Sahajyog, Kundalini aur Chakra मुंबई (भारत)

Sahajyog, Kundalini aur Chakra, Mumbai, India 30-01-1978 सहजयोग, कुण्डलिनी और चक्र मुंबई, ३० जनवरी ७८  ये सहज क्या होता है? आप में से बहुतों को मालूम भी है । नानक साहब ने बड़ी मेहनत की है और सहज पर बहुत कुछ लिखा है । यहाँ आप लोगों पर बड़ा वरदान है उनका। लेकिन उनको कोई जानता नहीं है, समझता नहीं। सहज’ का मतलब होता है स ह ज। ‘सह’ माने साथ, ‘ज’ माने पैदा होना। आप ही के साथ पैदा हुआ है। यह योग का अधिकार आपके साथ पैदा हुआ है। हर एक मनुष्य को इसका अधिकार है कि आप इस योग को प्राप्त करें। लेकिन आप मनुष्य हो तब! अगर आप जानवर हो गये तो इस अधिकार से वंचित हो जाते है या आप दानव हो गये तो भी इस अधिकार से वंचित हो जाते है। अगर आप मनुष्य है साधारण तरह से तो आप को अधिकार है कि इस योग को आप प्राप्त करें। यही एक योग है बाकी कोई योग नहीं। बाकी जितने भी योग है इसकी तैय्यारियाँ। सहजयोग के और दूसरे माने यह भी लगाते हैं हम लोग कि सहज माने सीधा, सरल, effortless, spontaneous, अकस्मात घटित होनेवाली चीज़ क्योंकि ये एक जिवन्त घटना है।  तो ऐसे गुरू जो पालना चाहते हैं उनका यह स्थान नहीं है । सीधा हिसाब हैं मैं हाथ जोड़़ती हैँ। चाहें मेरे पास दो ही शिष्य रहें मुझे कोई हर्ज नहीं। जिसको सत्य चाहिए वो यहाँ आए। पहली चीज़ जीसको सत्य नहीं चाहिए और असत्य के पिछे भागना चाहते हैं वो Read More …

Atma Ki Anubhuti मुंबई (भारत)

Atma Ki Anubhuti, 28th December 1977 [Hindi Transcription]  ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK आपसे पिछली मर्तबा मैंने बताया था, कि आत्मा क्या चीज़ है, वो किस प्रकार सच्चिदानंद होती है, और किस प्रकार आत्मा की अनुभूति के बाद ही मनुष्य इन तीनों चीज़ों को प्राप्त होता है। आत्मसाक्षात्कार के बगैर आप सत्य को नहीं जान सकते। आप आनन्द को नहीं पा सकते। आत्मा की अनुभूति होना बहुत जरूरी है। अब आप आत्मा से बातचीत कर सकते हैं। आत्मा से पूछ सकते हैं। आप लोग अभी बैठे हुए हैं, आप पूछे, ऐसे हाथ कर के कि संसार में क्या परमात्मा है? क्या उन्ही की सत्ता चलती है? आप ऐसे प्रश्न अपने मन में पूछे। ऐसे हाथ कर के। देखिये हाथ में कितने जोर से प्रवाह शुरू हो गया। कोई सा भी सत्य आप जान नहीं सकते जब तक आपने अपनी आत्मा की अनुभूति नहीं ली। माने जब तक आपका उससे संबंध नहीं हुआ। आत्मा से संबंध होना सहजयोग से बहुत आसानी से होता है। किसी किसी को थोड़ी देर के लिये होता है। किसी किसी को हमेशा के लिये होता है। आत्मा से संबंध होने के बाद हम को उससे तादात्म्य पाना होता है। माने ये कि आपने मुझे जाना, ठीक है, आपने मुझे पहचाना ठीक है, लेकिन मैं आप नहीं हो गयी हूँ। आपको मैं देख रही हूँ और मुझे आप देख रहे हैं। इस वक्त मैं आपकी दृष्टि से देख सकूँ, उसी वक्त तादात्म्य हो गया। आत्मा के अन्दर प्रवेश कर के वहाँ से आप जब संसार पे दृष्टि डालते Read More …

Prem Dharma मुंबई (भारत)

Prem Dharma Date : 23rd March 1977 Place Mumbai Type Seminar & Meeting Speech Language Hindi [Hindi Transcript] ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK बहुतों को ऐसा लगता है जब वो पहली मर्तबा देखते हैं कि ये कोई बच्चों का खेल है कि कुण्डलिनी जागरण है? कुण्डलिनी जागरण के बारे में इतना बताया है दुनिया भर में कि सर के बल खड़ा होना, दुनिया भर की आफ़त करना , और इतने सहज में कुण्डलिनी का जागरण कैसे हो जाता है ? आप में से जो लोग पार हैं, यहाँ अधिक तर तो पार ही लोग बैठे हये हैं, उनकी जब कुण्डलिनी जागरण हुई तब तो आपको पता ही नहीं चला की कैसे हो गयी! लेकिन अब जब दूसरों की होती देखते हैं तो पता चलता है कि हाँ, भाई, हमारी हो गयी। क्योंकि आप एकदम से ही चन्द्रमा पर पहुँचते हैं। कैसे पहुँचे, क्या पहुँचे पता नहीं चला। उसका कारण तो है ही और उसका उद्देश्य भी है। | फलीभूत होने का समय जब आता है तभी फल लगते हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं की बाकी जो होता रहा वो जरूरी नहीं था। वो भी था जरूरी और अब फल होना भी जरूरी है । कोई कहता है कि दस हजार वर्ष हो गये तब से तो कोई पार नहीं हुआ , अभी कैसे हो गये ? भाई, दस हजार वर्ष पहले तो चन्द्रमा पर कभी गये नहीं थे अब क्यों जा रहे हैं? और अगर जा रहे हैं तो उसमें शंका करने की क्या बात है? रामदास स्वामी ने बताया Read More …

Advice at Bharatiya Vidya Bhavan मुंबई (भारत)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी सार्वजनिक प्रवचन, भारतीय विद्या भवन, बंबई, भारत 22 मार्च 1977 भारतीय विद्या भवन में सलाह (प्रश्न और उत्तर) यह प्रकाश आप को इसलिए प्रदान किए गया है, क्योंकि आप दूसरों को प्रकाश देते हैं। यदि आप इसे दूसरों को नहीं देते हैं, तो धीरे-धीरे यह प्रकाश फीका पड़ जाता है। आपको यह प्रकाश ऐसे रास्ते पर रखना चाहिए, जहां लोग अंधकार में भटक रहे हों। इस प्रकाश को मेज के नीचे ना रखें, जहां ये बुझ जाए। आप लोग यहां आएं, अगर आप को कोई समस्या है, कोई बीमार है तब हम इस के (उपचार) बारे में भी बताएंगे, और इसी प्रकार ये लोग आप को सहज योग के विषय में बताएंगे। (श्री माताजी मराठी भाषा में – फड़के और अन्य सहज योगी वहां जाइए। उन्हे कुंडलिनी और सहज योग के बारे में बताइए। ये दो दिन में समाप्त नहीं होगा। इस में समय लगेगा। अब हमारे साथ लोग हैं जो वास्तव में बहुत ही अच्छे हैं। वे कुंडलिनी के विषय में सब कुछ जानते हैं।) उन्होंने कुंडलिनी पर पूरी तरह से महारत हासिल कर ली है। कुछ लोग हैं, आप जानते हैं, लेकिन कुछ हैं जिन्हे पांच वर्ष पूर्व आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ था, पर वो एक शब्द भी नहीं जानते। उसके विपरीत, वे ऐसे ही आ कर हम से पूछते हैं, ”मेरी मां बीमार हैं। कृपया उनका उपचार कीजिए। मेरे पिता बीमार हैं। मेरा उपचार कीजिए। मेरा ये बीमार है।” बस इतना ही। इसलिए वे किसी काम के नहीं हैं। तो इसलिए Read More …

Birthday Puja: Understanding Sahaja Yoga Through Heart मुंबई (भारत)

               54 वीं जन्मदिन पूजा, सहज योग को दिल से समझना मुंबई (भारत), 21 मार्च, 1977 … सबसे सम्मानित सहज योगी, न्यायमूर्ति श्री वैद्य और सबसे प्यारी उनकी पत्नी। श्री बख्शी, (… टेप व्यवधान…) धूमल, मिस्टर गेविन ब्राउन जो एक पुरातत्वविद् हैं, डॉ प्रमिला शर्मा, जो हिंदी की प्रोफेसर हैं और कबीर के साहित्य की विशारद हैं, और फिर श्रीमती जेन ब्राउन जो एक भूविज्ञानी हैं , वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से हैं; और हमारे बुद्धिमान चेयरमैन मिस्टर ज़चरे, दयालु गायिका श्रीमती शोभा गोटू, जो की मेहरबानी कर आयी गाने के लिए, और मराठी में उन्होंने कहा: “मैं कुछ और करने में असमर्थ हूँ, इसलिए माँ तुम्हारे लिए, मैं सिर्फ दो भजन गाऊंगी ।” सभी सहज योगी जो यहां आए हैं, अन्य सभी लोग जो हमारे यहां शामिल हुए हैं, जो मेरा यह सांसारिक जन्मदिन मना रहे हैं, मैं बहुत आभारी हूं, बहुत आभारी हूं और मैं बहुत आनंद और खुशी से भरी हुई हूँ । और मेरे स्पंदन मेरी आँखों से आंसू के रूप में बह रहे है, यह देख कर की, इस कलियुग में भी, ऐसे लोग हैं जो एक माँ के प्रति आभारी हैं जो केवल एक अमूर्त चीज़ जिसे चैतन्य के रूप में जाना जाता है प्रदान करती है। वास्तव में मैं आपको नहीं देती, मैं दे या ले नहीं सकती, आपको आश्चर्य होगा। यह मेरे माध्यम से उत्सर्जित होता है यह मेरा ‘स्वभाव’ [सहज स्वभाव] है। यह इस तरह से होना चाहिए, मैं यह स्वतःकार्य करता है; यह कार्य करता चला जाता है | सभी को प्यार Read More …

