Public Program at Hindu Temple Vancouver, St. Andrew's Wesley Church (Canada)
1997-06-20 Public Program at Hindu Temple in Vancouver
1997-06-20 Public Program at Hindu Temple in Vancouver
08.06.1997 न्यू जर्सी, यू.एस. ए श्री कृष्ण पूजा – स्वतन्त्रता बिना सद्बुद्धि स्वतन्त्रता भयंकर है आज हमने श्री कृष्ण पूजा करने का निर्णय लिया है श्री कृष्ण की भूमि में, यद्यपि यह श्री कृष्ण की भूमि है लोग मुझसे पूछते हैं कि लोग आध्यात्मिक क्यों नहीं हैं? ऐसा कैसे है कि वे विभिन्न प्रकार के खोज-प्रयासों में उलझ जाते हैं जो सत्य की ओर नहीं ले जाते हैं। ऐसा क्यों है कि अमेरिका में लोग इतने सतर्क नहीं हैं कि वे पहचान सकें कि सच्चाई क्या है और उन्हें क्या पाना है? श्री कृष्ण का समय, जैसा कि आप जानते हैं, श्री राम से कम से कम दो हजार (साल) बाद था। और श्री राम ने बहुत से अनुशासनों का सृजन किया मानवों के अनुसरण करने के लिए जिन्हें उन्हें उत्थान के मार्ग पर पालन करना था। समय के अनुसार सब कार्य होते हैं। इसलिए लोग बेहद हठी और अनुशासित थे, और ऐसा हुआ कि लोगों ने सत्य के साथ संपर्क खो दिया। वे अपनी पत्नियों को छोड़ देते, अपनी पत्नियों के साथ बुरा व्यवहार करते, श्री राम के नाम पर सभी प्रकार की बातें करते क्योंकि हमेशा मनुष्य कुछ ऐसा करने लगते हैं जो सही नहीं है। दूसरा पक्ष उन्होंने कभी नहीं देखा कि कैसे राम, सीताजी के पीछे चले गये उन्हें खोजने के लिए, और उन्होंने भयानक राक्षस रावण के साथ युद्ध किया अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए। तो दूसरा पक्ष लोग कभी नहीं देखते।केवल यह पक्ष उन्होंने देखा कि वह अपनी पत्नी के साथ बहुत Read More …
Adi Shakti Puja 1997-05-25 आज हम आदिशक्ति की पूजा करने जा रहे हैं। आदिशक्ति के बारे में बात करना एक कठिन विषय है, क्योंकि यह समझना सरल नहीं है कि आदिशक्ति सदाशिव की शक्ति हैं। सदाशिव सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं। वह उनकी श्वास हैं, जैसा कि कुछ लोग इसे कहते हैं। कुछ कहते हैं कि वह इच्छा हैं और कुछ कहते हैं कि वह सदाशिव की संपूर्ण शक्ति हैं और सदाशिव उनकी शक्तियों के बिना कुछ नहीं कर सकते। इस विषय का वर्णन कई लोगों ने विभिन्न पुस्तकों में भिन्न- भिन्न तरीक़ों से किया है। परंतु वास्तव में हमें जाने की आवश्यकता नहीं है, आदिशक्ति के निर्माण की पृष्ठभूमि में। इसके लिए आपको कम से कम सात भाषणों की आवश्यकता होगी। परंतु हम उस मुद्दे पर आते हैं जब आदि शक्ति ने इस धरती माँ पर कार्य करना आरंभ किया था। पहली बात यह है कि हमें पता होना चाहिए, कि उन्होंने स्वयं धरती माँ में कुंडलिनी का निर्माण किया और उन्होंने धरती माँ में से ही श्री गणेश का सृजन किया, यह बहुत ही रोचक है। इसलिए धरती माँ हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण बन जाती हैं। यदि हम नहीं जानते कि धरती माँ का सम्मान कैसे किया जाए, तो हम नहीं जानते कि हमें स्वयं का सम्मान कैसे करना चाहिए। कुंडलिनी आपके भीतर आदि शक्ति की अभिव्यक्ति है, निःसंदेह। वह आप में आदिशक्ति का प्रतिबिंब है। परंतु धरती माँ में भी यह प्रतिबिंब व्यक्त किया गया है। जैसा कि आप सभी जानते हैं, विभिन्न स्थानों में, विभिन्न देशों में, विभिन्न Read More …
यह हम सभी के लिए बहुत ही आनंदपूर्ण शाम रही है। और हम उन सभी लोगों का धन्यवाद करते हैं जो हम सभी के लिए सब प्रकार के मनोरंजन ले कर आए। मैं वास्तव में आश्चर्यचकित हूँ क्योंकि पिछली बार उनके मुझे आमंत्रित करने के बावजूद मैं स्पेन नहीं जा सकी थी, लेकिन मुझे लगता है कि किसी तरह इसने वहाँ जड़ें जमा ली हैं, ऐसे बहुत से लोग हैं जो अब सहजयोग में शामिल हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि स्पेन जैसी जगहों पर बहुत अधिक सहजयोगी होने चाहिए, मेरे विचार से, मैंने हमेशा यह सोचा, क्योंकि यह एक ऐसा देश है, जिसमें बहुत सारे लोगों ने दौरा किया, इतना सर्वदेशीय और वहाँ तुर्की प्रभाव भी अधिक है। इसके बावजूद हमने पाया कि यह इतना उत्साहजनक नहीं था , और जोस इस बात से अत्यंत परेशान थे। उन्होंने कहा: “माँ, यहाँ इन लोगों को क्या हो गया है?”। ठीक है, अब जैसा कि आप देख रहे हैं, यह बहुत उत्साहजनक है, हमारे पास स्पेन से बहुत सारे सुंदर गायक, संगीतकार हैं, और यहाँ बहुत सारे लोग हैं जो अपने सुंदर, मधुर संगीत के साथ आपका मनोरंजन करने आए हैं, विशेष रूप से उनकी लय वास्तव में कुछ अनोखी है। भारतीय संगीत की अपनी एक लय है, लेकिन वह अपनी प्रणाली से बहुत बँधा हुआ है, जबकि मैं देखती हूँ कि यहाँ पूर्ण स्वतंत्रता है, जिस तरह से आपको पसंद है, उस तरह से अपना तबला बजाने की, जिस तरह से आपको पसंद है, उस तरह से आपका लयबद्ध ढंग, Read More …
सहस्त्रार पूजा – 1997-05-04 आज हम सभी यहां एकत्रित हुए हैं, सहस्रार की पूजा करने के लिए। जैसा कि आप समझ चुके हैं, कि सहस्रार सूक्ष्म-तन्त्र का एक बहुत महत्वपूर्ण अंग है। निःसंदेह, यह एक बड़ा दिन है, 1970 में जब इस चक्र को खोला गया था। परन्तु इसके द्वारा, आपने क्या प्राप्त किया है, इसे हमें देखना चाहिए। सर्वप्रथम, जब कुंडलिनी उठती है तो वह आपके भवसागर में जाती है, जहाँ आपका धर्म है। और आपका धर्म स्थापित हो जाता है, नाभि चक्र पर, हम कह सकते हैं कि- नाभि चक्र के चारों ओर। आपका धर्म स्थापित हो जाता है, जो कि जन्मजात रूप से शुद्ध, सार्वभौमिक, धर्म है। स्थापित हो जाता है। लेकिन उसके बाद कुंडलिनी और ऊपर उठती है। यद्यपि, धर्म की स्थापना हो गयी है, हम थोड़ा दूर रहते हैं, अन्य समाजों से, क्योंकि हम देखते हैं कि वे अधर्मी हैं – उनका कोई धर्म नहीं है। साथ ही, मुझे लगता है, कि हम डरते हैं कि हम उनके अधर्म में फँस सकते हैं। तो उस स्तर पर, हम सहज योग की सीमाओं को लांघना नहीं चाहते। चाहते हैं, कि सहज योगियों तक सीमित रहें, सहज योग के कार्यक्रमों तक और अपने व्यक्तिगत सहज जीवन तक। निःसंदेह यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि पहले इस चक्र को पूर्णतया पोषित किया जाना चाहिए। और यह चक्र वास्तव में नाभि चक्र के चारों ओर घूमता है, जिसे हम स्वाधिष्ठान के रूप में जानते हैं। यह स्वाधिष्ठान चक्र, एक प्रकार से, बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह ऊर्जा प्रदान करता है, मस्तिष्क को। इसलिए जब Read More …
