Conceive something beyond Doctor Johnson House, Birmingham (England)

                                          सार्वजनिक कार्यक्रम डॉ जॉनसन का घर, बर्मिंघम (इंग्लैंड)  31 मई 1979 [एक योगी द्वारा परिचय]: [अस्पष्ट] आध्यात्मिक व्यक्तित्व जिसने पृथ्वी पर पुनर्जन्म लिया है और उन्होने हममें से बहुतों को हमारे वास्तविक स्वरूप का बोध कराया है और मुझे आशा है कि आप सभी आज रात खुले दिमाग से यहां बैठेंगे और कोशिश करेंगे और जो वे आपको देना चाहती हैं वो प्राप्त करेंगे। और मैं केवल इतना ही कह सकता हूं कि आप बस उनके तरफ अपने हाथ रखें, आराम से बैठें और सुनें कि माताजी को क्या कहना है। [श्री माताजी बोलते हैं]: मैं बाला और फिलिप, मेरे सभी बच्चों की आभारी हूं, जो इस हॉल की व्यवस्था करने में सक्षम हुए और आप सभी को इस कार्यक्रम के लिए यहां बुलाया है।  जब भी इस धरती पर अवतार आए, उससे आधुनिक समय वास्तव में बहुत अलग है। जब क्राइस्ट इस धरती पर आए थे तब और आज जब किसी को साधकों का सामना करना पड़ता है तो इतना बड़ा अंतर है। ईसा के समय कोई साधक नहीं था, एक भी साधक नहीं था। जब वे इस पृथ्वी पर आए, तो उन्हें वास्तव में लोगों को समझाना पड़ा, उन्हें उनके लिए किसी प्रकार की समझाइश देना थी कि उन्हें इच्छा करनी चाहिए, कि परे कुछ ऐसा है जिसके लिए उन्हें प्रार्थना करना चाहिए। लेकिन आज यह बहुत अलग बात है, आज हमारे पास एक नहीं बल्कि लाखों साधक हैं; विशेष रूप से पश्चिम में, लोग खोज रहे हैं। कुछ परे की कल्पना करने की हमारी क्षमता के माध्यम Read More …

The Three Paths Of Evolution Caxton Hall, London (England)

                                             विकास के तीन रास्ते सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके)। 30 मई 1979। हम जो भी जानते हैं उससे अधिक ऊँचे जीवन के बारे में आपसे बात करने के लिए मैं यहां हूं, उस शक्ति के बारे में जो हर अन्य शक्ति को व्याप्त करती है, प्रविष्ट कर जाती है ; और उस दुनिया के बारे में जिसे शांति और आनंद की दुनिया कहा जाता है। इन सभी शब्दों के बारे में आपने पहले भी सुना होगा। लेकिन मैं यहां आपको उस यंत्र के बारे में बताने वाली हूं जो हमारे भीतर रहता है, सभी हमारे अस्तित्व में बहुत अच्छी तरह स्थापित किया गया हैं, जैसा कि आप यहां चित्र में देख रहे हैं, जो कि एक जीवंत उपकरण है, जिसे आप वास्तव में अपनी आंखों से धड़कता हुआ देख सकते हैं, जब कुंडलिनी अर्थात यह कुंडलित ऊर्जा चढ़ती है। हम पहले से ही अपने अस्तित्व में इस उत्थान का आशीर्वाद पा कर धन्य हो गए हैं, अचेतन में महत्वपूर्ण भेदन के द्वारा, हमारी पूर्ण जागरूकता में एक और नए आयाम में प्रवेश करने के लिए जिससे हम वास्तव में आपकी सभी परम तत्व जिज्ञासाओं के उत्तर पा सकते हैं। अब तक, प्राचीन भारत में, हमारे पास तीन प्रकार के आंदोलन थे। मैं नहीं जानती कि, आप उन सभी के बारे में जानते हैं या नहीं , लेकिन हमारे पास तीन प्रकार थे। और उस के प्रतिबिंब हमारे देश में प्रकट हो रहे थे, दूसरे देशों में भी। यहां तक ​​कि इंग्लैंड में भी हमारे पास ऐसे लोग हुए हैं Read More …

Seminar Day 1, tricks of false gurus London (England)

डॉलिस हिल सेमिनार दिवस 1, “झूठे गुरुओं की युक्तियां”, लंदन (यूके) 27 मई 1979. ऑडियो (टीएम, झूठे गुरु, औद्योगिक क्रांति, मसीह) श्रीमाताजी: आपके लिए यह कहना ठीक है, क्योंकि वह इसके लिए ही वहां आए थे। वह तो परिपक्व था ही। वह मेरे पास आया, और उसे प्राप्त हुआ।  सहजयोगी: मैंने पाया कि उसे बहुत सरलता से प्राप्त हो गया। जिस क्षण मैंने आपके चित्र को देखा, मैंने। …. मेरा मतलब है, मैं था…. । ….. टीएम। श्रीमाताजी: मैं इच्छा है कि उन सभी में कम से कम उतना हो जितना आपके पास है तो यह कार्यान्वित हो जायेगा। सहजयोगी: ठीक है। …  श्रीमाताजी: हाँ….  सहजयोगी: और चौबीस घंटे के भीतर …..  श्रीमाताजी: हाँ ….  सहजयोगी: यह अकस्मात चैतन्य की लहर है। ….  श्रीमाताजी: हमें उन्हें बचाना है। आप देखिए, टीएम पर…., मेरा ध्यान उस ओर बहुत अधिक है, बहुत अधिक। पिछली बार हमने उस “दिव्य प्रकाश” की समस्या का समाधान किया था। “दिव्य प्रकाश” अब चला गया है। केवल उसका भाई….! आप देखते हैं? मैं “जिनेवा” गयी थी। मैं टीएम से मिलना चाहती थी, किंतु, आप देखिये, यह वर्षा आरम्भ हुई और वह सब हुआ रात्रि में, हम नहीं गए। हम उस स्थान तक जा सकते थे, यह बेहतर होता, किंतु कोई बात नहीं। तो, उसका, उसका  भाई, मुझे जिनेवा में केंद्र तक ले गया, और कहा, “वह यही है, आपको पता है।”  मैंने कहा, “ठीक है।” मैंने बंधन डाल दिया। एक सप्ताह के भीतर ही…., वह अब जेल में है, और अब चौदह वर्ष के लिए! परमात्मा का Read More …

Sahasrara Puja: I want you to demand and ask, because I have no desire London (England)

                                 सहस्रार पूजा  डॉलिस हिल, लंदन (यूके), 5 मई 1979। तो आज बहुत महत्वपूर्ण दिन है, यह आप जानते हैं ; क्योंकि सृष्टि के इतिहास में, ईसा-मसीह के समय तक, मानव जागरूकता में, केवल पुनरुत्थान की भावना पैदा की गई थी – कि आपको पुनर्जीवित किया जा सकता है या आप का पुनर्जन्म हो सकता हैं। ऐसा यह भाव उनके साथ ही प्रकट हुआ। लोगों ने इसे पहचाना, कि यह हम सभी के साथ कभी न कभी हो सकता है। पर वह नहीं हुआ। बोध कभी नहीं हुआ। वह एक समस्या थी। और वास्तविकता में प्रवेश किए बिना आप जो भी बातें कर सकते हैं, वह कल्पना ही लगता है। तो, व्यक्ति को वास्तविकता में, सच्चाई में कूदना होगा। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था और जैसा कि मैंने आपको बताया है कि, अगर यह एक या दो लोगों के साथ हुआ भी होता तो इससे आम जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता और कोई भी इसे स्वीकार नहीं करता। और रेगिस्तान में बहने वाली छोटी- मोटी नदी की तरह यह पतली हवा में गायब हो जाती है। सत्य भी , जो भी पाया गया, उसकी कभी जड़ें नहीं थीं। और इस सच्चाई के साथ सभी प्रकार की अजीब चीजें शुरू हुईं, जिनका इन लोगों ने प्रचार किया। तो मानवीय चेतना का यह चरम बिंदु होना था कि, जहाँ वह दिव्य के साथ एकाकार  हो जाता है कि, वह अपने साथ एक हो जाए। होना ही था। और वह भी उस समय होना था, जो सबसे उपयुक्त, सबसे अच्छा समय था। Read More …

Give up Misidentifications London (England)

                   “गलत पहचान छोड़ें”  डॉलिस हिल आश्रम, लंदन (यूके)। 22 अप्रैल 1979। … और ईसा-मसीह के पैरों की सफाई होने के कारण उन्होंने कहा, “हम इतना तेल क्यों बर्बाद करें? आप इसे बेच सकते हैं और गरीबों को दे सकते हैं।” और क्राइस्ट ने कहा – अब देखो उन्होंने क्या कहा – कि क्राइस्ट ने खुद ये शब्द कहे हैं और अगर उन्हें उसी तरह वर्णित किया गया है। आप बस अर्थ देखें और जो आपको समझना चाहिए। उनका कहना है कि, “ये गरीब तो हमेशा के लिए हैं, लेकिन मैं थोड़े समय के लिए ही हूं।” आप समझ सकते हैं? उन्होंने कितने स्पष्ट रूप से कहा है कि इसमें परोपकार का कोई कार्य शामिल नहीं है। लेकिन लोग दूसरा ही अर्थ लेते हैं! मुझे नहीं पता कि आपको दूसरा अर्थ कहाँ से मिलता है? कि आपको गरीबों की देखभाल करनी चाहिए। यह तुम्हारा काम बिल्कुल नहीं है! ठीक है, अतुल? गरीबों की देखभाल करना आपका काम नहीं है। हमें जो काम करना है वह मध्य में है। जिससे हम दाएं और बाएं दोनों को किनारों पर खींच सकते हैं। आपको मध्य पथ पर ही रहना होगा! जब हम मध्य में होते हैं, तो हम सबसे पहले अपने आप को अच्छी तरह से व्यवस्थित कर लेते हैं, और फिर बाएँ और दाएँ को समाया जा सकता है। गरीब और अमीर। अति-अमीर भयानक लोग हैं! वे धूम्रपान करते हैं, वे शराब पीते हैं, वे मनहूस लोग हैं। जुआ, यह, वह, हर तरह की चीजें वे करते हैं। वे अपना जीवन बर्बाद करते Read More …

Public Program, Chitta KI Gaharai Bordi (भारत)

Public program (Hindi). Bordi Shibir, Maharashtra, India. 24 March 1979. [Hindi Transcript] आप लोग सब सहजयोग में आये हैं। कुछ लोग पहले से आये हैं, बहुत सालों से और कोई लोग नये हैं। धीरे- धीरे सहजयोग में संख्या बढ़ने वाली है इसमें कोई शक नहीं है और सत्य जो है वो धीरे -धीरे ही प्रस्थापित होता है। सत्य की पकड़ धीरे-धीरे होती है। आपके यहाँ ऐसे लोग हैं जो आठ-आठ, नौ-नौ महिनों तक सहजयोग में आते रहे और उसके बाद पार हुए। सत्य को पाने के लिये हमारे अन्दर पहले तो गहराई होनी चाहिए। पर सबसे बड़ी चीज़ है हमारे अन्दर सफाई होनी चाहिए। अब अनेक गुरुओं के बीच में जाकर के हमारा चित्त जो है वो बुरी तरह से विक्षिप्त हो जाता है । दूसरा, आजकल के समाज में जो हम घुमते हैं और नानाविध उपकरणों के कारण हमारा जो चित्त बाहर की ओर हमेशा रहता है। बाह्य की चीजें हमें दिखाई देती हैं। इन सब चीज़ों से हम कुछ प्रभावित होते भी हैं। और कुछ ये भी बात है कि, हमारे दिमाग में भर दिया गया है कि ये चीज़ें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इस वजह से जो चीज़ें बिलकुल ही महत्वपूर्ण नहीं उधर हमारा चित्त पहले जाता है और जो चीज़ें बहत ही महत्वपूर्ण हैं वहाँ हमारा चित्त नहीं जाता है। इसलिये हम ऐसी चीज़ों को इकठ्ठा कर लेते हैं जो बिलकुल बेकार हैं। जिसको कि अंग्रेजी में जंक कहते हैं, मराठी में ‘अडगळ’ कहते हैं। इस तरह का हमारा चित्त जो है वो बेकार की चीज़़ों Read More …