Samarpan Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

1977-01-08 Samarpan: Kuch bhi nahi karnahai (Surrender) यह निष्क्रियता है | क्या आप अपने विचारों, जो सहज नहीं हैं, के द्वारा कह सकते हैं कि यह कैसे हो सकता है? आप पीछे जाकर यह नहीं कह सकते कि मैंने कुछ नहीं किया है । आप हमेशा आगे बढ़ते हैं, आगे बढ़ते जाते हैं यह कहते हुए कि कैसे? कैसे आगे जाने का? इसी को स्वीकार कर लेना कि यह घटना चेतना की ओर होती है और चेतना ही इसको घटित करती है। हमें पूरी तरह से प्रयत्न को छोड़ देना है । जब हम अकर्म में उतरते है तब यह चेतना घटित होती है। इसका मतलब है कि आपको कुछ भी नहीं करना है। यह बहुत कठिन काम है मनुष्य के लिए । कुछ नहीं तो विचारही करता रहेगा। लेकिन यह घटना जब घटित होती है तो विचार भी डूब जाते हैं क्योंकि अभी तक जो भी आपने साधना देखी है उसमें आपको कुछ न कुछ करना पड़ता है । यह सब साधना आपको अपने से बाहर ले जाती है । सहजयोग घटना है वह अन्दर ही घटित होती है । जब लोग पुछते है कि समर्पण कैसे करना है? सीधा हिसाब है, आपको कुछ नहीं करना है। समर्पित हो गया। मनुष्य इस गति में, इस दिशा में आज तक चला नहीं इसलिए उसके लिए यह नई चीज़ है और नया मार्ग है । इसमें मनुष्य कुछ नहीं करता। अपने आप चीज़ घटित हो जाती है | क्योंकि उसने बहुत कुछ कर लिया है, बहुत कुछ दूर चला गया है Read More …

Spirits of the dead मुंबई (भारत)

[Hindi translation from English]                                    “मृतात्माएं”  बॉम्बे (इंडिया), 22 दिसंबर 1976 अब, एक आधुनिक व्यक्ति के लिए, सवाल यह होता है कि, यह विश्वास करना है या नहीं कि आत्माएं हैं या नहीं। क्योंकि यह एक बहुत ही अज्ञात क्षेत्र है। और जब तक और जहाँ तक यह पूरी तरह से खोज नहीं लिया जाता है और पता चलता है, अज्ञात क्षेत्र, हमेशा एक मतिभ्रम बनाता है कि यह कुछ दिव्य है। इसलिए हमें आत्माओं के बारे में भी जानना होगा: वे कौन हैं, वे कैसे कार्य करते हैं, और वे कैसे कार्यान्वित होते हैं। अब, कई कहेंगे कि “हम आत्माओं में विश्वास नहीं करते हैं।” चाहे आप इसे मानें या न मानें – लेकिन वे वहीं हैं। ईसा-मसीह, वह झूठे नहीं थे। उन्होंने आत्माओं को निकाल कर और उन्हें सुअर में डाल दिया। और यह वही व्यक्ति हैं जिन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से कहा है कि “आत्माओं से दूर रहो।”आत्माएं स्थिति {अस्तित्व}हैं। यदि हम बनना चाहते हैं तो हम कल आत्मा हो सकते हैं। जब हम मरते हैं, तो हम पूरी तरह से नहीं मरते हैं। केवल स्थूल पृथ्वी  तत्व, या स्थूल जल तत्व जिसने हमें … प्रकट होने के लिए बनाया है, – वह हिस्सा केवल मर जाता है, बाकी सब बना रहता है। और यह एक ऐसे क्षेत्र में चला जाता है जिसे हम प्रेतलोक (मृतकों की दुनिया) कहते हैं, जहां यह भ्रूण के आकार में आने तक छोटा और छोटा होने लगता है, या, आप कह सकते हैं, बहुत छोटा भ्रूण।यह वहां इंतजार में होता है। लेकिन Read More …

Sahajayogyanmadhe Dharma Stapna Aur Sahajayog, Dharma has to be established Within मुंबई (भारत)

Dharma Talk [Translation from Marathi to Hindi] HINDI TRANSLATION (Marathi Talk) सहजयोग का ये कार्य कितना खास है। मैं आपको पहले ही बता चूकी हूँ कि मैंने श्री गणेशजी की तरह एक नया मॉडल बनाया है तुम्हारा। ये एक नया तरीका है। और इसे विशेष रूप से आपने ग्रहण किया है। इसका कारण ये है कि आपण उसे ग्रहण करने योग्य हो। मैंने अयोग्य दान नहीं दिया है। आपकी योग्यता को मैं हर क्षण, हर पल जानती हूँ। मैं तो सिर्फ इतना कह सकती हूँ कि ये जो कुछ भी हुआ ये सब माँ के प्यार की वजह से, बहुत ही धीरे से, प्रेम से, सम्वेदनापूर्ण ये कार्य हुआ है। पर अगर आप इसके योग्य नहीं होते तो ये सम्भव नहीं होता। आज भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो इधर-उधर भाग रहे हैं । वे पागल हो गये हैं। अनादिकाल से जो भी शास्त्रों ें कहा गया है उस पर विचार तक नहीं करते हैं ये। जो कहा है, बड़े-बड़़े ज्ञानी, श्रीकृष्ण जैसे महान परमेश्वरी अवतरण से सुनकर भी वे सब कुछ छोड़कर वे लोग नयी-नयी योजनाओं से लोगों को अपने जाल में फँसाते है, उसके बारे में कोई भी विचार ये लोग नहीं करते हैं। किसी भी शास्त्र में, चाहे वो मोहम्मद साहब ने लिखा हो या फिर क्राइस्ट ने कहा हो या श्रीकृष्ण की कही गयी ‘गीता’ हो, इन सब में एक ही तत्व है कि आप अपने ‘स्व’ को समझें। अगर आप अपने अन्दर के ‘स्व’ को जानेंगे तो उसकी शक्ति से आपको लाभ होगा। पर Read More …

Sahajyog Sagalyana Samgra Karto मुंबई (भारत)

Public Program [Hindi Translation from Marathi] HINDI TRANSLATION (Marathi Talk) ऐसी विचित्र कल्पना लेकर के लोग यहाँ आते हैं। ऐसे में आपको अपनी समझदारी से चलना है। समझदारी से कार्य करना है। समझदारी तो बड़ी मुश्किल से आती है मूर्खपना तो बड़ी जल्दी से आ जाता है । ऐसे हालात में आपको अपने समझदारी को लेकर आगे बढ़ना है। मैं माँ हूँ। मैं आपकी मूर्खता और खराबियों के बारे में बताने वाली हूँ। उसे आप मत करिये, इसी में आपकी भलाई है। मैं कोई गुरु नहीं हूँ। मुझे आपसे कुछ भी नहीं चाहिए । मैं तो केवल आपकी भलाई और कल्याण चाहती हूँ। आपके हित के लिए जो अच्छा है वही में आपसे कहूँगी। इसका आप कोई बुरा न माने। अभी कुछ नये लोग आये हुए हैं। उन्हें मैं बता देती हूँ कि अगर किसी को कुछ खराब लग जायेगा तो फिर वो तो गये काम से। वाइब्रेशन्स चले जाएंगे । मैं नहीं निकालती हूँ इसे। (वाइब्रेशन्स को) आप को जो अभी आवाज आयी है वैसी ही आवाज ‘ओम’ जैसे हम कहते हैं उनकी होती है। समझ में आया क्या। मतलब ये जो एनर्जी बहती है और जब वो बहती है पर पूरी तरह से चैनलाइज्ड़ नहीं हुई होती है तब ऐसी आवाज आती है। जब यह चैनलाइज्ड़ होने लगती है तब ऐसी ‘ओम’ की आवाजें कभी अपने कानों में या फिर कभी अपने सिर में आने लगती है, तभी ये समझ लेना चाहिए कि एनर्जीपूर्ण तथा एड़जेस्ट और चैनलाइज्ड नहीं हुआ है इसलिए ऐसी आवाजें आती हैं। जब ऐसी Read More …

Public Program, Dhyan Kaise Karein, How to Meditate मुंबई (भारत)

How to Meditate, Bombay29 May 1976. …आपसे दादर में मैंने बताया था कि सहजयोग में पहले किस प्रकार [अस्पष्ट] समाधि लगती है। तादात्म्य के बाद आदमी को सामीप्य हो सकता है और उसके बाद सालोक्य हो सकता है। लेकिन तादात्म्य को प्राप्त करते ही मनुष्य का इंटरेस्ट (Interest) ही बदल जाता है। तादात्म को पाते ही साथ, मनुष्य की अनुभूति के कारण वो सालोक्य और सामप्य… सामिप्य की ओर उतरना नहीं चाहता। माने ये की जब आपके हाथ में से चैतन्य की लहरियां बहने लग गई और जब आपको दूसरों की कुंडलिनी समझने लग गईं और जब आप दूसरों की कुंडलिनी को उठा सकें, तब उसका चित्त इसी ओर जाता है कि दूसरे की कुंडलिनी देखें और अपनी कुंडली को…कुंडलिनी को समझें। अपने चक्रों..अ..चक्रों के प्रति जागरूक रहें और दूसरों के भी चक्र को समझता रहे। आकाश में भी अगर आप निरभ्र आकाश की ओर देखें या बादल हों तब भी देखें, आपको दिखाई देगा कि अनेक तरह की  कुण्डलिनी आपको दिखाई देगी। क्योंकि अब आपका चित्त कुण्डलिनी पे गया है। आपको कुण्डलिनी के बारे में जो कुछ भी जानना है, जो कुछ भी देखना है, जो कुछ भी सामिप्य है, वो जान पड़ेगा।                  बैठो…बैठो…बैठो…। बीच में आके, देर से आके, बीच में नहीं आते। चलो…।                  कुण्डलिनी के बारे में, इंटरेस्ट जो है, वो बढ़ जाता है। बाकि के इंटरेस्ट (Interests) अपने आप ही लुप्त हो जाते हैं। ऐसा ही समझ लीजिए कि आप Read More …

Nirvicharita मुंबई (भारत)

Nirvicharita “VIC Date 6th April 1976 : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi तुम लोगों को बुरा लगेगा इसलिये मराठी में बोलने दो। मैं कह रही हूँ कि तुम्हारे सामने जो भी प्रश्न हैं, उन प्रश्नों को तुम अचेतन में छोड़ो, वो मेरे पैर में बह रहा है। माने ये कि कोई भी प्रश्न , अब तुमको अपनी लड़की का | प्रश्न है समझ लो। उसमें खोपड़ी मिलाने से कुछ नहीं होने वाला। जो भी प्रश्न है वो यहाँ छोड़ दो। उसका उत्तर मिल जायेगा। अब तुम अगर सोचते हो कि इस चीज़ से लाभ होगा , वो नहीं बात। जो परमात्मा सोचता हैं तुम्हारे लिये जो हितकारी चीज़ है, वो घटित हो जायेगी । वो तुम कर भी नहीं सकते हो । इसलिये उसको छोड़ दो तुम क्यों बीच में तंगड़ियाँ तोड़ रही हो? तुम क्यों परेशान हो रही हो ? तुमको परेशान होने की कोई जरूरत नहीं। तुम छोड़ तो दो| जो तुम्हारे सारे प्रश्नों को सॉल्व करने के लिये पूरी इतनी कमिटी बैठी हुयी है, उनके पास छोड़ो तुम | सहजयोग में यही तो कमाल है, कि सर का बोझा उतर गया उनकी खोपड़ी पर। छोड़ के देखो। ऐसे कमाल होंगे, ऐसे कमाल होंगे, कि बस्। लेकिन मनुष्य की खुद्दारी की बात हो जाती है। आखिर तक वो यही सोचते रहता है कि, ‘मुझी को करना है। और सोचते रहिये, एक के ऊपर एक ताना, बाना चलता रहेगा। कितना भी आप करते रहिये। आखिर आप पाईयेगा, कि आप कहीं भी नहीं पहुँचे और पागलखाने Read More …