1997-05-03 Sahasrara Puja आज का कार्यक्रम वास्तव में बहुत, बहुत आनंदपूर्ण, बहुत दक्षता पूर्ण था। मुझे कहना होगा कि इसका श्रेय हमेशा की तरह जर्मनी के लोगों को और साथ-साथ ऑस्ट्रिया के लोगों को भी जाता है, सब कुछ इतना उत्तम करने के लिए। पूर्वार्ध में हम चकित थे कि कैसे पश्चिम के लोग भारतीय वाद्य यंत्रों पर भारतीय रागों के साथ इतना अच्छा बजा सकते हैं। यह एक असंभव कार्य है। मेरे कहने का अर्थ है, भारत में, वे कम से कम दस से बारह वर्ष व्यतीत करते हैं उस स्तर तक पहुँचने के लिए और तीन महीने के समय में वे सभी इतनी निपुणता प्राप्त कर चुके हैं। और बाबामामा कह रहे थे कि संभवतः ये उनके आत्मसाक्षात्कार के कारण है, कि वे तीन महीने के समय में यह सब चीज़ें सीख सके हैं। मैं स्वयं अचंभित थी कि तीन महीने के समय में ये इतना अच्छा कैसे बजा सकते हैं। उसके बाद अन्य कार्यक्रम भी बहुत रोचक थे, उदाहरण के लिए जिस तरह से उन्होंने प्रदर्शन किया इस संगीत का इतने अच्छे से संचालन कर के। मेरे कहने का अर्थ है कि इस कार्यक्रम को देखने के लिए आपको $ 50 का भुगतान करना पड़ेगा! और पूर्ण शांति होनी चाहिए, और सुनिश्चित रूप से अपने स्थान पर बैठना पड़ेगा, पूर्णतया स्थिर मानो… और यह इतना उल्लेखनीय था और इतना वृत्तिक था, इतनी, इतनी सुंदरता से किया गया, बिना एक गलती के कहीं भी, इतने सामंजस्य से , संभवतः इसमें भी सहजयोग का आशीर्वाद है, मुझे नहीं पता। Read More …
Musical Evening and Talk, Sahaj Temple talk starts at 02:09:09
Birthday Puja Date 21st March 1997 Delhi Place : Type Puja : Hindi & English आप सबको अनन्त आशीर्वाद | जब सब दुनिया सोती है तब एक सहजयोगी जागता है और जब सब दुनिया जागती है तो सहजयोगी सोता है। इसका मतलब ये होता है कि जिन चीज़ों की तरफ सहजयोगियों का रुख है उस तरफ और लोगों का रुख नहीं । उनका रुख और चीज़ों में है। किसी न किसी तरह से वो सत्य से विमुख हैं, मानें किसी को पैसे का चक्कर, किसी को सत्ता का चक्कर, न जाने कैसे-कैसे चक्कर में इंसान घूमता रहता है और भूला-भटका, सत्य से परे, उसकी ओर उसकी नज़र नहीं है। कोई कहेगा कि इसका कारण ये है, उसका कारण ये है कोई न कोई विश्लेषण कर सकता है। पर मैं सोचती हूँ अज्ञान! अज्ञान में मनुष्य न जाने क्या-क्या करता है। एक तरह का अंधकार, घना अंधकार, छा जाता है। जैसे अभी यहाँ अगर अंधकार हो जाए तो न जाने भगदड़ मच जाए, कुछ लोग उठकर भागना शुरु कर दें, कितने लोगों को गिरा दें, उनके ऊपर पाँव रख दें, उन्हें चोट लग जाए। कुछ भी हो सकता है। इस अंधकार में हम लोग जब रहते हैं तब हमारी निद्रा अवस्था है। लेकिन हम जब जागृत हो गए, जब कुण्डलिनी का जागरण हो गया और जब आप सत्य के सामने खड़े हो जाते हैं तो सत्य की महिमा का वर्णन कोई नहीं कर सकता। मैंने पूछा किसी से, ‘भई, सहज में तुम्हें क्या मिला?’ बोले, ‘माँ, ये नहीं बता सकते पर Read More …
Mahashivaratri Puja Date 16th March 1997 : Place Delhi : Type Puja Hindi & English [Orignal transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] आज हम लोग शिवजी की पूजा करने जा भी चीज का महत्व नहीं रह जाता। रहे हैं। शिवजी के स्वरूप में एक स्वयं साक्षात अब शंकर जी की जो हमने एक आकृति सदाशिव हैं और उनका प्रतिबिम्ब शिव स्वरुप है। देखी है, एक अवधूत, पहुँचे हुए, एक बहुत कोई ये शिव का स्वरूप हमारे हृदय में हर समय औलिया हो, उस तरह के हैं। उनको किसी चीज़ आत्मस्वरूप बन कर स्थित है। ये मैं नहीं कहूँगी की सुध-बुध नहीं, बाल बिखरे हुए हैं, जटा जूट बने कि प्रकाशित है जब कुण्डलिनी का जागरण होता हैं। कुछ नहीं, तो बदन में कौन से कपड़े पहने हुए हैं, क्या कहें, इसका कोई विचार नहीं। ये सब है तो ये शिव का स्वरूप प्रकाशित होता है और वो हुए प्रकाशित होता है हमारी नसों में। चैतन्य के लिए काम उन्होंने नारायण को, विष्णु को दे दिया है। वे कहा है ‘मेदेस्थित’, प्रथम ‘इसका प्रकाश हमारे स्वयं मुक्त हैं। व्याघ्र का च्म पहन कर घूमते ह मस्तिष्क में, पहली मर्तबा हमारे हृदय का और और उनकी सवारी भी नन्दी की है जो किसी तरह हमारे मस्तिष्क का योग घटित होता है। नहीं तो से पकड़ में नहीं आ सकते। कोई घोड़े जैसा नहीं सर्वसाधारण तरह से मनुष्य की बुद्धि एक तरफ कि उसमें कोई लगाम हो, जहाँ नन्दी महाराज और उसका मन दूसरी तरफ दौड़ता है। योग जायें वहाँ शिवजी Read More …
आज, हम उत्सव मना रहे हैं ईसा मसीह के जन्म का। ईसा मसीह का जन्म बहुत प्रतीकात्मक है, क्योंकि उनका जन्म इस तरह से हुआ था कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी ऐसे पैदा नहीं होगा, एक अस्तबल में! और उन्हें उस बिस्तर में लिटा दिया गया जो सूखी घास से बना थाl वह इस धरती पर आए लोगों को दिखाने के लिए कि, जो व्यक्ति अवतरण है, या जो एक उच्च विकसित आत्मा है, उसे शरीर के आराम की चिंता नहीं है। उनका संदेश इतना महान और इतना गहरा था, परन्तु उनके शिष्य थे जो तैयार नहीं थे उस युद्ध के लिए जो उन्हें लड़ना था। यही चीज़ कभी-कभी सहजयोग के साथ भी घटित होती है। उनके केवल 12 शिष्य थे, हमारे पास भी 12 प्रकार के सहजयोगी हैं, और वह सब, हालांकि प्रयास करते हैं स्वयं को ईसा मसीह के प्रति समर्पित करने का, जाल में फंस जाते हैं, उनमें से कुछ, सांसारिक आकांक्षाओं के या अपनी स्वयं की लालसाओं के। उनका प्रेम और क्षमा का संदेश आज भी वैसा ही है। सभी के द्वारा प्रचारित किया गया, सभी संतों, सभी अवतरणों, सभी पैगम्बरों द्वाराl उन सभी ने प्रेम और क्षमा के बारे में बात की है। यदि इसे चुनौती दी गई या लोगों को लगा कि यह काम नहीं करेगा, तो उनसे कहा गया, वे विश्वास करें उनकी कही बातों पर। परन्तु वे साधारण लोग थे, उन दिनों में, इसलिए उन्होंने उनकी बात मानी। उनमें से कुछ निश्चित रूप से बहुत अच्छे थे, उनमें से कुछ आधे Read More …
