The Innocence of a Child & purpose of Ganapatipule, Evening Program, Eve of Shri Mahaganesha Puja Ganapatipule (भारत)

एक बच्चे सी अबोधितागणपतिपुले (भारत), 31 दिसंबर 1985। गणपतिपुले एक बहुत ही खूबसूरत जगह थी और आप सभी के लिए बहुत सुकून देने वाली जगह थी इसके अलावा यहांआने का मेरा एक विशेष उद्देश्य था । कारण यह है कि – मैंने पाया कि इस जगह में चैतन्य थे जो आपको बहुत आसानी से स्वच्छ कर देंगे, सबसे पहले। लेकिन आपको इसकी इच्छा करनी होगी, वास्तव में, तीव्र्ता के साथ। आपको वह इच्छा रखनी चाहिए अन्यथा कुंडलिनी नहीं उठ सकती है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु है; कि तुम्हें अपने उत्थान की इच्छा करनी है, और कुछ नहीं। यह ऐसी जगह नहीं है जहां आप छुट्टी मनाने आए हैं या सिर्फ किसी तरह के विश्राम के लिए या किसी आनंद या सोने या किसी भी चीज के लिए आए हैं, बल्कि आप यहां तपस्या के लिए, तपस्या के लिए, अपने आप को पूरी तरह से शुद्ध करने के लिए आए हैं। यह श्री गणेश के मंदिर का एक स्थान है, जहां लोगों का आना-जाना बहुत कम है और यह अभी भी बहुत, बहुत शुद्ध है। और मैंने सोचा था कि आप में गणेश तत्व जागृत हो जाएगा जो कि हर चीज का स्रोत है। श्री गणेश के तत्व, जैसा कि आप जानते हैं, बड़े पैमाने पर या विस्तृत तरीके से, हम इसे ‘अबोधिता’ कहते हैं, लेकिन हम उन पेचीदगियों और विवरणों को नहीं जानते हैं जिन पर जाकर यह काम कर सकता है। श्री गणेश की अबोधिता में लोगों को शुद्ध करने, आपको पवित्र बनाने, आपको शुभ बनाने की Read More …

Puja: The Purity Inside Dr Sanghvi’s House, Nashik (भारत)

पूजाडॉ. संघवी गार्डन, नासिक (भारत), 17 दिसंबर 1985। नासिक, इस स्थान का विशेष महत्व है। बहुत समय पहले, लगभग आठ हजार साल पहले, जब श्री राम वनवास के लिए गए, तो वे महाराष्ट्र आए और वे विभिन्न स्थानों से गुजरे और वे अपनी पत्नी के साथ इस जगह नासिक में बस गए। और यहाँ एक महिला जो वास्तव में रावण की बहन थी, जिसका नाम शूर्पणखा था, उसने श्री राम को लुभाने की कोशिश की। अब पुरुषों को लुभाने या महिलाओं को लुभाने का यह गुण वास्तव में राक्षसी है और इसलिए लोग उन्हें ‘राक्षस’ कहते हैं। क्योंकि जो लोग राक्षसी लोग होते हैं वे स्वभाव से आक्रामक, अहंकार से भरे और हर किसी पर हावी होना चाहते हैं। और अगर उनका अहंकार संतुष्ट हो जाता है तो वे काफी संतुष्ट महसूस करते हैं। तो जो लोग ऐसे थे, उन्हें इस देश में ‘राक्षस’ कहा जाता था। उनके अनुसार यह सामान्य मानवीय व्यवहार नहीं था। तो ये राक्षस भारत के उत्तरी भाग, उत्तरी भाग में अधिक रहते थे और उनकी विभिन्न श्रेणियां वर्णित हैं। तो स्त्रियों के पीछे दौड़ने वालों को किसी और नाम से पुकारा जाता था और जहाँ स्त्रियाँ उन पर हावी होने की कोशिश करती थीं, उन्हें किसी और नाम से पुकारा जाता था। जहां पुरुष महिलाओं की तरह बनने की कोशिश करते हैं, वहां दूसरा नाम है। लेकिन उन्हें कभी इंसान नहीं कहा गया। उन्हें ‘राक्षस’ या ‘वेताल’ और अन्य सभी नामों से पुकारा जाता था। लेकिन आजकल आप एक ऐसी उलझन पाते हैं कि समझ Read More …

Diwali Puja Tivoli (Italy)

                                                दीवाली पूजा  टिवोली, रोम, 17 नवंबर 1985 आज हम यहां एकत्रित हुए हैं; दिवाली, दीपावली मनाने के लिए। दरअसल सहज योग शुरू होने के बाद ही, असली दिवाली आकार ले रही है। हमारे पास कई खूबसूरत दीपक थे और हमारे पास जलाने के लिए बहुत सारा तेल था। परंतु दीपों को रोशन करने के लिए कोई चिंगारी नहीं थी। और बत्ती जैसा कि आप इसे कहते हैं, हिंदी भाषा में बात्ती कहा जाता है- आपकी कुंडलिनी की तरह है। इसलिए कुंडलिनी को चिंगारी से मिलना था। सभी सुन्दर दीपक बेकार, उद्देश्यहीन, व्यर्थ थे। और यह आधुनिक समय में महान आशीर्वाद हैं, कि इतनी सारे दीपक प्रकाशित हो गए हैं, और हम मानव हृदयों की दीपावली मना रहे हैं। जब आप प्रकाश बन जाते हैं, आप दीपक के बारे में चिंता नहीं करते हैं, यह कैसा दिखता है, इसे कैसे बनाना है, यह सब हो गया है। आपको केवल लौ की, तेल की चिंता करनी है, क्योंकि वह तेल है जो जलता है और प्रकाश देता है। संस्कृत भाषा में – जो देवताओं की भाषा है – तेल को ‘स्निग्धा’, ‘स्निग्धा’ कहा जाता है; कुछ ऐसा जो नरम है लेकिन स्निग्धा है। और ‘स्नेहा’ का अर्थ है प्रेम की दोस्ती’, और अन्य भाषाओं के कवियों ने इस शब्द का इस्तेमाल अलग-अलग तरह से ‘नेहा’ कहकर किया है। उन्होंने इस प्रेम का गुणगान किया है। हर कवि, हर संत ने अपने सुंदर काव्य में इस शब्द का प्रयोग किया है, चाहे वे वियोग में थी या वे मिलन में थी, योग में, Read More …

6th Day of Navaratri, Complete dedication Weggis (Switzerland)

Navaratri puja. Weggis (Switzerland), 19 October 1985 आज नवरात्रि का महान दिन है। हम छठे और सातवें दिन के मध्य में बैठे हैं। षष्ठी और सप्तमी वह दिन है,जब महासरस्वती ने अपना कार्य संपन्न किया और शक्ति ने इसे स्वयं प्रारंभ किया। इसलिए आज बारह बजे देवी स्वयं शक्ति को धारण करेंगीं। वास्तव में, जैसा आप जानते हैं कि महाकाली और महासरस्वती दोनों श्री सदाशिव की शक्तियां हैं। आदिशक्ति ने सबसे पहले स्वयं को महाकाली के रूप में बनाया ,जो कि इच्छा की शक्ति हैं। लेकिन यह शक्तियां और कुछ भी नहीं है, बल्कि ईश्वर के प्रेम की ही शक्ति हैं। इसलिए इस ईश्वरीय महान प्रेम के क्रम में, आदिशक्ति को सर्वप्रथम इच्छा की शक्ति के रूप में निर्मित होना पड़ा। इसी प्रकार से सहजयोगी, जो इस प्रेम की शक्ति से आशीर्वादित किए गए हैं,उन्हें अपने हृदय में पूर्ण इच्छा रखनी चाहिए। प्रेम करने की इच्छा। वह इच्छा मनुष्य के दूसरे तरह के मानवीय प्रेम से, हम जानते है उस प्रेम से बिल्कुल अलग है। अन्य मानवीय प्रेम के दूसरे तरह के प्रेम में, जब हमारा सम्बन्ध दूसरों के साथ होता है तो हम उनसे उम्मीदें रखते हैं। यही कारण है कि यह बहुत निराशाजनक होता है। हमारी अपेक्षाएं हमेशा हमारी समझ और वास्तविकता से बहुत अधिक होती हैं। यही कारण है कि हम निराशा और कुंठा से ग्रस्त हो जाते हैं। और वही प्रेम जो पोषित करने वाला और परिपूर्ण करने वाला होना चाहिए, वह व्यर्थ हो जाता है। इसलिए जब यह प्रेम मनुष्य में प्रतिबिंबित होता है, तब Read More …

The English Are Scholars, Seminar Totley Hall Training College, Sheffield (England)

