है, और बिना किसी दैवीय अनुमति के उन्होंने नेतृत्व किया था, या यूं कहें कि उन्होंने बड़ी संख्या में साधकों को गुमराह किया था। जब मैंने भारतीय लोगों से इन चीजों के बारे में बात की, तो उन्होंने कहा, “हम इन सभी नकली गुरुओं पर विश्वास नहीं करते हैं। यह Read More …
The Incarnation Of Christ, The Last Judgement Date : 10th December 1979 Place : London Туре Seminar & Meeting Speech [Translation from English to Hindi,Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] आज का दिन हमारे लिए यह स्मरण करने का के लिए यंह बात अत्यन्त कष्टकर है और उन्हें है कि ईसामसीह ने पृथ्वी पर मानव के रूप में जन्म खेद होता है कि जो अवतरण हमें बचाने के लिए लिया। वे पृथ्वी पर अवतरित हुए और उनके आया उसे इन परिस्थितियों में रखा गया। क्यों नहीं, सम्मुख मानव के अन्दर मानवीय चेतना प्रज्जवलित परमात्मा ने, उन्हें कुछ अच्छे हालात प्रदान किये? करने का कार्य था मानव को यह समझाना कि वे परन्तु ऐसे लोगों की इस बात से कोई फ़र्क नहीं यह शरीर नहीं हैं, वे आत्मा हैं। ईसामसीह का पड़ता, कि चाहे वो सूखी घास पर लेटे रहें या पुनर्जन्म ही उनका सन्देश था अथात् आप अपनी अस्तबल में या किसी भी और स्थान पर, उनके आत्मा हैं यह शरीर नहीं । अपने पुनर्जन्म द्वारा उन्होंने लिए सभी कुछ समान है क्योंकि इन भौतिक चीजों दर्शाया कि किस प्रकार वे आत्मा के साम्राज्य तक का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वो इतने उन्नत हो पाए, अपनी वास्तविक स्थिति तक। क्योंकि निर्लिप्त होते हैं तथा पूर्णतः आनन्द में बने रहते हैं। वे ब्रह्मा थे, महाविष्णु वे अपने स्वामी होते हैं। कोई अन्य चीज उन पर थे, जैसे मैंने उनके जन्म के विषय में आपको स्वामित्व नहीं जमा सकती है। कोई पदार्थ उन पर वे ‘प्रणव’ थे, वे ब्रह्मा थे – Read More …
आत्मा को कैसे पायें सार्वजनिक कार्यक्रम। कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड। 26 नवंबर 1979। …और किस प्रकार यह हमारे भीतर रहती है और कैसे हम माया के पर्दों में खोए रहते हैं। आज मैं आपको बताने जा रही हूँ कि हम उस आत्मा तक कैसे पहुँचते हैं। उस आत्मा का पता लगाने के लिए लोग दो प्रकार के तरीके अपनाते हैं। एक को अणुवोपाय कहा जाता है, और दूसरे को शाक्तोपाय कहा जाता है। ‘अणु’ का अर्थ है एक अणु। जब हम माया में खोए होते हैं, जैसा कि मैंने आपको पिछली बार बताया था, वास्तव में आत्मा शाश्वत है, सर्वशक्तिमान है। यह कभी भी अपनी शक्ति नहीं खोता है चाहे हम बूढ़े हों, युवा हों, चाहे हम किसी भी स्थिति में हों, आत्मा की अपनी शक्ति है, हर समय। लेकिन, हम में आत्मा का प्रतिबिंब, हम में आत्मा का प्रकाश, हमारे परावर्तक की गुणवत्ता पर निर्भर करता है कि हम कैसे हैं। और गुणवत्ता अत्यधिक घटिया होने के कारण कभी-कभी हमारे भीतर अँधेरा पैदा हो जाता है और उस अँधेरे में कभी-कभी तो हमें पता ही नहीं चलता कि परे कुछ अन्य भी है। तो खोजने की पहली शैली अणुवोपाय है, जैसा कि आप इसे कहते हैं, जो अणुओं के बाद अणुओं को पृथक करने पर निर्भर करती है। क्योंकि इन परिस्थितियों में, जब आप अंधेरे से घिरे होते हैं, तो आप आत्मा को एक अणु के रूप में देखते हैं या आप एक चिंगारी या झिलमिलाहट कह सकते हैं। कभी-कभी आपको बस इसकी एक झलक ही मिलती है। जैसा Read More …
बोध को कैसे विकसित होने दिया जाना चाहिए कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड। 15 अक्टूबर 1979। आप में से अधिकांश यहाँ सहजयोगी हैं। अब जिन लोगों को साक्षात्कार मिल गया है, जिन्होंने स्पंदनों को महसूस किया है, उन्हें पता होना चाहिए कि वे अब दूसरे ही स्वरुप में विकसित हो रहे हैं । अंकुरण शुरू हो गया है, और आपको अंकुरण को अपने तरीके से काम करने देना चाहिए। लेकिन सामान्य तौर पर, जब हमें बोध भी हो जाता है, तो भी हमें यह एहसास भी नहीं होता है कि यह एक जबरदस्त चीज है जो हमारे भीतर घटित हुई है। कि यह प्रस्फुटन, जो एक असंभव कार्य है, हमारे भीतर घटित हो गया है, और इसे धीरे-धीरे कार्यान्वित होना है। इसे विकसित हो कर, और हमें उसमें उत्क्रांति प्रदान करना है, और चूँकि हम इसे महसूस नहीं करते हैं, हम इसे (आत्मसाक्षात्कार को )उतनी गंभीरता से नहीं लेते हैं, जितना हमें लेना चाहिए। इसके अलावा, वे ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जिन्होंने वायब्रेशन महसूस नहीं किया है, वे इस क्षेत्र को नहीं जानते हैं; उन्होंने इसे कभी नहीं देखा है। जैसा कि गुरु नानक ने कहा है, यह ‘अलख’ है (अलक्ष्य :अदृश्य)। उन्होंने इसे नहीं देखा है, वे इसके बारे में नहीं जानते हैं, वे नहीं जानते कि ईश्वर की एक शक्ति मौजूद है, जो आपको समझती है, समन्वय करती है, सहयोग करती है, जो सामूहिक अस्तित्व में काम कर रही है, जो आपको जागरूक करती है, आपको उस सामूहिक अस्तित्व के बारे में और दूसरों के बारे में Read More …
परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी, ‘सहज योग की शुचिता कायम रखना ‘ कैक्सटन हॉल, लंदन 10 अक्टूबर, 1979 …कुछ समय से अपने ही ढंग से चल रहा है (श्री माताजी किसी सहज योगी के विषय में कह रही हैं) मैंने कहा, ‘उसे प्रयास करने दो।’ डगलस फ्राई: मै लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं कर रहा हूं। मै सिर्फ आप को रिकॉर्ड कर रहा हूं। यह सिर्फ रिकॉर्डिंग के लिए है। श्री माताजी: ओह, यह लाउडस्पीकर नही है! सहज योगी: ये सिर्फ टेप है। श्री माताजी: ओह, ये बात है! और उसने कई प्रकार की चालें चलना आरंभ कर दिया था। आप समझे, जो मैंने उसके बारे में अनुभव किया था, कि उसने अपने आत्म साक्षात्कार के बारे में कुछ चालबाजी करनी आरंभ कर दी। क्योंकि सिर्फ यही वो एक चीज है, जिस में आप पड़ सकते हैं, जिस में आप को बहुत अधिक सावधान रहना चाहिए। और उसने प्रेतात्माएं एकत्रित कर लीं, क्योंकि उसको उपचार करने में बहुत अधिक रुचि हो गई। मैंने उसे और ज्यादा उपचार करने से मना किया था। मैंने कहा, ‘आप मेरा फोटो दे सकते हैं, पर उपचार कार्य में संलग्न मत हो, क्योंकि अगर आप प्रेतात्माएं से ग्रस्त हो गए, तो आप को पता भी नहीं चलेगा, आप उसके प्रति असंवेदनशील रहेंगे और फिर आप को समस्याएं हो जाएंगी।’ और फिर उस में ऐसी विचित्र प्रेतात्माएं थीं कि जो लोग उसके पास आए, वो प्रेतात्मयें उन लोगों को इसको धन देने के लिए प्रभावित कर रही थीं। और कुछ लोग बाध्य किए गए। मेरा मतलब Read More …
‘आत्मसाक्षात्कार और तृप्ति’ , सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड, 6 अगस्त, 1979 ….क्या ये ठीक है? सहज योग के बारे में पहले ही बहुत कुछ कहा जा चुका है। जैसा कि पहले मैंने आपको बताया था, नये लोगों के लिए मैं कहना चाहूंगी, ‘सह’ माने साथ ‘ज’ माने जन्मा। यह आपके साथ ही जन्मा है। यह आपके साथ है। अंकुरित करने वाली शक्ति जो आपको परमात्मा से जोड़ेगी, वो आपके साथ ही पैदा हुई है। जैसे इस देह में आपकी नाक है, आँखें हैं, चेहरा है, इसी प्रकार ये अंकुरित करने की शक्ति भी आपके अंदर है, अनेक युगो से आपके अंदर है। आप की हर खोज में वो आप के साथ रही है। और अब समय आ गया है, बसंत का समय आ गया है आप कह सकते हैं, जब लोगों को परमात्मा से अपना संबंध प्राप्त करना है, अन्यथा ईश्वर अपना खुद का अर्थ खो देंगे। जब तक आपको अपना खुद का अर्थ ज्ञात नहीं होता, जब तक आपको अपना अंदर से तृप्ति नहीं आती, आप के रचयिता जिसने आपको बनाया है उसको भी अपना संतोष प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिए यह अनुग्रह, यह विशेष उपहार है आधुनिक मनुष्य को की वह वास्तव में अपना आत्म साक्षात्कार पा सकें। पर जैसे ( रेजिस ?) ने ठीक ध्यान दिलाया कि हमारे सारे यंत्र अच्छे से हमारे अंदर स्थापित हैं। पर जब से हम पैदा हुए हैं तब से हम हमेशा उन लोगों के प्रति आकर्षित हुए हैं, जो ऐसे सिद्धांतों को ले कर आगे आए हैं कि वह Read More …
