How to Realise the Self New Delhi (भारत)

Seminar “How to Realise the Self”. Delhi (India), 8 March 1979. Shri Mataji: For the very first time? [ Hindi ? ] First time ? [ Hindi ? ] Please come. Just come forward. [ Hindi ? ] Please keep your hands like this. What are you doing? Yogi: [ ? ] Shri Mataji: [ Hindi ? ] What am I to speak? I don’t know. Yogi: How to realize Self? Shri Mataji: [Hari ?] – how to realize Self? [Loudspeaker hain – more Hindi ?]. Yogi: [ ? ] Shri Mataji: This is a very nice question, “How to realize the Self?” The first word – how. [On this ?] one can say, that Self can be realized and is to be realized, will be realized. But you cannot realize Self. You cannot. You have become a human being from amoeba. How did you become? What did you do? You got it just as a blessing from God. In the same way, Self-Realization is also the blessing of God. It is spontaneous. It is a living thing. Anything living happens spontaneously, by itself. Do you ever say – how am I to sprout the seed? It will sprout by itself. Why? Because all the mechanism, all the energy that is required for it to sprout is embedded in it, is built in it. In the same way, all that is required to reach to your Self is embedded within you. It is waiting there for that moment when it Read More …

Chakro Per Upasthit Devata Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

1979-0117 सभी चक्रों पर देवताओं का प्रोग्राम [हिंदी] भारतीय विद्या भवन, मुंबई (भारत) सार्वजनिक कार्यक्रम, “सभी चक्रों पर देवताओं का प्रोग्राम” (हिंदी). भारत विद्या भवन, मुंबई, महाराष्ट्र, भारत. 17 जनवरी 1979। (एक आदमी से बातचीत) ‘आ रहे हैं अब? नहीं आ रहे है न? सिगरेट पीते थे आप?’ ‘कभी नहीं! ‘कभी नहीं पीते थे ? या मंत्र कोई बोले होंगे?’ ‘पहले बोलता था अब विशेष नहीं। ‘वहीं तो है न ! आप देखिये, आप मंत्र बोलते थे, आपका विशुद्धि चक्र पकड़ा है। विशुद्धि चक्र से आपको अभी मैं दिखाऊँगी, आपको अभी मैं बताऊँगी। ये देखो, ये दो नसें यहाँ चलती हैं, विशुद्धि चक्र में ही ये विशेषता है और किसी चक्र में नहीं। ये दोनों नसें यहाँ से चलती हैं। नाड़ियाँ हैं ये दोनों। इसलिये जब आप हाथ मेरी ओर करते हैं तो हाथ से जाता है। हाथ में ही दो नाड़ियाँ हैं । तो ये नाड़ियाँ गायब हो गयी। जिस आदमी में विशुद्धि चक्र पकड़ा होगा तो आपको फील ही नहीं होगा हाथ में। बहुत लोगों की ये गति हो जाती है, कि वो बहुत पहुँच जाते हैं, उनको अन्दर से सब महसूस भी होता है, शरीर में महसूस होता है, हाथ में महसूस ही नहीं होता। अन्दर महसूस होता है। यहाँ है अभी कुण्डलिनी, यहाँ है, सर में है, ये सब महसूस होगा, पर हाथ में होता ही नहीं। ‘माताजी, गहन शांति जब होती है तब कैसे मालूम हो कि कुण्डलिनी कहाँ पर है? आप जब दूसरों की ओर हाथ करेंगे ना तब आपको खुद ही अन्दर पता Read More …

Shri Ganesha & Mooladhara Chakra Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Shri Ganesha Aur Mooladhar Chakra, Public program, “Shri Ganesha, Mooladhara Chakra” (Hindi). Bharat Vidya Bhavan, Mumbai, Maharashtra, India. 16 January 1979. ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK भाषण सुनने से पहले ही मैं आपको बताती हूँ, कि इस तरह से हाथ रखिये और आराम से बैठिये। और चित्त हमारी ओर रखिये। इधर-उधर नहीं, कि जरा कोई आ गया, कोई गया। इधर-उधर चित्त नहीं डालना। क्योंकि दूसरों को तो हम हर समय देखते ही रहते है, कभी अपने को भी देखने का समय होना चाहिये। कल मैंने आपसे इन चक्रों के बारे में बताया था। आज मैं आपको सब से नीचे जो चक्र है जिसको गणेश चक्र कहते हैं, उसके बारे में बताऊंगी। हम लोग गणेश जी को मानते हैं, गणेश जी की पूजा भी करते हैं । और ये भी जानते हैं कि अपने महाराष्ट्र में अष्टविनायक हैं, आठ गणेश , पृथ्वी तत्त्व में से निकल आये हैं। लेकिन इस के बारे में हम बहुत ही कम जानते हैं। और इसलिये करते हैं सब कुछ क्योंकि हमारे बड़ों ने बता रखा है। इन धर्मांधता को देख कर के ही लोगों ने ये शुरू किया, कि ऐसे, भगवान, जिनको की हम देख नहीं सकते, कुछ सभी अंधेपन से हो रहा है। तो बेहतर ये है कि इस तरह से भगवान वरगैरा न मानने से ….. हम लोग अपने ही ऊपर विश्वास रख के काम करें। अब गणेश इतनी बड़ी चीज़ है, इसके बारे में मैं अब बताऊंगी। गणेश एक प्रिंसीपल हैं, एक तत्त्व है। ये कोई भगवान आदि नहीं। ये एक तत्त्व है, Read More …