Sahaja Yoga & the Subtle System मुंबई (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date 22nd March 1979 : Place Mumbai : Public Program Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] आप एक बहुत सुन्दर प्रकृति की रचना हैं। बहुत मेहनत से, तो आखें हैं नहीं हम इसे कैसे जानेंगे और हमारे लिए भी यह नजाकत के साथ, अत्यंत प्रेम के साथ परमात्मा ने आप को बनाया है। आप एक बहुत विशेष अनन्त योनियों में से घटित होकर इस मानव रुप में स्थित हैं। आप इसलिए इसकी महानता जाएगी। इस प्रकार आपके अन्दर भी कोई चीज ऐसी ही बनी नहीं जान पाते क्यांकि, ये सब आपको सहज में ही प्राप्त हुआ है। यदि इसके लिए मुश्किलें करनी पड़ती, आफते उठानी पड़ती और आप इसको अपनी चेतना में जानते तो आप समझ पाते सारी चीज आपको आसानी से समझ आ जाती है। पर अगर कि आप कितनी महत्वपूर्ण चीज हैं। मनुष्य को जानना चाहिए कि परमात्मा ने हमें क्यों बनाया, इतनी मॅहनत क्यों की ? हम बत्ती कैसे आई बिजली कहां से आई, इसका इतिहास क्या है, किस लिए संसार में आये और हमारा भविष्य क्या है ? हमारा कैसे बना, तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है। लेकिन आधुनिक अर्थ क्या है? जैसा कि कल मैने कहा था कि अगर हम मशीन बनायें पर इसको इस्तेमाल नहीं करें तो कोई भी अर्थ नहीं फिर उसको हटाए। उनको कोई चीज आसानी से मिल जाए तो निलकता। लेकिन जब तक ये मेन स्रोत से नहीं लगाया जाता बड़े आश्चर्य से पूछता है हमने तो कुण्डलिनी के बारे में Read More …

Birthday Puja मुंबई (भारत)

Birthday Puja. Mumbai, Maharashtra (India). 21 March 1979. [Hindi Transcript] आज …. (inaudible-Shri Mataji is describing what day it was) है। मेरा मन उमड़ आता है। आज तक लगातार बम्बई में ही ये जन्मदिवस मनाया गया। बम्बई में बहुत मेहनत करनी पड़ी है, सबसे ज्यादा बम्बई पर ही मेहनत की। लोग कहते भी हैं कि,”माँ, आखिर बम्बई में आपका इतना क्या काम है?“ पहले तो यहाँ पर रहना ही हो गया था, लेकिन बाद में भी बम्बई में काम बहुत हो सकता है, ऐसा मुझे लगता है। हालांकि बम्बई पे कुछ छाया सी पड़ी हुई थी। अभी दिल्ली में थोड़ा सा भी काम बहुत बढ़ जाता है| देहातों में भी बहुत काम हुआ है, हजारों लोग पार हो गये हैं, इसमें कोई शक नहीं। लंडन (London) जैसे शहर में भी बहुत काम हुआ है। लेकिन बम्बई के लोगों पे कुछ काली छाया सी पड़ी हुई है। मेरे ख्याल से पैसे के चक्कर बहुत जरुरत से ज़्यादा, बम्बई के लोगों में हैं। बड़ी आश्चर्य की बात है कि बम्बई में सालों लगातार मेहनत की है हमने, और सबसे कम सहजयोगी बम्बई शहर में हैं। इसका कोई कारण समझ में नहीं आता है। बहुत बार मैं सोचती हूँ और जब लोग मुझ से पूछते हैं कि, “माँ, आप बम्बई पे इतना क्यों अपना समय देती हैं? आखिर बम्बई में कौनसी बात है?” हालांकि शहरों से मैं बहुत घबराती हूँ। शहरों के लिए तो ठग लोग काफ़ी तैयार हो गये क्योंकि आप की जेब में पैसे हैं और ठग आपको ठगना चाहते हैं। Read More …

Vishuddhi Chakra New Delhi (भारत)

Vishudhi Chakra (Hindi). Delhi (India), 16 March 1979. विश्व के लोग हमारी ओर आँखें किये बैठे हैं  कि भारतवर्ष से ही उनका उद्धार होने वाला है, तब तक नहीं पा सकेंगे। और हमारी ये हालत है कि एक साधारण सा व्यवहार जो होता है, वो भी नहीं है। कल मैंने आप से कहा था कि मैं आपको हृदय में बसे हुए शिवस्वरूप सच्चिदानंद आत्मा के बारे में बताऊंगी आज। लेकिन सोचती हूँ कि आखिर में ही बताऊंगी जब सारे ही चक्र बता चुकुंगी, वो अच्छा रहेगा। हालांकि उनको पहले से आखिर तक, अपनी दृष्टि वहीं रखनी चाहिये। बाकी जो भी चक्र हैं, एक उनके चक्र को जानने से ही ठीक हो जाते हैं। इन तीन हृदय चक्र के तीन हिस्सों से उपर एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण चक्र है, जिसे हम लोग विशुद्धि चक्र कहते हैं, विशुद्धि चक्र। जहाँ पे हमारा कंठ होता है, इसके बराबर पीछे में ये चक्र होता है। अब इसके लिये आप एक्झॅक्टली (exactly) किसी के लिये नहीं कह सकते हैं कि ये यहीं होता है। क्योंकि ये बड़ी ही सूक्ष्म चीज़ है, थोड़ा ऊँचे, नीचे होता ही है। जैसी-जैसी मनुष्य की प्रकृती होती है और जैसे-जैसे उसका फॉर्म होता है, वैसे ही इसकी चक्र की भी स्थितियाँ उस तरह से थोड़ी बहुत आगे-पीछे होती हैं। कभी कभी एक इंच का भी फर्क होता है। इसलिये आप ये नहीं कह सकते, कि ये बराबर उस जगह ही होगा। थोड़ा सा मैंने देखा है, किसी का ऊपर होता है, किसी का नीचे होता है। किसी का और भी Read More …

Advice to Delhi Yogis New Delhi (भारत)

Advice to Delhi Yogis (Hindi). Delhi (India), 15 March 1979. हर जगह के अपने वाइब्रेशन्स होते है दिल्ली, १५.३.१९७९ देलही के निवासियों ने सहजयोग में जो मेहनत की है वो बहुत प्रशंसनीय है क्योंकि आप जानते हैं कि सहजयोग में हमारे कोई भी मेंबरशिप नहीं है, कोई रूल्स नहीं है, कोई रेग्युलेशन्स नहीं है, ना ही कोई हम लोग रजिस्टर रखते हैं और ऐसी हालात में कुछ लोग इससे इतने निगडित हो जायें और इसके साथ इतने मेहनत से काम करें और ये सोंचे कि एक जगह ऐसी होनी चाहिए जहाँ सब लोग आ सके। अभी तो इनके घरों में ही प्रोग्राम होते हैं। तो इन्होंने मुझसे कहा था। मैंने कहा, ‘अच्छा देखो भाई, अगर कोई मिल जाये तुमको कोई जगह तो ठीक है। सबके दृष्टि से जो भी होना है वो अच्छा ही है।’ पर मेरे विचार से देहली के लोगों में ही ज्यादा परमात्मा का आशीर्वाद कार्यान्वित हुआ है। क्योंकि इस तरह से इन लोगों ने बहुत काम किया है कि देख कर बड़ा आश्चर्य होता है और जगह में तो बहुत कोशिश करने पर भी कुछ नहीं हो पाया है। ये सब आप ही का अपना है। आप ही के लिये जगह बनी हुई है और आप ही वहाँ रहेंगे और आप ही उसको इस्तेमाल करें, उसका उपयोग करें। लेकिन ये जरुरी है कि एक उसका न्यूक्लिअस होना चाहिए, एक जगह होनी चाहिए जहाँ गणेश जी की स्थापना होनी चाहिए। इस तरह की एक जगह होना जरूरी होती है। क्योंकि हर जगह के अपने- अपने वाइब्रेशन्स होते Read More …

Shri Mataji commenting on Early SY Experiences New Delhi (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date : 14nd March 1979 Place : Mumbai Туре Public Program [ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] आप एक बहुत सुन्दर प्रकृति की रचना हैं। बहुत मेहनत से, तो आखें हैं नहीं हम इसे कैसे जानेंगे और हमारे लिए भी यह नजाकत के साथ, बनाया है। आप एक बहुत विशेष अनन्त योनियों में से घटित होकर इस मानव रुप में स्थित हैं। आप इसलिए इसकी महानता जाएगी। इस प्रकार आपके अन्दर भी कोई चीज ऐसी ही बनी नहीं जान पाते क्योंकि, ये सब आपको सहज में ही प्राप्त हुआ हुई है। पूरी तरह से तैयारी कर परमात्मा ने रखी हुई है। उसको है। यदि इसके लिए मुश्किलें करनी पड़तो, आफते उठानी पड़ती जगाना मात्र है। जब आप आलौकित हो जाते हैं तो सारी की और आप इसको अपनी चेतना में जानते तो आप समझ पाते सारी चीज आपको आसानी से समझ आ जाती है। पर अगर कि आप कितनी महत्वपूर्ण चीज हैं। मनुष्य को जानना चाहिए कि परमात्मा ने हमें क्यों बनाया, इतनी मंहनत क्यों की? हम किस लिए संसार में आये और हमारा भविष्य क्या है ? हमारा कैसे बना, तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है। लेकिन आधुनिक अर्थ क्या है? जैसा कि कल मैने कहा था कि अगर हम मशीन बनायें पर इसको इस्तेमाल नहीं करें तो कोई भी अर्थ नहीं फिर उसको हटाए। उनको कोई चीज आसानी से मिल जाए तो निलकता। लेकिन जब तक ये मेन स्रोत से नहीं लगाया जाता बड़े आश्चर्य से पूछता है हमने तो कुण्डलिनी के Read More …

Mooladhara New Delhi (भारत)