Seminar Day 1 (incomplete) Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

                      संगोष्ठी दिवस 1  मार्च 19, 1976, कावासजी जहांगीर हॉल, मुंबई, भारत, सहज योगी : यह 19 से 21 मार्च 1976 तक कौवासजी जहांगीर हॉल [मुंबई] में आयोजित तीन दिवसीय संगोष्ठी के अवसर पर परम पावन श्री माताजी द्वारा दी गई सलाह की रिकॉर्डिंग है। यह पहले दिन की रिकॉर्डिंग है जो कि 19 मार्च 1976। श्री माताजी : बहुत दिनों के बाद हम फिर से इस हॉल में इकट्ठे हुए हैं। जब सहज योग अपनी शैशवावस्था में ही था, तब हमने इस हॉल में एक कार्यक्रम आयोजित किया था। तब से, परमात्मा की कृपा से, सहज योगियों के मन में सहज योग बस गया है। मानो बारिश को भूखी धरती ने सोख लिया हो। सहज योग उन लोगों के लिए नहीं है जो सतही हैं और अपने भीतर और सभी साधकों वाली पूरी लगन और लालसा के साथ खोज नहीं रहे हैं। यह उन लोगों के लिए नहीं है जो पुस्तकों में ईश्वर को खोज रहे हैं। क्योंकि ईश्वर वहां नहीं है। यह उन लोगों के लिए भी नहीं है जो सोचते हैं कि वे भगवान को प्राप्त कर सकते हैं। कि वे अपने प्रयासों से, अपने चरम ‘हठ’ से, जैसा कि हम इसे ‘जिद\हठ’ कहते हैं, ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। यह उन लोगों के लिए है, जो दिल से, हर समय उससे मांगते रहते हैं। और उसकी तलाश में है, सत्य और वास्तविकता के लिए। ‘सहज’ – मैंने आपको कई बार कहा है, ‘साह’ का अर्थ है ‘भीतर’ और ‘ज’ का अर्थ है ‘आपके साथ पैदा Read More …

प्रजापति का यज्ञ मुंबई (भारत)

 प्रजापति का यज्ञ 02/03/1976 इस संसार में जो सबसे बढ़कर के माया है वो है पढ़त मूर्खों की। पढ़तमूर्ख उन्हें कहते हैं जिनके लिए कबीरदासजी ने कहा है,’पढ़ी पढ़ी पंडित मूरख भए’ और इसलिए मैं किताब लिखने में भी बहुत डरती थी। और जब किताब लिखने का सोचा भी है, तो भी ऐसे महामूर्खों के हाथ में वो नहीं पड़नी चाहिए। वो लोग उसी प्रकार हैं जिस प्रकार कोई इंसान किसी भी देश में नहीं जाता है और झूठी बातें सारी दुनिया में बताता है कि मैं वहाँ गया था और वहाँ पर ये देखा, फिर वहाँ ये था, फिर वहाँ वो था, फिर ऐसा हुआ और फिर किसी ने ये कहा था, उसने वो कहा था, अपनी कोई उनके पास प्रचिती नहीं होती। लेकिन आप जो सहजयोगी हैं आप सबको इसकी प्रचिती आयी है। आपके अंदर से vibrations फूटे हैं माने ये चैतन्य बह रहा है। आपको इसका अनुभव आया है कि चैतन्य क्या चीज़ है। आप एक बड़े भारी स्थान पर बैठे हुए हैं। वो लोग बड़े बड़े भाषण दे सकते हैं इसी चैतन्य के बारे में बता सकते हैं। बहुत बड़े श्लोक पढ़ सकते हैं। लेकिन उनको अनुभूति इतनी भी नहीं हुई और वो परमात्मा के राज्य से अभी बहुत दूर हैं, आपकी entry हो चुकी है। उसका एक विशेष कारण है, आपने पढ़ा होगा कि गणेशजी का जन्म सिर्फ उसकी माँ ने ही किया था। अपनी सृष्टि रचना से पहले ही उसने एक बेटे को जन्म दिया था। खुद माँ ने ही ये सब किया था। इसलिए Read More …

महाशिवरात्री पूजा-उत्पत्ति, आदिशक्ति और शिव मुंबई (भारत)

1976-02-29 Mahashivaratri Puja: Utpatti – Adi Shakti aur Shiva ka Swaroop, Mumbai, महाशिवरात्री पूजा-उत्पत्ति, आदिशक्ति और शिव मुंबई २९/२/७६ आप से पहले मैने बताया उत्पत्ति के बारे में क्योंकि महाशिवरात्रि के दिन जब शिवजी की बात करनी है तो उसका प्रारंभ उत्पत्ति से ही होता है इसलिए वह आदि है । पहले परमेश्वर का जब पहला स्वरूप प्रगटीत होता है, याने मॅनिफेस्ट होता है जब की वह ब्रह्म से प्रकाशित होते है, उस वक्त उन्हे सदाशिव कहा जाता है । इसलिए शिवजी जो है, उनको आदि माना जाता है। ऐसे समझ लीजिए की किसी वृक्ष को पूर्णत: प्रगटीत होने से पहले उसका बीज देखा जाता है और इसलिए उसे बीजस्वरूप कहना चाहिए । इसलिए शिवजी की अत्यन्त महिमा है। उसके बाद, उनके प्रकटीकरण के बाद उन्ही के अन्दर से शक्ति अपना स्वरूप धारण कर के आदि शक्ति के नाम से जानी जाती है। वही आदिशक्ति परमात्मा के तीनों रूपों को अलग अलग प्रकाशित करती है, जिसको आप जानते हैं । जिनका नाम ब्रह्मा, विष्णू और महेश याने शिवशंकर है। याने एक ही हीरे के तीन पह्लु आदिशक्ति छानती है । और जब प्रलय काल में सारी सृजन की हुई सृष्टि, सारा manifested संसार विसर्जित होता है, उसी ब्रह्म में अवतरित होता है, तब भी सदाशिव बने ही रहते है। और उनका सम्बन्ध परमात्मा के उस अंग से हमेशा ही बना रहता है, जो कभी भी प्रकटीकरण नहीं होता है जो की एक non-being है। परमात्मा की जो शक्तियाँ प्रकट होती है वो .being से होती है, जो नहीं होती है Read More …

Lalita Panchami मुंबई (भारत)

ललिता पंचमी पूजा    दिनांक: 5 फरवरी 1976   स्थान:  मुम्बई   प्रकार: पूजा … की हो कि उसे सुलझा सके। इतना सब होते हुए भी बार-बार इस तरह की बात बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं कि हमारा क्या फ़ायदा हुआ?  इस प्रश्न में निहित एक बहुत ही छोटी सी छुपी हुई बात है कि हमें जो कुछ मिला है उसके प्रति हमें कोई भी उपकार बुद्धि नहीं है।  ज़रा सी भी उपकार बुद्धि नहीं है कि हम सोचते हैं कि हमने क्या सहज में ही पा लिया। उपकार बुद्धि जिसे सेंस ऑफ़ ग्रेटिटूड  (sense of gratitude )अंग्रेजी में कहते हैं जब तक आपके अंदर होगा नहीं सब बात उलटी बैठती जाएगी। आज का दिन बड़ा शुभ है,ललिता पंचमी है। ललित का मतलब है सुंदर, अति सुंदर।  और ललिता गौरी जी का नाम है क्योंकि कल गणेशजी का जन्म हुआ है इसलिए आज गौरी जी का दिन मनाया जाता है।  वैसे भी आप जानते हैं कि मेरा कुंडलिनि का नाम, मतलब कुंडली का नाम ललिता है। लालित्य सौंदर्य को कहते हैं। मनुष्य वही सौंदर्य होता है, वही सुंदरतम होता है जिसमें सेंस ऑफ़ ग्रेटिटूड होती है। जिस इंसान में सेंस ऑफ़ ग्रेटिटूड ज़रा भी न हो वो इंसान पशुवत है।  पशु में भी होती है, कुत्ते में भी होती है। एक कुत्ता उसको आप थोड़े दिन पालिये-पोसिये देखिये आपको आश्चर्य होगा कि वो किस कदर वफादार होता है, वफादार होता है। जैसे ही सेंस ऑफ़ ग्रेटिटूड आपके अंदर जागृत होगा वैसे ही प्रेम के दर्शन अंदर से आने शुरू हो जाते Read More …

Public Program Balmohan Vidyamandir, मुंबई (भारत)

Public Program [Hindi Transcript] Parmatma Ka Prem Date : 26th December 1975 Place Mumbai Type Seminar & Meeting Speech Language Hindi CONTENTS | | Transcript Hindi 02 – 09 English Marathi || Translation English Hindi Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK सत्य को खोजने वाले आप सब को मेरा वंदन है। के उपरान्त जो कुछ भी कहना है, आज आप से आगे की बात मैं करने वाली हूँ। विषय था, ‘एक्सपिरिअन्सेस ऑफ डिवाईन लव’। परमात्मा के कल आप बड़ी मात्रा में भारतीय विद्या भवन में उपस्थित हये थे और उसी क्षण प्रेम के अनुभव। इस आज के साइन्स के युग में, पहले तो परमात्मा की बात करना ही कुछ हँसी सी लगती है और उसके बाद, उसके प्रेम की बात तो और भी हँसी सी आती है। विशेष कर हिन्दुस्तान में, जैसे मैंने कल कहा था, कि ये दुःख की बात है और विदेशों में साइंटिस्ट वहाँ तक पहुँच गये हैं, जहाँ पर हार कर कहते हैं, कि इससे आगे न जाने क्या है? और वो ये यहाँ के साइंटिस्ट उस हद तक नहीं पहुँचे हैं जहाँ वो जा कर परमात्मा की बात सोचें। भी कहते हैं कि ये सारा जो कुछ हम जान रहे हैं, ये साइन्स के माध्यम में बैठ रहा है, ये बात सही है। लेकिन ये कुछ भी नहीं है । ये जहाँ से आ रहा है वो ये अजीब सी चीज़ है, जिसे हम समझ ही नहीं पाते। जैसे कि केमिस्ट्री के बड़े बड़े साइंटिस्ट है, वो कहते हैं कि ये जो पिरिऑडिक लॉ जो बनाये Read More …