Public Program Day 2: Utkranti Ki Sanstha Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Public Program Day 2, Birla Krida Kendra, Mumbai (Hindi), 15 January 1979. ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK मैंने कहा था, कि कुण्डलिनी के बारे में विशद रूप से आपको बताऊँगी। इसलिये आज आपसे मैं कुण्डलिनी के बारे में बताने वाली हूँ। पर मुश्किल है आप सब को ये चार्ट दिखायी नहीं दे रहा होगा। क्या सब को दिखायी दे रहा है ये चार्ट? इसमें जो कुछ भी दिखायी दे रहा है वो आपको इन पार्थिव आँखो से नहीं दिखायी देता। इसलिये सूक्ष्म आँखें चाहिये जो आपके पास नहीं हैं। बहरहाल ये आप के अन्दर है या नहीं आदि सब बातें हम बाद में आपको बतायेंगे। इसे किस तरह जानना चाहिए? लेकिन इस वक्त अगर मैं आपको इसके बारे में बताना चाहती हूँ तो एक साइंटिस्ट के जैसे खुले दिमाग से बैठिये। पहले ही आपने अनेक किताबें कुण्डलिनी के बारे में पढ़ी हुई हैं। योग के बारे में पढ़ी हुई हैं। लेकिन सत्य क्या है उसे जान लेना चाहिए। किताबों से सत्य नहीं जाना जा सकता। कोई कहीं कहता है, कोई कहीं कहता है, कोई कहीं बताता है। लेकिन आप अगर साइंटिस्ट है तो अपना दिमाग को थोड़ा खाली कर के मैं जो बात बता रही हूँ, उसे देखने की कोशिश करें। जिस तरह से कोई भी साइंटिस्ट अपना कोई हाइपोथिसिस आपके सामने रखता है, कोई ऐसी कल्पना कर के रखता है, कि ऐसी ऐसी बात हो सकती हैं, उसको वो फिर अन्वेषण कर के और सिद्ध करता है, प्रयोग कर के, एक्सपिरिमेंट के साथ ये सिद्ध कर देता है, कि वो Read More …

What is the Kundalini and how it awakens Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Talk in Hindi at the Bharat Vidya Bhavan, Mumbai, Maharashtra, India. 9 January 1979. [Hindi transcript until 00:49:05] सबको फिर से मिल के बड़ी ख़ुशी होती हैं | मनुष्य पढता है लोगो से सुनता है बड़े बड़े पंडित आ करके लोगो को भाषण देते हैं | इस संसार में परमात्मा का राज्य हैं परमात्मा न सृष्टि है | ऐसे हाथ करिये बैठे राहिएए जब तक में भाषण देती हूँ उसी के साथ ही कुण्डलिनी का जागरण हो जाता है | आज में आपसे ये बताने वाली हूँ की कुण्डलिनी क्या चीज़ है और उसका जागरण कैसे होता है | कल मेने आपसे बताया था मानव देह हम आज देख रहे हैं इस मानव देह को चलाने वाली शक्तियां हमारे अंदर प्रवाहित हैं | उन गुप्त प्रवाहों को हम नहीं जानते हैं | जिनके कारन आज हमारी सारी शक्तियां ये शरीर मन बुद्धि अहंकार सारी चीज़ो का व्यापर करती हैं उनके बारे में जो कुछ भी हमने साइंस से जाना है वो इतना ही जाना है की ऐसी कोई स्वयंचालित शक्तियां है जिसको की ऑटोनॉमस सिस्टम कहते हैं जो इस कार्य को करती हैं और जिसके बारे में हम बोहत ज्यादा नहीं बता सकते | की वो शक्ति कैसी है और किस तरह से वो अपने को चलाती है | किसी भी चीज़ को जानने का तरीका एक तो ये होता है की अँधेरे में उस चीज़ को खोजिये जैसे आप इस कमरे में आये है और यहाँ अंधेरा है इसको धीरे धीरे टटोलिये जानिये की ये क्या है कोई दरवाजे Read More …

Triguna New Delhi (भारत)

Trigun – Bhartiy Sanskruti Ka Mahatva IV Date 3rd February 1978 : Place Delhi : Public Program Type : Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] जिस शक्ति को आप इस्तेमाल कर रहे हैं उसे चल रहा है, माताजी थोड़ा म्यूजिक कर दें? हमने Refill कर लेते हैं हम। Modern बीमारी एक और कहा कर दो भाई। ऐसे ही बैठेगें आराम से। हमारे जिसे हम Tension कहते हैं। Tension’ मुझे तो Vibrations चलते रहते हैं, आप Receive करते Tension आ गया, पहले किसी को Tension नहीं रहिए। अब उन्होंने ज़रा लम्बा चौड़ा कर दिया जरा Music, तो लोग कहने लगे अब जरा जल्दी खत्म आता थी। तब तो Tension आना ही हुआ कि आप निकले पुरानी दिल्ली से माताजी के Programme करो, जल्दी खत्म करो। मैंने कहा क्यों भई तुमको में जाने के लिए। अब 6.30 बजे पहुँचना ही चाहिए, मेरा Lecture सुनने का है पर मेरी तो आज तबियत पहले सीट पर बैठना ही चाहिए। देर से जाएंगे, नहीं कर रही। अपने तो तबीयत से चलते हैं, कोई हर्ज नहीं, देर से भी आ सकते हैं। वो समय Temperamental आदमी हैं, अभी आज तो भई आप के आने का था आप आ गए कोई बात नहीं। ऐसी कौन सी आफत मची हुई हैं? भाई मुझे कहाँ भी सुनो मेरे साथ। आराम से क्यों नहीं सुनते? जाने का है और आपको कहाँ जाने का है? आराम अच्छा म्यूजिक चल रहा है, भई सुनो। ऐसी कौन तबीयत हो नहीं रही। तो म्यूजिक ही सुनने दो, तुम Read More …

Sahajyog, Kundalini aur Chakra मुंबई (भारत)