सार्वजनिक कार्यक्रम “हमें विराट से अपनी एकाकारिता की आकांक्षा करनी चाहिए”। कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके)। 24 जुलाई 1979। कल, मैं एक महिला से मिली, और उसने मुझसे कहा कि वह ईश्वर को खोज रही है। मैंने कहा, “परमात्मा के बारे में आप की सोच क्या है, आप क्या खोज रही हैं?” जब हम कहते हैं कि हम खोज रहे हैं, तो क्या हम जानते हैं कि हमें क्या खोजना है, और क्या हम समझते हैं कि अपनी खोज़ की पूर्णता हम कैसे महसूस करने जा रहे हैं, कि हम मंजिल तक पहुंच गए हैं? पिछली बार की तरह, मैंने आपसे कहा था कि खोज वास्तविक, सच्चे दिल से होना चाहिए, और यह कि आप खरीद नहीं सकते, या आप इसके लिए प्रयास नहीं कर सकते। लेकिन आज मैं आपको बताना चाहती हूं कि हम क्या ढूंढ रहे हैं। आइए देखें कि खोज हमारे भीतर कैसे आती है, कहां से? जैसा कि यहां दिखाया गया है, नाभी चक्र नामक एक केंद्र है, जो यहां मध्य में है [अश्रव्य], नाभी चक्र, जो हमारी रीढ़ की हड्डी में स्थित है, और सौर जाल solar plexus को अभिव्यक्त करता है जो आपकी नाभी के बीच में स्थित है। यह वह केंद्र है जो हमारे भीतर खोज का निर्माण करता है। खोज तभी संभव है जब कुछ जीवंत हो। उदाहरण के लिए, इस कुर्सी की क्या इच्छा है? यह सोच नहीं सकती, यह हिल नहीं सकती, आप इसे यहां रख सकते हैं या आप इसे सड़क पर रख सकते हैं। आप इसे तोड़कर फेंक सकते Read More …
हम सत्य की ख़ोज के बारे में कितने ईमानदार हैं? सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड। 16 जुलाई 1979। एक दूसरे दिन मैंने आपको उस उपकरण के बारे में बताया जो पहले से ही हमारे अंदर है, अपने आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए, जो एक वास्तविक अनुभूति है, जो एक अनुभव है, जो एक घटना है जिसके द्वारा हम वह बन जाते हैं। यह हो जाना है, यह कोई वैचारिक मत परिवर्तन या उपदेश नहीं है बल्कि यह एक ऐसा बनना है जिसके बारे में मैं बात कर रही हूं। जब हम कहते हैं, हम सत्य के साधक हैं, तो इस खोज में कितने ईमानदार हैं? यह एक बिंदु है जिसे हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए। क्या हम वास्तव में, सच्चाई से खोज रहे हैं? क्या हम इसके बारे में सच्चे हैं, या हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह कहना अच्छा है कि हम सत्य की तलाश कर रहे हैं? यदि आपको कुछ वास्तविक खोजना है, तो आपको स्वयं ईमानदार होना होगा। यह सहज योग में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। सहज योग एक ऐसी प्रणाली है जिसके द्वारा आप स्वयं सत्य में कूद पड़ते हैं। तुम सत्य हो जाते हो, तुम सत्य को नहीं देखते हो, तुम सत्य को नहीं समझते हो, लेकिन तुम सत्य बन जाते हो। यह सबसे आश्चर्यजनक बात है कि मनुष्य यह नहीं समझते कि सत्य से क्या अपेक्षा की जाए। वे सत्य की खोज कर रहे हैं, लेकिन सत्य के पूर्ण मूल्य के बारे में उनकी कोई धारणा नहीं Read More …
“यह औसत दर्जे के लोगों का काम नहीं है” सार्वजनिक कार्यक्रम, डॉ जॉनसन हाउस, बर्मिंघम (यूके), १६ जून १९७९। मुझे वास्तव में खेद है कि हम यहाँ एक ऐसी ट्रेन से पहुँचे, जो लेट थी। चीजों को ईश्वर की समय योजना के अनुसार घटित होना होता है, आप अपनी चीजों की योजना खुद नहीं बना सकते। और इसी तरह कभी-कभी किसी को देर से होना पड़ता है और कभी-कभी किसी को समय से पहले होना पड़ता है। लेकिन एक बात निश्चित है: तुम्हारे अस्तित्व की अंतिम घटना का नियत समय आ चुका है। यह जीव जीवन के विभिन्न चरणों से गुजर रहा है। आप जानते हैं कि, आप एक छोटा सा अमीबा और फिर एक मछली, एक सरीसृप रहे हैं, और इस तरह उत्क्रांति तब तक चलती रही जब तक आप आज, यहां, एक इंसान के रूप में बैठे हैं। यह सब आपके साथ आपकी जानकारी के बिना, आपके विचार-विमर्श के बिना हुआ है। और आपने यह मान लिया है कि आप एक इंसान हैं और एक इंसान के रूप में सभी अधिकार आपके अपने हैं। उसी तरह आप जो हैं उससे ज्यादा कुछ बनने का अधिकार है, क्योंकि आज भी आप नहीं जानते कि आपका उद्देश्य क्या है, आपको बनाने के लिए यह सब प्रयास क्यों किया गया? इस जीवन का अर्थ क्या है? क्या यह अर्थहीन है? बस आप हजारों वर्षों तक अकारण ही बनाए गए थे? इस तरह से कि कितनी नामंजूर कर दी गईं, कितनी ही आकृतियां अस्वीकृत कर दी गईं, कितने रूपों को ठुकरा दिया Read More …
सार्वजनिक कार्यक्रम डॉ जॉनसन का घर, बर्मिंघम (इंग्लैंड) 31 मई 1979 [एक योगी द्वारा परिचय]: [अस्पष्ट] आध्यात्मिक व्यक्तित्व जिसने पृथ्वी पर पुनर्जन्म लिया है और उन्होने हममें से बहुतों को हमारे वास्तविक स्वरूप का बोध कराया है और मुझे आशा है कि आप सभी आज रात खुले दिमाग से यहां बैठेंगे और कोशिश करेंगे और जो वे आपको देना चाहती हैं वो प्राप्त करेंगे। और मैं केवल इतना ही कह सकता हूं कि आप बस उनके तरफ अपने हाथ रखें, आराम से बैठें और सुनें कि माताजी को क्या कहना है। [श्री माताजी बोलते हैं]: मैं बाला और फिलिप, मेरे सभी बच्चों की आभारी हूं, जो इस हॉल की व्यवस्था करने में सक्षम हुए और आप सभी को इस कार्यक्रम के लिए यहां बुलाया है। जब भी इस धरती पर अवतार आए, उससे आधुनिक समय वास्तव में बहुत अलग है। जब क्राइस्ट इस धरती पर आए थे तब और आज जब किसी को साधकों का सामना करना पड़ता है तो इतना बड़ा अंतर है। ईसा के समय कोई साधक नहीं था, एक भी साधक नहीं था। जब वे इस पृथ्वी पर आए, तो उन्हें वास्तव में लोगों को समझाना पड़ा, उन्हें उनके लिए किसी प्रकार की समझाइश देना थी कि उन्हें इच्छा करनी चाहिए, कि परे कुछ ऐसा है जिसके लिए उन्हें प्रार्थना करना चाहिए। लेकिन आज यह बहुत अलग बात है, आज हमारे पास एक नहीं बल्कि लाखों साधक हैं; विशेष रूप से पश्चिम में, लोग खोज रहे हैं। कुछ परे की कल्पना करने की हमारी क्षमता के माध्यम Read More …
विकास के तीन रास्ते सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके)। 30 मई 1979। हम जो भी जानते हैं उससे अधिक ऊँचे जीवन के बारे में आपसे बात करने के लिए मैं यहां हूं, उस शक्ति के बारे में जो हर अन्य शक्ति को व्याप्त करती है, प्रविष्ट कर जाती है ; और उस दुनिया के बारे में जिसे शांति और आनंद की दुनिया कहा जाता है। इन सभी शब्दों के बारे में आपने पहले भी सुना होगा। लेकिन मैं यहां आपको उस यंत्र के बारे में बताने वाली हूं जो हमारे भीतर रहता है, सभी हमारे अस्तित्व में बहुत अच्छी तरह स्थापित किया गया हैं, जैसा कि आप यहां चित्र में देख रहे हैं, जो कि एक जीवंत उपकरण है, जिसे आप वास्तव में अपनी आंखों से धड़कता हुआ देख सकते हैं, जब कुंडलिनी अर्थात यह कुंडलित ऊर्जा चढ़ती है। हम पहले से ही अपने अस्तित्व में इस उत्थान का आशीर्वाद पा कर धन्य हो गए हैं, अचेतन में महत्वपूर्ण भेदन के द्वारा, हमारी पूर्ण जागरूकता में एक और नए आयाम में प्रवेश करने के लिए जिससे हम वास्तव में आपकी सभी परम तत्व जिज्ञासाओं के उत्तर पा सकते हैं। अब तक, प्राचीन भारत में, हमारे पास तीन प्रकार के आंदोलन थे। मैं नहीं जानती कि, आप उन सभी के बारे में जानते हैं या नहीं , लेकिन हमारे पास तीन प्रकार थे। और उस के प्रतिबिंब हमारे देश में प्रकट हो रहे थे, दूसरे देशों में भी। यहां तक कि इंग्लैंड में भी हमारे पास ऐसे लोग हुए हैं Read More …
