Diwali Puja पुणे (भारत)

Diwali Puja 1st November 1986 Date : Place Pune Type Puja Speech Language Hindi दिवाली के शुभ अवसर पे हम लोग यहाँ पुण्यपट्टणम में पधारे हैं। न जाने कितने वर्षों से अपने देश में दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है। लेकिन जब से सहजयोग शुरू हुआ है, दिवाली की जो दीपावली है वो शुरू हो गयी । दिवाली में जो दीप जलायें जाते थे , वो थोड़ी देर में जाते हैं। बुझ फिर अगले साल दूसरे दीप खरीद के उस में तेल डाल कर, उस में बाती लगा कर दीपावली मनायी जाती थी। इस प्रकार हर साल नये नये दीप लाये जाते थे। दीप की विशेषता ये होती थी, कि पहले उसे पानी में डाल के पूरी तरह से भिगो लिया जाता था| फिर सुखा लिया जाता था। जिससे दीप जो है तेल पूरा न पी ले और काफ़ी देर तक वो जले। लेकिन जब से सहजयोग शुरू हुआ है तब से हम लोग हृदय की दिवाली मना रहे है। हृदय हमारा दीप है। हृदय में बाती है, शांत है और उसमें प्रेम का तेल डाल कर के और हम लोग दीप जलाते हैं। इस तेल को डालने से पहले इस हृदय में जो कुछ भी खराबियाँ हैं उसे हम पूरी तरह से साफ़ धो कर के सुसज्जित कर लेते है। ये प्रेम हृदय में जब स्थित हो जाता है, तब उसको हृदय पूरी तरह से अपने अन्दर शोषण नहीं कर लेता। जैसे पहले कोई आपको प्रेम देता है, माँ देती है प्रेम, पिताजी देते हैं प्रेम और भी लोग Read More …

Public Program कोलकाता (भारत)

1986-10-12 Calcutta Public Program (Hindi) और आप सबसे मेरी विनती है, कि जो लोग परमात्मा की खोज में भटक रहे हैं, उन्हें भी पहले संगीत का आश्रय लेना पड़ेगा – उसके बगैर काम नहीं बनने वाला। क्योंकि अपने भारतीय संगीत की विशेषता यह है कि यह अत्यंत तपस्विता से और मेहनत से ही मिलती है। उसकी गंभीरता, उसकी उड़ान, उसका फैलाव, उसकी गहराई, उसकी नज़ाकत, सब चीज़ों में परमात्मा के दर्शन मनुष्य को हो सकते हैं। और सारा ही संगीत उस ओम(ॐ) से निकला है, जिसे लोग रूह के नाम से जानते हैं। इसलिए, जब इस संगीत से मनुष्य तल्लीन हो जाता है, उसके लिए आसान है कि वो परमात्मा को पाए। शायद आपको मेरी बात कुछ काव्यमय लगे और कुछ यथार्थ से दूर प्रतीत हो, शायद ऐसा अहसास हो कि मैं कोई बात को इस तरह से कह रही हूँ, जैसे कि संगीत कलाकारों को आनंद आये, किन्तु यह बात सच नहीं है। अपने अंदर भी सात चक्र हैं और सब मिला कर के बारह चक्र हैं, उसी प्रकार संगीत में भी सात स्वर और पांच और स्वर मिला कर के पूरा एक स्केल बन जाता है। हमारे चक्रों में जब कुण्डलिनी गति करती है, और जो स्वर उठाती है, वही स्वर हमारे संगीत में माने गए हैं। हमारा भारतीय संगीत बड़े दृष्टों ने, ऋषियों ने, मुनियों ने पाया हुआ है। वह चाहे किसी भी धर्म के रहे हों, वह किसी भी देश के हिस्से में पैदा हुए हों, उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम वह कहीं भी उनका जन्म हुआ Read More …

Sahajyog ke Anubhav कोलकाता (भारत)

Sahajyog ke Anubhav Sahajyog Ke Anubhav31st March 1986Place KolkataPublic ProgramSpeech Language Hindi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK सत्य को खोजने वाले सभी साधकों को हमारा प्रणिपात! सत्य क्या है, ये कहना बहुत आसान है। सत्य है, केवल सत्य है कि आप आत्मा हैं। ये मन, बुद्धि, शरीर | अहंकारादि जो उपाधियाँ हैं उससे परे आप आत्मा हैं। किंतु अभी तक उस आत्मा का प्रकाश आपके चित्त पर | आया नहीं या कहें कि आपके चित्त में उस प्रकाश की आभा दृष्टिगोचर नहीं हुई। पर जब हम सत्य की ओर नज़र करते हैं तो सोचते हैं कि सत्य एक निष्ठर चीज़ है। एक बड़ी कठिन चीज़ है। जैसे कि एक जमाने में कहा जाता था कि ‘सत्यं वदेत, प्रियं वदेत।’ तो लोग कहते थे कि जब सत्य बोलेंगे तो वो प्रिय नहीं होगा। और जो प्रिय होगा वो शायद सत्य भी ना हो। तो इनका मेल कैसे बैठाना चाहिए? श्रीकृष्ण ने इसका उत्तर बड़ा सुंदर दिया है। ‘सत्यं वदेत, हितं वदेत, प्रियं वदेत’ । जो हितकारी होगा वो बोलना चाहिए। हितकारी आपकी आत्मा के लिए, वो आज शायद दुःखदायी हो, लेकिन कल जा कर के वो प्रियकर हो जाएगा। ये सब होते हुए भी हम लोग एक बात पे कभी-कभी चूक जाते हैं कि परमात्मा प्रेम है और सत्य भी प्रेम ही है। जैसे कि एक माँ अपने बच्चे को प्यार करती है तो उसके बारे में हर चीज़ को वो जानती है। उस प्यार ही से उद्घाटन होता है, उस सत्य को जो कि उसका बच्चा है। और प्रेम की भी Read More …

7th Day of Navaratri, Shri Mahadevi Puja कोलकाता (भारत)

Shri Mahadevi Puja Date: 10th October 1986    Place: Kolkata    Type: Puja Speech Language: Hindi आज पूजा में पधारे हुए सभी भाविकों को और साधकों को हमारा प्रणिपात! इस कलियुग में माँ की इतनी सेवा, इतना प्यार, और इतना विचार जब मानव हृदय में आ जाता है  तो सत्ययुग की शुरूआत हो ही गयी। ये परम भाग्य है हमारा भी कि षष्ठी के दिन कलकत्ता में आना हआ। जैसा कि विधि का लेखा है, कि कलकत्ता में षष्ठी के ही दिन आया जाता है। षष्ठी का दिन शाकंभरी देवी का है। और उस वक्त सब दूर हरियाली छानी चाहिये। हालांकि यहाँ पर मैंने सुना कि बहुत जोर की बाढ़ आयी, लोगों को बड़ी परेशानी हुई। लेकिन देखती हूँ कि हर जगह हरियाली छायी हुई है। रास्ते टूटे गये थे, पर कोई पेड़ टूटा हुआ नज़र नहीं आया। मतलब ये कि सृष्टि जो कार्य करती है, उसके पीछे कोई न कोई एक निहित, एक गुप्त सी घटनायें होती हैं। कलकत्ता का वातावरण अनेक कारणों से प्रक्षुब्ध है और अशुद्ध भी हो गया है। इसे हमें समझ लेना चाहिये, ये बहुत जरूरी है। इसीलिये देवी की अवकृपा हुई है या कहना चाहिये कि सफ़ाई हुई है।  कलकत्ते में, जहाँ कि साक्षात देवी का अवतरण हुआ। उनका स्थान यही है, जो कि सारे विश्व का हृदय चक्र यही पे बसा हुआ है।  ऐसी जगह हम लोगों ने बहुत ही अधार्मिक कार्यों को महत्त्व दिया है। और सबसे बड़ा अधार्मिक कार्य तांत्रिकों को मानना है। तांत्रिक तो वास्तविक में माँ ही है जो Read More …

Navaratri, Shri Gauri Puja पुणे (भारत)

Shri Gauri Puja 5th October 1986 Date : Place Pune Type Puja Speech Language Hindi & Marathi पूना शहर का नाम वेदों में, पूराणों में सब जगह मशहूर है । इस को पुण्यपट्टणम कहते है। पुण्यपट्टणम और इस जगह जो नदी बहती है उसका नाम है मूल नदी | जो यहाँ से मूल बहता है, ऐसी ये नदी | यहाँ पर हजारों वर्षों से बह रही है और इस भूमी को पूरण्यवान बना रही है। हम लोगों को पुण्य के बारे में पूरी तरह से मालूमात नहीं है । बहुत से लोग सोचते है अगर हम गरीबों को कुछ दान दे दें या कोई चीज़ किसी को बाँट दें या कभी हम सच बोले या थोडी बहुत कुछ अच्छाई कर लें तो हमारे अन्दर पुण्य समा जाता है। इस तरह का पुण्य संचय होता तो होगा लेकिन वो एक बुँद, बुँद, बुँद बनकर के न जाने कब सरोवर हो सकता है। पुण्य का जो अर्थ है, उसको जैसा जाना गया है कि ऐसे कार्य करना कि जिसे परमात्मा संतोषित हो, जिसे परमात्मा खुष हो ऐसे कार्य हमें करने चाहिए । और जो आदमी ऐसे कार्य करता है वही पुण्यवान आत्मा होता है क्योंकि जब वो परमात्मा को खुष कर देता है, उस पर जो आशीर्वाद परमात्मा के आते है वो उसको पुण्यवान बना देते है। परमात्मा की शक्तियाँ उसके अन्दर आ जाती है वो उसके अन्दर एक नयीं चेतना कहिए या नया व्यक्तित्व कहिए, एक नयी हैसियत कहिए प्रगट करती है। उस हैसियत में मनुष्य ऐसा हो जाता है कि Read More …

Public Program, About all chakras कोलकाता (भारत)

