Public Program Gandhi Bhawan, New Delhi (भारत)

क्योंकि बहुत लोगों ने इस पर लिखा है (अस्पष्ट) और बहुत से लोग सोचते रहे हैं कि इस मामले में कुछ करना चाहिए कि सत्य को खोजने का है। (अस्पष्ट) अब जब मानव (अस्पष्ट) तो उसकी ऐसी स्तिथि होती है कि वो सिर्फ इस चीज़ को मानता है (अस्पष्ट) और उसके पास कोई माध्यम नहीं है। जैसे कि साइंस की उपलब्धि जो हुई है, यह हमने सिर्फ बुद्धि के ही माध्यम से देखा है। लेकिन बुद्धि जो है, वो दृश्य जो संसार में है, उसी के बारे में बातें करता है। जो अदृश्य है उसे नहीं बता सकता। और सत्य और अदृश्य में क्या अंतर है यही नहीं बता सकता। तब पहले यह सोचना चाहिए, कि जब सत्य की खोज की इंसान बात करता है, तो सर्वप्रथम उसको यही विचार करना होगा कि जो कुछ हमने बुद्धि से जाना, कुछ भी नहीं जाना, तो भी हम भ्रम में बने रहे। बुद्धि से जानी हुई बात, जितनी भी हमने आज तक जानी है, उससे इतना ज़रूर हुआ, जो दृश्य में है उससे हमने ज्ञात (अस्पष्ट) लेकिन जो कुछ अदृश्य में है वो भी नहीं जाना और ये भी नहीं जान पाए कि वो आखिर जो हमने दृश्य में जानना है यह परम सत्य है या नहीं। अब साइंस की उपलब्धि जब हमारी है, तो साइंस के हम अपने सिर हुए, साइंस में हमने बहुत सारी बातें जानी। अणु परमाणु तक हम पहुँच चुके। गतिविधियों को जो समझा है, वो भी सब जो कुछ भी जड़ है, उसके बारे में। ….. हरएक Read More …

The Vishuddhi Chakra New Delhi (भारत)

19830202 TALK ABOUT Vishuddhi, DELHI [Hindi transcript Q&A] सवाल – माताजी, क्या पितरों के श्राद्ध करने चाहिये ? उनके चित्र रखने चाहिये ?   श्रीमाताजी – इन्होंने सवाल किया है क्या पितरों के श्राद्ध करने चाहिये? पितरों के फोटोग्राफ्स रखने चाहिये ? जब उनकी तेरहवी होती है तब तो करने ही चाहिये उनके श्राद्ध। और श्राद्ध भी डिस्क्रिशन्स की बात आ ‘गयी फिर से। अगर समझ लीजिये कि आपके सहजयोग में आपने देखा कि आपका राइट हार्ट पकड़ रहा है। याने आपके पिता जो है, जो मर गये हैं, वो अभी भी संतुष्ट नहीं तो श्राद्ध करना चाहिये। इसमें कोई हर्ज नहीं। पर सहजयोग स्टाइल से श्राद्ध करना चाहिये। न कि एक ब्राह्मण को बुलाओ और उसको खाने को दो।   एक बार लखनो में हमें पता हुआ कि हमारे जो पूर्वज थे उनका श्राद्ध नहीं हो पाया। तो हमने कहा हम श्राद्ध करेंगे। तो उन्होंने कहा कि, ‘तुम्हारा श्राद्ध का क्या विधि है ?’ हमने कहा, ‘हमारा तो ये है कि हम खाना बनाते हैं और सब को खिलायेंगे खाना। बस यही हमारा श्राद्ध है।’ तो हमारी सिस्टर इन लॉ बेचारी ट्रेंडिशनल थी। उन्होंने ‘कहा कि, ‘यहाँ श्राद्ध ऐसा होता है कि पाँच ब्राह्मण बुलाओ।’ मैंने कहा, ‘पाँच क्‍या, यहाँ तो एक भी ब्राह्मण दिखायी नहीं दे रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘नहीं, अपने पाँच ब्राह्मण हैं। वो आएंगे और उनका श्राद्ध करेंगे।’ मैंने कहा, “चलो, बुलाईये।’ फिर पाँच ब्राह्मण आयें। वो तो बिल्कुल पार नहीं थे न ब्राह्मण थे। पाँच आदमी आ के बैठ गये। मैंने सोचा, देखिये तो सही क्‍या Read More …

Mooladhar, Swadishthan-Sakar Nirakar ka bhed New Delhi (भारत)

मूलाधार, स्वाधिष्ठान – साकार निराकार का भेद ३०.०१.१९८३ दिल्ली परमात्मा के बारे में अगर कोई भी बात करता है इस आज कल की दुनिया में तो लोग सोचते हैं कि एक मनोरंजन का साधन है। इससे सिर्फ मनोरंजन हो सकता है । परमात्मा के नाम की कोई चीज़ तो हो ही नहीं सकती है सिर्फ मनोरंजन मात्र के लिए ठीक है। अब बूढ़े हो गये हमारे दादा-दादी तो ठीक है, मंदिर में जाकर के बैठते हैं और अपना समय बिताने का एक अच्छा तरीका है, घर में बैठ कर बहु को सताने से अच्छा है कि मंदिरो में बैठे। इससे ज़्यादा मंदिर का कोई अर्थ अपने यहाँ आजकल के जमाने में नहीं लगाये। ये जो मंदिर में भगवान बैठे हैं इनका भी उपयोग यही लोग समझते हैं कि इनको जा कर अपना दुखड़ा बतायें, ये तकलीफ है, वो तकलीफ है और वो सब ठीक हो जाना चाहिए। लेकिन ये मंदिर क्या हैं? इसके अन्दर बैठे भगवान क्या हैं? उनका हमारा क्या संबंध है और उनसे कैसे जोड़ना चाहिए संबंध? आदि चीज़ों के बारे में अभी भी बहुत काफी गुप्त हैं। अब ये बातें अनादि काल से होती आयीं हैं। आपको मालूम है कि इंद्र तक को आत्मसाक्षात्कार देना पड़ा, जो अनादि है । करते -करते ये बातें जब छठी सदी में, सबसे बड़े हिंदू धर्म के प्रवर्तक, आदि शंकराचार्य संसार में आयें तब उन्होंने खुली तौर से बातचीत शुरू कर दी। नहीं तो अपने यहाँ एक भक्तिमार्ग था और एक वेदों का तरीका था, जैसे कि गायत्री मंत्र आदि। जब Read More …

Tattwa Ki Baat New Delhi (भारत)

1981-02-15 Talk at Delhi University 1981: Tattwa Ki Baat 1, Delhi Tattwa Ki Baat – 1 Date 15th February 1981 : Place Delhi Public Program Type Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 – 18 Hindi English Marathi || Translation English Hindi 19 – 30 Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindii Chaitanya Lahiri कल मैंने आपसे कहा था कि………….. है? अगर धरती माता की वजह से ही सारा कार्य आज आपको तत्व की बात बतायेंगे जब हो रहा है तो घरती माता की वजह से यह जो हम एक पेड़ की ओर देखें और उसका उन्नतिगत पत्थर है वो क्यों नहीं पनपता ? इसका मतलब यह होना, उसका बढ़ना देखें, तो यह समझ में आता है कि अनेक तत्वों में एक तत्व है, लेकिन तत्व है कि उसके अन्दर कोई न कोई ऐसी शक्ति अनेक हैं । प्रवाहित है या प्रभावित है जिसके कारण वो पेड़ बढ़ रहा है और अपनी पूरी स्थिति को पहुँच रहा समाये हैं और यह जो अनेक तत्व हैं यह हमारे है। यह शक्ति उसके अन्दर है नहीं तो यह कार्य अन्दर भी स्थित हैं, अलग अलग चक्रों पर इनका नहीं हो सकता। लेकिन यह शक्ति उसने कहां से वास है, लेकिन एक ही शरीर में समाये हैं और पाई ? इसका तत्व मर्म क्या है ? जो चीज बाह्य एक ही ओर इनका कार्य चल रहा है, और एक ही में दिखाई देती है, जैसे कि पेड़ दिखाई देता है इनका लक्ष्य है और एक ही चीज़ को इनको पाना उसके Read More …

Public Program, Swadishthana Chakra New Delhi (भारत)

Public Program, New Delhi (India), 6 February 1981. [Hindi Transcript] आपने विनती की है कि हिंदी मे भाषण कीजिएगा बात ये है कि ये तय किया गया था कि इस जगह मे अंग्रेजी मे बातचीत करुँगी अ.. उसकी वजह ये है कि अभी तक हिन्दुस्तान मे अंग्रेजी मे मैंने कहीं भी बातचीत नहीं की और ये जो अतिथि लोग आयें है आज तक मेरा भाषण सुन नहीं पाए इसलिए इनसे कहा था कि यहाँ पर मे मे अंग्रेजी मे बातचीत करुँगी और जब मंदिरों मे आदि या मेरे ख्याल से दिल.. दिल्ली के विद्यापीठ मे भी जो भाषण होने वाले है वो हिंदी भाषा में ही होंगे इसलिए कृपया आप दूसरे भाषणों मे भी आएंगे तो मैं हिंदी मे बातचीत करुँगी आशा हैं आप लोग बुरा नहीं मानेंगे क्योंकि आतिथी है थोड़ा सा इनका भी कभी ख्याल करना चाहिए हालाँकि आप लोग सब थोडा-बहुत तो अंग्रेजी समझते है और मैं कोई ऐसी कठिन अंग्रेजी बोलती नहीं हूँ अगर आपको कोई उसमे प्रश्न हो तो मैं आपको बता दूंगी सिर्फ ये पांच ही लेक्चरस जो है ये मे अंग्रेजी मे देने वाली हूँ इसके लिए क्षमा कीजिएगा ……कल मैंने आपसे उन सूक्ष्म केंद्रों के बारे में बात की , जो हमारे अस्तित्व के भीतर मौजूद हैं। इसका ज्ञान हजारों वर्षों पहले यहाँ के कई भारतीयों को ज्ञात था, लेकिन उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया, दो प्रकार के लोग थे जो प्रकृति की उच्च शक्तियों के बारे में जानते थे। उनमें से एक ऐसे लोग थे जिन्होंने सोचा था कि हम स्वयं Read More …

9th Day of Navaratri Celebrations, Eve of Navaratr, Puja & Havan मुंबई (भारत)