Parmatma Ka Prem, Type: Public Program, Place: Bal Mohan Mandir, Mumbai Language: Hindi Balmohan Vidyamandir, मुंबई (भारत)

1975-12-23 सत्य के खोजने वाले आप सब को मेरा वंदन है। कल आप बड़ी मात्रा में भारतीय विद्या भवन में उपस्थित हुए थे। और उसी क्षण के उपरान्त जो भी कहना कुछ है, आज आप से आगे की बात मैं करने वाली हूँ। विषय था, ‘एक्सपिरिअन्सेस ऑफ डिवाईन लव’ (experiences of divine love) परमात्मा के प्रेम के अनुभव । इस आज के साइन्स के युग में, पहले तो परमात्मा की बात करना ही कुछ हँसी सी लगती है और उसके बाद, उसके प्रेम की बात तो और भी हँसी सी आती है। विशेषकर हिन्दुस्तान में, जैसे मैंने कल कहा था, कि यहाँ के साइंटिस्ट अभी तक उस हद तक नहीं पहुँचे हैं जहाँ वो जा कर परमात्मा की बात सोचें। ये दुःख की बात है लेकिन और विदेशों में साइंटिस्ट वहाँ तक पहुँच गये हैं, जहाँ पर हार कर कहते हैं कि इससे आगे न जाने क्या है?  और वो ये भी कहते हैं कि ये सारा जो कुछ हम जान रहे हैं, ये साइन्स के माध्यम में बैठ रहा है, ये बात सही है। लेकिन ये कुछ भी नहीं है। ये जहाँ से आ रहा है वो एक अजीब सी चीज़ है, जिसे हम समझ ही नहीं पाते। जैसे कि केमिस्ट्री के बड़े-बड़े साइंटिस्ट हैं, वो कहते हैं कि ये जो पिरिऑडिक लॉ (periodic laws) जो बनाये गये हैं, ये समझ में ही नहीं आते कि किस तरह से बनाये गये होंगे। एक विचित्र तरह की रचना कर के इतनी सुन्दरता से एक-एक अणु-रेणु को इस तरह से रचा गया है। एक-एक अणू में एक ब्रह्मांड किस तरह से समाया गया है, ये कुछ समझ में नहीं आता। वो कहते हैं कि इनके रचना का Read More …

Keep the attention on yourself मुंबई (भारत)

Apani Or Drushti Rakhe Date 21st December 1975 : Place Mumbai : Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सहजयोगियों का प्रेम इतना अगाध है कि शब्द जितने जल्दी मिथ्या हमारे अंदर से मिटता जाता है सूझ नहीं रहे कि किस तरह से बात की जाए। उतनी ही जल्दी हम लोग उस चित्त को हलका आपको पता है कि संसार में हर जगह आज सहजयोगी उत्क्रांति की ओर, evolution की ओर चित्त परमेश्वर से जाकर मिलता है। यही चित्त उस बढ़ रहा है। बहुत से सहजयोगी बड़ी ऊँची दशा सर्वव्यापी, परमेश्वर के प्रकाश में जा कर डूब जाता में चले गए हैं। आनंद के स्रोत उनके अंदर बह रहे है । यही मानव का चित्त जो कि हम प्रकृति का रूप हैं। कुछ तो बिल्कुल निमित्तमात्र हो करके ही समझते हैं, प्रकृति का जो ये फूल है वो परमात्मा के संसार में एक विशेष रूप से कार्यान्वित हैं। लेकिन प्रेम सागर में विसर्जित हो जाता है । लेकिन ये चित्त हर एक देश की एक अपनी अपनी, मैं देखती हैं कि कितना बोझिल है, कितना अव्यवस्थित है. कभी परिपाटी है। मानव हर जगह एक ही है। इसमें कभी देखते ही बनता है। कोई अंतर नहीं है और सहजयोग एक अन्तर्तम की ही व्यवस्था है जिसका कि बाह्य से कोई सम्बंध है कितने आनंद में उतरे, आप कितने शांति में उतरे, ही नहीं। तो भी चित्त जो कि प्रकृति का एक स्वरूप है, जिसे हम कुण्डलिनी के नाम से जानते सहजयोग को Read More …

Talk to Sahaja Yogis Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

1975-0331 Advice at Bhartiya Vidya Bhavan  आप लोग जो पहले ध्यान में आये थे तो आपसे मैंने बताया था कि परमात्मा के तीन आस्पेक्ट होते हैं,  और इसी कारण उनकी तीन शक्तिया संसार में कार्य करती हैं।  पहली शक्ति का नाम महालक्ष्मी,  दूसरी का महासरस्वती, तीसरी का महाकाली।  उसमें से महाकाली की शक्ति हर एक जड़ जीव,  हर एक पदार्थ में प्रणव रूप से है।  प्रणव रूप से रहती है, माने जिसे हम अभी वाइब्रेशन कह रहे हैं जो आपके हाथ से निकले हैं, इसी रूप में। जो सिर्फ मनुष्य के ह्रदय में और प्राणी मात्र के ह्रदय में ये शक्ति स्पनदित है, पलसेट (pulsate) करती है। जब वो शक्ति जड़ चीजो में रहेती है महाकाली की वो शक्ति जो जड़ चीजो में रहेती है  तो वही प्रणव एलेक्ट्रोमेग्नटिक वाइब्रेशन  (electromagnetic vibration) की तोर पर दिखाई देता है। जब वो शक्ति जिवित चीज में जागृत होती है तब वो स्पंदन पल्सेसन की तरह से दिखाई देता है। (डॉक्टर आप के लिये खास कर बोल रहे हैं,  आज का इधर आइये) पर महाकाली की जो शक्ति है उसी शक्ति से सारी श्रुष्टि का संचार होता है।  मतलब ये है की स्थिति होती है स्थिति।  हर एक चीज होती है एक्सिस्ट (Existence) होती है। पर जिस दिन मोलेक्यूल में से उसकी ये स्थिति नस्ट होती है तो मोलेक्यूल ही नस्ट हो जाता है।  और इसी शक्ति का उपयोग  एटॉमिक एनर्जी (atomic energy) और हाइड्रोजन बोंब  ( hydrogen bomb) आदि के लिये होता है। ये शक्ति जब उलटी तरह से घुमादी जाती है तब बड़ी विनाशकारी होती है। और सारे संसार का नाश इस शक्ति से हो सकता है। जैसे कि इसका सृजन भी हो सकता है,  ये दोनों ही कार्य कर सकती है। क्योकि ये शक्ति साक्षी स्वरुप पाई गई है। इस शक्ति से परमात्मा श्रृष्टि की सारी रचना देखते रहते हैं, उसका कार्य देखते रहते हैं। आदिशक्ति की  माने प्रकृति, आदिशक्ति की इस शक्ति को ये पावस होते हैं। ये उसके अंदर अधिकार होते हैं कि चाहे तो वो उसे देखे और चाहे तो उसे बनाये।  जब उनको ये खेल और भाता नहीं, जब संसार में हाहाकार मच जाता है, जब गंदी, मैली विद्याये फ़ैल जाती हैं, अधन पतन हो जाता है, और बिलकुल Read More …

Public Program 2, Science, Trigunatmika मुंबई (भारत)

Trigunatmika Date 30th March 1975 : Place Mumbai : Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] अधिकतर प्रगल्भ है. developed है मनुष्य पूरी तरह से इन तीन शक्तियों में पूर्णतया कल मैंने आपसे बताया था, सबको सुनाई दे रहा है या नही ? पीछे में सुनाई दे रहा है ? आपसे मैंने यह बताया था कि मनुष्य का शरीर उसका मन, उसकी बुद्धि, आदि उसका जितना भी पूरा व्यक्तित्व है. उसकी जितनी भी mature हो गया है, बड़ा हो गया है। अब उसकी तैयारी हो गयी है कि उन तीनों शक्तियों का संचय, जो एक शक्ति परमात्मा का प्यार है उनका प्रेम है उसे जाने। जो एक शक्ति ही तीनों में बंट गई है वो एकाकार हो जाए. उस personality है वह सब कुछ तीन तरह के शक्ति से बना हुआ है। एक शक्ति जिससे कि हम अस्तित्व बनकर रहते हैं। वह मनुष्य में प्राण स्वरूप होती है जिसका स्थान हृदय में होता है। दूसरी शक्ति जो कि हमारे पेट में होती है जिसके कारण हमारी आज मनुष्य दशा तक उत्क्रान्ति हुई है, वह है धर्म। और तीसरी शक्ति जो एक चेतनामय है जिससे हमें बुद्धि आदि अनेक चेतना के अवलम्बन मिले हैं। लेकिन यह तीनों ही शक्तियाँ सर्वव्यापी परमात्मा के प्रेम से पाई जाती हैं। परमात्मा बन सर्वव्यापी प्रेम इन तीनों शक्तियों को संचालित करता है, समग्र बनाता है, माने integrate कर देता है। जैसे कि जड़ वस्तु में भी जो vibrations दिखाई देते हैं. जिसे electromagnetic vibrations कहते हैं. Read More …

Public Program, Science/Trigunatmika मुंबई (भारत)

1975-03-29 Public Program Sweet Home Hall Dadar Mumbai Hindi आज तक आपको मैंने काफी मर्तबा, काफी समझा के, दिखा के प्रैक्टिकल करके, आपसे पहले भी बताया था कि सहज योग क्या चीज है उसमें क्या होता है, यह कैसे घटित होता है, उसकी काफी मैंने वैज्ञानिक व्याख्या दी थी साइंटिफिक डेफिनिशन (वैज्ञानिक परिभाषा) दिए थे। आखिर जिसे हम साइंस साइंस (विज्ञान विज्ञान) कहते हैं वह मनुष्य द्वारा बनाया हुआ नहीं है। यह मनुष्य ने जो खोजा हुआ है, उसे वह साइंस (विज्ञान )कहता है, लेकिन उसने इस संसार की कोई भी चीज बनाई हुई नहीं है। उसका कोई भी नियम उसका बनाया हुआ नहीं है। कोई सा भी शास्त्र उसका बनाया हुआ नहीं है। गणित का शास्त्र भी उसका बनाया हुआ नहीं है। उसकी नियम, उसकी विधि सब परमात्मा की बनाई हुई है। जैसे कि आप देखिए एक सर्कल (circle, वृत्त) होता है और उसका जो व्यास (diameter) होता है, उसके और उस व्यास के परिधि (circumference) में जो एक रेशों (अनुपात, ratio) होता है, प्रोपोरशन (अनुपात, proportion)  होता है, वह आपने बनाया हुआ नहीं है। उसका नियम परमात्मा ने ही बनाया हुआ है। वह इससे ज्यादा होगा या इससे कम होगा ऐसा भी नहीं हो सकता है। वह जितना है, उतना ही रहेगा, वह रेशों (अनुपात, ratio)  बंधा हुआ है। सब नियम जितने बनाए हुए हैं, वह परमात्मा के बनाए हुए हैं।  आप लोगों ने, मुझ से बहुत से पूछा है कि माता जी आप साढ़े तीन (3 1/2) कुंडल क्यों कहती हैं? कुंडलिनी के साढ़े तीन (3 1/2) Read More …

