Shri Lakshmi Puja and Talk before puja Stamatis Boudouris summer house, Hydra (Greece)

                       श्री लक्ष्मी पूजा  हाइड्रा (ग्रीस), 24 जून 1990। आज हम लक्ष्मी की पूजा करने जा रहे हैं और मैंने आपको पहले ही बताया है कि लक्ष्मी समुद्र से निकली थी। और ग्रीस ब्रह्मांड की नाभी है। और जो भी लक्ष्मी, धन, उन्हें मिली है, उन्होंने इसे वहां की समुद्री यात्रा गतिविधियों से प्राप्त किया है। इसलिए यह बहुत उपयुक्त है कि हम ग्रीस में लक्ष्मी की पूजा करें और समझें कि लक्ष्मी का महत्व क्या है। क्या आप मुझे वहां सुन पा रहे हैं, आप सब? तो अब, मैं कई बार वर्णन कर चुकी हूँ, परन्तु फिर भी मैं तुम्हें उसका वर्णन करूँगी। लक्ष्मी वह है जो स्वभाव से माँ है। तो ऐसा व्यक्ति जिसके पास लक्ष्मी है, एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास धन है, उसके पास एक माँ सामान उदार स्वभाव होना चाहिए; यह पहली बात है। फिर दूसरी बात यह है कि वह जल में कमल पर खड़ी हैं। तो जिस व्यक्ति को लक्ष्मी मिली है, उसके पास संतुलन होना चाहिए। यदि वह इस ओर या उस ओर, बाएँ या दाएँ ओर जाता है तो वह तुरंत भवसागर के भीतर चला जाता है। दूसरा, उनका एक हाथ दे रहा है और दूसरा हाथ इस तरह रक्षा कर रहा है। तो कम से कम जिस व्यक्ति को लक्ष्मी धन मिला है उसे उदार होना चाहिए, उसे दान देना चाहिए और दाहिने हाथ को उन सभी लोगों की रक्षा करनी चाहिए जो उसके अधीन काम कर रहे हैं या जो उससे संबंधित हैं, उसके संबंधी या अन्य चीजें या कोई Read More …

Easter Puja: You Have To Grow Vertically Eastbourne (England)

1990-04-22 ईस्टरपूजा प्रवचन : आपको उर्ध्व दिशा में उत्थान करना है। ब्रिटेन,डीपी आज हम यहाँ पूजा करने जा रहें हैं, ईसा मसीह के पुनरुत्थान की। और साथ ही उन्हें धन्यवाद देना है,  हमें प्रदान करने के लिए ,एक संत का आदर्श जीवन , जिसे कार्य करना है ,संपूर्ण विश्व  के कल्याण लिए । हम ईसा मसीह की बात करते हैं ।हम श्री गणेश   भजन का गायन करते हैं । हम कहते हैं कि हम उनको मानते हैं । विशेष रूप से सहजयोगियों को लगता है कि उनके सभी भाइयों में वे  सबसे बड़े  हैं  ।और एक प्रबल  , समर्पण मैं पातीं हूँ, विशेष रूप से पाश्चात्य सहज योगियों में, ईसा मसीह के लिए । कारण कि शायद हो सकता है कि उनका जन्म ईसाई धर्म में हुआ हो ।अथवा हो सकता है कि उन्होंने  ईसा मसीह के जीवन को पाया हो ,एक बहुत  विशेष प्रकार का  । परंतु उन्हें उस से कहीं अधिक होना है सहज योग के लिए , और आप सहज योगियों के लिए । बहुत से लोग अनेक देवी-देवताओं को मानते हैं । जैसे कुछ लोग श्री कृष्ण को मानतें  हैं, कुछ लोग श्री राम को , कुछ लोग बुद्ध को , कुछ लोग महावीर को एवं कुछ लोग ईसा मसीह को। पूरी दुनिया में, वे अवश्य विश्वास करतें हैं, किसी उच्चतर अस्तित्व में । परंतु शुरुआत मे यह विश्वास बिना योग के  होता है ।और बन जाता है एक प्रकार का,  मिथक  कि वे सोचते हैं कि ,ईसा मसीह उनके अपने  हैं, राम उनके अपने Read More …

Makar Sankranti Puja (भारत)

Shri Surya puja. Kalwe (India), 14 January 1990. [Hindi Transcript] 1990-0114 मकर सक्रांति पूजा, कलवे,  आज के इस शुभ अवसर पे, इस भारतवर्ष में, हर जगह खुशियां मनाई जा रही हैं। इसका कारण यह है कि, सूर्य, जो हमें छोड़ कर के, भारत को छोड़कर और मकर वृत्त पे गया था, वह अब लौट के आया है। और पृथ्वी और सूर्य के युति के साथ, जो जो वनस्पतियां खाद्यान्न आदि चीजें होती हैं, वह सब होने का अब समय आ गया है। और जो पेड़ सर्दी में पुरे पत्तों से दूर हो गए थे, पूरी तरह से ऐसा लग रहा था कि जैसे वह मर गए हैं, वह सारे पेड़ फिर से जागृत हो गए। फिर से हरियाली आने लग गई और इसलिए इस समय का जो विशेष है कि पृथ्वी फिर से हरी भरी हो जाएगी सारे और फिर से कार्यक्रम शुरू हो जाएंगे और विशेषकर उत्तर हिंदुस्तान में जहां ठंड बहुत ज़ोर से की पड़ती है, वहां तो इसका विशेष रूप से उत्सव माना जाता है। सूर्य का आगमन हुआ और सूर्य के कारण जो भी हमारे कार्य हैं वह अब पूरी तरह से होने वाले हैं इसलिए आज की बड़ी शुभेच्छा, हम यहाँ के सब लोगों को  कहते हैं और सोचते हैं कि आज के इस शुभ अवसर पर आप सब लोगों से यहां मिलना हुआ यह भी एक बड़ी आनंद की बात है। जैसे सूर्य का आना हम लोग बहुत ऊंचा मानते हैं, उससे भी कहीं अधिक सहज योग का सूर्य इस पृथ्वी पर आना महत्वपूर्ण Read More …

Devi Puja: Who is the God and Who Is the Goddess Ganapatipule (भारत)

[Hindi from 17 :44] आप  लोगों  को  अंग्रज़ी  तो  काफी  समझ  में  आती होगी , जो  मैंने  बात  कही  है  आपको  सबको  मालूम है,  के  जो  हमारे  अंदर  बैठे  हुए  देवी-देवताएँ  हैं  वो आपकी  पूजा  से  बहुत  प्रसन्न  हो  जाते  हैं  और  बहुत ज़ोरों  में  वाईब्रेशन्स  छोड़ना  शुरू  कर  देते  हैं , कभी  तो  ज़रुरत  से  ज़्यादा ।  चाहे   आप  उसको  अब्सॉर्ब  करें  चाहे  नहीं  करें।   अगर  आपने  उसको अब्सॉर्ब  नहीं  किया  तो  मुझको  ही  तकलीफ  होने लग  जाती  है।  इसलिए  सबको  बहुत  खुले  दिमाग  से, खुले  हृदय  से  पूरी  आर्थतानगनना [UNCLEAR text]  करके  पूजा  में  बैठना  चाहिए।  जिसमे  जितनी  ही  आर्थता  होगी  उतना  ही  उसको  फायदा  होगा।   इसीलिए  शुद्ध  इच्छा  होनी  चाहिए।  इसलिए  अंदर  शुद्ध  इच्छा  करके और  माँ  हमारे  अंदर  आप  ऐसा  कुछ  रंग  भर  दो  की  वो  उतरे  ही  ना,  एक  बार  जो  रंग  भर  गया  तो  वो  उतरे  ही  ना,  ऐसा  ही रंग  भरो।   ऐसी  मन में इच्छा  कर  के  आपको  बैठना  चाहिए।   अच्छा,  अब  काफी  देर  हो  चुकी  है  और  यह  सब  बेकार  में   इन लोगों  ने  पुलिस  वाले  लगा  दिए  हैं  इनके  साथ बैठे-बैठे  भी  टाइम  गया  फिर  उसके  बाद  ये  हुआ , जो  भी  हो  अभी  ठंडी  हवा  चल  रही  है  तो अच्छा  है  कि  इस  वक़्त  पूजा  हो  रही  है।  

Guru Puja: Creativity Lago di Braies (Italy)

                                                  गुरु पूजा लागो डी ब्रे (इटली), 23 जुलाई 1989। आज हमें उस अवस्था तक जिस में हम वास्तव में गुरु की पूजा कर सकते हैं पहुँचने के लिए सामान्य से थोड़ा अधिक समय व्यतीत करना पड़ा है। जब हम अपने गुरु की पूजा करते हैं, तो हमें यह जानना होता है कि वास्तव में हम अपने भीतर गुरु तत्व को जगाने का प्रयास कर रहे हैं। यह केवल ऐसा नहीं है कि आप यहां अपने गुरु की पूजा करने के लिए हैं। आप कई-कई बार पूजा कर सकते हैं, हो सकता है कि चैतन्य बहे, हो सकता है कि आप उससे भर जाएं और आप उत्थान महसूस करें, पोषित हों। लेकिन इस पोषण को हमें अपने भीतर बनाए रखना है, इसलिए हमेशा याद रखें कि जब भी आप बाहर किसी सिद्धांत की पूजा कर रहे होते हैं, तो आप उसी सिद्धांत की अपने ही भीतर पूजा करने की कोशिश कर रहे होते हैं। जैसा कि आप जानते हैं, हमारे भीतर गुरु का सिद्धांत निहित है। नाभि चक्र के चारों ओर खूबसूरती से रचे गुरु तत्व को देखना बहुत दिलचस्प है। हमें कभी भी गुरुतत्त्व से जुड़ा कोई चक्र दिखाई नहीं देता। आप नाभि को देखते हैं, और चारों ओर भवसागर है। तो यह भवसागर जो कि भ्रम का सागर है, गुरु नहीं हो सकता। तो हमारे भीतर इस भवसागर में छिपे हुए चक्र हैं, जिन्हें जगाना है और प्रकाश में लाना है, अभिव्यक्त करना है। जैसा कि आप देख सकते हैं कि इस सिद्धांत की सीमाएं स्वाधिष्ठान चक्र की गति Read More …

Paramchaitanya Puja Taufkirchen (Germany)

                परमचैतन्य पूजा  तौफिरचेन (जर्मनी), 19 जुलाई 1989 [(लाउडस्पीकर से शोर होता है। बच्चे रोने लगते हैं।) श्री माताजी: मुझे लगता है कि बच्चों को थोड़ी देर के लिए बाहर ले जाना बेहतर है। बस यह बेहतर होगा। नमस्ते नमस्ते नमस्ते! मुझे लगता है कि बेहतर होगा उन्हें थोड़ी देर के लिए बाहर ले जाना। वे पसंद नहीं करते थे बंद हो जाता है। (बच्चे अचानक रोना बंद कर देते हैं। हँसी। श्री माताजी हँसती हैं)] मुझसे एक प्रश्न पूछा गया, “आज हम कौन सी पूजा करने जा रहे हैं?” और मैंने इसे गुप्त रखा। आज हमें परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति परम चैतन्य की पूजा करनी चाहिए। हम जानते हैं कि परम चैतन्य सब कुछ करता है। कम से कम मानसिक रूप से हम जानते हैं कि सब कुछ परम चैतन्य की कृपा से किया जाता है, जो आदि शक्ति की शक्ति है। लेकिन फिर भी यह हमारे दिल में, हमारे चित्त में इतना नहीं है। हम परम चैतन्य को एक महासागर की तरह, एक महासागर की तरह मान सकते हैं जिसमें सब कुछ अपने भीतर समाहित है। सब कुछ, सभी काम, सब कुछ इसकी अपनी मर्यादा के भीतर है। इसलिए इसकी तुलना किसी भी चीज से नहीं की जा सकती है। आप इसकी तुलना नहीं कर सकते। अब यदि आप सूर्य को देखते हैं, तो किरणों को काम करने के लिए सूर्य से बाहर आना पड़ता है। यदि आप किसी को देखते हैं, जैसे, एक व्यक्ति जिसके पास एक अधिकार है, उसे उस शक्ति को बाहर प्रकट करना Read More …