Sahajayog Ki Ek Hi Yukti Hai (Navaratri) Date : 30th September 1979 Place Mumbai Туре Seminar & Meeting Speech [Original transcript, Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahiri] आपके अन्दर में परमात्मा की शक्ति ज्यादा बड़ा भारी कार्य एक जमाने में हो गया है जबकि बढ़ती जाएगी। यानि आपका caliber जो है वो wider होते जाएगा और आपके अन्दर ज्यादा शक्ति के अनुचर सताया करते थे। आज भी संसार में बढ़ती जाएगी। अब जब ये ज्यादा शक्ति आपसे बढ़ शैतानों की कमी नहीं है, दुष्टों की कमी नहीं है, रही है तब इस शक्ति को भी उपयोग में लाना चाहिए। अगर शक्ति बढ़ती गई और आपने उसको उपयोग में नहीं लाया तो हो सकता है कि थोड़े दिन बाद ये caliber फिर छोटा हो जाए। अब आपको घर और इसीलिए इनमें से निकलने के लिए भी मनुष्य जाके बैठना है और सोचना है, मनन करना है कि हम किस तरह से सहजयोग को बढा सकते हैं। कितने ही लोगों का Realisation हुआ है और बहुत किस-किस जगह हमारा स्थान है, कौन लोग हमें से लोगों ने इस आत्मज्ञान को पाते वक्त अपने मानते हैं, उनकी लिस्ट बनाइये। कौन-से ऐसे areas हैं जहाँ हम जाकर के इसको प्रस्थापित कर सकते हैं। उसके लिए जो भी आपको जरूरतें हैं, हमारे अलग सेंटर हो गए हैं, आज मैंने कोलाबा में भी एक सेंटर खोल दिया है कफकैसल में। और इस तरह से हर जगह एक-एक सेंटर अब आपके लिए ऐसे मैं भी नहीं सोचती थी और इतने थोड़े समय में हो गया है Read More …

6th Day of Navaratri Celebrations, Shri Kundalini, Shakti and Shri Jesus Hinduja Auditorium, मुंबई (भारत)

Kundalini Aur Yeshu Khrist Date : 27th September 1979 Place Mumbai Туре Seminar & Meeting Speech Language Hindi श्री कुण्डलिनी शक्ति और श्री येशु खिस्त’ ये विषय बहुत ही मनोरंजक तथा आकर्षक है । सर्वमान्य लोगों के लिए ये एक पूर्ण नवीन विषय है, क्योंकि आज से पहले किसी ने श्री येशु ख़्रिस्त और कुण्डलिनी शक्ति को परस्पर जोड़ने का प्रयास नहीं किया। विराट के धर्मरूपी वृक्ष पर अनेक देशों और अनेक भाषाओं में अनेक प्रकार के साधु | संत रूपी पुष्प खिले । उन पुष्पों (विभूतियों) का परस्पर सम्बन्ध था । यह केवल उसी विराट-वृक्ष को मालूम है। जहाँ जहाँ ये पुष्प (साधु संत) गए वहाँ वहाँ उन्होंने धर्म की मधुर सुगंध को फैलाया। परन्तु इनके निकट (सम्पर्क) | वाले लोग सुगन्ध की महत्ता नहीं समझ सके। फिर किसी सन्त का सम्बन्ध आदिशक्ति से हो सकता है यह बात सर्वसाधारण की समझ से परे है । मैं जिस स्थिति पर से आपको ये कह रही हूँ उस स्थिति को अगर आप प्राप्त कर सकें तभी आप ऊपर कही गयी बात समझ सकते हैं या उसकी अनुभूति पा सकते हैं क्योंकि मैं जो आपसे कह रही हूँ वह सत्य है कि नहीं इसे जानने का तन्त्र इस समय आपके पास नहीं है; या सत्य क्या है जानने की सिद्धता आपके पास इस समय नहीं है। जब तक आपको अपने स्वयं का अर्थ नहीं मालूम तब तक आपका शारीरिक संयन्त्र ऊपर कही गई बात को समझने के लिए असमर्थ है। परन्तु जिस समय आपका संयन्त्र सत्य के साथ जुड़ जाता है Read More …

Advice at Bordi Shibir (English part) Bordi (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date : 22nd March 1979 Place : Mumbai Туре Public Program [ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] आप एक बहुत सुन्दर प्रकृति की रचना हैं। बहुत मेहनत से, तो आखें हैं नहीं हम इसे कैसे जानेंगे और हमारे लिए भी यह नजाकत के साथ, बनाया है। आप एक बहुत विशेष अनन्त योनियों में से घटित होकर इस मानव रुप में स्थित हैं। आप इसलिए इसकी महानता जाएगी। इस प्रकार आपके अन्दर भी कोई चीज ऐसी ही बनी नहीं जान पाते क्योंकि, ये सब आपको सहज में ही प्राप्त हुआ हुई है। पूरी तरह से तैयारी कर परमात्मा ने रखी हुई है। उसको है। यदि इसके लिए मुश्किलें करनी पड़तो, आफते उठानी पड़ती जगाना मात्र है। जब आप आलौकित हो जाते हैं तो सारी की और आप इसको अपनी चेतना में जानते तो आप समझ पाते सारी चीज आपको आसानी से समझ आ जाती है। पर अगर कि आप कितनी महत्वपूर्ण चीज हैं। मनुष्य को जानना चाहिए कि परमात्मा ने हमें क्यों बनाया, इतनी मंहनत क्यों की? हम किस लिए संसार में आये और हमारा भविष्य क्या है ? हमारा कैसे बना, तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है। लेकिन आधुनिक अर्थ क्या है? जैसा कि कल मैने कहा था कि अगर हम मशीन बनायें पर इसको इस्तेमाल नहीं करें तो कोई भी अर्थ नहीं फिर उसको हटाए। उनको कोई चीज आसानी से मिल जाए तो निलकता। लेकिन जब तक ये मेन स्रोत से नहीं लगाया जाता बड़े आश्चर्य से पूछता है हमने तो कुण्डलिनी के Read More …

Public Program, Chitta KI Gaharai Bordi (भारत)

Public program (Hindi). Bordi Shibir, Maharashtra, India. 24 March 1979. [Hindi Transcript] आप लोग सब सहजयोग में आये हैं। कुछ लोग पहले से आये हैं, बहुत सालों से और कोई लोग नये हैं। धीरे- धीरे सहजयोग में संख्या बढ़ने वाली है इसमें कोई शक नहीं है और सत्य जो है वो धीरे -धीरे ही प्रस्थापित होता है। सत्य की पकड़ धीरे-धीरे होती है। आपके यहाँ ऐसे लोग हैं जो आठ-आठ, नौ-नौ महिनों तक सहजयोग में आते रहे और उसके बाद पार हुए। सत्य को पाने के लिये हमारे अन्दर पहले तो गहराई होनी चाहिए। पर सबसे बड़ी चीज़ है हमारे अन्दर सफाई होनी चाहिए। अब अनेक गुरुओं के बीच में जाकर के हमारा चित्त जो है वो बुरी तरह से विक्षिप्त हो जाता है । दूसरा, आजकल के समाज में जो हम घुमते हैं और नानाविध उपकरणों के कारण हमारा जो चित्त बाहर की ओर हमेशा रहता है। बाह्य की चीजें हमें दिखाई देती हैं। इन सब चीज़ों से हम कुछ प्रभावित होते भी हैं। और कुछ ये भी बात है कि, हमारे दिमाग में भर दिया गया है कि ये चीज़ें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इस वजह से जो चीज़ें बिलकुल ही महत्वपूर्ण नहीं उधर हमारा चित्त पहले जाता है और जो चीज़ें बहत ही महत्वपूर्ण हैं वहाँ हमारा चित्त नहीं जाता है। इसलिये हम ऐसी चीज़ों को इकठ्ठा कर लेते हैं जो बिलकुल बेकार हैं। जिसको कि अंग्रेजी में जंक कहते हैं, मराठी में ‘अडगळ’ कहते हैं। इस तरह का हमारा चित्त जो है वो बेकार की चीज़़ों Read More …

Sahaja Yoga & the Subtle System मुंबई (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date 22nd March 1979 : Place Mumbai : Public Program Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] आप एक बहुत सुन्दर प्रकृति की रचना हैं। बहुत मेहनत से, तो आखें हैं नहीं हम इसे कैसे जानेंगे और हमारे लिए भी यह नजाकत के साथ, अत्यंत प्रेम के साथ परमात्मा ने आप को बनाया है। आप एक बहुत विशेष अनन्त योनियों में से घटित होकर इस मानव रुप में स्थित हैं। आप इसलिए इसकी महानता जाएगी। इस प्रकार आपके अन्दर भी कोई चीज ऐसी ही बनी नहीं जान पाते क्यांकि, ये सब आपको सहज में ही प्राप्त हुआ है। यदि इसके लिए मुश्किलें करनी पड़ती, आफते उठानी पड़ती और आप इसको अपनी चेतना में जानते तो आप समझ पाते सारी चीज आपको आसानी से समझ आ जाती है। पर अगर कि आप कितनी महत्वपूर्ण चीज हैं। मनुष्य को जानना चाहिए कि परमात्मा ने हमें क्यों बनाया, इतनी मॅहनत क्यों की ? हम बत्ती कैसे आई बिजली कहां से आई, इसका इतिहास क्या है, किस लिए संसार में आये और हमारा भविष्य क्या है ? हमारा कैसे बना, तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है। लेकिन आधुनिक अर्थ क्या है? जैसा कि कल मैने कहा था कि अगर हम मशीन बनायें पर इसको इस्तेमाल नहीं करें तो कोई भी अर्थ नहीं फिर उसको हटाए। उनको कोई चीज आसानी से मिल जाए तो निलकता। लेकिन जब तक ये मेन स्रोत से नहीं लगाया जाता बड़े आश्चर्य से पूछता है हमने तो कुण्डलिनी के बारे में Read More …

Advice to Delhi Yogis New Delhi (भारत)