Public program (Hindi). Bordi Shibir, Maharashtra, India. 24 March 1979. [Hindi Transcript] आप लोग सब सहजयोग में आये हैं। कुछ लोग पहले से आये हैं, बहुत सालों से और कोई लोग नये हैं। धीरे- धीरे सहजयोग में संख्या बढ़ने वाली है इसमें कोई शक नहीं है और सत्य जो है वो धीरे -धीरे ही प्रस्थापित होता है। सत्य की पकड़ धीरे-धीरे होती है। आपके यहाँ ऐसे लोग हैं जो आठ-आठ, नौ-नौ महिनों तक सहजयोग में आते रहे और उसके बाद पार हुए। सत्य को पाने के लिये हमारे अन्दर पहले तो गहराई होनी चाहिए। पर सबसे बड़ी चीज़ है हमारे अन्दर सफाई होनी चाहिए। अब अनेक गुरुओं के बीच में जाकर के हमारा चित्त जो है वो बुरी तरह से विक्षिप्त हो जाता है । दूसरा, आजकल के समाज में जो हम घुमते हैं और नानाविध उपकरणों के कारण हमारा जो चित्त बाहर की ओर हमेशा रहता है। बाह्य की चीजें हमें दिखाई देती हैं। इन सब चीज़ों से हम कुछ प्रभावित होते भी हैं। और कुछ ये भी बात है कि, हमारे दिमाग में भर दिया गया है कि ये चीज़ें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इस वजह से जो चीज़ें बिलकुल ही महत्वपूर्ण नहीं उधर हमारा चित्त पहले जाता है और जो चीज़ें बहत ही महत्वपूर्ण हैं वहाँ हमारा चित्त नहीं जाता है। इसलिये हम ऐसी चीज़ों को इकठ्ठा कर लेते हैं जो बिलकुल बेकार हैं। जिसको कि अंग्रेजी में जंक कहते हैं, मराठी में ‘अडगळ’ कहते हैं। इस तरह का हमारा चित्त जो है वो बेकार की चीज़़ों Read More …
Sarvajanik Karyakram Date 22nd March 1979 : Place Mumbai : Public Program Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] आप एक बहुत सुन्दर प्रकृति की रचना हैं। बहुत मेहनत से, तो आखें हैं नहीं हम इसे कैसे जानेंगे और हमारे लिए भी यह नजाकत के साथ, अत्यंत प्रेम के साथ परमात्मा ने आप को बनाया है। आप एक बहुत विशेष अनन्त योनियों में से घटित होकर इस मानव रुप में स्थित हैं। आप इसलिए इसकी महानता जाएगी। इस प्रकार आपके अन्दर भी कोई चीज ऐसी ही बनी नहीं जान पाते क्यांकि, ये सब आपको सहज में ही प्राप्त हुआ है। यदि इसके लिए मुश्किलें करनी पड़ती, आफते उठानी पड़ती और आप इसको अपनी चेतना में जानते तो आप समझ पाते सारी चीज आपको आसानी से समझ आ जाती है। पर अगर कि आप कितनी महत्वपूर्ण चीज हैं। मनुष्य को जानना चाहिए कि परमात्मा ने हमें क्यों बनाया, इतनी मॅहनत क्यों की ? हम बत्ती कैसे आई बिजली कहां से आई, इसका इतिहास क्या है, किस लिए संसार में आये और हमारा भविष्य क्या है ? हमारा कैसे बना, तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है। लेकिन आधुनिक अर्थ क्या है? जैसा कि कल मैने कहा था कि अगर हम मशीन बनायें पर इसको इस्तेमाल नहीं करें तो कोई भी अर्थ नहीं फिर उसको हटाए। उनको कोई चीज आसानी से मिल जाए तो निलकता। लेकिन जब तक ये मेन स्रोत से नहीं लगाया जाता बड़े आश्चर्य से पूछता है हमने तो कुण्डलिनी के बारे में Read More …
Public Program: Sahasrar March 18, 1979 सहस्त्रार सार्वजानिक कार्यक्रम, १८ मार्च १९७९ इसे समझ लेना चाहिए सहस्त्रार क्या चीज़ है। किसी ने अभी तक… किसी भी शास्त्रों में सहस्त्रार के बारे में विशद-रूप से कुछ भी वर्णित नही है। इसकी ये वजह नही है कि लोगबाग जानते नही होंगे, लेकिन पूरी तरह से सहस्त्रार खुला नही था तब तक, इसलिए इसके बारे में बहुत कुछ किसी ने लिखा नही। सहस्त्रार माने, जैसे ये कली है, इसी प्रकार हमारे ब्रेन (मस्तिष्क) को ग़र एक कमल का फूल समझें, तो उसके अंदर परत-न्-परत जैसे ये पंखुड़ियां हैं, उसी प्रकार एक-एक अलग-अलग स्तर बना हुआ है। और ये स्तर एक ही उसको, पता नही आप जानते हैं कि, दो मॅटर (पदार्थ): अपने व्हाइट्-मॅटर (श्वेत पदार्थ) , ग्रे-मॅटर (धूसर पदार्थ) – दो चीज़ होती है (मस्तिष्क में), जैसे आप देख सकते हैं कि दो हैं। इसके आलावा ग़र इसके बीचोबीच आप देखें खोलने पर, तो आपको दिखाई देगा कि बीच में गाभा है, और उसके अंदर हज़ारों छोटे-छोटे पराग हैं। इसी प्रकार हमारा जो ब्रेन (मस्तिष्क) है, ये भी मेद से बना है, fat (वसा) से बना है, लेकिन उसकी परते हैं। ग़र आप उसको क्रॉस-सेक्शन, माने यहाँ से ऐसे क्रॉस-सेक्शन करें, और उसको ग़र आप स्टडी (अध्ययन) करें तो आपको आश्चर्य होगा कि इसके अंदर ये एक-एक पर्त आपको दिखाई देगी, जैसे कि कमल के पुष्प हों, कमल की पंखुड़ियां जैसे। वैसे दिखाई देता है एकदम से। लेकिन डॉक्टरों का कभी कविता से संबंध नही रहा तो वो इस तरह का कंपॅरिज़न (तुलना) Read More …
Vishudhi Chakra (Hindi). Delhi (India), 16 March 1979. विश्व के लोग हमारी ओर आँखें किये बैठे हैं कि भारतवर्ष से ही उनका उद्धार होने वाला है, तब तक नहीं पा सकेंगे। और हमारी ये हालत है कि एक साधारण सा व्यवहार जो होता है, वो भी नहीं है। कल मैंने आप से कहा था कि मैं आपको हृदय में बसे हुए शिवस्वरूप सच्चिदानंद आत्मा के बारे में बताऊंगी आज। लेकिन सोचती हूँ कि आखिर में ही बताऊंगी जब सारे ही चक्र बता चुकुंगी, वो अच्छा रहेगा। हालांकि उनको पहले से आखिर तक, अपनी दृष्टि वहीं रखनी चाहिये। बाकी जो भी चक्र हैं, एक उनके चक्र को जानने से ही ठीक हो जाते हैं। इन तीन हृदय चक्र के तीन हिस्सों से उपर एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण चक्र है, जिसे हम लोग विशुद्धि चक्र कहते हैं, विशुद्धि चक्र। जहाँ पे हमारा कंठ होता है, इसके बराबर पीछे में ये चक्र होता है। अब इसके लिये आप एक्झॅक्टली (exactly) किसी के लिये नहीं कह सकते हैं कि ये यहीं होता है। क्योंकि ये बड़ी ही सूक्ष्म चीज़ है, थोड़ा ऊँचे, नीचे होता ही है। जैसी-जैसी मनुष्य की प्रकृती होती है और जैसे-जैसे उसका फॉर्म होता है, वैसे ही इसकी चक्र की भी स्थितियाँ उस तरह से थोड़ी बहुत आगे-पीछे होती हैं। कभी कभी एक इंच का भी फर्क होता है। इसलिये आप ये नहीं कह सकते, कि ये बराबर उस जगह ही होगा। थोड़ा सा मैंने देखा है, किसी का ऊपर होता है, किसी का नीचे होता है। किसी का और भी Read More …
Public program, Mooladhara (English & Hindi). Delhi, India. 12 March 1979. मूलाधार (परमात्मा की और आत्मा की उपलब्धि) दिल्ली, १२ मार्च १९७९ उसके लिए कुछ न कुछ घटना अन्दर होनी चाहिए, कुछ हॅपनिंग होनी चाहिए। ऐसा मैंने सबेरे बताया था आपसे मैंने। दूसरी और एक बात बहुत जरूरी है, कि परमात्मा की और आत्मा की उपलब्धि अगर एक-दो लोगों को ही हो, सिलेक्टेड लोगों को हो, और सर्वसामान्य अगर इससे अछूते रह जाये तो इसका कोई अर्थ ही नहीं निकलता । परमात्मा का भी कोई अर्थ नहीं लगने वाला , ना इस संसार का कोई अर्थ निकलने वाला है। इस क्रिएशन का भी कोई अर्थ नहीं निकलने वाला। ये उपलब्धि सर्वसामान्य की होनी ही चाहिए। अगर ये सर्वसामान्य की न हो और बहत ही सिलेक्टेड लोगों की हुई तो वही हाल होगा जो सब का हआ। जो ऐसे रहे उनको कभी किसी ने माना नहीं । और मानने से भी क्या होता है ये बताईये मुझे! समझ लीजिये कि कोई अगर बड़े राजा हैं, तो राजा हैं अपने घर में, हमको क्या ? हमको तो कुछ मिला नहीं। हमको भी तो मिलना चाहिए। तब तो उसका मतलब होता है। इसलिये ये घटना घटित होनी ही चाहिए। इतना ही कुछ नहीं, ये सर्वसामान्य में अधिक होना चाहिए। काफ़ी लोगों में होना चाहिए। साइन्स का भी मैंने बताया ऐसा ही तरीका होता है की कोई आप एक, बिजली का आपको पता लग गया, जिसको पता लगा होगा, वो अगर सर्वसामान्य के लिये नहीं उपयोग में आयेगी तो उस बिजली का क्या मतलब! Read More …
Talk at Delhi University (Hindi). (India) 11 March 1979.
परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ‘सृजन, मनुष्य और उसकी संतोष-भावना’ [संपूर्ण जगत एक सुंदर ब्रह्मांड है] गांधी भवन, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, भारत 1 फरवरी, 1979 इस व्याख्यान में मुझे सृजन के बारे में बात करनी चाहिए। मै उस समय से आरंभ करूंगी जब हम सिर्फ अमीबा थे। उससे पहले क्या हुआ और कैसे हम बने, ये सृष्टि बनी, मैं कल सुबह बताऊंगी। यह पता लगाना मुश्किल नहीं है कि यह ब्रह्मांड कैसे व्यवस्थित है। हर खुला दिमाग वाला वैज्ञानिक खुद देख सकता है कि यह जगत एक सुंदर ब्रह्मांड है। ये बहुत अच्छी तरह से व्यवस्थित है और बहुत सुचारू रूप से चल रहा है, और तर्क द्वारा यह भी निष्कर्ष निकाल सकता है कि इस ब्रह्मांड, इस ब्रह्मांड विशेष के निर्माण से इस धरती माता का निर्माण हुआ है। लगभग पचास लाख वर्ष पूर्व यह धरती माता गैस के रूप में अलग होकर ठंडी हो गई थी। यह कैसे ठंडा हुई, कोई नहीं जानता। लेकिन अगर उसे ठंडा किया गया तो वह सूरज जितनी ठंडी क्यों नहीं है? क्योंकि विज्ञान में कोई यह नहीं सोचता कि ‘कैसे’! वे जैसा है वैसा ही स्वीकार करते हैं। उन्हें जानना नहीं चाहिए, या वे पता नहीं लगा सकते क्योंकि उनकी सीमाएँ हैं। यह बात क्यों हुई? यह कैसे किया गया? यह कहना आसान है कि ईश्वर नहीं है लेकिन बहुत सी बातों को समझाना बहुत मुश्किल है बिना कहे कि ईश्वर है। उदाहरण के लिए, इस ब्रह्मांड को इंसान बनाने में जो समय लगा है, वह इतना कम है, इतना कम Read More …
Seminar “How to Realise the Self”. Delhi (India), 8 March 1979. Shri Mataji: For the very first time? [ Hindi ? ] First time ? [ Hindi ? ] Please come. Just come forward. [ Hindi ? ] Please keep your hands like this. What are you doing? Yogi: [ ? ] Shri Mataji: [ Hindi ? ] What am I to speak? I don’t know. Yogi: How to realize Self? Shri Mataji: [Hari ?] – how to realize Self? [Loudspeaker hain – more Hindi ?]. Yogi: [ ? ] Shri Mataji: This is a very nice question, “How to realize the Self?” The first word – how. [On this ?] one can say, that Self can be realized and is to be realized, will be realized. But you cannot realize Self. You cannot. You have become a human being from amoeba. How did you become? What did you do? You got it just as a blessing from God. In the same way, Self-Realization is also the blessing of God. It is spontaneous. It is a living thing. Anything living happens spontaneously, by itself. Do you ever say – how am I to sprout the seed? It will sprout by itself. Why? Because all the mechanism, all the energy that is required for it to sprout is embedded in it, is built in it. In the same way, all that is required to reach to your Self is embedded within you. It is waiting there for that moment when it Read More …
धन्यवाद, झूठेगुरु – भारत भ्रमण , ९फरवरी, 1979 …. इन चक्रों में जो देवी-देवता हैं, वो देवत बस सो जाते हैं और भीतर में हानिकारकता बनने लगती है, कैंसर हो जाता है। कैंसर को तब तक ठीक नहीं किया जा सकता जब तक कि आपको अपना आत्म-साक्षात्कार प्राप्त न हो जाए, चाहे आप डॉक्टर हों या कुछ भी। मैं आपको यह बताऊँगी, वह भी इंग्लैंड के एक डॉक्टर हैं। हमने हाल ही में एक कैंसर को ठीक किया है। मेरा तात्पर्य है कि मैं कई कैंसर रोगियों का इलाज कर सकती हूँ परंतु मेरा रुझान ऐसा करने में नहीं है। मात्र एक चीज़ जो सभी संतों के साथ होगी, यदि वो अब भी गलतियाँ करते हैं, तो वह स्वयं कैंसर हो जाऐंगे। क्योंकि अहंकार, अहंकार बहुत अधिक है, और अहंकार यहाँ अति-क्रियाशीलता से आता है, यह इस प्रकार से फूलता है। और इससे दूसरा भाग जहाँ भावनात्मक पक्ष है, वहाँ पर हमें प्रति-अहंकार होने लगता है। अतएव आप इस प्रकार से जकड़ जाते हैं। अब पश्चिम में जो हुआ है हमें उसे समझना चाहिए कि आपमें बहुत अधिक क्रियाशीलता थी, आपका अहंकार वास्तव में गुब्बारे की तरह फूला हुआ था और उसने इसे (प्रति-अहंकार को) नीचे दबाया। इसलिए आप इससे परेशान हो गए। आपने मात्र यह कहा, ” यह सब भौतिकवादी विकास नरक में जाए” ! अब, हम भौतिक रूप से विकसित होने का प्रयास कर रहे हैं। आप देखें, भारतीयों को अपनी आँखें खोलनी होंगी, उन्हें इस परिपथ को तोड़ना होगा। वे संपन्न होने और फिर अपने स्वयं के Read More …
1979-0117 सभी चक्रों पर देवताओं का प्रोग्राम [हिंदी] भारतीय विद्या भवन, मुंबई (भारत) सार्वजनिक कार्यक्रम, “सभी चक्रों पर देवताओं का प्रोग्राम” (हिंदी). भारत विद्या भवन, मुंबई, महाराष्ट्र, भारत. 17 जनवरी 1979। (एक आदमी से बातचीत) ‘आ रहे हैं अब? नहीं आ रहे है न? सिगरेट पीते थे आप?’ ‘कभी नहीं! ‘कभी नहीं पीते थे ? या मंत्र कोई बोले होंगे?’ ‘पहले बोलता था अब विशेष नहीं। ‘वहीं तो है न ! आप देखिये, आप मंत्र बोलते थे, आपका विशुद्धि चक्र पकड़ा है। विशुद्धि चक्र से आपको अभी मैं दिखाऊँगी, आपको अभी मैं बताऊँगी। ये देखो, ये दो नसें यहाँ चलती हैं, विशुद्धि चक्र में ही ये विशेषता है और किसी चक्र में नहीं। ये दोनों नसें यहाँ से चलती हैं। नाड़ियाँ हैं ये दोनों। इसलिये जब आप हाथ मेरी ओर करते हैं तो हाथ से जाता है। हाथ में ही दो नाड़ियाँ हैं । तो ये नाड़ियाँ गायब हो गयी। जिस आदमी में विशुद्धि चक्र पकड़ा होगा तो आपको फील ही नहीं होगा हाथ में। बहुत लोगों की ये गति हो जाती है, कि वो बहुत पहुँच जाते हैं, उनको अन्दर से सब महसूस भी होता है, शरीर में महसूस होता है, हाथ में महसूस ही नहीं होता। अन्दर महसूस होता है। यहाँ है अभी कुण्डलिनी, यहाँ है, सर में है, ये सब महसूस होगा, पर हाथ में होता ही नहीं। ‘माताजी, गहन शांति जब होती है तब कैसे मालूम हो कि कुण्डलिनी कहाँ पर है? आप जब दूसरों की ओर हाथ करेंगे ना तब आपको खुद ही अन्दर पता Read More …