Shri Hanumana Puja: You Are All Angels Butlins Grand Hotel, Margate (England)

‘आप सभी देवदूत हैं’: श्री हनुमान पूजा, मार्गेट, केंट, (यूके), 23 अप्रैल 1989 आज का यह दिवस बहुत ही आनंदमय है, और सम्पूर्ण वातावरण इससे उत्साहित  लग रहा है, जैसे कि देवदूत गा रहें हों । और श्री हनुमान की यही विशेषता थी कि वे एक देवदूत थे । देवदूत, देवदूतों की भांति ही जन्म लेते हैं । वे देवदूत हैं, और वे मनुष्य नहीं हैं । वे दैवीय गुणों के साथ जन्म लेते हैं । लेकिन अब, आप सब मानव से देवदूत बन गए हैं । यह सहज योग की एक बहुत महान उपलब्धि है । देवदूतों के साथ जन्म लेने वाली शक्तियां, बचपन से ही उनमें देखी जा सकती हैं।  सर्वप्रथम, वे असत्य, झूठ से भयभीत नहीं होते हैं, वे इस बात की चिंता नहीं करते हैं कि लोग उनसे क्या कहेंगे, और वे जीवन में क्या खों देंगे । उनके लिए सत्य ही उनका जीवन है, सत्य उनके लिए प्राण है, और अन्यत्र कुछ भी उनके लिए महत्व नहीं रखता है । यह एक देवदूत का पहला महान गुण है । सत्य की प्रस्थापना व संरक्षण के लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं और उन लोगो की रक्षा करने के लिए जो सत्य पर स्थित है । तो इस प्रकार से विशाल संख्या में देवदूत हमारे चहुं ओर व्याप्त हैं। तो इस प्रकार से बायें ओर हमारे अंदर गण हैं, तथा दाहिनी तरफ देवदूत स्थित हैं। और इसका अनुवाद संस्कृत भाषा या किसी भी अन्य भारतीय भाषा में देवदूत के रूप में है – Read More …

Shri Krishna Puja: The State of Witnessing Como (Italy)

श्री कृष्ण पूजा (साक्षी भाव की स्तिथि ) इटली , 6 अगस्त 1988. आज हम यहाँ एकत्रित हुए हैं, श्री कृष्ण की पूजा करने के लिए। हमें, विशुद्धि चक्र पर श्री कृष्ण के अवतरन के महत्व को समझना चाहिए। जैसा कि आप अच्छी तरह से जानते हैं, सिवाय एक या दो बार,श्री ब्रह्मदेव ने अपना अवतार लिया है। और एक बार श्री गणेश ने जन्म लिया, भगवान येशु मसीह के रूप में । लेकिन विष्णु तत्व, विष्णु के तत्व ने इस धरती पर कई बार जन्म लिया है, जैसे कि देवी को कई बार अपना जन्म लेना पड़ा। उन्हें कई बार एक साथ काम करना पड़ा और विष्णु तत्व के साथ महालक्ष्मी तत्व ने कार्यान्वित होकर लोगों के उत्थान में मदद की है । तो विष्णु का तत्व आपके उत्थान के लिए है, मनुष्य के उतक्रान्ति की प्रक्रिया के लिए है। इस अवतार के माध्यम से और महालक्ष्मी की शक्ति के माध्यम से, हम अमीबा के स्तर से मनुष्य बन गए हैं। ये हमारे लिए एक स्वाभाविक क्रिया है। लेकिन विष्णु के तत्व के लिए उन्हें, विभिन्न अवतारों से गुजरना पड़ा, उत्थान के लिए।  जैसा कि आप जानते हैं कि श्री विष्णु के कई अवतार हुए, शुरुआत में मछली के रूप में और ऐसा चलता रहा श्री कृष्ण की स्थिति तक, जहाँ कहा जाता हैं कि वे सम्पूर्ण बन गए । लेकिन हमे समझना होगा कि वे हमारे मध्य नाड़ी तंत्र पर काम करते है, वे हमारे मध्य नाड़ी तंत्र का निर्माण करते है। हमारी उत्क्रांति की प्रक्रिया के माध्यम Read More …

Shri Hamsa Swamini puja and two talks Grafenaschau (Germany)

श्री हंसा स्वामिनी पूजा ग्राफेनाशाऊ (जर्मनी), 10 जुलाई 1988। आज हमने जर्मनी में हंसा पूजा करने का फैसला किया है। हमने अभी तक  इस चक्र हंसा पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है, जो कि, मुझे लगता है, भारतीय या पूर्वी के बजाय, पश्चिमी दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कारण है, हंसा चक्र पर, इड़ा और पिंगला का कुछ हिस्सा बाहर निकलता है और अभिव्यक्त होता है – अर्थात इड़ा और पिंगला की अभिव्यक्ति हंस चक्र के माध्यम से दी जाती है। तो यह हंसा चक्र वह है, जो मानो आज्ञा तक नहीं गया है, बल्कि इड़ा और पिंगला के कुछ धागे अथवा हिस्सों को थामे हुए है। और वे आपकी नाक से, आपकी आंखों से, आपके मुंह से और आपके माथे से व्यक्त होने लगते हैं। तो आप जानते ही हैं कि विशुद्धि चक्र में सोलह पंखुड़ियां होती हैं जो आंख, नाक, गला, जीभ, दांतों की देखभाल करती हैं। लेकिन इनकी अभिव्यक्ति वाली भूमिका इन सभी में हंसा चक्र के माध्यम से आता है। तो हंसा चक्र को समझना पश्चिमी दिमाग के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है। इसके बारे में संस्कृत में एक सुंदर दोहा है, “”हंस श्वेतः, बखः श्वेतः। कह भेद: हम्सा बखाओ? नीर-क्षीर विवेकेतु । हंसा हंसा, बकह बकाह।” अर्थ ‘सारस और हंस, दोनों सफेद हैं। और दोनों में क्या फर्क होता है? यदि आप पानी और दूध को एक साथ मिला दें तो हंस केवल दूध को शोषित कर लेगा। तो यह पानी और दूध के बीच अंतर समझ सकता है, जबकि बखा, यानी Read More …

महिलाओं की भूमिका, द्वितीय सेमिनार दिवस Shudy Camps Park, Shudy Camps (England)

महिलाओं की भूमिका, द्वितीय सेमिनार दिवस, 19 जून 1988, शूडी कैम्प, कैम्ब्रिजशायर, यू0के0 कल शाम हमने बहुत सुंदर ध्यान किया और हम सभी ने ठंडी-ठंडी चैतन्य लहरियों का अनुभव भी किया। जैसा कि मैंने आप लोगों को बताया कि ये हमारे इतिहास का सबसे महान दिन है, जिसमें आपका जन्म हुआ है और आप सभी परमात्मा का सर्वोच्च कार्य कर रहे हैं। आप सभी को विशेषकर इसी कार्य के लिये चुना गया है। आप सबको ये जानना होगा कि अब आप लोग संत हैं। लेकिन, इन्ही आशीर्वादों के कारण कभी-कभी आप लोग भूल जाते हैं कि आप लोग अब संत हैं और आपको ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिये जो संतों को शोभा नहीं देता है।   इस बार, कई वर्षों के बाद मैंने श्री एकादश रूद्र पूजा के लिये अपनी सहमति दी है, मुझे मालूम है कि इस पूजा को करना कितना कठिन काम है, क्योंकि अभी भी बहुत से सहजयोगी परिपक्व नहीं है और उनमें से कुछ तो सहजयोग का फायदा उठाकर पैसे कमा रहे हैं और कुछ इससे नाम, प्रसिद्धि, शक्ति या कुछ और प्राप्त करना चाह रहे हैं। वैसे तो इसको अब छोड़ दिया गया है। यह शक्ति, एक प्रकार से बहुत ही खतरनाक शक्ति है और आपको इस संबंध में बहुत ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। निसंदेह, यह उन लोगों और नकारात्मकताओं से आपकी रक्षा करती है जो आपको परेशान करना चाहते हैं और आपको नष्ट करना चाहते हैं। ये आपकी सुरक्षा के लिये हरसंभव प्रयास करना चाहती है, लेकिन यदि आप गलत व्यवहार करते हैं Read More …

Seminar Day 1, Introspection and Meditation Shudy Camps Park, Shudy Camps (England)

Advice, “Introspection and Meditation”. Shudy Camps (UK), 18 June 1988. परामर्श, “आत्मनिरीक्षण और ध्यान”।शुडी कैंप (यूके), 18 जून 1988। इस साल हमारे विचार से यूके में सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं होंगे, क्योंकि कुछ परिस्थितियां भी हैं। लेकिन जब भी कोई ऐसी परिस्थिति आती है, जो किसी न किसी रूप में हमारे कार्यक्रमों को बदल देती है, तो हमें तुरंत समझ जाना चाहिए कि उस बदलाव के पीछे एक उद्देश्य है, और हमें तुरंत खुले दिल से इसे स्वीकार करना चाहिए कि ईश्वर चाहते हैं कि हम बदल दें। मान लीजिए मैं एक सड़क पर जा रही हूँ और लोग कहते हैं, “आप रास्ता भटक गई हो माँ।” यह सब ठीक है। मैं कभी खोयी नहीं हूँ क्योंकि मैं अपने साथ हूँ! (हँसी।) मुझे उस विशेष रास्ते से जाना था, यही बात है। मुझे यही करना था, और इसलिए मुझे उस सड़क पर नहीं होना चाहिए था और मैं अपना रास्ता भटक गयी हूं। यदि आपके पास उस तरह की समझ है, और अगर आपके दिल में वह संतुष्टि है, तो आप पाएंगे कि जीवन जितना आप सोचते हैं उससे कहीं अधिक श्रेयस्कर है। अब, जैसा की है, क्या कारण था, मैंने सोचा, कि हमने निश्चित रूप से इस वर्ष सार्वजनिक कार्यक्रम करने का फैसला किया था, और हम सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं कर सके? तो इसका कारण यह है कि हमें अधिक समर्थ होना होगा। एक पेड़ के विकास में, जो एक जीवित पेड़ है, ऐसा होता है कि यह एक विशेष दिशा में एक बिंदु तक बढ़्ता है जब तक कि Read More …

Shri Ekadasha Rudra Puja Moedling (Austria)

1988-06-08 Ekadasha Rudra Puja, Meodling, Austria [English to Hindi translation] आध्यात्मिकता के इतिहास में आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। सभी पैगम्बरों ने एक रुद्र अवतरण की भविष्यवाणी की। उन्होंने कहा कि एकादश अवतार आएंगे और सारी असुरी शक्तियों तथा सारी परमात्मा विरोधी गतिविधियों को नष्ट करेंगे। वास्तव मैं एकांदश तत्व की रचना भवसागर मे होंती हैं क्योंकि जब अंतरिक्ष अपनी ध्यान धारणा के माध्यम से भ्रम सागर को पार करने के लिए तैयार होते हैं तो असुरी शक्तियाँ उन्हें सताती हैं, कष्ट देती हैं, उनका मार्ग में बाधा डालती हैं तथा उनका वध करती हैं| ये नकारात्मक शक्तियाँ मानवीय असफलताओं क॑ कारण पनपी। मनुष्य जब असफल हुआ तो उसकी द्रष्टि अपने से बेहतर लोगों पर पड़ी और उसे लगा कि वह तो उन मनुष्यों क॑ मुकाबले कहीं भी नहीं है। कई बार क्रोध एवं ईर्ष्या के कारण उसमें दुष्ट स्वभाव जाग उठा जिसने भवसागर मैं परमात्मा विरोधी नकारात्मकता की सृष्टि की। इस प्रकार भवसागर में दुष्टता को आकार प्रदान किया गया। जैसा आप सहजयोग मे देखते हैं, बहुत्त बार हमने ऐसा देखा होगा, जब आप किसी गलत गुरू या गलत व्यक्ति के पास जाते हैं या कोई अनधिकारी पूजा करते है तो आपका दायां भवसागर पकड़ता है। बाए भवसागर में गे सारी विध्वंसक शक्तियां कार्य करती हैं। विकास प्रक्रिया में भी बहुत से पौधे, पशु आदि मध्य में न होने के कारण नष्ट हो गए, क्योंकि वे अत्यन्त अहंकारी और चालाक थे | कुछ बहुत बड़ें थे, कुछ बहुत छोटे थे। उन सबको बाहर फैंक दिया गया और बाहर Read More …

