Public Program, Satya मुंबई (भारत)

1986-01-21 को सत्य, मुंबई (हिंदी) में जनसभा: सत्य का स्वरूप, मुंबई बंबई शहर के सत्यशोधकों को हमारा प्रणिपात। सत्य की खोज के बारे में अनादि काल से इस देश में अनेक ग्रंथ लिखे गए हैं। इसकी वजह यह है, कि इस भारत वर्ष की जो भूमि है, इस भूमि में बहुत से आशीर्वाद छिपे हुए हैं, जिसके बारे में हम जानते नहीं। यहां की आबोहवा इतनी अच्छी है, कि आप जब घर से निकलते हैं, आपको जैसे लंदन में लबादे लबादे लादने पड़ते हैं और निकलने से पहले 15 मिनट तैयार होना पड़ता हैं, ऐसी कोई आफत नहीं। बाहर आते ही प्रच्छन्न ऐसी सुंदर प्रच्छन्न हवा बहती रहती है। यहां एक इंसान जंगलों में भी, पहाड़ी में भी, झरनों के पार, नदियों के किनारे, बड़े आराम से अपना जीवन बिता सकता है। यह हालत किसी भी देश में इतनी अच्छी नहीं है। या तो देश बहुत ज्यादा गर्म है, या बहुत ज्यादा ठंडे हैं। अतिशय्ता की प्रकृति होने की वजह से वहां पर लोगों को हर समय प्रकृति से झगड़ना पड़ता है, और ये संग्राम करते करते लोगों की वृत्ति आक्रमक; आक्रमण करने वाली हो जाती है। आप आक्रमणकारी हो जाते हैं।  जब पहली मर्तबा मैं लंदन गई थी, तो मैं सोचती थी कि यहां कोई प्रकोप है परमात्मा का कि श्राप है, कि आप बाहर एक मिनट भी खड़े नहीं हो सकते। शुद्ध हवा आप एक मिनट भी नहीं ले सकते। घर से निकलीये तो बंद, मोटर में बैठिए दौड़ कर और फिर जहां भी जाइए वहां से दौड़कर आप Read More …

Health Advice, the Sun, western habits, the brain and medical matters Near Musalwadi Lake, Musalwadi (भारत)

               सूर्य, मस्तिष्क, चिकित्सा प्रश्न  राहुरी (भारत)। 13 जनवरी 1986। [आगमन पर: श्री माताजी: “आज का दिन बहुत हवादार और अच्छा और ठंडा है”। वारेन: “माँ, यह तो आपकी बयार है”। श्री माताजी (हँसते हुए): “मुझे लगता है कि यह उससे पहले है”] श्री माताजी : कृपया बैठ जाइए। मैं थोड़ा पानी लुंगी। शादियां अब हो चुकी हैं? वॉरेन: वे अगले दरवाजे पर जा रहे हैं, माँ। श्री माताजी: (हँसते हुए) मैंने सोचा कि विवाह समाप्त होने के बाद मुझे यहाँ आना चाहिए। इसे मेरी पीठ पर रखना बेहतर होगा, इस से मुझे प्रसन्नता होगी। मैं थोड़ा पानी लुंगी, कृपया। बस आपका धन्यवाद। हर समय व्याख्यान? मुझे लगा कि मैं आप सभी से मिलने आयी हूं, आपको व्याख्यान देने नहीं। तो अब हम अपनी अगली गतिविधि के लिए जा रहे हैं और मुझे वापस बंबई लौटना पड़ सकता है। मुझे नहीं पता कि आप यहाँ कितने आराम में थे (तालियाँ), लेकिन आप पागल भीड़ (हँसी) से दूर रहना चाहते थे और मुझे लगा कि यहाँ रहने के लिए यह अच्छी जगह होगी, हालाँकि धूमल हर समय जोर देकर कहते रहे थे कि उन्हें किसी मंगलकार्यालय में या कुछ और में रुकना चाहिए। लेकिन मैंने उससे कहा, “आप उन्हें नहीं समझते हैं, वे इस सभी सीमेंट, कंक्रीट का ज्यादा आनंद नहीं लेते हैं।” (तालियाँ) वे हमेशा प्रकृति की संगति में रहना चाहेंगे जब तक उन्हें धूप और बारिश से कुछ सुरक्षा मिलती है। और वे उस तरह के सामूहिक जीवन का आनंद लेना चाहते हैं, और वे बहुत खुश होंगे। लेकिन फिर Read More …

The Innocence of a Child & purpose of Ganapatipule, Evening Program, Eve of Shri Mahaganesha Puja Ganapatipule (भारत)

एक बच्चे सी अबोधितागणपतिपुले (भारत), 31 दिसंबर 1985। गणपतिपुले एक बहुत ही खूबसूरत जगह थी और आप सभी के लिए बहुत सुकून देने वाली जगह थी इसके अलावा यहांआने का मेरा एक विशेष उद्देश्य था । कारण यह है कि – मैंने पाया कि इस जगह में चैतन्य थे जो आपको बहुत आसानी से स्वच्छ कर देंगे, सबसे पहले। लेकिन आपको इसकी इच्छा करनी होगी, वास्तव में, तीव्र्ता के साथ। आपको वह इच्छा रखनी चाहिए अन्यथा कुंडलिनी नहीं उठ सकती है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु है; कि तुम्हें अपने उत्थान की इच्छा करनी है, और कुछ नहीं। यह ऐसी जगह नहीं है जहां आप छुट्टी मनाने आए हैं या सिर्फ किसी तरह के विश्राम के लिए या किसी आनंद या सोने या किसी भी चीज के लिए आए हैं, बल्कि आप यहां तपस्या के लिए, तपस्या के लिए, अपने आप को पूरी तरह से शुद्ध करने के लिए आए हैं। यह श्री गणेश के मंदिर का एक स्थान है, जहां लोगों का आना-जाना बहुत कम है और यह अभी भी बहुत, बहुत शुद्ध है। और मैंने सोचा था कि आप में गणेश तत्व जागृत हो जाएगा जो कि हर चीज का स्रोत है। श्री गणेश के तत्व, जैसा कि आप जानते हैं, बड़े पैमाने पर या विस्तृत तरीके से, हम इसे ‘अबोधिता’ कहते हैं, लेकिन हम उन पेचीदगियों और विवरणों को नहीं जानते हैं जिन पर जाकर यह काम कर सकता है। श्री गणेश की अबोधिता में लोगों को शुद्ध करने, आपको पवित्र बनाने, आपको शुभ बनाने की Read More …

The English Are Scholars, Seminar Totley Hall Training College, Sheffield (England)

“अंग्रेज विद्वान हैं”अंग्रेज संगोष्ठी, शेफ़ील्ड (यूके), 21 सितंबर 1985। जैसा कि मैंने कल कहा, यह क्षेत्र है; वह क्षेत्र जहाँ प्रबोध को आना है। इतने दीपों से क्षेत्र को जगमगाना पड़ता है। और यह क्षेत्र जो प्रबुद्ध है, प्रकृति से भी समृद्ध है। और जब तुम गा रहे थे, तो मुझे लगा कि बादल स्वरों को पकड़ रहे हैं, उन्हें अपने भीतर बुन रहे हैं और जब बारिश होगी, तो बारिश फिर से गीत गाएगी; मानो घाटियाँ इतनी खूबसूरती से गूंज रही हों। और प्रतिध्वनि बहुत कोमल थी और पूरे वातावरण को भर रही थी। शायद आपको ईश्वरीय सूक्ष्मता के बारे में पता नहीं है कि वह इसे कार्यांवित करने के लिए कितना उत्सुक है । लेकिन हमारे यंत्र हमारी तुरहियां और हमारी बांसुरी और हमारे ढोल ठीक होने चाहिए। तालमेल होना चाहिए, पूरी तरह से तालमेल बिठाना चाहिए-तब माधुर्य सुन्दर ढंग से बजाया जाता है। बादल केवल शुद्धतम जल, शुद्धतम स्तोत्र वहन कर ले जाते हैं। इसलिए, जब हम संदेश फैला रहे हैं, तो हमें यह समझना होगा कि इसे एक शुद्ध स्रोत से आना चाहिये। शुद्धता बहुत जरूरी है। पवित्रता वाले हिस्से के बारे में मैंने पहले से ही बात की है, जो मूलाधार है, जो आज बहुत महत्वपूर्ण है; आप इसे स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि यह कितना महत्वपूर्ण है। लेकिन यह उसका अंत नहीं है, यह तो बस शुरुआत है – बस शुरुआत है। लेकिन हमें जो देखना है वह हमारे भीतर बहुत ही सहज निर्मित है। और आज जब हम दिलों के दिल Read More …