Public program, Mooladhara (English & Hindi). Delhi, India. 12 March 1979. मूलाधार (परमात्मा की और आत्मा की उपलब्धि) दिल्ली, १२ मार्च १९७९ उसके लिए कुछ न कुछ घटना अन्दर होनी चाहिए, कुछ हॅपनिंग होनी चाहिए। ऐसा मैंने सबेरे बताया था आपसे मैंने। दूसरी और एक बात बहुत जरूरी है, कि परमात्मा की और आत्मा की उपलब्धि अगर एक-दो लोगों को ही हो, सिलेक्टेड लोगों को हो, और सर्वसामान्य अगर इससे अछूते रह जाये तो इसका कोई अर्थ ही नहीं निकलता । परमात्मा का भी कोई अर्थ नहीं लगने वाला , ना इस संसार का कोई अर्थ निकलने वाला है। इस क्रिएशन का भी कोई अर्थ नहीं निकलने वाला। ये उपलब्धि सर्वसामान्य की होनी ही चाहिए। अगर ये सर्वसामान्य की न हो और बहत ही सिलेक्टेड लोगों की हुई तो वही हाल होगा जो सब का हआ। जो ऐसे रहे उनको कभी किसी ने माना नहीं । और मानने से भी क्या होता है ये बताईये मुझे! समझ लीजिये कि कोई अगर बड़े राजा हैं, तो राजा हैं अपने घर में, हमको क्या ? हमको तो कुछ मिला नहीं। हमको भी तो मिलना चाहिए। तब तो उसका मतलब होता है। इसलिये ये घटना घटित होनी ही चाहिए। इतना ही कुछ नहीं, ये सर्वसामान्य में अधिक होना चाहिए। काफ़ी लोगों में होना चाहिए। साइन्स का भी मैंने बताया ऐसा ही तरीका होता है की कोई आप एक, बिजली का आपको पता लग गया, जिसको पता लगा होगा, वो अगर सर्वसामान्य के लिये नहीं उपयोग में आयेगी तो उस बिजली का क्या मतलब! Read More …

Talk about Gandhi New Delhi (भारत)

Talk about Gandhi. Mumbai, Maharashtra, India. 11 March 1979. बिल्कुल सामने आ रहा है ,जो बताया गया है ,  विशुद्धि चक्र के बारे में I अब इसी विशुद्धि चक्र से ही collective conciousness की  सीढ़ी है Iमैंने कहा था कि कृष्ण को पूर्ण अवतार माने क्योंकि ये विराट है विराट वो शक्ति है जिसमें संपूर्ण समावेश है ह्रदय में शिव जी की शक्ति है और पेट में गुरुओं की शक्ति है और स्वाधिष्ठान चक्र में ब्रह्मा देव शक्ति है ब्रेन में ब्रह्मा देव की शक्ति है आप कह सकते हैं और जब विराट जागृत हो जाता है जब  विराट का सहस्त्रार खुलता है तब इसके अंदर बसे हुए अनेक cell का पेशियों का भी सहस्त्रार खुलता है I Bible मैं कहा जाता है  परमात्मा ने मनुष्य को अपने जैसा बनाया अपना इमेज बनाया है और ये बात सही है जैसे विराट हैं वैसे ही संपूर्ण आप हैं, फर्क इतना ही है कि वो करता है और आप बनाए गए हैं इतना ही अंतर है उन्होंने बनाया और आप बनाए गए हैं Iअब वो चाहते हैं कि आप उनसे परिचय करें उनकी चाह  है उनकी चाहत में आपको बनाया है Iऔर आप को बनाने के बाद वो चाहते हैं कि आप उन्हें जाने उनकी इच्छा है जब ये उनकी इच्छा है तो वो होकर रहेगी उसके लिए भी उन्होंने पूरी व्यवस्था करके रखी है अपने अंदर पूरा Instrument बनाया है पूरी चीज बनाई है Iमैंने आपको बताई थी आज सवेरे और अब सिर्फ इतना करने का है कि आपको उनसे संबंधित Read More …

Seminar Day 2 New Delhi (भारत)

Seminar in Delhi (India), 10 March 1979. भारतवर्ष योगभूमि , सेमिनार दिल्ली, १०/३/१९७९ आज सबेरे मैंने आपसे बताया था अंग्रेजी में कि परमात्मा ने हमें जो बनाया है, आप इसे माने या न माने, उसका अस्तित्व आप समझे या न समझे वो है। और उसने हमें जिस प्रकार बनाया, जिस तरह से बनाया है वो भी | एक बड़ी खूबी की चीज़ है। मैंने सबेरे बताया था कि कैसे बहुत थोड़े से समय में एक अमीबा जैसे प्राणी से मनुष्य बनाया गया। और आप को मनुष्य बनाया गया सो क्यों? और आगे इसका क्या होने वाला है या ऐसे ही भटकता रहेगा? मैंने बताया कि आपको भगवान ने स्वतंत्रता दे दी है। चाहे तो आप परमात्मा को पायें और चाहे तो आप शैतान के राज्य में जायें। ये आपकी स्वतंत्रता है। इसके लिए कोई भी आप पर, कोई भी आप पर परमात्मा का बंधन नहीं । अगर आप गलत रास्ते जाएंगे तो आप पर वहाँ के जो कुछ भी कृपायें हैं वो होंगी। और जो आप सही रास्ते जाएंगे तो सही रास्ते का जो भी आशीर्वाद है वो आपको मिलेगा । गलत और सही जानने के लिए भी बहुत बड़ी-बड़ी हस्तियाँ संसार में आयीं, उनको हम ‘अवतार ‘ कहते हैं, अवतरित हैं। बड़े-बड़े गुरु इस संसार में आयें जो असली गुरु थे। वो जब भी आये उन्होंने सही रास्ता, धर्म का रास्ता बताया कि आप कायदे से रहिये, बीचो-बीच रहिये, अति न करिये। धर्म के नाम पर जब -जब कोई-कोई संकट आये और जब ये देखा गया कि संसार से Read More …

How to Realise the Self New Delhi (भारत)

Seminar “How to Realise the Self”. Delhi (India), 8 March 1979. Shri Mataji: For the very first time? [ Hindi ? ] First time ? [ Hindi ? ] Please come. Just come forward. [ Hindi ? ] Please keep your hands like this. What are you doing? Yogi: [ ? ] Shri Mataji: [ Hindi ? ] What am I to speak? I don’t know. Yogi: How to realize Self? Shri Mataji: [Hari ?] – how to realize Self? [Loudspeaker hain – more Hindi ?]. Yogi: [ ? ] Shri Mataji: This is a very nice question, “How to realize the Self?” The first word – how. [On this ?] one can say, that Self can be realized and is to be realized, will be realized. But you cannot realize Self. You cannot. You have become a human being from amoeba. How did you become? What did you do? You got it just as a blessing from God. In the same way, Self-Realization is also the blessing of God. It is spontaneous. It is a living thing. Anything living happens spontaneously, by itself. Do you ever say – how am I to sprout the seed? It will sprout by itself. Why? Because all the mechanism, all the energy that is required for it to sprout is embedded in it, is built in it. In the same way, all that is required to reach to your Self is embedded within you. It is waiting there for that moment when it Read More …

Seminar (भारत)

Seminar (Hindi). Dheradun, UP, India. 4 March 1979. परमात्मा सब से शक्तिशाली है देहरादून, ४ मार्च १९७९ आज मैंने आपसे सबेरे बताया था कि कुण्डलिनी के सबसे पहले चक्र पे श्री गणेश जी बैठते हैं, श्री गणेश का स्थान है और श्री गणेश ये पवित्रता के द्योतक हैं। पवित्रता स्वयं साक्षात ही है। वो तो पहला चक्र हुआ। और ये चक्र जो है कुण्डलिनी से नीचे है वो कुण्डलिनी की रक्षा ही नहीं करता है, लेकिन वो लोग जो कुण्डलिनी में जाते हैं उनसे पूरी तरह से सतर्क रहते हैं। इस रास्ते से कोई भी कुण्डलिनी को नहीं छू सकता है। आज सबेरे मैंने आपसे बताया था कि इस रास्ते से जो लोग कोशिश करते हैं वो बड़ा ही महान पाप करते हैं। हालांकि उससे थोड़ा बहुत रुपया-पैसा कमा सकते हैं। लेकिन अपने लिए जो पूँजी इकठ्ठी करते हैं, वो सारी ही एक दिन बहुत कलेशकारी हो जाती है। जो दूसरा चक्र है, जिसे मैंने स्वाधिष्ठान चक्र आपसे बताया था । इससे हम विचार करते हैं क्योंकि जब हम बुद्धि से विचार करते हैं, जब हम अपने दिमाग से विचार करते हैं, उस दिमाग की जो मेध है इसे फैट ग्लैड्यूस कहते हैं, जो चर्बी है, वो चर्बी पेट की चर्बी से बनती है। पेट की चर्बी को ये चक्र सर की च्बी बनाता है इसलिए विचार करते वक्त, इस चक्र पर बहुत जोर पड़ जाता है। और जब विचार करने की आपको आदत लग जाती है, जैसे की आजकल के आधुनिक लोगों को विचार करने की आदत एक बीमारी Read More …

Chakro Per Upasthit Devata Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

1979-0117 सभी चक्रों पर देवताओं का प्रोग्राम [हिंदी] भारतीय विद्या भवन, मुंबई (भारत) सार्वजनिक कार्यक्रम, “सभी चक्रों पर देवताओं का प्रोग्राम” (हिंदी). भारत विद्या भवन, मुंबई, महाराष्ट्र, भारत. 17 जनवरी 1979। (एक आदमी से बातचीत) ‘आ रहे हैं अब? नहीं आ रहे है न? सिगरेट पीते थे आप?’ ‘कभी नहीं! ‘कभी नहीं पीते थे ? या मंत्र कोई बोले होंगे?’ ‘पहले बोलता था अब विशेष नहीं। ‘वहीं तो है न ! आप देखिये, आप मंत्र बोलते थे, आपका विशुद्धि चक्र पकड़ा है। विशुद्धि चक्र से आपको अभी मैं दिखाऊँगी, आपको अभी मैं बताऊँगी। ये देखो, ये दो नसें यहाँ चलती हैं, विशुद्धि चक्र में ही ये विशेषता है और किसी चक्र में नहीं। ये दोनों नसें यहाँ से चलती हैं। नाड़ियाँ हैं ये दोनों। इसलिये जब आप हाथ मेरी ओर करते हैं तो हाथ से जाता है। हाथ में ही दो नाड़ियाँ हैं । तो ये नाड़ियाँ गायब हो गयी। जिस आदमी में विशुद्धि चक्र पकड़ा होगा तो आपको फील ही नहीं होगा हाथ में। बहुत लोगों की ये गति हो जाती है, कि वो बहुत पहुँच जाते हैं, उनको अन्दर से सब महसूस भी होता है, शरीर में महसूस होता है, हाथ में महसूस ही नहीं होता। अन्दर महसूस होता है। यहाँ है अभी कुण्डलिनी, यहाँ है, सर में है, ये सब महसूस होगा, पर हाथ में होता ही नहीं। ‘माताजी, गहन शांति जब होती है तब कैसे मालूम हो कि कुण्डलिनी कहाँ पर है? आप जब दूसरों की ओर हाथ करेंगे ना तब आपको खुद ही अन्दर पता Read More …

Shri Ganesha & Mooladhara Chakra Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Shri Ganesha Aur Mooladhar Chakra, Public program, “Shri Ganesha, Mooladhara Chakra” (Hindi). Bharat Vidya Bhavan, Mumbai, Maharashtra, India. 16 January 1979. ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK भाषण सुनने से पहले ही मैं आपको बताती हूँ, कि इस तरह से हाथ रखिये और आराम से बैठिये। और चित्त हमारी ओर रखिये। इधर-उधर नहीं, कि जरा कोई आ गया, कोई गया। इधर-उधर चित्त नहीं डालना। क्योंकि दूसरों को तो हम हर समय देखते ही रहते है, कभी अपने को भी देखने का समय होना चाहिये। कल मैंने आपसे इन चक्रों के बारे में बताया था। आज मैं आपको सब से नीचे जो चक्र है जिसको गणेश चक्र कहते हैं, उसके बारे में बताऊंगी। हम लोग गणेश जी को मानते हैं, गणेश जी की पूजा भी करते हैं । और ये भी जानते हैं कि अपने महाराष्ट्र में अष्टविनायक हैं, आठ गणेश , पृथ्वी तत्त्व में से निकल आये हैं। लेकिन इस के बारे में हम बहुत ही कम जानते हैं। और इसलिये करते हैं सब कुछ क्योंकि हमारे बड़ों ने बता रखा है। इन धर्मांधता को देख कर के ही लोगों ने ये शुरू किया, कि ऐसे, भगवान, जिनको की हम देख नहीं सकते, कुछ सभी अंधेपन से हो रहा है। तो बेहतर ये है कि इस तरह से भगवान वरगैरा न मानने से ….. हम लोग अपने ही ऊपर विश्वास रख के काम करें। अब गणेश इतनी बड़ी चीज़ है, इसके बारे में मैं अब बताऊंगी। गणेश एक प्रिंसीपल हैं, एक तत्त्व है। ये कोई भगवान आदि नहीं। ये एक तत्त्व है, Read More …