Shri Ganesha Aur Mooladhar Chakra, Public program, “Shri Ganesha, Mooladhara Chakra” (Hindi). Bharat Vidya Bhavan, Mumbai, Maharashtra, India. 16 January 1979. ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK भाषण सुनने से पहले ही मैं आपको बताती हूँ, कि इस तरह से हाथ रखिये और आराम से बैठिये। और चित्त हमारी ओर रखिये। इधर-उधर नहीं, कि जरा कोई आ गया, कोई गया। इधर-उधर चित्त नहीं डालना। क्योंकि दूसरों को तो हम हर समय देखते ही रहते है, कभी अपने को भी देखने का समय होना चाहिये। कल मैंने आपसे इन चक्रों के बारे में बताया था। आज मैं आपको सब से नीचे जो चक्र है जिसको गणेश चक्र कहते हैं, उसके बारे में बताऊंगी। हम लोग गणेश जी को मानते हैं, गणेश जी की पूजा भी करते हैं । और ये भी जानते हैं कि अपने महाराष्ट्र में अष्टविनायक हैं, आठ गणेश , पृथ्वी तत्त्व में से निकल आये हैं। लेकिन इस के बारे में हम बहुत ही कम जानते हैं। और इसलिये करते हैं सब कुछ क्योंकि हमारे बड़ों ने बता रखा है। इन धर्मांधता को देख कर के ही लोगों ने ये शुरू किया, कि ऐसे, भगवान, जिनको की हम देख नहीं सकते, कुछ सभी अंधेपन से हो रहा है। तो बेहतर ये है कि इस तरह से भगवान वरगैरा न मानने से ….. हम लोग अपने ही ऊपर विश्वास रख के काम करें। अब गणेश इतनी बड़ी चीज़ है, इसके बारे में मैं अब बताऊंगी। गणेश एक प्रिंसीपल हैं, एक तत्त्व है। ये कोई भगवान आदि नहीं। ये एक तत्त्व है, Read More …
Public Program Day 2, Birla Krida Kendra, Mumbai (Hindi), 15 January 1979. ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK मैंने कहा था, कि कुण्डलिनी के बारे में विशद रूप से आपको बताऊँगी। इसलिये आज आपसे मैं कुण्डलिनी के बारे में बताने वाली हूँ। पर मुश्किल है आप सब को ये चार्ट दिखायी नहीं दे रहा होगा। क्या सब को दिखायी दे रहा है ये चार्ट? इसमें जो कुछ भी दिखायी दे रहा है वो आपको इन पार्थिव आँखो से नहीं दिखायी देता। इसलिये सूक्ष्म आँखें चाहिये जो आपके पास नहीं हैं। बहरहाल ये आप के अन्दर है या नहीं आदि सब बातें हम बाद में आपको बतायेंगे। इसे किस तरह जानना चाहिए? लेकिन इस वक्त अगर मैं आपको इसके बारे में बताना चाहती हूँ तो एक साइंटिस्ट के जैसे खुले दिमाग से बैठिये। पहले ही आपने अनेक किताबें कुण्डलिनी के बारे में पढ़ी हुई हैं। योग के बारे में पढ़ी हुई हैं। लेकिन सत्य क्या है उसे जान लेना चाहिए। किताबों से सत्य नहीं जाना जा सकता। कोई कहीं कहता है, कोई कहीं कहता है, कोई कहीं बताता है। लेकिन आप अगर साइंटिस्ट है तो अपना दिमाग को थोड़ा खाली कर के मैं जो बात बता रही हूँ, उसे देखने की कोशिश करें। जिस तरह से कोई भी साइंटिस्ट अपना कोई हाइपोथिसिस आपके सामने रखता है, कोई ऐसी कल्पना कर के रखता है, कि ऐसी ऐसी बात हो सकती हैं, उसको वो फिर अन्वेषण कर के और सिद्ध करता है, प्रयोग कर के, एक्सपिरिमेंट के साथ ये सिद्ध कर देता है, कि वो Read More …
Public Program (Hindi). Birla Krida Kendra, Mumbai (India). 14 January 1979. आशा है, आप लोग यहाँ सत्य की खोज में आए होंगे मैं आपसे हिंदी में बातचीत कर रही हूँ, कोई लोग ऐसे हों जो हिंदी बिलकुल ही नहीं समझते हैं तो फिर अंग्रेजी में बातचीत करुँगी| ठीक है| सत्य की खोज में मानव ही रह सकता है, जानवर, प्राणी नहीं रह सकते, उनको इसकी जरूरत नहीं होती मनुष्य ही को इसकी जरूरत होती है, कि वह सत्य को जाने| मनुष्य इस दशा में होता है, जहाँ वह जानता है कि कोई ना कोई चीज उससे छुपी हुई है और वह पूरी तरह से यह भी नहीं समझ पाता कि वह संसार में क्यों आया है? और वह इस उधेड़बुन में हर समय बना रहता है, की क्या मेरे जीवन का यही लक्ष्य है कि मैं खाऊ- पिऊ और जानवरों जैसे मर जाऊँ? की इसके अलावा भी कोई चीज सत्य है? सत्य का अन्वेषण मनुष्य के ही मस्तिष्क में जागरूक होता है| लेकिन सत्य के नाम पर जब हम खोजते हैं तो हम ना जाने किस चीज को सत्य समझ कर बैठते हैं, जैसे कि जब मानव सोचने- विचारने लग गया तो उसने संसार की जितनी जड़ चीजें थी उधर अपना ध्यान लगाया यानि यहाँ तक की वह चाँद पर पहुँच गया| कौन सा सत्य मिला उसे चाँद पर? साइंस की खोज की, तो उसमें उनको कौन सा सत्य मिला? जिन लोगों ने साइंस की खोज करके और अपने को बहुत प्रगल्भ समझा है एडवांस समझा है जिन्होंने सोचा है Read More …
Talk in Hindi at the Bharat Vidya Bhavan, Mumbai, Maharashtra, India. 9 January 1979. [Hindi transcript until 00:49:05] सबको फिर से मिल के बड़ी ख़ुशी होती हैं | मनुष्य पढता है लोगो से सुनता है बड़े बड़े पंडित आ करके लोगो को भाषण देते हैं | इस संसार में परमात्मा का राज्य हैं परमात्मा न सृष्टि है | ऐसे हाथ करिये बैठे राहिएए जब तक में भाषण देती हूँ उसी के साथ ही कुण्डलिनी का जागरण हो जाता है | आज में आपसे ये बताने वाली हूँ की कुण्डलिनी क्या चीज़ है और उसका जागरण कैसे होता है | कल मेने आपसे बताया था मानव देह हम आज देख रहे हैं इस मानव देह को चलाने वाली शक्तियां हमारे अंदर प्रवाहित हैं | उन गुप्त प्रवाहों को हम नहीं जानते हैं | जिनके कारन आज हमारी सारी शक्तियां ये शरीर मन बुद्धि अहंकार सारी चीज़ो का व्यापर करती हैं उनके बारे में जो कुछ भी हमने साइंस से जाना है वो इतना ही जाना है की ऐसी कोई स्वयंचालित शक्तियां है जिसको की ऑटोनॉमस सिस्टम कहते हैं जो इस कार्य को करती हैं और जिसके बारे में हम बोहत ज्यादा नहीं बता सकते | की वो शक्ति कैसी है और किस तरह से वो अपने को चलाती है | किसी भी चीज़ को जानने का तरीका एक तो ये होता है की अँधेरे में उस चीज़ को खोजिये जैसे आप इस कमरे में आये है और यहाँ अंधेरा है इसको धीरे धीरे टटोलिये जानिये की ये क्या है कोई दरवाजे Read More …
“आज्ञा चक्र” केक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 18 दिसंबर 1978। आज हम छठे चक्र के बारे में बात कर रहे हैं जिसे आज्ञा चक्र कहा जाता है। ‘ज्ञा’, शब्द का अर्थ ‘जानना’ है, आज्ञा यानी जानना है। और ‘आ’ का अर्थ है ‘संपूर्ण’। आज्ञा चक्र का एक और अर्थ भी है। आज्ञा का अर्थ है ‘आज्ञाकारिता’ या ‘आदेश करने के लिए’। इसका मतलब दोनों चीजों से हो सकता है। यदि आप किसी को आदेश देते हैं तो यह एक आज्ञा है और जो आदेश का पालन करता है वह आज्ञाकारी है। वह जो आज्ञा देता है। मानव में छठा चक्र तब बनाया गया जब उसने सोचना शुरू किया| विचार भाषा में व्यक्त होते हैं| यदि हमारे पास भाषा ना हो तो हम विचार नहीं कर सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे अंदर विचार नहीं आ रहे| यदि हम इसे व्यक्त नहीं कर पा रहे इस का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि हमारे अंदर विचार प्रक्रिया नहीं चल रही| लेकिन उस सूक्ष्म अवस्था में जब हम तक विचार आ रहे हैं वे भाषा में नहीं हैं, इसलिए वे हम तक प्रसारित नहीं हैं, और इसलिए यदि हमारे पास भाषा ना हो तो हम नहीं समझ सकते कि हम क्या विचार कर रहे हैं| आपने देखा होगा कि इसीलिए बच्चे जो चाहते हैं वो हमें नहीं बता पाते क्यों कि वे जो चाहते हैं उसे कह नहीं पाते| वे पेट में भूख महसूस करते हैं और माना कि पानी या अन्य कुछ माँगना चाहते हैं, लेकिन वे ऐसा Read More …