Shri Gruha Lakshmi Puja: In your houses you must do Gruhalakshmis’ puja Brompton Square House, London (England)

श्री गृहलक्ष्मी पूजाब्रॉम्प्टन स्क्वायर, लंदन, 1985-0805 तो, इस घर को बनाने और इसे इतना सुंदर बनाने में मदद करने के लिए आप सभी को धन्यवाद देना है। सारी कृतज्ञता हम दोनों की ओर से है [श्री माताजी और सर सीपी]।आज का दिन बहुत दिलचस्प है जब आप यहां गृहलक्ष्मी की पूजा कर रहे हैं, यानी इस घर की गृहलक्ष्मी। इसी प्रकार अपने परिवार में भी अपने घरों में गृहलक्ष्मी की पूजा अवश्य करें। स्त्री को स्वयं गृहलक्ष्मी बनना है और फिर उसकी पूजा करनी चाहिए।“यत्य नारीया पूज्यन्ते, तत्र भ्रामंते देवता।” जहां नारी का सम्मान और पूजा होती है, वहां सभी देवताओं का वास होता है। लेकिन उन्हें भी सम्मानजनक होना चाहिए। यदि वे आदरणीय नहीं हैं तो देवताओं का वास वहाँ नहीं होगा। इसलिए, गृहलक्ष्मी पर सम्मानजनक होने की एक बड़ी जिम्मेदारी है ताकि परिवार में सभी देवता खुश रहें। और एक बार उसका सम्मान होने के बाद, वह भी सम्मानजनक बनने की कोशिश करेगी। इसलिए गृहलक्ष्मी का सम्मान बहुत जरूरी है। आज हम विश्वकर्मा और ब्रह्मदेव के आशीर्वाद से, उन सभी बिल्डरों कीऔर से जिन्होंने यहां हमारी मदद की; जिन्होंने इस घर को इतना खूबसूरत बनाने की कोशिश की है,यह छोटी पूजा कर रहे हैं । साथ ही, जैसा कि आप जानते हैं, ब्लेक ने इस घर का वर्णन किया है। इसका एक विशेष महत्व है और अब हमें इसे किसी और को सौंपना है, जो इस घर की सराहना और सम्मान करेगा; जो की इस घर का मूल्य और कीमत को समझेगा। और इसके लिए हमें प्रार्थना करनी Read More …

Seminar, Mahamaya Shakti, Evening, Improvement of Mooladhara University of Birmingham, Birmingham (England)

                                            महामाया शक्ति बर्मिंघम सेमिनार (यूके), 20 अप्रैल 1985. भाग 2 श्री माताजी: कृपया बैठे रहें। क्या यह सब ठीक है? क्या आप ठीक रिकॉर्ड कर रहे हैं? सहज योगी: हाँ माँ तो इसी तरह से महामाया के खेल होते हैं | उन्होंने हर चीज की योजना बनाई थी। उनके पास सारी व्यवस्था बनायीं थी और साड़ी गायब थी। ठीक है। तो उन्होंने आकर मुझे बताया कि साड़ी गायब है, तो अब क्या करना है? उनके अनुसार, आप साड़ी के बिना पूजा नहीं कर सकती हैं। तो मैंने कहा, “ठीक है, चलो इंतजार करते हैं ।” यदि यह साडी समय पर आती है तो हम पूजा करेंगे; अन्यथा हम यह बाद में कर सकते हैं। लेकिन मैं बिलकुल भी परेशान नहीं थी,ना अव्यवस्थित । क्योंकि मुझे इसका कोई मानसिक अनुमान नहीं है। लेकिन अगर आपके पास एक मानसिक अवधारणा है की , “ओह, हमने सब कुछ प्रोग्राम किया है, सब कुछ व्यवस्थित किया है। हमने यह कर लिया है और अब यह व्यर्थ जा रहा है। ” कोई बात नहीं कुछ भी  फिजूल नहीं है। [हसना] लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाते। चूँकि आपने आज मुझसे पूछा था, “महामाया क्या है?”, यही है वो महामाया । [हसना] आपको अपने मार्ग में जो कुछ भी आता है उसे स्वीकार करना सीखना चाहिए। यह भी एक चीज़ है और चूँकि हम एक मानसिक कल्पना कर लेते हैं इसलिए,यहाँ हम निराश, क्रोधित, परेशान हो कर और अपने आनन्द को बिगाड़ लेते हैं। मानसिक रूप से हम कुछ गणना करते हैं। ऐसा होना ही है। Read More …

Public Program (भारत)

॥ जय श्री माता जी ।। धर्मशाला 31-03-85 धर्मशाला के मातृभक्तों को मेरा प्रणाम ! यहाँ के मन्दिर की कमेटी ने ये आयोजन किया, जिसके लिए मैं उनका बहुत धन्यावाद मानती हूँ। असल में इतना सत्कार और आनंद, दोनों के मिश्रण से हृदय में इतनी प्रेम की भावना उमड़ आयी है कि वो शब्दों में ढालना मुश्किल हो जाता है। कलियुग में कहा जाता है कि कोई भी माँ को नहीं मानता । ये कलयुग की पहचान है कि माँ को लोग भूल जाते हैं। लेकिन अब ऐसा कहना चाहिए कि कलियुग का समय बीत गया, जो लोगों ने माँ को स्वीकार किया है । माँ में और गुरू में एक बड़ा भारी अन्तर मैंने पाया है, कि माँ तो गुरू होती ही है, बच्चों को समझाती है, लेकिन उसमें प्यार घोल – घोल कर इस तरह से समझा देती है कि बच्चा उस प्यार के लिए हर चीज करने को तैयार हो जाता है । ये प्यार की शक्ति, जो सारे संसार को आज ताजगी दे रही है, जो सारे जीवन्त काम कर रही है, जैसे ये पेड़ का होना, उसकी हरियाली, उसके बाद एक पेड़ में से हो जाना और फूल में फूल से फल हो जाना, ये जितने भी कार्य हैं, जो जीवन्त कार्य हैं, ये कौन करता है? ये सब करने वाली जो शक्ति है वो परमात्मा की प्रेम की शक्ति है। उसी को हम आदि शक्ति कहते हैं। परमात्मा तो सिर्फ नज़ारा देखते हैं कि उनकी शक्ति का कार्य कैसे हो रहा है? जब उनको Read More …

Devi Puja (भारत)