“अंग्रेज विद्वान हैं”अंग्रेज संगोष्ठी, शेफ़ील्ड (यूके), 21 सितंबर 1985। जैसा कि मैंने कल कहा, यह क्षेत्र है; वह क्षेत्र जहाँ प्रबोध को आना है। इतने दीपों से क्षेत्र को जगमगाना पड़ता है। और यह क्षेत्र जो प्रबुद्ध है, प्रकृति से भी समृद्ध है। और जब तुम गा रहे थे, तो मुझे लगा कि बादल स्वरों को पकड़ रहे हैं, उन्हें अपने भीतर बुन रहे हैं और जब बारिश होगी, तो बारिश फिर से गीत गाएगी; मानो घाटियाँ इतनी खूबसूरती से गूंज रही हों। और प्रतिध्वनि बहुत कोमल थी और पूरे वातावरण को भर रही थी। शायद आपको ईश्वरीय सूक्ष्मता के बारे में पता नहीं है कि वह इसे कार्यांवित करने के लिए कितना उत्सुक है । लेकिन हमारे यंत्र हमारी तुरहियां और हमारी बांसुरी और हमारे ढोल ठीक होने चाहिए। तालमेल होना चाहिए, पूरी तरह से तालमेल बिठाना चाहिए-तब माधुर्य सुन्दर ढंग से बजाया जाता है। बादल केवल शुद्धतम जल, शुद्धतम स्तोत्र वहन कर ले जाते हैं। इसलिए, जब हम संदेश फैला रहे हैं, तो हमें यह समझना होगा कि इसे एक शुद्ध स्रोत से आना चाहिये। शुद्धता बहुत जरूरी है। पवित्रता वाले हिस्से के बारे में मैंने पहले से ही बात की है, जो मूलाधार है, जो आज बहुत महत्वपूर्ण है; आप इसे स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि यह कितना महत्वपूर्ण है। लेकिन यह उसका अंत नहीं है, यह तो बस शुरुआत है – बस शुरुआत है। लेकिन हमें जो देखना है वह हमारे भीतर बहुत ही सहज निर्मित है। और आज जब हम दिलों के दिल Read More …

The Priorities Are To Be Changed Chelsham Road Ashram, London (England)

प्राथमिकताओं को बदला जाना है चेल्शम रोड, क्लैफम लंदन (यूके), 6 अगस्त 1985। अब मेरा इंग्लैंड में प्रवास अपना 12वां वर्ष पूरा कर रहा है और यही कारण है कि मैं आप लोगों से सहज योग के बारे में बात करना चाहती थी। यह कहां तक चला गया है और हमारे पास कहां कमी है। सबसे बड़ी बात यह हुई है कि हमने अपने धर्म की स्थापना की है: निर्मल धर्म, जैसा कि हम इसे कहते हैं, विश्व निर्मल धर्म। और आप शब्दों के अर्थ जानते हैं, विश्व का अर्थ है सार्वभौमिक, निर्मल का अर्थ है शुद्ध और धर्म का अर्थ है धर्म। यह अमेरिका में स्थापित किया गया है। और हमें इसे यहां इंग्लैंड में पंजीकृत करना होगा। अब यह बहुत महत्वपूर्ण है कि, जब हम किसी धर्म से संबंध रखते हैं, तो हमें यह जानना होगा कि उस धर्म की आज्ञाएं क्या हैं। और अभी तक हमने कुछ भी मसौदा तैयार नहीं किया है। यह ऐसी चीज़ नही हो सकती जिसे लोगों या मनुष्यों के लिये बनायी गईअनुकूल वस्तु नहीं हो सकती है। ऐसा नहीं हो सकता। और आपकी अनुकूलता के लिये इस मे कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। जैसे रूस में, जैसा कि मैंने आपको कहानी सुनाई, मैं वहां गयी और मैंने कहा, “मैं एक चर्च देखना चाहती हूं।” इसलिए वे मुझे एक चर्च में ले गए, जो ऑर्थोडॉक्स ग्रीक चर्च था, और मेरे पति भी वहां थे जहां हम वीआईपी थे, इसलिए चर्च का मुखिया नीचे आया और हमें दोपहर के भोजन के लिए Read More …

Shri Gruha Lakshmi Puja: In your houses you must do Gruhalakshmis’ puja Brompton Square House, London (England)

श्री गृहलक्ष्मी पूजाब्रॉम्प्टन स्क्वायर, लंदन, 1985-0805 तो, इस घर को बनाने और इसे इतना सुंदर बनाने में मदद करने के लिए आप सभी को धन्यवाद देना है। सारी कृतज्ञता हम दोनों की ओर से है [श्री माताजी और सर सीपी]।आज का दिन बहुत दिलचस्प है जब आप यहां गृहलक्ष्मी की पूजा कर रहे हैं, यानी इस घर की गृहलक्ष्मी। इसी प्रकार अपने परिवार में भी अपने घरों में गृहलक्ष्मी की पूजा अवश्य करें। स्त्री को स्वयं गृहलक्ष्मी बनना है और फिर उसकी पूजा करनी चाहिए।“यत्य नारीया पूज्यन्ते, तत्र भ्रामंते देवता।” जहां नारी का सम्मान और पूजा होती है, वहां सभी देवताओं का वास होता है। लेकिन उन्हें भी सम्मानजनक होना चाहिए। यदि वे आदरणीय नहीं हैं तो देवताओं का वास वहाँ नहीं होगा। इसलिए, गृहलक्ष्मी पर सम्मानजनक होने की एक बड़ी जिम्मेदारी है ताकि परिवार में सभी देवता खुश रहें। और एक बार उसका सम्मान होने के बाद, वह भी सम्मानजनक बनने की कोशिश करेगी। इसलिए गृहलक्ष्मी का सम्मान बहुत जरूरी है। आज हम विश्वकर्मा और ब्रह्मदेव के आशीर्वाद से, उन सभी बिल्डरों कीऔर से जिन्होंने यहां हमारी मदद की; जिन्होंने इस घर को इतना खूबसूरत बनाने की कोशिश की है,यह छोटी पूजा कर रहे हैं । साथ ही, जैसा कि आप जानते हैं, ब्लेक ने इस घर का वर्णन किया है। इसका एक विशेष महत्व है और अब हमें इसे किसी और को सौंपना है, जो इस घर की सराहना और सम्मान करेगा; जो की इस घर का मूल्य और कीमत को समझेगा। और इसके लिए हमें प्रार्थना करनी Read More …

Shri Ganesha Puja: The Importance of Chastity Brighton Friends Meeting House, Brighton (England)

श्री गणेश पूजा: पवित्रता का महत्व04-08-1985ब्राइटन फ्रेंड्स मीटिंग हाउस, ब्राइटन (इंग्लैंड) आज हम यहां सही अवसर और बहुत ही शुभ दिन पर श्री गणेश की पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। श्री गणेश प्रथम देवता हैं जिनकी रचना की गई थी ताकि पूरा ब्रह्मांड शुभता, शांति, आनंद और आध्यात्मिकता से भर जाए। वह स्रोत है। वह अध्यात्म का स्रोत है। इसके परिणामस्वरूप अन्य सभी चीजें अनुसरण करती हैं। जैसे जब बारिश होती है और हवा चलती है तो आप वातावरण में ठंडक महसूस करते हैं। उसी तरह जब श्री गणेश अपनी शक्ति का उत्सर्जन करते हैं, तो हम इन तीनों चीजों को भीतर और बाहर महसूस करते हैं। लेकिन यह इतना दुर्भाग्यपूर्ण रहा है, विशेष रूप से पश्चिम में, सबसे महत्वपूर्ण मौलिक देवता को न केवल पूरी तरह से उपेक्षित किया गया है, बल्कि अपमानित किया गया और सूली पर चढ़ाया गया है। तो आज हालांकि मैं कुछ ऐसा नहीं कहना चाहती की आप परेशान हों, लेकिन मैं आपको बता दूं कि श्री गणेश की पूजा करने का मतलब है कि आपके भीतर पूरी तरह से स्वच्छ्ता होनी चाहिए। श्रीगणेश की पूजा करते समय मन को स्वच्छ रखें, हृदय को स्वच्छ रखें, अपने को स्वच्छ रखें – काम और लोभ का कोई विचार नहीं आना चाहिए। दरअसल, जब कुंडलिनी उठती है तो गणेश को हमारे भीतर जगाना होता है, अबोधिता को प्रकट होना पड़ता है – जो हमारे भीतर से ऐसे सभी अपमानजनक विचारों को मिटा देता है। अगर उत्थान हासिल करना है तो हमें समझना होगा कि हमें Read More …

Shri Trigunatmika Puja Huis Overvoorde, Rijswijk (Holland)

Shri Trigunatmika Puja अपना कॉमन सेंस इसमें लगायें और ये तभी संभव हो सकेगा जब आपके अंदर अहं न हो। अहं तो कभी भी कॉमन सेंस नहीं होता क्योंकि मुझे ये पसंद है … वो पसंद है । ये मैं ही अहं है जो अंधा है … विवेकहीन है … मूर्ख है अतः अंततः हम मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं। आपके अंदर कॉमन सेंस होना चाहिये जो अहं के परित्याग के बाद ही संभव है। अब लोग पूछते हैं माँ अहं का परित्याग कैसे करें? ये बहुत सरल है। सहजयोग में आपको अपना बांया दांये के ऊपर 108 बार गिराना चाहिये….. आपको लोगों को माफ करना चाहिये और आप स्वयं को भी देख सकते हैं। सबसे पहले देखें कि आप स्वयं को देखते हैं कि दूसरों को देखते हैं। मेरे साथ एक बार एक महिला यात्रा कर रही थी और वो कहने लगी कि ये आदमी कितना खूबसूरत है … वो महिला कितनी सुंदर है … प्यारी है। मैं उसकी ओर देख रही थी और सोच रही थी कि ये महिली जब तक हम उतरेंगे तब तक पागल ही हो जायेगी। वह सबको देखती ही जा रही थी … सबको जज करती जा रही थी कि कौन खूबसूरत है और कौन नहीं। और वो जिसको भी खूबसूरत बता रही थी मुझे वह व्यक्ति बदसूरत लग रहा था। मैंने उससे कहा कि आप ही ये निर्णय करें ….. मैंने तो ऐसी चीजें कभी भी ट्राइ नहीं की है। इसके बाद वह आदमी बहुत खराब है … बहुत गर्म स्वभाव का है … Read More …