Sahajyog, Kundalini aur Chakra, Mumbai, India 30-01-1978 सहजयोग, कुण्डलिनी और चक्र मुंबई, ३० जनवरी ७८  ये सहज क्या होता है? आप में से बहुतों को मालूम भी है । नानक साहब ने बड़ी मेहनत की है और सहज पर बहुत कुछ लिखा है । यहाँ आप लोगों पर बड़ा वरदान है उनका। लेकिन उनको कोई जानता नहीं है, समझता नहीं। सहज’ का मतलब होता है स ह ज। ‘सह’ माने साथ, ‘ज’ माने पैदा होना। आप ही के साथ पैदा हुआ है। यह योग का अधिकार आपके साथ पैदा हुआ है। हर एक मनुष्य को इसका अधिकार है कि आप इस योग को प्राप्त करें। लेकिन आप मनुष्य हो तब! अगर आप जानवर हो गये तो इस अधिकार से वंचित हो जाते है या आप दानव हो गये तो भी इस अधिकार से वंचित हो जाते है। अगर आप मनुष्य है साधारण तरह से तो आप को अधिकार है कि इस योग को आप प्राप्त करें। यही एक योग है बाकी कोई योग नहीं। बाकी जितने भी योग है इसकी तैय्यारियाँ। सहजयोग के और दूसरे माने यह भी लगाते हैं हम लोग कि सहज माने सीधा, सरल, effortless, spontaneous, अकस्मात घटित होनेवाली चीज़ क्योंकि ये एक जिवन्त घटना है।  तो ऐसे गुरू जो पालना चाहते हैं उनका यह स्थान नहीं है । सीधा हिसाब हैं मैं हाथ जोड़़ती हैँ। चाहें मेरे पास दो ही शिष्य रहें मुझे कोई हर्ज नहीं। जिसको सत्य चाहिए वो यहाँ आए। पहली चीज़ जीसको सत्य नहीं चाहिए और असत्य के पिछे भागना चाहते हैं वो Read More …

Sab Chijo me Mahamantra ho (भारत)

Sab Chijo me Mahamantra ho, India, 16-03-1977 सब चीज़ों में महामन्त्र हो भारत, १६ मार्च १९७७  कल आपसे मैंने बताया था ध्यान के वक्त कि आप इस तरह से हाथ कर के मेरी ओर बैठें और आपके अन्दर चैतन्य धीरे-धीरे बहता हुआ आपकी कुण्डलिनी को जागृत कर देगा। ये सारी प्रक्रिया ऐसी लगती है जैसे कोई बच्चों का खेल है। और आप लोगों ने इन लोगों को देखा भी होगा जो यहाँ पर सहजयोगी लोग थे कि वो अपने हाथ को घूमा-घूमा कर के और आपको कुछ चैतन्य दे रहे थे और कुछ कार्य कर रहे थे। मामूली तौर से ये चीज़ अगर देखी जाये तो एक बच्चों का खेल लगता है।  जिस वक्त मोहम्मद साहब ने लोगों को नमाज पढ़ने के लिए बताया था तो लोग उनका मज़ाक करते थे और जिस वक्त अनादिकाल में ही होम-हवन आदि हमारे देश में शुरू किये गये थे तब भी ऐसे लोग थे जो सोचते थे कि ये क्या महामूर्खता है? ये क्यों करें? और जब वो बातें रूढ़ीगत हो जाती हैं तब मनुष्य इसको इस तरह से मान लेता है मानो ऐसे कि ये आपके जीवन का एक अंग है। जैसे नमस्कार करना। हम लोग, हिंदुस्तानी आदमी किसी को देखते ही नमस्कार कर लेते हैं। उसके बारे में ये पूछा नहीं करते कि इस तरह से दो हाथ जोड़ के हमने क्यों नमस्कार किया? और पूजा के समय हम इस तरह से आरती क्यों करते हैं और अपना हाथ इस तरह से क्यों घुमाते हैं? साथ में हम दीप ले कर Read More …

Talk To New Yogis, Problems From Fake Gurus New Delhi (भारत)

Naye Sahaj Yogiyose Batchit, New Delhi, 19-02-1977 आप में से बहुत से लोग पार हो गये हैं माने इनके हाथ में से वाइब्रेशन्स आये हैं। मैंने पहले भी चक्रों के बारे में बताया है आपको। और मैं ये मानती हूँ कि आप में से बहुत से लोगों के हाथ में से वाइब्रेशन्स आये। लेकिन ऐसे भी बहुत से लोग देख रही हूँ कि जिनके नहीं आये हैं। अब जो लोग पार हो गये हैं, जिनके हाथ से वाइब्रेशन्स आ रहे हैं और जो निर्विचार हो गये हैं, उनके लिये कोई बात कही जाये, तो उनको भी सुन लेना चाहिये जो अभी नहीं हये हैं। क्योंकि वो भी हो जायेंगे पार। पार तो जितने भी हो सकते हैं होने चाहिये और हो ही सकते हैं अधिकतर लोग पार। लेकिन किसको अगर ये पहले से ही दिमागी जमा-खर्च है बहत सारे और कुछ आयडियाज हैं फंड के बारे में, ये और वो, तो जरा उसको जरा टाइम जादा लगता है। क्योंकि पहले उसको उसके रस्ते पे लाना पड़ता है, जैसे कोई दूसरे रस्ते पे चला गया हो। जैसे अभी आपने मुझे चिठ्ठी दी कि बिल्कुल उल्टा रस्ता है, आपने जो बताया एकदम उल्टा रस्ता। और वो यही धंधे करते आ रहे हैं। हजारों आदमी उनके पास जाते हैं, और इसी तरह से उनका सर्वनाश होता है। और इस सर्वनाश में, मैं हिसाब लगा रही थी, कि इस देश में या समाज में करीबन तीन करोड़ लोगों का सर्वनाश हो गया है, अपने भारत देश में। तीन करोड़ लोगों का व्यवस्थित रूप से Read More …

Nirvicharita मुंबई (भारत)