देवी पूजा धर्मशाला, ३०.३.१९८५ आज के शुभ अवसर पर यहाँ आए हैं। आज देवी का सप्तमी का दिन हैं। सप्तमी के दिन देवी ने अनेक राक्षसों को मारा, अनेक दुष्टों का नाश किया, विध्वंस कर डाला। क्योंकि संत -साधु जो यहाँ पर बैठे हुए तपस्या में संलग्न हैं उनको ये लोग सताते थे। हम लोग सोचते हैं कि माँ ये क्यों, क्यों इन्होंने इतनी तपस्या की। इनको क्या जरूरत थी इतना तप करने की, इतनी तपस्या करने की। वजह ये कि तब मनुष्य का तपका बहुत नीचा था। लेकिन आँख बहुत उन्नत थी। वो सोचते थे कि हम इस शरीर से उस आत्मा को प्राप्त कर लें। इसलिए उन्होंने इतनी मेहनत की और इस स्थान में बैठ करके इतनी तपस्विता की। आज उन्हीं की कृपा से हम लोग आज इतने ऊँचे स्थान पर बैठे हुए हैं। उन्हीं की कृपा से हमने पाया। इसका मतलब ये नहीं कि हम लोग इस सहजयोग को समझ लें कि हमारे लिए एक बड़ी भारी देन हो गयी , कोई हमे बड़े महान लोग हैं जिनको कि भगवान ने वरण कर लिया, हम लोग चुने हुए मनुष्य हैं और इस तरह की बातें सोचने वाले लोगों को मैं बताती हूँ बड़ा धक्का बैठेगा। ये देखेंगे की जो लोग यहाँ स्वभाव से अत्यन्त सुन्दर हैं, वे सबसे पहले आकाश की ओर उठेंगे और बाकी सब यही धरातल पर बैठे रहेंगे। जितनी जड़ वस्तु है सब यहीं रह जाएगी। इसलिए सिर्फ आपका साक्षात्कार होना पूरी बात नहीं है। मैं यही बात अंग्रेजी में कह रही थी, वही Read More …

Birthday Puja New Delhi (भारत)

जनम दिवस पूजा प्रवचन सहज मंदिर, नई दिल्ली, २६.३.१९८५ आज आप लोग हमारा जन्मदिवस मना रहे हैं। यह एक बड़ी सन्तोष की बात है क्योंकि इस कलियुग में कौन माँ का जन्मदिन इस उम्र में मनाता है। इसलिय यह द्योतक है कि आप लोग इस कलियुग में जन्म लेकर के भी अपने मातृधर्म से परिचित ही नहीं लेकिन उसका अवलम्बन भी करते हैं। से इस उम्र में तो जन्म दिन मनाना माने एक-एक साल घटता ही जा रहा है। और बहुत काम करने के बचे हैं। बहुत से अभी कार्य मुझे दिखाई दे रहे हैं जो कि अधूरे से हैं। उन पर मेहनत करनी होगी, ध्यान देना पड़ेगा, तभी वो पूरी तरह से होंगे। हुए दिल्ली में जो काम मैंने कल कहा था कि हमें अपनी सभ्यता की ओर ध्यान देना चाहिए । हमारी सांस्कृतिक स्थिति भी ठीक करनी चाहिए। और तीसरी बात जो बहत महत्वपूर्ण है वो ये कि हमारी जो आत्मिक उन्नति है, उसकी ओर हमें ध्यान ही नहीं देना चाहिए, पर जैसे कोई एक शहीद सर पर कफन बाँध करके किसी कार्य में संलग्न होता है, उसी प्रकार हमें ‘सरफरोशी की तमन्ना’ ले करके सहजयोग करना चाहिए। जब तक हमारे अन्दर ये बात नहीं आती, तब तक सहजयोग सिर्फ हमारे ही लाभ के लिये है। इससे हमें क्या फायदे हुए, इससे हमने क्या-क्या सुख उठाया, यही सब मैं सुनती रहती हूँ। इससे हमारा जो कुछ भी लाभ हुआ है, जो भी हमारा अच्छा हुआ है, वो एक वजह से, एक कारण से हुआ है कि हमने अपनी Read More …

Public Program Jaipur (भारत)

जयपुर के सर्व सत्य शोधकों को हमारा प्रणाम। जीवन में हर मनुष्य अपनी धारणा के बूते पर रहता है। जो भी धारणा वो बना लेता है उसके सहारे वह जीता है। लेकिन एक कगार ऐसी ज़िन्दगी में आ जाती है, जहाँ पर जा कर वह यह सोचता है, कि, “मैंने आज तक जो सोचा, जो धारणाएं लीं, वो फलीभूत नहीं हुईं। उससे मैंने आनंद की प्राप्ति नहीं की, उससे मुझे समाधान नहीं मिला, उससे मैंने शांति प्राप्त नहीं की।” जब वो कगार मनुष्य के सामने खड़ी हो जाती है, तब वो अपनी धारणाओं के प्रति शंकित हो जाता है। और उस वक़्त वो ढूँढने लग जाता है कि इससे परे कौन सी चीज़ है, इससे परे कौन सी दुनिया है, जिसे मुझे प्राप्त करना है। ये जब शुरुआत हो जाती है, तभी हम कह सकते हैं, कि मनुष्य एक साधक बन जाता है। वो सत्य के शोध में न जाने कहाँ-कहाँ भटकता है। कभी-कभी सोचता है कि, बहुत सा अगर हम धन इकठ्ठा कर लें, तो उस धन के बूते पे हम आनंद को प्राप्त कर लेंगे। फिर सोचता है कि हम सत्ता को प्राप्त कर लें – सत्ता को प्राप्त करने से ही हम आनंद को प्राप्त कर लेंगे। फिर कोई सोचता है कि अगर हम किसी मनुष्य मात्र को प्रेम करें, तो उसी से हम सुख को प्राप्त कर लेंगे। उससे आगे जब वो विशालता पे उठता है, तो ये सोचता है कि, हम प्राणी मात्र की सेवा करें, उनकी कुछ भलाई करें, उनके उद्धारार्थ कोई कार्य करें, Read More …

Public Program Jaipur (भारत)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी, सार्वजनिक कार्यक्रम, 23 मार्च, 1985 जयपुर, राजस्थान, भारत श्री माताजी के आगमन पूर्व का दृश्य बहुत सारे साधकों से हॉल भरा हुआ है।  एक सहज योगी भाई नए लोगों को अंग्रेजी भाषा में संबोधित कर रहे हैं। उसके पश्चात श्रीमती सविता मिश्रा भजन प्रस्तुत करती हैं। भजन समाप्ति की उपरांत श्री योगी महाजन दर्शकों को संबोधित कर रहे होते हैं।  तभी श्री माताजी का आगमन होता है, और वे स्टेज पर तेजी से चढ़ते हुए हम सब को दर्शन देती हैं। सब को प्रणाम कर के वे अपनी सिंहासन पर विराजमान होती हैं। योगी महाजन  श्री माताजी का स्वागत कर के सहज योग के विषय में संक्षिप्त में बोलते हैं। तत्पश्चात उनके आमंत्रण पर डॉक्टर वारेन भी सहज योग का संक्षिप्त परिचय देते हैं। श्रीमती सविता एक और भजन प्रस्तुत करती हैं। श्री माताजी को माल्यार्पण किया जाता है और उनके साथ उपस्थित सज्जन को भी। (वे अंग्रेजी में कहती है की – आई विल स्टैंड एंड स्पीक) (श्री माताजी खड़ी हो गई हैं, और सब पर दृष्टि डालते हुए अपना भाषण आरंभ करती हैं) जयपुर के साधकों को हमारा प्रणाम। श्री कृष्ण ने तीन तरह के लोग संसार में बताए हुए हैं, जिन्हे के वे तामसिक, राजसिक और सात्विक कहा करते थे।  तामसिक वो लोग होते हैं, कि जो अच्छा और बुरा, शुभ अशुभ कुछ भी नहीं पहचानते, पर अधिकतर अशुभ की ही ओर दौड़ते हैं, अधिकतर गलत चीजों की ओर ही दौड़ते हैं। जब वो अति इस में घुस जाते हैं, तो Read More …