“तीन नाड़ियों की ग्रंथियां” कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 2 अक्टूबर 1978 यह जो ब्रह्म का तत्व है, यह सिद्धांत है उस स्पंदित भाग, हमारे ही अंदर निहित शक्ति का तत्व, जिसे हमें महसूस करना है, और जो हर चीज में स्पंदित होती है। यह सहज योग के साथ होता है, बेशक, कुंडलिनी चढ़ जाती है, लेकिन यह इसका अंत नहीं है, क्योंकि, मानव वह साधन है जिसमें यह प्रकाश प्रकट होता है। लेकिन एक बार प्रकट होने के बाद यह जरूरी नहीं है कि यह हर समय ठीक से जलती रहे। एक संभावना है, ज्यादातर यह एक संभावना है, कि प्रकाश बुझ भी सकता है। अगर कोई हवा का रुख इसके खिलाफ है, तो यह बुझ भी सकता है। यह थोड़ा कम भी हो सकता है। यह बाहर आ सकता है यह झिलमिला सकता है, यह थोड़ा कम हो सकता है। क्योंकि मनुष्य, जैसे कि वे हैं, वे तीन जटिलताओं में पड़ गए हैं। जैसे ही वे मनुष्य बनते हैं, ये तीन जटिलताएं उनमें शुरू होती हैं। और तीन, इन तीन जटिलताओं के कारण, किसी व्यक्ति को यह जानना होगा कि यदि आपको उससे बाहर निकलना है, तो आपको कुछ निश्चित गांठों को तोड़ना होगा – उन्हें संस्कृत भाषा में ग्रन्थि कहा जाता है – जो आपको यह मिथ्या दे रही है – मिथ्यात्व है। मिथ्यात्व यह की, हम सोचते हैं कि, “इस दुनिया में, आखिर सब कुछ विज्ञान ही है, और जो कुछ भी हम देखते हैं और उससे परे सब कुछ विज्ञान है …” और वैसी सभी प्रकार Read More …
ब्रह्म का तत्व कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 11 सितंबर 1978 आज मैं आपको कुछ ऐसा बताना चाहती हूं, शायद मैंने उस बिंदु को पहले कभी नहीं छुआ है। या मैंने इसके बारे में विस्तार से बात नहीं की है। यह ब्रह्म के तत्व के बारे में है: ब्रह्म का तत्व क्या है? कैसे इसका अस्तित्व है? यह कैसे पैदा होता है? यह कैसे अभिव्यक्त होता है? और कैसे, यह निर्लिप्त भी है और संलग्न भी है । विवरण में, ब्रह्म का तत्व स्वयं ब्रह्म से भिन्न है। जैसे, मैं जिन सिद्धांतों का पालन करती हूं, वे मुझ से अलग हैं। यह एक बहुत ही सूक्ष्म विषय है और इसके लिए वास्तविक ध्यानस्थ चित्त की आवश्यकता है। तो अपने मन की सारी समीक्षा, कृपया उन्हें बंद कर दें, जैसे आपने अपने जूते उतार दिए हैं। क्या आप सभी ने अपने जूते उतार दिए हैं? कृपया। और बस मेरी ओर थोड़ा, थोड़ा गहन ध्यान देकर सुनो। क्या आप आगे आ सकते हैं! आप सब आगे आ सकते हैं ताकि जो बाद में आने वाले हैं वो बाद में आ सकें। आगे आओ! मुझे लगता है कि आगे आना बेहतर है, क्योंकि हमारे यहां माइक नहीं है। यहां आगे आना बेहतर है। जिस प्रका,र आप जिन सिद्धांतों पर आधारित हैं, वे स्वयं आप से भिन्न हैं, उसी तरह, ब्रह्म का तत्व स्वयं ब्रह्म से भिन्न है, लेकिन एक ब्रह्म है और ब्रह्म में निहित है। लेकिन ब्रह्म स्वयं तत्व द्वारा कायम है। आयाम में, आप कह सकते हैं कि ब्रह्म व्यापक है, बड़ा Read More …
परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ‘अहंकार,पश्चिमी देश, प्रेम और धन’ कैक्स्टन हॉल, लंदन, इंग्लैंड 17 जुलाई, 1978 श्री माताजी: आप कैसे हैं? बेहतर? साधक: ज्यादा बुरा नहीं! श्री माताजी: ज्यादा बुरा नहीं! सब लोग धीरे धीरे बेहतर हो रहे हैं, है ना? डोमिनिक तुम कैसे हो? डोमिनिक: अच्छा हूं! श्री माताजी: तुम हमेशा ही अच्छे होते हो! इस उत्तर पर गौर करें ‘अच्छा हूं ‘। ये जब से पैदा हुए तब से अच्छे हैं, परंतु सारी दुनिया भयानक है। है ना? (हंसते हुए) एक आत्म साक्षात्कारी के लिए ये ऐसा है। वो बहुत आश्चर्यचकित होता है, बहुत ज्यादा सदमा ग्रस्त भी जिस तरह से दुनिया के तौर तरीके हैं। कितने लोग आज पहली बार आए हैं? कृपया अपने हाथ ऊपर उठाइए। हां! और कौन? तुम? आप तीन चार लोग? मैं सोचती हूं अगर वो अंदर आ जाएं। आप भी पहली बार आए हैं? साधक: नहीं! श्री माताजी: नहीं? आप को प्राप्त हो गया है! आप को प्राप्त हो गया है। आप का क्या? आप पहली बार आईं हैं? महिला साधक: मैं पिछली बार आई थी। श्री माताजी: पिछली बार? क्या हुआ था? क्या आप को अच्छा अनुभव हुआ था? बढ़िया! आप को कैसा लगा? बढ़िया! और आप भी वहां थीं? महिला साधक: नहीं! श्री माताजी: तुम भी वहां थे। नहीं? पहली बार? अच्छा! हम ऐसा कर सकते हैं, जो लोग आज पहली बार आए हैं, वे इस तरफ बैठ जाएं, जिस से आप को देखना बहुत आसान हो। और मैं उनकी कुंडलिनी देखना चाहूंगी। अगर आप उस तरह बैठें, Read More …
आत्म-साक्षात्कार के बाद क्या होता है? कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 26 जून 1978 प्रश्न यह है कि आत्म-साक्षात्कार के बाद वास्तव में हमारे साथ क्या होता है? बेशक, मेरा मतलब है, आप निर्विचार जागरूक महसूस करते हैं, आप सामूहिक चेतना महसूस करते हैं, आप दूसरों की कुंडलिनी को महसूस कर सकते हैं, आप कुंडलिनी को ऊपर उठा सकते हैं, आप चक्रों को महसूस कर सकते हैं। यह सब आप जानते हैं। लेकिन असल में, इंसान के साथ गहरे तरीके से क्या होता है, यह देखना होगा। तो, सबसे पहले, आइए जानें कि हम कैसे हैं, आत्मसाक्षात्कार होने से पहले हम क्या हैं, ताकि हमें पता चलेगा कि बोध के बाद हमारे साथ क्या होता है। अब यह विषय बहुत सूक्ष्म है और मैं चाहूंगी कि आप इसे बहुत, बहुत बड़ी एकाग्रता से सुनें। आज मैं अमूर्त चीजों के बारे में बात नहीं करने जा रही हूं, लेकिन बिल्कुल ऐसी चीज के बारे में जो वास्तव में बहुत तथ्य पूर्ण है। एक इंसान क्रमागत उत्क्रांति से बना है – आप यह अच्छी तरह से जानते हैं – कि वह उत्क्रांति से बना है। और एक बड़ा वाद-विवाद चल रहा है। ये इन बातों को नहीं समझते, इसलिए विवाद है। लेकिन वह सात चरणों में विकसित होता है और इसलिए कहा जाता है कि: इस दुनिया को बनाने में उसे सात दिन लगे। हम कह सकते हैं कि पूरे ब्रह्मांड ने लगभग सात चरण लिए। लेकिन, जैसा कि आप समझते हैं, एक बीज में सभी सूक्ष्म बीज होते हैं, एक पेड़ के Read More …