Nirvicharita “VIC Date 6th April 1976 : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi तुम लोगों को बुरा लगेगा इसलिये मराठी में बोलने दो। मैं कह रही हूँ कि तुम्हारे सामने जो भी प्रश्न हैं, उन प्रश्नों को तुम अचेतन में छोड़ो, वो मेरे पैर में बह रहा है। माने ये कि कोई भी प्रश्न , अब तुमको अपनी लड़की का | प्रश्न है समझ लो। उसमें खोपड़ी मिलाने से कुछ नहीं होने वाला। जो भी प्रश्न है वो यहाँ छोड़ दो। उसका उत्तर मिल जायेगा। अब तुम अगर सोचते हो कि इस चीज़ से लाभ होगा , वो नहीं बात। जो परमात्मा सोचता हैं तुम्हारे लिये जो हितकारी चीज़ है, वो घटित हो जायेगी । वो तुम कर भी नहीं सकते हो । इसलिये उसको छोड़ दो तुम क्यों बीच में तंगड़ियाँ तोड़ रही हो? तुम क्यों परेशान हो रही हो ? तुमको परेशान होने की कोई जरूरत नहीं। तुम छोड़ तो दो| जो तुम्हारे सारे प्रश्नों को सॉल्व करने के लिये पूरी इतनी कमिटी बैठी हुयी है, उनके पास छोड़ो तुम | सहजयोग में यही तो कमाल है, कि सर का बोझा उतर गया उनकी खोपड़ी पर। छोड़ के देखो। ऐसे कमाल होंगे, ऐसे कमाल होंगे, कि बस्। लेकिन मनुष्य की खुद्दारी की बात हो जाती है। आखिर तक वो यही सोचते रहता है कि, ‘मुझी को करना है। और सोचते रहिये, एक के ऊपर एक ताना, बाना चलता रहेगा। कितना भी आप करते रहिये। आखिर आप पाईयेगा, कि आप कहीं भी नहीं पहुँचे और पागलखाने Read More …

Lalita Panchami मुंबई (भारत)

ललिता पंचमी पूजा    दिनांक: 5 फरवरी 1976   स्थान:  मुम्बई   प्रकार: पूजा … की हो कि उसे सुलझा सके। इतना सब होते हुए भी बार-बार इस तरह की बात बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं कि हमारा क्या फ़ायदा हुआ?  इस प्रश्न में निहित एक बहुत ही छोटी सी छुपी हुई बात है कि हमें जो कुछ मिला है उसके प्रति हमें कोई भी उपकार बुद्धि नहीं है।  ज़रा सी भी उपकार बुद्धि नहीं है कि हम सोचते हैं कि हमने क्या सहज में ही पा लिया। उपकार बुद्धि जिसे सेंस ऑफ़ ग्रेटिटूड  (sense of gratitude )अंग्रेजी में कहते हैं जब तक आपके अंदर होगा नहीं सब बात उलटी बैठती जाएगी। आज का दिन बड़ा शुभ है,ललिता पंचमी है। ललित का मतलब है सुंदर, अति सुंदर।  और ललिता गौरी जी का नाम है क्योंकि कल गणेशजी का जन्म हुआ है इसलिए आज गौरी जी का दिन मनाया जाता है।  वैसे भी आप जानते हैं कि मेरा कुंडलिनि का नाम, मतलब कुंडली का नाम ललिता है। लालित्य सौंदर्य को कहते हैं। मनुष्य वही सौंदर्य होता है, वही सुंदरतम होता है जिसमें सेंस ऑफ़ ग्रेटिटूड होती है। जिस इंसान में सेंस ऑफ़ ग्रेटिटूड ज़रा भी न हो वो इंसान पशुवत है।  पशु में भी होती है, कुत्ते में भी होती है। एक कुत्ता उसको आप थोड़े दिन पालिये-पोसिये देखिये आपको आश्चर्य होगा कि वो किस कदर वफादार होता है, वफादार होता है। जैसे ही सेंस ऑफ़ ग्रेटिटूड आपके अंदर जागृत होगा वैसे ही प्रेम के दर्शन अंदर से आने शुरू हो जाते Read More …

Parmatma Ka Prem, Type: Public Program, Place: Bal Mohan Mandir, Mumbai Language: Hindi Balmohan Vidyamandir, मुंबई (भारत)

1975-12-23 सत्य के खोजने वाले आप सब को मेरा वंदन है। कल आप बड़ी मात्रा में भारतीय विद्या भवन में उपस्थित हुए थे। और उसी क्षण के उपरान्त जो भी कहना कुछ है, आज आप से आगे की बात मैं करने वाली हूँ। विषय था, ‘एक्सपिरिअन्सेस ऑफ डिवाईन लव’ (experiences of divine love) परमात्मा के प्रेम के अनुभव । इस आज के साइन्स के युग में, पहले तो परमात्मा की बात करना ही कुछ हँसी सी लगती है और उसके बाद, उसके प्रेम की बात तो और भी हँसी सी आती है। विशेषकर हिन्दुस्तान में, जैसे मैंने कल कहा था, कि यहाँ के साइंटिस्ट अभी तक उस हद तक नहीं पहुँचे हैं जहाँ वो जा कर परमात्मा की बात सोचें। ये दुःख की बात है लेकिन और विदेशों में साइंटिस्ट वहाँ तक पहुँच गये हैं, जहाँ पर हार कर कहते हैं कि इससे आगे न जाने क्या है?  और वो ये भी कहते हैं कि ये सारा जो कुछ हम जान रहे हैं, ये साइन्स के माध्यम में बैठ रहा है, ये बात सही है। लेकिन ये कुछ भी नहीं है। ये जहाँ से आ रहा है वो एक अजीब सी चीज़ है, जिसे हम समझ ही नहीं पाते। जैसे कि केमिस्ट्री के बड़े-बड़े साइंटिस्ट हैं, वो कहते हैं कि ये जो पिरिऑडिक लॉ (periodic laws) जो बनाये गये हैं, ये समझ में ही नहीं आते कि किस तरह से बनाये गये होंगे। एक विचित्र तरह की रचना कर के इतनी सुन्दरता से एक-एक अणु-रेणु को इस तरह से रचा गया है। एक-एक अणू में एक ब्रह्मांड किस तरह से समाया गया है, ये कुछ समझ में नहीं आता। वो कहते हैं कि इनके रचना का Read More …