Talk to Sahaja Yogis Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Updesh – Bhartiya Vidya Bhavan – II 18th March 1975 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi इसका कैन्सर ठीक कर दो। हमारी बहन का ये ठीक कर दो। क्यों आखिर क्यों किया जाये! फिर माँ को दर दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। हर एक को जा के माँगना पड़ता है। ये जो बड़े बड़े रईस लोग हैं, इनका ये है कि हमारे बहन को ठीक कर दो, हमारी माँ को ठीक कर दो। और जिस वक्त पैसा देने को आया तो, हाँ, तो चॅरिटी के मामले में तो हमसे कोई वास्ता नहीं। एक मैं बता देती हूँ कि जिन लोगों ने ऐसा काम किया है, उनको मैं ब्लैक लिस्ट कर देंगी। बड़े बड़े लोग हैं और उनका नाम भी मैं सबको बताऊंगी। और आपके सामने ऐसे लोग जरूरी आना चाहिये । सब का मैं नाम बताऊंगी। छोड़ंगी नहीं मैं किसी को। (मराठी – हे घ्या. कोणी ठेवलं? त्यांचं नाव लिहा. साइड में बातचीत) बैठो बेटा, बैठो। अपना नाम लिखा लो। रसीद भी ले लो कायदे से। इसमें से कोई भी पैसा इधर उधर जाने वाला नहीं। लिख लीजिये। कोई भी पैसा इसका हम रखना ही नहीं चाहते हैं। जो जमीन ले रहे हैं, जगह ले रहे हैं, जमीन क्या वो तो फ्लैट ही है। वहाँ पे हॉल बना रहे हैं। इसलिये वो लगा लेंगे। इधर उधर जाने का कोई सवाल ही नहीं। मेरे जाने से पहले ही सब ठीक ठाक कर देंगे वो। कोई उसमें गड़बड़ की बात नहीं है। आपका रुपया किसी Read More …

Public Program Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Updesh – Bhartiya Vidya Bhavan- 1, 17th March 1975 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi ( … अस्पष्ट) उन सब के बारे में काफ़ी विशद रूप से मैने आपको बताया है। और जिस चैतन्य स्वरूप की बात हर एक धर्म में, हर समय की गयी है उससे भी आप में से काफ़ी लोग भली भाँति परिचित हैं। उस पर भी जब मैं कहती हूँ कि आप गृहस्थी में रहते हो और आप हठयोग की ओर न जायें, तो बहुत से लोग मुझसे नाराज़ हो जाते हैं। और जब मैं कहती हूँ कि इन संन्यासिओं के पीछे में आप लोग अपने को बर्बाद मत करिये और इनको चाहिये की गृहस्थ लोग दूर ही रखें। तब भी आप लोग सोचतें हैं कि माँ, सभी चीज़ को क्यों मना कर रहे हैं।  ऐसे तो मैं सारे ही धर्मों को संपूर्ण तरह से आपको बताना चाहती हूँ। इतना ही नहीं, जो कुछ भी उसमें आधा-अधूरापन भापित होता है उसको मैं पूर्ण करना चाहती हूँ। मैं किसी भी शास्त्र या धर्म के विरोध में हो ही नहीं सकती। लेकिन अशास्त्र के जरूर विरोध में हूँ और अधर्म के। और जहाँ कोई चीज़ अधर्म होती है और अशास्त्र होती है, एक माँ के नाते मुझे आपसे साफ़-साफ़ कहना ही पड़ता है। बाद में आपको भी इसका अनुभव आ जायेगा  कि मैं जो कहती हूँ वो बिल्कुल सत्य है, प्रॅक्टिकल है। जब आप अपने हाथ से बहने वाले इन वाइब्रेशन्स को दूसरों पे आजमायेंगे, आप समझ लेंगे, कि मैं जो कहती हूँ Read More …

Public Program, Chitt apni aur rakhiye मुंबई (भारत)

Chitt Apni Aur Rakhiye   Date:5th March 1975 Place: Mumbai   Type: Seminar & Meeting speech   Language: Hindi अभी कल मैंने आपसे बताया था कि सहजयोग में जब आप पार हो जाते हैं, तो क्या चीज़ हो जाती है। किस तरह से आप गुणातीत में उतरते हैं और गुणातीत में उतर के आप किस तरह से अपनी चेतना में चैतन्य लहरियों को देखते हैं। और उनके द्वारा दूसरों का उद्धार करते हैं, ये गुणातीत का आशीर्वाद है, ये कलियुग का भी बड़ा भारी आशीर्वाद है। और इसकी भविष्यवाणी पहले बहुत बार हो चुकी है, कि कलियुग में जब बहुत से लोग परमात्मा को खोजते हुए जंगलों में, कंदरों में और बड़ी-बड़ी कठिन तपस्या में संन्यस्त भाव से वहाँ तपाचरण कर रहे थें।  उनकी भक्ति का फल, उनके पाचारण का फल कलियुग में होने वाला है।  जहाँ पर कि सहज में ही कुण्डलिनी  की  जागृति हो कर के और सामूहिक उद्धार होगा, कल्याण होगा, मंगल होगा, लोग पार होंगे। सो तो सहजयोग की बात सही है और जिसके बारे में कहा है, वो भी सही बात है, क्योंकि सहज जो है वही एक तरीका प्रकृति का है। प्रकृति का अपना तरीका कोई सा भी असहज नहीं है।  सब चीज़ सहज होती है, जैसे अपना श्वास लेना।  हर तरह का काम जो प्रकृति करती है, जीवंत कार्य, वो सारा ही सहज होता है। लेकिन सहजयोग में एक सहज होने के नाते कुछ प्रशन भी खड़े हो जाते हैं। या जिसको कहना चाहिये कि मनुष्य इतना असहज है। मनुष्य ने अपने को इतना Read More …

Public Program, Parmatma ka swarup मुंबई (भारत)

Parmatma Ka Swarup 3rd March 1975 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi एक रुपया भेज दें तो जगह खरीदने के लिये दो लाख बीस हजार रूपया चाहिये। कोई आसान काम नहीं है। इसलिये जितना बन पड़े उतना दे दें। जगह अपने ही लिये, अपने बच्चों के लिये हो जायेगी और वहाँ पर मेडिटेशन तो होगा ही लोगों का। क्यूअर भी होंगे, पार भी होंगे लोग। और बहुत बड़ा धर्म का कार्य है। अपने धर्म के लिये हम लोगों ने खर्चा ही नहीं किया है । अपने बारे में ही सोचते रहते है। सेल्फ सेंटर्ड। कोई धर्म भी करो । धर्म के बगैर संसार में कुछ अधर्म आ जायेगा। अधर्म आ जायेगा तो तुम्हारे पैसे का भी तुमको सुख नहीं मिलने वाला। तुम्हारे बच्चों का तुमको सुख नहीं मिलने वाला। किसी चीज़ का नहीं। धर्म की स्थापना के लिये वो जगह बना रहे हैं। आपको मालूम है, मुझे पैसों की बिल्कुल जरूरत नहीं। मैं खुद उसमें रुपया दंगी। मुझे किसी के भी रुपये की, पैसे की भगवान की कृपा से कोई जरूरत नहीं। लेकिन सबको इसमें मदद करनी चाहिये । बहत से लोग ऐसे हैं कि माताजी के पास आते हैं, ‘माताजी, मेरे बाप को ठीक कर दो, मेरे बहन को ठीक कर दो। मेरे भाई को ठीक कर दो।’ पचासों को ठीक करने के लिये आते हैं। लेकिन जब पैसे की बात आती है, तो रफूचक्कर! उस वक्त कोई बात नहीं। ऐसा भी करने से कोई , मैं किसी से नाराज नहीं होने वाली। ये Read More …

Two minds, lying vertically parallel on both the sides of the Sushumna Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

                         सुषुम्ना के समानांतर दोनों तरफ स्थित दो मन    मुंबई, भारत, 19-02-1975 कल मैंने आपको हमारी रीढ़ की हड्डी में कुंडलिनी की स्थिति के बारे में और यह क्यों मौजूद है, और इसके कार्य क्या हैं, बताया। ईश्वर ने मनुष्य को अपनी ही छवि में बनाया है और ये सभी चीजें जो मैंने आपको कल बताई हैं, वे सबसे पहले विराट के शरीर में निर्मित हुई हैं,  जो कि ईश्वर का वह पहलू है जिसमें वह सब जो निर्मित है, विद्यमान रहता है। लेकिन हम देखें कि, इंसानों में यह कुंडलिनी किस तरह से आई। जैसा कि मैंने कल आपको बताया था कि शरीर में तीन शक्तियां मौजूद हैं और सबसे महत्वपूर्ण मध्य वाली है जो कि महालक्ष्मी के रूप में अवतरित हुई है जिसने हमें एक अतिमानव के रूप में विकसित होने में मदद की। उस चैनल को सुषुम्ना के रूप में जाना जाता है जो मैंने आपको मध्य में दिखाया है। और नाभी बिंदु और कुंडलिनी के निवास के बीच एक दूरी है। उस चैनल का यह भाग या आप कह सकते हैं कि ऊर्जा यहाँ स्थित रहती है और कुंडलिनी, जिसका उपयोग तब तक नहीं किया जाता है जब तक कि आपको किसी ऐसे व्यक्ति से मिलने का मौका नहीं मिलता है जो आपको आत्म-साक्षात्कार दे सकता है और केवल उसी समय कुंडलिनी उठती है। ये दोनों मनोवैज्ञानिक रूप से हमारे भीतर मौजूद हैं। एक रचनात्मक शक्ति है जिसके द्वारा हम सोचते हैं, या हम अग्रचेतन मन कह सकते हैं, मन वह डाकिया है जो हर पल चेतन Read More …