Shri Rajlakshmi Puja Date 7th December 1996: Place Delhi Type Puja Speech Language Hindi दिल्ली शहर में और उसके आसपास सहजयोग बहुत जोर में फैल रहा है। ये एक बड़ी आश्चर्य की बात है। दिल्ली शहर एक राजधानी है और यहाँ अधिकतर लोग सत्ता लोलुप हैं। जो सत्ता पर हैं उनके आगे-पीछे लोग दौड़ते हैं। लेकिन ये सब होते हये भी अपनी आत्मशक्ति को खोजना अपना आत्मबोध कराना और बहुत आश्चर्यजनक है । मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी । क्योंकि ये सूक्ष्म चीज़ है। अत्यंत सूक्ष्म है। ऊपरी तरह से हम इस चीज़ को बहुत मानते हैं। जैसे है, मैंने बहत बार आपके सामने उदाहरण दिया, कि एक सुंदर सा चित्र अगर देख रहे हैं और उस चित्र में बरसात हो रही है। बहुत सुंदर फूल हैं। पक्षी उड़ रहे हैं और आप चित्र को देख कर बहुत खुश हो रहे हैं। लेकिन उस चित्र की जो अनुभूति है वो आपमें नहीं। इसलिये उसकी अनुभूति लेने की आवश्यकता है और अनुभूति लेने के लिये एक बहुत सूक्ष्म विचार चाहिये। आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त होना ये इच्छा रखना ही सूक्ष्म विचार आप के अन्दर जागृत हो गया यही कमाल है, कि हमने अभी तक यथार्थ को पाया नहीं। हमने अभी तक असलियत को पाया नहीं। कोई न कोई ऐसी चीज़ है जिसके पीछे हम भागते हैं। उसमें सत्य नहीं है और वो मैं इस प्रकार मनुष्य कहाँ से कहाँ भटक जाता है। बाह्यत: धर्म के अवलंबन में मनुष्य भागता है। मेरा यह धर्म है, बहुत ऊँचा हूँ। दूसरा कहेगा, मेरा यह धर्म Read More …
Public Program Date 3rd December 1996: Place Delhi Public Program Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सत्य को खोजने वाले आप सभी साघकों को हमारा नमस्कार। तो इस भारत वर्ष में अनादिकाल से सत्य की खोज होती रही है, ये हमारे शास्त्रों से ज्ञात होता है। अनेक मार्गों से हमने सत्य की खोज की। अपना देश एक विशेष रूप से अध्यात्मिक है उसका कारण ये कि अपने देश में बहुत सी बातें सुलभ हैं। हम जानते नहीं कि हमारा देश कितना समृद्ध है और कितना पावन है, और यहाँ के लोग कितने सरल और मलरहित हैं। विदेश के लोगों को हम लोग मलेच्छ कहते थे क्योंकि देखते थे कि ये लोग जो यहां आये इनकी सारी इच्छायें ही मल की ओर जाती थी। हमारे जमाने में, क्योंकि अब तो हम बुड्ढे हो गये हैं; तो ये देखा जाता था कि ये जो लोग बाहर से आये हैं, ये कितने उथले हैं, इनकी सारी दृष्टि कितनी उथली है, इनकी जो इच्छायें होती थी वो कितनी उथली हैं। धोरे धीरे अपने दंश पर भी इस पश्चिमात्य संस्कृति की बड़ी जबरदस्त पकड़ आने लगी। उसका कारण यह था कि तीन सौ वर्ष हुए हमारी खोपड़ी पर ये लोग लद गये और हम लोग धीरे-धीरे ये समझने लग गये कि ये बड़े महान हैं जो हमारे देश में आये हैं और हमारे ऊपर राज कर रहे हैं। वास्तिवकता में इन्होंने सबको बेवकूफ बना-बना कर ही अपना कार्यसाध्य किया। दूसरे कर्मकाण्डों की वजह से अनेक तरह की विचित्र-विचित्र Read More …
नवरात्रि पूजा कबेला लिगरे (इटली), 20 अक्टूबर 1996 आज एक विशेष दिन है, जैसा कि आप जानते हैं कि हम देवी की पूजा कर रहे हैं, जो इस धरती पर नौ बार पहले आई थीं, सभी राक्षसों और सभी नकारात्मकता को मारने और सभी भक्तों को आराधना करने के लिए राहत देने के लिए। उसके सभी कार्यों का वर्णन पहले ही किया जा चुका है। इसके बावजूद वे पाते हैं कि, नए प्रकार के शैतान, नए प्रकार के नकारात्मक लोग, वापस आ गए हैं। शायद होना ही था। शायद यही होना था, आखिर यह कलियुग है और जब तक वे ना हों, कलियुग का नाटक नहीं किया जा सकेगा। तो इस ड्रामा को पूरा करने वे आए थे। लेकिन इस बार बहुत अलग तरह का युद्ध होने जा रहा है। यह शांतिपूर्ण लोगों का युद्ध होने जा रहा है और शांतिपूर्ण लोग जीवन के हर क्षेत्र में सबसे सफल लोग हैं, यहां तक कि युद्ध में भी। पहले ऐसा कार्यान्वित नहीं हुआ करता था। वे कहते हैं कि जब चंगेज खान आया, तो वह गया के पास, बौद्ध के एक बहुत बड़े मठ में गया, और उन सभी को मार डाला, वहां लगभग 30,000 बौद्ध थे, और उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा और वे सभी मारे गए। इसलिए लोगों ने बौद्ध धर्म में अविश्वास करना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा, “यहां किस तरह का बौद्ध धर्म है, बुद्ध ने उन्हें क्यों नहीं बचाया। ऐसी है मानवीय सोच है। बुद्ध को इन 30,000 लोगों को बचाना चाहिए था जो शांतिपूर्ण Read More …
श्री कृष्ण पूजा : सहज संस्कृति 01.09.1996 कबेला, इटली आज हम श्री कृष्ण की पूजा करने वाले हैं। देखिये 3 बजे के आसपास कितनी ठंडक थी l अब इसका कारण यह है कि श्री कृष्ण ने इंद्र के साथ थोड़ी शरारत की। इंद्र, जो ईश्वर हैं, या आप कह लीजिये अर्ध-परमेश्वर, उन पर वर्षा का दायित्व है l इसलिए इंद्र अत्यंत क्रोधित हो गए। अब आप देखिये कि ऐसे सभी देवता बेहद संवेदनशील होते हैं और छोटी सी बात पर भी क्रोधित या व्यथित हो जाते हैं और इस क्रोध का प्रदर्शन करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करने लगते हैं। इसलिए उन्होंने सभी गोप तथा श्री कृष्ण पर, जो गायों की देखभाल कर रहे थे, वर्षा की बौछार कर दी। और ये वर्षा इतनी भीषण थी कि सबने सोचा कि सम्पूर्ण धरती ही जलमग्न हो जाएगी। तो इंद्र, श्री कृष्ण की लीला में विघ्न डाल कर अत्यंत प्रसन्न हो रहे थे और उन्हें लगा कि वह अपने उद्देश्य में अत्यंत सफल हो गए हैं । तब श्री कृष्ण ने अपनी ऊँगली पर एक पहाड़ को उठा लिया, और वो सभी लोग जो डूब रहे थे, उस पहाड़ के नीचे आ गए। यह श्री कृष्ण का अंदाज़ है। मेरा अंदाज़ भिन्न है। मैंने इंद्र से कहा कि तुम मेरे साथ कोई अभद्र व्यवहार नहीं कर सकते। अभी तक मैंने तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचाई है, और न तुम्हें परेशान किया है। वास्तव में श्री कृष्ण पूजा होने जा रही है, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि तुम मेरे Read More …