Mahashivaratri Puja New Delhi (भारत)

महाशिवरात्रि पूजा तिथि: 17 फरवरी 1985 स्थान: दिल्ली प्रकार: पूजा भाषण भाषा: हिंदी मूल प्रतिलिपि हिंदी बातचीत वाचन की गई है, हिंदी चैतन्य लहरी से स्कैन किया गया।  आज शिवरात्रि के इस शुभ अवसर पे हम लोग एकत्रित हुए हैं और ये बड़ी भारी बात है कि हर बार जब भी शिवरात्रि होती है मैं तो दिल्ली में रहती हूँ। हमारे सारे शरीर, मन, बुद्धि, अहंकार, सारे चीजों में सबसे महत्वपूर्ण चीज है आत्मा और बाकी    के सब कुछ बाह्य के उसके अवलम्बन है। आत्मा में हम अपने पिता प्रभु का प्रतिबिम्ब देखते हैं। कल आपको आत्मा के बारे में मैंने बताया था। वही आत्मा शिव स्वरूप है। शिव माने जो बदलता नहीं, जो अवतरित नहीं होता, जो अपने स्थान में पूरी तरह से जमा रहता है, जो अचल, अटूट, अनंत , ऐसा वर्णित है उस शिव की आज हम अपने अन्दर पूजा कर रहे है वो हमारे अन्दर प्रतिबिम्बित हैं कुण्डलिनी के जागरण से हमने उसे जाना है और उसका प्रकाश जितना-जितना प्रज्जवलित होगा उतना हमारा चित्त भी प्रकाशमय होता जाएगा। लेकिन इस शिव की ओर ध्यान देने की बहुत जरूरत है। शिव के प्रति पूर्णतयां उन्मुख होने के लिए इस तरफ पूरी तरह से ले  जाने के लिए. हमें जरूरी है कि ये समझ लेना चाहिए कि उसकी तैयारी क्या हो? जैसे एक कंदिल में आपने ज्योत बाल  दी लेकिन कंदिल इस योग्य न हुआ कि उस ज्योत को अपने अन्दर समा ले तो ये सब व्यर्थ है, ये सारा कार्य व्यर्थ हो जाएगा। वो चीज़ जो Read More …

Sahasrara – Atma New Delhi (भारत)

Sahastrar – Atma Date : 16th February 1985 Place Delhi Туре Public Program Speech Language Hindi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Nirmala Yog सत्य के खोजने वाले सभी साध्कों को हमारा प्रणाम । जीवित रहेंगे? यह हृदय का जो स्पन्दन है- अनहदू, हर आज का मधुर संगीत आज के विषय से बहत सम्बन्धित घड़ी अपने आप ही कार्यान्वित रहता है उसको चलाने के है जिसके लिए मैं देब चौधरी को बहुत-बहुत घन्यवाद देती लिए अगर हमें बाहुय से कोई उपचार करना पड़ता तो हूँ। सभी सहज व्यवस्था हो जाती है और आज संगीत में जो कितने लोग इस संसार में जीवित पैदा होते? ऐसी अनेक आपने सात स्वरों का खेल देखा, हमारे अंदर भी ऐसा ही चीजें जो जीवन्त हैं, हम देखते हैं। फल खिलते हैं अपने आप सुन्दर संगीत नि्माण हो सकता है। यह जो कण्डलिनी के और इनके फल भी हो जाते हैं अपने आप। यह ऋतम्भरा सात चक्र आप देख रहे हैं वे हैं मूलाधार चक्र, मलाधार, स्वाधिष्ठान, नाभि, हृदय, विश्द्धि, आज्ञा और सहस्रार। इसके अलावा हमारे अन्दर सूर्य और चन्द्र के भी चक्र हैं। ब्रहमरन्ध्र को छेदने के बाद भी तीन और चक्र हमारे अन्दर हैं और कार्य करते हैं जिन्हें हम अर्धबिन्द, बिन्दू और वलय कहते हैं। यह सार हमारे अन्दर स्वर हैं। जैसे “स” से शुरू करें तो “सा र गा मा पा धा नी” सहलार पर “नी” जाकर पहुँचता है। इसी प्रकार इन सब चक्रों को शक्ति देने वाले ऐसे ग्रह भी हैं। जैसे मूलाधार पर मंगल, स्वाधिष्ठान पर बुद्ध, नाभि Read More …

The Culture of Universal Religion Bordi (भारत)

“विश्व निर्मल धर्म की संस्कृति” बोर्डी (भारत), 7 फरवरी 1985। युद्ध के मैदान में हमारी नई यात्रा का आज दूसरा दिन है। हमें लोगों को प्यार, करुणा, स्नेह और आत्मसम्मान से जीतना है। जब हम कहते हैं कि यह एक विश्व धर्म है, यह एक सार्वभौमिक धर्म है जिससे हम संबंधित हैं, सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात, इसका सार शांति है। शांति भीतर होनी चाहिए, शुरुआत करने के लिए। आपको अपने भीतर शांत रहना होगा। यदि आप शांत नहीं हैं, यदि आप अहंकारयुक्त छल कर रहे हैं, यदि आप केवल यह कहकर स्वयं को संतुष्ट कर रहे हैं कि आप शांतिपूर्ण हैं, तो कहना दुखद है किआप गलत हैं। शांति स्वयं के अंदर आनंद प्राप्ति के लिये है। यह अपने भीतर महसूस करने के लिये है। इसलिए स्वयं को गलत सन्तुष्टि न दें, स्वयं को झूठी धारणाएं न दें। अपने आप को धोखा मत दो। शांति को अपने ही भीतर महसूस करना होगा, और यदि आप ऐसा महसूस नहीं कर रहे हैं, तो आपको आकर मुझसे यह नहीं पूछना चाहिए, “माँ, मुझे यह महसुस क्यों नहीं हो रही है।” क्योंकि मैं आपको यह नहीं बताने वाली हूं कि आपके साथ कुछ गलत है। आपको इसे कार्यंवित करना होगा कि आप अपने भीतर शांति महसूस करें। ऐसा नहीं है कि बाहर बहुत अधिक सन्नाटा हो तब आप शांति का अनुभव करते हैं। शांति अपने भीतर होनी चाहिए। यह तुम्हारे ही पास है। आपकी आत्मा पुर्णत: शांत है – अव्यग्र, बिना बेचैनी के। आपकी आत्मा में कोई बेचैनी नहीं है। बिल्कुल Read More …

A New Era – Sacrifice, Freedom, Ascent Bordi (भारत)