Public Program, Sharirik bimariya Vibration se thik ho sakti hai Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Bimariya Chaitanya Se Thik Ho Sakti Hai Date 16th February 1975 : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi आज के लिये एक माँ के स्वरूप से मैं इस …. आयी हूँ, जिसका नाम बहुत अदुभुत है। पर हो सकता है, कि आपको विश्वास ही न हो, कि एक साधारण स्त्री, आप ही के जैसी, घर गृहस्थी में रहने वाली इस तरह की….. में कैसे आयी ? उस … का नाम है सहज मोक्ष। पहले कि हम ये जानें कि सहज क्या चीज़ है, ये जान लेना चाहिये की मोक्ष क्या है? सॅल्वेशन किसे कहते हैं? हम इस संसार में किसलिये आये? मनुष्य की उत्पत्ति क्यों हुई ? मनुष्य विशेष रूप में क्यों बनाया गया?  परमेश्वर ने एक विशेष कलाकृति से इस सुंदर जीव को क्यों इतनी सारी शक्तियाँ दी ? ये समझने के बाद ही आप जान पायेंगे कि आपका सारा अस्तित्व, आपका पूरा एक्सिसटेन्स  ही आपको अत्यंत आनंद में डुबोने के लिये हुआ है। उसके लिये परमात्मा ने बड़ी मेहनत की। अब आप में ऐसे भी लोग हो सकते हैं, कि जो ये कहेंगे कि माताजी, परमात्मा कहाँ है ? हमको उनसे मिलवाएँ  …. पहली सीढ़ी से ही शुरू करना पडता है। परमात्मा है या नहीं ये बात बहुत आसानी से समझ आती है, अगर आप साइन्स टीचर है। साइन्स में ही अब सिद्धता हो गयी हैं, कि परमात्मा हैं। आप किसी केमिस्ट्री वाले आदमी से जाकर पूछिये कि दुनिया भर के जितने भी एलिमेंट्स हैं, उनको किस प्रकार व्यवस्थित रूप से परमात्मा ने एक के Read More …

Dhyan Aur Prathna, Second Talk मुंबई (भारत)

Dhyan Aur Prathna, Second Talk सहजयोग में सबसे आवश्यक बात ये है, कि इसमें अग्रसर होने के लिये, बढ़ने के लिये आपको ध्यान करना पड़ेगा| ध्यान बहुत ज़रूरी है|  आप और चाहे कुछ भी न करें लेकिन अगर आप ध्यान में स्थित रहें, तो सहजयोग में प्रगति हो सकती है| जैसे कि मैंने आपसे कहा था कि एक ये नया रास्ता है| नया आयाम है, dimension है; नई चीज़ है जिसमें आप कूद पड़े है| आपके अचेतन मन में, उस महान सागर में आप उतर गये हैं, बात तो सही है| लेकिन इसकी गहराई में अगर उतरना है, तो आप को ध्यान करना पड़ेगा| मैं बहुत से लोगों से ऐसा भी सुनती हूँ कि “माता जी, ध्यान के लिए हमको time (समय) नहीं मिलता है|” आज का जो आधुनिक मानव है, modern man है, उसके पास घड़ी रहती है, हर समय time बचाने के लिये, लेकिन वो ये नहीं जनता है कि वो time किस चीज के लिए बचा रहा है? उसने घड़ी बनाई है वो सहजयोग के लिये बनाई है, ये वो जानता नहीं है| एक साहब मुझ से कहने लगे कि “मुझे लंदन जाना बहुत ज़रूरी है और इसी plane (हवाई जहाज) से जाना ही है और किसी तरह मेरा टिकट बुक होना ही चाहिये और कुछ कर दिजिये आप, और Air-India वालों से कह दिजिये और कुछ कर दिजिये…|” मैंने कहा ऐसी कौन-सी आफत है? आप लंदन क्यों जाना चाहते हैं? ऐसी कौन सी आफत है? क्या विशेष कार्य आप वहां करने वाले हैं? कौन सी चीज Read More …

Talk to Yogis, Must listen every day मुंबई (भारत)

मैं आज फिर से बता रही हूं कि निर्विचारिता आपका किला है….(योगियों से बातचीत, मुंबई, 25 जनवरी 1975 ) केवल एक ही तरीका है जो मैं हजारों बार बता चुकी हूं और आज फिर बता रहीं हूं कि निर्विचारिता आपका किला है। निर्विचारिता में कुछ भी आप जानें तो आप सब कुछ जान जायेंगे। जो कुछ भी आप करना चाहते हैं तो निर्विचारिता में चले जाइये। एक बार जब आप निर्विचारिता में सांसारिक कार्यों को करने लगते हैं तो आपको पता चलेगा कि यह कितना गतिशील या डायनेमिक हो चुका है। फूलों को खिलते हुये या फल बनते हुये किसने देखा है ? किसने इस संसार के जीवंत कार्यों को होते हुये देखा है? ये कार्य हो रहा है। आप इस क्रियाशीलता और जीवंत क्रिया में गति कर रहे हैं। ये सब निर्विचारिता में ही आ रहा है। जब आप वहां बैठे होते हैं तो पूरा विश्व पीला हो उठता है। निर्विचारिता में रहने का प्रयास करें। सारा कार्य निर्विचारिता के माध्यम से होता है और आपका भी होगा। अपने ही अंदर आपको गति करनी होगी। इसके लिये कोई आयु सीमा नहीं है कि अब हम बूढ़े हो चके हैं। आप बूढ़े नहीं हैं। आपका पुनर्जन्म तो अभी तीन चार वर्ष पहले ही हुआ है। अभी तो आप बहुत छोटे बच्चे हैं। ये उम्र का प्रश्न नहीं है। आपको तो बस निर्विचारिता में रहना है। यही आपका स्थान है…. आपकी शक्ति और आपकी संपत्ति है। ये आपका आकार है … आपकी सुंदरता है … आपका जीवन है …. निर्विचारिता। जैसे Read More …

Teen Shaktiya मुंबई (भारत)

TEEN SHAKTIYAN, Date: 21st January 1975, Place: Dadar, Type: Seminar & Meeting [Hindi Transcript] जैसे कोई माली बाग लगा देता है और उस पे प्रेम से सिंचन करता है और उसके बाद देखते रहता है कि देखें कि बाग में कितने फूल खिले खिल रहे हैं। वो देखने पर जो आनन्द एक माली को आता है उसका क्या वर्णन हो सकता हे! कृष्ण नाम का अर्थ होता है कृषि से”, कृषि आप जानते है खेती को कहते हैं। कृष्ण के समय में खेती हुई थी और क्राइस्ट के समय में उसके खून से सींचा गया था। इस संसार की उर्वरा भूमि को कितने ही अवतारों ने पहले संबारा हुआ था। आज कलियुग में ये समय आ गया है कि उस खेती की बहार देखें, उसके फूलों का सुगन्ध उठायें। ये जो आपके हाथ में से चेतन्य लहरियाँ बह रही हैं ये वही सुगन्‍ध है जिसके सहारे सारा संसार, सारी सृष्टि, सारी प्रकृति चल रही है। लेकिन आज आप वो चुने हुये फूल हैं जो युगों से चुने गये हैं कि आज आप खिलेंगे और आपके अन्दर से ये सुगन्ध संसार में फैल कर के इस कीचड़ के इस मायासागर के सारी ही गन्दगी को खत्म कर दे। देखने में ऐसा लगता है कि ये केसे हो सकता है ? माताजी बहुत बड़ी बात कह रही हैं। लेकिन ये एक सिलसिला है, कन्टिन्यूअस प्रॉसेस (continuous process) है। और जब मंजिल सामने आ गयी तब ये सोचना कि मंजिल क्‍यों आ गयी ? कैसे आ गयी ? कैसेहो सकता है ? जब Read More …

Talk to Sahaja Yogis, Kshma Ki Shakti Ka Mahatav, Power of Forgiveness मुंबई (भारत)

Kshama Ki Shakti Ka Mahatva IV 20th January 1975 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] कलयुग में क्षमा के सिवाए और कोई भी राक्षस है। आपके चित्त में घुसे हुए हैं । बात समझ बड़ा साधन नहीं है। और जितनी क्षमा की शक्ति में आई? अगर कोई साधु ही सिर्फ हो तो ठीक है। होगी उतने ही आप शक्ति शाली होंगे । सबको क्षमा परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्क ताम्। साधु कर दें। क्षमा वही कर सकता है जो बड़ा होता है। के साथ एक दुष्ट बैठा हुआ है तो बहुत ही प्रेम से छोटा आदमी क्या क्षमा करेगा? आज मैंने सवेरे अलग हटाना पड़ेगा कि नहीं? कितना कठिन काम कहा था कि धर्म को जानें, आपके अन्दर जो धर्म है? आप साधुता में खड़े है या आप दुष्टता में खड़े है उसको जानें। धर्म में खड़े हैं, जो आदमी धर्म में हैं यह आप पर निर्भर करता है। अगर आप साधुता खड़ा है उसकी कितनी शक्ति होती है! तो धर्म को में खड़े हैं और कोई दुष्टता चिपक रही है तो जाने। हाँ कितना सुन्दर हम धर्म में खड़े हैं, जो उसको हटा सकते हैं। लेकिन आज ऐसे अधर्म में खड़ा है वह तो अधर्मी है। उसका हमारा कितने हैं संसार में बताईए। Degree का फर्क है कोई मुकाबला नहीं है। वह तो अधर्म में खड़ा है। और जो लोग सधुता की ओर जा रहे हैं वे लोग हम तो धर्म में खड़े हुए है, Read More …

Public Program Day 3, Vibrations that is Love Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Chaitanya Date 27th March 1974 : Place Mumbai Public Program Type Speech Language Hindi [Orginal transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] कोई शंका नहीं कर सकते। जो विदित है जो दिखाई Viberations, that is love, that is दे रहा है, ये viberations क्या है? एक हैं वो knowledge, that is joy । पहला शब्द है Viberation, जिसको कि आप लहरियाँ कह सकते हैं, परम कह सकते हैं। जब कोई तार छूती है, इसमें से जो संगीत सल्फरडायाक्साइड के रेणु में जो अनन्त अणु किस चीज से Viberated हैं, इसमें Viberations क्या चीज है? इसके बारे में Science ने एक शब्द के तरंग उठते हैं, इसे आप viberations कह सकते viberations के सिवा और कुछ नहीं कहा। ऐसे मैंने पहले भी आपसे कहा था कि हमारे हृदय में जो हैं। भाषाओं का बड़ा चक्कर है। बहरहाल भाषा में उसे आप कुछ भी कहें, लेकिन साक्षात् में इसे आप देख सकते हैं। अभी हाल ही में मैं जब लन्दन में स्पन्दन हो रहा है, इसमें कौन सी शक्ति है, ये अगर डॉक्टरों से पूछा जाए तो सिवा इसके कि ये एक से थी तो वहाँ पर Electro Microscope कुछ अणु रेणुओं में, Molecules के फोटोग्राफ T.V. पर वो लोग दिखा रहे थे उसमें उन्होंने बताया एक Autnmous Nervous System है, स्वयंचालित एक संस्था के सिवाय कोई भी बात हमारे Doctor लोग sulpherdioxide का रेणु जिसमें कि एक Sulpher का अणु है और दो Oxygen के रेणु हैं, आपस में किसी बाँध से बंधे हुए हैं। आँखों से दिख रहा था, Read More …