Samast Chakra Date 2nd April 1986 : Place Kolkata Public Program Type Speech Language Hindi सहजयोग की शुरुआत एक तिनके से हुई थी जो बढ़कर आज सागर स्वरूप हो गया है। लेकिन इससे अभी महासागर होना है। इसी महानगर में ये महासागर हो सकता है ऐसा अब मुझे पूर्ण विश्वास हो गया है। आज आपको मैं सहजयोग की कार्यता तथा कुण्डलिनी के जागरण से मनुष्य को क्या लाभ होता है वो बताना चाहती हूँ। माँ का स्वरूप ऐसा ही होता है कि अगर आपको कोई कड़वी चीज़ देनी हो तो उसपे मिठाई का लेपन कर देना पड़ता है। किंतु सहजयोग ऐसी चीज़ नहीं है । सहजयोग पे लेपन भी मिठाई का है और उसका अंतरभाग तो बहुत ही सुंदर है। सहजयोग, जैसे आपने जाना है, सह माने जो आपके साथ पैदा हुआ हो। ऐसा जो योग का आपका जन्मसिद्ध हक्क है, वो आपको प्राप्त होना चाहिये। जैसे तिलक ने कहा था, बाल गंगाधर तिलक साहब ने भरी कोर्ट में कहा था, कि जनम सिद्ध हक्क हमारा स्वतंत्र है। उसी तरह हमारा जनम सिद्ध हक्क ‘स्व’ के तंत्र को जानना है। ये ‘स्व’ का तंत्र परमात्मा ने हमारे अन्दर हजारो वर्ष संजोग कर प्रेम से अत्यंत सुंदर बना कर रखा हुआ है। इसलिये इसमें कुछ करना नहीं पड़ता है। सिर्फ कुण्डलिनी का जागरण होकर आपका जब सम्बन्ध इस चराचर में फैली हुई परमात्मा की प्रेम की सृष्टि से, उनके प्रेम की शक्ति से एकाकार हो जाती है तब योग साध्य होता है और उसी से जो कुछ भी आज तक वर्णित Read More …

Birthday Puja कोलकाता (भारत)

Shri Mahakali Puja Date 1st April 1986: Place Kolkata Type Puja २१ मार्च से हमारा जन्मदिवस आप लोग मना रहे हैं और बम्बई में भी बड़ी जोर-शोर से चार दिन तक जन्म दिवस मनाया गया और इसके बाद दिल्ली में जनम दिवस मनाया गया और आज भी लग रहा है फिर आप लोग हमारा जन्म दिवस मनाते रहे। इस कदर सुंदर सजाया हुआ है इस मंडप को, फूलों से और विविध रंगों से सारी शोभा इतनी बढ़ाई हुई है कि शब्द रुक जाते हैं, कलाकारों को देख कर कि उन्होंने किस तरह से अपने हृदय से यहाँ यह प्रतिभावान चीज़ बनाई इतने थोड़ी समय में। आज विशेष स्वरूप ऐसा है कि अधिकतर इन दिनों में जब कि ईस्टर होता है मैं लंदन में रहती हूैँ और हर ईस्टर की पूजा लंदन में ही होती है। तो उन लोगों ने यह खबर की, कि माँ कोई बात नहीं आप कहीं भी रहें जहाँ भी आपकी पूजा होगी वहाँ हमें याद कर लीजिएगा और हम यहाँ ईस्टर की पूजा करेंगे उस दिन। इतने जल्दी में पूजा का सारा इन्तजाम हुआ और इतनी सुंदरता से, यह सब परमात्मा की असीम कृपा है जो उन्होंने ऐसी व्यवस्था करवा दी। लेकिन यहाँ एक बड़ा कार्य आज से आरंभ हो रहा है। आज तक मैंने अगुरुओं के विषय के बारे में बहुत कुछ कहा और बहुत खुले तरीके से मैंने इनके बारे में ये कितने दुष्ट हैं, कितने राक्षसी हैं और किस तरीके से ये सच्चे साधकों का रास्ता रोकते हैं और उनको बताया; गलतफहमी में Read More …

Public Program (भारत)

॥ जय श्री माता जी ।। धर्मशाला 31-03-85 धर्मशाला के मातृभक्तों को मेरा प्रणाम ! यहाँ के मन्दिर की कमेटी ने ये आयोजन किया, जिसके लिए मैं उनका बहुत धन्यावाद मानती हूँ। असल में इतना सत्कार और आनंद, दोनों के मिश्रण से हृदय में इतनी प्रेम की भावना उमड़ आयी है कि वो शब्दों में ढालना मुश्किल हो जाता है। कलियुग में कहा जाता है कि कोई भी माँ को नहीं मानता । ये कलयुग की पहचान है कि माँ को लोग भूल जाते हैं। लेकिन अब ऐसा कहना चाहिए कि कलियुग का समय बीत गया, जो लोगों ने माँ को स्वीकार किया है । माँ में और गुरू में एक बड़ा भारी अन्तर मैंने पाया है, कि माँ तो गुरू होती ही है, बच्चों को समझाती है, लेकिन उसमें प्यार घोल – घोल कर इस तरह से समझा देती है कि बच्चा उस प्यार के लिए हर चीज करने को तैयार हो जाता है । ये प्यार की शक्ति, जो सारे संसार को आज ताजगी दे रही है, जो सारे जीवन्त काम कर रही है, जैसे ये पेड़ का होना, उसकी हरियाली, उसके बाद एक पेड़ में से हो जाना और फूल में फूल से फल हो जाना, ये जितने भी कार्य हैं, जो जीवन्त कार्य हैं, ये कौन करता है? ये सब करने वाली जो शक्ति है वो परमात्मा की प्रेम की शक्ति है। उसी को हम आदि शक्ति कहते हैं। परमात्मा तो सिर्फ नज़ारा देखते हैं कि उनकी शक्ति का कार्य कैसे हो रहा है? जब उनको Read More …

Devi Puja (भारत)

देवी पूजा धर्मशाला, ३०.३.१९८५ आज के शुभ अवसर पर यहाँ आए हैं। आज देवी का सप्तमी का दिन हैं। सप्तमी के दिन देवी ने अनेक राक्षसों को मारा, अनेक दुष्टों का नाश किया, विध्वंस कर डाला। क्योंकि संत -साधु जो यहाँ पर बैठे हुए तपस्या में संलग्न हैं उनको ये लोग सताते थे। हम लोग सोचते हैं कि माँ ये क्यों, क्यों इन्होंने इतनी तपस्या की। इनको क्या जरूरत थी इतना तप करने की, इतनी तपस्या करने की। वजह ये कि तब मनुष्य का तपका बहुत नीचा था। लेकिन आँख बहुत उन्नत थी। वो सोचते थे कि हम इस शरीर से उस आत्मा को प्राप्त कर लें। इसलिए उन्होंने इतनी मेहनत की और इस स्थान में बैठ करके इतनी तपस्विता की। आज उन्हीं की कृपा से हम लोग आज इतने ऊँचे स्थान पर बैठे हुए हैं। उन्हीं की कृपा से हमने पाया। इसका मतलब ये नहीं कि हम लोग इस सहजयोग को समझ लें कि हमारे लिए एक बड़ी भारी देन हो गयी , कोई हमे बड़े महान लोग हैं जिनको कि भगवान ने वरण कर लिया, हम लोग चुने हुए मनुष्य हैं और इस तरह की बातें सोचने वाले लोगों को मैं बताती हूँ बड़ा धक्का बैठेगा। ये देखेंगे की जो लोग यहाँ स्वभाव से अत्यन्त सुन्दर हैं, वे सबसे पहले आकाश की ओर उठेंगे और बाकी सब यही धरातल पर बैठे रहेंगे। जितनी जड़ वस्तु है सब यहीं रह जाएगी। इसलिए सिर्फ आपका साक्षात्कार होना पूरी बात नहीं है। मैं यही बात अंग्रेजी में कह रही थी, वही Read More …

Public Program Jaipur (भारत)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी, सार्वजनिक कार्यक्रम, 23 मार्च, 1985 जयपुर, राजस्थान, भारत श्री माताजी के आगमन पूर्व का दृश्य बहुत सारे साधकों से हॉल भरा हुआ है।  एक सहज योगी भाई नए लोगों को अंग्रेजी भाषा में संबोधित कर रहे हैं। उसके पश्चात श्रीमती सविता मिश्रा भजन प्रस्तुत करती हैं। भजन समाप्ति की उपरांत श्री योगी महाजन दर्शकों को संबोधित कर रहे होते हैं।  तभी श्री माताजी का आगमन होता है, और वे स्टेज पर तेजी से चढ़ते हुए हम सब को दर्शन देती हैं। सब को प्रणाम कर के वे अपनी सिंहासन पर विराजमान होती हैं। योगी महाजन  श्री माताजी का स्वागत कर के सहज योग के विषय में संक्षिप्त में बोलते हैं। तत्पश्चात उनके आमंत्रण पर डॉक्टर वारेन भी सहज योग का संक्षिप्त परिचय देते हैं। श्रीमती सविता एक और भजन प्रस्तुत करती हैं। श्री माताजी को माल्यार्पण किया जाता है और उनके साथ उपस्थित सज्जन को भी। (वे अंग्रेजी में कहती है की – आई विल स्टैंड एंड स्पीक) (श्री माताजी खड़ी हो गई हैं, और सब पर दृष्टि डालते हुए अपना भाषण आरंभ करती हैं) जयपुर के साधकों को हमारा प्रणाम। श्री कृष्ण ने तीन तरह के लोग संसार में बताए हुए हैं, जिन्हे के वे तामसिक, राजसिक और सात्विक कहा करते थे।  तामसिक वो लोग होते हैं, कि जो अच्छा और बुरा, शुभ अशुभ कुछ भी नहीं पहचानते, पर अधिकतर अशुभ की ही ओर दौड़ते हैं, अधिकतर गलत चीजों की ओर ही दौड़ते हैं। जब वो अति इस में घुस जाते हैं, तो Read More …