Sahasrara Puja, How it was decided (Italy)

[Hindi translation from English]                      सहस्रार पूजा                                    “यह कैसे तय किया गया” फ्रीगीन (इटली), 8 मई 1988  यदि आप वह पहला दिन जिस दिन सहस्रार खोला गया था की भी गणना करते हैं तो, आज उन्नीसवां सहस्रार दिवस है। मुझे आपको सहस्रार दिवस के बारे में कहानी बतानी है, जिसके बारे में यह निर्णय बहुत समय पहले, मेरे अवतार लेने के भी पूर्व   लिया गया था। स्वर्ग में उनकी एक बड़ी बैठक हुई, सभी पैंतीस करोड़ देवता वहां तय करने के लिए मौजूद थे कि क्या किया जाना है। यह परम है जो हमें मनुष्यों को करना है, उनके सहस्रार को खोलने के लिए, आत्मा के प्रति उनकी जागरूकता को खोलने के लिए, परमात्मा के वास्तविक ज्ञान के लिए, अज्ञानता के अंधकार को दूर करने के लिए, और यह अनायास होना था क्योंकि वह परमेश्वर की जीवंत शक्ति  का काम करना था। साथ ही यह बहुत जल्दी होना था। तो सभी देवताओं ने निवेदन किया कि अब मुझे, आदि शक्ति को जन्म लेना है। उन सभी ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। उन्होंने जो भी संभव था, किया;  उनके द्वारा संत बनाए गए थे, लेकिन बहुत कम। उन्होंने अवतार लिये और लोगों ने उनमें से धर्मों को बनाया जो विकृत थे और उनका नाम ख़राब किया। उन धर्मों में कोई वास्तविकता नहीं। ये धर्म धन उन्मुख या शक्ति उन्मुख थे।  दैवीय शक्ति कोई काम नहीं कर रही थी, वास्तव में यह सब दैव विरोधी कार्य था। अब मानव को इन सतही धर्मों, विनाश के इन विकृत रास्तों से दूर कैसे Read More …

Diwali Puja: Power of Innocence, Meaning of Nine of The Lakshmis Lecco (Italy)

              दीवाली पूजा, “अबोधिता की शक्ति”  लेको (इटली), 25 अक्टूबर 1987। पहला – हम श्री गणेश को नमन करते हैं क्योंकि श्री गणेश हमारे भीतर अबोधिता के स्रोत हैं। तो वास्तव में हम अपने भीतर की मासूमियत को नमन करते हैं। और यह वही अबोधिता है जो आपको ज्ञान देती है। जैसा कि मैंने कल तुमसे कहा था कि प्रकाश में निर्दोषता है, लेकिन यह निर्दोषता ज्ञान के बिना है। परन्तु तुम्हारी प्रबुद्धता ज्ञानमय अबोधिता है। हम हमेशा सोचते हैं कि जिन लोगों को ज्ञान है वे कभी अबोध नहीं हो सकते, कभी सरल नहीं हो सकते। और अबोधिता के बारे में हम यही विचार रखते है कि एक अबोध व्यक्ति को हमेशा धोखा दिया जाता है, उसे धोखा दिया जा सकता है – और उसे हमेशा हल्के में लिया जा सकता है। लेकिन अबोधिता एक शक्ति है; यह एक शक्ति है जो आपकी रक्षा करती है, जो आपको ज्ञान का प्रकाश देती है। सांसारिक अर्थों में हमारे पास जो ज्ञान है वह यह है कि दूसरों का शोषण कैसे किया जाए, दूसरों को कैसे धोखा दिया जाए, उनसे कैसे पैसा कमाया जाए, दूसरों का मजाक कैसे बनाया जाए, दूसरों को कैसे नीचा दिखाया जाए। लेकिन अबोधिता का प्रकाश वह प्रकाश है जिसके द्वारा आप जानते हैं कि प्रेम सर्वोच्च चीज है। और यह आपको सिखाता है कि कैसे दूसरों से प्यार करना है, कैसे दूसरों की देखभाल करना है, कैसे दूसरों के प्रति कोमल होना है। यह आपको आतंरिक का प्रबोध भी देता है। यह इस दुनिया में हमारे पास Read More …

Shri Rama Puja: Dassera Day Les Avants (Switzerland)

                        श्री राम पूजा  लेस अवंत्स (स्विट्जरलैंड), 4 अक्टूबर 1987। आज हम स्विट्जरलैंड में दशहरा दिवस पर श्री राम के राज्याभिषेक का जश्न मना रहे हैं। दशहरा दिवस पर कई बातें हुईं। सबसे खास बात यह थी कि इसी दिन श्री राम का राजा के रूप में राज्याभिषेक हुआ था। इसी दिन उन्होंने रावण का वध भी किया था। कई लोग कह सकते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है कि उन्होंने रावण को मारा और उसी तारीख को उनका राज्याभिषेक हुआ? उन दिनों भारत में, हमारे पास सुपरसोनिक हवाई जहाज़ थे और, यह एक सच्चाई है, और हवाई जहाज़ का नाम पुष्पक था, जिसका अर्थ है फूल। इसे पुष्पक कहा जाता था और इसकी एक ज़बरदस्त गति होती है। तो रावण का वध करने के बाद वे अपनी पत्नी के साथ अयोध्या आए और उसी दिन उनका राज्याभिषेक हुआ। नौवें दिन, उन्होंने अपने हथियारों के लिए शक्ति, सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए देवी की पूजा की और दसवें दिन उन्होंने रावण का वध किया। तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि श्री राम और उनके राज्य के समय कितने उन्नत लोग थे। कारण यह था कि राजा एक अवतार था; ऐसा भी की वे एक कल्याणकारी  राजा थे जैसा कि सुकरात ने वर्णित किया था। श्री राम की कहानी आदि से अंत तक बहुत दिलचस्प है और अब हमारे पास भारत में हमारे टेलीविजन द्वारा की गई उनके बारे में एक सुंदर श्रृंखला है, जो बहुत अच्छी कीमत पर बेची जाती है, हो सकता है कि जब आप वहां आएं Read More …

Shri Krishna Puja: The 16 000 Powers of Shri Krishna Saint-Quentin-en-Yvelines (France)

श्री कृष्ण पूजासेंट क्वेंटिन (फ्रांस), 16 अगस्त 1987। श्री माताजी: वह क्या है?सहज योगी: छोटे गणेश, एक उपहार।कृपया बैठ जाएँ।श्री माताजी : क्या हिल रहा है?सहज योगी: ऐसा लगता है कि यह मंच है।श्री माताजी: यहाँ क्या हिल रहा है? यह ऊर्जा है?सहज योगी: ऐसा लगता है कि यह मंच है। बच्चों का इस खूबसूरत तरीके से आना और मेरा स्वागत करना बहुत सुंदर था। यह आपको कृष्ण के दिनों में वापस ले जा सकता है, जब बचपन में, उनके दोस्तों द्वारा उनका बहुत सम्मान किया जाता था, और उन्होंने हर संभव सम्मान करने की कोशिश की। उनके जन्म की कहानी तो आप जानते ही हैं। इसके अलावा, आप कहानी जानते हैं –श्री माताजी, [एक तरफ]: मुझे लगता है कि आपको पानी बंद कर देना चाहिए, अन्यथा मेरी वाणी थोड़ी-सी हो सकती है- उनके जन्म की कहानी तो आप जानते ही हैं। यहां हमारे पास दोनों तरफ पानी का बहाव है। जिस तरह से वह जमुना नदी के किनारे अपनी बांसुरी बजाते थे। पूरी ही बात कभी-कभी इतनी मानवीय प्रतित होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। सही समय पर, जब भी जरूरत पड़ी, बचपन में, उन्होंने अपनी शक्तियों को प्रकट किया, कि उन्होंने एक महिला को मार डाला जो एक शैतान [पुतना] थी। अंतत: उन्होने कंस का वध कर दिया।उसके बाद, आप जानते हैं कि उन्होंने गीता का उपदेश दिया, लेकिन यह इतना जल्दि नही हुआ। कंस को मारने के बाद, वह वहां शासन करने के लिए द्वारका चले गये। और वहां उन्हे पांच और पत्नियों से शादी करनी है। Read More …

Easter Puja: Materialism Ashram of Pichini, Rome (Italy)

1987-04-19 ईस्टर पूजा वार्ता, भौतिकवाद, रोम आश्रम, रोम, इटली, डीपी आप सभी को ईस्टर की शुभकामनाएँ! आज का दिन महान दिन है। जब ईसा मसीह के पुनरुत्थान का उत्सव  मनाने हेतु रोम में आकर अब हमें ईसाई धर्म का पुनरुत्थान करना है, जो ईसा मसीह के पुनरुत्थान की विपरीत दिशा में बढ़ रहा है। जैसा कि आप जानते हैं कि ईसा मसीह केवल चैतन्य थे, लेकिन वे  चैतन्य-रूपी शरीर में आए। उनका सम्पूर्ण  शरीर चैतन्य का बना हुआ था, और उन्होंने स्वयं को पुनर्जीवित किया दुनिया को यह दिखाने के लिए आप स्वयं को पुनर्जीवित भी कर सकते हैं, यदि आप अपने शरीर को चैतन्य से भर लें। भौतिक पदार्थ और आत्मा के बीच हमेशा संघर्ष होता है। मानव जीवन में जो हम देखते हैं भौतिक पदार्थ सदैव  आत्मा को अपने अधीन करने का प्रयत्न  कर रहे हैं और इस तरह हम अपने पुनरुत्थान में असफल हो जाते हैं। हम अपने पुनरुत्थान में असफल होते हैं क्योंकि हम भौतिकता के लिए राज़ी होते हैं। हम जड़ वस्तुओं से आए हैं – उसमें वापस जाना आसान है। परंतु सभी ईसाई राष्ट्रों ने भौतिक विकास अपना लिया है – भौतिकता के साथ पहचान, न कि जड़ वस्तुओं से उच्च बनाने का कार्य। हम ग़लत क्यों हो गए हैं क्योंकि भौतिक पदार्थ हमारे लिए अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं । हमारा इस जड़ता के साथ इतना तादात्म्य बनता जा रहा है,  हमारे शरीर के साथ, और वे सब जो  हमारे लिए भौतिक पदार्थ हैं। लोग भौतिक चीज़ों को लेकर बहुत चिंतित हैं। मैं Read More …

Makar Sankranti Puja (भारत)

Makar Sankranti Puja 14th January 1987 Date: Place Rahuri Type Puja [Hindi translation from Marathi talk] आज का दिन बहुत शुभ है और इस दिन हम लोगों को तिल-गुड़ देकर मीठा-मीठा बोलने को कहते हैं। हम दूसरों को तो कह देते हैं, पर खुद को भी कहें तो अच्छा होगा। क्योंकि दूसरों को कहना बहुत आसान होता है। यह प्रतीत होता है कि – आप तो मीठा बोलें और हम कड़वा – इस तरह की प्रवृत्ति से कोई भी मीठा नहीं बोलता। कहीं भी जाओ , वहाँ चिल्लाने का कोई कारण न होने पर भी, चिल्लाने के अलावा लोगों को बात करना आता ही नहीं है। उसका कारण यह है कि हमने खुद के बारे में कुछ कल्पना की हुई है। हमें परमात्मा के आशीर्वाद की तनिक भी कल्पना नहीं है। इस देश में परमात्मा ने हमें कितना बडा आशीर्वाद दिया है। देखो, इस देश में स्वच्छता का कोई विचार ही नहीं है। इस देश में तरह-तरह के कीटाणु, तरह पैरासाइटस् अपने देश में हैं। जो कही भी नहीं मिलेगा वह अपने देश में हैं। दूसरे देशों में यहाँ के कुछ पैरासाइटस् जाएं तो वे मर जाते हैं। वहाँ की ठंड में वो रह ही नहीं सकते। सूर्य की कृपा से इतने पैरासाइटस् इस देश में है और उनको मात देकर हम कैसे जिंदा हैं । एक वैज्ञानिक ने मुझसे पूछा कि, ‘अपने इंडिया में लोग जीवित कैसे रहते हैं? मैंने कहा, जीवित ही नहीं रहते, हँसते- खेलते भी रहते हैं, आनंद में रहते हैं, सुख में रहते हैं । Read More …