Public Program Day 2: Utkranti Ki Sanstha Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Public Program Day 2, Birla Krida Kendra, Mumbai (Hindi), 15 January 1979. ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK मैंने कहा था, कि कुण्डलिनी के बारे में विशद रूप से आपको बताऊँगी। इसलिये आज आपसे मैं कुण्डलिनी के बारे में बताने वाली हूँ। पर मुश्किल है आप सब को ये चार्ट दिखायी नहीं दे रहा होगा। क्या सब को दिखायी दे रहा है ये चार्ट? इसमें जो कुछ भी दिखायी दे रहा है वो आपको इन पार्थिव आँखो से नहीं दिखायी देता। इसलिये सूक्ष्म आँखें चाहिये जो आपके पास नहीं हैं। बहरहाल ये आप के अन्दर है या नहीं आदि सब बातें हम बाद में आपको बतायेंगे। इसे किस तरह जानना चाहिए? लेकिन इस वक्त अगर मैं आपको इसके बारे में बताना चाहती हूँ तो एक साइंटिस्ट के जैसे खुले दिमाग से बैठिये। पहले ही आपने अनेक किताबें कुण्डलिनी के बारे में पढ़ी हुई हैं। योग के बारे में पढ़ी हुई हैं। लेकिन सत्य क्या है उसे जान लेना चाहिए। किताबों से सत्य नहीं जाना जा सकता। कोई कहीं कहता है, कोई कहीं कहता है, कोई कहीं बताता है। लेकिन आप अगर साइंटिस्ट है तो अपना दिमाग को थोड़ा खाली कर के मैं जो बात बता रही हूँ, उसे देखने की कोशिश करें। जिस तरह से कोई भी साइंटिस्ट अपना कोई हाइपोथिसिस आपके सामने रखता है, कोई ऐसी कल्पना कर के रखता है, कि ऐसी ऐसी बात हो सकती हैं, उसको वो फिर अन्वेषण कर के और सिद्ध करता है, प्रयोग कर के, एक्सपिरिमेंट के साथ ये सिद्ध कर देता है, कि वो Read More …

Public Program Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Public Program (Hindi). Birla Krida Kendra, Mumbai (India). 14 January 1979. आशा है, आप लोग यहाँ सत्य की खोज में आए होंगे मैं आपसे हिंदी में बातचीत कर रही हूँ, कोई लोग ऐसे हों जो हिंदी बिलकुल ही नहीं समझते हैं तो फिर अंग्रेजी में बातचीत करुँगी| ठीक है| सत्य की खोज में मानव ही रह सकता है, जानवर, प्राणी नहीं रह सकते, उनको इसकी जरूरत नहीं होती मनुष्य ही को इसकी जरूरत होती है, कि वह सत्य को जाने| मनुष्य इस दशा में होता है, जहाँ वह जानता है कि कोई ना कोई चीज उससे छुपी हुई है और वह पूरी तरह से यह भी नहीं समझ पाता कि वह संसार में क्यों आया है? और वह इस उधेड़बुन में हर समय बना रहता है, की क्या मेरे जीवन का यही लक्ष्य है कि मैं खाऊ- पिऊ और जानवरों जैसे मर जाऊँ? की इसके अलावा भी कोई चीज सत्य है? सत्य का अन्वेषण मनुष्य के ही मस्तिष्क में जागरूक होता है| लेकिन सत्य के नाम पर जब हम खोजते हैं तो हम ना जाने किस चीज को सत्य समझ कर बैठते हैं, जैसे कि जब मानव सोचने- विचारने लग गया तो उसने संसार की जितनी जड़ चीजें थी उधर अपना ध्यान लगाया यानि यहाँ तक की वह चाँद पर पहुँच गया| कौन सा सत्य मिला उसे चाँद पर? साइंस की खोज की, तो उसमें उनको कौन सा सत्य मिला? जिन लोगों ने साइंस की खोज करके और अपने को बहुत प्रगल्भ समझा है एडवांस समझा है जिन्होंने सोचा है Read More …

What is the Kundalini and how it awakens Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Talk in Hindi at the Bharat Vidya Bhavan, Mumbai, Maharashtra, India. 9 January 1979. [Hindi transcript until 00:49:05] सबको फिर से मिल के बड़ी ख़ुशी होती हैं | मनुष्य पढता है लोगो से सुनता है बड़े बड़े पंडित आ करके लोगो को भाषण देते हैं | इस संसार में परमात्मा का राज्य हैं परमात्मा न सृष्टि है | ऐसे हाथ करिये बैठे राहिएए जब तक में भाषण देती हूँ उसी के साथ ही कुण्डलिनी का जागरण हो जाता है | आज में आपसे ये बताने वाली हूँ की कुण्डलिनी क्या चीज़ है और उसका जागरण कैसे होता है | कल मेने आपसे बताया था मानव देह हम आज देख रहे हैं इस मानव देह को चलाने वाली शक्तियां हमारे अंदर प्रवाहित हैं | उन गुप्त प्रवाहों को हम नहीं जानते हैं | जिनके कारन आज हमारी सारी शक्तियां ये शरीर मन बुद्धि अहंकार सारी चीज़ो का व्यापर करती हैं उनके बारे में जो कुछ भी हमने साइंस से जाना है वो इतना ही जाना है की ऐसी कोई स्वयंचालित शक्तियां है जिसको की ऑटोनॉमस सिस्टम कहते हैं जो इस कार्य को करती हैं और जिसके बारे में हम बोहत ज्यादा नहीं बता सकते | की वो शक्ति कैसी है और किस तरह से वो अपने को चलाती है | किसी भी चीज़ को जानने का तरीका एक तो ये होता है की अँधेरे में उस चीज़ को खोजिये जैसे आप इस कमरे में आये है और यहाँ अंधेरा है इसको धीरे धीरे टटोलिये जानिये की ये क्या है कोई दरवाजे Read More …

Christmas Message: Thankfulness London (England)

                         कृतज्ञता  लंदन 1978-12-24 लंदन … केवल यह कार्य करना कि, एक इंसान के रूप में आना, एक इंसान की तरह जीना, और एक इंसान की तरह कष्ट उठाना। और वह इस पृथ्वी पर अवतरित हुए, अभी जानने के लिए, उस संसार को जानने के लिए जिसे उन्होने बनाया, भीतर-बाहर से। इस तरह वह हमें बचाने के लिए वे आये थे। लेकिन मेरा मतलब है, वह व्यक्ति बात कर रहा था और उसकी आज्ञा पर इतनी बड़ी पकड़ थी कि मैं बस यही कह रही थी कि, वह जिस बारे में बात कह रहा है वह खुद उसी में लक्षित हो रही है- कि उसमें नम्रता का कोई भाव नहीं बचा है! वह जिस तरह से उसके लिए ईसा-मसीह का उपयोग कर रहा था! साथ ही एक बहुत ही भयानक आज्ञा! और मैंने इसे साफ कर दिया। और सब कुछ इस प्रकार हुआ…मैं सोच रही थी कि वह कोई नाटक कर रहा है। और फिर सबसे दयनीय बात बाद में हुई जब उन्होंने कहा कि, “यहां स्थित अन्य समुदायों के लोगों के लिए आपका क्या संदेश है और आप क्या कहते हैं?” उन्होंने कहा, “हमें अपने पड़ोसी से प्यार करना चाहिए और इसी तरह हमें आपसे प्यार करना चाहिए। और यह भलाई के लिए है, और इसलिए हमने एक ऐसा काम शुरू किया है जिसके द्वारा हम लोगों को नौकरी देते हैं और उनकी देखभाल करते हैं।” और सब कुछ एक परोपकारी कार्य के साथ शुरू हुआ, और फिर यह एक संघ, एक श्रमिक संघ बन गया, और फिर वह एक Read More …

Agnya Chakra means ‘to order’ Caxton Hall, London (England)

                       “आज्ञा चक्र”  केक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 18 दिसंबर 1978। आज हम छठे चक्र के बारे में बात कर रहे हैं जिसे आज्ञा चक्र कहा जाता है। ‘ज्ञा’,  शब्द का अर्थ ‘जानना’ है, आज्ञा यानी जानना है। और ‘आ’ का अर्थ है ‘संपूर्ण’। आज्ञा चक्र का एक और अर्थ भी है। आज्ञा का अर्थ है ‘आज्ञाकारिता’ या ‘आदेश  करने के लिए’। इसका मतलब दोनों चीजों से हो सकता है। यदि आप किसी को आदेश देते हैं तो यह एक आज्ञा है और जो आदेश का पालन करता है वह आज्ञाकारी है। वह जो आज्ञा देता है। मानव में छठा चक्र तब बनाया गया जब उसने सोचना शुरू किया| विचार भाषा में व्यक्त होते हैं|  यदि हमारे पास भाषा ना हो तो हम विचार नहीं कर सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे अंदर विचार नहीं आ रहे| यदि हम इसे व्यक्त नहीं कर पा रहे इस का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि हमारे अंदर विचार प्रक्रिया नहीं चल रही| लेकिन उस सूक्ष्म अवस्था में जब हम तक विचार आ रहे हैं वे भाषा में नहीं हैं, इसलिए वे हम तक प्रसारित नहीं हैं, और इसलिए यदि हमारे पास भाषा ना हो तो हम नहीं समझ सकते कि हम क्या विचार कर रहे हैं|   आपने देखा होगा कि इसीलिए बच्चे जो चाहते हैं वो हमें नहीं बता पाते क्यों कि वे जो चाहते हैं उसे कह नहीं पाते| वे पेट में भूख महसूस करते हैं और माना कि पानी या अन्य कुछ माँगना चाहते हैं, लेकिन वे ऐसा Read More …

Seminar Day 1, Bija Mantras, Shri Lalita, Shri Chakra Easthampstead Park Conference Centre, Wokingham (England)