Mahashivaratri Puja New Delhi (भारत)

महाशिवरात्रि पूजा तिथि: 17 फरवरी 1985 स्थान: दिल्ली प्रकार: पूजा भाषण भाषा: हिंदी मूल प्रतिलिपि हिंदी बातचीत वाचन की गई है, हिंदी चैतन्य लहरी से स्कैन किया गया।  आज शिवरात्रि के इस शुभ अवसर पे हम लोग एकत्रित हुए हैं और ये बड़ी भारी बात है कि हर बार जब भी शिवरात्रि होती है मैं तो दिल्ली में रहती हूँ। हमारे सारे शरीर, मन, बुद्धि, अहंकार, सारे चीजों में सबसे महत्वपूर्ण चीज है आत्मा और बाकी    के सब कुछ बाह्य के उसके अवलम्बन है। आत्मा में हम अपने पिता प्रभु का प्रतिबिम्ब देखते हैं। कल आपको आत्मा के बारे में मैंने बताया था। वही आत्मा शिव स्वरूप है। शिव माने जो बदलता नहीं, जो अवतरित नहीं होता, जो अपने स्थान में पूरी तरह से जमा रहता है, जो अचल, अटूट, अनंत , ऐसा वर्णित है उस शिव की आज हम अपने अन्दर पूजा कर रहे है वो हमारे अन्दर प्रतिबिम्बित हैं कुण्डलिनी के जागरण से हमने उसे जाना है और उसका प्रकाश जितना-जितना प्रज्जवलित होगा उतना हमारा चित्त भी प्रकाशमय होता जाएगा। लेकिन इस शिव की ओर ध्यान देने की बहुत जरूरत है। शिव के प्रति पूर्णतयां उन्मुख होने के लिए इस तरफ पूरी तरह से ले  जाने के लिए. हमें जरूरी है कि ये समझ लेना चाहिए कि उसकी तैयारी क्या हो? जैसे एक कंदिल में आपने ज्योत बाल  दी लेकिन कंदिल इस योग्य न हुआ कि उस ज्योत को अपने अन्दर समा ले तो ये सब व्यर्थ है, ये सारा कार्य व्यर्थ हो जाएगा। वो चीज़ जो Read More …

Sahasrara – Atma New Delhi (भारत)

Sahastrar – Atma Date : 16th February 1985 Place Delhi Туре Public Program Speech Language Hindi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Nirmala Yog सत्य के खोजने वाले सभी साध्कों को हमारा प्रणाम । जीवित रहेंगे? यह हृदय का जो स्पन्दन है- अनहदू, हर आज का मधुर संगीत आज के विषय से बहत सम्बन्धित घड़ी अपने आप ही कार्यान्वित रहता है उसको चलाने के है जिसके लिए मैं देब चौधरी को बहुत-बहुत घन्यवाद देती लिए अगर हमें बाहुय से कोई उपचार करना पड़ता तो हूँ। सभी सहज व्यवस्था हो जाती है और आज संगीत में जो कितने लोग इस संसार में जीवित पैदा होते? ऐसी अनेक आपने सात स्वरों का खेल देखा, हमारे अंदर भी ऐसा ही चीजें जो जीवन्त हैं, हम देखते हैं। फल खिलते हैं अपने आप सुन्दर संगीत नि्माण हो सकता है। यह जो कण्डलिनी के और इनके फल भी हो जाते हैं अपने आप। यह ऋतम्भरा सात चक्र आप देख रहे हैं वे हैं मूलाधार चक्र, मलाधार, स्वाधिष्ठान, नाभि, हृदय, विश्द्धि, आज्ञा और सहस्रार। इसके अलावा हमारे अन्दर सूर्य और चन्द्र के भी चक्र हैं। ब्रहमरन्ध्र को छेदने के बाद भी तीन और चक्र हमारे अन्दर हैं और कार्य करते हैं जिन्हें हम अर्धबिन्द, बिन्दू और वलय कहते हैं। यह सार हमारे अन्दर स्वर हैं। जैसे “स” से शुरू करें तो “सा र गा मा पा धा नी” सहलार पर “नी” जाकर पहुँचता है। इसी प्रकार इन सब चक्रों को शक्ति देने वाले ऐसे ग्रह भी हैं। जैसे मूलाधार पर मंगल, स्वाधिष्ठान पर बुद्ध, नाभि Read More …

Talk on Holi day New Delhi (भारत)

Talk on Holi Day Date 17th March 1984 : Place New Delhi : Puja Type English & Hindi Speech Language contents Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Nirmala Yog] आप लोग रूपया तक देने भई सुबह चार बजे उठो, अगर कानफन्स है तो। से घबराते है । यह गलत वात जो जरूरी चोज है वह है ध्यान करना। जो बड़ा है। यह सुनकर तो मुझे बड़ा goal (उद्देश्य) है उसे देखना चाहिये। जो चीज आ्चय हुआ कि बम्बई के लोग है, बह है ज्यान करना। Conference (सभा) ह जो औ जरूरी चीज है, वो है ध्यान करना जो बड़ा यह goal सब में ककषमकश लगी रहेगी कि है उसे देखना चाहिए। दफ्तर थोड़ा सा आपने नहीं किया तो भी कुछ नहीं जायेगा, क्योंकि lower मंगिना पडता है। रूपया तो क भी बम्बई में goal (निम्न उदश्य) है । ऐसे हजारों दफ्तर वाले कम नहीं होता। आपको माजूम है कि वम्बई मैंने देख लिये जो कि फाइलों पर फाइल लाद के में लोग हज़ारों रुपया खर्च करते हैं और अपने मर गये लेकिन कोई पूछता भो नहीं कि कहां गये और यहाँ उन्होंने बना रखा है कि इतना रूपया हम कहाँ खत्म हो गए हजारों को में जानती है क्योंकि भगवान के माम पर रखेंगे। यह वड़ी शमें की बात मैंने जिन्दगी भर इन्हीं लोगों के साथ जिन्दगी काटी है कि इन लोगों को आपसे रूपया माँगना पड़ता है । तो दपतर की जो महत्ता है वो मैं अंब जानती हैं और इस तरह की चीजें नहीं होतो चाहिए Read More …

Public Program, Hridhay Aur Vishuddhi Chakra New Delhi (भारत)

Hridaya Aur Vishuddhi Chakra Date 16th March 1984 : Place Delhi : Public Program Type : Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Nirmala Yog] शान्त-चित्त, धार्मिक और बहुत सरल, शुद्ध और सादे परादमी हैं। वो मेरे पर पर गिरके रोने लगे । कहने लगे, “माँ, ये सब मैंने किया। लेकिन मैं बड़ा सत्य को खोजने वाले सारे भाविक, सात्विक साधकों को मेरा अशान्त हो गया है। मैंने कहा, क्यों, क्या बात है ? श्रपने तो बहुत कुछ पा लिया। यहाँ सबकी सुभत्ता अ्र गयी कहने लगे, मैंने एक बात नहीं जानी प्रणाम । कल आपको मैंने आ्रपने अन्दर बसा हुआ जो नाभि चक्र है उसके वारे में बताया या कि ये नाभि चक् हमारे अन्दर जिससे हम अपने क्षेम थी कि इस सभत्ता से दुनिया इतनी खराव ही जायेगी। हमारे यहाँ लोग जो हैं इतने आदततयी को गये हैं । यहाँ शराब इस कदर ज्यादा चलने लग गयी है। यहां पर बच्चे बिलकुल वाहियात हो गये सर्वसे बड़ी शक्ति देता है को पाते हैं। जैमे कि कृष्ण ने कही था ” योग क्षेम वहाम्यहम । पहले योग होना चाहिए, फिर अ्षम होगा । योग के बगैर क्षम नहीं ही सकता औोर है। यहां पर कोई किसी की सुनता नहीं । औरतें ी पपने को पेसे में ही तोलने लग गई हैं। ये सब देखक र के मुझे लगता है कि ये मैने क्या कर क्योंकि हमने इस देश में पहले योग को खयोजा नहीं इसलिए हमारा देश क्षेम को प्राप्त नहीं। क्षेम के बारे में मैंने Read More …

Dinner Party New Delhi (भारत)

1984-0315 का Nabhi चक्र [हिंदी] नई दिल्ली (भारत) नाभि चक्र की तारीख 15 मार्च 1984: स्थान दिल्ली: सार्वजनिक कार्यक्रम प्रकार: भाषण भाषा हिंदी [मूल प्रतिलिपि हिंदी बातचीत, हिंदी निर्मल योग से स्कैन किया गया] परमात्मा को खोजने वाले सभी सत्य साधकों को हमारा प्रणाम! आज दो तरह के गाने आपने सुने हैं, पहले गाने में एक भक्त विरह में परमात्मा को बुलाता है। इसे अपराभक्ति कहते है और जब परमात्मा को पा लेता है, जैसे कबीर ने पाया था, तो उसे पराभक्ति कहते हैं। दोनों में ही भक्ति है। इसे कृष्ण ने अनन्य भक्ति कहा है- जहाँ दूसरा कोई नहीं होता, जहाँ साक्षात् परमेश्वर अपने सामने होते हैं, उस वक्त जो हम लोगों का भक्ति का स्वरूप होता है उसे उन्होंने पराभक्ति कहा-अनन्यभक्ति।  किन्तु जब हम परमात्मा को याद करते हैं. उनको स्मरण करते हैं, तब उसकी आदत-सी हो जाती है। जब इन्सान को इस चीज की आदत-सी हो जाती है, तो उस आदत से छूटने में उसे बड़ा समय लगता है।  वह यह मानने को तैयार ही नहीं होता कि उसकी यह जो साधना है, यह खत्म होने की बेला आई है । और इसी वजह से भक्तों ने भी दृष्टाओं को, सन्तों को, मुनियों को पहचाना नहीं। आप जानते हैं इतिहास में हमेशा सन्तों को इतनी परेशानियाँ उठानी पड़ीं। यह नहीं कि सबने उनको सताया, लेकिन जिन्होंने सताया उनको किसी ने रोका नहीं और समझाया नहीं कि ये सन्त है, ये साधु है। अब हमारे समाज में, खासकर के शंहरों में, विविध विचारों के लोग रहते हैं । Read More …