Guru Puja: You Have To Respect Your Guru Château de Chamarande, Chamarande (France)

गुरु पूजापेरिस (फ्रांस), 29 जून 1985। (पूजा की शुरुआत में गेविन ब्राउन ने अंग्रेजी में श्री गणेश की प्रार्थना पढ़कर सुनायी) मुझे विश्वास है कि आप सब इन चीज़ों को कहते हैं, और आप इसे सुनते हैं, और आप इसे अपने दिल से कहते हैं। केवल परमात्मा से जुड़े हुए लोग ही श्री गणेश की पूजा कर सकते हैं। और श्री गणेश आपकी माता की पूजा करते हैं। सबसे पहले, किसी भी व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि एक माँ और एक गुरु का संयोजन है। चुंकि कार्य सम्पन्न करने के उद्देश्य के प्रति गुरु बहुत कठोर होते हैं। वह किसी भी स्वतंत्रता को लेने की अनुमति नहीं देते हैं, और माँ बहुत दयालु हैं। अच्छा, आप में माँ के लिए भावनाएँ भी नहीं हैं, है ना? क्या यह सब एक जुमला है, जिसे आप सुनते हैं, आपके दिमाग में चला जाता है और आपको लगता है कि आप आत्मसमर्पण करने वाले सहज योगी बन गए हैं? वैसे ही जैसे कि,सभी इस्लामी लोग मानते हैं कि उन्होंने भगवान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है, जैसे ईसाई मानते हैं कि उन्होंने भगवान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। यह सिर्फ एक जुमला है कि तुम यह हो, तुम वह हो। आप कैसे जानते हैं कि जो कहा गया है वह सच है? क्या तुमने मेरे हाथों में सूर्य नहीं देखा है? आपको और क्या सबूत चाहिए? जो कोई आपको गुमराह करता है वह निस्संदेह पापी है, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन ऐसे व्यक्ति के जाल में पड़ना क्या है! यदि Read More …

Farewell Puja Founex Ashram, Founex (Switzerland)

बिदाई के अवसर पर पूजा फौनेक्स, स्विटजरलैंड 14 जून 1985 क्या बात है? अब यह कौन खेलेगा? एक दम बढ़िया। बैठ जाओ। बैठ जाओ। आह, गुलाब आकार में बड़े हो गए हैं। क्या तुम्हे वो दिखता है? योगी: विशाल, माताजी। वे विशाल हैं। लेकिन वे आकार में बढ़ रहे हैं। आपके चैतन्य मुझे लगता है। ठीक है। तो अब। मुझे खेद है कि हमें आज यह जल्दबाजी में काम करना पड़ा। और परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है, आज जो स्थिति है वही है। मैं कृष्ण पूजा के लिए वापस नहीं आ सकती, लेकिन – नवरात्रि, क्षमा करें, नवरात्रि, शायद नही हो सकता है, हो सकता है, मैं नहीं कह सकती। लेकिन जो भी हो। थोड़ी पूजा करनी चाहिए। यही इच्छा थी। तो, हम इसे अभी करेंगे; बस आपके पास ज्यादा समय नहीं है। लेकिन आप मंत्र बोल सकते हैं और बस कोई मेरे पैर धो सकता है और फिर मेरे हाथ। तो पैर धोने में करीब पांच मिनट का समय लगता है। योगी: क्या हम आपके एक सौ आठ नाम कहें? अंग्रेजी में एक अनुवाद है। वह होगा। ठीक है? अगर आप ऐसा सोचते हैं – लेकिन मुझे लगता है कि मंत्र बोलना बेहतर है, बेहतर है, चक्रों के मंत्र, आप देखिए। यह कहना अच्छा है क्योंकि वह भी बहुत महत्वपूर्ण है, चक्रों के मंत्रों को कहना। योगी: शुरू से? … अंत से, हाँ। तो आप एक कहते हैं और फिर एक से दूसरे को दोहराते हैं। अब, इसे शुरू करें। हम श्री गणेश से शुरुआत कर सकते Read More …

The Truth Has Two Sides Geneva (Switzerland)

‘सत्य के दो पहलू होते हैं’जिनेवा सार्वजनिक कार्यक्रम 11 जून 1985 मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। लेकिन सत्य के दो पहलू हैं: माया जो हमें दिखाई देती हैं वह सत्य की तरह लग सकती है, और भ्रम का सार भी सत्य प्रतीत हो सकता है। लेकिन दूसरा पहलू निरपेक्ष है और इसे महसूस करना होगा, अपने मध्य तंत्रिका तंत्र पर अनुभव करना होगा। यह कोई मानसिक प्रक्षेपण (कल्पना)नहीं है जिसके बारे में हम सोच सकते हैं, न ही भावनात्मक कल्पना, लेकिन सच्चाई यह है कि इसे बदला नहीं जा सकता है। यह समझौता नहीं कर सकता। सत्य जानने के लिए हमें खुद को नम्र करना होगा। अब इतनी सारी चीजें जो हमें अब तक ज्ञात नही थी हमने विनम्रता से विज्ञान में खोज ली हैं । लेकिन बाहरी रूप में जो कुछ भी जाना जाता है, जैसे पेड़, उसकी जड़ें होनी चाहिए, और अगर आप सिर्फ पेड़ को देख रहे हैं तो इन जड़ों का ज्ञान नहीं हो पायेगा। और जब कोई जड़ों की बात करता है, तो हम हिल जाते हैं, क्योंकि हमें इसका पहले से कोई ज्ञान नहीं था। इस प्रकार हम केवल वृक्ष को देखने के लिए संस्कारित हैं, और हम अपने मन को यह नहीं समझा पाते हैं कि इसकी कुछ जड़ें होनी चाहिए। तो हम कह सकते हैं कि लोग विज्ञान में काफी आगे बढ़ चुके हैं, और तरक्की कर चुके हैं और विकसित देश बन गए हैं। लेकिन वे नहीं जानते हैं कि, अगर वे अपनी जड़ों की तलाश नहीं Read More …

Shri Krishna Puja: Play the melody of God Englewood Ashram, New Jersey (United States)

श्री कृष्ण पूजाएंजलवुड (यूएसए), 2 जून 1985। आज हम श्री कृष्ण की पूजा करने जा रहे हैं। श्री कृष्ण इस धरती पर ऐसे समय आए थे जब भारत में लोग बहुत कर्मकांडी थे। वे तथाकथित ब्राह्मणों के दास बन गए थे, जिन्हें परमात्मा के बारे में बिल्कुल भी पता नहीं था क्योंकि उन्होंने एक ऐसी कहानी शुरू की थी कि एक ब्राह्मण का पुत्र ही ब्राह्मण हो सकता है। तो, जन्म ने व्यक्ति की जाति निर्धारित की। उसके पहले ऐसा नहीं था कि ब्राह्मण का पुत्र ब्राह्मण होगा। यह भी सच है कि यदि आप एक साक्षात्कारीआत्मा हैं, वास्तविक अर्थों में, यदि आप वास्तव में साक्षात्कारीआत्मा हैं, तो आपको अवश्य ही ऐसा एक बच्चा प्राप्त होना चाहिए जो एक साक्षात्कारी आत्मा हो। और ऐसे ही यदि यह कहा जाए कि यदि पिता ब्राह्मण है, साक्षात्कारी आत्मा है, तो उसका पुत्र भी ब्राह्मण हो जाता है। चुंकि आप एक सहज योगी हैं, अब आप समझ सकते हैं कि एक सहज योगी का पुत्र सामान्य रूप से सहज योगी बन जाता है। तो यह तय हुआ कि ब्राह्मण के बच्चों को ब्राह्मण कहा जाएगा। धीरे-धीरे, इसका मतलब यह हुआ कि ब्राह्मण से पैदा हुए किसी भी बच्चे को ब्राह्मण कहा जाता था। अब, हमने देखा है कि कई सहजयोगियों के पास भी अपने बच्चों के रूप में साक्षात्कारी आत्मा नहीं है। हो सकता है उनके अपने कर्म, शायद बच्चे के, कुछ भी हो, लेकिन मैंने भी कुछ सहजयोगियों को भयानक शैतानी बच्चे होते देखा है। तो, यह दर्शाता है कि यह आपके Read More …

Devi Puja: Steady Yourself San Diego (United States)