सेमिनार प्रथम दिवस ,बीज मंत्र,श्रीललिता,श्रीचक्र (ईस्ट हैम्पस्टेड पार्क कॉन्फ्रेंस सेंटर,वर्किंगघम, ब्रैकनैल, इंग्लैंड) 14 अक्टूबर 1979 जब कुंडलिनी जागृत होती है,वह ध्वनि उत्पन्न करती है।और जो ध्वनि विभिन्न चक्रों में सुनाई देती है निम्न रूप में उच्चारित की जा सकती है-ये उच्चारण देवनागरी की ध्वन्यात्मक भाषा में प्रयुक्त किये गए हैं,जिसका अर्थ होता है ‘देवों के द्वारा बोली गई भाषा‘। मूलाधार पर जहाँ चार पंखुड़ियाँ हैं,ध्वनियाँ हैं ÷ व् श् ष् स् जिसमें से अंतिम ‘ष’ और ‘स्’ ध्वनियाँ काफी समध्वनि हैं,परन्तु अंतर है -जब साँप फुफकारता है तो यह ‘ष’ -तीसरी ध्वनि बनती है, तो व् श् ष् स् । स्वाधिष्ठान पर, जहाँ छः पंखुड़ियाँ हैं, यह ध्वनि निर्मित करती है। छः ध्वनियाँ- ब् भ् म् य् र् ल्  मणिपुर -इसकी दस पंखुड़ियाँ हैं, यह ध्वनि निर्मित करती है- ड् ढ् ण् त् थ् द् ध् न् प् फ् अनाहत पर बारह पंखुड़ियाँ हैं, यह ध्वनियाँ निर्मित करती है- क् ख् ग् घ् ङ् च् छ् ज् झ् ञ् ट् ठ्  विशुद्धि पर, जहाँ सोलह पंखुड़ियाँ हैं, यह सभी स्वरों की ध्वनि निर्मित करती है- अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ ॡ ए ऐ ओ औ अं अः आज्ञा पर यह निर्मित करती है- ह् क्ष् सहस्रार पर व्यक्ति निर्विचार हो जाता है और कोई ध्वनि नहीं निर्मित होती, लेकिन शुद्ध अनहद अर्थात् शुद्ध स्वरुप में धड़कन जैसे कि हृदय में होती है {लब डब लब डब लब डब} जब ये सभी ध्वनियाँ एक साथ ध्वनित होती हैं और देह की कुंडली से गुजरती हैं,अगर देह एक Read More …

Talk to Sahaja Yogis: Dharma London (England)

                                                            धर्म सहज योगियों से बातचीत   लंदन (यूके), 5 अक्टूबर, 1978 वह, मध्य वाली वही पोषण करने वाली शक्ति है अर्थात वह शक्ति है जिसके द्वारा हम विकसित होते हैं, अर्थात हमें अनायास ही सहज रूप से अपना भरण-पोषण मिलता है। यह पोषण जो हमें एक मनुष्य के रूप में प्राप्त है, जब इसे हमारे भीतर मौजूद पांच तत्वों पर अभिव्यक्त होना होता है, तो स्रोत तो वहीं होता है लेकिन हमें इसके विभिन्न तत्वों के माध्यम से उस तक पहुंचना होता है। जब यह आदान-प्रदान होता है या, हम कह सकते हैं, जब हमें इस बल को बाहर लगाना होता है, तो वह इन पर धर्म की स्थापना के माध्यम से किया जाना है। किसी योग की तरह या, आप कह सकते हैं, कनेक्शन। जैसे आप कह सकते हैं, मान लीजिए कि सूर्य है। सूर्य प्रकाश का स्रोत है और प्रकाश का स्रोत इस पृथ्वी पर आया है जो पाँच तत्वों से बनी है। तो सूरज की किरणें तो आनी ही हैं, लेकिन जब वे अंदर आती हैं, इस आने की क्रिया में, तो क्या करती हैं? वे इस संसार को प्रकाशित करते हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब धर्म हो, अर्थात प्रकाश हो, किरणें हों। किरणें कई चीजों से बाधित हो सकती हैं। यदि किरणें बाधित होती हैं, तो अ-धर्म होता है। तो धर्म का स्रोत, धर्म का प्रसार और अंततः पांच तत्वों पर अभिव्यक्ति एक पूर्ण चीज़ है जो भवसागर है। यह खेल हमारे भीतर चलता रहता है। हमारी उत्क्रांती की शक्ति जो प्रारंभ से ही कार्यरत Read More …

Knots On The Three Channels Caxton Hall, London (England)

                                         “तीन नाड़ियों की ग्रंथियां”  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 2 अक्टूबर 1978 यह जो ब्रह्म का तत्व है, यह सिद्धांत है उस स्पंदित भाग, हमारे ही अंदर निहित शक्ति का तत्व, जिसे हमें महसूस करना है, और जो हर चीज में स्पंदित होती है। यह सहज योग के साथ होता है, बेशक, कुंडलिनी चढ़ जाती है, लेकिन यह इसका अंत नहीं है,  क्योंकि, मानव वह साधन है जिसमें यह प्रकाश प्रकट होता है। लेकिन एक बार प्रकट होने के बाद यह जरूरी नहीं है कि यह हर समय ठीक से जलती रहे। एक संभावना है, ज्यादातर यह एक संभावना है, कि प्रकाश बुझ भी सकता है। अगर कोई हवा का रुख इसके खिलाफ है, तो यह बुझ भी सकता है। यह थोड़ा कम भी हो सकता है। यह बाहर आ सकता है यह झिलमिला सकता है, यह थोड़ा कम हो सकता है। क्योंकि मनुष्य, जैसे कि वे हैं, वे तीन जटिलताओं में पड़ गए हैं। जैसे ही वे मनुष्य बनते हैं, ये तीन जटिलताएं उनमें शुरू होती हैं। और तीन, इन तीन जटिलताओं के कारण, किसी व्यक्ति को यह जानना होगा कि यदि आपको उससे बाहर निकलना है, तो आपको कुछ निश्चित गांठों को तोड़ना होगा – उन्हें संस्कृत भाषा में ग्रन्थि कहा जाता है – जो आपको यह मिथ्या दे रही है – मिथ्यात्व है। मिथ्यात्व यह की,  हम सोचते हैं कि, “इस दुनिया में, आखिर सब कुछ विज्ञान ही है, और जो कुछ भी हम देखते हैं और उससे परे सब कुछ विज्ञान है …” और वैसी सभी प्रकार Read More …

The Principle of Brahma Caxton Hall, London (England)

                                             ब्रह्म का तत्व  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 11 सितंबर 1978 आज मैं आपको कुछ ऐसा बताना चाहती हूं, शायद मैंने उस बिंदु को पहले कभी नहीं छुआ है। या मैंने इसके बारे में विस्तार से बात नहीं की है। यह ब्रह्म के तत्व के बारे में है: ब्रह्म का तत्व क्या है? कैसे इसका अस्तित्व है? यह कैसे पैदा होता है? यह कैसे अभिव्यक्त होता है? और कैसे, यह निर्लिप्त भी है और संलग्न भी है । विवरण में,  ब्रह्म का तत्व स्वयं ब्रह्म से भिन्न है। जैसे, मैं जिन सिद्धांतों का पालन करती हूं, वे मुझ से अलग हैं। यह एक बहुत ही सूक्ष्म विषय है और इसके लिए वास्तविक ध्यानस्थ चित्त  की आवश्यकता है। तो अपने मन की सारी समीक्षा, कृपया उन्हें बंद कर दें, जैसे आपने अपने जूते उतार दिए हैं। क्या आप सभी ने अपने जूते उतार दिए हैं? कृपया। और बस मेरी ओर थोड़ा, थोड़ा गहन ध्यान देकर सुनो। क्या आप आगे आ सकते हैं! आप सब आगे आ सकते हैं ताकि जो बाद में आने वाले हैं वो बाद में आ सकें। आगे आओ! मुझे लगता है कि आगे आना बेहतर है, क्योंकि हमारे यहां माइक नहीं है। यहां आगे आना बेहतर है। जिस प्रका,र आप जिन सिद्धांतों पर आधारित हैं, वे स्वयं आप से भिन्न हैं, उसी तरह, ब्रह्म का तत्व स्वयं ब्रह्म से भिन्न है, लेकिन एक ब्रह्म है और ब्रह्म में निहित है। लेकिन ब्रह्म स्वयं तत्व द्वारा कायम है। आयाम में, आप कह सकते हैं कि ब्रह्म व्यापक है, बड़ा Read More …

Guru Puja: Your own dignity and gravity Finchley Ashram, London (England)

                               गुरु पूजा, “आपका गुरुत्व एवं  गरिमा “  फिंचली आश्रम, लंदन (यूके), 21 जुलाई 1978 … अपने गुरु की पूजा, अपनी माता की नहीं, अपने गुरु की। गुरु शिष्यों में धर्म, निर्वाह स्थापित करता है। वह पोषक शक्ति क्या है, शिष्यों को इसके बारे में सभी स्पष्ट विचार देता है। वह पूरी दुनिया को उपदेश कर सकता है लेकिन अपने शिष्यों के लिए, वह बहुत स्पष्ट निर्देश देता है। अधिकांश गुरु, जब वे ऐसा करते हैं, तो वे वास्तव में हर शिष्य को तराशते हैं। पहले वे तौलते हैं कि शिष्य का आग्रह कितना है, शिष्य वास्तव में कितना ग्रहण कर सकता है, और फिर वे किसी को शिष्य के रूप में स्वीकार करते हैं कि यदि  शिष्य वास्तव में धर्म के बारे में निर्देश प्राप्त करने योग्य भी है। लेकिन सहज योग में नहीं क्योंकि आपकी गुरु एक माँ है। इसलिए वह आपका शिक्षारम्भ आपकी क्षमता,ग्रहण योग्यता,और आपके व्यक्तित्व के गुण जाने बिना करती है। यह गुरु की एक बहुत ही भिन्न शैली है जो की आप को प्राप्त है जिसमे आपके शरीर की, आपके मन की ,और आपकी समस्याओं की देखभाल करता है और फिर कुंडलिनी जागरण का आशीर्वाद देता है। लेकिन आम तौर पर गुरु ऐसा नहीं करते हैं। कारण है: वे केवल गुरु हैं, माँ नहीं। जब आप गुरु पूजा करते हैं, तो आप वास्तव में क्या करते हैं? आपको यह समझना चाहिए। इसका मतलब है कि मेरी पूजा के माध्यम से आप अपने अंदर स्थित गुरु के सिद्धांत की पूजा करते हैं। सिद्धांत तुम्हारे भीतर है: Read More …

Ego, The West, Love & Money Caxton Hall, London (England)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ‘अहंकार,पश्चिमी देश, प्रेम और धन’ कैक्स्टन हॉल, लंदन, इंग्लैंड 17 जुलाई, 1978 श्री माताजी: आप कैसे हैं? बेहतर? साधक: ज्यादा बुरा नहीं! श्री माताजी: ज्यादा बुरा नहीं! सब लोग धीरे धीरे बेहतर हो रहे हैं, है ना? डोमिनिक तुम कैसे हो? डोमिनिक: अच्छा हूं! श्री माताजी: तुम हमेशा ही अच्छे होते हो! इस उत्तर पर गौर करें ‘अच्छा हूं ‘। ये जब से पैदा हुए तब से अच्छे हैं, परंतु सारी दुनिया भयानक है। है ना? (हंसते हुए) एक आत्म साक्षात्कारी के लिए ये ऐसा है। वो बहुत आश्चर्यचकित होता है, बहुत ज्यादा सदमा ग्रस्त भी जिस तरह से दुनिया के तौर तरीके हैं। कितने लोग आज पहली बार आए हैं? कृपया अपने हाथ ऊपर उठाइए। हां! और कौन? तुम? आप तीन चार लोग? मैं सोचती हूं अगर वो अंदर आ जाएं। आप भी पहली बार आए हैं? साधक: नहीं! श्री माताजी: नहीं? आप को प्राप्त हो गया है! आप को प्राप्त हो गया है। आप का क्या? आप पहली बार आईं हैं? महिला साधक:  मैं पिछली बार आई थी। श्री माताजी: पिछली बार? क्या हुआ था? क्या आप को अच्छा अनुभव हुआ था? बढ़िया! आप को कैसा लगा? बढ़िया! और आप भी वहां थीं? महिला साधक: नहीं! श्री माताजी: तुम भी वहां थे। नहीं? पहली बार? अच्छा! हम ऐसा कर सकते हैं, जो लोग आज पहली बार आए हैं, वे इस तरफ बैठ जाएं, जिस से आप को देखना बहुत आसान हो। और मैं उनकी कुंडलिनी देखना चाहूंगी। अगर आप उस तरह बैठें, Read More …