Sahasrara Puja, Above the Sahasrar मुंबई (भारत)

सहस्रार पूजा बम्बई, ५ मई १९८३ आप सबकी ओर से बम्बई के सहजयोगी व्यवस्थापक जिन्होंने यह इन्तजामात किये हैं, उनके लिये धन्यवाद देती हूँ, और मेरी तरफ से भी मैं अनेक धन्यवाद देती हूँ। उन्होंने बहुत सुन्दर जगह हम लोगों के लिये ढूँढ रखी है। ये भी एक परमात्मा की देन है कि इस वक्त जिस चीज़़ के बारे में बोलने वाली थी, उन्हीं पेड़ों के नीचे बैठकर सहस्रार की बात हो रही है। चौदह वर्ष पूर्व कहना चाहिये या जिसे तेरह वर्ष हो गए और अब चौदहवाँ वर्ष चल पड़ा है, यह महान कार्य संसार में हुआ था, जबकि सहस्रार खोला गया। इसके बारे में मैंने अनेक बार आपसे हर सहस्रार दिन पर बताया हुआ है कि क्या हुआ किस तरह से ये घटना हुई, क्यों की गई और इसका महात्म्य क्या है? था, लेकिन चौदहवाँ जन्मदिन बहत बड़ी चीज़ है। क्योंकि मनुष्य चौदह स्तर पर रहता है, और जिस दिन चौदह स्तर वो लाँघ जाता है, तो वो फिर पूरी तरह से सहजयोगी हो जाता है। इसलिये आज सहजयोग भी सहजयोगी हो गया। अपने अन्दर इस प्रकार परमात्मा ने चौदह स्तर बनाए हैं। अगर आप गिनिये, सीधे तरीके से, तो भी अपने अन्दर आप जानते हैं सात चक्र हैं, एक साथ अपने आप। उसके अलावा और दो चक्र जो हैं, उसके बारे में आप लोग बातचीत ज़्यादा नहीं करते, वो हैं ‘चन्द्र’ का चक्र और ‘सूर्य’ का चक्र। फिर एक हम्सा चक्र है, इस प्रकार तीन चक्र और आ गए। तो, सात और तीन-दस। उसके ऊपर और चार Read More …

Public Program Gandhi Bhawan, New Delhi (भारत)

क्योंकि बहुत लोगों ने इस पर लिखा है (अस्पष्ट) और बहुत से लोग सोचते रहे हैं कि इस मामले में कुछ करना चाहिए कि सत्य को खोजने का है। (अस्पष्ट) अब जब मानव (अस्पष्ट) तो उसकी ऐसी स्तिथि होती है कि वो सिर्फ इस चीज़ को मानता है (अस्पष्ट) और उसके पास कोई माध्यम नहीं है। जैसे कि साइंस की उपलब्धि जो हुई है, यह हमने सिर्फ बुद्धि के ही माध्यम से देखा है। लेकिन बुद्धि जो है, वो दृश्य जो संसार में है, उसी के बारे में बातें करता है। जो अदृश्य है उसे नहीं बता सकता। और सत्य और अदृश्य में क्या अंतर है यही नहीं बता सकता। तब पहले यह सोचना चाहिए, कि जब सत्य की खोज की इंसान बात करता है, तो सर्वप्रथम उसको यही विचार करना होगा कि जो कुछ हमने बुद्धि से जाना, कुछ भी नहीं जाना, तो भी हम भ्रम में बने रहे। बुद्धि से जानी हुई बात, जितनी भी हमने आज तक जानी है, उससे इतना ज़रूर हुआ, जो दृश्य में है उससे हमने ज्ञात (अस्पष्ट) लेकिन जो कुछ अदृश्य में है वो भी नहीं जाना और ये भी नहीं जान पाए कि वो आखिर जो हमने दृश्य में जानना है यह परम सत्य है या नहीं। अब साइंस की उपलब्धि जब हमारी है, तो साइंस के हम अपने सिर हुए, साइंस में हमने बहुत सारी बातें जानी। अणु परमाणु तक हम पहुँच चुके। गतिविधियों को जो समझा है, वो भी सब जो कुछ भी जड़ है, उसके बारे में। ….. हरएक Read More …

The Vishuddhi Chakra New Delhi (भारत)

19830202 TALK ABOUT Vishuddhi, DELHI [Hindi transcript Q&A] सवाल – माताजी, क्या पितरों के श्राद्ध करने चाहिये ? उनके चित्र रखने चाहिये ?   श्रीमाताजी – इन्होंने सवाल किया है क्या पितरों के श्राद्ध करने चाहिये? पितरों के फोटोग्राफ्स रखने चाहिये ? जब उनकी तेरहवी होती है तब तो करने ही चाहिये उनके श्राद्ध। और श्राद्ध भी डिस्क्रिशन्स की बात आ ‘गयी फिर से। अगर समझ लीजिये कि आपके सहजयोग में आपने देखा कि आपका राइट हार्ट पकड़ रहा है। याने आपके पिता जो है, जो मर गये हैं, वो अभी भी संतुष्ट नहीं तो श्राद्ध करना चाहिये। इसमें कोई हर्ज नहीं। पर सहजयोग स्टाइल से श्राद्ध करना चाहिये। न कि एक ब्राह्मण को बुलाओ और उसको खाने को दो।   एक बार लखनो में हमें पता हुआ कि हमारे जो पूर्वज थे उनका श्राद्ध नहीं हो पाया। तो हमने कहा हम श्राद्ध करेंगे। तो उन्होंने कहा कि, ‘तुम्हारा श्राद्ध का क्या विधि है ?’ हमने कहा, ‘हमारा तो ये है कि हम खाना बनाते हैं और सब को खिलायेंगे खाना। बस यही हमारा श्राद्ध है।’ तो हमारी सिस्टर इन लॉ बेचारी ट्रेंडिशनल थी। उन्होंने ‘कहा कि, ‘यहाँ श्राद्ध ऐसा होता है कि पाँच ब्राह्मण बुलाओ।’ मैंने कहा, ‘पाँच क्‍या, यहाँ तो एक भी ब्राह्मण दिखायी नहीं दे रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘नहीं, अपने पाँच ब्राह्मण हैं। वो आएंगे और उनका श्राद्ध करेंगे।’ मैंने कहा, “चलो, बुलाईये।’ फिर पाँच ब्राह्मण आयें। वो तो बिल्कुल पार नहीं थे न ब्राह्मण थे। पाँच आदमी आ के बैठ गये। मैंने सोचा, देखिये तो सही क्‍या Read More …

Mooladhar, Swadishthan-Sakar Nirakar ka bhed New Delhi (भारत)

मूलाधार, स्वाधिष्ठान – साकार निराकार का भेद ३०.०१.१९८३ दिल्ली परमात्मा के बारे में अगर कोई भी बात करता है इस आज कल की दुनिया में तो लोग सोचते हैं कि एक मनोरंजन का साधन है। इससे सिर्फ मनोरंजन हो सकता है । परमात्मा के नाम की कोई चीज़ तो हो ही नहीं सकती है सिर्फ मनोरंजन मात्र के लिए ठीक है। अब बूढ़े हो गये हमारे दादा-दादी तो ठीक है, मंदिर में जाकर के बैठते हैं और अपना समय बिताने का एक अच्छा तरीका है, घर में बैठ कर बहु को सताने से अच्छा है कि मंदिरो में बैठे। इससे ज़्यादा मंदिर का कोई अर्थ अपने यहाँ आजकल के जमाने में नहीं लगाये। ये जो मंदिर में भगवान बैठे हैं इनका भी उपयोग यही लोग समझते हैं कि इनको जा कर अपना दुखड़ा बतायें, ये तकलीफ है, वो तकलीफ है और वो सब ठीक हो जाना चाहिए। लेकिन ये मंदिर क्या हैं? इसके अन्दर बैठे भगवान क्या हैं? उनका हमारा क्या संबंध है और उनसे कैसे जोड़ना चाहिए संबंध? आदि चीज़ों के बारे में अभी भी बहुत काफी गुप्त हैं। अब ये बातें अनादि काल से होती आयीं हैं। आपको मालूम है कि इंद्र तक को आत्मसाक्षात्कार देना पड़ा, जो अनादि है । करते -करते ये बातें जब छठी सदी में, सबसे बड़े हिंदू धर्म के प्रवर्तक, आदि शंकराचार्य संसार में आयें तब उन्होंने खुली तौर से बातचीत शुरू कर दी। नहीं तो अपने यहाँ एक भक्तिमार्ग था और एक वेदों का तरीका था, जैसे कि गायत्री मंत्र आदि। जब Read More …

Public Program: The Meaning Of Swajan मुंबई (भारत)