                                एक नया युग – त्याग, स्वतंत्रता, उत्थान  बोरडी (भारत), 6 फरवरी 1985। आप सभी को यहां देखकर मुझे अपार हर्ष हो रहा है। मुझे नहीं पता कि मेरी तरफ से क्या कहना है। शब्द खो जाते हैं, उनका कोई अर्थ नहीं है। आप में से बहुत से लोग उस अवस्था में जाने के इच्छुक हैं, जहाँ आपको पूर्ण आनंद, कल्याण और शांति मिलेगी। यही है जो मैं आपको दे सकती हूं। और एक माँ तभी खुश होती है जब वह अपने बच्चों को जो दे सकती है वह दे पाती है। उसकी नाखुशी, उसकी सारी बेचैनी, सब कुछ बस उस परिणाम को प्राप्त करने के लिए है – वह सब उपहार में देने के लिए जो उसके पास है। मैं नहीं जानती कि अपने ही अंदर स्थित उस खजाने को पाने हेतु इस सब से गुजरने के लिए आप लोगों को कितना धन्यवाद देना चाहिए। ‘सहज’ ही एकमात्र ऐसा शब्द है जिसके बारे में मैं सोच सकी थी, जब मैंने सहस्रार उद्घाटन को प्रकट करना शुरू किया। जिसे अब तक सभी ने आसानी से समझा है। लेकिन आपने महसूस किया है कि यह आज योग की एक अलग शैली है जहां पहले आत्मसाक्षात्कार दिया जाता है और फिर आपको खुद की देखभाल करने की अनुमति दी जाती है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। यह आपकी माँ का सिर्फ एक उपक्रम है जिसने ऐसा कार्यान्वयन किया है। अन्यथा, पुराने समय में दैवीय के का सम्बन्ध लोगों को बोध देने से तो था और यह ज्ञान नहीं था कि इसे कैसे Read More …

Devi Puja: On Leadership (Morning) Rahuri (भारत)

अंग्रेजी से अनुवाद… और यह वह स्थान है जहां मेरे पूर्वज राजाओं के रूप में राज्य करते थे, और उनका एक राजवंश भी था। अब, हम जिस दूसरी जगह पर गए, मुसलवाड़ी, वह जगह है जहां देवी ने सबसे पहले उन्हें एक बीम से मारा था, इसलिए इसे मुसलवाड़ी कहा जाता है। इसका अर्थ है एक बीम, ‘मुसल’ का अर्थ है ‘बीम’। तो यह वह स्थान है जहाँ देवी ने बहुत काम किया है। एक और जगह है जिसे अरडगांव कहा जाता है जहां वह दौड़ रहा था और चिल्ला रहा था, इसलिए इसे अरड़ कहा जाता है। ‘अरड़’ का अर्थ है ‘चिल्लाना’ (‘गाओ’ का अर्थ है गाँव)। तो पूरी जगह पहले से ही बहुत चैतन्य पुर्ण रही है क्योंकि नाथ, नौ नाथ – हमने वहां एक गणिफनाथ देखा – लेकिन वे सभी इस क्षेत्र में रहते थे और उन्होने बहुत मेहनत की थी। सबसे अंतिम, साईनाथ, शिरडी में, जैसा कि आप जानते हैं, यहाँ से बहुत निकट था। तो यह एक बहुत ही पवित्र स्थान और महान पूजा का स्थान है जहाँ कई बार देवी की पूजा की जाती थी। राहुरी ही, यदि आप चारों तरफ घुमें, तो आप पाते हैं कि वहां नौ देवता बैठे हैं। इन्हें भी धरती माता ने ही बनाया है। वे सुंदर चीजें हैं। उनके बारे में कोई नहीं जानता। आप जा सकते हैं और देख सकते हैं। उनमें से नौ हैं और ये देवी के नौ अवतारों या देवी की नौ शैलियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अब, इस खूबसूरत जगह में हम यहां Read More …

8th Day of Navaratri: What We Have To Do Within Ourselves, Talk After the Puja Complexe sportif René Leduc, Meudon (France)

1984-09-30 नवरात्रि पूजा वार्ता: हमे अपने भीतर क्या करना है,पेरिस, फ्रांस  आज नवरात्रि का आठवां दिन है, और यह सहज योगियों के लिए महान दिन है क्योंकि यह सबसे महत्वपूर्ण समय है। यानी हम सातवां चक्र पार कर चुके हैं, और हम आठवें चक्र पर हैं। हमें यह सोचने की आवश्यकता नहीं कि देवी ने आठवें दिन क्या किया, हमें आज यह सोचना होगा कि हमें अपने भीतर क्या करना है। सातवें दिन को पार करने के बाद, सातवें चक्र को पार करने के बाद-जो कि वास्तव में आप का  आध्यात्मिक उत्थान है, हमें आठवें पर क्या करना चाहिए? यह कितना सहज है कि आज अष्टमी का दिन है, क्योंकि इसी दिन देवी ने दुष्टों, शैतानों और राक्षसों का वध किया। उन्होंने यह अपने बल से स्वयं ही किया। अब यह शैतानी शक्तियां  मनुष्य में भी प्रकट हो रही हैं। वह फैल चुके हैं। यह शक्तियां हमारे भीतर हैं। इसलिए हम सभी को अपने भीतर उन ताकतों से लड़ना होगा। युद्ध अपने भीतर है, बाहर नहीं। पहले जब आप सातवें चक्र को पार करते हैं और आप आठवें पर होते हैं, तो आप याद रखें कि पहले आपको स्वयं के भीतर उन ताकतों से लड़ना होगा। आप सब बहुत बुद्धिमान लोग हैं, कभी-कभी कुछ अधिक ही बुद्धिमान। इसलिए मैं जो कुछ भी कहती हूं आप उसे उलट देते हैं, और इसे आप अपनी बुद्धि से उपयोग करने का प्रयत्न करते हैं। लेकिन इसमें आपकी भलाई नहीं है। यह आपके ‘हित’ के लिए नहीं, आपके भले के लिए नहीं है। आप Read More …

Guru Puja: The State of Guru Grand Hotel Leysin (Leysin American Schools), Leysin (Switzerland)

                          गुरु पूजा  लेसिन (स्विट्जरलैंड), 14 जुलाई 1984। मैं दुनिया के सभी सहज योगियों को नमन करती हूं। आप सब को बड़ी संख्या में यहां गुरु पूजा करने के लिए इकट्ठा होते देखना बहुत खुशी की बात है। व्यक्तिगत रूप से अपने गुरु की पूजा करना सर्वोच्च आशीर्वाद माना जाता है। लेकिन मेरे मामले में यह बहुत अलग संयोजन है कि मैं आपकी माता और आपका गुरु हूं। तो आप समझ सकते हैं कि कैसे श्री गणेश ने अपनी माता की आराधना की थी। आप सभी श्री गणेश जैसी ही छवि में बने हैं जिन्होंने अपनी माँ की पूजा की और फिर वे आदि गुरु, पहले गुरु बने। वह गुरुत्व का मौलिक सार है। मां ही बच्चे को गुरु बना सकती है। और किसी भी गुरु में केवल मातृत्व ही  – चाहे वह पुरुष हो या महिला – शिष्य को गुरु बना सकता है। तो पहले आपको पैगम्बर बनना होगा और उस मातृत्व को अपने अंदर विकसित करना होगा, फिर आप दूसरों को भी पैगम्बर बना सकते हैं। अब  बोध के बाद, गुरु बनने के लिए हमें क्या करना होगा? गुरु शब्द का अर्थ है गुरुत्वाकर्षण। गुरुत्वाकर्षण का अर्थ है एक व्यक्ति जो गंभीर है, जो गहरा है, जो चुंबकीय है। अब जैसा कि आपने सहज योग में सीखा है कि बोध पूर्ण अनायास में होता है। तो आमतौर पर एक गुरु अपने शिष्यों को प्रयासहीन बनाने की कोशिश करता है, जिसे प्रयत्न शैथिल्य  कहा जाता है – जिसका अर्थ है ‘अपने प्रयासों को आराम दें’। बिना कुछ किए आपको अपनी Read More …

Easter Puja: Forgiveness Temple of All Faiths, Hampstead (England)