Devi Puja: The Duties of a Guru Ganapatipule (भारत)

                                                      देवी पूजा  गणपतिपुले (भारत), 3 जनवरी 1987। आज चंद्रमा का तीसरा दिन है। चंद्रमा का तीसरा दिन तृतीया, कुंवारीयों के लिए विशेष दिन है। कुंडलिनी शुद्ध इच्छा है। यह कुंवारी है क्योंकि इसने अभी तक स्वयं को अभिव्यक्त नहीं किया है। और यह भी कि, तीसरे केंद्र नाभी पर, पवित्रता गुरु की शक्तियों के रूप में प्रकट होती हैं। जैसा कि हमें दस गुरु प्राप्त हैं, जिनका हम मूल गुरु के रूप में आदर करते  हैं, वे सभी उनकी बहन या बेटी को अपनी शक्ति के स्वरुप में रखते थे। बाइबिल के पुराने संस्करण में यह कहा गया है कि,  जो आने वाला है वह कुंवारी से पैदा होगा। और तब चूँकि यहूदी ईसा-मसीह को स्वीकार नहीं करेंगे, इसलिए उन लोगों ने ऐसा कहा कि “यह लिखा हुआ शब्द ‘कुंवारी’ नहीं है अपितु,  यह ‘लड़की’ लिखा है”।  अब संस्कृत भाषा में ‘लड़की’ और ‘कुँवारी’ एक ही शब्द है। हमारे पास आजकल की तरह 80 साल की लड़कियां नहीं थीं। तो एक महिला के कौमार्य का मतलब था कि वह एक ऐसी लड़की थी जिसकी अभी तक शादी नहीं हुई थी या जो अब तक अपने पति से नहीं मिली है। वह पवित्रता का सार है, जो गुरु सिद्धांत की शक्ति थी। तो, एक गुरु जो बोध प्राप्ति हेतु दूसरों का नेतृत्व करने का प्रभारी है, उसे यह जानना होगा कि उसकी शक्ति का उपयोग शुद्ध शक्ति की एक कुंवारी शक्ति के रूप में किया जाना है। एक गुरु इस शक्ति का उपयोग उस तरह से नहीं कर सकता जैसे एक Read More …

Shri Mahalakshmi Puja: A temperament of a peaceful personality Sangli (भारत)

श्री महालक्ष्मी पूजादिनांक 31 दिसंबर 1986: स्थान सांगली [मराठी से हिंदीअनुवाद]सहज योग सांगली जिले में धीरे-धीरे फैल रहा है। लेकिन जो चीज धीरे-धीरे फैलती है वह मजबूती से स्थापित हो जाती है। और कोई भी सजीव प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है। इसलिए हमें ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि यह अचानक बड़े पैमाने पर बढ़ेगी। अगर हमें प्लास्टिक के फूल बनाने हैं तो उसके लिए एक मशीन काफी है। लेकिन सजीव फूल बनाने में समय लगता है। इसे उगाने की जरूरत है, प्रयास करने की जरूरत है। बहुत से लोगों को अभी भी सहज योग के बारे में कोई जानकारी नहीं है। और जो जानते हैं उन्हें केवल भ्रांतियां होती हैं। हमारे यहां कई पंथ, संप्रदाय हैं जो लंबे समय से सक्रिय हैं। लेकिन हमें इन पंथों और संप्रदायों से कोई लाभ नहीं हुआ है। “हम इतने दिनों से पंढरी (पंढरपुर) जा रहे हैं, इतने दिनों से तुलजापुर की भवानी की पूजा कर रहे हैं, कोल्हापुर में महालक्ष्मी मंदिर के दर्शन कर रहे हैं। हमने वह सब कुछ किया जो संभव है। उपवास और धार्मिक अनुष्ठान किए। इतना सब करने के बाद भी माताजी हमें कुछ नहीं मिला। इसके भी ऊपर, आपके बच्चे बड़े होकर आपसे पूछेंगे – आपने इतना समय बिताया, पैसा खर्च किया, प्रयास किया और अंत में आपको कुछ भी हासिल नहीं हुआ। यानी कोई भगवान है ही नहीं। अगर आप सांगली जाना चाहते हैं तो सांगली की ओर जाने वाला रास्ता लें। यदि आप उल्टा रास्ता अपनाते हैं तो आप सांगली नहीं पहुंचेंगे। तो इतने सालों के Read More …

Shri Mahadevi Puja: Steady yourself with meditation Chalmala, Alibag (भारत)

मैं सभी सहजयोगियों को नमन करती हूं।इन खूबसूरत परिवेश में, आप में से कई लोग सोच रहे होंगे कि परमात्मा ने इन खूबसूरत चीजों को क्यों बनाया है। क्योंकि आप लोगों को इस धरती पर आना था और उस सुंदरता का आनंद लेना था, जो कि इसका एक कारण है। और अब ईश्वर आनंद और संतुष्टि के साथ बहुत अधिक तृप्ति और एक प्र्कार से अपनी इच्छापुर्ति को महसूस करते हैं।“भगवान ने यह सुंदर ब्रह्मांड क्यों बनाया है?” हजारों वर्षों से ऐसा एक प्रश्न पूछा गया है। कारण समझने में बहुत सरल है: यह जो सौंदर्य बनाया गया है वह स्वयं को नहीं देख सकता है। उसी तरह, सुंदरता का स्रोत ईश्वर अपनी सुंदरता को नहीं देख सकता है। जैसे मोती अपनी सुंदरता को देखने के लिए अपने आप में प्रवेश नहीं कर सकता। जैसे आकाश अपनी सुंदरता को नहीं समझ सकता। सितारे अपनी सुंदरता नहीं देख सकते। सूर्य अपना तेज नहीं देख सकता। उसी तरह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपने स्वयं के अस्तित्व को नहीं देख सकते हैं। उन्हे एक दर्पण की जरूरत है और इसी तरह उसने इस सुंदर ब्रह्मांड को अपने दर्पण के रूप में बनाया है। इस दर्पण में उसने सूर्य की तरह अब सुंदर चीजें बनाई हैं, फिर सूर्य को अपना प्रतिबिंब भी देखना होगा। तो, उसने इन खूबसूरत पेड़ों को यह देखने के लिए बनाया है कि जब वह चमकता है, तो वे इतनी अच्छी तरह से ऊपर आते हैं और इतने हरे दिखते हैं।फिर उन्होंने उन पक्षियों को बनाया है जो सुबह जल्दी उठकर सूर्य Read More …

Shri Mahalakshmi Puja New Delhi (भारत)

महालक्ष्मी पूजा दिल्ली, ३/११/१९८६ इस नववर्ष के शुभ अवसर पर दिल्ली में हमारा आना हआ और आप लोगों ने जो आयोजन किया है ये एक बड़ी हुआ महत्त्वपूर्ण घटना होनी चाहिए। नववर्ष जब शुरू होता है तो कोई न कोई नवीन बात, नवीन धारणा, नवीन सूझबूझ मनुष्य के अन्दर जागृत होती है। वो स्वयं होती है। जिसने भी नवीन वर्ष की कल्पना बनाई है वो कोई बड़े भारी द्रष्टा रहे होंगे कि ऐसे अवसर पर प्रतीक रूप में मनुष्य के अन्दर एक नई उमंग, एक नया विचार, एक नया आन्दोलन जागृत हो जाए । ऐसे अनेक नवीन वर्ष आये और गये, नई उमंगे आयी, नई धारणाऐं आयी और खत्म हो गयी। मनुष्य की आज तक की जो धारणाऐं रही है, एक परमात्मा को छोड़कर बाकी सब मानसिक क्रियाऐं या बौद्धिक परिक्रियाऐं थी। मनुष्य अपनी बुद्धि से जो भी ठीक समझता था उसका आन्दोलन कुछ दूर तक जा के फिर न जाने क्यों हटा और उसी विशेष व्यक्ति को और उसी समाज को या उस समय में रहने वाले लोगों पर आघात पहुँचा । इसका कारण क्या था ये लोग नहीं समझ सके। लेकिन आज हमें इसका साक्षात बहत ज्यादा अधिक स्पष्ट रूप से हो रहा है। जैसे कि धर्म की व्यवस्था हुई। धर्म की व्यवस्था में मनुष्य ने जब भी बुद्धि और मानसिक शक्तियों का उपयोग किया, तो बुद्धि के दम से वो एक वाद- विवाद के क्षेत्र में बंध गया और अनेक वाद-विवाद शुरू हो गये। गर सत्य एक है…. तो पन्थ इतने क्यो हुए? इतने धर्म क्यों हुए? Read More …

7th Day of Navaratri, Shri Mahadevi Puja कोलकाता (भारत)

Shri Mahadevi Puja Date: 10th October 1986    Place: Kolkata    Type: Puja Speech Language: Hindi आज पूजा में पधारे हुए सभी भाविकों को और साधकों को हमारा प्रणिपात! इस कलियुग में माँ की इतनी सेवा, इतना प्यार, और इतना विचार जब मानव हृदय में आ जाता है  तो सत्ययुग की शुरूआत हो ही गयी। ये परम भाग्य है हमारा भी कि षष्ठी के दिन कलकत्ता में आना हआ। जैसा कि विधि का लेखा है, कि कलकत्ता में षष्ठी के ही दिन आया जाता है। षष्ठी का दिन शाकंभरी देवी का है। और उस वक्त सब दूर हरियाली छानी चाहिये। हालांकि यहाँ पर मैंने सुना कि बहुत जोर की बाढ़ आयी, लोगों को बड़ी परेशानी हुई। लेकिन देखती हूँ कि हर जगह हरियाली छायी हुई है। रास्ते टूटे गये थे, पर कोई पेड़ टूटा हुआ नज़र नहीं आया। मतलब ये कि सृष्टि जो कार्य करती है, उसके पीछे कोई न कोई एक निहित, एक गुप्त सी घटनायें होती हैं। कलकत्ता का वातावरण अनेक कारणों से प्रक्षुब्ध है और अशुद्ध भी हो गया है। इसे हमें समझ लेना चाहिये, ये बहुत जरूरी है। इसीलिये देवी की अवकृपा हुई है या कहना चाहिये कि सफ़ाई हुई है।  कलकत्ते में, जहाँ कि साक्षात देवी का अवतरण हुआ। उनका स्थान यही है, जो कि सारे विश्व का हृदय चक्र यही पे बसा हुआ है।  ऐसी जगह हम लोगों ने बहुत ही अधार्मिक कार्यों को महत्त्व दिया है। और सबसे बड़ा अधार्मिक कार्य तांत्रिकों को मानना है। तांत्रिक तो वास्तविक में माँ ही है जो Read More …

Shri Ganesha Puja: Establishing Shri Ganesha Principle YMCA – Camp Marston, San Diego (United States)

सैन डिएगो (यूएसए), 7 सितंबर 1986। आज हम श्रीकृष्ण की धरती पर श्री गणेश जी का जन्मदिन मना रहे हैं। यह कुछ बहुत ही अभूतपूर्व और बहुत महत्वपूर्ण मूल्य का है कि आपको श्री कृष्ण के पुत्र का जन्मदिन उनकी ही भूमि में मनाना चाहिए। आप जानते हैं कि श्री गणेश ने इस पृथ्वी पर महाविष्णु के रूप में अवतार लिया था और वे राधा के पुत्र थे, जिन्होंने प्रभु यीशु मसीह के रूप में अवतार लिया था। तो आज यह जन्मदिन मनाकर आप सबसे बड़े सत्य को पहचान रहे हैं कि प्रभु यीशु मसीह श्रीकृष्ण के पुत्र थे। इसके बारे में यदि आप देवी महात्मायम में पढ़ते हैं तोएक कहानी है, किस प्रकार यह आदि बालक एक अंडे का रूप लेता है और इसका आधा हिस्सा श्री गणेश के रूप में रहता है और आधा महाविष्णु बन जाता है। उत्क्रांति की प्रक्रिया में पुरावशेषों की इन सभी घटनाओं को दर्ज किया गया है लेकिन आज मैं इतनी प्रसन्न महसूस कर रही हूं कि मानव स्तर पर लोग समझ गए हैं कि ईसा भगवान गणेश के अवतार हैं। वह शाश्वत संतान है लेकिन जिस रूप में वह मसीह के रूप में आये, वह श्री कृष्ण के पुत्र के रूप में आये। लेकिन जब पार्वती ने श्री गणेश को बनाया, तब तो वे अकेली पार्वती के पुत्र थे। कोई पिता नहीं था। स्वयं पार्वती अपना ही एक पुत्र पैदा करना चाहती थीं। ऐसे देवदूत थे जो या तो विष्णु को या शिव को समर्पित थे, जैसे गण अकेले शिव को समर्पित Read More …