Keep the attention on yourself मुंबई (भारत)

Apani Or Drushti Rakhe Date 21st December 1975 : Place Mumbai : Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सहजयोगियों का प्रेम इतना अगाध है कि शब्द जितने जल्दी मिथ्या हमारे अंदर से मिटता जाता है सूझ नहीं रहे कि किस तरह से बात की जाए। उतनी ही जल्दी हम लोग उस चित्त को हलका आपको पता है कि संसार में हर जगह आज सहजयोगी उत्क्रांति की ओर, evolution की ओर चित्त परमेश्वर से जाकर मिलता है। यही चित्त उस बढ़ रहा है। बहुत से सहजयोगी बड़ी ऊँची दशा सर्वव्यापी, परमेश्वर के प्रकाश में जा कर डूब जाता में चले गए हैं। आनंद के स्रोत उनके अंदर बह रहे है । यही मानव का चित्त जो कि हम प्रकृति का रूप हैं। कुछ तो बिल्कुल निमित्तमात्र हो करके ही समझते हैं, प्रकृति का जो ये फूल है वो परमात्मा के संसार में एक विशेष रूप से कार्यान्वित हैं। लेकिन प्रेम सागर में विसर्जित हो जाता है । लेकिन ये चित्त हर एक देश की एक अपनी अपनी, मैं देखती हैं कि कितना बोझिल है, कितना अव्यवस्थित है. कभी परिपाटी है। मानव हर जगह एक ही है। इसमें कभी देखते ही बनता है। कोई अंतर नहीं है और सहजयोग एक अन्तर्तम की ही व्यवस्था है जिसका कि बाह्य से कोई सम्बंध है कितने आनंद में उतरे, आप कितने शांति में उतरे, ही नहीं। तो भी चित्त जो कि प्रकृति का एक स्वरूप है, जिसे हम कुण्डलिनी के नाम से जानते सहजयोग को Read More …

Talk to Sahaja Yogis Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Updesh – Bhartiya Vidya Bhavan – II 18th March 1975 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi इसका कैन्सर ठीक कर दो। हमारी बहन का ये ठीक कर दो। क्यों आखिर क्यों किया जाये! फिर माँ को दर दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। हर एक को जा के माँगना पड़ता है। ये जो बड़े बड़े रईस लोग हैं, इनका ये है कि हमारे बहन को ठीक कर दो, हमारी माँ को ठीक कर दो। और जिस वक्त पैसा देने को आया तो, हाँ, तो चॅरिटी के मामले में तो हमसे कोई वास्ता नहीं। एक मैं बता देती हूँ कि जिन लोगों ने ऐसा काम किया है, उनको मैं ब्लैक लिस्ट कर देंगी। बड़े बड़े लोग हैं और उनका नाम भी मैं सबको बताऊंगी। और आपके सामने ऐसे लोग जरूरी आना चाहिये । सब का मैं नाम बताऊंगी। छोड़ंगी नहीं मैं किसी को। (मराठी – हे घ्या. कोणी ठेवलं? त्यांचं नाव लिहा. साइड में बातचीत) बैठो बेटा, बैठो। अपना नाम लिखा लो। रसीद भी ले लो कायदे से। इसमें से कोई भी पैसा इधर उधर जाने वाला नहीं। लिख लीजिये। कोई भी पैसा इसका हम रखना ही नहीं चाहते हैं। जो जमीन ले रहे हैं, जगह ले रहे हैं, जमीन क्या वो तो फ्लैट ही है। वहाँ पे हॉल बना रहे हैं। इसलिये वो लगा लेंगे। इधर उधर जाने का कोई सवाल ही नहीं। मेरे जाने से पहले ही सब ठीक ठाक कर देंगे वो। कोई उसमें गड़बड़ की बात नहीं है। आपका रुपया किसी Read More …

Public Program, Chitt apni aur rakhiye मुंबई (भारत)

Chitt Apni Aur Rakhiye   Date:5th March 1975 Place: Mumbai   Type: Seminar & Meeting speech   Language: Hindi अभी कल मैंने आपसे बताया था कि सहजयोग में जब आप पार हो जाते हैं, तो क्या चीज़ हो जाती है। किस तरह से आप गुणातीत में उतरते हैं और गुणातीत में उतर के आप किस तरह से अपनी चेतना में चैतन्य लहरियों को देखते हैं। और उनके द्वारा दूसरों का उद्धार करते हैं, ये गुणातीत का आशीर्वाद है, ये कलियुग का भी बड़ा भारी आशीर्वाद है। और इसकी भविष्यवाणी पहले बहुत बार हो चुकी है, कि कलियुग में जब बहुत से लोग परमात्मा को खोजते हुए जंगलों में, कंदरों में और बड़ी-बड़ी कठिन तपस्या में संन्यस्त भाव से वहाँ तपाचरण कर रहे थें।  उनकी भक्ति का फल, उनके पाचारण का फल कलियुग में होने वाला है।  जहाँ पर कि सहज में ही कुण्डलिनी  की  जागृति हो कर के और सामूहिक उद्धार होगा, कल्याण होगा, मंगल होगा, लोग पार होंगे। सो तो सहजयोग की बात सही है और जिसके बारे में कहा है, वो भी सही बात है, क्योंकि सहज जो है वही एक तरीका प्रकृति का है। प्रकृति का अपना तरीका कोई सा भी असहज नहीं है।  सब चीज़ सहज होती है, जैसे अपना श्वास लेना।  हर तरह का काम जो प्रकृति करती है, जीवंत कार्य, वो सारा ही सहज होता है। लेकिन सहजयोग में एक सहज होने के नाते कुछ प्रशन भी खड़े हो जाते हैं। या जिसको कहना चाहिये कि मनुष्य इतना असहज है। मनुष्य ने अपने को इतना Read More …