Advice to Delhi Yogis (Hindi). Delhi (India), 15 March 1979. हर जगह के अपने वाइब्रेशन्स होते है दिल्ली, १५.३.१९७९ देलही के निवासियों ने सहजयोग में जो मेहनत की है वो बहुत प्रशंसनीय है क्योंकि आप जानते हैं कि सहजयोग में हमारे कोई भी मेंबरशिप नहीं है, कोई रूल्स नहीं है, कोई रेग्युलेशन्स नहीं है, ना ही कोई हम लोग रजिस्टर रखते हैं और ऐसी हालात में कुछ लोग इससे इतने निगडित हो जायें और इसके साथ इतने मेहनत से काम करें और ये सोंचे कि एक जगह ऐसी होनी चाहिए जहाँ सब लोग आ सके। अभी तो इनके घरों में ही प्रोग्राम होते हैं। तो इन्होंने मुझसे कहा था। मैंने कहा, ‘अच्छा देखो भाई, अगर कोई मिल जाये तुमको कोई जगह तो ठीक है। सबके दृष्टि से जो भी होना है वो अच्छा ही है।’ पर मेरे विचार से देहली के लोगों में ही ज्यादा परमात्मा का आशीर्वाद कार्यान्वित हुआ है। क्योंकि इस तरह से इन लोगों ने बहुत काम किया है कि देख कर बड़ा आश्चर्य होता है और जगह में तो बहुत कोशिश करने पर भी कुछ नहीं हो पाया है। ये सब आप ही का अपना है। आप ही के लिये जगह बनी हुई है और आप ही वहाँ रहेंगे और आप ही उसको इस्तेमाल करें, उसका उपयोग करें। लेकिन ये जरुरी है कि एक उसका न्यूक्लिअस होना चाहिए, एक जगह होनी चाहिए जहाँ गणेश जी की स्थापना होनी चाहिए। इस तरह की एक जगह होना जरूरी होती है। क्योंकि हर जगह के अपने- अपने वाइब्रेशन्स होते Read More …

Mooladhara New Delhi (भारत)

Public program, Mooladhara (English & Hindi). Delhi, India. 12 March 1979. मूलाधार (परमात्मा की और आत्मा की उपलब्धि) दिल्ली, १२ मार्च १९७९ उसके लिए कुछ न कुछ घटना अन्दर होनी चाहिए, कुछ हॅपनिंग होनी चाहिए। ऐसा मैंने सबेरे बताया था आपसे मैंने। दूसरी और एक बात बहुत जरूरी है, कि परमात्मा की और आत्मा की उपलब्धि अगर एक-दो लोगों को ही हो, सिलेक्टेड लोगों को हो, और सर्वसामान्य अगर इससे अछूते रह जाये तो इसका कोई अर्थ ही नहीं निकलता । परमात्मा का भी कोई अर्थ नहीं लगने वाला , ना इस संसार का कोई अर्थ निकलने वाला है। इस क्रिएशन का भी कोई अर्थ नहीं निकलने वाला। ये उपलब्धि सर्वसामान्य की होनी ही चाहिए। अगर ये सर्वसामान्य की न हो और बहत ही सिलेक्टेड लोगों की हुई तो वही हाल होगा जो सब का हआ। जो ऐसे रहे उनको कभी किसी ने माना नहीं । और मानने से भी क्या होता है ये बताईये मुझे! समझ लीजिये कि कोई अगर बड़े राजा हैं, तो राजा हैं अपने घर में, हमको क्या ? हमको तो कुछ मिला नहीं। हमको भी तो मिलना चाहिए। तब तो उसका मतलब होता है। इसलिये ये घटना घटित होनी ही चाहिए। इतना ही कुछ नहीं, ये सर्वसामान्य में अधिक होना चाहिए। काफ़ी लोगों में होना चाहिए। साइन्स का भी मैंने बताया ऐसा ही तरीका होता है की कोई आप एक, बिजली का आपको पता लग गया, जिसको पता लगा होगा, वो अगर सर्वसामान्य के लिये नहीं उपयोग में आयेगी तो उस बिजली का क्या मतलब! Read More …

Talk about Gandhi New Delhi (भारत)

Talk about Gandhi. Mumbai, Maharashtra, India. 11 March 1979. बिल्कुल सामने आ रहा है ,जो बताया गया है ,  विशुद्धि चक्र के बारे में I अब इसी विशुद्धि चक्र से ही collective conciousness की  सीढ़ी है Iमैंने कहा था कि कृष्ण को पूर्ण अवतार माने क्योंकि ये विराट है विराट वो शक्ति है जिसमें संपूर्ण समावेश है ह्रदय में शिव जी की शक्ति है और पेट में गुरुओं की शक्ति है और स्वाधिष्ठान चक्र में ब्रह्मा देव शक्ति है ब्रेन में ब्रह्मा देव की शक्ति है आप कह सकते हैं और जब विराट जागृत हो जाता है जब  विराट का सहस्त्रार खुलता है तब इसके अंदर बसे हुए अनेक cell का पेशियों का भी सहस्त्रार खुलता है I Bible मैं कहा जाता है  परमात्मा ने मनुष्य को अपने जैसा बनाया अपना इमेज बनाया है और ये बात सही है जैसे विराट हैं वैसे ही संपूर्ण आप हैं, फर्क इतना ही है कि वो करता है और आप बनाए गए हैं इतना ही अंतर है उन्होंने बनाया और आप बनाए गए हैं Iअब वो चाहते हैं कि आप उनसे परिचय करें उनकी चाह  है उनकी चाहत में आपको बनाया है Iऔर आप को बनाने के बाद वो चाहते हैं कि आप उन्हें जाने उनकी इच्छा है जब ये उनकी इच्छा है तो वो होकर रहेगी उसके लिए भी उन्होंने पूरी व्यवस्था करके रखी है अपने अंदर पूरा Instrument बनाया है पूरी चीज बनाई है Iमैंने आपको बताई थी आज सवेरे और अब सिर्फ इतना करने का है कि आपको उनसे संबंधित Read More …

Seminar Day 2 New Delhi (भारत)

Seminar in Delhi (India), 10 March 1979. भारतवर्ष योगभूमि , सेमिनार दिल्ली, १०/३/१९७९ आज सबेरे मैंने आपसे बताया था अंग्रेजी में कि परमात्मा ने हमें जो बनाया है, आप इसे माने या न माने, उसका अस्तित्व आप समझे या न समझे वो है। और उसने हमें जिस प्रकार बनाया, जिस तरह से बनाया है वो भी | एक बड़ी खूबी की चीज़ है। मैंने सबेरे बताया था कि कैसे बहुत थोड़े से समय में एक अमीबा जैसे प्राणी से मनुष्य बनाया गया। और आप को मनुष्य बनाया गया सो क्यों? और आगे इसका क्या होने वाला है या ऐसे ही भटकता रहेगा? मैंने बताया कि आपको भगवान ने स्वतंत्रता दे दी है। चाहे तो आप परमात्मा को पायें और चाहे तो आप शैतान के राज्य में जायें। ये आपकी स्वतंत्रता है। इसके लिए कोई भी आप पर, कोई भी आप पर परमात्मा का बंधन नहीं । अगर आप गलत रास्ते जाएंगे तो आप पर वहाँ के जो कुछ भी कृपायें हैं वो होंगी। और जो आप सही रास्ते जाएंगे तो सही रास्ते का जो भी आशीर्वाद है वो आपको मिलेगा । गलत और सही जानने के लिए भी बहुत बड़ी-बड़ी हस्तियाँ संसार में आयीं, उनको हम ‘अवतार ‘ कहते हैं, अवतरित हैं। बड़े-बड़े गुरु इस संसार में आयें जो असली गुरु थे। वो जब भी आये उन्होंने सही रास्ता, धर्म का रास्ता बताया कि आप कायदे से रहिये, बीचो-बीच रहिये, अति न करिये। धर्म के नाम पर जब -जब कोई-कोई संकट आये और जब ये देखा गया कि संसार से Read More …

Seminar (भारत)

Seminar (Hindi). Dheradun, UP, India. 4 March 1979. परमात्मा सब से शक्तिशाली है देहरादून, ४ मार्च १९७९ आज मैंने आपसे सबेरे बताया था कि कुण्डलिनी के सबसे पहले चक्र पे श्री गणेश जी बैठते हैं, श्री गणेश का स्थान है और श्री गणेश ये पवित्रता के द्योतक हैं। पवित्रता स्वयं साक्षात ही है। वो तो पहला चक्र हुआ। और ये चक्र जो है कुण्डलिनी से नीचे है वो कुण्डलिनी की रक्षा ही नहीं करता है, लेकिन वो लोग जो कुण्डलिनी में जाते हैं उनसे पूरी तरह से सतर्क रहते हैं। इस रास्ते से कोई भी कुण्डलिनी को नहीं छू सकता है। आज सबेरे मैंने आपसे बताया था कि इस रास्ते से जो लोग कोशिश करते हैं वो बड़ा ही महान पाप करते हैं। हालांकि उससे थोड़ा बहुत रुपया-पैसा कमा सकते हैं। लेकिन अपने लिए जो पूँजी इकठ्ठी करते हैं, वो सारी ही एक दिन बहुत कलेशकारी हो जाती है। जो दूसरा चक्र है, जिसे मैंने स्वाधिष्ठान चक्र आपसे बताया था । इससे हम विचार करते हैं क्योंकि जब हम बुद्धि से विचार करते हैं, जब हम अपने दिमाग से विचार करते हैं, उस दिमाग की जो मेध है इसे फैट ग्लैड्यूस कहते हैं, जो चर्बी है, वो चर्बी पेट की चर्बी से बनती है। पेट की चर्बी को ये चक्र सर की च्बी बनाता है इसलिए विचार करते वक्त, इस चक्र पर बहुत जोर पड़ जाता है। और जब विचार करने की आपको आदत लग जाती है, जैसे की आजकल के आधुनिक लोगों को विचार करने की आदत एक बीमारी Read More …