Shri Krishna Puja: The Six Enemies And False Enemies Hostellerie am Schwarzsee, Plaffeien (Switzerland)

श्री कृष्णा पुजा श्वार्जसी (स्विट्जरलैंड), 23 अगस्त 1986। श्री कृष्ण हमारे विशुद्धि चक्र में निवास करते हैं। इस चक्र में वे श्रीकृष्ण के रूप में विराजमान हैं। बाईं ओर, उनकी शक्ति, विष्णुमाया, उनकी बहन, निवास करती हैं। वहाँ वे गोपाल के रूप में निवास करते हैं, जैसे वे गोकुल में रहने वाले बालक के रूप में खेलते थे। दाहिनी ओर वे द्वारिका में शासन करने वाले राजा श्री कृष्ण के रूप में निवास करते हैं। ये हमारे विशुद्धि चक्र के तीन पहलू हैं। जो लोग अपने दाहिने पक्ष का इस्तेमाल दूसरों पर हावी होने के लिए करते हैं, अपनी आवाज का इस्तेमाल लोगों को नीचा दिखाने के लिए करते हैं, अपना अधिकार दिखाने के लिए, लोगों पर चिल्लाते हैं, ये वही लोग हैं जो दाहिने पक्ष से प्रभावित होते हैं। जब दाहिना भाग पकड़ा जाता है, भौतिक पक्ष पर, आपको एक बहुत बड़ी समस्या होती है क्योंकि दायां हृदय अपने प्रवाह को ठीक से नहीं कर पाता है। परिणाम में आपको दमा और ऐसी ही सभी बीमारी कहते हैं, लेकिन विशेष रूप से जब दाहिना ह्रदय पिता की समस्या से प्रभावित होता है। बाईं ओर विष्णुमाया है, बहन का रिश्ता है। जब बहन, जो आपका शुद्ध संबंध है, उसे बहन के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है, जब किसी व्यक्ति का महिलाओं के प्रति रवैया भोग और वासना का होता है, तो वह बायीं विशुद्धि विकसित करता है। जब वह बायीं विशुद्धि की समस्या को बहुत दृढ़ता से विकसित करता है, और यदि उसके पास खराब आज्ञा है, या Read More …

Talk about Shri Krishna (before the dinner) Hostellerie am Schwarzsee, Plaffeien (Switzerland)

शाम की बात, श्री कृष्ण पूजा संगोष्ठीश्वार्जसी (स्विट्जरलैंड), 23 अगस्त 1986। तो हमने फैसला किया… [माइक्रोफ़ोन थोड़ा और आगे लाया जाना चाहिए ], हमने अपने शाम के खाने के बाद पूजा करने का फैसला किया है क्योंकि श्री कृष्ण रात में लगभग बारह बजे पैदा हुए थे,जबकि मेरा जन्म भी दिन के समय बारह बजे पैदा हुआ था, श्री राम के साथ भी ऐसा ही। और क्राइस्ट का जन्म भी रात के बारह बजे हुआ था। मैंने आपको बताया है कि आज मैं आपको गीता के बारे में बताने जा रही हूं। वह कृष्ण के जीवन का दूसरा भाग है। यह इतना अलग और विविध है कि कुछ लोग, हमेशा की तरह बुद्धिजीवी, कहते हैं कि गोकुल में एक बच्चे के रूप में खेलने वाले कृष्ण द्वारिका के राजा कृष्ण से अलग थे। तो जब वे द्वारिका के राजा बने, तो पांडव और कौरवों के बीच युद्ध हुआ, एक पक्ष अच्छे लोगों का प्रतिनिधित्व करता था, दूसरा पक्ष बुरे लोगों का प्रतिनिधित्व करता था। इसलिए वे उनसे पूछने आए कि क्या वह उनकी तरफ से शामिल होंगे। तो उन्होंने कहा, “मेरे पास मेरी सेना है और मैं स्वयं हूं, इसलिए जो कुछ भी आप चुनते हैं वह आप पा सकते है।” तो कौरवों ने कहा, “हम आपकी सेना लेंगे,” लेकिन पांडवों ने कहा, “हम आपको पाना चाहेंगे।” और इस तरह युद्ध शुरू हुआ और युद्ध में उनका सबसे बड़ा शिष्य पांडवों में से एक नामअर्जुन था। और अर्जुन ने उन्हे अपने पक्ष से लड़ने के लिये पुछा। उन्होंने कहा, “मैं Read More …

Morning of Shri Krishna Puja seminar Hostellerie am Schwarzsee, Plaffeien (Switzerland)

कृष्ण पूजा संगोष्ठीश्वार्जसी (स्विट्जरलैंड), 23 अगस्त 1986। आज आप सभी को यहां श्री कृष्ण पूजा करने के लिए एकत्रित देखकर बहुत आनंद और खुशी हो रही है। क्या तुम मुझे वहाँ सुन पा रहे हो? नहीं? सुन नहीं सकते। ग्रेगोइरे: फिल, क्या आप वापस जोड़ सकते हैं … श्री माताजी : इतने सारे सहजयोगियों को यहाँ एकत्रित देखकर, मुझे यकीन है कि शैतान बहुत पहले भाग गया होगाऔर कारवां चला गया होगा, लेकिन मुझे आशा है कि हम इसके बारे में जागरुक हैं और हमअपनी पकड़ के बारे मेअपने डर, अपने अतीत और अबतक के अपने कृत्य के बारे में भूल जाते हैं।अचानक मेरी उपस्थिति में, मुझे लगता है, लोग अपराध की भावना में आ जाते हैं। मैं यहां आपको शांत करने के लिए, आपको शुद्ध करने के लिए, आपको सुंदर बनाने के लिए हूं ना की दोषी महसूस करवाने के लिए। दरअसल, जब हम अपने आप को देखना शुरू करते हैं, तो पहली चीज जो हम देखते हैं, वह यह है कि आज्ञा में एक अवरोध है, लेकिन आज्ञा में यह रुकावट सबसे बुरी चीज है जो हमारे साथ हो सकती है क्योंकि यह कुंडलिनी का द्वार है। वह विशुद्धि तक पहुँचती है, ठीक है, और जब उसे आगे बढ़ना होता है, तो यह आज्ञा उसे रोक देती है। इसलिए हमे बायें विशुद्धि ग्रस्तता है, हमारे पास सभी विशुद्धि समस्याएं हैं। प्रवाह नहीं हो सकता। इसके अलावा, यह उन कारणो मे से एक है जिन से कि हम दोषी महसूस करते हैं – बायीं विशुद्धि के कारण। यह एक Read More …

Shri Bhumi Dhara Puja (England)

धरती माँ के क्रोध से ज्वालामुखी फूटने लगते हैं….. जय श्री माताजी। कृपया आदि भूमि देवी से प्रार्थना करें कि माँ कृपया हमें क्षमा कर दें और हम सभी को शांति का वरदान दें ताकि संपूर्ण जगत में भी शांति का साम्राज्य हो। (श्री आदि भूमि पूजा, शूडी कैंप, यू0के0 3 अगस्त 1986) आज हम सब यहां धरती माता की पूजा करने के लये एकत्र हुये हैं ….. जिसको हम भूमि पूजा कहते हैं …. श्री धरा पूजा…. उनको धरा कहा जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ध का अर्थ है धारण करना … राधा का अर्थ है … शक्ति को धारण करने वाली और धरती तो सभी को धारण करती है … हम को धारण करती है। हम धरती पर ही निवास करते हैं। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि धरती तीव्र गत से घूम रही है। अगर उनका गुरूत्वाकर्षण न होता तो आज हमारा अस्तित्व भी न होता। इसके अतिरिक्त उन पर वातावरण का भी अत्यधिक दबाव है। वह समझती हैं…सोचती हैं…. समन्वयन और सृजन भी करती है। आपने देखा ही है कि जब आप धरती पर नंगे पांव खड़े होते हैं और मेरे फोटोग्राफ के सामने प्रकाश जलाकर उनसे प्रार्थना करते हैं कि वह आपकी नकारात्मक ऊर्जा को सोख लें तो वह किस प्रकार से आपकी नकारात्मक ऊर्जा को सोख लेती हैं। वह मुझे जानती हैं क्योंकि वह मेरी माँ हैं। वह आप सबकी नानी माँ हैं। इसीलिये वह आपका पोषण करती हैं… आपकी देखभाल करती हैं। सुबह सवेरे जब हम जागते हैं Read More …

Shri Kartikeya Puja: Woman Is A Woman Munich (Germany)

श्री कार्तिकेय पूजा ग्रॉसहार्टपेनिंग, म्यूनिख (जर्मनी), 13 जुलाई 1986 मैं देर से आने के लिए माफी चाहती हूं। मुझे पता नहीं था कि यह कार्यक्रम इस तरह की एक सुंदर जगह पर है और यहाँ आप माइकल एंजेलो की एक खूबसूरत पेंटिंग देख रहे हैं, जो कि आपको बचाने तथा मदद करने की, आपके परम पिता की इच्छा को व्यक्त करती है और अब यह घटित भी हो रहा है । जर्मनी में हमारे साथ बहुत आक्रामक घटनाएं हुई हैं और इसने पश्चिमी जीवन पर सब और विनाशकारी प्रभाव डाला। मूल्य प्रणालियां टूट गईं, धर्म का विचार गड़बड़ा गया, महिलाओं ने पुरुषों की तरह व्यवहार करना शुरू कर दिया और इतने लोग मारे गए। बहुत युवा मर गए, बहुत, बहुत युवा। उनकी सभी इच्छाएँ पूर्ण न हो पाई थी, उनके जीवन ने उन्हें युद्ध के अलावा कुछ नहीं दिया। यह एक तरह से गर्म हवा का झोंका था जो आया और उसने सभी सूक्ष्म चीजों को नष्ट कर दिया। जब प्रकृति राहत चाहती है, या क्रोध करती है, तो यह केवल स्थूल चीजों को नष्ट करती है, लेकिन जब मनुष्य नष्ट करना शुरू करता है, तो वे आपकी मूल्य प्रणाली, आपका चरित्र, आपकी पवित्रता, आपकी अबोधिता, और धैर्य जैसी सूक्ष्म चीजों को भी नष्ट कर देता हैं। इसलिए अब युद्ध सूक्ष्म स्तर पर है। हमें अब यह समझना होगा कि इन सभी चीजों ने पश्चिमी व्यक्तित्व पर, पश्चिम में इस तरह का तोड़ देने वाला दुष्प्रभाव डाला है। तो पहला प्रयास यह करना है कि इसे ठीक करना है, इसे Read More …

ORF Radio Interview Meli Ashram, Vienna (Austria)