                        ईस्टर पूजा टेम्पल ऑफ़ आल फैथ, लंदन (यूके)  २२ अप्रैल १९८४। आज हम ईसा-मसीह के पुनरुत्थान का जश्न मना रहे हैं और इसके साथ हमें मनुष्यों के पुनरुत्थान का भी जश्न मनाना है, सहज योगियों का, जिन्हें आत्मसाक्षात्कारीयों के रूप में पुनर्जीवित किया गया है। इसके साथ हमें यह समझना होगा कि हम एक नई जागरूकता में प्रवेश कर रहे हैं। क्राइस्ट को किसी नई जागरूकता में प्रवेश करने की कोई आवश्यकता नहीं थी, उन्हें इस दुनिया को यह दिखाने के लिए बार-बार नीचे आना पड़ा कि आप शाश्वत जीवन हैं, कि आप एक ऐसा जीवन जियें जो आध्यात्मिक हो, जो कभी नष्ट नहीं होता है। आपको उस नए क्षेत्र में उत्थान करना होगा जो सर्वशक्तिमान ईश्वर का क्षेत्र है, जिसे आप ‘ईश्वर का राज्य’ कहते हैं। और उसने नीकोदमस से बहुत स्पष्ट रूप से कहा, “तुम्हें फिर से जन्म लेना होगा,” और जब उसने पूछा, “क्या फिर से जन्म लेने के लिए मुझे अपनी माँ के गर्भ में वापस प्रवेश करना होगा?” और उन्होने इसे बहुत स्पष्ट रूप से कहा! यह बहुत स्पष्ट है। जो देखना नहीं चाहते वे अंधे रह सकते हैं! लेकिन उन्होने यह बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि, “नहीं,” अर्थात्, “जो कुछ मांस से पैदा हुआ है वह मांस ही है, लेकिन जो कुछ आत्मा से पैदा हुआ है वह आत्मा है।” मेरा मतलब है कि इससे ज्यादा स्पष्ट और कुछ नहीं हो सकता है, कि इसे आत्मा से पैदा होना है। बेशक, इंसानों में हर चीज को घुमा देने की एक विशेष क्षमता होती Read More …

Birthday Puja, Be Sweet, Loving and Peaceful मुंबई (भारत)

Puja for the 61° Birthday (Be sweet, loving and peaceful), Juhu, Bombay (India), 22 March 1984. [English to Hindi Translation] HINDI TRANSLATION (English Talk) अभी-अभी मैंने इन्हें (भारतीय सहजयोगियों) को बताया कि वे अहंचालित पाश्चात्य समाज की शैली की नकल करने का प्रयत्न न करें। क्योंकि उसमें ये लोग कठोर शब्द उपयोग करते हैं और ऐसा करके हम सोचते हैं कि हम आधुनिक बन गये हैं। वो ऐसे कठोर शब्द उपयोग करते हैं, ‘मैं क्या परवाह करता हूँ।’ ऐसे सभी वाक्य जो हमने कभी उपयोग नहीं किए, ऐसे वाक्यों से हम परिचित नहीं है। किसी से भी ऐसे वाक्य कहना अभद्रता है। किस | प्रकार आप कह सकते है, ‘मैं तुमसे घृणा करता हूँ।’ परन्तु अब मैंने लोगों को इस प्रकार बात करते देखा है कि ‘हममें क्या दोष है?’ आप ऐसा कहने वाले कौन होते हैं? हम इस प्रकार बात नहीं करते। ये हमारा बात करने का तरीका नहीं है। बात करने का ये तरीका नहीं है। किसी भी अच्छे परिवार का व्यक्ति इस प्रकार बात नहीं कर सकता क्योंकि इस प्रकार की बातों से उसका परिवार प्रतिबिम्बित होता है। परन्तु यहाँ पाश्चात्य देशों की अपेक्षा भाषा की नकल अधिक होती हैं। जिस प्रकार लोग बसों में, टैक्सियों में, रास्ते पर बातचीत करते हैं उस पर मुझे हैरानी होती है। ये मेरी समझ में नहीं आता। अत: मैंने उनसे कहा कि भाषा प्रेममय तथा हमारी पारम्परिक शैली की होनी चाहिए। इस प्रकार तो हम अपने बच्चों को भी नहीं डाँटते। अपने बच्चों को भी यदि हमें डाँटना हो तो Read More …

Talk on Holi day New Delhi (भारत)

Talk on Holi Day Date 17th March 1984 : Place New Delhi : Puja Type English & Hindi Speech Language contents Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Nirmala Yog] आप लोग रूपया तक देने भई सुबह चार बजे उठो, अगर कानफन्स है तो। से घबराते है । यह गलत वात जो जरूरी चोज है वह है ध्यान करना। जो बड़ा है। यह सुनकर तो मुझे बड़ा goal (उद्देश्य) है उसे देखना चाहिये। जो चीज आ्चय हुआ कि बम्बई के लोग है, बह है ज्यान करना। Conference (सभा) ह जो औ जरूरी चीज है, वो है ध्यान करना जो बड़ा यह goal सब में ककषमकश लगी रहेगी कि है उसे देखना चाहिए। दफ्तर थोड़ा सा आपने नहीं किया तो भी कुछ नहीं जायेगा, क्योंकि lower मंगिना पडता है। रूपया तो क भी बम्बई में goal (निम्न उदश्य) है । ऐसे हजारों दफ्तर वाले कम नहीं होता। आपको माजूम है कि वम्बई मैंने देख लिये जो कि फाइलों पर फाइल लाद के में लोग हज़ारों रुपया खर्च करते हैं और अपने मर गये लेकिन कोई पूछता भो नहीं कि कहां गये और यहाँ उन्होंने बना रखा है कि इतना रूपया हम कहाँ खत्म हो गए हजारों को में जानती है क्योंकि भगवान के माम पर रखेंगे। यह वड़ी शमें की बात मैंने जिन्दगी भर इन्हीं लोगों के साथ जिन्दगी काटी है कि इन लोगों को आपसे रूपया माँगना पड़ता है । तो दपतर की जो महत्ता है वो मैं अंब जानती हैं और इस तरह की चीजें नहीं होतो चाहिए Read More …

Public Program, Hridhay Aur Vishuddhi Chakra New Delhi (भारत)

Hridaya Aur Vishuddhi Chakra Date 16th March 1984 : Place Delhi : Public Program Type : Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Nirmala Yog] शान्त-चित्त, धार्मिक और बहुत सरल, शुद्ध और सादे परादमी हैं। वो मेरे पर पर गिरके रोने लगे । कहने लगे, “माँ, ये सब मैंने किया। लेकिन मैं बड़ा सत्य को खोजने वाले सारे भाविक, सात्विक साधकों को मेरा अशान्त हो गया है। मैंने कहा, क्यों, क्या बात है ? श्रपने तो बहुत कुछ पा लिया। यहाँ सबकी सुभत्ता अ्र गयी कहने लगे, मैंने एक बात नहीं जानी प्रणाम । कल आपको मैंने आ्रपने अन्दर बसा हुआ जो नाभि चक्र है उसके वारे में बताया या कि ये नाभि चक् हमारे अन्दर जिससे हम अपने क्षेम थी कि इस सभत्ता से दुनिया इतनी खराव ही जायेगी। हमारे यहाँ लोग जो हैं इतने आदततयी को गये हैं । यहाँ शराब इस कदर ज्यादा चलने लग गयी है। यहां पर बच्चे बिलकुल वाहियात हो गये सर्वसे बड़ी शक्ति देता है को पाते हैं। जैमे कि कृष्ण ने कही था ” योग क्षेम वहाम्यहम । पहले योग होना चाहिए, फिर अ्षम होगा । योग के बगैर क्षम नहीं ही सकता औोर है। यहां पर कोई किसी की सुनता नहीं । औरतें ी पपने को पेसे में ही तोलने लग गई हैं। ये सब देखक र के मुझे लगता है कि ये मैने क्या कर क्योंकि हमने इस देश में पहले योग को खयोजा नहीं इसलिए हमारा देश क्षेम को प्राप्त नहीं। क्षेम के बारे में मैंने Read More …