Shri Ganesha & Mooladhara Chakra Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Shri Ganesha Aur Mooladhar Chakra, Public program, “Shri Ganesha, Mooladhara Chakra” (Hindi). Bharat Vidya Bhavan, Mumbai, Maharashtra, India. 16 January 1979. ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK भाषण सुनने से पहले ही मैं आपको बताती हूँ, कि इस तरह से हाथ रखिये और आराम से बैठिये। और चित्त हमारी ओर रखिये। इधर-उधर नहीं, कि जरा कोई आ गया, कोई गया। इधर-उधर चित्त नहीं डालना। क्योंकि दूसरों को तो हम हर समय देखते ही रहते है, कभी अपने को भी देखने का समय होना चाहिये। कल मैंने आपसे इन चक्रों के बारे में बताया था। आज मैं आपको सब से नीचे जो चक्र है जिसको गणेश चक्र कहते हैं, उसके बारे में बताऊंगी। हम लोग गणेश जी को मानते हैं, गणेश जी की पूजा भी करते हैं । और ये भी जानते हैं कि अपने महाराष्ट्र में अष्टविनायक हैं, आठ गणेश , पृथ्वी तत्त्व में से निकल आये हैं। लेकिन इस के बारे में हम बहुत ही कम जानते हैं। और इसलिये करते हैं सब कुछ क्योंकि हमारे बड़ों ने बता रखा है। इन धर्मांधता को देख कर के ही लोगों ने ये शुरू किया, कि ऐसे, भगवान, जिनको की हम देख नहीं सकते, कुछ सभी अंधेपन से हो रहा है। तो बेहतर ये है कि इस तरह से भगवान वरगैरा न मानने से ….. हम लोग अपने ही ऊपर विश्वास रख के काम करें। अब गणेश इतनी बड़ी चीज़ है, इसके बारे में मैं अब बताऊंगी। गणेश एक प्रिंसीपल हैं, एक तत्त्व है। ये कोई भगवान आदि नहीं। ये एक तत्त्व है, Read More …

Public Program Day 2: Utkranti Ki Sanstha Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Public Program Day 2, Birla Krida Kendra, Mumbai (Hindi), 15 January 1979. ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK मैंने कहा था, कि कुण्डलिनी के बारे में विशद रूप से आपको बताऊँगी। इसलिये आज आपसे मैं कुण्डलिनी के बारे में बताने वाली हूँ। पर मुश्किल है आप सब को ये चार्ट दिखायी नहीं दे रहा होगा। क्या सब को दिखायी दे रहा है ये चार्ट? इसमें जो कुछ भी दिखायी दे रहा है वो आपको इन पार्थिव आँखो से नहीं दिखायी देता। इसलिये सूक्ष्म आँखें चाहिये जो आपके पास नहीं हैं। बहरहाल ये आप के अन्दर है या नहीं आदि सब बातें हम बाद में आपको बतायेंगे। इसे किस तरह जानना चाहिए? लेकिन इस वक्त अगर मैं आपको इसके बारे में बताना चाहती हूँ तो एक साइंटिस्ट के जैसे खुले दिमाग से बैठिये। पहले ही आपने अनेक किताबें कुण्डलिनी के बारे में पढ़ी हुई हैं। योग के बारे में पढ़ी हुई हैं। लेकिन सत्य क्या है उसे जान लेना चाहिए। किताबों से सत्य नहीं जाना जा सकता। कोई कहीं कहता है, कोई कहीं कहता है, कोई कहीं बताता है। लेकिन आप अगर साइंटिस्ट है तो अपना दिमाग को थोड़ा खाली कर के मैं जो बात बता रही हूँ, उसे देखने की कोशिश करें। जिस तरह से कोई भी साइंटिस्ट अपना कोई हाइपोथिसिस आपके सामने रखता है, कोई ऐसी कल्पना कर के रखता है, कि ऐसी ऐसी बात हो सकती हैं, उसको वो फिर अन्वेषण कर के और सिद्ध करता है, प्रयोग कर के, एक्सपिरिमेंट के साथ ये सिद्ध कर देता है, कि वो Read More …

What is the Kundalini and how it awakens Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Talk in Hindi at the Bharat Vidya Bhavan, Mumbai, Maharashtra, India. 9 January 1979. [Hindi transcript until 00:49:05] सबको फिर से मिल के बड़ी ख़ुशी होती हैं | मनुष्य पढता है लोगो से सुनता है बड़े बड़े पंडित आ करके लोगो को भाषण देते हैं | इस संसार में परमात्मा का राज्य हैं परमात्मा न सृष्टि है | ऐसे हाथ करिये बैठे राहिएए जब तक में भाषण देती हूँ उसी के साथ ही कुण्डलिनी का जागरण हो जाता है | आज में आपसे ये बताने वाली हूँ की कुण्डलिनी क्या चीज़ है और उसका जागरण कैसे होता है | कल मेने आपसे बताया था मानव देह हम आज देख रहे हैं इस मानव देह को चलाने वाली शक्तियां हमारे अंदर प्रवाहित हैं | उन गुप्त प्रवाहों को हम नहीं जानते हैं | जिनके कारन आज हमारी सारी शक्तियां ये शरीर मन बुद्धि अहंकार सारी चीज़ो का व्यापर करती हैं उनके बारे में जो कुछ भी हमने साइंस से जाना है वो इतना ही जाना है की ऐसी कोई स्वयंचालित शक्तियां है जिसको की ऑटोनॉमस सिस्टम कहते हैं जो इस कार्य को करती हैं और जिसके बारे में हम बोहत ज्यादा नहीं बता सकते | की वो शक्ति कैसी है और किस तरह से वो अपने को चलाती है | किसी भी चीज़ को जानने का तरीका एक तो ये होता है की अँधेरे में उस चीज़ को खोजिये जैसे आप इस कमरे में आये है और यहाँ अंधेरा है इसको धीरे धीरे टटोलिये जानिये की ये क्या है कोई दरवाजे Read More …

Triguna New Delhi (भारत)

Trigun – Bhartiy Sanskruti Ka Mahatva IV Date 3rd February 1978 : Place Delhi : Public Program Type : Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] जिस शक्ति को आप इस्तेमाल कर रहे हैं उसे चल रहा है, माताजी थोड़ा म्यूजिक कर दें? हमने Refill कर लेते हैं हम। Modern बीमारी एक और कहा कर दो भाई। ऐसे ही बैठेगें आराम से। हमारे जिसे हम Tension कहते हैं। Tension’ मुझे तो Vibrations चलते रहते हैं, आप Receive करते Tension आ गया, पहले किसी को Tension नहीं रहिए। अब उन्होंने ज़रा लम्बा चौड़ा कर दिया जरा Music, तो लोग कहने लगे अब जरा जल्दी खत्म आता थी। तब तो Tension आना ही हुआ कि आप निकले पुरानी दिल्ली से माताजी के Programme करो, जल्दी खत्म करो। मैंने कहा क्यों भई तुमको में जाने के लिए। अब 6.30 बजे पहुँचना ही चाहिए, मेरा Lecture सुनने का है पर मेरी तो आज तबियत पहले सीट पर बैठना ही चाहिए। देर से जाएंगे, नहीं कर रही। अपने तो तबीयत से चलते हैं, कोई हर्ज नहीं, देर से भी आ सकते हैं। वो समय Temperamental आदमी हैं, अभी आज तो भई आप के आने का था आप आ गए कोई बात नहीं। ऐसी कौन सी आफत मची हुई हैं? भाई मुझे कहाँ भी सुनो मेरे साथ। आराम से क्यों नहीं सुनते? जाने का है और आपको कहाँ जाने का है? आराम अच्छा म्यूजिक चल रहा है, भई सुनो। ऐसी कौन तबीयत हो नहीं रही। तो म्यूजिक ही सुनने दो, तुम Read More …

Prem Dharma मुंबई (भारत)

Prem Dharma Date : 23rd March 1977 Place Mumbai Type Seminar & Meeting Speech Language Hindi [Hindi Transcript] ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK बहुतों को ऐसा लगता है जब वो पहली मर्तबा देखते हैं कि ये कोई बच्चों का खेल है कि कुण्डलिनी जागरण है? कुण्डलिनी जागरण के बारे में इतना बताया है दुनिया भर में कि सर के बल खड़ा होना, दुनिया भर की आफ़त करना , और इतने सहज में कुण्डलिनी का जागरण कैसे हो जाता है ? आप में से जो लोग पार हैं, यहाँ अधिक तर तो पार ही लोग बैठे हये हैं, उनकी जब कुण्डलिनी जागरण हुई तब तो आपको पता ही नहीं चला की कैसे हो गयी! लेकिन अब जब दूसरों की होती देखते हैं तो पता चलता है कि हाँ, भाई, हमारी हो गयी। क्योंकि आप एकदम से ही चन्द्रमा पर पहुँचते हैं। कैसे पहुँचे, क्या पहुँचे पता नहीं चला। उसका कारण तो है ही और उसका उद्देश्य भी है। | फलीभूत होने का समय जब आता है तभी फल लगते हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं की बाकी जो होता रहा वो जरूरी नहीं था। वो भी था जरूरी और अब फल होना भी जरूरी है । कोई कहता है कि दस हजार वर्ष हो गये तब से तो कोई पार नहीं हुआ , अभी कैसे हो गये ? भाई, दस हजार वर्ष पहले तो चन्द्रमा पर कभी गये नहीं थे अब क्यों जा रहे हैं? और अगर जा रहे हैं तो उसमें शंका करने की क्या बात है? रामदास स्वामी ने बताया Read More …

Talk To New Yogis, Problems From Fake Gurus New Delhi (भारत)

Naye Sahaj Yogiyose Batchit, New Delhi, 19-02-1977 आप में से बहुत से लोग पार हो गये हैं माने इनके हाथ में से वाइब्रेशन्स आये हैं। मैंने पहले भी चक्रों के बारे में बताया है आपको। और मैं ये मानती हूँ कि आप में से बहुत से लोगों के हाथ में से वाइब्रेशन्स आये। लेकिन ऐसे भी बहुत से लोग देख रही हूँ कि जिनके नहीं आये हैं। अब जो लोग पार हो गये हैं, जिनके हाथ से वाइब्रेशन्स आ रहे हैं और जो निर्विचार हो गये हैं, उनके लिये कोई बात कही जाये, तो उनको भी सुन लेना चाहिये जो अभी नहीं हये हैं। क्योंकि वो भी हो जायेंगे पार। पार तो जितने भी हो सकते हैं होने चाहिये और हो ही सकते हैं अधिकतर लोग पार। लेकिन किसको अगर ये पहले से ही दिमागी जमा-खर्च है बहत सारे और कुछ आयडियाज हैं फंड के बारे में, ये और वो, तो जरा उसको जरा टाइम जादा लगता है। क्योंकि पहले उसको उसके रस्ते पे लाना पड़ता है, जैसे कोई दूसरे रस्ते पे चला गया हो। जैसे अभी आपने मुझे चिठ्ठी दी कि बिल्कुल उल्टा रस्ता है, आपने जो बताया एकदम उल्टा रस्ता। और वो यही धंधे करते आ रहे हैं। हजारों आदमी उनके पास जाते हैं, और इसी तरह से उनका सर्वनाश होता है। और इस सर्वनाश में, मैं हिसाब लगा रही थी, कि इस देश में या समाज में करीबन तीन करोड़ लोगों का सर्वनाश हो गया है, अपने भारत देश में। तीन करोड़ लोगों का व्यवस्थित रूप से Read More …