Shri Mahalakshmi Puja. Moscow (Russia), 16 July 1996. आज रात, हम अपने अन्तनिर्हित लक्ष्मी तत्व की पूजा करने जा रहे हैं।लक्ष्मी धन, समृद्धि और स्वास्थ्य की देवी हैं। वास्तव में आपका देश पहले से ही धन्य है, क्योंकि आपके पास यहां बहुत सारी चीज़ें हैं। सबसे पहले, इस देश में इतनी अधिक मात्रा में पेट्रोल है और अगर खोज की जाए तो यहाँ और बहुत अधिक है। फिर दूसरी बात, आपके यहाँ सुंदर लकड़ी है। फिर तीसरा, आपके यहाँ प्रचुर मात्रा में स्टील, बहुत अधिक मात्रा में स्टील, बहुत अच्छा स्टील है। इसके अलावा आपके पास हीरे हैं। इतनी सारी चीज़ें आपके पास हैं, इसके अलावा आपके पास इतना बड़ा हृदय है। आपके पास सोना भी है। अतः इस देश में ये सभी चीज़ें प्रचुर मात्रा में हैं। केवल एक बात है कि आपके पास अभी कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो आप लोगों के लिए इसका संचालन करें। मुझे यकीन है कि सब कार्यान्वित हो जायेगा। लेकिन सहज योग में, हमें यह जानना होगा कि यह लक्ष्मी तत्व हमें संतुष्टि की श्रेष्ठ भावना देता है। यदि आपको संतोष नहीं है तो धन सम्पदा की कितनी भी प्रचुरता हो वह आपकी मदद नहीं कर सकती है। व्यक्ति बहुत लालची हो जाता है। आपके पास कुछ है लेकिन आप अधिक और अधिक और पाना चाहते हैं और इसके लिए व्यक्ति सभी प्रकार के तरीकों और उपायों को अपनाता है। इस प्रकार आपके यहाँ, एक बहुत बुरा माफिया प्रणाली है, जो बहुत लालची हैं। सहजयोगियों के लिए यह समझना आवश्यक है कि Read More …
Public Program, Teatr Komedia Warsaw (Poland) 14.07.1996 मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। प्रारम्भ में, आपको यह जानना होगा कि सत्य क्या है। आप इसे बदल नहीं सकते। आप इसे रूपांतरित नहीं कर सकते। मात्र एक चीज़ आपको इसे अनुभव करना है। दुर्भाग्य से इस मानवीय चेतना में, आप सत्य को नहीं जान सकते। आपको सत्य जानने के लिए चेतना की एक उच्च अवस्था में विकसित होना है। सत्य को जाने बिना यदि आप किसी चीज़ का पालन करते हैं तो यह बहुत गलत बात है। मसीह ने कहा है: – “आपका पुनर्जन्म होना है”। यह एक मिथ्या प्रमाणपत्र नहीं है कि मैं पुनः पैदा हुआ हूं, परन्तु संस्कृत भाषा में, हम एक आत्मसाक्षात्कारी आत्मा, अज्ञेयवादी व्यक्ति – एक द्विज, जिसका अर्थ है – “पुनः पैदा हुआ, दो बार जन्मा ।” उसी प्रकार वे उस पक्षी को, दो बार जन्मा मानते हैं क्योंकि वह अंडा और फिर वह पक्षी बन जाता है। पहले वह अंडा होता है और फिर वह पक्षी बन जाता है। अब, इसलिए मनुष्य के रूप में हम अभी भी उस स्तर पर हैं जहां हम पूर्ण सत्य को नहीं जानते हैं। कोई हमें कुछ भी बताता है, हम उस पर विश्वास कर लेते हैं। हम उसे स्वीकार करने लगते हैं , अनुसरण करने लगते हैं । परन्तु जो भी मैं कह रही हूं आपको उसको भी स्वीकार नहीं करना चाहिए। मैं जो कुछ भी कहती हूं जब तक वह सिद्ध नहीं हो जाता है, आपको इसे स्वीकार नहीं करना Read More …
सहस्रार पूजा आपको ज़िम्मेदार होना चाहिए, लेकिन विनम्र होना चाहिए क्बेला लिगरे (इटली), 5 मई, 1996 आज के दिन हम सहस्रार के खोलने का जश्न मना रहे हैं। मुझे कहना होगा कि सम्पूर्ण मानवता के लिए यह एक महान घटना हुई थी। यह एक ऐसी उपलब्धि थी, जिसे मैंने पहले कभी हासिल नहीं किया था। अब मैं देख सकती हूं कि, आत्म-साक्षात्कार के बिना, लोगों से बात करना असंभव होता। जब ऐसा हुआ तो मैंने सोचा कि, मैं इसके बारे में लोगों से कैसे बात करूंगी, क्योंकि कोई भी मुझे नहीं समझेगा, और सहस्रार के बारे में कुछ कहना मेरे लिए एक बड़ी भूल होगी, क्योंकि यहाँ तक कि सहस्रार के बारे में, शास्त्रों में कहीं कुछ वर्णन नहीं किया गया था। यह बिल्कुल अस्पष्ट विवरण था, मैं कहूंगी, जहां लोग यह भी नहीं सोच सकते थे कि सहस्रार से परे भी एक क्षेत्र है। और व्यक्ति को उस दायरे में प्रवेश करना है जहां वास्तविकता है। उस समय, मैंने अपने आस-पास जो देखा, मुझे लगा, वह सब अंधकार है। और जहाँ तक और जब तक और कई रौशनी ना हो, तब तक लोगों को कभी भी एहसास नहीं होगा कि रोशनी का होना कितना महत्वपूर्ण है। यह एक मानवीय त्रुटि है, हर समय, कि अगर कोई कुछ हासिल करता है, तो वे उस व्यक्ति को एक ताक़ पर रख देते हैं। उदाहरण के लिए, “ईसा-मसीह – ठीक है, वह मसीह थे – हम मसीह नहीं हैं। मोहम्मद साहब, वह मोहम्मद साहब थे – हम मोहम्मद साहब नहीं हैं। राम Read More …
Easter Puja. Calcutta (India), 14 April 1996. आज हम लोग ईस्टर की पूजा कर रहे हैं। आज सहजयोगीं के लिए एक महत्वपूर्ण दिन हैं। क्यों की ईसा मसीह ने दिखा दिया की मानव का उत्थान हो सकता हैं। और इस उत्थान के लिए हमें प्रयत्नशील रहना चाहिए। जो उनको क्रूस पे चढ़ाया गया, उसमें भी एक बढ़ा अर्थ है के क्रूस पर टाँग कर उनकी हत्या की गई और क्रूस आज्ञा चक्र पे एक स्वस्तिक का ही स्वरूप है। उसी पर टाँग कर के और ईसा मसीह वही पे गत:प्राण। उस वक्त उन्होंने जो बातें कही उसमें से सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी की उन्होंने कहा की माँ का इंतज़ार करो। माँ की ओर नज़र करो। उसका अर्थ कोई कुछ भी लगाए पर दिखाई देता हैं की, उन्होंने यह बात कहीं थी के मैं तुम्हारे लिए एक ऐसी शक्ति भेजूंगा जिसके तीन अंग होंगे। वह त्रिगुणात्मिका होंगी। और उसका वर्णन बहोत सुंदरता से किया हैं की, एक शक्ति होंगी वो आपको आराम देंगी। आराम देनेवाली शक्ति हमारे अन्दर जो हैं वो हैं महाकाली की शक्ति, जिससे हमें आराम मिलता हैं। जिससे हमारी बीमारियां ठीक होती हैं। जिससे अनेक प्रश्न जो हमारे भूतकाल के हैं वह सही हो जाते हैं। दूसरी शक्ति उन्होंने दी थी, जो भेजी उन्होंने वो थी महासरस्वती। सो महासरस्वती को उन्होंने कौंसलर (Counsellor) कहा। माने जो आपको समझाएँगी, उपदेश करेंगी। जैसा वर्णन हैं, योग-निरूपण कराएगी। ये दूसरी शक्ति से जिससे हम ज्ञान, सूक्ष्म ज्ञान को प्राप्त होंगे। और तीसरी शक्ति महालक्ष्मी की, जिससे की हम अपने उत्थान Read More …
जन्म दिवस पूजा मन मिथ्या है दिल्ली मार्च 21, 1996 मेरा जन्म दिन आप इतने प्रेम, आदर और श्रद्धा से मना रहे हैं। यह देख कर ऐसा लगता है कि हमने ऐसा किया ही क्या है जो आप लोग इस तरह अपना प्रेम दिखा रहे हैं। आज मैं आपको एक अनूठी बात बताने वाली हूँ कि हमारे अन्दर जो मन या mind नाम की संस्था है वो एक मिथ्या बात है। वो मिथ्या ऐसी है कि जब हम पैदा होते हैं तो हमारे अन्दर ये मन नाम की बात कोई नहीं होती। जब धीरे धीरे हम बाह्य में प्रतिक्रिया करते हैं, दोनों तरह की, या तो हमें कोई संस्कार बनाता है और कोई हमारे अन्दर अहंकार का भाव जागृत होता है तब उन प्रतिक्रियाओं से जो हमारे अन्दर चीज़ जागृत होती है वो बुलबुलों की तरह इक्टी हो जाती है और ये हमारे विचारों के बुलबुले, हमारे अन्दर मन नाम की एक कृत्रिम संस्था बना देते हैं। यह सारी चीजें हमारे अन्दर ऐसी घटित होती हैं कि जिसे हम खुद ही बना करके, उसी की गुलामी करते हैं। जैसे घड़ी इन्सान ने बनाई है और हम घड़ी की गुलामी करते हैं । सहज में फिर आप कालातीत हो जाते हैं, आप इससे परे उठ जाते हैं। समय आपके साथ चलने लगता है आप समय के पीछे नहीं दौड़ते। अब कम्पयूटर आजकल लोग बना रहे हैं, कम्पयूटर बनाने से उसी की गुलामी लोग करने लग गये। और उस गुलामी में वो इस कदर बहक गये हैं कि वो ये नहीं समझ Read More …