१९८२-१२१७ जनसभा: स्वजन का अर्थ [हिंदी] परेल, मुंबई (भारत) सार्वजनिक कार्यक्रम, मुंबई, भारत, १७ दिसंबर १९८२ माताजी श्री निर्मला देवी जी द्वारा १७/१२/१९८२ को परेल में उनके सम्मानित किए जाने पर ‘स्वजन’ द्वारा दिए गए सलाह का रिकॉर्डिंग। उन्होंने ‘स्वजन’ का अर्थ का विवरण दिया है। “स्वजन” के सब सदस्य तथा इसके संचालक और सर्व सहज योगी आप सबको मेरा प्रणाम! जैसा कि बताया गया स्वजन शब्द यह एक बड़े ध्येय की चीज़ है। स्वजन ये जो नाम हम लोगों ने बदल के इस संस्था को दिया था, इसके पीछे कुछ मेरा ही (–महाम–) जिसको कहते हैं कि महामाया इसके कुछ असर थे | स्वजन ये शब्द समझना चाहिए । स्व मानें क्या ? स्व मानें आत्मा , जिसे जिसनें अपनें आत्मा को पाया है वो जन स्वजन हैं | उस वखत शायद किसी ने न सोचा हो कि ये नाम विशेषकर मैंनें क्यों कहा कि यही नाम बदल रखा और जितने सहजयोगी हैं ये स्वजन हैं, क्योंकि उन्होंनें भी आत्मा को पाया है| ‘स्व’ को पाया है| अपने ‘स्व’ को पाने हीं के लिए ही स्वजन बनाया गया है और फर्क इतना है कि ऊपरी तरह से देखा जाए तो स्वजन में ये बात कही नहीं गई, लेकिन उस शब्द में हीं निहित है | उसका ॐ उसमें निहित है कि हम स्वजन हैं और जो आत्मा है वह ‘स्व’ है जो हमारे हृदय में परमात्मा का प्रतिबिंब है, वह ‘स्व’ उसका स्वरूप सर्व सामूहिक चेतना से दिखाई देता है| यानी जो आदमी स्व का जन हो जाता है Read More …

Public Program New Delhi (भारत)

“1981-02-17 सार्वजनिक कार्यक्रम, शंकर रोड 1981: ब्रह्म तत्त्वों का स्वरुप, दिल्ली” सार्वजनिक प्रवचन – ब्रह्म तत्व का स्वरूप नई दिल्ली, १७ फरवरी १९८१  आदर से और स्नेह के साथ आपने मेरा जो स्वागत किया है यह सब देख करके मेरा हृदय अत्यन्त प्रेम से भर आया। यह भक्ति और परमेश्वर को पाने की महान इच्छा कहाँ देखने को मिलती है ? आजकल के इस कलियुग में इस तरह के लोगों को देख करके हमारे जैसे एक माँ का हृदय कितना आनन्दित हो सकता है आप जान नहीं सकते| आजकल घोर कलियुग है, घोर कलियुग। इससे बड़ा कलियुग कभी भी नहीं आया और न आएगा। कलियुग की विशेषता है कि हर चीज़ के मामले में भ्रान्ति ही भ्रान्ति है इन्सान को। हर चीज़ भ्रान्तिमय है। इन्सान इतना बुरा नहीं है जितनी कि यह भ्रान्ति बुरी है।हर चीज़ में, अंग्रेजी में जिसे अजीब (chaos) कहते हैं, हर चीज़ में जिसे समझ में नहीं आता कि यह बात सही है कि वो बात सही है, कोई कहता है यह करो और कोई कहता है वो करो, कोई कहता है इस रास्ते जाओ भाई, तो कोई कहता है उस रास्ते जाओ। तो कौन से रास्ते जायें? हर मामले में भ्रान्ति है पर सबसे ज़्यादा धर्म के मामले में भ्रान्ति है। पर जो सनातन है, जो अनादि है, वो कभी भी नष्ट नहीं हो सकता, कभी भी नष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि वो अनन्त है। वो नष्ट नहीं हो सकता। उसका स्वरूप कोई कुछ बना ले, कोई कुछ बना ले, कोई कुछ ढकोसला बना ले, Read More …

Tattwa Ki Baat New Delhi (भारत)

1981-02-15 Talk at Delhi University 1981: Tattwa Ki Baat 1, Delhi Tattwa Ki Baat – 1 Date 15th February 1981 : Place Delhi Public Program Type Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 – 18 Hindi English Marathi || Translation English Hindi 19 – 30 Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindii Chaitanya Lahiri कल मैंने आपसे कहा था कि………….. है? अगर धरती माता की वजह से ही सारा कार्य आज आपको तत्व की बात बतायेंगे जब हो रहा है तो घरती माता की वजह से यह जो हम एक पेड़ की ओर देखें और उसका उन्नतिगत पत्थर है वो क्यों नहीं पनपता ? इसका मतलब यह होना, उसका बढ़ना देखें, तो यह समझ में आता है कि अनेक तत्वों में एक तत्व है, लेकिन तत्व है कि उसके अन्दर कोई न कोई ऐसी शक्ति अनेक हैं । प्रवाहित है या प्रभावित है जिसके कारण वो पेड़ बढ़ रहा है और अपनी पूरी स्थिति को पहुँच रहा समाये हैं और यह जो अनेक तत्व हैं यह हमारे है। यह शक्ति उसके अन्दर है नहीं तो यह कार्य अन्दर भी स्थित हैं, अलग अलग चक्रों पर इनका नहीं हो सकता। लेकिन यह शक्ति उसने कहां से वास है, लेकिन एक ही शरीर में समाये हैं और पाई ? इसका तत्व मर्म क्या है ? जो चीज बाह्य एक ही ओर इनका कार्य चल रहा है, और एक ही में दिखाई देती है, जैसे कि पेड़ दिखाई देता है इनका लक्ष्य है और एक ही चीज़ को इनको पाना उसके Read More …

What To Do After Self-realisation and Sahasrara Chakra, Delhi New Delhi (भारत)

“1981-0210 स्वयं-उपलब्धि के बाद क्या करें, सहस्रार चक्र [हिंदी] नई दिल्ली (भारत)” “स्वयं-प्राप्ति के बाद क्या करें, सहस्रार चक्र [हिंदी] नई दिल्ली (भारत)” सहजयोग में प्रगति नई दिल्ली, १० फरवरी १९८१ यहाँ कुछ दिनों से अपना जो कार्यक्रम होता रहा है उसमें मैंने आपसे बताया था कि कुण्डलिनी और उसके साथ और भी क्या-क्या हमारे अन्दर स्थित है। जो भी मैं बात कह रही हूँ ये आप लोगों को मान लेनी नहीं चाहिए लेकिन इसका धिक्कार भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये अन्तरज्ञान आपको अभी नहीं है। और अगर मैं कहती हूैँ कि मुझे है, तो उसे खुले दिमाग से देखना चाहिए, सोचना चाहिए और पाना चाहिए। दिमाग जरूर अपना खुला रखें । पहली तो बात ये है कि सहजयोग कोई दकान नहीं है। इसमें किसी प्रकार का भी वैसा काम नहीं होता है जैसे और आश्रमों में या और गुरुओं के यहाँ पर होता है कि आप इतना रुपया दीजिए और सदस्य हो जाइए। यहाँ पर आप ही को खोजना पड़ता है, आप ही को पाना पड़ता है और आप ही को आत्मसात करना पड़ता है।  जैसे कि गंगाजी बह रही हैं। आप गंगाजी में जायें, इसका आदर करें, उसमें नहाएं- धोएं और घर चले आएं। अगर आपको गंगा जी को धन्यवाद देना हो तो दें, न दें तो गंगाजी कोई आपसे नाराज नहीं होती। एक बार इस बात को अगर मनुष्य समझ ले, कि यहाँ कुछ भी देना नहीं है सिर्फ लेना ही है, तो सहजयोग की ओर देखने की जो दृष्टि है उसमें एक तरह की गहनता Read More …

Public Program, Swadishthana Chakra New Delhi (भारत)

Public Program, New Delhi (India), 6 February 1981. [Hindi Transcript] आपने विनती की है कि हिंदी मे भाषण कीजिएगा बात ये है कि ये तय किया गया था कि इस जगह मे अंग्रेजी मे बातचीत करुँगी अ.. उसकी वजह ये है कि अभी तक हिन्दुस्तान मे अंग्रेजी मे मैंने कहीं भी बातचीत नहीं की और ये जो अतिथि लोग आयें है आज तक मेरा भाषण सुन नहीं पाए इसलिए इनसे कहा था कि यहाँ पर मे मे अंग्रेजी मे बातचीत करुँगी और जब मंदिरों मे आदि या मेरे ख्याल से दिल.. दिल्ली के विद्यापीठ मे भी जो भाषण होने वाले है वो हिंदी भाषा में ही होंगे इसलिए कृपया आप दूसरे भाषणों मे भी आएंगे तो मैं हिंदी मे बातचीत करुँगी आशा हैं आप लोग बुरा नहीं मानेंगे क्योंकि आतिथी है थोड़ा सा इनका भी कभी ख्याल करना चाहिए हालाँकि आप लोग सब थोडा-बहुत तो अंग्रेजी समझते है और मैं कोई ऐसी कठिन अंग्रेजी बोलती नहीं हूँ अगर आपको कोई उसमे प्रश्न हो तो मैं आपको बता दूंगी सिर्फ ये पांच ही लेक्चरस जो है ये मे अंग्रेजी मे देने वाली हूँ इसके लिए क्षमा कीजिएगा ……कल मैंने आपसे उन सूक्ष्म केंद्रों के बारे में बात की , जो हमारे अस्तित्व के भीतर मौजूद हैं। इसका ज्ञान हजारों वर्षों पहले यहाँ के कई भारतीयों को ज्ञात था, लेकिन उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया, दो प्रकार के लोग थे जो प्रकृति की उच्च शक्तियों के बारे में जानते थे। उनमें से एक ऐसे लोग थे जिन्होंने सोचा था कि हम स्वयं Read More …

Public Program, Introduction to Mooladhara Chakra New Delhi (भारत)