देवी पूजा.सैन डिएगो, कैलिफ़ोर्निया (यूएसए), 31 मई 1985परमात्मा आपको आशिर्वादित करे।कृपया बैठ जाएँ। (सिर्फ रिकॉर्ड करने के लिए, हम्म?)सैन डिएगो के आश्रम में आकर बहुत खुशी हो रही है। और यह इतनी खूबसूरत जगह है, ईश्वर के, परमात्मा के प्यार को इतना व्यक्त करते हुए, जिस तरह से परमात्मा हर कदम पर आपकी मदद करना चाहता है। यदि आप एक आश्रम चाहते हैं, यदि आप एक उचित स्थान चाहते हैं, आप अपने बच्चों की अच्छी तरह से देखभाल करना चाहते हैं, आप ईश्वरीय काम करना चाहते हैं, हर चीज की देखभाल की जाती है, हर चीज कार्यांवित होनी पड़ती है। अगर यह कार्यांवित ना हो तो आप किस तरहअपना काम करेंगे? तो, यह सब काम करता है। और यह इतना स्पष्ट है, जिस तरह से हमारे पास अलग-अलग आश्रम हैं, बहुत ही उचित धनराशि जो हम खर्च कर सकें में ऐसे आरामदायक स्थान उपलब्ध हैं, कि हम एक साथ खुशी से रह सकते हैं। यह आपके लिए प्यार से बनाया गया घर है। तो सबसे पहले हमें एक बात याद रखनी होगी कि आपस में पूर्ण प्रेम हो। [मराठी] हमें उन लोगों पर भरोसा नहीं करना चाहिए जो हमें बांटने की कोशिश करते हैं, जो हमें गलत विचार देने की कोशिश करते हैं। ऐसे व्यक्ति को पहचानना जो दिल से सहजयोगी हो बहुत आसान है। पहचानना बहुत आसान है। आपको थोड़ा और संवेदनशील होना होगा और आप ऐसे व्यक्ति को बहुत आसानी से खोज लेंगे। जो कोई भी चालाक हो, उसे खोजा जा सकता है। अब कोई परमेश्वर के विरुद्ध Read More …

Shri Ganesha Puja: You Should be Prepared to Change Rome Ashram – Nirmala House, Rome (Italy)

                       श्री गणेश पूजा  रोम (इटली), १९ मई १९८५। मेरे लिए बहुत श्रेष्ठ दिन है कि, गणेश पूजा मनाने के लिए इटली आई हूँ। चारों तरफ जिस प्रकृति को हम देखते हैं, वह गणेश का आशीर्वाद ही है क्योंकि वे ही हैं जो धरती माता से प्रार्थना करते हैं कि वह मनुष्यों पर अपना आशीर्वाद दें। 3:26 यह वही है जो प्रकृति के सभी तत्वों को ढाल कर और उन्हें जीवन बनाने के लिए प्रेरित करता है। जैसा कि आप उन्हें कहते हैं, ये सभी कार्बोहाइड्रेट हैं। अब कार्बोहाइड्रेट में कार्बन और हाइड्रोजन होते है। कार्बन श्री गणेश से आ रहा है और हाइड्रोजन महाकाली से आ रही है। और इस तरह हमारे चारों तरफ इस खूबसूरत तरीके से इस ब्रह्मांड का निर्माण होता है। अब, इन कार्बोहाइड्रेट को ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है जो हमें सूर्य द्वारा, दायें पक्ष द्वारा दी जाती है। इस प्रकार, आप जानते हैं कि ये पेड़ रात में हाइड्रोजन उत्सर्जित करते हैं और दिन में ये ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं। यह सब श्री गणेश की चाल है जो बीच में विराजमान हैं। अब वही सूर्य बनते है। वह कुंडलिनी के नीचे गहरे आसन से उत्थान करते है। वह महाकाली के बाएं पक्ष से उठकर ऊपर जाते है और सूर्य अर्थात् आज्ञा चक्र में स्थित हो जाते है। तो महाकाली, जो कि आदि शक्ति है, को वे पूर्णतया पार कर जाते हैं| महाकाली की संतान के रूप में, वह पूरी तरह से उनके प्रति समर्पित और श्रद्धामय हैं। और इसी तरह वह महाकाली शक्ति में निपुण Read More …

Sahasrara Puja Laxenburg (Austria)

आप विराट के सहस्त्रार में प्रवेश कर रहे हैं …. (सहस्त्रार पूजा, लक्समबर्ग , वियेना, ( ऑस्ट्रिया ), 5 मई 1985) आज हम ऑस्ट्रिया की महारानी द्वारा बनाये गये इस स्थान पर सहस्त्रार पूजा के लिये एकत्र हुये हैं। जैसे ही आप सहस्त्रार के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तभी आपको सहस्त्रार पूजा करने का अधिकार है। इससे पहले किसी ने भी सहस्त्रार के विषय में बात नहीं की ….. और न ही उन्होंने कभी सहस्त्रार की पूजा की। ये आपका ही विशेषाधिकार है कि आप सहस्त्रार के क्षेत्र में पंहुच चुके हैं और इसकी पूजा भी कर रहे हैं। ये आपका अधिकार है ….. इसी कार्य के लिये आपका चयन हुआ है। ये आपके लिये विशेषाधिकार प्राप्त स्थान है कि आप विराट के सहस्त्रार में प्रवेश कर रहे हैं …. उनके मस्तिष्क में सहस्त्रार की कोशिका के रूप में निवास करने के लिये। आइये देखें कि सहस्त्रार की कोशिकाओं की विशेषतायें क्या हैं। स्वाधिष्ठान के कार्य करने के कारण ये कोशिकायें विशेष रूप से सृजित हैं और ये सभी चक्रों से होकर गुजरती हैं। जब वह सहस्त्रार पर पंहुचती हैं तो वे बिना शरीर के अन्य तत्वों से मिले या आसक्त हुये मस्तिष्क की गतिविधियों की देख रेख कर सकती हैं। इसी प्रकार से सहजयोगियों को भी अन्य कोशिकाओं ….. इस ब्रह्मांड के अन्य मनुष्यों से नहीं मिलना चाहिये। सबसे पहली चीज जो सहजयोगियों को सहस्त्रार के स्तर पर होती है वह है उसका सभी चीजों से परे हो जाना। वह कई चीजों से परे हो जाता है …. Read More …

Talk: You have to be in Nirvikalpa, Eve of Sahasrara Puja Laxenburg (Austria)

              “आपको निर्विकल्प में रहना होगा”। वियना, 4 मई 1985। सहस्रार दिवस मनाने के लिए इतने सारे सहज योगी आते हुए देखना बहुत संतुष्टिदायक है। सहस्रार को तोड़े बिना हम सामूहिक रूप से उत्थान नहीं कर सकते थे। लेकिन सहस्रार, जो कि मस्तिष्क है, पश्चिम में बहुत अधिक जटिलताओं में चला गया है और नसें बहुत अधिक मुड़ी हुई हैं, एक के ऊपर एक। सहस्रार को खुला रखना बहुत आसान होना चाहिए अगर पश्चिमी दिमाग आपकी माँ के बारे में समझ पाते और जागरूक हो सके। जब आपकी माता सहस्रार की देवी हैं, तो सहस्रार को खुला रखने में सक्षम होने का एकमात्र तरीका पूर्ण समर्पण होना है। इसके लिए बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं, “हम इसे कैसे करें?” यह एक बहुत ही मजेदार सवाल है – यह अप्रासंगिक है। यदि आपका सहस्रार किसी के द्वारा खोल दिया गया है, और सौभाग्य से वह देवता आपके सामने हैं, तो समर्पण करना सबसे आसान काम होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है। यह कठिन है क्योंकि जो चित्त मस्तिष्क की कोशिकाओं के माध्यम से आया है, मस्तिष्क की कोशिकाओं के माध्यम से स्वयं को व्यक्त करता है, वह प्रदूषित है, वह अशुद्ध है, वह विनाशकारी है; यह नसों को खराब कर देता है और जब नसें खराब हो जाती हैं, तो आत्मा का प्रकाश नसों पर नहीं पड़ता है और आप समर्पण करने में असमर्थता महसूस करते हैं। आम तौर पर, यह करना सबसे आसान काम होना चाहिए। इसलिए, हमें मानसिक रूप से खुद से संपर्क करना होगा। हमें खुद से बात Read More …

Mother’s Day Puja: Talk on Children University of Birmingham, Birmingham (England)