“अपने चित्त को प्रेरित करें “, महाशिवरात्रि पूजा। बुंडिला स्काउट कैंप, सिडनी (ऑस्ट्रेलिया), 3 मार्च 1996. आज हम शिव, श्री शिव की पूजा करने जा रहे हैं। जैसा कि आप जानते हैं, श्री शिव हमारे भीतर सदाशिव का प्रतिबिंब हैं। मैंने पहले ही प्रतिबिंब के बारे में बताया है। सदाशिव , सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं, जो आदि शक्ति की लीला देखते हैं। लेकिन वह पिता हैं जो अपनी प्रत्येक रचना को या उनकी प्रत्येक रचना को देख रहे हैं। उनका समर्थन आदि शक्ति को पूरी तरह से है, पूर्णतया सशक्त करने वाला है। उनके मन में आदि शक्ति की क्षमता के बारे में कोई सन्देह नहीं है। लेकिन जब वह पाते हैं कि आदि शक्ति की लीला में, लोग या दुनिया अपने आप में, उन्हें आकुल करने, या उनके काम को बिगाड़ने का प्रयत्न कर रहे हैं, तो वह अपनी कुपित मन:स्थिति में आ जाते हैं, और वह ऐसे सभी लोगों को नष्ट कर देते हैं, और हो सकता है, वह पूरी दुनिया को नष्ट कर दें । एक ओर वह क्रोधी हैं, कोई संदेह नहीं, दूसरी ओर, वे करुणा और आनंद का सागर हैं। इसीलिए, जब वह हमारे भीतर परिलक्षित होते हैं , हमें अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है, हमें अपनी आत्मा का प्रकाश मिलता है और हम आनंद के सागर में डूब जाते हैं। इसके साथ ही, वे ज्ञान का महासागर हैं, इसलिए जो लोग आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते हैं उन्हें दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है, जो बहुत ही सूक्ष्म है, प्रत्येक परमाणु और अणु में व्यापित, इस ज्ञान की Read More …
Makar Sankranti Puja 14th January 1996 Date: Place Pune Type Puja Speech Language Hindi, English and Marathi आज हम लोग यहाँ संक्रांति के दिन सूर्य की पूजा करने के लिये एकत्रित हुए है। अपने देश में सूर्य की पूजा बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं और सूर्य को अर्ध्य देना एक प्रथा जरूरी समझी जाती है और विदेशों में भी सूर्य का बड़ा महत्त्व है। उनके ज्योतिष शास्त्र आदि सब सूर्य पर ही निर्भर है । अब संक्रांत में ये होता है, कि चौदह तारीख को, आज सूर्य अपनी कक्षा छोड़ के उत्तर दिशा में आता है और इसलिये लोग संक्रांत को बहुत ज्यादा मानते हैं। लेकिन इस पृथ्वी गति से पहले २२ दिसंबर से १४ तारीख तक बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है। बहुत ही ज्यादा लोगों को तकलीफ़े होती हैं। जुकाम होता है और हर तरह की शारीरिक पीड़ा भी होती है। उसके बाद उसको संक्रमण काल कहते हैं। जरूरत से ज्यादा ठंडक हो जाता है। उस ठंड के कारण अनेक उपद्रव शुरू हो जाते हैं। पर इस ठंड का भी एक उपयोग होता है। वो ये कि जो किटाणू या तरह तरह की चीज़ें अपने देश में इधर-उधर घूम कर और सब को परेशान करते हैं, वो इस ठंड की वजह से अपनी अपनी जगह चले जाते हैं, बहुत से नष्ट हो जाते हैं। बहुत से लोग मर जाते हैं। मतलब ये कि जिसे हम कह सकते हैं, कि जो सारे हमारे ऊपर पॅरासाइट्स है वो सब खत्म हो जाते हैं। तो ये भी अत्यावश्यक चीज़ हैं, कि हमारे Read More …
Satya Ki Pahchan Chaitanya Se Hai 14th December 1995 Date : Lucknow Place : Public Program Type सब से पहले ये जान लेना चाहिये, कि सत्य है वो अपनी जगह। उसको हम बदल नहीं सकते, उसका हम वर्णन नहीं कर सकते। वो अपनी जगह स्थिर है। हमें ये भी करना है कि हम उस सत्य सृष्टि को प्राप्त करें। परमात्मा ने हमारे अन्दर ही सारी व्यवस्था की हुई है। इस सत्य को जानना अत्यावश्यक है। आज मनुष्य हम देख रहे है कि भ्रमित हैं। इस कलियुग में बहता चला जा रहा है। उसकी समझ में नहीं आता कि पुराने मूल्य क्या हो गये और हम कहाँ से कहाँ पहुँच गये और आगे का हमारा भविष्य क्या होगा। जब वो सोचने लगता है कि हमारे भविष्य का क्या है? क्या इसका इंतजाम है? हमारे बच्चों के लिये कौनसी व्यवस्था है? तब वो जान लेता है, कि जो आज की व्यवस्था है, मनुष्य आज तक जिस स्थिति में पहुँचा है वो स्थिति संपूर्ण स्थिति नहीं क्योंकि वो एकमेव सत्य को नहीं जानती। केवल सत्य को नहीं जानती। हर एक अपनी मस्तिष्क जो सत्य आता है, उसे समझ लेता है। दो प्रकार के विचार हैं। एक तो विचार ये है कि हम अपने मस्तिष्क से जो मान ले, जिस चीज़ को हम ठीक समझ ले, उसी को हम मान लेते हैं। लेकिन बुद्धि से सोची हुई, बुद्धि पुरस्सर चीज़ सीमित है। कोई | सोचता है, कि ये अच्छा है, तो कोई सोचता है कि वो अच्छा है। और ये ले कर के सब Read More …
Shakti Puja 5th December 1995 Date : Place Delhi Type Puja आज हम सत्य युग में शक्ति की पूजा करेंगे क्योंकि सत्य युग की शुरुवात हो गई है। और इसी वातावरण के कारण शक्ति का रूप भी प्रखर हो गया है। शक्ति का पहला स्वरुप है कि वो प्रकाशमान है, तेजस्वी है, तेजपुंज है ये शक्ति जब प्रकट होगी, पूर्णतया इस सत्य युग में, वो हर एक गलत किसम के लोग सामने उपस्थित हो जायेंगे। उनकी सारी कारवाहियां सामने आ जाएँगी। उनकी जो कार्यप्रणाली आज तक चोरी छुपे चल रही थी और उसमे वो मगन थे, वो सब खुल जायेगा। हर तरह की बुराइयां, वो चाहे नैतिक हो चाहे मानसिक हों, आतंकवादी हो या किसी तरह की भी, सत्य को पसंद न हों। ऐसी कोई सी भी संस्था, ऐसी कोई सी भी व्यवस्था बच नहीं सकेगी क्योंकि उस पर सत्य का प्रकाश पड़ेगा। इस सत्य के प्रकाश में शक्ति की विशेष प्रकृति देखियेगा, उसकी एक विशेष आकृति देखियेगा। कारण, मैने आपसे पहले बताया था कि अब कृत-युग शुरू हो गया और इसके बाद सत्य-युग आयेगा और यह भी बता दिया था कि अब सत्ययुग का सूर्य क्षितिज पर आ गया है। इसकी प्रचीति आपको मिलेगी, इसका प्रूफ (Proof) आपको मिलेगा कि सत्य के मार्ग में जो भी असत्य लायेगा वो पकड़ा जायेगा, फिर वो सहजयोगी ही क्यों न हो। वो अपने को सहजयोगी कहलाता है और गलत काम अगर करता है, तो वो बच नहीं सकेगा। उसको आज तक सत्य ने बचाया, सम्भाला, उसकी रक्षा करी। लेकिन अब इसके Read More …
Public Program (Hindi/English). Delhi (India), 3 December 1995.