Public Program Day 1 Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date 25th March 1974 : Place Mumbai Public Program Type Speech Language Hindi परम तत्त्व का अर्थ क्या है? वो किस तरह से सृजन करता है? ये चीज़ क्या है? इसके बारे में अनेक ग्रंथ, भाषणादि बहुत कुछ व्याख्यान संसार में हुये हैं। बहुत कुछ कहा गया है। परम शब्द परमात्मा का द्योतक है। ये परमेश्वरी शक्ति है, जो हर अणु-रेणु में वास कर के परमेश्वर का कार्य को संचलित करती है, चलाती है। अब ऐसे कहने से, बातचीत करने से इस जमाने में विश्वास नहीं करता। कोई इसको मान नहीं सकता। लेकिन जैसे मैंने आपसे पहले भी बरताया है, कि अभी लंडन में, हाल ही में मैंने एक चित्र देखा था, जिसमें उन्होंने सल्फर डाय ऑक्साईड के मॉलेक्यूल्स दिखाये थे । उसमें दिखाया कि सल्फर और ऑक्सिजन के बीच में, उसके अणुओं के बीच में जो बंध है, बाँड है, उनमें कोई परम जो है जिसे ये लोग भी , साइंटिस्ट भी वाइब्रेशन्स ही कहते है। आँखों देखी बात है। आँखो से आप भी देख सकते है। अणु और रेणुओं की स्थिति ये साइंटिस्ट बता सकते हैं कि ये अणु क्या हैं और रेणु क्या हैं? वो किस तरह से हैं? वो किस तरह से स्थित है ? जड़ त्त्व का पता साइंटिस्ट लगा सकते हैं। लेकिन उस में आंदोलित होने वाला चैतन्य जिसे वो वाइब्रेशन्स कहते है उसके बारे में वो बहुत ही अनजान है और उसके बारे में वो कुछ भी बता नहीं सकते। हर एक के लिये वो तत्त्व आंदोलित हो रहा है। वो Read More …

Public Program, Shri Dattatreya Jayanti Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date 9th December 1973 : Place India Public Program Type : Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 – 12 Hindi English Marathi || Translation English Hindi Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK श्री दत्त जयंती है। आज का दिन बहुत बड़ा है। इन्ही की आशीर्वाद से मैं सोचती हूँ कि ये आज का दिन आया हुआ है, जो आप लोगों में सहजयोग पल्लवित हुआ। सारे गुरुओं के गुरु, आदिगुरु श्रीदत्तमहाराज, उनका आज महान दिवस है। उनको मैं नमस्कार करती हूँ। उन्होंने मुझे अनेक जन्मों में सहजयोग पर बहुत सिखाया है। और उसी के फलस्वरूप इसी जन्म में भी मैं कुछ कार्य कर सकती हूँ। ‘गुरुब्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।’ आद्यशक्ति ने जब सब सृष्टि की रचना की। सारी सृष्टि की रचना करने के बाद जैसे एक राजा अपना राज्य फैलाता है और उसके बाद भेष बदल के इस संसार को देखने आता है, इस तरह आदिशक्ति भी बार बार संसार में अवतरित हुई। लेकिन चाहे शक्ति कितनी भी ऊँची हो, उसे एक मनुष्य गुरु की जरूरत है। मनुष्य का स्थान उस शक्ति से ही है। अगर शक्ति को मानव रूप धारणा करनी है, तो कभी उसे पिता के स्वरूप, कभी उसे भाई के विष्णु- महेश इन देवों से जब सारी सृष्टि की रचना की, उस वक्त इस संसार में फँसे हये लोगों को बाहर निकालने का विचार स्वरूप, कभी उसे बेटे के स्वरूप पा कर ही वो संसार में आयी। सर्वप्रथम ऐसा ही समझें कि ब्रह्मा- आदिशक्ति के मन में Read More …

Public Program Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Public Program, Sarvajanik Karyakram – Birla Kendra Date 8th December 1973 : Place Mumbai [5 first minutes of the talk is not transcribed] ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK .बीचोंबीच जाने वाली शक्ति उनसे जा कर के हमारे रीढ़ की हड्डिओं के नीचे में जो त्रिकोणाकार अंत में जो अस्थि है उसमें जा के बैठ जाती है। इसी को हम कुण्डलिनी कहते हैं। क्योंकि वो साढ़े तीन वर्तुलों में रहती है, कॉइल्स में रहती है, कुण्डों में रहती है। और जो दो शक्तियाँ बाजू में मैंने दिखायी हुई हैं, ये भी उसी त्रिकोणाकार, लोलक जैसे, प्रिजम जैसे ब्रेन में से घुस कर के और आपस में क्रॉस कर के नीचे जाती हैं। इस तरह से अपने अन्दर तीन शक्तियाँ मैंने यहाँ दिखायी हुई हैं। एक जो बीचोबीच में से जा कर नीचे बैठ जाती है और दो बाजू में जाती हैं । उसके अलावा लोलक की जो दुसरी साइड है या दिमाग की जो दूसरी साईड है उस में से भी जो शक्तियाँ जाती हैं वो दिखा नहीं रही हूँ। जिसे की हम सेंट्रल न्वस सिस्टीम कहते हैं। ये जो यहाँ मैंने तीन संस्था दिखायी हुई हैं, उसके जो बीचोंबीच संस्था है, उसे हम कुण्डलिनी कहते हैं। इसके अलावा जो संस्थायें हैं वो किस तरह से क्रॉस कर जाती हैं आप देख रहे हैं और क्रॉस करने के नाते इस में दो तरह के प्रवाह होते हैं। एक बाहर की ओर, और एक अन्दर की ओर। जो अन्दर की ओर प्रवाह जाता है, उसी से हमारे अन्दर पेट्रोल भरा जाता है। और Read More …

Public Program, Sahajyog ki Utapatti Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Sahajyog Ki Utapatti Date 7th December 1973 : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi [ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK] प्रेम की तो कोई भाषा नहीं होती है, जो प्रेम के बारे में कहा जाये। हमारी माँ हमसे जब प्यार करती है, वो क्या कह सकती है की उसका प्यार कैसा है? ऐसे ही परमेश्वर ने जब हमें प्यार किया, जब उसने सारी सृष्टि की रचना की, तब उनके पास भी कोई शब्द नहीं थे कहने के लिये। मनुष्य ही जब अपने निमित्त को, अपने इन्स्ट्रमेंट को पूरा कर लेता है, तभी भाषा का अवलंबन हो कर के हम लोग कुछ प्रभु की स्तुति कर सकते हैं। आज के लिये कोई विशेष विषय या सब्जेक्ट तुम लोगों ने मुझे बताया नहीं। क्योंकि तीन दिनों में पूरी बात कहने की है। आज उत्पत्ति पे मैं कुछ कहूँगी। मेरा जो कुछ कहना है वो हायपोथिटिकल है। हर एक साइन्स में पहले हायपोथिसिस है। हायपोथिसिस का मतलब है अपनी जो कुछ खोज है उस खोज के बारे में उसकी विचारणा जनसाधारण के सामने रखी जायें । उसके बाद देखा जाता है कि जो कुछ कहा गया है उसमें सत्य कितना है। फॅक्ट कितना है, फॅक्च्युअल कितना है। जिस दिन वो चीज़ सिद्ध हो जाती है उसी दिन लोग उसे साइन्स के कायदे या लॉ समझते हैं। उसी तरह मेरा कहना ही आप लोगों के लिये, अधिकतर लोगों के लिये बिल्कुल हायपोथिटिकल है। लेकिन उसकी सिद्धता भी हो सकती है और दिखायी जा सकती है। इसके अलावा आदिकाल से अनेक द्ष्टाओं ने जिसको Read More …

Atma Sakshatkar ka Arth (Understand your importance) मुंबई (भारत)

1973-09-03 Atma Sakshatkar ka Arth 1973 Mumbai (Incomplete HIndi transcript is only from 30 min onwards..first 30 min transcript is missing) इसी तरह से जब आगे हो जाएंगे तो इसमें ना तो कोई शैतान रह जाएगा ना कोई बुरा रह जाएगा | जो आपके सामने आएगा वो आपके प्यार में घुलना ही चाहिए और नहीं घुले तो वो भाग जाए ऐसी जिस दिन दशा आएगी उस दिन फिर आपको इस protection (कवच)की जरूरत नहीं रहेगी | और protection के बहुत सारे तरीके आप ही लोगों ने ढूंढ के निकाले हैं । उसमें से कुछ तरीके जो हैं आप चाहें तो ये लोग बता सकते हैं आपको कोई भी उठ करके जो जो ये लोग इस्तेमाल करते हैं या आप इनसे पूछ सकते हैं । जैसे फोटो पे लेना, पैर से निकालना, पानी से निकालना, अपने ही को अपना बंधन डालना आदि नाम different – different (भिन्न – भिन्न) नाम लेना वगैरह-वगैरह बहुत सारे सब कुछ प्रकार है । उसके मामले में आप चाहें तो इन लोगों से अगर बात करें तो ये लोग सब बता सकते हैं । लेकिन realized आदमी को ध्यान में आते वक्त पहले बैठ करके देखना चाहिए कि माताजी से ये जो आ रहा है उसमें कहीं हमारी कोई पकड़ है क्या ? हमें vibrations (चैतन्य लहरीयाँ )आ रहे हैं या नहीं ? अगर vibrations रुक गए हैं तो उसे निकालने दो । उसको कैसे निकालना चाहिए, क्या करना चाहिए, शरद यह बता सकते हैं । ये लोग बता सकते हैं किस तरह से बंद हुए Read More …

Shri Krishna Puja: Most Dynamic Power of Love Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

श्री माताजी निर्मला देवी 28 अगस्त, 1973 श्री कृष्ण पूजा  ‘प्रेम की अधिकतम गतिशील शक्ति’ मुंबई, भारत …ईश्वर द्वारा। उदहारण के लिए, अगर मैं सिर्फ अपने सिर को जानती हूं तो काफी नहीं है। अगर मैं सिर्फ अपनी गर्दन को जानती हूं तो काफी नहीं है। अगर मैं सिर्फ अपने पैरों को जानती हूं तो काफी नहीं है। लेकिन जितना अधिक मैं स्वयं के विषय में जानूंगी उतनी ही मैं गतिशील बन जाऊंगी, उतनी ही मै विस्तृत हो जाऊंगी। और जो कुछ महान था, या वो सारे लोग जिन्हें महान कहा गया, वह इसलिए महान हैं क्योंकि वे बहुत लोगों में रहते हैं। मुझे वातावरण में वो गर्मजोशी महसूस होती है, जैसे आप अनुभव कर रहे हैं क्योंकि आप जानते हैं वो (सहज योगी) विदेशी नहीं हैं, वो आप के भाई बहन हैं। पुराणों में ऐसी कई कथाएं हैं की, मैं उसका नाम नहीं लूंगी, लेकिन एक बार दो भाई जंगल में मिले। पर वह सोचते थे कि वो दुश्मन हैं और वो आपस में लड़ना चाहते थे। जब वो एक दूसरे को मारने के लिए आए वो एक दूसरे पर प्रहार नहीं कर पाए। फिर उन्होंने अपने तीर निकाल लिए पर तीर चले ही नहीं। इस बात से वे बहुत आश्चर्यचकित हुए, और जब उन्होंने एक दूसरे से पूंछा, ‘तुम्हारी मां कौन है’? उन्हें पता चला कि उनकी मां एक ही हैं। और तब उन्हें पता चला कि ना तो वो विदेशी हैं, ना शत्रु हैं पर वे एक ही मां का अंश हैं। इस ज्ञान ने उन्हें कितनी Read More …