                  मदर्स डे पूजा, बच्चों पर बात बर्मिंघम, इंग्लैंड 21 अप्रैल 1985। कृपया बैठ जाएँ। गेविन नहीं आया है? क्या गैविन नहीं है? बच्चों के साथ महिलाओं को भी पूजा के लिए बैठना चाहिए। वे अभी तक नहीं आए हैं? किसी को जाकर बताना होगा। योगी: कार वाला कोई व्यक्ति कृपया मुख्य बिंदु तक जाए और लोगों को बताएं कि उन्हें पहुंचना चाहिए। बेहतर हो कोई कार वाले सज्जन। श्री माताजी: ये क्या कर रहे हैं? योगिनी: हमें दोपहर बारह से पहले कमरे खाली करने होंगे। योगी: माँ, हमें अभी-अभी बताया गया है कि हमें अपने कमरे को बारह बजे तक खाली करना होगा, इसलिए इससे थोड़ा भ्रम हुआ है। श्री माताजी: क्यों? योगी: क्योंकि अधिकारी बारह बजे तक अपने कमरे वापस चाहते हैं। श्री माताजी: ओह, मैं समझी हूँ। तो फिर… योगी: क्या उन्हें अपने कमरे भी जल्दी खाली करने की कोशिश करनी चाहिए? श्री माताजी: हाँ। लेकिन मैं पूजा को बहुत पहले खत्म कर दूंगी, ग्यारह तीस के करीब। वे तब जा सकते थे। क्योंकि अगर आप देर से शुरू करते हैं, तो फिर से देर हो जाएगी। किसी भी मामले में मुझे पूजा को जल्दी खत्म करना होगा, क्योंकि मैं पहले जा रही हूं। योगी: क्या कई लोग जिनके पास कार है वास्तव में लोगों को हॉल में वापस आने में मदद कर सकते हैं …? श्री माताजी: या वे अपने रास्ते पर हो सकते हैं। क्या वे सब एक साथ आ रहे हैं? बस सुनिश्चित करें कि, क्या वे एक साथ आ रहे हैं। जल्दी चलो, साथ Read More …

Seminar, Mahamaya Shakti, Evening, Improvement of Mooladhara University of Birmingham, Birmingham (England)

                                            महामाया शक्ति बर्मिंघम सेमिनार (यूके), 20 अप्रैल 1985. भाग 2 श्री माताजी: कृपया बैठे रहें। क्या यह सब ठीक है? क्या आप ठीक रिकॉर्ड कर रहे हैं? सहज योगी: हाँ माँ तो इसी तरह से महामाया के खेल होते हैं | उन्होंने हर चीज की योजना बनाई थी। उनके पास सारी व्यवस्था बनायीं थी और साड़ी गायब थी। ठीक है। तो उन्होंने आकर मुझे बताया कि साड़ी गायब है, तो अब क्या करना है? उनके अनुसार, आप साड़ी के बिना पूजा नहीं कर सकती हैं। तो मैंने कहा, “ठीक है, चलो इंतजार करते हैं ।” यदि यह साडी समय पर आती है तो हम पूजा करेंगे; अन्यथा हम यह बाद में कर सकते हैं। लेकिन मैं बिलकुल भी परेशान नहीं थी,ना अव्यवस्थित । क्योंकि मुझे इसका कोई मानसिक अनुमान नहीं है। लेकिन अगर आपके पास एक मानसिक अवधारणा है की , “ओह, हमने सब कुछ प्रोग्राम किया है, सब कुछ व्यवस्थित किया है। हमने यह कर लिया है और अब यह व्यर्थ जा रहा है। ” कोई बात नहीं कुछ भी  फिजूल नहीं है। [हसना] लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाते। चूँकि आपने आज मुझसे पूछा था, “महामाया क्या है?”, यही है वो महामाया । [हसना] आपको अपने मार्ग में जो कुछ भी आता है उसे स्वीकार करना सीखना चाहिए। यह भी एक चीज़ है और चूँकि हम एक मानसिक कल्पना कर लेते हैं इसलिए,यहाँ हम निराश, क्रोधित, परेशान हो कर और अपने आनन्द को बिगाड़ लेते हैं। मानसिक रूप से हम कुछ गणना करते हैं। ऐसा होना ही है। Read More …

Public Program (भारत)

॥ जय श्री माता जी ।। धर्मशाला 31-03-85 धर्मशाला के मातृभक्तों को मेरा प्रणाम ! यहाँ के मन्दिर की कमेटी ने ये आयोजन किया, जिसके लिए मैं उनका बहुत धन्यावाद मानती हूँ। असल में इतना सत्कार और आनंद, दोनों के मिश्रण से हृदय में इतनी प्रेम की भावना उमड़ आयी है कि वो शब्दों में ढालना मुश्किल हो जाता है। कलियुग में कहा जाता है कि कोई भी माँ को नहीं मानता । ये कलयुग की पहचान है कि माँ को लोग भूल जाते हैं। लेकिन अब ऐसा कहना चाहिए कि कलियुग का समय बीत गया, जो लोगों ने माँ को स्वीकार किया है । माँ में और गुरू में एक बड़ा भारी अन्तर मैंने पाया है, कि माँ तो गुरू होती ही है, बच्चों को समझाती है, लेकिन उसमें प्यार घोल – घोल कर इस तरह से समझा देती है कि बच्चा उस प्यार के लिए हर चीज करने को तैयार हो जाता है । ये प्यार की शक्ति, जो सारे संसार को आज ताजगी दे रही है, जो सारे जीवन्त काम कर रही है, जैसे ये पेड़ का होना, उसकी हरियाली, उसके बाद एक पेड़ में से हो जाना और फूल में फूल से फल हो जाना, ये जितने भी कार्य हैं, जो जीवन्त कार्य हैं, ये कौन करता है? ये सब करने वाली जो शक्ति है वो परमात्मा की प्रेम की शक्ति है। उसी को हम आदि शक्ति कहते हैं। परमात्मा तो सिर्फ नज़ारा देखते हैं कि उनकी शक्ति का कार्य कैसे हो रहा है? जब उनको Read More …

Devi Puja (भारत)

देवी पूजा धर्मशाला, ३०.३.१९८५ आज के शुभ अवसर पर यहाँ आए हैं। आज देवी का सप्तमी का दिन हैं। सप्तमी के दिन देवी ने अनेक राक्षसों को मारा, अनेक दुष्टों का नाश किया, विध्वंस कर डाला। क्योंकि संत -साधु जो यहाँ पर बैठे हुए तपस्या में संलग्न हैं उनको ये लोग सताते थे। हम लोग सोचते हैं कि माँ ये क्यों, क्यों इन्होंने इतनी तपस्या की। इनको क्या जरूरत थी इतना तप करने की, इतनी तपस्या करने की। वजह ये कि तब मनुष्य का तपका बहुत नीचा था। लेकिन आँख बहुत उन्नत थी। वो सोचते थे कि हम इस शरीर से उस आत्मा को प्राप्त कर लें। इसलिए उन्होंने इतनी मेहनत की और इस स्थान में बैठ करके इतनी तपस्विता की। आज उन्हीं की कृपा से हम लोग आज इतने ऊँचे स्थान पर बैठे हुए हैं। उन्हीं की कृपा से हमने पाया। इसका मतलब ये नहीं कि हम लोग इस सहजयोग को समझ लें कि हमारे लिए एक बड़ी भारी देन हो गयी , कोई हमे बड़े महान लोग हैं जिनको कि भगवान ने वरण कर लिया, हम लोग चुने हुए मनुष्य हैं और इस तरह की बातें सोचने वाले लोगों को मैं बताती हूँ बड़ा धक्का बैठेगा। ये देखेंगे की जो लोग यहाँ स्वभाव से अत्यन्त सुन्दर हैं, वे सबसे पहले आकाश की ओर उठेंगे और बाकी सब यही धरातल पर बैठे रहेंगे। जितनी जड़ वस्तु है सब यहीं रह जाएगी। इसलिए सिर्फ आपका साक्षात्कार होना पूरी बात नहीं है। मैं यही बात अंग्रेजी में कह रही थी, वही Read More …

Birthday Puja New Delhi (भारत)

जनम दिवस पूजा प्रवचन सहज मंदिर, नई दिल्ली, २६.३.१९८५ आज आप लोग हमारा जन्मदिवस मना रहे हैं। यह एक बड़ी सन्तोष की बात है क्योंकि इस कलियुग में कौन माँ का जन्मदिन इस उम्र में मनाता है। इसलिय यह द्योतक है कि आप लोग इस कलियुग में जन्म लेकर के भी अपने मातृधर्म से परिचित ही नहीं लेकिन उसका अवलम्बन भी करते हैं। से इस उम्र में तो जन्म दिन मनाना माने एक-एक साल घटता ही जा रहा है। और बहुत काम करने के बचे हैं। बहुत से अभी कार्य मुझे दिखाई दे रहे हैं जो कि अधूरे से हैं। उन पर मेहनत करनी होगी, ध्यान देना पड़ेगा, तभी वो पूरी तरह से होंगे। हुए दिल्ली में जो काम मैंने कल कहा था कि हमें अपनी सभ्यता की ओर ध्यान देना चाहिए । हमारी सांस्कृतिक स्थिति भी ठीक करनी चाहिए। और तीसरी बात जो बहत महत्वपूर्ण है वो ये कि हमारी जो आत्मिक उन्नति है, उसकी ओर हमें ध्यान ही नहीं देना चाहिए, पर जैसे कोई एक शहीद सर पर कफन बाँध करके किसी कार्य में संलग्न होता है, उसी प्रकार हमें ‘सरफरोशी की तमन्ना’ ले करके सहजयोग करना चाहिए। जब तक हमारे अन्दर ये बात नहीं आती, तब तक सहजयोग सिर्फ हमारे ही लाभ के लिये है। इससे हमें क्या फायदे हुए, इससे हमने क्या-क्या सुख उठाया, यही सब मैं सुनती रहती हूँ। इससे हमारा जो कुछ भी लाभ हुआ है, जो भी हमारा अच्छा हुआ है, वो एक वजह से, एक कारण से हुआ है कि हमने अपनी Read More …