Diwali Puja – Sahajayog Ki Shuruvat Date 29th October 1995 : Place Nargol Puja Type Speech Language Hindi ये तो हमने सोचा भी नहीं था इस नारगोल में २५ साल बाद इतने सहजयोगी एकत्रित होंगे। जब हम यहाँ आये थे तो ये विचार नहीं था कि इस वक्त सहस्रार खोला जाए। सोच रहे थे कि अभी देखा जाय कि मनुष्य की क्या स्थिति है। मनुष्य अभी भी उस स्थिति पे नहीं पहुँचा जहाँ वो आत्मसाक्षात्कार को समझें। हालांकि इस देश में साक्षात्कार की बात अनेक साधू-संतों ने सिद्धों ने की है और इसका ज्ञान महाराष्ट्र में तो बहुत ज़्यादा है। कारण यहाँ जो मध्यमार्गी थे जिन्हें नाथ पंथी कहते हैं, कि नाथ लोग उन लोगों ने आत्मकल्याण के लिए एक ही मार्ग बताया था; आत्मबोध का। खुद को जाने बगैर आप कोई भी चीज़ प्राप्त नहीं कर सकते हो, ये मैं भी जानती थी। लेकिन उस वक्त जो मैंने मनुष्य की स्थिति देखी वो बहुत विचित्र सी थी। कि वो जिन लोगों के पीछे में भागते थे उनमें कोई सत्यता नहीं। उनके पास सिवाय पैसे कमाने के और कोई लक्ष्य नहीं था। और जब मनुष्य की स्थिति ऐसी होती है कि जहाँ वो सत्य को बिल्कुल ही नहीं पहचानता उसे सत्य की बात कहना बहुत कठिन है और लोग मेरी बात क्यों सुनेंगे? बार-बार मुझे लगता था कि अभी और भी मानव को बड़ना चाहिए। किन्तु मैंने देखा कि कलयुग की बड़ी घोर यातनायें लोग भोग रहे हैं। एक तो पूर्वजन्म में जिन्होंने अच्छे कर्म किये थे, उन लोगों को Read More …
Shri Ganesha Puja. Cabella Ligure (Italy), 10 September 1995. यदि कोई आपके पास मिलने के लिये आये तो क्या आपको मालूम है कि किस प्रकार से आपको जानबूझ कर अपनी ऊर्जा को उन पर प्रक्षेपित करना है ….. ये एक नई तरह की ध्यान विधि है जिसका अभ्यास आप सबको करना है…. अपनी ऊर्जा को उत्सर्जित करके अन्य लोगों तक पंहुचाना। इसमें आपको किसी से कुछ नहीं कहना है… बातचीत नहीं करनी है लेकिन सोच समझकर और जानबूझ कर इस ऊर्जा का अनुभव करना है …. मैं फिर से कह रही हूं कि जानबूझ कर। यह सहज नहीं है …. नहीं यह स्वतः है। लेकिन इसका आपको अभ्यास करना है। अपने अंदर के श्रीगणेश की अबोधिता की ऊर्जा को अन्य लोगों तक प्रक्षेपित करना है ताकि जब वे आपको देखें तो उनकी स्वयं की अबोधिता जागृत हो जाय। उदा0 के लिये लंदन में हमें कुछ समस्या हो गई थी और सहजयोगियों ने मुझसे कहा कि माँ.. अभी भी कुछ लोग … कुछ पुरूष हमें देखते रहते हैं और कुछ ने कहा कि कुछ महिलायें भी हमें देखती रहती हैं। एक तरह से ये एक आपसी चीज घट रही थी। मैंने उनसे कहा कि आप लोग अपनी ऊर्जा को इस प्रकार से प्रक्षेपित करें कि इन लोगों का इस प्रकार का अभद्र व्यवहार पूर्णतया बंद हो जाय और उनको समझ में आ जाय कि उन्हें आपका आदर करना चाहिये और आपकी गरिमा का भी सम्मान करना चाहिये। ये बहुत कठिन भी नहीं है। इसके विपरीत… जैसी कि आजकल की संस्कृति है Read More …
सार्वजनिक कार्यक्रम। सोफिया (बुल्गारिया), 26 जुलाई 1995। मैं आप सभी को नमन करती हूं, जो यह जानने आये हैं कि, मानवता को कैसे बचाया जाए। यह केवल बुल्गारिया की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की समस्या है। दुनिया भर में हर दिन पर्यावरण की समस्याओं के बारे में जागरूकता है। लेकिन जो भी साधन अपनाये गए हैं वे हमारी गिरावट को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। अब मैं आपको कुछ सच्चाइयों के बारे में बताने जा रही हूँ, जिन्हें यदि हम हासिल करते हैं, तो हम अपनी पर्यावरण की समस्या को बहुत बेहतर तरीके से हल कर सकते हैं। बाह्य रूप से हम समझते हैं कि हमें मशीनरी को कम करना है। औद्योगीकरण, जिस तरह से यह अनुपात से बाहर हो गया है, उसने बहुत सारी समस्याएं पैदा की हैं। यदि हम 50 साल पहले के भारत के बारे में कहें तो हम आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे। तब महात्मा गांधी ने सुझाव दिया, “क्यों न हम हाथ से बनी चीजें, हाथ से बने कपड़े, हाथ से बुने हुए कपड़े, गांवों की हस्तनिर्मित चीजें इस्तेमाल करें।” और इस विचार ने काम किया क्योंकि हम मैनचेस्टर की मशीनरी को रोक सकते थे, जो हमें इंग्लैंड से ये सारे कपड़े बेच रहे थे। पश्चिम में, हाथ से बनी चीजों का उपयोग करने का एक बड़ा आग्रह है, जो कि अधिक महंगी है। मुझे आश्चर्य हुआ कि बुल्गारिया कलाकारों से बहुत अधिक भरा है, बहुत सारे कलाकार हैं, बहुत सुंदर हैं। आप कह सकते हैं, वे न केवल चित्र और पेंटिंग Read More …
1995-07-24 ईसीओ-फोरम के प्रतिनिधियों और स्वास्थ्यउप-मंत्री से चर्चा [बुल्गारियाई उप-स्वास्थ्य मंत्री बुल्गारियाई में बोल रहे हैं, अंग्रेजी में परिणामी अनुवाद] … सम्पूर्ण मानव जाति के हितों पर निजी हित पूरी तरह हावी है। यही कारण और संदर्भ है कि शांति की समस्याओं पर इको फोरम के नवीनतम सम्मेलनों में हमने संयुक्त राष्ट्र के संगठन को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र से पृथ्वी पर जीवन को संरक्षित करने के लिए दुनिया भर की एक कमेटी बनाने का अनुरोध किया। इस संदर्भ में हम श्रीमती श्रीवास्तव का समर्थन पाकर बहुत खुश और संतुष्ट होंगे। इन सिद्धान्तिक मुद्दों के अलावा, मैं इस बात के लिए अपनी खुशी और श्रीमती श्रीवास्तव के प्रति अपने सम्मान को व्यक्त करके प्रसन्न हूं कि वह बुल्गारिया आई और बल्गेरियाई धरती पर हैं और मुझे उम्मीद है कि हम उस वैश्विक मुद्दे के संबंध में सहयोग की व्यवस्था कर सकते हैं। मैं अपने दोस्तों और सहयोगियों के सामने, शांति के लिए इकोफोरम के नेतृत्व को प्रस्तुत करना चाहता हूं: श्री प्रो। अलेक्जेंडर अलेक्जेंड्रोव, वे इकोफोरम के निदेशक मंडल के सदस्य हैं और हाल ही में वह बुल्गारिया के पर्यावरण मंत्री के रूप में नहीं थे, श्री। ट्रिफोनोव – वह शांति के लिए इकोफोरम के मुख्य समन्वयक हैं, श्री मारिनोव इकोफोरम फॉर पीस में खंड संस्कृति के लिए जिम्मेदार हैं। बेशक इकोफोरम बोर्ड में पूरी दुनिया के सदस्य शामिल हैं। इसलिए मैंने केवल बोर्ड के इन सदस्यों का परिचय दिया जो बुल्गारिया में रहते हैं। – उन सभी से मिलकर बहुत अच्छा लगा। मैं इस बात पर जोर देना Read More …