Mahashivaratri Puja New Delhi (भारत)

1977-02-16 Mahashivaratri: Sat-Chit-Ananda, Delhi महाशिवरात्री, १९७७ फरवरी १६ आज का दिन कितना शुभ है की महाशिवरात्री के दिन हम लोग सब साथ शिव की स्तुती गा रहे हैं। शिव याने सदाशिव, इन्हीं से सृष्टी शुरू हुई है और इन्हीं में खत्म होती है। सबसे पहले गर आप ब्रम्ह को समझे तो ब्रम्ह से शक्ती और शिव, जैसे की एक cell के अंदर उसका न्युक्लिअस nucleus होता है, उसी की तरह शिव और शक्ती सबसे पहले ब्रम्ह में स्थापित होते हैं। सृष्टी कैसी हुई, किस प्रकार ये घटना घटित हुई, किस प्रकार ब्रम्ह शिव और शक्ती के रूप में प्रगट हुए ये सारी बातें मैं आपको शनिवार और रविवार में बताऊँगी। लेकिन शिव से निकलती हुई ये शक्ती जब एक paraboly में घूमती है, जब एक प्रदक्षिणा लेती हैं तो एक एक विश्व तैयार होते है। ऐसी अनेक प्रदक्षिणाएँ, शक्ती की होती रही। इसके बारे में भी मैं आपको बाद में बताऊँगी। अनेक विश्व तैयार होते रहे, अनेक भुवन तैयार होते रहे और मिटते भी रहे। शिव से शक्ती हटकरके विश्व बनाती हैं। शिव सिर्फ साक्षी स्वरूप रहते हैं। वे खेल देखते रहते हैं शक्ती का। शक्ती का अगर खेल उनकी समझ में न आए, तब वे जब चाहें तब अपनी शक्ती अपने अंदर खिंच ले सकते हैं। सारा ही खेल बंद हो जाता है। वे ही द्रष्टा हैं, वही देखनेवाले हैं। वही इस खेल के आनंद को उठानेवाले हैं। उन्ही के कारण सारा खेल है। इसलिए गर वो न रहें तो सारा खेल खत्म हो जाता है। वो स्थिति हैं। Read More …

Nirvicharita मुंबई (भारत)

Nirvicharita “VIC Date 6th April 1976 : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi तुम लोगों को बुरा लगेगा इसलिये मराठी में बोलने दो। मैं कह रही हूँ कि तुम्हारे सामने जो भी प्रश्न हैं, उन प्रश्नों को तुम अचेतन में छोड़ो, वो मेरे पैर में बह रहा है। माने ये कि कोई भी प्रश्न , अब तुमको अपनी लड़की का | प्रश्न है समझ लो। उसमें खोपड़ी मिलाने से कुछ नहीं होने वाला। जो भी प्रश्न है वो यहाँ छोड़ दो। उसका उत्तर मिल जायेगा। अब तुम अगर सोचते हो कि इस चीज़ से लाभ होगा , वो नहीं बात। जो परमात्मा सोचता हैं तुम्हारे लिये जो हितकारी चीज़ है, वो घटित हो जायेगी । वो तुम कर भी नहीं सकते हो । इसलिये उसको छोड़ दो तुम क्यों बीच में तंगड़ियाँ तोड़ रही हो? तुम क्यों परेशान हो रही हो ? तुमको परेशान होने की कोई जरूरत नहीं। तुम छोड़ तो दो| जो तुम्हारे सारे प्रश्नों को सॉल्व करने के लिये पूरी इतनी कमिटी बैठी हुयी है, उनके पास छोड़ो तुम | सहजयोग में यही तो कमाल है, कि सर का बोझा उतर गया उनकी खोपड़ी पर। छोड़ के देखो। ऐसे कमाल होंगे, ऐसे कमाल होंगे, कि बस्। लेकिन मनुष्य की खुद्दारी की बात हो जाती है। आखिर तक वो यही सोचते रहता है कि, ‘मुझी को करना है। और सोचते रहिये, एक के ऊपर एक ताना, बाना चलता रहेगा। कितना भी आप करते रहिये। आखिर आप पाईयेगा, कि आप कहीं भी नहीं पहुँचे और पागलखाने Read More …

प्रजापति का यज्ञ मुंबई (भारत)

 प्रजापति का यज्ञ 02/03/1976 इस संसार में जो सबसे बढ़कर के माया है वो है पढ़त मूर्खों की। पढ़तमूर्ख उन्हें कहते हैं जिनके लिए कबीरदासजी ने कहा है,’पढ़ी पढ़ी पंडित मूरख भए’ और इसलिए मैं किताब लिखने में भी बहुत डरती थी। और जब किताब लिखने का सोचा भी है, तो भी ऐसे महामूर्खों के हाथ में वो नहीं पड़नी चाहिए। वो लोग उसी प्रकार हैं जिस प्रकार कोई इंसान किसी भी देश में नहीं जाता है और झूठी बातें सारी दुनिया में बताता है कि मैं वहाँ गया था और वहाँ पर ये देखा, फिर वहाँ ये था, फिर वहाँ वो था, फिर ऐसा हुआ और फिर किसी ने ये कहा था, उसने वो कहा था, अपनी कोई उनके पास प्रचिती नहीं होती। लेकिन आप जो सहजयोगी हैं आप सबको इसकी प्रचिती आयी है। आपके अंदर से vibrations फूटे हैं माने ये चैतन्य बह रहा है। आपको इसका अनुभव आया है कि चैतन्य क्या चीज़ है। आप एक बड़े भारी स्थान पर बैठे हुए हैं। वो लोग बड़े बड़े भाषण दे सकते हैं इसी चैतन्य के बारे में बता सकते हैं। बहुत बड़े श्लोक पढ़ सकते हैं। लेकिन उनको अनुभूति इतनी भी नहीं हुई और वो परमात्मा के राज्य से अभी बहुत दूर हैं, आपकी entry हो चुकी है। उसका एक विशेष कारण है, आपने पढ़ा होगा कि गणेशजी का जन्म सिर्फ उसकी माँ ने ही किया था। अपनी सृष्टि रचना से पहले ही उसने एक बेटे को जन्म दिया था। खुद माँ ने ही ये सब किया था। इसलिए Read More …

Public Program Balmohan Vidyamandir, मुंबई (भारत)

Public Program [Hindi Transcript] Parmatma Ka Prem Date : 26th December 1975 Place Mumbai Type Seminar & Meeting Speech Language Hindi CONTENTS | | Transcript Hindi 02 – 09 English Marathi || Translation English Hindi Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK सत्य को खोजने वाले आप सब को मेरा वंदन है। के उपरान्त जो कुछ भी कहना है, आज आप से आगे की बात मैं करने वाली हूँ। विषय था, ‘एक्सपिरिअन्सेस ऑफ डिवाईन लव’। परमात्मा के कल आप बड़ी मात्रा में भारतीय विद्या भवन में उपस्थित हये थे और उसी क्षण प्रेम के अनुभव। इस आज के साइन्स के युग में, पहले तो परमात्मा की बात करना ही कुछ हँसी सी लगती है और उसके बाद, उसके प्रेम की बात तो और भी हँसी सी आती है। विशेष कर हिन्दुस्तान में, जैसे मैंने कल कहा था, कि ये दुःख की बात है और विदेशों में साइंटिस्ट वहाँ तक पहुँच गये हैं, जहाँ पर हार कर कहते हैं, कि इससे आगे न जाने क्या है? और वो ये यहाँ के साइंटिस्ट उस हद तक नहीं पहुँचे हैं जहाँ वो जा कर परमात्मा की बात सोचें। भी कहते हैं कि ये सारा जो कुछ हम जान रहे हैं, ये साइन्स के माध्यम में बैठ रहा है, ये बात सही है। लेकिन ये कुछ भी नहीं है । ये जहाँ से आ रहा है वो ये अजीब सी चीज़ है, जिसे हम समझ ही नहीं पाते। जैसे कि केमिस्ट्री के बड़े बड़े साइंटिस्ट है, वो कहते हैं कि ये जो पिरिऑडिक लॉ जो बनाये Read More …

Keep the attention on yourself मुंबई (भारत)

Apani Or Drushti Rakhe Date 21st December 1975 : Place Mumbai : Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सहजयोगियों का प्रेम इतना अगाध है कि शब्द जितने जल्दी मिथ्या हमारे अंदर से मिटता जाता है सूझ नहीं रहे कि किस तरह से बात की जाए। उतनी ही जल्दी हम लोग उस चित्त को हलका आपको पता है कि संसार में हर जगह आज सहजयोगी उत्क्रांति की ओर, evolution की ओर चित्त परमेश्वर से जाकर मिलता है। यही चित्त उस बढ़ रहा है। बहुत से सहजयोगी बड़ी ऊँची दशा सर्वव्यापी, परमेश्वर के प्रकाश में जा कर डूब जाता में चले गए हैं। आनंद के स्रोत उनके अंदर बह रहे है । यही मानव का चित्त जो कि हम प्रकृति का रूप हैं। कुछ तो बिल्कुल निमित्तमात्र हो करके ही समझते हैं, प्रकृति का जो ये फूल है वो परमात्मा के संसार में एक विशेष रूप से कार्यान्वित हैं। लेकिन प्रेम सागर में विसर्जित हो जाता है । लेकिन ये चित्त हर एक देश की एक अपनी अपनी, मैं देखती हैं कि कितना बोझिल है, कितना अव्यवस्थित है. कभी परिपाटी है। मानव हर जगह एक ही है। इसमें कभी देखते ही बनता है। कोई अंतर नहीं है और सहजयोग एक अन्तर्तम की ही व्यवस्था है जिसका कि बाह्य से कोई सम्बंध है कितने आनंद में उतरे, आप कितने शांति में उतरे, ही नहीं। तो भी चित्त जो कि प्रकृति का एक स्वरूप है, जिसे हम कुण्डलिनी के नाम से जानते सहजयोग को Read More …

Public Program 2, Science, Trigunatmika मुंबई (भारत)