What happens after Self-realisation? Caxton Hall, London (England)

              आत्म-साक्षात्कार के बाद क्या होता है?   कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 26 जून 1978 प्रश्न यह है कि आत्म-साक्षात्कार के बाद वास्तव में हमारे साथ क्या होता है? बेशक, मेरा मतलब है, आप निर्विचार जागरूक महसूस करते हैं, आप सामूहिक चेतना महसूस करते हैं, आप दूसरों की कुंडलिनी को महसूस कर सकते हैं, आप कुंडलिनी को ऊपर उठा सकते हैं, आप चक्रों को महसूस कर सकते हैं। यह सब आप जानते हैं। लेकिन असल में, इंसान के साथ गहरे तरीके से क्या होता है, यह देखना होगा। तो, सबसे पहले, आइए जानें कि हम कैसे हैं, आत्मसाक्षात्कार होने से पहले हम क्या हैं, ताकि हमें पता चलेगा कि बोध के बाद हमारे साथ क्या होता है। अब यह विषय बहुत सूक्ष्म है और मैं चाहूंगी कि आप इसे बहुत, बहुत बड़ी एकाग्रता से सुनें। आज मैं अमूर्त चीजों के बारे में बात नहीं करने जा रही हूं, लेकिन बिल्कुल ऐसी चीज के बारे में जो वास्तव में बहुत तथ्य पूर्ण है। एक इंसान क्रमागत उत्क्रांति से बना है – आप यह अच्छी तरह से जानते हैं – कि वह उत्क्रांति से बना है। और एक बड़ा वाद-विवाद चल रहा है। ये इन बातों को नहीं समझते, इसलिए विवाद है। लेकिन वह सात चरणों में विकसित होता है और इसलिए कहा जाता है कि: इस दुनिया को बनाने में उसे सात दिन लगे। हम कह सकते हैं कि पूरे ब्रह्मांड ने लगभग सात चरण लिए। लेकिन, जैसा कि आप समझते हैं, एक बीज में सभी सूक्ष्म बीज होते हैं, एक पेड़ के Read More …

The Difference Between East & West Caxton Hall, London (England)

                                 पूर्व और पश्चिम के बीच अंतर कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 19 जून 1978 हमारे पाश्चात्य समाज की समस्या यह है… आप देखिए, पूर्वी समाज की अपनी समस्याएं हैं और पश्चिमी समाज की अपनी समस्याएं हैं। मूल रूप से वे दो अलग-अलग समस्याएं हैं, बिल्कुल दो अलग-अलग समस्याएं हैं, और पूर्व की समस्याओं के बारे में चर्चा करना आपके लिए किसी काम का नहीं होगा। उदाहरण के लिए, भगवद गीता में, श्री कृष्ण ने कहा है कि, “योग क्षेम वहाम्यहम।” “मैं आपके योग की देखभाल करता हूं,” का अर्थ है भगवान के साथ मिलन। ‘वहाम्यहम’ का अर्थ है: मैं उसका वहन करता हूं, उस प्रक्रिया को करता हूं या मैं वह व्यक्ति हूं जिसे वह प्रक्रिया करनी है। और ‘क्षेम’, क्षेम का अर्थ है भलाई, “मैं भलाई की देखभाल करता हूं”। लेकिन भारत में, लोग पूरी तरह से मानते हैं कि भगवान हमारे उद्धार की देखभाल करते हैं। मेरा मतलब है कि वे विश्वास करते हैं, मेरा मतलब है कि उनके पास ऐसी श्रद्धा है। जो एक बहुत बड़ा फायदा है, उन्हें ऐसा विश्वास नहीं होता कि वे स्वयं इसके बारे में कुछ कर सकते हैं। उनमें से अधिकांश, मेरा मतलब है कि बहुत थोड़े पश्चिमीकृत लोगों को छोड़कर, अन्यथा वे आमतौर पर सोचते हैं कि केवल ईश्वर ही उनके लिए यह करने जा रहे हैं। जैसे भी संभव हो। वह एक अवतार, या एक अवतरण, या कोई ऐसा व्यक्ति भेज सकता है जो हमें मुक्ति दिलाएगा। उन्हें विश्वास नहीं है कि वे इसके बारे में कुछ भी कर सकते हैं, Read More …

Ask for the Truth London (England)

                   सार्वजनिक कार्यक्रम लंदन 20-03-1970 …यह आपको पता होना चाहिए कि मैं ऐसा कुछ बताने वाली नहीं हूँ जो सत्य नहीं है, क्योंकि मैं यहां किसी राजनीतिक लाभ के लिए, व्यावसायिक लाभ के लिए नहीं हूं। नहीं साहब, मैं यहां स्वयं आपके फायदे के लिए हूं, असलियत के बारे में। यदि आप उपलब्धि चाहते हैं तो इसके बारे में असली बनें। अब आप खुद ही देख लीजिए कि ऐसा होता है या नहीं। आप अपनी खुली आंखों से देख सकते हैं – इन लोगों ने देखा है – कुंडलिनी को स्पंदित होता हुआ। आप इसे देख सकते हैं। यह धड़कती है। जब लोग मेरे पैर छूते हैं, तो कई मामलों में यह धड़कती है। उन्होंने इसे देखा है। वे सब झूठे नहीं हैं! और उन्हें झूठ क्यों बोलना चाहिए? हासिल करने के लिए कुछ नहीं: पैसा नहीं, सबसे पहले, वही अलग कर दिया है। तो दूसरी बात क्या है? यह कुंडलिनी उठती है, और आप इसे ऊपर उठते हुए देख सकते हैं, इन सभी चक्रों से होकर गुजरती है, और यह उस स्थान पर रुक जाती है जहां आपको कोई समस्या है। एक अन्य दिन हमारे पास कहीं से एक बहुत बड़ा आदमी था जो मुझसे मिलने आया था, और उसकी कुंडलिनी ऊपर आई, और बस ऐसे ही यहां धड़क रही थी। और यह सारा हिस्सा ऐसे ही धड़क रहा था। मेरा मतलब केवल उस हिस्से से है। तो लोगों ने उससे पूछा, “क्या तुम ठीक हो?” उन्होंने कहा, “हां, मैं ठीक हूं।” “लेकिन क्या आपको लीवर की समस्या है?” “हाँ Read More …

We are all seeking Caxton Hall, London (England)

                    हम सभी इच्छुक हैं  सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन, 20 मार्च 1978 ग्रेगोइरे ने इतनी सारी बातें कह दी हैं कि मैं वास्तव में नहीं जानती कि उसके बाद क्या कहना है। सच में अवाक। मुझे पता है कि यह एक सच्चाई है और आपको इसका सामना करना होगा, हालांकि मैं इसके बारे में संकोचशील हूं। तुम सब खोज रहे थे, और मुझे लगता है कि जब से मुझे याद पड़ता है, तब से मैं किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिली जो खोज नहीं रहा था। वे पैसे में, सत्ता में ख़ोज कर रहे होंगे। लेकिन उनमें से बहुत से लोग वास्तव में कुछ इससे भी परे की तलाश कर रहे थे। पश्चिम में, मैंने हमेशा महसूस किया कि पुराने और प्राचीन काल के सभी महान संत जो परमात्मा की तलाश कर रहे थे, पैदा हुए हैं। मैं देख सकती थी , जिस तरह से आपने भौतिकवाद को नापसंद किया है; जिस तरह से आपने जीवन के बारे में एक तरह की समझ हासिल की है… नई बात है। ईसा-मसीह के समय में कुछ कोढ़ी और कुछ बीमार लोगों को छोड़कर ऐसे लोगों को देखना संभव नहीं था। अन्य कोई नहीं था जो उसे देखने को तैयार हो। निःसंदेह समय बदल गया है। लेकिन, इस तलाश में कई लोगों ने बहुत सारी गलतियां की हैं। गलतियों को हमेशा माफ किया जा सकता है। उन्हें ठीक किया जाना चाहिए। मैं इसके साथ पैदा हो हूं। मुझे पता था कि मुझे यह करना है और मुझे पता था कि मुझे एक दिन Read More …

Triguna New Delhi (भारत)

Trigun – Bhartiy Sanskruti Ka Mahatva IV Date 3rd February 1978 : Place Delhi : Public Program Type : Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] जिस शक्ति को आप इस्तेमाल कर रहे हैं उसे चल रहा है, माताजी थोड़ा म्यूजिक कर दें? हमने Refill कर लेते हैं हम। Modern बीमारी एक और कहा कर दो भाई। ऐसे ही बैठेगें आराम से। हमारे जिसे हम Tension कहते हैं। Tension’ मुझे तो Vibrations चलते रहते हैं, आप Receive करते Tension आ गया, पहले किसी को Tension नहीं रहिए। अब उन्होंने ज़रा लम्बा चौड़ा कर दिया जरा Music, तो लोग कहने लगे अब जरा जल्दी खत्म आता थी। तब तो Tension आना ही हुआ कि आप निकले पुरानी दिल्ली से माताजी के Programme करो, जल्दी खत्म करो। मैंने कहा क्यों भई तुमको में जाने के लिए। अब 6.30 बजे पहुँचना ही चाहिए, मेरा Lecture सुनने का है पर मेरी तो आज तबियत पहले सीट पर बैठना ही चाहिए। देर से जाएंगे, नहीं कर रही। अपने तो तबीयत से चलते हैं, कोई हर्ज नहीं, देर से भी आ सकते हैं। वो समय Temperamental आदमी हैं, अभी आज तो भई आप के आने का था आप आ गए कोई बात नहीं। ऐसी कौन सी आफत मची हुई हैं? भाई मुझे कहाँ भी सुनो मेरे साथ। आराम से क्यों नहीं सुनते? जाने का है और आपको कहाँ जाने का है? आराम अच्छा म्यूजिक चल रहा है, भई सुनो। ऐसी कौन तबीयत हो नहीं रही। तो म्यूजिक ही सुनने दो, तुम Read More …

Public Program, Brahmajana New Delhi (भारत)

Brahama Ka Gyan (Knowledge of Bramh) Date : 1st February 1978 Place Delhi Type Public Program ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK कुछ चक्रों के बारे में बता चुकी हूँ। और इसके आगे के चक्रों के बारे में भी आज बताऊंगी। जैसे कि पहले चक्र का नाम मैंने आपसे बताया मूलाधार चक्र है। जो नीचे स्थित यहाँ पर चार पंखुड़ियाँ वाला होता है। और इस चक्र से क्योंकि ये सूक्ष्म चक्र है और इसका जो जड़ अविभाव है, इसका जो ग्रोस एक्सप्रेशन है, उसे पेल्व्हिक प्लेक्सस कहते हैं। और इसमें श्रीगणेश के बहुत ही पवित्र चरण रहते हैं। और उससे ऊपर जो | त्रिकोणाकार यहाँ पर बना हुआ है, इसमें कुण्डलिनी का स्थान है और ये बड़ा भारी महत्वपूर्ण बिंदु मैंने आपसे बताया था की श्रीगणेश नीचे होते हैं और कुण्डलिनी उपर होती है। ये बहुत समझने की बात है। इसी चीज़ को ले कर के लोगों ने बड़ा उपद्व्याप किया हुआ है। कहना कि गणेश जी मूलाधार चक्र में होते हैं, जिसे सेक्स का संबंध से हैं। या तो बिल्कुल ही सेक्स से दूर हटा कर के और कहना कि सेक्स से दूर हट के और सारे ही कार्य करते रहना, ये परमात्मा है। इस तरह की दो विक्षिप्त चीज़ें चल पड़ती हैं । सेक्स का आपके उत्क्रांति (इवोल्यूशन) से कोई भी संबंध नहीं है। कोई भी संबंध नहीं । लेकिन सेक्स से भागने की भी सहजयोग में कोई भी जरूरत नहीं । एक जीवनयापन की वो भी एक चीज़ है। पर इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं जिसे लोग समझते हैं। और एक Read More …