[English to Hindi translation]                                                     साक्षात्कार श्री माताजी ने अपने प्रारंभिक जीवन के बारे में बात की  वियना (ऑस्ट्रिया), 9 जुलाई 1986 रिपोर्टर: क्या हम आपके बचपन से शुरुआत कर सकते हैं? श्री माताजी: हाँ। रिपोर्टर: क्या आप उन परिस्थितियों का थोड़ा-बहुत वर्णन कर सकते हैं जहां आप बड़ी हुईं ? श्री माताजी: मेरा परिवार? रिपोर्टर : हां। श्री माताजी : मैं बहुत प्रबुद्ध लोगों के परिवार से हूँ। मेरे पिता एक भाषाविद् थे और वे चौदह भाषाओं में निपुण थे। वह छब्बीस भाषाओं के बारे में जानते थे और उन्होने कुरान-ए-शरीफ का भी हिंदी भाषा में अनुवाद किया। मेरी माँ उन दिनों गणित में ऑनर्स थीं। इसलिए दोनों ही बहुत पढ़े-लिखे और प्रबुद्ध लोग थे। मेरे जन्म के समय मेरी माँ ने कुछ ऐसा सपना देखा था जिसे वे समझा नहीं सकती थीं, लेकिन उसके बाद उन्हें खुले मैदान में जाकर एक बाघ देखने की बड़ी इच्छा हुई। मेरे पिता एक महान शिकारी थे, क्योंकि जिस क्षेत्र में हम रह रहे थे, वहां बाघ एक खतरा थे। यह छिंदवाड़ा नामक एक हिल स्टेशन था। तो एक राजा थे जो मेरे पिता में बहुत रुचि रखते थे। किसी न किसी तरह एक पत्र आया कि एक बाघ है, एक बहुत बड़ा बाघ है जो प्रकट हुआ है और वे उससे डरते हैं कि वह आदमखोर हो सकता है। सो मेरे पिता मेरी माता को उस स्थान पर ले गए। और वे बैठे थे जिसे हम मचान कहते हैं, जहां उन्होंने कुछ बनाया, ताकि लोग एक पेड़ के ऊपर बैठ सकें, जहां Read More …

Guru Puja (Austria)

Guru Puja आपका चित्त कहाँ है? यदि आप गुरू हैं तो फिर आपका चित्त कहाँ है? यदि आपका चित्त लोगों को व स्वयं को सुधारने और अपना पोषण करने पर है तो फिर आप सहजयोगी हैं। फिर आप गुरू कहलाने योग्य हैं। जो भी चीज जीवंत है वह गुरूत्वाकर्षण के विपरीत एक सीमा तक उठ सकती है …. ये सीमित है। जैसे कि हमने पेड़ों को देखा है… वे धरती माँ की गोद से बाहर आते हैं और ऊपर की ओर बढ़ते हैं लेकिन केवल एक सीमा तक ही। हर पेड़ … हरेक प्रकार के पेड़ की अपनी एक सीमा होती है। चिनार का पेड़ चिनार का ही रहेगा और गुलाब का पेड़ गुलाब ही रहेगा। इसका नियंत्रण गुरूत्वाकर्षण बल द्वारा किया जाता है। लेकिन एक चीज ऐसी है जो गुरूत्व बल के विपरीत दिशा में उठती है…. जिसकी कोई सीमायें नहीं हैं …. और ये है आपकी कुंडलिनी माँ। जब तक आप कुंडलिनी को नियंत्रित नहीं करना चाहते हैं तब तक इसे गुरूत्व बल से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। इसको कोई चीज नियंत्रित नहीं कर सकती है लेकिन आप और केवल आप इसे नियंत्रित कर सकते हैं। अतः जब आप अपनी कुंडलिनी के इंचार्ज बन गये तो आपने एक कदम आगे रख लिया है कि आपने उस बल पर विजय प्राप्त कर ली है जिसको गुरूत्व बल कहते हैं। शायद सहजयोगी लोग नहीं जानते हैं कि उनको क्या प्राप्त हुआ है। आदि गुरू और गुरू के बीच केवल एक ही अंतर है और वो है सद्गुरू। मैं Read More …

Public Program, About all chakras कोलकाता (भारत)

Samast Chakra Date 2nd April 1986 : Place Kolkata Public Program Type Speech Language Hindi सहजयोग की शुरुआत एक तिनके से हुई थी जो बढ़कर आज सागर स्वरूप हो गया है। लेकिन इससे अभी महासागर होना है। इसी महानगर में ये महासागर हो सकता है ऐसा अब मुझे पूर्ण विश्वास हो गया है। आज आपको मैं सहजयोग की कार्यता तथा कुण्डलिनी के जागरण से मनुष्य को क्या लाभ होता है वो बताना चाहती हूँ। माँ का स्वरूप ऐसा ही होता है कि अगर आपको कोई कड़वी चीज़ देनी हो तो उसपे मिठाई का लेपन कर देना पड़ता है। किंतु सहजयोग ऐसी चीज़ नहीं है । सहजयोग पे लेपन भी मिठाई का है और उसका अंतरभाग तो बहुत ही सुंदर है। सहजयोग, जैसे आपने जाना है, सह माने जो आपके साथ पैदा हुआ हो। ऐसा जो योग का आपका जन्मसिद्ध हक्क है, वो आपको प्राप्त होना चाहिये। जैसे तिलक ने कहा था, बाल गंगाधर तिलक साहब ने भरी कोर्ट में कहा था, कि जनम सिद्ध हक्क हमारा स्वतंत्र है। उसी तरह हमारा जनम सिद्ध हक्क ‘स्व’ के तंत्र को जानना है। ये ‘स्व’ का तंत्र परमात्मा ने हमारे अन्दर हजारो वर्ष संजोग कर प्रेम से अत्यंत सुंदर बना कर रखा हुआ है। इसलिये इसमें कुछ करना नहीं पड़ता है। सिर्फ कुण्डलिनी का जागरण होकर आपका जब सम्बन्ध इस चराचर में फैली हुई परमात्मा की प्रेम की सृष्टि से, उनके प्रेम की शक्ति से एकाकार हो जाती है तब योग साध्य होता है और उसी से जो कुछ भी आज तक वर्णित Read More …

Birthday Puja कोलकाता (भारत)

Shri Mahakali Puja Date 1st April 1986: Place Kolkata Type Puja २१ मार्च से हमारा जन्मदिवस आप लोग मना रहे हैं और बम्बई में भी बड़ी जोर-शोर से चार दिन तक जन्म दिवस मनाया गया और इसके बाद दिल्ली में जनम दिवस मनाया गया और आज भी लग रहा है फिर आप लोग हमारा जन्म दिवस मनाते रहे। इस कदर सुंदर सजाया हुआ है इस मंडप को, फूलों से और विविध रंगों से सारी शोभा इतनी बढ़ाई हुई है कि शब्द रुक जाते हैं, कलाकारों को देख कर कि उन्होंने किस तरह से अपने हृदय से यहाँ यह प्रतिभावान चीज़ बनाई इतने थोड़ी समय में। आज विशेष स्वरूप ऐसा है कि अधिकतर इन दिनों में जब कि ईस्टर होता है मैं लंदन में रहती हूैँ और हर ईस्टर की पूजा लंदन में ही होती है। तो उन लोगों ने यह खबर की, कि माँ कोई बात नहीं आप कहीं भी रहें जहाँ भी आपकी पूजा होगी वहाँ हमें याद कर लीजिएगा और हम यहाँ ईस्टर की पूजा करेंगे उस दिन। इतने जल्दी में पूजा का सारा इन्तजाम हुआ और इतनी सुंदरता से, यह सब परमात्मा की असीम कृपा है जो उन्होंने ऐसी व्यवस्था करवा दी। लेकिन यहाँ एक बड़ा कार्य आज से आरंभ हो रहा है। आज तक मैंने अगुरुओं के विषय के बारे में बहुत कुछ कहा और बहुत खुले तरीके से मैंने इनके बारे में ये कितने दुष्ट हैं, कितने राक्षसी हैं और किस तरीके से ये सच्चे साधकों का रास्ता रोकते हैं और उनको बताया; गलतफहमी में Read More …

Public Program, Sahajyog Ke Anubhav कोलकाता (भारत)

Sahajyog Ke Anubhav 31st March 1986 Date : Place Kolkata Public Program Type Speech Language Hindi सत्य को खोजने वाले सभी साधकों को हमारा प्रणिपात! सत्य क्या है, ये कहना बहुत आसान है। सत्य है, केवल सत्य है कि आप आत्मा हैं। ये मन, बुद्धि, शरीर | अहंकारादि जो उपाधियाँ हैं उससे परे आप आत्मा हैं। किंतु अभी तक उस आत्मा का प्रकाश आपके चित्त पर | आया नहीं या कहें कि आपके चित्त में उस प्रकाश की आभा दृष्टिगोचर नहीं हुई। पर जब हम सत्य की ओर नज़र करते हैं तो सोचते हैं कि सत्य एक निष्ठर चीज़ है। एक बड़ी कठिन चीज़ है। जैसे कि एक जमाने में कहा जाता था कि ‘सत्यं वदेत, प्रियं वदेत।’ तो लोग कहते थे कि जब सत्य बोलेंगे तो वो प्रिय नहीं होगा। और जो प्रिय होगा वो शायद सत्य भी ना हो। तो इनका मेल कैसे बैठाना चाहिए? श्रीकृष्ण ने इसका उत्तर बड़ा सुंदर दिया है। ‘सत्यं वदेत, हितं वदेत, प्रियं वदेत’ । जो हितकारी होगा वो बोलना चाहिए। हितकारी आपकी आत्मा के लिए, वो आज शायद दुःखदायी हो, लेकिन कल जा कर के वो प्रियकर हो जाएगा। ये सब होते हुए भी हम लोग एक बात पे कभी-कभी चूक जाते हैं कि परमात्मा प्रेम है और सत्य भी प्रेम ही है। जैसे कि एक माँ अपने बच्चे को प्यार करती है तो उसके बारे में हर चीज़ को वो जानती है। उस प्यार ही से उद्घाटन होता है, उस सत्य को जो कि उसका बच्चा है। और प्रेम की भी Read More …

Shri Mahaganesha Puja Ganapatipule (भारत)

                                            श्री महागणेश पूजा  गणपतिपुले (भारत), 1 जनवरी 1986। आज हम सब यहां श्री गणेश को प्रणाम करने के लिए एकत्रित हुए हैं। गणपतिपुले का एक विशेष महत्व है क्योंकि वे महागणेश हैं। मूलाधार में गणेश विराट यानी मस्तिष्क में महागणेश बन जाते हैं। यानी यह श्री गणेश का आसन है। अर्थात श्री गणेश उस आसन से निर्दोषता के सिद्धांत का संचालन करते हैं। जैसा कि आप अच्छी तरह से जानते हैं, जैसा कि वे इसे कहते हैं, यह ऑप्टिक थैलेमस, ऑप्टिक लोब के क्षेत्र में, पीछे रखा जाता है; और वह आँखों को निर्दोषता के दाता है। जब उन्होंने क्राइस्ट के रूप में अवतार लिया – जो यहाँ, सामने, आज्ञा में है – उन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि “तुम्हें आँखें भी व्यभिचारी नहीं होना चाहिए।” यह एक बहुत ही सूक्ष्म कहावत है, जिस में लोग ‘व्यभिचारी’ शब्द का अर्थ भी नहीं समझते हैं। ‘व्यभिचार’ का अर्थ सामान्य शब्द में अशुद्धता है। आँख में कोई भी अशुद्धता “तेरे पास नहीं होगी”। यह बहुत मुश्किल है। यह कहने के बजाय कि आप अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें और अपनी पिछले आज्ञा चक्र को साफ करें, उन्होंने इसे बहुत ही संक्षिप्त रूप में कहा है, “तुम्हें व्यभिचारी आँखे नहीं रखना चाहिए”। और लोगों ने सोचा “यह एक असंभव स्थिति है!” चूँकि उन्हें लंबे समय तक जीने नहीं दिया गया – वास्तव में उनका सार्वजनिक जीवन केवल साढ़े तीन साल तक सीमित है – इसलिए उन्होंने जो कुछ भी कहा है उसका बहुत बड़ा महत्व है, कि आपकी आंखें व्यभिचारी न हों। जब Read More …

Puja: The Purity Inside Dr Sanghvi’s House, Nashik (भारत)