Chaitra Navaratri Puja New Delhi (भारत)

सहजयोगियों के लिये भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का महत्त्व दिल्ली , २५/३/१९८५ आज नवरात्रि के शुभ अवसर पर सबको बधाई ! सहजयोग के प्रति जो उत्कण्ठा और आदर प्रेम आप लोगों में है वो जरूर सराहनीय है, इसमें कोई शंका नहीं। क्योंकि जो हमने उत्तर हिन्दुस्तान की स्थिति देखी है वहाँ पर हमारी परम्परागत जो कुछ धारणाएँ हैं उसी प्रकार शिक्षा प्रणालियाँ हैं, सब कुछ खोई हुई हैं । बहुत कुछ हम लोगों का अतीत मिट चुका है और हम लोग एक उधेड़बुन में लगे हुए हैं कि नवीन वातावरण, तीन सौ साल की गुलामी के बाद स्वतन्त्रता पाने पर तैयार हुआ, वो एक बहुत विस्मयकारी जरूर है, लेकिन विध्वंसकारी भी है । माने कि जैसे कि हम अपने मूलभूत तत्त्वों से उखड़ से गए हैं। उनका सिंचन नहीं हुआ, ये बात जरूर है, लेकिन जो कि हमारा भी रुझान ज्यादा बाह्य की ओर रहा। ये उत्तर हिन्दुस्तान पर एक तरह का शाप सा है। उत्तर प्रदेश में मैं सोचती हूँ कि सीताजीके साथ जो दुर्व्यवहार किया गया उसके फलस्वरूप अब मेरे ख्याल से धोबियों का ही राज शुरू हो गया है। और बड़ी दुःख की बात है कि जब आप उत्तर प्रदेश में सफर करते हैं तो देखते हैं कि लोगों में उथलापन, अधूरापन, अश्रद्धा, अनास्था आदि इतने बुरे गुण आ गये हैं कि लगता नहीं है कि वहाँ कभी सहजयोग पनप सकता है। बड़ा दूसरी बात बिहार, पंजाब, हर जगह ये पाया जाता है कि हम अपने को कहलाते हैं कि हिन्दू या भारतीय हैं, लेकिन हम अपनी Read More …

Public Program Jaipur (भारत)

जयपुर के सर्व सत्य शोधकों को हमारा प्रणाम। जीवन में हर मनुष्य अपनी धारणा के बूते पर रहता है। जो भी धारणा वो बना लेता है उसके सहारे वह जीता है। लेकिन एक कगार ऐसी ज़िन्दगी में आ जाती है, जहाँ पर जा कर वह यह सोचता है, कि, “मैंने आज तक जो सोचा, जो धारणाएं लीं, वो फलीभूत नहीं हुईं। उससे मैंने आनंद की प्राप्ति नहीं की, उससे मुझे समाधान नहीं मिला, उससे मैंने शांति प्राप्त नहीं की।” जब वो कगार मनुष्य के सामने खड़ी हो जाती है, तब वो अपनी धारणाओं के प्रति शंकित हो जाता है। और उस वक़्त वो ढूँढने लग जाता है कि इससे परे कौन सी चीज़ है, इससे परे कौन सी दुनिया है, जिसे मुझे प्राप्त करना है। ये जब शुरुआत हो जाती है, तभी हम कह सकते हैं, कि मनुष्य एक साधक बन जाता है। वो सत्य के शोध में न जाने कहाँ-कहाँ भटकता है। कभी-कभी सोचता है कि, बहुत सा अगर हम धन इकठ्ठा कर लें, तो उस धन के बूते पे हम आनंद को प्राप्त कर लेंगे। फिर सोचता है कि हम सत्ता को प्राप्त कर लें – सत्ता को प्राप्त करने से ही हम आनंद को प्राप्त कर लेंगे। फिर कोई सोचता है कि अगर हम किसी मनुष्य मात्र को प्रेम करें, तो उसी से हम सुख को प्राप्त कर लेंगे। उससे आगे जब वो विशालता पे उठता है, तो ये सोचता है कि, हम प्राणी मात्र की सेवा करें, उनकी कुछ भलाई करें, उनके उद्धारार्थ कोई कार्य करें, Read More …

Public Program Jaipur (भारत)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी, सार्वजनिक कार्यक्रम, 23 मार्च, 1985 जयपुर, राजस्थान, भारत श्री माताजी के आगमन पूर्व का दृश्य बहुत सारे साधकों से हॉल भरा हुआ है।  एक सहज योगी भाई नए लोगों को अंग्रेजी भाषा में संबोधित कर रहे हैं। उसके पश्चात श्रीमती सविता मिश्रा भजन प्रस्तुत करती हैं। भजन समाप्ति की उपरांत श्री योगी महाजन दर्शकों को संबोधित कर रहे होते हैं।  तभी श्री माताजी का आगमन होता है, और वे स्टेज पर तेजी से चढ़ते हुए हम सब को दर्शन देती हैं। सब को प्रणाम कर के वे अपनी सिंहासन पर विराजमान होती हैं। योगी महाजन  श्री माताजी का स्वागत कर के सहज योग के विषय में संक्षिप्त में बोलते हैं। तत्पश्चात उनके आमंत्रण पर डॉक्टर वारेन भी सहज योग का संक्षिप्त परिचय देते हैं। श्रीमती सविता एक और भजन प्रस्तुत करती हैं। श्री माताजी को माल्यार्पण किया जाता है और उनके साथ उपस्थित सज्जन को भी। (वे अंग्रेजी में कहती है की – आई विल स्टैंड एंड स्पीक) (श्री माताजी खड़ी हो गई हैं, और सब पर दृष्टि डालते हुए अपना भाषण आरंभ करती हैं) जयपुर के साधकों को हमारा प्रणाम। श्री कृष्ण ने तीन तरह के लोग संसार में बताए हुए हैं, जिन्हे के वे तामसिक, राजसिक और सात्विक कहा करते थे।  तामसिक वो लोग होते हैं, कि जो अच्छा और बुरा, शुभ अशुभ कुछ भी नहीं पहचानते, पर अधिकतर अशुभ की ही ओर दौड़ते हैं, अधिकतर गलत चीजों की ओर ही दौड़ते हैं। जब वो अति इस में घुस जाते हैं, तो Read More …

Birthday Puja: Our maryadas Kew Ashram, Melbourne (Australia)

जन्मदिन पूजा मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया), 17 मार्च 1985। आज आप सभी को मेरा जन्मदिन मनाते हुए और साथ ही उसी दिन राष्ट्रीय कार्यक्रम करते हुए देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। मार्च के महीने में हमारे पास यह एक अच्छा संयोजन है। इसे भारत में वसंत ऋतु के रूप में माना जाता है – मधुमास। यही तुम गाते हो, मधुमास। और जैसा कि आप जानते हैं कि 21 मार्च विषुव है, इसलिए यह एक संतुलन है और कुंडली में सभी राशियों का केंद्र भी है। मुझे इतने सारे केंद्र हासिल करने थे और मैं भी कर्क रेखा पर पैदा हुई थी उसी तरह जैसे कि आप मकर रेखा पर हैं, और आयर्स रॉक मकर रेखा पर है – ठीक मध्य में। इसलिए, इतने सारे संयोजनों पर काम करना पड़ा। तो उत्क्रांति का सिद्धांत है मध्य में होना, संतुलन में होना, मध्य की मर्यादा में होना, केंद्र की सीमाओं में होना, यही सिद्धांत है। तो क्या होता है जब हम मर्यादाओं की सीमाओं को बनाये नही रखते? फिर हम पकड़े जाते हैं। अगर हम मर्यादा में रहते हैं तो हम कभी पकड़े नहीं जा सकते। बहुत से लोग कहते हैं, “मर्यादा क्यों?” मान लीजिए कि हमारे पास मर्यादा है, इस सुंदर आश्रम की सीमाएं हैं और कोई आप पर हर तरफ से,भवसागर पर हर तरफ से हमला कर रहा है, तो अगर आप भवसागर की मर्यादा से बाहर जाते हैं तो आप पकड़े जाते हैं। इसलिए आपको मर्यादा में रहना होगा। और मर्यादाओं पर टिके रहना कठिन होता है जब आपके Read More …

Devi Puja: How To Ascend Into Nirvikalpa Sydney (Australia)