Sahajyog, Kundalini aur Chakra मुंबई (भारत)

Sahajyog, Kundalini aur Chakra, Mumbai, India 30-01-1978 सहजयोग, कुण्डलिनी और चक्र मुंबई, ३० जनवरी ७८  ये सहज क्या होता है? आप में से बहुतों को मालूम भी है । नानक साहब ने बड़ी मेहनत की है और सहज पर बहुत कुछ लिखा है । यहाँ आप लोगों पर बड़ा वरदान है उनका। लेकिन उनको कोई जानता नहीं है, समझता नहीं। सहज’ का मतलब होता है स ह ज। ‘सह’ माने साथ, ‘ज’ माने पैदा होना। आप ही के साथ पैदा हुआ है। यह योग का अधिकार आपके साथ पैदा हुआ है। हर एक मनुष्य को इसका अधिकार है कि आप इस योग को प्राप्त करें। लेकिन आप मनुष्य हो तब! अगर आप जानवर हो गये तो इस अधिकार से वंचित हो जाते है या आप दानव हो गये तो भी इस अधिकार से वंचित हो जाते है। अगर आप मनुष्य है साधारण तरह से तो आप को अधिकार है कि इस योग को आप प्राप्त करें। यही एक योग है बाकी कोई योग नहीं। बाकी जितने भी योग है इसकी तैय्यारियाँ। सहजयोग के और दूसरे माने यह भी लगाते हैं हम लोग कि सहज माने सीधा, सरल, effortless, spontaneous, अकस्मात घटित होनेवाली चीज़ क्योंकि ये एक जिवन्त घटना है।  तो ऐसे गुरू जो पालना चाहते हैं उनका यह स्थान नहीं है । सीधा हिसाब हैं मैं हाथ जोड़़ती हैँ। चाहें मेरे पास दो ही शिष्य रहें मुझे कोई हर्ज नहीं। जिसको सत्य चाहिए वो यहाँ आए। पहली चीज़ जीसको सत्य नहीं चाहिए और असत्य के पिछे भागना चाहते हैं वो Read More …

Atma Ki Anubhuti मुंबई (भारत)

Atma Ki Anubhuti, 28th December 1977 [Hindi Transcription]  ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK आपसे पिछली मर्तबा मैंने बताया था, कि आत्मा क्या चीज़ है, वो किस प्रकार सच्चिदानंद होती है, और किस प्रकार आत्मा की अनुभूति के बाद ही मनुष्य इन तीनों चीज़ों को प्राप्त होता है। आत्मसाक्षात्कार के बगैर आप सत्य को नहीं जान सकते। आप आनन्द को नहीं पा सकते। आत्मा की अनुभूति होना बहुत जरूरी है। अब आप आत्मा से बातचीत कर सकते हैं। आत्मा से पूछ सकते हैं। आप लोग अभी बैठे हुए हैं, आप पूछे, ऐसे हाथ कर के कि संसार में क्या परमात्मा है? क्या उन्ही की सत्ता चलती है? आप ऐसे प्रश्न अपने मन में पूछे। ऐसे हाथ कर के। देखिये हाथ में कितने जोर से प्रवाह शुरू हो गया। कोई सा भी सत्य आप जान नहीं सकते जब तक आपने अपनी आत्मा की अनुभूति नहीं ली। माने जब तक आपका उससे संबंध नहीं हुआ। आत्मा से संबंध होना सहजयोग से बहुत आसानी से होता है। किसी किसी को थोड़ी देर के लिये होता है। किसी किसी को हमेशा के लिये होता है। आत्मा से संबंध होने के बाद हम को उससे तादात्म्य पाना होता है। माने ये कि आपने मुझे जाना, ठीक है, आपने मुझे पहचाना ठीक है, लेकिन मैं आप नहीं हो गयी हूँ। आपको मैं देख रही हूँ और मुझे आप देख रहे हैं। इस वक्त मैं आपकी दृष्टि से देख सकूँ, उसी वक्त तादात्म्य हो गया। आत्मा के अन्दर प्रवेश कर के वहाँ से आप जब संसार पे दृष्टि डालते Read More …

God and Creation Caxton Hall, London (England)

                                         परमात्मा और रचना   कैक्सटन हॉल, लंदन 1977-11-28 जैसा कि गेविन ने आपको पहले ही विस्तार से बताया है कि आज का विषय वास्तव में एक बहुत विस्तृत विषय है और इस विषय को समझने के लिए एकाग्र चित्त होना होगा। और जैसा कि उन्होंने आपको पहले ही बताया है कि यह मेरा व्यक्तिपरक ज्ञान है जो आपका भी हो सकता है। और आपको इसे अपनी चैतन्यमयी जागरूकता से ही सत्यापित करना होगा। क्योंकि यही एकमात्र ऐसी जागरूकता है जो आपको पूर्ण परिणाम दे सकती है। जैसा कि मैंने आपको बताया है, मानव जागरूकता अभी भी अधूरी है, जब तक आप आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से चैतन्यमयी जागरूकता प्राप्त नहीं करते, जिसमें आत्मा आपसे बात करना शुरू कर देती है, आप सत्य को सत्यापित नहीं कर सकते। तो यह व्यक्तिपरक ज्ञान के सबसे आवश्यक पहलुओं में से एक है। कोई भी कुछ भी कहता है, उस पर बिल्कुल भी विश्वास करने की जरूरत नहीं है। और जैसा कि मैंने आपको बताया है कि आपको मेरी बातों पर भी विश्वास करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इसे नकारा भी नहीं जाना चाहिए क्योंकि जैसा कि मैंने आपको बताया कि यह एक बहुत ही सूक्ष्म विषय है और व्यक्ति को इसमें थोड़ा समझने वाला होना चाहिए ना की बस स्वीकार कर लेने वाला शायद कुछ लोगों के साथ। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता। भले ही आप इसे थोड़े समय के लिए स्वीकार कर लें, अगर आपको यह पसंद नहीं है तो आप इसे बाद में छोड़ सकते हैं। लेकिन इसके खिलाफ किसी तरह का Read More …

The history of Tantrism Caxton Hall, London (England)

                          तंत्रवाद सार्वजनिक कार्यक्रम  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 21 नवंबर 1977 मेरे प्रिय साधकों, मैं गेविन ब्राउन की शुक्रगुजार हूं कि वह मेरे द्वारा पहले कही गई कुछ बातों को समेटने में सक्षम हैं और मुझे पिछली बार जो मैंने आपको बताया था, उसके सभी विवरणों में जाने की जरूरत नहीं है। आप में से कुछ लोग यहां पहली बार आए हैं। [टेप बाधित]। जैसा कि उन्होंने कहा, तंत्र का अर्थ है तकनीक, यह एक तकनीक है। और संस्कृत भाषा में यंत्र का अर्थ है तंत्र\यंत्र रचना। तो, तंत्र की तकनीक। अब हम किस तंत्र की बात कर रहे हैं? क्या हमारे बाहर या अंदर कोई तंत्र है? या यह किसी सूक्ष्म विधि से काम किया गया है? यदि आप खोज रहे हैं और यदि आप साधक हैं तो ये सभी प्रश्न हमारे मन में आने चाहिए। लेकिन मुझे लगता है कि पश्चिम में हालांकि भौतिक रूप से लोग बहुत विकसित हैं, उन्होंने कई भौतिक प्रश्नों और समस्याओं को सुलझा लिया है, वे बहुत अच्छी तरह से सुसज्जित हैं, लेकिन जहां तक ​​​​आध्यात्मिक जीवन का संबंध है, फिर भी, वे बहुत ही अनाड़ी हैं। यद्यपि अनुसरण करने के लिए उनके पास मसीह जैसा महान व्यक्तित्व था, और कितना बढ़िया यह आदर्श था! लेकिन शायद एक संगठित धर्म के कारण, शायद उन लोगों के लिए जो वास्तविक साधक थे और जो वास्तव में ध्यान विधियों के माध्यम से इसमें प्रवेश करना चाहते थे यह यह संभव नहीं था| तो, यह तंत्र या तकनीक जो हमारे आत्म-साक्षात्कार को कार्यान्वित करती है, उसे जानना Read More …

Kundalini and Self-realisation London (England)

कुंडलिनी और आत्म-साक्षात्कार गुरुपूर्णिमा  सार्वजनिक कार्यक्रम, 1977-0731, तो, जब आपको अपना आत्मसाक्षात्कार मिलता है,  सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात आपको अपने भौतिक स्व के बारे में जानना चाहिए, जिसके बारे में आप अब तक नहीं जानते हैं। जैसे ही आप अचेतन में कूद जाते हैं, आपने यह देखा है कि आपको अपने भौतिक अस्तित्व के बारे में पता चलता है: सबसे पहले अपने बारे में। आपको पता चल जाता है कि आपकी शारीरिक समस्या क्या है, आप कहां परेशान हैं। स्वचालित रूप से आपको पता चल जाता है कि आप किससे पीड़ित हैं, आपको किसी डॉक्टर के पास जाकर यह पूछने की ज़रूरत नहीं है कि आप किससे पीड़ित हैं। मान लीजिए कि आपका नाभी चक्र पकड़ रहा है, तो आप जानते हैं कि पेट में परेशानी है। यदि आप उसकी आवृत्तियों के साथ थोड़ा और आगे बढ़ते हैं, तो तुरंत आपको पता चल जाता है कि यह इसी भाग में है। यहां तक कि उंगली पर, दायीं ओर की उंगली से, यदि बायीं ओर की ऊंगली में अधिक जलन होती है तो समझ लें कि दाहिनी ओर की अपेक्षा बायीं ओर अधिक जलन होती है। अभ्यास से आप ठीक-ठीक समझ जाते हैं कि यह किस प्रकार की परेशानी है। लेकिन कुछ समय बाद आप बस यही कहते हैं कि यही तो परेशानी है और यही तो है. यह आपके द्वारा लगाए गए कंप्यूटर की तरह है। तो, आत्म-ज्ञान जो सबसे पहले अनुभव किया जाता है वह साकार हो जाता है। इसे हम दूसरा चरण कह सकते हैं। लेकिन Read More …

Prem Dharma मुंबई (भारत)