Public Program, India, Delhi, 05-02-1981 आज मैं सहज योग और कुंडलिनी जागृति के बारे में सामान्य रूप से बात करने जा रहीं हूँ। सहज, जैसा कि आप जानते हैं, का अर्थ है,’सह’ साथ और ‘जा’आपके साथ पैदा हुआ। लेकिन शायद लोगों को एहसास नहीं है सहज का वास्तव में क्या अर्थ है। यह स्वतःस्फूर्त है लेकिन क्या है स्वतःस्फूर्त? स्वतःस्फूर्त वह नहीं है – मान लीजिए मैं कार में जा रहीं हूँ और अचानक कोई मिल जाए तो मैं कहूँ, ‘मैं अनायास/सहज ही उस व्यक्ति से मिल गई।’ सहज का अर्थ है, वह घटित होना जो कि एक जीवंत घटना है। यह एक जीवित वस्तु होनी चाहिए जो कि स्वतःस्फूर्त है; यह बहुत ही रहस्यमय शब्द है जिसे समझाया नहीं जा सकता और जो, इस बारे में बिना किसी ज्ञप्ति के घटित होता है, जो मनुष्य के लिए समझना संभव नहीं है, यही सहज है। सहज का अर्थ हो सकता है, यह बहुत सरल है, बहुत आसान है – यह है, इसे होना ही है। उदाहरण के लिए, ईश्वर ने हमें ये आँखें दीं हैं। ये अद्भुत आँखें जो मनुष्य को मिलीं हैं, ऐसा नहीं कि वे रंग देख सकतीं हैं वरन इसकी सराहना भी कर सकतीं हैं। भगवान ने उन्हें नाक दी है, जो इतनी अच्छी तरह से विकसित है कि यह गंदगी को महसूस कर सकती है – जानवर इसे महसूस नहीं कर सकते। आप एक मानव बन गए हैं, मैं एक मानव बन गईं हूँ, और हर कोई इंसान बन गया है – बन गया है – Read More …

Do Sansthaye – Man Aur Buddhi , Seminar for the new Sahaja yogis Day 2 Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

१९८०-०१-२९, नए सहज योगियों के लिए सेमिनार दिन २, कोवासजी जेहांगीर हॉल, मुंबई (भारत) १९८०-०१-२९, नए सहज योगियों के लिए सेमिनार दिन २, बोर्डी [हिंदी अनुलेख] कल आपको प्रस्तावना मैं मैंने बताया, कि जो आप हैं वो किसलिये संसार में आये हैं। परमात्मा ने आपको इतनी मेहनत से क्यों इन्सान बनाया? और इस इन्सान का क्या उपयोग है? इसके लिये परमात्मा ने हमारे अन्दर जो जो व्यवस्था की है वो अतीव सुन्दर है। और बड़ी मेहनत ले कर के बड़ी व्यवस्था की गयी। और सारी तैय्यारियाँ अन्दर जुट गयी। लेकिन जिस वक्त मनुष्य को स्वतंत्रता दी गयी, जब मनुष्य ने अपनी गर्दन ऊपर उठायी और जो पूर्ण मानव हो गया। तो उसने अपनी स्वतंत्रता को भी पा लिया था। उसके अन्दर दोनों शक्तियाँ जिसके बारे में मैने कल बताया था, इड़ा और पिंगला की शक्ति। इड़ा जिससे की हमारा अस्तित्व, एक्झिस्टन्स बनता है, और पिंगला की जिससे हम सृजन करते हैं, क्रियेटिव होते हैं, ये दोनों ही शक्तियाँ कार्यान्वित होने के कारण हमारे अन्दर मन और बुद्धि या मन और अहंकार नाम की दो संस्थायें तैय्यार हो गयी। ये संस्थायें आप अगर देखें तो सर में दो बलून की जैसे हैं। जो कि आपको यहाँ दिखायी देगी। ये सर में दो बलून के जैसे हमारे अन्दर बन गयीं इसे अंग्रेजी में इगो और सुपर इगो कहा जाता है । ये संस्थायें तो वहाँ पे घनीभूत होने के कारण वहाँ की जो तालु की जो …. कर लें, बिल्कुल बीचोबीच …. हड्डी हैं, जिसे फॉन्टनेल बोन कहते हैं, वो कॅल्शियम से Read More …

9th Day of Navaratri Celebrations, Eve of Navaratr, Puja & Havan मुंबई (भारत)

Sahajayog Ki Ek Hi Yukti Hai (Navaratri) Date : 30th September 1979 Place Mumbai Туре Seminar & Meeting Speech [Original transcript, Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahiri] आपके अन्दर में परमात्मा की शक्ति ज्यादा बड़ा भारी कार्य एक जमाने में हो गया है जबकि बढ़ती जाएगी। यानि आपका caliber जो है वो wider होते जाएगा और आपके अन्दर ज्यादा शक्ति के अनुचर सताया करते थे। आज भी संसार में बढ़ती जाएगी। अब जब ये ज्यादा शक्ति आपसे बढ़ शैतानों की कमी नहीं है, दुष्टों की कमी नहीं है, रही है तब इस शक्ति को भी उपयोग में लाना चाहिए। अगर शक्ति बढ़ती गई और आपने उसको उपयोग में नहीं लाया तो हो सकता है कि थोड़े दिन बाद ये caliber फिर छोटा हो जाए। अब आपको घर और इसीलिए इनमें से निकलने के लिए भी मनुष्य जाके बैठना है और सोचना है, मनन करना है कि हम किस तरह से सहजयोग को बढा सकते हैं। कितने ही लोगों का Realisation हुआ है और बहुत किस-किस जगह हमारा स्थान है, कौन लोग हमें से लोगों ने इस आत्मज्ञान को पाते वक्त अपने मानते हैं, उनकी लिस्ट बनाइये। कौन-से ऐसे areas हैं जहाँ हम जाकर के इसको प्रस्थापित कर सकते हैं। उसके लिए जो भी आपको जरूरतें हैं, हमारे अलग सेंटर हो गए हैं, आज मैंने कोलाबा में भी एक सेंटर खोल दिया है कफकैसल में। और इस तरह से हर जगह एक-एक सेंटर अब आपके लिए ऐसे मैं भी नहीं सोचती थी और इतने थोड़े समय में हो गया है Read More …

6th Day of Navaratri Celebrations, Shri Kundalini, Shakti and Shri Jesus Hinduja Auditorium, मुंबई (भारत)

Kundalini Aur Yeshu Khrist Date : 27th September 1979 Place Mumbai Туре Seminar & Meeting Speech Language Hindi श्री कुण्डलिनी शक्ति और श्री येशु खिस्त’ ये विषय बहुत ही मनोरंजक तथा आकर्षक है । सर्वमान्य लोगों के लिए ये एक पूर्ण नवीन विषय है, क्योंकि आज से पहले किसी ने श्री येशु ख़्रिस्त और कुण्डलिनी शक्ति को परस्पर जोड़ने का प्रयास नहीं किया। विराट के धर्मरूपी वृक्ष पर अनेक देशों और अनेक भाषाओं में अनेक प्रकार के साधु | संत रूपी पुष्प खिले । उन पुष्पों (विभूतियों) का परस्पर सम्बन्ध था । यह केवल उसी विराट-वृक्ष को मालूम है। जहाँ जहाँ ये पुष्प (साधु संत) गए वहाँ वहाँ उन्होंने धर्म की मधुर सुगंध को फैलाया। परन्तु इनके निकट (सम्पर्क) | वाले लोग सुगन्ध की महत्ता नहीं समझ सके। फिर किसी सन्त का सम्बन्ध आदिशक्ति से हो सकता है यह बात सर्वसाधारण की समझ से परे है । मैं जिस स्थिति पर से आपको ये कह रही हूँ उस स्थिति को अगर आप प्राप्त कर सकें तभी आप ऊपर कही गयी बात समझ सकते हैं या उसकी अनुभूति पा सकते हैं क्योंकि मैं जो आपसे कह रही हूँ वह सत्य है कि नहीं इसे जानने का तन्त्र इस समय आपके पास नहीं है; या सत्य क्या है जानने की सिद्धता आपके पास इस समय नहीं है। जब तक आपको अपने स्वयं का अर्थ नहीं मालूम तब तक आपका शारीरिक संयन्त्र ऊपर कही गई बात को समझने के लिए असमर्थ है। परन्तु जिस समय आपका संयन्त्र सत्य के साथ जुड़ जाता है Read More …

5th Day of Navaratri Celebrations, Guru Tattwa (Mahima) and Shri Krishna मुंबई (भारत)

  [हिंदी प्रतिलेख] 1979-0926-गुरू तत्व और श्रीकृष्ण शक्ति २६ सितम्बर १९७९, मुंबई  गुरू का स्थान हमारे अंदर काफी ऊंची जगह है। गुरु का स्थान हमारे अंदर स्थित है, कोई इसमें नई चीज करने की नहीं है। परमात्मा ने ये जो साधन बनाया हुआ है, यह जो इंस्ट्रूमेंट है इसको बहुत ही सुंदरता से बनाया गया है। इसका एक एक चक्र जोकि हमारे लिए अद्रश्य ही हैं और हमारे अंदर स्थितः है जिससे ये विश्व जगत हमें जान पड़ता है बहुत सुंदरता से रचित है; किन्तु मनुष्य अति मैं रहता है, हमेशा अति पे जाने से उसने अपने इस साधन को बिगाड़ लिया है। उसी प्रकार गुरु का जो स्थान है उसे भी मनुष्य ने बिगाड़ लिया है. गुरु का स्थान हमारे अंदर इस पूरी जगह इस फ्रांस मैं है, इस पूरे देश मैं गुरु का स्थान है। पेट के अंदर चारों ओर नाभि चक्र से जुड़ा हुआ है। अभी तीन दिन पहले मैने नाभिचक्र पर आपसे बात की थी, इस नाभिचक्र पर श्री विष्णु  का स्थान है। विष्णुशक्ति के कारण ही मानव अमीबा से इंसान बने हैं। और उसी शक्ति से ही आप मानव से  अतिमानव बनने वाले हैं। । अब ये जो गुरु की शक्ति हमारे अंदर परमात्मा ने पहले से ही विकसित की हुई है इसके लिए अनेक गुरुओं के पहले अवतरण हुए हैं। अब पहले देखें की यह गुरूतत्व बना कैसे  है इसके लिए समझना चाहिए की गुरुतत्व अनादि है और उसको कैसे बनाया गया। हमारे अंदर  अदृश्य रूप से तीन  शक्तियां कार्यान्वित रहती हैं। प्रथम  शक्ति Read More …