Dinner Party New Delhi (भारत)

1984-0315 का Nabhi चक्र [हिंदी] नई दिल्ली (भारत) नाभि चक्र की तारीख 15 मार्च 1984: स्थान दिल्ली: सार्वजनिक कार्यक्रम प्रकार: भाषण भाषा हिंदी [मूल प्रतिलिपि हिंदी बातचीत, हिंदी निर्मल योग से स्कैन किया गया] परमात्मा को खोजने वाले सभी सत्य साधकों को हमारा प्रणाम! आज दो तरह के गाने आपने सुने हैं, पहले गाने में एक भक्त विरह में परमात्मा को बुलाता है। इसे अपराभक्ति कहते है और जब परमात्मा को पा लेता है, जैसे कबीर ने पाया था, तो उसे पराभक्ति कहते हैं। दोनों में ही भक्ति है। इसे कृष्ण ने अनन्य भक्ति कहा है- जहाँ दूसरा कोई नहीं होता, जहाँ साक्षात् परमेश्वर अपने सामने होते हैं, उस वक्त जो हम लोगों का भक्ति का स्वरूप होता है उसे उन्होंने पराभक्ति कहा-अनन्यभक्ति।  किन्तु जब हम परमात्मा को याद करते हैं. उनको स्मरण करते हैं, तब उसकी आदत-सी हो जाती है। जब इन्सान को इस चीज की आदत-सी हो जाती है, तो उस आदत से छूटने में उसे बड़ा समय लगता है।  वह यह मानने को तैयार ही नहीं होता कि उसकी यह जो साधना है, यह खत्म होने की बेला आई है । और इसी वजह से भक्तों ने भी दृष्टाओं को, सन्तों को, मुनियों को पहचाना नहीं। आप जानते हैं इतिहास में हमेशा सन्तों को इतनी परेशानियाँ उठानी पड़ीं। यह नहीं कि सबने उनको सताया, लेकिन जिन्होंने सताया उनको किसी ने रोका नहीं और समझाया नहीं कि ये सन्त है, ये साधु है। अब हमारे समाज में, खासकर के शंहरों में, विविध विचारों के लोग रहते हैं । Read More …

Shri Mahalakshmi Puja: The innermost stream of Brahmanadi Kolhapur (भारत)

“ब्रह्मनाड़ी की अंतरतम धारा” श्री महालक्ष्मी पूजा  कोल्हापुर (भारत), ३ फरवरी १९८४। तो हम सब अब यहाँ इस पवित्र स्थान कोल्हापुर में हैं। देवी ने यहां कोल्हासुर नामक असुर का वध किया, जो एक बहुत ही दुष्ट राक्षस था; जो हाल ही में फिर से पैदा हुआ था, लेकिन उसकी मृत्यु भी हो गई। तो भगवान का शुक्र है कि कोल्हासुर की मृत्यु हो गई! इस स्थान को विशेष रूप से इसलिए चिन्हित किया गया है क्योंकि धरती माता से महालक्ष्मी ऊर्जा विशेष रूप से देवी महालक्ष्मी से उत्सर्जित हुई थी। और, जैसा कि आप जानते हैं, महालक्ष्मी हमारे भीतर उत्थान की शक्ति है, जिसके माध्यम से हम उन्नत होते हैं। यह उस सीढ़ी की तरह है जो आपको परमात्मा के राज्य में ले जाती है, और इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। और महाराष्ट्र के देवता विट्ठल, श्री कृष्ण हैं। क्योंकि यह विष्णु की आरोही शक्ति है, श्री कृष्ण तक, फिर महाविष्णु और फिर सहस्रार को। यह सब इसलिए संभव है क्योंकि हमारे भीतर महालक्ष्मी नाड़ी है। अगर आप में सुषुम्ना नाड़ी न होती तो हम जानवर ही होते। जानवरों के पास भी यह नाड़ी एक हद तक होती है। जैसा कि आप जानते हैं कि वे भवसागर तक आ सकते हैं। लेकिन भवसागर के बाद मनुष्य के रूप में विकास हमारे भीतर इस महालक्ष्मी ऊर्जा के माध्यम से शुरू होता है। तो यह ऊर्जा बहुत महत्वपूर्ण है और इस देश में इसकी बहुत पूजा की जाती है। सबसे पहले यह ऊर्जा हमारे भीतर खोज के रूप में काम करना Read More …

Talk to Sahaja Yogis, Money, Sleep, Bhoots, Lethargy Surbiton Ashram, Surbiton (England)

                                             पैसा-भूत-नींद-आलस्य आश्रम में बात, दीवाली पर माँ के साथ अलाव रात सर्बिटन (यूके), 5 नवंबर 1983। मैंने पुरे अमेरिका की एक अति व्यस्त, कठिन यात्रा की है और यह मेरी अपेक्षा से बहुत अधिक था, इसने बहुत अच्छा काम किया और मैं इसके बारे में बहुत खुश हूं। सभी अमेरिकी इंग्लैंड और अन्य देशों के सहज योगियों के बहुत आभारी हैं जिन्होंने इस दौरे में योगदान दिया है और विशेष रूप से उन लोगों के लिए जिन्होंने यात्रा की और चक्कर लगाया और उन्हें व्यवस्थित किया। इसलिए मैं आपको बताती हूं कि वे बहुत आभारी हैं, लेकिन आप लोगों के लिए यह संभव नहीं होगा। यह एक बहुत ही कठिन यात्रा थी, निस्संदेह, और ज़ोरदार दौरा और यूरोप के दौरे के बाद यह सब कुछ बहुत अधिक ही था। लेकिन जिस तरह से लोग यहां से गए और उन्हें लिया और आपने पैसे भेजे, उन पर बहुत कम दबाव था और वे इसे बहुत अच्छी तरह से प्रबंधित कर सके और जैसा कि आप जानते हैं कि हमने सहज योग के बीज बोने के संबंध में बहुत अच्छा किया है। . तो मुझे लगता है कि सहज योग का बीज अब बोया जा चुका है और यह एक बड़ी उड़ान ले सकता है, मुझे यकीन है क्योंकि अमेरिकियों को पता है कि वे बहुत, जड़ों से उखड़े हुए प्रकार के लोग हैं और काफी उथले लोग हैं और कोई यह भी कह सकता है कि वे उनके गुरु हर तीसरे दिन और उनकी कारें हर चौथे दिन और उनकी पत्नियां Read More …

Guru Puja: this finger has to be strong (United States)