Trigunatmika Date 30th March 1975 : Place Mumbai : Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] अधिकतर प्रगल्भ है. developed है मनुष्य पूरी तरह से इन तीन शक्तियों में पूर्णतया कल मैंने आपसे बताया था, सबको सुनाई दे रहा है या नही ? पीछे में सुनाई दे रहा है ? आपसे मैंने यह बताया था कि मनुष्य का शरीर उसका मन, उसकी बुद्धि, आदि उसका जितना भी पूरा व्यक्तित्व है. उसकी जितनी भी mature हो गया है, बड़ा हो गया है। अब उसकी तैयारी हो गयी है कि उन तीनों शक्तियों का संचय, जो एक शक्ति परमात्मा का प्यार है उनका प्रेम है उसे जाने। जो एक शक्ति ही तीनों में बंट गई है वो एकाकार हो जाए. उस personality है वह सब कुछ तीन तरह के शक्ति से बना हुआ है। एक शक्ति जिससे कि हम अस्तित्व बनकर रहते हैं। वह मनुष्य में प्राण स्वरूप होती है जिसका स्थान हृदय में होता है। दूसरी शक्ति जो कि हमारे पेट में होती है जिसके कारण हमारी आज मनुष्य दशा तक उत्क्रान्ति हुई है, वह है धर्म। और तीसरी शक्ति जो एक चेतनामय है जिससे हमें बुद्धि आदि अनेक चेतना के अवलम्बन मिले हैं। लेकिन यह तीनों ही शक्तियाँ सर्वव्यापी परमात्मा के प्रेम से पाई जाती हैं। परमात्मा बन सर्वव्यापी प्रेम इन तीनों शक्तियों को संचालित करता है, समग्र बनाता है, माने integrate कर देता है। जैसे कि जड़ वस्तु में भी जो vibrations दिखाई देते हैं. जिसे electromagnetic vibrations कहते हैं. Read More …

Public Program, Science/Trigunatmika मुंबई (भारत)

1975-03-29 Public Program Sweet Home Hall Dadar Mumbai Hindi आज तक आपको मैंने काफी मर्तबा, काफी समझा के, दिखा के प्रैक्टिकल करके, आपसे पहले भी बताया था कि सहज योग क्या चीज है उसमें क्या होता है, यह कैसे घटित होता है, उसकी काफी मैंने वैज्ञानिक व्याख्या दी थी साइंटिफिक डेफिनिशन (वैज्ञानिक परिभाषा) दिए थे। आखिर जिसे हम साइंस साइंस (विज्ञान विज्ञान) कहते हैं वह मनुष्य द्वारा बनाया हुआ नहीं है। यह मनुष्य ने जो खोजा हुआ है, उसे वह साइंस (विज्ञान )कहता है, लेकिन उसने इस संसार की कोई भी चीज बनाई हुई नहीं है। उसका कोई भी नियम उसका बनाया हुआ नहीं है। कोई सा भी शास्त्र उसका बनाया हुआ नहीं है। गणित का शास्त्र भी उसका बनाया हुआ नहीं है। उसकी नियम, उसकी विधि सब परमात्मा की बनाई हुई है। जैसे कि आप देखिए एक सर्कल (circle, वृत्त) होता है और उसका जो व्यास (diameter) होता है, उसके और उस व्यास के परिधि (circumference) में जो एक रेशों (अनुपात, ratio) होता है, प्रोपोरशन (अनुपात, proportion)  होता है, वह आपने बनाया हुआ नहीं है। उसका नियम परमात्मा ने ही बनाया हुआ है। वह इससे ज्यादा होगा या इससे कम होगा ऐसा भी नहीं हो सकता है। वह जितना है, उतना ही रहेगा, वह रेशों (अनुपात, ratio)  बंधा हुआ है। सब नियम जितने बनाए हुए हैं, वह परमात्मा के बनाए हुए हैं।  आप लोगों ने, मुझ से बहुत से पूछा है कि माता जी आप साढ़े तीन (3 1/2) कुंडल क्यों कहती हैं? कुंडलिनी के साढ़े तीन (3 1/2) Read More …

Talk to Sahaja Yogis Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Updesh – Bhartiya Vidya Bhavan – II 18th March 1975 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi इसका कैन्सर ठीक कर दो। हमारी बहन का ये ठीक कर दो। क्यों आखिर क्यों किया जाये! फिर माँ को दर दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। हर एक को जा के माँगना पड़ता है। ये जो बड़े बड़े रईस लोग हैं, इनका ये है कि हमारे बहन को ठीक कर दो, हमारी माँ को ठीक कर दो। और जिस वक्त पैसा देने को आया तो, हाँ, तो चॅरिटी के मामले में तो हमसे कोई वास्ता नहीं। एक मैं बता देती हूँ कि जिन लोगों ने ऐसा काम किया है, उनको मैं ब्लैक लिस्ट कर देंगी। बड़े बड़े लोग हैं और उनका नाम भी मैं सबको बताऊंगी। और आपके सामने ऐसे लोग जरूरी आना चाहिये । सब का मैं नाम बताऊंगी। छोड़ंगी नहीं मैं किसी को। (मराठी – हे घ्या. कोणी ठेवलं? त्यांचं नाव लिहा. साइड में बातचीत) बैठो बेटा, बैठो। अपना नाम लिखा लो। रसीद भी ले लो कायदे से। इसमें से कोई भी पैसा इधर उधर जाने वाला नहीं। लिख लीजिये। कोई भी पैसा इसका हम रखना ही नहीं चाहते हैं। जो जमीन ले रहे हैं, जगह ले रहे हैं, जमीन क्या वो तो फ्लैट ही है। वहाँ पे हॉल बना रहे हैं। इसलिये वो लगा लेंगे। इधर उधर जाने का कोई सवाल ही नहीं। मेरे जाने से पहले ही सब ठीक ठाक कर देंगे वो। कोई उसमें गड़बड़ की बात नहीं है। आपका रुपया किसी Read More …

Gunateet – Beyond the Three Gunas (भारत)

गुणातीत, 13 मार्च, 1975 जिसके होने का है उसी का होगा। अब उसमें ज़रूर है कि होने से पहले बहुतों में बाधाएँ पड़ जाती हैं। आप जानते हैं, गलत हो गई बातें, बहुतों के साथ तो बहुत गलतियाँ हो गईं। इस वजह से बाधा है। लेकिन किसी तरह से इन तीनों के चक्कर चल कर के और फिर पार करना ही है -आज नहीं कल, कल नहीं परसों। यह ऐसी अभिनव चीज़ है, जिसको कि जो देखो सो ही अपना उठा कर के नहीं कह सकता, यह होना पड़ता है – कुंडलिनी आपके सामने चलती हुई दिखाई देनी चाहिए, उसका स्पंदन उठता हुआ दिखाई देगा। अब देखिये – कि जो प्रणव सिर्फ़ हृदय में सुनाई देता है वो आपको throughout करेगा। आप अगर स्टेथोस्कोप (stethoscope) लेकर देखें उस आदमी को, उस आदमी को जब आप देखेंगे कि जिसकी कुंडलिनी ऊपर उठी है तो आपको पता चलेगा कि उसका अनहत अलग अलग अलग अलग points से हो गया। अब देखिए कि कितना महत्वपूर्ण कार्य है कि त्रिगुण में बंटी हुई यह शक्ति एक शक्ति हो जाए कि जो गुणातीत है – जिसमें गुण नहीं हैं। कितना महत्वपूर्ण यह कार्य है, आज तक यह कार्य कभी हुआ नहीं पहले, और न होगा। लेकिन हमारे पास जो लोग आते हैं वह सब सारे आधे-अधूरे लोग हैं, वो समझते नहीं कि इसका महत्व क्या है। वो तो सोचते हैं कि दूसरी भी संस्थाएँ हैं और यह। दूसरी संस्थाएँ होएंगी – लेकिन सब संस्था इसी में आनी पड़ेंगी –नहीं आएंगी तो वे बेकार हैं। सारी Read More …

Public Program, Parmatma ka swarup मुंबई (भारत)

Parmatma Ka Swarup 3rd March 1975 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi एक रुपया भेज दें तो जगह खरीदने के लिये दो लाख बीस हजार रूपया चाहिये। कोई आसान काम नहीं है। इसलिये जितना बन पड़े उतना दे दें। जगह अपने ही लिये, अपने बच्चों के लिये हो जायेगी और वहाँ पर मेडिटेशन तो होगा ही लोगों का। क्यूअर भी होंगे, पार भी होंगे लोग। और बहुत बड़ा धर्म का कार्य है। अपने धर्म के लिये हम लोगों ने खर्चा ही नहीं किया है । अपने बारे में ही सोचते रहते है। सेल्फ सेंटर्ड। कोई धर्म भी करो । धर्म के बगैर संसार में कुछ अधर्म आ जायेगा। अधर्म आ जायेगा तो तुम्हारे पैसे का भी तुमको सुख नहीं मिलने वाला। तुम्हारे बच्चों का तुमको सुख नहीं मिलने वाला। किसी चीज़ का नहीं। धर्म की स्थापना के लिये वो जगह बना रहे हैं। आपको मालूम है, मुझे पैसों की बिल्कुल जरूरत नहीं। मैं खुद उसमें रुपया दंगी। मुझे किसी के भी रुपये की, पैसे की भगवान की कृपा से कोई जरूरत नहीं। लेकिन सबको इसमें मदद करनी चाहिये । बहत से लोग ऐसे हैं कि माताजी के पास आते हैं, ‘माताजी, मेरे बाप को ठीक कर दो, मेरे बहन को ठीक कर दो। मेरे भाई को ठीक कर दो।’ पचासों को ठीक करने के लिये आते हैं। लेकिन जब पैसे की बात आती है, तो रफूचक्कर! उस वक्त कोई बात नहीं। ऐसा भी करने से कोई , मैं किसी से नाराज नहीं होने वाली। ये Read More …

Talk to Yogis, Must listen every day मुंबई (भारत)