पूर्व और पश्चिम के बीच अंतर कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 19 जून 1978 हमारे पाश्चात्य समाज की समस्या यह है… आप देखिए, पूर्वी समाज की अपनी समस्याएं हैं और पश्चिमी समाज की अपनी समस्याएं हैं। मूल रूप से वे दो अलग-अलग समस्याएं हैं, बिल्कुल दो अलग-अलग समस्याएं हैं, और पूर्व की समस्याओं के बारे में चर्चा करना आपके लिए किसी काम का नहीं होगा। उदाहरण के लिए, भगवद गीता में, श्री कृष्ण ने कहा है कि, “योग क्षेम वहाम्यहम।” “मैं आपके योग की देखभाल करता हूं,” का अर्थ है भगवान के साथ मिलन। ‘वहाम्यहम’ का अर्थ है: मैं उसका वहन करता हूं, उस प्रक्रिया को करता हूं या मैं वह व्यक्ति हूं जिसे वह प्रक्रिया करनी है। और ‘क्षेम’, क्षेम का अर्थ है भलाई, “मैं भलाई की देखभाल करता हूं”। लेकिन भारत में, लोग पूरी तरह से मानते हैं कि भगवान हमारे उद्धार की देखभाल करते हैं। मेरा मतलब है कि वे विश्वास करते हैं, मेरा मतलब है कि उनके पास ऐसी श्रद्धा है। जो एक बहुत बड़ा फायदा है, उन्हें ऐसा विश्वास नहीं होता कि वे स्वयं इसके बारे में कुछ कर सकते हैं। उनमें से अधिकांश, मेरा मतलब है कि बहुत थोड़े पश्चिमीकृत लोगों को छोड़कर, अन्यथा वे आमतौर पर सोचते हैं कि केवल ईश्वर ही उनके लिए यह करने जा रहे हैं। जैसे भी संभव हो। वह एक अवतार, या एक अवतरण, या कोई ऐसा व्यक्ति भेज सकता है जो हमें मुक्ति दिलाएगा। उन्हें विश्वास नहीं है कि वे इसके बारे में कुछ भी कर सकते हैं, Read More …
“तर्कबुद्धि, भावनात्मकता और विवेक” कैक्सटन हॉल, लंदन, 12 जून 1978। … तो तर्कसंगतता क्या कर सकती है? हमारे अंदर तर्कसंगतता होने के कुछ कारण होने चाहिए [और] भगवान ने हमें तर्कसंगतता क्यों दी है। वह अपने हीरे को इस तरह बर्बाद नहीं करता है! तर्कसंगतता हमें यह समझने की समझ देती है कि हम तर्कसंगतता के माध्यम से वहां नहीं पहुंच सकते। क्योंकि जहाँ तक और जब तक यह घटना आपके साथ घटित नहीं होती, तब तक आप उस पर विश्वास नहीं करेंगे। आप इस पर विश्वास नहीं करने जा रहे हैं कि, यह तर्कसंगतता, जिस पर हम निर्भर हैं, जो हमारा सहारा है, जो ; हम हर समय सोचते हैं कि तर्कसंगतता के साथ ही हमारी पहचान पूर्ण होती है। और हम बहुत तर्कसंगत हैं और हमें अपनी तर्कसंगतता पर भी गर्व है। तो, आप तर्कसंगतता के माध्यम से एक बिंदु पर पहुंचते हैं, जहां आप को समझ आता है कि, यह घोड़ा अब आगे किसी भी उपयोग का नहीं होगा। यह तर्कसंगतता का उपयोग है! एक तरह से यह आपको उस समापन बिंदु पर ले जाता है जहाँ आपको लगता है कि इसे छोड़ दिया जाना चाहिए या इस पर निर्भर नहीं किया जा सकता है। दूसरी तरफ तर्कसंगतता आपको एक दृष्टिकोण देती है जिसका आप को अनुभव प्राप्त होने के बाद में संबंध समझ आ सकता है। आप समझने लगते हैं कि तर्कसंगतता आपको क्यों निराश कर रही थी। तो यह एक नकारात्मक तरीके से एक शिक्षक है। यह एक नकारात्मक तरीके से एक शिक्षक है। लेकिन Read More …
[Hindi translation from English] हृदय चक्र और ओमकारा फरवरी 1978. यह बात भारत में पश्चिमी योगियों के पहले भारत दौरे (जनवरी-मार्च 1978) के दौरान दी गई थी। ऑडियो से प्रतिलिपि अब हृदय के इस बायीं ओर का संबंध आपकी माता और शिव अर्थात अस्तित्व से है। आप अपना अस्तित्व अपनी माँ के माध्यम से प्राप्त करते हैं। जहाँ तक आपका अस्तित्व का प्रश्न है, शिव और पार्वती, वे आपके माता-पिता हैं, दोनों ही आपके माता-पिता हैं और यह इतना सुंदर केंद्र है आपका, हृदय चक्र है। आप चाहते हैं कि कोई व्यक्ति आपकी कोशिशों पर अनुकूल प्रतिक्रिया करे, आप चाहते हैं कि कोई व्यक्ति कुछ फल प्रदान करे या ऐसा ही कुछ और, आप किसी को बहुत ही अड़ियल पाते हैं, मैंने आपको बताया है कि आप अच्छी तरह से उनकी जूता पट्टी कर सकते हैं, यह सभी चीज़े करें। लेकिन एक बहुत ही सरल तरीका है, यदि आप जानते हैं कि इसे कैसे करना है। आप देखिये, आप सिर्फ उनके ह्रदय [मध्य हृदय] के बारे में सोचें, उनके हृदय में एक बंधन लगा देते हैं। और आप इसे इतनी खूबसूरती से कर सकते हैं, आप किसी भी कठिनाइयों के बिना किसी व्यक्ति को पिघला सकते हैं यदि आप जानते हैं कि उनके दिल को कैसे संभालना है। आपको उनके दिल से अपील करनी होगी और वह सबसे अच्छा आकर्षण है, जो मैं आपको बताती हूं और सबसे अच्छी गुप्त विधि है जिसके द्वारा आप किसी के साथ बात करते समय उनमें अच्छाई ला सकते हैं। मान लीजिए कि मैं Read More …
सार्वजनिक कार्यक्रम लंदन 20-03-1970 …यह आपको पता होना चाहिए कि मैं ऐसा कुछ बताने वाली नहीं हूँ जो सत्य नहीं है, क्योंकि मैं यहां किसी राजनीतिक लाभ के लिए, व्यावसायिक लाभ के लिए नहीं हूं। नहीं साहब, मैं यहां स्वयं आपके फायदे के लिए हूं, असलियत के बारे में। यदि आप उपलब्धि चाहते हैं तो इसके बारे में असली बनें। अब आप खुद ही देख लीजिए कि ऐसा होता है या नहीं। आप अपनी खुली आंखों से देख सकते हैं – इन लोगों ने देखा है – कुंडलिनी को स्पंदित होता हुआ। आप इसे देख सकते हैं। यह धड़कती है। जब लोग मेरे पैर छूते हैं, तो कई मामलों में यह धड़कती है। उन्होंने इसे देखा है। वे सब झूठे नहीं हैं! और उन्हें झूठ क्यों बोलना चाहिए? हासिल करने के लिए कुछ नहीं: पैसा नहीं, सबसे पहले, वही अलग कर दिया है। तो दूसरी बात क्या है? यह कुंडलिनी उठती है, और आप इसे ऊपर उठते हुए देख सकते हैं, इन सभी चक्रों से होकर गुजरती है, और यह उस स्थान पर रुक जाती है जहां आपको कोई समस्या है। एक अन्य दिन हमारे पास कहीं से एक बहुत बड़ा आदमी था जो मुझसे मिलने आया था, और उसकी कुंडलिनी ऊपर आई, और बस ऐसे ही यहां धड़क रही थी। और यह सारा हिस्सा ऐसे ही धड़क रहा था। मेरा मतलब केवल उस हिस्से से है। तो लोगों ने उससे पूछा, “क्या तुम ठीक हो?” उन्होंने कहा, “हां, मैं ठीक हूं।” “लेकिन क्या आपको लीवर की समस्या है?” “हाँ Read More …
हम सभी इच्छुक हैं सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन, 20 मार्च 1978 ग्रेगोइरे ने इतनी सारी बातें कह दी हैं कि मैं वास्तव में नहीं जानती कि उसके बाद क्या कहना है। सच में अवाक। मुझे पता है कि यह एक सच्चाई है और आपको इसका सामना करना होगा, हालांकि मैं इसके बारे में संकोचशील हूं। तुम सब खोज रहे थे, और मुझे लगता है कि जब से मुझे याद पड़ता है, तब से मैं किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिली जो खोज नहीं रहा था। वे पैसे में, सत्ता में ख़ोज कर रहे होंगे। लेकिन उनमें से बहुत से लोग वास्तव में कुछ इससे भी परे की तलाश कर रहे थे। पश्चिम में, मैंने हमेशा महसूस किया कि पुराने और प्राचीन काल के सभी महान संत जो परमात्मा की तलाश कर रहे थे, पैदा हुए हैं। मैं देख सकती थी , जिस तरह से आपने भौतिकवाद को नापसंद किया है; जिस तरह से आपने जीवन के बारे में एक तरह की समझ हासिल की है… नई बात है। ईसा-मसीह के समय में कुछ कोढ़ी और कुछ बीमार लोगों को छोड़कर ऐसे लोगों को देखना संभव नहीं था। अन्य कोई नहीं था जो उसे देखने को तैयार हो। निःसंदेह समय बदल गया है। लेकिन, इस तलाश में कई लोगों ने बहुत सारी गलतियां की हैं। गलतियों को हमेशा माफ किया जा सकता है। उन्हें ठीक किया जाना चाहिए। मैं इसके साथ पैदा हो हूं। मुझे पता था कि मुझे यह करना है और मुझे पता था कि मुझे एक दिन Read More …