Prem Dharma Date : 23rd March 1977 Place Mumbai Type Seminar & Meeting Speech Language Hindi [Hindi Transcript] ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK बहुतों को ऐसा लगता है जब वो पहली मर्तबा देखते हैं कि ये कोई बच्चों का खेल है कि कुण्डलिनी जागरण है? कुण्डलिनी जागरण के बारे में इतना बताया है दुनिया भर में कि सर के बल खड़ा होना, दुनिया भर की आफ़त करना , और इतने सहज में कुण्डलिनी का जागरण कैसे हो जाता है ? आप में से जो लोग पार हैं, यहाँ अधिक तर तो पार ही लोग बैठे हये हैं, उनकी जब कुण्डलिनी जागरण हुई तब तो आपको पता ही नहीं चला की कैसे हो गयी! लेकिन अब जब दूसरों की होती देखते हैं तो पता चलता है कि हाँ, भाई, हमारी हो गयी। क्योंकि आप एकदम से ही चन्द्रमा पर पहुँचते हैं। कैसे पहुँचे, क्या पहुँचे पता नहीं चला। उसका कारण तो है ही और उसका उद्देश्य भी है। | फलीभूत होने का समय जब आता है तभी फल लगते हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं की बाकी जो होता रहा वो जरूरी नहीं था। वो भी था जरूरी और अब फल होना भी जरूरी है । कोई कहता है कि दस हजार वर्ष हो गये तब से तो कोई पार नहीं हुआ , अभी कैसे हो गये ? भाई, दस हजार वर्ष पहले तो चन्द्रमा पर कभी गये नहीं थे अब क्यों जा रहे हैं? और अगर जा रहे हैं तो उसमें शंका करने की क्या बात है? रामदास स्वामी ने बताया Read More …

Advice at Bharatiya Vidya Bhavan मुंबई (भारत)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी सार्वजनिक प्रवचन, भारतीय विद्या भवन, बंबई, भारत 22 मार्च 1977 भारतीय विद्या भवन में सलाह (प्रश्न और उत्तर) यह प्रकाश आप को इसलिए प्रदान किए गया है, क्योंकि आप दूसरों को प्रकाश देते हैं। यदि आप इसे दूसरों को नहीं देते हैं, तो धीरे-धीरे यह प्रकाश फीका पड़ जाता है। आपको यह प्रकाश ऐसे रास्ते पर रखना चाहिए, जहां लोग अंधकार में भटक रहे हों। इस प्रकाश को मेज के नीचे ना रखें, जहां ये बुझ जाए। आप लोग यहां आएं, अगर आप को कोई समस्या है, कोई बीमार है तब हम इस के (उपचार) बारे में भी बताएंगे, और इसी प्रकार ये लोग आप को सहज योग के विषय में बताएंगे। (श्री माताजी मराठी भाषा में – फड़के और अन्य सहज योगी वहां जाइए। उन्हे कुंडलिनी और सहज योग के बारे में बताइए। ये दो दिन में समाप्त नहीं होगा। इस में समय लगेगा। अब हमारे साथ लोग हैं जो वास्तव में बहुत ही अच्छे हैं। वे कुंडलिनी के विषय में सब कुछ जानते हैं।) उन्होंने कुंडलिनी पर पूरी तरह से महारत हासिल कर ली है। कुछ लोग हैं, आप जानते हैं, लेकिन कुछ हैं जिन्हे पांच वर्ष पूर्व आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ था, पर वो एक शब्द भी नहीं जानते। उसके विपरीत, वे ऐसे ही आ कर हम से पूछते हैं, ”मेरी मां बीमार हैं। कृपया उनका उपचार कीजिए। मेरे पिता बीमार हैं। मेरा उपचार कीजिए। मेरा ये बीमार है।” बस इतना ही। इसलिए वे किसी काम के नहीं हैं। तो इसलिए Read More …

Birthday Puja: Understanding Sahaja Yoga Through Heart मुंबई (भारत)

               54 वीं जन्मदिन पूजा, सहज योग को दिल से समझना मुंबई (भारत), 21 मार्च, 1977 … सबसे सम्मानित सहज योगी, न्यायमूर्ति श्री वैद्य और सबसे प्यारी उनकी पत्नी। श्री बख्शी, (… टेप व्यवधान…) धूमल, मिस्टर गेविन ब्राउन जो एक पुरातत्वविद् हैं, डॉ प्रमिला शर्मा, जो हिंदी की प्रोफेसर हैं और कबीर के साहित्य की विशारद हैं, और फिर श्रीमती जेन ब्राउन जो एक भूविज्ञानी हैं , वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से हैं; और हमारे बुद्धिमान चेयरमैन मिस्टर ज़चरे, दयालु गायिका श्रीमती शोभा गोटू, जो की मेहरबानी कर आयी गाने के लिए, और मराठी में उन्होंने कहा: “मैं कुछ और करने में असमर्थ हूँ, इसलिए माँ तुम्हारे लिए, मैं सिर्फ दो भजन गाऊंगी ।” सभी सहज योगी जो यहां आए हैं, अन्य सभी लोग जो हमारे यहां शामिल हुए हैं, जो मेरा यह सांसारिक जन्मदिन मना रहे हैं, मैं बहुत आभारी हूं, बहुत आभारी हूं और मैं बहुत आनंद और खुशी से भरी हुई हूँ । और मेरे स्पंदन मेरी आँखों से आंसू के रूप में बह रहे है, यह देख कर की, इस कलियुग में भी, ऐसे लोग हैं जो एक माँ के प्रति आभारी हैं जो केवल एक अमूर्त चीज़ जिसे चैतन्य के रूप में जाना जाता है प्रदान करती है। वास्तव में मैं आपको नहीं देती, मैं दे या ले नहीं सकती, आपको आश्चर्य होगा। यह मेरे माध्यम से उत्सर्जित होता है यह मेरा ‘स्वभाव’ [सहज स्वभाव] है। यह इस तरह से होना चाहिए, मैं यह स्वतःकार्य करता है; यह कार्य करता चला जाता है | सभी को प्यार Read More …

Sab Chijo me Mahamantra ho (भारत)

Sab Chijo me Mahamantra ho, India, 16-03-1977 सब चीज़ों में महामन्त्र हो भारत, १६ मार्च १९७७  कल आपसे मैंने बताया था ध्यान के वक्त कि आप इस तरह से हाथ कर के मेरी ओर बैठें और आपके अन्दर चैतन्य धीरे-धीरे बहता हुआ आपकी कुण्डलिनी को जागृत कर देगा। ये सारी प्रक्रिया ऐसी लगती है जैसे कोई बच्चों का खेल है। और आप लोगों ने इन लोगों को देखा भी होगा जो यहाँ पर सहजयोगी लोग थे कि वो अपने हाथ को घूमा-घूमा कर के और आपको कुछ चैतन्य दे रहे थे और कुछ कार्य कर रहे थे। मामूली तौर से ये चीज़ अगर देखी जाये तो एक बच्चों का खेल लगता है।  जिस वक्त मोहम्मद साहब ने लोगों को नमाज पढ़ने के लिए बताया था तो लोग उनका मज़ाक करते थे और जिस वक्त अनादिकाल में ही होम-हवन आदि हमारे देश में शुरू किये गये थे तब भी ऐसे लोग थे जो सोचते थे कि ये क्या महामूर्खता है? ये क्यों करें? और जब वो बातें रूढ़ीगत हो जाती हैं तब मनुष्य इसको इस तरह से मान लेता है मानो ऐसे कि ये आपके जीवन का एक अंग है। जैसे नमस्कार करना। हम लोग, हिंदुस्तानी आदमी किसी को देखते ही नमस्कार कर लेते हैं। उसके बारे में ये पूछा नहीं करते कि इस तरह से दो हाथ जोड़ के हमने क्यों नमस्कार किया? और पूजा के समय हम इस तरह से आरती क्यों करते हैं और अपना हाथ इस तरह से क्यों घुमाते हैं? साथ में हम दीप ले कर Read More …

The Normal Human Awareness New Delhi (भारत)

                    मानव चेतना से परे  दिल्ली (भारत), 23 फरवरी 1977 और मैं कल ही कुंडलिनी पर दो घंटे बात कर चुकी हूं। जो लोग मेरा भाषण सुनना चाहते हैं वे श्री राय के साथ इसकी व्यवस्था कर सकते हैं और कभी आ सकते हैं और इसे सुन सकते हैं। लेकिन आज आपको हमारे स्वायत्त तंत्रिका तंत्र को नियंत्रित करने वाली तीन शक्तियों और हमारे सभी स्वायत्त व्यवहार की देखभाल करने वाले सात केंद्रों के बारे में बताने के बाद, जो हमारे विकास के विभिन्न चरणों के मील के पत्थर हैं … केंद्र देवताओं के प्रतीक धारण किये हैं जो हमारे विकास के लिए जिम्मेदार हैं, जिन्होंने हमें मार्गदर्शन देकर, हमें नेतृत्व देकर विकसित होने में मदद की है। पूरी कार्रवाई सहज रही है। जैसा कि मैंने कल आपको बताया, ‘सहज’: ‘सह’ का अर्थ है ‘साथ’, ‘ज’ का अर्थ है ‘जन्म’, आपके साथ पैदा हुआ। एक बीज में वृक्ष और भविष्य में आने वाले सभी वृक्षों का पूरा नक्शा सूक्ष्मतम रूप से रखा होता है। उसी तरह, हमारे अस्तित्व में, पूरा नक्शा रखा गया था। अमीबा या उससे भी पहले की अवस्था से हम इंसान होने के लिए काफी लंबी दूरी पार कर चुके हैं। आज मैं आपको सामान्य मानव चेतना के आसपास क्या है इसके बारे में बताने जा रही हूँ। हमें मनुष्य को उसकी संपूर्णता में समझना होगा। जो कुछ भी अज्ञात है उस सारे को जानना बहुत आवश्यक है, क्योंकि जो कुछ भी अज्ञात है वह सब परमात्मा नहीं है। हमें ऐसी गलतफहमी नहीं होना चाहिए की जो कुछ Read More …

The Creation New Delhi (भारत)

“The Creation”, New Delhi (India), 20 February 1977 [Hindi translation from English] आज हमने ‘सृजन’ विषय पर बात करने का निर्णय किया है, परन्तु हमारे आयोजक मेरे लिए श्यामपट और चाॉँक की व्यवस्था नहीं कर पाए हैं। में नहीं जानती, बिना रेखाचित्र बनाए मैं इसकी व्याख्या करने का प्रयत्न करूंगी। यह अत्यन्त कठिन विषय हे, परन्तु आपके लिए मैं इसे सुगम (बोधगम्य) बनाने का प्रयत्न करूंगी और ये अनुरोध भी करूंगी कि ‘सृजन’ जैसे दुर्गण विषय को समझने के लिए आप अपना पूरा चित्‌ इस पर बनाए रखें। आज एक अन्य आशीर्वाद भी है। आज का महानतम आशिष ये है कि आपमें से बहुत से लोग चैतन्य लहरियों को अनुभव कर सकते हैं। केवल इतना ही नहीं, आप ये भी जानते और महसूस करते हैं कि चेतन्‍्य लहरियाँ सोच सकती हैं और प्रेम कर सकती हैं – ये बहुत बड़ा वरदान है। नि:सन्देह आपमें से कुछ लोगों को ये प्राप्त नहीं हो पाई हैं, परन्तु जिन्हें प्राप्त हो गई हैं, वो जानते हैं कि ये (चेतन्‍्य लहरियाँ) आयोजन करती हैं, क्योंकि ये कुण्डलिनी उठाती हैं, ये उस स्थान पर जाती हैं जहाँ इनकी आवश्यकता होती है, करुणा के कारण ये शरीर के उस भाग में पहुँचती हैं जहाँ पर कमी होती है। वे समझती हैं, अपने सर्वव्यापी स्वभाव का आयोजन करती हैं और प्रेम करती हैं। जब-जब भी आप इनसे प्रश्न करते हैं, ये आपके प्रश्नों का उत्तर देती हैं – आपको उनसे उत्तर प्राप्त होते हैं। ये जीवन्त चैतन्य लहरियाँ हैं। ये परमेश्वरी देन हैं। परमेश्वर को ब्रह्म कहा Read More …