मैं आज फिर से बता रही हूं कि निर्विचारिता आपका किला है….(योगियों से बातचीत, मुंबई, 25 जनवरी 1975 ) केवल एक ही तरीका है जो मैं हजारों बार बता चुकी हूं और आज फिर बता रहीं हूं कि निर्विचारिता आपका किला है। निर्विचारिता में कुछ भी आप जानें तो आप सब कुछ जान जायेंगे। जो कुछ भी आप करना चाहते हैं तो निर्विचारिता में चले जाइये। एक बार जब आप निर्विचारिता में सांसारिक कार्यों को करने लगते हैं तो आपको पता चलेगा कि यह कितना गतिशील या डायनेमिक हो चुका है। फूलों को खिलते हुये या फल बनते हुये किसने देखा है ? किसने इस संसार के जीवंत कार्यों को होते हुये देखा है? ये कार्य हो रहा है। आप इस क्रियाशीलता और जीवंत क्रिया में गति कर रहे हैं। ये सब निर्विचारिता में ही आ रहा है। जब आप वहां बैठे होते हैं तो पूरा विश्व पीला हो उठता है। निर्विचारिता में रहने का प्रयास करें। सारा कार्य निर्विचारिता के माध्यम से होता है और आपका भी होगा। अपने ही अंदर आपको गति करनी होगी। इसके लिये कोई आयु सीमा नहीं है कि अब हम बूढ़े हो चके हैं। आप बूढ़े नहीं हैं। आपका पुनर्जन्म तो अभी तीन चार वर्ष पहले ही हुआ है। अभी तो आप बहुत छोटे बच्चे हैं। ये उम्र का प्रश्न नहीं है। आपको तो बस निर्विचारिता में रहना है। यही आपका स्थान है…. आपकी शक्ति और आपकी संपत्ति है। ये आपका आकार है … आपकी सुंदरता है … आपका जीवन है …. निर्विचारिता। जैसे Read More …

Talk to Sahaja Yogis, Kshma Ki Shakti Ka Mahatav, Power of Forgiveness मुंबई (भारत)

Kshama Ki Shakti Ka Mahatva IV 20th January 1975 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] कलयुग में क्षमा के सिवाए और कोई भी राक्षस है। आपके चित्त में घुसे हुए हैं । बात समझ बड़ा साधन नहीं है। और जितनी क्षमा की शक्ति में आई? अगर कोई साधु ही सिर्फ हो तो ठीक है। होगी उतने ही आप शक्ति शाली होंगे । सबको क्षमा परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्क ताम्। साधु कर दें। क्षमा वही कर सकता है जो बड़ा होता है। के साथ एक दुष्ट बैठा हुआ है तो बहुत ही प्रेम से छोटा आदमी क्या क्षमा करेगा? आज मैंने सवेरे अलग हटाना पड़ेगा कि नहीं? कितना कठिन काम कहा था कि धर्म को जानें, आपके अन्दर जो धर्म है? आप साधुता में खड़े है या आप दुष्टता में खड़े है उसको जानें। धर्म में खड़े हैं, जो आदमी धर्म में हैं यह आप पर निर्भर करता है। अगर आप साधुता खड़ा है उसकी कितनी शक्ति होती है! तो धर्म को में खड़े हैं और कोई दुष्टता चिपक रही है तो जाने। हाँ कितना सुन्दर हम धर्म में खड़े हैं, जो उसको हटा सकते हैं। लेकिन आज ऐसे अधर्म में खड़ा है वह तो अधर्मी है। उसका हमारा कितने हैं संसार में बताईए। Degree का फर्क है कोई मुकाबला नहीं है। वह तो अधर्म में खड़ा है। और जो लोग सधुता की ओर जा रहे हैं वे लोग हम तो धर्म में खड़े हुए है, Read More …

Public Program Day 3, Vibrations that is Love Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Chaitanya Date 27th March 1974 : Place Mumbai Public Program Type Speech Language Hindi [Orginal transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] कोई शंका नहीं कर सकते। जो विदित है जो दिखाई Viberations, that is love, that is दे रहा है, ये viberations क्या है? एक हैं वो knowledge, that is joy । पहला शब्द है Viberation, जिसको कि आप लहरियाँ कह सकते हैं, परम कह सकते हैं। जब कोई तार छूती है, इसमें से जो संगीत सल्फरडायाक्साइड के रेणु में जो अनन्त अणु किस चीज से Viberated हैं, इसमें Viberations क्या चीज है? इसके बारे में Science ने एक शब्द के तरंग उठते हैं, इसे आप viberations कह सकते viberations के सिवा और कुछ नहीं कहा। ऐसे मैंने पहले भी आपसे कहा था कि हमारे हृदय में जो हैं। भाषाओं का बड़ा चक्कर है। बहरहाल भाषा में उसे आप कुछ भी कहें, लेकिन साक्षात् में इसे आप देख सकते हैं। अभी हाल ही में मैं जब लन्दन में स्पन्दन हो रहा है, इसमें कौन सी शक्ति है, ये अगर डॉक्टरों से पूछा जाए तो सिवा इसके कि ये एक से थी तो वहाँ पर Electro Microscope कुछ अणु रेणुओं में, Molecules के फोटोग्राफ T.V. पर वो लोग दिखा रहे थे उसमें उन्होंने बताया एक Autnmous Nervous System है, स्वयंचालित एक संस्था के सिवाय कोई भी बात हमारे Doctor लोग sulpherdioxide का रेणु जिसमें कि एक Sulpher का अणु है और दो Oxygen के रेणु हैं, आपस में किसी बाँध से बंधे हुए हैं। आँखों से दिख रहा था, Read More …

Public Program Day 1 Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date 25th March 1974 : Place Mumbai Public Program Type Speech Language Hindi परम तत्त्व का अर्थ क्या है? वो किस तरह से सृजन करता है? ये चीज़ क्या है? इसके बारे में अनेक ग्रंथ, भाषणादि बहुत कुछ व्याख्यान संसार में हुये हैं। बहुत कुछ कहा गया है। परम शब्द परमात्मा का द्योतक है। ये परमेश्वरी शक्ति है, जो हर अणु-रेणु में वास कर के परमेश्वर का कार्य को संचलित करती है, चलाती है। अब ऐसे कहने से, बातचीत करने से इस जमाने में विश्वास नहीं करता। कोई इसको मान नहीं सकता। लेकिन जैसे मैंने आपसे पहले भी बरताया है, कि अभी लंडन में, हाल ही में मैंने एक चित्र देखा था, जिसमें उन्होंने सल्फर डाय ऑक्साईड के मॉलेक्यूल्स दिखाये थे । उसमें दिखाया कि सल्फर और ऑक्सिजन के बीच में, उसके अणुओं के बीच में जो बंध है, बाँड है, उनमें कोई परम जो है जिसे ये लोग भी , साइंटिस्ट भी वाइब्रेशन्स ही कहते है। आँखों देखी बात है। आँखो से आप भी देख सकते है। अणु और रेणुओं की स्थिति ये साइंटिस्ट बता सकते हैं कि ये अणु क्या हैं और रेणु क्या हैं? वो किस तरह से हैं? वो किस तरह से स्थित है ? जड़ त्त्व का पता साइंटिस्ट लगा सकते हैं। लेकिन उस में आंदोलित होने वाला चैतन्य जिसे वो वाइब्रेशन्स कहते है उसके बारे में वो बहुत ही अनजान है और उसके बारे में वो कुछ भी बता नहीं सकते। हर एक के लिये वो तत्त्व आंदोलित हो रहा है। वो Read More …

Public Program Nagpur (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date 22nd December 1973 : Place Nagpur Public Program Type : Speech Language Hindi मेरा मतलब नागपुर के लोगों के ही सामने. बहुत पहले से ही ऐसे कुछ, सहज में ही कहना चाहिये, ऐसे कुछ समय आये, कि मुझे भाषण देने पड़े। बहुत बड़े बड़े जमावों के सामने, कहना चाहिये हजारो लोग यहाँ थे। १९३० की बात है, जब कि गांधी जी ने उपोषण किया था। मेरे पिताजी भी बड़े अच्छे वक्ता थे। आप सब उनके बारे में जानते होंगे। लेकिन उनको जरूरी काम से घर जाना पड़ा। सब लोगों ने कहा, सालवे साहब आप भाषण नहीं दीजियेगा तो सब लोग भाग जाएंगे। काम कैसे बनेगा? कहने लगे, ‘मैं तो जा रहा हूँ। मेरी लड़की जो मेरी धरोहर है उसे रख के जा रहा हूँ। और मैं लौट के आऊँगा उसके बाद भाषण दूँगा।’ लेकिन बहुत देर होगी वो लौटे नहीं। तो सब लोगों ने कहा कि, ‘भाई, वो तो आये नहीं । अब इनकी लड़की, धरोहर है उनको धरते हैं। अब कैसे होगा? भाषण कौन देगा? और चिटणीस पार्क के लोग हैं । कहीं बिगड़ गये तो पत्थर मारना शुरू कर देंगे।’ तो वहाँ एक साहब बैठे थे। उन्होंने कहा कि, ‘उन्हीं से कहिये भाषण देने के लिये, कि क्या आप भाषण देंगी?’ वो हमसे पूछे कि, ‘क्या आप भाषण देंगी?’ मैंने कहा कि, ‘हम देंगे।’ तब मेरी उमर सिर्फ सात साल की थी। उस वक्त के कुछ लोग हो तो उन्हें याद होगा कि मैंने पंधरह बीस मिनट तक काफ़ी अच्छा सा भाषण दिया था। बुढ्ढा-बुढ्टी Read More …

Public Program, Shri Dattatreya Jayanti Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date 9th December 1973 : Place India Public Program Type : Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 – 12 Hindi English Marathi || Translation English Hindi Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK श्री दत्त जयंती है। आज का दिन बहुत बड़ा है। इन्ही की आशीर्वाद से मैं सोचती हूँ कि ये आज का दिन आया हुआ है, जो आप लोगों में सहजयोग पल्लवित हुआ। सारे गुरुओं के गुरु, आदिगुरु श्रीदत्तमहाराज, उनका आज महान दिवस है। उनको मैं नमस्कार करती हूँ। उन्होंने मुझे अनेक जन्मों में सहजयोग पर बहुत सिखाया है। और उसी के फलस्वरूप इसी जन्म में भी मैं कुछ कार्य कर सकती हूँ। ‘गुरुब्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।’ आद्यशक्ति ने जब सब सृष्टि की रचना की। सारी सृष्टि की रचना करने के बाद जैसे एक राजा अपना राज्य फैलाता है और उसके बाद भेष बदल के इस संसार को देखने आता है, इस तरह आदिशक्ति भी बार बार संसार में अवतरित हुई। लेकिन चाहे शक्ति कितनी भी ऊँची हो, उसे एक मनुष्य गुरु की जरूरत है। मनुष्य का स्थान उस शक्ति से ही है। अगर शक्ति को मानव रूप धारणा करनी है, तो कभी उसे पिता के स्वरूप, कभी उसे भाई के विष्णु- महेश इन देवों से जब सारी सृष्टि की रचना की, उस वक्त इस संसार में फँसे हये लोगों को बाहर निकालने का विचार स्वरूप, कभी उसे बेटे के स्वरूप पा कर ही वो संसार में आयी। सर्वप्रथम ऐसा ही समझें कि ब्रह्मा- आदिशक्ति के मन में Read More …