Public Program, Sharirik bimariya Vibration se thik ho sakti hai Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Bimariya Chaitanya Se Thik Ho Sakti Hai Date 16th February 1975 : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi आज के लिये एक माँ के स्वरूप से मैं इस …. आयी हूँ, जिसका नाम बहुत अदुभुत है। पर हो सकता है, कि आपको विश्वास ही न हो, कि एक साधारण स्त्री, आप ही के जैसी, घर गृहस्थी में रहने वाली इस तरह की….. में कैसे आयी ? उस … का नाम है सहज मोक्ष। पहले कि हम ये जानें कि सहज क्या चीज़ है, ये जान लेना चाहिये की मोक्ष क्या है? सॅल्वेशन किसे कहते हैं? हम इस संसार में किसलिये आये? मनुष्य की उत्पत्ति क्यों हुई ? मनुष्य विशेष रूप में क्यों बनाया गया?  परमेश्वर ने एक विशेष कलाकृति से इस सुंदर जीव को क्यों इतनी सारी शक्तियाँ दी ? ये समझने के बाद ही आप जान पायेंगे कि आपका सारा अस्तित्व, आपका पूरा एक्सिसटेन्स  ही आपको अत्यंत आनंद में डुबोने के लिये हुआ है। उसके लिये परमात्मा ने बड़ी मेहनत की। अब आप में ऐसे भी लोग हो सकते हैं, कि जो ये कहेंगे कि माताजी, परमात्मा कहाँ है ? हमको उनसे मिलवाएँ  …. पहली सीढ़ी से ही शुरू करना पडता है। परमात्मा है या नहीं ये बात बहुत आसानी से समझ आती है, अगर आप साइन्स टीचर है। साइन्स में ही अब सिद्धता हो गयी हैं, कि परमात्मा हैं। आप किसी केमिस्ट्री वाले आदमी से जाकर पूछिये कि दुनिया भर के जितने भी एलिमेंट्स हैं, उनको किस प्रकार व्यवस्थित रूप से परमात्मा ने एक के Read More …

Dhyan Aur Prathna, Second Talk मुंबई (भारत)

Dhyan Aur Prathna, Second Talk सहजयोग में सबसे आवश्यक बात ये है, कि इसमें अग्रसर होने के लिये, बढ़ने के लिये आपको ध्यान करना पड़ेगा| ध्यान बहुत ज़रूरी है|  आप और चाहे कुछ भी न करें लेकिन अगर आप ध्यान में स्थित रहें, तो सहजयोग में प्रगति हो सकती है| जैसे कि मैंने आपसे कहा था कि एक ये नया रास्ता है| नया आयाम है, dimension है; नई चीज़ है जिसमें आप कूद पड़े है| आपके अचेतन मन में, उस महान सागर में आप उतर गये हैं, बात तो सही है| लेकिन इसकी गहराई में अगर उतरना है, तो आप को ध्यान करना पड़ेगा| मैं बहुत से लोगों से ऐसा भी सुनती हूँ कि “माता जी, ध्यान के लिए हमको time (समय) नहीं मिलता है|” आज का जो आधुनिक मानव है, modern man है, उसके पास घड़ी रहती है, हर समय time बचाने के लिये, लेकिन वो ये नहीं जनता है कि वो time किस चीज के लिए बचा रहा है? उसने घड़ी बनाई है वो सहजयोग के लिये बनाई है, ये वो जानता नहीं है| एक साहब मुझ से कहने लगे कि “मुझे लंदन जाना बहुत ज़रूरी है और इसी plane (हवाई जहाज) से जाना ही है और किसी तरह मेरा टिकट बुक होना ही चाहिये और कुछ कर दिजिये आप, और Air-India वालों से कह दिजिये और कुछ कर दिजिये…|” मैंने कहा ऐसी कौन-सी आफत है? आप लंदन क्यों जाना चाहते हैं? ऐसी कौन सी आफत है? क्या विशेष कार्य आप वहां करने वाले हैं? कौन सी चीज Read More …

Talk to Yogis, Must listen every day मुंबई (भारत)

मैं आज फिर से बता रही हूं कि निर्विचारिता आपका किला है….(योगियों से बातचीत, मुंबई, 25 जनवरी 1975 ) केवल एक ही तरीका है जो मैं हजारों बार बता चुकी हूं और आज फिर बता रहीं हूं कि निर्विचारिता आपका किला है। निर्विचारिता में कुछ भी आप जानें तो आप सब कुछ जान जायेंगे। जो कुछ भी आप करना चाहते हैं तो निर्विचारिता में चले जाइये। एक बार जब आप निर्विचारिता में सांसारिक कार्यों को करने लगते हैं तो आपको पता चलेगा कि यह कितना गतिशील या डायनेमिक हो चुका है। फूलों को खिलते हुये या फल बनते हुये किसने देखा है ? किसने इस संसार के जीवंत कार्यों को होते हुये देखा है? ये कार्य हो रहा है। आप इस क्रियाशीलता और जीवंत क्रिया में गति कर रहे हैं। ये सब निर्विचारिता में ही आ रहा है। जब आप वहां बैठे होते हैं तो पूरा विश्व पीला हो उठता है। निर्विचारिता में रहने का प्रयास करें। सारा कार्य निर्विचारिता के माध्यम से होता है और आपका भी होगा। अपने ही अंदर आपको गति करनी होगी। इसके लिये कोई आयु सीमा नहीं है कि अब हम बूढ़े हो चके हैं। आप बूढ़े नहीं हैं। आपका पुनर्जन्म तो अभी तीन चार वर्ष पहले ही हुआ है। अभी तो आप बहुत छोटे बच्चे हैं। ये उम्र का प्रश्न नहीं है। आपको तो बस निर्विचारिता में रहना है। यही आपका स्थान है…. आपकी शक्ति और आपकी संपत्ति है। ये आपका आकार है … आपकी सुंदरता है … आपका जीवन है …. निर्विचारिता। जैसे Read More …