             देवी पूजा, “निर्विकल्प तक उत्थान कैसे पाएँ ”  सिडनी (ऑस्ट्रेलिया), 10 मार्च 1985 बयार चलेगी, अब आपको परेशानी नहीं होगी। इतने उच्च विकसित बहुत सारे सहजयोगियों को देखकर बहुत खुशी होती है। मुझे यकीन है कि सभी देवी-देवता और स्वयं सर्वशक्तिमान ईश्वर इस उपलब्धि को देखकर बहुत प्रसन्न होंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन मुझे बताया गया था कि आप उच्च तरीके, या ऊँची बातें जानना चाहते हैं, जिसके द्वारा आप उच्च और अधिक ऊंचाई का उत्थान चाहते हैं। समाधि अवस्था में, सबसे पहले निर्विचार समाधि होती है, जैसा कि आप जानते हैं, निर्विचार समाधि कहलाती है। और फिर दूसरी अवस्था में, जिसे निर्विकल्प समाधि कहा जाता है, जहां यह निस्संदेह जागरूकता है, दो चरण हैं: सविकल्प और निर्विकल्प। अधिकांश सहजयोगी अब सविकल्प पर हैं, अभी तक निर्विकल्प पर नहीं हैं। और निर्विकल्प तक उठने के लिए, हमें यह समझना होगा कि हमें इसके बारे में कुछ और करना होगा। अब तक हमारी शारीरिक समस्याएं थीं जिनका समाधान हो गया है – शारीरिक जरूरतें, सुख-सुविधाएं अब हम पर हावी नहीं हो सकतीं। हम ब्रह्मपुरी जैसी किसी भी स्थिति में रह सकते हैं। हम उस सबका आनंद लेते हैं, जो दर्शाता है कि हम अब भौतिक जीवन या पदार्थ द्वारा निर्धारित बंधनों  से ऊपर उठ गए हैं। यह एक अच्छी स्थिति है जहां हम पहुंच गए हैं, जो लोगों के लिए भी बहुत मुश्किल है। आम तौर पर, लोग बेहद उधम मचाते हैं; वे सांसारिक चीजों, सांसारिक संपत्ति, सांसारिक भौतिक समस्याओं के बारे में चिंतित हैं। उनमें से बहुत से Read More …

Mahashivaratri Puja New Delhi (भारत)

Mahashivaratri Puja Date : 17th February 1985 Place Delhi Туре Puja Speech Language Hindi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Chaitanya Lahari अपनी कुण्डलिनी को नीचे नहीं गिरने दें । आज शिवरात्रि के इस शुभ अवसर पे हम लोग एकत्रित हुए हैं और ये बड़ी भारी बात है कि हर बार जब भी शिवरात्रि होती है मैं तो दिल्ली में रहती हूँ। हमारे सारे शरीर, मन, बुद्धि, अहंकार, सारे चीजों में सबसे महत्वपूर्ण चीज है आत्मा और बाकी सब कुण्डलिनी इसलिए नीचे गिरती है क्योंकि हमारे अन्दर बहुत से पुराने विचार, पुराने conditionings है और इसलिए भी गिरती है कि हम futuristic बहुत हैं। जैसे हम अपने दिल्ली का विचार करें तो दिल्ली में कुछ लोग तो बहुत पुराने विचार के, पुराने व्यवस्था के अनुसार रहते रहे हैं। उनके अन्दर ऐसी-ऐसी भावनाएँ बनी हुई हैं कि जिनको निकालना भी बहुत मुश्किल है क्योंकि वो धर्म के ही नाम पर ये सब चीजें करते है कि यही धर्म है, इसी में रहना चाहिए। यही सत्य है, यही सब कुछ बाह्य के उसके अवलम्बन है। आत्मा में हम अपने पिता प्रभु का प्रतिबिम्ब देखते हैं। कल आपको आत्मा के बारे में मैंने बताया था। वही आत्मा शिव स्वरूप है। शिव माने जो बदलता नहीं, जो अवतरित नहीं होता, जो अपने स्थान में पूरी तरह से जमा रहता है, जो अचल, अटूट, अनल, ऐसा वर्णित है उस शिव की आज हम अपने अन्दर पूजा कर रहे है वो हमारे अन्दर प्रतिबिम्बित हैं कुण्डलिनी के जागरण से हमने उसे हमें परमात्मा की ओर Read More …

Sahasrara – Atma New Delhi (भारत)

Sahastrar – Atma Date : 16th February 1985 Place Delhi Туре Public Program Speech Language Hindi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Nirmala Yog सत्य के खोजने वाले सभी साध्कों को हमारा प्रणाम । जीवित रहेंगे? यह हृदय का जो स्पन्दन है- अनहदू, हर आज का मधुर संगीत आज के विषय से बहत सम्बन्धित घड़ी अपने आप ही कार्यान्वित रहता है उसको चलाने के है जिसके लिए मैं देब चौधरी को बहुत-बहुत घन्यवाद देती लिए अगर हमें बाहुय से कोई उपचार करना पड़ता तो हूँ। सभी सहज व्यवस्था हो जाती है और आज संगीत में जो कितने लोग इस संसार में जीवित पैदा होते? ऐसी अनेक आपने सात स्वरों का खेल देखा, हमारे अंदर भी ऐसा ही चीजें जो जीवन्त हैं, हम देखते हैं। फल खिलते हैं अपने आप सुन्दर संगीत नि्माण हो सकता है। यह जो कण्डलिनी के और इनके फल भी हो जाते हैं अपने आप। यह ऋतम्भरा सात चक्र आप देख रहे हैं वे हैं मूलाधार चक्र, मलाधार, स्वाधिष्ठान, नाभि, हृदय, विश्द्धि, आज्ञा और सहस्रार। इसके अलावा हमारे अन्दर सूर्य और चन्द्र के भी चक्र हैं। ब्रहमरन्ध्र को छेदने के बाद भी तीन और चक्र हमारे अन्दर हैं और कार्य करते हैं जिन्हें हम अर्धबिन्द, बिन्दू और वलय कहते हैं। यह सार हमारे अन्दर स्वर हैं। जैसे “स” से शुरू करें तो “सा र गा मा पा धा नी” सहलार पर “नी” जाकर पहुँचता है। इसी प्रकार इन सब चक्रों को शक्ति देने वाले ऐसे ग्रह भी हैं। जैसे मूलाधार पर मंगल, स्वाधिष्ठान पर बुद्ध, नाभि Read More …

Bordi Seminar Final Talk, Maya Is Important Bordi (भारत)

[English to Hindi translation] इस अवसर पर जब आप सभी मुझे छोड़ कर जा रहे हैं, इन्ह गुणों को सुनना कठिन है जो आपके सुंदर गीत में वर्णित है। मेरे शब्द एक घोर उदासी की भावना से इतने भरे हुए हैं, साथ ही नए कार्यों के विचारों का उत्साह, कुछ विचार कि मुझे और भी बहुत कुछ करना है आप जो भी वर्णन कर रहे हैं मुझे उसे स्थापित करने के लिए। कितने ही राक्षसों का वध होना है जैसा कि आप ने मेरा वर्णन किया है। सारी विषमताएं दूर करनी हैं इस दुनिया से। सारा अज्ञान, अंधकार, कल्पनाएँ जैसा आपने वर्णन किया है, उसे हटाना होगा मुझे। इस संसार को नष्ट करना बहुत आसान है और राक्षसों, शैतानों को नष्ट करना, आसान था पर आज समय इतना विकट है कि इन सभी ने प्रवेश कर लिया है दिमागों में, अनेक साधकों के सहस्रार। तो, यह एक बहुत ही नाजुक काम है उन भयानक प्रभावों को दूर करने के लिए साधकों को चंगुल से बचाने के लिए इन शैतानों के। आपने समझने की बहुत कृपा की है कि यह बहुत नाजुक चीज है और हम यह नहीं कर सकते कठोरता के साथ, कड़ाई के साथ, सीधे तरीके से हमें उन्हें घुमाना है क्योंकि वे कठोर चट्टानें हैं और उन्हें इसके माध्यम से समझाएं करुणा, प्रेम और पूरी चिंता। विवेक ही एकमात्र तरीका है जिससे हम संचालन कर सकते हैं और सभी प्रकार के विवेक के तरीकों का उपयोग करना पड़ता है इन लोगों को बचाने के लिए । अधिकतम संख्या Read More …

The Culture of Universal Religion Bordi (भारत)

“विश्व निर्मल धर्म की संस्कृति” बोर्डी (भारत), 7 फरवरी 1985। युद्ध के मैदान में हमारी नई यात्रा का आज दूसरा दिन है। हमें लोगों को प्यार, करुणा, स्नेह और आत्मसम्मान से जीतना है। जब हम कहते हैं कि यह एक विश्व धर्म है, यह एक सार्वभौमिक धर्म है जिससे हम संबंधित हैं, सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात, इसका सार शांति है। शांति भीतर होनी चाहिए, शुरुआत करने के लिए। आपको अपने भीतर शांत रहना होगा। यदि आप शांत नहीं हैं, यदि आप अहंकारयुक्त छल कर रहे हैं, यदि आप केवल यह कहकर स्वयं को संतुष्ट कर रहे हैं कि आप शांतिपूर्ण हैं, तो कहना दुखद है किआप गलत हैं। शांति स्वयं के अंदर आनंद प्राप्ति के लिये है। यह अपने भीतर महसूस करने के लिये है। इसलिए स्वयं को गलत सन्तुष्टि न दें, स्वयं को झूठी धारणाएं न दें। अपने आप को धोखा मत दो। शांति को अपने ही भीतर महसूस करना होगा, और यदि आप ऐसा महसूस नहीं कर रहे हैं, तो आपको आकर मुझसे यह नहीं पूछना चाहिए, “माँ, मुझे यह महसुस क्यों नहीं हो रही है।” क्योंकि मैं आपको यह नहीं बताने वाली हूं कि आपके साथ कुछ गलत है। आपको इसे कार्यंवित करना होगा कि आप अपने भीतर शांति महसूस करें। ऐसा नहीं है कि बाहर बहुत अधिक सन्नाटा हो तब आप शांति का अनुभव करते हैं। शांति अपने भीतर होनी चाहिए। यह तुम्हारे ही पास है। आपकी आत्मा पुर्णत: शांत है – अव्यग्र, बिना बेचैनी के। आपकी आत्मा में कोई बेचैनी नहीं है। बिल्कुल Read More …