सहज योगी: हम भाग्यशाली हैं कि, हमें श्री माताजी और सर सीपी का सानिध्य प्राप्त हुआ है। और यहां प्रतिनिधित्व कर रहे स्पेन, बेल्जियम, हॉलैंड और अन्य सभी देशों के सहज योगियों में से केवल आधे लोग , हम यहां आपकी उपस्थिति के लिए अपना आभार व्यक्त करना चाहते हैं और हमारे पास 3 देशों द्वारा तैयार एक छोटा सा कार्यक्रम है जिसमें नृत्य, और कुछ गाने शामिल हैं, और हम आशा करते हैं कि आप इसे पसंद करेंगे। अन्य सहज योगी : नमस्कार श्री माताजी! नमस्कार सर सीपी, हमारे हृदय से हम सम्मान और जो हर्ष हमें प्राप्त हुआ हैं व्यक्त करना चाहते हैं और श्री माताजी, सर सीपी और इतने सारे देशों के भाइयों और बहनों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं, यह छोटा सा संगीत कार्यक्रम आज … कार्यक्रम की शुरुआत 3 भागों में डच कला के साथ होगी। एक हिस्सा हॉलैंड से, बेल्जियम से एक, और स्पेन से एक हिस्सा… तो हम पहले डच गीत के साथ शुरू करेंगे और पहला श्री माताजी का स्वागत नृत्य है… [प्रदर्शन शुरू होता है] श्री माताजी: यह महिला डेली वर्मा इतनी एक अद्भुत है, इस तरह का आश्चर्य और यह कितना शानदार आश्चर्य था … मुझे यह कहते हुए खेद है लेकिन मैंने संगीत और नृत्य का ऐसा संयोजन कभी नहीं देखा है।अली अकबर खां साहब एक बहुत महान गुरु हैं लेकिन मैंने कभी किसी को उनकी प्रतिभा का उपयोग करते नहीं देखा। नृत्य के लिए प्रतिभा। यह बहुत बेहतर है, आप देखिए … कभी-कभी लोग कथक, या किसी भी Read More …
(2:38:00 बजे) श्री माताजी: ऑस्ट्रियन लोगों ने जो कार्यक्रम पेश किया और फिर, कहना चाहिए कि जर्मन लोगों ने जो कार्यक्रम पेश किया, वह बहुत सुन्दर था क्योंकि जो पहला कार्यक्रम था, वह कुछ क्लासिकल था और जिस प्रकार से उन लोगों ने प्रस्तुति रखी, वह मुझे बहुत ही अच्छी लगी ।पाश्चमात्य संगीत की वो सभी सुंदर धुनें, नि:संदेह बहुत-बहुत सुंदर थीं । लेकिन उसके बाद भी जो नाटक उन्होंने सहजयोग के बारे में प्रस्तुत किया, उसका भी मैंने भरपूर आनंद लिया और यह कि वे जिस तरह से सहजयोग को समझ रहे हैं कि अगर आपका स्वयं पर विश्वास है तो कुछ भी किया जा सकता है, वह बहुत महत्वपूर्ण है । और इस रात्रि हमने जो सारा समय यहां बिताया, वह बहुत ही आनंददायी था । मेरे विचार से सभी बहुत खुश थे और आनंद उठा रहे थे । तो, कल हमारा पूजा का एक कार्यक्रम है । इसलिए, अब अगर संभव हो तो हमें जाकर सो जाना चाहिए । इसके बाद, मुझे पता है कि आप सभी एक दूसरे का मज़ा उठाएंगे, जैसाकि हमेशा होता है, पर उसके बाद कृपया आप सभी निद्रा लें । आज का समारोह अति महत्वपूर्ण था – जिस प्रकार से वे झंडे लेकर आए, मैं इतनी आनंदित महसूस कर रही थी । न जाने किस-किस तरह की भावनाएं उठ रही थी, बस मैं बता नहीं सकती कि मैं उस पर क्या कहूं -इतना बेहतरीन विचार था । कुछ झंडों के बारे में तो मुझे पता भी नहीं है । परन्तु इस संसार Read More …
1995-04-14 ईस्टर पूजा प्रवचन, स्वयं को क्रूसारोपित करें, कलकत्ता, भारत (अंग्रेजी, हिंदी) । [अंग्रेजी में प्रवचन] आज वह दिन है जब हम ईस्टर मना रहे हैं । ईस्टर पूर्णतया प्रतीकात्मक है, केवल ईसा मसीह के लिए नहीं, बल्कि हम सभी के लिए भी। उस में सबसे महत्वपूर्ण दिन पुनरुत्थान का है। ईसा मसीह के पुनरुत्थान में ईसाई धर्म का संदेश है, क्रॉस का नहीं। पुनरुत्थान के माध्यम से ईसा मसीह ने दिखाया था कि कोई भी व्यक्ति अपने शरीर के साथ पुनर्जीवित हो सकता है और उनके पुनरुत्थान के बिना, हम आज्ञा चक्र को पार नहीं कर सकते थे, इसमें कोई संदेह नहीं है। उनका जीवन बहुत कम था, हम कह सकते हैं मात्र साढ़े तीन वर्ष , वह वहां रहे । वह भारत आए और शालिवाहन से मिले और शालिवाहन ने उनका नाम पूछा । उन्होंने बताया कि उनका नाम ईसा मसीह है । लेकिन उन्होंने कहा, मैं उस देश से आ रहा हूँ, जहां म्लेच्छ, मल–इच्छा । इनमें मल की इच्छा है, मलिन बने रहने की इच्छा है और मैं नहीं जानता कि वहाँ कैसे रहना है । मेरे लिए, यह मेरा देश है । लेकिन शालिवाहन ने कहा कि, आप वापस जाकर अपने लोगों को बचाएं और उन्हें परम निर्मल तत्व प्रदान करें। इसलिए वह वापस चले गए, और जैसा कि है, साढ़े तीन साल के भीतर उन्हें क्रॉस पर चढ़ाया गया था। अपनी मृत्यु के समय उन्होंने क्षमा के लिए बहुत सारी सुंदर बातें बताई, लेकिन अंततः उन्होंने कहा माँ को निहारें अर्थात आपको मां के Read More …
Public Program सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा प्रणाम इस कलियुग में मनुष्य जीवन की अनेक समस्याओं के कारण विचलित हो गया है, और घबरा रहा है। कलियुग में जितने सत्य को खोजने वाले हैं, उतने पहले कभी नहीं थे और यही समय है जबकि आपको सत्य मिलने वाला है। लेकिन ये समझ लेना चाहिए कि हम कौनसे सत्य को खोज रहे हैं ? क्या खोज रहे हैं? नहीं तो किसी भी चीज़ के पीछे हम लग करके ये सोचने लग जाते हैं कि यही सत्य है। इसका कारण ये है, कि हमें अभी तक केवल सत्य, अॅबसल्यूट ट्रूथ (absolute truth – परम सत्य) मालूम नहीं । कोई सोचता है कि ये अच्छा है, कोई सोचता है वो अच्छा, कोई सोचता है कि जीवन और ही तरह से बिताना चाहिए। तो विक्षुब्ध सारी मन की भावना और भ्रांति में इन्सान घूम रहा है। इस संभ्रांत स्थिति में उसको समझ में नहीं आता है कि,’आखिर क्या कारण है,जो मेरे अन्दर शांति नहीं है। मैं शांति को किस तरह से अपने अन्दर प्रस्थापित करूं । मैं ही अपने साथ लड़ रहा हूँ, झगड़ रहा हूँ, कुछ समझ में नहीं आता।’ यही कलियुग की विशेषता है और इसी कारण इस कलियुग में ही मनुष्य खोजेगा। पहले इस तरह की संभ्रांत स्थिति नहीं थी। मनुष्य अपने मानवता से ही प्रसन्न था। अब आप इस मानव स्थिति में आ गये हैं। इस स्थिति में अगर आपको केवल सत्य मालूम होता तो कोई झगड़ा ही नहीं होता, हर एक इन्सान एक ही बात Read More …
जन्म दिवस पूजा दिल्ली मार्च 20, 1995 अपने ही जन्मदिन में क्या कहा जाए? जो उम्मीद नहीं थी वो आप इतने लोग सहजयोग में आज दिल्ली में बैठे हुए हैं, इससे बढ़कर एक माँ के लिए घटित हो गया है। और कौन सा जन्म दिन हो सकता है? आप लोगों ने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किया है, ये भी आप का जन्मदिन है। एक महान कार्य के लिए आप लोग तैयार हुए हैं। और ये महान कार्य आज तक कभी हुआ नहीं। उसके आप संचालक हैं । इससे बढ़कर और मेरे लिए क्या सुख का साधन हो सकता है? कभी सोचा भी नहीं था कि अपने जीवन में ही इतने आत्मसाक्षात्कारी जीवों के दर्शन होंगे और इतना अगम्य आनन्द उठाने को मिलेगा। एक वातावरण की विशेषता कहें जिसमें कि आज आप देख रहे हैं कि मनुष्य एक भ्रांति में घूम रहा है। एक तरफ विदेश की ओर नज़र करने पर ये समझ में आता है कि ये लोग एकदम ही भटक गए हैं। वहाँ पर नैतिकता का कोई अर्थ ही नहीं रहा। अनीति के ही रास्ते पर चलना, अग्रसर होना वो बड़ी बहादुरी की चीज़ समझते हैं और सीधे नरक की ओर उनकी गति है। इस गतिमान प्रवृत्ति को रोकना बहुत ही कठिन काम है, लेकिन वहाँ भी ऐसे अनेक हीरे थे जिन्होनें सोचा कि बाहर आएँ। 6. दूसरी तरफ हम जब देखते हैं तो बुरी तरह से कठिन परिस्थितियाँ बनाई गई हैं, मनुष्य के लिए कि आप अपने जीवन को एक कठिन बंधन में बाँध लें कि हम धार्मिक हैं। Read More …