Talk to Sahaja Yogis, Kshma Ki Shakti Ka Mahatav, Power of Forgiveness मुंबई (भारत)

Kshama Ki Shakti Ka Mahatva IV 20th January 1975 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] कलयुग में क्षमा के सिवाए और कोई भी राक्षस है। आपके चित्त में घुसे हुए हैं । बात समझ बड़ा साधन नहीं है। और जितनी क्षमा की शक्ति में आई? अगर कोई साधु ही सिर्फ हो तो ठीक है। होगी उतने ही आप शक्ति शाली होंगे । सबको क्षमा परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्क ताम्। साधु कर दें। क्षमा वही कर सकता है जो बड़ा होता है। के साथ एक दुष्ट बैठा हुआ है तो बहुत ही प्रेम से छोटा आदमी क्या क्षमा करेगा? आज मैंने सवेरे अलग हटाना पड़ेगा कि नहीं? कितना कठिन काम कहा था कि धर्म को जानें, आपके अन्दर जो धर्म है? आप साधुता में खड़े है या आप दुष्टता में खड़े है उसको जानें। धर्म में खड़े हैं, जो आदमी धर्म में हैं यह आप पर निर्भर करता है। अगर आप साधुता खड़ा है उसकी कितनी शक्ति होती है! तो धर्म को में खड़े हैं और कोई दुष्टता चिपक रही है तो जाने। हाँ कितना सुन्दर हम धर्म में खड़े हैं, जो उसको हटा सकते हैं। लेकिन आज ऐसे अधर्म में खड़ा है वह तो अधर्मी है। उसका हमारा कितने हैं संसार में बताईए। Degree का फर्क है कोई मुकाबला नहीं है। वह तो अधर्म में खड़ा है। और जो लोग सधुता की ओर जा रहे हैं वे लोग हम तो धर्म में खड़े हुए है, Read More …

Public Program Nagpur (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date 22nd December 1973 : Place Nagpur Public Program Type : Speech Language Hindi मेरा मतलब नागपुर के लोगों के ही सामने. बहुत पहले से ही ऐसे कुछ, सहज में ही कहना चाहिये, ऐसे कुछ समय आये, कि मुझे भाषण देने पड़े। बहुत बड़े बड़े जमावों के सामने, कहना चाहिये हजारो लोग यहाँ थे। १९३० की बात है, जब कि गांधी जी ने उपोषण किया था। मेरे पिताजी भी बड़े अच्छे वक्ता थे। आप सब उनके बारे में जानते होंगे। लेकिन उनको जरूरी काम से घर जाना पड़ा। सब लोगों ने कहा, सालवे साहब आप भाषण नहीं दीजियेगा तो सब लोग भाग जाएंगे। काम कैसे बनेगा? कहने लगे, ‘मैं तो जा रहा हूँ। मेरी लड़की जो मेरी धरोहर है उसे रख के जा रहा हूँ। और मैं लौट के आऊँगा उसके बाद भाषण दूँगा।’ लेकिन बहुत देर होगी वो लौटे नहीं। तो सब लोगों ने कहा कि, ‘भाई, वो तो आये नहीं । अब इनकी लड़की, धरोहर है उनको धरते हैं। अब कैसे होगा? भाषण कौन देगा? और चिटणीस पार्क के लोग हैं । कहीं बिगड़ गये तो पत्थर मारना शुरू कर देंगे।’ तो वहाँ एक साहब बैठे थे। उन्होंने कहा कि, ‘उन्हीं से कहिये भाषण देने के लिये, कि क्या आप भाषण देंगी?’ वो हमसे पूछे कि, ‘क्या आप भाषण देंगी?’ मैंने कहा कि, ‘हम देंगे।’ तब मेरी उमर सिर्फ सात साल की थी। उस वक्त के कुछ लोग हो तो उन्हें याद होगा कि मैंने पंधरह बीस मिनट तक काफ़ी अच्छा सा भाषण दिया था। बुढ्ढा-बुढ्टी Read More …

Public Program, Shri Dattatreya Jayanti Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date 9th December 1973 : Place India Public Program Type : Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 – 12 Hindi English Marathi || Translation English Hindi Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK श्री दत्त जयंती है। आज का दिन बहुत बड़ा है। इन्ही की आशीर्वाद से मैं सोचती हूँ कि ये आज का दिन आया हुआ है, जो आप लोगों में सहजयोग पल्लवित हुआ। सारे गुरुओं के गुरु, आदिगुरु श्रीदत्तमहाराज, उनका आज महान दिवस है। उनको मैं नमस्कार करती हूँ। उन्होंने मुझे अनेक जन्मों में सहजयोग पर बहुत सिखाया है। और उसी के फलस्वरूप इसी जन्म में भी मैं कुछ कार्य कर सकती हूँ। ‘गुरुब्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।’ आद्यशक्ति ने जब सब सृष्टि की रचना की। सारी सृष्टि की रचना करने के बाद जैसे एक राजा अपना राज्य फैलाता है और उसके बाद भेष बदल के इस संसार को देखने आता है, इस तरह आदिशक्ति भी बार बार संसार में अवतरित हुई। लेकिन चाहे शक्ति कितनी भी ऊँची हो, उसे एक मनुष्य गुरु की जरूरत है। मनुष्य का स्थान उस शक्ति से ही है। अगर शक्ति को मानव रूप धारणा करनी है, तो कभी उसे पिता के स्वरूप, कभी उसे भाई के विष्णु- महेश इन देवों से जब सारी सृष्टि की रचना की, उस वक्त इस संसार में फँसे हये लोगों को बाहर निकालने का विचार स्वरूप, कभी उसे बेटे के स्वरूप पा कर ही वो संसार में आयी। सर्वप्रथम ऐसा ही समझें कि ब्रह्मा- आदिशक्ति के मन में Read More …