A New Era – Sacrifice, Freedom, Ascent Bordi (भारत)

                                एक नया युग – त्याग, स्वतंत्रता, उत्थान  बोरडी (भारत), 6 फरवरी 1985। आप सभी को यहां देखकर मुझे अपार हर्ष हो रहा है। मुझे नहीं पता कि मेरी तरफ से क्या कहना है। शब्द खो जाते हैं, उनका कोई अर्थ नहीं है। आप में से बहुत से लोग उस अवस्था में जाने के इच्छुक हैं, जहाँ आपको पूर्ण आनंद, कल्याण और शांति मिलेगी। यही है जो मैं आपको दे सकती हूं। और एक माँ तभी खुश होती है जब वह अपने बच्चों को जो दे सकती है वह दे पाती है। उसकी नाखुशी, उसकी सारी बेचैनी, सब कुछ बस उस परिणाम को प्राप्त करने के लिए है – वह सब उपहार में देने के लिए जो उसके पास है। मैं नहीं जानती कि अपने ही अंदर स्थित उस खजाने को पाने हेतु इस सब से गुजरने के लिए आप लोगों को कितना धन्यवाद देना चाहिए। ‘सहज’ ही एकमात्र ऐसा शब्द है जिसके बारे में मैं सोच सकी थी, जब मैंने सहस्रार उद्घाटन को प्रकट करना शुरू किया। जिसे अब तक सभी ने आसानी से समझा है। लेकिन आपने महसूस किया है कि यह आज योग की एक अलग शैली है जहां पहले आत्मसाक्षात्कार दिया जाता है और फिर आपको खुद की देखभाल करने की अनुमति दी जाती है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। यह आपकी माँ का सिर्फ एक उपक्रम है जिसने ऐसा कार्यान्वयन किया है। अन्यथा, पुराने समय में दैवीय के का सम्बन्ध लोगों को बोध देने से तो था और यह ज्ञान नहीं था कि इसे कैसे Read More …

Devi Puja: On Leadership (Morning) Rahuri (भारत)

अंग्रेजी से अनुवाद… और यह वह स्थान है जहां मेरे पूर्वज राजाओं के रूप में राज्य करते थे, और उनका एक राजवंश भी था। अब, हम जिस दूसरी जगह पर गए, मुसलवाड़ी, वह जगह है जहां देवी ने सबसे पहले उन्हें एक बीम से मारा था, इसलिए इसे मुसलवाड़ी कहा जाता है। इसका अर्थ है एक बीम, ‘मुसल’ का अर्थ है ‘बीम’। तो यह वह स्थान है जहाँ देवी ने बहुत काम किया है। एक और जगह है जिसे अरडगांव कहा जाता है जहां वह दौड़ रहा था और चिल्ला रहा था, इसलिए इसे अरड़ कहा जाता है। ‘अरड़’ का अर्थ है ‘चिल्लाना’ (‘गाओ’ का अर्थ है गाँव)। तो पूरी जगह पहले से ही बहुत चैतन्य पुर्ण रही है क्योंकि नाथ, नौ नाथ – हमने वहां एक गणिफनाथ देखा – लेकिन वे सभी इस क्षेत्र में रहते थे और उन्होने बहुत मेहनत की थी। सबसे अंतिम, साईनाथ, शिरडी में, जैसा कि आप जानते हैं, यहाँ से बहुत निकट था। तो यह एक बहुत ही पवित्र स्थान और महान पूजा का स्थान है जहाँ कई बार देवी की पूजा की जाती थी। राहुरी ही, यदि आप चारों तरफ घुमें, तो आप पाते हैं कि वहां नौ देवता बैठे हैं। इन्हें भी धरती माता ने ही बनाया है। वे सुंदर चीजें हैं। उनके बारे में कोई नहीं जानता। आप जा सकते हैं और देख सकते हैं। उनमें से नौ हैं और ये देवी के नौ अवतारों या देवी की नौ शैलियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अब, इस खूबसूरत जगह में हम यहां Read More …

Shri Krishna Puja: Announcement of Vishwa Nirmala Dharma Nashik (भारत)

श्री कृष्ण पूजा नासिक – 19.01.1985 Announcement of Vishwa Nirmal Dharma कल, भाषण में, मैंने सहज योग के बारे में एक नई घोषणा की थी। लेकिन पूरा भाषण मराठी भाषा में था और इससे पहले कि इसका अनुवाद हो, मैं आपको बताना चाहूंगी कि मेरी घोषणा क्या थी। यह एक प्रश्न था कि, अमेरिका और इंग्लैंड में कोई भी ट्रस्ट, जो एक धर्म नहीं है, उसे पंजीकृत नहीं किया जा सकता। वास्तव में सहज योग एक धर्म है। निस्संदेह, विश्वव्यापी धर्म है, एक ऐसा धर्म, जो सभी धर्मों को एकीकृत करता है, सभी धर्मों के सिद्धांतों को एक साथ लाता है और दर्शाता है – एकाकारिता दर्शाता है। यह सभी अवतरणों को एकीकृत करता है। सभी शास्त्रों को एकीकृत करता है। यह एक बहुत ही समन्वित महान धर्म है, जिसे हम विश्वव्यापी धर्म कह सकते हैं और हिंदी भाषा में इसे ‘विश्व धर्म’ कहा जाता है। अब इसे और अधिक विशेष बनाने के लिए, मैंने सोचा कि, यदि आप विश्वव्यापी धर्म कहते हैं, तो यह उस विशेष रूप में नहीं हो सकता है, जैसे बोद्ध लोग ऐसे लोग हैं, जिन्हें ईसा मसीह के बाद में ईसाई और अन्य लोगों के बाद, अवतरण के अनुसार I ​अब इस बार का अवतरण ‘निर्मला’ होने के नाते, मैंने सोचा कि हम इसे कह सकते हैं “धर्म, जो विश्वव्यापी है निर्मला के नाम पर”, इसलिए इसे छोटा करने के लिए, मुझे लगा कि हम इसे “यूनिवर्सल निर्मला धर्म” (विश्व निर्मल धर्म) कह सकते हैं। इस बारे में आप क्या कहते हैं? अब निर्मला, आप Read More …

Makar Sankranti Puja मुंबई (भारत)

Makar Sankranti Puja Date 14th January 1985: Place Mumbai Type Puja [Hindi translation from English talk] अब आपको कहना है, कि इतने लोग हमारे यहाँ मेहमान आए हैं और आप सबने उन्हें इतने प्यार से बुलाया, उनकी अच्छी व्यवस्था की, उसके लिए किसी ने भी मुझे कुछ दिखाया नहीं कि हमें बहुत परिश्रम करना पड़ा, हमें कष्ट हुए और मुंबईवालों ने विशेषतया बहुत ही मेहनत की है। उसके लिए आप सबकी तरफ से व इन सब की तरफ से मुझे कहना होगा कि मुंबईवालों ने प्रशंसनीय कार्य किया है । अब जो इन से (विदेशियों से) अंग्रेजी में कहा वही आपको कहती हूं। आज के दिन हम लोग तिल गुड़ देते हैं। क्योंकि सूर्य से जो कष्ट होते हैं वे हमें न हों। सबसे पहला कष्ट यह है कि सूर्य आने पर मनुष्य चिड़चिड़ा होता है। एक-दूसरे को उलटा -सीधा बोलता है। उसमें अहंकार बढ़ता है। सूर्य के निकट सम्पर्क में रहने वाले लोगों में बहुत अहंकार होता है। इसलिए ऐसे लोगों को एक बात याद रखनी चाहिए, उनके लिए ये मन्त्र है कि गुड़ जैसा बोलें गुड़ खाने से अन्दर गरमी आती है, और तुरन्त लगते हैं चिल्लाने। अरे, अभी तो (मीठा-मीठा बोलो)। तिल तिल-गुड़ खाया, तो अभी तो कम से कम मीठा बोलो। ये भी नहीं होता। तिल-गुड़ दिया और लगे चिल्लाने। काहे का ये तिल-गुड़? फेंको इसे उधर! तो आज के दिन आप तय कर लीजिए। ये बहुत बड़ा सुसंयोग है कि श्री माताजी आई हैं। उन्होंने हमें कितना भी कहा तो भी हमारे दिमाग में वह Read More …