पूजाडॉ. संघवी गार्डन, नासिक (भारत), 17 दिसंबर 1985। नासिक, इस स्थान का विशेष महत्व है। बहुत समय पहले, लगभग आठ हजार साल पहले, जब श्री राम वनवास के लिए गए, तो वे महाराष्ट्र आए और वे विभिन्न स्थानों से गुजरे और वे अपनी पत्नी के साथ इस जगह नासिक में बस गए। और यहाँ एक महिला जो वास्तव में रावण की बहन थी, जिसका नाम शूर्पणखा था, उसने श्री राम को लुभाने की कोशिश की। अब पुरुषों को लुभाने या महिलाओं को लुभाने का यह गुण वास्तव में राक्षसी है और इसलिए लोग उन्हें ‘राक्षस’ कहते हैं। क्योंकि जो लोग राक्षसी लोग होते हैं वे स्वभाव से आक्रामक, अहंकार से भरे और हर किसी पर हावी होना चाहते हैं। और अगर उनका अहंकार संतुष्ट हो जाता है तो वे काफी संतुष्ट महसूस करते हैं। तो जो लोग ऐसे थे, उन्हें इस देश में ‘राक्षस’ कहा जाता था। उनके अनुसार यह सामान्य मानवीय व्यवहार नहीं था। तो ये राक्षस भारत के उत्तरी भाग, उत्तरी भाग में अधिक रहते थे और उनकी विभिन्न श्रेणियां वर्णित हैं। तो स्त्रियों के पीछे दौड़ने वालों को किसी और नाम से पुकारा जाता था और जहाँ स्त्रियाँ उन पर हावी होने की कोशिश करती थीं, उन्हें किसी और नाम से पुकारा जाता था। जहां पुरुष महिलाओं की तरह बनने की कोशिश करते हैं, वहां दूसरा नाम है। लेकिन उन्हें कभी इंसान नहीं कहा गया। उन्हें ‘राक्षस’ या ‘वेताल’ और अन्य सभी नामों से पुकारा जाता था। लेकिन आजकल आप एक ऐसी उलझन पाते हैं कि समझ Read More …

Diwali Puja Tivoli (Italy)

                                                दीवाली पूजा  टिवोली, रोम, 17 नवंबर 1985 आज हम यहां एकत्रित हुए हैं; दिवाली, दीपावली मनाने के लिए। दरअसल सहज योग शुरू होने के बाद ही, असली दिवाली आकार ले रही है। हमारे पास कई खूबसूरत दीपक थे और हमारे पास जलाने के लिए बहुत सारा तेल था। परंतु दीपों को रोशन करने के लिए कोई चिंगारी नहीं थी। और बत्ती जैसा कि आप इसे कहते हैं, हिंदी भाषा में बात्ती कहा जाता है- आपकी कुंडलिनी की तरह है। इसलिए कुंडलिनी को चिंगारी से मिलना था। सभी सुन्दर दीपक बेकार, उद्देश्यहीन, व्यर्थ थे। और यह आधुनिक समय में महान आशीर्वाद हैं, कि इतनी सारे दीपक प्रकाशित हो गए हैं, और हम मानव हृदयों की दीपावली मना रहे हैं। जब आप प्रकाश बन जाते हैं, आप दीपक के बारे में चिंता नहीं करते हैं, यह कैसा दिखता है, इसे कैसे बनाना है, यह सब हो गया है। आपको केवल लौ की, तेल की चिंता करनी है, क्योंकि वह तेल है जो जलता है और प्रकाश देता है। संस्कृत भाषा में – जो देवताओं की भाषा है – तेल को ‘स्निग्धा’, ‘स्निग्धा’ कहा जाता है; कुछ ऐसा जो नरम है लेकिन स्निग्धा है। और ‘स्नेहा’ का अर्थ है प्रेम की दोस्ती’, और अन्य भाषाओं के कवियों ने इस शब्द का इस्तेमाल अलग-अलग तरह से ‘नेहा’ कहकर किया है। उन्होंने इस प्रेम का गुणगान किया है। हर कवि, हर संत ने अपने सुंदर काव्य में इस शब्द का प्रयोग किया है, चाहे वे वियोग में थी या वे मिलन में थी, योग में, Read More …

6th Day of Navaratri, Complete dedication Weggis (Switzerland)

Navaratri puja. Weggis (Switzerland), 19 October 1985 आज नवरात्रि का महान दिन है। हम छठे और सातवें दिन के मध्य में बैठे हैं। षष्ठी और सप्तमी वह दिन है,जब महासरस्वती ने अपना कार्य संपन्न किया और शक्ति ने इसे स्वयं प्रारंभ किया। इसलिए आज बारह बजे देवी स्वयं शक्ति को धारण करेंगीं। वास्तव में, जैसा आप जानते हैं कि महाकाली और महासरस्वती दोनों श्री सदाशिव की शक्तियां हैं। आदिशक्ति ने सबसे पहले स्वयं को महाकाली के रूप में बनाया ,जो कि इच्छा की शक्ति हैं। लेकिन यह शक्तियां और कुछ भी नहीं है, बल्कि ईश्वर के प्रेम की ही शक्ति हैं। इसलिए इस ईश्वरीय महान प्रेम के क्रम में, आदिशक्ति को सर्वप्रथम इच्छा की शक्ति के रूप में निर्मित होना पड़ा। इसी प्रकार से सहजयोगी, जो इस प्रेम की शक्ति से आशीर्वादित किए गए हैं,उन्हें अपने हृदय में पूर्ण इच्छा रखनी चाहिए। प्रेम करने की इच्छा। वह इच्छा मनुष्य के दूसरे तरह के मानवीय प्रेम से, हम जानते है उस प्रेम से बिल्कुल अलग है। अन्य मानवीय प्रेम के दूसरे तरह के प्रेम में, जब हमारा सम्बन्ध दूसरों के साथ होता है तो हम उनसे उम्मीदें रखते हैं। यही कारण है कि यह बहुत निराशाजनक होता है। हमारी अपेक्षाएं हमेशा हमारी समझ और वास्तविकता से बहुत अधिक होती हैं। यही कारण है कि हम निराशा और कुंठा से ग्रस्त हो जाते हैं। और वही प्रेम जो पोषित करने वाला और परिपूर्ण करने वाला होना चाहिए, वह व्यर्थ हो जाता है। इसलिए जब यह प्रेम मनुष्य में प्रतिबिंबित होता है, तब Read More …

Shri Ganesha Puja: The Importance of Chastity Brighton Friends Meeting House, Brighton (England)

श्री गणेश पूजा: पवित्रता का महत्व04-08-1985ब्राइटन फ्रेंड्स मीटिंग हाउस, ब्राइटन (इंग्लैंड) आज हम यहां सही अवसर और बहुत ही शुभ दिन पर श्री गणेश की पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। श्री गणेश प्रथम देवता हैं जिनकी रचना की गई थी ताकि पूरा ब्रह्मांड शुभता, शांति, आनंद और आध्यात्मिकता से भर जाए। वह स्रोत है। वह अध्यात्म का स्रोत है। इसके परिणामस्वरूप अन्य सभी चीजें अनुसरण करती हैं। जैसे जब बारिश होती है और हवा चलती है तो आप वातावरण में ठंडक महसूस करते हैं। उसी तरह जब श्री गणेश अपनी शक्ति का उत्सर्जन करते हैं, तो हम इन तीनों चीजों को भीतर और बाहर महसूस करते हैं। लेकिन यह इतना दुर्भाग्यपूर्ण रहा है, विशेष रूप से पश्चिम में, सबसे महत्वपूर्ण मौलिक देवता को न केवल पूरी तरह से उपेक्षित किया गया है, बल्कि अपमानित किया गया और सूली पर चढ़ाया गया है। तो आज हालांकि मैं कुछ ऐसा नहीं कहना चाहती की आप परेशान हों, लेकिन मैं आपको बता दूं कि श्री गणेश की पूजा करने का मतलब है कि आपके भीतर पूरी तरह से स्वच्छ्ता होनी चाहिए। श्रीगणेश की पूजा करते समय मन को स्वच्छ रखें, हृदय को स्वच्छ रखें, अपने को स्वच्छ रखें – काम और लोभ का कोई विचार नहीं आना चाहिए। दरअसल, जब कुंडलिनी उठती है तो गणेश को हमारे भीतर जगाना होता है, अबोधिता को प्रकट होना पड़ता है – जो हमारे भीतर से ऐसे सभी अपमानजनक विचारों को मिटा देता है। अगर उत्थान हासिल करना है तो हमें समझना होगा कि हमें Read More …

Shri Trigunatmika Puja Huis Overvoorde, Rijswijk (Holland)

Shri Trigunatmika Puja अपना कॉमन सेंस इसमें लगायें और ये तभी संभव हो सकेगा जब आपके अंदर अहं न हो। अहं तो कभी भी कॉमन सेंस नहीं होता क्योंकि मुझे ये पसंद है … वो पसंद है । ये मैं ही अहं है जो अंधा है … विवेकहीन है … मूर्ख है अतः अंततः हम मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं। आपके अंदर कॉमन सेंस होना चाहिये जो अहं के परित्याग के बाद ही संभव है। अब लोग पूछते हैं माँ अहं का परित्याग कैसे करें? ये बहुत सरल है। सहजयोग में आपको अपना बांया दांये के ऊपर 108 बार गिराना चाहिये….. आपको लोगों को माफ करना चाहिये और आप स्वयं को भी देख सकते हैं। सबसे पहले देखें कि आप स्वयं को देखते हैं कि दूसरों को देखते हैं। मेरे साथ एक बार एक महिला यात्रा कर रही थी और वो कहने लगी कि ये आदमी कितना खूबसूरत है … वो महिला कितनी सुंदर है … प्यारी है। मैं उसकी ओर देख रही थी और सोच रही थी कि ये महिली जब तक हम उतरेंगे तब तक पागल ही हो जायेगी। वह सबको देखती ही जा रही थी … सबको जज करती जा रही थी कि कौन खूबसूरत है और कौन नहीं। और वो जिसको भी खूबसूरत बता रही थी मुझे वह व्यक्ति बदसूरत लग रहा था। मैंने उससे कहा कि आप ही ये निर्णय करें ….. मैंने तो ऐसी चीजें कभी भी ट्राइ नहीं की है। इसके बाद वह आदमी बहुत खराब है … बहुत गर्म स्वभाव का है … Read More …

Guru Puja: You Have To Respect Your Guru Château de Chamarande, Chamarande (France)

गुरु पूजापेरिस (फ्रांस), 29 जून 1985। (पूजा की शुरुआत में गेविन ब्राउन ने अंग्रेजी में श्री गणेश की प्रार्थना पढ़कर सुनायी) मुझे विश्वास है कि आप सब इन चीज़ों को कहते हैं, और आप इसे सुनते हैं, और आप इसे अपने दिल से कहते हैं। केवल परमात्मा से जुड़े हुए लोग ही श्री गणेश की पूजा कर सकते हैं। और श्री गणेश आपकी माता की पूजा करते हैं। सबसे पहले, किसी भी व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि एक माँ और एक गुरु का संयोजन है। चुंकि कार्य सम्पन्न करने के उद्देश्य के प्रति गुरु बहुत कठोर होते हैं। वह किसी भी स्वतंत्रता को लेने की अनुमति नहीं देते हैं, और माँ बहुत दयालु हैं। अच्छा, आप में माँ के लिए भावनाएँ भी नहीं हैं, है ना? क्या यह सब एक जुमला है, जिसे आप सुनते हैं, आपके दिमाग में चला जाता है और आपको लगता है कि आप आत्मसमर्पण करने वाले सहज योगी बन गए हैं? वैसे ही जैसे कि,सभी इस्लामी लोग मानते हैं कि उन्होंने भगवान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है, जैसे ईसाई मानते हैं कि उन्होंने भगवान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। यह सिर्फ एक जुमला है कि तुम यह हो, तुम वह हो। आप कैसे जानते हैं कि जो कहा गया है वह सच है? क्या तुमने मेरे हाथों में सूर्य नहीं देखा है? आपको और क्या सबूत चाहिए? जो कोई आपको गुमराह करता है वह निस्संदेह पापी है, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन ऐसे व्यक्ति के जाल में पड़ना क्या है! यदि Read More …

Farewell Puja Founex Ashram, Founex (Switzerland)