Evening prior to departure for London, Importance of Meditation पुणे (भारत)

Evening prior to Her departure for London (Marathi & Hindi). Pune, Maharashtra, India. 30 March 1979. [Hindi Transcript]  ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK आप लोग सब इस तरह से हाथ कर के बैठिये। इस तरह से हाथ कर के बैठे और आराम से बैठे। इस तरह से बैठिये। सीधे इस तरह से आराम से बैठिये। कोई स्पेशल पोज़ लेने की जरूरत नहीं है। बिल्कुल आराम से बैठिये। सहज आसन में। बिल्कुल सादगी से। जिसमें कि आप पे कोई प्रेशर नहीं। न गर्दन ऊपर करिये, नीचे करिये। कुछ नहीं। मुँह पर कोई भी भाव लाने की जरूरत नहीं है और कोई भी जोर से चीखना, चिल्लाना, हाथ-पैर घुमाना, श्वास जोर से करना, खड़े हो जाना, श्वास फुला लेना ये सब कुछ करने की जरूरत नहीं। बहुत सहज, सरल बात है और अपने आप घटित होती है। आपके अन्दर इसका बीज बड़े सम्भाल कर के त्रिकोणाकार अस्थि में रखा हुआ है। इसके लिये आपको कुछ करना नहीं है। आँख इधर रखिये। बार बार आँख घुमाने से चित्त घूमेगा। आँख इधर रखिये। चित्त को घुमाईये नहीं। आँख घुमाने से चित्त घूमता है। आँखे बंद कर लीजिये, उसमें हर्ज नहीं । उल्टा अच्छा है, आँख बंद कर लीजिये। अगर आँख बंद नहीं हो रही हो या आँखें फड़क रही हो तो आँख खोल दीजिये। सब से पहली चीज़ है यह घटना घटित होनी चाहिये। लेक्चर सुनना और सहजयोग के बारे में जानना इसके लिये बोलते बोलते मैं तो थक गयी हूँ। और एक बहोत बड़ी किताब भी लिखी गयी है, अंग्रेजी में । उसकी कॉपीज Read More …

Public Program, Chitta KI Gaharai Bordi (भारत)

Public program (Hindi). Bordi Shibir, Maharashtra, India. 24 March 1979. [Hindi Transcript] आप लोग सब सहजयोग में आये हैं। कुछ लोग पहले से आये हैं, बहुत सालों से और कोई लोग नये हैं। धीरे- धीरे सहजयोग में संख्या बढ़ने वाली है इसमें कोई शक नहीं है और सत्य जो है वो धीरे -धीरे ही प्रस्थापित होता है। सत्य की पकड़ धीरे-धीरे होती है। आपके यहाँ ऐसे लोग हैं जो आठ-आठ, नौ-नौ महिनों तक सहजयोग में आते रहे और उसके बाद पार हुए। सत्य को पाने के लिये हमारे अन्दर पहले तो गहराई होनी चाहिए। पर सबसे बड़ी चीज़ है हमारे अन्दर सफाई होनी चाहिए। अब अनेक गुरुओं के बीच में जाकर के हमारा चित्त जो है वो बुरी तरह से विक्षिप्त हो जाता है । दूसरा, आजकल के समाज में जो हम घुमते हैं और नानाविध उपकरणों के कारण हमारा जो चित्त बाहर की ओर हमेशा रहता है। बाह्य की चीजें हमें दिखाई देती हैं। इन सब चीज़ों से हम कुछ प्रभावित होते भी हैं। और कुछ ये भी बात है कि, हमारे दिमाग में भर दिया गया है कि ये चीज़ें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इस वजह से जो चीज़ें बिलकुल ही महत्वपूर्ण नहीं उधर हमारा चित्त पहले जाता है और जो चीज़ें बहत ही महत्वपूर्ण हैं वहाँ हमारा चित्त नहीं जाता है। इसलिये हम ऐसी चीज़ों को इकठ्ठा कर लेते हैं जो बिलकुल बेकार हैं। जिसको कि अंग्रेजी में जंक कहते हैं, मराठी में ‘अडगळ’ कहते हैं। इस तरह का हमारा चित्त जो है वो बेकार की चीज़़ों Read More …

Sahaja Yoga & the Subtle System मुंबई (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date 22nd March 1979 : Place Mumbai : Public Program Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] आप एक बहुत सुन्दर प्रकृति की रचना हैं। बहुत मेहनत से, तो आखें हैं नहीं हम इसे कैसे जानेंगे और हमारे लिए भी यह नजाकत के साथ, अत्यंत प्रेम के साथ परमात्मा ने आप को बनाया है। आप एक बहुत विशेष अनन्त योनियों में से घटित होकर इस मानव रुप में स्थित हैं। आप इसलिए इसकी महानता जाएगी। इस प्रकार आपके अन्दर भी कोई चीज ऐसी ही बनी नहीं जान पाते क्यांकि, ये सब आपको सहज में ही प्राप्त हुआ है। यदि इसके लिए मुश्किलें करनी पड़ती, आफते उठानी पड़ती और आप इसको अपनी चेतना में जानते तो आप समझ पाते सारी चीज आपको आसानी से समझ आ जाती है। पर अगर कि आप कितनी महत्वपूर्ण चीज हैं। मनुष्य को जानना चाहिए कि परमात्मा ने हमें क्यों बनाया, इतनी मॅहनत क्यों की ? हम बत्ती कैसे आई बिजली कहां से आई, इसका इतिहास क्या है, किस लिए संसार में आये और हमारा भविष्य क्या है ? हमारा कैसे बना, तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है। लेकिन आधुनिक अर्थ क्या है? जैसा कि कल मैने कहा था कि अगर हम मशीन बनायें पर इसको इस्तेमाल नहीं करें तो कोई भी अर्थ नहीं फिर उसको हटाए। उनको कोई चीज आसानी से मिल जाए तो निलकता। लेकिन जब तक ये मेन स्रोत से नहीं लगाया जाता बड़े आश्चर्य से पूछता है हमने तो कुण्डलिनी के बारे में Read More …

Birthday Puja मुंबई (भारत)

Birthday Puja. Mumbai, Maharashtra (India). 21 March 1979. [Hindi Transcript] आज …. (inaudible-Shri Mataji is describing what day it was) है। मेरा मन उमड़ आता है। आज तक लगातार बम्बई में ही ये जन्मदिवस मनाया गया। बम्बई में बहुत मेहनत करनी पड़ी है, सबसे ज्यादा बम्बई पर ही मेहनत की। लोग कहते भी हैं कि,”माँ, आखिर बम्बई में आपका इतना क्या काम है?“ पहले तो यहाँ पर रहना ही हो गया था, लेकिन बाद में भी बम्बई में काम बहुत हो सकता है, ऐसा मुझे लगता है। हालांकि बम्बई पे कुछ छाया सी पड़ी हुई थी। अभी दिल्ली में थोड़ा सा भी काम बहुत बढ़ जाता है| देहातों में भी बहुत काम हुआ है, हजारों लोग पार हो गये हैं, इसमें कोई शक नहीं। लंडन (London) जैसे शहर में भी बहुत काम हुआ है। लेकिन बम्बई के लोगों पे कुछ काली छाया सी पड़ी हुई है। मेरे ख्याल से पैसे के चक्कर बहुत जरुरत से ज़्यादा, बम्बई के लोगों में हैं। बड़ी आश्चर्य की बात है कि बम्बई में सालों लगातार मेहनत की है हमने, और सबसे कम सहजयोगी बम्बई शहर में हैं। इसका कोई कारण समझ में नहीं आता है। बहुत बार मैं सोचती हूँ और जब लोग मुझ से पूछते हैं कि, “माँ, आप बम्बई पे इतना क्यों अपना समय देती हैं? आखिर बम्बई में कौनसी बात है?” हालांकि शहरों से मैं बहुत घबराती हूँ। शहरों के लिए तो ठग लोग काफ़ी तैयार हो गये क्योंकि आप की जेब में पैसे हैं और ठग आपको ठगना चाहते हैं। Read More …

Public Program, Sahasrara New Delhi (भारत)

Public Program: Sahasrar March 18, 1979 सहस्त्रार सार्वजानिक कार्यक्रम, १८ मार्च १९७९  इसे समझ लेना चाहिए सहस्त्रार क्या चीज़ है। किसी ने अभी तक… किसी भी शास्त्रों में सहस्त्रार के बारे में विशद-रूप से कुछ भी वर्णित नही है। इसकी ये वजह नही है कि लोगबाग जानते नही होंगे, लेकिन पूरी तरह से सहस्त्रार खुला नही था तब तक, इसलिए इसके बारे में बहुत कुछ किसी ने लिखा नही। सहस्त्रार माने, जैसे ये कली है, इसी प्रकार हमारे ब्रेन (मस्तिष्क) को ग़र एक कमल का फूल समझें, तो उसके अंदर परत-न्-परत जैसे ये पंखुड़ियां हैं, उसी प्रकार एक-एक अलग-अलग स्तर बना हुआ है। और ये स्तर एक ही उसको, पता नही आप जानते हैं कि, दो मॅटर (पदार्थ): अपने व्हाइट्-मॅटर (श्वेत पदार्थ) , ग्रे-मॅटर (धूसर पदार्थ) – दो चीज़ होती है (मस्तिष्क में), जैसे आप देख सकते हैं कि दो हैं। इसके आलावा ग़र इसके बीचोबीच आप देखें खोलने पर, तो आपको दिखाई देगा कि बीच में गाभा है, और उसके अंदर हज़ारों छोटे-छोटे पराग हैं। इसी प्रकार हमारा जो ब्रेन (मस्तिष्क) है, ये भी मेद से बना है, fat (वसा) से बना है, लेकिन उसकी परते हैं। ग़र आप उसको क्रॉस-सेक्शन, माने यहाँ से ऐसे क्रॉस-सेक्शन करें, और उसको ग़र आप स्टडी (अध्ययन) करें तो आपको आश्चर्य होगा कि इसके अंदर ये एक-एक पर्त आपको दिखाई देगी, जैसे कि कमल के पुष्प हों, कमल की पंखुड़ियां जैसे। वैसे दिखाई देता है एकदम से। लेकिन डॉक्टरों का कभी कविता से संबंध नही रहा तो वो इस तरह का कंपॅरिज़न (तुलना) Read More …