Public Program Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Public Program, Sarvajanik Karyakram – Birla Kendra Date 8th December 1973 : Place Mumbai [5 first minutes of the talk is not transcribed] ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK .बीचोंबीच जाने वाली शक्ति उनसे जा कर के हमारे रीढ़ की हड्डिओं के नीचे में जो त्रिकोणाकार अंत में जो अस्थि है उसमें जा के बैठ जाती है। इसी को हम कुण्डलिनी कहते हैं। क्योंकि वो साढ़े तीन वर्तुलों में रहती है, कॉइल्स में रहती है, कुण्डों में रहती है। और जो दो शक्तियाँ बाजू में मैंने दिखायी हुई हैं, ये भी उसी त्रिकोणाकार, लोलक जैसे, प्रिजम जैसे ब्रेन में से घुस कर के और आपस में क्रॉस कर के नीचे जाती हैं। इस तरह से अपने अन्दर तीन शक्तियाँ मैंने यहाँ दिखायी हुई हैं। एक जो बीचोबीच में से जा कर नीचे बैठ जाती है और दो बाजू में जाती हैं । उसके अलावा लोलक की जो दुसरी साइड है या दिमाग की जो दूसरी साईड है उस में से भी जो शक्तियाँ जाती हैं वो दिखा नहीं रही हूँ। जिसे की हम सेंट्रल न्वस सिस्टीम कहते हैं। ये जो यहाँ मैंने तीन संस्था दिखायी हुई हैं, उसके जो बीचोंबीच संस्था है, उसे हम कुण्डलिनी कहते हैं। इसके अलावा जो संस्थायें हैं वो किस तरह से क्रॉस कर जाती हैं आप देख रहे हैं और क्रॉस करने के नाते इस में दो तरह के प्रवाह होते हैं। एक बाहर की ओर, और एक अन्दर की ओर। जो अन्दर की ओर प्रवाह जाता है, उसी से हमारे अन्दर पेट्रोल भरा जाता है। और Read More …

Public Program, Sahajyog ki Utapatti Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Sahajyog Ki Utapatti Date 7th December 1973 : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi [ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK] प्रेम की तो कोई भाषा नहीं होती है, जो प्रेम के बारे में कहा जाये। हमारी माँ हमसे जब प्यार करती है, वो क्या कह सकती है की उसका प्यार कैसा है? ऐसे ही परमेश्वर ने जब हमें प्यार किया, जब उसने सारी सृष्टि की रचना की, तब उनके पास भी कोई शब्द नहीं थे कहने के लिये। मनुष्य ही जब अपने निमित्त को, अपने इन्स्ट्रमेंट को पूरा कर लेता है, तभी भाषा का अवलंबन हो कर के हम लोग कुछ प्रभु की स्तुति कर सकते हैं। आज के लिये कोई विशेष विषय या सब्जेक्ट तुम लोगों ने मुझे बताया नहीं। क्योंकि तीन दिनों में पूरी बात कहने की है। आज उत्पत्ति पे मैं कुछ कहूँगी। मेरा जो कुछ कहना है वो हायपोथिटिकल है। हर एक साइन्स में पहले हायपोथिसिस है। हायपोथिसिस का मतलब है अपनी जो कुछ खोज है उस खोज के बारे में उसकी विचारणा जनसाधारण के सामने रखी जायें । उसके बाद देखा जाता है कि जो कुछ कहा गया है उसमें सत्य कितना है। फॅक्ट कितना है, फॅक्च्युअल कितना है। जिस दिन वो चीज़ सिद्ध हो जाती है उसी दिन लोग उसे साइन्स के कायदे या लॉ समझते हैं। उसी तरह मेरा कहना ही आप लोगों के लिये, अधिकतर लोगों के लिये बिल्कुल हायपोथिटिकल है। लेकिन उसकी सिद्धता भी हो सकती है और दिखायी जा सकती है। इसके अलावा आदिकाल से अनेक द्ष्टाओं ने जिसको Read More …

Public Program, Bholapan, Innocence (भारत)

Public Program, Bholapan, Innocence मैंने आपसे बताया था पहले भाषणों में, पहली चीज़ जरूरी है सहजयोग में वो है प्रेम। जो आदमी प्रेम नहीं कर सकता वो सहजयोग में उतर नहीं सकता। और प्रेम का भी थोड़ा बहुत आप से बताया था। उसके बाद मैंने कहा था, पवित्रता। जो आदमी पवित्रता की भावना नहीं रखता है, वो भी आदमी सहजयोग में उतर नहीं सकता। आदिकाल से पवित्रता की भावनायें चलती आयीं हैं। उन्हीं को ले कर मैंने कहा है । आज तीसरी बात बताना है, खास कर रियलाइज्ड लोगों के लिये कि रियलाइजेशन हमारा नया जन्म है। जब बच्चा जन्मता है, कोई भी बच्चा आप देखिये, संसार की कोई भी जाति का हो, चाहे वो जपानी हो, चाहे वो अफ्रिकन हो, चाहे वो अमेरिकन हो, उस बच्चे में एक चीज़ सब में होती है और वो है उसकी अबोधिता, उसका इनोसन्स। बच्चे की विशेषता है इसका इनोसन्स । इसलिये रियलाइज्ड आदमी तभी कहलाया जायेगा जब वो पूरी तरह से इनोसन्स में उतर जायें | वैसे भी जो बहुत चालाक लोग होते हैं, चातुर्य बहुत ज्यादा होता है और जिनकी बुद्धि बड़ी तल्लख होती है और हजार आदमिओं को ठग लेने में और झूठ बोलने में, चालाकी दिखाने में बड़े तरबेज़ होते हैं, ऐसे लोग सहजयोग के लिये बिल्कुल बेकार होते हैं। इसलिये जो लोग काफ़ी ठगाये गये हैं दुनिया में और सताये गये हैं, वो सहजयोग के लिये बहुत ठीक हैं। संसार में चाहे वो बहुत यशस्वी लोग न हो, लेकिन सहजयोग में वो बहुत ही ज्यादा यशस्वी हैं। अबोधिता Read More …

Atma Sakshatkar ka Arth (Understand your importance) मुंबई (भारत)

1973-09-03 Atma Sakshatkar ka Arth 1973 Mumbai (Incomplete HIndi transcript is only from 30 min onwards..first 30 min transcript is missing) इसी तरह से जब आगे हो जाएंगे तो इसमें ना तो कोई शैतान रह जाएगा ना कोई बुरा रह जाएगा | जो आपके सामने आएगा वो आपके प्यार में घुलना ही चाहिए और नहीं घुले तो वो भाग जाए ऐसी जिस दिन दशा आएगी उस दिन फिर आपको इस protection (कवच)की जरूरत नहीं रहेगी | और protection के बहुत सारे तरीके आप ही लोगों ने ढूंढ के निकाले हैं । उसमें से कुछ तरीके जो हैं आप चाहें तो ये लोग बता सकते हैं आपको कोई भी उठ करके जो जो ये लोग इस्तेमाल करते हैं या आप इनसे पूछ सकते हैं । जैसे फोटो पे लेना, पैर से निकालना, पानी से निकालना, अपने ही को अपना बंधन डालना आदि नाम different – different (भिन्न – भिन्न) नाम लेना वगैरह-वगैरह बहुत सारे सब कुछ प्रकार है । उसके मामले में आप चाहें तो इन लोगों से अगर बात करें तो ये लोग सब बता सकते हैं । लेकिन realized आदमी को ध्यान में आते वक्त पहले बैठ करके देखना चाहिए कि माताजी से ये जो आ रहा है उसमें कहीं हमारी कोई पकड़ है क्या ? हमें vibrations (चैतन्य लहरीयाँ )आ रहे हैं या नहीं ? अगर vibrations रुक गए हैं तो उसे निकालने दो । उसको कैसे निकालना चाहिए, क्या करना चाहिए, शरद यह बता सकते हैं । ये लोग बता सकते हैं किस तरह से बंद हुए Read More …

Guru Purnima, Sahaja Yoga a New Discovery मुंबई (भारत)

Guru Purnima Puja. Mumbay (India), 1 June 1972. Transcript Scanned from Hindi Chaytanya Lahari वास्तविक जो चीज स्थित है, जो है ही उसका अविष्कार कैसे होता है? जैसे कि कोलम्बस हिन्दुस्तान खोजने के लिए चल पड़ा था तब क्या हिन्दुस्तान नहीं था? यदि नहीं होता तो खोज किस चीज की कर रहा था। सहजयोग तो है ही पहले ही से है। इसका पता सिर्फ अभी लगा है। सहजयोग, ये परम तत्व का अपना तरीका है। यह एक ही मार्ग है, मानव जाति को उत्क्रान्ति (Evolution) के उस आयाम में उस (Dimension) में पहुँचाने का एक तरीका है, एक व्यवस्था है, जिससे मानव उच्च चेतना से परिचित हो जाए. उस चेतना से आत्मसात हो जाए जिसके सहारे ये सारा संसार, सारी सृष्टि और मानव का हृदय भी चल रहा है। बहुत कुछ इसके बारे में लिखा गया है, पुरातन कालों से ही खोज होती रही, मनुष्य खोज कुछ रहा ही है हर समय, चाहे वो पैसे में खोज ले, चाहे वो सत्ता में खोज ले चाहे वो प्रेम में खोज ले, वो किसी न किसी खोज की ओर दौड़ रहा है। लेकिन उस खोज के पीछे में कौन सी • प्यास है वो शायद वो जानता नहीं। इसके पीछे में सिर्फ आनन्द की खोज है, आनन्द की खोज में वो सोचता है कि बहुत सी गर सम्पत्ति इकट्ठा कर ले तो उस आनन्द में लय हो सकता है। लेकिन ऐसे भी देश अनेक हैं जिन्होंने सम्पत्ति में बहुत कुछ प्रगति कर ली, बहुत कुछ पा लिया है और अत्यन्त दुखी हैं। Read More …