On para-lok Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

                                    सार्वजनिक कार्यक्रम तीसरा दिवस   जहाँगीर हॉल मुंबई 24-03-1973 हम जागरूकता पर कुछ प्रकाश डाल सकते हैं। जैसा कि मैंने आपको पहले बताया है – एक बिंदु पर इसकी खोज को यह कहकर रोक दिया कि हम आगे नहीं जा सकते। स्वयं हमारे अस्तित्व में, हमें नकारात्मकता और सकारात्मकता अनुकम्पी और परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र में प्राप्त है। यहां तक ​​कि धर्म की खोज में, जब हम इस ओर अपना चित्त ले जाना शुरू करते हैं, तो हम इस की खोज बाहर से शुरू करते हैं। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि हमारे साथ कुछ गलत है, बल्कि यह हमारी विकसित होती आदतों से हम तक आया है। उदाहरण के लिए, एक मछली बाहर आई और सरीसृप बन गई और रेंगने लगी। इसने मिट्टी को महसूस किया, मिट्टी की कठोरता और चलना शुरू कर दिया। उसी तरह, हर विकासवादी छलांग बाहर जाने से हुई है। लेकिन अब आंतरिक विकास होना है, क्योंकि उस उपकरण के पूर्ण विकसित होने का अंतिम चरण प्रस्तुत है। वास्तव में, अब यह विकास नहीं है, बल्कि यौगिकता (जुड़ने कि क्षमता का विकास) है जिसे घटित होना है। उदाहरण के लिए, मैं एक टेप रिकॉर्डर लेती हूँ, भारत से सिंगापुर ले जाती हूं उस दौरान की रिकार्डिंग शुरू करती हूँ और फिर उसी उपकरण को उन्नत भी करना शुरू करती हूँ और फिर, मैं पुनरावृति करती हूँ (replay)। आपके भीतर जो कुछ भी आपके साथ हुआ है, उसे रिकॉर्ड कर (replay) पुनरावृति करना ही यौगिकता है। इसके साथ, हर अभिव्यक्ति के बारे में जागरूकता, जो शुरुआत में निर्जीव हो Read More …

Public Program Day 2 Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

                     सार्वजनिक कार्यक्रम   कावसजी जहांगीर हॉल मुंबई |   24-03-1973 श्री माताजी: जब हम कहते हैं कि यह जेट युग है, तो हमारा क्या मतलब है? इसका मतलब है कि हम इंसानों ने जेट के माध्यम से गुरुत्वाकर्षण बल पर विजय पाने का एक तरीका खोजा है। गुरुत्वाकर्षण बल की एक चुनौती को स्वीकार कर अब विजय कर लिया गया है। हमने, इस आधुनिक युग में न केवल एक जेट बनाया है जिसमें एक प्रोपेलर है; यदि प्रोपेलर नहीं, तो सुपरसोनिक व्यवस्था की है – बल्कि हमें अंतरिक्ष यान भी प्राप्त है जो हमें चंद्रमा तक ले जा सकता है। यह हमारी कल्पना से परे एक बहुत ही शानदार अनोखी खोज है। जब मैं एक छोटी लड़की थी, एक स्कूल में जब सभी लडकियां बैठ कर गणना करती थी की; इंसान को सबसे तेज़ ट्रेन से चाँद पर जाने में कितने साल लगेंगे। या अधिक से अधिक हवाई जहाज में – जो कि हमारे बचपन में था। और अपने जीवनकाल में, मैं देख पाती हूं कि लोग वहां पहले ही उतर चुके हैं। हम विज्ञान की मदद से बहुत आगे बढ़ चुके हैं। बाहर की अभिव्यक्ति शानदार, बल्कि हमारी समझ से परे रही है। लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब पेड़ अपने स्रोतों से परे बढ़ता है;  विशाल और बड़ा, इसके स्रोत की तलाश करनी चाहिए। अन्यथा, यह समाप्त  होने जा रहा है। यह हमारे जेट युग की समस्या है कि हम अपने स्रोतों से बहुत दूर चले गए हैं। और अब हमें उस स्रोत को देखना होगा, जिस पर हम Read More …

How the Divine is working within us? Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

सार्वजनिक कार्यक्रम, पहला दिन   जहांगीर हॉल, मुंबई 23-03-1973 श्री माताजी: उदाहरण के लिए, यदि आप किसी मेडिकल डॉक्टर से चर्चा करेंगे, तो वह आपको यह नहीं बता पाएगा कि कामेच्छा क्या है, जो कई मनोवैज्ञानिक निष्कर्षों का आधार है। यदि आप मनोवैज्ञानिक से पूछें, तो वह आपको यह नहीं बता पाएगा कि सिम्पैथेटिक और पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र के लक्षण क्या हैं। फिर, “योग शास्त्री” (योग विशेषज्ञ) का तो कोई स्थान ही नहीं है। शायद हमने कभी यह महसूस नहीं किया कि ये सभी ज्ञान एक ही स्रोत से आते हैं, वह है जागरूकता। एक ही स्रोत ये सब फूल दे रहा है और फिर भी हम अलग हो गए हैं। और हम एक दूसरे से लड़ रहे हैं, बिना यह जाने कि यह एक ही स्रोत है जिसने इतने सारे फूल खिलाए हैं। यह विघटन हमें भ्रम की ओर ले जाता है। और कलियुग, यह आधुनिक युग अपनी भ्रामकता के लिए जाना जाता है।  धर्म और अधर्म, दोनों भ्रमित हैं। सही और गलत एक उलझा हुआ विषय है. दैवीय और शैतानी भ्रमित हैं। सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमें एक वैज्ञानिक की तरह बहुत खुले विचारों वाला बनना होगा। और पता लगाएं कि परमात्मा हमारे भीतर कैसे काम कर रहा है। जीवन के विषय पर काम कर रहे कुछ जीव विज्ञानियों ने इतने कम समय में पैदा हुए जीवन के बारे में एक बहुत अच्छी थीसिस पेश की है। उन जीवविज्ञानियों के अनुसार, जब पृथ्वी सूर्य से अलग हुई तब से मानव जीवन के विकास में लगा समय, Read More …

Guru Purnima, Sahaja Yoga a New Discovery मुंबई (भारत)

Guru Purnima Puja. Mumbay (India), 1 June 1972. Transcript Scanned from Hindi Chaytanya Lahari वास्तविक जो चीज स्थित है, जो है ही उसका अविष्कार कैसे होता है? जैसे कि कोलम्बस हिन्दुस्तान खोजने के लिए चल पड़ा था तब क्या हिन्दुस्तान नहीं था? यदि नहीं होता तो खोज किस चीज की कर रहा था। सहजयोग तो है ही पहले ही से है। इसका पता सिर्फ अभी लगा है। सहजयोग, ये परम तत्व का अपना तरीका है। यह एक ही मार्ग है, मानव जाति को उत्क्रान्ति (Evolution) के उस आयाम में उस (Dimension) में पहुँचाने का एक तरीका है, एक व्यवस्था है, जिससे मानव उच्च चेतना से परिचित हो जाए. उस चेतना से आत्मसात हो जाए जिसके सहारे ये सारा संसार, सारी सृष्टि और मानव का हृदय भी चल रहा है। बहुत कुछ इसके बारे में लिखा गया है, पुरातन कालों से ही खोज होती रही, मनुष्य खोज कुछ रहा ही है हर समय, चाहे वो पैसे में खोज ले, चाहे वो सत्ता में खोज ले चाहे वो प्रेम में खोज ले, वो किसी न किसी खोज की ओर दौड़ रहा है। लेकिन उस खोज के पीछे में कौन सी • प्यास है वो शायद वो जानता नहीं। इसके पीछे में सिर्फ आनन्द की खोज है, आनन्द की खोज में वो सोचता है कि बहुत सी गर सम्पत्ति इकट्ठा कर ले तो उस आनन्द में लय हो सकता है। लेकिन ऐसे भी देश अनेक हैं जिन्होंने सम्पत्ति में बहुत कुछ प्रगति कर ली, बहुत कुछ पा लिया है और अत्यन्त दुखी हैं। Read More …

Birthday Puja (year unknown) मुंबई (भारत)

        प.पू. श्री माताजी, जन्मदिन पूजा सार्वजनिक कार्यक्रम मुंबई, भारत [योगिनियों का स्वागत गीत गाते हुए शाम ६’५५” समाप्त होता है] मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। आप सभी की बहुत मेहरबानी है कि, आप मेरा जन्मदिन मनाने आए हैं। यह सब आप लोगों की सज्जनता का काम है। आधुनिक समय में मां की देखभाल कौन करता है? आधुनिक समय की निशानी में से एक यह है कि बच्चों द्वारा माता-पिता की उपेक्षा की जाएगी। उन्हें किसी वृद्धाश्रम में रहना पड़ सकता है। लेकिन मैं यहां आप सभी को इतने प्यार से, इतने स्नेह के साथ, दूर-दूर से पाती हूं, आप अपनी मां को बधाई देने आए हैं। इस बिंदु पर शब्द रुक जाते हैं। मैं उस प्रेम को नहीं समझ सकती जो मुझ पर समुद्र की तरह इतना बरस रहा है। मैं बस एक माँ की खूबसूरत भावना में खो जाती हूँ, जिसके हजारों बच्चे हैं, जो बहुत दयालु हैं और एक अच्छे बेटे या एक अच्छी बेटी की मेरी छवि के बाद भी। हमारे यहाँ एक और महान माँ थी, इस महाराष्ट्र में जीजाबाई, जीजा माता थी। और वह वही है जिसने अपने बेटे को इस तरह बनाना सुनिश्चित किया है, कि एक दिन उसका बेटा ईश्वर का, ईमानदारी का, स्वतंत्रता का, चरित्र के राज्य को स्थापित करने में सक्षम होगा। ऐसे “युग पुरुष ” कई वर्षों में पैदा होते हैं।  यहां तक ​​कि उनका बेटा [संभाजी] भी उनके स्तर पर, उनके चरित्र पर नहीं आ सका। जिस तरह से उन्होंने कल्याण के सूबेदार की बहू Read More …