Vishuddhi Chakra New Delhi (भारत)

Vishudhi Chakra (Hindi). Delhi (India), 16 March 1979. विश्व के लोग हमारी ओर आँखें किये बैठे हैं  कि भारतवर्ष से ही उनका उद्धार होने वाला है, तब तक नहीं पा सकेंगे। और हमारी ये हालत है कि एक साधारण सा व्यवहार जो होता है, वो भी नहीं है। कल मैंने आप से कहा था कि मैं आपको हृदय में बसे हुए शिवस्वरूप सच्चिदानंद आत्मा के बारे में बताऊंगी आज। लेकिन सोचती हूँ कि आखिर में ही बताऊंगी जब सारे ही चक्र बता चुकुंगी, वो अच्छा रहेगा। हालांकि उनको पहले से आखिर तक, अपनी दृष्टि वहीं रखनी चाहिये। बाकी जो भी चक्र हैं, एक उनके चक्र को जानने से ही ठीक हो जाते हैं। इन तीन हृदय चक्र के तीन हिस्सों से उपर एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण चक्र है, जिसे हम लोग विशुद्धि चक्र कहते हैं, विशुद्धि चक्र। जहाँ पे हमारा कंठ होता है, इसके बराबर पीछे में ये चक्र होता है। अब इसके लिये आप एक्झॅक्टली (exactly) किसी के लिये नहीं कह सकते हैं कि ये यहीं होता है। क्योंकि ये बड़ी ही सूक्ष्म चीज़ है, थोड़ा ऊँचे, नीचे होता ही है। जैसी-जैसी मनुष्य की प्रकृती होती है और जैसे-जैसे उसका फॉर्म होता है, वैसे ही इसकी चक्र की भी स्थितियाँ उस तरह से थोड़ी बहुत आगे-पीछे होती हैं। कभी कभी एक इंच का भी फर्क होता है। इसलिये आप ये नहीं कह सकते, कि ये बराबर उस जगह ही होगा। थोड़ा सा मैंने देखा है, किसी का ऊपर होता है, किसी का नीचे होता है। किसी का और भी Read More …

Advice to Delhi Yogis New Delhi (भारत)

Advice to Delhi Yogis (Hindi). Delhi (India), 15 March 1979. हर जगह के अपने वाइब्रेशन्स होते है दिल्ली, १५.३.१९७९ देलही के निवासियों ने सहजयोग में जो मेहनत की है वो बहुत प्रशंसनीय है क्योंकि आप जानते हैं कि सहजयोग में हमारे कोई भी मेंबरशिप नहीं है, कोई रूल्स नहीं है, कोई रेग्युलेशन्स नहीं है, ना ही कोई हम लोग रजिस्टर रखते हैं और ऐसी हालात में कुछ लोग इससे इतने निगडित हो जायें और इसके साथ इतने मेहनत से काम करें और ये सोंचे कि एक जगह ऐसी होनी चाहिए जहाँ सब लोग आ सके। अभी तो इनके घरों में ही प्रोग्राम होते हैं। तो इन्होंने मुझसे कहा था। मैंने कहा, ‘अच्छा देखो भाई, अगर कोई मिल जाये तुमको कोई जगह तो ठीक है। सबके दृष्टि से जो भी होना है वो अच्छा ही है।’ पर मेरे विचार से देहली के लोगों में ही ज्यादा परमात्मा का आशीर्वाद कार्यान्वित हुआ है। क्योंकि इस तरह से इन लोगों ने बहुत काम किया है कि देख कर बड़ा आश्चर्य होता है और जगह में तो बहुत कोशिश करने पर भी कुछ नहीं हो पाया है। ये सब आप ही का अपना है। आप ही के लिये जगह बनी हुई है और आप ही वहाँ रहेंगे और आप ही उसको इस्तेमाल करें, उसका उपयोग करें। लेकिन ये जरुरी है कि एक उसका न्यूक्लिअस होना चाहिए, एक जगह होनी चाहिए जहाँ गणेश जी की स्थापना होनी चाहिए। इस तरह की एक जगह होना जरूरी होती है। क्योंकि हर जगह के अपने- अपने वाइब्रेशन्स होते Read More …

Mooladhara New Delhi (भारत)

Public program, Mooladhara (English & Hindi). Delhi, India. 12 March 1979. मूलाधार (परमात्मा की और आत्मा की उपलब्धि) दिल्ली, १२ मार्च १९७९ उसके लिए कुछ न कुछ घटना अन्दर होनी चाहिए, कुछ हॅपनिंग होनी चाहिए। ऐसा मैंने सबेरे बताया था आपसे मैंने। दूसरी और एक बात बहुत जरूरी है, कि परमात्मा की और आत्मा की उपलब्धि अगर एक-दो लोगों को ही हो, सिलेक्टेड लोगों को हो, और सर्वसामान्य अगर इससे अछूते रह जाये तो इसका कोई अर्थ ही नहीं निकलता । परमात्मा का भी कोई अर्थ नहीं लगने वाला , ना इस संसार का कोई अर्थ निकलने वाला है। इस क्रिएशन का भी कोई अर्थ नहीं निकलने वाला। ये उपलब्धि सर्वसामान्य की होनी ही चाहिए। अगर ये सर्वसामान्य की न हो और बहत ही सिलेक्टेड लोगों की हुई तो वही हाल होगा जो सब का हआ। जो ऐसे रहे उनको कभी किसी ने माना नहीं । और मानने से भी क्या होता है ये बताईये मुझे! समझ लीजिये कि कोई अगर बड़े राजा हैं, तो राजा हैं अपने घर में, हमको क्या ? हमको तो कुछ मिला नहीं। हमको भी तो मिलना चाहिए। तब तो उसका मतलब होता है। इसलिये ये घटना घटित होनी ही चाहिए। इतना ही कुछ नहीं, ये सर्वसामान्य में अधिक होना चाहिए। काफ़ी लोगों में होना चाहिए। साइन्स का भी मैंने बताया ऐसा ही तरीका होता है की कोई आप एक, बिजली का आपको पता लग गया, जिसको पता लगा होगा, वो अगर सर्वसामान्य के लिये नहीं उपयोग में आयेगी तो उस बिजली का क्या मतलब! Read More …

Seminar Day 2 New Delhi (भारत)

Seminar in Delhi (India), 10 March 1979. भारतवर्ष योगभूमि , सेमिनार दिल्ली, १०/३/१९७९ आज सबेरे मैंने आपसे बताया था अंग्रेजी में कि परमात्मा ने हमें जो बनाया है, आप इसे माने या न माने, उसका अस्तित्व आप समझे या न समझे वो है। और उसने हमें जिस प्रकार बनाया, जिस तरह से बनाया है वो भी | एक बड़ी खूबी की चीज़ है। मैंने सबेरे बताया था कि कैसे बहुत थोड़े से समय में एक अमीबा जैसे प्राणी से मनुष्य बनाया गया। और आप को मनुष्य बनाया गया सो क्यों? और आगे इसका क्या होने वाला है या ऐसे ही भटकता रहेगा? मैंने बताया कि आपको भगवान ने स्वतंत्रता दे दी है। चाहे तो आप परमात्मा को पायें और चाहे तो आप शैतान के राज्य में जायें। ये आपकी स्वतंत्रता है। इसके लिए कोई भी आप पर, कोई भी आप पर परमात्मा का बंधन नहीं । अगर आप गलत रास्ते जाएंगे तो आप पर वहाँ के जो कुछ भी कृपायें हैं वो होंगी। और जो आप सही रास्ते जाएंगे तो सही रास्ते का जो भी आशीर्वाद है वो आपको मिलेगा । गलत और सही जानने के लिए भी बहुत बड़ी-बड़ी हस्तियाँ संसार में आयीं, उनको हम ‘अवतार ‘ कहते हैं, अवतरित हैं। बड़े-बड़े गुरु इस संसार में आयें जो असली गुरु थे। वो जब भी आये उन्होंने सही रास्ता, धर्म का रास्ता बताया कि आप कायदे से रहिये, बीचो-बीच रहिये, अति न करिये। धर्म के नाम पर जब -जब कोई-कोई संकट आये और जब ये देखा गया कि संसार से Read More …

How to Realise the Self New Delhi (भारत)

Seminar “How to Realise the Self”. Delhi (India), 8 March 1979. Shri Mataji: For the very first time? [ Hindi ? ] First time ? [ Hindi ? ] Please come. Just come forward. [ Hindi ? ] Please keep your hands like this. What are you doing? Yogi: [ ? ] Shri Mataji: [ Hindi ? ] What am I to speak? I don’t know. Yogi: How to realize Self? Shri Mataji: [Hari ?] – how to realize Self? [Loudspeaker hain – more Hindi ?]. Yogi: [ ? ] Shri Mataji: This is a very nice question, “How to realize the Self?” The first word – how. [On this ?] one can say, that Self can be realized and is to be realized, will be realized. But you cannot realize Self. You cannot. You have become a human being from amoeba. How did you become? What did you do? You got it just as a blessing from God. In the same way, Self-Realization is also the blessing of God. It is spontaneous. It is a living thing. Anything living happens spontaneously, by itself. Do you ever say – how am I to sprout the seed? It will sprout by itself. Why? Because all the mechanism, all the energy that is required for it to sprout is embedded in it, is built in it. In the same way, all that is required to reach to your Self is embedded within you. It is waiting there for that moment when it Read More …