बिदाई के अवसर पर पूजा फौनेक्स, स्विटजरलैंड 14 जून 1985 क्या बात है? अब यह कौन खेलेगा? एक दम बढ़िया। बैठ जाओ। बैठ जाओ। आह, गुलाब आकार में बड़े हो गए हैं। क्या तुम्हे वो दिखता है? योगी: विशाल, माताजी। वे विशाल हैं। लेकिन वे आकार में बढ़ रहे हैं। आपके चैतन्य मुझे लगता है। ठीक है। तो अब। मुझे खेद है कि हमें आज यह जल्दबाजी में काम करना पड़ा। और परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है, आज जो स्थिति है वही है। मैं कृष्ण पूजा के लिए वापस नहीं आ सकती, लेकिन – नवरात्रि, क्षमा करें, नवरात्रि, शायद नही हो सकता है, हो सकता है, मैं नहीं कह सकती। लेकिन जो भी हो। थोड़ी पूजा करनी चाहिए। यही इच्छा थी। तो, हम इसे अभी करेंगे; बस आपके पास ज्यादा समय नहीं है। लेकिन आप मंत्र बोल सकते हैं और बस कोई मेरे पैर धो सकता है और फिर मेरे हाथ। तो पैर धोने में करीब पांच मिनट का समय लगता है। योगी: क्या हम आपके एक सौ आठ नाम कहें? अंग्रेजी में एक अनुवाद है। वह होगा। ठीक है? अगर आप ऐसा सोचते हैं – लेकिन मुझे लगता है कि मंत्र बोलना बेहतर है, बेहतर है, चक्रों के मंत्र, आप देखिए। यह कहना अच्छा है क्योंकि वह भी बहुत महत्वपूर्ण है, चक्रों के मंत्रों को कहना। योगी: शुरू से? … अंत से, हाँ। तो आप एक कहते हैं और फिर एक से दूसरे को दोहराते हैं। अब, इसे शुरू करें। हम श्री गणेश से शुरुआत कर सकते Read More …

The Truth Has Two Sides Geneva (Switzerland)

‘सत्य के दो पहलू होते हैं’जिनेवा सार्वजनिक कार्यक्रम 11 जून 1985 मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। लेकिन सत्य के दो पहलू हैं: माया जो हमें दिखाई देती हैं वह सत्य की तरह लग सकती है, और भ्रम का सार भी सत्य प्रतीत हो सकता है। लेकिन दूसरा पहलू निरपेक्ष है और इसे महसूस करना होगा, अपने मध्य तंत्रिका तंत्र पर अनुभव करना होगा। यह कोई मानसिक प्रक्षेपण (कल्पना)नहीं है जिसके बारे में हम सोच सकते हैं, न ही भावनात्मक कल्पना, लेकिन सच्चाई यह है कि इसे बदला नहीं जा सकता है। यह समझौता नहीं कर सकता। सत्य जानने के लिए हमें खुद को नम्र करना होगा। अब इतनी सारी चीजें जो हमें अब तक ज्ञात नही थी हमने विनम्रता से विज्ञान में खोज ली हैं । लेकिन बाहरी रूप में जो कुछ भी जाना जाता है, जैसे पेड़, उसकी जड़ें होनी चाहिए, और अगर आप सिर्फ पेड़ को देख रहे हैं तो इन जड़ों का ज्ञान नहीं हो पायेगा। और जब कोई जड़ों की बात करता है, तो हम हिल जाते हैं, क्योंकि हमें इसका पहले से कोई ज्ञान नहीं था। इस प्रकार हम केवल वृक्ष को देखने के लिए संस्कारित हैं, और हम अपने मन को यह नहीं समझा पाते हैं कि इसकी कुछ जड़ें होनी चाहिए। तो हम कह सकते हैं कि लोग विज्ञान में काफी आगे बढ़ चुके हैं, और तरक्की कर चुके हैं और विकसित देश बन गए हैं। लेकिन वे नहीं जानते हैं कि, अगर वे अपनी जड़ों की तलाश नहीं Read More …

Shri Krishna Puja: Play the melody of God Englewood Ashram, New Jersey (United States)

श्री कृष्ण पूजाएंजलवुड (यूएसए), 2 जून 1985। आज हम श्री कृष्ण की पूजा करने जा रहे हैं। श्री कृष्ण इस धरती पर ऐसे समय आए थे जब भारत में लोग बहुत कर्मकांडी थे। वे तथाकथित ब्राह्मणों के दास बन गए थे, जिन्हें परमात्मा के बारे में बिल्कुल भी पता नहीं था क्योंकि उन्होंने एक ऐसी कहानी शुरू की थी कि एक ब्राह्मण का पुत्र ही ब्राह्मण हो सकता है। तो, जन्म ने व्यक्ति की जाति निर्धारित की। उसके पहले ऐसा नहीं था कि ब्राह्मण का पुत्र ब्राह्मण होगा। यह भी सच है कि यदि आप एक साक्षात्कारीआत्मा हैं, वास्तविक अर्थों में, यदि आप वास्तव में साक्षात्कारीआत्मा हैं, तो आपको अवश्य ही ऐसा एक बच्चा प्राप्त होना चाहिए जो एक साक्षात्कारी आत्मा हो। और ऐसे ही यदि यह कहा जाए कि यदि पिता ब्राह्मण है, साक्षात्कारी आत्मा है, तो उसका पुत्र भी ब्राह्मण हो जाता है। चुंकि आप एक सहज योगी हैं, अब आप समझ सकते हैं कि एक सहज योगी का पुत्र सामान्य रूप से सहज योगी बन जाता है। तो यह तय हुआ कि ब्राह्मण के बच्चों को ब्राह्मण कहा जाएगा। धीरे-धीरे, इसका मतलब यह हुआ कि ब्राह्मण से पैदा हुए किसी भी बच्चे को ब्राह्मण कहा जाता था। अब, हमने देखा है कि कई सहजयोगियों के पास भी अपने बच्चों के रूप में साक्षात्कारी आत्मा नहीं है। हो सकता है उनके अपने कर्म, शायद बच्चे के, कुछ भी हो, लेकिन मैंने भी कुछ सहजयोगियों को भयानक शैतानी बच्चे होते देखा है। तो, यह दर्शाता है कि यह आपके Read More …

Devi Puja: Steady Yourself San Diego (United States)

देवी पूजा.सैन डिएगो, कैलिफ़ोर्निया (यूएसए), 31 मई 1985परमात्मा आपको आशिर्वादित करे।कृपया बैठ जाएँ। (सिर्फ रिकॉर्ड करने के लिए, हम्म?)सैन डिएगो के आश्रम में आकर बहुत खुशी हो रही है। और यह इतनी खूबसूरत जगह है, ईश्वर के, परमात्मा के प्यार को इतना व्यक्त करते हुए, जिस तरह से परमात्मा हर कदम पर आपकी मदद करना चाहता है। यदि आप एक आश्रम चाहते हैं, यदि आप एक उचित स्थान चाहते हैं, आप अपने बच्चों की अच्छी तरह से देखभाल करना चाहते हैं, आप ईश्वरीय काम करना चाहते हैं, हर चीज की देखभाल की जाती है, हर चीज कार्यांवित होनी पड़ती है। अगर यह कार्यांवित ना हो तो आप किस तरहअपना काम करेंगे? तो, यह सब काम करता है। और यह इतना स्पष्ट है, जिस तरह से हमारे पास अलग-अलग आश्रम हैं, बहुत ही उचित धनराशि जो हम खर्च कर सकें में ऐसे आरामदायक स्थान उपलब्ध हैं, कि हम एक साथ खुशी से रह सकते हैं। यह आपके लिए प्यार से बनाया गया घर है। तो सबसे पहले हमें एक बात याद रखनी होगी कि आपस में पूर्ण प्रेम हो। [मराठी] हमें उन लोगों पर भरोसा नहीं करना चाहिए जो हमें बांटने की कोशिश करते हैं, जो हमें गलत विचार देने की कोशिश करते हैं। ऐसे व्यक्ति को पहचानना जो दिल से सहजयोगी हो बहुत आसान है। पहचानना बहुत आसान है। आपको थोड़ा और संवेदनशील होना होगा और आप ऐसे व्यक्ति को बहुत आसानी से खोज लेंगे। जो कोई भी चालाक हो, उसे खोजा जा सकता है। अब कोई परमेश्वर के विरुद्ध Read More …

Shri Ganesha Puja: You Should be Prepared to Change Rome Ashram – Nirmala House, Rome (Italy)

                       श्री गणेश पूजा  रोम (इटली), १९ मई १९८५। मेरे लिए बहुत श्रेष्ठ दिन है कि, गणेश पूजा मनाने के लिए इटली आई हूँ। चारों तरफ जिस प्रकृति को हम देखते हैं, वह गणेश का आशीर्वाद ही है क्योंकि वे ही हैं जो धरती माता से प्रार्थना करते हैं कि वह मनुष्यों पर अपना आशीर्वाद दें। 3:26 यह वही है जो प्रकृति के सभी तत्वों को ढाल कर और उन्हें जीवन बनाने के लिए प्रेरित करता है। जैसा कि आप उन्हें कहते हैं, ये सभी कार्बोहाइड्रेट हैं। अब कार्बोहाइड्रेट में कार्बन और हाइड्रोजन होते है। कार्बन श्री गणेश से आ रहा है और हाइड्रोजन महाकाली से आ रही है। और इस तरह हमारे चारों तरफ इस खूबसूरत तरीके से इस ब्रह्मांड का निर्माण होता है। अब, इन कार्बोहाइड्रेट को ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है जो हमें सूर्य द्वारा, दायें पक्ष द्वारा दी जाती है। इस प्रकार, आप जानते हैं कि ये पेड़ रात में हाइड्रोजन उत्सर्जित करते हैं और दिन में ये ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं। यह सब श्री गणेश की चाल है जो बीच में विराजमान हैं। अब वही सूर्य बनते है। वह कुंडलिनी के नीचे गहरे आसन से उत्थान करते है। वह महाकाली के बाएं पक्ष से उठकर ऊपर जाते है और सूर्य अर्थात् आज्ञा चक्र में स्थित हो जाते है। तो महाकाली, जो कि आदि शक्ति है, को वे पूर्णतया पार कर जाते हैं| महाकाली की संतान के रूप में, वह पूरी तरह से उनके प्रति समर्पित और श्रद्धामय हैं। और इसी तरह वह महाकाली शक्ति में निपुण Read More …

Sahasrara Puja Laxenburg (Austria)

आप विराट के सहस्त्रार में प्रवेश कर रहे हैं …. (सहस्त्रार पूजा, लक्समबर्ग , वियेना, ( ऑस्ट्रिया ), 5 मई 1985) आज हम ऑस्ट्रिया की महारानी द्वारा बनाये गये इस स्थान पर सहस्त्रार पूजा के लिये एकत्र हुये हैं। जैसे ही आप सहस्त्रार के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तभी आपको सहस्त्रार पूजा करने का अधिकार है। इससे पहले किसी ने भी सहस्त्रार के विषय में बात नहीं की ….. और न ही उन्होंने कभी सहस्त्रार की पूजा की। ये आपका ही विशेषाधिकार है कि आप सहस्त्रार के क्षेत्र में पंहुच चुके हैं और इसकी पूजा भी कर रहे हैं। ये आपका अधिकार है ….. इसी कार्य के लिये आपका चयन हुआ है। ये आपके लिये विशेषाधिकार प्राप्त स्थान है कि आप विराट के सहस्त्रार में प्रवेश कर रहे हैं …. उनके मस्तिष्क में सहस्त्रार की कोशिका के रूप में निवास करने के लिये। आइये देखें कि सहस्त्रार की कोशिकाओं की विशेषतायें क्या हैं। स्वाधिष्ठान के कार्य करने के कारण ये कोशिकायें विशेष रूप से सृजित हैं और ये सभी चक्रों से होकर गुजरती हैं। जब वह सहस्त्रार पर पंहुचती हैं तो वे बिना शरीर के अन्य तत्वों से मिले या आसक्त हुये मस्तिष्क की गतिविधियों की देख रेख कर सकती हैं। इसी प्रकार से सहजयोगियों को भी अन्य कोशिकाओं ….. इस ब्रह्मांड के अन्य मनुष्यों से नहीं मिलना चाहिये। सबसे पहली चीज जो सहजयोगियों को सहस्त्रार के स्तर पर होती है वह है उसका सभी चीजों से परे हो जाना। वह कई चीजों से परे हो जाता है …. Read More …