महाशिवरात्रि पूजा 26 फरवरी 1995, ऑस्ट्रेलिया आज हम यहां सदाशिव की पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। वह, जो हमारे भीतर परिलक्षित होता है, वह शिव है, जो शुद्ध आत्मा है। हमारे भीतर यह शुद्ध आत्मा सर्वशक्तिमान, सदाशिव भगवान का प्रतिबिंब है। यह सूरज की तरह है जो पानी में गिरता है और एक स्पष्ट प्रतिबिंब देता है। या फिर यह पत्थर पर गिरता है, यह बिल्कुल भी प्रतिबिंब नहीं देता है। माना की यदि आप के पास दर्पण हो, सूर्य न केवल दर्पण पर गिरेगा, बल्कि इसके प्रकाश को वापस प्रतिबिंबित करेगा। उसी तरह से इंसान में भगवान सर्वशक्तिमान का प्रतिबिंब आपके व्यक्तित्व के अनुसार व्यक्त किया गया है। यदि आपका व्यक्तित्व साफ और स्पष्ट, निर्दोष है, तो प्रतिबिंब दर्पण की तरह हो सकता है। इस प्रकार संत लोग, सर्वशक्तिमान ईश्वर को उचित तरीके से दर्शाते हैं, इस अर्थ में कि उनकी अपनी पहचान गलत चीजों के साथ नहीं है। जब ऐसी कोई पहचान नहीं होती है और जब कोई व्यक्ति बिलकुल शुद्ध आत्मा होता है, तो परमेश्वर का प्रतिबिंब दूसरों में परिलक्षित होता है। सौभाग्य से आप सभी को अपना आत्म साक्षात्कार मिला है। इसका मतलब है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर का प्रतिबिंब पहले से ही आपके चित्त में कार्यरत है। आत्मा की शक्ति से चित्त प्रकाशित होता है। आत्मा की शक्ति यह है कि यह एक प्रतिबिंब है। अर्थात, प्रतिबिंब की पहचान कभी दर्पण से या पानी से नहीं की जाती है। यह तब तक होता है जब तक सूरज चमकता है, और जब कोई सूरज नहीं Read More …
श्री गणेश पूजा कळवा, ३१ दिसंबर १९९४ अ जि हम लोग श्री गणेश पूजा करेंगे। श्री गणेश की पूजा करना अत्यावश्यक है। क्योंकि उन्हीं की वजह से सारे संसार में पावित्र्य फैला था। आज संसार में जो-जो उपद्रव हम देखते हैं उसका कारण यही है की हमने अभी तक अपने महात्म्य को नहीं पहचाना। और हम लोग ये नहीं जानते की हम इस संसार में किसलिए आये हैं और हम किस कार्य में पड़े हुए है, हमें क्या करना चाहिए? इस चीज़ को समझने के लिए सहजयोग आज संसार में आया हुआ है। जो कुछ भी कलियुग की घोर दशा है उसे आप जानते हैं। मुझे वो बताने की इतनी जरूरत नहीं है। परन्तु हमें जान लेना चाहिए कि मनुष्य जो है धर्म से परावृत्त हो गया है। जैसे कि उसकी जो श्रद्धाऐं थीं वो भी ऊपरी तरह से आ गयी । उसमें आंतरिकता नहीं। वो समझ नहीं पाता है कि श्री गणेश को मानना माने क्या? अपने जीवन में क्या चीज़ें होनी चाहिए। लेकिन ये बड़ा मुश्किल है। कितना भी समझाईये, कुछ भी कहिये लेकिन मनुष्य नहीं समझ पाता है कि श्री गणेश को किस तरह से हम लोग मान सकते हैं। गर वो एक तरफ श्री गणेश की एक आशीर्वाद से प्लावित है, नरिष्ठ है कि वो बड़े पवित्र है। वो सोचते हैं। ऐसी बात नहीं। अगर आप बहुत इमानदार आदमी है तो ठीक है। लेकिन नैतिकता में आप कम है तो गलत है। अगर आप संसार के जो कुछ भी प्रश्न है उसकी ओर ध्यान नहीं देते Read More …
Adi Shakti Puja (Hindi). Jaipur (India), 11 December 1994. [Original transcript Hindi talk, scanned fromo Hindi Chaitanya Lahari] आज हम लोग आदिशक्ति का पूजन कर रहे हैं। जिसमें सब कुछ आ जाता है। बहुत से लोगों ने आदिशक्ति का नाम भी नहीं सुना। हम लोग शक्ति के पुजारी हैं, शाक्तधर्मी हैं और महामाया स्वरूप था। आदिशक्ति को महामाया स्वरूप होना जरूरी है क्योंकि सारा ही शक्ति का जिसमें समन्वय हो, प्रकाश हो और हर तरह से जो हरेक शक्ति विशेष कर राजे-महाराजे सभी शक्ति की पूजा की अधिकारिणी हो उसे महामाया का ही स्वरूप करते हैं। सबकी अपनी-2 देवियाँ हैं और उन लेना पड़ता है। उसका कारण ये है कि जो प्रचण्ड शक्तियाँ इस स्वरूप में संसार में आती सब देवियों के नाम अलग-2 हैं। यहाँ की देवो का नाम भी अलग है, गणगौर। लेकिन आदिशक्ति हैं. सबसे पहले सुरकभि के रूप में आई थी ये का एक बार अवतरण इस राजस्थान में हुआ जो शक्ति, जो एक गाय थी। उसमें सारे ही देंबी वो सती देवी के रूप में यहाँ प्रकट हुई। उनका देवता बसे हैं और उसकोे बाद एक बार सती बड़ा उपकार है जो राजस्थान में अब भी अपनी देवी के रूप में, एक ही बार इस राजस्थान में अवतरित हुई। मैंने आपसे बताया कि मेरा संबंध संस्कृति, स्त्री धर्म, पति का धर्म, पत्नी का धर्म, राजधर्म हरेक तरह के धर्म को उनकी शक्ति ने इस राजस्थान से बहुत पुराना है क्यांकि हमारे पूर्वज राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के सिसौदिया वश प्लावित किया, Nourish किया। सती देवी की Read More …
4-12-1994 Shri Rajlaxmi Puja, Delhi आज हम राजलक्ष्मी की पूजा करने जा रहे हैं, मतलब वह देवी जो राजाओं पर शासन करती है। आज यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि मूल रूप से कुछ गलत हो रहा है हमारी राजनीतिक व्यवस्थाओं की कार्यप्रणाली में और क्यों लोगों ने अपनी न्याय, निष्पक्ष व्यवहार और परोपकार की भावना को खो दिया है। हम कहाँ गलत हो गए हैं कि ये सब खो रहा है? ये केवल भारत में नहीं, ये केवल जापान या इंग्लैंड में नहीं या किसी अन्य स्थान पर, जहाँ हमें लगता है कि लोकतंत्र है। सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि इन सभी देशों ने, यहां तक कि जिन्होंने अपनी स्वतंत्रता पायी है, उन देशों का अनुसरण करना शुरू किया जो बहुत ही उच्च और पराक्रमी और बहुत शक्तिशाली माने जाते थे जैसे कि अमरीका, जैसे कि रूस, जैसे कि चीन, इंग्लैंड – सोचे समझे बिना कि वे अपने उस लक्ष्य को पाने में कितना सफल हुए हैं जो उन्हें प्राप्त करने थे। जैसा भी हो, इंग्लैंड जैसे देश में, आप देखते है यह राज-तंत्र, किस ढंग से यह काम करता है, आश्चर्य चकित कर देता है, बिल्कुल चौंका देता है । जिस तरह से उन्होंने अपने मंत्रियों के प्रति आचरण किया, जैसे क्रॉमवेल, आपको ऐसा लगता है जैसे कोई आदिम लोग कुछ प्रबंधन करने का प्रयत्न कर रहे हैं। और राजा लोग इतने क्रूर, रानियाँ इतनी क्रूर, इतने चरित्रहीन, इतने अविश्वसनीय। उनमें कोई चरित्र नहीं था राजा और रानी बनने का। अपने राजलक्ष्मी सिद्धांत के प्रति कोई Read More …