गुरु पूजा, ह्यूस्टन, यू.एस.ए, २० सितंबर १९८३  तो, आज हम सबसे पहले गणेश पूजा करेंगे, क्योंकि गणेश अबोधिता हैं और हमें उन्हें किसी भी ऐसे स्थान पर स्थापित करना चाहिये, जहाँ हम कोई कार्य आरंभ करना चाहते हैं या इसके विषय में कुछ करना चाहते हैं । क्योंकि वे अबोधिता हैं और अन्य कुछ और सृजित होने से पूर्व अबोधिता का सृजन हुआ था। मुझे कहना चाहिए कि यह सबसे प्रबल शक्ति है: अबोधिता।  और तब हम गुरु पूजा करेंगे, जो वास्तव में आदि गुरु हैं, ‘प्राइमोर्डीयल मास्टर’ (आदिकालीन गुरु), जिन्होंने इस पृथ्वी पर अनेकों बार अवतरण लिया । और जैसा कि आप जानते हैं, दत्तात्रेय के रूप में उनका जन्म हुआ, फिर जनक, नानक व अन्य अनेक रूपों में उनका जन्म हुआ। वह सिद्धांत हमारे अंदर है और यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि हमें गुरु नानक या जनक या इनमें से किसी भी आदि गुरु के सिद्धांत को अपने अंदर विकसित करना चाहिए। क्योंकि यदि आत्मा गुरु है तो हमें स्वयं का गुरु बनना होगा। और गुरुओं की शक्ति यह है कि वे अबोधिता के मूलतत्व हैं – सृजनकर्ता की, पालनकर्ता की, तथा संहारक की । वे इन सभी की अबोधिता हैं। उनमें से, इस महान व्यक्तित्व – इन तीन व्यक्तित्वों की अबोधिता से – इस महान अवतरण का निर्माण हुआ। और उनकी अबोधिता, वस्तुओं के प्रति उनकी निर्लिप्तता से प्रकट होती है। वे सब जगह अन्य मनुष्यों के समान रहते हैं: विवाहित, परिवारों में रहने वाले, किंतु पूर्णतः निर्लिप्त। जब तक आप में यह सिद्धांत जागृत नहीं होता, Read More …

Shri Krishna Puja Los Angeles (United States)

श्री कृष्णा पूजा, लॉस एंजल्स (संयुक्त राज्य अमरीका ) १८ सितम्बर , १९८३  पहली बार जब मैं संयुक्त राज्य अमरीका में आई, तो सबसे पहले लॉस एंजिल्स आई थी । क्योंकि, ये देवदूतों का स्थान है। वास्तव में, मैंने सोचा था कि बिलकुल  ये बहुत पवित्र स्थान होगा आने के लिए, सर्वप्रथम, इस महान संयुक्त राज्य अमरीका की भूमि में।  अब जैसा कि आप जानते हैं कि संयुक्त राज्य अमरीका या सम्पूर्ण अमरीका विशुद्धि चक्र है। जिसमें से  इस विशुद्धि चक्र के, तीन पक्ष हैं। तो विशुद्ध चक्र का मध्य भाग संयुक्त राज्य है। विशुद्धि चक्र का मध्य भाग श्री कृष्ण द्वारा शासित है। और उनकी शक्ति राधा है। “रा – धा”। “रा”का अर्थ है शक्ति, “धा” वह जिसने शक्ति को धारण किया है। “रा – धा”। ” धा – रे – ती – सा”। तो वही हैं जिन्होंने शक्ति को धारण किया है, और इसलिए, उन्हें राधा कहा जाता है। वो श्री कृष्ण की शक्ति हैं। कृष्ण शब्द आया है कृषि शब्द से – अर्थात – हल चलाना। या आप कह सकते हैं, खेती को “कृषि” कहते है। जो हल चलाता है और बीज को मिट्टी में रोपित करता है, वह कृषि करता है। और इसी लिए उन्हें कृष्ण कहा जाता है। अब उन्होंने जो बीज बोया है , वो आध्यात्मिकता का बीज है  वो श्री कृष्ण हैं जिन्होंने संस्कृत में कहा था- “नैनं छिदंति शस्त्राणी, नैनं दहति पावकः, न चैनम् क्लेदयन्तियापो न शोशयति मारुतः। अर्थात – ऐसा नहीं हो सकता, अर्थात, आध्यात्मिक जीवन, या आप कह सकते है, Read More …

Shri Ekadasha Rudra Puja: We have to drop out many things Judy Gaddy’s Apartment, New York City (United States)

                                             एकादश रुद्र पूजा  न्यूयॉर्क सिटी (यूएसए)  17 सितंबर 1983 तो, भारतीय कैलेंडर के अनुसार आज का दिन, ‘परिवर्तनी एकादशी’ है। अब, आज चंद्रमा का ग्यारहवां दिन है। ग्यारहवां दिन ‘एकादशी’ है। साथ ही, सहज योग में, आप एकादश रुद्र के बारे में जानते हैं, जो यहां (माथा का उपरी भाग ) है; जो अंततः उन सभी चीजों को नष्ट कर देगा जिनकी अब आवश्यकता नहीं है। जो यहाँ स्थित एकादश है, यह ग्यारहवां है। लेकिन आज एक विशेष दिन है जहां हम एकादश की शक्ति का उपयोग  ‘परिवर्तन’ अर्थात ‘बदलाव करने के लिए करने जा रहे हैं। यह विनाश के लिए नहीं बल्कि परिवर्तन के लिए है। यह न्यूयॉर्क में होने वाला इस प्रकार का एक दिन है, जहां हम मानवों के परिवर्तन के लिए विनाशकारी शक्तियों का उपयोग करते हैं। तो आज बहुत ही महान दिन है कि हम लोगों को एकादश की शक्तियों कि अभिव्यक्ति द्वारा परिवर्तित करने जा रहे हैं। और वे ग्यारह यहां आपके कपाल पर स्थापित किये गए हैं, और आप जानते हैं कि वे कैसे काम करते हैं। तो, ये दस भवसागर की विनाशकारी शक्तियों से बाहर आते हैं। भवसागर  को दस विनाशकारी शक्तियां भी प्राप्त हैं। उन दस में से, विनाशकारी भाग यहां स्थापित होता है ( माथे के उपरी भाग की ओर इशारा करते हुए)। इसलिए जब कोई व्यक्ति अपने विनाश कि तरफ होता है, उदाहरण के लिए कहें कि एक कैंसर अंदर प्रवेश करता है, तो आप अपने भवसागर के शीर्ष पर यहां एक धड़कन महसूस कर सकते हैं, धड़कन। और Read More …

Joy has no duality Société d’Encouragement pour l’Industrie Nationale, Paris (France)

सार्वजनिक कार्यक्रम, पेरिस (फ्रांस), 16 जून 1983।॥आनंद में कोई पाखंड नही होता ॥ मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। मनुष्य सत्य की खोज प्राचीन काल से करता रहा है। उन्होंने सत्य की खोज विभिन्न प्रकार की खुशीयो में करने की कोशिश की और कई बार उन्होंने इसका त्याग किया क्योंकि उन्होंने पाया कि खुशी स्थायी नहीं है। थोड़े समय के लिए उसे किसी चीज से खुशी प्राप्त हुई और फिर उसने पाया कि इससे उसे बड़ा दुख भी हुआ। जैसे,एकऔरत जिसकी कोई संतान नहीं थी इसलिए वह रोती-बिलखती रहती थी; और उसको एक बच्चा हुआ था जिसने बाद में उसे ही अस्वीकार कर दिया। फिर, मनुष्य सुख की तलाश, सत्ता में, अन्य पुरुषों पर अधिकार में, अन्य देशों पर शक्ति में खुशी पा कर करने लगे, फिर भी बहुत अधिक संतुष्ट नहीं थे। उनके बच्चे पूर्वजों ने जो किया उसके लिए खुद को दोषी महसूस करने लगे। फिर गतिविधी कुछ और सूक्ष्म की तलाश में शुरू की – जो की कला और संगीत में थी। उसकी भी सीमाएँ थीं। यह लोगों को वह स्थायी आनंद नहीं दे सकी। यह वादा किया जाता है कि एक दिन आप सभी को यह स्थायी आनंद प्राप्त करना होगा। और फिर उन्होंने ऐसे सभी लोगों को चुनौती देना शुरू कर दिया, जिन्होंने उपदेश किया था और जो वादा करते रहे हैं कि ऐसा दिन आएगा। कई लोग इस नतीजे पर पहुंचे कि आनंद जैसा कुछ नहीं है, जीवन हर समय लहरों के दो चेहरों हैं। एक सिक्के के दो पहलू की Read More …