Brahama Ka Gyan (Knowledge of Bramh) Date : 1st February 1978 Place Delhi Type Public Program ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK कुछ चक्रों के बारे में बता चुकी हूँ। और इसके आगे के चक्रों के बारे में भी आज बताऊंगी। जैसे कि पहले चक्र का नाम मैंने आपसे बताया मूलाधार चक्र है। जो नीचे स्थित यहाँ पर चार पंखुड़ियाँ वाला होता है। और इस चक्र से क्योंकि ये सूक्ष्म चक्र है और इसका जो जड़ अविभाव है, इसका जो ग्रोस एक्सप्रेशन है, उसे पेल्व्हिक प्लेक्सस कहते हैं। और इसमें श्रीगणेश के बहुत ही पवित्र चरण रहते हैं। और उससे ऊपर जो | त्रिकोणाकार यहाँ पर बना हुआ है, इसमें कुण्डलिनी का स्थान है और ये बड़ा भारी महत्वपूर्ण बिंदु मैंने आपसे बताया था की श्रीगणेश नीचे होते हैं और कुण्डलिनी उपर होती है। ये बहुत समझने की बात है। इसी चीज़ को ले कर के लोगों ने बड़ा उपद्व्याप किया हुआ है। कहना कि गणेश जी मूलाधार चक्र में होते हैं, जिसे सेक्स का संबंध से हैं। या तो बिल्कुल ही सेक्स से दूर हटा कर के और कहना कि सेक्स से दूर हट के और सारे ही कार्य करते रहना, ये परमात्मा है। इस तरह की दो विक्षिप्त चीज़ें चल पड़ती हैं । सेक्स का आपके उत्क्रांति (इवोल्यूशन) से कोई भी संबंध नहीं है। कोई भी संबंध नहीं । लेकिन सेक्स से भागने की भी सहजयोग में कोई भी जरूरत नहीं । एक जीवनयापन की वो भी एक चीज़ है। पर इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं जिसे लोग समझते हैं। और एक Read More …
परमात्मा और रचना कैक्सटन हॉल, लंदन 1977-11-28 जैसा कि गेविन ने आपको पहले ही विस्तार से बताया है कि आज का विषय वास्तव में एक बहुत विस्तृत विषय है और इस विषय को समझने के लिए एकाग्र चित्त होना होगा। और जैसा कि उन्होंने आपको पहले ही बताया है कि यह मेरा व्यक्तिपरक ज्ञान है जो आपका भी हो सकता है। और आपको इसे अपनी चैतन्यमयी जागरूकता से ही सत्यापित करना होगा। क्योंकि यही एकमात्र ऐसी जागरूकता है जो आपको पूर्ण परिणाम दे सकती है। जैसा कि मैंने आपको बताया है, मानव जागरूकता अभी भी अधूरी है, जब तक आप आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से चैतन्यमयी जागरूकता प्राप्त नहीं करते, जिसमें आत्मा आपसे बात करना शुरू कर देती है, आप सत्य को सत्यापित नहीं कर सकते। तो यह व्यक्तिपरक ज्ञान के सबसे आवश्यक पहलुओं में से एक है। कोई भी कुछ भी कहता है, उस पर बिल्कुल भी विश्वास करने की जरूरत नहीं है। और जैसा कि मैंने आपको बताया है कि आपको मेरी बातों पर भी विश्वास करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इसे नकारा भी नहीं जाना चाहिए क्योंकि जैसा कि मैंने आपको बताया कि यह एक बहुत ही सूक्ष्म विषय है और व्यक्ति को इसमें थोड़ा समझने वाला होना चाहिए ना की बस स्वीकार कर लेने वाला शायद कुछ लोगों के साथ। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता। भले ही आप इसे थोड़े समय के लिए स्वीकार कर लें, अगर आपको यह पसंद नहीं है तो आप इसे बाद में छोड़ सकते हैं। लेकिन इसके खिलाफ किसी तरह का Read More …
तंत्रवाद सार्वजनिक कार्यक्रम कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 21 नवंबर 1977 मेरे प्रिय साधकों, मैं गेविन ब्राउन की शुक्रगुजार हूं कि वह मेरे द्वारा पहले कही गई कुछ बातों को समेटने में सक्षम हैं और मुझे पिछली बार जो मैंने आपको बताया था, उसके सभी विवरणों में जाने की जरूरत नहीं है। आप में से कुछ लोग यहां पहली बार आए हैं। [टेप बाधित]। जैसा कि उन्होंने कहा, तंत्र का अर्थ है तकनीक, यह एक तकनीक है। और संस्कृत भाषा में यंत्र का अर्थ है तंत्र\यंत्र रचना। तो, तंत्र की तकनीक। अब हम किस तंत्र की बात कर रहे हैं? क्या हमारे बाहर या अंदर कोई तंत्र है? या यह किसी सूक्ष्म विधि से काम किया गया है? यदि आप खोज रहे हैं और यदि आप साधक हैं तो ये सभी प्रश्न हमारे मन में आने चाहिए। लेकिन मुझे लगता है कि पश्चिम में हालांकि भौतिक रूप से लोग बहुत विकसित हैं, उन्होंने कई भौतिक प्रश्नों और समस्याओं को सुलझा लिया है, वे बहुत अच्छी तरह से सुसज्जित हैं, लेकिन जहां तक आध्यात्मिक जीवन का संबंध है, फिर भी, वे बहुत ही अनाड़ी हैं। यद्यपि अनुसरण करने के लिए उनके पास मसीह जैसा महान व्यक्तित्व था, और कितना बढ़िया यह आदर्श था! लेकिन शायद एक संगठित धर्म के कारण, शायद उन लोगों के लिए जो वास्तविक साधक थे और जो वास्तव में ध्यान विधियों के माध्यम से इसमें प्रवेश करना चाहते थे यह यह संभव नहीं था| तो, यह तंत्र या तकनीक जो हमारे आत्म-साक्षात्कार को कार्यान्वित करती है, उसे जानना Read More …
कुंडलिनी और आत्म-साक्षात्कार गुरुपूर्णिमा सार्वजनिक कार्यक्रम, 1977-0731, तो, जब आपको अपना आत्मसाक्षात्कार मिलता है, सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात आपको अपने भौतिक स्व के बारे में जानना चाहिए, जिसके बारे में आप अब तक नहीं जानते हैं। जैसे ही आप अचेतन में कूद जाते हैं, आपने यह देखा है कि आपको अपने भौतिक अस्तित्व के बारे में पता चलता है: सबसे पहले अपने बारे में। आपको पता चल जाता है कि आपकी शारीरिक समस्या क्या है, आप कहां परेशान हैं। स्वचालित रूप से आपको पता चल जाता है कि आप किससे पीड़ित हैं, आपको किसी डॉक्टर के पास जाकर यह पूछने की ज़रूरत नहीं है कि आप किससे पीड़ित हैं। मान लीजिए कि आपका नाभी चक्र पकड़ रहा है, तो आप जानते हैं कि पेट में परेशानी है। यदि आप उसकी आवृत्तियों के साथ थोड़ा और आगे बढ़ते हैं, तो तुरंत आपको पता चल जाता है कि यह इसी भाग में है। यहां तक कि उंगली पर, दायीं ओर की उंगली से, यदि बायीं ओर की ऊंगली में अधिक जलन होती है तो समझ लें कि दाहिनी ओर की अपेक्षा बायीं ओर अधिक जलन होती है। अभ्यास से आप ठीक-ठीक समझ जाते हैं कि यह किस प्रकार की परेशानी है। लेकिन कुछ समय बाद आप बस यही कहते हैं कि यही तो परेशानी है और यही तो है. यह आपके द्वारा लगाए गए कंप्यूटर की तरह है। तो, आत्म-ज्ञान जो सबसे पहले अनुभव किया जाता है वह साकार हो जाता है। इसे हम दूसरा चरण कह सकते हैं। लेकिन Read More …