Public Program Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Public Program, Sarvajanik Karyakram – Birla Kendra Date 8th December 1973 : Place Mumbai [5 first minutes of the talk is not transcribed] ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK .बीचोंबीच जाने वाली शक्ति उनसे जा कर के हमारे रीढ़ की हड्डिओं के नीचे में जो त्रिकोणाकार अंत में जो अस्थि है उसमें जा के बैठ जाती है। इसी को हम कुण्डलिनी कहते हैं। क्योंकि वो साढ़े तीन वर्तुलों में रहती है, कॉइल्स में रहती है, कुण्डों में रहती है। और जो दो शक्तियाँ बाजू में मैंने दिखायी हुई हैं, ये भी उसी त्रिकोणाकार, लोलक जैसे, प्रिजम जैसे ब्रेन में से घुस कर के और आपस में क्रॉस कर के नीचे जाती हैं। इस तरह से अपने अन्दर तीन शक्तियाँ मैंने यहाँ दिखायी हुई हैं। एक जो बीचोबीच में से जा कर नीचे बैठ जाती है और दो बाजू में जाती हैं । उसके अलावा लोलक की जो दुसरी साइड है या दिमाग की जो दूसरी साईड है उस में से भी जो शक्तियाँ जाती हैं वो दिखा नहीं रही हूँ। जिसे की हम सेंट्रल न्वस सिस्टीम कहते हैं। ये जो यहाँ मैंने तीन संस्था दिखायी हुई हैं, उसके जो बीचोंबीच संस्था है, उसे हम कुण्डलिनी कहते हैं। इसके अलावा जो संस्थायें हैं वो किस तरह से क्रॉस कर जाती हैं आप देख रहे हैं और क्रॉस करने के नाते इस में दो तरह के प्रवाह होते हैं। एक बाहर की ओर, और एक अन्दर की ओर। जो अन्दर की ओर प्रवाह जाता है, उसी से हमारे अन्दर पेट्रोल भरा जाता है। और Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

 1973/11/17 Public Program, New Delhi   जानवर में, जो प्रश्न होते ही नही है, जो मनुष्य में होते है। जानवर के लिए तो कोई प्रश्न ही नही होता है, वो सिर्फ जीता है। जिस शक्ति के सहारे वो जीता है, उसकी ओर भी, उसका कोई प्रश्न नही होता है कि  वो कौन सी शक्ति है, कि जिसके सहारे मैं जीता हूँ। उसकी वजह ऐसी है, कि ये चैतन्य शक्ति है , क्योंकि सारी सृष्टी की रचना करती है, उसकी चालना करती है उसकी व्यवस्था करती है। वो प्राणीमात्र में बहती हुई और गुजर जाती है। क्योंकि इंसान ने उसके एक विशेष कारण , उसके एक विशेष तरह के जीवन, से संबंधित ऐसी कुछ रचनाऍ हो जाती है कि जिससे मनुष्य उस शक्ति से वंचित हो जाता है। इसको अगर हम समझे तो साधारण शब्दो में इस तरह से कहा जाएगा कि मनुष्य में जो अहंकार हो जाता है वो प्राणीमात्र में नही होता। मनुष्य की दिमागी, हार जो है वो बहुत ही और तरह की है| उसका दिमाग एक त्रिकोणाकार है और इस त्रिकोण में जब ये शक्ति, बच्चा तीन महीने के माँ के गर्भ में होते समय अंदर की ओर गुजरती है, तो वो एक रिफरेकशन (अपवर्तन) जिसे अंग्रेजी में कहते है, विलिनीकरण जिसे कहते है, विकेंद्रिकरण कहते है उससे तीन हिस्सो में बट जाती है। एक तो हिस्सा जो कि सर के माथे के पीछे सीधा ही नीचे गुजर के जाता है और बाकी दो हिस्से जो कि सर के दो कोणो में से नीचे गुजर के और घुम करके पीछे की ओर चला जाता [है]। इस तीन Read More …

Guru Purnima, Sahaja Yoga a New Discovery मुंबई (भारत)

Guru Purnima Puja. Mumbay (India), 1 June 1972. Transcript Scanned from Hindi Chaytanya Lahari वास्तविक जो चीज स्थित है, जो है ही उसका अविष्कार कैसे होता है? जैसे कि कोलम्बस हिन्दुस्तान खोजने के लिए चल पड़ा था तब क्या हिन्दुस्तान नहीं था? यदि नहीं होता तो खोज किस चीज की कर रहा था। सहजयोग तो है ही पहले ही से है। इसका पता सिर्फ अभी लगा है। सहजयोग, ये परम तत्व का अपना तरीका है। यह एक ही मार्ग है, मानव जाति को उत्क्रान्ति (Evolution) के उस आयाम में उस (Dimension) में पहुँचाने का एक तरीका है, एक व्यवस्था है, जिससे मानव उच्च चेतना से परिचित हो जाए. उस चेतना से आत्मसात हो जाए जिसके सहारे ये सारा संसार, सारी सृष्टि और मानव का हृदय भी चल रहा है। बहुत कुछ इसके बारे में लिखा गया है, पुरातन कालों से ही खोज होती रही, मनुष्य खोज कुछ रहा ही है हर समय, चाहे वो पैसे में खोज ले, चाहे वो सत्ता में खोज ले चाहे वो प्रेम में खोज ले, वो किसी न किसी खोज की ओर दौड़ रहा है। लेकिन उस खोज के पीछे में कौन सी • प्यास है वो शायद वो जानता नहीं। इसके पीछे में सिर्फ आनन्द की खोज है, आनन्द की खोज में वो सोचता है कि बहुत सी गर सम्पत्ति इकट्ठा कर ले तो उस आनन्द में लय हो सकता है। लेकिन ऐसे भी देश अनेक हैं जिन्होंने सम्पत्ति में बहुत कुछ प्रगति कर ली, बहुत कुछ पा लिया है और अत्यन्त दुखी हैं। Read More …